इब्रानियों
Chapter 1
1. पूर्व युग में परमेश्वर ने बापदादोंसे योड़ा योड़ा करके और भांति भांति से भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा बातें करके। 2. इन दिनोंके अन्त में हम से पुत्र के द्वारा बातें की, जिसे उस ने सारी वस्तुओं का वारिस ठहराया और उसी के द्वारा उस ने सारी सृष्टि रची है। 3. वह उस की महिमा का प्रकाश, और उसके तत्व की छाप है, और सब वस्तुओं को अपक्की सामर्य के वचन से संभालता है: वह पापोंको धोकर ऊंचे स्यानोंपर महामहिमन के दिहने जा बैठा। 4. और स्वर्गदूतोंसे उतना ही उत्तम ठहरा, जितना उस ने उन से बड़े पद का वारिस होकर उत्तम नाम पाया। 5. क्योंकि स्वर्गदूतोंमें से उस ने कब किसी से कहा, कि तू मेरा पुत्र है, आज तू मुझ से उत्पन्न हुआ और फिर यह, कि मैं उसका पिता हूंगा, और वह मेरा पुत्र होगा 6. और जब पहिलौठे को जगत में फिर लाता है, तो कहता है, कि परमेश्वर के सब स्वर्गदूत उसे दण्डवत करें। 7. और स्वर्गदूतोंके विषय में यह कहता है, कि वह अपके दूतोंको पवन, और अपके सेवकोंको धधकती आग बनाता है। 8. परन्तु पुत्र से कहता है, कि हे परमेश्वर तेरा सिंहासन युगानुयुग रहेगा: तेरे राज्य का राजदण्ड न्याय का राजदण्ड है। 9. तू ने धर्म से प्रेम और अधर्म से बैर रखा; इस कारण परमेश्वर तेरे परमेश्वर ने तेरे सायियोंसे बढ़कर हर्षरूपी तेल से तुझे अभिषेक किया। 10. और यह कि, हे प्रभु, आदि में तू ने पृय्वी की नेव डाली, और स्वर्ग तेरे हाथोंकी कारीगरी है। 11. वे तो नाश हो जाएंगे; परन्तु तू बना रहेगा: और वे सब वस्त्र की नाई पुराने हो जाएंगे। 12. और तू उन्हें चादर की नाईं लपेटेगा, और वे वस्त्र की नाई बदल जाएंगे: पर तू वही है और तेरे वर्षोंका अन्त न होगा। 13. और स्वर्गदूतोंमें से उन ने किस से कब कहा, कि तू मेरे दिहने बैठ, जब कि मैं तेरे बैरियोंको तेरे पांवोंके नीचे की पीढ़ी न कर दूं 14. क्या वे सब सेवा टहल करनेवाली आत्क़ाएं नहीं; जो उद्धार पानेवालोंके लिथे सेवा करने को भेजी जाती हैं
Chapter 2
1. इस कारण चाहिए, कि हम उन बातोंपर जो हम ने सुनी हैं और भी मन लगाएं, ऐसा न हो कि बहकर उन से दूर चले जाएं। 2. क्योंकि जो वचन स्वर्गदूतोंके द्वारा कहा गया या जब वह स्यिर रहा ओर हर एक अपराध और आज्ञा न मानने का ठीक ठीक बदला मिला। 3. तो हम लोग ऐसे बड़े उद्धार से निश्चिन्त रहकर क्योंकर बच सकते हैं जिस की चर्चा पहिले पहिल प्रभु के द्वारा हुई, और सुननेवालोंके द्वारा हमें निश्चय हुआ। 4. और साय ही परमेश्वर भी अपक्की इच्छा के अनुसार चिन्हों, और अद्भुत कामों, और नाना प्रकार के सामर्य के कामों, और पवित्र आत्क़ा के वरदानोंके बांटने के द्वारा इस की गवाही देता रहा।। 5. उस ने उस आनेवाले जगत को जिस की चर्चा हम कर रहे हैं, स्वर्गदूतोंके आधीन न किया। 6. बरन किसी ने कहीं, यह गवाही दी है, कि मनुष्य क्या हैं, कि तू उस की सुधि लेता है या मनुष्य का पुत्र क्या है, कि तू उस पर दृष्टि करता है 7. तू ने उसे स्वर्गदूतोंसे कुछ ही कम किया; तू ने उस पर महिमा और आदर का मुकुट रखा और उसे अपके हाथोंके कामोंपर अधिक्कारने दिया। 8. तू ने सब कुछ उसके पांवोंके नीचे कर दिया: इसलिथे जब कि उस ने सब कुछ उसके आधीन कर दिया, तो उस ने कुछ भी रख न छोड़ा, जो उसके आधीन न हो : पर हम अब तक सब कुछ उसके आधीन नहीं देखते। 9. पर हम को यीशु जो स्वर्गदूतोंसे कुछ ही कम किया गया या, मृत्यु का दुख उठाने के कारण महिमा और आदर का मुकुट पहिने हुए देखते हैं; ताकि परमेश्वर के अनुग्रह से हर एक मनुष्य के लिथे मृत्यु का स्वाद चखे। 10. क्योंकि जिस के लिथे सब कुछ है, और जिस के द्वारा सब कुछ है, उसे यही अच्छा लगा कि जब वह बहुत से पुत्रोंको महिमा में पहुंचाए, तो उन के उद्धार के कर्ता को दुख उठाने के द्वारा सिद्ध करे। 11. क्योंकि पवित्र करनेवाला और जो पवित्र किए जाते हैं, सब एक ही मूल से हैं: इसी कारण वह उन्हें भाई कहने से नहीं लजाता। 12. पर कहता है, कि मैं तेरा नाम अपके भाइयोंको सुनाऊंगा, सभा के बीच में मैं तेरा भजन गाऊंगा। 13. और फिर यह, कि मैं उस पर भरोसा रखूंगा; और फिर यह कि देख, मैं उन लड़कोंसहित जिसे परमेश्वर ने मुझे दिए। 14. इसलिथे जब कि लड़के मांस और लोहू के भागी हैं, तो वह आप भी उन के समान उन का सहभागी हो गया; ताकि मृत्यु के द्वारा उसे जिसे मृत्यु पर शक्ति मिली यी, अर्यात् शैतान को निकम्मा कर दे। 15. और जितने मृत्यु के भय के मारे जीवन भर दासत्व में फंसे थे, उन्हें छुड़ा ले। 16. क्योंकि वह तो स्वर्गदूतोंको नहीं बरन इब्राहीम के वंश को संभालता है। 17. इस कारण उसको चाहिए या, कि सब बातोंमें अपके भाइयोंके समान बने; जिस से वह उन बातोंमें जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखती हैं, एक दयालु और विश्वासयोग्य महाथाजक बने ताकि लोगोंके पापोंके लिथे प्रायश्चित्त करे। 18. क्योंकि जब उस ने पक्कीझा की दशा में दुख उठाया, तो वह उन की भी सहाथता कर सकता है, जिन की पक्कीझा होती है।।
Chapter 3
