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न्यायियों

Chapter 1

1. यहोशू के मरने के बाद इस्राएलियोंने यहोवा से पूछा, कि कनानियोंके विरूद्ध लड़ने को हमारी ओर से पहिले कौन चढ़ाई करेगा?
2. यहोवा ने उत्तर दिया, यहूदा चढ़ाई करेगा; सुनो, मैं ने इस देश को उसके हाथ में दे दिया है।
3. तब यहूदा ने अपके भाई शिमोन से कहा, मेरे संग मेरे भाग में आ, कि हम कनानियोंसे लड़ें; और मैं भी तेरे भाग में जाऊंगा। सो शिमोन उसके संग चला।
4. और यहूदा ने चढ़ाई की, और यहोवा ने कनानियोंऔर परिज्जियोंको उसके हाथ में कर दिया; तब उन्होंने बेजेक में उन में से दस हजार पुरूष मार डाले।
5. और बेजेक में अदोनीबेजेक को पाकर वे उस से लड़े, और कनानियोंऔर परिज्जियोंको मार डाला।
6. परन्तु अदोनीबेजेक भागा; तब उन्होंने उसका पीछा करके उसे पकड़ लिया, और उसके हाथ पांव के अंगूठे काट डाले।
7. तब अदोनीबेजेक ने कहा, हाथ पांव के अंगूठे काटे हुए सत्तर राजा मेरी मेज के नीचे टुकड़े बीनते थे; जैसा मैं ने किया या, वैसा ही बदला परमेश्वर ने मुझे दिया है। तब वे उसे यरूशलेम को ले गए और वहां वह मर गया।।
8. और यहूदियोंने यरूशलेम से लड़कर उसे ले लिया, और तलवार से उसके निवासिक्कों मार डाला, और नगर को फूंक दिया।
9. और तब यहूदी पहाड़ी देश और दक्खिन देश, और नीचे के देश में रहनेवाले कनानियोंसे लड़ने को गए।
10. और यहूदा ने उन कनानियोंपर चढ़ाई की जो हेब्रोन में रहते थे (हेब्रोन का नाम तो पूर्वकाल में किर्यतर्बा या); और उन्होंने शेशै, अहीमन, और तल्मै को मार डाला।
11. वहां से उस ने जाकर दबीर के निवासियोंपर चढ़ाई की। (दबीर का नाम तो पूर्वकाल में किर्यत्सेपेर या।)
12. तब कालेब ने कहा, जो किर्यत्सेपेर को मारके ले ले उसे मैं अपक्की बेटी अकसा को ब्याह दूंगा।
13. इस पर कालेब के छोटे भाई कनजी ओत्नीएल ने उसे ले लिया; और उस ने उसे अपक्की बेटी अकसा को ब्याह दिया।
14. और जब वह ओत्नीएल के पास आई, तब उस ने उसको अपके पिता से कुछ भूमि मांगने को उभारा; फिर वह अपके गदहे पर से उतरी, तब कालेब ने उस से पूछा, तू क्या चाहती है?
15. वह उस से बोली मुझे आशीर्वाद दे; तू ने मुझे दक्खिन देश तो दिया है, तो जल के सोते भी दे। इस प्रकार कालेब ने उसको ऊपर और नीचे के दोनोंसोते दे दिए।।
16. और मूसा के साले, एक केनी मनुष्य के सन्तान, यहूदी के संग खजूर वाले नगर से यहूदा के जंगल में गए जो अराद के दक्खिन की ओर है, और जाकर इस्राएल लोगोंके साय रहने लगे।
17. फिर यहूदा ने अपके भाई शिमोन के संग जाकर सपत में रहनेवाले कनानियोंको मार लिया, और उस नगर को सत्यानाश कर डाला। इसलिथे उस नगर का नाम होर्मा पड़ा।
18. और यहूदा ने चारोंओर की भूमि समेत अज्जा, अशकलोन, और एक्रोन को ले लिया।
19. और यहोवा यहूदा के साय रहा, इसलिथे उस ने पहाड़ी देश के निवासिक्कों निकाल दिया; परन्तु तराई के निवासियोंके पास लोहे के रय थे, इसलिथे वह उन्हें न निकाल सका।
20. और उन्होंने मूसा के कहने के अनुसार हेब्रोन कालेब को दे दिया: और उस ने वहां से अनाक के तीनोंपुत्रोंको निकाल दिया।
21. और यरूशलेम में रहनेवाले यबूसिक्कों बिन्यामीनियोंने न निकाला; इसलिथे यबूसी आज के दिन तक यरूशलेम में बिन्यामीनियोंके संग रहते हैं।।
22. फिर यूसुफ के घराने ने बेतेल पर चढ़ाई की; और यहोवा उनके संग या।
23. और यूसुफ के घराने ने बेतेल का भेद लेने को लोग भेजे। (और उस नगर का नाम पूर्वकाल में लूज या।)
24. और पहरूओं ने एक मनुष्य को उस नगर से निकलते हुए देखा, और उस से कहा, नगर में जाने का मार्ग हमें दिखा, और हम तुझ पर दया करेंगे।
25. जब उस ने उन्हें नगर में जाने का मार्ग दिखाया, तब उन्होंने नगर को तो तलवार से मारा, परन्तु उस मनुष्य को सारे घराने समेत छोड़ दिया।
26. उस मनुष्य ने हित्तियोंके देश में जाकर एक नगर बसाया, और उसका नाम लूज रखा; और आज के दिन तक उसका नाम वही है।।
27. मनश्शे ने अपके अपके गांवोंसमेत बेतशान, तानाक, दोर, यिबलाम, और मगिद्दोंके निवासिक्कों न निकाला; इस प्रकार कनानी उस देश में बसे ही रहे।
28. परन्तु जब इस्राएली सामर्यी हुए, तब उन्होंने कनानियोंसे बेगारी ली, परन्तु उन्हें पूरी रीति से न निकाला।।
29. और एप्रैम ने गेजेर में रहनेवाले कनानियोंको न निकाला; इसलिथे कनानी गेजेर में उनके बीच में बसे रहे।।
30. जबलून ने कित्रोन और नहलोल के निवासिक्कों न निकाला; इसलिथे कनानी उनके बीच में बसे रहे, और उनके वश में हो गए।।
31. आशेर ने अक्को, सीदोन, अहलाब, अकजीब, हेलवा, अपीक, और रहोब के निवासियोंके बीच में बस गए; क्योंकि उन्होंने उनको न निकाला या।।
32. इसलिथे आशेरी लोग देश के निवासी कनानियोंके बीच में बस गए; क्योंकि उन्होंने उनको न निकाला या।।
33. नप्ताली ने बेतशेमेश और बेतनात के निवासिक्कों न निकाला, परन्तु देश के निवासी कनानियोंके बीच में बस गए; तौभी बेतशेमेश और बेतनात के लोग उनके वश में हो गए।।
34. और एमोरियोंने दानियोंको पहाड़ी देश में भगा दिया, और तराई में आने न दिया;
35. इसलिथे एमोरी हेरेस नाम पहाड़, अय्यलोन और शालबीम में बसे ही रहे, तौभी यूसुफ का घराना यहां तक प्रबल हो गया कि वे उनके वश में हो गए।
36. और एमोरियोंके देश का सिवाना अक्रब्बीम नाम पर्वत की चढ़ाई से आरम्भ करके ऊपर की ओर या।।

Chapter 2

1. और यहोवा का दूत गिलगाल से बोकीम को जाकर कहने लगा, कि मैं ने तुम को मिस्र से ले आकर इस देश में पहुंचाया है, जिसके विषय में मैं ने तुम्हारे पुरखाओं से शपय खाई यी। और मैं ने कहा या, कि जो वाचा मैं ने तुम से बान्धी है, उसे मैं कभी न तोडूंगा;
2. इसलिथे तुम इस देश के निवासिक्कों वाचा न बान्धना; तुम उनकी वेदियोंको ढा देना। परन्तु तुम ने मेरी बात नहीं मानी। तुम ने ऐसा क्योंकिया है?
3. इसलिथे मैं कहता हूं, कि मैं उन लोगोंको तुम्हारे साम्हने से न निकालूंगा; और वे तुम्हारे पांजर में कांटे, और उनके देवता तुम्हारे लिथे फंदे ठहरेंगे।
4. जब यहोवा के दूत ने सारे इस्राएलियोंसे थे बातें कहीं, तब वे लोग चिल्ला चिल्लाकर रोने लगे।
5. और उन्होंने उस स्यान का नाम बोकीम रखा। और वहां उन्होंने यहोवा के लिथे बलि चढ़ाया।।
6. जब यहोशू ने लोगोंको विदा किया या, तब इस्राएली देश को अपके अधिक्कारने में कर लेने के लिथे अपके अपके निज भाग पर गए।
7. और यहोशू के जीवन भर, और उन वृद्ध लोगोंके जीवन भर जो यहोशू के मरने के बाद जीवित रहे और देख चुके थे कि यहोवा ने इस्राएल के लिथे कैसे कैसे बड़े काम किए हैं, इस्राएली लोग यहोवा की सेवा करते रहे।
8. निदान यहोवा का दास नून का पुत्र यहोशू एक सौ दस वर्ष का होकर मर गया।
9. और उसको तिम्नथेरेस में जो एप्रैम के पहाड़ी देश में गाश नाम पहाड़ की उत्तर अलंग पर है, उसी के भाग में मिट्टी दी गई।
10. और उस पीढ़ी के सब लोग भी अपके अपके पितरोंमें मिल गए; तब उसके बाद जो दूसरी पीढ़ी हुई उसके लोग न तो यहोवा को जानते थे और न उस काम को जो उस ने इस्राएल के लिथे किया या।।
11. इसलिथे इस्राएली वह करने लगे जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, और बाल नाम देवताओं की उपासना करने लगे;
12. वे अपके पूर्वजोंके परमेश्वर यहोवा को, जो उन्हें मिस्र देश से निकाल लाया या, त्यागकर पराथे देवताओं की उपासना करने लगे, और उन्हें दण्डवत्‌ किया; और यहोवा को रिस दिलाई।
13. वे यहोवा को त्याग कर के बाल देवताओं और अशतोरेत देवियोंकी उपासना करने लगे।
14. इसलिथे यहोवा का कोप इस्राएलियोंपर भड़क उठा, और उस ने उनको लुटेरोंके हाथ में कर दिया जो उन्हें लूटने लगे; और उस ने उनको चारोंओर के शत्रुओं के आधीन कर दिया; और वे फिर अपके शत्रुओं के साम्हने ठहर न सके।
15. जहां कहीं वे बाहर जाते वहां यहोवा का हाथ उनकी बुराई में लगा रहता या, जैसे यहोवा ने उन से कहा या, वरन यहोवा ने शपय खाई यी; इस प्रकार से बड़े संकट में पड़ गए।
16. तौभी यहोवा उनके लिथे न्यायी ठहराता या जो उन्हें लूटनेवाले के हाथ से छुड़ाते थे।
17. परन्तु वे अपके न्यायियोंकी भी नहीं मानते थे; वरन व्यभिचारिन की नाईं पराथे देवताओं के पीछे चलते और उन्हें दण्डवत्‌ करते थे; उनके पूर्वज जो यहोवा की आज्ञाएं मानते थे, उनकी उस लीक को उन्होंने शीघ्र ही छोड़ दिया? और उनके अनुसार न किया।
18. और जब जब यहोवा उनके लिथे न्यायी को ठहराता तब तब वह उस न्यायी के संग रहकर उसके जीवन भर उन्हें शत्रुओं के हाथ से छुड़ाता या; क्योंकि यहोवा उनका कराहना जो अन्धेर और उपद्रव करनेवालोंके कारण होता या सुनकर दु:खी या।
19. परन्तु जब न्यायी मर जाता, तब वे फिर पराथे देवताओं के पीछे चलकर उनकी उपासना करते, और उन्हें दण्डवत्‌ करके अपके पुरखाओं से अधिक बिगड़ जाते थे; और अपके बुरे कामोंऔर हठीली चाल को नहीं छोड़ते थे।
20. इसलिथे यहोवा का कोप इस्राएल पर भड़क उठा; और उस ने कहा, इस जाति ने उस वाचा को जो मैं ने उनके पूर्वजोंसे बान्धी यी तोड़ दिया, और मेरी बात नहीं मानी,
21. इस कारण जिन जातियोंको यहोशू मरते समय छोड़ गया है उन में से मैं अब किसी को उनके साम्हने से न निकालूंगा;
22. जिस से उनके द्वारा मैं इस्राएलियोंकी पक्कीझा करूं, कि जैसे उनके पूर्वज मेरे मार्ग पर चलते थे वैसे ही थे भी चलेंगे कि नहीं।
23. इसलिथे यहोवा ने उन जातियोंको एकाएक न निकाला, वरन रहने दिया, और उस ने उन्हें यहोशू के हाथ में भी उनको न सौंपा या।।

Chapter 3

1. इस्राएलियोंमें से जितने कनान में की लड़ाईयोंमें भागी न हुए थे, उन्हें परखने के लिथे यहोवा ने इन जातियोंको देश में इसलिथे रहने दिया;
2. कि पीढ़ी पीढ़ी के इस्राएलियोंमें से जो लड़ाई को पहिले न जानते थे वे सीखें, और जान लें,
3. अर्यात्‌ पांचो सरदारोंसमेत पलिश्तियों, और सब कनानियों, और सीदोनियों, और बालहेर्मोन नाम पहाड़ से लेकर हमात की तराई तक लबानोन पर्वत में रहनेवाले हिव्वियोंको।
4. थे इसलिथे रहने पाए कि उनके द्वारा इस्राएलियोंकी बात में पक्कीझा हो, कि जो आज्ञाएं यहोवा ने मूसा के द्वारा उनके पूर्वजोंको दिलाई यीं, उन्हें वे मानेंगे वा नहीं।
5. इसलिथे इस्राएली कनानियों, हित्तियों, एमोरियों, परिज्जियों, हिव्वियों, और यबूसियोंके बीच में बस गए;
6. तब वे उनकी बेटियां ब्याह में लेने लगे, और अपक्की बेटियां उनके बेटोंको ब्याह मे देने लगे; और उनके देवताओं की भी उपासना करने लगे।।
7. इस प्रकार इस्राएलियोंने यहोवा की दृष्टि में बुरा किया, और अपके परमेश्वर यहोवा को भूलकर बाल नाम देवताओं और अशेरा नाम देवियोंकी उपासना करने लग गए।
8. तब यहोवा का क्रोध इस्राएलियोंपर भड़का, और उस ने उनको अरम्नहरैम के राजा कूशत्रिशातैम के अधीन कर दिया; सो इस्राएली आठ वर्ष तक कूशत्रिशातैम के अधीन में रहे।
9. तब इस्राएलियोंने यहोवा की दोहाई दी, और उसने इस्राएलियोंके लिथे कालेब के छोटे भाई ओत्नीएल नाम एक कनजी छुड़ानेवाले को ठहराया, और उस ने उनको छुड़ाया।
10. उस में यहोवा का आत्मा समाया, और वह इस्राएलियोंका न्यायी बन गया, और लड़ने को निकला, और यहोवा ने अराम के राजा कूशत्रिशातैम को उसके हाथ में कर दिया; और वह कूशत्रिशातैम पर जयवन्त हुआ।
11. तब चालीस वर्ष तक देश में शान्ति बनी रही। और उन्हीं दिनोंमें कन्जी ओत्नीएल मर गया।।
12. तब इस्राएलियोंने फिर यहोवा की दृष्टि में बुरा किया; और यहोवा ने मोआब के राजा एग्लोन को इस्राएल पर प्रबल किया, क्योंकि उन्होंने यहोवा की दृष्टि में बुरा किया या।
13. इसलिथे उस ने अम्मोनियोंऔर अमालेकियोंको अपके पास इकट्ठा किया, और जाकर इस्राएल को मार लिया; और खजूरवाले नगर को अपके वश में कर लिया।
14. तब इस्राएली अठारह वर्ष तक मोआब के राजा एग्लोन के अधीन में रहे।
15. फिर इस्राएलियोंने यहोवा की दोहाई दी, और उस ने गेरा के पुत्र एहूद नाम एक बिन्यामीनी को उनका छुड़ानेवाला ठहराया; वह बैहत्या या। इस्राएलियोंने उसी के हाथ से मोआब के राजा एग्लोन के पास कुछ भेंट भेजी।
16. एहूद ने हाथ भर लम्बी एक दोधारी तलवार बनवाई यी, और उसको अपके वस्त्र के नीचे दाहिनी जांघ पर लटका लिया।
17. तब वह उस भेंट को मोआब के राजा एग्लोन के पास जो बड़ा मोटा पुरूष या ले गया।
18. जब वह भेंट को दे चुका, तब भेंट के लानेवाले को विदा किया।
19. परन्तु वह आप गिलगाल के निकट की खुदी हुई मूरतोंके पास लौट गया, और एग्लोन के पास कहला भेजा, कि हे राजा, मुझे तुझ से एक भेद की बात कहनी है। तब राजा ने कहा, योड़ी देर के लिथे बाहर जाओ। तब जितने लोग उसके पास उपस्यित थे वे सब बाहर चले गए।
20. तब एहूद उसके पास गया; वह तो अपक्की एक हवादार अटारी में अकेला बैठा या। एहूद ने कहा, परमेश्वर की ओर से मुझे तुझ से एक बात कहनी है। तब वह गद्दी पर से उठ खड़ा हुआ।
21. इतने में एहूद ने अपना बायां हाथ बढ़ाकर अपक्की दाहिनी जांघ पर से तलवार खींचकर उसकी तोंद में घुसेड़ दी;
22. और फल के पीछे मूठ भी पैठ गई, ओर फल चर्बी में धंसा रहा, क्योंकि उस ने तलवार को उसकी तोंद में से न निकाला; वरन वह उसके आरपार निकल गई।
23. तब एहूद छज्जे से निकलकर बाहर गया, और अटारी के किवाड़ खींचकर उसको बन्द करके ताला लगा दिया।
24. उसके निकल जाते ही राजा के दास आए, तो क्या देखते हैं, कि अटारी के किवाड़ोंमें ताला लगा है; इस कारण वे बोले, कि निश्चय वह हवादार कोठरी में लघुशंका करता होगा।
25. वे बाट जोहते जोहते लज्जित हो गए; तब यह देखकर कि वह अटारी के किवाड़ नहीं खोलता, उन्होंने कुंजी लेकर किवाड़ खोले तो क्या देखा, कि उनका स्वामी भूमि पर मरा पड़ा है।
26. जब तक वे सोच विचार कर ही रहे थे तब तक एहूद भाग निकला, और खूदी हुई मूरतोंकी परली ओर होकर सेइरे में जाकर शरण ली।
27. वहां पहुंचकर उस ने एप्रैम के पहाड़ी देश में नरसिंगा फूंका; तब इस्राएली उसके संग होकर पहाड़ी देश से उसके पीछे पीछे नीचे गए।
28. और उस ने उन से कहा, मेरे पीछे पीछे चले आओ; क्योंकि यहोवा ने तुम्हारे मोआबी शत्रुओं को तुम्हारे हाथ में कर दिया है। तब उन्होंने उसके पीछे पीछे जाके यरदन के घाटोंको जो मोआब देश की ओर है ले लिया, और किसी को उतरने न दिया।
29. उस समय उन्होंने कोई दस हजार मोआबियोंको मार डाला; वे सब के सब ह्रृष्ट पुष्ट और शूरवीर थे, परन्तु उन में से एक भी न बचा।
30. इस प्रकार उस समय मोआब इस्राएल के हाथ के तले दब गया। तब अस्सी वर्ष तक देश में शान्ति बनी रही।।
31. उसके बाद अनात का पुत्र शमगर हुआ, उस ने छ: सौ पलिश्ती पुरूषोंको बैल के पैने से मार डाला; इस कारण वह भी इस्राएल का छुड़ानेवाला हुआ।।

