लूका
Chapter 1
1. इसलिथे कि बहुतोंने उन बातोंको जो हमारे बीच में होती हैं इतिहास लिखने में हाथ लगाया है। 2. जैसा कि उन्होंने जो पहिले ही से इन बातोंके देखनेवाले और वचन के सेवक थे हम तक पहुंचाया। 3. इसलिथे हे श्र्ीमान यियुफिलुस मुझे भी यह उचित मालूम हुआ कि उन सब बातोंका सम्पूर्ण हाल आरम्भ से ठीक ठीक जांच करके उन्हें तेरे लिथे क्रमानुसार लिखूं। 4. कि तू यह जान ले, कि थे बातें जिनकी तू ने शिझा पाई है, कैसी अटल हैं।। 5. यहूदियोंके राजा हेरोदेस के समय अबिय्याह के दल में जकरयाह नाम का एक याजक या, और उस की पत्नी हारून के वंश की यी, जिस का नाम इलीशिबा या। 6. और वे दोनोंपरमेश्वर के साम्हने धर्मी थे: और प्रभु की सारी आज्ञाओं और विधियोंपर निर्दोष चलनेवाले थे। उन के कोई सन्तान न यी, 7. क्योंकि इलीशिबा बांफ यी, और वे दोनोंबूढ़े थे।। 8. जब वह अपके दलकी पारी पर परमेश्वर के साम्हने याजक का काम करता या। 9. तो याजकोंकी रीति के अनुसार उसके नाम पर चिट्ठी निकली, कि प्रभु के मन्दिर में जाकर धूप जलाए। 10. और धूप जलाने के समय लोगोंकी सारी मण्डली बाहर प्रार्यना कर रही यी। 11. कि प्रभु का एक स्वर्गदूत धूप की वेदी की दिहनी ओर खड़ा हुआ उस को दिखाई दिया। 12. और जकरयाह देखकर घबराया और उस पर बड़ा भय छा गया। 13. परन्तु स्वर्गदूत ने उस से कहा, हे जकरयाह, भयभीत न हो क्योंकि तेरी प्रार्यना सुन ली गई है और तेरी पत्नी इलीशिबा से तेरे लिथे एक पुत्र उत्पन्न होगा, और तू उसका नाम यूहन्ना रखना। 14. और तुझे आनन्द और हर्ष होगा: और बहुत लोग उसके जन्क़ के कारण आनन्दित होंगे। 15. क्योंकि वह प्रभु के साम्हने महान होगा; और दाखरस और मदिरा कभी न पिएगा; और अपक्की माता के गर्भ ही से पवित्र आत्क़ा से परिपूर्ण हो जाएगा। 16. और इस्राएलियोंमें से बहुतेरोंको उन के प्रभु परमेश्वर की ओर फेरेगा। 17. वह एलिय्याह की आत्क़ा और सामर्य में हो कर उसके आगे आगे चलेगा, कि पितरोंका मन लड़केबालोंकी ओर फेर दे; और आज्ञा न माननेवालोंको धमिर्योंकी समझ पर लाए; और प्रभु के लिथे एक योग्य प्रजा तैयार करे। 18. जकरयाह ने स्वर्गदूत से पूछा; यह मैं कैसे जानूं क्योंकि मैं तो बूढ़ा हूं; और मेरी पत्नी भी बूढ़ी हो गई है। 19. स्वर्गदूत ने उस को उत्तर दिया, कि मैं जिब्राईल हूं, जो परमेश्वर के साम्हने खड़ा रहता हूं; और मैं तुझ से बातें करने और तुझे यह सुसमाचार सुनाने को भेजा गया हूं। 20. और देख जिस दिन तक थे बातें पूरी न हो लें, उस दिन तक तू मौन रहेगा, और बोल न सकेगा, इसलिथे कि तू ने मेरी बातोंकी जो अपके समय पर पूरी होंगी, प्रतीति न की। 21. और लोग जकरयाह की बाट देखते रहे और अचम्भा करने लगे कि उसे मन्दिर में ऐसी देर क्योंलगी 22. जब वह बाहर आया, तो उन से बोल न सका: सो वे जान गए, कि उस ने मन्दिर में कोई दर्शन पाया है; और व उन से संकेत करता रहा, और गूंगा रह गया। 23. जब उस की सेवा के दिन पूरे हुए, तो वह अपके घर चला गया।। 24. इन दिनोंके बाद उस की पत्नी इलीशिबा गर्भवती हुई; और पांच महीने तक अपके आप को यह कह के छिपाए रखा। 25. कि मनुष्योंमें मेरा अपमान दूर करने के लिथे प्रभु ने इन दिनोंमें कृपादृष्टि करके मेरे लिथे ऐसा किया है।। 26. छठवें महीने में परमेश्वर की ओर से जिब्राईल स्वर्गदूत गलील के नासरत नगर में एक कुंवारी के पास भेजा गया। 27. जिस की मंगनी यूसुफ नाम दाऊद के घराने के एक पुरूष से हुई यी: उस कुंवारी का नाम मरियम या। 28. और स्वर्गदूत ने उसके पास भीतर आकर कहा; आनन्द और जय तेरी हो, जिस पर ईश्वर का अनुग्रह हुआ है, प्रभु तेरे साय है। 29. वह उस वचन से बहुत घबरा गई, और सोचने लगी, कि यह किस प्रकार का अभिवादन है 30. स्वर्गदूत ने उस से कहा, हे मरियम; भयभीत न हो, क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह तुझ पर हुआ है। 31. और देख, तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्र उत्पन्न होगा; तू उसका नाम यीशु रखना। 32. वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा। 33. और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा। 34. मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, यह क्योंकर होगा मैं तो पुरूष को जानती ही नहीं। 35. स्वर्गदूत ने उस को उत्तर दिया; कि पवित्र आत्क़ा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्य तुझ पर छाया करेगी इसलिथे वह पवित्र जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा। 36. और देख, और तेरी कुटुम्बिनी इलीशिबा के भी बुढ़ापे में पुत्र होनेवाला है, यह उसका, जो बांफ कहलाती यी छठवां महीना है। 37. क्योंकि जो वचन परमेश्वर की ओर से होता है वह प्रभावरिहत नहीं होता। 38. मरियम ने कहा, देख, मैं प्रभु की दासी हूं, मुझे तेरे वचन के अनुसार हो: तब स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।। 39. उन दिनोंमें मरियम उठकर शीघ्र ही पहाड़ी देश में यहूदा के एक नगर को गई। 40. और जकरयाह के घर में जाकर इलीशिबा को नमस्कार किया। 41. ज्योंही इलीशिबा ने मरियम का नमस्कार सुना, त्योंही बच्चा उसके पेट में उछला, और इलीशिबा पवित्र आत्क़ा से परिपूर्ण हो गई। 42. और उस ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा, तू स्त्रियोंमें धन्य है, और तेरे पेट का फल धन्य है। 43. और यह अनुग्रह मुझे कहां से हुआ, कि मेरे प्रभु की माता मेरे पास आई 44. और देख ज्योंही तेरे नमस्कार का शब्द मेरे कानोंमें पड़ा त्योंही बच्चा मेरे पेट में आनन्द से उछल पड़ा। 45. और धन्य है, वह जिस ने विश्वास किया कि जो बातें प्रभु की ओर से उस से कही गई, वे पूरी होंगी। 46. तब मरियम ने कहा, मेरा प्राण प्रभु की बड़ाई करता है। 47. और मेरी आत्क़ा मेरे उद्धार करनेवाले परमेश्वर से आनन्दित हुई। 48. क्योंकि उस ने अपक्की दासी की दीनता पर दृष्टि की है, इसलिथे देखो, अब से सब युग युग के लोग मुझे धन्य कहेंगे। 49. क्योंकि उस शक्तिमान ने मेरे लिथे बड़े बड़े काम किए हैं, और उसका नाम पवित्र है। 50. और उस की दया उन पर, जो उस से डरते हैं, पीढ़ी से पीढ़ी तक बनी रहती है। 51. उस ने अपना भुजबल दिखाया, और जो अपके आप को बड़ा समझते थे, उन्हें तित्तर-बित्तर किया। 52. उस ने बलवानोंको सिंहासनोंसे गिरा दिया; और दीनोंको ऊंचा किया। 53. उस ने भूखोंको अच्छी वस्तुओं से तृप्त किया, और धनवानोंको छूछे हाथ निकाल दिया। 54. उस ने अपके सेवक इस्राएल को सम्भाल लिया। 55. कि अपक्की उस दया को स्क़रण करे, जो इब्राहीम और उसके वंश पर सदा रहेगी, जैसा उस ने हमारे बाप-दादोंसे कहा या। 56. मरियम लगभग तीन महीने उसके साय रहकर अपके घर लोट गई।। 57. तब इलीशिबा के जनने का समय पूरा हुआ, और व पुत्र जनी। 58. उसके पड़ोसियोंऔर कुटुम्बियोंने यह सुन कर, कि प्रभु ने उस पर बड़ी दया की है, उसके साय आनन्दित हुए। 59. और ऐसा हुआ कि आठवें दिन वे बालक का खतना करने आए और उसका नाम उसके पिता के नाम पर जकरयाह रखने लगे। 60. और उस की माता ने उत्तर दिया कि नहीं; बरन उसका नाम यूहन्ना रखा जाए। 61. और उन्होंने उस से कहा, तेरे कुटुम्ब में किसी का यह नाम नहीं। 62. तब उन्होंने उसके पिता से संकेत करके पूछा। 63. कि तू उसका नाम क्या रखना चाहता है और उस ने लिखने की पट्टी मंगाकर लिख दिया, कि उसका नाम यूहन्ना है: और सभोंने अचम्भा किया। 64. तब उसका मुंह और जीभ तुरन्त खुल गई; और वह बोलने और परमेश्वर का धन्यवाद करने लगा। 65. और उसके आस पास के सब रहनेवालोंपर भय छा गया; और उन सब बातोंकी चर्चा यहूदया के सारे पहाड़ी देश में फैल गई। 66. और सब सुननेवालोंने अपके अपके मन में विचार करके कहा, यह बालक कैसा होगा क्योंकि प्रभु का हाथ उसके साय या।। 67. और उसका पिता जकरयाह पवित्र आत्क़ा से परिपूर्ण हो गया, और भविष्यद्ववाणी करने लगा। 68. कि प्रभु इस्राएल का परमेश्वर धन्य हो, कि उस ने अपके लोगोंपर दृष्टि की और उन का छुटकारा किया है। 69. ओर अपके सेवक दाऊद के घराने में हमारे लिथे एक उद्धार का सींग निकाला। 70. जैसे उस ने अपके पवित्र भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा जो जगत के आदि से होते आए हैं, कहा या। 71. अर्यात् हमारे शत्रुओं से, और हमारे सब बैरियोंके हाथ से हमारा उद्धार किया है। 72. कि हमारे बाप-दादोंपर दया करके अपक्की पवित्र वाचा का स्क़रण करे। 73. और वह शपय जो उस ने हमारे पिता इब्राहीम से खाई यी। 74. कि वह हमें यह देगा, कि हम अपके शत्रुओं के हाथ से छुटकर। 75. उसके साम्हने पवित्रता और धामिर्कता से जीवन भर निडर रहकर उस की सेवा करते रहें। 76. और तू हे बालक, परमप्रधान का भविष्यद्वक्ता कहलाएगा, क्योंकि तू प्रभु के मार्ग तैयार करने के लिथे उसके आगे आगे चलेगा, 77. कि उसके लोगोंको उद्धार का ज्ञान दे, जो उन के पापोंकी झमा से प्राप्त होता है। 78. यह हमारे परमेश्वर की उसी बड़ी करूणा से होगा; जिस के कारण ऊपर से हम पर भोर का प्रकाश उदय होगा। 79. कि अन्धकार और मृत्यु की छाया में बैठनेवालोंको ज्योति दे, और हमारे पांवोंको कुशल के मार्ग में सीधे चलाए।। 80. और वह बालक बढ़ता और आत्क़ा में बलवन्त होता गया, और इस्राएल पर प्रगट होने के दिन तक जंगलोंमें रहा।
Chapter 2
1. उन दिनोंमें औगूस्तुस कैसर की ओर से आज्ञा निकली, कि सारे जगत के लोगोंके नाम लिखे जाएं। 2. यह पहिली नाम लिखाई उस समय हुई, जब क्वििरिनयुस सूरिया का हाकिम या। 3. और सब लोग नाम लिखवाने के लिथे अपके अपके नगर को गए। 4. सो यूसुफ भी इसलिथे कि वह दाऊद के घराने और वंश का या, गलील के नासरत नगर से यहूदिया में दाऊद के नगर बैतलहम को गया। 5. कि अपक्की मंगेतर मरियम के साय जो गर्भवती यी नाम लिखवाए। 6. उस के वहां रहते हुए उसके जनने के दिन पूरे हुए। 7. और वह अपना पहिलौठा पुत्र जनी और उसे कपके में लपेटकर चरनी में रखा: क्योंकि उन के लिथे सराय में जगह न यी। 8. और उस देश में कितने गड़ेरिथे थे, जो रात को मैदान में रहकर अपके फुण्ड का पहरा देते थे। 9. और प्रभु का एक दूत उन के पास आ खड़ा हुआ; और प्रभु का तेज उन के चारोंओर चमका, और वे बहुत डर गए। 10. तब स्वर्गदूत ने उन से कहा, मत डरो; क्योंकि देखो मैं तुम्हें बड़े आनन्द का सुसमाचार सुनाता हूं जो सब लोगोंके लिथे होगा। 11. कि आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिथे एक उद्धारकर्ता जन्क़ा है, और यही मसीह प्रभु है। 12. और इस का तुम्हारे लिथे यह पता है, कि तुम एक बालक को कपके मे लिपटा हुआ और चरनी में पड़ा पाओगे। 13. तब एकाएक उस स्वर्गदूत के साय स्वर्गदूतोंका दल परमेश्वर की स्तुति करते हुए और यह कहते दिखाई दिया। 14. कि आकाश में परमेश्वर की महिमा और पृय्वी पर उन मनुष्योंमें जिनसे वह प्रसन्न है शान्ति हो।। 15. जब स्वर्गदूत उन के पास से स्वर्ग को चले गए, तो गड़ेरियोंने आपस में कहा, आओ, हम बैतलहम जाकर यह बात जो हुई है, और जिसे प्रभु ने हमें बताया है, देखें। 16. और उन्होंने तुरन्त जाकर मरियम और यूसुफ को और चरनी में उस बालक को पड़ा देखा। 17. इन्हें देखकर उन्होंने वह बात जो इस बालक के विषय में उन से कही गई यी, प्रगट की। 18. और सब सुननेवालोंने उन बातोंसे जो गड़िरयोंने उन से कहीं आश्चर्य किया। 19. परन्तु मरियम थे सब बातें अपके मन में रखकर सोचक्की रही। 20. और गडिरथे जैसा उन से कहा गया या, वैसा ही सब सुनकर और देखकर परमेश्वर की महिमा और स्तुति करते हुए लौट गए।। 21. जब आठ दिन पूरे हुए, और उसके खतने का समय आया, तो उसका नाम यीशु रखा गया, जो स्वर्गदूत ने उसके पेट में आने से पहिले कहा या। 22. और जब मूसा को व्यवस्या के अनुसार उन के शुद्ध होने के दिन पूरे हुए तो वे उसे यरूशलेम में ले गए, कि प्रभु के सामने लाएं। 23. (जैसा कि प्रभु की व्यवस्या में लिखा है कि हर एक पहिलौठा प्रभु के लिथे पवित्र ठहरेगा)। 24. और प्रभु की व्यवस्या के वचन के अनुसार पंडुकोंका एक जोड़ा, या कबूतर के दो बच्चे ला कर बलिदान करें। 25. और देखो, यरूशलेम में शमौन नाम एक मनुष्य या, और वह मनुष्य धर्मी और भक्त या; और इस्राएल की शान्ति की बाट जोह रहा या, और पवित्र आत्क़ा उस पर या। 26. और पवित्र आत्क़ा से उस को चितावनी हुई यी, कि जब तक तू प्रभु के मसीह को देख ने लेगा, तक तक मृत्यु को न देखेगा। 27. और वह आत्क़ा के सिखाने से मन्दिर में आया; और जब माता-पिता उस बालक यीशु को भीतर लाए, कि उसके लिथे व्यवस्या की रीति के अनुसार करें। 28. तो उस ने उसे अपक्की गोद में लिया और परमेश्वर का धन्यवाद करके कहा, 29. हे स्वामी, अब तू अपके दास को अपके वचन के अनुसार शान्ति से विदा करता है। 30. क्योंकि मेरी आंखो ने तेरे उद्धार को देख लिया है। 31. जिसे तू ने सब देशोंके लोगोंके साम्हने तैयार किया है। 32. कि वह अन्य जतियोंको प्रकाश देने के लिथे ज्योति, और तेरे निज लोग इस्राएल की महिमा हो। 33. और उसका पिता और उस की माता इन बातोंसे जो उसके विषय में कही जाती यीं, आश्चर्य करते थे। 34. तब शमौन ने उन को आशीष देकर, उस की माता मरियम से कहा; देख, वह तो इस्राएल में बहुतोंके गिरने, और उठने के लिथे, और एक ऐसा चिन्ह होने के लिथे ठहराया गया है, जिस के विरोध में बातें की जाएगीं -- 35. वरन तेरा प्राण भी तलवार से वार पार छिद जाएगा-- इस से बहुत ह्रृदयोंके विचार प्रगट होंगे। 36. और अशेर के गोत्र में से हन्नाह नाम फनूएल की बेटी एक भविष्यद्वक्तिन यी: वह बहुत बूढ़ी यी, और ब्याह होने के बाद सात वर्ष अपके पति के साय रह पाई यी। 37. वह चौरासी वर्ष से विधवा यी: और मन्दिर को नहीं छोड़ती यी पर उपवास और प्रार्यना कर करके रात-दिन उपासना किया करती यी। 38. और वह उस घड़ी वहां आकर प्रभु का धन्यवाद करने लगी, और उन सभोंसे, जो यरूशलेम के छुटकारे की बाट जोहते थे, उसके विषय में बातें करने लगी। 39. और जब वे प्रभु की व्यवस्या के अनुसार सब कुछ निपटा चुके तो गलील में अपके नगर नासरत को फिर चले गए।। 40. और बालक बढ़ता, और बलवन्त होता, और बुद्धि से परिपूर्ण होता गया; और परमेश्वर का अनुग्रह उस पर या। 41. उसके माता-पिता प्रति वर्ष फसह के पर्ब्ब में यरूशलेम को जाया करते थे। 42. जब वह बारह वर्ष का हुआ, तो वे पर्ब्ब की रीति के अनुसार यरूशलेम को गए। 43. और जब वे उन दिनोंको पूरा करके लौटने लगे, तो वह लड़का यीशु यरूशलेम में रह गया; और यह उसके माता-पिता नहीं जानते थे। 44. वे यह समझकर, कि वह और यात्रियोंके साय होगा, एक दिन का पड़ाव निकल गए: और उसे अपके कुटुम्बियोंऔर जानपहचानोंमें ढूंढ़ने लगे। 45. पर जब नहीं मिला, तो ढूंढ़ते-ढूंढ़ते यरूशलेम को फिर लौट गए। 46. और तीन दिन के बाद उन्होंने उसे मन्दिर में उपकेशकोंके बीच में बैठे, उन की सुनते और उन से प्रश्न करते हुए पाया। 47. और जितने उस की सुन रहे थे, वे सब उस की समझ और उसके उत्तरोंसे चकित थे। 48. तब वे उसे देखकर चकित हुए और उस की माता ने उस से कहा; हे पुत्र, तू ने हम से क्योंऐसा व्यवहार किया देख, तेरा पिता और मैं कुढ़ते हुए तुझे ढूंढ़ते थे। 49. उस ने उन से कहा; तुम मुझे क्योंढूंढ़ते थे क्या नहीं जानते थे, कि मुझे अपके पिता के भवन में होना अवश्य है 50. परन्तु जो बात उस ने उन से कही, उन्होंने उसे नहीं समझा। 51. तब वह उन के साय गया, और नासरत में आया, और उन के वश में रहा; और उस की माता ने थे सब बातें अपके मन में रखीं।। 52. और यीशु बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्योंके अनुग्रह में बढ़ता गया।।
Chapter 3
1. तिबिरियुस कैसर के राज्य के पंद्रहवें वर्ष में जब पुन्तियुस पीलातुस यहूदिया का हाकिम या, और गलील में हेरोदेस नाम चौयाई का इतूरैया, और त्रखोनीतिस में, उसका भाई फिलप्पुस, और अबिलेने में लिसानियास चौयाई के राजा थे। 2. और जब हन्ना और कैफा महाथाजक थे, उस समय परमेश्वर का वचन जंगल में जकरयाह के पुत्र यूहन्ना के पास पहुंचा। 3. और वह यरदन के आस पास के सारे देश में आकर, पापोंकी झमा के लिथे मन फिराव के बपतिस्क़ा का प्रचार करने लगा। 4. जैसे यशायाह भविष्यद्वक्ता के कहे हुए वचनोंकी पुस्तक में लिखा है, कि जंगल में एक पुकारनेवाले का शब्द हो रहा हे कि प्रभु का मार्ग तैयार करो, उस की सड़कें सीधी बनाओ। 5. हर एक घाटी भर दी जाएगी, और हर एक पहाड़ और टीला नीचा किया जाएगा; और जो टेढ़ा है सीधा, और जो ऊंचा नीचा है वह चौरस मार्ग बनेगा। 6. और हर प्राणी परमेश्वर के उद्धार को देखेगा।। 7. जो भीड़ की भीड़ उस से बपतिस्क़ा लेने को निकल कर आती यी, उन से वह कहता या; हे सांप के बच्चो, तुम्हें किस ने जता दिया, कि आनेवाले क्रोध से भागो। 8. सो मन फिराव के योग्य फल लाओ: और अपके अपके मन में यह न सोचो, कि हमारा पिता इब्राहीम है; क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि परमेश्वर इन पत्यरोंसे इब्राहीम के लिथे सन्तान उत्पन्न कर सकता है। 9. और अब ही कुल्हाड़ा पेड़ोंकी जड़ पर धरा है, इसलिथे जो जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में फोंका जाता है। 10. और लोगोंने उस से पूछा, तो हम क्या करें 11. उस ने उनहें उतर दिया, कि जिस के पास दो कुरते होंवह उसके साय जिस के पास नहीं हैं बांट दे और जिस के पास भोजन हो, वह भी ऐसा ही करे। 12. और महसूल लेनेवाले भी बपतिस्क़ा लेने आए, और उस से पूछा, कि हे गुरू, हम क्या करें 13. उस ने उन से कहा, जो तुम्हारे लिथे ठहराया गया है, उस से अधिक न लेना। 14. और सिपाहियोंने भी उस से यह पूछा, हम क्या करें उस ने उन से कहा, किसी पर उपद्रव न करना, और न फूठा दोष लगाना, और अपक्की मजदूरी पर सन्तोष करना।। 15. जब लोग आस लगाए हुए थे, और सब अपके अपके मन में यूहन्ना के विषय में विचार कर रहे थे, कि क्या यही मसीह तो नहीं है। 16. तो यूहन्ना ने उन सब के उत्तर में कहा: कि मैं तो तुम्हें पानी से बपतिस्क़ा देता हूं, परन्तु वह आनेवाला है, जो मुझ से शक्तिमान है; मैं तो इस योग्य भी नहीं, कि उसके जूतोंका बन्ध खोल सकूं, वह तुम्हें पवित्र आत्क़ा और आग से बपतिस्क़ा देगा। 17. उसका सूप, उसके हाथ में है; और वह अपना खलिहान अच्छी तरह से साफ करेगा; और गेहूं को अपके खत्ते में इकट्ठा करेगा, परन्तु भूसी को उस आग में जो बुफने की नहीं जला देगा।। 18. सो वह बहुत सी शिझा दे देकर लोगोंको सुसमाचार सुनाता रहा। 19. परन्तु उस ने चौयाई देश के राजा हेरोदेस को उसके भाई फिलप्पुस की पत्नी हेरोदियास के विषय, और सब कुकर्मोंके विषय में जो उस ने किए थे, उलाहना दिया। 20. इसलिथे हेरोदेस ने उन सब से बढ़कर यह कुकर्म भी किया, कि यूहन्ना को बन्दीगृह में डाल दिया।। 21. जब सब लोगोंने बपतिस्क़ा लिया, और यीशु भी बपतिस्क़ा लेकर प्रार्यना कर रहा या, तो आकाश खुल गया। 22. और पवित्र आत्क़ा शारीरिक रूप में कबूतर की नाई उस पर उतरा, और यह आकाशवाणी हुई, कि तू मेरा प्रिय पुत्र है, मैं तुझ से प्रसन्न हूं।। 23. जब यीशु आप उपकेश करने लगा, जो लगभग तीस वर्ष की आयु का या और (जैसा समझा जाता या) यूसुफ का पुत्र या; और व एली का। 24. और वह मत्तात का, और वह लेवी का, और वह मलकी का, और वह यन्ना का, और वह यूसुफ का। 25. और वह मत्तिन्याह का, और वह आमोस का, और वह नहूम का, और वह असल्याह का, और वह नोगह का। 26. और वह मात का, और वह मत्तित्याह का, और वह शिमी का, और वह योसेख का, और वह योदाह का। 27. और वह यूहन्ना का, और वह रेसा का, और वह जरूब्बाबिल का, और वह शलतिथेल का, और वह नेरी का। 28. और वह मलकी का, और वह अद्दी का, और वह कोसाम का, और वह इलमोदाम का, और वह एर का। 29. और वह थेशू का, और वह इलाजार का, और वह योरीम का, ओर वह मत्तात का, और वह लेवी का। 30. और वह शमौन का, और वह यहूदाह का, और वह यूसुफ का, और वह योनान का, और वह इलयाकीम का। 31. और वह मलेआह का, और वह मिन्नाह का, और वह मत्तता का, और वह नातान का, और वह दाऊद का। 32. और वह यिशै का, और वह ओबेद का, और वह बोअज का, और वह सलमोन का, और वह नहशोन का। 33. और वह अम्मीनादाब का, और वह अरनी का, और वह हिस्रोन का, और वह फिरिस का, और वह यहूदाह का। 34. और वह याकूब का, और वह इसहाक का, और वह इब्राहीम का, और वह तिरह का, और वह नाहोर का। 35. और वह सरूग का, और वह रऊ का, और वह िफिलग का, और वह एबिर का, और वह शिलह का। 36. और वह केनान का, वह अरफज्ञद का, और वह शेम का, वह नूह का, वह लिमिक का। 37. और वह मयूशिलह का, और वह हनोक का, और वह यिरिद का, और वह महललेल का, और वह केनान का। 38. और वह इनोश का, और वह शेत का, और वह आदम का, और वह परमेश्वर का या।।
