विलापगीत
Chapter 1
1. जो नगरी लोगोंसे भरपूर यी वह अब कैसी अकेली बैठी हुई है ! वह क्योंएक विधवा के समान बन गई? वह जो जातियोंकी दृष्टि में महान और प्रान्तोंमें रानी यी, अब क्योंकर देनेवाली हो गई है। 2. रात को वह फूट फूट कर रोती है, उसके आंसू गालोंपर ढलकते हैं; उसके सब यारोंमें से अब कोई उसे शान्ति नहीं देता; उसके सब मित्रोंने उस से विश्वासघात किया, और उसके शत्रु बन गए हैं। 3. यहूदा दु:ख और कठिन दासत्व से बचने के लिथे परदेश चक्की गई; परन्तु अन्यजातियोंमें रहती हुई वह चैन नहीं पाती; उसके सब खदेड़नेवालोंने उसकी सकेती में उसे पकड़ लिया है। 4. सिय्योन के मार्ग विलाप कर रहे हैं, क्योंकि नियत पवॉं में कोई नहीं आता है; उसके सब फाटक सुनसान पके हैं, उसके याजक कराहते हैं; उसकी कुमारियां शोकित हैं, और वह आप कठिन दु:ख भोग रही है। 5. उसके द्रोही प्रधान हो गए, उसके शत्रु उन्नति कर रहे हैं, क्योंकि यहोवा ने उसके बहुत से अपराधोंके कारण उसे दु:ख दिया है; उसके बालबच्चोंको शत्रु हांक हांक कर बंधुआई में ले गए। 6. सिय्योन की पुत्री का सारा प्रताप जाता रहा है। उसके हाकिम ऐसे हरिणोंके समान हो गए हैं जो कुछ चराई नहीं पाते; वे खदेड़नेवालोंके साम्हने से बलहीन होकर भागते हैं। 7. यरूशलेम ने, इन द:ख भरे और संकट के दिनोंमें, जब उसके लोग द्रोहियोंके हाथ में पके और उसका कोई यहाथक न रहा, तब अपक्की सब मनभावनी वस्तुओं को जो प्राचीनकाल से उसकी यीं, स्मरण किया है। उसके द्रोहियोंने उसको उजड़ा देखकर ठट्ठोंमें उड़ाया है। 8. यरूशलेम ने बड़ा पाप किया, इसलिथे वह अशुद्ध स्त्री सी हो गई है; जितने उसका आदर करते थे वे उसका निरादर करते हैं, क्योंकि उन्होंने उसकी नंगाई देखी है; हां, वह कराहती हुई मुंह फेर लेती है। 9. उसकी अशुद्धता उसके वस्त्र पर है; उस ने अपके अन्त का स्मरण न रखा; इसलिथे वह भयंकर रीति से गिराई गई, और कोई उसे शान्ति नइीं देता है। हे यहोवा, मेरे दु:ख पर दृष्टि कर, क्योंकि शत्रु मेरे विरुद्ध सफल हुआ है ! 10. द्रोहियोंने उसकी सब मनभावनी वस्तुओं पर हाथ बढ़ाया है; हां, अन्यजातियोंको, जिनके विषय में तू ने आज्ञा दी यी कि वे तेरी सभा में भागी न होने पाएंगी, उनको उस ने तेरे पवित्रस्यान में घुसा हुआ देखा है। 11. उसके सब निवासी कराहते हुए भोजनवस्तु ढूंढ़ रहे हैं; उन्होंने अपना प्राण बचान के लिऐ अपक्की मनभावनी वस्तुएं बेचकर भोजन मोल लिया है। हे यहोवा, दृष्टि कर, और ध्यान से देख, क्योंकि मैं तुच्छ हो गई हूँ। 12. हे सब बटोहियो, क्या तुम्हें इस बात की कुछ भी चिन्ता नहीं? दृष्टि करके देखो, क्या मेरे दु:ख से बढ़कर कोई और पीड़ा है जो यहोवा ने अपके क्रोध के दिन मुझ पर डाल दी है? 