-उत्पत्ति
Chapter 1
1. आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृय्वी की सृष्टि की। 2. और पृय्वी बेडौल और सुनसान पक्की यी; और गहरे जल के ऊपर अन्धिक्कारनेा या: तया परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डलाता या। 3. तब परमेश्वर ने कहा, उजियाला हो: तो उजियाला हो गया। 4. और परमेश्वर ने उजियाले को देखा कि अच्छा है; और परमेश्वर ने उजियाले को अन्धिक्कारने से अलग किया। 5. और परमेश्वर ने उजियाले को दिन और अन्धिक्कारने को रात कहा। तया सांफ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पहिला दिन हो गया।। 6. फिर परमेश्वर ने कहा, जल के बीच एक ऐसा अन्तर हो कि जल दो भाग हो जाए। 7. तब परमेश्वर ने एक अन्तर करके उसके नीचे के जल और उसके ऊपर के जल को अलग अलग किया; और वैसा ही हो गया। 8. और परमेश्वर ने उस अन्तर को आकाश कहा। तया सांफ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार दूसरा दिन हो गया।। 9. फिर परमेश्वर ने कहा, आकाश के नीचे का जल एक स्यान में इकट्ठा हो जाए और सूखी भूमि दिखाई दे; और वैसा ही हो गया। 10. और परमेश्वर ने सूखी भूमि को पृय्वी कहा; तया जो जल इकट्ठा हुआ उसको उस ने समुद्र कहा: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 11. फिर परमेश्वर ने कहा, पृय्वी से हरी घास, तया बीजवाले छोटे छोटे पेड़, और फलदाई वृझ भी जिनके बीज उन्ही में एक एक की जाति के अनुसार होते हैं पृय्वी पर उगें; और वैसा ही हो गया। 12. तो पृय्वी से हरी घास, और छोटे छोटे पेड़ जिन में अपक्की अपक्की जाति के अनुसार बीज होता है, और फलदाई वृझ जिनके बीज एक एक की जाति के अनुसार उन्ही में होते हैं उगे; और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 13. तया सांफ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार तीसरा दिन हो गया।। 14. फिर परमेश्वर ने कहा, दिन को रात से अलग करने के लिथे आकाश के अन्तर में ज्योतियां हों; और वे चिन्हों, और नियत समयों, और दिनों, और वर्षोंके कारण हों। 15. और वे ज्योतियां आकाश के अन्तर में पृय्वी पर प्रकाश देनेवाली भी ठहरें; और वैसा ही हो गया। 16. तब परमेश्वर ने दो बड़ी ज्योतियां बनाईं; उन में से बड़ी ज्योति को दिन पर प्रभुता करने के लिथे, और छोटी ज्योति को रात पर प्रभुता करने के लिथे बनाया: और तारागण को भी बनाया। 17. परमेश्वर ने उनको आकाश के अन्तर में इसलिथे रखा कि वे पृय्वी पर प्रकाश दें, 18. तया दिन और रात पर प्रभुता करें और उजियाले को अन्धिक्कारने से अलग करें: और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 19. तया सांफ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार चौया दिन हो गया।। 20. फिर परमेश्वर ने कहा, जल जीवित प्राणियोंसे बहुत ही भर जाए, और पक्की पृय्वी के ऊपर आकाश कें अन्तर में उड़ें। 21. इसलिथे परमेश्वर ने जाति जाति के बड़े बड़े जल-जन्तुओं की, और उन सब जीवित प्राणियोंकी भी सृष्टि की जो चलते फिरते हैं जिन से जल बहुत ही भर गया और एक एक जाति के उड़नेवाले पझियोंकी भी सृष्टि की : और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 22. और परमेश्वर ने यह कहके उनको आशीष दी, कि फूलो-फलो, और समुद्र के जल में भर जाओ, और पक्की पृय्वी पर बढ़ें। 23. तया सांफ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार पांचवां दिन हो गया। 24. फिर परमेश्वर ने कहा, पृय्वी से एक एक जाति के जीवित प्राणी, अर्यात् घरेलू पशु, और रेंगनेवाले जन्तु, और पृय्वी के वनपशु, जाति जाति के अनुसार उत्पन्न हों; और वैसा ही हो गया। 25. सो परमेश्वर ने पृय्वी के जाति जाति के वनपशुओं को, और जाति जाति के घरेलू पशुओं को, और जाति जाति के भूमि पर सब रेंगनेवाले जन्तुओं को बनाया : और परमेश्वर ने देखा कि अच्छा है। 26. फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपके स्वरूप के अनुसार अपक्की समानता में बनाएं; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पझियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृय्वी पर, और सब रेंगनेवाले जन्तुओं पर जो पृय्वी पर रेंगते हैं, अधिक्कारने रखें। 27. तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपके स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपके ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके उस ने मनुष्योंकी सृष्टि की। 28. और परमेश्वर ने उनको आशीष दी : और उन से कहा, फूलो-फलो, और पृय्वी में भर जाओ, और उसको अपके वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तया आकाश के पझियों, और पृय्वी पर रेंगनेवाले सब जन्तुओ पर अधिक्कारने रखो। 29. फिर परमेश्वर ने उन से कहा, सुनो, जितने बीजवाले छोटे छोटे पेड़ सारी पृय्वी के ऊपर हैं और जितने वृझोंमें बीजवाले फल होते हैं, वे सब मैं ने तुम को दिए हैं; वे तुम्हारे भोजन के लिथे हैं : 30. और जितने पृय्वी के पशु, और आकाश के पक्की, और पृय्वी पर रेंगनेवाले जन्तु हैं, जिन में जीवन के प्राण हैं, उन सब के खाने के लिथे मैं ने सब हरे हरे छोटे पेड़ दिए हैं; और वैसा ही हो गया। 31. तब परमेश्वर ने जो कुछ बनाया या, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है। तया सांफ हुई फिर भोर हुआ। इस प्रकार छठवां दिन हो गया।।
Chapter 2
1. योंआकाश और पृय्वी और उनकी सारी सेना का बनाना समाप्त हो गया। 2. और परमेश्वर ने अपना काम जिसे वह करता या सातवें दिन समाप्त किया। और उस ने अपके किए हुए सारे काम से सातवें दिन विश्रम किया। 3. और परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी और पवित्र ठहराया; क्योंकि उस में उस ने अपक्की सृष्टि की रचना के सारे काम से विश्रम लिया। 4. आकाश और पृय्वी की उत्पत्ति का वृत्तान्त यह है कि जब वे उत्पन्न हुए अर्यात् जिस दिन यहोवा परमेश्वर ने पृय्वी और आकाश को बनाया: 5. तब मैदान का कोई पौधा भूमि पर न या, और न मैदान का कोई छोटा पेड़ उगा या, क्योंकि यहोवा परमेश्वर ने पृय्वी पर जल नहीं बरसाया या, और भूमि पर खेती करने के लिथे मनुष्य भी नहीं या; 6. तौभी कुहरा पृय्वी से उठता या जिस से सारी भूमि सिंच जाती यी 7. और यहोवा परमेश्वर ने आदम को भूमि की मिट्टी से रचा और उसके नयनो में जीवन का श्वास फूंक दिया; और आदम जीवता प्राणी बन गया। 8. और यहोवा परमेश्वर ने पूर्व की ओर अदन देश में एक बाटिका लगाई; और वहां आदम को जिसे उस ने रचा या, रख दिया। 9. और यहोवा परमेश्वर ने भूमि से सब भांति के वृझ, जो देखने में मनोहर और जिनके फल खाने में अच्छे हैं उगाए, और बाटिका के बीच में जीवन के वृझ को और भले या बुरे के ज्ञान के वृझ को भी लगाया। 10. और उस बाटिका को सींचने के लिथे एक महानदी अदन से निकली और वहां से आगे बहकर चार धारा में हो गई। 11. पहिली धारा का नाम पीशोन् है, यह वही है जो हवीला नाम के सारे देश को जहां सोना मिलता है घेरे हुए है। 12. उस देश का सोना चोखा होता है, वहां मोती और सुलैमानी पत्यर भी मिलते हैं। 13. और दूसरी नदी का नाम गीहोन् है, यह वही है जो कूश के सारे देश को घेरे हुए है। 14. और तीसरी नदी का नाम हिद्देकेल् है, यह वही है जो अश्शूर् के पूर्व की ओर बहती है। और चौयी नदी का नाम फरात है। 15. जब यहोवा परमेश्वर ने आदम को लेकर अदन की बाटिका में रख दिया, कि वह उस में काम करे और उसकी रझा करे, 16. तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, कि तू बाटिका के सब वृझोंका फल बिना खटके खा सकता है: 17. पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृझ है, उसका फल तू कभी न खाना : क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा।। 18. फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, आदम का अकेला रहना अच्छा नहीं; मै उसके लिथे एक ऐसा सहाथक बनाऊंगा जो उस से मेल खाए। 19. और यहोवा परमेश्वर भूमि में से सब जाति के बनैले पशुओं, और आकाश के सब भँाति के पझियोंको रचकर आदम के पास ले आया कि देखे, कि वह उनका क्या क्या नाम रखता है; और जिस जिस जीवित प्राणी का जो जो नाम आदम ने रखा वही उसका नाम हो गया। 20. सो आदम ने सब जाति के घरेलू पशुओं, और आकाश के पझियों, और सब जाति के बनैले पशुओं के नाम रखे; परन्तु आदम के लिथे कोई ऐसा सहाथक न मिला जो उस से मेल खा सके। 21. तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को भारी नीन्द में डाल दिया, और जब वह सो गया तब उस ने उसकी एक पसुली निकालकर उसकी सन्ती मांस भर दिया। 22. और यहोवा परमेश्वर ने उस पसुली को जो उस ने आदम में से निकाली यी, स्त्री बना दिया; और उसको आदम के पास ले आया। 23. और आदम ने कहा अब यह मेरी हड्डियोंमें की हड्डी और मेरे मांस में का मांस है : सो इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई है। 24. इस कारण पुरूष अपके माता पिता को छोड़कर अपक्की पत्नी से मिला रहेगा और वे एक तन बनें रहेंगे। 25. और आदम और उसकी पत्नी दोनोंनंगे थे, पर लजाते न थे।।
Chapter 3
1. यहोवा परमेश्वर ने जितने बनैले पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त या, और उस ने स्त्री से कहा, क्या सच है, कि परमेश्वर ने कहा, कि तुम इस बाटिका के किसी वृझ का फल न खाना ? 2. स्त्री ने सर्प से कहा, इस बाटिका के वृझोंके फल हम खा सकते हैं। 3. पर जो वृझ बाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना और न उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे। 4. तब सर्प ने स्त्री से कहा, तुम निश्चय न मरोगे, 5. वरन परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आंखे खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे। 6. सो जब स्त्री ने देखा कि उस वृझ का फल खाने में अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिथे चाहने योग्य भी है, तब उस ने उस में से तोड़कर खाया; और अपके पति को भी दिया, और उस ने भी खाया। 7. तब उन दोनोंकी आंखे खुल गई, और उनको मालूम हुआ कि वे नंगे है; सो उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़ जोड़ कर लंगोट बना लिथे। 8. तब यहोवा परमेश्वर जो दिन के ठंडे समय बाटिका में फिरता या उसका शब्द उनको सुनाई दिया। तब आदम और उसकी पत्नी बाटिका के वृझोंके बीच यहोवा परमेश्वर से छिप गए। 9. तब यहोवा परमेश्वर ने पुकारकर आदम से पूछा, तू कहां है? 10. उस ने कहा, मैं तेरा शब्द बारी में सुनकर डर गया क्योंकि मैं नंगा या; इसलिथे छिप गया। 11. उस ने कहा, किस ने तुझे चिताया कि तू नंगा है? जिस वृझ का फल खाने को मै ने तुझे बर्जा या, क्या तू ने उसका फल खाया है? 12. आदम ने कहा जिस स्त्री को तू ने मेरे संग रहने को दिया है उसी ने उस वृझ का फल मुझे दिया, और मै ने खाया। 13. तब यहोवा परमेश्वर ने स्त्री से कहा, तू ने यह क्या किया है? स्त्री ने कहा, सर्प ने मुझे बहका दिया तब मै ने खाया। 14. तब यहोवा परमेश्वर ने सर्प से कहा, तू ने जो यह किया है इसलिथे तू सब घरेलू पशुओं, और सब बनैले पशुओं से अधिक शापित है; तू पेट के बल चला करेगा, और जीवन भर मिट्टी चाटता रहेगा : 15. और मै तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करुंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा। 16. फिर स्त्री से उस ने कहा, मै तेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने के दु:ख को बहुत बढ़ाऊंगा; तू पीड़ित होकर बालक उत्पन्न करेगी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा। 17. और आदम से उस ने कहा, तू ने जो अपक्की पत्नी की बात सुनी, और जिस वृझ के फल के विषय मै ने तुझे आज्ञा दी यी कि तू उसे न खाना उसको तू ने खाया है, इसलिथे भूमि तेरे कारण शापित है: तू उसकी उपज जीवन भर दु:ख के साय खाया करेगा : 18. और वह तेरे लिथे कांटे और ऊंटकटारे उगाएगी, और तू खेत की उपज खाएगा ; 19. और अपके माथे के पक्कीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जाएगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा। 20. और आदम ने अपक्की पत्नी का नाम हव्वा रखा; क्योंकि जितने मनुष्य जीवित हैं उन सब की आदिमाता वही हुई। 21. और यहोवा परमेश्वर ने आदम और उसकी पत्नी के लिथे चमड़े के अंगरखे बनाकर उनको पहिना दिए। 22. फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, मनुष्य भले बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है: इसलिथे अब ऐसा न हो, कि वह हाथ बढ़ाकर जीवन के वृझ का फल भी तोड़ के खा ले और सदा जीवित रहे। 23. तब यहोवा परमेश्वर ने उसको अदन की बाटिका में से निकाल दिया कि वह उस भूमि पर खेती करे जिस मे से वह बनाया गया या। 24. इसलिथे आदम को उस ने निकाल दिया और जीवन के वृझ के मार्ग का पहरा देने के लिथे अदन की बाटिका के पूर्व की ओर करुबोंको, और चारोंओर घूमनेवाली ज्वालामय तलवार को भी नियुक्त कर दिया।।
Chapter 4
1. जब आदम अपक्की पत्नी हव्वा के पास गया तब उस ने गर्भवती होकर कैन को जन्म दिया और कहा, मै ने यहोवा की सहाथता से एक पुरूष पाया है। 2. फिर वह उसके भाई हाबिल को भी जन्मी, और हाबिल तो भेड़-बकरियोंका चरवाहा बन गया, परन्तु कैन भूमि की खेती करने वाला किसान बना। 3. कुछ दिनोंके पश्चात् कैन यहोवा के पास भूमि की उपज में से कुछ भेंट ले आया। 4. और हाबिल भी अपक्की भेड़-बकरियोंके कई एक पहिलौठे बच्चे भेंट चढ़ाने ले आया और उनकी चर्बी भेंट चढ़ाई; तब यहोवा ने हाबिल और उसकी भेंट को तो ग्रहण किया, 5. परन्तु कैन और उसकी भेंट को उस ने ग्रहण न किया। तब कैन अति क्रोधित हुआ, और उसके मुंह पर उदासी छा गई। 6. तब यहोवा ने कैन से कहा, तू क्योंक्रोधित हुआ ? और तेरे मुंह पर उदासी क्योंछा गई है ? 7. यदि तू भला करे, तो क्या तेरी भेंट ग्रहण न की जाएगी ? और यदि तू भला न करे, तो पाप द्वार पर छिपा रहता है, और उसकी लालसा तेरी और होगी, और तू उस पर प्रभुता करेगा। 8. तब कैन ने अपके भाई हाबिल से कुछ कहा : और जब वे मैदान में थे, तब कैन ने अपके भाई हाबिल पर चढ़कर उसे घात किया। 9. तब यहोवा ने कैन से पूछा, तेरा भाई हाबिल कहां है ? उस ने कहा मालूम नहीं : क्या मै अपके भाई का रखवाला हूं ? 10. उस ने कहा, तू ने क्या किया है ? तेरे भाई का लोहू भूमि में से मेरी ओर चिल्लाकर मेरी दोहाई दे रहा है ! 11. इसलिथे अब भूमि जिस ने तेरे भाई का लोहू तेरे हाथ से पीने के लिथे अपना मुंह खोला है, उसकी ओर से तू शापित है। 12. चाहे तू भूमि पर खेती करे, तौभी उसकी पूरी उपज फिर तुझे न मिलेगी, और तू पृय्वी पर बहेतू और भगोड़ा होगा। 13. तब कैन ने यहोवा से कहा, मेरा दण्ड सहने से बाहर है। 14. देख, तू ने आज के दिन मुझे भूमि पर से निकाला है और मै तेरी दृष्टि की आड़ मे रहूंगा और पृय्वी पर बहेतू और भगोड़ा रहूंगा; और जो कोई मुझे पाएगा, मुझे घात करेगा। 15. इस कारण यहोवा ने उस से कहा, जो कोई कैन को घात करेगा उस से सात गुणा पलटा लिया जाएगा। और यहोवा ने कैन के लिथे एक चिन्ह ठहराया ऐसा ने हो कि कोई उसे पाकर मार डाले।। 16. तब कैन यहोवा के सम्मुख से निकल गया, और नोद् नाम देश में, जो अदन के पूर्व की ओर है, रहने लगा। 17. जब कैन अपक्की पत्नी के पास गया जब वह गर्भवती हुई और हनोक को जन्मी, फिर कैन ने एक नगर बसाया और उस नगर का नाम अपके पुत्र के नाम पर हनोक रखा। 18. और हनोक से ईराद उत्पन्न हुआ, और ईराद ने महूयाएल को जन्म दिया, और महूयाएल ने मतूशाएल को, और मतूशाएल ने लेमेक को जन्म दिया। 19. और लेमेक ने दो स्त्रियां ब्याह ली : जिन में से एक का नाम आदा, और दूसरी को सिल्ला है। 20. और आदा ने याबाल को जन्म दिया। वह तम्बुओं में रहना और जानवरोंका पालन इन दोनो रीतियोंका उत्पादक हुआ। 21. और उसके भाई का नाम यूबाल है : वह वीणा और बांसुरी आदि बाजोंके बजाने की सारी रीति का उत्पादक हुआ। 22. और सिल्ला ने भी तूबल्कैन नाम एक पुत्र को जन्म दिया : वह पीतल और लोहे के सब धारवाले हयियारोंका गढ़नेवाला हुआ: और तूबल्कैन की बहिन नामा यी। 23. और लेमेक ने अपक्की पत्नियोंसे कहा, हे आदा और हे सिल्ला मेरी सुनो; हे लेमेक की पत्नियों, मेरी बात पर कान लगाओ: मैंने एक पुरूष को जो मेरे चोट लगाता या, अर्यात् एक जवान को जो मुझे घायल करता या, घात किया है। 24. जब कैन का पलटा सातगुणा लिया जाएगा। तो लेमेक का सतहरगुणा लिया जाएगा। 25. और आदम अपक्की पत्नी के पास फिर गया; और उस ने एक पुत्र को जन्म दिया और उसका नाम यह कह के शेत रखा, कि परमेश्वर ने मेरे लिथे हाबिल की सन्ती, जिसको कैन ने घात किया, एक और वंश ठहरा दिया है। 26. और शेत के भी एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और उस ने उसका नाम एनोश रखा, उसी समय से लोग यहोवा से प्रार्यना करने लगे।।
Chapter 5
1. आदम की वंशावली यह है। जब परमेश्वर ने मनुष्य की सृष्टि की तब अपके ही स्वरूप में उसको बनाया; 2. उस ने नर और नारी करके मनुष्योंकी सृष्टि की और उन्हें आशीष दी, और उनकी सृष्टि के दिन उनका नाम आदम रखा। 3. जब आदम एक सौ तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा उसकी समानता में उस ही के स्वरूप के अनुसार एक पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम शेत रखा। 4. और शेत के जन्म के पश्चात् आदम आठ सौ वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुईं। 5. और आदम की कुल अवस्या नौ सौ तीस वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 6. जब शेत एक सौ पांच वर्ष का हुआ, तब उस ने एनोश को जन्म दिया। 7. और एनोश के जन्म के पश्चात् शेत आठ सौ सात वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुईं। 8. और शेत की कुल अवस्या नौ सौ बारह वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 9. जब एनोश नब्बे वर्ष का हुआ, तब उस ने केनान को जन्म दिया। 10. और केनान के जन्म के पश्चात् एनोश आठ सौ पन्द्रह वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां हुई। 11. और एनोश की कुल अवस्या नौ सौ पांच वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 12. जब केनान सत्तर वर्ष का हुआ, तब उस ने महललेल को जन्म दिया। 13. और महललेल के जन्म के पश्चात् केनान आठ सौ चालीस वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 14. और केनान की कुल अवस्या नौ सौ दस वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 15. जब महललेल पैंसठ वर्ष का हुआ, तब उस ने थेरेद को जन्म दिया। 16. और थेरेद के जन्म के पश्चात् महललेल आठ सौ तीस वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 17. और महललेल की कुल अवस्या आठ सौ पंचानवे वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 18. जब थेरेद एक सौ बासठ वर्ष का हुआ, जब उस ने हनोक को जन्म दिया। 19. और हनोक के जन्म के पश्चात् थेरेद आठ सौ वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 20. और थेरेद की कुल अवस्या नौ सौ बासठ वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया। 21. जब हनोक पैंसठ वर्ष का हुआ, तब उस ने मतूशेलह को जन्म दिया। 22. और मतूशेलह के जन्म के पश्चात् हनोक तीन सौ वर्ष तक परमेश्वर के साय साय चलता रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 23. और हनोक की कुल अवस्या तीन सौ पैंसठ वर्ष की हुई। 24. और हनोक परमेश्वर के साय साय चलता या; फिर वह लोप हो गया क्योंकि परमेश्वर ने उसे उठा लिया। 25. जब मतूशेलह एक सौ सत्तासी वर्ष का हुआ, तब उस ने लेमेक को जन्म दिया। 26. और लेमेक के जन्म के पश्चात् मतूशेलह सात सौ बयासी वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 27. और मतूशेलह की कुल अवस्या नौ सौ उनहत्तर वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 28. जब लेमेक एक सौ बयासी वर्ष का हुआ, तब उस ने एक पुत्र जन्म दिया। 29. और यह कहकर उसका नाम नूह रखा, कि यहोवा ने जो पृय्वी को शाप दिया है, उसके विषय यह लड़का हमारे काम में, और उस कठिन परिश्र्म में जो हम करते हैं, हम को शान्ति देगा। 30. और नूह के जन्म के पश्चात् लेमेक पांच सौ पंचानवे वर्ष जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई। 31. और लेमेक की कुल अवस्या सात सौ सतहत्तर वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।। 32. और नूह पांच सौ वर्ष का हुआ; और नूह ने शेम, और हाम और थेपेत को जन्म दिया।।
Chapter 6
1. फिर जब मनुष्य भूमि के ऊपर बहुत बढ़ने लगे, और उनके बेटियां उत्पन्न हुई, 2. तब परमेश्वर के पुत्रोंने मनुष्य की पुत्रियोंको देखा, कि वे सुन्दर हैं; सो उन्होंने जिस जिसको चाहा उन से ब्याह कर लिया। 3. और यहोवा ने कहा, मेरा आत्मा मनुष्य से सदा लोंविवाद करता न रहेगा, क्योंकि मनुष्य भी शरीर ही है : उसकी आयु एक सौ बीस वर्ष की होगी। 4. उन दिनोंमें पृय्वी पर दानव रहते थे; और इसके पश्चात् जब परमेश्वर के पुत्र मनुष्य की पुत्रियोंके पास गए तब उनके द्वारा जो सन्तान उत्पन्न हुए, वे पुत्र शूरवीर होते थे, जिनकी कीत्तिर् प्राचीनकाल से प्रचलित है। 5. और यहोवा ने देखा, कि मनुष्योंकी बुराई पृय्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है सो निरन्तर बुरा ही होता है। 6. और यहोवा पृय्वी पर मनुष्य को बनाने से पछताया, और वह मन में अति खेदित हुआ। 7. तब यहोवा ने सोचा, कि मै मनुष्य को जिसकी मै ने सृष्टि की है पृय्वी के ऊपर से मिटा दूंगा क्योंकि मैं उनके बनाने से पछताता हूं। 8. परन्तु यहोवा के अनुग्रह की दृष्टि नूह पर बनी रही।। 9. नूह की वंशावली यह है। नूह धर्मी पुरूष और अपके समय के लोगोंमें खरा या, और नूह परमेश्वर ही के साय साय चलता रहा। 10. और नूह से, शेम, और हाम, और थेपेत नाम, तीन पुत्र उत्पन्न हुए। 11. उस समय पृय्वी परमेश्वर की दृष्टि में बिगड़ गई यी, और उपद्रव से भर गई यी। 12. और परमेश्वर ने पृय्वी पर जो दृष्टि की तो क्या देखा, कि वह बिगड़ी हुई है; क्योंकि सब प्राणियोंने पृय्वी पर अपक्की अपक्की चाल चलन बिगाड़ ली यी। 13. तब परमेश्वर ने नूह से कहा, सब प्राणियोंके अन्त करने का प्रश्न मेरे साम्हने आ गया है; क्योंकि उनके कारण पृय्वी उपद्रव से भर गई है, इसलिथे मै उनको पृय्वी समेत नाश कर डालूंगा। 14. इसलिथे तू गोपेर वृझ की लकड़ी का एक जहाज बना ले, उस में कोठरियां बनाना, और भीतर बाहर उस पर राल लगाना। 15. और इस ढंग से उसको बनाना : जहाज की लम्बाई तीन सौ हाथ, चौड़ाई पचास हाथ, और ऊंचाई तीस हाथ की हो। 16. जहाज में एक खिड़की बनाना, और इसके एक हाथ ऊपर से उसकी छत बनाना, और जहाज की एक अलंग में एक द्वार रखना, और जहाज में पहिला, दूसरा, तीसरा खण्ड बनाना। 17. और सुन, मैं आप पृय्वी पर जलप्रलय करके सब प्राणियोंको, जिन में जीवन की आत्मा है, आकाश के नीचे से नाश करने पर हूं : और सब जो पृय्वी पर है मर जाएंगे। 18. परन्तु तेरे संग मै वाचा बान्धता हूं : इसलिथे तू अपके पुत्रों, स्त्री, और बहुओं समेत जहाज में प्रवेश करना। 19. और सब जीवित प्राणियोंमें से, तू एक एक जाति के दो दो, अर्यात् एक नर और एक मादा जहाज में ले जाकर, अपके साय जीवित रखना। 20. एक एक जाति के पक्की, और एक एक जाति के पशु, और एक एक जाति के भूमि पर रेंगनेवाले, सब में से दो दो तेरे पास आएंगे, कि तू उनको जीवित रखे। 21. और भांति भांति का भोज्य पदार्य जो खाया जाता है, उनको तू लेकर अपके पास इकट्ठा कर रखना सो तेरे और उनके भोजन के लिथे होगा। 22. परमेश्वर की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया।