Chapter 4
1. फिर यीशु पवित्रआत्क़ा से भरा हुआ, यरदन से लैटा; और चालीस दिन तक आत्क़ा के सिखाने से जंगल में फिरता रहा; और शैतान उस की पक्कीझा करता रहा। 2. उन दिनोंमें उस ने कुछ न खाया और जब वे दिन पूरे हो गए, तो उसे भूख लगी। 3. और शैतान ने उस से कहा; यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो इस पत्यर से कह, कि रोटी बन जाए 4. यीशु ने उसे उत्तर दिया; कि लिखा है, मनुष्य केवल रोटी से जीवित न रहेगा। 5. तब शैतान उसे ले गया और उस को पल भर में जगत के सारे राज्य दिखाए। 6. और उस से कहा; मैं यह सब अधिक्कारने, और इन का विभव तुझे दूंगा, क्योंकि वह मुझे सौंपा गया है: और जिसे चाहता हूं, उसी को दे देता हूं। 7. इसलिथे, यदि तू मुझे प्रणाम करे, तो यह सब तेरा हो जाएगा। 8. यीशु ने उसे उत्तर दिया; लिखा है; कि तू प्रभु अपके परमेश्वर को प्रणाम कर; और केवल उसी की उपासना कर। 9. तब उस ने उसे यरूशलेम में ले जाकर मन्दिर के कंगूरे पर खड़ा किया, और उस से कहा; यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो अपके आप को यहां से नीचे गिरा दे। 10. क्योंकि लिखा है, कि वह तेरे विषय में अपके स्वर्गदूतोंको आज्ञा देगा, कि वे तेरी रझा करें। 11. और वे तुझे हाथोंहाथ उठा लेंगे ऐसा न हो कि तेरे पांव में पत्यर से ठेस लगे। 12. यीशु ने उस को उत्तर दिया; यह भी कहा गया है, कि तू प्रभु अपके परमेश्वर की पक्कीझा न करना। 13. जब शैतान सब पक्कीझा कर चुका, तब कुछ समय के लिथे उसके पास से चला गया।। 14. फिर यीशु आत्क़ा की सामर्य से भरा हुआ गलील को लौटा, और उस की चर्चा आस पास के सारे देश में फैल गई। 15. और वह उन ही आराधनालयोंमें उपकेश करता रहा, और सब उस की बड़ाई करते थे।। 16. और वह नासरत में आया; जहां पाला पोसा गया या; और अपक्की रीति के अनुसार सब्त के दिन आराधनालय में जा कर पढ़ने के लिथे खड़ा हुआ। 17. यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक उसे दी गई, और उस ने पुस्तक खोलकर, वह जगह निकाली जहां यह लिखा या। 18. कि प्रभु का आत्क़ा मुझ पर है, इसलिथे कि उस ने कंगालोंको सुसमाचार सुनाने के लिथे मेरा अभिषेक किया है, और मुझे इसलिथे भेजा है, कि बन्धुओं को छुटकारे का और अन्धोंको दृष्टि पाने का सुसमाचार प्रचार करूं और कुचले हुओं को छुड़ाऊं। 19. और प्रभु के प्रसन्न रहने के वर्ष का प्रचार करूं। 20. तब उस ने पुस्तक बन्द करके सेवक के हाथ में दे दी, और बैठ गया: और आराधनालय के सब लोगोंकी आंख उस पर लगी यी। 21. तब वह उन से कहने लगा, कि आज ही यह लेख तुम्हारे साम्हने पूरा हुआ है। 22. और सब ने उसे सराहा, और जो अनुग्रह की बातें उसके मुंह से निकलती थेीं, उन से अचम्भा किया; और कहने लगे; क्या यह यूसुफ का पुत्र नहीं 23. उस ने उस से कहा; तुम मुझ पर यह कहावत अवश्य कहोगे, कि हे वैद्य, अपके आप को अच्छा कर! जो कुछ हम ने सुना है कि कफरनहूम में किया गया है उसे यहां अपके देश में भी कर। 24. और उस ने कहा; मैं तुम से सच कहता हूं, कोई भविष्यद्वक्ता अपके देश में मान-सम्मान नहीं पाता। 25. और मैं तुम से सच कहता हूं, कि एलिय्याह के दिनोंमें जब साढ़े तीन वर्ष तक आकाश बन्द रहा, यहां तक कि सारे देश में बड़ा आकाल पड़ा, तो इस्राएल में बहुत सी विधवाएं यीं। 26. पर एलिय्याह उन में से किसी के पास नहीं भेजा गया, केवल सैदा के सारफत में एक विधवा के पास। 27. और इलीशा भविष्यद्वक्ता के समय इस्राएल में बहुत से कोढ़ी थे, पर नामान सूरयानी को छोड़ उन में से काई शुद्ध नहीं किया गया। 28. थे बातें सुनते ही जितने आराधनालय में थे, सब क्रोध से भर गए। 29. और उठकर उसे नगर से बाहर निकाला, और जिस पहाड़ पर उन का नगर बसा हुआ या, उस की चोटी पर ले चले, कि उसे वहां से नीचे गिरा दें। 30. पर वह उन के बीच में से निकलकर चला गया।। 31. फिर वह गलील के कफरनहूम नगर में गया, और सब्त के दिन लोगोंको उपकेश दे रहा या। 32. वे उस के उपकेश से चकित हो गए क्योंकि उसका वचन अधिक्कारने सहित या। 33. आराधनालय में एक मनुष्य या, जिस में अशुद्ध आत्क़ा यी। 34. वह ऊंचे शब्द से चिल्ला उठा, हे यीशु नासरी, हमें तुझ से क्या काम क्या तू हमें नाश करने आया है मैं तुझे जानता हूं तू कौन है तू परमेश्वर का पवित्र जन है। 35. यीशु ने उसे डांटकर कहा, चुप रह: और उस में से निकल जा: तब दुष्टात्क़ा उसे बीच में पटककर बिना हानि पहुंचाए उस में से निकल गई। 36. इस पर सब को अचम्भा हुआ, और वे आपस में बातें करके कहने लगे, यह कैसा वचन है कि वह अधिक्कारने और सामर्य के साय अशुद्ध आत्क़ाओं को आज्ञा देता है, और वे निकल जाती हैं। 37. सो चारोंओर हर जगह उस की धूम मच गई।। 38. वह आराधनालय में से उठकर शमौन के घर में गया और शमौन की सास को ज्वर चढ़ा हुआ या, और उन्होंने उसके लिथे उस से बिनती की। 39. उस ने उसके निकट खड़े होकर ज्वर को डांटा और वह उस पर से उतर गया और वह तुरन्त उठकर उन की सेवा टहल करने लगी।। 40. सूरज डूबते समय जिन जिन के यहां लोग नाना प्रकार की बीमारियोंमें पके हुए थे, वे सब उन्हें उसके पास ले आएं, और उस ने एक एक पर हाथ रखकर उन्हें चंगा किया। 41. और दुष्टात्क़ा चिल्लाती और यह कहती हुई कि तू परमेश्वर का पुत्र है, बहुतोंमें से निकल गई पर वह उन्हें डांटता और बोलने नहीं देता या, क्योंकि वे जानते थे, कि यह मसीह है।। 42. जब दिन हुआ तो वह निकलकर एक जंगली जगह में गया, और भीड़ की भीड़ उसे ढूंढ़ती हुई उसके पास आई, और उसे रोकने लगी, कि हमारे पास से न जा। 43. परन्तु उस ने उन से कहा; मुझे और और नगरोंमें भी परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाना अवश्य है, क्योंकि मैं इसी लिथे भेजा गया हूं।। 44. और वह गलील के अराधनालयोंमें प्रचार करता रहा।।
Chapter 5
1. जब भीड़ उस पर गिरी पड़ती यी, और परमेश्वर का वचन सुनती यी, और वह गन्नेसरत की फील के किनारे पर खड़ा या, तो ऐसा हुआ। 2. कि उस ने फील के किनारे दो नावें लगी हुई देखीं, और मछुवे उन पर से उतरकर जाल धो रहे थे। 3. उन नावोंमें से एक पर जो शमौन की यी, चढ़कर, उस ने उस से बिनती की, कि किनारे से योड़ा हटा ले चले, तब वह बैठकर लोगोंको नाव पर से उपकेश देने लगा। 4. जब वे बातें कर चुका, तो शमौन से कहा, गहिरे में ले चल, और मछिलयां पकड़ने के लिथे अपके जाल डालो। 5. शमौन ने उसको उत्तर दिया, कि हे स्वामी, हम ने सारी रात मिहनत की और कुछ न पकड़ा; तौभी तेरे कहने से जाल डालूंगा। 6. जब उन्होंने ऐसा किया, तो बहुत मछिलयां घेर लाए, और उन के जाल फटने लगे। 7. इस पर उन्होंने अपके सायियोंको जो दूसरी नाव पर थे, संकेत किया, कि आकर हमारी सहाथता करो: और उन्होंने आकर, दोनो नाव यहां तक भर लीं कि वे डूबने लगीं। 8. यह देखकर शमौन पतरस यीशु के पांवोंपर गिरा, और कहा; हे प्रभु, मेरे पास से जा, क्योंकि मैं पापी मनुष्य हूं। 9. क्योंकि इतनी मछिलयोंके पकड़े जाने से उसे और उसके सायियोंको बहुत अचम्भा हुआ। 10. और वैसे ही जब्दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना को भी, जो शमौन के सहभागी थे, अचम्भा हुआ: तब यीशु ने शमौन से कहा, मत डर: अब से तू मनुष्योंको जीवता पकड़ा करेगा। 11. और व नावोंको किनारे पर ले आए और सब कुछ छोड़कर उसके पीछे हो लिए।। 12. जब वह किसी नगर में या, तो देखो, वहां कोढ़ से भरा हुआ एक मनुष्य या, और वह यीशु को देखकर मुंह के बल गिरा, और बिनती की; कि हे प्रभु यदि तू चाहे हो मुझे शुद्ध कर सकता है। 13. उस ने हाथ बढ़ाकर उसे छूआ और कहा मैं चाहता हूं तू शुद्ध हो जा: और उसका कोढ़ तुरन्त जाता रहा। 14. तब उस ने उसे चिताया, कि किसी से न कह, परन्तु जाके अपके आप को याजक को दिखा, और अपके शुद्ध होने के विषय में जो कुछ मूसा ने चढ़ावा ठहराया है उसे चढ़ा; कि उन पर गवाही हो। 15. परन्तु उस की चर्चा और भी फैलती गई, और भीड़ की भीड़ उस की सुनने के लिथे और अपक्की बिमारियोंसे चंगे होने के लिथे इकट्ठी हुई। 16. परन्तु वह जंगलोंमें अलग जाकर प्रार्यना किया करता या।। 17. और एक दिन हुआ कि वह उपकेश दे रहा या, और फरीसी और व्यवस्यापक वहां बैठे हुए थे, जो गलील और यहूदिया के हर एक गांव से, और यरूशलेम से आए थे; और चंगा करने के लिथे प्रभु की सामर्य उसके साय यी। 18. और देखो कई लोग एक मनुष्य को जो फोले का मारा हुआ या, खाट पर लाए, और वे उसे भीतर ले जाने और यीशु के साम्हने रखने का उपाय ढूंढ़ रहे थे। 19. और जब भीड़ के कारण उसे भीतर न ले जा सके तो उन्होंने कोठे पर चढ़ कर और खप्रैल हटाकर, उसे खाट समेत बीच में यीशु के साम्हने उतरा दिया। 20. उस ने उन का विश्वास देखकर उस से कहा; हे मनुष्य, तेरे पाप झमा हुए। 21. तब शास्त्री और फरीसी विवाद करने लगे, कि यह कौन है, जो परमेश्वर की निन्दा करता है परमेश्वर का छोड़ कौन पापोंकी झमा कर सकता है 22. यीशु ने उन के मन की बातें जानकर, उन से कहा कि तुम अपके मनोंमें क्या विवाद कर रहे हो 23. सहज क्या है क्या यह कहना, कि तेरे पाप झमा हुए, या यह कहना कि उठ, और चल फिर 24. परन्तु इसलिथे कि तुम जानो कि मनुष्य के पुत्र को पृय्वी पर पाप झमा करने का भी अधिक्कारने है (उस ने उस फोले के मारे हुए से कहा), मैं तुझ से कहता हूं, उठ और अपक्की खाट उठाकर अपके घर चला जा। 25. वह तुरन्त उन के साम्हने उठा, और जिस पर वह पड़ा या उसे उठाकर, परमेश्वर की बड़ाई करता हुआ अपके घर चला गया। 26. तब सब चकित हुए और परमेश्वर की बड़ाई करने लगे, और बहुत डरकर कहने लगे, कि आज हम ने अनोखी बातें देखी हैं।। 27. और इसके बाद वह बाहर गया, और लेवी नाम एक चुंगी लेनेवाले को चुंगी की चौकी पर बैठे देखा, और उस से कहा, मेरे पीछे हो ले। 28. तब वह सब कुछ छोड़कर उठा, और उसके पीछे हो लिया। 29. और लेवी ने अपके घर में उसके लिथे बड़ी जवनार की; और चुंगी लेनेवालोंकी और औरोंकी जो उसके साय भोजन करने बैठे थे एक बड़ी भीड़ यी। 30. और फरीसी और उन के शास्त्री उस के चेलोंसे यह कहकर कुड़कुड़ाने लगे, कि तुम चुंगी लेनेवालोंऔर पापियोंके साय क्योंखाते-पीते हो 31. यीशु ने उन को उत्तर दिया; कि वैद्य भले चंगोंके लिथे नहीं, परन्तु बीमारोंके लिथे अवश्य है। 32. मैं धमिर्योंको नहीं, परन्तु पापियोंको मन फिराने के लिथे बुलाने आया हूं। 33. और उन्होंने उस से कहा, यूहन्ना के चेले तो बराबर उपवास रखते और प्रार्यना किया करते हैं, और वैसे ही फरीसियोंके भी, परन्तु तेरे चेले तो खाते पीते हैं! 34. यीशु ने उन से कहा; क्या तुम बरातियोंसे जब तक दूल्हा उन के साय रहे, उपवास करेंगे। 35. परन्तु वे दिन आएंगे, जिन में दूल्हा उन से अलग किया जाएगा, तब वे उन दिनोंमें उपवास करेंगे। 36. उस ने एक और दृष्टान्त भी उन से कहा; कि कोई मनुष्य नथे पहिरावन में से फाड़कर पुराने पहिरावन में पैबन्द नहीं लगाता, नहीं तो नया फट जाएगा और वह पैबन्द पुराने में मेल भी नहीं खाएगा। 37. और कोई नया दाखरस पुरानी मशकोंमें नही भरता, नहीं तो नया दाखरस मशकोंको फाड़कर बह जाएगा, और मशकें भी नाश हो जाएंगी। 38. परन्तु नया दाखरस नई मशकोंमें भरना चाहिथे। 39. कोई मनुष्य पुराना दाखरस पीकर नया नहीं चाहता क्योंकि वह कहता है, कि पुराना ही अच्छा है।।
Chapter 6
1. फिर सब्त के दिन वह खेतोंमें से होकर जा रहा या, और उसके चेले बालें तोड़ तोड़कर, और हाथोंसे मल मल कर खाते जाते थे। 2. तब फरीसियोंमें से कई एक कहने लगे, तुम वह काम क्योंकरते हो जो सब्त के दिन करना उचित नहीं 3. यीशु ने उन का उत्तर दिया; क्या तुम ने यह नहीं पढ़ा, कि दाऊद ने जब वह और उसके सायी भूखे थे तो क्या किया 4. वह क्योंकर परमेश्वर के घर में गया, और भेंट की रोटियां लेकर खाई, जिन्हें खाना याजकोंको छोड़ और किसी को उचित नहंी, और अपके सायियोंको भी दी 5. और उस ने उन से कहा; मनुष्य का पुत्र सब्त के दिन का भी प्रभु है। 6. और ऐसा हुआ कि किसी और सब्त के दिन को वह आराधनालय में जाकर उपकेश करने लगा; और वहां एक मनुष्य या, जिस का दिहना हाथ सूखा या। 7. शास्त्री और फरीसी उस पर दोष लगाने का अवसर पाने के लिथे उस की ताक में थे, कि देखें कि वह सब्त के दिन चंगा करता है कि नहीं। 8. परन्तु वह उन के विचार जानता या; इसलिथे उसने सूखे हाथवाले मनुष्य से कहा; उठ, बीच में खड़ा हो: वह उठ खड़ा हुआ। 9. यीशु ने उन से कहा; मैं तुम से यह पूछता हूं कि सब्त के दिन क्या उचित है, भला करन या बुरा करना; प्राण को बचाना या नाश करना 10. और उस ने चारोंओर उन सभोंको देखकर उस मनुष्य से कहा; अपना हाथ बढ़ा: उस ने ऐसा ही किया, और उसका हाथ फिर चंगा हो गया। 11. परन्तु वे आपे से बाहर होकर आपस में विवाद करने लगे कि हम यीशु के साय क्या करें 12. और उन दिनोंमें वह पहाड़ पर प्रार्यना करने को निकला, और परमेश्वर से प्रार्यना करने में सारी रात बिताई। 13. जब दिन हुआ, तो उस ने अपके चेलोंको बुलाकर उन में से बारह चुन लिए, और उन को प्रेरित कहा। 14. और वे थे हैं शमौन जिस का नाम उस ने पतरस भी रखा; और उसका भाई अन्द्रियास और याकूब और यूहन्ना और फिलप्पुस और बरतुलमै। 15. और मत्ती और योमा और हलफई का पुत्र याकूब और शमौन जो जेलोतेस कहलाता है। 16. और याकूब का बेटा यहूदा और यहूदा इसकिरयोती, जो उसका पकड़वानेवाला बना। 17. तब वह उन के साय उतरकर चौरस जगह में खड़ा हुआ, और उसके चेलोंकी बड़ी भीड़, और सारे यहूदिया और यरूशलेम और सूर और सैदा के समुद्र के किनारे से बहुतेरे लोग, जो उस की सुनने और अपक्की बीमारियोंसे चंगा होने के लिय उसके पास आए थे, वहां थे। 18. और अशुद्ध आत्क़ाओं के सताए हुए लोग भी अच्छे किए जाते थे। 19. और सब उसे छूना चाहते थे, क्योंकि उस में से सामर्य निकलकर सब को चंगा करती यी।। 20. तब उस ने अपके चेलोंकी ओर देखकर कहा; धन्य हो तुम, जो दीन हो, क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारा है। 21. धन्य हो तुम, जो अब भूखे हो; क्योंकि तृप्त किए जाओगे; धन्य हो तुम, जो अब रोते हो, क्योंकि हंसोगे। 22. धन्य हो तुम, जब मनुष्य के पुत्र के कारण लोग तुम से बैर करेंगे, और तुम्हें निकाल देंगे, और तुम्हारी निन्दा करेंगे, और तुम्हारा नाम बुरा जानकर काट देंगे। 23. उस दिन आनन्दित होकर उछलना, क्योंकि देखो, तुम्हारे लिथे स्वर्ग में बड़ा प्रतिफल है: उन के बाप-दादे भविष्यद्वक्ताओं के साय भी वैसा ही किया करते थे। 24. परन्तु हाथ तुम पर; जो धनवान हो, क्योंकि तुम अपक्की शान्ति पा चुके। 25. परन्तु हाथ तुम पर; जो अब तृप्त हो, क्योंकि भूखे होगे: हाथ, तुम पर; जो अब हंसते हो, क्योंकि शोक करोगे और रोओगे। 26. हाथ, तुम पर; जब सब मनुष्य तुम्हें भला कहें, क्योंकि उन के बाप-दादे फूठे भविष्यद्वक्ताओं के साय भी ऐसा ही किया करते थे।। 27. परन्तु मैं तुम सुननेवालोंसे कहता हूं, कि अपके शत्रुओं से प्रेम रखो; जो तुम से बैर करें, उन का भला करो। 28. जो तुम्हें स्राप दें, उन को आशीष दो: जो तुम्हारा अपमान करें, उन के लिथे प्रार्यना करो। 29. जो तेरे एक गाल पर यप्पड़ मारे उस की ओर दूसरा भी फेर दे; और जो तेरी दोहर छीन ले, उस को कुरता लेने से भी न रोक। 30. जो कोई तुझ से मांगे, उसे दे; और जो तेरी वस्तु छीन ले, उस से न मांग। 31. और जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साय करें, तुम भी उन के साय वैसा ही करो। 32. यदि तुम अपके प्रेम रखनेवालोंके साय प्रेम रखो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई क्योंकि पापी भी अपके प्रेम रखनेवालोंके साय प्रेम रखते हैं। 33. और यदि तुम अपके भलाई करनेवालोंही के साय भलाई करते हो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई क्योंकि पापी भी ऐसा ही करते हैं। 34. और यदि तुम उसे उधार दो, जिन से फिर पाने की आशा रखते हो, तो तुम्हारी क्या बड़ाई क्योंकि पापी पापियोंको उधार देते हैं, कि उतना ही फिर पाएं। 35. बरन अपके शत्रुओं से प्रेम रखो, और भलाई करो: और फिर पाने की आस न रखकर उधार दो; और तुम्हारे लिथे बड़ा फल होगा; और तुम परमप्रधान के सन्तान ठहरोगे, क्योंकि वह उन पर जो धन्यवाद नहीं करते और बुरोंपर भी कृपालु है। 36. जैसा तुम्हारा पिता दयावन्त है, वैसे ही तुम भी दयावन्त बनो। 37. दोष मत लगाओ; तो तुम पर भी दोष नहीं लगाया जाएगा: दोषी न ठहराओ, तो तुम भी दोषी नहीं ठहराए जाओगे: झमा करो, तो तुम्हारी भी झमा की जाएगी। 38. दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा: लोग पूरा नाम दबा दबाकर और हिला हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाम से तुम नापके हो, उसी से तुम्हारे लिथे भी नापा जाएगा।। 39. फिर उस ने उन से एक दृष्टान्त कहा; क्या अन्धा, अन्धे को मार्ग बता सकता है क्या दोनो गड़हे में नहीं गिरेंगे 40. चेला अपके गुरू से बड़ा नहीं, परन्तु जो कोई सिद्ध होगा, वह अपके गुरू के समान होगा। 41. तू अपके भाई की आंख के तिनके को क्योंदेखता है, और अपक्की ही आंख का लट्ठा तुझे नहीं सूफता 42. और जब तू अपक्की ही आंख का लट्ठा नहीं देखता, तो अपके भाई से क्योंकर कह सकता है, हे भाई, ठहर जा तेरी आंख से तिनके को निकाल दूं हे कपक्की, पहिले अपक्की आंख से लट्ठा निकाल, तब जो तिनका तेरे भाई की आंख में है, भली भांति देखकर निकाल सकेगा। 43. कोई अच्छा पेड़ नहीं, जो निकम्मा फल लाए, और न तो कोई निकम्मा पेड़ है, जो अच्छा फल लाए। 44. हर एक पेड़ अपके फल से पहचाना जाता है; क्योंकि लोग फाडिय़ोंसे अंजीर नहीं तोड़ते, और न फड़बेरी से अंगूर। 45. भला मनुष्य अपके मन के भले भण्डार से भली बातें निकालता है; और बुरा मनुष्य अपके मन के बुरे भण्डार से बुरी बातें निकालता है; क्योंकि जो मन में भरा है वही उसके मुंह पर आता है।। 46. जब तुम मेरा कहना नहीं मानते, तो क्योंमुझे हे प्रभु, हे प्रभु, कहते हो 47. जो कोई मेरे पास आता है, और मेरी बातें सुनकर उन्हें मानता है, मैं तुम्हें बताता हूं कि वह किस के समान है 48. वह उस मनुष्य के समान है, जिस ने घर बनाते समय भूमि गहरी खोदकर चट्टान की नेव डाली, और जब बाढ़ आई तो धारा उस घर पर लगी, परन्तु उसे हिला न सकी; क्योंकि वह प?ा बना या। 49. परन्तु जो सुनकर नहीं मानता, वह उस मनुष्य के समान है, जिस ने मिट्टी पर बिना नेव का घर बनाया। जब उस पर धारा लगी, तो वह तुरन्त गिर पड़ा, और वह गिरकर सत्यानाश हो गया।।