Chapter 4

1. जब एहूद मर गया तब इस्राएलियोंने फिर यहोवा की दृष्टि में बुरा किया।
2. इसलिथे यहोवा ने उनको हासोर में विराजनेवाले कनान के राजा याबीन के अधीन में कर दिया, जिसका सेनापति सीसरा या, जो अन्यजातियोंकी हरोशेत का निवासी या।
3. तब इस्राएलियोंने यहोवा की दोहाई दी; क्योंकि सीसरा के पास लोहे के नौ सौ रय थे, और वह इस्राएलियोंपर बीस वर्ष तक बड़ा अन्धेर करता रहा।
4. उस समय लप्पीदोत की स्त्री दबोरा जो नबिया यी इस्राएलियोंका न्याय करती यी।
5. वह एप्रैम के पहाड़ी देश में रामा और बेतेल के बीच में दबोरा के खजूर के तले बैठा करती यी, और इस्राएली उसके पास न्याय के लिथे जाया करते थे।
6. उस ने अबीनोअम के पुत्र बाराक को केदेश नप्ताली में से बुलाकर कहा, क्या इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने यह आज्ञा नहीं दी, कि तू जाकर ताबोर पहाड़ पर चढ़ और नप्तालियोंऔर जबूलूनियोंमें के दस हजार पुरूषोंको संग ले जा?
7. तब मैं याबीन के सेनापति सीसरा के रयोंऔर भीड़भाड़ समेत कीशोन नदी तक तेरी ओर खींच ले आऊंगा; और उसको तेरे हाथ में कर दूंगा।
8. बाराक ने उस से कहा, यदि तू मेरे संग चलेगी तो मैं जाऊंगा, नहीं तो न जाऊंगा।
9. उस ने कहा, नि:सन्देह मैं तेरे संग चलूंगी; तौभी यह यात्रा से तेरी तो कुछ बढ़ाई न होगी, क्योंकि यहोवा सीसरा को एक स्त्री के अधीन कर देगा। तब दबोरा उठकर बाराक के संग केदेश को गई।
10. तब बाराक ने जबूलून और नप्ताली के लोगोंको केदेश में बुलवा लिया; और उसके पीछे दस हजार पुरूष चढ़ गए; और दबोरा उसके संग चढ़ गई।
11. हेबेर नाम केनी ने उन केनियोंमें से, जो मूसा के साले होबाब के वंश के थे, अपके को अलग करके केदेश के पास के सानन्नीम के बांजवृझ तक जाकर अपना डेरा वहीं डाला य।
12. जब सीसरा को यह समाचार मिला कि अबीनोअम का पुत्र बाराक ताबोर पहाड़ पर चढ़ गया है,
13. तब सीसरा ने अपके सब रय, जो लोहे के नौ सौ रय थे, और अपके संग की सारी सेना को अन्यजातियोंके हरोशेत के कीशोन नदी पर बुलवाया।
14. तब दबोरा ने बाराक से कहा, उठ! क्योंकि आज वह दिन है जिस में यहोवा सीसरा को तेरे हाथ में कर देगा। क्या यहोवा तेरे आगे नहीं निकला है? इस पर बाराक और उसके पीछे पीछे दस हजार पुरूष ताबोर पहाड़ से उतर पके।
15. तब यहोवा ने सारे रयोंवरन सारी सेना समेत सीसरा को तलवार से बाराक के साम्हने घबरा दिया; और सीसरा रय पर से उतरके पांव पांव भाग चला।
16. और बाराक ने अन्यजातियोंके हरोशेत तक रयोंऔर सेना का पीछा किया, और तलवार से सीसरा की सारी सेना नष्ट की गई; और एक भी मनुष्य न बचा।।
17. परन्तु सीसरा पांव पांव हेबेर केनी की स्त्री याएल के डेरे को भाग गया; क्योंकि हासोर के राजा याबीन और हेबेर केनी में मेल या।
18. तब याएल सीसरा की भेंट के लिथे निकलकर उस से कहने लगी, हे मेरे प्रभु, आ, मेरे पास आ, और न डर। तब वह उसके पास डेरे में गया, और उस ने उसके ऊपर कम्बल डाल दिया।
19. तब सीसरा ने उस से कहा, मुझे प्यास लगी है, मुझे योड़ा पानी पिला। तब उस ने दूध की कुप्पी खोलकर उसे दूध पिलाया, और उसको ओढ़ा दिया।
20. तब उस ने उस से कहा, डेरे के द्वार पर खड़ी रह, और यदि कोई आकर तुझ से पूछे, कि यहां कोई पुरूष है? तब कहना, कोई भी नहीं।
21. इसके बाद हेबेर की स्त्री याएल ने डेरे की एक खूंटी ली, और अपके हाथ में एक हयौड़ा भी लिया, और दबे पांव उसके पास जाकर खूंटी को उसकी कलपक्की में ऐसा ठोक दिया कि खूंटी पार होकर भूमि में धंस गई; वह तो यका या ही इसलिथे गहरी नींद में सो रहा या। सो वह मर गया।
22. जब बाराक सीसरा का पीछा करता हुआ आया, तब याएल उस से भेंट करने के लिथे निकली, और कहा, इधर आ, जिसका तू खोजी है उसको मैं तुझे दिखाऊंगी। तब उस ने उसके साय जाकर क्या देखा; कि सीसरा मरा पड़ा है, और वह खूंटी उसकी कनपक्की में गड़ी है।
23. इस प्रकार परमेश्वर ने उस दिन कनान के राजा याबीन को इस्राएलियोंके साम्हने नीचा दिखाया।
24. और इस्राएली कनान के राजा याबीन पर प्रबल होते गए, यहां तक कि उन्होंने कनान के राजा याबीन को नष्ट कर डाला।।

Chapter 5

1. उसी दिन दबोरा और अबीनोअम के पुत्र बाराक ने यह गीत गाया,
2. कि इस्राएल के अगुवोंने जो अगुवाई की और प्रजा जो अपक्की ही इच्छा से भरती हुई, इसके लिथे यहोवा को धन्य कहो!
3. हे राजाओ, सुनो; हे अधिपतियोंकान लगाओ, मैं आप यहोवा के लिथे गीत गाऊंगी; इस्राएल के परमेश्वर यहोवा का मैं भजन करूंगी।।
4. हे यहोवा, जब तू सेईर से निकल चला, जब तू ने एदोम के देश से प्रस्यान किया, तब पृय्वी डोल उठी, और आकाश टूट पड़ा, बादल से भी जल बरसने लगा।।
5. यहोवा के प्रताप से पहाड़, इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के प्रताप से वह सीनै पिघलकर बहने लगा।
6. अनात के पुत्र शमगर के दिनोंमें, और याएल के दिनोंमें सड़कें सूनी पक्की यीं, और बटोही पगदंडियोंसे चलते थे।।
7. जब तक मैं दबोरा न उठी, जब तक मैं इस्राएल में माता होकर न उठी, तब तक गांव सूने पके थे।।
8. नथे नथे देवता माने गए, उस समय फाटकोंमें लड़ाई होती यी। क्या चालीस हजार इस्राएलियोंमें भी ढ़ाल वा बर्छी कहीं देखने में आती यी?
9. मेरा मन इस्राएल के हाकिमोंकी ओर लगा है, जो प्रजा के बीच में अपक्की ही इच्छा से भरती हुए। यहोवा को धन्य कहो।।
10. हे उजली गदहियोंपर चढ़नेवालो, हे फर्शोंपर विराजनेवालो, ध्यान रखो।।
11. परघटोंके आस पास धनुर्धारियोंकी बात के कारण, वहां वे यहोवा के धर्ममय कामोंका, इस्राएल के लिथे उसके धर्ममय कामोंका बखान करेंगे। उस समय यहोवा की प्रजा के लोग फाटकोंके पस गए।।
12. जाग, जाग, हे दबोरा! जाग, जाग, गीत सुना! हे बाराक, उठ, हे अबीनोअम के पुत्र, अपके बन्धुओं को बन्धुआई में ले चल।
13. उस समय योड़े से रईस प्रजा समेत उतर पके; यहोवा शूरवीरोंके विरूद्ध मेरे हित उतर आया।
14. एप्रैम में से वे आए जिसकी जड़ अमालेक में है; हे बिन्यामीन, तेरे पीछे तेरे दलोंमें, माकीर में से हाकिम, और जबूलून में से सेनापति दण्ड लिए हुए उतरे;
15. और इस्साकार के हाकिम दबोरा के संग हुए, जैसा इस्साकार वैसा ही बाराक भी या; उसके पीछे लगे हुए वे तराई में फपटकर गए। रूबेन की नदियोंके पास बड़े बड़े काम मन में ठाने गए।।
16. तू चरवाहोंका सीटी बजाना सुनने को भेड़शालोंके बीच क्योंबैठा रहा? रूबेन की नदियोंके पास बड़े बड़े काम सोचे गए।।
17. गिलाद यरदन पार रह गया; और दान क्योंजहाजोंमें रह गया? आशेर समुद्र के तीर पर बैठा रहा, और उसकी खाडिय़ोंके पास रह गया।।
18. जबलून अपके प्राण पर खेलनेवाले लोग ठहरे; नप्ताली भी देश के ऊंचे ऊंचे स्यानोंपर वैसा ही ठहरा।
19. राजा आकर लड़े, उस समय कनान के राजा मगिद्दो के सोतोंके पास तानाक में लड़े; पर रूपयोंका कुछ लाभ न पाया।।
20. आकाश की ओर से भी लड़ाई हुई; वरन ताराओं ने अपके अपके मण्डल से सीसरा से लड़ाई की।।
21. कीशोन नदी ने उनको बहा दिया, अर्यात्‌ वही प्राचीन नदी जो कीशोन नदी है। हे मन, हियाव बान्धे आगे बढ़।।
22. उस समय घोड़े के खुरोंसे टाप का शब्द होने लगा, उनके बलिष्ट घोड़ोंके कूदने से यह हूआ।।
23. यहोवा का दूत कहता है, कि मेरोज को शाप दो, उसके निवासिक्कों भारी शाप दो, क्योंकि वे यहोवा की सहाथता करने को, शूरवीरोंके विरूद्ध यहोवा की सहाथता करने को न आए।।
24. सब स्त्रियोंमें से केनी हेबेर की स्त्री याएल धन्य ठहरेगी; डेरोंमें से रहनेवाली सब स्त्रियोंमें वह धन्य ठहरेगी।।
25. सीसरा ने पानी मांगा, उस ने दूध दिया, रईसोंके योग्य बर्तन में वह मक्खन ले आई।।
26. उस ने अपना हाथ खूंटी की ओर अपना दहिना हाथ बढ़ई के हयौड़े की ओर बढ़ाया; और हयौड़े से सीसरा को मारा, उसके सिर को फोड़ डाला, और उसकी कनपक्की को आरपार छेद दिया।।
27. उस स्त्री के पांवो पर वह फुका, वह गिरा, वह पड़ा रहा; उस स्त्री के पांवो पर वह फुका, वह गिरा; जहां फुका, वहीं मरा पड़ा रहा।।
28. खिड़की में से एक स्त्री फांककर चिल्लाई, सीसरा की माता ने फिलमिली की ओट से पुकारा, कि उसके रय के आने में इतनी देर क्योंलगी? उसके रयोंके पहियोंको अबेर क्योंहुई है?
29. उसी बुद्धिमान प्रतिष्ठित स्त्रियोंने उसे उत्तर दिया, वरन उस ने अपके आप को इस प्रकार उत्तर दिया,
30. कि क्या उन्होंने लूट पाकर बांट नहीं ली? क्या एक एक पुरूष को एक एक वरन दो दो कुंवारियां; और सीसरा को रंगे हुए वस्त्र की लूट, वरन बूटे काढ़े हुए रंगीले वस्त्र की लूट, और लूटे हुओं के गले में दोनोंओर बूटे काढ़े हुए रंगीले वस्त्र नहीं मिले?
31. हे यहोवा, तेरे सब शत्रु ऐसे ही नाश हो जाएं! परन्तु उसके प्रेमी लोग प्रताप के साय उदय होते हुए सूर्य के समान तेजोमय हों।। फिर देश में चालीस वर्ष तक शान्ति रही।।