13. उस ने ऊपर से मेरी हड्डियोंमें आग लगाई है, और वे उस से भस्म हो गई; उस ने मेरे पैरोंके लिथे जाल लगाया, और मुझ को उलटा फेर दिया है; उस ने ऐसा किया कि मैं त्यागी हुई सी और रोग से लगातार निर्बल रहती हूँ। 14. उस ने जूए की रस्सियोंकी नाई मेरे अपराधोंको अपके हाथ से कसा है; उस ने उन्हें बटकर मेरी गर्दन पर चढ़ाया, और मेरा बल घटा दिया है; जिनका मैं साम्हना भी नहीं कर सकती, उन्हीं के वश में यहोवा ने मुझे कर दिया है। 15. यहोवा ने मेरे सब पराक्रमी पुरुषोंको तुच्छ जाना; उस ने नियत पर्व का प्रचार करके लोगोंको मेरे विरुद्ध बुलाया कि मेरे जवानोंको पीस डालें; यहूदा की कुमारी कन्या को यहोवा ने मानो कोल्हू में पेरा है। 16. इन बातोंके कारण मैं रोती हूँ; मेरी आंखोंसे आंसू की धारा बहती रहती है; क्योंकि जिस शान्तिदाता के कारण मेरा जी हरा भरा हो जाता या, वह मुझ से दूर हो गया; मेरे लड़केबाले अकेले हो गए, क्योंकि शत्रु प्रबल हुआ है। 17. सिय्योन हाथ फैलाए हुए हैं, उसे कोई शान्ति नहीं देता; यहोवा ने याकूब के विषय में यह आज्ञा दी है कि उसके चारोंओर के निवासी उसके द्रोही हो जाएं; यरूशलेम उनके बीच अशुद्ध स्त्री के समान हो गई है। 18. यहोवा सच्चाई पर है, क्योंकि मैं ने उसकी आज्ञा का उल्लंघन किया है; हे सब लोगो, सुनो, और मेरी पीड़ा को देखो ! मेरे कुमार और कुमारियां बंधुआई में चक्की गई हैं। 19. मैं ने अपके मित्रोंको पुकारा परन्तु उन्होंने भी मुझे छोखा दिया; जब मेरे याजक और पुरनिथे इसलिथे भोजनवस्तु ढूंढ़ रहे थे कि खाने से उनका जी हरा हो जाए, तब नगर ही में उनके प्राण छूट गए। 20. हे यहोवा, दृष्टि कर, क्योंकि मैं संकट में हूँ, मेरी अन्तडिय़ां ऐंठी जाती हैं, मेरा ह्रृदय उलट गया है, क्योंकि मैं ने बहुत बलवा किया है। वाहर तो मैं तलवार से निर्वश होती हूँ; और घर में मृत्यु विराज रही है। 21. उन्होंने सुना है कि मैं कराहती हूँ, परन्तु कोई मुझे शान्ति नहीं देता। मेरे सब शत्रुओं ने मेरी विपत्ति का समाचार सुना है; वे इस से हषिर्त हो गए कि तू ही ने यह किया है। परन्तु जिस दिन की चर्चा तू ने प्रचार करके सुनाई है उसको तू दिखा, तब वे भी मेरे समान हो जाएंगे। 22. उनकी सारी दुष्टता की ओर दृष्टि कर; और जैसा मेरे सारे अपराधोंके कारण तू ने मुझे दण्ड दिया, वैसा ही उनको भी दण्ड दे; क्योंकि मैं बहुत ही कराहती हूँ, और मेरा ह्रृदय रोग से निर्बल हो गया है।
Chapter 2