Chapter 7
1. और यहोवा ने नूह से कहा, तू अपके सारे घराने समेत जहाज में जा; क्योंकि मै ने इस समय के लोगोंमें से केवल तुझी को अपक्की दृष्टि में धर्मी देखा है। 2. सब जाति के शुद्ध पशुओं में से तो तू सात सात, अर्यात् नर और मादा लेना : पर जो पशु शुद्ध नहीं है, उन में से दो दो लेना, अर्यात् नर और मादा : 3. और आकाश के पझियोंमें से भी, सात सात, अर्यात् नर और मादा लेना : कि उनका वंश बचकर सारी पृय्वी के ऊपर बना रहे। 4. क्योंकि अब सात दिन और बीतने पर मैं पृय्वी पर चालीस दिन और चालीस रात तक जल बरसाता रहूंगा; जितनी वस्तुएं मैं ने बनाईं है सब को भूमि के ऊपर से मिटा दूंगा। 5. यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार नूह ने किया। 6. नूह की अवस्या छ: सौ वर्ष की यी, जब जलप्रलय पृय्वी पर आया। 7. नूह अपके पुत्रों, पत्नी और बहुओं समेत, जलप्रलय से बचने के लिथे जहाज में गया। 8. और शुद्ध, और अशुद्ध दोनो प्रकार के पशुओं में से, पझियों, 9. और भूमि पर रेंगनेवालोंमें से भी, दो दो, अर्यात् नर और मादा, जहाज में नूह के पास गए, जिस प्रकार परमेश्वर ने नूह को आज्ञा दी यी। 10. सात दिन के उपरान्त प्रलय का जल पृय्वी पर आने लगा। 11. जब नूह की अवस्या के छ: सौवें वर्ष के दूसरे महीने का सत्तरहवां दिन आया; उसी दिन बड़े गहिरे समुद्र के सब सोते फूट निकले और आकाश के फरोखे खुल गए। 12. और वर्षा चालीस दिन और चालीस रात निरन्तर पृय्वी पर होती रही। 13. ठीक उसी दिन नूह अपके पुत्र शेम, हाम, और थेपेत, और अपक्की पत्नी, और तीनोंबहुओं समेत, 14. और उनके संग एक एक जाति के सब बनैले पशु, और एक एक जाति के सब घरेलू पशु, और एक एक जाति के सब पृय्वी पर रेंगनेवाले, और एक एक जाति के सब उड़नेवाले पक्की, जहाज में गए। 15. जितने प्राणियोंमें जीवन की आत्मा यी उनकी सब जातियोंमें से दो दो नूह के पास जहाज में गए। 16. और जो गए, वह परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार सब जाति के प्राणियोंमें से नर और मादा गए। तब यहोवा ने उसका द्वार बन्द कर दिया। 17. और पृय्वी पर चालीस दिन तक प्रलय होता रहा; और पानी बहुत बढ़ता ही गया जिस से जहाज ऊपर को उठने लगा, और वह पृय्वी पर से ऊंचा उठ गया। 18. और जल बढ़ते बढ़ते पृय्वी पर बहुत ही बढ़ गया, और जहाज जल के ऊपर ऊपर तैरता रहा। 19. और जल पृय्वी पर अत्यन्त बढ़ गया, यहां तक कि सारी धरती पर जितने बड़े बड़े पहाड़ थे, सब डूब गए। 20. जल तो पन्द्रह हाथ ऊपर बढ़ गया, और पहाड़ भी डूब गए 21. और क्या पक्की, क्या घरेलू पशु, क्या बनैले पशु, और पृय्वी पर सब चलनेवाले प्राणी, और जितने जन्तु पृय्वी मे बहुतायत से भर गए थे, वे सब, और सब मनुष्य मर गए। 22. जो जो स्यल पर थे उन में से जितनोंके नयनोंमें जीवन का श्वास या, सब मर मिटे। 23. और क्या मनुष्य, क्या पशु, क्या रेंगनेवाले जन्तु, क्या आकाश के पक्की, जो जो भूमि पर थे, सो सब पृय्वी पर से मिट गए; केवल नूह, और जितने उसके संग जहाज में थे, वे ही बच गए। 24. और जल पृय्वी पर एक सौ पचास दिन तक प्रबल रहा।।
Chapter 8
1. और परमेश्वर ने नूह की, और जितने बनैले पशु, और घरेलू पशु उसके संग जहाज में थे, उन सभोंकी सुधि ली : और परमेश्वर ने पृय्वी पर पवन बहाई, और जल घटने लगा। 2. और गहिरे समुद्र के सोते और आकाश के फरोखे बंद हो गए; और उस से जो वर्षा होती यी सो भी यम गई। 3. और एक सौ पचास दिन के पशचात् जल पृय्वी पर से लगातार घटने लगा। 4. सातवें महीने के सत्तरहवें दिन को, जहाज अरारात नाम पहाड़ पर टिक गया। 5. और जल दसवें महीने तक घटता चला गया, और दसवें महीने के पहिले दिन को, पहाड़ोंकी चोटियाँ दिखलाई दीं। 6. फिर ऐसा हुआ कि चालीस दिन के पश्चात् नूह ने अपके बनाए हुए जहाज की खिड़की को खोलकर, एक कौआ उड़ा दिया : 7. जब तक जल पृय्वी पर से सूख न गया, तब तक कौआ इधर उधर फिरता रहा। 8. फिर उस ने अपके पास से एक कबूतरी को उड़ा दिया, कि देखें कि जल भूमि से घट गया कि नहीं। 9. उस कबूतरी को अपके पैर के तले टेकने के लिथे कोई आधार ने मिला, सो वह उसके पास जहाज में लौट आई : क्योंकि सारी पृय्वी के ऊपर जल ही जल छाया या तब उस ने हाथ बढ़ाकर उसे अपके पास जहाज में ले लिया। 10. तब और सात दिन तक ठहरकर, उस ने उसी कबूतरी को जहाज में से फिर उड़ा दिया। 11. और कबूतरी सांफ के समय उसके पास आ गई, तो क्या देखा कि उसकी चोंच में जलपाई का एक नया पत्ता है; इस से नूह ने जान लिया, कि जल पृय्वी पर घट गया है। 12. फिर उस ने सात दिन और ठहरकर उसी कबूतरी को उड़ा दिया; और वह उसके पास फिर कभी लौटकर न आई। 13. फिर ऐसा हुआ कि छ: सौ एक वर्ष के पहिले महीने के पहिले दिन जल पृय्वी पर से सूख गया। तब नूह ने जहाज की छत खोलकर क्या देखा कि धरती सूख गई है। 14. और दूसरे महीने के सताईसवें दिन को पृय्वी पूरी रीति से सूख गई।। 15. तब परमेश्वर ने, नूह से कहा, 16. तू अपके पुत्रों, पत्नी, और बहुओं समेत जहाज में से निकल आ। 17. क्या पक्की, क्या पशु, क्या सब भांति के रेंगनेवाले जन्तु जो पृय्वी पर रेंगते हैं, जितने शरीरधारी जीवजन्तु तेरे संग हैं, उस सब को अपके साय निकाल ले आ, कि पृय्वी पर उन से बहुत बच्चे उत्पन्न हों; और वे फूलें-फलें, और पृय्वी पर फैल जाएं। 18. तब नूह, और उसके पुत्र, और पत्नी, और बहुएं, निकल आईं : 19. और सब चौपाए, रेंगनेवाले जन्तु, और पक्की, और जितने जीवजन्तु पृय्वी पर चलते फिरते हैं, सो सब जाति जाति करके जहाज में से निकल आए। 20. तब नूह ने यहोवा के लिथे एक वेदी बनाई; और सब शुद्ध पशुओं, और सब शुद्ध पझियोंमें से, कुछ कुछ लेकर वेदी पर होमबलि चढ़ाया। 21. इस पर यहोवा ने सुखदायक सुगन्ध पाकर सोचा, कि मनुष्य के कारण मैं फिर कभी भूमि को शाप न दूंगा, यद्यपि मनुष्य के मन में बचपन से जो कुछ उत्पन्न होता है सो बुरा ही होता है; तौभी जैसा मैं ने सब जीवोंको अब मारा है, वैसा उनको फिर कभी न मारूंगा। 22. अब से जब तक पृय्वी बनी रहेगी, तब तक बोने और काटने के समय, ठण्ड और तपन, धूपकाल और शीतकाल, दिन और रात, निरन्तर होते चले जाएंगे।।
Chapter 9
1. फिर परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रोंको आशीष दी और उन से कहा कि फूलो-फलो, और बढ़ो, और पृय्वी में भर जाओ। 2. और तुम्हारा डर और भय पृय्वी के सब पशुओं, और आकाश के सब पझियों, और भूमि पर के सब रेंगनेवाले जन्तुओं, और समुद्र की सब मछलियोंपर बना रहेगा : वे सब तुम्हारे वश में कर दिए जाते हैं। 3. सब चलनेवाले जन्तु तुम्हारा आहार होंगे; जैसा तुम को हरे हरे छोटे पेड़ दिए थे, वैसा ही अब सब कुछ देता हूं। 4. पर मांस को प्राण समेत अर्यात् लोहू समेत तुम न खाना। 5. और निश्चय मैं तुम्हारा लोहू अर्यात् प्राण का पलटा लूंगा : सब पशुओं, और मनुष्यों, दोनोंसे मैं उसे लूंगा : मनुष्य के प्राण का पलटा मै एक एक के भाई बन्धु से लूंगा। 6. जो कोई मनुष्य का लोहू बहाएगा उसका लोहू मनुष्य ही से बहाथा जाएगा क्योंकि परमेश्वर ने मनुष्य को अपके ही स्वरूप के अनुसार बनाया है। 7. और तुम तो फूलो-फलो, और बढ़ो, और पृय्वी में बहुत बच्चे जन्मा के उस में भर जाओ।। 8. फिर परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रोंसे कहा, 9. सुनों, मैं तुम्हारे साय और तुम्हारे पश्चात् जो तुम्हारा वंश होगा, उसके साय भी वाचा बान्धता हूं। 10. और सब जीवित प्राणियोंसे भी जो तुम्हारे संग है क्या पक्की क्या घरेलू पशु, क्या पृय्वी के सब बनैले पशु, पृय्वी के जितने जीवजन्तु जहाज से निकले हैं; सब के साय भी मेरी यह वाचा बन्धती है : 11. और मै तुम्हारे साय अपक्की इस वाचा को पूरा करूंगा; कि सब प्राणी फिर जलप्रलय से नाश न होंगे : और पृय्वी के नाश करने के लिथे फिर जलप्रलय न होगा। 12. फिर परमेश्वर ने कहा, जो वाचा मै तुम्हारे साय, और जितने जीवित प्राणी तुम्हारे संग हैं उन सब के साय भी युग युग की पीढिय़ोंके लिथे बान्धता हूं; उसका यह चिन्ह है : 13. कि मैं ने बादल मे अपना धनुष रखा है वह मेरे और पृय्वी के बीच में वाचा का चिन्ह होगा। 14. और जब मैं पृय्वी पर बादल फैलाऊं जब बादल में धनुष देख पकेगा। 15. तब मेरी जो वाचा तुम्हारे और सब जीवित शरीरधारी प्राणियोंके साय बान्धी है; उसको मैं स्मरण करूंगा, तब ऐसा जलप्रलय फिर न होगा जिस से सब प्राणियोंका विनाश हो। 16. बादल में जो धनुष होगा मैं उसे देख के यह सदा की वाचा स्मरण करूंगा जो परमेश्वर के और पृय्वी पर के सब जीवित शरीरधारी प्राणियोंके बीच बन्धी है। 17. फिर परमेश्वर ने नूह से कहा जो वाचा मैं ने पृय्वी भर के सब प्राणियोंके साय बान्धी है, उसका चिन्ह यही है।। 18. नूह के जो पुत्र जहाज में से निकले, वे शेम, हाम, और थेपेत थे : और हाम तो कनान का पिता हुआ। 19. नूह के तीन पुत्र थे ही हैं, और इनका वंश सारी पृय्वी पर फैल गया। 20. और नूह किसानी करने लगा, और उस ने दाख की बारी लगाई। 21. और वह दाखमधु पीकर मतवाला हुआ; और अपके तम्बू के भीतर नंगा हो गया। 22. तब कनान के पिता हाम ने, अपके पिता को नंगा देखा, और बाहर आकर अपके दोनोंभाइयोंको बतला दिया। 23. तब शेम और थेपेत दोनोंने कपड़ा लेकर अपके कन्धोंपर रखा, और पीछे की ओर उलटा चलकर अपके पिता के नंगे तन को ढ़ाप दिया, और वे अपना मुख पीछे किए हुए थे इसलिथे उन्होंने अपके पिता को नंगा न देखा। 24. जब नूह का नशा उतर गया, तब उस ने जान लिया कि उसके छोटे पुत्र ने उस से क्या किया है। 25. इसलिथे उस ने कहा, कनान शापित हो : वह अपके भाई बन्धुओं के दासोंका दास हो। 26. फिर उस ने कहा, शेम का परमेश्वर यहोवा धन्य है, और कनान शेम का दास होवे। 27. परमेश्वर थेपेत के वंश को फैलाए; और वह शेम के तम्बुओं मे बसे, और कनान उसका दास होवे। 28. जलप्रलय के पश्चात् नूह साढ़े तीन सौ वर्ष जीवित रहा। 29. और नूह की कुल अवस्या साढ़े नौ सौ वर्ष की हुई : तत्पश्चात् वह मर गया।
Chapter 10
1. नूह के पुत्र जो शेम, हाम और थेपेत थे उनके पुत्र जलप्रलय के पश्चात् उत्पन्न हुए : उनकी वंशावली यह है।। 2. थेपेत के पुत्र : गोमेर, मागोग, मादै, यावान, तूबल, मेशेक, और तीरास हुए। 3. और गोमेर के पुत्र : अशकनज, रीपत, और तोगर्मा हुए। 4. और यावान के वंश में एलीशा, और तर्शीश, और कित्ती, और दोदानी लोग हुए। 5. इनके वंश अन्यजातियोंके द्वीपोंके देशोंमें ऐसे बंट गए, कि वे भिन्न भिन्न भाषाओं, कुलों, और जातियोंके अनुसार अलग अलग हो गए।। 6. फिर हाम के पुत्र : कूश, और मिस्र, और फूत और कनान हुए। 7. और कूश के पुत्र सबा, हवीला, सबता, रामा, और सबूतका हुए : और रामा के पुत्र शबा और ददान हुए। 8. और कूश के वंश में निम्रोद भी हुआ; पृय्वी पर पहिला वीर वही हुआ है। 9. वही यहोवा की दृष्टि में पराक्रमी शिकार खेलनेवाला ठहरा, इस से यह कहावत चक्की है; कि निम्रोद के समान यहोवा की दृष्टि में पराक्रमी शिकार खेलनेवाला। 10. और उसके राज्य का आरम्भ शिनार देश में बाबुल, अक्कद, और कलने हुआ। 11. उस देश से वह निकलकर अश्शूर् को गया, और नीनवे, रहोबोतीर, और कालह को, 12. और नीनवे और कालह के बीच रेसेन है, उसे भी बसाया, बड़ा नगर यही है। 13. और मिस्र के वंश में लूदी, अनामी, लहाबी, नप्तूही, 14. और पत्रुसी, कसलूही, और कप्तोरी लोग हुए, कसलूहियोंमे से तो पलिश्ती लोग निकले।। 15. फिर कनान के वंश में उसका ज्थेष्ठ सीदोन, तब हित्त, 16. और यबूसी, एमोरी, गिर्गाशी, 17. हिव्वी, अर्की, सीनी, 18. अर्वदी, समारी, और हमाती लोग भी हुए : फिर कनानियोंके कुल भी फैल गए। 19. और कनानियोंका सिवाना सीदोन से लेकर गरार के मार्ग से होकर अज्जा तक और फिर सदोम और अमोरा और अदमा और सबोयीम के मार्ग से होकर लाशा तक हुआ। 20. हाम के वंश में थे ही हुए; और थे भिन्न भिन्न कुलों, भाषाओं, देशों, और जातियोंके अनुसार अलग अलग हो गए।। 21. फिर शेम, जो सब एबेरवंशियोंका मूलपुरूष हुआ, और जो थेपेत का ज्थेष्ठ भाई या, उसके भी पुत्र उत्पन्न हुए। 22. शेम के पुत्र : एलाम, अश्शूर्, अर्पझद्, लूद और आराम हुए। 23. और आराम के पुत्र : ऊस, हूल, गेतेर और मश हुए। 24. और अर्पझद् ने शेलह को, और शेलह ने एबेर को जन्म दिया। 25. और एबेर के दो पुत्र उत्पन्न हुए, एक का नाम पेलेग इस कारण रखा गया कि उसके दिनोंमें पृय्वी बंट गई, और उसके भाई का नाम योक्तान है। 26. और योक्तान ने अल्मोदाद, शेलेप, हसर्मावेत, थेरह, 27. यदोरवाम, ऊजाल, दिक्ला, 28. ओबाल, अबीमाएल, शबा, 29. ओपीर, हवीला, और योबाब को जन्म दिया : थे ही सब योक्तान के पुत्र हुए। 30. इनके रहने का स्यान मेशा से लेकर सपारा जो पूर्व में एक पहाड़ है, उसके मार्ग तक हुआ। 31. शेम के पुत्र थे ही हुए; और थे भिन्न भिन्न कुलों, भाषाओं, देशोंऔर जातियोंके अनुसार अलग अलग हो गए।। 32. नूह के पुत्रोंके घराने थे ही हैं : और उनकी जातियोंके अनुसार उनकी वंशावलियां थे ही हैं; और जलप्रलय के पश्चात् पृय्वी भर की जातियां इन्हीं में से होकर बंट गई।।
Chapter 11
1. सारी पृय्वी पर एक ही भाषा, और एक ही बोली यी। 2. उस समय लोग पूर्व की और चलते चलते शिनार देश में एक मैदान पाकर उस में बस गए। 3. तब वे आपस में कहने लगे, कि आओ; हम ईंटें बना बना के भली भंाति आग में पकाएं, और उन्होंने पत्यर के स्यान में ईंट से, और चूने के स्यान में मिट्टी के गारे से काम लिया। 4. फिर उन्होंने कहा, आओ, हम एक नगर और एक गुम्मट बना लें, जिसकी चोटी आकाश से बात करे, इस प्रकार से हम अपना नाम करें ऐसा न हो कि हम को सारी पृय्वी पर फैलना पके। 5. जब लोग नगर और गुम्मट बनाने लगे; तब इन्हें देखने के लिथे यहोवा उतर आया। 6. और यहोवा ने कहा, मैं क्या देखता हूं, कि सब एक ही दल के हैं और भाषा भी उन सब की एक ही है, और उन्होंने ऐसा ही काम भी आरम्भ किया; और अब जितना वे करने का यत्न करेंगे, उस में से कुछ उनके लिथे अनहोना न होगा। 7. इसलिथे आओ, हम उतर के उनकी भाषा में बड़ी गड़बड़ी डालें, कि वे एक दूसरे की बोली को न समझ सकें। 8. इस प्रकार यहोवा ने उनको, वहां से सारी पृय्वी के ऊपर फैला दिया; और उन्होंने उस नगर का बनाना छोड़ दिया। 9. इस कारण उस नगर को नाम बाबुल पड़ा; क्योंकि सारी पृय्वी की भाषा में जो गड़बड़ी है, सो यहोवा ने वहीं डाली, और वहीं से यहोवा ने मनुष्योंको सारी पृय्वी के ऊपर फैला दिया।। 10. शेम की वंशावली यह है। जल प्रलय के दो वर्ष पश्चात् जब शेम एक सौ वर्ष का हुआ, तब उस ने अर्पझद् को जन्म दिया। 11. और अर्पझद् ने जन्म के पश्चात् शेम पांच सौ वर्ष जीवित रहा; और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 12. जब अर्पझद् पैंतीस वर्ष का हुआ, तब उस ने शेलह को जन्म दिया। 13. और शेलह के जन्म के पश्चात् अर्पझद् चार सौ तीन वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 14. जब शेलह तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा एबेर को जन्म हुआ। 15. और एबेर के जन्म के पश्चात् शेलह चार सौ तीन वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 16. जब एबेर चौंतीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा पेलेग का जन्म हुआ। 17. और पेलेग के जन्म के पश्चात् एबेर चार सौ तीस वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 18. जब पेलेग तीस वर्ष को हुआ, तब उसके द्वारा रू का जन्म हुआ। 19. और रू के जन्म के पश्चात् पेलेग दो सौ नौ वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 20. जब रू बत्तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा सरूग का जन्म हुआ। 21. और सरूग के जन्म के पश्चात् रू दो सौ सात वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 22. जब सरूग तीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा नाहोर का जन्म हुआ। 23. और नाहोर के जन्म के पश्चात् सरूग दो सौ वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 24. जब नाहोर उनतीस वर्ष का हुआ, तब उसके द्वारा तेरह का जन्म हुआ। 25. और तेरह के जन्म के पश्चात् नाहोर एक सौ उन्नीस वर्ष और जीवित रहा, और उसके और भी बेटे बेटियां उत्पन्न हुई।। 26. जब तक तेरह सत्तर वर्ष का हुआ, तब तक उसके द्वारा अब्राम, और नाहोर, और हारान उत्पन्न हुए।। 27. तेरह की यह वंशावली है। तेरह ने अब्राम, और नाहोर, और हारान को जन्म दिया; और हारान ने लूत को जन्म दिया। 28. और हारान अपके पिता के साम्हने ही, कस्दियोंके ऊर नाम नगर में, जो उसकी जन्मभूमि यी, मर गया। 29. अब्राम और नाहोर ने स्त्रियां ब्याह लीं : अब्राम की पत्नी का नाम तो सारै, और नाहोर की पत्नी का नाम मिल्का या, यह उस हारान की बेटी यी, जो मिल्का और यिस्का दोनोंका पिता या। 30. सारै तो बांफ यी; उसके संतान न हुई। 31. और तेरह अपना पुत्र अब्राम, और अपना पोता लूत जो हारान का पुत्र या, और अपक्की बहू सारै, जो उसके पुत्र अब्राम की पत्नी यी इन सभोंको लेकर कस्दियोंके ऊर नगर से निकल कनान देश जाने को चला; पर हारान नाम देश में पहुचकर वहीं रहने लगा। 32. जब तेरह दो सौ पांच वर्ष का हुआ, तब वह हारान देश में मर गया।।
Chapter 12
1. यहोवा ने अब्राम से कहा, अपके देश, और अपक्की जन्मभूमि, और अपके पिता के घर को छोड़कर उस देश में चला जा जो मैं तुझे दिखाऊंगा। 2. और मैं तुझ से एक बड़ी जाति बनाऊंगा, और तुझे आशीष दूंगा, और तेरा नाम बड़ा करूंगा, और तू आशीष का मूल होगा। 3. और जो तुझे आशीर्वाद दें, उन्हें मैं आशीष दूंगा; और जो तुझे कोसे, उसे मैं शाप दूंगा; और भूमण्डल के सारे कुल तेरे द्वारा आशीष पाएंगे। 4. यहोवा के इस वचन के अनुसार अब्राम चला; और लूत भी उसके संग चला; और जब अब्राम हारान देश से निकला उस समय वह पचहत्तर वर्ष का या। 5. सो अब्राम अपक्की पत्नी सारै, और अपके भतीजे लूत को, और जो धन उन्होंने इकट्ठा किया या, और जो प्राणी उन्होंने हारान में प्राप्त किए थे, सब को लेकर कनान देश में जाने को निकल चला; और वे कनान देश में आ भी गए। 6. उस देश के बीच से जाते हुए अब्राम शकेम में, जहां मोरे का बांज वृझ है, पंहुचा; उस समय उस देश में कनानी लोग रहते थे। 7. तब यहोवा ने अब्राम को दर्शन देकर कहा, यह देश मैं तेरे वंश को दूंगा : और उस ने वहां यहोवा के लिथे जिस ने उसे दर्शन दिया या, एक वेदी बनाई। 8. फिर वहां से कूच करके, वह उस पहाड़ पर आया, जो बेतेल के पूर्व की ओर है; और अपना तम्बू उस स्यान में खड़ा किया जिसकी पच्छिम की ओर तो बेतेल, और पूर्व की ओर ऐ है; और वहां भी उस ने यहोवा के लिथे एक वेदी बनाई : और यहोवा से प्रार्यना की 9. और अब्राम कूच करके दक्खिन देश की ओर चला गया।। 10. और उस देश में अकाल पड़ा : और अब्राम मिस्र देश को चला गया कि वहां परदेशी होकर रहे -- क्योंकि देश में भयंकर अकाल पड़ा या। 11. फिर ऐसा हुआ कि मिस्र के निकट पहुंचकर, उस ने अपक्की पत्नी सारै से कहा, सुन, मुझे मालूम है, कि तू एक सुन्दर स्त्री है : 12. इस कारण जब मिस्री तुझे देखेंगे, तब कहेंगे, यह उसकी पत्नी है, सो वे मुझ को तो मार डालेंगे, पर तुझ को जीती रख लेंगे। 13. सो यह कहना, कि मैं उसकी बहिन हूं; जिस से तेरे कारण मेरा कल्याण हो और मेरा प्राण तेरे कारण बचे। 14. फिर ऐसा हुआ कि जब अब्राम मिस्र में आया, तब मिस्रियोंने उसकी पत्नी को देखा कि यह अति सुन्दर है। 15. और फिरौन के हाकिमोंने उसको देखकर फिरौन के साम्हने उसकी प्रशंसा की : सो वह स्त्री फिरौन के घर में रखी गई। 16. और उस ने उसके कारण अब्राम की भलाई की; सो उसको भेड़-बकरी, गाय-बैल, दास-दासियां, गदहे-गदहियां, और ऊंट मिले। 17. तब यहोवा ने फिरौन और उसके घराने पर, अब्राम की पत्नी सारै के कारण बड़ी बड़ी विपत्तियां डालीं। 18. सो फिरौन ने अब्राम को बुलवाकर कहा, तू ने मुझ से क्या किया है ? तू ने मुझे क्योंनहीं बताया कि वह तेरी पत्नी है ? 19. तू ने क्योंकहा, कि वह तेरी बहिन है ? मैं ने उसे अपक्की ही पत्नी बनाने के लिथे लिया; परन्तु अब अपक्की पत्नी को लेकर यहां से चला जा। 20. और फिरौन ने अपके आदमियोंको उसके विषय में आज्ञा दी और उन्होंने उसको और उसकी पत्नी को, सब सम्पत्ति समेत जो उसका या, विदा कर दिया।।
Chapter 13