Chapter 7
1. जब वह लोगोंको अपक्की सारी बातें सुना चुका, तो कफरनहूम में आया। 2. और किसी सूबेदार का एक दास जो उसका प्रिय या, बीमारी से मरने पर या। 3. उस ने यीशु की चर्चा सुनकर यहूदियोंके कई पुरिनयोंको उस से यह बिनती करने को उसके पास भेजा, कि आकर मेरे दास को चंगा कर। 4. वे यीशु के पास आकर उस से बड़ी बिनती करके कहने लगे, कि वह इस योग्य है, कि तू उसके लिथे यह करे। 5. क्योंकि वह हमारी जाति से प्रेम रखता है, और उसी ने हमारे आराधनालय को बनाया है। 6. यीशु उन के साय साय चला, पर जब वह घर से दूर न या, तो सूबेदार ने सके पास कई मित्रोंके द्वारा कहला भेजा, कि हे प्रभु दुख न उठा, क्योंकि मैं इस योग्य नहीं, कि तू मेरी छत के तले आए। 7. इसी कारण मैं ने अपके आप को इस योग्य भी न समझा, कि तेरे पास आऊं, पर वचन ही कह दे तो मेरा सेवक चंगा हो जाएगा। 8. मैं भी पराधीन मनुष्य हूं; और सिपाही मेरे हाथ में हैं, और जब एक को कहता हूं, जा, तो वह जाता है, और दूसरे से कहता हूं कि आ, तो आता है; और अपके किसी दास को कि यह कर, तो वह उसे करता है। 9. यह सुनकर यीशु ने अचम्भा किया, और उस ने मुंह फेरकर उस भीड़ से जो उसके पीछे आ रही यी कहा, मैं तुम से कहताह हूं, कि मैं ने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया। 10. और भेजे हुए लोगोंने घर लौटकर, उस दास को चंगा पाया।। 11. योड़े दिन के बाद वह नाईन नाम के एक नगर को गया, और उसके चेले, और बड़ी भीड़ उसके साय जा रही यी। 12. जब वह नगर के फाटक के पास पहुंचा, तो देखो, लोग एक मुरदे को बाहर लिए जा रहे थे; जो अपक्की मां का एकलौता पुत्र या, और वह विधवा यी: और नगर के बहुत से लोग उसके साय थे। 13. उसे देख कर प्रभु को तरस आया, और उस ने कहा; मत रो। 14. तब उस ने पास आकर, अर्यी को छुआ; और उठानेवाले ठहर गए, तब उस ने कहा; हे जवान, मैं तुझ से कहता हूं, उठ। 15. तब वह मुरदा उठ बैठा, और बोलने लगा: और उस ने उसे उस की मां को सौप दिया। 16. इस से सब पर भय छा गया; और वे परमेश्वर की बड़ाई करके कहने लगे कि हमारे बीच में एक बड़ा भविष्यद्वक्ता उठा है, और परमेश्वर ने अपके लोगोंपर कृपा दृष्टि की है। 17. और उसके विषय में यह बात सारे यहूदिया और आस पास के सारे देश में फैल गई।। 18. और यूहन्ना को उसके चेलोंने इन सब बातोंका समचार दिया। 19. तब यूहन्ना ने अपके चेलोंमें से दो को बुलाकर प्रभु के पास यह पूछने के लिथे भेजा; कि क्या आनेवाला तू ही है, या हम किसी और दूसरे की बाट देखें 20. उन्होंने उसके पास आकर कहा, यूहन्ना बपतिस्क़ा देनेवाले ने हमें तेरे पास यह पूछने को भेजा है, कि क्या आनेवाला तू ही है, या हम दूसरे की बाट जोहें 21. उसी घड़ी उस ने बहुतोंको बीमारियों; और पीड़ाओं, और दुष्टात्क़ाओं से छुड़ाया; और बहुत से अन्धोंको आंखे दी। 22. और उस ने उन से कहा; जो कुछ तुम ने देखा और सुना है, जाकर यूहन्ना से कह दो; कि अन्धे देखते हैं, लंगडे चलते फिरते हैं, कोढ़ी शुद्ध किए जाते हैं; और कंगालोंको सुसमाचार सुनाया जाता है। 23. और धन्य है वह, जो मेरे कारण ठोकर न खाए।। 24. जब यूहन्ना के भेजे हुए लोग चल दिए, तो यीशु यूहन्ना के विषय में लोगोंसे कहने लगा, तुम जंगल में क्या देखने गए थे क्या हवा से हिलते हुए सरकण्डे को 25. तो तुम फिर क्या देखने गए थे क्या कोमल वस्त्र पहिने हुए मनुष्य को देखो, जो भड़कीला वस्त्र पहिनते, और सुख विलास से रहते हैं, वे राजभवनोंमें रहते हैं। 26. तो फिर क्या देखने गए थे क्या किसी भविष्यद्वक्ता को हां, मैं तुम से कहता हूं, वरन भविष्यद्वक्ता से भी बड़े को। 27. यह वही है, जिस के विषय में लिखा है, कि देख, मैं अपके दूत को तेरे आगे आगे भेजता हूं, जो तेरे आगे मार्ग सीधा करेगा। 28. मैं तुम से कहता हूं, कि जो स्त्रियोंसे जन्क़ें हैं, उन में से यूहन्ना से बड़ा कोई नहीं: पर जो परमेश्वर के राज्य में छोटे से छोटा है, वह उस से भी बड़ा है। 29. और सब साधारण लोगोंने सुनकर और चुंगी लेनेवालोंने भी यूहन्ना का बपतिस्क़ा लेकर परमेश्वर को सच्चा मान लिया। 30. पर फरीसियोंऔर व्यवस्यापकोंने उस से बपतिस्क़ा न लेकर परमेश्वर की मनसा को अपके विषय में टाल दिया। 31. सो मैं इस युग के लोगोंकी उपमा किस से दूं कि वे किस के समान हैं 32. वे उन बालकोंके समान हैं जो बाजार में बैठे हुए एक दूसरे से पुकारकर कहते हैं, कि हम ने तुम्हारे लिथे बांसली बजाई, और तुम न नाचे, हम ने विलाप किया, और तुम न रोए। 33. क्योंकि यूहन्ना बपतिस्क़ा देनेवाला ने रोटी खाता आया, न दाखरस पीता आया, और तुम कहते हो, उस में दुष्टात्क़ा है। 34. मनुष्य का पुत्र खाता-पीता आया है; और तुम कहते हो, देखो, पेटू और पिय?ड़ मनुष्य, चुंगी लेनेवालोंका और पापियोंका मित्र। 35. पर ज्ञान अपक्की सब सन्तानोंसे सच्चा ठहराया गया है।। 36. फिर किसी फरीसी ने उस से बिनती की, कि मेरे साय भोजन कर; सो वह उस फरीसी के घर में जाकर भोजन करने बैठा। 37. और देखो, उस नगर की एक पापिनी स्त्री यह जानकर कि वह फरीसी के घर में भोजन करने बैठा है, संगमरमर के पात्र में इत्र लाई। 38. और उसके पांवोंके पास, पीछे खड़ी होकर, रोती हुई, उसके पांवोंको आंसुओं से भिगाने और अपके सिर के बालोंसे पोंछने लगी और उसके पांव बारबार चूमकर उन पर इत्र मला। 39. यह देखकर, वह फरीसी जिस ने उसे बुलाया या, अपके मन में सोचने लगा, यदि यह भविष्यद्वक्ता होता तो जान लेता, कि यह जो उसे छू रही है, वह कौन और कैसी स्त्री है क्यशेंकि वह तो पापिनी है। 40. यह सुन यीशु ने उसके उत्तर में कहा; कि हे शमौन मुझे तुझ से कुछ कहना है वह बोला, हे गुरू कह। 41. किसी महाजन के दो देनदार थे, एक पांच सौ, और दूसरा पचास दीनार धारता या। 42. जब कि उन के पास पटाने को कुछ न रहा, तो उस ने दोनो को झमा कर दिया: सो उन में से कौन उस से अधिक प्रेम रखेगा। 43. शमौन ने उत्तर दिया, मेरी समझ में वह, जिस का उस ने अधिक छोड़ दिया: उस ने उस से कहा, तू ने ठीक विचार किया है। 44. और उस स्त्री की ओर फिरकर उस ने शमौन से कहा; क्या तू इस स्त्री को देखता है मैं तेरे घर में आया परन्तु तू ने मेरे पांव धाने के लिथे पानी न दिया, पर इस ने मेरे पांव आंसुओं से भिगाए, और अपके बालोंसे पोंछा! 45. तू ने मुझे चूमा न दिया, पर जब से मैं आया हूं तब से इस ने मेरे पांवोंका चूमना न छोड़ा। 46. तू ने मेरे सिर पर तेल नहीं मला; पर इस ने मेरे पांवोंपर इत्र मला है। 47. इसलिथे मैं तुझ से कहता हूं; कि इस के पाप जो बहुत थे, झमा हुए, क्योंकि इस ने बहुत प्रेम किया; पर जिस का योड़ा झमा हुआ है, वह योड़ा प्रेम करता है। 48. और उस ने स्त्री से कहा, तेरे पाप झमा हुए। 49. तब जो लोग उसके साय भोजन करने बैठे थे, वे अपके अपके मन में सोचने लगे, यह कौन है जो पापोंको भी झमा करता है 50. पर उस ने स्त्री से कहा, तेरे विश्वास ने तुझे बचा लिया है, कुशल से चक्की जा।।
Chapter 8
1. इस के बाद वह नगर नगर और गांव गांव प्रचार करता हुआ, और परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाता हुआ, फिरने लगा। 2. और वे बाहर उसके साय थे: और कितनी स्त्रियां भी जो दुष्टात्क़ाओं से और बीमारियोंसे छुड़ाई गई यीं, और वे यह हैं, मरियम जो मगदलीनी कहलाती यी, जिस में से सात दुष्टात्क़ाएं निकली यीं। 3. और हेरोदेस के भण्डारी खोजा की पत्नी योअन्ना और सूसन्नाह और बहुत सी और स्त्रियां: थे तो अपक्की सम्पत्ति से उस की सेवा करती यीं।। 4. जब बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई, और नगर नगर के लोग उसके पास चले आते थे, तो उस ने दृष्टान्त में कहा। 5. कि एक बोने वाला बीज बोने निकला: बोते हुए कुछ मार्ग के किनारे गिरा, और रौंदा गया, और आकाश के पझियोंने उसे चुग लिया। 6. और कुछ चट्टान पर गिरा, और उपजा, परन्तु तरी न मिलने से सूख गया। 7. कुछ फाडिय़ोंके बीच में गिरा, और फाडिय़ोंने साय साय बढ़कर उसे दबा लिया। 8. और कुछ अच्छी भूमि पर गिरा, और उगकर सौ गुणा फल लाया: यह कहकर उस ने ऊंचे शब्द से कहा; जिस के सुनने के कान होंवह सुन लें।। 9. उसके चेलोंने उस से पूछा, कि यह दृष्टान्त क्या है उस ने कहा; 10. तुम को परमेश्वर के राज्य के भेदोंकी समझ दी गई है, पर औरोंको दृष्टान्तोंमें सुनाया जाता है, इसलिथे कि वे देखते हुए भी न देखें, और सुनते हुए भी न समझें। 11. दृष्टान्त यह है; बीज तो परमेश्वर का वचन है। 12. मार्ग के किनरे के वे हैं, जिन्होंने सुना; तब शैतान आकर उन के मन में से वचन उठा ले जाता है, कि कहीं ऐसा न हो कि वे विश्वास करके उद्धार पाएं। 13. चट्टान पर के वे हैं, कि जब सुनते हैं, तो आनन्द से वचन को ग्रहण तो करते हैं, परन्तु जड़ न पकड़ते से वे योड़ी देर तक विश्वास रखते हैं, और पक्कीझा के समय बहक जाते हैं। 14. जो फाडिय़ोंमें गिरा, सो वे हैं, जो सुनते हैं, पर होते होते चिन्ता और धन और जीवन के सुख विलास में फंस जाते हैं, और उन का फल नहीं पकता। 15. पर अच्छी भूमि में के वे हैं, जो वचन सुनकर भले और उत्तम मन में सम्भाले रहते हैं, और धीरज से फल लाते हैं।। 16. कोई दीया बार के बरतन से नहीं छिपाता, और न खाट के नीचे रखता है, परन्तु दीवट पर रखता है, कि भीतर आनेवाले प्रकाश पांए। 17. कुछ छिपा नहीं, जो प्रगट न हो; और न कुछ गुप्त है, जो जाना न जाए, और प्रगट न हो। 18. इसलिथे चौकस रहो, कि तुम किस रीति से सुनते हो क्योंकि जिस के पास है, उसे दिया जाएगा; और जिस के पास नहीं है, उस वे वह भी ले लिया जाएगा, जिसे वह अपना समझता है।। 19. उस की माता और भाई उसके पास आए, पर भीड़ के कारण उस से भेंट न कर सके। 20. और उस से कहा गया, कि तेरी माता और तेरे भाई बाहर खड़े हुए तुझ से मिलना चाहते हैं। 21. उस ने उसके उत्तर में उन से कहा कि मेरी माता और मेरे भाई थे ही है, जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं।। 22. फिर एक दिन वह और उसके चेले नाव पर चढ़े, और उस ने उन से कहा; कि आओ, फील के पार चलें: सो उन्होंने नाव खोल दी। 23. पर जब नाव चल रही यी, तो वह सो गया: और फील पर आन्धी आई, और नाव पानी से भरने लगी और वे जोखिम में थे। 24. तब उन्होंने पास आकर उसे जगाया, और कहा; हे स्वामी! स्वामी! हम नाश हुए जाते हैं: तब उस ने उठकर आन्धी को और पानी की लहरोंको डांटा और वे यम गए, और चैन हो गया। 25. और उस ने उन से कहा; तुम्हारा विश्वास कहां या पर वे डर गए, और अचम्भित होकर आपस में कहने लगे, यह कौन है जो आन्धी और पानी को भी आज्ञा देता है, और वे उस की मानते हैं।। 26. फिर वे गिरासेनियोंके देश में पहुंचे, जो उस पार गलील के साम्हने है। 27. जब वह किनारे पर उतरा, तो उस नगर का एक मनुष्य उसे मिला, जिस में दुष्टात्क़ाएं यीं और बहुत दिनोंसे न कपके पहिनता या और न घर में रहता या वरन कब्रोंमें रहा करता या। 28. वह यीशु को देखकर चिल्लाया, और उसके साम्हने गिरकर ऊंचे शब्द से कहा; हे परम प्रधान परमेश्वर के पुत्र यीशु, मुझे तुझ से क्या काम! मैं तेरी बिनती करता हूं, मुझे पीड़ा न दे! 29. क्योंकि वह उस अशुद्ध आत्क़ा को उस मनुष्य में से निकलने की आज्ञा दे रहा या, इसलिथे कि वह उस पर बार बार प्रबल होती यी; और यद्यपि लोग उसे सांकलोंऔर बेडिय़ोंसे बांधते थे, तौभी वह बन्धनोंको तोड़ डालता या, और दुष्टात्क़ा उस में पैठ गई यी। 30. और उन्होंने उस से बिनती की, कि हमें अयाह गड़हे में जाने की आज्ञा न दे। 31. वहां पहाड़ पर सूअरोंका एक बड़ा फुण्ड चर रहा या, सो उन्होंने उस से बिनती की, कि हमें उन में पैठने दे, सो उस ने उन्हें जाने दिया। 32. वहां पहाड़ पर सूअरोंका एक बड़ा फुण्ड चर रहा या, सो उन्होंने उस से बिनती की, कि हमें उन में पैठने दे, सो उस ने उन्हें जाने दिया। 33. तब दुष्टात्क़ाएं उस मनुष्य से निकलकर सूअरोंमें गई और वह फुण्ड कड़ाडे पर से फपटकर फील में जा गिरा और डूब मरा। 34. चरवाहे यह जो हुआ या देखकर भागे, और नगर में, और गांवोंमें जाकर उसका समाचार कहा। 35. और लोग यह जो हुआ या उसके देखने को निकले, और यीशु के पास आकर जिस मनुष्य से दुष्टात्क़ाएं निकली यीं, उसे यीशु के पांवोंके पास कपके पहिने और सचेत बैठे हुए पाकर डर गए। 36. और देखनेवालोंने उन को बताया, कि वह दुष्टात्क़ा का सताया हुआ मनुष्य किस प्रकार अच्छा हुआ। 37. तब गिरासेनियोंके आस पास के सब लोगोंने यीशु से बिनती की, कि हमारे यहां से चला जा; क्योंकि उन पर बड़ा भय छा गया या: सो वह नाव पर चढ़कर लौट गया। 38. जिस मनुष्य से दुष्टात्क़ाऐं निकली यीं वह उस से बिनती करने लगा, कि मुझे अपके साय रहने दे, परन्तु यीशु ने उसे विदा करके कहा। 39. अपके घर में लौट जा और लोगोंसे कह दे, कि परमेश्वर ने तेरे लिथे कैसे बड़े काम किए हैं: वह जाकर सारे नगर में प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिथे कैसे बड़े काम किए।। 40. जब यीशु लौट रहा या, तो लोग उस से आनन्द के साय मिले; क्योंकि वे सब उस की बाट जोह रहे थे। 41. और देखो, याईर नाम एक मनुष्य जो आराधनालय का सरदार या, आया, और यीशु के पांवोंपर गिर के उस से बिनती करने लगा, कि मेरे घर चल। 42. क्योंकि उसके बारह वर्ष की एकलौती बेटी यी, और वह मरने पर यी: जब वह जा रहा या, तब लोग उस पर गिरे पड़ते थे।। 43. और एक स्त्री ने जिस को बारह वर्ष से लोहू बहने का रोग या, और जो अपक्की सारी जिविका वैद्योंके पीछे व्यय कर चुकी यी और तौभी किसी के हाथ से चंगी न हो सकी यी। 44. पीछे से आकर उसके वस्त्र के आंचल को छूआ, और तुरन्त उसका लोहू बहना यम गया। 45. इस पर यीशु ने कहा, मुझे किस ने छूआ जब सब मुकरने लगे, तो पतरस और उसके सायियोंने कहा; हे स्वामी, तुझे तो भीड़ दबा रही है और तुझ पर गिरी पड़ती है। 46. परन्तु यीशु ने कहा: किसी ने मुझे छूआ है क्योंकि मैं ने जान लिया है कि मुझ में से सामर्य निकली है। 47. जब स्त्री ने देखा, कि मैं छिप नहीं सकती, तब कांपक्की हुई आई, और उसके पांवोंपर गिरकर सब लोगोंके साम्हने बताया, कि मैं ने किस कारण से तुझे छूआ, और क्योंकर तुरन्त चंगी हो गई। 48. उस ने उस से कहा, बेटी तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है, कुशल से चक्की जा। 49. वह यह कह ही रहा या, कि किसी ने आराधनालय के सरदार के यहां से आकर कहा, तेरी बेटी मर गई: गुरु को दु:ख न दे। 50. यीशु ने सुनकर उसे उत्तर दिया, मत डर; केवल विश्वास रख; तो वह बच जाएगी। 51. घर में आकर उस ने पतरस औरा यूहन्ना और याकूब और लड़की के माता-पिता को छोड़ और किसी को अपके साय भीतर आने न दिया। 52. और सब उसके लिथे रो पीट रहे थे, परन्तु उस ने कहा; रोओ मत; वह मरी नहीं परन्तु सो रही है। 53. वे यह जानकर, कि मर गई है, उस की हंसी करने लगे। 54. परन्तु उस ने उसका हाथ पकड़ा, और पुकारकर कहा, हे लकड़ी उठ! 55. तब उसके प्राण फिर आए और वह तुरन्त उठी; फिर उस ने आज्ञा दी, कि उसे कुछ खाने को दिया जाए। 56. उसके माता-पिता चकित हुए, परन्तु उस ने उन्हें चिताया, कि यह जो हुआ है, किसी से न कहना।।
Chapter 9