Chapter 6

1. तब इस्राएलियोंने यहोवा की दृष्टि में बुरा किया, इसलिथे यहोवा ने उन्हें मिद्यानियोंके वश में सात वर्ष कर रखा।
2. और मिद्यानी इस्राएलियोंपर प्रबल हो गए। मिद्यानियोंके डर के मारे इस्राएलियोंने पहाड़ोंके गहिरे खड्डों, और गुफाओं, और किलोंको अपके निवास बना लिए।
3. और जब जब इस्राएली बीज बोते तब तब मिद्यानी और अमालेकी और पूर्वी लोग उनके विरूद्ध चढ़ाई करके
4. अज्जा तक छावनी डाल डालकर भूमि की उपज नाश कर डालते थे, और इस्राएलियोंके लिथे न तो कुछ भोजनवस्तु, और न भेड़-बकरी, और न गाय-बैल, और न गदहा छोड़ते थे।
5. क्योंकि वे अपके पशुओं और डोरोंको लिए हुए चढ़ाई करते, और टिड्डियोंके दल के समान बहुत आते थे; और उनके ऊंट भी अनगिनत होते थे; और वे देश को उजाड़ने के लिथे उस में आया करते थे।
6. और मिद्यानियोंके कारण इस्राएली बड़ी दुर्दशा में पड़ गए; तब इस्राएलियोंने यहोवा की दोहाई दी।।
7. जब इस्राएलियोंने मिद्यानियोंके कारण यहोवा की दोहाई दी,
8. तब यहोवा ने इस्राएलियोंके पास एक नबी को भेजा, जिस ने उन से कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि मैं तुम को मिस्र में से ले आया, और दासत्व के घर से निकाल ले आया;
9. और मैं ने तुम को मिस्रियोंके हाथ से, वरन जितने तुम पर अन्धेर करते थे उन सभोंके हाथ से छुड़ाया, और उनको तुम्हारे साम्हने से बरबस निकालकर उनका देश तुम्हें दे दिया;
10. और मैं ने तुम से कहा, कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं; एमोरी लोग जिनके देश में तुम रहते हो उनके देवताओं का भय न मानना। परन्तु तुम ने मेरा कहना नहीं माना।।
11. फिर यहोवा का दूत आकर उस बांजवृझ के तले बैठ गया, जो ओप्रा में अबीएजेरी योआश का या, और उसका पुत्र गिदोन एक दाखरस के कुण्ड में गेहूं इसलिथे फाड़ रहा या कि उसे मिद्यानियोंसे छिपा रखे।
12. उसको यहोवा के दूत ने दर्शन देकर कहा, हे शूरवीर सूरमा, यहोवा तेरे संग है।
13. गिदोन ने उस से कहा, हे मेरे प्रभु, बिनती सुन, यदि यहोवा हमारे संग होता, तो हम पर यह सब विपत्ति क्योंपड़ती? और जितने आश्चर्यकर्मोंका वर्णन हमारे पुरखा यह कहकर करते थे, कि क्या यहोवा हम को मिस्र से छुड़ा नहीं लाया, वे कहां रहे? अब तो यहोवा ने हम को त्याग दिया, और मिद्यानियोंके हाथ कर दिया है।
14. तब यहोवा ने उस पर दृष्टि करके कहा, अपक्की इसी शक्ति पर जा और तू इस्राएलियोंको मिद्यानियोंके हाथ से छुड़ाएगा; क्या मैं ने तुझे नहीं भेजा?
15. उस ने कहा, हे मेरे प्रभु, बिनती सुन, मैं इस्राएल को क्योंकर छुड़ाऊ? देख, मेरा कुल मनश्शे में सब से कंगाल है, फिर मैं अपके पिता के घराने में सब से छोटा हूं।
16. यहोवा ने उस से कहा, निश्चय मैं तेरे संग रहूंगा; सो तू मिद्यानियोंको ऐसा मार लेगा जैसा एक मनुष्य को।
17. गिदोन ने उस से कहा, यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो मुझे इसका कोई चिन्ह दिखा कि तू ही मुझ से बातें कर रहा है।
18. जब तक मैं तेरे पास फिर आकर अपक्की भेंट निकालकर तेरे साम्हने न रखूं, तब तक तू यहां से न जा। उस ने कहा, मैं तेरे लौटने तक ठहरा रहूंगा।
19. तब गिदोन ने जाकर बकरी का एक बच्चा और एक एपा मैदे की अखमीरी रोटियां तैयार कीं; तब मांस को टोकरी में, और जूस को तसले में रखकर बांजवृझ के तले उसके पास ले जाकर दिया।
20. परमेश्वर के दूत ने उस से कहा, मांस और अखमीरी रोटियोंको लेकर इस चट्टान पर रख दे, और जूस को उण्डेल दे। उस ने ऐसा ही किया।
21. तब यहोवा के दूत ने अपके हाथ की लाठी को बढ़ाकर मांस और अखमीरी रोटियोंको छूआ; और चट्टान से आग निकली जिस से मांस और अखमीरी रोटियां भस्म हो गई; तब यहोवा का दूत उसकी दृष्टि से अन्तरध्यान हो गया।
22. जब गिदोन ने जान लिया कि वह यहोवा का दूत या, तब गिदोन कहने लगा, हाथ, प्रभु यहोवा! मैं ने तो यहोवा के दूत को साझात देखा है।
23. यहोवा ने उस से कहा, तुझे शान्ति मिले; मत डर, तू न मरेगा।
24. तब गिदोन ने वहां यहोवा की एक वेदी बनाकर उसका नाम यहोवा शालोम रखा। वह आज के दिन तक अबीएजेरियोंके ओप्रा में बनी है।
25. फिर उसी रात को यहोवा ने गिदोन से कहा, अपके पिता का जवान बैल, अर्यात्‌ दूसरा सात वर्ष का बैल ले, और बाल की जो वेदी तेरे पिता की है उसे गिरा दे, और जो अशेरा देवी उसके पास है उसे काट डाल;
26. और उस दृढ़ स्यान की चोटी पर ठहराई हुई रीति से अपके परमेश्वर यहोवा की एक वेदी बना; तब उस दूसरे बैल को ले, और उस अशेरा की लकड़ी जो तू काट डालेगा जलाकर होमबलि चढ़ा।
27. तब गिदोन ने अपके संग दस दासोंको लेकर यहोवा के वचन के अनुसार किया; परन्तु अपके पिता के घराने और नगर के लोगोंके डर के मारे वह काम दिन को न कर सका, इसलिथे रात में किया।
28. बिहान को नगर के लोग सवेरे उठकर क्या देखते हैं, कि बाल की वेदी गिरी पक्की है, और उसके पास की अशेरा कटी पक्की है, और दूसरा बैल बनाई हुई वेदी पर चढ़ाया हुआ है।
29. तब वे आपस में कहने लगे, यह काम किस ने किया? और पूछपाछ और ढूंढ़-ढांढ़ करके वे कहने लगे, कि यह योआश के पुत्र गिदोन का काम है।
30. तब नगर के मनुष्योंने योआश से कहा, अपके पुत्र को बाहर ले आ, कि मार डाला जाए, क्योंकि उस ने बाल की वेदी को गिरा दिया है, और उसके पास की अशेरा को भी काट डाला है।
31. योआश ने उन सभोंसे जो उसके साम्हने खड़े हुए थे कहा, क्या तुम बाल के लिथे वाद विवाद करोगे? क्या तुम उसे बचाओगे? जो कोई उसके लिथे वाद विवाद करे वह मार डाला जाएगा। बिहान तक ठहरे रहो; तब तक यदि वह परमेश्वर हो, तो जिस ने उसकी वेदी गिराई है उस से वह आप ही अपना वाद विवाद करे।
32. इसलिथे उस दिन गिदोन का नाम यह कहकर यरूब्बाल रखा गया, कि इस ने जो बाल की वेदी गिराई है तो इस पर बाल आप वाद विवाद कर ले।।
33. इसके बाद सब मिद्यानी और अमालेकी और पूर्वी इकट्ठे हुए, और पार आकर यिज्रेल की तराई में डेरे डाले।
34. तब यहोवा का आत्मा गिदोन में समाया; और उस ने नरसिंगा फूंका, तब अबीएजेरी उसकी सुनने के लिथे इकट्ठे हुए।
35. फिर उस ने कुल मनश्शे के पास अपके दूत भेजे; और वे भी उसके समीप इकट्ठे हुए। और उस ने आशेर, जबूलून, और नप्ताली के पास भी दूत भेजे; तब वे भी उस से मिलने को चले आए।
36. तब गिदोन ने परमेश्वर से कहा, यदि तू अपके वचन के अनुसार इस्राएल को मेरे द्वारा छुड़ाएगा,
37. तो सुन, मैं एक भेड़ी की ऊन खलिहान में रखूंगा, और यदि ओस केवल उस ऊन पर पके, और उसे छोड़ सारी भूमि सूखी रह जाए, तो मैं जान लूंगा कि तू अपके वचन के अनुसार इस्राएल को मेरे द्वारा छुड़ाएगा।
38. और ऐसा ही हुआ। इसलिथे जब उस ने बिहान को सबेरे उठकर उस ऊन को दबाकर उस में से ओस निचोड़ी, तब एक कटोरा भर गया।
39. फिर गिदोन ने परमेश्वर से कहा, यदि मैं एक बार फिर कहूं, तो तेरा क्रोध मुझ पर न भड़के; मैं इस ऊन से एक बार और भी तेरी पक्कीझा करूं, अर्यात्‌ केवल ऊन ही सूखी रहे, और सारी भूमि पर ओस पके।
40. इस रात को परमश्ेवर ने ऐसा ही किया; अर्यात्‌ केवल ऊन ही सूखी रह गई, और सारी भूमि पर ओस पक्की।।

Chapter 7

1. तब गिदोन जो यरूब्बाल भी कहलाता है और सब लोग जो उसके संग थे सवेरे उठे, और हरोद नाम सोते के पास अपके डेरे खड़े किए; और मिद्यानियोंकी छावनी उनकी उत्तरी ओर मोरे नाम पहाड़ी के पास तराई में पक्की यी।।
2. तब यहोवा ने गिदोन से कहा, जो लोग तेरे संग हैं वे इतने हैं कि मैं मिद्यानियोंको उनके हाथ नहीं कर सकता, नहीं तो इस्राएल यह कहकर मेरे विरूद्ध अपक्की बड़ाई मारने लगे, कि हम अपके ही भुजबल के द्वारा बचे हैं।
3. इसलिथे तू जाकर लोगोंमें यह प्रचार करके सुना दे, कि जो कोई डर के मारे यरयराता हो, वह गिलाद पहाड़ से लौटकर चला जाए। तब बाईस हजार लोग लौट गए, और केवल दस हजार रह गए।
4. फिर यहोवा ने गिदोन से कहा, अब भी लोग अधिक हैं; उन्हें सोते के पास नीचे ले चल, वहां मैं उन्हें तेरे लिथे परखूंगा; और जिस जिसके विषय में मैं तुझ से कहूं, कि यह तेरे संग चले, वह तो तेरे संग चले; और जिस जिसके विषय मे मैं कहूं, कि यह तेरे संग न जाए, वह न जाए।
5. तब वह उनको सोते के पास नीचे ले गया; वहां यहोवा ने गिदोन से कहा, जितने कुत्ते की नाई जीभ से पानी चपड़ चपड़ करके पीएं उनको अलग रख; और वैसा ही उन्हें भी जो घुटने टेककर पीएं।
6. जिन्होंने मुंह में हाथ लगा चपड़ चपड़ करके पानी पिया उनकी तो गिनती तीन सौ ठहरी; और बाकी सब लोगोंने घुटने टेककर पानी पिया।
7. तब यहोवा ने गिदोन से कहा, इन तीन सौ चपड़ चपड़ करके पीनेवालोंके द्वारा मैं तुम को छुड़ाऊंगा, और मिद्यानियोंको तेरे हाथ में कर दूंगा; और सब लोग अपके अपके स्यान को लौट जाए।
8. तब उन लोगोंने हाथ में सीधा और अपके अपके नरसिंगे लिए; और उस ने इस्राएल के सब पुरूषोंको अपके अपके डेरे की ओर भेज दिया, परन्तु उन तीन सौ पुरूषोंको अपके पास रख छोड़ा; और मिद्यान की छावनी उसके नीचे तराई में पक्की यी।।
9. उसी रात को यहोवा ने उस से कहा, उठ, छावनी पर चढ़ाई कर; क्योंकि मैं उसे तेरे हाथ कर देता हूं।
10. परन्तु यदि तू चढ़ाई करते डरता हो, तो अपके सेवक फूरा को संग लेकर छावनी के पास जाकर सुन,
11. कि वे क्या कह रहे है; उसके बाद तुझे उस छावनी पर चढ़ाई करने का हियाव होगा। तब वह अपके सेवक फूरा को संग ले उन हयियार-बन्दोंके पास जो छावनी की छोर पर थे उतर गया।
12. मिद्यानी और अमालेकी और सब पूर्वी लोग तो टिड्डियोंके समान बहुत से तराई में फैले पके थे; और उनके ऊंट समुद्रतीर के बालू के किनकोंके समान गिनती से बाहर थे।
13. जब गिदोन वहां आया, तब एक जन अपके किसी संगी से अपना स्वप्न योंकह रहा या, कि सुन, मैं ने स्वप्न में क्या देखा है कि जौ की एक रोटी लुढ़कते लुढ़कते मिद्यान की छावनी में आई, और डेरे को ऐसा टक्कर मारा कि वह गिर गया, और उसको ऐसा उलट दिया, कि डेरा गिरा पड़ा रहा।
14. उसके संगी ने उत्तर दिया, यह योआश के पुत्र गिदोन नाम एक इस्राएली पुरूष की तलवार को छोड़ कुछ नहीं है; उसी के हाथ में परमेश्वर ने मिद्यान को सारी छावनी समेत कर दिया है।।
15. उस स्वप्न का वर्णन और फल सुनकर गिदोन ने दण्डवत्‌ की; और इस्राएल की छावनी में लौटकर कहा, उठो, यहोवा ने मिद्यानी सेना को तुम्हारे वश में कर दिया है।
16. तब उस ने उन तीन सौ पुरूषोंके तीन फुण्ड किए, और एक एक पुरूष के हाथ में एक नरसिंगा और खाली घड़ा दिया, और घड़ोंके भीतर एक मशाल यी।
17. फिर उस ने उन से कहा, मुझे देखो, और वैसा ही करो; सुनो, जब मैं उस छावनी की छोर पर पहुंचूं, तब जैसा मैं करूं वैसा ही तुम भी करना।
18. अर्यात्‌ जब मैं और मेरे सब संगी नरसिंगा फूंकें तब तुम भी छावनी की चारोंओर नरसिंगे फूंकना, और ललकारना, कि यहोवा की और गिदोन की तलवार।।
19. बीचवाले पहर के आदि में ज्योंही पहरूओं की बदली हो गई यी त्योहीं गिदोन अपके संग के सौ पुरूषोंसमेत छावनी की छोर पर गया; और नरसिंगे को फूंक दिया और अपके हाथ के घड़ोंको तोड़ डाला।
20. तब तीनोंफुण्डोंने नरसिंगोंको फूंका और घड़ोंको तोड़ डाला; और अपके अपके बाएं हाथ में मशाल और दहिने हाथ में फूंकने को नरसिंगा लिए हुए चिल्ला उठे, यहोवा की तलवार और गिदोन की तलवार।
21. तब वे छावनी के चारोंओर अपके अपके स्यान पर खड़े रहे, और सब सेना के लोग दौड़ने लगे; और उन्होंने चिल्ला चिल्लाकर उन्हें भगा दिया।
22. और उन्होंने तीन सौ नरसिंगोंको फूंका, और यहोवा ने एक एक पुरूष की तलवार उसके संगी पर और सब सेना पर चलवाई; तो सेना के लोग सरेरा की ओर बेतशित्ता तब और तब्बात के पास के आबेलमहोला तक भाग गए।
23. तब इस्राएली पुरूष नप्ताली और आशेर और मनश्शे के सारे देश से इकट्ठे होकर मिद्यानियोंके पीछे पके।
24. और गिदोन ने एप्रैम के सब पहाड़ी देश में यह कहने को दूत भेज दिए, कि मिद्यानियोंसे मुठभेड़ करने को चले आओ, और यरदन नदी के घाटोंको बेतबारा तक उन से पहिले अपके वश में कर लो। तब सब एप्रैमी पुरूषोंने इकट्ठे होकर यरदन नदी को बेतबारा तक अपके वश में कर लिया।
25. और उन्होंने ओरेब और जेब नाम मिद्यान के दो हाकिमोंको पकड़ा; और ओरेब को ओरेब नाम चट्टान पर, और जेब को जेब नाम दाखरस के कुण्ड पर घात किया; और वे मिद्यानियोंके पीछे पके; और ओरेब और जेब के सिर यरदन के पार गिदोन के पास ले गए।।

Chapter 8

1. तब एप्रैमी पुरूषोंने गिदाने से कहा, तू ने हमारे साय ऐसा बर्ताव क्योंकिया है, कि जब तू मिद्यान से लड़ने को चला तब हम को नहीं बुलवाया? सो उन्होंने उस से बड़ा फगड़ा किया।
2. उस ने उन से कहा, मैं ने तुम्हारे समान भला अब किया ही क्या है? क्या एप्रैम की छोड़ी हुई दाख भी अबीएजेर की सब फसल से अच्छी नहीं है?
3. तुम्हारे ही हाथोंमें परमेश्वर ने ओरब और जेब नाम मिद्यान के हाकिमोंको कर दिया; तब तुम्हारे बराबर मैं कर ही क्या सका? जब उस ने यह बात कही, तब उनका जी उसकी ओर से ठंड़ा हो गया।।
4. तब गिदोन और उसके संग तीनोंसौ पुरूष, जो यके मान्दे थे तौभी खदेड़ते ही रहे थे, यरदन के तीर आकर पार हो गए।
5. तब उस ने सुक्कोत के लोगोंसे कहा, मेरे पीछे इन आनेवालोंको रोटियां दो, क्योंकि थे यके मान्दे हैं; और मैं मिद्यान के जेबह और सल्मुन्ना नाम राजाओं का पीछा कर रहा हूं।
6. सुक्कोत के हाकिमोंने उत्तर दिया, क्या जेबह और सल्मुन्ना तेरे हाथ में पड़ चुके हैं, कि हम तेरी सेना को रोटी दे?
7. गिदोन ने कहा, जब यहोवा जेबह और सल्मुन्ना को मेरे हाथ में कर देगा, तब मैं इस बात के कारण तुम को जंगल के कटीले और बिच्छू पेड़ोंसे नुचवाऊंगा।
8. वहां से वह पनूएल को गया, और वहां के लोगोंसे ऐसी ही बात कही; और पनूएल के लोगोंने सुक्कोत के लोगोंका सा उत्तर दिया।
9. उस ने पनूएल के लोगोंसे कहा, जब मैं कुशल से लौट आऊंगा, तब इस गुम्मट को ढा दूंगा।।
10. जेबह और सल्मुन्ना तो कर्कोर में थे, और उनके साय कोई पन्द्रह हजार पुरूषोंकी सेना यी, क्योंकि पूविर्योंकी सारी सेना में से उतने ही रह गए थे; जो मारे गए थे वे एक लाख बीस हजार हयियारबन्द थे।
11. तब गिदोन ने नोबह और योग्बहा के पूर्व की ओर डेरोंमें रहनेवालोंके मार्ग में चढ़कर उस सेना को जो निडर पक्की यी मार लिया।
12. और जब जेबह और सल्मुन्ना को पकड़ लिया, और सारी सेना को भगा दिया।
13. और योआश का पुत्र गिदोन हेरेस नाम चढ़ाई पर से लड़ाई से लौटा।
14. और सुक्कोत के एक जवान पुरूष को पकड़कर उस से पूछा, और उस ने सुक्कोत के सतहत्तरोंहाकिमोंऔर वृद्ध लोगोंके पके लिखवाथे।
15. तब वह सुक्कोत के मनुष्योंके पास जाकर कहने लगा, जेबह और सल्मुन्ना को देखा, जिनके विषय में तुम ने यह कहकर मुझे चिढ़ाया या, कि क्या जेबह और सल्मुन्ना अभी तेरे हाथ में हैं, कि हम तेरे यके मान्दे जनोंको रोटी दें?
16. तब उस ने उस नगर के वृद्ध लोगोंको पकड़ा, और जंगल के कटीले और बिच्छू पेड़ लेकर सुक्कोत के पुरूषोंको कुछ सिखाया।
17. और उस ने पनूएल के गुम्मट को ढा दिया, और उस नगर के मनुष्योंको घात किया।
18. फिर उस ने जेबह और सल्मुन्ना से पूछा, जो मनुष्य तुम ने ताबोर पर घात किए थे वे कैसे थे? उन्होंने उत्तर दिया, जैसा तू वैसे ही वे भी थे अर्यात्‌ एक एक का रूप राजकुमार का सा या।
19. उस ने कहा, वे तो मेरे भाई, वरन मेरे सहोदर भाई थे; यहोवा के जीवन की शपय, यदि तुम ने उनको जीवित छोड़ा होता, तो मैं तुम को घान न करता।
20. तब उस ने अपके जेठे पुत्र यतेरे से कहा, उठकर इन्हें घात कर। परन्तु जवान ने अपक्की तलवार न खींची, क्योंकि वह उस समय तक लड़का ही या, इसलिथे वह डर गया।
21. तब जेबह और सल्मुन्ना ने कहा, तू उठकर हम पर प्रहार कर; क्योंकि जैसा पुरूष हो, वैसा ही उसका पौरूष भी होगा। तब गिदोन ने उठकर जेबह और सल्मुन्ना को घात किया; और उनके ऊंटोंके गलोंके चन्द्रहारोंको ले लिया।।
22. तब इस्राएल के पुरूषोंने गिदोन से कहा, तू हमारे ऊपर प्रभुता कर, तू और तेरा पुत्र और पोता भी प्रभुता करे; क्योंकि तू ने हम को मिद्यान के हाथ से छुड़ाया है।
23. गिदोन ने उन से कहा, मैं तुम्हारे ऊपर प्रभुता न करूंगा, और न मेरा पुत्र तुम्हारे ऊपर प्रभुता करेगा; यहोवा ही तुम पर प्रभुता करेगा।
24. फिर गिदोन ने उन से कहा, मैं तुम से कुछ मांगता हूं; अर्यात्‌ तुम मुझ को अपक्की अपक्की लूट में की बालियां दो। (वे तो इशमाएली थे, इस कारण उनकी बालियां सोने की यीं।) उन्होंने कहा, निश्चय हम देंगे।
25. तब उन्होंने कपड़ा बिछाकर उस में अपक्की अपक्की लूट में से निकालकर बालियां डाल दीं।
26. जो सोने की बालियां उस ने मांग लीं उनका तौल एक हजार सात सौ शेकेल हुआ; और उनको छोड़ चन्द्रहार, फुमके, और बैंगनी रंग के वस्त्र जो मिद्यानियोंके राजा पहिने थे, और उनके ऊंटोंके गलोंकी जंजीर।
27. उनका गिदोन ने एक एपोद बनवाकर अपके ओप्रा नाम नगर में रखा; और सब इस्राएल वहां व्यभिचारिणी की नाईं उसके पीछे हो लिया, और वह गिदोन और उसके घराने के लिथे फन्दा ठहरा।
28. इस प्रकार मिद्यान इस्रालियोंसे दब गया, और फिर सिर न उठाया। और गिदोन के जीवन भर अर्यात्‌ चालीस वर्ष तक देश चैन से रहा।
29. योआश का पुत्र यरूब्बाल तो जाकर अपके घर में रहने लगा।
30. और गिदोन के सत्तर बेटे उत्पन्न हुए, क्योंकि उसके बहुत स्त्रियां यीं।
31. और उसकी जो एक रखेली शकेम में रहती यी उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, और गिदोन ने उसका नाम अबीमेलेक रखा।
32. निदान योआश का पुत्र गिदोन पूरे बुढ़ापे में मर गया, और अबीएजेरियोंके ओप्रा नाम गांव में उसके पिता योआश की कबर में उसको मिट्टी दी गई।।
33. गिदोन के मरते ही इस्राएली फिर गए, और व्यभिचारिणी की नाईं बाल देवताओं के पीछे हो लिए, और बालबरीत को अपना देवता मान लिया।
34. और इस्राएलियोंने अपके परमेश्वर यहोवा को, जिस ने उनको चारोंओर के सब शत्रुओं के हाथ से छुड़ाया या, स्मरण न रखा;
35. और न उन्होंने यरूब्बाल अर्यात्‌ गिदोन की उस सारी भलाई के अनुसार जो उस ने इस्राएलियोंके साय की यी उसके घराने को प्रीति दिखाई।।

