मरकुस
Chapter 1
1. परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह के सुसमाचार का आरम्भ। 2. जैसे यशायाह भविष्यद्वकता की पुस्तक में लिखा है कि देख; मैं अपके दूत को तेरे आगे भेजता हूं, जो तेरे लिथे मार्ग सुधारेगा। 3. जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द सुनाई दे रहा है कि प्रभु का मार्ग तैयार करो, और उस की सड़कें सीधी करो। 4. यूहन्ना आया, जो जंगल में बपतिस्क़ा देता, और पापोंकी झमा के लिथे मनफिराव के बपतिस्क़ा का प्रचार करता या। 5. और सारे यहूदिया देश के, और यरूशलेम के सब रहनेवाले निकलकर उसके पास गए, और अपके पापोंको मानकर यरदन नदी में उस से बपतिस्क़ा लिया। 6. यूहन्ना ऊंट के रोम का वस्त्र पहिने और अपक्की कमर में चमड़ें का पटुका बान्धे रहता या ओर ट्टिड्डियाँ और वन मधु खाया करता या। 7. और यह प्रचार करता या, कि मेरे बाद वह आने वाला है, जो मुझ से शक्तिमान है; मैं इस योग्य नहीं कि फुककर उसके जूतोंका बन्ध खोलूं। 8. मैं ने तो तुम्हें पानी से बपतिस्क़ा दिया है पर वह तुम्हें पवित्र आत्क़ा से बपतिस्क़ा देगा।। 9. उन दिनोंमें यीशु ने गलील के नासरत से आकर, यरदन में यूहन्ना से बपतिस्क़ा लिया। 10. और जब वह पानी से निकलकर ऊपर आया, तो तुरन्त उस ने आकाश को खुलते और आत्क़ा को कबूतर की नाईं अपके ऊपर उतरते देखा। 11. और यह आकाशवाणी हई, कि तू मेरा प्रिय पुत्र है, तुझ से मैं प्रसन्न हूं।। 12. तब आत्क़ा ने तुरन्त उस को जंगल की ओर भेजा। 13. और जंगल में चालीस दिन तक शैतान ने उस की पक्कीझा की; और वह वन पशुओं के साय रहा; और स्वर्गदूत उन की सेवा करते रहे।। 14. यूहन्ना के पकड़वाए जाने के बाद यीशु ने गलील में आकर परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार किया। 15. और कहा, समय पूरा हुआ है, और परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है; मन फिराओ और सुसमाचार पर विश्वास करो।। 16. गलील की फील के किनारे किनारे जाते हुए, उस ने शमौन और उसके भाई अन्द्रियास को फील में जाल डालते देखा; क्योंकि वे मछुवे थे। 17. और यीशु ने उन से कहा; मेरे पीछे चले आओ; मैं तुम को मनुष्योंके मछुवे बनाऊंगा। 18. वे तुरन्त जालोंको छोड़कर उसके पीछे हो लिए। 19. और कुछ आगे बढ़कर, उस ने जब्दी के पुत्र याकूब, और उसके भाई यहून्ना को, नाव पर जालोंको सुधारते देखा। 20. उस ने तुरन्त उन्हें बुलाया; और वे अपके पिता जब्दी को मजदूरी के साय नाव पर छोड़कर, उसके पीछे चले गए।। 21. और वे कफरनहूम में आए, और वह तुरन्त सब्त के दिन सभा के घर में जाकर उपकेश करने लगा। 22. और लोग उसके उपकेश से चकित हुए; क्योंकि वह उन्हें शास्त्रियोंकी नाईं नहीं, परन्तु अधिक्कारनेी की नाई उपकेश देता या। 23. और उसी समय, उन की सभा के घर में एक मनुष्य या, जिस में एक अशुद्ध आत्क़ा यी। 24. उस ने चिल्लाकर कहा, हे यीशु नासरी, हमें तुझ से क्या काम क्या तू हमें नाश करने आया है मैं तुझे जानता हूं, तू कौन है परमेश्वर का पवित्र जन! 25. यीशु ने उसे डांटकर कहा, चुप रह; और उस में से निकल जा। 26. तब अशुद्ध आत्क़ा उस को मरोड़कर, और बड़े शब्द से चिल्लाकर उस में से निकल गई। 27. इस पर सब लोग आश्चर्य करते हुए आपस में वाद-विवाद करने लगे कि यह क्या बात है यह तो कोई नया उपकेश है! वह अधिक्कारने के साय अशुद्ध आत्क़ाओं को भी आज्ञा देता है, और वे उस की आज्ञा मानती हैं। 28. सो उसका नाम तुरन्त गलील के आस पास के सारे देश में हर जगह फैल गया।। 29. और वह तुरन्त आराधनालय में से निकलकर, याकूब और यूहन्ना के साय शमौन और अन्द्रियास के घर आया। 30. और शमौन की सास ज्वर से पीडित यी, और उन्होंने तुरन्त उसके विषय में उस से कहा। 31. तब उस ने पास जाकर उसका हाथ पकड़ के उसे उठाया; और उसका ज्वर उस पर से उतर गया, और वह उन की सेवा-टहल करने लगी।। 32. सन्ध्या के समय जब सूर्य डूब गया तो लोग सब बीमारोंको और उन्हें जिन में दुष्टात्क़ा भीं उसके पास लाए। 33. और सारा नगर द्वार पर इकट्ठा हुआ। 34. और उस ने बहुतोंको जो नाना प्रकार की बीमारियोंसे दुखी थे, चंगा किया; और बहुत से दुष्टात्क़ाओं को निकाला; और दुष्टात्क़ाओं को बोलने न दिया, क्योंकि वे उसे पहचानती यीं।। 35. और भोर को दिन निकलने से बहुत पहिले, वह उठकर निकला, और एक जंगली स्यान में गया और वहां प्रार्यना करने लगा। 36. तब शमौन और उसके सायी उस की खोज में गए। 37. जब वह मिला, तो उस से कहा; कि सब लोग तुझे ढूंढ रहे हैं। 38. उस न उन से कहा, आओ; हम ओर कहीं आस पास की बस्तियोंमें जाएं, कि मैं वहां भी प्रचार करूं, क्योंकि मै। इसी लिथे निकला हूं। 39. सो वह सारे गलील में उन की सभाओं में जा जाकर प्रचार करता और दुष्टात्क़ाओं को निकालता रहा।। 40. और एक कोढ़ी ने उसके पास आकर, उस से बिनती की, और उसके साम्हने घुटने टेककर, उस से कहा; यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है। 41. उस ने उस पर तरस खाकर हाथ बढ़ाया, और उसे छूकर कहा; मैं चाहता हूं तू शुद्ध हो जा। 42. और तुरन्त उसका कोढ़ जाता रहा, और वह शुद्ध हो गया। 43. तब उस ने उसे चिताकर तुरन्त विदा किया। 44. और उस से कहा, देख, किसी से कुछ मत कहना, परन्तु जाकर अपके आप को याजक को दिखा, और अपके शुद्ध होने के विषय में जो कुछ मूसा ने ठहराया है उसे भेंट चढ़ा, कि उन पर गवाही हो। 45. परन्तु वह बाहर जाकर इस बात को बहुत प्रचार करने और यहां तक फैलाने लगा, कि यीशु फिर खुल्लमखुल्ला नगर में न जा सका, परन्तु बाहर जंगली स्यानोंमें रहा; औश्र् चहुंओर से लागे उसके पास आते रहे।।
Chapter 2
1. कई दिन के बाद वह फिर कफरनहूम में आया और सुना गया, कि वह घर में है। 2. फिर इतने लोग इकट्ठे हुए, कि द्वार के पास भी जगह नहीं मिली; और वह उन्हें वचन सुना रहा या। 3. और लोग एक फोले के मारे हुए को चार मनुष्योंसे उठवाकर उसके पास ले आए। 4. परन्तु जब वे भीड़ के कारण उसके निकट न पंहुच सके, तो उन्होंने उस छत को जिस के नीचे वह या, खोल दिया और जब उसे उधेड़ चुके, तो उस खाट को जिस पर फोले का मारा हुआ पड़ा या, लटका दिया। 5. यीशु न, उन का विश्वास देखकर, उस फोले के मारे हुए से कहा; हे पुत्र, तेरे पाप झमा हुए। 6. तब कई एक शास्त्री जो वहां बैठे थे, अपके अपके मन में विचार करने लगे। 7. कि यह मनुष्य क्योंऐसा कहता है यह तो परमेश्वर की निन्दा करता है, परमेश्वर को छोड़ और कोन पाप झमा कर सकता है 8. यीशु ने तुरन्त अपक्की आत्क़ा में जान लिया, कि वे अपके अपके मन में ऐसा विचार कर रहे हैं, और उन से कहा, तुम अपके अपके मन में यह विचार क्योंकर रहे हो 9. सहज क्या है क्या फोले के मारे से यह कहता कि तेरे पाप झमा हुए, या यह कहना, कि उठ अपक्की खाट उठा कर चल फिर 10. परन्तु जिस से तुम जान लो कि मनुष्य के पुत्र को पृय्वी पर पाप झमा करने का भी अधिक्कारने है (उस ने उस फोले के मारे हुए से कहा)। 11. मैं तुझ से कहता हूं; उठ, अपक्की खाट उठाकर अपके घर चला जा। 12. और वह उठा, और तुरन्त खाट उठाकर और सब के साम्हने से निकलकर चला गया, इस पर सब चकित हुए, और परमेश्वर की बड़ाई करके कहने लगे, कि हम ने ऐसा कभी नहीं देखा।। 13. वह फिर निकलकर फील के किनारे गया, और सारी भीड़ उसके पास आई, और वह उन्हें उपकेश देने लगा। 14. जाते हुए उस ने हलफई के पुत्र लेवी को चुंगी की चौकी पर बैठे देखा, और उस से कहा; मेरे पीछे हो ले। 15. और वह उठकर, उसके पीछे हो लिया: और वह उसके घर में भोजन करने बैठे; क्योंकि वे बहुत से थे, और उसके पीछे हो लिथे थे। 16. और शास्त्रियोंऔर फरीसियोंने यह देखकर, कि वह तो पापियोंऔर चुंगी लेनेवालोंके साय भोजन कर रहा है, उसक चेलोंसे कहा; वह तो चुंगी लेनेवालोंऔर पापियोंके साय खाता पिता है!! 17. यीशु ने यह सुनकर, उन से कहा, भले चंगोंको वैद्य की आवश्यकता नहीं, परन्तु बीमारोंको है: मैं धमिर्योंको नहीं, परन्तु पापियोंको बुलाने आया हूं।। 18. यूहन्ना के चेले, और फरीसी उपवास करते थे; सो उन्होंने आकर उस से यह कहा; कि यूहन्ना के चेले और फरीसियोंके चेले क्योंउपवास रखते हैं परन्तु तेरे चेले उपवास नहीं रखते। 19. यीशु ने उन से कहा, जब तक दुल्हा बरातियोंके साय दहता है क्या वे उपवास कर सकते हैं सो जब तक दूल्हा उन के साय है, तब तक वे उपवास नहीं कर सकते। 20. परन्तु वे दिन आएंगे, कि दूल्हा उन से अलग किया जाएगा; उस समय वे उपवास करेंगे। 21. कोरे कपके का पैबन्द पुराने पहिरावन पर कोई नहीं लगाता; नहीं तो वह पैबन्द उस में से कुछ खींच लेगा, अर्यात् नया, पुराने से, और वह और फट जाएगा। 22. नथे दाखरस को पुरानी मशकोंमें कोई नहीं रखता, नहीं तो दाखरस मश्कोंको फाड़ देगा, और दाखरस और मश्कें दोनोंनष्ट हो जाएंगी; परन्तु दाख का नया रस नई मश्कोंमें भरा जाता है।। 23. और ऐसा हुआ कि वह सब्त के दिन खेतोंमें से होकर जा रहा या; और उसके चेले चलते हुए बालें तोड़ने लगे। 24. तब फरीसियोंने उस से कहा, देख; थे सब्त के दिन वह काम क्योंकरते हैं जो उचित नहीं 25. उस ने उन से कहा, क्या तुम ने कभी नहीं पढ़ा, कि जब दाऊद को आवश्यकता हुई और जब वह और उसके सायी भूखे हुए, तब उस ने क्या किया या 26. उस ने क्योंकर अबियातार महाथाजक के समय, परमेश्वर के भवन में जाकर, भेंट की रोटियां खाईं, जिसका खाना याजकोंको छोड़ और किसी को भी उचित नहीं, और अपके सायियोंको भी दीं 27. और उस ने उन से कहा; सब्त का दिन मनुष्य के लिथे बनाया गया है, न कि मनुष्य सब्त के दिन के लिथे। 28. इसलिथे मनुष्य का पुत्र सब्त के दिन का भी स्वामी है।।
Chapter 3