1. सो हे पवित्र भाइयोंतुम जो स्वर्गीय बुलाहट में भागी हो, उस प्रेरित और महाथाजक यीशु पर जिसे हम अंगीकार करते हैं ध्यान करो। 2. जो अपके नियुक्त करनेवाले के लिथे विश्वासयोग्य या, जैसा मूसा भी उसके सारे घर में या। 3. क्योंकि वह मूसा से इतना बढ़कर महिमा के योग्य समझा गया है, जितना कि घर बनानेवाला घर से बढ़कर आदर रखता है। 4. क्योंकि हर एक घर का कोई न कोई बनानेवाला होता है, पर जिस ने सब कुछ बनाया वह परमेश्वर है। 5. मूसा तो उसके सारे घर में सेवक की नाई विश्वासयोग्य रहा, कि जिन बातोंका वर्णन होनेवाला या, उन की गवाही दे। 6. पर मसीह पुत्र की नाई उसके घर का अधिक्कारनेी है, और उसका घर हम हैं, यदि हम साहस पर, और अपक्की आशा के घमण्ड पर अन्त तक दृढ़ता से स्यिर रहें। 7. सो जैसा पवित्र आत्क़ा कहता है, कि यदि आज तुम उसका शब्द सुनो। 8. तो अपके मन को कठोर न करो, जैसा कि क्रोध दिलाने के समय और पक्कीझा के दिन जंगल में किया या। 9. जहां तुम्हारे बापदादोंने मुझे जांचकर परखा और चालीस वर्ष तक मेरे काम देखे। 10. इस कारण मैं उस समय के लोगोंसे रूठा रहा, और कहा, कि इन के मन सदा भटकते रहते हैं, और इन्होंने मेरे मार्गोंको नहीं पहिचाना। 11. तब मैं ने क्रोध में आकर शपय खाई, कि वे मेरे विश्रम में प्रवेश करने न पाएंगे। 12. हे भाइयो, चौकस रहो, कि तुम में ऐसा बुरा और अविश्वासी न मन हो, जो जीवते परमेश्वर से दूर हट जाए। 13. बरन जिस दिन तक आज का दिन कहा जाता है, हर दिन एक दूसरे को समझाते रहो, ऐसा न हो, कि तुम में से कोई जन पाप के छल में आकर कठोर हो जाए। 14. क्योंकि हम मसीह के भागी हुए हैं, यदि हम अपके प्रयम भरोसे पर अन्त तक दृढ़ता से स्यिर रहें। 15. जैसा कहा जाता है, कि यदि आज तुम उसका शब्द सुनो, तो अपके मनोंको कठोर न करो, जैसा कि क्रोध दिलाने के समय किया या। 16. भला किन लोगोंने सुनकर क्रोध दिलाया क्या उन सब ने नहीं जो मूसा के द्वारा मिसर से निकले थे 17. और वह चालीस वर्ष तक किन लोगोंसे रूठा रहा क्या उन्हीं से नहीं, जिन्होंने पाप किया, और उन की लोथें जंगल में पड़ी रहीं 18. और उस ने किन से शपय खाई, कि तुम मेरे विश्रम में प्रवेश करने न पाओगे: केवल उन से जिन्होंने आज्ञा न मानी 19. सो हम देखते हैं, कि वे अविश्वास के कारण प्रवेश न कर सके।।
Chapter 4
1. इसलिथे जब कि उसके विश्रम में प्रवेश करने की प्रतिज्ञा अब तक है, तो हमें डरना चाहिए; ऐसा ने हो, कि तुम में से कोई जंग उस से रिहत जान पके। 2. क्योंकि हमें उन्हीं की नाई सुसमाचार सुनाया गया है, पर सुने हुए वचन से उन्हें कुछ लोय न हुआ; क्योंकि सुननेवालोंके मन में विश्वास के साय नहीं बैठा। 3. और हम जिन्होंने विश्वास किया है, उस विश्रम में प्रवेश करते हैं; जैसा उस ने कहा, कि मैं ने अपके क्रोध में शपय खाई, कि वे मेरे विश्रम में प्रवेश करने न पाएंगे, यद्यपि जगत की उत्पत्ति के समय से उसे काम हो चुके थे। 4. क्योंकि सातवें दिन के विषय में उस ने कहीं योंकहा है, कि परमेश्वर ने सातवें दिन अपके सब कामोंको निपटा करके विश्रम किया। 5. और इस जगह फिर यह कहता है, कि वे मेरे विश्रम में प्रवेश न करने पाएंगे। 6. तो जब यह बात बाकी है कि कितने और हैं जो उस विश्रम में प्रवेश करें, और जिन्हें उसका सुसमाचार पहिले सुनाया गया, उन्होंने आज्ञा न मानने के कारण उस में प्रवेश न किया। 7. तो फिर वह किसी विशेष दिन की ठहराकर इतने दिन के बाद दाऊद की पुस्तक में उसे आज का दिन कहता है, जैसे पहिले कहा गया, कि यदि आज तुम उसका शब्द सुनो, तो अपके मनोंको कठोर न करो। 8. और यदि यहोशू उन्हें विश्रम में प्रवेश कर लेता, तो उसके बाद दूसरे दिन की चर्चा न होती। 9. सो जान लो कि परमेश्वर के लोगोंके लिथे सब्त का विश्रम बाकी है। 10. क्योंकि जिस ने उसके विश्रम में प्रवेश किया है, उस ने भी परमेश्वर की नाई अपके कामोंको पूरा करके विश्रम किया है। 11. सो हम उस विश्रम में प्रवेश करने का प्रयत्न करें, ऐसा न हो, कि कोई जन उन की नाई आज्ञा न मानकर गिर पके। 12. क्योंकि परमेश्वर का वचन जीवित, और प्रबल, और हर एक दोधारी तलवार से भी बहुत चोखा है, और जीव, और आत्क़ा को, और गांठ गांठ, और गूदे गूदे को अलग करके, वार पार छेदता है; और मन की भावनाओं और विचारोंको जांचता है। 13. और सृष्टि की कोई वस्तु उस से छिपी नहीं है बरन जिस से हमें काम है, उस की आंखोंके साम्हने सब वस्तुएं खुली और बेपरद हैं।। 14. सो जब हमारा ऐसा बड़ा महाथाजक है, जो स्वर्गोंसे होकर गया है, अर्यात् परमेश्वर का पुत्र यीशु; तो आओ, हम अपके अंगीकार को दृढ़ता से यामें रहे। 15. क्योंकि हमारा ऐसा महाथाजक नहीं, जो हमारी निर्बलताओं में हमारे साय दुखी न हो सके; बरन वह सब बातोंमें हमारी नाई परखा तो गया, तौभी निष्पाप निकला। 16. इसलिथे आओ, हम अनुग्रह के सिंहासन के निकट हियाव बान्धकर चलें, कि हम पर दया हो, और वह अनुग्रह पाएं, जो आवश्यकता के समय हमारी सहाथता करे।।
Chapter 5
1. क्योंकि हर एक महाथाजक मनुष्योंमें से लिया जाता है, और मनुष्योंही के लिथे उन बातोंके विषय में जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखती हैं, ठहराया जाता है: कि भेंट और पाप बलि चढ़ाया करे। 2. और वह अज्ञानों, और भूले भटकोंके साय नर्मी से व्यवहार कर सकता है इसलिथे कि वह आप भी निर्बलता से घिरा है। 3. और इसी लिथे उसे चाहिए, कि जैसे लोगोंके लिथे, वैसे ही अपके लिथे भी पाप-बलि चढ़ाया करे। 4. और यह आदर का पद कोई अपके आप से नहीं लेता, जब तक कि हारून की नाई परमेश्वर की ओर से ठहराया न जाए। 5. वैसे ही मसीह ने भी महाथाजक बनने की बड़ाई अपके आप से नहीं ली, पर उस को उसी ने दी, जिस ने उस से कहा या, कि तू मेरा पुत्र है, आज मैं ही ने तुझे जन्क़ाया है। 6. वह दूसरी जगह में भी कहता है, तू मलिकिसिदक की रीति पर सदा के लिथे याजक है। 7. उस ने अपक्की देह में रहने के दिनोंमें ऊंचे शब्द से पुकार पुकारकर, और आंसू बहा बहाकर उस से जो उस को मृत्यु से बचा सकता या, प्रार्यनाएं और बिनती की और भक्ति के कारण उस की सुनी गई। 8. और पुत्र होने पर भी, उस ने दुख उठा उठाकर आज्ञा माननी सीखी। 9. और सिद्ध बनकर, अपके सब आज्ञा माननेवालोंके लिथे सदा काल के उद्धार का कारण हो गया। 10. और उसे परमेश्वर की ओर से मलिकिसिदक की रीति पर महाथाजक का पद मिला।। 11. इस के विषय में हमें बहुत सी बातें कहनी हैं, जिन का समझना भी किठन है; इसलिथे कि तुम ऊंचा सुनने लगे हो। 12. समय के विचार से तो तुम्हें गुरू हो जाना चाहिए या, तौभी क्या यह आवश्यक है, कि कोई तुम्हें परमेश्वर के वचनोंकी आदि शिझा फिर से सिखाए ओर ऐसे हो गए हो, कि तुम्हें अन्न के बदले अब तक दूध ही चाहिए। 13. क्योंकि दूध पीनेवाले बच्चे को तो धर्म के वचन की पहिचान नहीं होती, क्योंकि वह बालक है। 14. पर अन्न सयानोंके लिथे है, जिन के ज्ञानेन्द्रिय अभ्यास करते करते, भले बुरे में भेद करने के लिथे पके हो गए हैं।।