Chapter 9

1. यरूब्बाल का पुत्र अबीमेलेक शकेम को अपके मामाओं के पास जाकर उन से और अपके नाना के सब घराने से योंकहने लगा,
2. शकेम के सब मनुष्योंसे यह पूछो, कि तुम्हारे लिथे क्या भला है? क्या यह कि यरूब्बाल के सत्तर पुत्र तुम पर प्रभुता करें? वा यह कि एक ही पुरूष तुम पर प्रभुता करे? और यह भी स्मरण रखो कि मैं तुम्हारा हाड़ मांस हूं।
3. तब उसके मामाओं ने शकेम के सब मनुष्योंसे ऐसी ही बातें कहीं; और उन्होंने यह सोचकर कि अबीमेलेक तो हमारा भाई है अपना मन उसके पीछे लगा दिया।
4. तब उन्होंने बालबरीत के मन्दिर में से सत्तर टुकड़े रूपे उसको दिए, और उन्हें लगाकर अबीमेलेक ने नीच और लुच्चे जन रख लिए, जो उसके पीछे हो लिए।
5. तब उस ने ओप्रा में अपके पिता के घर जाके अपके भाइयोंको जो यरूब्बाल के सत्तर पुत्र थे एक ही पत्यर पर घात किया; परन्तु यरूब्बाल का योताम नाम लहुरा पुत्र छिपकर बच गया।।
6. तब शकेम के सब मनुष्योंऔर बेतमिल्लो के सब लोगोंने इकट्ठे होकर शकेम के खम्भे से पासवाले बांजवृझ के पास अबीमेलेक को राजा बनाया।
7. इसका समाचार सुनकर योताम गरिज्जीम पहाड़ की चोटी पर जाकर खड़ा हुआ, और ऊंचे स्वर से पुकारा के कहने लगा, हे शकेम के मनुष्यों, मेरी सुनो, इसलिथे कि परमेश्वर तुम्हारी सुनें।
8. किसी युग में वृझ किसी का अभिषेक करके अपके ऊपर राजा ठहराने को चले; तब उन्होंने जलपाई के वृझ से कहा, तू हम पर राज्य कर।
9. तब जलपाई के वृझ ने कहा, क्या मैं अपक्की उस चिकनाहट को छोड़कर, जिस से लोग परमेश्वर और मनुष्य दोनोंका आदर मान करते हैं, वृझोंका अधिक्कारनेी होकर इधर उधर डोलने को चलूं?
10. तब वृझोंने अंजीर के वृझ से कहा, तू आकर हम पर राज्य कर।
11. अंजीर के वृझ ने उन से कहा, क्या मैं अपके मीठेपन और अपके अच्छे अच्छे फलोंको छोड़ वृझोंका अधिक्कारनेी होकर इधर उधर डोलने को चलूं?
12. फिर वृझोंने दाखलता से कहा, तू आकर हम पर राज्य कर।
13. दाखलता ने उन से कहा, क्या मैं अपके नथे मधु को छोड़, जिस से परमेश्वर और मनुष्य दोनोंको आनन्द होता है, वृझोंकी अधिक्कारनेिणी होकर इधर उधर डोलने को चलूं?
14. तब सब वृझोंने फड़बेरी से कहा, तू आकर हम पर राज्य कर।
15. फड़बेरी ने उन वृझोंसे कहा, यदि तुम अपके ऊपर राजा होने को मेरा अभिषेक सच्चाई से करते हो, तो आकर मेरी छांह में शरण लो; और नहीं तो, फड़बेरी से आग निकलेगी जिस से लबानोन के देवदारू भी भस्म हो जाएंगे।
16. इसलिथे अब यदि तुम ने सच्चाई और खराई से अबीमेलेक को राजा बनाया है, और यरूब्बाल और उसके घराने से भलाई की, और उस ने उसके काम के योग्य बर्ताव किया हो, तो भला।
17. (मेरा पिता तो तुम्हारे निमित्त लड़ा, और अपके प्राण पर खेलकर तुम को मिद्यानियोंके हाथ से छुड़ाया;
18. परन्तु तुम ने आज मेरे पिता के घराने के विरूद्ध उठकर बलवा किया, और उसके सत्तर पुत्र एक ही पत्यर पर घात किए, और उसकी लौंड़ी के पुत्र अबीमेलेक को इसलिथे शकेम के मनुष्योंके ऊपर राजा बनाया है कि वह तुम्हारा भाई है);
19. इसलिथे यदि तुम लोगोंने आज के दिन यरूब्बाल और उसके घराने से सच्चाई और खराई से बर्ताव किया हो, तो अबीमेलेक के कारण आनन्द करो, और वह भी तुम्हारे कारण आनन्द करे;
20. और नहीं, तो अबीमेलेक से ऐसी आग निकले जिस से शकेम के मनुष्य और बेतमिल्लो भस्म हो जाएं: शकेम के मनुष्योंऔर बेतमिल्लो से ऐसी आग निकले जिस से अबीमेलेक भस्म हो जाए।
21. तब योताम भागा, और अपके भाई अबीमेलेक के डर के मारे बेर को जाकर वहां रहने लगा।।
22. और अबीमेलेक इस्राएल के ऊपर तीन वर्ष हाकिम रहा।
23. तब परमेश्वर ने अबीमेलेक और शकेम के मनुष्योंके बीच एक बुरी आत्मा भेज दी; सो शकेम के मनुष्य अबीमेलेक का विश्वासघात करने लगे;
24. जिस से यरूब्बाल के सत्तर पुत्रोंपर किए हुए उपद्रव का फल भोगा जाए, और उनका कुल उनके घात करनेवाले उनके भाई अबीमेलेक के सिर पर, और उसके अपके भाइयोंके घात करने में उसकी सहाथता करनेवाले शकेम के मनुष्योंके सिर पर भी हो।
25. तब शकेम के मनुष्योंने पहाड़ोंकी चोटियोंपर उसके लिथे घातकोंको बैठाया, जो उस मार्ग से सब आने जानेवालोंको लूटते थे; और इसका समाचार अबीमेलेक को मिला।।
26. तब एबेद का पुत्र गाल अपके भाइयोंसमेत शकेम में आया; और शकेम के मनुष्योंने उसका भरोसा किया।
27. और उन्होंने मैदान में जाकर अपक्की अपक्की दाख की बारियोंके फल तोड़े और उनका रस रौन्दा, और स्तुति का बलिदान कर अपके देवता के मन्दिर में जाकर खाने पीने और अबीमेलेक को कोसने लगे।
28. तब एबेद के पुत्र गाल ने कहा, अबीमेलेक कौन है? शकेम कौन है कि हम उसके अधीन रहें? क्या वह यरूब्बाल का पुत्र नहीं? शकेम के पिता हमोर के लोगोंके तो अधीन हो, परन्तु हमे उसके अधीन क्योंरहें?
29. और यह प्रजा मेरे वश में होती हो क्या ही भला होता! तब तो मैं अबीमेलेक को दूर करता। फिर उस ने अबीमेलेक से कहा, अपक्की सेना की गिनती बढ़ाकर निकल आ।
30. एबेद के पुत्र गाल की वे बातें सुनकर नगर के हाकिम जबूल का क्रोध भड़क उठा।
31. और उस ने अबीमेलेक के पास छिपके दूतोंसे कहला भेजा, कि एबेद का पुत्र गाल और उसके भाई शकेम में आके नगरवालोंको तेरा विरोध करने को उसका रहे हैं।
32. इसलिथे तू अपके संगवालोंसमेत रात को उठकर मैदान में घात लगा।
33. फिर बिहान को सवेरे सूर्य के निकलते ही उठकर इस नगर पर चढ़ाई करना; और जब वह अपके संगवालोंसमेत तेरा साम्हना करने को निकले तब जो तुझ से बन पके वही उस से करना।।
34. तब अबीमेलेक और उसके संग के सब लोग रात को उठ चार फुण्ड बान्धकर शकेम के विरूद्ध घात में बैठ गए।
35. और एबेद का पुत्र गाल बाहर जाकर नगर के फाटक में खड़ा हुआ; तब अबीमेलेक और उसके संगी घात छोड़कर उठ खड़े हुए।
36. उन लोगोंको देखकर गाल जबूल से कहने लगा, देख, पहाड़ोंकी चोटियोंपर से लोग उतरे आते हैं! जबूल ने उस से कहा, वह तो पहाड़ोंही छाया है जो तुझे मनुष्योंके समान देख पड़ती है।
37. गाल ने फिर कहा, देख, लोग देश के बीचोंबीच होकर उतरे आते हैं, और एक फुण्ड मोननीम नाम बांज वृझ के मार्ग से चला आता है।
38. जबूल ने उस से कहा, तेरी यह बात कहां रही, कि अबीमेलेक कौन है कि हम उसके अधीन रहें? थे तो वे ही लोग हैं जिनको तू ने निकम्मा जाना या; इसलिथे अब निकलकर उन से लड़।
39. तब गाल शकेम के पुरूषोंका अगुवा हो बाहर निकलकर अबीमेलेक से लड़ा।
40. और अबीमेलेक ने उसको खदेड़ा, और अबीमेलेक के साम्हने से भागा; और नगर के फाटक तक पहुंचते पहुंचते बहुतेरे घायल होकर गिर पके।
41. तब अबीमेलेक अरूमा में रहने लगा; और जबूल ने गाल और उसके भाइयोंको निकाल दिया, और शकेम में रहने न दिया।
42. दूसरे दिन लोग मैदान में निकल गए; और यह अबीमेलेक को बताया गया।
43. और उस ने अपक्की सेना के तीन दल बान्धकर मैदान में घात लगाई; और जब देखा कि लोग नगर से निकले आते हैं तब उन पर चढ़ाई करके उन्हें मार लिया।
44. अबीमेलेक अपके संग के दलोंसमेत आगे दौड़कर नगर के फाटक पर खड़ा हो गया, और दो दलोंने उन सब लोगोंपर धावा करके जो मैदान में थे उन्हें मार डाला।
45. उसी दिन अबीमेलेक ने नगर से दिन भर लड़कर उसको ले दिया, और उसके लोगोंको घात करके नगर को ढा दिया, और उस पर नमक छिड़कवा दिया।।
46. यह सुनकर शकेम के गुम्मट के सब रहनेवाले एलबरीत के मन्दिर के गढ़ में जा घुसे।
47. जब अबीमेलेक को यह समाचार मिला कि शकेम के गुम्मट के सब मनुष्य इकट्ठे हुए हैं,
48. तब वह अपके सब संगियोंसमेत सलमोन नाम पहाड़ पर चढ़ गया; और हाथ में कुल्हाड़ी ले पेड़ोंमें से एक डाली काटी, ओर उसे उठाकर अपके कन्धे पर रख ली। और अपके संगवालोंसे कहा कि जैसा तुम ने मुझे करते देखा वैसा ही तुम भी फटपट करो।
49. तब उन सब लोगोंने भी एक एक डाली काट ली, और अबीमेलेक के पीछे हो उनको गढ़ पर डालकर गढ़ में आग लगाई; तब शकेम के गुम्मट के सब स्त्री पुरूष जो अटकल एक हजार थे मर गए।।
50. तब अबीमेलेक ने तेबेस को जाकर उसके साम्हने डेरे खड़े करके उस को ले लिया।
51. परन्तु एक नगर के बीच एक दृढ़ गुम्मट या, सो क्या स्त्री पुरूष, नगर के सब लोग भागकर उस में घुसे; और उसे बन्द करके गुम्मट की छत पर चढ़ गए।
52. तब अबीमेलेक गुम्मट के निकट जाकर उसके विरूद्ध लड़ने लगा, और गुम्मट के द्वार तक गया कि उस में आग लगाए।
53. तब किसी स्त्री ने चक्की के ऊपर का पाट अबीमेलेक के सिर पर डाल दिया, और उसकी खोपक्की फट गई।
54. तब उस ने फट अपके हयियारोंके ढोनेवाले जवान को बुलाकर कहा, अपक्की तलवार खींचकर मुझे मार डाल, ऐसा न हो कि लोग मेरे विषय में कहने पाएं, कि उसको एक स्त्री ने घात किया। तब उसके जवान ने तलवार भोंक दी, और वह मर गया।
55. यह देखकर कि अबीमेलेक मर गया है इस्राएली अपके अपके स्यान को चले गए।
56. इस प्रकार जो दुष्ट काम अबीमेलेक ने अपके सत्तर भाइयोंको घात करके अपके पिता के साय किया या, उसको परमेश्वर ने उसके सिर पर लौटा दिया;
57. और शकेम के पुरूषोंके भी सब दुष्ट काम परमेश्वर ने उनके सिर पर लौटा दिए, और यरूब्बाल के पुत्र योताम का शाप उन पर घट गया।।

Chapter 10

1. अबीमेलेक के बाद इस्राएल के छुड़ाने के लिथे तोला नाम एक इस्साकारी उठा, वह दोदो का पोता और पूआ का पुत्र या; और एप्रैम के पहाड़ी देश के शामीर नगर में रहता या।
2. वह तेईस वर्ष तक इस्राएल का न्याय करता रहा। तब मर गया, और उसको शामीर में मिट्टी दी गई।।
3. उसके बाद गिलादी याईर उठा, वह बाईस वर्ष तक इस्राएल का न्याय करता रहा।
4. और उसके तीस पुत्र थे जो गदहियोंके तीस बच्चोंपर सवार हुआ करते थे; और उनके तीस नगर भी थे जो गिलाद देश में हैं, और आज तक हब्बोत्याईर कहलाते हैं।
5. और याईर मर गया, और उसको कामोन में मिट्टी दी गई।।
6. तब इस्राएलियोंने फिर यहोवा की दृष्टि में बुरा किया, अर्यात्‌ बाल देवताओं और अश्तोरेत देवियोंऔर आराम, सीदोन, मोआब, अम्मोनियों, और पलिश्तियोंके देवताओं की उपासना करने लगे; और यहोवा को त्याग दिया, और उसकी उपासना न की।
7. तब यहोवा का क्रोध इस्राएल पर भड़का, और उस ने उन्हें पलिश्तियोंऔर अम्मोनियोंके अधीन कर दिया,
8. और उस वर्ष थे इस्राएलियोंको सताते और पीसते रहे। वरन यरदन पार एमोरियोंके देश गिलाद में रहनेवाले सब इस्राएलियोंपर अठारह वर्ष तक अन्धेर करते रहे।
9. अम्मोनी यहूदा और बिन्यामीन से और एप्रैम के घराने से लड़ने को यरदन पार जाते थे, यहां तक कि इस्राएल बड़े संकट में पड़ गया।
10. तब इस्राएलियोंने यह कहकर यहोवा की दोहाई दी, कि हम ने जो अपके परमेश्वर को त्यागकर बाल देवताओं की उपासना की है, यह हम ने तेरे विरूद्ध महा पाप किया है।
11. यहोवा ने इस्राएलियोंसे कहा, क्या मैं ने तुम को मिस्रियों, एमोरियों, अम्मोनियों, और पलिश्तियोंके हाथ से न छुड़ाया या?
12. फिर जब सीदोनी, और अमालेकी, और माओनी लोगोंने तुम पर अन्धेर किया; और तुम ने मेरी दोहाई दी, तब मैं ने तुम को उनके हाथ से भी न छुड़ाया?
13. तौभी तुम ने मुझे त्यागकर पराथे देवताओं की उपासना की है; इसलिथे मैं फिर तुम को न छुड़ाऊंगा।
14. जाओ, अपके माने हुए देवताओं की दोहाई दो; तुम्हारे संकट के समय वे ही तुम्हें छुड़ाएं।
15. इस्राएलियोंने यहोवा से कहा, हम ने पाप किया है; इसलिथे जो कुछ तेरी दृष्टि में भला हो वही हम से कर; परन्तु अभी हमें छुड़ा।
16. तब वे पराए देवताओं को अपके मध्य में से दूर करके यहोवा की उपासना करने लगे; और वह इस्राएलियोंके कष्ट के कारण खेदित हुआ।।
17. तब अम्मोनियोंने इकट्ठे होकर गिलाद में अपके डेरे डाले; और इस्राएलियोंने भी इकट्ठे होकर मिस्पा में अपके डेरे डाले।
18. तब गिलाद के हाकिम एक दूसरे से कहने लगे, कौन पुरूष अम्मोनियोंसे संग्राम आरम्भ करेगा? वही गिलाद के सब निवासियोंका प्रधान ठहरेगा।।