1. और वह आराधनालय में फिर गया; और वहां एक मनुष्य या, जस का हाथ सूख गया या। 2. और वे उस पर दोष लगाने के लिथे उस की घात में लगे हुए थे, कि देखें, वह सब्त के दिन में उसे चंगा करता है कि नहीं। 3. उस ने सूखे हाथवाले मनुष्य से कहा; बीच में खड़ा हो। 4. और उन से कहा; क्या सब्त के दिन भला करना उचित है या बुरा करता, प्राण को बचाना या मारना पर वे चुप रहे। 5. और उस ने उन के मन की कठोरता से उदास होकर, उन को क्रोध से चारोंओर देखा, और उस मनुष्य से कहा, अपना हाथ बढ़ा उस ने बढ़ाया, और उसका हाथ अच्छा हो गया। 6. तब फरीसी बाहर जाकर तुरन्त हेरोदियोंके साय उसके विरोध में सम्मति करने लगे, कि उसे किस प्रकार नाश करें।। 7. और यीशु अपके चेलोंके साय फील की ओर चला गया: और गलील से एक बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली। 8. और यहूदिया, और यरूशलेम और इदूमिया से, और यरदन के पार, और सूर और सैदा के आसपास से एक बड़ी भीड़ यह सुनकर, कि वह कैसे अचम्भे के काम करता है, उसके पास आई। 9. और उस ने अपके चेलोंसे कहा, भीड़ के कारण एक छोटी नाव मेरे लिथे तैयार रहे ताकि वे मुझे दबा न सकें। 10. क्योंकि उस ने बहुतोंको चंगा किया या; इसलिथे जितने लोगे रोग से ग्रसित थे, उसे छूने के लिथे उस पर गिरे पड़ते थे। 11. और अशुद्ध आत्क़ांए भी, जब उसे देखती यीं, तो उसके आगे गिर पड़ती यीं, और चिल्लाकर कहती यीं कि तू परमेश्वर का पुत्र है। 12. और उस ने उन्हें बहुत चिताया, कि मुझे प्रगट न करना।। 13. फिर वह पहाड़ पर चढ़ गया, और जिन्हें वह चाहता या उन्हें अपके पास बुलाया; और वे उसके पास चले आए। 14. तब उस ने बारह पुरूषोंको नियुक्त किया, कि वे उसके साय साय रहें, और वह उन्हें भेजे, कि प्रचार करें। 15. और दुष्टात्क़ाओं के निकलने का अधिक्कारने रखें। 16. और वे थे हैं: शमौन जिस का नाम उस ने पतरस रखा। 17. और जब्दी का पुत्र याकूब, और याकूब का भाई यूहन्ना, जिनका नाम उस ने बूअनरिगस, अर्यात् गर्जन के पुत्र रखा। 18. और अन्द्रियास, और फिलप्पुस, और बरतुल्मै, और मत्ती, और योमा, और हलफई का पुत्र याकूब; और तद्दी, और शमौन कनानी। 19. और यहूदा इस्किरयोती, जिस ने उसे पकड़वा भी दिया।। 20. और वह घर में आया: और ऐसी भीड़ इकट्ठी हो गई, कि वे रोटी भी न खा सके। 21. जब उसके कुटुम्बियोंने यह सुना, तो उसे पकड़ने के लिथे निकले; क्योंकि कहते थे, कि उसका चित्त ठिकाने नहीं है। 22. और शास्त्री जो यरूशलेम से आए थे, यह कहते थे, कि उस में शैतान है, और यह भी, कि वह दुष्टात्क़ाओं के सरदार की सहाथता से दुष्टात्क़ाओं को निकालता है। 23. और वह उन्हें पास बुलाकर, उन से दुष्टान्तोंमें कहने लगा; शैतान क्योंकर शैतान को निकाल सकता है 24. और यदि किसी राज्य में फूट पके, तो वह राज्य क्योंकर स्यिर रह सकता है 25. और यदि किसी घर में फूट पके, तो वह घर क्योंकर स्यिर रह सकेगा 26. और यदि शैतान अपना ही विरोधी होकर अपके में फूट डाले, तो वह क्योंकर बना रह सकता है उसका तो अन्त ही हो जाता है। 27. किन्तु कोई मनुष्य किसी बलवन्त के घर में घुसकर उसका माल लूट नहीं सकता, जब तक कि वह पहिले उस बलवन्त को न बान्ध ले; और तब उसके घर को लूट लेगा। 28. मैं तुम से सच कहता हूं, कि मनुष्योंकी सन्तान के सब पाप और निन्दा जो वे करते हैं, झमा की जाएगी। 29. परन्तु जो कोई पवित्रात्क़ा के विरूद्ध निन्दा करे, वह कभी भी झमा न किया जाएगा: वरन वह अनन्त पाप का अपराधी ठहरता है। 30. क्योंकि वे यह कहते थे, कि उस में अशुद्ध आत्क़ा है।। 31. और उस की माता और उसके भाई आए, और बाहर खड़े होकर उसे बुलवा भेजा। 32. और भीड़ उसके आसपास बैठी यी, और उन्होंने उस से कहा; देख, तेरी माता और तेरे भाई बाहर तुझे ढूंढते हैं। 33. उस ने उन्हें उत्तर दिया, कि मेरी माता और मेरे भाई कौन हैं 34. और उन पर जो उसके आस पास बैठे थे, दृष्टि करके कहा, देखो, मेरी माता और मेरे भाई यह हैं। 35. क्योंकि जो कोई परमेश्वर की इच्छा पर चले, वही मेरे भाई, और बहिन और माता है।।
Chapter 4
1. वह फिर फील के किनारे उपकेश देने लगा: और ऐसी बड़ी भीड़ उसके पास इकट्ठी हो गई, कि वह फील में एक नाव पर चढ़कर बैठ गया और सारी भीड़ भूमि पर फील के किनारे खड़ी रही। 2. और वह उन्हें दृष्टान्तोंमें बहुत सी बातें सिखाने लगो, और अपके उपकेश में उन से कहा। 3. सुनो: देखो, एक बोनेवाला, बीज बाने के लिथे निकला! 4. और बोते समय कुछ तो मार्ग के किनारे गिरा और पझियोंने आकर उसे चुग लिया। 5. और कुछ पत्यरीली भूमि पर गिरा जहां उस की बहुत मिट्टी न मिली, और गहरी मिट्टी न मिलने के कारण जल्द उग आया। 6. और जब सूर्य निकला, तो जल गया, और जड़ न पकड़ने के कारण सूख गया। 7. और कुछ तो फाडिय़ोंमें गिरा, और फाडिय़ोंने बढ़कर उसे दबा लिया, और वह फल न लाया। 8. परन्तु कुछ अच्छी भूमि पर गिरा; और वह उगा, और बढ़कर फलवन्त हुआ; और कोई तीस गुणा, कोई साठ गुणा और कोई सौ गुणा फल लाया। 9. और उस ने कहा; जिस के पास सुनने के लिथे कान होंवह सुन ले।। 10. जब वह अकेला रह गया, तो उसके सायियोंने उन बारह समेत उस से इन दृष्टान्तोंके विषय में पूछा। 11. उस ने उन से कहा, तुम को तो परमेश्वर के राज्य के भेद की समझ दी गई है, परन्तु बाहरवालोंके लिथे सब बातें दृष्टान्तोंमें होती हैं। 12. इसलिथे कि वे देखते हुए देखें और उन्हें सुफाई न पके और सुनते हुए सुनें भी और न समझें; ऐसा न हो कि वे फिरें, और झमा किए जाएं। 13. फिर उस ने उन से कहा; क्या तुम यह दृष्टान्त नहीं समझते तो फिर और सब दृष्टान्तोंको क्योंकर समझोगे 14. बानेवाला वचन बोता है। 15. जो मार्ग के किनारे के हैं जहां वचन बोया जाता है, थे वे हैं, कि जब उन्होंने सुना, तो शैतान तुरन्त आकर वचन को जो उन में बोया गया या, उठा ले जाता है। 16. और वैसे ही जो पत्यरीली भूमि पर बोए जाते हैं, थे वे हैं, कि जो वचन को सुनकर तुरन्त आनन्द से ग्रहण कर लेते हैं। 17. परन्तु अपके भीतर जड़ न रखते के कारण वे योड़े भी दिनोंके लिथे रहते हैं; इस के बाद जब वचन के कारण उन पर क्लेश या उपद्रव होता है, तो वे तुरन्त ठोकर खाते हैं। 18. और जो फाडियोंमें बोए गए थे वे हैं जिन्होंने वचन सुना। 19. और संसार की चिन्ता, और धन का धोखा, और और वस्तुओं का लोभ उन में समाकर वचन को दबा देता है। और वह निष्फल रह जाता है। 20. और जो अच्छी भूमि में बोए गए, थे वे हैं, जो वचन सुनकर ग्रहण करते और फल लाते हैं, कोई तीस गुणा, कोई साठ गुणा, और कोई सौ गुणा।। 21. और उस ने उन से कहा; क्या दिथे को इसलिथे लाते हैं कि पैमाने या खाट के निचे रखा जाए क्या इसलिथे नहीं, कि दीवट पर रखा जाए 22. क्योंकि कोई वस्तु छिपी नहीं, परन्तु इसलिथे कि प्रगट हो जाए; 23. और न कुछ गुप्त है पर इसलिथे कि प्रगट हो जाए। यदि किसी के सुनने के कान हों, तो सुन ले। 24. फिर उस ने उन से कहा; चौकस रहो, कि क्या सुनते हो जिस नाप से तुम नापके हो उसी से तुम्हारे लिथे भी नापा जाएगा, और तुम को अधिक दिय जाएगा। 25. क्योंकि जिस के पास है, उस को दिया जाएगा; परन्तु जिस के पास नहीं है उस से वह भी जो उसके पास है; ले लिया जाएगा।। 26. फिर उस ने कहा; परमेश्वर का राजय ऐसा है, जैसे कोई मनुष्य भूमि पर बीज छींटे। 27. और रात को सोए, और दिन को जागे और वह बीच ऐसे उगे और बढ़े कि वह न जाने। 28. पृय्वी आप से आप फल लाती है पलिे अंकुर, तब बाल, और तब बालोंमें तैयार दाना। 29. परन्तु जब दाना पक जाता है, तब वह तुरन्त हंसिया लगाता है, क्योंकि कटनी आ पहुंची है।। 30. फिर उस ने कहा, हम परमेश्वर के राज्य की उपमा किस से दें, और किस दृष्टान्त से उसका वर्णन करें 31. वह राई के दाने के समान हैं; कि जब भूमि में बोया जाता है तो भूमि के सब बीजोंसे छोटा होता है। 32. परन्तु जब बोया गया, तो उगकर सब साग पात से बड़ा हो जाता है, और उसकी ऐसी बड़ी डालियां निकलती हैं, कि आकाश के पक्की उसकी छाया में बसेरा कर सकते हैं।। 33. और वह उन्हें इस प्रकार के बहुत से दृष्टान्त दे देकर उन की समझ के अनुसार वचन सुनाता या। 34. और बिना दृष्टान्त कहे उन से कुछ भी नहीं कहता या; परन्तु एकान्त में वह अपके निज चेलोंको सब बातोंका अर्य बताता या।। 35. उसी दिन जब सांफ हुई, तो उस ने उन से कहा; आओ, हम पार चलें,। 36. और वे भीड़ को छोड़कर जैसा वह या, वैसा की उसे नाव पर साय ले चले; और उसके साय, और भी नावें यीं। 37. तब बड़ी आन्धी आई, और लहरें नाव पर यहां तक लगीं, कि वह अब पानी से भरी जाती यी। 38. और वह आप पिछले भाग में गद्दी पर सो रहा या; तब उन्होंने उसे जगाकर उस से कहा; हे गुरू, क्या तुझे चिन्ता नहीं, कि हम नाश हुए जाते हैं 39. तब उस ने उठकर आन्धी को डांटा, और पानी से कहा; ?शान्त रह, यम जा : और आन्धी यम गई और बड़ा चैन हो गया। 40. और उन से कहा; तुम क्योंडरते हो क्या तुम्हें अब तक विश्वास नहीं 41. और वे बहुत ही डर गए और आपस में बोले; यह कौन है, कि आन्धी और पानी भी उस की आज्ञा मानते हैं
Chapter 5
1. और वे फील के पार गिरासेनियोंके देश में पहुंचे। 2. और जब वह नाव पर से उतरा तो तुरन्त एक मनुष्य जिस में अशुद्ध आत्क़ा यी कब्रोंसे निकलकर उसे मिला। 3. वह कब्रोंमें रहा करता या। और कोई उसे सांकलोंसे भी न बान्ध सकता या। 4. क्योंकि वह बार बार बेडिय़ोंऔर सांकलोंसे बान्धा गया या, पर उस ने साकलोंको तोड़ दिया, और बेडिय़ोंके टुकड़े टुकड़े कर दिए थे, और कोई उसे वश में नहीं कर सकता या। 5. वह लगातार रात-दिन कब्रोंऔर पहाड़ो में चिल्लाता, और अपके को पत्यरोंसे घायल करता या। 6. वह यीशु को दूर ही से देखकर दौड़ा, और उसे प्रणाम किया। 7. और ऊंचे शब्द से चिल्लाकर कहा; हे यीशु, परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र, मुझे तुझ से क्या काम मैं तुझे परमेश्वर की शपय देता हूं, कि मुझे पीड़ा न दे। 8. क्योंकि उस ने उस से कहा या, हे अशुद्ध आत्क़ा, इस मनुष्य में से निकल आ। 9. उस ने उस से पूछा; तेरा कया नाम है उस ने उस से कहा; मेरा नाम सेना है; क्योंकि हम बहुत हैं। 10. और उस ने उस से बहुत बिनती की, हमें इस देश से बाहर न भेज। 11. वहां पहाड़ पर सूअरोंका एक बड़ा फुण्ड चर रहा या। 12. और उन्होंने उस से बिनती करके कहा, कि हमें उन सूअरोंमें भेज दे, कि हम उन के भीतर जाएं। 13. सो उस ने उन्हें आज्ञा दी और अशुद्ध आत्क़ा निकलकर सूअरोंके भीतर पैठ गई और फुण्ड, जो कोई दो हजार का या, कड़ाडे पर से फपटकर फील में जा पड़ा, और डूब मरा। 14. और उन के चरवाहोंने भागकर नगर और गांवोंमें समाचार सुनाया। 15. और जो हुआ या, लोग उसे देखने आए। और यीशु के पास आकर, वे उस में सेना समाई यी, कपके पहिने और सचेत बैठे देखकर, डर गए। 16. और देखनेवालोंने उसका जिस में दुष्टात्क़ाएं यीं, और सूअरोंका पूरा हाल, उन को कह सुनाया। 17. और वे उस से बिनती कर के कहने लगे, कि हमारे सिवानोंसे चला जा। 18. और जब वह नाव पर चढ़ने लगा, तो वह जिस में पहिले दुष्टात्क़ाएं यीं, उस से बिनती करने लगा, कि मुझे अपके साय रहने दे। 19. परन्तु उस ने उसे आज्ञा न दी, और उस से कहा, अपके घर जाकर अपके लोगोंको बता, कि तुझ पर दया करके प्रभु ने तेरे लिथे कैसे बड़े काम किए हैं। 20. वह जाकर दिकपुलिस में इस बात का प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिथे कैसे बड़े काम किए; और सब अचम्भा करते थे।। 21. जब यीशु फिर नाव से पार गया, तो एक बड़ी भीड़ उसके पास इकट्ठी हो गई; और वह फील के किनारे या। 22. और याईर नाम आराधनालय के सरदारोंमें से एक आया, और उसे देखकर, उसके पांवोंपर गिरा। 23. और उस ने यह कहकर बहुत बिनती की, कि मेरी छोटी बेटी मरने पर है: तू आकर उस पर हाथ रख, कि वह चंगी होकर जीवित रहे। 24. तब वह उसके साय चला; और बड़ी भीड़ उसके पीदे हो ली, यहां तक कि लोग उस पर गिरे पड़ते थे।। 25. और एक स्त्री, जिस को बारह वर्ष से लोहू बहने का रोग या। 26. और जिस ने बहुत वैद्योंसे बड़ा दुख उठाया और अपना सब माल व्यय करने पर भी कुछ लाभ न उठाया या, परन्तु और भी रोगी हो गई यी। 27. यीशु की चर्चा सुनकर, भीड़ में उसके पीछे से आई, और उसके वस्त्र को छू लिया। 28. क्योंकि वह कहती यी, यदि मैं उसके वस्त्र ही को छू लूंगी, तो चंगी हो जाऊंगह। 29. और तुरन्त उसका लोहू बहना बन्द हो गया; और उस ने अपक्की देह में जान लिया, कि मैं उस बीमारी से अच्छी हो गई। 