1. यहोवा ने सिय्योन की पुत्री को किस प्रकार अपके कोप के बादलोंसे ढांप दिया है ! उस ने इस्राएल की शोभा को आकाश से धरती पर पटक दिया; और कोप के दिन अपके पांवोंकी चौकी को स्मरण नहीं किया। 2. यहोवा ने याकूब की सब बस्तियोंको निठुरता से नष्ट किया है; उस ने रोष में आकर यहूदा की पुत्री के दृढ़ गढ़ोंको ढाकर मिट्टी में मिला दिया है; उस ने हाकिमोंसमेत राज्य को अपवित्र ठहराया है। 3. उस ने क्रोध में आकर इस्राएल के सींग को जड़ से काट डाला है; उस ने शत्रु के साम्हने उनकी सहाथता करने से अपना दहिना हाथ खींच लिया हे; उस ने चारोंओर भस्म करती हुई लौ की नाई याकूब को जला दिया है। 4. उस ने शत्रु बनकर धनुष चढ़ाया, और वैरी बनकर दहिना हाथ बढ़ाए हुए खड़ा है; और जितने देखने में मनभावने थे, उन सब को उस ने घात किया; सिय्योन की पुत्री के तम्बू पर उस ने आग की नाई अपक्की जलजलाहट भड़का दी है। 5. यहोवा शत्रु बन गया, उस ने इस्राएल को निगल लिया; उसके सारे भवनोंको उस ने मिटा दिया, और उसके दृढ़ गढ़ोंको नष्ट कर डाला है; और यहूदा की पुत्री का दोना-पीटना बहुत बढ़ाय है। 6. उस ने अपना मण्डप बारी के मचान की नाई अचानक गिरा दिया, अपके मिलापस्यान को उस ने नाश किया है; यहोवा ने सिय्योन में नियत वर्वर् और विश्रमदिन दोनोंको भुला दिया है, और अपके भड़के हुए कोप से राजा और साजक दोनोंका तिरस्कार किया है। 7. यहोवा ने अपक्की वेदी मन से उतार दी, और अपना कवित्रस्यान अपमान के साय तज दिया है; उसके भवनोंकी भीतोंको उस ने शत्रुओं के वश में कर दिया; यहोवा के भवन में उन्होंने ऐसा कोलाहल मचाया कि मानो नियत वर्ष का दिन हो। 8. यहोवा ने सिय्योन की कुमारी की शहरपनाह तोड़ डालने को ठाना या: उस ने डोरी डाली और अपना हाथ उसे नाश करने से नहीं खींचा; उस ने किले और शहरपनाह दोनोंसे विलाप करवाया, वे दोनोंएक साय गिराए गए हैं। 9. उसके फाटक भूमि में धय गए हैं, उनके बेड़ोंको उस ने तोडकर नाश किया। उसके राजा और हाकिम अन्यजातियोंमें रहने के कारण व्यवस्यारहित हो गए हैं, और उसके भविष्यद्वक्ता यहोवा से दर्शन नहीं पाते हैं। 10. सिय्योन की पुत्री के पुरनिथे भूमि पर चुपचाप बैठे हैं; उन्होंने अपके सिर पर धूल उड़ाई और टाट का फेंटा बान्धा है; यरूशलेम की कूमारियोंने अपना अपना सिर भूमि तक फुकाया है। 11. मेरी आंखें आंसू बहाते बहाते रह गई हैं; मेरी अन्तडिय़ां ऐंठी जाती हैं; मेरे लोगोंकी पुत्री के विनाश के कारण मेरा कलेजा फट गया है, क्योंकि बच्चे वरन दूधपिउवे बच्चे भी नगर के चौकोंमे मूच्छिर्त होते हैं। 12. वे अपक्की अपक्की माता से रोकर कहते हैं, अन्न और दाखमधु कहां हैं? वे नगर के चौकोंमें घायल किए हुए मनुष्य की नाई मूच्छिर्त होकर अपके प्राण अपक्की अपक्की माता की गोद में छोड़ते हैं। 