Chapter 11

1. यिप्तह नाम गिलादी बड़ा शूरवीर या, और वह वेश्या का बेटा या; और गिलाद से यिप्तह उत्पन्न हुआ या।
2. गिलाद की स्त्री के भी बेटे उत्पन्न हुए; और जब वे बड़े हो गए तब यिप्तह को यह कहकर निकाल दिया, कि तू तो पराई स्त्री का बेटा है; इस कारण हमारे पिता के घराने में कोई भाग न पाएगा।
3. तब यिप्तह अपके भाइयोंके पास से भागकर तोब देश में रहने लगा; और यिप्तह के पास लुच्चे मनुष्य इकट्ठे हो गए; और उसके संग फिरने लगे।।
4. और कुछ दिनोंके बाद अम्मोनी इस्राएल से लड़ने लगे।
5. जब अम्मोनी इस्राएल से लड़ते थे, तब गिलाद के वृद्ध लोग यिप्तह को तोब देश से ले आने को गए;
6. और यिप्तह से कहा, चलकर हमारा प्रधान हो जा, कि हम अम्मोनियोंसे लड़ सकें।
7. यिप्तह ने गिलाद के वृद्ध लोगोंसे कहा, क्या तुम ने मुझ से बैर करके मुझे मेरे पिता के घर से निकाल न दिया या? फिर अब संकट में पड़कर मेरे पास क्योंआए हो?
8. गिलाद के वृद्ध लोगोंने यिप्तह से कहा, इस कारण हम अब तेरी ओर फिरे हैं, कि तू हमारे संग चलकर अम्मोनियोंसे लड़े; तब तू हमारी ओर से गिलाद के सब निवासियोंका प्रधान ठहरेगा।
9. यिप्तह ने गिलाद के वृद्ध लोगोंसे पूछा, यदि तुम मुझे अम्मोनियोंसे लड़ने को फिर मेरे घर ले चलो, और यहोवा उन्हें मेरे हाथ कर दे, तो क्या मैं तुम्हारा प्रधान ठहरूंगा?
10. गिलाद के वृद्ध लोगोंने यिप्तह से कहा, निश्चय हम तेरी इस बाते के अनुसार करेंगे; यहोवा हमारे और तेरे बीच में इन वचनोंका सुननेवाला है।
11. तब यिप्तह गिलाद के वृद्ध लोगोंके संग चला, और लोगोंने उसको अपके ऊपर मुखिया और प्रधान ठहराया; और यिप्तह ने अपक्की सब बातें मिस्पा में यहोवा के सम्मुख कह सुनाई।।
12. तब यिप्तह ने अम्मोनियोंके राजा के पास दूतोंसे यह कहला भेजा, कि तुझे मुझ से क्या काम, कि तू मेरे देश में लड़ने को आया है?
13. अम्मोनियोंके राजा ने यिप्तह के दूतोंसे कहा, कारण यह है, कि जब इस्राएली मिस्र से आए, तब अर्नोन से यब्बोक और यरदन तक जो मेरा देश या उसको उन्होंने छीन लिया; इसलिथे अब उसको बिना फगड़ा किए फेर दे।
14. तब यिप्तह ने फिर अम्मोनियोंके राजा के पास यह कहने को दूत भेजे,
15. कि यिप्तह तुझ से योंकहता है, कि इस्राएल ने न तो मोआब का देश ले लिया और न अम्मोनियोंका,
16. वरन जब वे मिस्र से निकले, और इस्राएली जंगल में होते हुए लाल समुद्र तक चले, और कादेश को आए,
17. तब इस्राएल ने एदोम के राजा के पास दूतोंसे यह कहला भेजा, कि मुझे अपके देश में होकर जाने दे; और एदोम के राजा ने उनकी न मानी। इसी रीति उस ने मोआब के राजा से भी कहला भेजा, और उस ने भी न माना। इसलिथे इस्राएल कादेश में रह गया।
18. तब उस ने जंगल में चलते चलते एदोम और मोआब दोनोंदेशोंके बाहर बाहर घूमकर मोआब देश की पूर्व ओर से आकर अर्नोन के इसी पार अपके डेरे डाले; और मोआब के सिवाने के भीतर न गया, क्योंकि मोआब का सिवाना अर्नोन या।
19. फिर इस्राएल ने एमोरियोंके राजा सीहोन के पास जो हेश्बोन का राजा या दूतोंसे यह कहला भेजा, कि हमें अपके देश में से होकर हमारे स्यान को जाने दे।
20. परन्तु सीहोन ने इस्राएल का इतना विश्वास न किया कि उसे अपके देश में से होकर जाने देता; वरन अपक्की सारी प्रजा को इकट्ठी कर अपके डेरे यहस में खड़े करके इस्राएल से लड़ा।
21. और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने सीहोन को सारी प्रजा समेत इस्राएल के हाथ में कर दिया, और उन्होंने उनको मार लिया; इसलिथे इस्राएल उस देश के निवासी एमोरियोंके सारे देश का अधिक्कारनेी हो गया।
22. अर्यात्‌ वह अनौन से यब्बोक तक और जंगल से ले यरदन तक एमोरियोंके सारे देश का अधिक्कारनेी हो गया।
23. इसलिथे अब इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने अपक्की इस्राएली प्रजा के साम्हने से एमोरियोंको उनके देश से निकाल दिया है; फिर क्या तू उसका अधिक्कारनेी होने पाएगा?
24. क्या तू उसका अधिक्कारनेी न होगा, जिसका तेरा कमोश देवता तुझे अधिक्कारनेी कर दे? इसी प्रकार से जिन लोगोंको हमारा परमेश्वर यहोवा हमारे साम्हने से निकाले, उनके देश के अधिक्कारनेी हम होंगे।
25. फिर क्या तू मोआब के राजा सिप्पोर के पुत्र बालाक से कुछ अच्छा है? क्या उस ने कभी इस्राएलियोंसे कुछ भी फगड़ा किया? क्या वह उन से कभी लड़ा?
26. जब कि इस्राएल हेश्बोन और उसके गावोंमें, और अरोएल और उसके गावोंमें, और अर्नोन के किनारे के सब नगरोंमें तीन सौ वर्ष से बसा है, तो इतने दिनोंमें तुम लोगोंने उसको क्योंनहीं छुड़ा लिया?
27. मैं ने तेरा अपराध नहीं किया; तू ही मुझ से युद्ध छेड़कर बुरा व्यवहार करता है; इसलिथे यहोवा जो न्यायी है, वह इस्राएलियोंऔर अम्मोनियोंके बीच में आज न्याय करे।
28. तौभी अम्मोनियोंके राजा ने यिप्तह की थे बातें न मानीं जिनको उस ने कहला भेजा या।।
29. तब यहोवा का आत्मा यिप्तह में समा गया, और वह गिलाद और मनश्शे से होकर गिलाद के मिस्पे में आया, और गिलाद के मिस्पे से होकर अम्मोनियोंकी ओर चला।
30. और यिप्तह ने यह कहकर यहोवा की मन्नत मानी, कि यदि तू नि:सन्देह अम्मोनियोंको मेरे हाथ में कर दे,
31. तो जब मैं कुशल के साय अम्मोनियोंके पास से लौट आऊं तब जो कोई मेरे भेंट के लिथे मेरे घर के द्वार से निकले वह यहोवा का ठहरेगा, और मैं उसे होमबलि करके चढ़ाऊंगा।
32. तब यिप्तह अम्मोनियोंसे लड़ने को उनकी ओर गया; और यहोवा ने उनको उसके हाथ में कर दिया।
33. और वह अरोएर से ले मिन्नीत तक, जो बीस नगर हैं, वरन आबेलकरामीम तक जीतते जीतते उन्हें बहुत बड़ी मार से मारता गया। और अम्मोनी इस्राएलियोंसे हार गए।।
34. जब यिप्तह मिस्पा को अपके घर आया, तब उसकी बेटी डफ बजाती और नाचक्की हुई उसकी भेंट के लिथे निकल आई; वह उसकी एकलौती यी; उसको छोड़ उसके न तो कोई बेटा या और कोई न बेटी।
35. उसको देखते ही उस ने अपके कपके फाड़कर कहा, हाथ, मेरी बेटी! तू ने कमर तोड़ दी, और तू भी मेरे कष्ट देनेवालोंमें हो गई है; क्योंकि मैं ेने यहोवा को वचन दिया है, और उसे टाल नहीं सकता।
36. उस ने उस से कहा, हे मेरे पिता, तू ने जो यहोवा को वचन दिया है, तो जो बात तेरे मुंह से निकली है उसी के अनुसार मुझ से बर्ताव कर, क्योंकि यहोवा ने तेरे अम्मोनी शत्रुओं से तेरा पलटा लिया है।
37. फिर उस ने अपके पिता से कहा, मेरे लिथे यह किया जाए, कि दो महीने तक मुझे छोड़े रह, कि मैं अपक्की सहेलियोंसहित जाकर पहाड़ोंपर फिरती हुई अपक्की कुंवारीपन पर रोती रहूं।
38. उस ने कहा, जा। तब उस ने उसे दो महिने की छुट्टी दी; इसलिथे वह अपक्की सहेलियोंसहित चक्की गई, और पहाड़ोंपर अपक्की कुंवारीपन पर रोती रही।
39. दो महीने के बीतने पर वह अपके पिता के पास लौट आई, और उस ने उसके विषय में अपक्की मानी हुइ मन्नत को पूरी किया। और उस कन्या ने पुरूष का मुंह कभी न देखा या। इसलिथे इस्राएलियोंमें यह रीति चक्की
40. कि इस्राएली स्त्रियां प्रतिवर्ष यिप्तह गिलादी की बेटी का यश गाने को वर्ष में चार दिन तक जाया करती यीं।।

Chapter 12

1. तब एप्रैमी पुरूष इकट्ठे होकर सापोन को जाकर यिप्तह से कहने लगे, कि जब तू अम्मोनियोंसे लड़ने को गया तब हमें संग चलने को क्योंनहीं बुलवाया? हम तेरा घर तुझ समेत जला देंगे।
2. यिप्तह ने उन से कहा, मेरा और मेरे लोगोंका अम्मोनियोंसे बड़ा फगड़ा हुआ या; और जब मैं ने तुम से सहाथता मांगी, तब तुम ने मुझे उनके हाथ से नहीं बचाया।
3. तब यह देखकर कि तुम मुझे नहीं बचाते मैं अपके प्राणोंको हथेली पर रखकर अम्मोनियोंके विरूद्ध चला, और यहोवा ने उनको मेरे हाथ में कर दिया; फिर तुम अब मुझ से लड़ने को क्योंचढ़ आए हो?
4. तब यिप्तह गिलाद के सब पुरूषोंको इकट्ठा करके एप्रैम से लड़ा और एप्रैम जो कहता या, कि हे गिलादियो, तुम तो एप्रैम और मनश्शे के बीच रहनेवाले एप्रैमियोंके भगोड़े हो, और गिलादियोंने उनको मार लिया।
5. और गिलादियोंने यरदन का घाट उन से पहिले अपके वश में कर लिया। और जब कोई एप्रैमी भगोड़ा कहता, कि मुझे पार जाने दो, तब गिलाद के पुरूष उस से पूछते थे, क्या तू एप्रैमी है? और यदि वह कहता नहीं,
6. तो वह उस से कहते, अच्छा, शिब्बोलेत कह, और वह कहता सिब्बोलेत, क्योंकि उस से वह ठीक बोला नहीं जाता य; तब वे उसको पकड़कर यरदन के घाट पर मार डालते थे। इस प्राकर उस समय बयालीस हजार एप्रैमी मारे गए।।
7. यिप्तह छ: वर्ष तक इस्राएल का न्याय करता रहा। तब यिप्तह गिलादी मर गया, और उसको गिलाद के किसी नगर में मिट्टी दी गई।।
8. उसके बाद बेतलेहेम का निवासी इबसान इस्राएल का न्याय करने लगा।
9. और उसके तीस बेटे हुए; और उस ने अपक्की तीस बेटियां बाहर ब्याह दीं, और बाहर से अपके बेटोंका ब्याह करके तीस बहू ले आया। और वह इस्राएल का न्याय सात वर्ष तक करता रहा।
10. तब इबसान मर गया, और उसको बेतलेहेम में मिट्टी दी गई।।
11. उसके बाद जबूलूनी एलोन इस्राएल का न्याय करने लगा; और वह इस्राएल का न्याय दस वर्ष तक करता रहा।
12. तब एलोन जबूलूनी मर गया, और उसको जबूलून के देश के अय्यालोन में मिट्टी दी गई।।
13. उसके बाद हिल्लेल का पुत्र पिरातोनी अब्दोन इस्राएल का न्याय करने लगा।
14. और उसके चालीस बेटे और तीस पोते हुए, जो गदहियोंके सत्तर बच्चोंपर सवार हुआ करते थे। वह आठ वर्ष तक इस्राएल का न्याय करता रहा।
15. तब हिल्लेल का पुत्र पिरातोनी अब्दोन मर गया, और उसको एप्रैम के देश के पिरातोन में, जो अमालेकियोंके पहाड़ी देश में है, मिट्टी दी गई।।

Chapter 13

1. और इस्राएलियोंने फिर यहोवा की दृष्टि में बुरा किया; इसलिथे यहोवा ने उनको पलिश्तियोंके वश में चालीस वर्ष के लिथे रखा।।
2. दानियोंके कुल का सोरावासी मानोह नाम एक पुरूष या, जिसकी पत्नी के बांफ होने के कारण कोई पुत्र न या।
3. इस स्त्री को यहोवा के दूत ने दर्शन देकर कहा, सुन, बांफ होने के कारण तेरे बच्चा नहीं; परन्तु अब तू गर्भवती होगी और तेरे बेटा होगा।
4. इसलिथे अब सावधान रह, कि न तो तू दाखमधु वा और किसी भांति की मदिरा पीए, और न कोई अशुद्ध वस्तु खाए,
5. क्योंकि तू गर्भवती होगी और तेरे एक बेटा उत्पन्न होगा। और उसके सिर पर छूरा न फिरे, क्योंकि वह जन्म ही से परमेश्वर का नाजीर रहेगा; और इस्राएलियोंको पलिश्तियोंके हाथ से छुड़ाने में वहीं हाथ लगाएगा।
6. उस स्त्री ने अपके पति के पास जाकर कहा, परमेश्वर का एक जन मेरे पास आया या जिसका रूप परमेश्वर के दूत का सा अति भययोग्य या; और मैं ने उस से न पूछा कि तू कहां का है? और न उस ने मुझे अपना नाम बताया;
7. परन्तु उस ने मुझ से कहा, सुन तू गर्भवती होगी और तेरे एक बेटा होगा; इसलिथे अब न तो दाखमधु वा और किसी भांति की मदिरा पीना, और न कोई अशुद्ध वस्तु खाना, क्योंकि वह लड़का जन्म से मरण के दिन तक परमेश्वर का नाजीर रहेगा।
8. तब मानोह ने यहोवा से यह बिनती की, कि हे प्रभु, बिनती सुन, परमेश्वर का वह जन जिसे तू ने भेजा या फिर हमारे पास आए, और हमें सिखलाए कि जो बालक उत्पन्न होनेवाला है उस से हम क्या क्या करें।
9. मानोह की यह बात परमेश्वर ने सुन ली, इसलिथे जब वह स्त्री मैदान में बैठी यी, और उसका पति मानोह उसके संग न या, तब परमेश्वर का वही दूत उसके पास आया।
10. तब उस स्त्री ने फट दौड़कर अपके पति को यह समाचार दिया, कि जो पुरूष उस दिन मेरे पास आया या उसी ने मुझे दर्शन दिया है।
11. यह सुनते ही मानोह उठकर अपक्की पत्नी के पीछे चला, और उस पुरूष के पास आकर पूछा, कि क्या तू वही पुरूष है जिसने इस स्त्री से बातें की यीं? उस ने कहा, मैं वही हूं।
12. मानोह ने कहा, जब तेरे वचन पूरे हो जाएं तो, उस बालक का कैसा ढंग और उसका क्या काम होगा?
13. यहोवा के दूत ने मानोह से कहा, जितनी वस्तुओं की चर्चा मैं ने इस स्त्री से की यी उन सब से यह पके रहे।
14. यह कोई वस्तु जो दाखलता से उत्पन्न होती है न खाए, और न दाखमधु वा और किसी भंाति की मदिरा पीए, और न कोई अशुद्ध वस्तु खाए; जो जो आज्ञा मैं ने इसको दी यी उसी को माने।
15. मानोह ने यहोवा के दूत से कहा, हम तुझ को रोक लें, कि तेरे लिथे बकरी का एक बच्चा पकाकर तैयार करें।
16. यहोवा के दूत ने मानोह से कहा, चाहे तू मुझे रोक रखे, परन्तु मैं तेरे भोजन में से कुछ न खाऊंगा; और यदि तू होमबलि करना चाहे तो यहोवा ही के लिथे कर। (मानोह तो न जानता या, कि यह यहोवा का दूत है।)
17. मानोह ने यहोवा के दूत से कहा, अपना नाम बता, इसलिथे कि जब तेरी बातें पूरी होंतब हम तेरा आदरमान कर सकें।
18. यहोवा के दूत ने उस से कहा, मेरा नाम तो अद्‌भुत है, इसलिथे तू उसे क्योंपूछता है?
19. तब मानोह ने अन्नबलि समेत बकरी का एक बच्चा लेकर चट्टान पर यहोवा के लिथे चढ़ाया तब उस दूत ने मानोह और उसकी पत्नी के देखते देखते एक अद्‌भुत काम किया।
20. अर्यात्‌ जब लौ उस वेदी पर से आकाश की ओर उठ रही यी, तब यहोवा का दूत उस वेदी की लौ में होकर मानोह और उसकी पत्नी के देखते देखते चढ़ गया; तब वे भूमि पर मुंह के बल गिरे।
21. परन्तु यहोवा के दूत ने मानोह और उसकी पत्नी को फिर कभी दर्शन न दिया। तब मानोह ने जान लिया कि वह यहोवा का दूत या।
22. तब मानोह ने अपक्की पत्नी से कहा, हम निश्चय मर जाएंगे, क्योंकि हम ने परमेश्वर का दर्शन पाया है।
23. उसकी पत्नी ने उस से कहा, यदि यहोवा हमें मार डालना चाहता, तो हमारे हाथ से होमबलि और अन्नबलि ग्रहण न करता, और न वह ऐसी सब बातें हम को दिखाता, और न वह इस समय हमें ऐसी बातें सुनाता।
24. और उस स्त्री के एक बेटा उत्पन्न हुआ, और उसका नाम शिमशोन रखा; और वह बालक बढ़ता गया, और यहोवा उसको आशीष देता रहा।
25. और यहोवा का आत्मा सोरा और एशताओल के बीच महनदान में उसको उभारने लगा।।