1. तब अब्राम अपक्की पत्नी, और अपक्की सारी सम्पत्ति लेकर, लूत को भी संग लिथे हुए, मिस्र को छोड़कर कनान के दक्खिन देश में आया। 2. अब्राम भेड़-बकरी, गाय-बैल, और सोने-रूपे का बड़ा धनी या। 3. फिर वह दक्खिन देश से चलकर, बेतेल के पास उसी स्यान को पहुंचा, जहां उसका तम्बू पहले पड़ा या, जो बेतेल और ऐ के बीच में है। 4. यह स्यान उस वेदी का है, जिसे उस ने पहले बनाई यी, और वहां अब्राम ने फिर यहोवा से प्रार्यना की। 5. और लूत के पास भी, जो अब्राम के साय चलता या, भेड़-बकरी, गाय-बैल, और तम्बू थे। 6. सो उस देश में उन दोनोंकी समाई न हो सकी कि वे इकट्ठे रहें : क्योंकि उनके पास बहुत धन या इसलिथे वे इकट्ठे न रह सके। 7. सो अब्राम, और लूत की भेड़-बकरी, और गाय-बैल के चरवाहोंके बीच में फगड़ा हुआ : और उस समय कनानी, और परिज्जी लोग, उस देश में रहते थे। 8. तब अब्राम लूत से कहने लगा, मेरे और तेरे बीच, और मेरे और तेरे चरवाहोंके बीच में फगड़ा न होने पाए; क्योंकि हम लोग भाई बन्धु हैं। 9. क्या सारा देश तेरे साम्हने नहीं? सो मुझ से अलग हो, यदि तू बाईं ओर जाए तो मैं दहिनी ओर जाऊंगा; और यदि तू दहिनी ओर जाए तो मैं बाईं ओर जाऊंगा। 10. तब लूत ने आंख उठाकर, यरदन नदी के पास वाली सारी तराई को देखा, कि वह सब सिंची हुई है। 11. जब तक यहोवा ने सदोम और अमोरा को नाश न किया या, तब तक सोअर के मार्ग तक वह तराई यहोवा की बाटिका, और मिस्र देश के समान उपजाऊ यी। 12. अब्राम तो कनान देश में रहा, पर लूत उस तराई के नगरोंमें रहने लगा; और अपना तम्बू सदोम के निकट खड़ा किया। 13. सदोम के लोग यहोवा के लेखे में बड़े दुष्ट और पापी थे। 14. जब लूत अब्राम से अलग हो गया तब उसके पश्चात् यहोवा ने अब्राम से कहा, आंख उठाकर जिस स्यान पर तू है वहां से उत्तर-दक्खिन, पूर्व-पश्चिम, चारोंओर दृष्टि कर। 15. क्योंकि जितनी भूमि तुझे दिखाई देती है, उस सब को मैं तुझे और तेरे वंश को युग युग के लिथे दूंगा। 16. और मैं तेरे वंश को पृय्वी की धूल के किनकोंकी नाई बहुत करूंगा, यहां तक कि जो कोई पृय्वी की धूल के किनकोंको गिन सकेगा वही तेरा वंश भी गिन सकेगा। 17. उठ, इस देश की लम्बाई और चौड़ाई में चल फिर; क्योंकि मैं उसे तुझी को दूंगा। 18. इसके पशचात् अब्राम अपना तम्बू उखाड़कर, मम्रे के बांजोंके बीच जो हेब्रोन में थे जाकर रहने लगा, और वहां भी यहोवा की एक वेदी बनाई।।
Chapter 14
1. शिनार के राजा अम्रापेल, और एल्लासार के राजा अर्योक, और एलाम के राजा कदोर्लाओमेर, और गोयीम के राजा तिदाल के दिनोंमें ऐसा हुआ, 2. कि उन्होंने सदोम के राजा बेरा, और अमोरा के राजा बिर्शा, और अदमा के राजा शिनाब, और सबोयीम के राजा शेमेबेर, और बेला जो सोअर भी कहलाता है, इन राजाओं के विरूद्ध युद्ध किया। 3. इन पांचोंने सिद्दीम नाम तराई में, जो खारे ताल के पास है, एका किया। 4. बारह वर्ष तक तो थे कदोर्लाओमेर के अधीन रहे; पर तेरहवें वर्ष में उसके विरूद्ध उठे। 5. सो चौदहवें वर्ष में कदोर्लाओमेर, और उसके संगी राजा आए, और अशतरोत्कनम में रपाइयोंको, और हाम में जूजियोंको, और शबेकिर्यातैम में एमियोंको, 6. और सेईर नाम पहाड़ में होरियोंको, मारते मारते उस एल्पारान तक जो जंगल के पास है पहुंच गए। 7. वहां से वे लौटकर एन्मिशपात को आए, जो कादेश भी कहलाता है, और अमालेकियोंके सारे देश को, और उन एमोरियोंको भी जीत लिया, जो हससोन्तामार में रहते थे। 8. तब सदोम, अमोरा, अदमा, सबोयीम, और बेला, जो सोअर भी कहलाता है, इनके राजा निकले, और सिद्दीम नाम तराई। में, उनके साय युद्ध के लिथे पांति बान्धी। 9. अर्यात् एलाम के राजा कदोर्लाओमेर, गोयीम के राजा तिदाल, शिनार के राजा अम्रापेल, और एल्लासार के राजा अर्योक, इन चारोंके विरूद्ध उन पांचोंने पांति बान्धी। 10. सिद्दीम नाम तराई में जहां लसार मिट्टी के गड़हे ही गड़हे थे; सदोम और अमोरा के राजा भागते भागते उन में गिर पके, और जो बचे वे पहाड़ पर भाग गए। 11. तब वे सदोम और अमोरा के सारे धन और भोजन वस्तुओं को लूट लाट कर चले गए। 12. और अब्राम का भतीजा लूत, जो सदोम में रहता या; उसको भी धन समेत वे लेकर चले गए। 13. तब एक जन जो भागकर बच निकला या उस ने जाकर इब्री अब्राम को समाचार दिया; अब्राम तो एमोरी मम्रे, जो एश्कोल और आनेर का भाई या, उसके बांज वृझोंके बीच में रहता या; और थे लोग अब्राम के संग वाचा बान्धे हुए थे। 14. यह सुनकर कि उसका भतीजा बन्धुआई में गया है, अब्राम ने अपके तीन सौ अठारह शिझित, युद्ध कौशल में निपुण दासोंको लेकर जो उसके कुटुम्ब में उत्पन्न हुए थे, अस्त्र शस्त्र धारण करके दान तक उनका पीछा किया। 15. और अपके दासोंके अलग अलग दल बान्धकर रात को उन पर चढ़ाई करके उनको मार लिया और होबा तक, जो दमिश्क की उत्तर ओर है, उनका पीछा किया। 16. और सारे धन को, और अपके भतीजे लूत, और उसके धन को, और स्त्रियोंको, और सब बन्धुओं को, लौटा ले आया। 17. जब वह कदोर्लाओमेर और उसके सायी राजाओं को जीतकर लौटा आता या तब सदोम का राजा शावे नाम तराई में, जो राजा की भी कहलाती है, उस से भेंट करने के लिथे आया। 18. जब शालेम का राजा मेल्कीसेदेक, जो परमप्रधान ईश्वर का याजक या, रोटी और दाखमधु ले आया। 19. और उस ने अब्राम को यह आशीर्वाद दिया, कि परमप्रधान ईश्वर की ओर से, जो आकाश और पृय्वी का अधिक्कारनेी है, तू धन्य हो। 20. और धन्य है परमप्रधान ईश्वर, जिस ने तेरे द्रोहियोंको तेरे वश में कर दिया है। तब अब्राम ने उसको सब का दशमांश दिया। 21. जब सदोम के राजा ने अब्राम से कहा, प्राणियोंको तो मुझे दे, और धन को अपके पास रख। 22. अब्राम ने सदोम के राजा ने कहा, परमप्रधान ईश्वर यहोवा, जो आकाश और पृय्वी का अधिक्कारनेी है, 23. उसकी मैं यह शपय खाता हूं, कि जो कुछ तेरा है उस में से न तो मै एक सूत, और न जूती का बन्धन, न कोई और वस्तु लूंगा; कि तू ऐसा न कहने पाए, कि अब्राम मेरे ही कारण धनी हुआ। 24. पर जो कुछ इन जवानोंने खा लिया है और उनका भाग जो मेरे साय गए थे; अर्यात् आनेर, एश्कोल, और मम्रे मैं नहीं लौटाऊंगा वे तो अपना अपना भाग रख लें।।
Chapter 15
1. इन बातोंके पश्चात् यहोवा को यह वचन दर्शन में अब्राम के पास पहुंचा, कि हे अब्राम, मत डर; तेरी ढाल और तेरा अत्यन्त बड़ा फल मैं हूं। 2. अब्राम ने कहा, हे प्रभु यहोवा मैं तो निर्वंश हूं, और मेरे घर का वारिस यह दमिश्की एलीएजेर होगा, सो तू मुझे क्या देगा ? 3. और अब्राम ने कहा, मुझे तो तू ने वंश नहीं दिया, और क्या देखता हूं, कि मेरे घर में उत्पन्न हुआ एक जन मेरा वारिस होगा। 4. तब यहोवा का यह वचन उसके पास पहुंचा, कि यह तेरा वारिस न होगा, तेरा जो निज पुत्र होगा, वही तेरा वारिस होगा। 5. और उस ने उसको बाहर ले जाके कहा, आकाश की ओर दृष्टि करके तारागण को गिन, क्या तू उनको गिन सकता है ? फिर उस ने उस से कहा, तेरा वंश ऐसा ही होगा। 6. उस ने यहोवा पर विश्वास किया; और यहोवा ने इस बात को उसके लेखे में धर्म गिना। 7. और उस ने उस से कहा मैं वही यहोवा हूं जो तुझे कस्दियोंके ऊर नगर से बाहर ले आया, कि तुझ को इस देश का अधिक्कारने दूं। 8. उस ने कहा, हे प्रभु यहोवा मैं कैसे जानूं कि मैं इसका अधिक्कारनेी हूंगा ? 9. यहोवा ने उस से कहा, मेरे लिथे तीन वर्ष की एक कलोर, और तीन वर्ष की एक बकरी, और तीन वर्ष का एक मेंढ़ा, और एक पिण्डुक और कबूतर का एक बच्चा ले। 10. और इन सभोंको लेकर, उस ने बीच में से दो टुकड़े कर दिया, और टुकड़ोंको आम्हने-साम्हने रखा : पर चिडिय़ाओं को उस ने टुकड़े न किया। 11. और जब मांसाहारी पक्की लोयोंपर फपके, तब अब्राम ने उन्हें उड़ा दिया। 12. जब सूर्य अस्त होने लगा, तब अब्राम को भारी नींद आई; और देखो, अत्यन्त भय और अन्धकार ने उसे छा लिया। 13. तब यहोवा ने अब्राम से कहा, यह निश्चय जान कि तेरे वंश पराए देश में परदेशी होकर रहेंगे, और उसके देश के लोगोंके दास हो जाएंगे; और वे उनको चार सौ वर्ष लोंदु:ख देंगे; 14. फिर जिस देश के वे दास होंगे उसको मैं दण्ड दूंगा : और उसके पश्चात् वे बड़ा धन वहां से लेकर निकल आएंगे। 15. तू तो अपके पितरोंमें कुशल के साय मिल जाएगा; तुझे पूरे बुढ़ापे में मिट्टी दी जाएगी। 16. पर वे चौयी पीढ़ी में यहां फिर आएंगे : क्योंकि अब तक एमोरियोंका अधर्म पूरा नहीं हुआ। 17. और ऐसा हुआ कि जब सूर्य अस्त हो गया और घोर अन्धकार छा गया, तब एक अंगेठी जिस में से धुआं उठता या और एक जलता हुआ पक्कीता देख पड़ा जो उन टुकड़ोंके बीच में से होकर निकल गया। 18. उसी दिन यहोवा ने अब्राम के साय यह वाचा बान्धी, कि मिस्र के महानद से लेकर परात नाम बड़े नद तक जितना देश है, 19. अर्यात्, केनियों, कनिज्जियों, कद्क़ोनियों, 20. हित्तियों, पक्कीज्जियों, रपाइयों, 21. एमोरियों, कनानियों, गिर्गाशियोंऔर यबूसियोंका देश मैं ने तेरे वंश को दिया है।।
Chapter 16
1. अब्राम की पत्नी सारै के कोई सन्तान न यी : और उसके हाजिरा नाम की एक मिस्री लौंडी यी। 2. सो सारै ने अब्राम से कहा, देख, यहोवा ने तो मेरी कोख बन्द कर रखी है सो मैं तुझ से बिनती करती हूं कि तू मेरी लौंडी के पास जा : सम्भव है कि मेरा घर उसके द्वारा बस जाए। 3. सो सारै की यह बात अब्राम ने मान ली। सो जब अब्राम को कनान देश में रहते दस वर्ष बीत चुके तब उसकी स्त्री सारै ने अपक्की मिस्री लौंडी हाजिरा को लेकर अपके पति अब्राम को दिया, कि वह उसकी पत्नी हो। 4. और वह हाजिरा के पास गया, और वह गर्भवती हुई और जब उस ने जाना कि वह गर्भवती है तब वह अपक्की स्वामिनी को अपक्की दृष्टि में तुच्छ समझने लगी। 5. तब सारै ने अब्राम से कहा, जो मुझ पर उपद्रव हुआ सो तेरे ही सिर पर हो : मैं ने तो अपक्की लौंडी को तेरी पत्नी कर दिया; पर जब उस ने जाना कि वह गर्भवती है, तब वह मुझे तुच्छ समझने लगी, सो यहोवा मेरे और तेरे बीच में न्याय करे। 6. अब्राम ने सारै से कहा, देख तेरी लौंडी तेरे वश में है : जैसा तुझे भला लगे वैसा ही उसके साय कर। सो सारै उसको दु:ख देने लगी और वह उसके साम्हने से भाग गई। 7. तब यहोवा के दूत ने उसके जंगल में शूर के मार्ग पर जल के एक सोते के पास पाकर कहा, 8. हे सारै की लौंडी हाजिरा, तू कहां से आती और कहां को जाती है ? उस ने कहा, मैं अपक्की स्वामिनी सारै के साम्हने से भग आई हूं। 9. यहोवा के दूत ने उस से कहा, अपक्की स्वामिनी के पास लौट जा और उसके वश में रह। 10. और यहोवा के दूत ने उस से कहा, मैं तेरे वंश को बहुत बढ़ाऊंगा, यहां तक कि बहुतायत के कारण उसकी गणना न हो सकेगी। 11. और यहोवा के दूत ने उस से कहा, देख तू गर्भवती है, और पुत्र जनेगी, सो उसका नाम इश्माएल रखना; क्योंकि यहोवा ने तेरे दु:ख का हाल सुन लिया है। 12. और वह मनुष्य बनैले गदहे के समान होगा उसका हाथ सबके विरूद्ध उठेगा, और सब के हाथ उसके विरूद्ध उठेंगे; और वह अपके सब भाई बन्धुओं के मध्य में बसा रहेगा। 13. तब उस ने यहोवा का नाम जिस ने उस से बातें की यीं, अत्ताएलरोई रखकर कहा कि, कया मैं यहां भी उसको जाते हुए देखने पाई जो मेरा देखनेहारा है ? 14. इस कारण उस कुएं का नाम लहैरोई कुआं पड़ा; वह तो कादेश और बेरेद के बीच में है। 15. सो हाजिरा अब्राम के द्वारा एक पुत्र जनी : और अब्राम ने अपके पुत्र का नाम, जिसे हाजिरा जनी, इश्माएल रखा। 16. जब हाजिरा ने अब्राम के द्वारा इश्माएल को जन्म दिया उस समय अब्राम छियासी वर्ष का या।
Chapter 17
1. जब अब्राम निन्नानवे वर्ष का हो गया, तब यहोवा ने उसको दर्शन देकर कहा मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर हूं; मेरी उपस्यिति में चल और सिद्ध होता जा। 2. और मैं तेरे साय वाचा बान्धूंगा, और तेरे वंश को अत्यन्त ही बढ़ाऊंगा, और तेरे वंश को अत्यन्त ही बढ़ाऊंगा। 3. तब अब्राम मुंह के बल गिरा : और परमेश्वर उस से योंबातें कहता गया, 4. देख, मेरी वाचा तेरे साय बन्धी रहेगी, इसलिथे तू जातियोंके समूह का मूलपिता हो जाएगा। 5. सो अब से तेरा नाम अब्राम न रहेगा परन्तु तेरा नाम इब्राहीम होगा क्योंकि मैं ने तुझे जातियोंके समूह का मूलपिता ठहरा दिया है। 6. और मैं तुझे अत्यन्त ही फुलाऊं फलाऊंगा, और तुझ को जाति जाति का मूल बना दूंगा, और तेरे वंश में राजा उत्पन्न होंगे। 7. और मैं तेरे साय, और तेरे पश्चात् पीढ़ी पीढ़ी तक तेरे वंश के साय भी इस आशय की युग युग की वाचा बान्धता हूं, कि मैं तेरा और तेरे पश्चात् तेरे वंश का भी परमेश्वर रहूंगा। 8. और मैं तुझ को, और तेरे पश्चात् तेरे वंश को भी, यह सारा कनान देश, जिस में तू परदेशी होकर रहता है, इस रीति दूंगा कि वह युग युग उनकी निज भूमि रहेगी, और मैं उनका परमेश्वर रहूंगा। 9. फिर परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, तू भी मेरे साय बान्धी हुई वाचा का पालन करना; तू और तेरे पश्चात् तेरा वंश भी अपक्की अपक्की पीढ़ी में उसका पालन करे। 10. मेरे साय बान्धी हुई वाचा, जो तुझे और तेरे पश्चात् तेरे वंश को पालनी पकेगी, सो यह है, कि तुम में से एक एक पुरूष का खतना हो। 11. तुम अपक्की अपक्की खलड़ी का खतना करा लेना; जो वाचा मेरे और तुम्हारे बीच में है, उसका यही चिन्ह होगा। 12. पीढ़ी पीढ़ी में केवल तेरे वंश ही के लोग नहीं पर जो तेरे घर में उत्पन्न हों, वा परदेशियोंको रूपा देकर मोल लिथे जाएं, ऐसे सब पुरूष भी जब आठ दिन के होंजाएं, तब उनका खतना किया जाए। 13. जो तेरे घर में उत्पन्न हो, अयवा तेरे रूपे से मोल लिया जाए, उसका खतना अवश्य ही किया जाए; सो मेरी वाचा जिसका चिन्ह तुम्हारी देह में होगा वह युग युग रहेगी। 14. जो पुरूष खतनारहित रहे, अर्यात् जिसकी खलड़ी का खतना न हो, वह प्राणी अपके लोगोंमे से नाश किया जाए, क्योंकि उस ने मेरे साय बान्धी हुई वाचा को तोड़ दिया।। 15. फिर परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, तेरी जो पत्नी सारै है, उसको तू अब सारै न कहना, उसका नाम सारा होगा। 16. और मैं उसको आशीष दूंगा, और तुझ को उसके द्वारा एक पुत्र दूंगा; और मैं उसको ऐसी आशीष दूंगा, कि वह जाति जाति की मूलमाता हो जाएगी; और उसके वंश में राज्य राज्य के राजा उत्पन्न होंगे। 17. तब इब्राहीम मुंह के बल गिर पड़ा और हंसा, और अपके मन ही मन कहने लगा, क्या सौ वर्ष के पुरूष के भी सन्तान होगा और क्या सारा जो नब्बे वर्ष की है पुत्र जनेगी ? 18. और इब्राहीम ने परमेश्वर से कहा, इश्माएल तेरी दृष्टि में बना रहे! यही बहुत है। 19. तब परमेश्वर ने कहा, निश्चय तेरी पत्नी सारा के तुझ से एक पुत्र उत्पन्न होगा; और तू उसका नाम इसहाक रखना : और मैं उसके साय ऐसी वाचा बान्धूंगा जो उसके पश्चात् उसके वंश के लिथे युग युग की वाचा होगी। 20. और इश्माएल के विषय में भी मै ने तेरी सुनी है : मैं उसको भी आशीष दूंगा, और उसे फुलाऊं फलाऊंगा और अत्यन्त ही बढ़ा दूंगा; उस से बारह प्रधान उत्पन्न होंगे, और मैं उस से एक बड़ी जाति बनाऊंगा। 21. परन्तु मैं अपक्की वाचा इसहाक ही के साय बान्धूंगा जो सारा से अगले वर्ष के इसी नियुक्त समय में उत्पन्न होगा। 22. तब परमेश्वर ने इब्राहीम से बातें करनी बन्द कीं और उसके पास से ऊपर चढ़ गया। 23. तब इब्राहीम ने अपके पुत्र इश्माएल को, उसके घर में जितने उत्पन्न हुए थे, और जितने उसके रूपके से मोल लिथे गए थे, निदान उसके घर में जितने पुरूष थे, उन सभोंको लेके उसी दिन परमेश्वर के वचन के अनुसार उनकी खलड़ी का खतना किया। 24. जब इब्राहीम की खलड़ी का खतना हुआ तब वह निन्नानवे वर्ष का या। 25. और जब उसके पुत्र इश्माएल की खलड़ी का खतना हुआ तब वह तेरह वर्ष का या। 26. इब्राहीम और उसके पुत्र इश्माएल दोनोंका खतना एक ही दिन हुआ। 27. और उसके घर में जितने पुरूष थे जो घर में उत्पन्न हुए, तया जो परदेशियोंके हाथ से मोल लिथे गए थे, सब का खतना उसके साय ही हुआ।।
Chapter 18
1. इब्राहीम मम्रे के बांजो के बीच कड़ी धूप के समय तम्बू के द्वार पर बैठा हुआ या, तब यहोवा ने उसे दर्शन दिया : 2. और उस ने आंख उठाकर दृष्टि की तो क्या देखा, कि तीन पुरूष उसके साम्हने खड़े हैं : जब उस ने उन्हे देखा तब वह उन से भेंट करने के लिथे तम्बू के द्वार से दौड़ा, और भूमि पर गिरकर दण्डवत् की और कहने लगा, 3. हे प्रभु, यदि मुझ पर तेरी अनुग्रह की दृष्टि है तो मैं बिनती करता हूं, कि अपके दास के पास से चले न जाना। 4. मैं योड़ा सा जल लाता हूं और आप अपके पांव धोकर इस वृझ के तले विश्रम करें। 5. फिर मैं एक टुकड़ा रोटी ले आऊं और उस से आप अपके जीव को तृप्त करें; तब उसके पश्चात् आगे बढें : क्योंकि आप अपके दास के पास इसी लिथे पधारे हैं। उन्होंने कहा, जैसा तू कहता है वैसा ही कर। 6. सो इब्राहीम ने तम्बू में सारा के पास फुर्ती से जाकर कहा, तीन सआ मैदा फुर्ती से गून्ध, और फुलके बना। 7. फिर इब्राहीम गाय बैल के फुण्ड में दौड़ा, और एक कोमल और अच्छा बछड़ा लेकर अपके सेवक को दिया, और उसने फुर्ती से उसको पकाया। 8. तब उस ने मक्खन, और दूध, और वह बछड़ा, जो उस ने पकवाया या, लेकर उनके आगे परोस दिया; और आप वृझ के तले उनके पास खड़ा रहा, और वे खाने लगे। 9. उन्होंने उस से पूछा, तेरी पत्नी सारा कहां है? उस ने कहा, वह तो तम्बू में है। 10. उस ने कहा मैं वसन्त ऋतु में निश्चय तेरे पास फिर आऊंगा; और तब तेरी पत्नी सारा के एक पुत्र उत्पन्न होगा। और सारा तम्बू के द्वार पर जो इब्राहीम के पीछे या सुन रही यी। 11. इब्राहीम और सारा दोनो बहुत बूढ़े थे; और सारा का स्त्रीधर्म बन्द हो गया या 12. सो सारा मन में हंस कर कहने लगी, मैं तो बूढ़ी हूं, और मेरा पति भी बूढ़ा है, तो क्या मुझे यह सुख होगा? 13. तब यहोवा ने इब्राहीम से कहा, सारा यह कहकर कयोंहंसी, कि क्या मेरे, जो ऐसी बुढिय़ा हो गई हूं, सचमुच एक पुत्र उत्पन्न होगा? 14. क्या यहोवा के लिथे कोई काम कठिन है? नियत समय में, अर्यात् वसन्त ऋतु में, मैं तेरे पास फिर आऊंगा, और सारा के पुत्र उत्पन्न होगा। 15. तब सारा डर के मारे यह कहकर मुकर गई, कि मैं नहीं हंसी। उस ने कहा, नहीं; तू हंसी तो यी।। 16. फिर वे पुरूष वहां से चलकर, सदोम की ओर ताकने लगे : और इब्राहीम उन्हें विदा करने के लिथे उनके संग संग चला। 17. तब यहोवा ने कहा, यह जो मैं करता हूं सो क्या इब्राहीम से छिपा रखूं ? 18. इब्राहीम से तो निश्चय एक बड़ी और सामर्यी जाति उपकेगी, और पृय्वी की सारी जातियां उसके द्वारा आशीष पाएंगी। 19. क्योंकि मैं जानता हूं, कि वह अपके पुत्रोंऔर परिवार को जो उसके पीछे रह जाएंगे आज्ञा देगा कि वे यहोवा के मार्ग में अटल बने रहें, और धर्म और न्याय करते रहें, इसलिथे कि जो कुछ यहोवा ने इब्राहीम के विषय में कहा है उसे पूरा करे। 20. क्योंकि मैं जानता हूं, कि वह अपके पुत्रोंऔर परिवार को जो उसके पीछे रह जाएंगे आज्ञा देगा कि वे यहोवा के मार्ग में अटल बने रहें, और धर्म और न्याय करते रहें, इसलिथे कि जो कुछ यहोवा ने इब्राहीम के विषय में कहा है उसे पूरा करे। 21. इसलिथे मैं उतरकर देखूंगा, कि उसकी जैसी चिल्लाहट मेरे कान तक पहुंची है, उन्होंने ठीक वैसा ही काम किया है कि नहीं : और न किया हो तो मैं उसे जान लूंगा। 22. सो वे पुरूष वहां से मुड़ के सदोम की ओर जाने लगे : पर इब्राहीम यहोवा के आगे खड़ा रह गया। 23. तब इब्राहीम उसके समीप जाकर कहने लगा, क्या सचमुच दुष्ट के संग धर्मी को भी नाश करेगा ? 24. कदाचित् उस नगर में पचास धर्मी हों: तो क्या तू सचमुच उस स्यान को नाश करेगा और उन पचास धमिर्योंके कारण जो उस में हो न छोड़ेगा ? 25. इस प्रकार का काम करना तुझ से दूर रहे कि दुष्ट के संग धर्मी को भी मार डाले और धर्मी और दुष्ट दोनोंकी एक ही दशा हो। 26. यहोवा ने कहा यदि मुझे सदोम में पचास धर्मी मिलें, तो उनके कारण उस सारे स्यान को छोडूंगा। 27. फिर इब्राहीम ने कहा, हे प्रभु, सुन मैं तो मिट्टी और राख हूं; तौभी मैं ने इतनी ढिठाई की कि तुझ से बातें करूं। 28. कदाचित् उन पचास धमिर्योंमे पांच घट जाए : तो क्या तू पांच ही के घटने के कारण उस सारे नगर का नाश करेगा ? उस ने कहा, यदि मुझे उस में पैंतालीस भी मिलें, तौभी उसका नाश न करूंगा। 29. फिर उस ने उस से यह भी कहा, कदाचित् वहां चालीस मिलें। उस ने कहा, तो मैं चालीस के कारण भी ऐसा ने करूंगा। 30. फिर उस ने कहा, हे प्रभु, क्रोध न कर, तो मैं कुछ और कहूं : कदाचित् वहां तीस मिलें। उस ने कहा यदि मुझे वहां तीस भी मिलें, तौभी ऐसा न करूंगा। 31. फिर उस ने कहा, हे प्रभु, सुन, मैं ने इतनी ढिठाई तो की है कि तुझ से बातें करूं : कदाचित् उस में बीस मिलें। उस ने कहा, मैं बीस के कारण भी उसका नाश न करूंगा। 32. फिर उस ने कहा, हे प्रभु, क्रोध न कर, मैं एक ही बार और कहूंगा : कदाचित् उस में दस मिलें। उस ने कहा, तो मैं दस के कारण भी उसका नाश न करूंगा। 33. जब यहोवा इब्राहीम से बातें कर चुका, तब चला गया : और इब्राहीम अपके घर को लौट गया।।
Chapter 19