Chapter 6
1. इसलिथे आओ मसीह की शिझा की आरम्भ की बातोंको छोड़कर, हम सिद्धता की ओर बढ़ते जाएं, और मरे हुए कामोंसे मन फिराने, और परमेश्वर पर विश्वास करने। 2. और बपतिस्क़ोंऔर हाथ रखने, और मरे हुओं के जी उठने, और अन्तिम न्याय की शिझारूपी नेव, फिर से न डालें। 3. और यदि परमेश्वर चाहे, तो हम यहीं करेंगे। 4. क्योंकि जिन्होंने एक बार ज्योति पाई है, जो स्वर्गीय वरदान का स्वाद चख चुके हैं और पवित्र आत्क़ा के भागी हो गए हैं। 5. और परमेश्वर के उत्तम वचन का और आनेवाले युग की सामर्योंका स्वाद चख चुके हैं। 6. यदि वे भटक जाएं; तो उन्हें मन फिराव के लिथे फिर नया बनाना अन्होना है; क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र को अपके लिथे फिर क्रूस पर चढ़ाते हैं और प्रगट में। उस पर कलंक लगाते हैं। 7. क्योंकि जो भूमि वर्षा के पानी को जो उस पर बार बार पड़ता है, पी पीकर जिन लोगोंके लिथे वह जोती-बोई जाती है, उन के काम का साग-पात उपजाती है, वह परमेश्वर से आशीष पाती है। 8. पर यदि वह फाड़ी और ऊंटकटारे उगाती है, तो निकम्मी और स्रापित होने पर है, और उसका अन्त जलाया जाना है।। 9. पर हे प्रियो यद्यपि हम थे बातें कहते हैं तौभी तुम्हारे विषय में हम इस से अच्छा और उद्धारवाली बातोंका भरोसा करते हैं। 10. क्योंकि परमेश्वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उनके नाम के लिथे इस रीति से दिखाया, कि पवित्र लोगोंकी सेवा की, और कर रहे हो। 11. पर हम बहुत चाहते हैं, कि तुम में से हर एक जन अन्त तक पूरी आशा के लिथे ऐसा ही प्रयत्न करता रहे। 12. ताकि तुम आलसी न हो जाओ; बरन उन का अनुकरण करो, जो विश्वास और धीरज के द्वारा प्रतिज्ञाओं के वारिस होते हैं। 13. और परमेश्वर ने इब्राहीम को प्रतिज्ञा देते समय जब कि शपय खाने के लिथे किसी को अपके से बड़ा न पाया, तो अपक्की ही शपय खाकर कहा। 14. कि मैं सचमुच तुझे बहुत आशीष दूंगा, और तेरी सन्तान को बढ़ाता जाऊंगा। 15. और इस रीति से उस ने धीरज धरकर प्रतिज्ञा की हुई बात प्राप्त की। 16. मनुष्य तो अपके से किसी बड़े की शपय खाया करते हैं और उन के हर एक विवाद का फैसला शपय से प?ा होता है। 17. इसलिथे जब परमेश्वर ने प्रतिज्ञा के वारिसोंपर और भी साफ रीति से प्रगट करना चाहा, कि उसकी मनसा बदल नहीं सकती तो शपय को बीच में लाया। 18. ताकि दो बे-बदल बातोंके द्वारा जिन के विषय में परमेश्वर का फूठा ठहरना अन्होना है, हमारा दृढ़ता से ढाढ़स बन्ध जाए, जो शरण लेने को इसलिथे दौड़े है, कि उस आशा को जो साम्हने रखी हुई है प्राप्त करें। 19. वह आशा हमारे प्राण के लिथे ऐसा लंगर है जो स्यिर और दृढ़ है, और परदे के भीतर तक पहुंचता है। 20. जहां यीशु मलिकिसिदक की रीति पर सदा काल का महाथाजक बनकर, हमारे लिथे अगुआ की रीति पर प्रवेश हुआ है।।
Chapter 7
1. यह मलिकिसिदक शालेम का राजा, और परमप्रधान परमेश्वर का याजक, सर्वदा याजक बना रहता है; जब इब्राहीम राजाओं को मारकर लौटा जाता या, तो इसी ने उस से भेंट करके उसे आशीष दी। 2. इसी को इब्राहीम ने सब वस्तुओं का दसवां अंश भी दिया: यह पहिले अपके नाम के अर्य के अनुसार, धर्म का राजा है। 3. जिस का न पिता, न माता, न वंशावली है, जिस के न दिनोंका आदि है और न जीवन का अनत है; परन्तु परमेश्वर के पुत्र के स्वरूप ठहरा।। 4. अब इस पर ध्यान करो कि यह कैसा महान या जिस को कुलपति इब्राहीम ने अच्छे से अच्छे माल की लूट का दसवां अंश दिया। 5. लेवी की संतान में से जो याजक का पद पाते हैं, उन्हें आज्ञा मिली है, कि लोगों, अर्यात् अपके भाइयोंसे चाहे, वे इब्राहीम ही की देह से क्योंन जन्क़ें हां, व्यवस्या के अनुसार दसवां अंश लें। 6. पर इस ने, जो उन की वंशावली में का भी न या इब्राहीम से दसवां अंश लिया और जिसे प्रतिज्ञाएं मिली यी उसे आशीष दी। 7. और उस में संदेह नहीं, कि छोटा बड़े से आशीष पाता है। 8. और यहां तो मरनहार मनुष्य दसवां अंश लेते हैं पर वहां वही लेता है, जिस की गवाही दी जाती है, कि वह जीवित है। 9. तो हम यह भी कह सकते हैं, कि लेवी ने भी, जो दसवां अंश लेता है, इब्राहीम के द्वारा दसवां अंश दिया। 10. क्योंकि जिस समय मलिकिसिदक ने उसके पिता से भेंट की, उस समय यह अपके पिता की देह में या।। 11. तक यदि लेवीय याजक पद के द्वारा सिद्धि हो सकती है (जिस के सहारे से लोगोंको व्यवस्या मिली यी) तो फिर क्या आवश्यकता यी, कि दूसरा याजक मलिकिसिदक की रीति पर खड़ा हो, और हारून की रीति का न कहलाए 12. क्योंकि जब याजक का पद बदला जाता है तो व्यवस्या का भी बदलना अवश्य है। 13. क्योंकि जिस के विषय में थे बातें कही जाती हैं कि वह दूसरे गोत्र का है, जिस में से किसी ने वेदी की सेवा नहीं की। 14. तो प्रगट है, कि हमारा प्रभु यहूदा के गोत्र में से उदय हुआ है और इस गोत्र के विषय में मूसा ने याजक पद की कुछ चर्चा नहीं की। 