Chapter 14

1. शिमशोन तिम्ना को गया, और तिम्ना में एक पलिश्तिी स्त्री को देखा।
2. तब उस ने जाकर अपके माता पिता से कहा, तिम्ना में मैं ने एक पलिश्तिी स्त्री को देखा है, सो अब तुम उस से मेरा ब्याह करा दो।
3. उसके माता पिता ने उस से कहा, क्या तेरे धाइयोंकी बेटियोंमें, वा हमारे सब लोगोंमें कोई स्त्री नहीं है, कि तू खतनाहीन पलिश्तियोंमें से स्त्री ब्याहने चाहता है? शिमशोन ने अपके पिता से कहा, उसी से मेरा ब्याह करा दे; क्योंकि मुझे वही अच्छी लगती है।
4. उसके माता पिता न जानते थे कि यह बात यहोवा की ओर से होती है, कि वह पलिश्तियोंके विरूद्ध दांव ढूंढता है। उस समय तो पलिश्ती इस्राएल पर प्रभुता करते थे।।
5. तब शिमशोन अपके माता पिता को संग ले तिम्ना को चलकर तिम्ना की दाख की बारी के पास पहुंचा, वहां उसके साम्हने एक जवान सिंह गरजने लगा।
6. तब यहोवा का आत्मा उस पर बल से उतरा, और यद्यपि उसके हाथ में कुछ न या, तौभी उस ने उसको ऐसा फाड़ डाला जैसा कोई बकरी का बच्चा फाड़े। अपना यह काम उसने अपके पिता वा माता को न बतलाया।
7. तब उस ने जाकर उस स्त्री से बातचीत की; और वह शिमशोन को अच्छी लगी।
8. कुछ दिनोंके बीतने पर वह उसे लाने को लौट चला; और उस सिंह की लोय देखने के लिथे मार्ग से मुड़ गया? तो क्या देखा कि सिंह की लोय में मधुमक्खियोंका एक फुण्ड और मधु भी है।
9. तब वह उस में से कुछ हाथ में लेकर खाते खाते अपके माता पिता के पास गया, और उनको यह बिना बताए, कि मैं ने इसको सिंह की लोय में से निकाला है, कुछ दिया, और उन्होंने भी उसे खाया।
10. तब उसका पिता उस स्त्री के यहां गया, और शिमशोन न जवानोंकी रीति के अनुसार वहां जेवनार की।
11. उसको देखकर वे उसके संग रहने के लिथे तीस संगियोंको ले आए।
12. शिमशोन ने उस ने कहा, मैं तुम से एक पकेली कहता हूं; यदि तुम इस जेवनार के सातोंदिनोंके भीतर उसे बूफकर अर्य बता दो, तो मैं तुम को तीस कुरते और तीस जोड़े कपके दूंगा;
13. और यदि तुम उसे न बता सको, तो तुम को मुझे तीस कुर्ते और तीस जोड़े कपके देने पकेंगे। उन्होंने उस से कहा, अपक्की पकेली कह, कि हम उसे सुनें।
14. उस ने उन से कहा, खानेवाले में से खाना, और बलवन्त में से मीठी वस्तु निकली। इस पकेली का अर्य वे तीन दिन के भीतर न बता सके।
15. सातवें दिन उन्होंने शिमशोन की पत्नी से कहा, अपके पति को फुसला कि वह हमें पकेली का अर्य बताए, नहीं तो हम तुझे तेरे पिता के घर समेत आग में जलाएंगे। क्या तुम लोगोंने हमारा धन लेने के लिथे हमारा नेवता किया है? क्या यही बात नहीं है?
16. तब शिमशोन की पत्नी यह कहकर उसके साम्हने रोने लगी, कि तू तो मुझ से प्रेम नहीं, बैर ही रखता है; कि तू ने एक पकेली मेरी जाति के लोगोंसे तो कही है, परन्तु मुझ को उसका अर्य भी नहीं बताया। उस ने कहा, मैं ने उसे अपक्की माता वा पिता को भी नहीं बताया, फिर क्या मैं तुझ को बता दूं?
17. और जेवनार के सातोंदिनोंमें वह स्त्री उसके साम्हने रोती रही; और सातवें दिन जब उस ने उसको बहुत तंग किया; तब उस ने उसको पकेली का अर्य बता दिया। तब उस ने उसे अपक्की जाति के लोगोंको बता दिया।
18. तब सातवें दिन सूर्य डूबने न पाया कि उस नगर के मनुष्योंने शिमशोन से कहा, मधु से अधिक क्या मीठा? और सिंह से अधिक क्या बलवन्त है? उस ने उन से कहा, यदि तुम मेरी कलोर को हल में न जोतते, तो मेरी पकेली को कभी न बूफते।।
19. तब यहोवा का आत्मा उस पर बल से उतरा, और उस ने अश्कलोन को जाकर वहां के तीस पूरूषोंको मार डाला, और उनका धन लूटकर तीस जोड़े कपड़ोंको पकेली के बतानेवालोंको दे दिया। तब उसका क्रोध भड़का, और वह अपके पिता के घर गया।
20. और शिमशोन की पत्नी उसके एक संगी को जिस से उस ने मित्र का सा बर्ताव किया या ब्याह दी गई।।

Chapter 15

1. परन्तु कुछ दिनोंबाद, गेहूं की कटनी के दिनोंमें, शिमशोन ने बकरी का एक बच्चा लेकर अपक्की ससुराल में जाकर कहा, मैं अपक्की पत्नी के पास कोठरी में जाऊंगा। परन्तु उसके ससुर ने उसे भीतर जाने से रोका।
2. और उसके ससुर ने कहा, मैं सचमुच यह जानता या कि तू उस से बैर ही रखता है, इसलिथे मैं ने उसे तेरे संगी को ब्याह दिया। क्या उसकी छोटी बहिन उस से सुन्दर नहीं है? उसके बदले उसी को ब्याह ले।
3. शिमशोन ने उन लोगोंसे कहा, अब चाहे मैं पलिश्तियोंकी हानि भी करूं, तौभी उनके विषय में निर्दोष ही ठहरूंगा।
4. तब शिमशोन ने जाकर तीन सौ लोमडिय़ां पकड़ीं, और मशाल लेकर दो दो लोमडिय़ोंकी पूंछ एक साय बान्धी, और उनके बीच एक एक मशाल बान्धा।
5. तब मशालोंमें आग लगाकर उस ने लोमडिय़ोंको पलिश्तियोंके खड़े खेतोंमें छोड़ दिया; और पूलियोंके ढेर वरन खड़े खेत और जलपाई की बारियां भी जल गईं।
6. तब पलिश्ती पूछने लगे, यह किस ने किया है? लोगोंने कहा, उस तिम्नी के दामाद शिमशोन ने यह इसलिथे किया, कि उसके ससुर ने उसकी पत्नी उसे संगी को ब्याह दी। तब पलिश्तियोंने जाकर उस पत्नी और उसके पिता दोनोंको आग में जला दिया।
7. शिमशोन ने उन से कहा, तुम जो ऐसा काम करते हो, इसलिथे मैं तुम से पलटा लेकर ही चुप रहूंगा।
8. तब उस ने उनको अति निठुरता के साय बड़ी मार से मार डाला; तब जाकर एताम नाम चट्टान की एक दरार में रहने लगा।।
9. तब पलिश्तियोंने चढ़ाई करके यहूदा देश में डेरे खड़े किए, और लही में फैल गए।
10. तब यहूदी मनुष्योंने उन से पूछा, तुम हम पर क्योंचढ़ाई करते हो? उन्होंने उत्तर दिया, शिमशोन को बान्धने के लिथे चढ़ाई करते हैं, कि जैसे उस ने हम से किया वैसे ही हम भी उस से करें।
11. तब तीन हजार यहूदी पुरूष ऐताम नाम चट्टान की दरार में जाकर शिमशोन से कहने लगे, क्या तू नहीं जानता कि पलिश्ती हम पर प्रभुता करते हैं? फिर तू ने हम से ऐसा क्योंकिया है? उस ने उन से कहा, जैसा उन्होंने मुझ से किया या, वैसा ही मैं ने भी उन से किया है।
12. उन्होंने उस से कहा, हम तुझे बान्धकर पलिश्तियोंके हाथ में कर देने के लिथे आए हैं। शिमशोन ने उन से कहा, मुझ से यह शपय खाओ कि तुम मुझ पर प्रहार न करोगे।
13. उन्होंने कहा, ऐसा न होगा; हम तुझे कसकर उनके हाथ में कर देंगे; परन्तु तुझे किसी रीति मान न डालेंगे। तब वे उसको दो नई रस्सिक्कों बान्धकर उस चट्टान पर ले गए।
14. वह लही तक आ गया या, कि पलिश्ती उसको देखकर ललकारने लगे; तब यहोवा का आत्मा उस पर बल से उतरा, और उसकी बांहोंकी रस्सियां आग में जले हुए सन के समान हो गईं, और उसके हाथोंके बन्धन मानोंगलकर टूट पके।
15. तब उसको गदहे के जबड़े की एक नई हड्डी मिली, और उस ने हाथ बढ़ा उसे लेकर एक हजार पुरूषोंको मार डाला।
16. तब शिमशोन ने कहा, गदहे के जबड़े की हड्डी से ढेर के ढेर लग गए, गदहे के जबड़े की हड्डी ही से मैं ने हजार पुरूषोंको मार डाला।।
17. जब वह ऐसा कह चुका, तब उस ने जबड़े की हड्डी फेंक दी और उस स्यान का नाम रामत-लही रखा गया।
18. तब उसको बड़ी प्यास लगी, और उस ने यहोवा को पुकार के कहा तू ने अपके दास से यह बड़ा छुटकारा कराया है; फिर क्या मैं अब प्यासोंमरके उन खतनाहीन लोगोंके हाथ में पडूं?
19. तब परमेश्वर ने लही में ओखली सा गढ़हा कर दिया, और उस में से पानी निकलने लगा; और जब शिमशोन ने पीया, तब उसके जी में जी आया, और वह फिर ताजा दम हो गया। इस कारण उस सोते का नाम एनहक्कोरे रखा गया, वह आज के दिन तक लही में हैं।
20. शिमशोन तो पलिश्तियोंके दिनोंमें बीस वर्ष तक इस्राएल का न्याय करता रहा।।

Chapter 16

1. तब शिमशोन अज्जा को गया, और वहां एक वेश्या को देखकर उसके पास गया।
2. जब अज्जियोंको इसका समाचार मिला कि शिमशोन यहां आया है, तब उन्होंने उसको घेर लिया, और रात भर नगर के फाटक पर उसकी घात में लगे रहे; और यह कहकर रात भर चुपचाप रहे, कि बिहान को भोर होते ही हम उसको घात करेंगे।
3. परन्तु शिमशोन आधी रात तक पड़ा रह कर, आधी रात को उठकर, उस ने नगर के फाटक के दोनोंपल्लोंऔर दोनो बाजुओं को पकड़कर बेंड़ोंसमेत उखाड़ लिया, और अपके कन्घोंपर रखकर उन्हें उस पहाड़ की चोटी पर ले गया, जो हेब्रोन के साम्हने है।।
4. इसके बाद वह सोरेक नाम नाले में रहनेवाली दलीला नाम एक स्त्री से प्रीति करने लगा।
5. तब पलिश्तियोंके सरदारोंने उस स्त्री के पास जाके कहा, तू उसको फुसलाकर बूफ ले कि उसके महाबल का भेद क्या है, और कौन उपाय करके हम उस पर ऐसे प्रबल हों, कि उसे बान्धकर दबा रखें; तब हम तुझे ग्यारह ग्यारह सौ टुकड़े चान्दी देंगे।
6. तब दलीला ने शिमशोन से कहा, मुझे बता दे कि तेरे बड़े बल का भेद क्या है, और किसी रीति से कोई तुझे बान्धकर दबा रख सके।
7. शिमशोन ने उस से कहा, यदि मैं सात ऐसी नई नई तातोंसे बान्धा जाऊं जो सुखाई न गई हों, तो मेरा बल घट जाथेगा, और मैं साधारण मनुष्य सा हो जाऊंगा।
8. तब पलिश्तियोंके सरदार दलीला के पास ऐसी नई नई सात तातें ले गए जो सुखाई न गई यीं, और उन से उस ने शिमशोन को बान्धा।
9. उसके पास तो कुछ मनुष्य कोठरी में घात लगाए बैठे थे। तब उस ने उस से कहा, हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं! तब उस ने तांतोंको ऐसा तोड़ा जैसा सन का सूत आग में छूते ही टूट जाता है। और उसके बल का भेद न खुला।
10. तब दलीला ने शिमशोन से कहा, सुन, तू ने तो मुझ से छल किया, और फूठ कहा है; अब मुझे बता दे कि तू किस वस्तु से बन्ध सकता है।
11. उस ने उस से कहा, यदि मैं ऐसी नई नई रस्सिक्कों जो किसी काम में न आई होंकसकर बान्धा जाऊं, तो मेरा बल घट जाएगा, और मैं साधारण मनुष्य के समान हो जाऊंगा।
12. तब दलीला ने नई नई रस्सियां लेकर और उसको बान्धकर कहा, हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं! कितने मनुष्य तो उस कोठरी में धात लगाए हुए थे। तब उस ने उनको सूत की नाईं अपक्की भुजाओं पर से तोड़ डाला।
13. तब दलीला ने शिमशोन से कहा, अब तक तू मुझ से छल करता, और फूठ बोलता आया है; अब मुझे बता दे कि तू काहे से बन्ध सकता है? उस ने कहा यदि तू मेरे सिर की सातोंलटें ताने में बुने तो बन्ध सकूंगा।
14. सो उस ने उसे खूंटी से जकड़ा। तब उस से कहा, हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं! तब वह नींद से चौंक उठा, और खूंटी को धरन में से उखाड़कर उसे ताने समेत ले गया।
15. तब दलीला ने उस से कहा, तेरा मन तो मुझ से नहीं लगा, फिर तू क्योंकहता है, कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं? तू ने थे तीनोंबार मुझ से छल किया, और मुझे नहीं बताया कि तेरे बड़े बल का भेद क्या है।
16. सो जब उस ने हर दिन बातें करते करते उसको तंग किया, और यहां तक हठ किया, कि उसके नाकोंमें दम आ गया,
17. तब उस ने अपके मन का सारा भेद खोलकर उस से कहा, मेरे सिर पर छुरा कभी नहीं फिरा, क्योंकि मैं मां के पेट ही से परमेश्वर का नाजीर हूं, यदि मैं मूड़ा जाऊं, तो मेरा बल इतना घट जाएगा, कि मैं साधारण मनुष्य सा हो जाऊंगा।
18. यह देखकर, कि उस ने अपके मन का सारा भेद मुझ से कह दिया है, दलीला ने पलिश्तियोंके सरदारोंके पास कहला भेजा, कि अब की बार फिर आओ, क्योंकि उस ने अपके मन का सब भेद मुझे बता दिया है। तब पलिश्तियोंके सरदार हाथ में रूपया लिए हुए उसके पास गए।
19. तब उस ने उसको अपके घुटनोंपर सुला रखा; और एक मनुष्य बुलवाकर उसके सिर की सातोंलटें मुण्डवा डालीं। और वह उसको दबाने लगी, और वह निर्बल हो गया।
20. तब उस ने कहा, हे शिमशोन, पलिश्ती तेरी घात में हैं! तब वह चौंककर सोचने लगा, कि मैं पहिले की नाईं बाहर जाकर फटकूंगा। वह तो न जानता या, कि यहोवा उसके पास से चला गया है।
21. तब पलिश्तियोंने उसको पकड़कर उसकी आंखें फोड़ डालीं, और उसे अज्जा को ले जाके पीतल की बेडिय़ोंसे जकड़ दिया; और वह बन्दीगृह में चक्की पीसने लगा।
22. उसके सिर के बाल मुण्ड जाने के बाद फिर बढ़ने लगे।।
23. तब पलिश्तियोंके सरदार अपके दागोन नाम देवता के लिथे बड़ा यज्ञ, और आनन्द करने को यह कहकर इकट्ठे हुए, कि हमारे देवता ने हमारे शत्रु शिमशोन को हमारे हाथ में कर दिया है।
24. और जब लोगोंने उसे देखा, तब यह कहकर अपके देवता की स्तुति की, कि हमारे देवता ने हमारे शत्रु और हमारे देश के नाश करनेवाले को, जिस ने हम में से बहुतोंको मार भी डाला, हमारे हाथ में कर दिया है।
25. जब उनका मन मगन हो गया, तब उन्होंने कहा, शिमशोन को बुलवा लो, कि वह हमारे लिथे तमाशा करे। इसलिथे शिमशोन बन्दीगृह में से बुलवाया गया, और उनके लिथे तमाशा करने लगा, और खम्भोंके बीच खड़ा कर दिया गया।
26. तब शिमशोन ने उस लड़के से जो उसका हाथ पकड़े या कहा, मुझे उन खम्भोंको जिन से घर सम्भला हुआ है छूने दे, कि मैं उस पर टेक लगाऊं।
27. वह घर तो स्त्री पुरूषोंसे भरा हुआ या; पलिश्तियोंके सब सरदार भी वहां थे, और छत पर कोई तीन हजार सत्री पुरूष थे, जो शिमशोन को तमाशा करते हुए देख रहे थे।
28. तब शिमशोन ने यह कहकर यहोवा की दोहाई दी, कि हे प्रभु यहोवा, मेरी सुधि ले; हे परमेश्वर, अब की बार मुझे बल दे, कि मैं पलिश्तियोंसे अपक्की दोनोंआंखोंका एक ही पलटा लूं।
29. तब शिमशोन ने उन दोनोंबीचवाले खम्भोंको जिन से घर सम्भला हुआ या पकड़कर एक पर तो दाहिने हाथ से और दूसरे पर बाएं हाथ से बल लगा दिया।
30. और शिमशोन ने कहा, पलिश्तियोंके संग मेरा प्राण भी जाए। और वह अपना सारा बल लगाकर फुका; तब वह घर सब सरदारोंऔर उस में से सारे लोगोंपर गिर पड़ा। सो जिनको उस ने मरते समय मार डाला वे उन से भी अधिक थे जिन्हें उस ने अपके जीवन में मार डाला या।
31. तब उसके भाई और उसके पिता के सारे घराने के लोग आए, और उसे उठाकर ले गए, और सोरा और एशताओल के मध्य अपके पिता मानोह की कबर में मिट्टी दी। उसने इस्राएल का न्याय बीस वर्ष तक किया या।