1. फिर उस ने बारहोंको बुलाकर उन्हें सब दुष्टात्क़ाओं और बिमारियोंको दूर करने की सामर्य और अधिक्कारने दिया। 2. और उन्हें परमेश्वर के राज्य का प्रचार करने, और बिमारोंको अच्छा करने के लिथे भेजा। 3. और उस ने उससे कहा, मार्ग के लिथे कुछ न लेना: न तो लाठी, न फोली, न रोटी, न रूपके और न दो दो कुरते। 4. और जिस किसी घर में तुम उतरो, वहीं रहो; और वहीं से विदा हो। 5. जो कोई तुम्हें ग्रहण न करेगा उस नगर से निकलते हुए अपके पांवोंकी धूल फाड़ डालो, कि उन पर गवाही हो। 6. सो वे निकलकर गांव गांव सुसमाचार सुनाते, और हर कहीं लोगोंको चंगा करते हुए फिरते रहे।। 7. और देश की चौयाई का राजा हेरोदेस यह सब सुनकर घबरा गया, क्योंकि कितनोंने कहा, कि यूहन्ना मरे हुओं में से जी उठा है। 8. और कितनोंने यह, कि एलिय्याह दिखाई दिया है: औरोंने यह, कि पुराने भविष्यद्वक्ताओं में से कोई जी उठा है। 9. परन्तु हेरोदेस ने कहा, युहन्ना का तो मैं ने सिर कटवाया अब यह कौन है, जिस के विषय में ऐसी बातें सुनता हूं और उस ने उसे देखने की इच्छा की।। 10. फिर प्रेरितोंने लौटकर जो कुछ उन्होंने किया या, उस को बता दिया, और वह उन्हें अलग करके बैतसैदा नाम एक नगर को ले गया। 11. यह जानकर भीड़ उसके पीछे हो ली: और वह आनन्द के साय उन से मिला, और उन से परमेश्वर के राज्य की बातें करने लगा: और जो चंगे होना चाहते थे, उन्हें चंगा किया। 12. जब दिन ढलने लगा, तो बारहोंने आकर उससे कहा, भीड़ को विदा कर, कि चारोंओर के गावोंऔर बस्तियोंमें जाकर टिकें, और भोजन का उपाय करें, क्योंकि हम यहां सुनसान जगह में हैं। 13. उस ने उन से कहा, तुम ही उन्हें खाने को दो: उन्होंने कहा, हमारे पास पांच रोटियां और दो मछली को छोड़ और कुछ नहीं: परन्तु हां, यदि हम जाकर इन सब लोगोंके लिथे भोजन मोल लें, तो हो सकता है: वे लोग तो पांच हजार पुरूषोंके लगभग थे। 14. जब उस ने अपके चेलोंसे कहा, उन्हें पचास पचास करके पांति में बैठा दो। 15. उन्होंने ऐसा ही किया, और सब को बैठा दिया। 16. तब उस ने वे पांच रोटियां और दो मछली लीं, और स्वर्ग की और देखकर धन्यवाद किया, और तोड़ तोड़कर चेलोंको देता गया, कि लोगोंको परोसें। 17. सो सब खाकर तृप्त हुए, और बचे हुए टुकड़ोंसे बारह टोकरी भरकर उठाई।। 18. जब वह एकान्त में प्रार्यना कर रहा या, और चेले उसके साय थे, तो उस ने उन से पूछा, कि लोग मुझे क्या कहते हैं 19. उन्होंने उत्तर दिया, युहन्ना बपतिस्क़ा देनेवाला, और कोई कोई एलिय्याह, और कोई यह कि पुराने भविष्यद्वक्ताओं में से कोई जी उठा है। 20. उस ने उन से पूछा, परन्तु तुम मुझे क्या कहते हो पतरस ने उत्तर दिया, परमेश्वर का मसीह। 21. तब उस ने उन्हें चिताकर कहा, कि यह किसी से न कहना। 22. और उस ने कहा, मनुष्य के पुत्र के लिथे अवश्य है, कि वह बहुत दुख उठाए, और पुरिनए और महाथाजक और शास्त्री उसे तुच्छ समझकर मार डालें, और वह तीसरे दिन जी उठे। 23. उस ने सब से कहा, यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपके आप से इन्कार करे और प्रति दिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले। 24. क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहेगा वह उसे खोएगा, परन्तु जो कोई मेरे लिय अपना प्राण खोएगा वही उसे बचाएगा। 25. यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपना प्राण खो दे, या उस की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा 26. जो कोई मुझ से और मेरी बातोंसे लजाएगा; मनुष्य का पुत्र भी जब अपक्की, और अपके पिता की, और पवित्र स्वर्ग दूतोंकी, महिमा सहित आएगा, तो उस से लजाएगा। 27. मैं तुम से सच कहता हूं, कि जो यहां खड़े हैं, उन में से कोई कोई ऐसे हैं कि जब तक परमेश्वर का राज्य न देख लें, तब तक मृत्यु का स्वाद न चखेंगे। 28. इन बातोंके कोई आठ दिन बाद वह पतरस और यूहन्ना और याकूब को साय लेकर प्रार्यना करने के लिथे पहाड़ पर गया। 29. जब वह प्रार्यना कर ही रहा या, तो उसके चेहरे का रूप बदल गया: और उसका वस्त्र श्वेत होकर चमकने लगा। 30. और देखो, मूसा और एलिय्याह, थे दो पुरूष उसके साय बातें कर रहे थे। 31. थे महिमा सहित दिखाई दिए; और उसके मरने की चर्चा कर रहे थे, जो यरूशलेम में होनवाला या। 32. पतरस और उसके सायी नींद से भरे थे, और जब अच्छी तरह सचेत हुए, तो उस की महिमा; और उन दो पुरूषोंको, जो उसके साय खड़े थे, देखा। 33. जब वे उसके पास से जाने लगे, तो पतरस ने यीशु से कहा; हे स्वामी, हमारा यहां रहना भला है: सो हम तीन मण्डप बनाएं, एक तेरे लिथे, एक मूसा के लिथे, और एक एलिय्याह के लिथे। वह जानता न या, कि क्या कह रहा है। 34. वह यह कह ही रहा या, कि एक बादल ने आकर उन्हें छा लिया, और जब वे उस बादल से घिरने लगे, तो डर गए। 35. और उस बादल में से यह शब्द निकला, कि यह मेरा पुत्र और मेरा चुना हुआ है, इस की सुनो। 36. यह शब्द होते ही यीशु अकेला पाया गया: और वे चुप रहे, और कुछ देखा या, उस की कोई बात उन दिनोंमें किसी से न कही।। 37. और दूसरे दिन जब वे पहाड़ से उतरे, तो एक बड़ी भीड़ उस से आ मिली। 38. और देखो, भीड़ में से एक मनुष्य ने चिल्ला कर कहा, हे गुरू, मैं तुझ से बिनती करता हूं, कि मेरे पुत्र पर कृपादृष्टि कर; क्योंकि वह मेरा एकलौता है। 39. और देख, एक दुष्टात्क़ा उसे पकड़ता है, और वह एकाएक चिल्ला उठता है; और वह उसे ऐसा मरोड़ता है, कि वह मुंह में फेन भर लाता है; और उसे कुचलकर किठनाई से छोड़ता है। 40. और मै ने तेरे चेलोंसे बिनती की, कि उसे निकालें; परन्तु वे न निकाल सके। 41. यीशु न उत्तर दिया, हे अविश्वासी और हिठले लोगो, मैं कब तक तुम्हारे साय रहूंगा, और तुम्हारी सहूंगा अपके पुत्र को यहां ले आ। 42. वह आ ही रहा या कि दुष्टात्क़ा ने उसे पटककर मरोड़ा, परन्तु यीशु ने अशुद्ध आत्क़ा को डांटा और लकड़े को अच्छा करके उसके पिता को सौंप दिया। 43. तब सब लोग परमेश्वर के महासामर्य से चकित हुए।। 44. परन्तु जब सब लोग उन सब कामोंसे जो वह करता या, अचम्भा कर रहे थे, तो उस ने अपके चेलोंसे कहा; थे बातें तुम्हारे कानोंमें पड़ी रहें, क्योंकि मनुष्य का पुत्र मनुष्योंके हाथ में पकड़वाया जाने को है। 45. परन्तु वे इस बात को न समझते थे, और यह उन से छिपी रही; कि वे उसे जानने न पाएं, और वे इस बात के विषय में उस से पूछने से डरते थे।। 46. फिर उन में यह विवाद होने लगा, कि हम में से बड़ा कौन है 47. पर यीशु ने उन के मन का विचार जान लिया : और एक बालक को लेकर अपके पास खड़ा किया। 48. और उन से कहा; जो कोई मेरे नाम से इस बालक को ग्रहण करता है, वह मुझे ग्रहण करता है, वह मेरे भेजनेवाले को ग्रहण करता है क्योंकि जो तुम में सब से छोटे से छोटा है, वही बड़ा है। 49. तब युहन्ना ने कहा, हे स्वामी, हम ने एक मनुष्य को तेरे नाम से दुष्टात्क़ाओं को निकालते देखा, और हम ने उसे मना किया, कयोंकि वह हमारे साय होकर तेरे पीछे नहीं हो लेता। 50. यीशु ने उस से कहा, उसे मना मत करो; क्योंकि जो तुम्हारे विरोध में नहीं, वह तुम्हारी ओर है।। 51. जब उसके ऊपर उठाए जाने के दिन पूरे होने पर थे, जो उस ने यरूशलेम को जाने का विचार दृढ़ किया। 52. और उस ने अपके आगे दूत भेजे: वे सामरियोंके एक गांव में गए, कि उसके लिथे जगह तैयार करें। 53. परन्तु उन लोगोंने उसे उतरने न दिया, क्योंकि वह यरूशलेम को जा रहा या। 54. यह देखकर उसके चेले याकूब और यूहन्ना ने कहा; हे प्रभु; क्या तू चाहता है, कि हम आज्ञा दें, कि आकाश से आग गिरकर उन्हें भस्क़ कर दे। 55. परन्तु उस ने फिरकर उन्हें डांटा और कहा, तुम नहीं जानते कि तुम कैसी आत्क़ा के हो। 56. क्योंकि मनुष्य का पुत्र लोगोंके प्राणोंको नाश करने नहीं बरन बचाने के लिथे आया है: और वे किसी और गांव में चले गए।। 57. जब वे मार्ग में चले जाते थे, तो किसी न उस से कहा, जहां जहां तू जाएगा, मैं तेरे पीछे हो लूंगा। 58. यीशु ने उस से कहा, लोमडिय़ोंके भट और आकाश के पझियोंके बसेरे होते हैं, पर मनुष्य के पुत्र को सिर धरने की भी जगह नहीं। 59. उस ने दूसरे से कहा, मेरे पीछे हो ले; उस ने कहा; हे प्रभु, मुझे पहिले जाने दे कि अपके पिता को गाड़ दूं। 60. उस ने उस से कहा, मरे हुओं को अपके मुरदे गाड़ने दे, पर तू जाकर परमेश्वर के राज्य की कया सुना। 61. एक और ने भी कहा; हे प्रभु, मैं तेरे पीछे हो लूंगा; पर पहिले मुझे जाने दे कि अपके घर के लोगोंसे विदा हो आऊं। 62. यीशु ने उस से कहा; जो कोई अपना हाथ हर पर रखकर पीछे देखता है, वह परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं।।
Chapter 10
1. और इन बातोंके बाद प्रभु ने सत्तर और मनुष्य नियुक्त किए और जिस जिस नगर और जगह को वह आप जाने पर या, वहां उन्हें दो दो करके अपके आगे भेजा। 2. और उस ने उन से कहा; पके खेत बहुत हैं; परन्तु मजदूर योड़े हैं: इसलिथे खेत के स्वामी से बिनती करो, कि वह अपके खेत काटने को मजदूर भेज दे। 3. जाओ; देखोंमैं तुम्हें भेड़ोंकी नाईं भेडियोंके बीच में भेजता हूं। 4. इसलिथे न बटुआ, न फोली, न जूते लो; और न मार्ग में किसी को नमस्कार करो। 5. जिस किसी घर में जाओ, पहिले कहो, कि इस घर पर कल्याण हो। 6. यदि वहां कोई कल्याण के योग्य होगा; तो तुम्हारा कल्याण उस पर ठहरेगा, नहीं तो तुम्हारे पास लौट आएगा। 7. उसी घर में रहो, और जो कुछ उन से मिले, वही खाओ पीओ, क्योंकि मजदूर को अपक्की मजदूरी मिलनी चाहिए: घर घर न फिरना। 8. और जिस नगर में जाओ, और वहां के लोग तुम्हें उतारें, तो तो कुछ तुम्हारे साम्हने रखा जाए वही खाओ। 9. वहां के बीमारोंको चंगा करो: और उन से कहो, कि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुंचा है। 10. परन्तु जिस नगर में जाओ, और वहां के लोग तुम्हें ग्रहण न करें, तो उसके बाजारोंमें जाकर कहो। 11. कि तुम्हारे नगर की धूल भी, जो हमारे पांवोंमें लगी है, हम तुम्हारे साम्हने फाड़ देते हैं, तौभी यह जान लो, कि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ पहुंचा है। 12. मैं तुम से कहता हूं, कि उस दिन उस नगर की दशा से सदोम की दशा सहने योग्य होगी। 13. हाथ खुराजीन ! हाथ बैतसैदा ! जो सामर्य के काम तुम में किए गए, यदि वे सूर और सैदा में किए जाते, तो टाट ओढ़कर और राख में बैठकर वे कब के मन फिराते। 14. परन्तु न्याय के दिन तुम्हरी दशा से सूर और सैदा की दशा सहने योग्य होगी। 15. और हे कफरनहूम, क्या तू स्वर्ग तक ऊंचा किया जाएगा तू तो अधोलोक तक नीचे जाएगा। 16. जो तुम्हारी सुनता है, वह मेरी सुनता है, और जो तुम्हें तुच्छ जानता है, वह मुझे तुच्छ जानता है; और जो मुझे तुच्छ जानता है, वह मेरे भेजनेवाले को तुच्छ जानता है। 17. वे सत्तर आनन्द से फिर आकर कहने लगे, हे प्रभु, तेरे नाम से दुष्टात्क़ा भी हमारे वश में है। 18. उस ने उन से कहा; मैं शैतान को बिजली की नाई स्वर्ग से गिरा हुआ देख रहा या। 19. देखो, मैने तुम्हे सांपोंऔर बिच्छुओं को रौंदने का, और शत्रु की सारी सामर्य पर अधिक्कारने दिया है; और किसी वस्तु से तुम्हें कुछ हानि न होगी। 20. तौभी इस से आनन्दित मत हो, कि आत्क़ा तुम्हारे वश में हैं, परन्तु इस से आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग पर लिखे हैं।। 21. उसी घड़ी वह पवित्र आत्क़ा में होकर आनन्द से भर गया, और कहा; हे पिता, स्वर्ग और पृय्वी के प्रभु, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, कि तू ने इन बातोंको ज्ञानियोंऔर समझदारोंसे छिपा रखा, और बालकोंपर प्रगट किया: हां, हे पित, क्योंकि तुझे यही अच्छा लगा। 22. मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंप दिया है और कोई नहीं जानता कि पुत्र कौन है केवल पिता और पिता कौन है यह भी कोई नहीं जानता, केवल पुत्र के और वह जिस पर पुत्र उसे प्रकट करना चाहे। 23. और चेलोंकी ओर फिरकर निराले में कहा, धन्य हैं वे आंखे, जो थे बाते जो तुम देखते हो देखती हैं। 24. क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि बहुत से भविष्यद्वक्ताओं और राजाओं ने चाहा, कि जो बातें तुम देखते हो देखें; पर न देखीं और जो बातें तुम सुनते हो सुनें, पर न सुनीं।। 25. और देखो, एक व्यवस्यापक उठा; और यह कहकर, उस की पक्कीझा करने लगा; कि हे गुरू, अनन्त जीवन का वारिस होने के लिथे मैं क्या करूं 26. उस ने उस से कहा; कि व्यवस्या में क्या लिखा है तू कैसे पढ़ता है 27. उस ने उत्तर दिया, कि तू प्रभु अपके परमेश्वर से अपके सारे मन और अपके सारे प्राण और अपक्की सारी शक्ति और अपक्की सारी बुद्धि के साय प्रेम रख; और अपके पड़ोसी से अपके समान प्रेम रख। 28. उस ने उस से कहा, तू ने ठीक उत्तर दिया है, यही कर: तो तू जीवित रहेगा। 29. परन्तु उस ने अपक्की तईं धर्मी ठहराने की इच्छा से यीशु से पूछा, तो मेरा पड़ोसी कौन है 30. यीशु ने उत्तर दिया; कि एक मनुष्य यरूशलेम से यरीहो को जा रहा या, कि डाकुओं ने घेरकर उसके कपके उतार लिए, और मारपीटकर उसे अधमूआ छोड़कर चले गए। 31. और ऐसा हुआ; कि उसी मार्ग से एक याजक जा रहा या: परन्तु उसे देख के कतराकर चला गया। 32. इसी रीति से एक लेवी उस जगह पर आया, वह भी उसे देख के कतराकर चला गया। 33. परन्तु एक सामरी यात्री वहां आ निकला, और उसे देखकर तरस खाया। 34. और उसके पास आकर और उसके घावोंपर तेल और दाखरस डालकर पट्टियां बान्धी, और अपक्की सवारी पर चढ़ाकर सराय में ले गया, और उस की सेवा टहल की। 35. दूसरे दिन उस ने दो दिनार निकालकर भटियारे को दिए, और कहा; इस की सेवा टहल करना, और जो कुछ तेरा और लगेगा, वह मैं लौटने पर तुझे भर दूंगा। 36. अब मेरी समझ में जो डाकुओं में घिर गया या, इन तीनोंमें से उसका पड़ोसी कौन ठहरा 37. उस ने कहा, वही जिस ने उस पर तरस खाया: यीशु ने उस से कहा, जा, तू भी ऐसा ही कर।। 38. फिर जब वे जा रहे थे, तो वह ऐ गांव में गया, और मार्या नाम एक स्त्री ने उसे अपके घर में उतारा। 39. और मरियम नाम उस की एक बहिन यी; वह प्रभु के पांवोंके पास बैठकर उसका वचन सुनती यी। 40. पर मार्या सेवा करते करते घबरा गई और उसके पास आकर कहने लगी; हे प्रभु, क्या तुझे कुछ भी सोच नहीं कि मेरी बहिन ने मुझे सेवा करने के लिथे अकेली ही छोड़ दिया है सो उस से कह, कि मेरी सहाथता करे। 41. प्रभु ने उसे उत्तर दिया, मार्या, हे मार्या; तू बहुत बातोंके लिथे चिन्ता करती और घबराती है। 42. परन्तु एक बात अवश्य है, और उस उत्तम भाग को मरियम ने चुन लिया है: जो उस से छीना न जाएगा।।
Chapter 11
1. फिर वह किसी जगह प्रार्यना कर रहा या: और जब वह प्रार्यना कर चुका, तो उसके चेलोंमें से एक ने उस से कहा; हे प्रभु, जैसे यूहन्ना ने अपके चेलोंको प्रार्यना करना सिखलाया वैसे ही हमें भी तू सिखा दे। 2. उस ने उन से कहा; जब तुम प्रार्यना करो, तो कहो; हे पिता, तेरा नाम पवित्र माना जाए, तेरा राज्य आए। 3. हमारी दिन भर की रोटी हर दिन हमें दिया कर। 4. और हमारे पापोंको झमा कर, क्योंकि हम भी अपके हर एक अपराधी को झमा करते हैं, और हमें पक्कीझा में न ला।। 5. और उस ने उन से कहा, तुम में से कौन है कि उसका एक मित्र हो, और वह आधी रात को उसके पास आकर उस से कहे, कि हे मित्र; मुझे तीन रोटियां दे। 6. क्योंकि एक यात्री मित्र मेरे पास आया है, और उसके आगे रखने के लिथे मेरे पास कुछ नहीं है। 7. और वह भीतर से उत्तर दे, कि मुझे दुख न दे; अब तो द्वार बन्द है, और मेरे बालक मेरे पास बिछौने पर हैं, इसलिथे मैं उठकर तुझे दे नहीं सकता 8. मैं तुम से कहता हूं, यदि उसका मित्र होने पर भी उसे उठकर न दे, तौभी उसके लज्ज़ा छोड़कर मांगने के कारण उसे जितनी आवश्यकता हो उतनी उठकर देगा। 9. और मैं तुम से कहता हूं; कि मांगो, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूंढ़ोंतो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिथे खोला जाएगा। 10. क्योंकि जो कोई मांगता है, उसे मिलता है; और जो ढूंढ़ता है, वह पाता है; और जो खटखटाता है, उसके लिथे खोला जाएगा। 11. तुम में से ऐसा कौन पिता होगा, कि जब उसका पुत्र रोटी मांगे, तो उसे पत्यर दे: या मछली मांगे, तो मछली के बदले उसे सांप दे 12. या अण्डा मांगे तो उसे बिच्छू दे 13. सो जब तुम बुरे होकर अपके लड़केबालोंको अच्छी वस्तुऐ देना जानते हो, तो स्वर्गीय पिता अपके मांगनेवालोंको पवित्र आत्क़ा क्योंन देगा।। 14. फिर उस ने एक गूंगी दुष्टात्क़ा को निकाला: जब दुष्टात्क़ा निकल गई, तो गूंगा बोलने लगा; और लोगोंने अचम्भा किया। 15. परन्तु उन में से कितनोंने कहा, यह तो शैतान नाम दुष्टात्क़ाओं के प्रधान की सहाथता से दुष्टात्क़ाओं को निकालता है। 16. औरोंने उस की पक्कीझा करने के लिथे उस से आकाश का एक चिन्ह मांगा। 17. परन्तु उस ने, उन के मन की बातें जानकर, उन से कहा; जिस जिस राज्य में फूट होती है, वह राज्य उजड़ जाता है: और जिस घर में फूट होती है, वह नाश हो जाता है। 18. और यदि शैतान अपना ही विरोधी हो जाए, तो उसका राज्य क्योंकर बना रहेगा क्योंकि तुम मेरे विषय में तो कहते हो, कि यह शैतान की सहाथता से दुष्टात्क़ा निकालता है। 19. भला यदि मैं शैतान की सहाथता से दुष्टात्क़ाओं को निकालता हूं, तो तुम्हारी सन्तान किस की सहाथता से निकालते हैं इसलिथे वे ही तुम्हारा न्याय चुकाएंगे। 20. परन्तु यदि मैं परमेश्वर की सामर्य से दुष्टात्क़ाओं को निकालता हूं, तो परमेश्वर का राज्य तुम्हारे पास आ पहुंचा। 21. जब बलवन्त मनुष्य हिययार बान्धे हुए अपके घर की रखवाली करता है, तो उस की संपत्ति बची रहती है। 22. पर जब उस से बढ़कर कोई और बलवन्त चढ़ाई करके उसे जीत लेता है, तो उसके वे हिययार जिन पर उसका भरोसा या, छीन लेता है और उस की संपत्ति लूटकर बांट देता है। 23. जो मेरे साय नहीं बटोरता वह बियराता है। 24. जब अशुद्ध आत्क़ा मनुष्य में से निकल जाती है तो सूखी जगहोंमें विश्रम ढूंढ़ती फिरती है; और जब नहीं पाती तो कहती है; कि मैं अपके उसी घर में जहां से निकली यी लौट जाऊंगी। 25. औश्र् आकर उसे फाड़ा-बुहारा और सजाढाया पाती है। 26. तब वह आकर अपके से और बुरी सात आत्क़ाओं को अपके साय ले आती है, और वे उस में पैठकर वास करती हैं, और उस मनुष्य की पिछली दशा पहिले से भी बुरी हो जाती है।। 27. जब वह थे बातें कह ही रहा या तो भीड़ में से किसी स्त्री ने ऊंचे शब्द से कहा, धन्य वह गर्भ जिस में तू रहा; और वे स्तन, जो तू ने चूसे। 28. उस ने कहा, हां; परन्तु धन्य वे हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं।। 29. जब बड़ी भीड़ इकट्ठी होती जाती यी तो वह कहने लगा; कि इस युग के लोग बुरे हैं; वे चिन्ह ढूंढ़ते हैं; पर यूनुस के चिन्ह को छोड़ कोई और चिन्ह उन्हें न दिया जाएगा। 30. जैसा यूनुस नीनवे के लोगोंके लिथे चिन्ह ठहरा, वैसा ही मनुष्य का पुत्र भी इस युग के लोगोंके लिथे ठहरेगा। 31. दक्खिन की रानी न्याय के दिन इस समय के मनुष्योंके साय उठकर, उन्हें दोषी ठहराएगी, क्योंकि वह सुलैमान का ज्ञान सुनने को पृय्वी की छोर से आई, और देखो यहां वह है जो सुलैमान से भी बड़ा है। 32. नीनवे के लोग न्याय के दिन इस समय के लोगोंके साय खड़े होकर, उन्हें दोषी ठहराएंगे; क्योंकि उन्होंने यूनुस का प्रचार सुनकर मन फिराया और देखो, यहां वह है, जो यूनुस से भी बड़ा है।। 33. कोई मनुष्य दीया बार के तलघरे में, या पैमाने के नीचे नहीं रखता, परन्तु दीवट पर रखता है कि भीतर आनेवाले उजियाला पाएं। 34. तेरे शरीर का दीया तेरी आंख है, इसलिथे जब तेरी आंख निर्मल है, तो तेरा सारा शरीर भी उजियाला है; परन्तु जब वह बुरी है, तो तेरा शरीर भी अन्धेरा है। 35. इसलिथे चौकस रहना, कि जो उजियाला तुझ में है वह अन्धेरा न हो जाए। 36. इसलिथे यदि तेरा सारा शरीर उजियाला हो, ओर उसका कोई भाग अन्धेरा न रहे, तो सब का सब ऐसा उलियाला होगा, जैसा उस समय होता है, जब दीया अपक्की चमक से तुझे उजाला देता है।। 37. जब वह बातें कर रहा या, तो किसी फरीसी ने उस से बिनती की, कि मेरे यहां भेजन कर; और वह भीतर जाकर भोजन करने बैठा। 38. फरीसी ने यह देखकर अचम्भा दिया कि उस ने भोजन करने से पहिले स्नान नहीं किया। 39. प्रभु ने उस से कहा, हे फरीसियों, तुम कटोरे और याली को ऊपर ऊपर तो मांजते हो, परन्तु तुम्हारे भीतर अन्धेर और दुष्टता भरी है। 40. हे निर्बुद्धियों, जिस ने बाहर का भाग बनाया, क्या उस ने भीतर का भाग नहीं बनाया 41. परन्तु हां, भीतरवाली वस्तुओं को दान कर दो, तो देखो, सब कुछ तुम्हारे लिथे शुद्ध हो जाएगा।। 42. पर हे फरीसियों, तुम पर हाथ ! तुम पोदीने और सुदाब का, और सब भांति के साग-पात का दसवां अंश देते हो, परन्तु न्याय को और परमेश्वर के प्रेम को टाल देते हो: चाहिए तो या कि इन्हें भी करते रहते और उन्हें भी न छोड़ते। 43. हे फरीसियों, तुम पर हाथ ! तुम आराधनालयोंमें मुख्य मुख्य आसन और बाजारोंमें नमस्कार चाहते हो। 44. हाथ तुम पर ! क्योंकि तुम उन छिपी कब्रोंके समान हो, जिन पर लोग चलते हैं, परन्तु नहीं जानते।। 45. तब एक व्यवस्यापक ने उस को उत्तर दिया, कि हे गुरू, इन बातोंके कहने से तू हमारी निन्दा करता है। 46. उस ने कहा; हे व्यवस्यापकों, तुम पर भी हाथ ! तुम ऐसे बोफ जिन को उठाना किठन है, मनुष्योंपर लादते हो परन्तु तुम आप उन बोफोंको अपक्की एक उंगली से भी नहीं छूते। 47. हाथ तुम पर ! तुम उन भविष्यद्वक्तओं की कब्रें बनाते हो, जिन्हें तुम्हारे बाप-दादोंने मार डाला या। 48. सो तुम गवाह हो, और अपके बाप-दादोंके कामोंमें सम्मत हो; क्योंकि उन्होंने तो उन्हें मार डाला और तुम उन की कब्रें बनाते हो। 49. इसलिथे परमेश्वर की बुद्धि ने भी कहा है, कि मैं उन के पास भविष्यद्वक्ताओं और प्रेरितोंको भेजूंगी: और वे उन में से कितनोंको मार डालेंगे, और कितनोंको सताएंगे। 50. ताकि जितने भविष्यद्वक्ताओं का लोहू जगत की उत्पत्ति से बहाथा गया है, सब का लेखा, इस युग के लोगोंसे लिया जाए। 51. हाबील की हत्या से लेकर जकरयाह की हत्या तक जो वेदी और मन्दिर के बीच में घात किया गया: मैं तुम से सच कहता हूं; उसका लेखा इसी समय के लोगोंसे लिया जाएगा। 52. हाथ तुम व्यवस्यापकोंपर ! कि तुम ने ज्ञान की कुंजी ले तो ली, परन्तु तुम ने आपक्की प्रवेश नहीं किया, और प्रवेश करनेवालोंको भी रोक दिया। 53. जब वह वहां से निकला, तो शास्त्री और फरीसी बहुत पीछे पड़ गए और छेड़ने लगे, कि वह बहुत सी बातोंकी चर्चा करे। 54. और उस की घात में लगे रहे, कि उसके मुंह की कोई बात पकड़ें।।