15. ओर जब मलिकिसिदक के समान एक और ऐसा याजक उत्पन्न होनेवाला या। 16. जो शारीरिक आज्ञा की व्यवस्या के अनुसार नहीं, पर अविनाशी जीवन की सामर्य के अनुसार नियुक्त हो तो हमारा दावा और भी स्पष्टता से प्रगट हो गया। 17. क्योंकि उसके विषय में यह गवाही दी गई है, कि तू मलिकिसिदक की रीति पर युगानुयुग याजक है। 18. निदान, पहिली आज्ञा निर्बल; और निष्फल होने के कारण लोप हो गई। 19. (इसलिथे कि व्यवस्या ने किसी बात की सिद्धि नहीं कि) और उसके स्यान पर एक ऐसी उत्तम आशा रखी गई है जिस के द्वारा हम परमेश्वर के समीप जा सकते हैं। 20. और इसलिथे कि मसीह की नियुक्ति बिना शपय नहीं हुई। 21. (क्योंकि वे तो बिना शपय याजक ठहराए गए पर यह शपय के साय उस की ओर से नियुक्त किया गया जिस ने उसके विषय में कहा, कि प्रभु ने शपय खाई, और वह उस से फिर ने पछताएगा, कि तू युगानुयुग याजक है)। 22. सो यीशु एक उत्तम वाचा का जामिन ठहरा। 23. वे तो बहुत से याजक बनते आए, इस का कारण यह या कि मृत्यु उन्हें रहने नहीं देती यी। 24. पर यह युगानुयुग रहता है; इस कारण उसका याजक पद अटल है। 25. इसी लिथे जो उसके द्वारा परमेश्वर के पास आते हैं, वह उन का पूरा पूरा उद्धार कर सकता है, क्योंकि वह उन के लिथे बिनती करने को सर्वदा जीवित है।। 26. सो ऐसा ही महाथाजक हमारे योग्य या, जो पवित्र, और निष्कपट और निर्मल, और पापियोंसे अलग, और स्वर्ग से भी ऊंचा किया हुआ हो। 27. और उन महाथाजकोंकी नाई उसे आवश्यक नहीं कि प्रति दिन पहिले अपके पापोंऔर फिर लोगोंके पापोंके लिथे बलिदान चढ़ाए; क्योंकि उस ने अपके आप को बलिदान चढ़ाकर उसे एक ही बार निपटा दिया। 28. क्योंकि व्यवस्या तो निर्बल मनुष्योंको महाथाजक नियुक्त करती है; परन्तु उस शपय का वचन जो व्यवस्या के बाद खाई गई, उस पुत्र को नियुक्त करता है जो युगानुयुग के लिथे सिद्ध किया गया है।।
Chapter 8
1. अब तो बातें हम कह रहे हैं, उन में से सब से बड़ी बात यह है, कि हमारा ऐसा महाथाजक है, जो स्वर्ग पर महामहिमन के सिंहासन के दिहने जा बैठा। 2. और पवित्र स्यान और उस सच्चे तम्बू का सेवक हुआ, जिसे किसी मनुष्य ने नहीं, बरन प्रभु ने खड़ा किया या। 3. क्योंकि हर एक महाथाजक भेंट, और बलिदान चढ़ाने के लिथे ठहराया जाता है, इस कारण अवश्य है, कि इस के पास भी कुछ चढ़ाने के लिथे हो। 4. और यदि पृय्वी पर होता तो कभी याजक न होता, इसलिथे कि व्यवस्या के अनुसार भेंट चढ़ानेवाले तो हैं। 5. जो स्वर्ग में की वस्तुओं के प्रतिरूप और प्रतिबिम्ब की सेवा करते हैं, जैसे जब मूसा तम्बू बनाने पर या, तो उसे यह चितावनी मिली, कि देख जो नमूना तुझे पहाड़ पर दिखाया गया या, उसके अनुसार सब कुछ बनाना। 6. पर उस को उन की सेवकाई से बढ़कर मिली, क्योंकि वह और भी उत्तम वाचा का मध्यस्य ठहरा, जो और उत्तम प्रतिज्ञाओं के सहारे बान्धी गई है। 7. क्योंकि यदि वह पहिली वाचा निर्दोष होती, तो दूसरी के लिथे अवसर न ढूंढ़ा जाता। 8. पर वह उन पर दोष लगाकर कहता है, कि प्रभु कहता है, देखो वे दिन आते हैं, कि मैं इस्त्राएल के घराने के साय, और यहूदा के घराने के साय, नई वाचा बान्धूंगा। 9. यह उस वाचा के समान न होगी, जो मैं ने उन के बापदादोंके साय उस समय बान्धी यी, जब मैं उन का हाथ पकड़कर उन्हें मिसर देश से निकाल लाया, क्योंकि वे मेरी वाचा पर स्यिर न रहे, और मैं ने उन की सुधि न ली; प्रभु यही कहता है। 10. फिर प्रभु कहता है, कि जो वाचा मैं उन दिनोंके बाद इस्त्राएल के घराने के साय बान्धूंगा, वह यह है, कि मैं अपक्की व्यवस्या को उन के मनोंमें डालूंगा, और उसे उन के ह्रृदय पर लिखूंगा, और मैं उन का परमेश्वर ठहरूंगा, और वे मेरे लोग ठहरेंगे। 11. और हर एक अपके देशवाले को और अपके भाई को यह शिझा न देगा, कि तू प्रभु को पहिचान कयोंकि छोटे से बड़े तक सब मुझे जान लेंगे। 12. क्योंकि मैं उन के अधर्म के विषय मे दयावन्त हूंगा, और उन के पापोंको फिर स्क़रण न करूंगा। 13. नई वाचा के स्यापन से उस ने प्रयम वाचा को पुरानी ठहराई, और जो वस्तु पुरानी और जीर्ण जो जाती है उसका मिट जाना अनिवार्य है।।
Chapter 9
1. निदान, उस पहिली वाचा में भी सेवा के नियम थे; और ऐसा पवित्रस्यान जो इस जगत का या। 2. अर्यात् एक तम्बू बनाया गया, पहिले तम्बू में दीवट, और मेज, और भेंट की रोटियां यी; और वह पवित्रस्यान कहलाता है। 3. और दूसरे परदे के पीछे वह तम्बू या, जो परम पवित्रस्यान कहलाता है। 4. उस में सोने की धूपदानी, और चारोंओर सोने से मढ़ा हुआ वाचा का संदूक और इस में मन्ना से भरा हुआ सोने का मर्तबान और हारून की छड़ी जिस में फूल फल आ गए थे और वाचा की पटियां यीं। 5. और उसके ऊपर दोनोंतेजोमय करूब थे, जो प्रायश्चित्त के ढकने पर छाया किए हुए थे: इन्हीं का एक एक करके बखान करने का अभी अवसर नहीं है। 6. जब थे वस्तुएं इस रीति से तैयार हो चुकी, तक पहिले तम्बू में तो याजक हर समय प्रवेश करके सेवा के काम निबाहते हैं 7. पर दूसरे में केवल महाथाजक वर्ष भर में एक ही बार जाता है; और बिना लोहू लिथे नहीं जाता; जिसे वह अपके लिथे और लोगोंकी भूल चूक के लिथे चढ़ावा चढ़ाता है। 8. इस से पवित्र आत्क़ा यही दिखाता है, कि जब तक पहिला तम्बू खड़ा है, तब तक पवित्रस्यान का मार्ग प्रगट नहीं हुआ। 9. और यह तम्बू तो वर्तमान समय के लिथे एक दृष्टान्त है; जिस में ऐसी भेंट और बलिदान चढ़ाए जाते हैं, जिन से आराधना करनेवालोंके विवेक सिद्ध नहीं हो सकते। 10. इसलिथे कि वे केवल खाने पीने की वस्तुओं, और भांति भांति के स्नान विधि के आधार पर शारीरिक नियम हैं, जो सुधार के समय तक के लिथे नियुक्त किए गए हैं।। 