Chapter 17

1. एप्रैम के पहाड़ी देश में मीका नाम एक पुरूष या।
2. उस ने अपक्की माता से कहा, जो ग्यारह सौ टुकड़े चान्दी तुझ से ले लिए गए थे, जिनके विषय में तू ने मेरे सुनते भी शाप दिया या, वे मेरे पास हैं; मैं ने ही उनको ले लिया या। उसकी माता ने कहा, मेरे बेटे पर यहोवा की ओर से आशीष होए।
3. जब उस ने वे ग्यारह सौ टुकड़े चान्दी अपक्की माता को फेर दिए; तब माता ने कहा, मैं अपक्की ओर से अपके बेटे के लिथे यह रूपया यहोवा को निश्चय अर्पण करती हूं ताकि उस से एक मूरत खोदकर, और दूसरी ढालकर बनाई जाए, सो अब मैं उसे तुझ को फेर देती हूं।
4. जब उस ने वह रूपया अपक्की माता को फेर दिया, तब माता ने दो सौ टुकड़े ढलवैयोंको दिए, और उस ने उन से एक मूत्तिर् खोदकर, और दूसरी ढालकर बनाई; और वे मीका के घर में रहीं।
5. मीका के पास एक देवस्यान या, तब उस ने एक एपोद, और कई एक गृहदेवता बनवाए; और अपके एक बेटे का संस्कार करके उसे अपना पुरोहित ठहरा लियां
6. उन दिनोंमें इस्राएलियोंका कोई राजा न या; जिसको जो ठीक सूफ पड़ता या वही वह करता या।।
7. यहूदा के कुल का एक जवान लेवीय यहूदा के बेतलेहेम में परदेशी होकर रहता या।
8. वह यहूदा के बेतलेहेम नगर से इसिलिथे निकला, कि जहां कहीं स्यान मिले वहां जा रहे। चलते चलते वह एप्रैम के पहाड़ी देश में मीका के घर पर आ निकला।
9. मीका ने उस से पूछा, तू कहां से आता है? उस ने कहा, मैं तो यहूदा के बेतलेहेम से आया हुआ एक लेवीय हूं, और इसलिथे चला जाता हूं, कि जहां कहीं ठिकाना मुझे मिले वहीं रहूं।
10. मीका ने उस से कहा, मेरे संग रहकर मेरे लिथे पिता और पुरोहित बन, और मैं तुझे प्रति वर्ष दस टुकड़े रूपे, और एक जोडा कपड़ा, और भोजनवस्तु दिया करूंगा; तब वह लेवीय भीतर गया।
11. और वह लेवीय उस पुरूष के संग रहने को प्रसन्न हुआ; और वह जवान उसके साय बेटा सा बना रहा।
12. तब मीका ने उस लेवीय का संस्कार किया, और वह जवान उसका पुरोहित होकर मीका के घर में रहने लगा।
13. और मीका सोचता या, कि अब मैं जानता हूं कि यहोवा मेरा भला करेगा, क्योंकि मैं ने एक लेवीय को अपना पुरोहित कर रखा है।।

Chapter 18

1. उन दिनोंमें इस्राएलियोंका कोई राजा न या। और उन्हीं दिनोंमें दानियोंके गोत्र के लोग रहने के लिथे कोई भाग ढूंढ़ रहे थे; क्योंकि इस्राएली गोत्रोंके बीच उनका भाग उस समय तक न मिला या।
2. तब दानियोंने अपके सब कुल में से पांच शूरवीरोंको सोरा और एशताओल से देश का भेद लेने और उस में देख भाल करने के लिथे यह कहकर भेज दिया, कि जाकर देश में देख भाल करो। इसलिथे वे एप्रैम के पहाड़ी देश में मीका के घर तक जाकर वहां टिक गए।
3. जब वे मीका के घर के पास आए, तब उस जवान लेवीय का बोल पहचाना; इसलिथे वहां मुड़कर उस से पूछा, तुझे यहां कौन ले आया? और तू यहां क्या करता है? और यहां तेरे पास क्या है?
4. उस ने उन से कहा, मीका ने मुझ से ऐसा ऐसा व्यवहार किया है, और मुझे नौकर रखा है, और मैं उसका पुरोहित हो गया हूं।
5. उन्होंने उस से कहा, परमेश्वर से सलाह ले, कि हम जान लें कि जो यात्रा हम करते हैं वह सफल होगी वा नहीं।
6. पुरोहित ने उन से कहा, कुशल से चले जाओ। जो यात्रा तुम करते हो वह ठीक यहोवा के साम्हने है।
7. तब वे पांच मनुष्य चल निकले, और लैश को जाकर वहां के लोगोंको देखा कि सीदोनियोंकी नाईं निडर, बेखटके, और शान्ति से रहते हैं; और इस देश का कोई अधिक्कारनेी नहीं है, जो उन्हें किसी काम में रोके, और थे सीदोनियोंसे दूर रहते हैं, और दूसरे मनुष्योंसे कुछ व्यवहार नहीं रखते।
8. तब वे सोरा और एश्ताओल को अपके भाइयोंके पास गए, और उनके भाइयोंने उन से पूछा, तुम क्या समाचार ले आए हो?
9. उन्होंने कहा, आओ, हम उन लोगोंपर चढ़ाई करें; क्योंकि हम ने उस देश को देखा कि वह बहुत अच्छा है। तुम क्योंचुपचाप रहते हो? वहां चलकर उस देश को अपके वंश में कर लेने में आलस न करो।
10. वहां पहुंचकर तुम निडर रहते हुए लोगोंको, और लम्बा चौड़ा देश पाओगे; और परमेश्वर ने उसे तुम्हारे हाथ में दे दिया है। वह ऐसा स्यान है जिस में पृय्वी भर के किसी पदार्य की घटी नहीं है।।
11. तब वहां से अर्यात्‌ सोरा और एशताओल से दानियोंके कुल के छ: सौ पुरूषोंने युद्ध के हयियार बान्धकर प्रस्यान किया।
12. उन्होंने जाकर यहूदा देश के किर्य्यत्यारीम नगर में डेरे खड़े किए। इस कारण उस स्यान का नाम महनेदान आज तक पड़ा है, वह तो किर्य्यत्यारीम के पश्चिम की ओर है।
13. वहां से वे आगे बढ़कर एप्रैम के पहाड़ी देश में मीका के घर के पास आए।
14. तब जो पांच मनुष्य लैश के देश का भेद लेने गए थे, वे अपके भाइयोंसे कहने लगे, क्या तुम जानते हो कि इन घरोंमें एक एपोद, कई एक गृहदेवता, एक खुदी और एक ढली हुई मूरत है? इसलिथे अब सोचो, कि क्या करना चाहिथे।
15. वे उधर मुड़कर उस जवान लेवीय के घर गए, जो मीका का घर या, और उसका कुशल झेम पूछा।
16. और वे छ: सौ दानी पुरूष फाटक में हयियार बान्धे हुए खड़े रहे।
17. और जो पांच मनुष्य देश का भेद लेने गए थे, उन्होंने वहां घुसकर उस खुदी हुई मूरत, और एपोद, और गृहदेवताओं, और ढली हुई मूरत को ले लिया, और वह पुरोहित फाटक में उन हयियार बान्धे हुए छ: सौ पुरूषोंके संग खड़ा या।
18. जब वे पांच मनुष्य मीका के घर में घुसकर खुदी हुई मूरत, एपोद, गृहदेवता, और ढली हुई मूरत को ले आए थे, तब पुरोहित ने उन से पूछा, यह तुम क्या करते हो?
19. उन्होंने उस से कहा, चुप रह, अपके मुंह को हाथ से बन्दकर, और हम लोगोंके संग चलकर, हमारे लिथे पिता और पुरोहित बन। तेरे लिथे क्या अच्छा है? यह, कि एक ही मनुष्य के घराने का पुरोहित हो, वा यह, कि इस्राएलियोंके एक गोत्र और कुल का पुरोहित हो?
20. तब पुरोहित प्रसन्न हुआ, सो वह एपोद, गृहदेवता, और खुदी हुई मूरत को लेकर उन लोगोंके संग चला गया।
21. तब वे मुड़े, और बालबच्चों, पशुओं, और सामान को अपके आगे करके चल दिए।
22. जब वे मीका के घर से दूर निकल गए थे, तब जो मनुष्य मीका के घर के पासवाले घरोंमें रहते थे उन्होंने इकट्ठे होकर दानियोंको जा लिया।
23. और दानियोंको पुकारा, तब उन्होंने मुंह फेर के मीका से कहा, तुझे क्या हुआ कि तू इतना बड़ा दल लिए आता है?
24. उस ने कहा, तुम तो मेरे बनवाए हुए देवताओं और पुरोहित को ले चले हो; फिर मेरे पास क्या रह गया? तो तुम मुझ से क्योंपूछते हो? कि तुझे क्या हुआ है?
25. दानियोंने उस से कहा, तेरा बोल हम लोगोंमें सुनाई न दे, कहीं ऐसा न हो कि क्रोधी जन तुम लोगोंपर प्रहार करें? और तू अपना और अपके घर के लोगोंके भी प्राण को खो दे।
26. तब दानियोंने अपना मार्ग लिया; और मीका यह देखकर कि वे मुझ से अधिक बलवन्त हैं फिरके अपके घर लौट गया।
27. और वे मीका के बनवाए हुए पदार्योंऔर उसके पुरोहित को साय ले लैश के पास आए, जिसके लोग शान्ति से और बिना खटके रहते थे, और उन्होंने उनको तलवार से मार डाला, और नगर को आग लगाकर फूंक दिया।
28. और कोई बचानेवाला न या, क्योंकि वह सीदोन से दूर या, और वे और मनुष्योंसे कुछ व्यवहार न रखते थे। और वह बेत्रहोब की तराई में या। तब उन्होंने नगर को दृढ़ किया, और उस में रहने लगे।
29. और उन्होंने उस नगर का नाम इस्राएल के एक पुत्र अपके मूलपुरूष दान के नाम पर दान रखा; परन्तु पहिले तो उस नगर का नाम लैश या।
30. तब दानियोंने उस खुदी हुई मूरत को खड़ा कर लिया; और देश की बन्धुआई के समय वह योनातान जो गेर्शोम का पुत्र और मूसा का पोता या, वह और उसके वंश के लोग दान गोत्र के पुरोहित बने रहे।
31. और जब तक परमेश्वर का भवन शीलो में बना रहा, तब तक वे मीका की खुदवाई हुई मूरत को स्यापित किए रहे।।

Chapter 19

1. उन दिनोंमें जब इस्राएलियोंका कोई राजा न या, तब एक लेवीय पुरूष एप्रैम के पहाड़ी देश की परली ओर परदेशी होकर रहता या, जिस ने यहूदा के बेतलेहेम में की एक सुरैतिन रख ली यी।
2. उसकी सुरैतिन व्यभिचार करके यहूदा के बेतलेहेम को अपके पिता के घर चक्की गई, और चार महीने वहीं रही।
3. तब उसका पति अपके साय एक सेवक और दो गदहे लेकर चला, और उसके यहां गया, कि उसे समझा बुफाकर ले आए। वह उसे अपके पिता के घर ले गई, और उस जवान स्त्री का पिता उसे देखकर उसकी भेंट से आनन्दित हुआ।
4. तब उसके ससुर अर्यात्‌ उस स्त्री के पिता ने बिनती करके उसे रोक लिया, और वह तीन दिन तक उसके पास रहा; सो वे वहां खाते पिते टिके रहे।
5. चौथे दिन जब वे भोर को सबेरे उठे, और वह चलने को हुआ; तब स्त्री के पिता ने अपके दामाद से कहा, एक टुकड़ा रोटी खाकर अपना जी ठण्डा कर, तब तुम लोग चले जाना।
6. तब उन दोनोंने बैठकर संग संग खाया पिया; फिर स्त्री के पिता ने उस पुरूष से कहा, और एक रात टिके रहने को प्रसन्न हो और आनन्द कर।
7. वह पुरूष विदा होने को उठा, परन्तु उसके सुसर ने बिनती करके उसे दबाया, इसलिथे उस ने फिर उसके यहां रात बिताई।
8. पांचवें दिन भोर को वह तो विदा होने को सवेरे उठा; परन्तु स्त्री के पिता ने कहा, अपना जी ठण्डा कर, और तुम दोनोंदिन ढलने तक रूके रहो। तब उन दोनोंने रोटी खाई।
9. जब वह पुरूष अपक्की सुरैतिन और सेवक समेत विदा होने को उठा, तब उसके ससुर अर्यात्‌ स्त्री के पिता ने उस से कहा, देख दिन तो ढला चला है, और सांफ होने पर है; इसलिथे तुम लोग रात भर टिके रहो। देख, दिन तो डूबने पर है; सो यहीं आनन्द करता हुआ रात बिता, और बिहान को सवेरे उठकर अपना मार्ग लेना, और अपके डेरे को चले जाना।
10. परन्तु उस पुरूष ने उस रात को टिकना न चाहा, इसलिथे वह उठकर विदा हुआ, और काठी बान्धे हुए दो गदहे और अपक्की सुरैतिन संग लिए हुए यबूस के साम्हने तक (जो यरूशलेम कहलाता है) पहुंचा।
11. वे यबूस के पास थे, और दिन बहुत ढल गया या, कि सेवक ने अपके स्वामी से कहा, आ, हम यबूसियोंके इस नगर में मुड़कर टिकें।
12. उसके स्वामी ने उस से कहा, हम पराए नगर में जहां कोई इस्राएली नहीं रहता, न उतरेंगे; गिबा तक बढ़ जाएंगे।
13. फिर उस ने अपके सेवक से कहा, आ, हम उधर के स्यानोंमें से किसी के पास जाएं, हम गिबा वा रामा में रात बिताएं।
14. और वे आगे की ओर चले; और उनके बिन्यामीन के गिबा के निकट पहुंचते पहुंचते सूर्य अस्त हो गया,
15. इसलिथे वे गिबा में टिकने के लिथे उसकी ओर मुड़ गए। और वह भीतर जाकर उस नगर के चौक में बैठ गया, क्योंकि किसी ने उनको अपके घर में न टिकाया।
16. तब एक बूढ़ा अपके खेत के काम को निपटाकर सांफ को चला आया; वह तो एप्रैम के पहाड़ी देश का या, और गिबा में परदेशी होकर रहता या; परन्तु उस स्यान के लोग बिन्यामीनी थे।
17. उस ने आंखें उठाकर उस यात्री को नगर के चौक में बैठे देखा; और उस बूढ़े ने पूछा, तू किधर जाता, और कहां से आता है?
18. उस ने उस से कहा, हम लोग तो यहूदा के बेतलेहम से आकर एप्रैम के पहाड़ी देश की परली ओर जाते हैं, मैं तो वहीं का हूं; और यहूदा के बेतलेहेम तक गया या, और यहोवा के भवन को जाता हूं, परन्तु कोई मुझे अपके घर में नहीं टिकाता।
19. हमारे पास तो गदहोंके लिथे पुआल और चारा भी है, और मेरे और तेरी इस दासी और इस जवान के लिथे भी जो तेरे दासोंके संग है रोटी और दाखमधु भी है; हमें किसी वस्तु की घटी नहीं है।
20. बूढ़े ने कहा, तेरा कल्याण हो; तेरे प्रयोजन की सब वस्तुएं मेरे सिर हों; परन्तु रात को चौक में न बिता।
21. तब वह उसको अपके घर ले चला, और गदहोंको चारा दिया; तब वे पांव धोकर खाने पीने लगे।
22. वे आनन्द कर रहे थे, कि नगर के लुच्चोंने घर को घेर लिया, और द्वार को खटखटा-खटखटाकर घर के उस बूढ़े स्वामी से कहने लगे, जो पुरूष तेरे घर में आया, उसे बाहर ले आ, कि हम उस से भोग करें।
23. घर का स्वामी उनके पास बाहर जाकर उन से कहने लगा, नहीं, नहीं, हे मेरे भाइयों, ऐसी बुराई न करो; यह पुरूष जो मेरे घर पर आया है, इस से ऐसी मूढ़ता का काम मत करो।
24. देखा, यहां मेरी कुंवारी बेटी है, और इस पुरूष की सुरैतिन भी है; उनको मैं बाहर ले आऊंगा। और उनका पत-पानी लो तो लो, और उन से तो जो चाहो सो करो; परन्तु इस पुरूष से ऐसी मूढ़ता का काम मत करो।
25. परन्तु उन मनुष्योंने उसकी न मानी। तब उस पुरूष ने अपक्की सुरैतिन को पकड़कर उनके पास बाहर कर दिया; और उन्होंने उस से कुकर्म किया, और रात भर क्या भोर तक उस से लीला क्रीड़ा करते रहे। और पह फटते ही उसे छोड़ दिया।
26. तब वह स्त्री पह फटते हुए जाके उस मनुष्य के घर के द्वार पर जिस में उसका पति या गिर गई, और उजियाले के होने तक वहीं पक्की रही।
27. सवेरे जब उसका पति उठ, घर का द्वार खोल, अपना मार्ग लेने को बाहर गया, तो क्या देखा, कि मेरी सुरैतिन घर के द्वार के पास डेवढ़ी पर हाथ फैलाए हुए पक्की है।
28. उस ने उस से कहा, उठ हम चलें। जब कोई न बोला, तब वह उसको गदहे पर लादकर अपके स्यान को गया।
29. जब वह अपके घर पहुंचा, तब छूरी ले सुरैतिन को अंग अंग करके काटा; और उसे बारह टुकड़े करके इस्राएल के देश में भेज दिया।
30. जितनोंने उसे देखा, वे सब आपस में कहने लगे, इस्राएलियोंके मिस्र देश मे चले आने के समय से लेकर आज के दिन तक ऐसा कुछ कभी नहीं हुआ, और न देखा गया; सो इसको सोचकर सम्मति करो, और बताओ।।