Chapter 12
1. इतने में जब हजारोंकी भीड़ लग गई, यहां तक कि एक दूसरे पर गिरे पड़ते थे, तो वह सब से पहिले अपके चेलोंसे कहने लगा, कि फरीसियोंके कपटरूपी खमीर से चौकस रहना। 2. कुछ ढपा नहीं, जो खोला न जाएगा; और न कुछ छिपा है, जो जाना न जाएगा। 3. इसलिथे जो कुछ तुम ने अन्धेरे में कहा है, वह उजाने में सुना जाएगा: और जो तुम ने कोठिरयोंमें कानोंकान कहा है, वह कोठोंपर प्रचार किया जाएगा। 4. परन्तु मैं तुम से जो मेरे मित्र हो कहता हूं, कि जो शरीर को घात करते हैं परन्तु उसके पीछे और कुछ नहीं कर सकते उन से मत डरो। 5. मैं तुम्हें चिताता हूं कि तुम्हें किस से डरना चाहिए, घात करते के बाद जिस को नरक में डालने का अधिक्कारने है, उसी से डरो : बरन मैं तुम से कहता हूं उसी से डरो। 6. क्या दो पैसे की पांच गौरैयां नहीं बिकती तौभी परमेश्वर उन में से एक को भी नहीं भूलता। 7. बरन तुम्हारे सिर के सब बाल भी गिने हुए हैं, सो डरो नहीं, तुम बहुत गौरैयोंसे बढ़कर हो। 8. मैं तुम से कहता हूं जो कोई मनुष्योंके साम्हने मुझे मान लेगा उसे मनुष्य का पुत्र भी परमेश्वर के स्वर्गदूतोंके सामहने मान लेगा। 9. परन्तु जो मनुष्योंके साम्हने मुझे इन्कार करे उसका परमेश्वर के स्वर्गदूतोंके साम्हने इन्कार किया जाएगा। 10. जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई बात कहे, उसका वह अपराध झमा किया जाएगा। 11. जब लोग तुम्हें सभाओं और हाकिमोंऔर अधिक्कारनेियोंके साम्हने ले जाएं, तो चिन्ता न करना कि हम किस रीति से या क्या उत्तर दें, या क्या कहें। 12. क्योंकि पवित्र आत्क़ा उसी घड़ी तुम्हें सिखा देगा, कि क्या कहना चाहिए।। 13. फिर भीड़ में से एक ने उस से कहा, हे गुरू, मेरे भाई से कह, कि पिता की संपत्ति मुझे बांट दे। 14. उस ने उस से कहा; हे मनुष्य, किस ने मुझे तुम्हारा न्यायी या बांटनेवाला नियुक्त किया है 15. और उस ने उन से कहा, चौकस रहो, और हर प्रकार के लोभ से अपके आप को बचाए रखो: क्योंकि किसी का जीवन उस की संपत्ति की बहुतायत से नहीं होता। 16. उस ने उन से एक दृष्टान्त कहा, कि किसी धनवान की भूमि में बड़ी उपज हुई। 17. तब वह अपके मन में विचार करने लगा, कि मैं क्या करूं, क्योंकि मेरे यहां जगह नहीं, जहां अपक्की उपज इत्यादि रखूं। 18. और उस ने कहा; मैं यह करूंगा: मैं अपक्की बखारियां तोड़ कर उन से बड़ी बनाऊंगा; 19. और वहां अपना सब अन्न और संपत्ति रखूंगा: और अपके प्राण से कहूंगा, कि प्राण, तेरे पास बहुत वर्षोंके लिथे बहुत संपत्ति रखी है; चैन कर, खा, पी, सुख से रह। 20. परन्तु परमेश्वर ने उस से कहा; हे मूर्ख, इसी रात तेरा प्राण तुझ से ले लिया जाएगा: तब जो कुछ तू ने इकट्ठा किया है, वह किस का होगा 21. ऐसा ही वह मनुष्य भी है जो अपके लिथे धन बटोरता है, परन्तु परमेश्वर की दृष्टि में धनी नहीं।। 22. फिर उस ने अपके चेलोंसे कहा; इसलिथे मैं तुम से कहता हूं, अपके प्राण की चिन्ता न करो, कि हम क्या खाएंगे; न अपके शरीर की कि क्या पहिनेंगे। 23. क्योंकि भोजन से प्राण, और वस्त्र से शरीर बढ़कर है। 24. कौवोंपर ध्यान दो; वे न बोते हैं, न काटते; न उन के भण्डार और न खत्ता होता है; तौभी परमेश्वर उन्हें पालता है; तुम्हारा मूल्य पझियोंसे कहीं अधिक है। 25. तुम में से ऐसा कौन है, जो चिन्ता करने से अपक्की अवस्या में ऐक घड़ी भी बड़ा सकता है 26. इसलिथे यदि तुम सब से छोटा काम भी नहीं कर सकते, तो और बातोंके लिथे क्योंचिन्ता करते हो 27. सोसनोंके पेड़ोंपर ध्यान करो कि वे कैसे बढ़ते हैं; वे न परिश्र्म करते, न कातते हैं: तौभी मैं तुम से कहता हूं, कि सुलैमान भी, अपके सारे विभव में, उन में से किसी एक के समान वस्त्र पहिने हुए न या। 28. इसलिथे यदि परमेश्वर मैदान की घास को जो आज है, और कर भाड़ में फोंकी जाएगी, ऐसा पहिनाता है; तो हे अल्प विश्वासियों, वह तुम्हें क्योंन पहिनाएगा 29. और तुम इस बात की खोज में न रहो, कि क्या खाएंगे और क्या पीएंगे, और न सन्देह करो। 30. क्योंकि संसार की जातियां इन सब वस्तुओं की खोज में रहती हैं: और तुम्हारा पिता जानता है, कि तुम्हें इन वस्तुओं की आवश्यकता है। 31. परन्तु उसके राज्य की खोज में रहो, तो थे वस्तुऐं भी तुम्हें मिल जाएंगी। 32. हे छोटे फुण्ड, मत डर; क्योंकि तुम्हारे पिता को यह भाया है, कि तुम्हें राज्य दे। 33. अपक्की संपत्ति बेचकर दान कर दो; और अपके लिथे ऐसे बटुए बनाओ, जो पुराने नहीं होते, अर्यात् स्वर्ग पर ऐसा धन इकट्ठा करो जो घटता नहीं और जिस के निकट चोर नहीं जाता, और कीड़ा नहीं बिगाड़ता। 34. क्योंकि जहां तुम्हारा धन है, वहां तुम्हारा मन भी लगा रहेगा।। 35. तुम्हारी कमरें बन्धी रहें, और तुम्हारे दीथे जलते रहें। 36. और तुम उन मनुष्योंके समान बनो, जो अपके स्वामी की बाट देख रहे हों, कि वह ब्याह से कब लौटेगा; कि जब वह आकर द्वार खटखटाए, ाते तुरन्त उसके खोल दें। 37. धन्य हैं वे दास, जिन्हें स्वामी आकर जागते पाए; मैं तुम से सच कहता हूं, कि वह कमर बान्ध कर उन्हें भोजन करने को बैठाएगा, और पास आकर उन की सेवा करेगा। 38. यदि वह रात के दूसरे पहर या तीसरे पहर में आकर उन्हें जागते पाए, तो वे दास धन्य हैं। 39. परन्तु तुम यह जान रखो, कि यदि घर का स्वामी जानता, कि चोर किस घड़ी आएगा, तो जागता रहता, और अपके घर में सेंघ लगने न देता। 40. तुम भी तैयार रहो; क्योंकि जिस घड़ी तुम सोचते भी नहीं, उस घड़ी मनुष्य का पुत्र आ जावेगा। 41. तब पतरस ने कहा, हे प्रभु, क्या यह दृष्टान्त तू हम ही से या सब से कहता है। 42. प्रभु ने कहा; वह विश्वासयोग्य और बुद्धिमान भण्डारी कौन है, जिस का स्वामी उसे नौकर चाकरोंपर सरदार ठहराए कि उन्हें समय पर सीधा दे। 43. धन्य है वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। 44. मैं तुम से सच कहता हूं; वह उसे अपक्की सब संपत्ति पर सरदार ठहराएगा। 45. परन्तु यदि वह दास सोचने लगे, कि मेरा स्वामी आने में देर कर रहा है, और दासोंऔर दासिक्कों मारने पीटने और खाने पीने और पिय?ड़ होने लगे। 46. तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन कि वह उस की बाट जाहता न रहे, और ऐसी घड़ी जिसे वह जानता न हो आएगा, और उसे भारी ताड़ना देकर उसका भाग अविश्वासियोंके साय ठहराएगा। 47. और वह दास जो अपके स्वामी की इच्छा जानता या, और तैयार न रहा और न उस की इच्छा के अनुसार चला बहुत मार खाएगा। 48. परन्तु जो नहीं जानकर मार खाने के योग्य काम करे वह योड़ी मार खाएगा, इसलिथे जिसे बहुत दिया गया है, उस से बहुत मांगा जाएगा, और जिसे बहुत सौंपा गया है, उस से बहुत मांगेंगें।। 49. मैं पृय्वी पर आग लगाने आया हूं; और क्या चाहता हूं केवल यह कि अभी सुलग जाती ! 50. मुझे तो एक बपतिस्क़ा लेता है; और जब तक वह न हो ले तब तक मैं कैसी सकेती में रहूंगा 51. क्या तुम समझते हो कि मैं पृय्वी पर मिलाप कराने आया हूं मैं कहता हूं; नहीं, बरन अलग कराने आया हूं। 52. क्योंकि अब से एक घर में पांच जन आपस में विरोध रखेंगे, तीन दो से दो तीन से। 53. पिता पुत्र से, और पुत्र पिता से विरोध रखेगा; मां बेटी से, और बेटी मां से, सास बहू से, और बहू सास से विरोध रखेगी।। 54. और उस ने भीड़ से भी कहा, जब बादल को पच्छिम से उठते देखते हो, तो तुरन्त कहते हो, कि वर्षा होगी; और ऐसा ही होता है। 55. और जब दक्खिना चलती दखते हो तो कहते हो, कि लूह चलेगी, और ऐसा ही होता है। 56. हे कपटियों, तुम धरती और आकाश के रूप में भेद कर सकते हो, परन्तु इस युग के विषय में क्योंभेद करना नहीं जानते 57. और तुम आप ही निर्णय क्योंनहीं कर लेते, कि उचित क्या है 58. जब तू अपके मुद्दई के साय हाकिम के पास जा रहा है, तो मार्ग ही में उस से छूटने का यत्न कर ले ऐसा न हो, कि वह तुझे न्यायी के पास खींच ले जाए, और न्यायी तुझे प्यादे को सौंपे और प्यादा तुझे बन्दीगृह में डाल दे। 59. मैं तुम से कहता हूं, कि जब तक तू दमड़ी दमड़ी भर न देगा तब तक वहां से छूटने न पाएगा।।
Chapter 13
1. उस समय कुछ लोग आ पहुंचे, और उस से उन गलीलियोंकी चर्चा करने लगे, जिन का लोहू पीलातुस ने उन ही के बलिदानोंके साय मिलाया या। 2. यह सुन उस ने उन से उत्तर में यह कहा, क्या तुम समझते हो, कि थे गलीली, और सब गलीलियोंसे पापी थे कि उन पर ऐसी विपत्ति पड़ी 3. मैं तुम से कहता हूं, कि नहीं; परन्तु यदि तुम मन न फिराओगे तो तुम सब भी इसी रीति से नाश होगे। 4. या क्या तुम समझते हो, कि वे अठारह जन जिन पर शीलोह का गुम्मट गिरा, और वे दब कर मर गए: यरूशलेम के और सब रहनेवालोंसे अधिक अपराधी थे 5. मैं तुम से कहता हूं, कि नहीं; परन्तु यदि तुम मन न फिराओगे तो तुम भी सब इसी रीति से नाश होगे। 6. फिर उस ने यह दृष्टान्त भी कहा, कि किसी की अंगूर की बारी में एक अंजीर का पेड़ लगा हुआ या: वह उस में फल ढूंढ़ने आया, परन्तु न पाया। 7. तब उस ने बारी के रखवाले से कहा, देख तीन वर्ष से मैं इस अंजीर के पेड़ में फल ढूंढ़ने आता हूं, परन्तु नहीं पाता, इसे काट डाल कि यह भूमि को भी क्योंरोके रहे। 8. उस ने उस को उत्तर दिया, कि हे स्वामी, इसे इस वर्ष तो और रहने दे; कि मैं इस के चारो ओर खोदकर खाद डालूं। 9. सो आगे को फले तो भला, नहीं तो उसे काट डालना। 10. सब्त के दिन वह एक आराधनालय में उपकेश कर रहा या।। 11. और देखो, एक स्त्री यी, जिसे अठारह वर्ष से एक र्दुबल करनेवाली दुष्टात्क़ा लगी यी, और वह कुबड़ी हो गई यी, और किसी रीति से सीधी नहीं हो सकती यी। 12. यीशु ने उसे देखकर बुलाया, और कहा हे नारी, तू अपक्की र्दुबलता से छूट गई। 13. तब उस ने उस पर हाथ रखे, और वह तुरन्त सीधी हो गई, और परमेश्वर की बड़ाई करने लगी। 14. इसलिथे कि यीशु ने सब्त के दिन उसे अच्छा किया या, आराधनालय का सरदार िरिसयाकर लोगोंसे कहने लगा, छ: दिन हैं, जिन में काम करना चाहिए, सो उन ही दिनोंमें आकर चंगे होओ; परन्तु सब्त के दिन में नहीं। 15. यह सुन कर प्रभु ने उत्तर देकर कहा; हे कपटियों, क्या सब्त के दिन तुम में से हर एक अपके बैल या गदहे को यान से खोलकर पानी पिलाने नहीं ले जाता 16. और क्या उचित न या, कि यह स्त्री जो इब्राहीम की बेटी है जिसे शैतान ने अठारह वर्ष से बान्ध रखा या, सब्त के दिन इस बन्धन से छुड़ाई जाती 17. जब उस ने थे बातें कहीं, तो उसके सब विरोधी लज्ज़ित हो गए, और सारी भीड़ उन महिमा के कामोंसे जो वह करता या, आनन्दित हुई।। 18. फिर उस ने कहा, परमेश्वर का राज्य किस के समान है और मैं उस की उपमा किस से दूं 19. वह राई के एक दाने के समान है, जिसे किसी मनुष्य ने लेकर अपक्की बारी में बोया: और वह बढ़कर पेड़ हो गया; और आकाश के पझियोंने उस की डालियोंपर बसेरा किया। 20. उस ने फिर कहा; मैं परमेश्वर के राज्य कि उपमा किस से दूं 21. वह खमीर के समान है, जिस को किसी स्त्री ने लेकर तीन पकेरी आटे में मिलाया, और होते होते सब आटा खमीर हो गया।। 22. वह नगर नगर, और गांव गांव होकर उपकेश करता हुआ यरूशलेम की ओर जा रहा या। 23. और किसी ने उस से पूछा; हे प्रभु, क्या उद्धार पानेवाले योड़े हैं 24. उस ने उन से कहा; सकेत द्वार से प्रवेश करने का यत्न करो, क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि बहुतेरे प्रवेश करना चाहेंगे, और न कर सकेंगे। 25. जब घर का स्वामी उठकर द्वार बन्द कर चुका हो, और तुम बाहर खड़े हुए द्वार खटखटाकर कहने लगो, हे प्रभु, हमारे लिथे खोल दे, और वह उत्तर दे कि मैं तुम्हें नहीं जानता, तुम कहां के हो 26. तब तुम कहने लगोगे, कि हम ने तेरे साम्हने खाया पीया और तू ने हमारे बजारोंमें उपकेश किया। 27. परन्तु वह कहेगा, मैं तुम से कहता हूं, मैं नहीं जानता तुम कहां के हो, हे कुकर्म करनेवालो, तुम सब मुझ से दुर हो। 28. वहां रोना और दांत पीसना होगा: जब तुम इब्राहीम और इसहाक और याकूब और सब भविष्यद्वक्ताओं को परमेश्वर के राज्य में बैठे, और अपके आप को बाहर निकाले हुए देखोगे। 29. और पूर्व और पच्छिम; उत्तर और दक्खिन से लोग आकर परमेश्वर के राज्य के भोज में भागी होंगे। 30. और देखो, कितने पिछले हैं वे प्रयम होंगे, और कितने जो प्रयम हैं, वे पिछले होंगे।। 31. उसी घड़ी कितने फरीसियो ने आकर उस से कहा, यहां से निकलकर चला जा; क्योंकि हेरोदेस तुझे मार डालना चाहता है। 32. उस ने उन से कहा; जाकर उस लोमड़ी से कह दो, कि देख मैं आज और कल दुष्टात्क़ाओं को निकालता और बिमारोंको चंगा करता हूं और तीसरे दिन पूरा करूंगा। 33. तौभी मुझे आज और कल और परसोंचलना अवश्य है, क्योंकि हो नही सकता कि कोई भविष्यद्वक्ता यरूशलेम के बाहर मारा जाए। 34. हे यरूशलेम ! हे यरूशलेम ! तू जो भविष्यद्वक्ताओं को मार डालती है, और जो तेरे पास भेजे गए उन्हें पत्यरवाह करती है; कितनी बार मैं ने यह चाहा, कि जैसे मुर्गी अपके बच्चोंको अपके पंखो के नीचे इकट्ठे करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकोंको इकट्ठे करूं, पर तुम ने यह न चाहा। 35. देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे लिथे उजाड़ छोड़ा जाता है, और मैं तुम से कहता हूं; जब तक तुम ने कहोगे, कि धन्य है वह, जो प्रभु के नाम से आता है, तब तक तुम मुझे फिर कभी न देखोगे।।
Chapter 14
1. फिर वह सब्त के दिन फरीसियोंके सरदारोंमें से किसी के घर में रोटी खाने गया: और वे उस की घात में थे। 2. और देखो, एक मनुष्य उसके साम्हने या, जिसे जलन्धर का रोग या। 3. इस पर यीशु ने व्यवस्यापकोंऔर फरीसिक्कों कहा; क्या सब्त के दिन अच्छा करना उचित है, कि नहीं परन्तु वे चुपचाप रहे। 4. तब उस ने उसे हाथ लगा कर चंगा किया, और जाने दिया। 5. और उन से कहा; कि तुम में से ऐसा कौन है, जिस का गदहा या बैल कुएं में गिर जाए और वह सब्त के दिन उसे तुरन्त बाहर न निकाल ले 6. वे इन बातोंका कुछ उत्तर न दे सके।। 7. जब उस ने देखा, कि नेवताहारी लोग क्योंकर मुख्य मुख्य जगहें चुन लेते हैं तो एक दृष्टान्त देकर उन से कहा। 8. जब कोई तुझे ब्याह में बुलाए, तो मुख्य जगह में न बैठना, कहीं ऐसा न हो, कि उस ने तुझ से भी किसी बड़े को नेवता दिया हो। 9. और जिस ने तुझे और उसे दोनोंको नेवता दिया है: आकर तुझ से कहे, कि इस को जगह दे, और तब तुझे लज्ज़ित होकर सब से नीची जगह में बैठना पके। 10. पर जब तू बुलाया जाए, तो सब से नीची जगह जा बैठ, कि जब वह, जिस ने तुझे नेवता दिया है आए, तो तुझ से कहे कि हे मित्र, आगे बढ़कर बैठ; तब तेरे साय बैठनेवालोंके साम्हने तेरी बड़ाई होगी। 11. और जो कोई अपके आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो कोई अपके आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।। 12. तब उस ने अपके नेवता देनेवाले से भी कहा, जब तू दिन का या रात का भोज करे, तो अपके मित्रोंया भाइयोंया कुटुम्बियोंया धनवान पड़ोसिक्कों न बुला, कहीं ऐसा न हो, कि वे भी तुझे नेवता दें, और तेरा बदला हो जाए। 13. परन्तु जब तू भोज करे, तो कंगालों, टुण्डों, लंगड़ोंऔर अन्धोंको बुला। 14. तब तू धन्य होगा, क्योंकि उन के पास तुझे बदला देने को कुछ नहीं, परन्तु तुझे धमिर्योंके जी उठने पर इस का प्रतिफल मिलेगा। 15. उसके साय भोजन करनेवालोंमें से एक ने थे बातें सुनकर उस से कहा, धन्य है वह, जो परमेश्वर के राज्य में रोटी खाएगाा। 16. उस ने उस से कहा; किसी मनुष्य ने बड़ी जेवनार की और बहुतोंको बुलाया। 17. जब भोजन तैयार हो गया, तो उस ने अपके दास के हाथ नेवतहारियोंको कहला भेजा, कि आओ; अब भोजन तैयार है। 18. पर वे सब के सब झमा मांगने लगे, पहिले ने उस से कहा, मैं ने खेत मोल लिया है; और अवश्य है कि उसे देखूं: मैं तुझ से बिनती करता हूं, मुझे झमा करा दे। 19. दूसरे ने कहा, मैं ने पांच जोड़े बैल मोल लिए हैं: और उन्हें परखने जाता हूं : मैं तुझ से बिनती करता हूं, मुझे झमा करा दे। 20. एक और ने कहा; मै ने ब्याह किया है, इसलिथे मैं नहीं आ सकता। 21. उस दास ने आकर अपके स्वामी को थे बातें कह सुनाईं, तब घर के स्वामी ने क्रोध में आकर अपके दास से कहा, नगर के बाजारोंऔर गलियोंमें तुरन्त जाकर कंगालों, टुण्डों, लंगड़ोंऔर अन्धोंको यहां ले आओ। 22. दास ने फिर कहा; हे स्वामी, जैसे तू ने कहा या, वैसे ही किया गया है; फिर भी जगह है। 23. स्वामी ने दास से कहा, सड़कोंपर और बाड़ोंकी ओर जाकर लोगोंको बरबस ले ही आ ताकि मेरा घर भर जाए। 24. क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि उन नेवते हुओं में से कोई मेरी जेवनार को न चखेगा। 25. और जब बड़ी भीड़ उसके साय जा रही यी, तो उस ने पीछे फिरकर उन से कहा। 26. यदि कोई मेरे पास आए, और अपके पिता और माता और पत्नी और लड़केबालोंऔर भाइयोंऔर बहिनोंबरन अपके प्राण को भी अप्रिय न जाने, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता। 27. और जो कोई अपना क्रूस न उठाए; और मेरे पीछे न आए; वह भी मेरा चेला नहीं हो सकता। 28. तुम में से कौन है कि गढ़ बनाना चाहता हो, और पहिले बैठकर खर्च न जोड़े, कि पूरा करने की बिसात मेरे पास है कि नहीं 29. कहीं ऐसा न हो, कि जब नेव डालकर तैयार न कर सके, तो सब देखनेवाले यह कहकर उसे ठट्ठोंमें उड़ाने लगें। 30. कि यह मनुष्य बनाने तो लगा, पर तैयार न कर सका 31. या कौन ऐसा राजा है, कि दूसरे राजा से युद्ध करने जाता हो, और पहिले बैठकर विचार न कर ले कि जो बीस हजार लेकर उसका साम्हना कर सकता हूं, कि नहीं 32. नहीं तो उसके दूर रहते ही, वह दूतोंको भेजकर मिलाप करना चाहेगा। 33. इसी रीति से तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता। 34. नमक तो अच्छा है, परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह किस वस्तु से स्वादिष्ट किया जाएगा। 35. वह न तो भूमि के और न खाद के लिथे काम में आता है: उसे तो लोग बाहर फेंक देते हैं: जिस के सुनने के कान होंवह सुन ले।।
Chapter 15