11. परन्तु जब मसीह आनेवाली अच्छी अच्छी वस्तुओं का महाथाजक होकर आया, तो उस ने और भी बड़े और सिद्ध तम्बू से होकर जो हाथ का बनाया हुआ नहीं, अर्यात् सृष्टि का नहीं। 12. और बकरोंऔर बछड़ोंके लोहू के द्वारा नहीं, पर अपके ही लोहू के द्वारा एक ही बार पवित्र स्यान में प्रवेश किया, और अनन्त छुटकारा प्राप्त किया। 13. क्योंकि जब बकरोंऔर बैलोंका लोहू और कलोर की राख अपवित्र लोगोंपर छिड़के जाने से शरीर की शुद्धता के लिथे पवित्र करती है। 14. तो मसीह का लोहू जिस ने अपके आप को सनातन आत्क़ा के द्वारा परमेश्वर के साम्हने निर्दोष चढ़ाया, तुम्हारे विवेक को मरे हुए कामोंसे क्योंन शुद्ध करेगा, ताकि तुम जीवते परमेश्वर की सेवा करो। 15. और इसी कारण वह नई वाचा का मध्यस्य है, ताकि उस मृत्यु के द्वारा जो पहिली वाचा के समय के अपराधोंसे छुटकारा पाने के लिथे हुई है, बुलाए हुए लोग प्रतिज्ञा के अनुसार अनन्त मीरास को प्राप्त करें। 16. क्योंकि जहां वाचा बान्धी गई है वहां वाचा बान्धनेवाले की मृत्यु का समझ लेना भी अवश्य है। 17. क्योंकि ऐसी वाचा मरने पर पक्की होती है, और जब तक वाचा बान्धनेवाला जीवित रहता है, तब तक वाचा काम की नहीं होती। 18. इसी लिथे पहिली वाचा भी बिना लोहू के नहीं बान्धी गई। 19. क्योंकि जब मूसा सब लोगोंको व्यवस्या की हर एक आज्ञा सुना चुका, तो उस ने बछड़ोंऔर बकरोंका लोहू लेकर, पानी और लाल ऊन, और जूफा के साय, उस पुस्तक पर और सब लोगोंपर छिड़क दिया। 20. और कहा, कि यह उस वाचा का लोहू है, जिस की आज्ञा परमेश्वर ने तुम्हारे लिथे दी है। 21. और इसी रीति से उस ने तम्बू और सेवा के सारे सामान पर लोहू छिड़का। 22. और व्यवस्या के अनुसार प्राय: सब वस्तुएं लोहू के द्वारा शुद्ध की जाती हैं; और बिना लोहू बहाए झमा नहीं होती।। 23. इसलिथे अवश्य है, कि स्वर्ग में की वस्तुओं के प्रतिरूप इन के द्वारा शुद्ध किए जाएं; पर स्वर्ग में की वस्तुएं आप इन से उत्तम बलिदानोंके द्वारा। 24. क्योंकि मसीह ने उस हाथ के बनाए हुए पवित्र स्यान में जो सच्चे पवित्र स्यान का नमूना है, प्रवेश नहीं किया, पर स्वर्ग ही में प्रवेश किया, ताकि हमारे लिथे अब परमेश्वर के साम्हने दिखाई दे। 25. यह नहीं कि वह अपके आप को बार बार चढ़ाए, जैसा कि महाथाजक प्रति वर्ष दूसरे का लोहू लिथे पवित्रस्यान में प्रवेश किया करता है। 26. नहीं तो जगत की उत्पत्ति से लेकर उस को बार बार दुख उठाना पड़ता; पर अब युग के अन्त में वह एक बार प्रगट हुआ है, ताकि अपके ही बलिदान के द्वारा पाप को दूर कर दे। 27. और जैसे मनुष्योंके लिथे एक बार मरना और उसके बाद न्याय का होना नियुक्त है। 28. वैसे ही मसीह भी बहुतोंके पापोंको उठा लेने के लिथे एक बार बलिदान हुआ और जो लोग उस की बाट जोहते हैं, उन के उद्धार के लिथे दूसरी बार बिना पाप के दिखाई देगा।।
Chapter 10
1. क्योंकि व्यवस्या जिस में आनेवाली अच्छी वस्तुओं का प्रतिबिम्ब है, पर उन का असली स्वरूप नहीं, इसलिथे उन एक ही प्रकार के बलिदानोंके द्वारा, जो प्रति वर्ष अचूक चढ़ाए जाते हैं, पास आनेवालोंको कदापि सिद्ध नहीं कर सकतीं। 2. नहीं तो उन का चढ़ाना बन्द क्योंन हो जाता इसलिथे कि जब सेवा करनेवाले एक ही बार शुद्ध हो जाते, तो फिर उन का विवेक उन्हें पापी न ठहराता। 3. परन्तु उन के द्वारा प्रति वर्ष पापोंका स्क़रण हुआ करता है। 4. क्योंकि अनहोना है, कि बैलोंऔर बकरोंका लोहू पापोंको दूर करे। 5. इसी कारण वह जगत में आने समय कहता है, कि बलिदान और भेंट तू ने न चाही, पर मेरे लिथे एक देह तैयार किया। 6. होम-बलियोंऔर पाप-बलियोंसे तू प्रसन्न नहीं हुआ। 7. तब मैं ने कहा, देख, मैं आ गया हूं, (पवित्र शस्त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ है) ताकि हे परमेश्वर तेरी इच्छा पूरी करूं। 8. ऊपर तो वह कहता है, कि न तू ने बलिदान और भेंट और होम-बलियोंऔर पाप-बलियोंको चाहा, और न उन से प्रसन्न हुआ; यद्यपि थे बलिदान तो व्यवस्या के अनुसार चढ़ाए जाते हैं। 9. फिर यह भी कहता है, कि देख, मैं आ गया हूं, ताकि तेरी इच्छा पूरी करूं; निदान वह पहिले को उठा देता है, ताकि दूसरे को नियुक्त करे। 10. उसी इच्छा से हम यीशु मसीह की देह के एक ही बार बलिदान चढ़ाए जाने के द्वारा पवित्र किए गए हैं। 11. और हर एक याजक तो खड़े होकर प्रति दिन सेवा करता है, और एक ही प्रकार के बलिदान को जो पापोंको कभी भी दूर नहीं कर सकते; बार बार चढ़ाता है। 12. पर यह व्यक्ति तो पापोंके बदले एक ही बलिदान सर्वदा के लिथे चढ़ाकर परमेश्वर के दिहने जा बैठा। 13. और उसी समय से इस की बाट जोह रहा है, कि उसके बैरी उसके पांवोंके नीचे की पीढ़ी बनें। 14. क्योंकि उस ने एक ही चढ़ावे के द्वारा उन्हें जो पवित्र किए जाते हैं, सर्वदा के लिथे सिद्ध कर दिया है। 15. और पवित्र आत्क़ा भी हमें यही गवाही देता है; क्योंकि उस ने पहिले कहा या 16. कि प्रभु कहता है; कि जो वाचा मैं उन दिनोंके बाद उन से बान्धूंगा वह यह है कि मैं अपक्की व्यवस्याओं को उनके ह्रृदय पर लिखूंगा और मैं उन के विवेक में डालूंगा। 17. (फिर वह यह कहता है, कि) मैं उन के पापोंको, और उन के अधर्म के कामोंको फिर कभी स्क़रण न करूंगा। 18. और जब इन की झमा हो गई है, तो फिर पाप का बलिदान नहीं रहा।। 19. सो हे भाइयो, जब कि हमें यीशु के लोहू के द्वारा उस नए और जीवते मार्ग से पवित्र स्यान में प्रवेश करने का हियाव हो गया है। 20. जो उस ने परदे अर्यात् अपके शरीर में से होकर, हमारे लिथे अभिषेक किया है, 21. और इसलिथे कि हमारा ऐसा महान याजक है, जो परमेश्वर के घर का अधिक्कारनेी है। 