30. यीशु ने तुरन्त अपके में जान लिया, कि मुझ से सामर्य निकली है, और भीड़ में पीछे फिरकर पूछा; मेरा वस्त्र किस ने छूआ 31. उसके चेलोंने उस से कहा; तू देखता है, कि भीड़ तुझ पर गिरी पड़ती है, और तू कहता है; कि किस ने मुझे छुआ 32. तब उस ने उसे देखने के लिथे जिस ने यह काम किया या, चारोंओर दृष्टि की। 33. तब वह स्त्री यह जानकर, कि मेरी कैसी भलाई हुई है, डरती और कांपक्की हुई आई, और उसके पांवोंपर गिरकर, उस से सब हाल सच सच कह दिया। 34. उस ने उस से कहा; पुत्री तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है: कुशल से जा, और अपक्की इस बीमारी से बची रह।। 35. वह यह कह ही रहा या, कि आराधनालय के सरदार के घर से लोगोंने आकर कहा, कि तेरी बेटी तो मर गई; अब गुरू को क्योंदुख देता है 36. जो बात वे कह रहे थे, उस को यीशु ने अनसुनी करके, आराधनालय के सरदार से कहा; मत डर; केवल विश्वास रख। 37. और उस ने पतरस और याकूब और याकूब के भाई यूहन्ना को छोड़, और किसी को अपके साय आने न दिया। 38. और अराधनालय के सरदार के घर में पहुंचकर, उस ने लोगोंको बहुत रोते और चिल्लाते देखा। 39. तब उस ने भीतर जाकर उस से कहा, तुम क्योंहल्ला मचाते और रोते हो लड़की मरी नहीं, परन्तु सो रही है। 40. वे उस की हंसी करने लगे, परन्तु उस ने सब को निकालकर लड़की के मातापिता और अपके सायियोंको लेकर, भीतर जंहा लड़की पड़ी यी, गया। 41. और लड़की का हाथ पकड़कर उस से कहा, ?तलीता कूमी; जिस का अर्य यह है कि ?हे लड़की, मैं तुझ से कहता हूं, उठ। 42. और लड़की तुरन्त उठकर चलने फिरने लगी; क्योंकि वह बारह वर्ष की यी। और इस पर लोग बहुत चकित हो गए। 43. फिर उस ने उन्हें चिताकर आज्ञा दी कि यह बात कोई जानने न पाए और कहा; कि उसे कुछ खाने को दिया जाए।।
Chapter 6
1. वहां से निकलकर वह अपके देश में आया, और उसके चेले उसके पीछे हो लिए। 2. सब्त के दिन वह आराधनालय में उपकेश करने लगा; और बहुत लोग सुनकर चकित हुए और कहने लगे, इस को थे बातें कहां से आ गई और यह कौन सा ज्ञान है जो उस को दिया गया है और कैसे सामर्य के काम इसके हाथोंसे प्रगट होते हैं 3. क्या यह वही बढ़ई नहीं, जो मरियम का पुत्र, और याकूब और योसेस और यहूदा और शमौन का भाई है और क्या उस की बहिनें यहां हमारे बीच में नहीं रहतीं इसलिथे उन्होंने उसके विषय में ठोकर खाई। 4. यीशु ने उन से कहा, कि भविष्यद्वक्ता अपके देश और अपके कुटुम्ब और अपके घर को छोड़ और कहीं भी निरादर नहीं होता। 5. और वह वहां कोई सामर्य का काम न कर सका, केवल योड़े बीमारोंपर हाथ रखकर उन्हें चंगा किया।। 6. और उस ने उन के अविश्वास पर आश्चर्य किया और चारोंओर से गावोंमें उपकेश करता फिरा।। 7. और वह बारहोंको अपके पास बुलाकर उन्हें दो दो करके भेजने लगा; और उन्हें अशुद्ध आत्क़ाओं पर अधिक्कारने दिया। 8. और उस ने उन्हें आज्ञा दी, कि मार्ग के लिथे लाठी छोड़ और कुछ न लो; न तो रोटी, न फोली, न पटुके में पैसे। 9. परन्तु जूतियां पहिनो और दो दो कुरते न पहिनो। 10. और उस ने उन से कहा; जहां कहीं तुम किसी घर में उतरो तो जब तक वहां से विदा न हो, तब तक उसी में ठहरे रहो। 11. जिस स्यान के लोग तुम्हें ग्रहण न करें, और तुम्हारी न सुनें, वहां से चलते ही अपके तलवोंकी धूल फाड़ डालो, कि उन पर गवाही हो। 12. और उन्होंने जाकर प्रचार किया, कि मन फिराओ। 13. और बहुतेरे दुष्टात्क़ाओं को निकाला, और बहुत बीमारोंपर तेल मलकर उन्हें चंगा किया।। 14. और हेरोदेस राजा ने उस की चर्चा सुनी, क्योंकि उसका नाम फैल गया या, और उस ने कहा, कि यूहन्ना बपतिस्क़ा देनेवाला मरे हुओं में से जी उठा है, इसी लिथे उस से थे सामर्य के काम प्रगट होते हैं। 15. और औरोंने कहा, यह एलिय्याह है, परन्तु औरोंने कहा, भविष्यद्वक्ता या भविष्यद्वक्ताओं में से किसी एक के समान है। 16. हेरोदेस ने यह सुन कर कहा, जिस यूहन्ना का सिर मैं ने कटवाया या, वही जी उठा है। 17. क्योंकि हेरोदेस ने आप अपके भाई फिलप्पुस की पत्नी हेरोदियास के कारण, जिस से उस ने ब्याह किया या, लोगोंको भेजकर यूहन्ना को पकड़वाकर बन्दीगृह में डाल दिया या। 18. क्योंकि यूहन्ना ने हेरोदेस से कहा या, कि अपके भाई की पत्नी को रखना तुझे उचित नहीं। 19. इसलिथे हेरोदियास उस से बैर रखती यी और यह चाहती यी, कि उसे मरवा डाले, परन्तु ऐसा न हो सका। 20. क्योंकि हेरोदेस यूहन्ना को धर्मी और पवित्र पुरूष जानकर उस से डरता या, और उसे बचाए रखता या, और उस की सुनकर बहुत घबराता या, पर आनन्द से सुनता या। 21. और ठीक अवसर पर जब हेरोदेस ने अपके जन्क़ दिन में अपके प्रधानोंऔर सेनापतियों, और गलील के बड़े लोगोंके लिथे जेवनार की। 22. और उसी हेरोदियास की बेटी भीतर आई, और नाचकर हेरोदेस को और उसके साय बैठनेवालोंको प्रसन्न किया; तब राजा ने लड़की से कहा, तू जो चाहे मुझ से मांग मैं तुझे दूंगा। 23. और उस ने शपय खाई, कि मैं अपके आधे राज्य तक जो कुछ तू मुझ से मांगेगी मैं तुझे दूंगा। 24. उस ने बाहर जाकर अपक्की माता से पूछा, कि मैं क्या मांगूं वह बोली; यूहन्ना बपतिस्क़ा देनेवाले का सिर। 25. वह तुरन्त राजा के पास भीतर आई, और उस से बिनती की; मैं चाहती हूं, कि तू अभी यूहन्ना बपतिस्क़ा देनेवाले का सिर एक याल में मुझे मंगवा दे। 26. तब राजा बहुत उदास हुआ, परन्तु अपक्की शपय के कारण और साय बैठनेवालोंके कारण उसे टालना न चाहा। 27. और राजा ने तुरन्त एक सिपाही को आज्ञा देकर भेजा, कि उसका सिर काट लाए। 28. उस ने जेलखाने में जाकर उसका सिर काटा, और एक याल में रखकर लाया और लड़की को दिया, और लड़की ने अपक्की मां को दिया। 29. यह सुनकर उसके चेले आए, और उस की लोय को उठाकर कब्र में रखा। 30. प्रेरितोंने यीशु के पास इकट्ठे होकर, जो कुछ उन्होंने किया, और सिखाया या, सब उस को बता दिया। 31. उस ने उन से कहा; तुम आप अलग किसी जंगली स्यान में आकर योड़ा विश्रम करो; क्योंकि बहुत लोग आते जाते थे, और उन्हें खाने का अवसर भी नहीं मिलता या। 32. इसलिथे वे नाव पर चढ़कर, सुनसान जगह में अलग चले गए। 33. और बहुतोंने उन्हें जाते देखकर पचानि लिया, और सब नगरोंसे इकट्ठे होकर वहां पैदल दौड़े और उन से पहिले जा पहुंचे। 34. उस ने निकलकर बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ोंके समान थे, जिन का कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा। 35. जब दिन बहुत ढल गया, तो उसके चेले उसके पास आकर कहने लगे; यह सुनसान जगह है, और दिन बहुत ढल गया है। 36. उन्हें विदा कर, कि चारोंओर के गांवोंऔर बस्तियोंमें जाकर, अपके लिथे कुछ खाने को मोल लें। 37. उस ने उन्हें उत्तर दिया; कि तुम ही उन्हें खाने को दो : उनहोंने उस से कहा; क्या हम सौ दीनार की रोटियां मोल लें, और उन्हें खिलाएं 38. उस ने उन से कहा; जाकर देखो तुम्हारे पास कितनी रोटियां हैं उन्होंने मालूम करके कहा; पांच और दो मछली भी। 39. तब उस ने उन्हें आज्ञा दी, कि सब को हरी घास पर पांति पांति से बैठा दो। 40. वे सौ सौ और पचास पचास करके पांति पांति बैठ गए। 41. और उस ने उन पांच रोटियोंको और दो मछिलयोंको लिया, और स्वर्ग की ओर देखकर धन्यवाद किया और रोटियां तोड़ तोड़ कर चेलोंको देता गया, कि वे लोगोंको परोसें, और वे दो मछिलयां भी उन सब में बांट दीं। 42. और सब खाकर तृप्त हो गए। 43. और उन्होंने टुकडोंसे बारह टोकिरयां भर कर उठाई, और कुछ मछिलयोंसे भी। 44. जिन्होंने रोटियां खाई, वे पांच हजार पुरूष थे।। 45. तब उस ने तुरन्त अपके चेलोंको बरबस नाव पर चढाया, कि वे उस से पहिले उस पार बैतसैदा को चले जांए, जब तक कि वह लोगोंको विदा करे। 46. और उन्हें विदा करके पहाड़ पर प्रार्यना करने को गया। 47. और जब सांफ हुई, तो नाव फील के बीच में यी, और वह अकेला भूमि पर या। 48. और जब उस ने देखा, कि वे खेते खेते घबरा गए हैं, क्योंकि हवा उन के विरूद्ध यी, तो रात के चौथे पहर के निकट वह फील पर चलते हुए उन के पास आया; और उन से आगे निकल जाना चाहता या। 49. परन्तु उन्होंने उसे फील पर चलते देखकर समझा, कि भूत है, और चिल्ला उठे, क्योंकि सब उसे देखकर घबरा गए थे। 50. पर उस ने तुरन्त उन से बातें कीं और कहा; ढाढ़स बान्धों: मैं हूं; डरो मत। 51. तब वह उन के पास नाव पर आया, और हवा यम गई: वे बहुत ही आश्चर्य करने लगे। 52. क्योंकि वे उन रोटियोंके विषय में ने समझे थे परन्तु उन के मन कठोर हो गए थे।। 53. और वे पार उतरकर गन्नेसरत में पहुंचे, और नाव घाअ पर लगाई। 54. और जब वे नाव पर से उतरे, तो लोग तुरन्त उस को पहचान कर। 55. आसपास के सारे देश में दोड़े, और बीमारोंको खांटोंपर डालकर, जहां जहां समाचार पाया कि वह है, वहां वहां लिए फिरे। 56. और जहां कहीं वह गांवों, नगरों, या बस्तियोंमें जाता या, तो लोग बीमारोंको बाजारोंमें रखकर उस से बिनती करते थे, कि वह उन्हें अपके वस्त्र के आंचल ही हो छू लेने दे: और जितने उसे छूते थे, सब चंगे हो जाते थे।।
Chapter 7
1. तब फरीसी और कई एक शास्त्री जो यरूशलेम से आए थे, उसके पास इकट्ठे हुए। 2. और उन्होंने उसके कई चेलोंको अशुद्ध अर्यात् बिना हाथ धोए रोटी खाते देखा। 3. क्योंकि फरीसी और सब यहूदी, पुरिनयोंकी रीति पर चलते हैं और जब तक भली भांति हाथ नहीं धो लेते तब तक नहीं खाते। 4. और बाजार से आकर, जब तक स्नान नहीं कर लेते, तब तक नहीं खाते; और बहुत सी और बातें हैं, जो उन के पास मानने के लिथे पहुंचाई गई हैं, जैसे कटोरों, और लोटों, और तांबे के बरतनोंको धोना-मंाजना। 5. इसलिथे उन फरीसियोंऔर शास्त्रियोंने उस से पूछा, कि तेरे चेले क्योंपुरिनयोंकी रीतोंपर नहीं चलते, और बिना हाथ धोए रोटी खाते हैं 6. उस ने उन से कहा; कि यशायाह ने तुम कपटियोंके विषय में बहुत ठीक भविष्यद्ववाणी की; जैसा लिखा है; कि थे लोग होठोंसे तो मेरा आदर करते हैं, पर उन का मन मुझ से दूर रहता है। 7. और थे व्यर्य मेरी उपासना करते हैं, क्योंकि मनुष्योंकी आज्ञाओं को धर्मोंपादेश करके सिखाते हैं। 8. क्योंकि तुम परमेश्वर की आज्ञा को टालकर मनुष्योंकी रीतियोंको मानते हो। 9. और उस ने उन से कहा; तुम अपक्की रीतियोंको मानने के लिथे परमेश्वर आज्ञा कैसी अच्छी तरह टाल देते हो! 10. क्योंकि मूसा ने कहा है कि अपके पिता और अपक्की माता का आदर कर; ओर जो कोई पिता वा माता को बुरा कहे, वह अवश्य मार डाला जाए। 11. परन्तु तुम कहते हो कि यदि कोई अपके पिता वा माता से कहे, कि जो कुछ तुझे मुझ से लाभ पहुंच सकता या, वह कुरबान अर्यात् संकल्प हो चुका। 12. तो तुम उस को उसके पिता वा उस की माता की कुछ सेवा करने नहीं देते। 13. इस प्रकार तुम अपक्की रीतियोंसे, जिन्हें तुम ने ठहराया है, परमेश्वर का वचन टाल देते हो; और ऐसे ऐसे बहुत से काम करते हो। 14. और उस ने लोगोंको अपके पास बुलाकर उन से कहा, तुम सब मेरी सुनो, और समझो। 15. ऐसी तो कोई वस्तु नहीं जो मनुष्य को बाहर से समाकर अशुद्ध करे; परन्तु जो वस्तुएं मनुष्य के भीतर से निकलती हैं, वे ही उसे अशुद्ध करती हैं। 