1. सब चुंगी लेनेवाले और पापी उसके पास आया करते थे ताकि उस की सुनें। 2. और फरीसी और शास्त्री कुडकुडाकर कहने लगे, कि यह तो पापियोंसे मिलता है और उन के साय खाता भी है।। 3. तब उस ने उन से यह दृष्टान्त कहा। 4. तुम में से कौन है जिस की सौ भेड़ें हों, और उन में से एक खो जाए तो निन्नानवे को जंगल में छोड़कर, उस खोई हुई को जब तक मिल न जाए खोजता न रहे 5. और जब मिल जाती है, तब वह बड़े आनन्द से उसे कांधे पर उठा लेता है। 6. और घर में आकर मित्रोंऔर पड़ोसिक्कों इकट्ठे करके कहता है, मेरे साय आनन्द करो, क्योंकि मेरी खोई हुई भेड़ मिल गई है। 7. मैं तुम से कहता हूं; कि इसी रीति से एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में भी स्वर्ग में इतना ही आनन्द होगा, जितना कि निन्नानवे ऐसे धमिर्योंके विषय नहीं होता, जिन्हें मन फिराने की आवश्यकता नहीं।। 8. या कौन ऐसी स्त्री होगी, जिस के पास दस सिक्के हों, और उन में से एक खो जाए; तो वह दीया बारकर और घर फाड़ बुहारकर जब तक मिल न जाए, जी लगाकर खोजती न रहे 9. और जब मिल जाता है, तो वह अपके सखियोंऔर पड़ोसिनियोंको इकट्ठी करके कहती है, कि मेरे साय आनन्द करो, क्योंकि मेरा खोया हुआ सि?ा मिल गया है। 10. मैं तुम से कहता हूं; कि इसी रीति से एक मन फिरानेवाले पापी के विषय में परमेश्वर के स्वर्गदूतोंके साम्हने आनन्द होता है।। 11. फिर उस ने कहा, किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। 12. उन में से छुटके ने पिता से कहा कि हे पिता संपत्ति में से जो भाग मेरा हो, वह मुझे दे दीजिए। उस ने उन को अपक्की संपत्ति बांट दी। 13. और बहुत दिन न बीते थे कि छुटका पुत्र सब कुछ इकट्ठा करके एक दूर देश को चला गया और वहां कुकर्म में अपक्की संपत्ति उड़ा दी। 14. जब वह सब कुछ खर्च कर चुका, तो उस देश में बड़ा अकाल पड़ा, और वह कंगाल हो गया। 15. और वह उस देश के निवासियोंमें से एक के यहंा जो पड़ा : उस ने उसे अपके खेतोंमें सूअर चराने के लिथे भेजा। 16. और वह चाहता या, कि उन फिलयोंसे जिन्हें सूअर खाते थे अपना पेट भरे; और उसे कोई कुछ नहीं देता या। 17. जब वह अपके आपे में आया, तब कहने लगा, कि मेरे पिता के कितने ही मजदूरोंको भोजन से अधिक रोटी मिलती है, और मैं यहां भूखा मर रहां हूं। 18. मैं अब उठकर अपके पिता के पास जाऊंगा और उस से कहूंगा कि पिता जी मैं ने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है। 19. अब इस योग्य नहीं रहा कि तेरा पुत्र कहलाऊं, मुझे अपके एक मजदूर की नाईं रख ले। 20. तब वह उठकर, अपके पिता के पास चला: वह अभी दूर ही या, कि उसके पिता ने उसे देखकर तरस खाया, और दौड़कर उसे गले लगाया, और बहुत चूमा। 21. पुत्र न उस से कहा; पिता जी, मैं ने स्वर्ग के विरोध में और तेरी दृष्टि में पाप किया है; और अब इस योग्य नहीं रहा, कि तेरा पुत्र कहलाऊं। 22. परन्तु पिता ने अपके दासोंसे कहा; फट अच्छे से अच्छा वस्त्र निकालकर उसे पहिनाओ, और उसके हाथ में अंगूठी, और पांवोंमें जूतियां पहिनाओ। 23. और पला हुआ बछड़ा लाकर मारो ताकि हम खांए और आनन्द मनावें। 24. क्योंकि मेरा यह पुत्र मर गया या, फिर जी गया है : खो गय या, अब मिल गया है: और वे आनन्द करने लगे। 25. परन्तु उसका जेठा पुत्र खेत में या : और जब वह आते हुए घर के निकट पहुंचा, तो उस ने गाने बजाने और नाचने का शब्द सुना। 26. और उस ने एक दास को बुलाकर पूछा; यह क्या हो रहा है 27. उस ने उस से कहा, तेरा भाई आया है; और तेरे पिता ने पला हुआ बछड़ा कटवाया है, इसलिथे कि उसे भला चंगा पाया है। 28. यह सुनकर वह क्रोध से भर गया, और भीतर जाना न चाहा : परन्तु उसका पिता बाहर आकर उसे मनाने लगा। 29. उस ने पिता को उत्तर दिया, कि देख; मैं इतने वर्ष से तरी सेवा कर रहा हूं, और कभी भी तेरी आज्ञा नहीं टाली, तौभी तू ने मुझे कभी एक बकरी का बच्चा भी न दिया, कि मैं अपके मित्रोंके साय आनन्द करता। 30. परन्तु जब तेरा यह पुत्र, जिस ने तेरी संपत्ति वेश्याओं में उड़ा दी है, आया, तो उसके लिथे तू ने पला हुआ बछड़ा कटवाया। 31. उस ने उस से कहा; पुत्र, तू सर्वदा मेरे साय है; और जो कुछ मेरा है वह सब तेरा ही है। 32. परन्तु अब आनन्द करना और मगन होना चाहिए क्योंकि यह तेरा भाई मर गया या फिर जी गया है; खो गया या, अब मिल गया है।।
Chapter 16
1. फिर उस ने चेलोंसे भी कहा; किसी धनवान का एक भण्डारी या, और लोगोंने उसके साम्हने उस पर यह दोष लगाया कि यह तेरी सब संपत्ति उड़ाए देता है। 2. सो उस ने उसे बुलाकर कहा, यह क्या है जो मै तेरे विषय में सुन रहा हूं अपके भण्डारीपन का लेखा दे; क्योंकि तू आगे को भण्डारी नहीं रह सकता। 3. तब भण्डारी सोचने लगा, कि अब मैं क्या करूं क्योंकि मेरा स्वामी अब भण्डारी का काम मुझ से छीन ले रहा है: मिट्टी तो मुझ से खोदी नहीं जाती: और भीख मांगने से मुझे लज्ज़ा आती है। 4. मैं समण् गया, कि क्या करूंगा: ताकि जब मैं भण्डारी के काम से छुड़ाया जाऊं तो लोग मुझे अपके घरोंमें ले लें। 5. और उस ने अपके स्वामी के देनदारो में से एक एक को बुलाकर पहिले से पूछा, कि तुझ पर मेरे स्वामी का क्या आता है 6. उस ने कहा, सौ मन तेल; तब उस ने उस से कहा, कि अपक्की खाता-बही ले और बैठकर तुरन्त पचास लिख दे। 7. फिर दूसरे से पूछा; तुझ पर क्या आता है उस ने कहा, सौ मन गेहूं; तब उस ने उस से कहा; अपक्की खाता-बही लेकर अस्सी लिख दे। 8. स्वामी ने उस अधर्मी भण्डारी को सराहा, कि उस ने चतुराई से काम किया है; क्योंकि इस संसार के लोग अपके समय के लोगोंकी रीति व्यवहारोंमें ज्योति के लोगोंसे अधिक चतुर हैं। 9. और मैं तुम से कहता हूं, कि अधर्मं के धन से अपके लिथे मित्र बना लो; ताकि जब वह जाता रहे, तो वे तुम्हें अनन्त निवासोंमें ले लें। 10. जो योड़े से योड़े में सच्चा है, वह बहुत में भी सच्चा है: और जो योड़े से योड़े में अधर्मी है, वह बहुत में भी अधर्मी है। 11. इसलिथे जब तुम अधर्म के धन में सच्चे न ठहरे, तो सच्चा तुम्हें कौन सौंपेगा। 12. और यदि तुम पराथे धन में सच्चे न ठहरे, तो जो तुम्हारा है, उसे तुम्हें कौन देगा 13. कोई दास दो स्वामियोंकी सेवा नहीं कर सकता: क्योंकि वह तो एक से बैर और दूसरे से प्रेम रखेगा; या एक से मिल रहेगा और दूसरे को तुच्छ जानेगा: तुम परमेश्वर और धन दोनोंकी सेवा नहीं कर सकते।। 14. फरीसी जो लोभी थे, थे सब बातें सुनकर उसे ठट्ठोंमें उड़ाने लगे। 15. उस ने उन से कहा; तुम तो मनुष्योंके साम्हने अपके आप को धर्मी ठहराते हो: परन्तु परमेश्वर तुम्हारे मन को जानता है, क्योंकि जो वस्तु मनुष्योंकी दृष्टि में महान है, वह परमेश्वर के निकट घृणित है। 16. व्यवस्या और भविष्यद्वक्ता यूहन्ना तक रहे, उस समय से परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाया जा रहा है, और हर कोई उस में प्रबलता से प्रवेश करता है। 17. आकाश और पृय्वी का टल जाना व्यवस्या के एक बिन्दु के मिट जाने से सहज है। 18. जो कोई अपक्की पत्नी को त्यागकर दूसरी से ब्याह करता है, वह व्यभिचार करता है, और जो कोई ऐसी त्यागी हुई स्त्री से ब्याह करता है, वह भी व्यभिचार करता है। 19. एक धनवान मनुष्य या जो बैंजनी कपके और मलमल पहिनता और प्रति दिन सुख-विलास और धूम-धाम के साय रहता या। 20. और लाजर नाम का एक कंगाल घावोंसे भरा हुआ उस की डेवढ़ी पर छोड़ दिया जाता या। 21. और वह चाहता या, कि धनवान की मेज पर की जूठन से अपना पेट भरे; बरन कुत्ते भी आकर उसके घावोंको चाटते थे। 22. और ऐसा हुआ कि वह कंगाल मर गया, और स्वर्गदूतोंने उसे लेकर इब्राहीम की गोद में पहुंचाया; और वह धनवान भी मरा; और गाड़ा गया। 23. और अधोलोक में उस ने पीड़ा में पके हुए अपक्की आंखें उठाई, और दूर से इब्राहीम की गोद में लाजर को देखा। 24. और उस ने पुकार कर कहा, हे पिता इब्राहीम, मुझ पर दय करके लाजर को भेज दे, ताकि वह अपक्की उंगुली का सिरा पानी में भिगोकर मेरी जीभ को ठंडी करे, क्योंकि मैं इस ज्वाला में तड़प रहा हूं। 25. परन्तु इब्राहीम ने कहा; हे पुत्र स्क़रण कर, कि तू अपके जीवन में अच्छी वस्तुएं ले चुका है, और वैसे ही लाजर बुरी वस्तुएं: परन्तु अब वह यहां शान्ति पा रहा है, और तू तड़प रहा है। 26. और इन सब बातोंको छोड़ हमारे और तुम्हारे बीच एक भारी गड़हा ठहराया गया है कि जो यहां से उस पार तुम्हारे पास जाना चाहें, वे न जा सकें, और न कोई वहां से इस पार हमारे पास आ सके। 27. उस ने कहा; तो हे पिता मैं तुझ से बिनती करता हूं, कि तू उसे मेरे पिता के घर भेज। 28. क्योंकि मेरे पांच भाई हैं, वह उन के साम्हने इन बातोंकी गवाही दे, ऐसा न हो कि वे भी इस पीड़ा की जगह में आएं। 29. इब्राहीम ने उस से कहा, उन के पास तो मूसा और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकें हैं, वे उन की सुनें। 30. उस ने कहा; नहीं, हे पिता इब्राहीम; पर यदि कोई मरे हुओं में से उन के पास जाए, तो वे मन फिराएंगे। 31. उस ने उस से कहा, कि जब वे मूसा और भविष्यद्वक्ताओं की नहीं सुनते, तो यदि मरे हुओं में से कोई भी जी उठे तौभी उस की नहीं मानेंगे।।
Chapter 17
1. फिर उस ने अपके चेलोंसे कहा; हो नहीं सकता कि ठोकरें न लगें, परन्तु हाथ, उस मनुष्य पर जिस के कारण वे आती है! 2. जो इन छोटोंमें से किसी एक को ठोकर खिलाता है, उसके लिथे यह भला होता, कि चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता, और वह समुद्र में डाल दिया जाता। 3. सचेत रहो; यदि तेरा भाई अपराध करे तो उसे समझा, और यदि पछताए तो उसे झमा कर। 4. यदि दिन भर में वह सात बार तेरा अपराध करे और सातोंबार तेरे पास फिर आकर कहे, कि मैं पछताता हूं, तो उसे झमा कर।। 5. तब प्रेरितोंने प्रभु से कहा, हमारा विश्वास बढ़ा। 6. प्रभु ने कहा; कि यदि तुम को राई के दाने के बराबर भी विश्वास होता, तो तुम इस तूत के पेड़ से कहते कि जड़ से उखड़कर समुद्र में लग जा, तो वह तुम्हारी मान लेता। 7. पर तुम में से ऐसा कौन है, जिस का दास हल जोतता, या भेंड़ें चराता हो, और जब वह खेत से आए, तो उस से कहे तुरन्त आकर भोजन करने बैठ 8. और यह न कहे, कि मेरा खाना तैयार कर: और जब तक मैं खाऊं-पीऊं तब तक कमर बान्धकर मेरी सेवा कर; इस के बाद तू भी खा पी लेना। 9. क्या वह उस दास का निहोरा मानेगा, कि उस ने वे ही काम किए जिस की आज्ञा दी गई यी 10. इसी रीति से तुम भी, जब उन सब कामोंको कर चुको जिस की आज्ञा तुम्हें दी गई यी, तो कहा, हम निकम्मे दास हैं; कि जो हमें करना चाहिए या वही किया है।। 11. और ऐसा हुआ कि वह यरूशलेम को जाते हुए सामरिया और गलील के बीच से होकर जो रहा या। 12. और किसी गांव में प्रवेश करते समय उसे दस कोढ़ी मिले। 13. और उन्होंने दूर खड़े होकर, ऊंचे शब्द से कहा, हे यीशु, हे स्वामी, हम पर दया कर। 14. उस ने उन्हें देखकर कहा, जाओ; और अपके तई याजकोंको दिखाओ; और जाते ही जाते वे शुद्ध हो गए। 15. तब उन में से एक यह देखकर कि मैं चंगा हो गया हूं, ऊंचे शब्द से परमेश्वर की बड़ाई करता हुआ लौटा। 16. और यीशु के पांवोंपर मुंह के बल गिरकर, उसका धन्यवाद करने लगा; और वह सामरी या। 17. इस पर यीशु ने कहा, क्या दसोंशुद्ध न हुए तो फिर वे नौ कहां हैं 18. क्या इस परदेशी को छोड़ कोई और न निकला, जो परमेश्वर की बड़ाई करता 19. तब उस ने उस से कहा; उठकर चला जा; तेरे विश्वास ने तुझे चंगा किया है।। 20. जब फरीसियोंने उस से पूछा, कि परमेश्वर का राज्य कब आएगा तो उस ने उन को उत्तर दिया, कि पकेश्वर का राज्य प्रगट रूप में नहीं आता। 21. और लोग यह न कहेंगे, कि देखो, यहां है, या वहां है, क्योंकि देखो, परमेश्वर का राज्य तुम्हारे बीच में है।। 22. और उस ने चेलोंसे कहा; वे दिन आएंगे, जिन में तुम मनुष्य के पुत्र के दिनोंमें से एक दिन को देखना चाहोगे, और नहीं देखने पाओगे। 23. लोग तुम से कहेंगे, देखो, वहां है, या देखो यहां है; परन्तु तुम चले न जाना और न उन के पीछे हो लेना। 24. क्योंकि जैसे बिजली आकाश की एक ओर से कौन्धकर आकाश की दूसरी ओर चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपके दिन में प्रगट होगा। 25. परन्तु पहिले अवश्य है, कि वह बहुत दुख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएं। 26. जैसा नूह के दिनोंमें हुआ या, वैसा ही मनुष्य के पुत्र के दिनोंमें भी होगा। 27. जिस दिन तक नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उन में ब्याह-शादी होती थेी; तब जल-प्रलय ने आकर उन सब को नाश किया। 28. और जैसा लूत के दिनोंमें हुआ या, कि लोग खाते-पीते लेन-देन करते, पेड़ लगाते और घर बनाते थे। 29. परन्तु जिस दिन लूत सदोम से निकला, उस दिन आग और गन्धक आकाश से बरसी और सब को नाश कर दिया। 30. मनुष्य के पुत्र के प्रगट होने के दिन भी ऐसा ही होगा। 31. उस दिन जो कोठे पर हो; और उसका सामान घर में हो, वह उसे लेने को न उतरे, और वैसे ही जो खेत में हो वह पीछे न लौटे। 32. लूत की पत्नी को स्क़रण रखो। 33. जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे वह उसे खोएगा, और जो कोई उसे खोए वह उसे जीवित रखेगा। 34. मैं तुम से कहता हूं, उस रात को मनुष्य एक खाट पर होंगे, एक ले लिया जाएगा, और दूसरा छोड़ दिया जाएगा। 35. दो स्त्रियां एक साय चक्की पीसती होंगी, एक ले ली जाएगी, और दूसरी छोड़ दी जाएगी। 36. दो जन खेत में होंगे एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ा जाएगा। 37. यह सुन उन्होंने उस से पूछा, हे प्रभु यह कहां होगा उस ने उन से कहा, जहां लोय हैं, वहां गिद्ध इकट्ठे होंगे।।
Chapter 18
1. फिर उस ने इस के विषय में कि नित्य प्रार्यना करना और हियाव न छोड़ना चाहिए उन से यह दृष्टान्त कहा। 2. कि किसी नगर में एक न्यायी रहता या; जो न परमेश्वर से डरता य और न किसी मनुष्य की परवाह करता या। 3. और उसी नगर में एक विधवा भी रहती यी: जो उसके पास आ आकर कहा करती यी, कि मेरा न्याय चुकाकर मुझे मुद्दई से बचा। 4. उस ने कितने समय तक तो न माना परन्तु अन्त में मन में विचारकर कहा, यद्यपि मैं न परमेश्वर से डरता, और न मनुष्योंकी कुछ परवाह करता हूं। 5. तौभी यह विधवा मुझे सताती रहती है, इसलिथे मैं उसका न्याय चुकाऊंगा कहीं ऐसा न हो कि घड़ी घड़ी आकर अन्त को मेरा नाक में दम करे। 6. प्रभु ने कहा, सुनो, कि यह अधर्मी न्यायी क्या कहता है 7. सो क्या परमेश्र अपके चुने हुओं का न्याय न चुकाएगा, जो रात-दिन उस की दुहाई देते रहते; और क्या वह उन के विषय में देन करेगा 8. मैं तुम से कहता हूं; वह तुरन्त उन का न्याय चुकाएगा; तौभी मनुष्य का पुत्र जब आएगा, तो क्या वह पृय्वी पर विश्वास पाएगा 9. और उस ने कितनो से जो अपके ऊपर भरोसा रखते थे, कि हम धर्मी हैं, और औरोंको तुच्छ जानते थे, यह दृष्टान्त कहा। 10. कि दो मनुष्य मन्दिर में प्रार्यना करने के लिथे गए; एक फरीसी या और दूसरा चुंगी लेनेवाला। 11. फरीसी खड़ा होकर अपके मन में योंप्रार्यना करने लगा, कि हे परमेश्वर, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, कि मैं और मनुष्योंकी नाई अन्धेर करनेवाला, अन्यायी और व्यभिचारी नहीं, और न इस चुंगी लेनेवाले के समान हूं। 12. मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूं; मैं अपक्की सब कमाई का दसवां अंश भी देता हूं। 13. परन्तु चुंगी लेनेवाले ने दूर खड़े होकर, स्वर्ग की ओर आंख उठाना भी न चाहा, बरन अपक्की छाती पीट-पीटकर कहा; हे परमेश्वर मुझ पापी पर दया कर। 14. मैं तुम से कहता हूं, कि वह दूसरा नहीं; परन्तु यही मनुष्य धर्मी ठहराया जाकर अपके घर गया; क्योंकि जो कोई अपके आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो अपके आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।। 15. फिर लोग अपके बच्चोंको भी उसके पास लाने लगे, कि वह उन पर हाथ रखे; और चेलोंने देखकर उन्हें डांटा। 16. यीशु न बच्चोंको पास बुलाकर कहा, बालकोंको मेरे पास आने दो, और उन्हें मना न करो: क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसोंकी का है। 17. मैं तुम से सच कहता हूं, कि जो कोई परमश्ेवर के राज्य को बालक की नाई ग्रहण न करेगा वह उस में कभी प्रवेश करने न पाएगा।। 18. किसी सरदार ने उस से पूछा, हे उत्तम गुरू, अनन्तजीवन का अधिक्कारनेी होने के लिथे मैं क्या करूं 19. यीशु ने उस से कहा; तू मुझे उत्तम क्योंकहता है कोई उत्तम नहीं, केवल एक, अर्यात् परमेश्वर। 20. तू आज्ञाओं को तो जानता है, कि व्यभिचार न करना, फूठी गवाही न देना, अपके पिता और अपक्की माता का आदर करना। 21. उस ने कहा, मैं तो इन सब को लड़कपन ही से मानता आया हूं। 22. यह सुन, यीशु ने उस से कहा, तुझ में अब भी एक बात की घटी है, अपना सब कुछ बेचकर कंगालोंको बांट दे; और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले। 23. वह यह सुनकर बहुत उदास हुआ, क्योंकि वह बड़ा धनी या। 24. यीशु ने उसे देखकर कहा; धनवानोंका परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा किठन है 25. परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊंट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है। 26. और सुननेवालोंने कहा, तो फिर किस का उद्धार हो सकता है 27. उस ने कहा; जो मनुष्य से नहीं हो सकता, वह परमेश्वर से हो सकता है। 28. पतरस ने कहा; देख, हम तो घर बार छोड़कर तेरे पीछे हो लिथे हैं। 29. उस ने उन से कहा; मैं तुम से सच कहता हूं, कि ऐसा कोई नहीं जिस ने परमेश्वर के राज्य के लिथे घर या पत्नी या भाइयोंया माता पिता या लड़के-बालोंको छोड़ दिया हो। 30. और इस समय कई गुणा अधिक न पाए; और परलोक में अनन्त जीवन।। 31. फिर उस ने बारहोंको साय लेकर उन से कहा; देखो, हम यरूशलेम को जाते हैं, और जितनी बातें मनुष्य के पुत्र के लिथे भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा लिखी गई हैं वे सब पूरी होंगी। 32. क्योंकि वह अन्यजातियोंके हाथ में सौंपा जाएगा, और वे उसे ठट्ठोंमें उड़ाएंगे; और उसका अपमान करेंगे, और उस पर यूकेंगे। 33. और उसे कोड़े मारेंगे, और घात करेंगे, और वह तीसरे दिन जी उठेगा। 34. और उन्होंने इन बातोंमें से कोई बात न समझी: और यह बात उन में छिपी रही, और जो कहा गया या वह उन की समझ में न आया।। 35. जब वह यरीहो के निकट पहुंचा, तो एक अन्धा सड़क के किनारे बैठा हुआ भीख मांग रहा या। 36. और वह भीड़ के चलने की आहट सुनकर पूछने लगा, यह क्या हो रहा है 37. उन्होंने उस को बताया, कि यीशु नासरी जा रहा है। 38. तब उस ने पुकार के कहा, हे यीशु दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर। 39. जो आगे जाते थे, वे उसे डांटने लगे कि चुप रहे: परन्तु वह और भी चिल्लाने लगा, कि हे दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर। 40. तब यीशु ने खड़े होकर आज्ञा दी कि उसे मेरे पास लाओ, और जब वह निकट आया, तो उस ने उस से यह पूछा। 41. तू क्या चाहता है, कि मैं तेरे लिथे करूं उस ने कहा; हे प्रभु यह कि मैं देखने लगूं। 42. यीशु ने कहा; देखने लग, तेरे विश्वास ने तुझे अच्छा कर दिया है। 43. और वह तुरन्त देखने लगा; और परमेश्वर की बड़ाई करता हुआ उसके पीछे हो लिया, और सब लोगोंने देखकर परमेश्वर की स्तुति की।।