13. हे यरूशलेम की पुत्री, मैं तुझ से क्या कहूं? मैं तेरी उपमा किस से दूं? हे सिय्योन की कुमारी कन्या, मैं कौन सी वस्तु तेरे समान ठहराकर तुझे शान्ति दूं? क्योंकि तेरा दु:ख समुद्र सा अपार है; तुझे कौन चंगा कर सकता है? 14. तेरे भविष्यद्वक्ताओं ने दर्शन का दावा करके तुझ से व्यर्य और मूर्खता की बातें कही हैं; उन्होंने तेरा अधर्म प्रगट नहीं किया, नहीं तो तेरी व्रधुआई न होने पाती; परन्तु उन्होंने तुझे व्यर्य के और फूठे वचन बताए। जो तेरे लिथे देश से निकाल दिए जाने का कारण हुए। 15. सब बटोही तुझ पर ताली बजाते हैं; वे यरूशलेम की पुत्री पर यह कहकर ताली बजाते और सिर हिलाते हैं, क्या यह वही नगरी है जिसे परमसुन्दरी और सारी पृय्वी के हर्ष का कारण कहते थे? 16. तेरे सब शत्रुओं ने तुझ पर मुंह पसारा है, वे ताली बजाते और दांत पीसते हैं, वे कहते हैं, हम उसे निगल गए हैं ! जिस दिन की बाट हम जोहते थे, वह यही है, वह हम को मिल गया, हम उसको देख चुके हैं ! 17. यहोवा ने जो कुछ ठाना या वही किया भी है, जो वचन वह प्राचीनकाल से कहता आया है वही उस ने पूरा भी किया है; उस ने निठुरता से तुझे ढा दिया है, उस ने शत्रुओं को तुझ पर आनन्दित किया, और तेरे द्रोहियोंके सींग को ऊंचा किया हे। 18. वे प्रभु की ओर तन मन से पुकारते हैं ! हे सिय्योन की कुमारी (की शहरपनाह), अपके आंसू रात दिन नदी की नाई बहाती रह ! तनिक भी विश्रम न ले, न तेरी आंख की पुतली चैन ले ! 19. रात के हर पहर के आरम्भ में उठकर चिल्लाया कर ! प्रभु के सम्मुख अपके मन की बातोंको घारा की नाई उण्डेल ! तेरे बालबच्चे जो हर एक सड़क के सिक्के पर भूख के कारण मूच्छिर्त हो रहे हैं, उनके प्राण के निमित्त अपके हाथ उसकी ओर फैला। 20. हे यहोवा दृष्टि कर, और ध्यान से देख कि तू ने यह सब दु:ख किस को दिया है? क्या स्त्रियां अपना फल अर्यात् अपक्की गोद के बच्चोंको खा डालें? हे प्रभु, क्या याजक और भविष्यद्वक्ता तेरे पवित्रस्यान में घात किए जएं? 21. सड़कोंमें लड़के और बूढ़े दोनोंभूमि पर पके हैं; मेरी कुमारियां और जवान लोग तलवार से गिर गए हैं; तू ने कोप करने के दिन उन्हें घात किया; तू ने निठुरता के साय उनका वध किया है। 22. तू ने मेरे भय के कारणोंके नियत पर्व की भीड़ के समान चारोंओर से बुलाया है; और यहोवा के कोप के दिन न तो कोई भाग निकला और न कोई बच रहा है; जिन को मैं ने गोद में लिया और पाल-पोसकर बढ़ाया या, मेरे शत्रु ने उनका अन्त कर डाला है।
Chapter 3