1. सांफ को वे दो दूत सदोम के पास आए : और लूत सदोम के फाटक के पास बैठा या : सो उनको देखकर वह उन से भेंट करने के लिथे उठा; और मुंह के बल फुककर दण्डवत् कर कहा; 2. हे मेरे प्रभुओं, अपके दास के घर में पधारिए, और रात भर विश्रम कीजिए, और अपके पांव धोइथे, फिर भोर को उठकर अपके मार्ग पर जाइए। उन्होंने कहा, नहीं; हम चौक ही में रात बिताएंगे। 3. और उस ने उन से बहुत बिनती करके उन्हें मनाया; सो वे उसके साय चलकर उसके घर में आए; और उस ने उनके लिथे जेवनार तैयार की, और बिना खमीर की रोटियां बनाकर उनको खिलाई। 4. उनके सो जाने के पहिले, उस सदोम नगर के पुरूषोंने, जवानोंसे लेकर बूढ़ोंतक, वरन चारोंओर के सब लोगोंने आकर उस घर को घेर लिया; 5. और लूत को पुकारकर कहने लगे, कि जो पुरूष आज रात को तेरे पास आए हैं वे कहां हैं? उनको हमारे पास बाहर ले आ, कि हम उन से भोग करें। 6. तब लूत उनके पास द्वार बाहर गया, और किवाड़ को अपके पीछे बन्द करके कहा, 7. हे मेरे भाइयों, ऐसी बुराई न करो। 8. सुनो, मेरी दो बेटियां हैं जिन्होंने अब तक पुरूष का मुंह नहीं देखा, इच्छा हो तो मैं उन्हें तुम्हारे पास बाहर ले आऊं, और तुम को जैसा अच्छा लगे वैसा व्यवहार उन से करो : पर इन पुरूषोंसे कुछ न करो; क्योंकि थे मेरी छत के तले आए हैं। 9. उनहोंने कहा, हट जा। फिर वे कहने लगे, तू एक परदेशी होकर यहां रहने के लिथे आया पर अब न्यायी भी बन बैठा है : सो अब हम उन से भी अधिक तेरे साय बुराई करेंगे। और वे पुरूष लूत को बहुत दबाने लगे, और किवाड़ तोड़ने के लिथे निकट आए। 10. तब उन पाहुनोंने हाथ बढ़ाकर, लूत को अपके पास घर में खींच लिया, और किवाड़ को बन्द कर दिया। 11. और उन्होंने क्या छोटे, क्या बड़े, सब पुरूषोंको जो घर के द्वार पर थे अन्धा कर दिया, सो वे द्वार को टटोलते टटोलते यक गए। 12. फिर उन पाहुनोंने लूत से पूछा, यहां तेरे और कौन कौन हैं? दामाद, बेटे, बेटियां, वा नगर में तेरा जो कोई हो, उन सभोंको लेकर इस स्यान से निकल जा। 13. क्योंकि हम यह स्यान नाश करने पर हैं, इसलिथे कि उसकी चिल्लाहट यहोवा के सम्मुख बढ़ गई है; और यहोवा ने हमें इसका सत्यनाश करने के लिथे भेज दिया है। 14. तब लूत ने निकलकर अपके दामादोंको, जिनके साय उसकी बेटियोंकी सगाई हो गई यी, समझा के कहा, उठो, इस स्यान से निकल चलो : क्योंकि यहोवा इस नगर को नाश किया चाहता है। पर वह अपके दामादोंकी दृष्टि में ठट्ठा करनेहारा सा जान पड़ा। 15. जब पह फटने लगी, तब दूतोंने लूत से फुर्ती कराई और कहा, कि उठ, अपक्की पत्नी और दोनो बेटियोंको जो यहां हैं ले जा : नहीं तो तू भी इस नगर के अधर्म में भस्म हो जाएगा। 16. पर वह विलम्ब करता रहा, इस से उन पुरूषोंने उसका और उसकी पत्नी, और दोनोंबेटियोंको हाथ पकड़ लिया; क्योंकि यहोवा की दया उस पर यी : और उसको निकालकर नगर के बाहर कर दिया। 17. और ऐसा हुआ कि जब उन्होंने उनको बाहर निकाला, तब उस ने कहा अपना प्राण लेकर भाग जा; पीछे की और न ताकना, और तराई भर में न ठहरना; उस पहाड़ पर भाग जाना, नहीं तो तू भी भस्म हो जाएगा। 18. लूत ने उन से कहा, हे प्रभु, ऐसा न कर : 19. देख, तेरे दास पर तेरी अनुग्रह की दृष्टि हुई है, और तू ने इस में बड़ी कृपा दिखाई, कि मेरे प्राण को बचाया है; पर मैं पहाड़ पर भाग नहीं सकता, कहीं ऐसा न हो, कि कोई विपत्ति मुझ पर आ पके, और मैं मर जाऊं : 20. देख, वह नगर ऐसा निकट है कि मैं वहां भाग सकता हूं, और वह छोटा भी है : मुझे वहीं भाग जाने दे, क्या वह छोटा नहीं हैं? और मेरा प्राण बच जाएगा। 21. उस ने उस से कहा, देख, मैं ने इस विषय में भी तेरी बिनती अंगीकार की है, कि जिस नगर की चर्चा तू ने की है, उसको मैं नाश न करूंगा। 22. फुर्ती से वहां भाग जा; क्योंकि जब तक तू वहां न पहुचे तब तक मैं कुछ न कर सकूंगा। इसी कारण उस नगर का नाम सोअर पड़ा। 23. लूत के सोअर के निकट पहुचते ही सूर्य पृय्वी पर उदय हुआ। 24. तब यहोवा ने अपक्की ओर से सदोम और अमोरा पर आकाश से गन्धक और आग बरसाई; 25. और उन नगरोंको और सम्पूर्ण तराई को, और नगरोंको और उस सम्पूर्ण तराई को, और नगरोंके सब निवासिक्कों, भूमि की सारी उपज समेत नाश कर दिया। 26. लूत की पत्नी ने जो उसके पीछे यी दृष्टि फेर के पीछे की ओर देखा, और वह नमक का खम्भा बन गई। 27. भोर को इब्राहीम उठकर उस स्यान को गया, जहां वह यहोवा के सम्मुख खड़ा या; 28. और सदोम, और अमोरा, और उस तराई के सारे देश की ओर आंख उठाकर क्या देखा, कि उस देश में से धधकती हुई भट्टी का सा धुआं उठ रहा है। 29. और ऐसा हुआ, कि जब परमेश्वर ने उस तराई के नगरोंको, जिन में लूत रहता या, उलट पुलट कर नाश किया, तब उस ने इब्राहीम को याद करके लूत को उस घटना से बचा लिया। 30. और लूत ने सोअर को छोड़ दिया, और पहाड़ पर अपक्की दोनोंबेटियोंसमेत रहने लगा; क्योंकि वह सोअर में रहने से डरता या : इसलिथे वह और उसकी दोनोंबेटियां वहां एक गुफा में रहने लगे। 31. तब बड़ी बेटी ने छोटी से कहा, हमारा पिता बूढ़ा है, और पृय्वी भर में कोई ऐसा पुरूष नहीं जो संसार की रीति के अनुसार हमारे पास आए : 32. सो आ, हम अपके पिता को दाखमधु पिलाकर, उसके साय सोएं, जिस से कि हम अपके पिता के वंश को बचाए रखें। 33. सो उन्होंने उसी दिन रात के समय अपके पिता को दाखमधु पिलाया, तब बड़ी बेटी जाकर अपके पिता के पास लेट गई; पर उस ने न जाना, कि वह कब लेटी, और कब उठ गई। 34. और ऐसा हुआ कि दूसरे दिन बड़ी ने छोटी से कहा, देख, कल रात को मैं अपके पिता के साय सोई : सो आज भी रात को हम उसको दाखमधु पिलाएं; तब तू जाकर उसके साय सोना कि हम अपके पिता के द्वारा वंश उत्पन्न करें। 35. सो उन्होंने उस दिन भी रात के समय अपके पिता को दाखमधु पिलाया : और छोटी बेटी जाकर उसके पास लौट गई : पर उसको उसके भी सोने और उठने के समय का ज्ञान न या। 36. इस प्रकार से लूत की दोनो बेटियां अपके पिता से गर्भवती हुई। 37. और बड़ी एक पुत्र जनी, और उसका नाम मोआब रखा : वह मोआब नाम जाति का जो आज तक है मूलपिता हुआ। 38. और छोटी भी एक पुत्र जनी, और उसका नाम बेनम्मी रखा; वह अम्मोन् वंशियोंका जो आज तक हैं मूलपिता हुआ।।
Chapter 20
1. फिर इब्राहीम वहां से कूच कर दक्खिन देश में आकर कादेश और शूर के बीच में ठहरा, और गरार में रहने लगा। 2. और इब्राहीम अपक्की पत्नी सारा के विषय में कहने लगा, कि वह मेरी बहिन है : सो गरार के राजा अबीमेलेक ने दूत भेजकर सारा को बुलवा लिया। 3. रात को परमेश्वर ने स्वप्न में अबीमेलेक के पास आकर कहा, सुन, जिस स्त्री को तू ने रख लिया है, उसके कारण तू मर जाएगा, क्योंकि वह सुहागिन है। 4. परन्तु अबीमेलेक उसके पास न गया या : सो उस ने कहा, हे प्रभु, क्या तू निर्दोष जाति का भी घात करेगा ? 5. क्या उसी ने स्वयं मुझ से नहीं कहा, कि वह मेरी बहिन है ? और उस स्त्री ने भी आप कहा, कि वह मेरा भाई है : मैं ने तो अपके मन की खराई और अपके व्यवहार की सच्चाई से यह काम किया। 6. परमेश्वर ने उस से स्वप्न में कहा, हां, मैं भी जानता हूं कि अपके मन की खराई से तू ने यह काम किया है और मैं ने तुझे रोक भी रखा कि तू मेरे विरूद्ध पाप न करे : इसी कारण मैं ने तुझ को उसे छूने नहीं दिया। 7. सो अब उस पुरूष की पत्नी को उसे फेर दे; क्योंकि वह नबी है, और तेरे लिथे प्रार्यना करेगा, और तू जीता रहेगा : पर यदि तू उसको न फेर दे तो जान रख, कि तू, और तेरे जितने लोग हैं, सब निश्चय मर जाएंगे। 8. बिहान को अबीमेलेक ने तड़के उठकर अपके सब कर्मचारियोंको बुलवाकर थे सब बातें सुनाई : और वे लोग बहुत डर गए। 9. तब अबीमेलेक ने इब्राहीम को बुलवाकर कहा, तू ने हम से यह क्या किया है ? और मैं ने तेरा क्या बिगाड़ा या, कि तू ने मेरे और मेरे राज्य के ऊपर ऐसा बड़ा पाप डाल दिया है ? तू ने मुझ से वह काम किया है जो उचित न या। 10. फिर अबीमेलेक ने इब्राहीम से पूछा, तू ने क्या समझकर ऐसा काम किया ? 11. इब्राहीम ने कहा, मैं ने यह सोचा या, कि इस स्यान में परमेश्वर का कुछ भी भय न होगा; सो थे लोग मेरी पत्नी के कारण मेरा घात करेंगे। 12. और फिर भी सचमुच वह मेरी बहिन है, वह मेरे पिता की बेटी तो है पर मेरी माता की बेटी नहीं; फिर वह मेरी पत्नी हो गई। 13. और ऐसा हुआ कि जब परमेश्वर ने मुझे अपके पिता का घर छोड़कर निकलने की आज्ञा दी, तब मैं ने उस से कहा, इतनी कृपा तुझे मुझ पर करनी होगी : कि हम दोनोंजहां जहां जाएं वहां वहां तू मेरे विषय में कहना, कि यह मेरा भाई है। 14. तब अबीमेलेक ने भेड़-बकरी, गाय-बैल, और दास-दासियां लेकर इब्राहीम को दीं, और उसकी पत्नी सारा को भी उसे फेर दिया। 15. और अबीमेलेक ने कहा, देख, मेरा देश तेरे साम्हने है; जहां तुझे भावे वहां रह। 16. और सारा से उस ने कहा, देख, मैं ने तेरे भाई को रूपे के एक हजार टुकड़े दिए हैं : देख, तेरे सारे संगियोंके साम्हने वही तेरी आंखोंका पर्दा बनेगा, और सभोंके साम्हने तू ठीक होगी। 17. तब इब्राहीम ने यहोवा से प्रार्यना की, और यहोवा ने अबीमेलेक, और उसकी पत्नी, और दासिक्कों चंगा किया और वे जनने लगीं। 18. क्योंकि यहोवा ने इब्राहीम की पत्नी सारा के कारण अबीमेलेक के घर की सब स्त्रियोंकी कोखोंको पूरी रीति से बन्द कर दिया या।।
Chapter 21
1. सो यहोवा ने जैसा कहा या वैसा ही सारा की सुधि लेके उसके साय अपके वचन के अनुसार किया। 2. सो सारा को इब्राहीम से गर्भवती होकर उसके बुढ़ापे में उसी नियुक्त समय पर जो परमेश्वर ने उस से ठहराया या एक पुत्र उत्पन्न हुआ। 3. और इब्राहीम ने अपके पुत्र का नाम जो सारा से उत्पन्न हुआ या इसहाक रखा। 4. और जब उसका पुत्र इसहाक आठ दिन का हुआ, तब उस ने परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार उसक खतना किया। 5. और जब इब्राहीम का पुत्र इसहाक उत्पन्न हुआ तब वह एक सौ वर्ष का या। 6. और सारा ने कहा, परमेश्वर ने मुझे प्रफुल्लित कर दिया है; इसलिथे सब सुननेवाले भी मेरे साय प्रफुल्लित होंगे। 7. फिर उस ने यह भी कहा, कि क्या कोई कभी इब्राहीम से कह सकता या, कि सारा लड़कोंको दूध पिलाएगी ? पर देखो, मुझ से उसके बुढ़ापे में एक पुत्र उत्पन्न हुआ। 8. और वह लड़का बढ़ा और उसका दूध छुड़ाया गया : और इसहाक के दूध छुड़ाने के दिन इब्राहीम ने बड़ी जेवनार की। 9. तब सारा को मिस्री हाजिरा का पुत्र, जो इब्राहीम से उत्पन्न हुआ या, हंसी करता हुआ देख पड़ा। 10. सो इस कारण उस ने इब्राहीम से कहा, इस दासी को पुत्र सहित बरबस निकाल दे : क्योंकि इस दासी का पुत्र मेरे पुत्र इसहाक के साय भागी न होगा। 11. यह बात इब्राहीम को अपके पुत्र के कारण बुरी लगी। 12. तब परमेश्वर ने इब्राहीम से कहा, उस लड़के और अपक्की दासी के कारण तुझे बुरा न लगे; जो बात सारा तुझ से कहे, उसे मान, क्योंकि जो तेरा वंश कहलाएगा सो इसहाक ही से चलेगा। 13. दासी के पुत्र से भी मैं एक जाति उत्पन्न करूंगा इसलिथे कि वह तेरा वंश है। 14. सो इब्राहीम ने बिहान को तड़के उठकर रोटी और पानी से भरी चमड़े की यैली भी हाजिरा को दी, और उसके कन्धे पर रखी, और उसके लड़के को भी उसे देकर उसको विदा किया : सो वह चक्की गई, और बेर्शेबा के जंगल में भ्रमण करने लगी। 15. जब यैली का जल चुक गया, तब उस ने लड़के को एक फाड़ी के नीचे छोड़ दिया। 16. और आप उस से तीर भर के टप्पे पर दूर जाकर उसके साम्हने यह सोचकर बैठ गई, कि मुझ को लड़के की मृत्यु देखनी न पके। तब वह उसके साम्हने बैठी हुई चिल्ला चिल्ला के रोने लगी। 17. और परमेश्वर ने उस लड़के की सुनी; और उसके दूत ने स्वर्ग से हाजिरा को पुकार के कहा, हे हाजिरा तुझे क्या हुआ ? मत डर; क्योंकि जहां तेरा लड़का है वहां से उसकी आवाज परमेश्वर को सुन पक्की है। 18. उठ, अपके लड़के को उठा और अपके हाथ से सम्भाल क्योंकि मैं उसके द्वारा एक बड़ी जाति बनाऊंगा। 19. परमेश्वर ने उसकी आंखे खोल दी, और उसको एक कुंआ दिखाई पड़ा; सो उस ने जाकर यैली को जल से भरकर लड़के को पिलाया। 20. और परमेश्वर उस लड़के के साय रहा; और जब वह बड़ा हुआ, तब जंगल में रहते रहते धनुर्धारी बन गया। 21. वह तो पारान नाम जंगल में रहा करता या : और उसकी माता ने उसके लिथे मिस्र देश से एक स्त्री मंगवाई।। 22. उन दिनोंमें ऐसा हुआ कि अबीमेलेक अपके सेनापति पीकोल को संग लेकर इब्राहीम से कहने लगा, जो कुछ तू करता है उस में परमेश्वर तेरे संग रहता है : 23. सो अब मुझ से यहां इस विषय में परमेश्वर की किरिया खा, कि तू न तो मुझ से छल करेगा, और न कभी मेरे वंश से करेगा, परन्तु जैसी करूणा मैं ने तुझ पर की है, वैसी ही तू मुझ पर और इस देश पर भी जिस में तू रहता है करेगा 24. इब्राहीम ने कहा, मैं किरिया खाऊंगा। 25. और इब्राहीम ने अबीमेलेक को एक कुएं के विषय में, जो अबीमेलेक के दासोंने बरीयाई से ले लिया या, उलाहना दिया। 26. तब अबीमेलेक ने कहा, मै नहीं जानता कि किस ने यह काम किया : और तू ने भी मुझे नहीं बताया, और न मै ने आज से पहिले इसके विषय में कुछ सुना। 27. तक इब्राहीम ने भेड़-बकरी, और गाय-बैल लेकर अबीमेलेक को दिए; और उन दोनोंने आपस में वाचा बान्धी। 28. और इब्राहीम ने भेड़ की सात बच्ची अलग कर रखीं। 29. तब अबीमेलेक ने इब्राहीम से पूछा, इन सात बच्चियोंका, जो तू ने अलग कर रखी हैं, क्या प्रयोजन है ? 30. उस ने कहा, तू इन सात बच्चियोंको इस बात की साझी जानकर मेरे हाथ से ले, कि मै ने कुंआ खोदा है। 31. उन दोनोंने जो उस स्यान में आपस में किरिया खाई, इसी कारण उसका नाम बेर्शेबा पड़ा। 32. जब उन्होंने बेर्शेबा में परस्पर वाचा बान्धी, तब अबीमेलेक, और उसका सेनापति पीकोल उठकर पलिश्तियोंके देश में लौट गए। 33. और इब्राहीम ने बेर्शेबा में फाऊ का एक वृझ लगाया, और वहां यहोवा, जो सनातन ईश्वर है, उस से प्रार्यना की। 34. और इब्राहीम पलिश्तियोंके देश में बहुत दिनोंतक परदेशी होकर रहा।।
Chapter 22
1. इन बातोंके पश्चात् ऐसा हुआ कि परमेश्वर ने, इब्राहीम से यह कहकर उसकी पक्कीझा की, कि हे इब्राहीम : उस ने कहा, देख, मैं यहां हूं। 2. उस ने कहा, अपके पुत्र को अर्यात् अपके एकलौते पुत्र इसहाक को, जिस से तू प्रेम रखता है, संग लेकर मोरिय्याह देश में चला जा, और वहां उसको एक पहाड़ के ऊपर जो मैं तुझे बताऊंगा होमबलि करके चढ़ा। 3. सो इब्राहीम बिहान को तड़के उठा और अपके गदहे पर काठी कसकर अपके दो सेवक, और अपके पुत्र इसहाक को संग लिया, और होमबलि के लिथे लकड़ी चीर ली; तब कूच करके उस स्यान की ओर चला, जिसकी चर्चा परमेश्वर ने उस से की यी। 4. तीसरे दिन इब्राहीम ने आंखें उठाकर उस स्यान को दूर से देखा। 5. और उस ने अपके सेवकोंसे कहा गदहे के पास यहीं ठहरे रहो; यह लड़का और मैं वहां तक जाकर, और दण्डवत् करके, फिर तुम्हारे पास लौट आऊंगा। 6. सो इब्राहीम ने होमबलि की लकड़ी ले अपके पुत्र इसहाक पर लादी, और आग और छुरी को अपके हाथ में लिया; और वे दोनोंएक साय चल पके। 7. इसहाक ने अपके पिता इब्राहीम से कहा, हे मेरे पिता; उस ने कहा, हे मेरे पुत्र, क्या बात है उस ने कहा, देख, आग और लकड़ी तो हैं; पर होमबलि के लिथे भेड़ कहां है ? 8. इब्राहीम ने कहा, हे मेरे पुत्र, परमेश्वर होमबलि की भेड़ का उपाय आप ही करेगा। 9. सो वे दोनोंसंग संग आगे चलते गए। और वे उस स्यान को जिसे परमेश्वर ने उसको बताया या पहुंचे; तब इब्राहीम ने वहां वेदी बनाकर लकड़ी को चुन चुनकर रखा, और अपके पुत्र इसहाक को बान्ध के वेदी पर की लकड़ी के ऊपर रख दिया। 10. और इब्राहीम ने हाथ बढ़ाकर छुरी को ले लिया कि अपके पुत्र को बलि करे। 11. तब यहोवा के दूत ने स्वर्ग से उसको पुकार के कहा, हे इब्राहीम, हे इब्राहीम; उस ने कहा, देख, मैं यहां हूं। 12. उस ने कहा, उस लड़के पर हाथ मत बढ़ा, और न उस से कुछ कर : क्योंकि तू ने जो मुझ से अपके पुत्र, वरन अपके एकलौते पुत्र को भी, नहीं रख छोड़ा; इस से मै अब जान गया कि तू परमेश्वर का भय मानता है। 13. तब इब्राहीम ने आंखे उठाई, और क्या देखा, कि उसके पीछे एक मेढ़ा अपके सींगो से एक फाड़ी में बफा हुआ है : सो इब्राहीम ने जाके उस मेंढ़े को लिया, और अपके पुत्र की सन्ती होमबलि करके चढ़ाया। 14. और इब्राहीम ने उस स्यान का नाम यहोवा यिरे रखा : इसके अनुसार आज तक भी कहा जाता है, कि यहोवा के पहाड़ पर उपाय किया जाएगा। 15. फिर यहोवा के दूत ने दूसरी बार स्वर्ग से इब्राहीम को पुकार के कहा, 16. यहोवा की यह वाणी है, कि मैं अपक्की ही यह शपय खाता हूं, कि तू ने जो यह काम किया है कि अपके पुत्र, वरन अपके एकलौते पुत्र को भी, नहीं रख छोड़ा; 17. इस कारण मैं निश्चय तुझे आशीष दूंगा; और निश्चय तेरे वंश को आकाश के तारागण, और समुद्र के तीर की बालू के किनकोंके समान अनगिनित करूंगा, और तेरा वंश अपके शत्रुओं के नगरोंका अधिक्कारनेी होगा : 18. और पृय्वी की सारी जातियां अपके को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी : क्योंकि तू ने मेरी बात मानी है। 19. तब इब्राहीम अपके सेवकोंके पास लौट आया, और वे सब बेर्शेबा को संग संग गए; और इब्राहीम बेर्शेबा में रहता रहा।। 20. इन बातोंके पश्चात् ऐसा हुआ कि इब्राहीम को यह सन्देश मिला, कि मिल्का के तेरे भाई नाहोर से सन्तान उत्पन्न हुए हैं। 21. मिल्का के पुत्र तो थे हुए, अर्यात् उसका जेठा ऊस, और ऊस का भाई बूज, और कमूएल, जो अराम का पिता हुआ। 22. फिर केसेद, हज़ो, पिल्दाश, यिद्लाप, और बतूएल। 23. इन आठोंको मिल्का इब्राहीम के भाई नाहोर के जन्माए जनी। और बतूएल ने रिबका को उत्पन्न किया। 24. फिर नाहोर के रूमा नाम एक रखेली भी यी; जिस से तेबह, गहम, तहश, और माका, उत्पन्न हुए।।
Chapter 23
1. सारा तो एक सौ सत्ताईस बरस की अवस्या को पहुंची; और जब सारा की इतनी अवस्या हुई; 2. तब वह किर्यतर्बा में मर गई। यह तो कनान देश में है, और हेब्रोन भी कहलाता है : सो इब्राहीम सारा के लिथे रोने पीटने को वंहा गया। 3. तब इब्राहीम अपके मुर्दे के पास से उठकर हित्तियोंसे कहने लगा, 4. मैं तुम्हारे बीच पाहुन और परदेशी हूं : मुझे अपके मध्य में कब्रिस्तान के लिथे ऐसी भूमि दो जो मेरी निज की हो जाए, कि मैं अपके मुर्दे को गाड़के अपके आंख की ओट करूं। 5. हित्तियोंने इब्राहीम से कहा, 6. हे हमारे प्रभु, हमारी सुन : तू तो हमारे बीच में बड़ा प्रधान है : सो हमारी कब्रोंमें से जिसको तू चाहे उस में अपके मुर्दे को गाड़; हम में से कोई तुझे अपक्की कब्र के लेने से न रोकेगा, कि तू अपके मुर्दे को उस में गाड़ने न पाए। 7. तब इब्राहीम उठकर खड़ा हुआ, और हित्तियोंके सम्मुख, जो उस देश के निवासी थे, दण्डवत करके कहने लगा, 8. यदि तुम्हारी यह इच्छा हो कि मैं अपके मुर्दे को गाड़के अपक्की आंख की ओट करूं, तो मेरी प्रार्यना है, कि सोहर के पुत्र एप्रोन से मेरे लिथे बिनती करो, 9. कि वह अपक्की मकपेलावाली गुफा, जो उसकी भूमि की सीमा पर है; उसका पूरा दाम लेकर मुझे दे दे, कि वह तुम्हारे बीच कब्रिस्तान के लिथे मेरी निज भूमि हो जाए। 10. और एप्रोन तो हित्तियोंके बीच वहां बैठा हुआ या। सो जितने हित्ती उसके नगर के फाटक से होकर भीतर जाते थे, उन सभोंके साम्हने उस ने इब्राहीम को उत्तर दिया, 11. कि हे मेरे प्रभु, ऐसा नहीं, मेरी सुन; वह भूमि मैं तुझे देता हूं, और उस में जो गुफा है, वह भी मैं तुझे देता हूं; अपके जातिभाइयोंके सम्मुख मैं उसे तुझ को दिए देता हूं: सो अपके मुर्दे को कब्र में रख। 12. तब इब्राहीम ने उस देश के निवासियोंके साम्हने दण्डवत की। 13. और उनके सुनते हुए एप्रोन से कहा, यदि तू ऐसा चाहे, तो मेरी सुन : उस भूमि का जो दाम हो, वह मैं देना चाहता हूं; उसे मुझ से ले ले, तब मैं अपके मुर्दे को वहां गाडूंगा। 14. एप्रोन ने इब्राहीम को यह उत्तर दिया, 15. कि, हे मेरे प्रभु, मेरी बात सुन; एक भूमि का दाम तो चार सौ शेकेल रूपा है; पर मेरे और तेरे बीच में यह क्या है ? अपके मुर्दे को कब्र मे रख। 16. इब्राहीम न एप्रोन की मानकर उसको उतना रूपा तौल दिया, जितना उस ने हित्तियोंके सुनते हुए कहा या, अर्यात् चार सौ ऐसे शेकेल जो व्यापारियोंमें चलते थे। 17. सो एप्रोन की भूमि, जो मम्रे के सम्मुख की मकपेला में यी, वह गुफा समेत, और उन सब वृझोंसमेत भी जो उस में और उसके चारोंऔर सीमा पर थे, 18. जितने हित्ती उसके नगर के फाटक से होकर भीतर जाते थे, उन सभोंके साम्हने इब्राहीम के अधिक्कारने में पक्की रीति से आ गई। 19. इसके पश्चात् इब्राहीम ने अपक्की पत्नी सारा को, उस मकपेला वाली भूमि की गुफा में जो मम्रे के अर्यात् हेब्रोन के साम्हने कनान देश में है, मिट्टी दी। 20. और वह भूमि गुफा समेत, जो उस में यी, हित्तियोंकी ओर से कब्रिस्तान के लिथे इब्राहीम के अधिक्कारने में पक्की रीति से आ गई।
Chapter 24
1. इब्राहीम वृद्ध या और उसकी आयु बहुत भी और यहोवा ने सब बातोंमें उसको आशीष दी यी। 2. सो इब्राहीम ने अपके उस दास से, जो उसके घर में पुरनिया और उसकी सारी सम्पत्ति पर अधिक्कारनेी या, कहा, अपना हाथ मेरी जांघ के नीचे रख : 3. और मुझ से आकाश और पृय्वी के परमेश्वर यहोवा की इस विषय में शपय खा, कि तू मेरे पुत्र के लिथे कनानियोंकी लड़कियोंमें से जिनके बीच मैं रहता हूं, किसी को न ले आएगा। 4. परन्तु तू मेरे देश में मेरे ही कुटुम्बियोंके पास जाकर मेरे पुत्र इसहाक के लिथे एक पत्नी ले आएगा। 5. दास ने उस से कहा, कदाचित् वह स्त्री इस देश में मेरे साय आना न चाहे; तो क्या मुझे तेरे पुत्र को उस देश में जहां से तू आया है ले जाना पकेगा ? 6. इब्राहीम ने उस से कहा, चौकस रह, मेरे पुत्र को वहां कभी न ले जाना। 7. स्वर्ग का परमेश्वर यहोवा, जिस ने मुझे मेरे पिता के घर से और मेरी जन्मभूमि से ले आकर मुझ से शपय खाकर कहा, कि मैं यह देश तेरे वंश को दूंगा; वही अपना दूत तेरे आगे आगे भेजेगा, कि तू मेरे पुत्र के लिथे वहां से एक स्त्री ले आए। 8. और यदि वह स्त्री तेरे साय आना न चाहे तब तो तू मेरी इस शपय से छूट जाएगा : पर मेरे पुत्र को वहां न ले जाना। 9. तब उस दास ने अपके स्वामी इब्राहीम की जांघ के नीचे अपना हाथ रखकर उस से इसी विषय की शपय खाई। 10. तब वह दास अपके स्वामी के ऊंटो में से दस ऊंट छंाटकर उसके सब उत्तम उत्तम पदार्योंमें से कुछ कुछ लेकर चला : और मसोपोटामिया में नाहोर के नगर के पास पहुंचा। 11. और उस ने ऊंटोंको नगर के बाहर एक कुएं के पास बैठाया, वह संध्या का समय या, जिस समय स्त्रियां जल भरने के लिथे निकलती है। 12. सो वह कहने लगा, हे मेरे स्वामी इब्राहीम के परमेश्वर, यहोवा, आज मेरे कार्य को सिद्ध कर, और मेरे स्वामी इब्राहीम पर करूणा कर। 13. देख मैं जल के इस सोते के पास खड़ा हूं; और नगरवासियोंकी बेटियोंजल भरने के लिथे निकली आती हैं : 14. सो ऐसा होने दे, कि जिस कन्या से मैं कहूं, कि अपना घड़ा मेरी ओर फुका, कि मैं पीऊं; और वह कहे, कि ले, पी ले, पीछे मैं तेरे ऊंटो को भी पीलाऊंगी : सो वही हो जिसे तू ने अपके दास इसहाक के लिथे ठहराया हो; इसी रीति मैं जान लूंगा कि तू ने मेरे स्वामी पर करूणा की है। 15. और ऐसा हुआ कि जब वह कह ही रहा या कि रिबका, जो इब्राहीम के भाई नाहोर के जन्माथे मिल्का के पुत्र, बतूएल की बेटी यी, वह कन्धे पर घड़ा लिथे हुए आई। 16. वह अति सुन्दर, और कुमारी यी, और किसी पुरूष का मुंह न देखा या : वह कुएं में सोते के पास उतर गई, और अपना घड़ा भर के फिर ऊपर आई। 17. तब वह दास उस से भेंट करने को दौड़ा, और कहा, अपके घड़े मे से योड़ा पानी मुझे पिला दे। 18. उस ने कहा, हे मेरे प्रभु, ले, पी ले: और उस ने फुर्ती से घड़ा उतारकर हाथ में लिथे लिथे उसको पिला दिया। 19. जब वह उसको पिला चुकी, तक कहा, मैं तेरे ऊंटोंके लिथे भी तब तक पानी भर भर लाऊंगी, जब तक वे पी न चुकें। 20. तब वह फुर्ती से अपके घड़े का जल हौदे में उण्डेलकर फिर कुएं पर भरने को दौड़ गई; और उसके सब ऊंटोंके लिथे पानी भर दिया। 21. और वह पुरूष उसकी ओर चुपचाप अचम्भे के साय ताकता हुआ यह सोचता या, कि यहोवा ने मेरी यात्रा को सुफल किया है कि नहीं। 22. जब ऊंट पी चुके, तब उस पुरूष ने आध तोले सोने का एक नत्य निकालकर उसको दिया, और दस तोले सोने के कंगन उसके हाथोंमें पहिना दिए; 23. और पूछा, तू किस की बेटी है? यह मुझ को बता दे। क्या तेरे पिता के घर में हमारे टिकने के लिथे स्यान है ? 24. उस ने उत्तर दिया, मैं तो नाहोर के जन्माए मिल्का के पुत्र बतूएल की बेटी हूं। 25. फिर उस ने उस से कहा, हमारे वहां पुआल और चारा बहुत है, और टिकने के लिथे स्यान भी है। 26. तब उस पुरूष ने सिर फुकाकर यहोवा को दण्डवत् करके कहा, 27. धन्य है मेरे स्वामी इब्राहीम का परमेश्वर यहोवा, कि उस ने अपक्की करूणा और सच्चाई को मेरे स्वामी पर से हटा नहीं लिया : यहोवा ने मुझ को ठीक मार्ग पर चलाकर मेरे स्वामी के भाई बन्धुओं के घर पर पहुचा दिया है। 28. और उस क्न्या ने दौड़कर अपक्की माता के घर में यह सारा वृत्तान्त कह सुनाया। 29. तब लाबान जो रिबका का भाई या, सो बाहर कुएं के निकट उस पुरूष के पास दौड़ा गया। 30. और ऐसा हुआ कि जब उस ने वह नत्य और अपक्की बहिन रिबका के हाथोंमें वे कंगन भी देखे, और उसकी यह बात भी सुनी, कि उस पुरूष ने मुझ से ऐसी बातें कहीं; तब वह उस पुरूष के पास गया; और क्या देखा, कि वह सोते के निकट ऊंटोंके पास खड़ा है। 