16. यदि किसी के सुनने के कान होंतो सुन ले। 17. जब वह भीड़ के पास से घर में गया, तो उसके चेलोंने इस दृष्टान्त के विषय में उस से पूछा। 18. उस ने उन से कहा; क्या तुम भी ऐसे ना समझ हो क्या तुम नहीं समझते, कि जो वस्तु बाहर से मनुष्य के भीतर जाती है, वह उसे अशुद्ध नहीं कर सकती 19. क्योंकि वह उसके मन में नहीं, परन्तु पेट में जाती है, और संडास में निकल जाती है यह कहकर उस ने सब भोजन वस्तुओं को शुद्ध ठहराया। 20. फिर उस ने कहा; जो मनुष्य में से निकलता है, वही मनुष्य को अशुद्ध करता है। 21. क्योंकि भीतर से अर्यात् मनुष्य मे मन से, बुरी बुरी चिन्ता व्यभिचार। 22. चोरी, हत्या, परस्त्रीगमन, लोभ, दुष्टता, छल, लुचपन, कुदृष्टि, निन्दा, अभिमान, और मूर्खता निकलती हैं। 23. थे सब बुरी बातें भीतर ही से निकलती हैं और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं।। 24. फिर वह वहां से उठकर सूर और सैदा के देशोंमें आया; और एक घर में गया, और चाहता या, कि कोई न जाने; परन्तु वह छिप न सका। 25. और तुरन्त एक स्त्री जिस की छोटी बेटी में अशुद्ध आत्क़ा यी, उस की चर्चा सुन कर आई, और उसके पांवोंपर गिरी। 26. यह यूनानी और सूरूिफनीकी जाति की यी; और उस ने उस से बिनती की, कि मेरी बेटी में से दुष्टात्क़ा निकाल दे। 27. उस ने उस से कहा, पहिले लड़कोंको तृप्त होने दे, क्योंकि लड़कोंको रोटी लेकर कुत्तोंके आगे डालना उचित नहीं है। 28. उस ने उस को उत्तर दिया; कि सच है प्रभु; तौभी कुत्ते भी तो मेज के नीचे बालकोंकी रोटी का चूर चार खा लेते हैं। 29. उस ने उस सके कहा; इस बात के कारण चक्की जा; दुष्टात्क़ा तेरी बेटी में से निकल गई है। 30. और उस ने अपके घर आकर देखा कि लड़की खाट पर पड़ी है, और दुष्टात्क़ा निकल गई है।। 31. फिर वह सूर और सैदा के देशोंसे निकलकर दिकपुलिस देश से होता हुआ गलील की फील पर पहुंचा। 32. और लोगोंने एक बहिरे को जो हक्ला भी या, उसके पास लाकर उस से बिनती की, कि अपना हाथ उस पर रखे। 33. तब वह उस को भीड़ से अलग ले गया, और अपक्की उंगलियां उसके कानोंमें डालीं, और यूक कर उस की जीभ को छूआ। 34. और स्वर्ग की ओर देखकर आह भरी, और उस से कहा; इप्फत्तह, अर्यात् खुल जा। 35. और उसके कान खुल गए, और उस की जीभ की गांठ भी खुल गई, और वह साफ साफ बोलने लगा। 36. तब उस ने उन्हें चिताया कि किसी से न कहना; परन्तु जितना उस ने उन्हें चिताया उतना ही वे और प्रचार करने लगे। 37. और वे बहुत ही आश्चर्य में होकर कहने लगे, उस ने जो कुछ किया सब अच्छा किया है; वह बहिरोंको सुनने, की, और गूंगोंको बोलने की शक्ति देता है।।
Chapter 8
1. उन दिनोंमें, जब फिर बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई, और उन के पास कुछ खाने को न या, तो उस ने अपके चेलोंको पास बुलाकर उन से कहा। 2. मुझे इस भीड़ पर तरस आता है, क्योंकि यह तीन दिन से बराबर मेरे साय हैं, और उन के पास कुछ भी खाने को नहीं। 3. यदि मैं उन्हें भूखा घर भेज दूं, तो मार्ग में यक कर रह जाएंगे; क्योकि इन में से कोई कोई दूर से आए हैं। 4. उसके चेलोंने उस को उत्तर दिया, कि यहां जंगल में इतनी रोटी कोई कहां से लाए कि थे तृप्त हों 5. उस ने उन से पूछा; तुम्हारे पास कितनी रोटियां हैं उन्होंने कहा, सात। 6. तब उस ने लोगोंको भूमि पर बैठने की आज्ञा दी, और वे सात रोटियां लीं, और धन्यवाद करके तोड़ी, और अपके चेलोंको देता गया कि उन के आगे रखें, और उन्होंने लोगोंके आगे परोस दिया 7. उन के पास योड़ी सी छोटी मछिलयोंभी यीं; और उसने धन्यवाद करके उन्हें भी लोगोंके आगे रखने की आज्ञा दी। 8. सो वे खाकर तृप्त हो गए और शेष टृकड़ोंके सात टोकरे भरकर उठाए। 9. और लोग चार हजार के लगभग थे; और उस ने उन को विदा किया। 10. और वह तुरन्त अपके चेलोंके साय नाव पर चढ़कर दलमनूता देश को चला गया।। 11. फिर फरीसी निकलकर उस से वाद-विवाद करने लगे, और उसे जांचने के लिथे उस से कोई स्वर्गीय चिन्ह मांगा। 12. उस ने अपक्की आत्क़ा में आह मार कर कहा, इस समय के लोग क्योंचिन्ह ढूंढ़ते हैं मैं तुम से सच कहता हूं, कि इस समय के लोगोंको कोई चिन्ह नहीं दिया जाएगा। 13. और वह उन्हें छोड़कर फिर नाव पर चढ़ गया और पार चला गया।। 14. और वे रोटी लेना भूल गए थे, और नाव में उन के पास एक ही रोटी यी। 15. और उस ने उन्हें चिताया, कि देखो, फरीसियोंके खमीर और हेरोदेस के खमीर से चौकस रहो। 16. वे आपस में विचार करके कहने लगे, कि हमारे पास तो रोटी नहीं है। 17. यह जानकर यीशु ने उन से कहा; तुम क्योंआपस में विचार कर रहे हो कि हमारे पास रोटी नहीं क्या अब तक नहीं जानते और नहीं समझते 18. क्या तुम्हारा मन कठोर हो गया है क्या आंखे रखते हुए भी नहीं देखते, और कान रखते हुए भी नहीं सुनते और तुम्हें स्क़रण नहीं। 19. कि जब मैं ने पांच हजार के लिथे पांच रोटी तोड़ी यीं तो तुम ने टुकड़ोंकी कितनी टोकिरयां भरकर उठाईं उन्होंने उस से कहा, सात टोकरे। 20. उस ने उन से कहा, सात टोकरे। 21. उस ने उन से कहा, क्या तुम अब तक नहीं समझते 22. और वे बैतसैदा में आए; और लोग एक अन्धे को उसके पास ले आए और उस से बिनती की, कि उस को छूए। 23. वह उस अन्धे का हाथ पकड़कर उसे गांव के बाहर ले गया, और उस की आंखोंमें यूककर उस पर हाथ रखे, और उस से पूछा; क्या तू कुछ देखता है 24. उस ने आंख उठा कर कहा; मैं मनुष्योंको देखता हूं; क्योंकि वे मुझे चलते हुए दिखाई देते हैं, जैसे पेड़। 25. तब उस ने फिर दोबारा उस की आंखोंपर हाथ रखे, और उस ने ध्यान से देखा, और चंगा हो गया, और सब कुछ साफ साफ देखने लगा। 26. और उस ने उस से यह कहकर घर भेजा, कि इस गांव के भीतर पांव भी न रखना।। 27. यीशु और उसके चेले कैसरिया फिलिप्पी के गावोंमें चले गए: और मार्ग में उस ने अपके चेलोंसे पूछा कि लोग मुझे क्या कहते हैं 28. उन्होंने उत्तर दिया, कि यूहन्ना बपतिस्क़ा देनेवाला; पर कोई कोई; एलिय्याह; और कोई कोई भविष्यद्वक्ताओं में से एक भी कहते हैं। 29. उस ने उन से पूछा; परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो पतरस ने उस को उत्तर दिया; तू मसीह है। 30. तब उस ने उन्हें चिताकर कहा, कि मेरे विषय में यह किसी से न कहना। 31. और वह उन्हें सिखाने लगा, कि मनुष्य के पुत्र के लिथे अवश्य है, कि वह बहुत दुख उठाए, और पुरिनए और महाथाजक और शास्त्री उसे तुच्छ समझकर मार डालें और वह तीन दिन के बाद जी उठे। 32. उस ने यह बात उन से साफ साफ कह दी: इस पर पतरस उसे अलग ले जाकर फिड़कने लगा। 33. परन्तु उस ने फिरकर, और अपके चेलोंकी ओर देखकर पतरस को फिड़कर कर कहा; कि हे शैतान, मेरे साम्हने से दूर हो; क्योंकि तू परमेश्वर की बातोंपर नहीं, परन्तु मनुष्य की बातोंपर मन लगाता है। 34. उस ने भीड़ को अपके चेलोंसमेत पास बुलाकर उन से कहा, जो कोई मेरे पीछे आना चाहे, वह अपके आपे से इन्कार करे और अपना क्रूस उठाकर, मेरे पीछे हो ले। 35. क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा, पर जो कोई मेरे और सुसमाचार के लिथे अपना प्राण खोएगा, वह उसे बचाएगा। 36. यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे और अपके प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा 37. और मनुष्य अपके प्राण के बदले क्या देगा 38. जो कोई इस व्यभिचारी और पापी जाति के बीच मुझ से और मेरी बातोंसे लजाएगा, मनुष्य का पुत्र भी जब वह पवित्र दूतोंके साय अपके पिता की महिमा सहित आएगा, तब उस से भी लजाएगा।
Chapter 9
1. और उस ने उन से कहा; मैं तुम से सच कहता हूं, कि जो यहां खड़े हैं, उन में से कोई ऐसे हैं, कि जब तक परमेश्वर के राज्य को सामर्य सहित आता हुआ न देख लें, तब तक मृत्यु का स्वाद कदापि न चखेंगे।। 2. छ: दिन के बाद यीशु ने पतरस और याकूब और यूहन्ना को साय लिया, और एकान्त में किसी ऊंचे पहाड़ पर ले गया; और उन के साम्हने उसका रूप बदल गया। 3. और उसका वस्त्र ऐसा चमकने लगा और यहां तक अति उज्ज़वल हुआ, कि पृय्वी पर कोई धोबी भी वैसा उज्ज़वल नहीं कर सकता। 4. और उन्हें मूसा के साय एलिय्याह दिखाई दिया; और वे यीशु के साय बातें करते थे। 5. इस पर पतरस ने यीशु से कहा; हे रब्बी, हमारा यहां रहना अच्छा है: इसलिथे हम तीन मण्डप बनाएं; एक तेरे लिथे, एक मूसा के लिथे, और एक एलिय्याह के लिथे। 6. क्योंकि वह न जानता या, कि क्या उत्तर दे; इसलिथे कि वे बहुत डर गए थे। 7. तब एक बादल ने उन्हें छा लिया, और उस बादल में से यह शब्द निकला, कि यह मेरा प्रिय पुत्र है; उस की सुनो। 8. तब उन्होंने एकाएक चारोंऔर दृष्टि की, और यीशु को छोड़ अपके साय और किसी को न देखा।। 9. पहाड़ से उतरते हुए, उस ने उन्हें आज्ञा दी, कि जब तक मनुष्य का पुत्र मरे हुओं में से जी न उठे, तब तक जो कुछ तुम ने देखा है वह किसी से न कहना। 10. उन्होंने इस बात को स्क़रण रखा; और आपस में वाद-विवाद करने लगे, कि मरे हुओं में से जी उठने का क्या अर्य है 11. और उन्होंने उस से पूछा, शास्त्री क्योंकहते हैं, कि एलिय्याह का पहिले आना अवश्य है 12. उस ने उन्हें उत्तर दिया कि एलिय्याह सचमुच पहिले आकर सब कुछ सुधारेगा, परन्तु मनुष्य के पुत्र के विषय में यह क्योंलिखा है, कि वह बहुत दुख उठाएगा, और तुच्छ गिना जाएगा 13. परन्तु मैं तुम से कहता हूं, कि एलिय्याह तो आ चुका, और जैसा उसके विषय में लिखा है, उन्होंने जो कुछ चाहा उसके साय किया।। 14. और जब वह चेलोंके पास आया, तो देखा कि उन के चारोंऔर बड़ी भीड़ लगी है और शास्त्री उन के साय विवाद कर रहें हैं। 15. और उसे देखते ही सब बहुत ही आश्चर्य करने लगे, और उस की ओर दौड़कर उसे नमस्कार किया। 16. उस ने उन से पूछा; तुम इन से क्या विवाद कर रहे हो 17. भीड़ में से एक ने उसे उत्तर दिया, कि हे गुरू, मैं अपके पुत्र को, जिस में गूंगी आत्क़ा समाई है, तेरे पास लाया या। 18. जहां कहीं वह उसे पकड़ती है, वहीं पटकर देती है: और वह मुंह में फेन भर लाता, और दांत पीसता, और सूखता जाता है: और मैं ने चेलोंसे कहा ााि कि वे उसे निकाल दें परन्तु वह निकाल न सके। 19. यह सुनकर उस ने उन से उत्तर देके कहा: कि हे अविश्वासी लोगों, मैं कब तक तुम्हारे साय रहूंगा और कब तक तुम्हारी सहूंगा उसे मेरे पास लाओ। 20. तब वे उसे उसके पास ले आए: और जब उस ने उसे देखा, तो उस आत्क़ा ने तुरन्त उसे मरोड़ा; और वह भूमि पर गिरा, और मुंह से फेन बहाते हुए लोटने लगा। 21. उस ने उसके पिता से पूछा; इस की यह दशा कब से है 22. उस ने कहा, बचपन से : उस ने इसे नाश करने के लिथे कभी आग और कभी पानी में गिराया; परन्तु यदि तू कुछ कर सके, तो हम पर तरस खाकर हमारा उपकार कर। 23. यीशु ने उस से कहा; यदि तू कर सकता है; यह क्या बता है विश्वास करनेवाले के लिथे सब कुछ हो सकता है। 24. बालक के पिता ने तुरन्त गिड़िगड़ाकर कहा; हे प्रभु, मैं विश्वास करता हूं, मेरे अविश्वास का उपाय कर। 