1. उसके रोष की छड़ी से दु:ख भोगनेवाला पुरुष मैं ही हूं; 2. वह मुझे ले जाकर उजियाले में नहीं, अन्धिक्कारने ही में चलाता है; 3. उसका हाथ दिन भर मेरे ही विरुद्ध उठता रहता है। 4. उस ने मेरा मांस और चमड़ा गला दिया है, और मेरी हड्डियोंको तोड़ दिया है; 5. उस ने मुझे रोकने के लिथे किला बनाया, और मुझ को कठिन दु:ख और श्र्म से घेरा है; 6. उस ने मुझे बहुत दिन के मरे हुए लोगोंके समान अन्धेरे स्यानोंमें बसा दिया है। 7. मेरे चारोंओर उस ने बाड़ा बान्धा है कि मैं निकल नहीं सकता; उस ने मुझे भारी सांकल से जकड़ा है; 8. मैं चिल्ला चिल्लाके दोहाई देता हूँ, तौभी वह मेरी प्रार्यता नहीं सुनता; 9. मेरे मागॉं को उस ने गढ़े हुए पत्यरोंसे रोक रखा है, मेरी डगरोंको उस ने टेढ़ी कर दिया है। 10. वह मेरे लिथे घात में बैठे हुए रीछ और घात लगाए हुए सिंह के समान है; 11. उस ने मुझे मेरे मागॉं से भुला दिया, और मुझे फाड़ डाला; उस ने मुझ को उजाड़ दिया है। 12. उस ने धनुष चढ़ाकर मुझे अपके तीर का निशाना बनाया है। 13. उस ने अपक्की तीरोंसे मेरे ह्रृदय को बेध दिया है; 14. सब लोग मुझ पर हंसते हैं और दिन भर मुझ पर ढालकर गाीत गाते हैं, 15. उस ने मुझे कठिन दु:ख से भर दिया, और नागदौना पिलाकर तृप्त किया है। 16. उस ने मेरे दांतोंको कंकरी से तोड़ डाला, और मुझे राख से ढांप दिया है; 17. और मुझ को मन से उतारकर कुशल से रहित किया है; मैं कल्याण भूल गया हूँ; 18. इसलिऐ मैं ने कहा, मेरा बल नाश हुआ, और मेरी आश जो यहोवा पर यी, वह टूट गई है। 19. मेरा दु:ख और मारा मारा फिरना, मेरा नागदौने और-और विष का पीना स्मरण कर ! 20. मैं उन्हीं पर सोचता रहता हूँ, इस से मेरा प्राण ढला जाता है। 21. परन्तु मैं यह स्मरण करता हूँ, इसीलिथे मुझे आाशा है: 22. हम मिट नहीं गए; यह यहोवा की महाकरुणा का फल है, क्योंकि उसकी दया अमर है। 23. प्रति भोर वह नई होती रहती है; तेरी सच्चाई महान है। 24. मेरे मन ने कहा, यहोवा मेरा भाग है, इस कारण मैं उस में आशा रखूंगा। 25. जो यहोवा की बाट जोहते और उसके पास जाते हैं, उनके लिथे यहोवा भला है। 26. यहोवा से उद्धार पाने की आशा रखकर चुपचाप रहना भला है। 27. पुरुष के लिथे जवानी में जूआ उठाना भला है। 28. वह यह जानकर अकेला चुपचाप रहे, कि परमेश्वर ही ने उस पर यह बोफ डाला है; 29. वह अपना मुंह धूल में रखे, कया जाने इस में कुछ आशा हो; 30. वह अपना गाल अपके मारनेवाले की ओर फेरे, और नामधराई सहता रहे। 31. क्योंकि प्रभु मन से सर्वदा उतारे नहीं रहता, 32. चाहे वह दु:ख भी दे, तौभी अपक्की करुणा की बहुतायत के कारण वह दया भी करता है; 33. क्योंकि वह मनुष्योंको अपके मन से न तो दबाता है और न दु:ख देता है। 34. पृय्वी भर के बंधुओं को पांव के तले दलित करना, 35. किसी पुरुष का हक़ परमप्रधान के साम्हने मारना, 36. और किसी मनुष्य का मुक़द्दमा बिगाड़ना, इन तीन कामोंको यहोवा देख नहीं सकता। 