Chapter 19
1. वह यरीहो में प्रवेश करके जा रहा या। 2. और देखो, ज?ई नाम एक मनुष्य या जो चुंगी लेनेवालोंका सरदार और धनी या। 3. वह यीशु को देखना चाहता या कि वह कोन सा है परन्तु भीड़ के कारण देख न सकता या। क्योंकि वह नाटा या। 4. तब उस को देखने के लिथे वह आगे दौड़कर एक गूलर क पेड़ पर चढ़ गया, क्योंकि वह उसी मार्ग से जाने वाला या। 5. जब यीशु उस जगह पहुंचा, तो ऊपर दृष्टि कर के उस से कहा; हे ज?ई फट उतर आ; क्योंकि आज मुझे तेरे घर में रहना अवश्य है। 6. वह तुरन्त उतरकर आनन्द से उसे अपके घर को ले गया। 7. यह देखकर सब लोगे कुड़कुड़ाकर कहने लगे, वह तो एक पापी मनुष्य के यहां जा उतरा है। 8. ज?ई ने खड़े होकर प्रभु से कहा; हे प्रभु, देख मैं अपक्की आधी सम्पत्ति कंगालोंको देता हूं, और यदि किसी का कुछ भी अन्याय करके ले लिया है तो उसे चौगुना फेर देता हूं। 9. तब यीशु ने उस से कहा; आज इस घर में उद्धार आया है, इसलिथे कि यह भी इब्राहीम का एक पुत्र है। 10. क्योंकि मनुष्य का पुत्र खोए हुओं को ढूंढ़ने और उन का उद्धार करने आया है।। 11. जब वे थे बातें सुन रहे थे, तो उस ने एक दृष्टान्त कहा, इसलिथे कि वह यरूशलेम के निकट या, और वे समझते थे, कि परमेश्वर का राज्य अभी प्रगट हुआ चाहता है। 12. सो उस ने कहा, एक धनी मनुष्य दूर देश को चला ताकि राजपद पाकर फिर आए। 13. औश्र् उस ने अपके दासोंमें से दस को बुलाकर उन्हें दस मुहरें दीं, और उन से कहा, मेरे लौट आने तक लेन-देन करना। 14. परन्तु उसके नगर के रहनेवाले उस से बैर रखते थे, और उसके पीछे दूतोंके द्वारा कहला भेजा, कि हम नहीं चाहते, कि यह हम पर राज्य करे। 15. जब वह राजपद पाकर लौट आया, तो ऐसा हुआ कि उस ने अपके दासोंको जिन्हें रोकड़ दी यी, अपके पास बुलवाया ताकि मालूम करे कि उन्होंने लेन-देन से क्या क्या कमाया। 16. तब पहिले ने आकर कहा, हे स्वामी तेरे मोहर से दस और मोहरें कमाई हैं। 17. उस ने उस से कहा; धन्य हे उत्तम दास, तुझे धन्य है, तू बहुत ही योड़े में विश्वासी निकला अब दस नगरोंका अधिक्कारने रख। 18. दूसरे ने आकर कहा; हे स्वामी तेरी मोहर से पांच और मोहरें कमाई हैं। 19. उस ने कहा, कि तू भी पांच नगरोंपर हाकिम हो जा। 20. तीसरे ने आकर कहा; हे स्वामी देख, तेरी मोहर यह है, जिसे मैं ने अंगोछे में बान्ध रखी। 21. क्योंकि मैं तुझ से डरता या, इसलिथे कि तू कठोर मनुष्य है: जो तू ने नहीं रखा उसे उठा लेता है, और जो तू ने नहीं बोया, उसे काटता है। 22. उस ने उस से कहा; हे दुष्ट दास, मैं तेरे ही मुंह से तुझे दोषी ठहराता हूं: तू मुझे जानता या कि कठोर मनुष्य हूं, जो मैं ने नहीं रखा उसे उठा लेता, और जो मैं ने नहीं बोया, उसे काटता हूं। 23. तो तू ने मेरे रूपके कोठी में क्योंनहीं रख दिए, कि मैं आकर ब्याज समेत ले लेता 24. और जो लोग निकट खड़े थे, उस ने उन से कहा, वह मोहर उस से ले लो, और जिस के पास दस मोहरें हैं उसे दे दो। 25. (उन्होंने उस से कहा; हे स्वामी, उसके पास दस मोहरें तो हैं)। 26. मैं तुम से कहता हूं, कि जिस के पास है, उसे दिया जाएगा; और जिस के पास नहीं, उस से वह भी जो उसके पास है ले लिया जाएगा। 27. परन्तु मेरे उन बैरियोंको जो नहीं चाहते थे कि मैं उन पर राज्य करूं, उन को यहां लाकर मेरे सामने घात करो।। 28. थे बातें कहकर वह यरूशलेम की ओर उन के आगे आगे चला।। 29. और जब वह जैतून नाम पहाड़ पर बैतफगे और बैतनियाह के पास पहुंचा, तो उस ने अपके चेलोंमें से दो को यह कहके भेजा। 30. कि साम्हने के गांव में जाओ, और उस में पहुंचते ही एक गदही का बच्चा जिस पर कभी कोई सवार नहीं हुआ, बन्धा हुआ तुम्हें मिलेगा, उसे खोलकर लाओ। 31. और यदि कोई तुम से पूछे, कि क्योंखोलते हो, तो यह कह देना, कि प्रभु को इस का प्रयोजन है। 32. जो भेजे गए थे; उन्होंने जाकर जैसा उस ने उन से कहा या, वैसा ही पाया। 33. जब वे गदहे के बच्चे को खोल रहे थे, तो उसके मालिकोंने उन से पूछा; इस बच्चे को क्योंखोलते हो 34. उन्होंने कहा, प्रभु को इस का प्रयोजन है। 35. वे उस को यीशु के पास ले आए और अपके कपके उस बच्चे पर डालकर यीशु को उस पर सवार किया। 36. जब वह जा रहा या, तो वे अपके कपके मार्ग में बिछाते जाते थे। 37. और निकट आते हुए जब वह जैतून पहाड़ की ढलान पर पहुंचा, तो चेलोंकी सारी मण्डली उन सब सामर्य के कामोंके कारण जो उन्होंने देखे थे, आनन्दित होकर बड़े शब्द से परमेश्वर की स्तुति करने लगी। 38. कि धन्य है वह राजा, जो प्रभु के नाम से आता है; स्वर्ग में शान्ति और आकाश मण्डल में महिमा हो। 39. तब भीड़ में से कितने फरीसी उस से कहने लगे, हे गुरू अपके चेलोंको डांट। 40. उस ने उत्तर दिया, कि तुम में से कहता हूं, यदि थे चुप रहें, तो पत्यर चिल्ला उठेंगे।। 41. जब वह निकट आया तो नगर को देखकर उस पर रोया। 42. और कहा, क्या ही भला होता, कि तू; हां, तू ही, इसी दिन में कुशल की बातें जानता, परन्तु अब वे तेरी आंखोंसे छिप गई हैं। 43. क्योंकि वे दिन तुझ पर आएंगे कि तेरे बैरी मोर्चा बान्धकर तुझे घेर लेंगे, और चारोंओर से तुझे दबाएंगे। 44. और तुझे और तेरे बालकोंको जो तुझ में हैं, मिट्टी में मिलाएंगे, और तुझ में पत्यर पर पत्यर भी न छोड़ेंगे; क्योंकि तू ने वह अवसर जब तुझ पर कृपा दृष्टि की गई न पहिचाना।। 45. तब वह मन्दिर में जाकर बेचनेवालोंको बाहर निकालने लगा। 46. और उन से कहा, लिखा है; कि मेरा घर प्रार्यना का घर होगा: परन्तु तुम ने उसे डाकुओं की खोह बना दिया है।। 47. और वह प्रति दिन मन्दिर में उपकेश करता या: और महाथाजक और शास्त्री और लोागोंके रईस उसे नाश करने का अवसर ढूंढ़ते थे। 48. परन्तु कोई उपाय न निकाल सके; कि यह किस प्रकार करें क्योंकि सब लोग बड़ी चाह से उस की सुनते थे।
Chapter 20
1. एक दिन ऐसा हुआ कि जब वह मन्दिर में लोगोंको उपकेश देता और सुसमाचार सुना रहा या, तो महाथाजक और शास्त्री, पुरिनयोंके साय पास आकर खड़े हुए। 2. और कहने लगे, कि हमें बता, तू इन कामोंको किस अधिक्कारने से करता है, और वह कौन है, जिस ने तुझे यह अधिक्कारने दिया है 3. उस ने उन को उत्तर दिया, कि मैं भी तुम में से एक बात पूछता हूं; मुझे बताओ। 4. यूहन्ना का बपतिस्क़ा स्वर्ग की ओर से या या मनुष्योंकी ओर से या 5. तब वे आपस में कहने लगे, कि यदि हम कहें स्वर्ग की ओर से, तो वह कहेगा; फिर तुम ने उस की प्रतीति क्योंन की 6. और यदि हम कहें, मनुष्योंकी ओर से, तो सब लोग हमें पत्यरवाह करेंगे, क्योंकि वे सचमुच जानते हैं, कि यूहन्ना भविष्यद्वकता या। 7. सो उन्होंने उत्तर दिया, हम नहीं जानते, कि वह किस की ओर से या। 8. यीशु ने उन से कहा, तो मैं भी तुम को नहीं बताता, कि मैं थे काम किस अधिक्कारने से करता हूं। 9. तब वह लोगोंसे यह दृष्टान्त कहने लगा, कि किसी मनुष्य ने दाख की बारी लगाई, और किसानोंको उसका ठेका दे दिया और बहुत दिनोंके लिथे पकेदश चला गया। 10. समय पर उस ने किसानोंके पास एक दास को भेजा, कि वे दाख की बारी के कुछ फलोंका भाग उसे दें, पर किसानोंने उसे पीटकर छूछे हाथ लौटा दिया। 11. फिर उस ने एक और दास को भेजा, ओर उन्होंने उसे भी पीटकर और उसका अपमान करके छूछे हाथ लौटा दिया। 12. फिर उस ने तीसरा भेजा, और उन्होंने उसे भी घायल करके निकाल दिया। 13. तब दाख की बारी के स्वामी ने कहा, मैं क्या करूं मैं अपके प्रिय पुत्र को भेजूंगा क्या जाने वे उसका आदर करें। 14. जब किसानोंने उसे देखा तो आपस में विचार करने लगे, कि यह तो वारिस है; आओ, हम उसे मार डालें, कि मिरास हमारी हो जाए। 15. और उन्होंने उसे दाख की बारी से बाहर निकालकर मार डाला: इसलिथे दाख की बारी का स्वामी उन के साय क्या करेगा 16. वह आकर उन किसानोंको नाश करेगा, और दाख की बारी औरोंको सौंपेगा : यह सुनकर उन्होंने कहा, परमेश्वर ऐसा न करे। 17. उस ने उन की ओर देखकर कहा; फिर यह क्या, लिखा है, कि जिस पत्यर को राजमिस्त्रियोंने निकम्मा ठहराया या, वही कोने का सिरा हो गया। 18. जो कोई उस पत्यर पर गिरेगा वह चकनाचूर हो जाएगा, और जिस पर वह गिरेगा, उसे वह पीस डालेगा।। 19. उसी घड़ी शास्त्रियोंऔर महाथाजकोंने उसे पकड़ना चाहा, क्योंकि समझ गए, कि उस ने हम पर यह दृष्टान्त कहा, परन्तु वे लोगोंसे डरे। 20. और वे उस की ताक में लगे और भेदिथे भेजे, कि धर्म का भेष धरकर उस की कोई न कोई बात पकड़ें, कि उसे हाकिम के हाथ और अधिक्कारने में सौंप दें। 21. उन्होंने उस से यह पूछा, कि हे गुरू, हम जानते हैं कि तू ठीक कहता, और सिखाता भी है, और किसी का पझपात नहीं करता; बरन परमेश्वर का मार्ग सच्चाई से बताता है। 22. क्या हमें कैसर को कर देना उचित है, कि नहीं। 23. उस ने उन की चतुराई को ताड़कर उन से कहा; एक दीनार मुझे दिखाओ। 24. इस पर किस की मूत्तिर् और नाम है उन्होंने कहा, कैसर का। 25. उस ने उन से कहा; तो जो कैसर का है, वह कैसर को दो और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो। 26. वे लोगोंके साम्हने उस बात को पकड़ न सके, बरन उसके उत्तर से अचम्भित होकर चुप रह गए। 27. फिर सदूकी जो कहते हैं, कि मरे हुओं का जी उठना है ही नहीं, उन में से कितनोंने उसके पास आकर पूछा। 28. कि हे गुरू, मूसा ने हमारे लिथे यह लिखा है, कि यदि किसी का भाई अपक्की पत्नी के रहते हुए बिना सन्तान मर जाए, तो उसका भाई उस की पत्नी को ब्याह ले, और अपके भाई के लिथे वंश उत्पन्न करे। 29. सो सात भाई थे, पहिला भाई ब्याह करके बिना सन्तान मर गया। 30. फिर दूसरे और तीसरे ने भी उस स्त्री को ब्याह लिया। 31. इसी रीति से सातोंबिना सन्तान मर गए। 32. सब के पीछे वह स्त्री भी मर गई। 33. सो जी उठने पर वह उन में से किस की पत्नी होगी, क्योंकि वह सातोंकी पत्नी हो चुकी यी। 34. यीशु ने उन से कहा; कि इस युग के सन्तानोंमें तो ब्याह शादी होती है। 35. पर जो लोग इस योग्य ठहरेंगे, कि उस युग को और मरे हुओं में से जी उठना प्राप्त करें, उन में ब्याह शादी न होगी। 36. वे फिर मरने के भी नहीं; क्योंकि वे स्वर्गदूतोंके समान होंगे, और जी उठने के सन्तान होने से परमेश्वर के भी सन्तान होंगे। 37. परन्तु इस बात को कि मरे हुए जी उठते हैं, मूसा न भी फाड़ी की कया में प्रगट की है, कि वह प्रभु को इब्राहीम का परमेश्वर, और इसहाक का परमेश्वर, और याकूब का परमश्ेवर कहता है। 38. परमेश्वर तो मुरदोंका नहीं परन्तु जीवतोंका परमेश्वर है: क्योंकि उसके निकट सब जीवित हैं। 39. तब यह सुनकर शास्त्रियोंमें से कितनोंने कहा, कि हे गुरू, तू ने अच्छा कहा। 40. और उन्हें फिर उस से कुछ और पूछने का हियाव न हुआ।। 41. फिर उस ने उन से पूछा, मसीह को दाऊद का सन्तान क्योंकर कहते हैं। 42. दाऊद आप भजनसंहिता की पुस्तक में कहता है, कि प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा। 43. मेरे दिहने बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियोंको तेरे पांवोंके तले न कर दूं। 44. दाऊद तो उसे प्रभु कहता है; तो फिर वह उस की सन्तान क्योंकर ठहरा 45. जब सब लोग सुन रहे थे, तो उस ने अपके चेलोंसे कहा। 46. शास्त्रियोंसे चौकस रहो, जिन को लम्बे लम्बे वस्त्र पहिने हुए फिरना भला है, और जिन्हें बाजारोंमें नमस्कार, और सभाओं में मुख्य आसन और जेवनारोंमें मुख्य स्यान प्रिय लगते हैं। 47. वे विधवाओं के घर खा जाते हैं, और दिखाने के लिथे बड़ी देर तक प्रार्यना करते रहते हैं: थे बहुत ही दण्ड पाएंगे।।
Chapter 21
1. फिर उस ने आंख उठाकर धनवानोंको अपना अपना दान भण्डार में डालते देखा। 2. और उस ने एक कंगाल विधवा को भी उस में दो दमडिय़ां डालते देखा। 3. तब उस ने कहा; मैं तुम से सच कहता हूं कि इस कंगाल विधवा ने सब से बढ़कर डाला है। 4. क्योंकि उन सब ने अपक्की बढ़ती में से दान में कुछ डाला है, परन्तु इस ने अपक्की घटी में से अपक्की सारी जीविका डाल दी है।। 5. जब कितने लोग मन्दिर के विषय में कह रहे थे, कि वह कैसे सुन्दर पत्यरोंऔर भेंट की वस्तुओं से संवारा गया है तो उस ने कहा। 6. वे दिन आएंगे, जिन में यह सब जो तुम देखते हो, उन में से यहां किसी पत्यर पर पत्यर भी न छूटेगा, जो ढाया न जाएगा। 7. उन्होंने उस से पूछा, हे गुरू, यह सब कब होगा और थे बातें जब पूरी होने पर होंगी, तो उस समय का क्या चिन्ह होगा 8. उस ने कहा; चौकस रहो, कि भरमाए न जाओ, क्योंकि बहुतेरे मेरे नाम से आकर कहेंगे, कि मैं वही हूं; और यह भी कि समय निकट आा पहुंचा है: तुम उन के पीछे न चले जाना। 9. और जब तुम लड़ाइयोंऔर बलवोंकी चर्चा सुनो, तो घबरा न जाना; क्योंकि इन का पहिले होना अवश्य है; परन्तु उस समय तुरन्त अन्त न होगा। 10. तब उस ने उन से कहा, कि जाति पर जाति और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा। 11. और बड़ें बड़ें भूईडोल होंगे, और जगह जगह अकाल और मरियां पकेंगी, और आकाश में भयंकर बातें और बड़े बड़े चिन्ह प्रगट होंगे। 12. परन्तु इन सब बातोंसे पहिले वे मेरे नाम के कारण तुम्हें पकड़ेंगे, और सताएंगे, और पंचायतोंमें सौपेंगे, और बन्दीगृह मे डलवाएंगे, और राजाओं और हाकिमोंके साम्हने ले जाएंगे। 13. पर यह तुम्हारे लिथे गवाही देने का अवसर हो जाएगा। 14. इसलिथे अपके अपके मन में ठान रखो कि हम पहिले से उत्तर देने की चिन्ता न करेंगे। 15. क्योंकि मैं तुम्हें ऐसा बोल और बुद्धि दूंगा, कि तुम्हारे सब विरोधी साम्हना या खण्डन न कर सकेंगे। 16. और तुम्हारे माता पिता और भाई और कुटुम्ब, और मित्र भी तुम्हें पकड़वाएंगे; यहां तक कि तुम में से कितनोंको मरवा डालेंगे। 17. और मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे। 18. परन्तु तुम्हारे सिर का एक बाल भी बांका न होगा। 19. अपके धीरज से तुम अपके प्राणोंको बचाए रखोगे।। 20. जब तुम यरूशलेम को सेनाओं से घिरा हुआ देखो, तो जान लेना कि उसका उजड़ जाना निकट है। 21. तब जो यहूदिया में होंवह पहाड़ोंपर भाग जाएं, और जो यरूशलेम के भीतर होंवे बाहर निकल जाएं; और जो गावोंमें हो वे उस में न जांए। 22. क्योंकि यह पलटा लेने के ऐसे दिन होंगे, जिन में लिखी हुई सब बातें पूरी हो जाएंगी। 23. उन दिनोंमें जो गर्भवती और दूध पिलाती होंगी, उन के लिथे हाथ, हाथ, क्योंकि देश में बड़ा क्लेश और इन लोगोंपर बड़ी आपत्ति होगी। 24. वे तलवार के कौर हो जाएंगे, और सब देशोंके लोगोंमें बन्धुए होकर पहुंचाए जाएंगे, और जब तक अन्य जातियोंका समय पूरा न हो, तब तक यरूशलेम अन्य जातियोंसे रौंदा जाएगा। 25. और सूरज और चान्द और तारोंमें चिन्ह दिखाई देंगें, और पृय्वी पर, देश देश के लोगोंको संकट होगा; क्योंकि वे समुद्र के गरजने और लहरोंके कोलाहल से घबरा जाएंगे। 26. और भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बांट देखते देखते लोगोंके जी में जी न रहेगा क्योंकि आकाश की शक्तियोंहिलाई जाएंगी। 27. तब वे मनुष्य के पुत्र को सामर्य और बड़ी महिमा के साय बादल पर आते देखेंगे। 28. जब थे बातें होने लगें, तो सीधे होकर अपके सिर ऊपर उठाना; क्योंकि तुम्हारा छुटकारा निकट होगा।। 29. उस ने उन से एक दृष्टान्त भी कहा कि अंजीर के पेड़ और सब पेड़ोंको देखो। 30. ज्योंहि उन की कोंपकें निकलती हैं, तो तुम देखकर आप ही जान लेते हो, कि ग्रीष्क़काल निकट है। 31. इसी रीति से जब तुम थे बातें होते देखो, तब जान लो कि परमेश्वर का राज्य निकट है। 32. मैं तुम से सच कहता हूं, कि जब तक थे सब बातें न हो लें, तब तक इस पीढ़ी का कदापि अन्त न होगा। 33. आकाश और पृय्वी टल जाएंगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी।। 34. इसलिथे सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएं, और वह दिन तुम पर फन्दे की नाई अचानक आ पके। 35. क्योंकि वह सारी पृय्वी के सब रहनेवालोंपर इसी प्रकार आ पकेगा। 36. इसलिथे जागते रहो और हर समय प्रार्यना करते रहो कि तुम इन सब आनेवाली घटनाओं से बचने, और मनुष्य के पुत्र के साम्हने खड़े होने के योग्य बनो।। 37. और वह दिन को मन्दिर में उपकेश करता या; और रात को बाहर जाकर जैतून नाम पहाड़ पर रहा करता या। 38. और भोर को तड़के सब लोग उस की सुनने के लिथे मन्दिर में उसके पास आया करते थे।
Chapter 22