25. जब यीशु ने देखा, कि लोग दौड़कर भीड़ लगा रहे हैं, तो उस ने अशुद्ध आत्क़ को यह कहकर डांटा, कि हे गूंगी और बहिरी आत्क़ा, मैं तुझे आज्ञा देता हूं, उस में से निकल आ, और उस में फिर कभी प्रवेश न कर। 26. तब वह चिल्लाकर, और उसे बहुत मरोड़ कर, निकल आई; और बालक मरा हुआ सा हो गया, यहां तक कि बहुत लागे कहने लगे, कि वह मर गया। 27. परन्तु यीशु ने उसका हाथ पकड़ के उसे उठाया, और वह खड़ा हो गया। 28. जब वह घर में आया, तो उसके चेलोंने एकान्त में उस से पूछा, हम उसे क्या न निकाल सके 29. उस ने उन से कहा, कि यह जाति बिना प्रार्यना किसी और उपाय से निकल नहीं सकती।। 30. फिर वे वहां से चले, और गलील में होकर जा रहे थे, और वह अपके चेलोंको उपकेश देता और उन से कहता या, कि मनुष्य का पुत्र मनुष्योंके हाथ में पकड़वाया जाएगा, और वे उसे मार डालेंगे, और वह मरने के तीन दिन बाद जी उठेगा। 31. पर यह बात उन की समझ में नहीं आई, और वे उस से पूछने से डरते थे।। 32. फिर वे कफरनहूम में आए; और घर में आकर उस ने उन से पूछा कि रास्ते में तुम किस बात पर विवाद करते थे 33. वे चुप रहे, क्योंकि मार्ग में उन्होंने आपस में यह वाद-विवाद किया या, कि हम में से बड़ा कौन है 34. वे चुप रहे, क्योंकि मार्ग में उन्होंने आपस में यह वाद-विवाद किया या, कि हम में से बड़ा कौन है 35. तब उस ने बैठकर बारहोंको बुलाया, और उन से कहा, यदि कोई बड़ा होना चाहे, तो सब से छोटा और सब का सेवक बने। 36. और उस ने एक बालक को लेकर उन के बीच में खड़ा किया, और उसके गोद में लेकर उन से कहा। 37. जो कोई मेरे नाम से ऐसे बालकोंमें से किसी एक को भी ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है; और जो कोई मुझे ग्रहण करता, वह मुझे नहीं, बरन मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है।। 38. तब यूहन्ना ने उस से कहा, हे गुरू हम ने एक मनुष्य को तेरे नाम से दुष्टात्क़ओं को निकालते देखा और हम उसे मना करने लगे, क्योंकि वह हमारे पीछे नहीं हो लेता या। 39. यीशु ने कहा, उस को मत मना करो; क्योंकि ऐसा कोई नहीं जो मेरे नाम से सामर्य का काम करे, और जल्दी से मुझे बुरा कह सके। 40. क्योंकि जो हमारे विरोध में नहीं, वह हमारी ओर है। 41. जो कोई एक कटोरा पानी तुम्हें इसलिथे पिलाए कि तुम मसीह के हो तो मैं तुम से सच कहता हूं कि वह अपना प्रतिफल किसी रीति से न खोएगा। 42. पर जो कोई इन छोटोंमें से जो मुझ पर विश्वास करते हैं, किसी को ठोकर खालिाए तो उसके लिथे भला यह हे कि एक बड़ी चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाए और वह समुद्र में डाल दिया जाए। 43. यदि तेरा हाथ तुझे ठोकर खिलाए तो उसे काट डाल 44. टुण्डा होकर जीवन में प्रवेश करना, तेरे लिथे इस से भला है कि दो हाथ रहते हुए नरक के बीच उस आग में डाला जाए जो कभी बुफने की नहीं। 45. और यदि तेरा पांव तुझे ठोकर खिलाए तो उसे काट डाल। 46. लंगड़ा होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिथे इस से भला है, कि दो पांव रहते हुए नरक में डाला जाए। 47. और यदि तेरी आंख तुझे ठोकर खिलाए तो उसे निकाल डाल, काना होकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना तेरे लिथे इस से भला है, कि दो आंख रहते हुए तू नरक में डाला जाए। 48. जहां उन का कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुफती। 49. क्योंकि हर एक जन आग से नमकीन किया जाएगा। 50. नमक अच्छा है, पर यदि नमक की नमकीनी जाती रहे, तो उसे किस से स्वादित करोगे अपके में नमक रखो, और आपस में मेल मिलाप से रहो।।
Chapter 10
1. फिर वह वहां से उठकर यहूदिया के सिवानोंमें और यरदन के पार आया, और भीड़ उसके पास फिर इकट्ठी हो गई, और वह अपक्की रीति के अनुसार उन्हें फिर उपकेश देने लगा। 2. तब फरीसियोंने उसके पास आकर उस की पक्कीझा करने को उस से पूछा, क्या यह उचित है, कि पुरूष अपक्की पत्नी को त्यागे 3. उस ने उन को उत्तर दिया, कि मूसा ने तुम्हें क्या आज्ञा दी है 4. उन्होंने कहा, मूसा ने त्याग पत्र लिखने और त्यागने की आज्ञा दी है। 5. यीशु ने उन से कहा, कि तुम्हारे मन की कठोरता के कारण उस ने तुम्हारे लिथे यह आज्ञा लिखी। 6. पर सृष्टि के आरम्भ से परमेश्वर ने नर और नारी करके उन को बनाया है। 7. इस कारण मनुष्य अपके माता-पिता से अलग होकर अपक्की पत्नी के साय रहेगा, और वे दोनोंएक तन होंगे। 8. इसलिथे वे अब दो नहीं पर एक तन हैं। 9. इसलिथे जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है उसे मनुष्य अलग न करे। 10. और घर में चेलोंने इस के विषय में उस से फिर पूछा। 11. उस ने उन से कहा, जो कोई अपक्की पत्नी को त्यागकर दूसरी से ब्याह करे तो वह उस पहिली के विरोध में व्यभिचार करता है। 12. और यदि पत्नी अपके पति को छोड़कर दूसरे से ब्याह करे, तो वह व्यभिचार करता है। 13. फिर लोग बालकोंको उसके पास लाने लगे, कि वह उन पर हाथ रखे, पर चेलोंने उनको डांटा। 14. यीशु ने यह देख क्रुध होकर उन से कहा, बालकोंको मेरे पास आने दो और उन्हें मना न करो, क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसोंही का है। 15. मैं तुम से सच कहता हूं, कि जो कोई परमेश्वर के राज्य को बालक की नाई ग्रहण न करे, वह उस में कभी प्रवेश करने न पाएगा। 16. और उस ने उन्हें गोद में लिया, और उन पर हाथ रखकर उन्हें आशीष दी।। 17. और जब वह निकलकर मार्ग में जाता या, तो एक मनुष्य उसके पास दौड़ता हुआ आया, और उसके आगे घुटने टेककर उस से पूछा हे उत्तम गुरू, अनन्त जीवन का अधिक्कारनेी होने के लिथे मैं क्यां करूं 18. यीशु ने उस से कहा, तू मुझे उत्तम क्योंकहता है कोई उत्तम नहीं, केवल एक अर्यात् परमेश्वर। 19. तू आज्ञाओं को तो जानता है; हत्या न करना, व्यभिचार न करना, चोरी न करना, फूठी गवाही न देना, छल न करना, अपके पिता और अपक्की माता का आदर करना। 20. उस ने उस से कहा, हे गुरू, इन सब को मैं लड़कपन से मानता आया हूं। 21. यीशु ने उस पर दृष्टि करके उस से प्रेम किया, और उस से कहा, तुझ में एक बात की घटी है; जा, जो कुछ तेरा है, उसे बेच कर कंगालोंको दे, और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले। 22. इस बात से उसके चिहरे पर उदासी छा गई, और वह शोक करता हुआ चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी या। 23. यीशु ने चारोंओर देखकर अपके चेलोंसे कहा, धनवानोंको परमेश्वरके राज्य में प्रवेश करना कैसा किठन है! 24. यीशु ने चारोंऔर देखकर अपके चेलोंसे कहा, धनवानोंको परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा किठन है! 25. चेले उस की बातोंसे अचम्भित हुए, इस पर यीशु ने फिर उन को उत्तर दिया, हे बालको, जो धन पर भरोसा रखते हैं, उन के लिथे परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा किठन है! 26. वे बहुत ही चकित होकर आपस में कहने लगे तो फिर किस का उद्धार हो सकता है। 27. यीशु ने उन की ओर देखकर कहा, मनुष्योंसे तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से हो सकता है; क्योंकि परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है। 28. पतरस उस से कहने लगा, कि देख, हम तो सब कुछ छोड़कर तेरे पीछे हो लिथे हैं। 29. यीशु ने कहा, मैं तुम से सच कहता हूं, कि ऐसा कोई नहीं, जिस ने मेरे और सुसमाचार के लिथे घर या भाइयोंया बहिनोंया माता या पिता या लड़के-बालोंया खेतोंको छोड़ दिया हो। 30. और अब इस समय सौ गुणा न पाए, घरोंऔर भाइयोंऔर बहिनोंऔर माताओं और लड़के-बालोंऔर खेतोंको पर उपद्रव के साय और परलोक में अनन्त जीवन। 31. पर बहुतेरे जो पहिले हैं, पिछले होंगे; और जो पिछले हैं, वे पहिले होंगे। 32. और वे यरूशलेम को जाते हुए मार्ग में थे, और यीशु उन के आगे आगे जा रहा या: और वे अचम्भा करने लगे और जो उसके पीछे पीछे चलते थे डरने लगे, तब वह फिर उन बारहोंको लेकर उन से वे बातें कहने लगा, जो उस पर आनेवाली यीं। 33. कि देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं, और मनुष्य का पुत्र महाथाजकोंऔर शास्त्रियोंके हाथ पकड़वाया जाएगा, और वे उस को घात के योग्य ठहराएंगे, और अन्यजातियोंके हाथ में सौंपेंगे। 34. और वे उस को ठट्ठोंमें उड़ाएंगे, और उस पर यूकेंगे, और उसे कोड़े मारेंगे, और उसे घात करेंगे, और तीन दिन के बाद वह जी उठेगा।। 35. तब जब्दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना ने उसके पास आकर कहा, हे गुरू, हम चाहते हैं, कि जो कुछ हम तुझ से मांगे, वही तू हमारे लिथे करे। 36. उस ने उन से कहा, तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिथे करूं 37. उन्होंने उस से कहा, कि हमें यह दे, कि तेरी महिमा में हम में से एक तेरे दिहने और दूसरा तेरे बांए बैठे। 38. यीशु न उन से कहा, तुम नहीं जानते, कि क्या मांगते हो जो कटोरा मैं पीने पर हूं, क्या पी सकते हो और जो बपतिस्क़ा मैं लेने पर हूं, क्या ले सकते हो 39. उन्होंने उस से कहा, हम से हो सकता है: यीशु ने उन से कहा: जो कटोरा मैं पीने पर हूं, तुम पीओंगे; और जो बपतिस्क़ा मैं लेने पर हूं, उसे लोगे। 40. पर जिन के लिथे तैयार किया गया है, उन्हें छोड़ और किसी को अपके दिहने और अपके बाएं बिठाना मेरा काम नहीं। 41. यह सुनकर दसोंयाकूब और यूहन्ना पर िरिसयाने लगे। 42. और यीशु ने उन को पास बुला कर उन से कहा, तुम जानते हो, कि जो अन्यजातियोंके हाकिम समझे जाते हैं, वे उन पर प्रभुता करते हैं; और उन में जो बड़ें हैं, उन पर अधिक्कारने जताते हैं। 43. पर तुम में ऐसा नहीं है, बरन जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे वह तुम्हारा सेवक बने। 44. और जो कोई तुम में प्रधान होना चाहे, वह सब का दास बने। 45. क्योंकि मनुष्य का पुत्र इसलिथे नहीं आया, कि उस की सेवा अहल की जाए, पर इसलिथे आया, कि आप सेवा टहल करे, और बहुतोंकी छुड़ौती के लिथे अपना प्राण दे।। 46. और वे यरीहो में आए, और जब वह और उसके चेले, और एक बड़ी भीड़ यरीहो से निकलती यी, तो तिमाई का पुत्र बरितमाई एक अन्धा भिखारी सड़क के किनारे बैठा या। 47. वह यह सुनकर कि यीशु नासरी है, पुकार पुकार कर कहने लगा; कि हे दाऊद की सन्तान, यीशु मुझ पर दया कर। 48. बहुतोंने उसे डांटा कि चुप रहे, पर वह और भी पुकारने लगा, कि हे दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर। 49. तब यीशु ने ठहरकर कहा, उसे बुलाओ; और लोगोंने उस अन्धे को बुलाकर उस से कहा, ढाढ़स बान्ध, उठ, वह तुझे बुलाता है। 50. वह अपना कपड़ा फेंककर शीघ्र उठा, और यीशु के पास आया। 51. इस पर यीशु ने उस से कहा; तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिथे करूं अन्धे ने उस से कहा, हे रब्बी, यह कि मैं देखने लगूं। 52. यीशु ने उस से कहा; चला जा, तेरे विश्वास ने तुझे चंगा कर दिया है: और वह तुरन्त देखने लगा, और मार्ग में उसके पीछे हो लिया।।
Chapter 11