31. उस ने कहा, हे यहोवा की ओर से धन्य पुरूष भीतर आ : तू क्योंबाहर खड़ा है ? मैं ने घर को, और ऊंटो के लिथे भी स्यान तैयार किया है। 32. और वह पुरूष घर में गया; और लाबान ने ऊंटोंकी काठियां खोलकर पुआल और चारा दिया; और उसके, और उसके संगी जनो के पांव धोने को जल दिया। 33. तब इब्राहीम के दास के आगे जलपान के लिथे कुछ रखा गया : पर उस ने कहा मैं जब तक अपना प्रयोजन न कह दूं, तब तक कुछ न खाऊंगा। लाबान ने कहा, कह दे। 34. तक उस ने कहा, मैं तो इब्राहीम का दास हूं। 35. और यहोवा ने मेरे स्वामी को बड़ी आशीष दी है; सो वह महान पुरूष हो गया है; और उस ने उसको भेड़-बकरी, गाय-बैल, सोना-रूपा, दास-दासियां, ऊंट और गदहे दिए है। 36. और मेरे स्वामी की पत्नी सारा के बुढ़ापे में उस से एक पुत्र उत्पन्न हुआ है। और उस पुत्र को इब्राहीम ने अपना सब कुछ दे दिया है। 37. और मेरे स्वामी ने मुझे यह शपय खिलाई, कि मैं उसके पुत्र के लिथे कनानियोंकी लड़कियोंमें से जिन के देश में वह रहता है, कोई स्त्री न ले आऊंगा। 38. मैं उसके पिता के घर, और कुल के लोगोंके पास जाकर उसके पुत्र के लिथे एक स्त्री ले आऊंगा। 39. तब मैं ने अपके स्वामी से कहा, कदाचित् वह स्त्री मेरे पीछे न आए। 40. तब उस ने मुझ से कहा, यहोवा, जिसके साम्हने मैं चलता आया हूं, वह तेरे संग अपके दूत को भेजकर तेरी यात्रा को सुफल करेगा; सो तू मेरे कुल, और मेरे पिता के घराने में से मेरे पुत्र के लिथे एक स्त्री ले आ सकेगा। 41. तू तब ही मेरी इस शपय से छूटेगा, जब तू मेरे कुल के लोगोंके पास पहुंचेगा; अर्यात् यदि वे मुझे कोई स्त्री न दें, तो तू मेरी श्पय से छूटेगा। 42. सो मैं आज उस कुएं के निकट आकर कहने लगा, हे मेरे स्वामी इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा, यदि तू मेरी इस यात्रा को सुफल करता हो : 43. तो देख मैं जल के इस कुएं के निकट खड़ा हूं; सो ऐसा हो, कि जो कुमारी जल भरने के लिथे निकल आए, और मैं उस से कहूं, अपके घड़े में से मुझे योड़ा पानी पिला; 44. और वह मुझ से कहे, पी ले और मै तेरे ऊंटो के पीने के लिथे भी पानी भर दूंगी : वह वही स्त्री हो जिसको तू ने मेरे स्वामी के पुत्र के लिथे ठहराया हो। 45. मैं मन ही मन यह कह ही रहा या, कि देख रिबका कन्धे पर घड़ा लिथे हुए निकल आई; फिर वह सोते के पास उतरके भरने लगी : और मै ने उस से कहा, मुझे पिला दे। 46. और उस ने फुर्ती से अपके घड़े को कन्धे पर से उतारके कहा, ले, पी ले, पीछे मैं तेरे ऊंटोंको भी पिलाऊंगी : सो मैं ने पी लिया, और उस ने ऊंटोंको भी पिला दिया। 47. तब मैं ने उस से पूछा, कि तू किस की बेटी है ? और उस ने कहा, मैं तो नाहोर के जन्माए मिल्का के पुत्र बतूएल की बेटी हूं : तब मैं ने उसकी नाक में वह नत्य, और उसके हाथोंमें वे कंगन पहिना दिए। 48. फिर मैं ने सिर फुकाकर यहोवा को दण्डवत् किया, और अपके स्वामी इब्राहीम के परमेश्वर यहोवा को धन्य कहा, क्योंकि उस ने मुझे ठीक मार्ग से पहुंचाया कि मै अपके स्वामी के पुत्र के लिथे उसकी भतीजी को ले जाऊं। 49. सो अब, यदि तू मेरे स्वामी के साय कृपा और सच्चाई का व्यवहार करना चाहते हो, तो मुझ से कहो : और यदि नहीं चाहते हो, तौभी मुझ से कह दो; ताकि मैं दाहिनी ओर, वा बाईं ओर फिर जाऊं। 50. तब लाबान और बतूएल ने उत्तर दिया, यह बात यहोवा की ओर से हुई है : सो हम लोग तुझ से न तो भला कह सकते हैं न बुरा। 51. देख, रिबका तेरे साम्हने है, उसको ले जा, और वह यहोवा के वचन के अनुसार, तेरे स्वामी के पुत्र की पत्नी हो जाए। 52. उनका यह वचन सुनकर, इब्राहीम के दास ने भूमि पर गिरके यहोवा को दण्डवत् किया। 53. फिर उस दास ने सोने और रूपे के गहने, और वस्त्र निकालकर रिबका को दिए : और उसके भाई और माता को भी उस ने अनमोल अनमोल वस्तुएं दी। 54. तब उस ने अपके संगी जनोंसमेत भोजन किया, और रात वहीं बिताई : और तड़के उठकर कहा, मुझ को अपके स्वामी के पास जाने के लिथे विदा करो। 55. रिबका के भाई और माता ने कहा, कन्या को हमारे पास कुछ दिन, अर्यात् कम से कम दस दिन रहने दे; फिर उसके पश्चात् वह चक्की जाएगी। 56. उस ने उन से कहा, यहोवा ने जो मेरी यात्रा को सुफल किया है; सो तुम मुझे मत रोको अब मुझे विदा कर दो, कि मैं अपके स्वामी के पास जाऊं। 57. उन्होंने कहा, हम कन्या को बुलाकर पूछते हैं, और देखेंगे, कि वह क्या कहती है। 58. सो उन्होंने रिबका को बुलाकर उस से पूछा, क्या तू इस मनुष्य के संग जाएगी? उस ने कहा, हां मैं जाऊंगी। 59. तब उन्होंने अपक्की बहिन रिबका, और उसकी धाय और इब्राहीम के दास, और उसके सायी सभोंको विदा किया। 60. और उन्होंने रिबका को आशीर्वाद देके कहा, हे हमारी बहिन, तू हजारोंलाखोंकी आदिमाता हो, और तेरा वंश अपके बैरियोंके नगरोंका अधिक्कारनेी हो। 61. इस पर रिबका अपक्की सहेलियोंसमेत चक्की; और ऊंट पर चढ़के उस पुरूष के पीछे हो ली : सो वह दास रिबका को साय लेकर चल दिया। 62. इसहाक जो दक्खिन देश में रहता या, सो लहैरोई नाम कुएं से होकर चला आता या। 63. और सांफ के समय वह मैदान में ध्यान करने के लिथे निकला या : और उस ने आंखे उठाकर क्या देखा, कि ऊंट चले आ रहे हैं। 64. और रिबका ने भी आंख उठाकर इसहाक को देखा, और देखते ही ऊंट पर से उतर पक्की 65. तब उस ने दास से पूछा, जो पुरूष मैदान पर हम से मिलने को चला आता है, सो कौन है? दास ने कहा, वह तो मेरा स्वामी है। तब रिबका ने घूंघट लेकर अपके मुंह को ढ़ाप लिया। 66. और दास ने इसहाक से अपना सारा वृत्तान्त वर्णन किया। 67. तब इसहाक रिबका को अपक्की माता सारा के तम्बू में ले आया, और उसको ब्याहकर उस से प्रेम किया : और इसहाक को माता की मृत्यु के पश्चात् शान्ति हुई।।
Chapter 25
1. तब इब्राहीम ने एक और पत्नी ब्याह ली जिसका नाम कतूरा या। 2. और उस से जिम्रान, योझान, मदना, मिद्यान, यिशबाक, और शूह उत्पन्न हुए। 3. और योझान से शबा और ददान उत्पन्न हुए। और ददान के वंश में अश्शूरी, लतूशी, और लुम्मी लोग हुए। 4. और मिद्यान के पुत्र एपा, एपेर, हनोक, अबीदा, और एल्दा हुए, से सब कतूरा के सन्तान हुए। 5. इसहाक को तो इब्राहीम ने अपना सब कुछ दिया। 6. पर अपक्की रखेलियोंके पुत्रोंको, कुछ कुछ देकर अपके जीते जी अपके पुत्र इसहाक के पास से पूरब देश में भेज दिया। 7. इब्राहीम की सारी अवस्या एक सौ पचहत्तर वर्ष की हुई। 8. और इब्राहीम का दीर्घायु होने के कारण अर्यात् पूरे बुढ़ापे की अवस्या में प्राण छूट गया। 9. और उसके पुत्र इसहाक और इश्माएल ने, हित्ती सोहर के पुत्र एप्रोन की मम्रे के सम्मुखवाली भूमि में, जो मकपेला की गुफा यी, उस में उसको मिट्टी दी गई। 10. अर्यात् जो भूमि इब्राहीम ने हित्तियोंसे मोल ली यी : उसी में इब्राहीम, और उस की पत्नी सारा, दोनोंको मिट्टी दी गई। 11. इब्राहीम के मरने के पश्चात् परमेश्वर ने उसके पुत्र इसहाक को जो लहैरोई नाम कुएं के पास रहता या आशीष दी।। 12. इब्राहीम का पुत्र इश्माएल जो सारा की लौंडी हाजिरा मिस्री से उत्पन्न हुआ या, उसकी यह वंशावली है। 13. इश्माएल के पुत्रोंके नाम और वंशावली यह है : अर्यात् इश्माएल का जेठा पुत्र नबायोत, फिर केदार, अद्बेल, मिबसाम, 14. मिश्मा, दूमा, मस्सा, 15. हदर, तेमा, यतूर, नपीश, और केदमा। 16. इश्माएल के पुत्र थे ही हुए, और इन्हीं के नामोंके अनुसार इनके गांवों, और छावनियोंके नाम भी पके; और थे ही बारह अपके अपके कुल के प्रधान हुए। 17. इश्माएल की सारी अवस्या एक सौ सैंतीस वर्ष की हुई : तब उसके प्राण छूट गए, और वह अपके लोगोंमें जा मिला। 18. और उसके वंश हवीला से शूर तक, जो मिस्र के सम्मुख अश्शूर् के मार्ग में है, बस गए। और उनका भाग उनके सब भाईबन्धुओं के सम्मुख पड़ा।। 19. इब्राहीम के पुत्र इसहाक की वंशावली यह है : इब्राहीम से इसहाक उत्पन्न हुआ। 20. और इसहाक ने चालीस वर्ष का होकर रिबका को, जो पद्दनराम के वासी, अरामी बतूएल की बेटी, और अरामी लाबान की बहिन भी, ब्याह लिया। 21. इसहाक की पत्नी तो बांफ यी, सो उस ने उसके निमित्त यहोवा से बिनती की: और यहोवा ने उसकी बिनती सुनी, सो उसकी पत्नी रिबका गर्भवती हुई। 22. और लड़के उसके गर्भ में आपस में लिपटके एक दूसरे को मारने लगे : तब उस ने कहा, मेरी जो ऐसी ही दशा रहेगी तो मैं क्योंकर जीवित रहूंगी? और वह यहोवा की इच्छा पूछने को गई। 23. तब यहोवा ने उस से कहा तेरे गर्भ में दो जातियां हैं, और तेरी कोख से निकलते ही दो राज्य के लोग अलग अलग होंगे, और एक राज्य के लोग दूसरे से अधिक सामर्यी होंगे और बड़ा बेटा छोटे के अधीन होगा। 24. जब उसके पुत्र उत्पन्न होने का समय आया, तब क्या प्रगट हुआ, कि उसके गर्भ में जुड़वे बालक है। 25. और पहिला जो उत्पन्न हुआ सो लाल निकला, और उसका सारा शरीर कम्बल के समान रोममय या; सो उसका नाम एसाव रखा गया। 26. पीछे उसका भाई अपके हाथ से एसाव की एड़ी पकडे हुए उत्पन्न हुआ; और उसका नाम याकूब रखा गया। और जब रिबका ने उनको जन्म दिया तब इसहाक साठ वर्ष का या। 27. फिर वे लड़के बढ़ने लगे और एसाव तो वनवासी होकर चतुर शिकार खेलनेवाला हो गया, पर याकूब सीधा मनुष्य या, और तम्बुओं में रहा करता या। 28. और इसहाक तो एसाव के अहेर का मांस खाया करता या, इसलिथे वह उस से प्रीति रखता या : पर रिबका याकूब से प्रीति रखती यी।। 29. याकूब भोजन के लिथे कुछ दाल पका रहा या : और एसाव मैदान से यका हुआ आया। 30. तब एसाव ने याकूब से कहा, वह जो लाल वस्तु है, उसी लाल वस्तु में से मुझे कुछ खिला, क्योंकि मैं यका हूं। इसी कारण उसका नाम एदोम भी पड़ा। 31. याकूब ने कहा, अपना पहिलौठे का अधिक्कारने आज मेरे हाथ बेच दे। 32. एसाव ने कहा, देख, मै तो अभी मरने पर हूं : सो पहिलौठे के अधिक्कारने से मेरा क्या लाभ होगा ? 33. याकूब ने कहा, मुझ से अभी शपय खा : सो उस ने उस से शपय खाई : और अपना पहिलौठे का अधिक्कारने याकूब के हाथ बेच डाला। 34. इस पर याकूब ने एसाव को रोटी और पकाई हुई मसूर की दाल दी; और उस ने खाया पिया, तब उठकर चला गया। योंएसाव ने अपना पहिलौठे का अधिक्कारने तुच्छ जाना।।
Chapter 26
1. और उस देश में अकाल पड़ा, वह उस पहिले अकाल से अलग या जो इब्राहीम के दिनोंमें पड़ा या। सो इसहाक गरार को पलिश्तियोंके राजा अबीमेलेक के पास गया। 2. वहां यहोवा ने उसको दर्शन देकर कहा, मिस्र में मत जा; जो देश मैं तुझे बताऊं उसी में रह। 3. तू इसी देश में रह, और मैं तेरे संग रहूंगा, और तुझे आशीष दूंगा; और थे सब देश मैं तुझ को, और तेरे वंश को दूंगा; और जो शपय मैं ने तेरे पिता इब्राहीम से खाई यी, उसे मैं पूरी करूंगा। 4. और मैं तेरे वंश को आकाश के तारागण के समान करूंगा। और मैं तेरे वंश को थे सब देश दूंगा, और पृय्वी की सारी जातियां तेरे वंश के कारण अपके को धन्य मानेंगी। 5. क्योंकि इब्राहीम ने मेरी मानी, और जो मैं ने उसे सौंपा या उसको और मेरी आज्ञाओं विधियों, और व्यवस्या का पालन किया। 6. सो इसहाक गरार में रह गया। 7. जब उस स्यान के लोगोंने उसकी पत्नी के विषय में पूछा, तब उस ने यह सोचकर कि यदि मैं उसको अपक्की पत्नी कहूं, तो यहां के लोग रिबका के कारण जो परम सुन्दरी है मुझ को मार डालेंगे, उत्तर दिया, वह तो मेरी बहिन है। 8. जब उसको वहां रहते बहुत दिन बीत गए, तब एक दिन पलिश्तियोंके राजा अबीमेलेक ने खिड़की में से फांकके क्या देखा, कि इसहाक अपक्की पत्नी रिबका के साय क्रीड़ा कर रहा है। 9. तब अबीमेलेक ने इसहाक को बुलवाकर कहा, वह तो निश्चय तेरी पत्नी है; फिर तू ने क्योंकर उसको अपक्की बहिन कहा ? इसहाक ने उत्तर दिया, मैं ने सोचा या, कि ऐसा न हो कि उसके कारण मेरी मृत्यु हो। 10. अबीमेलेक ने कहा, तू ने हम से यह क्या किया ? ऐसे तो प्रजा में से कोई तेरी पत्नी के साय सहज से कुकर्म कर सकता, और तू हम को पाप में फंसाता। 11. और अबीमेलेक ने अपक्की सारी प्रजा को आज्ञा दी, कि जो कोई उस पुरूष को वा उस स्त्री को छूएगा, सो निश्चय मार डाला जाएगा। 12. फिर इसहाक ने उस देश में जोता बोया, और उसी वर्ष में सौ गुणा फल पाया : और यहोवा ने उसको आशीष दी। 13. और वह बढ़ा और उसकी उन्नति होती चक्की गई, यहां तक कि वह अति महान पुरूष हो गया। 14. जब उसके भेड़-बकरी, गाय-बैल, और बहुत से दास-दासियां हुई, तब पलिश्ती उस से डाह करने लगे। 15. सो जितने कुओं को उसके पिता इब्राहीम के दासोंने इब्राहीम के जीते जी खोदा या, उनको पलिश्तियोंने मिट्टी से भर दिया। 16. तब अबीमेलेक ने इसहाक से कहा, हमारे पास से चला जा; क्योंकि तू हम से बहुत सामर्यी हो गया है। 17. सो इसहाक वहां से चला गया, और गरार के नाले में तम्बू खड़ा करके वहां रहने लगा। 18. तब जो कुएं उसके पिता इब्राहीम के दिनोंमें खोदे गए थे, और इब्राहीम के मरने के पीछे पलिश्तियोंने भर दिए थे, उनको इसहाक ने फिर से खुदवाया; और उनके वे ही नाम रखे, जो उसके पिता ने रखे थे। 19. फिर इसहाक के दासोंको नाले में खोदते खोदते बहते जल का एक सोता मिला। 20. तब गरारी चरवाहोंने इसहाक के चरवाहोंसे फगड़ा किया, और कहा, कि यह जल हमारा है। सो उस ने उस कुएं का नाम एसेक रखा इसलिथे कि वे उस से फगड़े थे। 21. फिर उन्होंने दूसरा कुआं खोदा; और उन्होंने उसके लिथे भी फगड़ा किया, सो उस ने उसका नाम सित्रा रखा। 22. तब उस ने वहां से कूच करके एक और कुआं खुदवाया; और उसके लिथे उन्होंने फगड़ा न किया; सो उस ने उसका नाम यह कहकर रहोबोत रखा, कि अब तो यहोवा ने हमारे लिथे बहुत स्यान दिया है, और हम इस देश में फूलें-फलेंगे। 23. वहां से वह बेर्शेबा को गया। 24. और उसी दिन यहोवा ने रात को उसे दर्शन देकर कहा, मैं तेरे पिता इब्राहीम का परमेश्वर हूं; मत डर, क्योंकि मैं तेरे साय हूं, और अपके दास इब्राहीम के कारण तुझे आशीष दूंगा, और तेरा वंश बढ़ाऊंगा 25. तब उस ने वहां एक वेदी बनाई, और यहोवा से प्रार्यना की, और अपना तम्बू वहीं खड़ा किया; और वहां इसहाक के दासोंने एक कुआं खोदा। 26. तब अबीमेलेक अपके मित्र अहुज्जत, और अपके सेनापति पीकोल को संग लेकर, गरार से उसके पास गया। 27. इसहाक ने उन से कहा, तुम ने मुझ से बैर करके अपके बीच से निकाल दिया या; सो अब मेरे पास क्योंआए हो ? 28. उन्होंने कहा, हम ने तो प्रत्यझ देखा है, कि यहोवा तेरे साय रहता है : सो हम ने सोचा, कि तू तो यहोवा की ओर से धन्य है, सो हमारे तेरे बीच में शपय खाई जाए, और हम तुझ से इस विषय की वाचा बन्धाएं; 29. कि जैसे हम ने तुझे नहीं छूआ, वरन तेरे साय निरी भलाई की है, और तुझ को कुशल झेम से विदा किया, उसके अनुसार तू भी हम से कोई बुराई न करेगा। 30. तब उस ने उनकी जेवनार की, और उन्होंने खाया पिया। 31. बिहान को उन सभोंने तड़के उठकर आपस में शपय खाई; तब इसहाक ने उनको विदा किया, और वे कुशल झेम से उसके पास से चले गए। 32. उसी दिन इसहाक के दासोंने आकर अपके उस खोदे हुए कुएं का वृत्तान्त सुना के कहा, कि हम को जल का एक सोता मिला है। 33. तब उस ने उसका नाम शिबा रखा : इसी कारण उस नगर का नाम आज तक बेर्शेबा पड़ा है।। 34. जब एसाव चालीस वर्ष का हुआ, तब उस ने हित्ती बेरी की बेटी यहूदीत, और हित्ती एलोन की बेटी बाशमत को ब्याह लिया। 35. और इन स्त्रियोंके कारण इसहाक और रिबका के मन को खेद हुआ।।
Chapter 27
1. जब इसहाक बूढ़ा हो गया, और उसकी आंखें ऐसी धुंधली पड़ गई, कि उसको सूफता न या, तब उस ने अपके जेठे पुत्र एसाव को बुलाकर कहा, हे मेरे पुत्र; उस ने कहा, क्या आज्ञा। 2. उस ने कहा, सुन, मैं तो बूढ़ा हो गया हूं, और नहीं जानता कि मेरी मृत्यु का दिन कब होगा : 3. सो अब तू अपना तरकश और धनुष आदि हयियार लेकर मैदान में जा, और मेरे लिथे हिरन का अहेर कर ले आ। 4. तब मेरी रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बनाकर मेरे पास ले आना, कि मै उसे खाकर मरने से पहले तुझे जी भर के आशीर्वाद दूं। 5. तब एसाव अहेर करने को मैदान में गया। जब इसहाक एसाव से यह बात कह रहा या, तब रिबका सुन रही यी। 6. सो उस ने अपके पुत्र याकूब से कहा सुन, मैं ने तेरे पिता को तेरे भाई एसाव से यह कहते सुना, 7. कि तू मेरे लिथे अहेर करके उसका स्वादिष्ट भोजन बना, कि मैं उसे खाकर तुझे यहोवा के आगे मरने से पहिले आशीर्वाद दूं 8. सो अब, हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और यह आज्ञा मान, 9. कि बकरियोंके पास जाकर बकरियोंके दो अच्छे अच्छे बच्चे ले आ; और मैं तेरे पिता के लिथे उसकी रूचि के अनुसार उन के मांस का स्वादिष्ट भोजन बनाऊंगी। 10. तब तू उसको अपके पिता के पास ले जाना, कि वह उसे खाकर मरने से पहिले तुझ को आशीर्वाद दे। 11. याकूब ने अपक्की माता रिबका से कहा, सुन, मेरा भाई एसाव तो रोंआर पुरूष है, और मैं रोमहीन पुरूष हूं। 12. कदाचित् मेरा पिता मुझे टटोलने लगे, तो मैं उसकी दृष्टि में ठग ठहरूंगा; और आशीष के बदले शाप ही कमाऊंगा। 13. उसकी माता ने उस से कहा, हे मेरे, पुत्र, शाप तुझ पर नहीं मुझी पर पके, तू केवल मेरी सुन, और जाकर वे बच्चे मेरे पास ले आ। 14. तब याकूब जाकर उनको अपक्की माता के पास ले आया, और माता ने उसके पिता की रूचि के अनुसार स्वादिष्ट भोजन बना दिया। 15. तब रिबका ने अपके पहिलौठे पुत्र एसाव के सुन्दर वस्त्र, जो उसके पास घर में थे, लेकर अपके लहुरे पुत्र याकूब को पहिना दिए। 16. और बकरियोंके बच्चोंकी खालोंको उसके हाथोंमें और उसके चिकने गले में लपेट दिया। 17. और वह स्वादिष्ट भोजन और अपक्की बनाई हुई रोटी भी अपके पुत्र याकूब के हाथ में दे दी। 18. सो वह अपके पिता के पास गया, और कहा, हे मेरे पिता : उस ने कहा क्या बात है ? हे मेरे पुत्र, तू कौन है ? 19. याकूब ने अपके पिता से कहा, मैं तेरा जेठा पुत्र एसाव हूं। मैं ने तेरी आज्ञा मे अनुसार किया है; सो उठ और बैठकर मेरे अहेर के मांस में से खा, कि तू जी से मुझे आशीर्वाद दे। 20. इसहाक ने अपके पुत्र से कहा, हे मेरे पुत्र, क्या कारण है कि वह तुझे इतनी जल्दी मिल गया ? उस ने यह उत्तर दिया, कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने उसको मेरे साम्हने कर दिया। 21. फिर इसहाक ने याकूब से कहा, हे मेरे पुत्र, निकट आ, मैं तुझे टटोलकर जानूं, कि तू सचमुच मेरा पुत्र एसाव है वा नहीं। 22. तब याकूब अपके पिता इसहाक के निकट गया, और उस ने उसको टटोलकर कहा, बोल तो याकूब का सा है, पर हाथ एसाव ही के से जान पड़ते हैं। 23. और उस ने उसको नहीं चीन्हा, क्योंकि उसके हाथ उसके भाई के से रोंआर थे। 24. और उस ने पूछा, क्या तू सचमुच मेरा पुत्र एसाव है ? उस ने कहा मैं हूं। 25. तब उस ने कहा, भोजन को मेरे निकट ले आ, कि मैं, अपके पुत्र के अहेर के मांस में से खाकर, तुझे जी से आशीर्वाद दूं। तब वह उसको उसके निकट ले आया, और उस ने खाया; और वह उसके पास दाखमधु भी लाया, और उस ने पिया। 26. तब उसके पिता इसहाक ने उस से कहा, हे मेरे पुत्र निकट आकर मुझे चूम। 27. उस ने निकट जाकर उसको चूमा। और उस ने उसके वोंको सुगन्ध पाकर उसको वह आशीर्वाद दिया, कि देख, मेरे पुत्र का सुगन्ध जो ऐसे खेत का सा है जिस पर यहोवा ने आशीष दी हो : 28. सो परमेश्वर तुझे आकाश से ओस, और भूमि की उत्तम से उत्तम उपज, और बहुत सा अनाज और नया दाखमधु दे : 29. राज्य राज्य के लोग तेरे अधीन हों, और देश देश के लोग तुझे दण्डवत् करें : तू अपके भाइयोंका स्वामी हो, और तेरी माता के पुत्र तुझे दण्डवत् करें : जो तुझे शाप दें सो आप ही स्रापित हों, और जो तुझे आशीर्वाद दें सो आशीष पाएं।। 30. यह आशीर्वाद इसहाक याकूब को दे ही चुका, और याकूब अपके पिता इसहाक के साम्हने से निकला ही या, कि एसाव अहेर लेकर आ पहुंचा। 31. तब वह भी स्वादिष्ट भोजन बनाकर अपके पिता के पास ले आया, और उस ने कहा, हे मेरे पिता, उठकर अपके पुत्र के अहेर का मांस खा, ताकि मुझे जी से आशीर्वाद दे। 32. उसके पिता इसहाक ने पूछा, तू कौन है ? उस ने कहा, मैं तेरा जेठा पुत्र एसाव हूं। 33. तब इसहाक ने अत्यन्त यरयर कांपके हुए कहा, फिर वह कौन या जो अहेर करके मेरे पास ले आया या, और मैं ने तेरे आने से पहिले सब में से कुछ कुछ खा लिया और उसको आशीर्वाद दिया ? वरन उसको आशीष लगी भी रहेगी। 34. अपके पिता की यह बात सुनते ही एसाव ने अत्यन्त ऊंचे और दु:ख भरे स्वर से चिल्लाकर अपके पिता से कहा, हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे। 35. उस ने कहा, तेरा भाई धूर्तता से आया, और तेरे आशीर्वाद को लेके चला गया। 36. उस ने कहा, क्या उसका नाम याकूब ययार्य नहीं रखा गया ? उस ने मुझे दो बार अड़ंगा मारा, मेरा पहिलौठे का अधिक्कारने तो उस ने ले ही लिया या : और अब देख, उस ने मेरा आशीर्वाद भी ले लिया है : फिर उस ने कहा, क्या तू ने मेरे लिथे भी कोई आशीर्वाद नहीं सोच रखा है ? 37. इसहाक ने एसाव को उत्तर देकर कहा, सुन, मैं ने उसको तेरा स्वामी ठहराया, और उसके सब भाइयोंको उसके अधीन कर दिया, और अनाज और नया दाखमधु देकर उसको पुष्ट किया है : सो अब, हे मेरे पुत्र, मैं तेरे लिथे क्या करूं ? 38. एसाव ने अपके पिता से कहा हे मेरे पिता, क्या तेरे मन में एक ही आशीर्वाद है ? हे मेरे पिता, मुझ को भी आशीर्वाद दे : योंकहकर एसाव फूट फूटके रोया। 39. उसके पिता इसहाक ने उस से कहा, सुन, तेरा निवास उपजाऊ भूमि पर हो, और ऊपर से आकाश की ओस उस पर पके।। 40. और तू अपक्की तलवार के बल से जीवित रहे, और अपके भाई के अधीन तो होए, पर जब तू स्वाधीन हो जाएगा, तब उसके जूए को अपके कन्धे पर से तोड़ फेंके। 41. एसाव ने तो याकूब से अपके पिता के दिए हुए आशीर्वाद के कारण बैर रखा; सो उस ने सोचा, कि मेरे पिता के अन्तकाल का दिन निकट है, फिर मैं अपके भाई याकूब को घात करूंगा। 42. जब रिबका को अपके पहिलौठे पुत्र एसाव की थे बातें बताई गई, तब उस ने अपके लहुरे पुत्र याकूब को बुलाकर कहा, सुन, तेरा भाई एसाव तुझे घात करने के लिथे अपके मन को धीरज दे रहा है। 43. सो अब, हे मेरे पुत्र, मेरी सुन, और हारान को मेरे भाई लाबान के पास भाग जा ; 44. और योड़े दिन तक, अर्यात् जब तक तेरे भाई का क्रोध न उतरे तब तक उसी के पास रहना। 45. फिर जब तेरे भाई का क्रोध ने उतरे, और जो काम तू ने उस से किया है उसको वह भूल जाए; तब मैं तुझे वहां से बुलवा भेजूंगी : ऐसा क्योंहो कि एक ही दिन में मुझे तुम दोनोंसे रहित होना पके ? 46. फिर रिबका ने इसहाक से कहा, हित्ती लड़कियोंके कारण मैं अपके प्राण से घिन करती हूं; सो यदि ऐसी हित्ती लड़कियोंमें से, जैसी इस देश की लड़कियां हैं, याकूब भी एक को कहीं ब्याह ले, तो मेरे जीवन में क्या लाभ होगा?