37. यदि यहोवा ने आज्ञा न दी हो, तब कौन है कि वचन कहे और वह पूरा हो जाए? 38. विपत्ति और कल्याण, क्या दोनोंपरमप्रधान की आज्ञा से नहीं होते? 39. सो जीवित मनुष्य क्योंकुड़कुड़ाए? और पुरुष अपके पाप के दण्ड को क्योंबुरा माने? 40. हम अपके चालचलन को ध्यान से परखें, और यहोवा की ओर फिरें ! 41. हम स्वर्गवासी परमेश्वर की ओर मन लगाएं और हाथ फैलाएं और कहें: 42. हम ने तो अपराध और बलवा किया है, और तू ने झ्मा नहीं किया। 43. तेरा कोप हम पर है, तू हमारे पीछे पड़ा है, तू ने बिना तरस खाए घात किया है। 44. तू ने अपके को मेघ से घेर लिया है कि तुझ तक प्रार्यना न पहुंच सके। 45. तू ने हम को जाति जाति के लोगोंके बीच में कूड़ा-कर्कट सा ठहराया है। 46. हमारे सब शत्रुओं ने हम पर अपना अपना मुंह फैलाया है; 47. भय और गड़हा, उजाड़ और विनाश, हम पर आ पके हैं; 48. मेरी आंखोंसे मेरी प्रजा की पुत्री के विनाश के कारण जल की धाराएं बह रही है। 49. मेरी आंख से लगातार आंसू बहते रहेंगे, 50. जब तक यहोवा स्वर्ग से मेरी ओर न देखे; 51. अपक्की नगरी की सब स्त्रियोंका हाल देखने पर मेरा दु:ख बढ़ता है। 52. जो व्यर्य मेरे शत्रु बने हैं, उन्होंने निर्दयता से चिडिय़ा के समान मेरा आहेर किया है; 53. उन्होंने मुझे गड़हे में डालकर मेरे जीवन का अन्त करने के लिथे मेरे ऊपर पत्यर लुढ़काए हैं; 54. मेरे सिर पर से जल बह गया, मैं ने कहा, मैं अब नाश हो गया। 55. हे यहोवा, गहिरे गड़हे में से मैं ने तुझ से प्रार्यना की; 56. तू ने मेरी सुनी कि जो दोहाई देकर मैं चिल्लाता हूँ उस से कान न फेर ले ! 57. जब मैं ने तुझे पुकारा, तब तू ने मुझ से कहा, मत डर ! 58. हे यहोवा, तू ने मेरा मुक़द्दमा लड़कर मेरा प्राण बचा लिया है। 59. हे यहोवा, जो अन्याय मुझ पर हुआ है उसे तू ने देखा है; तू मेरा न्याय चुका। 60. जो बदला उन्होंने मुझ से लिया, और जो कल्पनाएं मेरे विरुद्ध कीं, उन्हें भी तू ने देखा है। 61. हे यहोवा, जो कल्पनाएं और निन्दा वे मेरे विरुद्ध करते हैं, वे भी तू ने सुनी हैं। 62. मेरे विरोधियोंके वचन, और जो कुछ भी वे मेरे विरुद्ध लगातार सोचते हैं, उन्हें तू जानता है। 63. उनका उठना-बैठना ध्यान से देख; वे मुझ पर लगते हुए गीत गाते हैं। 64. हे यहोवा, तू उनके कामोंके अनुसार उनको बदला देगा। 65. तू उनका मन सुन्न कर देगा; तेरा शाप उन पर होगा। 66. हे यहोवा, तू अपके कोप से उनको खदेड़-खदेड़कर धरती पर से नाश कर देगा।
Chapter 4