1. जब वे यरूशलेम के निकट जैतून पहाड़ पर बैतफगे और बैतनिय्याह के पास आए, तो उस ने अपके चेलोंमें से दो को यह कहकर भेजा। 2. कि अपके साम्हने के गांव में जाओ, और उस में पंहुचते ही एक गदही का बच्चा जिस पर कभी कोई नहीं चढ़ा, बन्धाहुआ तुम्हें मिलेगा, उसे खोल लाओ। 3. यदि तुम से कोई पूछे, यह क्योंकरते हो तो कहना, कि प्रभु को इस का प्रयोजन है; और वह शीघ्र उसे यहां भेज देगा। 4. उन्होंने जाकर उस बच्चे को बाहर द्वार के पास चौक में बन्धा हुआ पाया, और खोलते लगे। 5. और उन में से जो वहां खड़े थे, कोई कोई कहने लगे कि यह क्या करते हो, गदही के बच्चे को क्योंखेलते हो 6. उन्होंने जैसा यीशु ने कहा या, वैसा ही उन से कह दिया; तब उन्होंने उन्हें जाने दिया। 7. और उन्होंने बच्चे को यीशु के पास लाकर उस पर अपके कपके डाले और वह उस पर बैठ गया। 8. और बहुतोंने अपके कपके मार्ग में बिछाए और औरोंने खेतोंमें से डालियां काट काट कर फैला दीं। 9. और जो उसके आगे आगे जाते और पीछे पीछे चले आते थे, पुकार पुकार कर कहते जाते थे, कि होशाना; धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है। 10. हमारे पिता दाऊद का राज्य जो आ रहा है; धन्य है: आकाश में होशाना।। 11. और वह यरूशलेम पहुंचकर मन्दिर में आया, और चारोंओर सब वस्तुओं को देखकर बारहोंके साय बैतनिय्याह गया क्योंकि सांफ हो गई यी।। 12. दूसरे दिन जब वे बैतनिय्याह से निकले तो उस को भूख लगी। 13. और वह दूर से अंजीर का एक हरा पेड़ देखकर निकट गया, कि क्या जाने उस में कुछ पाए: पर पत्तोंको छोड़ कुछ न पाया; क्योंकि फल का समय न या। 14. इस पर उस ने उस से कहा अब से कोई तेरा फल कभी न खाए। और उसके चेले सुन रहे थे। 15. फिर वे यरूशलेम में आए, और वह मन्दिर में गया; और वहां जो लेन-देन कर रहे थे उन्हें बाहर निकालने लगा, और सर्राफोंके पीढ़े और कबूतर के बेचनेवालोंकी चौकियां उलट दीं। 16. और मन्दिर में से होकर किसी को बरतन लेकर आने जाने न दिया। 17. और उपकेश करके उन से कहा, क्या यह नहीं लिखा है, कि मेरा घर सब जातियोंके लिथे प्रार्यना का घर कहलाएगा पर तुम ने इसे डाकुओं की खोह बना दी है। 18. यह सुनकर महाथाजक और शास्त्री उसके नाश करने का अवसर ढूंढ़ने लगे; क्योंकि उस से डरते थे, इसलिथे कि सब लोग उसके उपकेश से चकित होते थे।। 19. और प्रति दिन सांफ होते ही वह नगर से बाहर जाया करता या। 20. फिर भोर को जब वे उधर से जाते थे तो उन्होंने उस अंजीर के पेड़ को जड़ तक सूखा हुआ देखा। 21. पतरस को वह बात स्क़रण आई, और उस ने उस से कहा, हे रब्बी, देख, यह अंजीर का पेड़ जिसे तू ने स्राप दिया या सूख गया है। 22. यीशु ने उस को उत्तर दिया, कि परमेश्वर पर विश्वास रखो। 23. मैं तुम से सच कहता हूं कि जो कोई इस पहाड़ से कहे; कि तू उखड़ जा, और समुद्र में जा पड़, और अपके मन में सन्देह न करे, वरन प्रतीति करे, कि जो कहता हूं वह हो जाएगा, तो उसके लिथे वही होगा। 24. इसलिथे मैं तुम से कहता हूं, कि जो कुछ तुम प्रार्यना करके मांगोंतो प्रतीति कर लो कि तुम्हें मिल गया, और तुम्हारे लिथे हो जाएगा। 25. और जब कभी तुम खड़े हुए प्रार्यना करते हो, तो यदि तुम्हारे मन में किसी की और से कुछ विरोध, हो तो झमा करो: इसलिथे कि तुम्हारा स्वर्गीय पिता भी तुम्हारे अपराध झमा करे।। 26. और यदि तुम झमा न करो तो तुम्हारा पिता भी जो स्वर्ग में है, तुम्हारा अपराध झमा न करेगा। 27. वे फिर यरूशलेम में आए, और जब वह मन्दिर में टहल रहा या तो महाथाजक और शास्त्री और पुरिनए उसके पास आकर पूछने लगे। 28. कि तू थे काम किस अधिक्कारने से करता है और यह अधिक्कारने तुझे किस ने दिया है कि तू थे काम करे 29. यीशु ने उस से कहा: मैं भी तुम से एक बात पूछता हूं; मुझे उत्तर दो: तो मैं तुम्हें बताऊंगा कि थे काम किस अधिक्कारने से करता हूं। 30. यूहन्ना का बपतिस्क़ा क्या स्वर्ग की ओर से या वा मनुष्योंकी ओर से या मुझे उत्तर दो। 31. तब वे आपस में विवाद करने लगे कि यदि हम कहें, स्वर्ग की ओर से, तो वह कहेगा; फिर तुम ने उस की प्रतीति क्योंनहीं की 32. और यदि हम कहें, मनुष्योंकी ओर से तो लोगोंका डर है, क्योंकि सब जानते हैं कि यूहन्ना सचमुच भविष्यद्वक्ता है। 33. सो उन्होंने यीशु को उत्तर दिया, कि हम नहीं जानते : यीशु ने उन से कहा, मैं भी तुम को नहीं बताता, कि थे काम किस अधिक्कारने से करता हूं।।
Chapter 12
1. फिर वह दृष्टान्त में उन से बातें करने लगा: कि किसी मनुष्य ने दाख की बारी लगाई, और उसके चारोंओर बाड़ा बान्धा, और रस का कुंड खोदा, और गुम्मट बनाया; और किसानोंको उसका ठीका देकर परदेश चला गया। 2. फिर फल के मौसम में उस ने किसानोंके पास एक दास को भेजा कि किसान से दाख की बारी के फलोंका भाग ले। 3. पर उन्होंने उसे पकड़कर पीटा और छूछे हाथ लौटा दिया। 4. फिर उस ने एक और दास को उन के पास भेजा और उन्होंने उसका सिर फोड़ डाला और उसका अपमान किया। 5. फिर उस ने एक और को भेजा, और उन्होंने उसे मार डाला: तब उस ने और बहुतोंको भेजा: उन में से उन्होंने कितनो को पीटा, और कितनोंको मार डाला। 6. अब एक ही रह गया या, जो उसका प्रिय पुत्र या; अन्त में उस ने उसे भी उन के पास यह सोचकर भेजा कि वे मेरे पुत्र का आदर करेंगे। 7. पर उन किसानोंने आपस में कहा; यही तो वारिस है; आओ, हम उसे मार डालें, तब मीरास हमारी हो जाएगी। 8. और उन्होंने उसे पकड़कर मार डाला, और दाख की बारी के बाहर फेंक दिया। 9. इसलिथे दाख की बारी का स्वामी क्या करेगा वह आकर उन किसानोंको नाश करेगा, और दाख की बारी औरोंको दे देगा। 10. क्या तुम ने पवित्र शास्त्र में यह वचन नहीं पढ़ा, कि जिस पत्यर को राजमिस्त्रयोंने निकम्मा ठहराया या, वही कोने का सिरा हो गया 11. यह प्रभु की ओर से हुआ, और हमारी दुष्टि मे अद्भुत है। 12. तब उन्होंने उसे पकड़ना चाहा; क्योंकि समझ गए थे, कि उस ने हमारे विरोध में यह दृष्टान्त कहा है: पर वे लोगोंसे डरे; और उसे छोड़ कर चले गए।। 13. तब उन्होंने उसे बातोंमें फंसाने के लिथे कई एक फरीसियोंऔर हेरोदियोंको उसके पास भेजा। 14. और उन्होंने आकर उस से कहा; हे गुरू, हम जानते हैं, कि तू सच्चा है, और किसी की परवा नहीं करता; क्योंकि तू मनुष्योंका मुंह देख कर बातें नहीं करता, परन्तु परमेश्वर का मार्ग सच्चाई से बताता है। 15. तो क्या कैसा को कर देना उचित है, कि नहीं हम दें, या न दें उस ने उन का कपट जानकर उन से कहा; मुझे क्योंपरखते हो एक दीनार मेरे पास लाओ, कि मैं देखूं। 16. वे ले आए, और उस ने उन से कहा; यह मूतिर् और नाम किस का है उन्होंने कहा, कैसर का। 17. यीशु ने उन से कहा; जो कैसर का है वह कैसर को, और जो परमेश्वर का है परमेश्वर को दो: तब वे उस पर बहुत अचम्भा करने लगे।। 18. फिर सदूकियोंने भी, जो कहते हैं कि मरे हुओं का जी उठना है ही नहीं, उसके पास आकर उसे पूछा। 19. कि हे गुरू, मूसा ने हमारे लिथे लिखा है, कि यदि किसी का भाई बिना सन्तान मर जाए, और उस की पत्नी रह जाए, तो उसका भाई उस की पत्नी को ब्याह ले और अपके भाई के लिथे वंश उत्पन्न करे : सात भाई थे। 20. पहिला भाई ब्याह करके बिना सन्तान मर गया। 21. तब दूसरे भाई ने उस स्त्री को ब्याह लिया और बिना सन्तान मर गया; और वैसे ही तीसरे ने भी। 22. और सातोंसे सन्तान न हुई: सब के पीछे वह स्त्री भी मर गई। 23. सो जी उठने पर वह उन में से किस की पत्नी होगी क्योंकि वह सातोंकी पत्नी हो चुकी यी। 24. यीशु ने उन से कहा; क्या तुम इस कारण से भूल में नहीं पके हो, कि तुम न तो पवित्र शास्त्र ही को जानते हो, और न परमेश्वर की सामर्य को। 25. क्योंकि जब वे मरे हुओं में से जी उठेंगे, तो उन में ब्याह शादी न होगी; पर स्वर्ग में दूतोंकी नाई होंगे। 26. मरे हुओं के जी उठने के विषय में क्या तुम ने मूसा की पुस्तक में फाड़ी की कया में नही पढ़ा, कि परमेश्वर ने उस से कहा, मैं इब्राहीम का परमेश्वर, और इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमेश्वर हूं 27. परमेश्वर मरे हुओं का नहीं, वरन जीवतोंका परमेश्वर है: सो तुम बड़ी भूल में पके हो।। 28. और शास्त्रियोंमें से एक ने आकर उन्हें विवाद करते सुना, और यह जानकर कि उस ने उन्हें अच्छी रीति से उत्तर दिया; उस से पूछा, सब से मुख्य आज्ञा कौन सी है 29. यीशु ने उसे उत्तर दिया, सब आज्ञाओं में से यह मुख्य है; हे इस्राएल सुन; प्रभु हमारा परमेश्वर एक ही प्रभु है। 30. और तू प्रभु अपके परमेश्वर से अपके सारे मन से और अपके सारे प्राण से, और अपक्की सारी बुद्धि से, और अपक्की सारी शक्ति से प्रेम रखना। 31. और दूसरी यह है, कि तू अपके पड़ोसी से अपके समान प्रेम रखना: इस से बड़ी और कोई आज्ञा नहीं। 32. शास्त्री ने उस से कहा; हे गुरू, बहुत ठीक! तू ने सच कहा, कि वह एक ही है, और उसे छोड़ और कोई नहीं। 33. और उस से सारे मन और सारी बुद्धि और सारे प्राण और सारी शक्ति के साय प्रेम रखना और पड़ोसी से अपके समान प्रेम रखना, सारे होमोंऔर बलिदानोंसे बढ़कर है। 34. जब यीशु ने देखा कि उस ने समझ से उत्तर दिया, तो उस से कहा; तू परमेश्वर के राज्य से दूर नहीं: और किसी को फिर उस से कुछ पूछने का साहस न हुआ।। 35. फिर यीशु ने मन्दिर में उपकेश करते हुए यह कहा, कि शास्त्री क्योंकर कहते हैं, कि मसीह दाऊद का पुत्र है 36. दाऊद ने आपक्की पवित्र आत्क़ा में होकर कहा है, कि प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा; मेरे दाहिने बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियोंको तेरे पांवोंकी पीढ़ी न कर दूं। 37. दाऊद तो आप ही उसे प्रभु कहता है, फिर वह उसका पुत्र कहां से ठहरा और भीड़ के लोग उस की आनन्द से सुनते थे।। 38. उस ने अपके उपकेश में उन से कहा, शस्त्रियोंसे चौकस रहो, जो लम्बे वस्त्र पहिने हुए फिरना। 39. और बाजारोंमें नमस्कार, और आराधनालयोंमें मुख्य मुख्य आसन और जेवनारोंमें मुख्य मुख्य स्यान भी चाहते हैं। 40. वे विधवाओं के घरोंको खा जाते हैं, और दिखाने के लिथे बड़ी देर तक प्रार्यना करते रहते हैं, थे अधिक दण्ड पाएंगे।। 41. और वह मन्दिर के भण्डार के साम्हने बैठकर देख रहा या, कि लोग मन्दिर के भण्डार में किस प्रकार पैसे डालते हैं, और बहुत धनवानोंने बहुत कुछ डाला। 42. इतने में एक कंगाल विधवा ने आकर दो दमडिय़ां, जो एक अधेले के बराबर होती है, डाली। 43. तब उस ने अपके चेलोंको पास बुलाकर उन से कहा; मैं तुम से सच कहता हूं, कि मन्दिर के भण्डार में डालने वालोंमें से इस कंगाल विधवा ने सब से बढ़कर डाला है। 44. क्योंकि सब ने अपके धन की बढ़ती में से डाला है, परन्तु इस ने अपक्की घटी में से जो कुछ उसका या, अर्यात् अपक्की सारी जीविका डाल दी है।
Chapter 13