Chapter 20

1. तब दान से लेकर बर्शेबा तक के सब इस्राएली और गिलाद के लोग भी निकले, और उनकी मण्डली एक मत होकर मिस्पा में यहोवा के पास इकट्ठी हुई।
2. और सारी प्रजा के प्रधान लोग, वरन सब इस्राएली गोत्रोंके लोग जो चार लाख तलवार चलाने वाले प्यादे थे, परमेश्वर की प्रजा की सभा में उपस्यित हुए।
3. (बिन्यामीनियोंने तो सुना कि इस्राएली मिस्मा को आए हैं।) और इस्राएली पूछने लगे, हम से कहो, यह बुराई कैसे हुई?
4. उस मार डाली हुई स्त्री के लेवीय पति ने उत्तर दिया, मैं अपक्की सुरैतिन समेत बिन्यामीन के गिबा में टिकने को गया या।
5. तब गिबा के पुरूषोंने मुझ पर चढ़ाई की, और रात के समय घर को घेरके मुझे घात करना चाहा; और मेरी सुरैतिन से इतना कुकर्म किया कि वह मर गई।
6. तब मैं ने अपक्की सुरैतिन को लेकर टुकड़े टुकड़े किया, और इस्राएलियोंके भाग के सारे देश में भेज दिया, उन्होंने तो इस्राएल में महापाप और मूढ़ता का काम किया है।
7. सुनो, हे इस्राएलियों, सब के सब देखो, और यहीं अपक्की सम्मति दो।
8. तब सब लोग एक मन हो, उठकर कहने लगे, न तो हम में से कोई अपके डेरे जाएगा, और न कोई अपके घर की ओर मुड़ेगा।
9. परन्तु अब हम गिबा से यह करेंगे, अर्यात्‌ हम चिट्ठी डाल डालकर उस पर चढ़ाई करेंगे,
10. और हम सब इस्राएली गोत्रोंमें सौ पुरूषोंमें से दस, और हजार पुरूषोंमें से एक सौ, और दस हजार में से एक हजार पुरूषोंको ठहराएं, कि वे सेना के लिथे भोजनवस्तु पहुंचाएं; इसलिथे कि हम बिन्यामीन के गिबा में पहुंचकर उसको उस मूढ़ता का पूरा फल भुगता सकें जो उन्होंने इस्राएल में की है।
11. तब सब इस्राएली पुरूष उस नगर के विरूद्ध एक पुरूष की नाईं जुटे हुए इकट्ठे हो गए।।
12. और इस्राएली गोत्रियोंमें कितने मनुष्य यह पूछने को भेजे, कि यह क्या बुराई है जो तुम लोगोंमें की गई है?
13. अब उन गिबावासी लुच्चोंको हमारे हाथ कर दो, कि हम उनको जान से मार के इस्राएल में से बुराई नाश करें। परन्तु बिन्यामीनियोंने अपके भाई इस्राएलियोंकी मानने से इन्कार किया।
14. और बिन्यामीनी अपके अपके नगर में से आकर गिबा में इसलिथे इकट्ठे हुए, कि इस्राएलियोंसे लड़ने को निकलें।
15. और उसी दिन गिबावासी पुरूषोंको छोड़, जिनकी गिनती सात सौ चुने हुए पुरूष ठहरी, और और नगरोंसे आए हुए तलवार चलानेवाले बिन्यामीनियोंकी गिनती छब्बीस हजार पुरूष ठहरी।
16. इन सब लोगोंमें से सात सौ बैंहत्थे चुने हुए पुरूष थे, जो सब के सब ऐसे थे कि गोफन से पत्यर मारने में बाल भर भी न चूकते थे।
17. और बिन्यामीनियोंको छोड़ इस्राएली पुरूष चार लाख तलवार चलानेवाले थे; थे सब के सब योद्धा थे।।
18. सब इस्राएली उठकर बेतेल को गए, और यह कहकर परमेश्वर से सलाह ली, और इस्राएलियोंने पूछा, कि हम में से कौन बिन्यामीनियोंसे लड़ने को पहिले चढ़ाई करे? यहोवा ने कहा, यहूदा पहिले चढ़ाई करे।
19. तब इस्राएलियोंने बिहान को उठकर गिबा के साम्हने डेरे डाले।
20. और इस्राएली पुरूष बिन्यामीनियोंसे लड़ने को निकल गए; और इस्राएली पुरूषोंने उस से लड़ने को गिबा के विरूद्ध पांति बान्धी।
21. तब बिन्यामीनियोंने गिबा से निकल उसी दिन बाईस हजार इस्राएली पुरूषोंको मारके मिट्टी में मिला दिया।
22. तौभी इस्राएली पुरूष लोगोंने हियाव बान्धकर उसी स्यान में जहां उन्होंने पहिले दिन पांति बान्धी यी, फिर पांती बान्धी।
23. और इस्राएली जाकर सांफ तक यहोवा के साम्हने राते रहे; और यह कहकर यहोवा से पूछा, कि क्या हम अपके भाई बिन्यामीनियोंसे लड़ने को फिर पास जाएं? यहोवा ने कहा, हां, उन पर चढ़ाई करो।
24. तब दूसरे दिन इस्राएली बिन्यामीनियोंके निकट पहुंचे।
25. तब बिन्यामीनियोंने दूसरे दिन उनका साम्हना करने को गिबा से निकलकर फिर अठारह हजार इस्राएली पुरूषोंको मारके, जो सब के सब तलवार चलानेवाले थे, मिट्टी में मिला दिया।
26. तब सब इस्राएली, वरन सब लोग बेतेल को गए; और रोते हुए यहोवा के साम्हने बैठे रहे, और उस दिन सांफ तक उपवास किए रहे, और यहोवा को होमबलि और मेलबलि चढ़ाए।
27. और इस्राएलियोंने यहोवा से सलाह ली (उस समय तो परमेश्वर का वाचा का सन्दूक वहीं या,
28. और पीनहास, जो हारून का पोता, और एलीआजर का पुत्र या उन दिनोंमें उसके साम्हने हाजिर रहा करता या।) उन्होंने पूछा, क्या मैं एक और बार अपके भाई बिन्यामीनियोंसे लड़ने को निकल जाऊं, वा उनको छोड़ूं? यहोवा ने कहा, चढ़ाई कर; क्योंकि कल मैं उनको तेरे हाथ में कर दूंगा।
29. तब इस्राएलियोंने गिबा के चारोंओर लोगोंको धात में बैठाया।
30. तीसरे दिन इस्राएलियोंने बिन्यामीनियोंपर फिर चढ़ाई की, और पहिले की नाईं गिबा के विरूद्ध पांति बान्धी।
31. तब बिन्यामीनी उन लोगोंका साम्हना करने को निकले, और नगर के पास से खींचे गए; और जो दो सड़क, एक बेतेल को और दूसरी गिबा को गई है, उन में लोगोंको पहिले की नाईं मारने लगे, और मैदान में कोई तीस इस्राएली मारे गए।
32. बिन्यामीनी कहने लगे, वे पहिले की नाईं हम से मारे जाते हैं। परन्तु इस्राएलियोंने कहा, हम भागकर उनको नगर में से सड़कोंमें खींच ले आएं।
33. तब सब इस्राएली पुरूषोंने अपके स्यान में उठकर बालतामार में पांति बान्धी; और घात में बैठे हुए इस्राएली अपके स्यान से, अर्यात्‌ मारेगेवा से अचानक निकले।
34. तब सब इस्राएलियोंमें से छांटे हुए दास हजार पुरूष गिबा के साम्हने आए, और घोर लड़ाई होने लगी; परन्तु वे न जानते थे कि हम पर विपत्ति अभी पड़ा चाहती है।
35. तब यहोवा ने बिन्यामीनियोंको इस्राएल से हरवा दिया, और उस दिन इस्राएलियोंने पक्कीस हजार एक सौ बिन्यामीनी पुरूषोंको नाश किया, जो सब के सब तलवार चलानेवाले थे।।
36. तब बिन्यामीनियोंने देखा कि हम हार गए। और इस्राएली पुरूष उन घातकोंपर भरोसा करके जिन्हें उन्होंने गिबा के साय बैठाया या बिन्यामीनियोंके साम्हने से चले गए।
37. परन्तु घातक लोग फुर्ती करके गिबा पर फपट गए; और घातकोंने आगे बढ़कर कुल नगर को तलवार से मारा।
38. इस्राएली पुरूषोंऔर घातकोंके बीच तो यह चिन्ह ठहराया गया या, कि वे नगर में से बहुत बड़ा धूएं का खम्भा उठाएं।
39. इस्राएली पुरूष तो लड़ाई में हटने लगे, और बिन्यामीनियोंने यह कहकर कि निश्चय वे पहिली लड़ाई की नाई हम से हारे जाते हैं, इस्राएलियोंको मार डालने लगे, और तीस एक पुरूषोंको घात किया।
40. परन्तु जब वह धूएं का खम्भा नगर में से उठने लगा, तब बिन्यामीनियोंने अपके पीछे जो दृष्टि की तो क्या देखा, कि नगर का नगर धूंआ होकर आकाश की ओर उड़ रहा है।
41. तब इस्राएली पुरूष घूमे, और बिन्यामीनी पुरूष यह देखकर घबरा गए, कि हम पर विपत्ति आ पक्की है।
42. इसलिथे उन्होंने इस्राएली पुरूषोंको पीठ दिखाकर जंगल का मार्ग लिया; परन्तु लड़ाई उन से होती ही रह, और जो और नगरोंमें से आए थे उनको इस्राएली रास्ते में नाश करते गए।
43. उन्होंने बिन्यामीनियोंको घेर लिया, और उन्हें खदेड़ा, वे मनूहा में वरन गिबा के पूर्व की ओर तक उन्हें लताड़ते गए।
44. और बिन्यामीनियोंमें से अठारह हजार पुरूष जो सब के सब शूरवीर थे मारे गए।
45. तब वे घूमकर जंगल में की रिम्मोन नाम चट्टान की ओर तो भाग गए; परन्तु इस्राएलियोंने उन से पांच हजार को बीनकर सड़कोंमें मार डाला; फिर गिदोम तक उनके पीछे पड़के उन में से दो हजार पुरूष मार डाले।
46. तब बिन्यामीनियोंमें से जो उस दिन मारे गए वे पक्कीस हजार तलवार चलानेवाले पुरूष थे, और थे सब शूरवीर थे।
47. परन्तु छ: सौ पुरूष घूमकर जंगल की ओर भागे, और रिम्मोन नाम चट्टान में पहुंच गए, और चार महीने वहीं रहे।
48. तब इस्राएली पुरूष लौटकर बिन्यामिनियोंपर लपके और नगरोंमें क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या जो कुछ मिला, सब को तलवार से नाश कर डाला। और जितने नगर उन्हें मिले उन सभोंको आग लगाकर फूंक दिया।।

Chapter 21

1. इस्राएली पुरूषोंने तो मिस्पा में शपय खाकर कहा या, कि हम में कोई अपक्की बेटी किसी बिन्यामीनी को न ब्याह देगा।
2. वे बेतेल को जाकर सांफ तक परमेश्वर के साम्हने बैठे रहे, और फूट फूटकर बहुत रोते रहे।
3. और कहते थे, हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा, इस्राएल में ऐसा क्योंहोने पाया, कि आज इस्राएल में एक गोत्र की घटी हुई है?
4. फिर दूसरे दिन उन्होंने सवेरे उठ वहां वेदी बनाकर होमबलि और मेलबलि चढ़ाए।
5. तब इस्राएली पूछने लगे, इस्राएल के सारे गोत्रोंमें से कौन है जो यहोवा के पास सभा में न आया या? उन्होंने तो भारी शपय खाकर कहा या, कि जो कोई मिस्पा को यहोवा के पास न आए वह निश्चय मार डाला जाएगा।
6. तब इस्राएली अपके भाई बिन्यामीन के विषय में यह कहकर पछताने लगे, कि आज इस्राएल में से एक गोत्र कट गया है।
7. हम ने जो यहोवा की शपय खाकर कहा है, कि हम उन्हें अपक्की किसी बेटी को न ब्याह देंगे, इसलिथे बचे हुओं को स्त्रियां मिलने के लिथे क्या करें?
8. जब उन्होंने यह पूछा, कि इस्राएल के गोत्रोंमें से कौन है जो मिस्पा को यहोवा के पास न आया या? तब यह मालूम हुआ, कि गिलादी यावेश से कोई छावनी में सभा को न आया या।
9. अर्यात्‌ जब लोगोंकी गिनती की गई, तब यह जाना गया कि गिलादी यावेश के निवासियोंमें से कोई यहां नहीं है।
10. इसलिथे मण्डली ने बारह हजार शूरवीरोंको वहां यह आज्ञा देकर भेज दिया, कि तुम जाकर स्त्रियोंऔर बालबच्चोंसमेत गिलादी यावेश को तलवार से नाश करो।
11. और तुम्हें जो करना होगा वह यह है, कि सब पुरूषोंको और जितनी स्त्र्ियोंने पुरूष का मुंह देखा हो उनको सत्यानाश कर डालना।
12. और उन्हें गिलादी यावेश के निवासियोंमें से चार सौ जवान कुमारियां मिलीं जिन्होंने पुरूष का मुंह नहीं देखा या; और उन्हें वे शीलो को जो कनान देश में है छावनी में ले आए।।
13. तब सारी मण्डली ने उन बिन्यामीनियोंके पास जो रिम्मोन नाम चट्टान पर थे कहला भेजा, और उन से संधि का प्रचार कराया।
14. तब बिन्यामीन उसी समय लौट गए; और उनको वे स्त्रियां दी गईं जो गिलादी यावेश की स्त्रियोंमें से जीवित छोड़ी गईं यीं; तौभी वे उनके लिथे योड़ी यीं।
15. तब लोग बिन्यामीन के विषय फिर यह कहके पछताथे, कि यहोवा ने इस्राएल के गोत्रोंमें घटी की है।
16. तब मण्डली के वृद्ध गोत्रोंने कहा, कि बिन्यामीनी स्त्रियां जो नाश हुई हैं, तो बचे हुए पुरूषोंके लिथे स्त्री पाने का हम क्या उपाय करें?
17. फिर उन्होंने कहा, बचे हुए बिन्यामीनियोंके लिथे कोई भाग चाहिथे, ऐसा न हो कि इस्राएल में से एक गोत्र मिट जाए।
18. परन्तु हम तो अपक्की किसी बेटी को उन्हें ब्याह नहीं दे सकते, क्योंकि इस्राएलियोंने यह कहकर शपय खाई है कि शापित हो वह जो किसी बिन्यामीनी को अपक्की लड़की ब्याह दे।
19. फिर उन्होंने कहा, सुनो, शीलो जो बेतेल की उत्तर ओर, और उस सड़क की पूर्व ओर है जो बेतेल से शकेन को चक्की गई है, और लाबोना की दक्खिन ओर है, उस में प्रति वर्ष यहोवा का एक पर्व माना जाता है।
20. इसलिथे उन्होंने बिन्यामीनियोंको यह आज्ञा दी, कि तुम जाकर दाख की बारियोंके बीच घात लगाए बैठे रहो,
21. और देखते रहो; और यदि शीलो की लड़कियां नाचने को निकलें, तो तुम दाख की बारियोंसे निकलकर शीलो की लड़कियोंमें से अपक्की अपक्की स्त्री को पकड़कर बिन्यामीन के देश को चले जाना।
22. और जब उनके पिता वा भाई हमारे पास फगड़ने को आएंगे, तब हम उन से कहेंगे, कि अनुग्रह करके उनको हमें दे दो, क्योंकि लड़ाई के समय हम ने उन में से एक एक के लिथे स्त्री नहीं बचाई; और तुम लोगोंने तो उनको ब्याह नहीं दिया, नहीं तो तुम अब दोषी ठहरते।
23. तब बिन्यामीनियोंने ऐसा ही किया, अर्यात्‌ उन्होंने अपक्की गिनती के अनुसार उन नाचनेवालियोंमें से पकड़कर स्त्रियां ले लीं; तब अपके भाग को लौट गए, और नगरोंको बसाकर उन में रहने लगे।
24. उसी समय इस्राएली वहां से चलकर अपके अपके गोत्र और अपके अपके घराने को गए, और वहां से वे अपके अपके निज भाग को गए।
25. उन दिनोंमें इस्राएलियोंका कोई राजा न या; जिसको जो ठीक सूफ पड़ता या वही वह करता या।।


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