1. सोना कैसे खोटा हो गया, अत्यन्त खरा सोना कैसे बदल गया है? पवित्रस्यान के पत्यर तो हर एक सड़क के सिक्के पर फेंक दिए गए हैं। 2. सिय्योन के उत्तम पुत्र जो कुन्दन के तुल्य थे, वे कुम्हार के बनाए हुए मिट्टी के घड़ोंके समान कैसे तुच्छ गिने गए हैं ! 3. गीदड़िन भी अपके बच्चोंको यन से लगाकर पिलाती है, परन्तु मेरे लोगोंकी बेटी वन के शुतुर्मुगॉं के तुल्य निर्दयी हो गई है। 4. दूधपीउवे बच्चोंकी जीभ प्यास के मारे तालू में चिपट गई है; बालबच्चे रोटी मांगने हैं, परन्तु कोई उनको नहीं देता। 5. जो स्वादिष्ट भेजन खाते थे, वे अब सड़कोंमें व्याकुल फिरते हैं; जो मखमल के वस्त्रोंमें पके यो अब घूरोंपर लेटते हैं। 6. मेरे लोगोंकी बेटी का अधर्म सदोम के पाप से भी अधिक हो गया जो किसी के हाथ डाले बिना भी झण भर में उलट गया या। 7. उसके कुलीन हिम से निर्मल और दूध से भी अधिक उज्ज्वल थे; उनकी देह मूंगोंसे अधिक लाल, और उनकी सुन्दरता नीलमणि की सी यी। 8. परन्तु अब उनका रूप अन्धकार से भी अधिक काला है, वे सड़कोंमें चीन्हें नहीं जाते; उनका चमड़ा हड्डियोंमें सट गया, और लकड़ी के समान सूख गया है। 9. तलवार के मारे हुए भूख के मारे हुओं से अधिक अच्छे थे जिनका प्राण खेत की उपज बिना भूख के मारे सूखता जाता हे। 10. दयालु स्त्रियोंने अपके ही हाथोंसे अपके बच्चोंको पकाया है; मेरे लोगोंके विनाश के समय वे ही उनका आहार बन गए। 11. यहोवा ने अपक्की पूरी जलजलाहट प्रगट की, उस ने अपना कोप बहुत ही भड़काया; और सिय्योन में ऐसी आग लगाई जिस से उसकी नेव तक भस्म हो गई हे। 12. पृय्वी का कोई राजा वा जगत का कोई बांसी इसकी कभी प्रतीति न कर सकता या, कि द्रोही और शत्रु यरूशलेम के फाटकोंके भीतर घुसने पाएंगे। 13. यह उसके भविष्यद्वक्ताओं के पापोंऔर उसके याजकोंके अधर्म के कामोंके कारण हुआ है; क्योंकि वे उसके बीच धमिर्योंकी हत्या करते आए हैं। 14. वे अब सड़कोंमें अन्धे सरीखे मारे मारे फिरते हैं, और मानो लोहू की छींटोंसे यहां तक अशुद्ध हैं कि कोई उनके वस्त्र नहीं छू सकता। 15. लोग उनको पुकारकर कहते हैं, अरे अशुद्ध लोगो, हट जाओ ! हट जाओ ! हम को मत छूओ ! जब वे भागकर मारे मारे फिरने लगे, तब अन्यजाति लोगोंने कहा, भविष्य में वे यहां टिकने नहीं पाएंगे। 16. यहोवा ने अपके कोप से उन्हें तितर-बितर किया, वह फिर उन पर दया दृष्टि न करेगा; न तो याजकोंका सन्मान हुआ, और न पुरनियोंपर कुछ अनुग्रह किया गया। 17. हमारी आंखें व्यर्य ही सहाथता की बाट जोहते जोहते रह गई हैं, हम लगातार एक ऐसी जाति की ओर ताकते रहे जो बचा नहीं सकी। 18. लोग हमारे पीछे ऐसे पके कि हम अपके नगर के चौकोंमें भी नहीं चल सके; हमारा अन्त निकट आया; हमारी आयु पूरी हुई; क्योंकि हमारा अन्त आ गया या। 19. हमारे खदेड़नेवाले आकाश के उकाबोंसे भी अधिक वेग से चलते थे; वे पहाड़ोंपर हमारे पीछे पड़ गए और जंगल में हमारे लिथे घात लगाकर बैठ गए। 