1. जब वह मन्दिर से निकल रहा या, तो उसके चलोंमें से एक ने उस से कहा; हे गुरू, देख, कैसे कैसे पत्यर और कैसे कैसे भवन हैं! 2. यीशु ने उस से कहा; क्या तुम थे बड़े बड़े भवन देखते हो: यहां पत्यर पर पत्यर भी बचा न रहेगा जो ढाया न जाएगा।। 3. जब वह जैतून के पहाड़ पर मन्दिर के साम्हने बैठा या, तो पतरस और याकूब और यूहन्ना और अन्द्रियास ने अलग जाकर उस से पूछा। 4. कि हमें बता कि थे बातें कब होंगी और जब थे सब बातें पूरी होने पर होंगी उस समय का क्या चिन्ह होगा 5. यीशु उन से कहने लगा; चौकस रहो कि कोई तुम्हें न भरमाए। 6. बहुतेरे मेरे नाम से आकर कहेंगे, कि मैं वही हूं और बहुतोंको भरमाएंगे। 7. और जब तुम लड़ाइयां, और लड़ाइयोंकी चर्चा सुनो; तो न घबराना: क्योंकि इन का होना अवश्य है; परन्तु उस समय अन्त न होगा। 8. क्योंकि जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा, और हर कहीं भूईंडोल होंगे, और अकाल पकेंगे; यह तो पीड़ाओं का आरम्भ ही होगा।। 9. परन्तु तुम अपके विषय में चौकस रहो; क्योंकि लोग तुम्हें महासभाओं में सौंपेंगे और तुम पंचायतोंमें पीटे जाओगे; और मेरे कारण हाकिमोंऔर राजाओं के आगे खड़े किए जाओगे, ताकि उन के लिथे गवाही हो। 10. पर अवश्य है कि पहिले सुसमाचार सब जातियोंमें प्रचार किया जाए। 11. जब वे तुम्हें ले जाकर सौंपेंगे, तो पहिले से चिन्ता न करना, कि हम क्या कहेंगे; पर जो कुछ तुम्हें उसी घड़ी बताया जाए, वही कहना; क्योंकि बोलनेवाले तुम नहीं हो, परन्तु पवित्र आत्क़ा है। 12. और भाई को भाई, और पिता को पुत्र घात के लिथे सौंपेंगे, और लड़केबाले माता-पिता के विरोध में उठकर उन्हें मरवा डालेंगे। 13. और मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे; पर जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।। 14. सो जब तुम उस उजाड़नेवाली घृणित वस्तु को जहां उचित नहीं वहां खड़ी देखो, (पढ़नेवाला समझ ले) तब जो यहूदिया में हों, वे पहाड़ोंपर भाग जाएं। 15. सो कोठे पर हो, वह अपके घर से कुछ लेने को नीचे न उतरे और न भीतर जाए। 16. और जो खेत में हो, वह अपना कपड़ा लेने के लिथे पीछे न लौटे। 17. उन दिनोंमें जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उन के लिथे हाथ हाथ! 18. और प्रार्यना किया करो कि यह जाड़े में न हो। 19. क्योंकि वे दिन ऐसे क्लेश के होंगे, कि सृष्टि के आरम्भ से जो परमेश्वर ने सृजी है अब तक न तो हुए, और न कभी फिर होंगे। 20. और यदि प्रभु उन दिनोंको न घटाता, तो कोई प्राणी भी न बचता; परन्तु उन चुने हुओं के कारण जिन को उस ने चुना है, उन दिनोंको घटाया। 21. उस समय यदि कोई तुम से कहे; देखो, मसीह यहां है, या देखो, वहां है, तो प्रतीति न करना। 22. क्योंकि फूठे मसीह और फूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और चिन्ह और अद्भुत काम दिखाएंगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें। 23. पर तुम चौकस रहो: देखो, मैं ने तुम्हें सब बातें पहिले ही से कह दी हैं। 24. उन दिनोंमें, उस क्लेश के बाद सूरज अन्धेरा हो जाएगा, और चान्द प्रकाश न देगा। 25. और आकाश से तारागण गिरने लगेंगे: और आकाश की शक्तियां हिलाई जाएंगेी। 26. तब लोग मनुष्य के पुत्र को बड़ी सामर्य और महिमा के साय बादलोंमें आते देखंेगे। 27. उस समय वह अपके दूतोंको भेजकर, पृय्वी के इस छोर से आकाश की उस छोर तक चारोंदिशा से अपके चुने हुए लोगोंको इकट्ठे करेगा। 28. अंजीर के पेड़ से यह दृष्टान्त सीखो: जब उस की डाली कोमल हो जाती; और पत्ते निकलने लगते हैं; तो तुम जान लेते हो, कि ग्रीष्क़काल निकट है। 29. इसी रीति से जब तुम इन बातोंको होते देखो, तो जान लो, कि वह निकट है वरन द्वार ही पर है। 30. मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक थे सब बातें न हो लेंगी, तब तक यह लोग जाते न रहेंगे। 31. आकाश और पृय्वी अल जाएंगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी। 32. उस दिन या उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत और न पुत्र; परन्तु केवल पिता। 33. देखो, जागते और प्रार्यना करते रहो; क्योंकि तुम नहीं जानते कि वह समय कब आएगा। 34. यह उस मनुष्य की सी दशा है, जो परदेश जाते समय अपना घर छोड़ जाए, और अपके दासोंको अधिक्कारने दे: और हर एक को उसका काम जता दे, और द्वारपाल को जागते रहने की आज्ञा दे। 35. इसलिथे जागते रहो; क्योंकि तुम नहीं जानते कि घर का स्वामी कब आएगा, सांफ को या आधी रात को, या मुर्ग के बांग देने के समय या भोर को। 36. ऐसा न हो कि वह अचानक आकर तुम्हें सोते पाए। 37. और जो मैं तुम से कहता हूं, वही सब से कहता हूं, जागते रहो।।
Chapter 14
1. दो दिन के बाद फसह और अखमीरी रोटी का पर्व्व होनेवाला या: और महाथाजक और शास्त्री इस बात की खोज में थे कि उसे क्योंकर छल से पकड़ कर मार डालें। 2. परन्तु कहते थे, कि पर्व्व के दिन नहीं, कहीं ऐसा न हो कि लोगोंमे बलवा मचे।। 3. जब वह बैतनिय्याह में शमौन कोढ़ी के घर भोजन करने बैठा हुआ या जब एक स्त्री संगमरमर के पात्र में जटामांसी का बहुमूल्य शुद्ध इत्र लेकर आई; और पात्र तोड़ कर इत्र को उसके सिर पर उण्डेला। 4. परन्तु कोई कोई अपके मन में िरिसयाकर कहने लगे, इस इत्र को क्योंसत्यनाश किया गया 5. क्योकि यह इत्र तो ती सौ दीनार से अधिक मूल्य में बेचकर कंगालोंको बांटा जा सकता या, ओर वे उस को फिड़कने लगे। 6. यीशु ने कहा; उसे छोड़ दो; उसे क्योंसताते हो उस ने तो मेरे साय भालाई की है। 7. कंगाल तुम्हारे साय सदा रहते हैं: और तुम जब चाहो तब उन से भलाई कर सकते हो; पर मैं तुम्हारे साय सदा न रहूंगा। 8. जो कुछ वह कर सकी, उस ने किया; उस ने मेरे गाड़े जाने की तैयारी में पहिले से मेरी देह पर इत्र मला है। 9. मैं तुम से सच कहता हूं, कि सारे जगत में जहां कहीं सुसमाचार प्रचर किया जाएगा, वहां उसके इस काम की चर्चा भी उसके स्क़रण में की जाएगी।। 10. तब यहूदा इसकिरयोती जो बारह में से एक या, महाथाजकोंके पास गया, कि उसे उन के हाथ पकड़वा दे। 11. वे यह सुनकर आनन्दित हुए, और उस को रूपके देना स्वीकार किया, और यह अवसर ढूंढ़ने लगा कि उसे किसी प्रकार पकड़वा दे।। 12. अखमीरी रोटी के पर्व्व के पहिले दिन, जिस में से फसह का बलिदान करते थे, उसके चेलोंने उस से पूछा, तू कहां चाहता है, कि हम जाकर तेरे लिथे फसह खाने की तैयारी करे 13. उस ने अपके चेलोंमें से दो को यह कहकर भेजा, कि नगर में जाओ, और एक मनुष्य जल का घड़ा उठाए, हुए तुम्हें मिलेगा, उसके पीछे हो लेना। 14. और वह जिस घर में जाए उस घर के स्वामी से कहना; गुरू कहता है, कि मेरी पाहुनशाला जिस में मैं अपके चेलोंके साय फसह खाऊं कहां है 15. वह तुम्हें एक सजी सजाई, और तैयार की हुई बड़ी अटारी दिखा देगा, वहां हमारे लिथे तैयारी करो। 16. सो चेले निकलकर नगर में आथे और जैसा उस ने उन से कहा या, वैसा की पाया, और फसह तैयार किया।। 17. जब सांफ हुई, तो वह बारहोंके साय आया। 18. और जब वे बैठे भोजन कर रहे थे, तो यीशु ने कहा; मैं तुम से सच कहता हूं, कि तुम में से एक, जो मेरे साय भोजन कर रहा है, मुझे पकड़वाएगा। 19. उन पर उदासी छा गई और वे एक एक करके उस से कहने लगे; क्या वह मैं हूं 20. उस ने उन से कहा, वह बारहोंमें से एक है, जो मेरे साय याली में हाथ डालता है। 21. क्योंकि मनुष्य का पुत्र तो, जैसा उसके विषय में लिखा है, जाता ही है; परन्तु उस मनुष्य पर हाथ जिस के द्वारा मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जाता है! यदि उस मनुष्य का जन्क़ ही न होताख् तो उसके लिथे भला होता।। 22. और जब वे खा ही रहे थे तो उस ने रोटी ली, और आशीष मांगकर तोड़ी, और उनहें दी, और कहा, लो, यह मेरी देह है। 23. फिर उस ने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, और उन्हें दिया; और उन सब ने उस में से पीया। 24. और उस ने उन से कहा, यह वाचा का मेरा वह लोहू है, जो बहुतोंके लिथे बहाथा जाता है। 25. मैं तुम से सच कहता हूं, कि दाख का रस उस दिन तक फिर कभी न पीऊंगा, जब तक परमेश्वर के राज्य में नया न पीऊं।। 26. फिर वे भजन गाकर बाहर जैतून के पहाड़ पर गए।। 27. तब यीशु ने उन से कहा; तुम सब ठोकर खाओगे, क्योंकि लिखा है, कि मैं रखवाले को मारूंगा, और भेड़ तित्तर बित्तर हो जाएंगी। 28. परन्तु मैं अपके जी उठने के बाद तुम से पहिले गलील को जाऊंगा। 29. पतरस ने उस से कहा; यदि एक ठोकर खाएं तो खांए, पर मैं ठोकर नहीं खाऊंगा। 30. यीशु ने उस से कहा; मैं तुझ से सच कहता हूं, कि आज ही इसी रात को मुर्गे के दो बार बांग देने से पहिले, तू तीन बार मुझ से मुकर जाएगा। 31. पर उस ने और भी जोर देकर कहा, यदि मुझे तेरे साय मरना भी पके तौभी तेरा इन्कार कभी न करूंगा: इसी प्रकार और सब ने भी कहा।। 32. फिर वे गतसमने नाम एक जगह में आए, और उस ने अपके चेलोंसे कहा, यहां बैठे रहो, जब तक मैं प्रार्यना करूं। 33. और वह पतरस और याकूब और यूहन्ना को अपके साय ले गया: और बहुत ही अधीर, और व्याकुल होने लगा। 34. और उन से कहा; मेरा मन बहुत उदास है, यहां तक कि मैं मरने पर हूं: तुम यहां ठहरो, और जागते रहो। 35. और वह योड़ा आगे बढ़ा, और भूमि पर गिरकर प्रार्यना करने लगा, कि यदि हो सके तो यह घड़ी मुझ पर से टल जाए। 36. और कहा, हे अब्बा, हे पिता, तुझ से सब कुछ हो सकता है; इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले: तौभी जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, पर जो तू चाहता है वही हो। 37. फिर वह आया, और उन्हें सोते पाकर पतरस से कहा; हे शमौन तू सो रहा है क्या तू एक घड़ी भी न जाग सका 38. जागते और प्रार्यना करते रहो कि तुम पक्कीझा में न पड़ो: आत्क़ा तो तैयार है, पर शरीर र्दुबल है। 39. और वह फिर चला गया, और वही बात कहकर प्रार्यना की। 40. और फिर आकर उन्हें सोते पाया, क्योंकि उन की आंखे नींद से भरी यीं; और नहीं जानते थे कि उसे क्या उत्तर दें। 41. फिर तीसरी बार आकर उन से कहा; अब सोते रहो और विश्रम करो, बस, घड़ी आ पहुंची; देखो मनुष्य का पुत्र पापियोंके हाथ पकड़वाया जाता है। 42. उठो, चलें: देखो, मेरा पकड़वानेवाला निकट आ पहुंचा है।। 43. वह यह कह ही रहा या, कि यहूदा जो बारहोंमें से या, अपके साय महाथाजकोंऔर शास्त्रियोंऔर पुरिनयोंकी ओर से एक बड़ी भीड़ तलवारें और लाठियां लिए हुए तुरन्त आ पहुंची। 44. और उसके पकड़नेवाले ने उन्हें यह पता दिया या, कि जिस को मैं चूमूं वही है, उसे पकड़कर यतन से ले जाना। 45. और वह आया, और तुरन्त उसके पास जाकर कहा; हे रब्बी और उस को बहुत चूमा। 46. तब उन्होंने उस पर हाथ डालकर उसे पकड़ लिया। 47. उन में से जो पास खड़े थे, एक ने तलवार खींच कर महाथाजक के दास पर चलाई, और उसका कान उड़ा दिया। 48. यीशु ने उन से कहा; क्या तुम डाकू जानकर मेरे पकड़ने के लिथे तलवारें और लाठियां लेकर निकले हो 49. मैं तो हर दिन मन्दिर में तुम्हारे साय रहकर उपकेश दिया करता या, और तब तुम ने मुझे न पकड़ा: परन्तु यह इसलिथे हुआ है कि पवित्र शास्त्र की बातें पूरी हों। 50. इस पर सब चेले उसे छोड़कर भाग गए।। 51. और एक जवान अपक्की नंगी देह पर चादर ओढ़े हुए उसके पीदे हो लिया; और लोगोंने उसे पकड़ा। 52. पर वह चादर छोड़कर नंगा भाग गया।। 