22. तो आओ; हम सच्चे मन, और पूरे विश्वास के साय, और विवेक को दोष दूर करने के लिथे ह्रृदय पर छिड़काव लेकर, और देह को शुद्ध जल से धुलवाकर परमेश्वर के समीप जाएं। 23. और अपक्की आशा के अंगीकार को दृढ़ता से यामें रहें; क्योंकि जिस ने प्रतिज्ञा किया है, वह सच्चा है। 24. और प्रेम, और भले कामोंमें उस्काने के लिथे एक दूसरे की चिन्ता किया करें। 25. और एक दूसरे के साय इकट्ठा होना ने छोड़ें, जैसे कि कितनोंकी रीति है, पर एक दूसरे को समझाते रहें; और ज्योंज्योंउस दिन को निकट आते देखो, त्योंत्योंऔर भी अधिक यह किया करो।। 26. क्योंकि सच्चाई की पहिचान प्राप्त करने के बाद यदि हम जान बूफकर पाप करते रहें, तो पापोंके लिथे फिर कोई बलिदान बाकी नहीं। 27. हां, दण्ड का एक भयानक बाट जोहना और आग का ज्वलन बाकी है जो विरोधियोंको भस्क़ कर देगा। 28. जब कि मूसा की व्यवस्या का न माननेवाला दो या तीन जनोंकी गवाही पर, बिना दया के मार डाला जाता है। 29. तो सोच लो कि वह कितने और भी भारी दण्ड के योग्य ठहरेगा, जिस ने परमेश्वर के पुत्र को पांवोंसे रौंदा, और वाचा के लोहू को जिस के द्वारा वह पवित्र ठहराया गया या, अपवित्र जाना हैं, और अनुग्रह की आत्क़ा का अपमान किया। 30. क्योंकि हम उसे जानते हैं, जिस ने कहा, कि पलटा लेना मेरा काम है, मैं ही बदला दूंगा: और फिर यह, कि प्रभु अपके लोगोंका न्याय करेगा। 31. जीवते परमेश्वर के हाथोंमें पड़ना भयानक बात है।। 32. परन्तु उन पहिले दिनोंको स्क़रण करो, जिन में तुम ज्योति पाकर दुखोंके बड़े फमेले में स्यिर रहे। 33. कुछ तो यों, कि तुम निन्दा, और क्लेश सहते हुए तमाशा बने, और कुछ यों, कि तुम उन के साफी हुए जिन की र्दुदशा की जाती यीं। 34. क्योंकि तुम कैदियोंके दुख में भी दुखी हुए, और अपक्की संपत्ति भी आनन्द से लुटने दी; यह जानकर, कि तुम्हारे पास एक और भी उत्तम और सर्वदा ठहरनेवाली संपत्ति है। 35. सो अपना हियाव न छोड़ो क्योंकि उसका प्रतिफल बड़ा है। 36. क्योंकि तुम्हें धीरज धरना अवश्य है, ताकि परमेश्वर की इच्छा को पूरी करके तुम प्रतिज्ञा का फल पाओ। 37. क्योंकि अब बहुत ही योड़ा समय रह गया है जब कि आनेवाला आएगा, और देर न करेगा। 38. और मेरा धर्मी जन विश्वास से जीवित रहेगा, और यदि वह पीछे हट जाए तो मेरा मन उस से प्रसन्न न होगा। 39. पर हम हटनेवाले नहीं, कि नाश हो जाएं पर विश्वास करनेवाले हैं, कि प्राणोंको बचाएं।।
Chapter 11
1. अब विश्वास आशा की हुई वस्तुओं का निश्चय, और मन देखी वस्तुओं का प्रमाण है। 2. क्योंकि इसी के विषय में प्राचीनोंकी अच्छी गवाही दी गईं। 3. विश्वास ही से हम जान जाते हैं, कि सारी सृष्टि की रचना परमेश्वर के वचन के द्वारा हुई है। यह नहीं, कि जो कुछ देखने में आता है, वह देखी हुई वस्तुओं से बना हो। 4. विश्वास की से हाबिल ने कैन से उत्तम बलिदान परमेश्वर के लिथे चढ़ाया; और उसी के द्वारा उसके धर्मी होने की गवाही भी दी गई: क्योंकि परमेश्वर ने उस की भेंटोंके विषय में गवाही दी; और उसी के द्वारा वह मरने पर भी अब तक बातें करता है। 5. विश्वास ही से हनोक उठा लिया गया, कि मृत्यु को न देखे, और उसका पता नहीं मिला; क्योंकि परमेश्वर ने उसे उठा लिया या, और उसके उठाए जाने से पहिले उस की यह गवाही दी गई यी, कि उस ने परमेश्वर को प्रसन्न किया है। 6. और विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है, क्योंकि परमेश्वर के पास आनेवाले को विश्वास करना चाहिए, कि वह है; और अपके खोजनेवालोंको प्रतिफल देता है। 7. विश्वास ही से नूह ने उन बातोंके विषय में जो उस समय दिखाई न पड़ती यीं, चितौनी पाकर भक्ति के साय अपके घराने के बचाव के लिथे जहाज बनाया, और उसके द्वारा उस ने संसार को दोषी ठहराया; और उस धर्म का वारिस हुआ, जो विश्वास से होता है। 8. विश्वास ही से इब्राहीम जब बुलाया गया तो आज्ञा मानकर ऐसी जगह निकल गया जिसे मीरास में लेनेवाला या, और यह न जानता या, कि मैं किधर जाता हूं; तौभी निकल गया। 9. विश्वास ही से उस ने प्रतिज्ञा किए हुए देश में जैसे पराए देश में परदेशी रहकर इसहाक और याकूब समेत जो उसके साय उसी प्रतिज्ञा के वारिस थे, तम्बूओं में वास किया। 10. क्योंकि वह उस स्यिर नेववाले नगर की बाट जोहता या, जिस का रचनेवाला और बनानेवाला परमेश्वर है। 11. विश्वास से सारा ने आप बूढ़ी होने पर भी गर्भ धारण करने की सामर्य पाई; क्योंकि उस ने प्रतिज्ञा करनेवाले को सच्चा जाना या। 12. इस कारण एक ही जन से जो मरा हुआ सा या, आकाश के तारोंऔर समुद्र के तीर के बालू की नाईं, अनगिनित वंश उत्पन्न हुआ।। 13. थे सब विश्वास ही की दशा में मरे; और उन्होंने प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएं नहीं पाई; पर उन्हें दूर से देखकर आनन्दित हुए और मान लिया, कि हम पृय्वी पर परदेशी और बाहरी हैं। 14. जो ऐसी ऐसी बातें कहते हैं, वे प्रगट करते हैं, कि स्वदेश की खोज में हैं। 15. और जिस देश से वे निकल आए थे, यदि उस की सुधि करते तो उन्हें लौट जाने का अवसर या। 16. पर वे एक उत्तम अर्यात् स्वर्गीय देश के अभिलाषी हैं, इसी लिथे परमेश्वर उन का परमेश्वर कहलाने में उन से नहीं लजाता, सो उस ने उन के लिथे एक नगर तैयार किया है।। 17. विश्वास ही से इब्राहीम ने, परखे जाने के समय में, इसहाक को बलिदान चढ़ाया, और जिस ने प्रतिज्ञाओं को सच माना या। 18. और जिस से यह कहा गया या, कि इसहाक से तेरा वंश कहलाएगा; वह अपके एकलौते को चढ़ाने लगा। 19. क्योंकि उस ने विचार किया, कि परमेश्वर सामर्यी है, कि मरे हुओं में से जिलाए, सो उन्हीं में से दृष्टान्त की रीति पर वह उसे फिर मिला। 