Chapter 28
1. तब इसहाक ने याकूब को बुलाकर आशीर्वाद दिया, और आज्ञा दी, कि तू किसी कनानी लड़की को न ब्याह लेना। 2. पद्दनराम में अपके नाना बतूएल के घर जाकर वहां अपके मामा लाबान की एक बेटी को ब्याह लेना। 3. और सर्वशक्तिमान ईश्वर तुझे आशीष दे, और फुला-फलाकर बढ़ाए, और तू राज्य राज्य की मण्डली का मूल हो। 4. और वह तुझे और तेरे वंश को भी इब्राहीम की सी आशीष दे, कि तू यह देश जिस में तू परदेशी होकर रहता है, और जिसे परमेश्वर ने इब्राहीम को दिया या, उसका अधिक्कारनेी हो जाए। 5. और इसहाक ने याकूब को विदा किया, और वह पद्दनराम को अरामी बतूएल के उस पुत्र लाबान के पास चला, जो याकूब और एसाव की माता रिबका का भाई या। 6. जब इसहाक ने याकूब को आशीर्वाद देकर पद्दनराम भेज दिया, कि वह वहीं से पत्नी ब्याह लाए, और उसको आशीर्वाद देने के समय यह आज्ञा भी दी, कि तू किसी कनानी लड़की को ब्याह न लेना; 7. और याकूब माता पिता की मानकर पद्दनराम को चल दिया; 8. तब एसाव यह सब देख के और यह भी सोचकर, कि कनानी लड़कियां मेरे पिता इसहाक को बुरी लगती हैं, 9. इब्राहीम के पुत्र इश्माएल के पास गया, और इश्माएल की बेटी महलत को, जो नबायोत की बहिन भी, ब्याहकर अपक्की पत्नियोंमे मिला लिया।। 10. सो याकूब बेर्शेबा से निकलकर हारान की ओर चला। 11. और उस ने किसी स्यान में पहुंचकर रात वहीं बिताने का विचार किया, क्योंकि सूर्य अस्त हो गया या; सो उस ने उस स्यान के पत्यरोंमें से एक पत्यर ले अपना तकिया बनाकर रखा, और उसी स्यान में सो गया। 12. तब उस ने स्वप्न में क्या देखा, कि एक सीढ़ी पृय्वी पर खड़ी है, और उसका सिरा स्वर्ग तक पहुंचा है : और परमेश्वर के दूत उस पर से चढ़ते उतरते हैं। 13. और यहोवा उसके ऊपर खड़ा होकर कहता है, कि मैं यहोवा, तेरे दादा इब्राहीम का परमेश्वर, और इसहाक का भी परमेश्वर हूं : जिस भूमि पर तू पड़ा है, उसे मैं तुझ को और तेरे वंश को दूंगा। 14. और तेरा वंश भूमि की धूल के किनकोंके समान बहुत होगा, और पच्छिम, पूरब, उत्तर, दक्खिन, चारोंओर फैलता जाएगा : और तेरे और तेरे वंश के द्वारा पृय्वी के सारे कुल आशीष पाएंगे। 15. और सुन, मैं तेरे संग रहूंगा, और जहां कहीं तू जाए वहां तेरी रझा करूंगा, और तुझे इस देश में लौटा ले आऊंगा : मैं अपके कहे हुए को जब तक पूरा न कर लूं तब तक तुझ को न छोडूंगा। 16. तब याकूब जाग उठा, और कहने लगा; निश्चय इस स्यान में यहोवा है; और मैं इस बात को न जानता या। 17. और भय खाकर उस ने कहा, यह स्यान क्या ही भयानक है ! यह तो परमेश्वर के भवन को छोड़ और कुछ नहीं हो सकता; वरन यह स्वर्ग का फाटक ही होगा। 18. भोर को याकूब तड़के उठा, और अपके तकिए का पत्यर लेकर उसका खम्भा खड़ा किया, और उसके सिक्के पर तेल डाल दिया। 19. और उस ने उस स्यान का नाम बेतेल रखा; पर उस नगर का नाम पहिले लूज या। 20. और याकूब ने यह मन्नत मानी, कि यदि परमेश्वर मेरे संग रहकर इस यात्रा में मेरी रझा करे, और मुझे खाने के लिथे रोटी, और पहिनने के लिथे कपड़ा दे, 21. और मैं अपके पिता के घर में कुशल झेम से लौट आऊं : तो यहोवा मेरा परमेश्वर ठहरेगा। 22. और यह पत्यर, जिसका मैं ने खम्भा खड़ा किया है, परमेश्वर का भवन ठहरेगा : और जो कुछ तू मुझे दे उसका दशमांश मैं अवश्य ही तुझे दिया करूंगा।।
Chapter 29
1. फिर याकूब ने अपना मार्ग लिया, और पूव्विर्योंके देश में आया। 2. और उस ने दृष्टि करके क्या देखा, कि मैदान में एक कुंआ है, और उसके पास भेड़-बकरियोंके तीन फुण्ड बैठे हुए हैं; क्योंकि जो पत्यर उस कुएं के मुंह पर धरा रहता या, जिस में से फुण्डोंको जल पिलाया जाता या, वह भारी या। 3. और जब सब फुण्ड वहां इकट्ठे हो जाते तब चरवाहे उस पत्यर को कुएं के मुंह पर से लुढ़काकर भेड़-बकरियोंको पानी पिलाते, और फिर पत्यर को कुएं के मुंह पर ज्योंका त्योंरख देते थे। 4. सो याकूब ने चरवाहोंसे पूछा, हे मेरे भाइयो, तुम कहां के हो? उन्होंने कहा, हम हारान के हैं। 5. तब उस ने उन से पूछा, क्या तुम नाहोर के पोते लाबान को जानते हो ? उन्होंने कहा, हां, हम उसे जानते हैं। 6. फिर उस ने उन से पूछा, क्या वह कुशल से है ? उन्होंने कहा, हां, कुशल से तो है और वह देख, उसकी बेटी राहेल भेड़-बकरियोंको लिथे हुए चक्की आती है। 7. उस ने कहा, देखो, अभी तो दिन बहुत है, पशुओं के इकट्ठे होने का समय नहीं : सो भेड़-बकरियोंको जल पिलाकर फिर ले जाकर चराओ। 8. उन्होंने कहा, हम अभी ऐसा नहीं कर सकते, जब सब फुण्ड इकट्ठे होते हैं तब पत्यर कुएं के मुंह से लुढ़काया जाता है, और तब हम भेड़-बकरियोंको पानी पिलाते हैं। 9. उनकी यह बातचीत हो रही यी, कि राहेल जो पशु चराया करती यी, सो अपके पिता की भेड़-बकरियोंको लिथे हुए आ गई। 10. अपके मामा लाबान की बेटी राहेल को, और उसकी भेड़-बकरियोंको भी देखकर याकूब ने निकट जाकर कुएं के मुंह पर से पत्यर को लुढ़काकर अपके मामा लाबान की भेड़-बकरियोंको पानी पिलाया। 11. तब याकूब ने राहेल को चूमा, और ऊंचे स्वर से रोया। 12. और याकूब ने राहेल को बता दिया, कि मैं तेरा फुफेरा भाई हूं, अर्यात् रिबका का पुत्र हूं : तब उस ने दौड़ के अपके पिता से कह दिया। 13. अपके भानजे याकूब को समाचार पाते ही लाबान उस से भेंट करने को दौड़ा, और उसको गले लगाकर चूमा, फिर अपके घर ले आया। और याकूब ने लाबान से अपना सब वृत्तान्त वर्णन किया। 14. तब लाबान ने याकूब से कहा, तू तो सचमुच मेरी हड्डी और मांस है। सो याकूब एक महीना भर उसके साय रहा। 15. तब लाबान ने याकूब से कहा, भाईबन्धु होने के कारण तुझ से सेंतमेंत सेवा कराना मुझे उचित नहीं है, सो कह मैं तुझे सेवा के बदले क्या दूं ? 16. लाबान के दो बेटियां यी, जिन में से बड़ी का नाम लिआ : और छोटी का राहेल या। 17. लिआ : के तो धुन्धली आंखे यी, पर राहेल रूपवती और सुन्दर यी। 18. सो याकूब ने, जो राहेल से प्रीति रखता या, कहा, मैं तेरी छोटी बेटी राहेल के लिथे सात बरस तेरी सेवा करूंगा। 19. लाबान ने कहा, उसे पराए पुरूष को देने से तुझ को देना उत्तम होगा; सो मेरे पास रह। 20. सो याकूब ने राहेल के लिथे सात बरस सेवा की; और वे उसको राहेल की प्रीति के कारण योड़े ही दिनोंके बराबर जान पके। 21. तब याकूब ने लाबान से कहा, मेरी पत्नी मुझे दे, और मैं उसके पास जाऊंगा, क्योंकि मेरा समय पूरा हो गया है। 22. सो लाबान ने उस स्यान के सब मनुष्योंको बुलाकर इकट्ठा किया, और उनकी जेवनार की। 23. सांफ के समय वह अपक्की बेटी लिआ : को याकूब के पास ले गया, और वह उसके पास गया। 24. और लाबान ने अपक्की बेटी लिआ : को उसकी लौंडी होने के लिथे अपक्की लौंडी जिल्पा दी। 25. भोर को मालूम हुआ कि यह तो लिआ है, सो उस ने लाबान से कहा यह तू ने मुझ से क्या किया है ? मैं ने तेरे साय रहकर जो तेरी सेवा की, सो क्या राहेल के लिथे नहीं की ? फिर तू ने मुझ से क्योंऐसा छल किया है ? 26. लाबान ने कहा, हमारे यहां ऐसी रीति नहीं, कि जेठी से पहिले दूसरी का विवाह कर दें। 27. इसका सप्ताह तो पूरा कर; फिर दूसरी भी तुझे उस सेवा के लिथे मिलेगी जो तू मेरे साय रहकर और सात वर्ष तक करेगा। 28. सो याकूब ने ऐसा ही किया, और लिआ : के सप्ताह को पूरा किया; तब लाबान ने उसे अपक्की बेटी राहेल को भी दिया, कि वह उसकी पत्नी हो। 29. और लाबान ने अपक्की बेटी राहेल की लौंडी होने के लिथे अपक्की लौंडी बिल्हा को दिया। 30. तब याकूब राहेल के पास भी गया, और उसकी प्रीति लिआ: से अधिक उसी पर हुई, और उस ने लाबान के साय रहकर सात वर्ष और उसकी सेवा की।। 31. जब यहोवा ने देखा, कि लिआ: अप्रिय हुई, तब उस ने उसकी कोख खोली, पर राहेल बांफ रही। 32. सो लिआ: गर्भवती हुई, और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, और उस ने यह कहकर उसका नाम रूबेन रखा, कि यहोवा ने मेरे दु:ख पर दृष्टि की है : सो अब मेरा पति मुझ से प्रीति रखेगा। 33. फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और उस ने यह कहा कि यह सुनके, कि मै अप्रिय हूं यहोवा ने मुझे यह भी पुत्र दिया : इसलिथे उस ने उसका नाम शिमोन रखा। 34. फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और उस ने कहा, अब की बार तो मेरा पति मुझ से मिल जाएगा, क्योंकि उस से मेरे तीन पुत्र उत्पन्न हुए : इसलिथे उसका नाम लेवी रखा गया। 35. और फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक और पुत्र उत्पन्न हुआ; और उस ने कहा, अब की बार तो मैं यहोवा का धन्यवाद करूंगी, इसलिथे उस ने उसका नाम यहूदा रखा; तब उसकी कोख बन्द को गई।।
Chapter 30
1. जब राहेल ने देखा, कि याकूब के लिथे मुझ से कोई सन्तान नहीं होता, तब वह अपक्की बहिन से डाह करने लगी : और याकूब से कहा, मुझे भी सन्तान दे, नहीं तो मर जाऊंगी। 2. तब याकूब ने राहेल से क्रोधित होकर कहा, क्या मैं परमेश्वर हूं? तेरी कोख तो उसी ने बन्द कर रखी है। 3. राहेल ने कहा, अच्छा, मेरी लौंडी बिल्हा हाजिर है: उसी के पास जा, वह मेरे घुटनोंपर जनेगी, और उसके द्वारा मेरा भी घर बसेगा। 4. तो उस ने उसे अपक्की लौंडी बिल्हा को दिया, कि वह उसकी पत्नी हो; और याकूब उसके पास गया। 5. और बिल्हा गर्भवती हुई और याकूब से उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ। 6. और राहेल ने कहा, परमेश्वर ने मेरा न्याय चुकाया और मेरी सुनकर मुझे एक पुत्र दिया : इसलिथे उस ने उसका नाम दान रखा। 7. और राहेल की लौंडी बिल्हा फिर गर्भवती हुई और याकूब से एक पुत्र और उत्पन्न हुआ। 8. तब राहेल ने कहा, मैं ने अपक्की बहिन के साय बड़े बल से लिपटकर मल्लयुद्ध किया और अब जीत गई : सो उस ने उसका नाम नप्ताली रखा। 9. जब लिआ: ने देखा कि मैं जनने से रहित हो गई हूं, तब उस ने अपक्की लौंडी जिल्पा को लेकर याकूब की पत्नी होने के लिथे दे दिया। 10. और लिआ: की लौंडी जिल्पा के भी याकूब से एक पुत्र उत्पन्न हुआ। 11. तब लिआ: ने कहा, अहो भाग्य! सो उस ने उसका नाम गाद रखा। 12. फिर लिआ: की लौंडी जिल्पा के याकूब से एक और पुत्र उत्पन्न हुआ। 13. तब लिआ: ने कहा, मै धन्य हूं; निश्चय स्त्रियां मुझे धन्य कहेंगी : सो उस ने उसका नाम आशेर रखा। 14. गेहूं की कटनी के दिनोंमें रूबेन को मैदान में दूदाफल मिले, और वह उनको अपक्की माता लिआ: के पास ले गया, तब राहेल ने लिआ: से कहा, अपके पुत्र के दूदाफलोंमें से कुछ मुझे दे। 15. उस ने उस से कहा, तू ने जो मेरे पति को ले लिया है सो क्या छोटी बात है ? अब क्या तू मेरे पुत्र के दूदाफल भी लेने चाहती है? राहेल ने कहा, अच्छा, तेरे पुत्र के दूदाफलोंके बदले वह आज रात को तेरे संग सोएगा। 16. सो सांफ को जब याकूब मैदान से आ रहा या, तब लिआ: उस से भेंट करने को निकली, और कहा, तुझे मेरे ही पास आना होगा, क्योंकि मै ने अपके पुत्र के दूदाफल देकर तुझे सचमुच मोल लिया। तब वह उस रात को उसी के संग सोया। 17. तब परमेश्वर ने लिआ: की सुनी, सो वह गर्भवती हुई और याकूब से उसके पांचवां पुत्र उत्पन्न हुआ। 18. तब लिआ: ने कहा, में ने जो अपके पति को अपक्की लौंडी दी, इसलिथे परमेश्वर ने मुझे मेरी मंजूरी दी है : सो उस ने उसका नाम इस्साकार रखा। 19. और लिआ: फिर गर्भवती हुई और याकूब से उसके छठवां पुत्र उत्पन्न हुआ। 20. तब लिआ: ने कहा, परमेश्वर ने मुझे अच्छा दान दिया है; अब की बार मेरा पति मेरे संग बना रहेगा, क्योंकि मेरे उस से छ: पुत्र उत्पन्न चुके हैं : से उस ने उसका नाम जबूलून रखा। 21. तत्पश्चात् उसके एक बेटी भी हुई, और उस ने उसका नाम दीना रखा। 22. और परमेश्वर ने राहेल की भी सुधि ली, और उसकी सुनकर उसकी कोख खोली। 23. सो वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; सो उस ने कहा, परमेश्वर ने मेरी नामधराई को दूर कर दिया है। 24. सो उस ने यह कहकर उसका नाम यूसुफ रखा, कि परमेश्वर मुझे एक पुत्र और भी देगा। 25. जब राहेल से यूसुफ उत्पन्न हुआ, तब याकूब ने लाबान से कहा, मुझे विदा कर, कि मैं अपके देश और स्यान को जाऊं। 26. मेरी स्त्रियां और मेरे लड़के-बाले, जिनके लिथे मैं ने तेरी सेवा की है, उन्हें मुझे दे, कि मैं चला जाऊं; तू तो जानता है कि मैं ने तेरी कैसी सेवा की है। 27. लाबान ने उस से कहा, यदि तेरी दृष्टि में मैं ने अनुग्रह पाया है, तो रह जा : क्योंकि मैं ने अनुभव से जान लिया है, कि यहोवा ने तेरे कारण से मुझे आशीष दी है। 28. फिर उस ने कहा, तू ठीक बता कि मैं तुझ को क्या दूं, और मैं उसे दूंगा। 29. उस ने उस से कहा तू जानता है कि मैं ने तेरी कैसी सेवा की, और तेरे पशु मेरे पास किस प्रकार से रहे। 30. मेरे अपके से पहिले वे कितने थे, और अब कितने हो गए हैं; और यहोवा ने मेरे आने पर तुझे तो आशीष दी है : पर मैं अपके घर का काम कब करने पाऊंगा? 31. उस ने फिर कहा, मैं तुझे क्या दूं? याकूब ने कहा, तू मुझे कुछ न दे; यदि तू मेरे लिथे एक काम करे, तो मै फिर तेरी भेड़-बकरियोंको चराऊंगा, और उनकी रझा करूंगा। 32. मैं आज तेरी सब भेड़-बकरियोंके बीच होकर निकलूंगा, और जो भेड़ वा बकरी चित्तीवाली वा चित्कबरी हो, और जो भेड़ काली हो, और जो बकरी चित्कबरी वा चित्तीवाली हो, उन्हें मैं अलग कर रखूंगा : और मेरी मजदूरी में वे ही ठहरेंगी। 33. और जब आगे को मेरी मजदूरी की चर्चा तेरे साम्हने चले, तब धर्म की यही साझी होगी; अर्यात् बकरियोंमें से जो कोई न चित्तीवाली न चित्कबरी हो, और भेड़ोंमें से जो कोई काली न हो, सो यदि मेरे पास निकलें, तो चोरी की ठहरेंगी। 34. तब लाबान ने कहा, तेरे कहने के अनुसार हो। 35. सो उस ने उसी दिन सब धारीवाले और चित्कबरे बकरों, और सब चित्तीवाली और चित्कबरी बकरियोंको, अर्यात् जिन में कुछ उजलापन या, उनको और सब काली भेड़ोंको भी अलग करके अपके पुत्रोंके हाथ सौप दिया। 36. और उस ने अपके और याकूब के बीच में तीन दिन के मार्ग का अन्तर ठहराया : सो याकूब लाबान की भेड़-बकरियोंको चराने लगा। 37. और याकूब ने चनार, और बादाम, और अर्मोन वृझोंकी हरी हरी छडिय़ां लेकर, उनके छिलके कहीं कहीं छीलके, उन्हें धारीदार बना दिया, ऐसी कि उन छडिय़ोंकी सफेदी दिखाई देने लगी। 38. और तब छीली हुई छडिय़ोंको भेड़-बकरियोंके साम्हने उनके पानी पीने के कठौतोंमें खड़ा किया; और जब वे पानी पीने के लिथे आई तब गाभिन हो गई। 39. और छडिय़ोंके साम्हने गाभिन होकर, भेड़-बकरियां धारीवाले, चित्तीवाले और चित्कबरे बच्चे जनीं। 40. तब याकूब ने भेड़ोंके बच्चोंको अलग अलग किया, और लाबान की भेड़-बकरियोंके मुंह को चित्तीवाले और सब काले बच्चोंकी ओर कर दिया; और अपके फुण्ड़ोंको उन से अलग रखा, और लाबान की भेड़-बकरियोंसे मिलने न दिया। 41. और जब जब बलवन्त भेड़-बकरियां गाभिन होती यी, तब तब याकूब उन छडिय़ोंको कठौतोंमे उनके साम्हने रख देता या; जिस से वे छडिय़ोंको देखती हुई गाभिन हो जाएं। 42. पर जब निर्बल भेड़-बकरियां गाभिन होती यी, तब वह उन्हें उनके आगे नहीं रखता या। इस से निर्बल निर्बल लाबान की रही, और बलवन्त बलवन्त याकूब की हो गई। 43. सो वह पुरूष अत्यन्त धनाढय हो गया, और उसके बहुत सी भेड़-बकरियां, और लौंडियां और दास और ऊंट और गदहे हो गए।।
Chapter 31
1. फिर लाबान के पुत्रोंकी थे बातें याकूब के सुनने में आई, कि याकूब ने हमारे पिता का सब कुछ छीन लिया है, और हमारे पिता के धन के कारण उसकी यह प्रतिष्ठा है। 2. और याकूब ने लाबान के मुखड़े पर दृष्टि की और ताड़ लिया, कि वह उसके प्रति पहले के समान नहीं है। 3. तब यहोवा ने याकूब से कहा, अपके पितरोंके देश और अपक्की जन्मभूमि को लौट जा, और मैं तेरे संग रहूंगा। 4. तब याकूब ने राहेल और लिआ: को, मैदान में अपक्की भेड़-बकरियोंके पास, बुलवाकर कहा, 5. तुम्हारे पिता के मुखड़े से मुझे समझ पड़ता है, कि वह तो मुझे पहिले की नाई अब नहीं देखता; पर मेरे पिता का परमेश्वर मेरे संग है। 6. और तुम भी जानती हो, कि मैं ने तुम्हारे पिता की सेवा शक्ति भर की है। 7. और तुम्हारे पिता ने मुझ से छल करके मेरी मजदूरी को दस बार बदल दिया; परन्तु परमेश्वर ने उसको मेरी हानि करने नहीं दिया। 8. जब उस ने कहा, कि चित्तीवाले बच्चे तेरी मजदूरी ठहरेंगे, तब सब भेड़-बकरियां चित्तीवाले ही जनने लगीं, और जब उस ने कहा, कि धारीवाले बच्चे तेरी मजदूरी ठहरेंगे, तब सब भेड़-बकरियां धारीवाले जनने लगीं। 9. इस रीति से परमेश्वर ने तुम्हारे पिता के पशु लेकर मुझ को दे दिए। 10. भेड़-बकरियोंके गाभिन होने के समय मैं ने स्वप्न में क्या देखा, कि जो बकरे बकरियोंपर चढ़ रहे हैं, सो धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले है। 11. और परमेश्वर के दूत ने स्वप्न में मुझ से कहा, हे याकूब : मैं ने कहा, क्या आज्ञा। 12. उस ने कहा, आंखे उठाकर उन सब बकरोंको, जो बकरियोंपर चढ़ रहे हैं, देख, कि वे धारीवाले, चित्तीवाले, और धब्बेवाले हैं; क्योंकि जो कुछ लाबान तुझ से करता है, सो मैं ने देखा है। 13. मैं उस बेतेल का ईश्वर हूं, जहां तू ने एक खम्भे पर तेल डाल दिया, और मेरी मन्नत मानी यी : अब चल, इस देश से निकलकर अपक्की जन्मभूमि को लौट जा। 14. तब राहेल और लिआ : ने उस से कहा, क्या हमारे पिता के घर में अब भी हमारा कुछ भाग वा अंश बचा है? 15. क्या हम उसकी दृष्टि में पराथे न ठहरीं? देख, उस ने हम को तो बेच डाला, और हमारे रूपे को खा बैठा है। 16. सो परमेश्वर ने हमारे पिता का जितना धन ले लिया है, सो हमारा, और हमारे लड़केबालोंको है : अब जो कुछ परमेश्वर ने तुझ से कहा सो कर। 17. तब याकूब ने अपके लड़केबालोंऔर स्त्रियोंको ऊंटोंपर चढ़ाया; 18. और जितने पशुओं को वह पद्दनराम में इकट्ठा करके धनाढय हो गया या, सब को कनान में अपके पिता इसहाक के पास जाने की मनसा से, साय ले गया। 19. लाबान तो अपक्की भेड़ोंका ऊन कतरने के लिथे चला गया या। और राहेल अपके पिता के गृहदेवताओं को चुरा ले गई। 20. सो याकूब लाबान अरामी के पास से चोरी से चला गया, उसको न बताया कि मैं भागा जाता हूं। 21. वह अपना सब कुछ लेकर भागा : और महानद के पार उतरकर अपना मुंह गिलाद के पहाड़ी देश की ओर किया।। 22. तीसरे दिन लाबान को समाचार मिला, कि याकूब भाग गया है। 23. सो उस ने अपके भाइयोंको साय लेकर उसका सात दिन तक पीछा किया, और गिलाद के पहाड़ी देश में उसको जा पकड़ा। 24. तब परमेश्वर ने रात के स्वप्न में आरामी लाबान के पास आकर कहा, सावधान रह, तू याकूब से न तो भला कहना और न बुरा। 25. और लाबान याकूब के पास पहुंच गया, याकूब तो अपना तम्बू गिलाद नाम पहाड़ी देश में खड़ा किए पड़ा या : और लाबान ने भी अपके भाइयोंके साय अपना तम्बू उसी पहाड़ी देश में खड़ा किया। 26. तब लाबान याकूब से कहने लगा, तू ने यह क्या किया, कि मेरे पास से चोरी से चला आया, और मेरी बेटियोंको ऐसा ले आया, जैसा कोई तलवार के बल से बन्दी बनाए गए? 27. तू क्योंचुपके से भाग आया, और मुझ से बिना कुछ कहे मेरे पास से चोरी से चला आया; नहीं तो मैं तुझे आनन्द के साय मृदंग और वीणा बजवाते, और गीत गवाते विदा करता ? 28. तू ने तो मुझे अपके बेटे बेटियोंको चूमने तक न दिया? तू ने मूर्खता की है। 29. तुम लोगोंकी हानि करने की शक्ति मेरे हाथ में तो है; पर तुम्हारे पिता के परमेश्वर ने मुझ से बीती हुई रात में कहा, सावधान रह, याकूब से न तो भला कहना और न बुरा। 30. भला अब तू अपके पिता के घर का बड़ा अभिलाषी होकर चला आया तो चला आया, पर मेरे देवताओं को तू क्योंचुरा ले आया है? 31. याकूब ने लाबान को उत्तर दिया, मैं यह सोचकर डर गया या : कि कहीं तू अपक्की बेटियोंको मुझ से छीन न ले। 32. जिस किसी के पास तू अपके देवताओं को पाए, सो जीता न बचेगा। मेरे पास तेरा जो कुछ निकले, सो भाई-बन्धुओं के साम्हने पहिचानकर ले ले। क्योंकि याकूब न जानता या कि राहेल गृहदेवताओं को चुरा ले आई है। 33. यह सुनकर लाबान, याकूब और लिआ : और दोनोंदासियोंके तम्बुओं मे गया; और कुछ न मिला। तब लिआ: के तम्बू में से निकलकर राहेल के तम्बू में गया। 34. राहेल तो गृहदेवताओं को ऊंट की काठी में रखके उन पर बैठी यी। सो लाबान ने उसके सारे तम्बू में टटोलने पर भी उन्हें न पाया। 35. राहेल ने अपके पिता से कहा, हे मेरे प्रभु; इस से अप्रसन्न न हो, कि मैं तेरे साम्हने नहीं उठी; क्योंकि मैं स्त्रीधर्म से हूं। सो उसके ढूंढ़ ढांढ़ करने पर भी गृहदेवता उसको न मिले। 36. तब याकूब क्रोधित होकर लाबान से फगड़ने लगा, और कहा, मेरा क्या अपराध है? मेरा क्या पाप है, कि तू ने इतना क्रोधित होकर मेरा पीछा किया है ? 37. तू ने जो मेरी सारी सामग्री को टटोलकर देखा, सो तुझ को सारी सामग्री में से क्या मिला? कुछ मिला हो तो उसको यहां अपके और मेरे भाइयोंके सामहने रख दे, और वे हम दोनोंके बीच न्याय करें। 38. इन बीस वर्षोंसे मै तेरे पास रहा; उन में न तो तेरी भेड़-बकरियोंके गर्भ गिरे, और न तेरे मेढ़ोंका मांस मै ने कभी खाया। 39. जिसे बनैले जन्तुओं ने फाड़ डाला उसको मैं तेरे पास न लाता या, उसकी हानि मैं ही उठाता या; चाहे दिन को चोरी जाता चाहे रात को, तू मुझ ही से उसको ले लेता या। 40. मेरी तो यह दशा यी, कि दिन को तो घाम और रात को पाला मुझे खा गया; और नीन्द मेरी आंखोंसे भाग जाती यी। 41. बीस वर्ष तक मैं तेरे घर में रहो; चौदह वर्ष तो मै ने तेरी दोनो बेटियोंके लिथे, और छ: वर्ष तेरी भेड़-बकरियोंके लिथे सेवा की : और तू ने मेरी मजदूरी को दस बार बदल डाला। 42. मेरे पिता का परमेश्वर अर्यात् इब्राहीम का परमेश्वर, जिसका भय इसहाक भी मानता है, यदि मेरी ओर न होता, तो निश्चय तू अब मुझे छूछे हाथ जाने देता। मेरे दु:ख और मेरे हाथोंके परिश्र्म को देखकर परमेश्वर ने बीती हुई रात में तुझे दपटा। 43. लाबान ले याकूब से कहा, थे बेटियोंतो मेरी ही हैं, और थे पुत्र भी मेरे ही हैं, और थे भेड़-बकरियोंभी मेरी ही हैं, और जो कुछ तुझे देख पड़ता है सो सब मेरा ही है : और अब मैं अपक्की इन बेटियोंवा इनके सन्तान से क्या कर सकता हूं ? 44. अब आ मैं और तू दोनोंआपस में वाचा बान्धें, और वह मेरे और तेरे बीच साझी ठहरी रहे। 45. तब याकूब ने एक पत्यर लेकर उसका खम्भा खड़ा किया। 46. तब याकूब ने अपके भाई-बन्धुओं से कहा, पत्यर इकट्ठा करो; यह सुनकर उन्होंने पत्यर इकट्ठा करके एक ढेर लगाया और वहीं ढेर के पास उन्होंने भोजन किया। 47. उस ढेर का नाम लाबान ने तो यज्र सहादुया, पर याकूब ने जिलियाद रखा। 48. लाबान ने कहा, कि यह ढेर आज से मेरे और तेरे बीच साझी रहेगा। इस कारण उसका नाम जिलियाद रखा गया, 49. और मिजपा भी; क्योंकि उस ने कहा, कि जब हम उस दूसरे से दूर रहें तब यहोवा मेरी और तेरी देखभाल करता रहे। 50. यदि तू मेरी बेटियोंको दु:ख दे, वा उनके सिवाय और स्त्रियां ब्याह ले, तो हमारे साय कोई मनुष्य तो न रहेगा; पर देख मेरे तेरे बीच में परमेश्वर साझी रहेगा। 51. फिर लाबान ने याकूब से कहा, इस ढेर को देख और इस खम्भे को भी देख, जिनको मैं ने अपके और तेरे बीच में खड़ा किया है। 52. यह ढेर और यह खम्भा दोनोंइस बात के साझी रहें, कि हानि करने की मनसा से न तो मैं इस ढेर को लांघकर तेरे पास जाऊंगा, न तू इस ढेर और इस खम्भे को लांघकर मेरे पास आएगा। 53. इब्राहीम और नाहोर और उनके पिता; तीनोंका जो परमेश्वर है, सो हम दोनो के बीच न्याय करे। तब याकूब ने उसकी शपय खाई जिसका भय उसका पिता इसहाक मानता या। 54. और याकूब ने उस पहाड़ पर मेलबलि चढ़ाया, और अपके भाई-बन्धुओं को भोजन करने के लिथे बुलाया, सो उन्होंने भोजन करके पहाड़ पर रात बिताई। 55. बिहान को लाबान तड़के उठा, और अपके बेटे बेटियोंको चूमकर और आशीर्वाद देकर चल दिया, और अपके स्यान को लौट गया।