53. फिर वे यीशु को महाथाजक के पास ले गए; और सब महाथाजक और पुरिनए और शास्त्री उसके यहां इकट्ठे हो गए। 54. पतरस दूर ही दूर से उसके पीछे पीछे महाथाजक के आंगन के भीतर तक गया, और प्यादोंके साय बैठ कर आग तापके लगा। 55. महाथाजक और सारी महासभा यीशु के मार डालने के लिथे उसके विरोध में गवाही की खोज में थे, पर न मिली। 56. क्योंकि बहुतेरे उसके विरोध में फूठी गवाही दे रहे थे, पर उन की गवाही एक सी न यी। 57. तब कितनोंने उठकर उस पर यह फूठी गवाही दी। 58. कि हम ने इसे यह कहते सुना है कि मैं इस हाथ के बनाए हुए मन्दिर को ढ़ा दूंगा, और तीन दिन में दूसरा बनाऊंगा, जो हाथ से न बना हो। 59. इस पर भी उन की गवाही एक सी न निकली। 60. तब महाथाजक ने बीच में खड़े होकर यीशु से पूछा; कि तू कोई उत्तर नहीं देता थे लोग तेरे विरोध में क्या गवाही देते हैं 61. परन्तु वह मौन साधे रहा, और कुछ उत्तर न दिया: महाथाजक ने उस से फिर पूछा, क्या तू उस परम धन्य का पुत्र मसीह है 62. यीशु ने कहा; हां मैं हूं: और तुम मनुष्य के पुत्र को सर्वशक्तिमान की दिहनी और बैठे, और आकाश के बादलोंके साय आते देखोगे। 63. तब महाथाजक ने अपके वस्त्र फाड़कर कहा; अब हमें गवाहोंका क्या प्रयोजन है 64. तुम ने यह निन्दा सुनी: तुम्हारी क्या राय है उन सब ने कहा, वह वध के योग्य है। 65. तब कोई तो उस पर यूकने, और कोई उसका मुंह ढांपके और उसे घूसे मारने, और उस से कहने लगे, कि भविष्यद्वाणी कर: और प्यादोंने उसे लेकर यप्पड़ मारे।। 66. जब पतरस नीचे आंगन में या, तो महाथाजक की लौंडियोंमें से एक वहां आई। 67. और पतरस को आग तापके देखकर उस पर टकटकी लगाकर देखा और कहने लगी, तू भी तो उस नासरी यीशु के साय या। 68. वह मुकर गया, और कहा, कि मैं तो नहीं जानता औश्र् नहीं समझता कि तू क्या कह रही है: फिर वह बाहर डेवढ़ी में गया; और मुर्गे ने बांग दी। 69. वह लौंडी उसे देखकर उन से जो पास खड़े थे, फिर कहने लगी, कि उन में से एक है। 70. परन्तु वह फिर मुकर गया और योड़ी देर बाद उन्होंने जो पास खड़े थे फिर पतरस से कहा; निश्चय तू उन में से एक है; क्योंकि तू गलीली भी है। 71. तब वह धिक्कारने देन और शपय खाने लगा, कि मैं उस मनुष्य को, जिस की तुम चर्चा करते हो, नहंीं जानता। 72. तब तुरन्त दूसरी बार मुर्ग ने बांग दी: पतरस को यह बात जो यीशु ने उस से कही यी स्क़रण आई, कि मुर्ग के दो बार बांग देने से पहिले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा: वह इस बात को सोचकर रोने लगा।।
Chapter 15
1. और भोर होते ही तुरन्त महाथाकों, पुरिनयों, और शास्त्रियोंने वरन सारी महासभा ने सलाह करके यीशु को बन्धवाया, और उसे ले जाकर पीलातुस के हाथ सौंप दिया। 2. और पीलातुस ने उस से पूछा, क्या तू यहूदियोंका राजा है उस ने उस को उत्तर दिया; कि तू आप ही कह रहा है। 3. और महाथाजक उस पर बहुत बातोंका दोष लगा रहे थे। 4. पीलातुस ने उस से फिर पूछा, क्या तू कुछ उत्तर नहीं देता, देख थे तुझ पर कितनी बातोंका दोष लगाते हैं 5. यीशु ने फिर कुछ उत्तर नहीं दिया; यहां तक कि पीलातुस को बड़ा आश्चर्य हुआ।। 6. और वह उस पर्व्व में किसी एक बन्धुए को जिसे वे चाहते थे, उन के लिथे छोड़ दिया करता या। 7. और बरअब्बा नाम एक मनुष्य उन बलवाइयोंके साय बन्धुआ या, जिन्होंने बलवे में हत्या की यी। 8. और भीड़ ऊपर जाकर उस से बिनती करने लगी, कि जैसा तू हमारे लिथे करता आया है वैसा ही कर। 9. पीलातुस ने उन को यह उत्तर दिया, क्या तुम चाहते हो, कि मैं तुम्हारे लिथे यहूदियोंके राजा को छोड़ दूं 10. क्योंकि वह जानता या, कि महाथाजकोंने उसे डाह से पकड़वाया या। 11. परन्तु महाथाजकोंने लोगोंको उभारा, कि वह बरअब्बा ही को उन के लिथे छोड़ दे। 12. यह सून पीलातुस ने उन से फिर पूछा; तो जिसे तुम यहूदियोंका राजा कहते हो, उस को मैं क्या करूं वे फिर चिल्लाए, कि उसे क्रूस पर चढ़ा दे। 13. पीलातुस ने उन से कहा; क्यों, इस ने क्या बुराई की है 14. परन्तु वे और भी चिल्लाए, कि उसे क्रूस पर चढ़ा दे। 15. तक पीलातुस ने भीड़ को प्रसन्न करने की इच्छा से, बरअब्बा को उन के लिथे छोड़ दिया, और यीशु को कोड़े लगवाकर सौंप दिया, कि क्रूस पर चढ़ाया जाए। 16. और सिपाही उसे किले के भीतर आंगत में ले गए जो प्रीटोरियुन कहलाता है, और सारी पलटन को बुला लाए। 17. और उन्होंने उसे बैंजनी वस्त्र पहिनाया और कांटोंका मुकुट गूंयकर उसके सिर पर रखा। 18. और यह कहकर उसे नमस्कार करने लगे, कि हे यहूदियोंके राजा, नमस्कार! 19. और वे उसके सिर पर सरकण्डे मारते, और उस पर यूकते, और घुटने टेककर उसे प्रणाम करते रहे। 20. और जब वे उसका ठट्ठा कर चुके, तो उस पर बैंजनी वस्त्र उतारकर उसी के कपके पहिनाए; और तब उसे क्रूस पर चढ़ाने के लिथे बाहर ले गए। 21. और सिकन्दर और रूफुस का पिता, शमौन नाम एक कुरेनी मनुष्य, जो गांव से आ रहा या उधर से निकला; उन्होंने उसे बेगार में पकड़ा, कि उसका क्रूस उठा ले चले। 22. और वे उसे गुलगुता नाम जगह पर जिस का अर्य खोपड़ी की जगह है लाए। 23. और उसे मुर्र मिला हुआ दाखरस देने लगे, परन्तु उस ने नहीं लिया। 24. तब उन्होंने उस को क्रूस पर चढ़ाया, और उसके कपड़ोंपर चिट्ठियां डालकर, कि किस को क्या मिले, उन्हें बांट लिया। 25. और पहर दिन चढ़ा या, जब उन्होंने उस को क्रूस पर चढ़ाया। 26. और उसका दोषपत्र लिखकर उसके ऊपर लगा दिया गया कि ?यहूदियोंका राजा। 27. और उन्होंने उसके साय दो डाकू, एक उस की दिहनी और एक उस की बाईं ओर क्रूस पर चढ़ाए। 28. तब धर्मशास्त्र का वह वचन कि वह अपराधियोंके संग गिना गया पूरा हुआ। 29. और मार्ग में जानेवाले सिर हिला हिलाकर और यह कहकर उस की निन्दा करते थे, कि वाह! मन्दिर के ढानेवाले, और तीन दिन में बनानेवाले! क्रूस पर से उतर कर अपके आप को बचा ले। 30. इसी रीति से महाथाजक भी, शास्त्रियोंसमेत, 31. आपस में ठट्ठे से कहते थे; कि इस ने औरोंको बचाया, और अपके को नहीं बचा सकता। 32. इस्राएल का राजा मसीह अब क्रूस पर से उतर आए कि हम देखकर विश्वास करें: और जो उसके साय क्रूसोंपर चढ़ाए गए थे, वे भी उस की निन्दा करते थे।। 33. और दोपहर होने पर, सारे देश में अन्धिक्कारनेा छा गया; और तीसरे पहर तक रहा। 34. तीसरे पहर यीशु ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा, इलोई, इलोई, लमा शबक्तनी जिस का अर्य है; हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर, तू ने मुझे क्योंछोड़ दिया 35. जो पास खड़े थे, उन में से कितनोंने यह सुनकर कहा: देखो यह एलिय्याह को पुकारता है। 36. और एक ने दौड़कर इस्पंज को सिरके से डुबोया, और सरकण्डे पर रखकर उसे चुसाया; और कहा, ठहर जाओ, देखें, कि एलिय्याह उसे उतारने कि लिथे आता है कि नहीं। 37. तब यीशु ने बड़े शब्द से चिल्लाकर प्राण छोड़ दिथे। 38. और मन्दिर का पर्दा ऊपर से नीचे तक फटकर दो टुकड़े हो गया। 39. जो सूबेदार उसके सम्हने खड़ा या, जब उसे यूं चिल्लाकर प्राण छोड़ते हुए देखा, तो उस ने कहा, सचमुच यह मनुष्य, परमेश्वर का पुत्र या। 40. कई स्त्रियां भी दूर से देख रही यीं: उन में मरियम मगदलीनी और छोटे याकूब की और योसेस की माता मरियम और शलोमी यीं। 41. जब वह गलील में य, तो थे उसके पीछे हो लेती यीं और उस की सेवाटहल किया करती यीं; और और भी बहुत सी स्त्रियां यीं, जो उसके साय यरूशलेम में आई यीं।। 42. जब संध्या हो गई, तो इसलिथे कि तैयारी का दिन या, जो सब्त के एक दिन पहिले होता है। 43. अिरिमतिया का रहेनवाला यूसुुफ आया, जो प्रतिष्ठित मंत्री और आप भी परमेश्वर के राज्य की बाट जोहता या; वह हियाव करके पीलातुस के पास गया और यीशु की लोय मांगी। 44. पीलातुस ने आश्चर्य किया, कि वह इतना शीघ्र मर गया; और सूबेदार को बुलाकर पूछा, कि क्या उस को मरे हुए देर हुई 45. सो जब सूबेदार के द्वारा हाल जान लिया, तो लोय यूसुफ को दिला दी। 46. तब उस ने एक पतली चादर मोल ली, और लोय को उतारकर चादर में लपेटा, और एक कब्र मे जो चट्टान में खोदी गई यी रखा, और कब्र के द्वार पर एक पत्यर लुढ़कार दिया। 47. और मरियम मगदलीनी और योसेस की माता मरियम देख रही यीं, कि वह कहां रखा गया है।।
Chapter 16
1. जब सब्त का दिन बीत गया, तो मरियम मगदलीनी और याकूब की माता मरियम और शलोमी ने सुगन्धित वस्तुएं मोल ली, कि आकर उस पर मलें। 2. और सप्ताह के पहिले दिन बड़ी भोर, जब सूरज निकला ही या, वे कब्र पर आईं। 3. और आपस में कहती यीं, कि हमारे लिथे कब्र के द्वार पर से पत्यर कौन लुढ़ाएगा 4. जब उन्होंने आंख उठाई, तो देखा कि पत्यर लुढ़का हुआ है! क्योंकि वह बहुत ही बड़ा या। 5. और कब्र के भीतर जाकर, उन्होंने एक जवान को श्वेत वस्त्र पहिने हुए दिहनी ओर बैठे देखा, और बहुत चकित हुई। 6. उस ने उन से कहा, चकित मत हो, तुम यीशु नासरी को, जो क्रूस पर चढ़ाया गया या, ढूंढ़ती हो: वह जी उठा है; यहां नहीं है; देखो, यही वह स्यान है, जहां उन्होंने उसे रखा या। 7. परन्तु तुम जाओ, और उसके चेलोंऔर पतरस से कहो, कि वह तुम से पहिले गलील को जाएगा; जैसा उस ने तुम से कहा या, तुम वही उसे देखोगे। 8. और वे निकलकर कब्र से भाग गईं; क्योंकि कपकपी और घबराहट उन पर छा गई यीं और उन्होंने किसी से कुछ न कहा, क्योंकि डरती यीं।। 9. सप्ताह के पहिले दिन भोर होते ही वह जी उठ कर पहिले पहिल मरियम मगदलीनी को जिस में से उस ने सात दुष्टात्क़ाएं निकाली यीं, दिखाई दिया। 10. उस ने जाकर उसके सायियोंको जो शोक में डूबे हुए थे और रो रहे थे, समाचार दिया। 11. और उन्होंने यह सुनकर की वह जीवित है, और उस ने उसे देखा है प्रतीति न की।। 12. इस के बाद वह दूसरे रूप में उन में से दो को जब वे गांव की ओर जा रहे थे, दिखाई दिया। 13. उन्होंने भी जाकर औरोंको समाचार दिया, परन्तु उन्होंने उन की भी प्रतीति न की।। 14. पीछे वह उन ग्यारहोंको भी, जब वे भोजन करने बैठे थे दिखाई दिया, और उन के अविश्वास और मन की कठोरता पर उलाहना दिया, क्योंकि जिन्होंने उसके जी उठने के बाद उसे देखा या, इन्होंने उन की प्रतीति न की यी। 15. और उस ने उन से कहा, तुम सारे जगत में जाकर सारी सृष्टि के लोगोंको सुसमाचार प्रचार करो। 16. जो विश्वास करे और बपतिस्क़ा ले उसी का उद्धार होगा, परन्तु जो विश्वास ने करेगा वह दोषी ठहराया जाएगा। 17. और विश्वास करनेवालोंमें थे चिन्ह होंगे कि वे मेरे नाम से दुष्टात्क़ाओं को निकालेंगे। 18. नई नई भाषा बोलेंगे, सांपोंको उठा लेंगे, और यदि वे नाशक वस्तु भी पी जांए तौभी उन की कुछ हानि न होगी, वे बीमारोंपर हाथ रखेंगे, और वे चंगे हो जाएंगे। 19. निदान प्रभु यीशु उन से बातें करने के बाद स्वर्ग पर उठा लिया गया, और परमेश्वर की दिहनी ओर बैठ गया। 20. और उन्होंने निकलकर हर जगह प्रचार किया, और प्रभु उन के साय काम करता रहा, और उन चिन्होंके द्वारा जो साय साय होते थे वचन को, दृढ़ करता रहा। आमीन।
(April28th2012)
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