20. विश्वास ही से इसहाक ने याकूब और एसाव को आनेवाली बातोंके विषय मे आशीष दी। 21. विश्वास ही से याकूब ने मरते समय यूसुफ के दोनोंपुत्रोंमें से एक एक को आशीष दी, और अपक्की लाठी के सिक्के पर सहारा लेकर दण्डवत किया। 22. विश्वास ही से यूसुफ ने, जब वह मरने पर या, तो इस्त्राएल की सन्तान के निकल जाने की चर्चा की, और अपक्की हिड्डयोंके विषय में आज्ञा दी। 23. विश्वास ही से मूसा के माता पिता ने उस को, उत्पन्न होने के बाद तीन महीने तक छिपा रखा; क्योंकि उन्होंने देखा, कि बालक सुन्दर है, और वे राजा की आज्ञा से न डरे। 24. विश्वास ही से मूसा ने सयाना होकर फिरौन की बेटी का पुत्र कहलाने से इन्कार किया। 25. इसलिथे कि उसे पाप में योड़े दिन के सुख भोगने से परमेश्वर के लोगोंके साय दुख भोगना और उत्तम लगा। 26. और मसीह के कारण निन्दित होने को मिसर के भण्डार से बड़ा धन समझा: क्योंकि उस की आंखे फल पाने की ओर लगी यीं। 27. विश्वास ही से राजा के क्रोध से न डरकर उस ने मिसर को छोड़ दिया, क्योंकि वह अनदेखे को मानोंदेखता हुआ दृढ़ रहा। 28. विश्वास ही से उस ने फसह और लोहू छिड़कने की विधि मानी, कि पहिलौठोंका नाश करनेवाला इस्त्राएलियोंपर हाथ न डाले। 29. विश्वास ही से वे लाल समुद्र के पार ऐसे उतर गए, जैसे सूखी भूमि पर से; और जब मिस्रियोंने वैसा ही करना चाहा, तो सब डूब मरे। 30. विश्वास ही से यरीहो की शहरपनाह, जब सात दिन तक उसका च?र लगा चुके तो वह गिर पड़ी। 31. विश्वास ही से राहाब वेश्या आज्ञा ने माननेवालोंके साय नाश नहीं हुई; इसलिथे कि उस ने भेदियोंको कुशल से रखा या। 32. अब और क्या कहूँ क्योंकि समय नहीं रहा, कि गिदोन का, और बाराक और समसून का, और यिफतह का, और दाऊद का और शामुएल का, और भविष्यद्वक्ताओं का वर्णन करूं। 33. इन्होंने विश्वास ही के द्वारा राज्य जीते; धर्म के काम किए; प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएं प्राप्त की, सिंहोंके मुंह बन्द किए। 34. आग ही ज्वाला को ठंडा किया; तलवार की धार से बच निकले, निर्बलता में बलवन्त हुए; लड़ाई में वीर निकले; विदेशियोंकी फोजोंको मार भगाया। 35. स्त्रियोंने अपके मरे हुओं को फिर जीवते पाया; कितने तो मार खाते खाते मर गए; और छुटकारा न चाहा; इसलिथे कि उत्तम पुनरूत्यान के भागी हों। 36. कई एक ठट्ठोंमें उड़ाए जाने; और कोड़े खाने; वरन बान्धे जाने; और कैद में पड़ने के द्वारा परखे गए। 37. पत्यरवाह किए गए; आरे से चीरे गए; उन की पक्कीझा की गई; तलवार से मारे गए; वे कंगाली में और क्लेश में और दुख भोगते हुए भेड़ोंऔर बकिरयोंकी खालें ओढ़े हुए, इधर उधर मारे मारे फिरे। 38. और जंगलों, और पहाड़ों, और गुफाओं में, और पृय्वी की दरारोंमें भटकते फिरे। 39. संसार उन के योगय न या: और विश्वास ही के द्वारा इन सब के विषय में अच्छी गवाही दी गई, तोभी उन्हें प्रतिज्ञा की हुई वस्तु न मिली। 40. क्योंकि परमेश्वर ने हमारे लिथे पहिले से एक उत्तम बात ठहराई, कि वे हमारे बिना सिद्धता को न पहुंचे।।
Chapter 12
1. इस कारण जब कि गवाहोंका ऐसा बड़ा बादल हम को घेरे हुए है, तो आओ, हर एक रोकनेवाली वस्तु, और उलफानेवाले पाप को दूर करके, वह दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ें। 2. और विश्वास के कर्ता और सिद्ध करनेवाले यीशु की ओर से ताकते रहें; जिस ने उस आनन्द के लिथे जो उसके आगे धरा या, लज्ज़ा की कुछ चिन्ता न करके, क्रूस का दुख सहा; और सिंहासन पर परमेश्वर के दिहने जा बैठा। 3. इसलिथे उस पर ध्यान करो, जिस ने अपके विरोध में पापियोंका इतना वाद-विवाद सह लिया कि तुम निराश होकर हियाव न छोड़ दो। 4. तुम ने पाप से लड़ते हुए उस से ऐसी मुठभेड़ नहीं की, कि तुम्हारा लोहू बहा हो। 5. और तुम उस उपकेश को जो तुम को पुत्रोंकी नाई दिया जाता है, भूल गए हो, कि हे मेरे पुत्र, प्रभु की ताड़ना को हलकी बात न जान, और जब वह तुझे घुड़के तो हियाव न छोड़। 6. क्योंकि प्रभु, जिस से प्रेम करता है, उस की ताड़ना भी करता है; और जिसे पुत्र बना लेता है, उस को कोड़े भी लगाता है। 7. तुम दुख को ताड़ना समझकर सह लो: परमेश्वर तुम्हें पुत्र जानकर तुम्हारे साय बर्ताव करता है, वह कौन सा पुत्र है, जिस की ताड़ना पिता नहीं करता 8. यदि वह ताड़ना जिस के भागी सब होते हैं, तुम्हारी नहीं हुई, तो तुम पुत्र नहीं, पर व्यभिचार की सन्तान ठहरे! 9. फिर जब कि हमारे शारीरिक पिता भी हमारी ताड़ना किया करते थे, तो क्या आत्क़ाओं के पिता के और भी आधीन न रहें जिस से जीवित रहें। 10. वे तो अपक्की अपक्की समझ के अनुसार योड़े दिनोंके लिथे ताड़ना करते थे, पर यह तो हमारे लाभ के लिथे करता है, कि हम भी उस की पवित्रता के भागी हो जाएं। 11. और वर्तमान में हर प्रकार की ताड़ना आनन्द की नहीं, पर शोक ही की बात दिखाई पड़ती है, तौभी जो उस को सहते सहते पके हो गए हैं, पीछे उन्हें चैन के साय धर्म का प्रतिफल मिलता है। 12. इसलिथे ढीले हाथोंऔर निर्बल घुटनोंको सीधे करो। 13. और अपके पांवोंके लिथे सीधे मार्ग बनाओ, कि लंगड़ा भटक न जाए, पर भला चंगा हो जाए।। 14. सब से मेल मिलाप रखने, और उस पवित्रता के खोजी हो जिस के बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा। 15. और ध्यान से देखते रहो, ऐसा न हो, कि कोई परमेश्वर के अनुग्रह से वंचित रह जाए, या कोई कड़वी जड़ फूटकर कष्ट दे, और उसके द्वारा बहुत से लोग अशुद्ध हो जाएं। 16. ऐसा न हो, कि कोई जन व्यभिचारी, या एसाव की नाई अधर्मी हो, जिस न एक बार के भोजन के बदले अपके पहिलौठे होने का पद बेच डाला। 