Chapter 32
1. और याकूब ने भी अपना मार्ग लिया और परमेश्वर के दूत उसे आ मिले। 2. उनको देखते ही याकूब ने कहा, यह तो परमेश्वर का दल है सो उस ने उस स्यान का नाम महनैम रखा।। 3. तब याकूब ने सेईर देश में, अर्यात् एदोम देश में, अपके भाई एसाव के पास अपके आगे दूत भेज दिए। 4. और उस ने उन्हें यह आज्ञा दी, कि मेरे प्रभु एसाव से योंकहना; कि तेरा दास याकूब तुझ से योंकहता है, कि मैं लाबान के यहां परदेशी होकर अब तक रहा; 5. और मेरे पास गाय-बैल, गदहे, भेड़-बकरियां, और दास-दासियां है: सो मैं ने अपके प्रभु के पास इसलिथे संदेशा भेजा है, कि तेरी अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो। 6. वे दूत याकूब के पास लौटके कहने लगे, हम तेरे भाई एसाव के पास गए थे, और वह भी तुझ से भेंट करने को चार सौ पुरूष संग लिथे हुए चला आता है। 7. तब याकूब निपट डर गया, और संकट में पड़ा : और यह सोचकर, अपके संगवालोंके, और भेड़-बकरियों, और गाय-बैलों, और ऊंटो के भी अलग अलग दो दल कर लिथे, 8. कि यदि एसाव आकर पहिले दल को मारने लगे, तो दूसरा दल भागकर बच जाएगा। 9. फिर याकूब ने कहा, हे यहोवा, हे मेरे दादा इब्राहीम के परमेश्वर, तू ने तो मुझ से कहा, कि अपके देश और जन्मभूमि में लौट जा, और मैं तेरी भलाई करूंगा : 10. तू ने जो जो काम अपक्की करूणा और सच्चाई से अपके दास के साय किए हैं, कि मैं जो अपक्की छड़ी ही लेकर इस यरदन नदी के पार उतर आया, सो अब मेरे दो दल हो गए हैं, तेरे ऐसे ऐसे कामोंमें से मैं एक के भी योग्य तो नहीं हूं। 11. मेरी बिनती सुनकर मुझे मेरे भाई एसाव के हाथ से बचा : मैं तो उस से डरता हूं, कहीं ऐसा ने हो कि वह आकर मुझे और मां समेत लड़कोंको भी मार डाले। 12. तू ने तो कहा है, कि मैं निश्चय तेरी भलाई करूंगा, और तेरे वंश को समुद्र की बालू के किनकोंके समान बहुत करूंगा, जो बहुतायत के मारे गिने नहीं जो सकते। 13. और उस ने उस दिन की रात वहीं बिताई; और जो कुछ उसके पास या उस में से अपके भाई एसाव की भेंट के लिथे छांट छांटकर निकाला; 14. अर्यात् दो सौ बकरियां, और बीस बकरे, और दो सौ भेड़ें, और बीस मेढ़े, 15. और बच्चोंसमेत दूध देनेवाली तीस ऊंटनियां, और चालीस गाथें, और दस बैल, और बीस गदहियां और उनके दस बच्चे। 16. इनको उस ने फुण्ड फुण्ड करके, अपके दासोंको सौंपकर उन से कहा, मेरे आगे बढ़ जाओ; और फुण्डोंके बीच बीच में अन्तर रखो। 17. फिर उस ने अगले फुण्ड के रखवाले को यह आज्ञा दी, कि जब मेरा भाई एसाव तुझे मिले, और पूछने लगे, कि तू किस का दास है, और कहां जाता है , और थे जो तेरे आगे आगे हैं, सो किस के हैं? 18. तब कहना, कि यह तेरे दास याकूब के हैं। हे मेरे प्रभु एसाव, थे भेंट के लिथे तेरे पास भेजे गए हैं, और वह आप भी हमारे पीछे पीछे आ रहा है। 19. और उस ने दूसरे और तीसरे रखवालोंको भी, वरन उस सभोंको जो फुण्डोंके पीछे पीछे थे ऐसी ही आज्ञा दी, कि जब एसाव तुम को मिले तब इसी प्रकार उस से कहना। 20. और यह भी कहना, कि तेरा दास याकूब हमारे पीछे पीछे आ रहा है। क्योंकि उस ने यह सोचा, कि यह भेंट जो मेरे आगे आगे जाती है, इसके द्वारा मैं उसके क्रोध को शान्त करके तब उसका दर्शन करूंगा; हो सकता है वह मुझ से प्रसन्न हो जाए। 21. सो वह भेंट याकूब से पहिले पार उतर गई, और वह आप उस रात को छावनी में रहा।। 22. उसी रात को वह उठा और अपक्की दोनोंस्त्रियों, और दोनोंलौंडियों, और ग्यारहोंलड़कोंको संग लेकर घाट से यब्बोक नदी के पार उतर गया। 23. और उस ने उन्हें उस नदी के पार उतार दिया वरन अपना सब कुछ पार उतार दिया। 24. और याकूब आप अकेला रह गया; तब कोई पुरूष आकर पह फटने तक उस से मल्लयुद्ध करता रहा। 25. जब उस ने देखा, कि मैं याकूब पर प्रबल नहीं होता, तब उसकी जांघ की नस को छूआ; सो याकूब की जांघ की नस उस से मल्लयुद्ध करते ही करते चढ़ गई। 26. तब उस ने कहा, मुझे जाने दे, क्योंकि भोर हुआ चाहता है; याकूब ने कहा जब तक तू मुझे आशीर्वाद न दे, तब तक मैं तुझे जाने न दूंगा। 27. और उस ने याकूब से पूछा, तेरा नाम क्या है? उस ने कहा याकूब। 28. उस ने कहा तेरा नाम अब याकूब नहीं, परन्तु इस्राएल होगा, क्योंकि तू परमेश्वर से और मनुष्योंसे भी युद्ध करके प्रबल हुआ है। 29. याकूब ने कहा, मैं बिनती करता हूं, मुझे अपना नाम बता। उस ने कहा, तू मेरा नाम क्योंपूछता है? तब उस ने उसको वहीं आशीर्वाद दिया। 30. तब याकूब ने यह कहकर उस स्यान का नाम पक्कीएल रखा: कि परमेश्वर को आम्हने साम्हने देखने पर भी मेरा प्राण बच गया है। 31. पनूएल के पास से चलते चलते सूर्य उदय हो गया, और वह जांघ से लंगड़ाता या। 32. इस्राएली जो पशुओं की जांघ की जोड़वाले जंघानस को आज के दिन तक नहीं खाते, इसका कारण यही है, कि उस पुरूष ने याकूब की जांघ की जोड़ में जंघानस को छूआ या।।
Chapter 33
1. और याकूब ने आंखें उठाकर यह देखा, कि एसाव चार सौ पुरूष संग लिथे हुए चला जाता है। तब उस ने लड़केबालोंको अलग अलग बांटकर लिआ, और राहेल, और दोनोंलौंडियोंको सौप दिया। 2. और उस ने सब के आगे लड़कोंसमेत लौंडियोंको उसके पीछे लड़कोंसमेत लिआ: को, और सब के पीछे राहेल और यूसुफ को रखा, 3. और आप उन सब के आगे बढ़ा, और सात बार भूमि पर गिरके दण्डवत् की, और अपके भाई के पास पहुंचा। 4. तब एसाव उस से भेंट करने को दौड़ा, और उसको ह्रृदय से लगाकर, गले से लिपटकर चूमा : फिर वे दोनोंरो पके। 5. तब उस ने आंखे उठाकर स्त्रियोंऔर लड़के बालोंको देखा; और पूछा, थे जो तेरे साय हैं सो कौन हैं? उस ने कहा, थे तेरे दास के लड़के हैं, जिन्हें परमेश्वर ने अनुग्रह करके मुझ को दिया है। 6. तब लड़कोंसमेत लौंडियोंने निकट आकर दण्डवत् की। 7. फिर लड़कोंसमेत लिआ: निकट आई, और उन्होंने भी दण्डवत् की: पीछे यूसुफ और राहेल ने भी निकट आकर दण्डवत् की। 8. तब उस ने पूछा, तेरा यह बड़ा दल जो मुझ को मिला, उसका क्या प्रयोजन है? उस ने कहा, यह कि मेरे प्रभु की अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो। 9. एसाव ने कहा, हे मेरे भाई, मेरे पास तो बहुत है; जो कुछ तेरा है सो तेरा ही रहे। 10. याकूब ने कहा, नहीं नहीं, यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो मेरी भेंट ग्रहण कर : क्योंकि मैं ने तेरा दर्शन पाकर, मानो परमेश्वर का दर्शन पाया है, और तू मुझ से प्रसन्न हुआ है। 11. सो यह भेंट, जो तुझे भेजी गई है, ग्रहण कर : क्योंकि परमेश्वर ने मुझ पर अनुग्रह किया है, और मेरे पास बहुत है। 12. फिर एसाव ने कहा, आ, हम बढ़ चलें: और मै तेरे आगे आगे चलूंगा। 13. याकूब ने कहा, हे मेरे प्रभु, तू जानता ही है कि मेरे साय सुकुमार लड़के, और दूध देनेहारी भेड़-बकरियां और गाथें है; यदि ऐसे पशु एक दिन भी अधिक हांके जाएं, तो सब के सब मर जाएंगे। 14. सो मेरा प्रभु अपके दास के आगे बढ़ जाए, और मैं इन पशुओं की गति के अनुसार, जो मेरे आगे है, और लड़केबालोंकी गति के अनुसार धीरे धीरे चलकर सेईर में अपके प्रभु के पास पहुंचूंगा। 15. एसाव ने कहा, तो अपके संगवालोंमें से मैं कई एक तेरे साय छोड़ जाऊं। उस ने कहा, यह क्यों? इतना ही बहुत है, कि मेरे प्रभु की अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे। 16. तब एसाव ने उसी दिन सेईर जाने को अपना मार्ग लिया। 17. और याकूब वहां से कूच करके सुक्कोत को गया, और वहां अपके लिथे एक घर, और पशुओं के लिथे फोंपके बनाए: इसी कारण उस स्यान का नाम सुक्कोत पड़ा।। 18. और याकूब जो पद्दनराम से आया या, सो कनान देश के शकेम नगर के पास कुशल झेम से पहुंचकर नगर के साम्हने डेरे खड़े किए। 19. और भूमि के जिस खण्ड पर उस ने अपना तम्बू खड़ा किया, उसको उस ने शकेम के पिता हमोर के पुत्रोंके हाथ से एक सौ कसीतोंमें मोल लिया। 20. और वहां उस ने एक वेदी बनाकर उसका नाम एलेलोहे इस्राएल रखा।।
Chapter 34
1. और लिआ: की बेटी दीना, जो याकूब से उत्पन्न हुई यी, उस देश की लड़कियोंसे भेंट करने को निकली। 2. तब उस देश के प्रधान हित्ती हमोर के पुत्र शकेम ने उसे देखा, और उसे ले जाकर उसके साय कुकर्म करके उसको भ्रष्ट कर डाला। 3. तब उसका मन याकूब की बेटी दीना से लग गया, और उस ने उस कन्या से प्रेम की बातें की, और उस से प्रेम करने लगा। 4. और शकेम ने अपके पिता हमोर से कहा, मुझे इस लड़की को मेरी पत्नी होने के लिथे दिला दे। 5. और याकूब ने सुना, कि शकेम ने मेरी बेटी दीना को अशुद्ध कर डाला है , पर उसके पुत्र उस समय पशुओं के संग मैदान में थे, सो वह उनके आने तक चुप रहा। 6. और शकेम का पिता हमोर निकलकर याकूब से बातचीत करने के लिथे उसके पास गया। 7. और याकूब के पुत्र सुनते ही मैदान से बहुत उदास और क्रोधित होकर आए: क्योंकि शकेम ने याकूब की बेटी के साय कुकर्म करके इस्राएल के घराने से मूर्खता का ऐसा काम किया या, जिसका करना अनुचित या। 8. हमोर ने उन सब से कहा, मेरे पुत्र शकेम का मन तुम्हारी बेटी पर बहुत लगा है, सो उसे उसकी पत्नी होने के लिथे उसको दे दो। 9. और हमारे साय ब्याह किया करो; अपक्की बेटियां हम को दिया करो, और हमारी बेटियोंको आप लिया करो। 10. और हमारे संग बसे रहो: और यह देश तुम्हारे सामने पड़ा है; इस में रहकर लेनदेन करो, और इसकी भूमि को अपके लिथे ले लो। 11. और शकेम ने भी दीना के पिता और भाइयोंसे कहा, यदि मुझ पर तुम लोगोंकी अनुग्रह की दृष्टि हो, तो जो कुछ तुम मुझ से कहा, सो मैं दूंगा। 12. तुम मुझ से कितना ही मूल्य वा बदला क्योंन मांगो, तौभी मैं तुम्हारे कहे के अनुसार दूंगा : परन्तु उस कन्या को पत्नी होने के लिथे मुझे दो। 13. तब यह सोचकर, कि शकेम ने हमारी बहिन दीना को अशुद्ध किया है, याकूब के पुत्रोंने शकेम और उसके पिता हमोर को छल के साय यह उत्तर दिया, 14. कि हम ऐसा काम नहीं कर सकते, कि किसी खतनारहित पुरूष को अपक्की बहिन दें; क्योंकि इस से हमारी नामधराई होगी : 15. इस बात पर तो हम तुम्हारी मान लेंगे, कि हमारी नाई तुम में से हर एक पुरूष का खतना किया जाए। 16. तब हम अपक्की बेटियां तुम्हें ब्याह देंगे, और तुम्हारी बेटियां ब्याह लेंगे, और तुम्हारे संग बसे भी रहेंगे, और हम दोनोंएक ही समुदाय के मनुष्य हो जाएंगे। 17. पर यदि तुम हमारी बात न मानकर अपना खतना न कराओगे, तो हम अपक्की लड़की को लेके यहां से चले जाएंगे। 18. उसकी इस बात पर हमोर और उसका पुत्र शकेम प्रसन्न हुए। 19. और वह जवान, जो याकूब की बेटी को बहुत चाहता या, इस काम को करने में उस ने विलम्ब न किया। वह तो अपके पिता के सारे घराने में अधिक प्रतिष्ठित या। 20. सो हमोर और उसका पुत्र शकेम अपके नगर के फाटक के निकट जाकर नगरवासिक्कों योंसमझाने लगे; 21. कि वे मनुष्य तो हमारे संग मेल से रहना चाहते हैं; सो उन्हें इस देश में रहके लेनदेन करने दो; देखो, यह देश उनके लिथे भी बहुत है; फिर हम लोग उनकी बेटियोंको ब्याह लें, और अपक्की बेटियोंको उन्हें दिया करें। 22. वे लोग केवल इस बात पर हमारे संग रहने और एक ही समुदाय के मनुष्य हो जाने को प्रसन्न हैं, कि उनकी नाई हमारे सब पुरूषोंका भी खतना किया जाए। 23. क्या उनकी भेड़-बकरियां, और गाय-बैल वरन उनके सारे पशु और धन सम्पत्ति हमारी न हो जाएगी? इतना की करें कि हम लोग उनकी बात मान लें, तो वे हमारे संग रहेंगे। 24. सो जितने उस नगर के फाटक से निकलते थे, उन सभोंने हमोर की और उसके पुत्र शकेम की बात मानी; और हर एक पुरूष का खतना किया गया, जितने उस नगर के फाटक से निकलते थे। 25. तीसरे दिन, जब वे लोग पीड़ित पके थे, तब ऐसा हुआ कि शिमोन और लेवी नाम याकूब के दो पुत्रोंने, जो दीना के भाई थे, अपक्की अपक्की तलवार ले उस नगर में निधड़क घुसकर सब पुरूषोंको घात किया। 26. और हमोर और उसके पुत्र शकेम को उन्होंने तलवार से मार डाला, और दीना को शकेम के घर से निकाल ले गए। 27. और याकूब के पुत्रोंने घात कर डालने पर भी चढ़कर नगर को इसलिथे लूट लिया, कि उस में उनकी बहिन अशुद्ध की गई यी। 28. उन्होंने भेड़-बकरी, और गाय-बैल, और गदहे, और नगर और मैदान में जितना धन या ले लिया। 29. उस सब को, और उनके बाल-बच्चों, और स्त्रियोंको भी हर ले गए, वरन घर घर में जो कुछ या, उसको भी उन्होंने लूट लिया। 30. तब याकूब ने शिमोन और लेवी से कहा, तुम ने जो उस देश के निवासी कनानियोंऔर परिज्जियोंके मन में मेरी ओर घृणा उत्पन्न कराई है, इस से तुम ने मुझे संकट में डाला है, क्योंकि मेरे साय तो योड़े की लोग हैं, सो अब वे इकट्ठे होकर मुझ पर चढ़ेंगे, और मुझे मार डालेंगे, सो मैं अपके घराने समेत सत्यानाश हो जाऊंगा। 31. उन्होंने कहा, क्या वह हमारी बहिन के साय वेश्या की नाई बर्ताव करे?
Chapter 35
1. तब परमेश्वर ने याकूब से कहा, यहां से कूच करके बेतेल को जा, और वहीं रह: और वहां ईश्वर के लिथे वेदी बना, जिस ने तुझे उस समय दर्शन दिया, जब तू अपके भाई एसाव के डर से भागा जाता या। 2. तब याकूब ने अपके घराने से, और उन सब से भी जो उसके संग थे, कहा, तुम्हारे बीच में जो पराए देवता हैं, उन्हें निकाल फेंको; और अपके अपके को शुद्ध करो, और अपके वस्त्र बदल डालो; 3. और आओ, हम यहां से कूच करके बेतेल को जाएं; वहां मैं ईश्वर के लिथे एक वेदी बनाऊंगा, जिस ने संकट के दिन मेरी सुन ली, और जिस मार्ग से मैं चलता या, उस में मेरे संग रहा। 4. सो जितने पराए देवता उनके पास थे, और जितने कुण्डल उनके कानोंमें थे, उन सभोंको उन्होंने याकूब को दिया; और उस ने उनको उस सिन्दूर वृझ के नीचे, जो शकेम के पास है, गाड़ दिया। 5. तब उन्होंने कूच किया: और उनके चारोंओर के नगर निवासियोंके मन में परमेश्वर की ओर से ऐसा भय समा गया, कि उन्होंने याकूब के पुत्रोंका पीछा न किया। 6. सो याकूब उन सब समेत, जो उसके संग थे, कनान देश के लूज नगर को आया। वह नगर बेतेल भी कहलाता है। 7. वहां उस ने एक वेदी बनाई, और उस स्यान का नाम एलबेतेल रखा; क्योंकि जब वह अपके भाई के डर से भागा जाता या तब परमेश्वर उस पर वहीं प्रगट हुआ या। 8. और रिबका की दूध पिलानेहारी धाय दबोरा मर गई, और बेतेल के नीचे सिन्दूर वृझ के तले उसको मिट्टी दी गई, और उस सिन्दूर वृझ का नाम अल्लोनबक्कूत रखा गया।। 9. फिर याकूब के पद्दनराम से आने के पश्चात् परमेश्वर ने दूसरी बार उसको दर्शन देकर आशीष दी। 10. और परमेश्वर ने उस से कहा, अब तक तो तेरा नाम याकूब रहा है; पर आगे को तेरा नाम याकूब न रहेगा, तू इस्राएल कहलाएगा : 11. फिर परमेश्वर ने उस से कहा, मैं सर्वशक्तिमान ईश्वर हूं: तू फूले-फले और बढ़े; और तुझ से एक जाति वरन जातियोंकी एक मण्डली भी उत्पन्न होगी, और तेरे वंश में राजा उत्पन्न होंगे। 12. और जो देश मैं ने इब्राहीम और इसहाक को दिया है, वही देश तुझे देता हूं, और तेरे पीछे तेरे वंश को भी दूंगा। 13. तब परमेश्वर उस स्यान में, जहां उस ने याकूब से बातें की, उनके पास से ऊपर चढ़ गया। 14. और जिस स्यान में परमेश्वर ने याकूब से बातें की, वहां याकूब ने पत्यर का एक खम्बा खड़ा किया, और उस पर अर्घ देकर तेल डाल दिया। 15. और जहां परमेश्वर ने याकूब से बातें की, उस स्यान का नाम उस ने बेतेल रखा। 16. फिर उन्होंने बेतेल से कूच किया; और एप्राता योड़ी ही दूर रह गया या, कि राहेल को बच्चा जनने की बड़ी पीड़ा आने लगी। 17. जब उसको बड़ी बड़ी पीड़ा उठती यी तब धाय ने उस से कहा, मत डर; अब की भी तेरे बेटा ही होगा। 18. तब ऐसा हुआ, कि वह मर गई, और प्राण निकलते निकलते उस ने उस बेटे को नाम बेनोनी रखा: पर उसके पिता ने उसका नाम बिन्यामीन रखा। 19. योंराहेल मर गई, और एप्राता, अर्यात् बेतलेहेम के मार्ग में, उसको मिट्टी दी गई। 20. और याकूब ने उसकी कब्र पर एक खम्भा खड़ा किया: राहेल की कब्र का वही खम्भा आज तक बना है। 21. फिर इस्राएल ने कूच किया, और एदेर नाम गुम्मट के आगे बढ़कर अपना तम्बू खड़ा किया। 22. जब इस्राएल उस देश में बसा या, तब एक दिन ऐसा हुआ, कि रूबेन ने जाकर अपके पिता की रखेली बिल्हा के साय कुकर्म किया : और यह बात इस्राएल को मालूम हो गई।। 23. याकूब के बारह पुत्र हुए। उन में से लिआ: के पुत्र थे थे; अर्यात् याकूब का जेठा, रूबेन, फिर शिमोन, लेवी, यहूदा, इस्साकार, और जबूलून। 24. और राहेल के पुत्र थे थे; अर्यात् यूसुफ, और बिन्यामीन। 25. और राहेल की लौन्डी बिल्हा के पुत्र थे थे; अर्यात् दान, और नप्ताली। 26. और लिआ: की लौन्डी जिल्पा के पुत्र थे थे : अर्यात् गाद, और आशेर; याकूब के थे ही पुत्र हुए, जो उस से पद्दनराम में उत्पन्न हुए।। 27. और याकूब मम्रे में, जो करियतअर्बा, अर्यात् हब्रोन है, जहां इब्राहीम और इसहाक परदेशी होकर रहे थे, अपके पिता इसहाक के पास आया। 28. इसहाक की अवस्या एक सौ अस्सी बरस की हुई। 29. और इसहाक का प्राण छूट गया, और वह मर गया, और वह बूढ़ा और पूरी आयु का होकर अपके लोगोंमें जा मिला: और उसके पुत्र एसाव और याकूब ने उसको मिट्टी दी।।
Chapter 36
1. एसाव जो एदोम भी कहलाता है, उसकी यह वंशावली है। 2. एसाव ने तो कनानी लड़कियां ब्याह लीं; अर्यात् हित्ती एलोन की बेटी आदा को, और अहोलीबामा को जो अना की बेटी, और हिव्वी सिबोन की नतिनी यी। 3. फिर उस ने इश्माएल की बेटी बासमत को भी, जो नबायोत की बहिन यी, ब्याह लिया। 4. आदा ने तो एसाव के जन्माए एलीपज को, और बासमत ने रूएल को उत्पन्न किया। 5. और ओहोलीबामा ने यूश, और यालाम, और कोरह को उत्पन्न किया, एसाव के थे ही पुत्र कनान देश में उत्पन्न हुए। 6. और एसाव अपक्की पत्नियों, और बेटे-बेटियों, और घर के सब प्राणियों, और अपक्की भेड़-बकरी, और गाय-बैल आदि सब पशुओं, निदान अपक्की सारी सम्पत्ति को, जो उस ने कनान देश में संचय की यी, लेकर अपके भाई याकूब के पास से दूसरे देश को चला गया। 7. क्योंकि उनकी सम्पत्ति इतनी हो गई यी, कि वे इकट्ठे न रह सके; और पशुओं की बहुतायत के मारे उस देश में, जहां वे परदेशी होकर रहते थे, उनकी समाई न रही। 8. एसाव जो एदोम भी कहलाता है : सो सेईर नाम पहाड़ी देश में रहने लगा। 9. सेईर नाम पहाड़ी देश में रहनेहारे एदोमियोंके मूल पुरूष एसाव की वंशावली यह है : 10. एसाव के पुत्रोंके नाम थे हैं; अर्यात् एसाव की पत्नी आदा का पुत्र एलीपज, और उसी एसाव की पत्नी बासमत का पुत्र रूएल। 11. और एलीपज के थे पुत्र हुए; अर्यात् तेमान, ओमार, सपो, गाताम, और कनज। 12. और एसाव के पुत्र एलीपज के तिम्ना नाम एक सुरैतिन यी, जिस ने एलीपज के जन्माए अमालेक को जन्म दिया : एसाव की पत्नी आदा के वंश में थे ही हुए। 13. और रूएल के थे पुत्र हुए; अर्यात् नहत, जेरह, शम्मा, और मिज्जा : एसाव की पत्नी बासमत के वंश में थे ही हुए। 14. और ओहोलीबामा जो एसाव की पत्नी, और सिबोन की नतिनी और अना की बेटी यी, उसके थे पुत्र हुए : अर्यात् उस ने एसाव के जन्माए यूश, यालाम और कोरह को जन्म दिया। 15. एसाववंशियोंके अधिपति थे हुए : अर्यात् एसाव के जेठे एलीपज के वंश में से तो तेमान अधिपति, ओमार अधिपति, सपो अधिपति, कनज अधिपति, 16. कोरह अधिपति, गाताम अधिपति, अमालेख अधिपति : एलीपज वंशियोंमे से, एदोम देश में थे ही अधिपति हुए : और थे ही आदा के वंश में हुए। 17. और एसाव के पुत्र रूएल के वंश में थे हुए; अर्यात् नहत अधिपति, जेरह अधिपति, शम्मा अधिपति, मिज्जा अधिपति: रूएलवंशियोंमें से, एदोम देश में थे ही अधिपति हुए; और थे ही एसाव की पत्नी बासमत के वंश में हुए। 18. और एसाव की पत्नी ओहोलीबामा के वंश में थे हुए; अर्यात् यूश अधिपति, यालाम अधिपति, कोरह अधिपति, अना की बेटी ओहोलीबामा जो एसाव की पत्नी यी उसके वंश में थे ही हुए। 19. एसाव जो एदोम भी कहलाता है, उसके वंश थे ही हैं, और उनके अधिपति भी थे ही हुए।। 20. सेईर जो होरी नाम जाति का या उसके थे पुत्र उस देश में पहिले से रहते थे; अर्यात् लोतान, शोबाल, शिबोन, अना, 21. दीशोन, एसेर, और दीशान; एदोम देश में सेईर के थे ही होरी जातिवाले अधिपति हुए। 22. और लोतान के पुत्र, होरी, और हेमाम हुए; और लोतान की बहिन तिम्ना यी। 23. और शोबाल के थे पुत्र हुए; अर्यात् आल्वान, मानहत, एबाल, शपो, और ओनाम। 24. और सिदोन के थे पुत्र हुए; अर्यात् अय्या, और अना; यह वही अना है जिस को जंगल में अपके पिता सिबोन के गदहोंको चराते चराते गरम पानी के फरने मिले। 25. और अना के दीशोन नाम पुत्र हुआ, और उसी अना के ओहोलीबामा नाम बेटी हुई। 26. और दीशोन के थे पुत्र हुए; अर्यात् हेमदान, एश्बान, यित्रान, और करान। 27. एसेर के थे पुत्र हुए; अर्यात् बिल्हान, जावान, और अकान। 28. दीशान के थे पुत्र हुए; अर्यात् ऊस, और अकान। 29. होरियोंके अधिपति थे हुए; अर्यात् लोतान अधिपति, शोबाल अधिपति, शिबोन अधिपति, अना अधिपति, 30. दीशोन अधिपति, एसेर अधिपति, दीशान अधिपति, सेईर देश में होरी जातिवाले थे ही अधिपति हुए। 31. फिर जब इस्राएलियोंपर किसी राजा ने राज्य न किया या, तब भी एदोम के देश में थे राजा हुए; 32. अर्यात् बोर के पुत्र बेला ने एदोम में राज्य किया, और उसकी राजधानी का नाम दिन्हाबा है। 33. बेला के मरने पर, बोस्रानिवासी जेरह का पुत्र योबाब उसके स्यान पर राजा हुआ। 34. और योबाब के मरने पर, तेमानियोंके देश का निवासी हूशाम उसके स्यान पर राजा हुआ। 35. और हूशाम के मरने पर, बदद का पुत्र हदद उसके स्यान पर राजा हुआ : यह वही है जिस ने मिद्यानियोंको मोआब के देश में मार लिया, और उसकी राजधानी का नाम अबीत है। 36. और हदद के मरने पर, मस्रेकावासी सम्ला उसके स्यान पर राजा हुआ। 37. फिर सम्ला के मरने पर, शाऊल जो महानद के तटवाले रहोबोत नगर का या, सो उसके स्यान पर राजा हुआ। 38. और शाऊल के मरने पर, अकबोर का पुत्र बाल्हानान उसके स्यान पर राजा हुआ। 39. और अकबोर के पुत्र बाल्हानान के मरने पर, हदर उसके स्यान पर राजा हुआ : और उसकी राजधानी का नाम पाऊ है; और उसकी पत्नी का नाम महेतबेल है, जो मेजाहब की नतिनी और मत्रेद की बेटी यी। 40. फिर एसाववंशियोंके अधिपतियोंके कुलों, और स्यानोंके अनुसार उनके नाम थे हैं; अर्यात् तिम्ना अधिपति, अल्बा अधिपति, यतेत अधिपति, 41. ओहोलीबामा अधिपति, एला अधिपति, पीनोन अधिपति, 42. कनज अधिपति, तेमान अधिपति, मिसबार अधिपति, 43. मग्दीएल अधिपति, ईराम अधिपति: एदोमवंशियोंने जो देश अपना कर लिया या, उसके निवासस्यानोंमें उनके थे ही अधिपति हुए। और एदोमी जाति का मूलपुरूष एसाव है।।
Chapter 37