1. अखमीरी रोटी का पर्व्व जो फसह कहलाता है, निकट या। 2. और महाथाजक और शास्त्री इस बात की खोज में थे कि उस को क्योंकर मार डालें, पर वे लोगोंसे डरते थे।। 3. और शैतान यहूदा में समाया, जो इस्किरयोती कहलाता और बारह चेलोंमें गिना जाता या। 4. उस ने जाकर महाथाजकोंऔर पहरूओं के सरदारोंके साय बातचीत की, कि उस को किस प्रकार उन के हाथ पकड़वाए। 5. वे आनन्दित हुए, और उसे रूपके देने का वचन दिया। 6. उस ने मान लिया, और अवसर ढूंढ़ने लगा, कि बिना उपद्रव के उसे उन के हाथ पकड़वा दे।। 7. तब अखमीरी रोटी के पर्व्व का दिन आया, जिस में फसह का मेम्ना बली करना अवश्य या। 8. और यीशु ने पतरस और यूहन्ना को यह कहकर भेजा, कि जाकर हमारे खाने के लिथे फसह तैयार करो। 9. उन्होंने उस से पूछा, तू कहां चाहता है, कि हम तैयार करें 10. उस ने उन से कहा; देखो, नगर में प्रवेश करते ही एक मनुष्य जल का घड़ा उठाए हुए तुम्हें मिलेगा, जिस घर में वह जाए; तुम उसके पीछे चले जाना। 11. और उस घर के स्वामी से कहो, कि गुरू तुझ से कहता है; कि वह पाहुनशाला कहां है जिस में मैं अपके चेलोंके साय फसह खाऊं 12. वह तुम्हें एक सजी सजाई बड़ी अटारी दिखा देगा; वहां तैयारी करना। 13. उन्होंने जाकर, जैसा उस ने उन से कहा या, वैसा ही पाया, और फसह तैयार किया।। 14. जब घड़ी पहुंची, तो वह प्रेरितोंके साय भोजन करने बैठा। 15. और उस ने उन से कहा; मुझे बड़ी लालसा यी, कि दुख-भोगने से पहिले यह फसह तुम्हारे साय खाऊं। 16. क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि जब तक वह परमेश्वर के राज्य में पूरा न हो तब तक मैं उसे कभी न खाऊंगा। 17. तब उस ने कटोरा लेकर धन्यवाद किया, और कहा, इस को लो और आपस में बांट लो। 18. क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि जब तक परमेश्वर का राज्य न आए तब तक मैं दाख रस अब से कभी न पीऊंगा। 19. फिर उस ने रोटी ली, और धन्यवाद करके तोड़ी, और उन को यह कहते हुए दी, कि यह मेरी देह है, जो तुम्हारे लिथे दी जाती है: मेरे स्क़रण के लिथे यही किया करो। 20. इसी रीति से उस ने बियारी के बाद कटोरा मेरे उस लोहू में जो तुम्हारे लिथे बहाथा जाता है नई वाचा है। 21. पर देखो, मेरे पकड़वानेवाले का हाथ मेरे साय मेज पर है। 22. क्योंकि मनुष्य का पुत्र तो जैसा उसके लिथे ठहराया गया जाता ही है, पर हाथ उस मनुष्य पर, जिस के द्वारा वह पकड़वाया जाता है! 23. तब वे आपस में पूछ पाछ करने लगे, कि हम में से कौन है, जो यह काम करेगा 24. उन में यह वाद-विवाद भी हुआ; कि हम में से कौन बड़ा समझा जाता है 25. उस ने उन से कहा, अन्यजातियोंके राजा उन पर प्रभुता करते हैं; और जो उन पर अधिक्कारने रखते हैं, वे उपकारक कहलाते हैं। 26. परन्तु तुम ऐसे न होना; वरन जो तुम में बड़ा है, वह छोटे की नाई और जो प्रधान है, वह सेवक की नाई बने। 27. क्योंकि बड़ा कौन है; वह जो भोजन पर बैठा या वह जो सेवा करता है क्या वह नहीं जो भोजन पर बैठा है पर मैं तुम्हारे बीच में सेवक की नाईं हूं। 28. परन्तु तुम वह हो, जो मेरी पक्कीझाओं में लगातार मेरे साय रहे। 29. और जैसे मेरे पिता ने मेरे लिथे एक राज्य ठहराया है, 30. वैसे ही मैं भी तुम्हारे लिथे ठहराता हूं, ताकि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज पर खाओ-पिओ; बरन सिंहासनोंपर बैठकर इस्त्राएल के बारह गोत्रोंका न्याय करो। 31. शमौन, हे शमौन, देख, शैतान ने तुम लोगोंको मांग लिया है कि गेंहूं की नाई फटके। 32. परन्तु मैं ने तेरे लिथे बिनती की, कि तेरा विश्वास जाता न रहे: और जब तू फिरे, तो अपके भाइयोंको स्यिर करना। 33. उस ने उस से कहा; हे प्रभु, मैं तेरे साय बन्दीगृह जाने, वरन मरने को भी तैयार हूं। 34. उस ने कहा; हे पतरस मैं तुझ से कहता हूं, कि आज मुर्ग बांग देगा जब तक तू तीन बार मेरा इन्कार न कर लेगा कि मैं उसे नहीं जानता।। 35. और उस ने उन से कहा, कि जब मैं ने तुम्हें बटुए, और फोली, और जूते बिना भेजा या, तो क्या तुम को किसी वस्तु की घटी हुई यी उन्होंने कहा; किसी वस्तु की नहीं। 36. उस ने उन से कहा, परन्तु अब जिस के पास बटुआ हो वह उसे ले, और वैसे ही फोली यी, और जिस के पास तलवार न हो वह अपके कपके बेचकर एक मोल ले। 37. क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि यह जो लिखा है, कि वह अपराधियोंके साय गिना गया, उसका मुझ में पूरा होना अवश्य है; क्योंकि मेरे विषय की बातें पूरी होन पर हैं। 38. उन्होंने कहा; हे प्रभु, देख, यहां दो तलवारें हैं: उस ने उन से कहा; बहुत हैं।। 39. तब वह बाहर निकलकर अपक्की रीति के अनुसार जैतून के पहाड़ पर गया, और चेले उसके पीछे हो लिए। 40. उस जगह पहुंचकर उस ने उन से कहा; प्रार्यना करो, कि तुम पक्कीझा में न पड़ो। 41. और वह आप उन से अलग एक ढेला फेंकने के टप्पे भर गया, और घुटने टेककर प्रार्यना करने लगा। 42. कि हे पिता यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो। 43. तब स्वर्ग से एक दूत उस को दिखाई दिया जो उसे सामर्य देता या। 44. और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी ह्रृदय वेदना से प्रार्यना करने लगा; और उसका पक्कीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बून्दोंकी नाई भूमि पर गिर रहा या। 45. तब वह प्रार्यना से उठा और अपके चेलोंके पास आकर उन्हें उदासी के मारे सोता पाया; और उन से कहा, क्योंसोते हो 46. उठो, प्रार्यना करो, कि पक्कीझा में न पड़ो।। 47. वह यह कह ही रहा या, कि देखो एक भीड़ आई, और उन बारहोंमें से एक जिस का नाम यहूदा या उनके आगे आगे आ रहा या, वह यीशु के पास आया, कि उसका चूमा ले। 48. यीशु ने उस से कहा, हे यहूदा, क्या तू चूमा लेकर मनुष्य के पुत्र को पकड़वाता है 49. उसके सायियोंने जब देखा कि क्या होनेवाला है, तो क्हा; हे प्रभु, क्या हम तलवार चलाएं 50. और उन में से एक ने महाथाजक के दास पर चलाकर उसका दिहना कान उड़ा दिया। 51. इस पर यीशु ने कहा; अब बस करो : और उसका कान छूकर उसे अच्छा किया। 52. तब यीशु ने महाथाजकों; और मन्दिर के पहरूओं के सरदरोंऔर पुरिनयोंसे, जो उस पर चढ़ आए थे, कहा; क्या तुम मुझे डाकू जानकर तलवारें और लाठियां लिए हुए निकले हो 53. जब मैं मन्दिर में हर दिन तुम्हारे साय या, तो तुम ने मुझ पर हाथ न डाला; पर यह तुम्हारी घड़ी है, और अन्धकार का अधिक्कारने है।। 54. फिर वे उसे पकड़कर ले चले, और महाथाजक के घर में लाए और पतरस दूर ही दूर उसके पीछे पीछे चलता या। 55. और जब वे आंगन में आग सुलगाकर इकट्ठे बैठे, तो पतरस भी उन के बीच में बैठ गया। 56. और एक लौंडी उसे आग के उजियाले में बैठे देखकर और उस की ओर ताककर कहने लगी, यह भी तो उसके साय या। 57. परनतु उस ने यह कहकर इन्कार किया, कि हे नारी, मैं उसे नहीं जानता। 58. योड़ी देर बाद किसी और ने उसे देखकर कहा, तू भी तो उन्हीं में से है: पतरस ने कहा; हे मनुष्य मैं नहीं हूं। 59. कोई घंटे भर के बाद एक और मनुष्य दृढ़ता से कहने लगा, निश्चय यह भी तो उसके साय या; क्योंकि यह गलीली है। 60. पतरस ने कहा, हे मनुष्य, मैं नहीं जानता कि तू क्या कहता है वह कह ही रहा या कि तुरन्त मुर्ग ने बांग दी। 61. तब प्रभु ने घूमकर पतरस की ओर देखा, और पतरस को प्रभु की वह बात याद आई जो उस ने कही यी, कि आज मुर्ग के बांग देने से पहिले, तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा। 62. और वह बाहर निकलकर फूट फूट कर रोने लगा।। 63. जो मनुष्य यीशु को पकड़े हुए थे, वे उसे ठट्ठोंमें उड़ाकर पीटने लगे। 64. और उस की आंखे ढांपकर उस से पूछा, कि भविष्यद्वाणी करके बता कि तुझे किसने मारा। 65. और उन्होंने बहुत सी और भी निन्दा की बातें उसके विरोध में कहीं।। 66. जब दिन हुआ तो लोगोंके पुरिनए और महाथाजक और शास्त्री इकट्ठे हुए, और उसे अपक्की महासया में लाकर पूछा, 67. यदि तू मसीह है, तो हम से कह दे! उस ने उन से कहा, यदि मैं तुम से कहूं तो प्रतीति न करोगे। 68. और यदि पूंछूं, तो उत्तर न दोगे। 69. परनतु अब से मनुष्य का पुत्र सर्वशक्तिमान परमेश्वर की दिहनी और बैठा रहेगा। 70. इस पर सब ने कहा, तो क्या तू परमेश्वर का पुत्र है उस ने उन से कहा; तुम आप ही कहते हो, क्योंकि मैं हूं। 71. तब उन्होंने कहा; अब हमें गवाही का क्या प्रयोजन है; क्योंकि हम ने आप ही उसके मुंह से सुन लिया है।।
Chapter 23
1. तब सारी सभा उठकर उसे पीलातुस के पास ले गई। 2. और वे यह कहकर उस पर दोष लगाने लगे, कि हम ने इसे लोगोंको बहकाते और कैसर को कर देने से मना करते, और अपके आप को मसीह राजा कहते हुए सुना है। 3. पीलातुस ने उस से पूछा, क्या तू यहूदियोंका राजा है उस ने उसे उत्तर दिया, कि तू आप ही कह रहा है। 4. तब पीलातुस ने महाथाजकोंऔर लोगोंसे कहा, मैं इस मनुष्य में कुछ दोष नहीं पाता। 5. पर वे और भी दृढ़ता से कहने लगे, यह गलील से लेकर यहां तक सारे यहूदिया में उपकेश दे दे कर लोगोंको उसकाता है। 6. यह सुनकर पीलातुस ने पूछा, क्या यह मनुष्य गलीली है 7. और यह जानकर कि वह हेरोदेस की रियासत का है, उसे हेरोदेस के पास भेज दिया, क्योंकि उन दिनोंमें वह भी यरूशलेम में या।। 8. हेरोदेस यीशु को देखकर बहुत ही प्रसन्न हुआ, क्योंकि वह बहुत दिनोंसे उस को देखना चाहता या: इसलिथे कि उसके विषय में सुना या, और उसका कुछ चिन्ह देखने की आशा रखता या। 9. वह उस ने बहुतेरी बातें पूछता रहा, पर उस ने उस को कुछ भी उत्तर न दिया। 10. और महाथाजक और शास्त्री खड़े हुए तन मन से उस पर दोष लगाते रहे। 11. तब हेरोदेस ने अपके सिपाहियोंके साय उसका अपमान करके ठट्ठोंमें उड़ाया, और भड़कीला वस्त्र पहिनाकर उसे पीलातुस के पास लौटा दिया। 12. उसी दिन पीलातुस और हेरोदेस मित्र हो गए। इसके पहिले वे एक दूसरे के बैरी थे।। 13. पीलातुस ने महाथाजकोंऔर सरदारोंऔर लोगोंको बुलाकर उन से कहा। 14. तुम इस मनुष्य को लोगोंका बहकानेवाला ठहराकर मेरे पास लाए हो, और देखो, मैं ने तुम्हारे साम्हने उस की जांच की, पर जिन बातोंका तुम उस पर दोष लगाते हो, उन बातोंके विषय में मैं ने उस में कुछ भी दोष नहीं पाया है। 15. न हेरोदेस ने, क्योंकि उस ने उसे हमारे पास लौटा दिया है: और देखो, उस से ऐसा कुछ नहीं हुआ कि वह मृत्यु के दण्ड के योग्य ठहराया जाए। 16. इसलिथे मैं उसे पिटवाकर छोड़ देता हूं। 17. तब सब मिलकर चिल्ला उठे, 18. इस का काम तमाम कर, और हमारे लिथे बरअब्बा को छोड़ दे। 19. यही किसी बलवे के कारण जो नगर में हुआ या, और हत्या के कारण बन्दीगृह में डाला गया या। 20. पर पीलातुस ने यीशु को छोड़ने की इच्छा से लोगोंको फिर समझाया। 21. परन्तु उन्होंने चिल्लाकर कहा: कि उसे क्रूस पर चढ़ा, क्रूस पर। 22. उस ने तीसरी बार उन से कहा; क्योंउस ने कौन सी बुराई की है मैं ने उस में मृत्यु दण्ड के योग्य कोर्ठ बात नहीं पाई! इसलिथे मैं उसे पिटवाकर छोड़ देता हूं। 23. परन्तु वे चिल्ला-चिल्लाकर पीछे पड़ गए, कि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए, और उन का चिल्लाना प्रबल हुआ। 24. सो पीलातुस ने आज्ञा दी, कि उन की बिननी के अनुसार किया जाए। 25. और उस ने उस मनुष्य को जो बलवे और हत्या के कारण बन्दीगृह में डाला गया या, और जिसे वे मांगते थे, छोड़ दिया; और यीशु को उन की इच्छा के अनुसार सौंप दिया।। 26. जब वे उसे लिए जाते थे, तो उन्होंने शमौन नाम एक कुरेनी को जो गांव से आ रहा या, पकड़कर उस पर क्रूस को लाद दिया कि उसे यीशु के पीछे पीछे ले चले।। 27. और लोगोंकी बड़ी भीड़ उसके पीछे हो ली: और बहुत सी स्त्रियां भी, जो उसके लिथे छाती-पीटती और विलाप करती यीं। 28. यीशु ने उन की ओर फिरकर कहा; हे यरूशलेम की पुत्रियो, मेरे लिथे मत रोओ; परन्तु अपके और अपके बालकोंके लिथे रोओ। 29. क्योंकि देखो, वे दिन आते हैं, जिन में कहेंगे, धन्य हैं वे जो बांफ हैं, और वे गर्भ जो न जने और वे स्तन जिन्होंने दूध न पिलाया। 30. उस समय वे पहाड़ोंसे कहने लगेंगे, कि हम पर गिरो, और टीलोंसे कि हमें ढाँप लो। 31. क्योंकि जब वे हरे पेड़ के साय ऐसा करते हैं, तो सूखे के साय क्या कुछ न किया जाएगा 32. वे और दो मनुष्योंको भ्ज़्ञी जो कुकर्मी थे उसके साय घात करने को ले चले।। 33. जब वे उस जगह जिसे खोपड़ी कहते हैं पहुंचे, तो उन्होंने वहां उसे और उन कुकिर्मयोंको भी एक को दिहनी और और दूसरे को बाईं और क्रूसोंपर चढ़ाया। 34. तब यीशु ने कहा; हे पिता, इन्हें झमा कर, क्योंकि थे जानते नहीं कि क्या कर रहें हैं और उन्होंने चिट्ठियां डालकर उसके कपके बांट लिए। 35. लोग खड़े खड़े देख रहे थे, और सरदार भी ठट्ठा कर करके कहते थे, कि इस ने औरोंको बचाया, यदि यह परमेश्वर का मसीह है, और उसका चुना हुआ है, तो अपके आप को बचा ले। 36. सिपाही भी पास आकर और सिरका देकर उसका ठट्ठा करके कहते थे। 37. यदि तू यहूदियोंका राजा है, तो अपके आप को बचा। 38. और उसके ऊपर एक पत्र भी लगा या, कि यह यहूदियोंका राजा है। 39. जो कुकर्मी लटकाए गए थे, उन में से एक ने उस की निन्दा करके कहा; क्या तू मसीह नहीं तो फिर अपके आप को और हमें बचा। 40. इस पर दूसरे ने उसे डांटकर कहा, क्या तू परमेश्वर से भी नहीं डरता तू भी तो वही दण्ड पा रहा है। 41. और हम तो न्यायानुसार दण्ड पा रहे हैं, क्योंकि हम अपके कामोंका ठीक फल पा रहे हैं; पर इस ने कोई अनुचित काम नहीं किया। 42. तब उस ने कहा; हे यीशु, जब तू अपके राज्य में आए, तो मेरी सुधि लेना। 43. उस ने उस से कहा, मैं तुझ से सच कहता हूं; कि आज ही तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।। 44. और लगभग दो पहर से तीसरे पहर तक सारे देश में अन्धिक्कारनेा छाया रहा। 45. और सूर्य का उजियाला जाता रहा, और मन्दिर का परदा बीच में फट गया। 46. और यीशु ने बड़े शब्द से पुकार कर कहा; हे पिता, मैं अपक्की आत्मा तेरे हाथोंमें सौंपता हूं: और यह कहकर प्राण छोड़ दिए। 47. सूबेदार ने, जो कुछ हुआ था देखकर, परमेश्वर की बड़ाई की, और कहा; निश्चय यह मनुष्य धर्मी था। 48. और भीड़ जो यह देखने को इकट्ठी हुई भी, इस घटना को, देखकर छाती- पीटती हुई लौट गई। 49. और उसके सब जान पहचान, और जो स्त्रियां गलील से उसके पास आई थी, दूर खड़ी हुई यह सब देख रही थीं।। 50. और देखो यूसुफ नाम एक मन्त्री जो सज्जन और धर्मी पुरूष था। 51. और उन के विचार और उन के इस काम से प्रसन्न न था; और वि यहूदियोंके नगर अरिमतीया का रहनेवाला और परमेश्वर के राज्य की बाट जोहनेवाला था। 52. उस ने पीलातुस के पास जाकर यीशु की लोथ मांग ली। 53. और उसे उतारकर चादर में लपेटा, और एक कब्र में रखा, जो चट्टान में खोदी हुई थी; और उस में कोई कभी न रखा गया था। 54. वह तैयारी का दिन था, और सब्त का दिन आरम्भ होने पर था। 55. और उन स्त्रियोंने जो उसके साथ गलील से आई थीं, पीछे पीछे जाकर उस कब्र को देखा, और यह भी कि उस की लोथ किस रीति से रखी गई है। 56. और लौटकर सुगन्धित वस्तुएं और इत्रा तैयार किया: और सब्त के दिन तो उन्होंने आज्ञा के अनुसार विश्राम किया।।
Chapter 24
1. परन्तु सप्ताह के पहिले दिन बड़े भोर को वे उन सुगन्धित वस्तुओं को जो उन्होंने तैयार की यी, ले कर कब्र पर आईं। 2. और उन्होंने पत्यर को कब्र पर से लुढ़का हुआ पाया। 3. और भीतर जाकर प्रभु यीशु की लोय न पाई। 4. जब वे इस बात से भौचक्की हो रही यीं तो देखो, दो पुरूष फलकते वस्त्र पहिने हुए उन के पास आ खड़े हुए। 5. जब वे डर गईं, और धरती की ओर मुंह फुकाए रहीं; तो उन्होंने उस ने कहा; तुम जीवते को मरे हुओं में क्योंढूंढ़ती हो 6. वह यहां नहीं, परन्तु जी उठा है; स्क़रण करो; कि उस ने गलील में रहते हुए तुम से कहा या। 7. कि अवश्य है, कि मनुष्य का पुत्र पापियोंके हाथ में पकड़वाया जाए, और क्रूस पर चढ़ाया जाए; और तीसरे दिन जी उठे। 8. तब उस की बातें उन को स्क़रण आईं। 9. और कब्र से लौटकर उन्होंने उन ग्यारहोंको, और, और सब को, थे बातें कह सुनाई। 10. जिन्होंने प्रेरितोंसे थे बातें कहीं, वे मरियम मगदलीनी और योअन्ना और याकूब की माता मरियम और उन के साय की और स्त्रियां भी यीं। 11. परन्तु उन की बातें उनहें कहानी सी समझ पड़ीं, और उन्होंने उन की प्रतीति न की। 12. तब पतरस उठकर कब्र पर दौड़ गया, और फुककर केवल कपके पके देखे, और जो हुआ या, उस से अचम्भा करता हुआ, अपके घर चला गया।। 13. देखो, उसी दिन उन में से दो जन इम्माऊस नाम एक गांव को जा रहे थे, जो यरूशलेम से कोई सात मील की दूरी पर या। 14. और वे इन सब बातोंपर जो हुईं यीं, आपस में बातचीत करते जा रहे थे। 15. और जब वे आपस में बातचीत और पूछताछ कर रहे थे, तो यीशु आप पास आकर उन के साय हो लिया। 16. परनतु उन की आंखे ऐसी बन्द कर दी गईं यी, कि उसे पहिचान न सके। 17. उस ने उन से पूछा; थे क्या बातें हैं, जो तुम चलते चलते आपस में करते हो वे उदास से खड़े रह गए। 18. यह सुनकर, उनमें से क्लियुपास नाम एक व्यक्ति ने कहा; क्या तू यरूशलेम में अकेला परदेशी है; जो नहीं जानता, कि इन दिनोंमें उस में क्या हुआ है 19. उस ने उन से पूछा; कौन सी बातें उन्होंने उस से कहा; यीशु नासरी के विषय में जो परमेश्वर और सब लोगोंके निकट काम और वचन में सामर्यी भविष्यद्वक्ता या। 20. और महाथाजकोंऔर हमारे सरदारोंने उसे पकड़वा दिया, कि उस पर मृत्यु की आज्ञा दी जाए; और उसे क्रूस पर चढ़वाया। 21. परन्तु हमें आशा यी, कि यही इस्त्रएल को छुटकारा देगा, और इन सब बातोंके सिवाय इस घटना को हुए तीसरा दिन है। 22. और हम में से कई स्त्रियोंने भी हमें आश्चर्य में डाल दिया है, जो भोर को कब्र पर गई यीं। 23. और जब उस की लोय न पाई, तो यह कहती हुई आईं, कि हम ने स्वर्गदूतोंका दर्शन पाया, जिन्होंने कहा कि वह जीवित है। 24. तब हमारे सायियोंमें से कई एक कब्र पर गए, और जैसा स्त्रियोंने कहा या, वैसा ही पाया; परन्तु उस को न देखा। 25. तब उस ने उन से कहा; हे निर्बुद्धियों, और भविष्यद्वक्ताओं की सब बातोंपर विश्वास करने में मन्दमतियों! 26. क्या अवश्य न या, कि मसीह थे दुख उठाकर अपक्की महिमा में प्रवेश करे 27. तब उस ने मूसा से और सब भविष्यद्वक्ताओं से आरम्भ करके सारे पवित्र शास्त्रोंमें से, अपके विषय में की बातोंका अर्य, उन्हें समझा दिया। 28. इतने में वे उस गांव के पास पहुंचे, जहां वे जा रहे थे, और उसके ढंग से ऐसा जन पड़ा, कि वह आगे बड़ा चाहता है। 29. परन्तु उन्होंने यह कहकर उसे रोका, कि हमारे साय रह; क्योंकि संध्या हो चक्की है और दिन अब बहुत ढल गया है। तब वह उन के साय रहने के लिथे भीतर गया। 30. जब वह उन के साय भोजन करने बैठा, तो उस ने रोटी लेकर धन्यवाद किया, और उसे तोड़कर उन को देने लगा। 31. तब उन की आंखे खुल गईं; और उन्होंने उसे पहचान लिया, और वह उन की आंखोंसे छिप गया। 32. उन्होंने आपस में कहा; जब वह मार्ग में हम से बातें करता या, और पवित्र शस्त्र का अर्य हमें समझाता या, तो क्या हमारे मन में उत्तेजना न उत्पन्न हुई 33. वे उसी घड़ी उठकर यरूशलेम को लौट गए, और उन ग्यारहोंऔर उन के सायियोंको इकट्ठे पाया। 34. वे कहते थे, प्रभु सचमुच जी उठा है, और शमौन को दिखाई दिया है। 35. तब उन्होंने मार्ग की बातें उन्हें बता दीं और यह भी कि उन्होंने उसे रोटी तोड़ते समय क्योंकर पहचाना।। 36. वे थे बातें कह ही रहे थे, कि वह आप ही उन के बीच में आ खड़ा हुआ; और उन से कहा, तुम्हें शन्ति मिले। 37. परन्तु वे घबरा गए, और डर गए, और समझे, कि हम किसी भूत को देखते हैं। 38. उस ने उन से कहा; क्योंघबराते हो और तुम्हारे मन में क्योंसन्देह उठते हैं 39. मेरे हाथ और मेरे पांव को देखो, कि मैं वहीं हूं; मुझे छूकर देखो; क्योंकि आत्क़ा के हड्डी मांस नहीं होता जैसा मुझ में देखते हो। 40. यह कहकर उस ने उनहें अपके हाथ पांव दिखाए। 41. जब आनन्द के मारे उन को प्रतीति न हुई, और आश्चर्य करते थे, तो उस ने उन से पूछा; क्या यहां तुम्हारे पास कुछ भोजन है 42. उन्होंने उसे भूनी मछली का टुकड़ा दिया। 43. उस ने लेकर उन के साम्हने खाया। 44. फिर उस ने उन से कहा, थे मेरी वे बातें हैं, जो मैं ने तुम्हारे साय रहते हुए, तुम से कही यीं, कि अवश्य है, कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्या और भविष्यद्वक्ताओं और भजनोंकी पुस्तकोंमें, मेरे विषय में लिखी हैं, सब पूरी हों। 45. तब उस ने पवित्र शास्त्र बूफने के लिथे उन की समझ खोल दी। 46. और उन से कहा, योंलिखा है; कि मसीह दु:ख उठाएगा, और तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा। 47. और यरूशलेम से लेकर सब जातियोंमें मन फिराव का और पापोंकी झमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा। 48. तुम इन सब बातें के गवाह हो। 49. और देखो, जिस की प्रतिज्ञा मेरे पिता ने की है, मैं उस को तुम पर उतारूंगा और जब तक स्वर्ग में सामर्य न पाओ, तब तक तुम इसी नगर में ठहरे रहो।। 50. तब वह उन्हें बैतनिय्याह तक बाहर ले गया, और अपके हाथ उठाकर उन्हें आशीष दी। 51. और उन्हें आशीष देते हुए वह उन से अलग हो गया और स्वर्ग से उठा लिया गया। 52. और वे उस को दण्डवत् करके बड़े आनन्द से यरूशलेम को लौट गए। 53. और लगातार मन्दिर में उपस्यित होकर परमेश्वर की स्तुति किया करते थे।।
(April28th2012)
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