17. तुम जानते तो हो, कि बाद को जब उस ने आशीष पानी चाही, तो अयोग्य गिना गया, और आंसू बहा बहाकर खोजने पर भी मन फिराव का अवसर उसे न मिला।। 18. तुम तो उस पहाड़ के पास जो छूआ जा सकता या और आग से प्रज्वलित या, और काली घटा, और अन्धेरा, और आन्धी के पास। 19. और तुरही की ध्वनि, और बोलनेवाले के ऐसे शब्द के पास नहीं आए, जिस के सुननेवालोंने बिनती ही, कि अब हम से और बातें न की जाएं। 20. क्योंकि वे उस आज्ञा को न सह सके, कि यदि कोई पशु भी पहाड़ को छूए, तो पत्यरवाह किया जाए। 21. और वह दर्शन ऐसा डरावना या, कि मूसा ने कहा; मैं बहुत डरता और कांपता हूं। 22. पर तुम सिय्योन के पहाड़ के पास, और जीवते परमेश्वर के नगर स्वर्गीय यरूशलेम के पास। 23. और लाखोंस्वर्गदूतोंऔर उन पहिलौठोंकी साधारण सभा और कलीसिया जिन के नाम स्वर्ग में लिखे हुए हैं: और सब के न्यायी परमेश्वर के पास, और सिद्ध किए हुए धमिर्योंकी आत्क़ाओं। 24. और नई वाचा के मध्यस्य यीशु, और छिड़काव के उस लोहू के पास आए हो, जो हाबिल के लोहू से उत्तम बातें कहता है। 25. सावधान रहो, और उस कहनेवाले से मुंह न फेरो, क्योंकि वे लोग जब पृय्वी पर के चितावनी देनेवाले से मुंह मोड़कर न बच सके, तो हम स्वर्ग पर से चितावनी करनेवाले से मुंह मोड़कर क्योंकर बच सकेंगे 26. उस समय तो उसके शब्द ने पृय्वी को हिला दिया पर अब उस ने यह प्रतिज्ञा की है, कि एक बार फिर मैं केवल पृय्वी को नहीं, बरन आकाश को भी हिला दूंगा। 27. और यह वाक्य ?एक बार फिर इस बात को प्रगट करता है, कि जो वस्तुएं हिलाई जाती हैं, वे सृजी हुई वस्तुएं होने के कारण टल जाएंगी; ताकि जो वस्तुएं हिलाई नहीं जातीं, वे अटल बनी रहें। 28. इस कारण हम इस राज्य को पाकर जो हिलने का नहीं, उस अनुग्रह को हाथ से न जाने दें, जिस के द्वारा हम भक्ति, और भय सहित, परमेश्वर की ऐसी आराधना कर सकते हैं जिस से वह प्रसन्न होता है। 29. क्योंकि हमारा परमेश्वर भस्म करनेवाली आग है।।
Chapter 13
1. भाईचारे की प्रीति बनी रहे। 2. पहुनाई करना न भूलना, क्योंकि इस के द्वारा कितनोंने अनजाने स्वर्गदूतोंकी पहुनाई की है। 3. कैदियोंकी ऐसी सुधि लो, कि मानो उन के साय तुम भी कैद हो; और जिन के साय बुरा बर्ताव किया जाता है, उन की भी यह समझकर सुधि लिया करो, कि हमारी भी देह है। 4. विवाह सब में आदर की बात समझी जाए, और बिछौना निष्कलंक रहे; क्योंकि परमेश्वर व्यभिचारियों, और परस्त्रीगामियोंका न्याय करेगा। 5. तुम्हारा स्वभाव लोभरिहत हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर संतोष किया करो; क्योंकि उस ने आप ही कहा है, कि मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा। 6. इसलिथे हम बेधड़क होकर कहते हैं, कि प्रभु, मेरा सहाथक है; मैं न डरूंगा; मनुष्य मेरा क्या कर सकता है।। 7. जो तुम्हारे अगुवे थे, और जिन्होंने तुम्हें परमेश्वर का वचन सुनाया है, उन्हें स्क़रण रखो; और ध्यान से उन के चाल-चलन का अन्त देखकर उन के विश्वास का अनुकरण करो। 8. यीशु मसीह कल और आज और युगानुयुग एकसा है। 9. नाना प्रकार के और ऊपक्की उपकेशोंसे न भरमाए जाओ, क्योंकि मन का अनुग्रह से दृढ़ रहना भला है, न कि उन खाने की वस्तुओं से जिन से काम रखनेवालोंको कुछ लाभ न हुआ। 10. हमारी एक ऐसी वेदी है, जिस पर से खाने का अधिक्कारने उन लोगोंको नहीं, जो तम्बू की सेवा करते हैं। 11. क्योंकि जिन पशुओं का लोहू महाथाजक पाप-बलि के लिथे पवित्र स्यान में ले जाता है, उन की देह छावनी के बाहर जलाई जाती है। 12. इसी कारण, यीशु ने भी लोगोंको अपके ही लोहू के द्वारा पवित्र करने के लिथे फाटक के बाहर दुख उठाया। 13. सो आओ उस की निन्दा अपके ऊपर लिए हुए छावनी के बाहर उसके पास निकल चलें। 14. क्योंकि यहां हमारा कोई स्यिर रहनेवाला नगर नहीं, बरन हम एक आनेवाले नगर की खोज में हैं। 15. इसलिथे हम उसके द्वारा स्तुतिरूपी बलिदान, अर्यात् उन होठोंका फल जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं, परमेश्वर के लिथे सर्वदा चढ़ाया करें। 16. पर भलाई करना, और उदारता न भूलो; क्योंकि परमेश्वर ऐसे बलिदानोंसे प्रसन्न होता है। 17. अपके अगुवोंकी मानो; और उनके अधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाई तुम्हारे प्राणोंके लिथे जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पकेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं। 18. हमारे लिथे प्रार्यना करते रहो, क्योंकि हमें भरोसा है, कि हमारा विवेक शुद्ध है; और हम सब बातोंमें अच्छी चाल चलना चाहते हैं। 19. और इस के करने के लिथे मैं तुम्हें और भी समझाता हूं, कि मैं शीघ्र तुम्हारे पास फिर आ सकूं।। 20. अब शान्तिदाता परमेश्वर जो हमारे प्रभु यीशु को जो भेड़ोंका महान रखवाला है सनातन वाचा के लोहू के गुण से मरे हुओं में से जिलाकर ले आया। 21. तुम्हें हर एक भली बात में सिद्ध करे, जिस से तुम उस की इच्छा पूरी करो, और जो कुछ उस को भाता है, उसे यीशु मसीह के द्वारा हम में उत्पन्न करे, जिस की बड़ाई युगानुयुग होती रहे। आमीन।। 22. हे भाइयोंमैं तुम से बिनती करता हूं, कि इन उपकेश की बातोंको सह लेओ; क्योंकि मैं ने तुम्हें बहुत संझेप में लिखा है। 23. तुम यह जान लो कि तीमुयियुस हमारा भाई छूट गया है और यदि वह शीघ्र आ गया, तो मैं उसके साय तुम से भेंट करूंगा। 24. अपके सब अगुवोंऔर सब पवित्र लोगोंको नमस्कार कहो। इतालियावाले तुम्हें नमस्कार कहते हैं।। 25. तुम सब पर अनुग्रह होता रहे। आमीन।।
(April28th2012)
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