20. यहोवा का अभिषिक्त जो हमारा प्राण या, और जिसके विषय हम ने सोचा या कि अन्यजातियोंके बीच हम उसकी शरण में जीवित रहेंगे, वह उनके खोदे हुए गड़होंमें पकड़ा गया। 21. हे एदोम की पुत्री, तू जो ऊज देश में रहती है, हषिर्त और आनन्दित रह; परन्तु यह कटोरा तुझ तक भी पहुंचेगा, और तू मनवाली होकर अपके आप को नंगा करेगी। 22. हे यिय्योन की पुत्री, तेरे अधर्म का दण्ड समाप्त हुआ, वह फिर तुझे बंधुआई में न ले जाएगा; परन्तु हे एदोम की पुत्री, तेरे अधर्म का दण्ड वह तुझे देगा, वह तेरे पापोंको प्रगट कर देगा।
Chapter 5
1. हे यहोवा, स्मरण कर कि हम पर क्या क्या बीता है; हमारी ओर दृष्टि करके हमारी नामधराई को देख ! 2. हमारा भाग परदेशियोंका हो गया ओर हमारे घर परायोंके हो गए हैं। 3. हम अनाय और पिताहीन हो गए; हमारी माताएं विधवा सी हो गई हैं। 4. हम मोल लेकर पानी पीते हैं, हम को लकड़ी भी दाम से मिलती है। 5. खदेड़नेवाले हमारी गर्दन पर टूट पके हैं; हम यक गए हैं, हमें विश्रम नहीं मिलता। 6. हम स्वयं मिस्र के अधीन हो गए, और अश्शूर के भी, ताकि पेट भर सकें। 7. हमारे पुरखाओं ने पाप किया, ओर मर मिटे हैं; परन्तु उनके अधर्म के कामोंका भार हम को उठाना पड़ा है। 8. हमारे ऊपर दास अधिक्कारने रखते हैं; उनके हाथ से कोई हमें नहीं छुड़ाता। 9. जंगल में की तलवार के कारण हम अपके प्राण जोखिम में डालकर भोजनवस्तु ले आते हैं। 10. भूख की फुलसाने वाली आग के कारण, हमारा चमड़ा तंदूर की नाई काला हो गया है। 11. सिय्योन में स्त्रियां, और यहूदा के नगरोंमें कुमारियां भ्रष्ट की गई हैं। 12. हाकिम हाथ के बल टांगे गए हैं; और पुरनियोंका कुछ भी आदर नहीं किया गया। 13. जवानोंको चक्की चलानी पड़ती है; और लड़केबाले लकड़ी का बोफ उठाते हुए लडखड़ाते हैं। 14. अब फाटक पर पुरनिथे नहीं बैठते, न जवानोंका गीत सुनाई पड़ता है। 15. हमारे मन का हर्ष जाता रहा, हमारा नाचना विलाप में बदल गया है। 16. हमारे सिर पर का मुकुट गिर पड़ा हे; हम पर हाथ, क्योंकि हम ने पाप किया है ! 17. इस कारण हमारा ह्रृदय निर्बल हो गया है, इन्हीं बातोंसे हमारी आंखें धुंधली पड़ गई हैं, 18. क्योंकि सिय्योन पर्वत उजाड़ पड़ा है; उस में सियार घूमते हैं। 19. परन्तु हे यहोवा, तू तो सदा तक विराजमान रहेगा; तेरा राज्य पीढ़ी-पीढ़ी बना रहेगा। 20. तू ने क्योंहम को सदा के लिथे भुला दिया है, और क्योंबहुत काल के लिथे हमें छोड़ दिया है? 21. हे यहोवा, हम को अपक्की ओर फेर, तब हम फिर सुधर जाएंगे। प्राचीनकाल की नाई हमारे दिन बदलकर ज्योंके त्योंकर दे ! 22. क्या तू ने हमें बिल्कुल त्याग दिया हे? क्या तू हम से अत्यन्त क्रोधित है?
(April28th2012)
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