1. याकूब तो कनान देश में रहता या, जहां उसका पिता परदेशी होकर रहा या। 2. और याकूब के वंश का वृत्तान्त यह है : कि यूसुफ सतरह वर्ष का होकर भाइयोंके संग भेड़-बकरियोंको चराता या; और वह लड़का अपके पिता की पत्नी बिल्हा, और जिल्पा के पुत्रोंके संग रहा करता या : और उनकी बुराईयोंका समाचार अपके पिता के पास पहुंचाया करता या : 3. और इस्राएल अपके सब पुत्रोंसे बढ़के यूसुफ से प्रीति रखता या, क्योंकि वह उसके बुढ़ापे का पुत्र या : और उस ने उसके लिथे रंग बिरंगा अंगरखा बनवाया। 4. सो जब उसके भाईयोंने देखा, कि हमारा पिता हम सब भाइयोंसे अधिक उसी से प्रीति रखता है, तब वे उस से बैर करने लगे और उसके साय ठीक तौर से बात भी नहीं करते थे। 5. और यूसुफ ने एक स्वप्न देखा, और अपके भाइयोंसे उसका वर्णन किया : तब वे उस से और भी द्वेष करने लगे। 6. और उस ने उन से कहा, जो स्वप्न मैं ने देखा है, सो सुनो : 7. हम लोग खेत में पूले बान्ध रहे हैं, और क्या देखता हूं कि मेरा पूला उठकर सीधा खड़ा हो गया; तब तुम्हारे पूलोंने मेरे पूले को चारोंतरफ से घेर लिया और उसे दण्डवत् किया। 8. तब उसके भाइयोंने उस से कहा, क्या सचमुच तू हमारे ऊपर राज्य करेगा ? वा सचमुच तू हम पर प्रभुता करेगा ? सो वे उसके स्वप्नोंऔर उसकी बातोंके कारण उस से और भी अधिक बैर करने लगे। 9. फिर उस ने एक और स्वप्न देखा, और अपके भाइयोंसे उसका भी योंवर्णन किया, कि सुनो, मैं ने एक और स्वप्न देखा है, कि सूर्य और चन्द्रमा, और ग्यारह तारे मुझे दण्डवत् कर रहे हैं। 10. यह स्वप्न उस ने अपके पिता, और भाइयोंसे वर्णन किया : तब उसके पिता ने उसको दपटके कहा, यह कैसा स्वप्न है जो तू ने देखा है? क्या सचमुच मैं और तेरी माता और तेरे भाई सब जाकर तेरे आगे भूमि पर गिरके दण्डवत् करेंगे? 11. उसके भाई तो उससे डाह करते थे; पर उसके पिता ने उसके उस वचन को स्मरण रखा। 12. और उसके भाई अपके पिता की भेड़-बकरियोंको चराने के लिथे शकेम को गए। 13. तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, तेरे भाई तो शकेम ही में भेड़-बकरी चरा रहें होंगे, सो जा, मैं तुझे उनके पास भेजता हूं। उस ने उस से कहा जो आज्ञा मैं हाजिर हूं। 14. उस ने उस से कहा, जा, अपके भाइयोंऔर भेड़-बकरियोंका हाल देख आ कि वे कुशल से तो हैं, फिर मेरे पास समाचार ले आ। सो उस ने उसको हेब्रोन की तराई में विदा कर दिया, और वह शकेम में आया। 15. और किसी मनुष्य ने उसको मैदान में इधर उधर भटकते हुए पाकर उस से पूछा, तू क्या ढूंढता है? 16. उस ने कहा, मैं तो अपके भाइयोंको ढूंढता हूं : कृपा कर मुझे बता, कि वे भेड़-बकरियोंको कहां चरा रहे हैं? 17. उस मनुष्य ने कहा, वे तो यहां से चले गए हैं : और मैं ने उनको यह कहते सुना, कि आओ, हम दोतान को चलें। सो यूसुफ अपके भाइयोंके पास चला, और उन्हें दोतान में पाया। 18. और ज्योंही उन्होंने उसे दूर से आते देखा, तो उसके निकट आने के पहिले ही उसे मार डालने की युक्ति की। 19. और वे आपस में कहने लगे, देखो, वह स्वप्न देखनेहारा आ रहा है। 20. सो आओ, हम उसको घात करके किसी गड़हे में डाल दें, और यह कह देंगे, कि कोई दुष्ट पशु उसको खा गया। फिर हम देखेंगे कि उसके स्वप्नोंका क्या फल होगा। 21. यह सुनके रूबेन ने उसको उनके हाथ से बचाने की मनसा से कहा, हम उसको प्राण से तो न मारें। 22. फिर रूबेन ने उन से कहा, लोहू मत बहाओ, उसको जंगल के इस गड़हे में डाल दो, और उस पर हाथ मत उठाओ। वह उसको उनके हाथ से छुड़ाकर पिता के पास फिर पहुंचाना चाहता या। 23. सो ऐसा हुआ, कि जब यूसुफ अपके भाइयोंके पास पहुंचा तब उन्होंने उसका रंगबिरंगा अंगरखा, जिसे वह पहिने हुए या, उतार लिया। 24. और यूसुफ को उठाकर गड़हे में डाल दिया : वह गड़हा तो सूखा या और उस में कुछ जल न या। 25. तब वे रोटी खाने को बैठ गए : और आंखे उठाकर क्या देखा, कि इश्माएलियोंका एक दल ऊंटो पर सुगन्धद्रव्य, बलसान, और गन्धरस लादे हुए, गिलाद से मिस्र को चला जा रहा है। 26. तब यहूदा ने अपके भाइयोंसे कहा, अपके भाई को घात करने और उसका खून छिपाने से क्या लाभ होगा ? 27. आओ, हम उसे इश्माएलियोंके हाथ बेच डालें, और अपना हाथ उस पर न उठाएं, क्योंकि वह हमारा भाई और हमारी हड्डी और मांस है, सो उसके भाइयोंने उसकी बात मान ली। तब मिद्यानी व्यापारी उधर से होकर उनके पास पहुंचे : 28. सो यूसुफ के भाइयोंने उसको उस गड़हे में से खींचके बाहर निकाला, और इश्माएलियोंके हाथ चांदी के बीस टुकड़ोंमें बेच दिया : और वे यूसुफ को मिस्र में ले गए। 29. और रूबेन ने गड़हे पर लौटकर क्या देखा, कि यूसुफ गड़हे में नहीं हैं; सो उस ने अपके वस्त्र फाड़े। 30. और अपके भाइयोंके पास लौटकर कहने लगा, कि लड़का तो नहीं हैं; अब मैं किधर जाऊं ? 31. और तब उन्होंने यूसुफ का अंगरखा लिया, और एक बकरे को मारके उसके लोहू में उसे डुबा दिया। 32. और उन्होंने उस रंग बिरंगे अंगरखे को अपके पिता के पास भेजकर कहला दिया; कि यह हम को मिला है, सो देखकर पहिचान ले, कि यह तेरे पुत्र का अंगरखा है कि नहीं। 33. उस ने उसको पहिचान लिया, और कहा, हां यह मेरे ही पुत्र का अंगरखा है; किसी दुष्ट पशु ने उसको खा लिया है; नि:सन्देह यूसुफ फाड़ डाला गया है। 34. तब याकूब ने अपके वस्त्र फाड़े और कमर में टाट लपेटा, और अपके पुत्र के लिथे बहुत दिनोंतक विलाप करता रहा। 35. और उसके सब बेटे-बेटियोंने उसको शान्ति देने का यत्न किया; पर उसको शान्ति न मिली; और वह यही कहता रहा, मैं तो विलाप करता हुआ अपके पुत्र के पास अधोलोक में उतर जाऊंगा। इस प्रकार उसका पिता उसके लिथे रोता ही रहा। 36. और मिद्यानियोंने यूसुफ को मिस्र में ले जाकर पोतीपर नाम, फिरौन के एक हाकिम, और जल्लादोंके प्रधान, के हाथ बेच डाला।।
Chapter 38
1. उन्हीं दिनोंमें ऐसा हुआ, कि यहूदा अपके भाईयोंके पास से चला गया, और हीरा नाम एक अदुल्लामवासी पुरूष के पास डेरा किया। 2. वहां यहूदा ने शूआ नाम एक कनानी पुरूष की बेटी को देखा; और उसको ब्याहकर उसके पास गया। 3. वह गर्भवती हुई, और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और यहूदा ने उसका नाम एर रखा। 4. और वह फिर गर्भवती हुई, और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और उसका नाम ओनान रखा गया। 5. फिर उसके एक पुत्र और उत्पन्न हुआ, और उसका नाम शेला रखा गया : और जिस समय इसका जन्म हुआ उस समय यहूदा कजीब में रहता या। 6. और यहूदा ने तामार नाम एक स्त्री से अपके जेठे एर का विवाह कर दिया। 7. परन्तु यहूदा का वह जेठा एर यहोवा के लेखे में दुष्ट या, इसलिथे यहोवा ने उसको मार डाला। 8. तब यहूदा ने ओनान से कहा, अपक्की भौजाई के पास जा, और उसके साय देवर का धर्म पूरा करके अपके भाई के लिथे सन्तान उत्पन्न कर। 9. ओनान तो जानता या कि सन्तान तो मेरी न ठहरेगी: सो ऐसा हुआ, कि जब वह अपक्की भौजाई के पास गया, तब उस ने भूमि पर वीर्य गिराकर नाश किया, जिस से ऐसा न हो कि उसके भाई के नाम से वंश चले। 10. यह काम जो उस ने किया उसे यहोवा अप्रसन्न हुआ: और उस ने उसको भी मार डाला। 11. तब यहूदा ने इस डर के मारे, कि कहीं ऐसा न हो कि अपके भाइयोंकी नाई शेला भी मरे, अपक्की बहू तामार से कहा, जब तक मेरा पुत्र शेला सियाना न हो तब तक अपके पिता के घर में विधवा की बैठी रह, सो तामार अपके पिता के घर में जाकर रहने लगी। 12. बहुत समय के बीतने पर यहूदा की पत्नी जो शूआ की बेटी यी सो मर गई; फिर यहूदा शोक से छूटकर अपके मित्र हीरा अदुल्लामवासी समेत अपक्की भेड़-बकरियोंका ऊन कतराने के लिथे तिम्नाय को गया। 13. और तामार को यह समाचार मिला, कि तेरा ससुर अपक्की भेड़-बकरियोंका ऊन कतराने के लिथे तिम्नाय को जा रहा है। 14. तब उस ने यह सोचकर, कि शेला सियाना तो हो गया पर मैं उसकी स्त्री नहीं होने पाई; अपना विधवापन का पहिरावा उतारा, और घूंघट डालकर अपके को ढांप लिया, और एनैम नगर के फाटक के पास, जो तिम्नाय के मार्ग में है, जा बैठी: 15. जब यहूदा ने उसको देखा, उस ने उस को वेश्या समझा; क्योंकि वह अपना मुंह ढ़ापे हुए यी। 16. और वह मार्ग से उसकी ओर फिरा और उस से कहने लगा, मुझे अपके पास आने दे, (क्योंकि उसे यह मालूम न या कि वह उसकी बहू है)। और वह कहने लगी, कि यदि मैं तुझे अपके पास आने दूं, तो तू मुझे क्या देगा? 17. उस ने कहा, मैं अपक्की बकरियोंमें से बकरी का एक बच्चा तेरे पास भेज दूंगा। 18. उस ने पूछा, मैं तेरे पास क्या रेहन रख जाऊं? उस ने कहा, अपक्की मुहर, और बाजूबन्द, और अपके हाथ की छड़ी। तब उस ने उसको वे वसतुएं दे दीं, और उसके पास गया, और वह उस से गर्भवती हुई। 19. तब वह उठकर चक्की गई, और अपना घूंघट उतारके अपना विधवापन का पहिरावा फिर पहिन लिया। 20. तब यहूदा ने बकरी का बच्चा अपके मित्र उस अदुल्लामवासी के हाथ भेज दिया, कि वह रेहन रखी हुई वस्तुएं उस स्त्री के हाथ से छुड़ा ले आए; पर वह स्त्री उसको न मिली। 21. तब उस ने वहां के लोगोंसे पूछा, कि वह देवदासी जो एनैम में मार्ग की एक और बैठी यी, कहां है? उन्होंने कहा, यहां तो कोई देवदासी न यी। 22. सो उस ने यहूदा के पास लौटके कहा, मुझे वह नहीं मिली; और उस स्यान के लोगोंने कहा, कि यहां तो कोई देवदासी न यी। 23. तब यहूदा ने कहा, अच्छा, वह बन्धक उस के पास रहने दे, नहीं तो हम लोग तुच्छ गिने जाएंगे: देख, मैं ने बकरी का यह बच्चा भेज दिया, पर वह तुझे नहीं मिली। 24. और तीन महीने के पीछे यहूदा को यह समाचार मिला, कि तेरी बहू तामार ने व्यभिचार किया है; वरन वह व्यभिचार से गर्भवती भी हो गई है। तब यहूदा ने कहा, उसको बाहर ले आओ, कि वह जलाई जाए। 25. जब उसे बाहर निकाल रहे थे, तब उस ने, अपके ससुर के पास यह कहला भेजा, कि जिस पुरूष की थे वस्तुएं हैं, उसी से मैं गर्भवती हूं; फिर उस ने यह भी कहलाया, कि पहिचान तो सही, कि यह मुहर, और वाजूबन्द, और छड़ी किस की है। 26. यहूदा ने उन्हें पहिचानकर कहा, वह तो मुझ से कम दोषी है; क्योंकि मैं ने उसे अपके पुत्र शेला को न ब्याह दिया। और उस ने उस से फिर कभी प्रसंग न किया। 27. जब उसके जनने का समय आया, तब यह जान पड़ा कि उसके गर्भ में जुड़वे बच्चे हैं। 28. और जब वह जनने लगी तब एक बालक ने अपना हाथ बढ़ाया: और धाय ने लाल सूत लेकर उसके हाथ में यह कहते हुथे बान्ध दिया, कि पहिले यही उत्पन्न हुआ। 29. जब उस ने हाथ समेट लिया, तब उसका भाई उत्पन्न हो गया: तब उस धाय ने कहा, तू क्योंबरबस निकल आया है ? इसलिथे उसका नाम पेरेस रखा गया। 30. पीछे उसका भाई जिसके हाथ में लाल सूत बन्धा या उत्पन्न हुआ, और उसका नाम जेरह रखा गया।।
Chapter 39
1. जब यूसुफ मिस्र में पहुंचाया गया, तब पोतीपर नाम एक मिस्री, जो फिरौन का हाकिम, और जल्लादोंका प्रधान या, उस ने उसको इश्माएलियोंके हाथ, से जो उसे वहां ले गए थे, मोल लिया। 2. और यूसुफ अपके मिस्री स्वामी के घर में रहता या, और यहोवा उसके संग या; सो वह भाग्यवान् पुरूष हो गया। 3. और यूसुफ के स्वामी ने देखा, कि यहोवा उसके संग रहता है, और जो काम वह करता है उसको यहोवा उसके हाथ से सुफल कर देता है। 4. तब उसकी अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई, और वह उसकी सेवा टहल करने के लिथे नियुक्त किया गया : फिर उस ने उसको अपके घर का अधिक्कारनेी बनाके अपना सब कुछ उसके हाथ में सौप दिया। 5. और जब से उस ने उसको अपके घर का और अपक्की सारी सम्पत्ति का अधिक्कारनेी बनाया, तब से यहोवा यूसुफ के कारण उस मिस्री के घर पर आशीष देने लगा; और क्या घर में, क्या मैदान में, उसका जो कुछ या, सब पर यहोवा की आशीष होने लगी। 6. सो उस ने अपना सब कुछ यूसुफ के हाथ में यहां तक छोड़ दिया: कि अपके खाने की रोटी को छोड़, वह अपक्की सम्पत्ति का हाल कुछ न जानता या। और यूसुफ सुन्दर और रूपवान् या। 7. इन बातोंके पश्चात् ऐसा हुआ, कि उसके स्वामी की पत्नी ने यूसुफ की ओर आंख लगाई; और कहा, मेरे साय सो। 8. पर उस ने अस्वीकार करते हुए अपके स्वामी की पत्नी से कहा, सुन, जो कुछ इस घर में है मेरे हाथ में है; उसे मेरा स्वामी कुछ नहीं जानता, और उस ने अपना सब कुछ मेरे हाथ में सौप दिया है। 9. इस घर में मुझ से बड़ा कोई नहीं; और उस ने तुझे छोड़, जो उसकी पत्नी है; मुझ से कुछ नहीं रख छोड़ा; सो भला, मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्वर का अपराधी क्योंकर बनूं ? 10. और ऐसा हुआ, कि वह प्रति दिन यूसुफ से बातें करती रही, पर उस ने उसकी न मानी, कि उसके पास लेटे वा उसके संग रहे। 11. एक दिन क्या हुआ, कि यूसुफ अपना काम काज करने के लिथे घर में गया, और घर के सेवकोंमें से कोई भी घर के अन्दर न या। 12. तब उस स्त्री ने उसका वस्त्र पकड़कर कहा, मेरे साय सो, पर वह अपना वस्त्र उसके हाथ में छोड़कर भागा, और बाहर निकल गया। 13. यह देखकर, कि वह अपना वस्त्र मेरे हाथ में छोड़कर बाहर भाग गया, 14. उस स्त्री ने अपके घर के सेवकोंको बुलाकर कहा, देखो, वह एक इब्री मनुष्य को हमारा तिरस्कार करने के लिथे हमारे पास ले आया है। वह तो मेरे साय सोने के मतलब से मेरे पास अन्दर आया या और मैं ऊंचे स्वर से चिल्ला उठी। 15. और मेरी बड़ी चिल्लाहट सुनकर वह अपना वस्त्र मेरे पास छोड़कर भागा, और बाहर निकल गया। 16. और वह उसका वस्त्र उसके स्वामी के घर आने तक अपके पास रखे रही। 17. तब उस ने उस से इस प्रकार की बातें कहीं, कि वह इब्री दास जिसको तू हमारे पास ले आया है, सो मुझ से हंसी करने के लिथे मेरे पास आया या। 18. और जब मैं ऊंचे स्वर से चिल्ला उठी, तब वह अपना वस्त्र मेरे पास छोड़कर बाहर भाग गया। 19. अपक्की पत्नी की थे बातें सुनकर, कि तेरे दास ने मुझ से ऐसा ऐसा काम किया, यूसुफ के स्वामी का कोप भड़का। 20. और यूसुफ के स्वामी ने उसको पकड़कर बन्दीगृह में, जहां राजा के कैदी बन्द थे, डलवा दिया : सो वह उस बन्दीगृह में रहने लगा। 21. पर यहोवा यूसुफ के संग संग रहा, और उस पर करूणा की, और बन्दीगृह के दरोगा के अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई। 22. सो बन्दीगृह के दरोगा ने उन सब बन्धुओं को, जो कारागार में थे, यूसुफ के हाथ में सौप दिया; और जो जो काम वे वहां करते थे, वह उसी की आज्ञा से होता या। 23. बन्दीगृह के दरोगा के वश में जो कुछ या; क्योंकि उस में से उसको कोई भी वस्तु देखनी न पड़ती यी; इसलिथे कि यहोवा यूसुफ के साय या; और जो कुछ वह करता या, यहोवा उसको उस में सफलता देता या।
Chapter 40
1. इन बातोंके पश्चात् ऐसा हुआ, कि मिस्र के राजा के पिलानेहारे और पकानेहारे ने अपके स्वामी का कुछ अपराध किया। 2. तब फिरौन ने अपके उन दोनोंहाकिमोंपर, अर्यात् पिलानेहारे के प्रधान, और पकानेहारोंके प्रधान पर क्रोधित होकर 3. उन्हें कैद कराके, जल्लादोंके प्रधान के घर के उसी बन्दीगृह में, जहां यूसुफ बन्धुआ या, डलवा दिया। 4. तब जल्लादोंके प्रधान ने उनको यूसुफ के हाथ सौपा, और वह उनकी सेवा टहल करने लगा: सो वे कुछ दिन तक बन्दीगृह में रहे। 5. और मिस्र के राजा का पिलानेहारा और पकानेहारा, जो बन्दीगृह में बन्द थे, उन दोनोंने एक ही रात में, अपके अपके होनहार के अनुसार, स्वप्न देखा। 6. बिहान को जब यूसुफ उनके पास अन्दर गया, तब उन पर उस ने जो दृष्टि की, तो क्या देखता है, कि वे उदास हैं। 7. सो उस ने फिरौन के उन हाकिमोंसे, जो उसके साय उसके स्वामी के घर के बन्दीगृह में थे, पूछा, कि आज तुम्हारे मुंह क्योंउदास हैं ? 8. उन्होंने उस से कहा, हम दोनो ने स्वप्न देखा है, और उनके फल का बतानेवाला कोई भी नहीं। यूसुफ ने उन से कहा, क्या स्वप्नोंका फल कहना परमेश्वर का काम नहीं है? मुझे अपना अपना स्वप्न बताओ। 9. तब पिलानेहारोंका प्रधान अपना स्वप्न यूसुफ को योंबताने लगा: कि मैं ने स्वप्न में देखा, कि मेरे साम्हने एक दाखलता है; 10. और उस दाखलता में तीन डालियां हैं: और उस में मानो कलियां लगीं हैं, और वे फूलीं और उसके गुच्छोंमें दाख लगकर पक गई। 11. और फिरौन का कटोरा मेरे हाथ में या: सो मै ने उन दाखोंको लेकर फिरौन के कटोरे में निचोड़ा और कटोरे को फिरौन के हाथ में दिया। 12. यूसुफ ने उस से कहा, इसका फल यह है; कि तीन डालियोंका अर्य तीन दिन है: 13. सो अब से तीन दिन के भीतर फिरौन तेरा सिर ऊंचा करेगा, और फिर से तेरे पद पर तुझे नियुक्त करेगा, और तू पहले की नाई फिरौन का पिलानेहारा होकर उसका कटोरा उसके हाथ में फिर दिया करेगा। 14. सो जब तेरा भला हो जाए तब मुझे स्मरण करना, और मुझ पर कृपा करके, फिरौन से मेरी चर्चा चलाना, और इस घर से मुझे छुड़वा देना। 15. क्योंकि सचमुच इब्रानियोंके देश से मुझे चुरा कर ले आए हैं, और यहां भी मै ने कोई ऐसा काम नहीं किया, जिसके कारण मैं इस कारागार में डाला जाऊं। 16. यह देखकर, कि उसके स्वप्न का फल अच्छा निकला, पकानेहारोंके प्रधान ने यूसुफ से कहा, मैं ने भी स्वप्न देखा है, वह यह है: मै ने देखा, कि मेरे सिर पर सफेद रोटी की तीन टोकरियां है: 17. और ऊपर की टोकरी में फिरौन के लिथे सब प्रकार की पक्की पकाई वस्तुएं हैं; और पक्की मेरे सिर पर की टोकरी में से उन वस्तुओं को खा रहे हैं। 18. यूसुफ ने कहा, इसका फल यह है; कि तीन टोकरियोंका अर्य तीन दिन है। 19. सो अब से तीन दिन के भीतर फिरौन तेरा सिर कटवाकर तुझे एक वृझ पर टंगवा देगा, और पक्की तेरे मांस को नोच नोच कर खाएंगे। 20. और तीसरे दिन फिरौन का जन्मदिन या, उस ने अपके सब कर्मचारियोंकी जेवनार की, और उन में से पिलानेहारोंके प्रधान, और पकानेहारोंके प्रधान दोनोंको बन्दीगृह से निकलवाया। 21. और पिलानेहारोंके प्रधान को तो पिलानेहारे के पद पर फिर से नियुक्त किया, और वह फिरौन के हाथ में कटोरा देने लगा। 22. पर पकानेहारोंके प्रधान को उस ने टंगवा दिया, जैसा कि यूसुफ ने उनके स्वप्नोंका फल उन से कहा या। 23. फिर भी पिलानेहारोंके प्रधान ने यूसुफ को स्मरण न रखा; परन्तु उसे भूल गया।।
Chapter 41
1. पूरे दो बरस के बीतने पर फिरौन ने यह स्वप्न देखा, कि वह नील नदी के किनारे पर खड़ा है। 2. और उस नदी में से सात सुन्दर और मोटी मोटी गाथें निकलकर कछार की घास चरने लगीं। 3. और, क्या देखा, कि उनके पीछे और सात गाथें, जो कुरूप और दुर्बल हैं, नदी से निकली; और दूसरी गायोंके निकट नदी के तट पर जा खड़ी हुई। 4. तब थे कुरूप और दुर्बल गाथें उन सात सुन्दर और मोटी मोटी गायोंको खा गई। तब फिरौन जाग उठा। 5. और वह फिर सो गया और दूसरा स्वप्न देखा, कि एक डंठी में से सात मोटी और अच्छी अच्छी बालें निकलीं। 6. और, क्या देखा, कि उनके पीछे सात बालें पतली और पुरवाई से मुरफाई हुई निकलीं। 7. और इन पतली बालोंने उन सातोंमोटी और अन्न से भरी हुई बालोंको निगल लिया। तब फिरौन जागा, और उसे मालूम हुआ कि यह स्वप्न ही या। 8. भोर को फिरौन का मन व्याकुल हुआ; और उस ने मिस्र के सब ज्योतिषियों, और पण्डितोंको बुलवा भेजा; और उनको अपके स्वप्न बताएं; पर उन में से कोई भी उनका फल फिरौन से न कह सहा। 9. तब पिलानेहारोंका प्रधान फिरौन से बोल उठा, कि मेरे अपराध आज मुझे स्मरण आए: 10. जब फिरौन अपके दासोंसे क्रोधित हुआ या, और मुझे और पकानेहारोंके प्रधान को कैद कराके जल्लादोंके प्रधान के घर के बन्दीगृह में डाल दिया या; 11. तब हम दोनोंने, एक ही रात में, अपके अपके होनहार के अनुसार स्वप्न देखा; 12. और वहां हमारे साय एक इब्री जवान या, जो जल्लादोंके प्रधान का दास या; सो हम ने उसको बताया, और उस ने हमारे स्वप्नोंका फल हम से कहा, हम में से एक एक के स्वप्न का फल उस ने बता दिया। 13. और जैसा जैसा फल उस ने हम से कहा या, वैसा की हुआ भी, अर्यात् मुझ को तो मेरा पद फिर मिला, पर वह फांसी पर लटकाया गया। 14. तब फिरौन ने यूसुफ को बुलवा भेजा। और वह फटपट बन्दीगृह से बाहर निकाला गया, और बाल बनवाकर, और वस्त्र बदलकर फिरौन के साम्हने आया। 15. फिरौन ने यूसुफ से कहा, मैं ने एक स्वप्न देखा है, और उसके फल का बतानेवाला कोई भी नहीं; और मैं ने तेरे विषय में सुना है, कि तू स्वप्न सुनते ही उसका फल बता सकता है। 16. यूसुफ ने फिरौन से कहा, मै तो कुछ नहीं जानता : परमेश्वर ही फिरौन के लिथे शुभ वचन देगा। 17. फिर फिरौन यूसुफ से कहने लगा, मै ने अपके स्वप्न में देखा, कि मैं नील नदी के किनारे पर खड़ा हूं 18. फिर, क्या देखा, कि नदी में से सात मोटी और सुन्दर सुन्दर गाथें निकलकर कछार की घास चरने लगी। 19. फिर, क्या देखा, कि उनके पीछे सात और गाथें निकली, जो दुबली, और बहुत कुरूप, और दुर्बल हैं; मै ने तो सारे मिस्र देश में ऐसी कुडौल गाथें कभी नहीं देखीं। 20. और इन दुर्बल और कुडौल गायोंने उन पहली सातोंमोटी मोटी गायोंको खा लिया। 21. और जब वे उनको खा गई तब यह मालूम नहीं होता या कि वे उनको खा गई हैं, क्योंकि वे पहिले की नाई जैसी की तैसी कुडौल रहीं। तब मैं जाग उठा। 22. फिर मैं ने दूसरा स्वप्न देखा, कि एक ही डंठी में सात अच्छी अच्छी और अन्न से भरी हुई बालें निकलीं। 23. फिर, क्या देखता हूं, कि उनके पीछे और सात बालें छूछी छूछी और पतली और पुरवाई से मुरफाई हुई निकलीं। 24. और इन पतली बालोंने उन सात अच्छी अच्छी बालोंको निगल लिया। इसे मैं ने ज्योतिषियोंको बताया, पर इस का समझनेहारा कोई नहीं मिला। 25. तब यूसुफ ने फिरौन से कहा, फिरौन का स्वप्न एक ही है, परमेश्वर जो काम किया चाहता है, उसको उस ने फिरौन को जताया है। 26. वे सात अच्छी अच्छी गाथें सात वर्ष हैं; और वे सात अच्छी अच्छी बालें भी सात वर्ष हैं; स्वप्न एक ही है। 27. फिर उनके पीछे जो दुर्बल और कुडौल गाथें निकलीं, और जो सात छूछी और पुरवाई से मुरफाई हुई बालें निकाली, वे अकाल के सात वर्ष होंगे। 28. यह वही बात है, जो मैं फिरौन से कह चुका हूं, कि परमेश्वर जो काम किया चाहता है, उसे उस ने फिरौन को दिखाया है। 29. सुन, सारे मिस्र देश में सात वर्ष तो बहुतायत की उपज के होंगे। 30. उनके पश्चात् सात वर्ष अकाल के आथेंगे, और सारे मिस्र देश में लोग इस सारी उपज को भूल जाथेंगे; और अकाल से देश का नाश होगा। 31. और सुकाल (बहुतायत की उपज) देश में फिर स्मरण न रहेगा क्योंकि अकाल अत्यन्त भयंकर होगा। 32. और फिरौन ने जो यह स्वप्न दो बार देखा है इसका भेद यही है, कि यह बात परमेश्वर की ओर से नियुक्त हो चुकी है, और परमेश्वर इसे शीघ्र ही पूरा करेगा। 33. इसलिथे अब फिरौन किसी समझदार और बुद्धिमान् पुरूष को ढूंढ़ करके उसे मिस्र देश पर प्रधानमंत्री ठहराए। 34. फिरौन यह करे, कि देश पर अधिक्कारनेियोंको नियुक्त करे, और जब तक सुकाल के सात वर्ष रहें तब तक वह मिस्र देश की उपज का पंचमांश लिया करे। 35. और वे इन अच्छे वर्षोंमें सब प्रकार की भोजनवस्तु इकट्ठा करें, और नगर नगर में भण्डार घर भोजन के लिथे फिरौन के वश में करके उसकी रझा करें। 36. और वह भोजनवस्तु अकाल के उन सात वर्षोंके लिथे, जो मिस्र देश में आएंगे, देश के भोजन के निमित्त रखी रहे, जिस से देश उस अकाल से स्त्यानाश न हो जाए। 37. यह बात फिरौन और उसके सारे कर्मचारियोंको अच्छी लगी। 38. सो फिरौन ने अपके कर्मचारियोंसे कहा, कि क्या हम को ऐसा पुरूष जैसा यह है, जिस में परमेश्वर का आत्मा रहता है, मिल सकता है ? 39. फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, परमेश्वर ने जो तुझे इतना ज्ञान दिया है, कि तेरे तुल्य कोई समझदार और बुद्धिमान् नहीं; 40. इस कारण तू मेरे घर का अधिक्कारनेी होगा, और तेरी आज्ञा के अनुसार मेरी सारी प्रजा चलेगी, केवल राजगद्दी के विषय मैं तुझ से बड़ा ठहरूंगा। 41. फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, सुन, मैं तुझ को मिस्र के सारे देश के ऊपर अधिक्कारनेी ठहरा देता हूं 42. तब फिरौन ने अपके हाथ से अंगूठी निकालके यूसुफ के हाथ में पहिना दी; और उसको बढिय़ा मलमल के वस्त्र पहिनवा दिए, और उसके गले में सोने की जंजीर डाल दी; 43. और उसको अपके दूसरे रय पर चढ़वाया; और लोग उसके आगे आगे यह प्रचार करते चले, कि घुटने टेककर दण्डवत करो और उस ने उसको मिस्र के सारे देश के ऊपर प्रधान मंत्री ठहराया। 44. फिर फिरौन ने यूसुफ से कहा, फिरौन तो मैं हूं, और सारे मिस्र देश में कोई भी तेरी आज्ञा के बिना हाथ पांव न हिलाएगा। 45. और फिरौन ने यूसुफ का नाम सापन त्पानेह रखा। और ओन नगर के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से उसका ब्याह करा दिया। और यूसुफ मिस्र के सारे देश में दौरा करने लगा। 46. जब यूसुफ मिस्र के राजा फिरौन के सम्मुख खड़ा हुआ, तब वह तीस वर्ष का या। सो वह फिरौन के सम्मुख से निकलकर मिस्र के सारे देश में दौरा करने लगा। 47. सुकाल के सातोंवर्षोंमें भूमि बहुतायत से अन्न उपजाती रही। 48. और यूसुफ उन सातोंवर्षोंमें सब प्रकार की भोजनवस्तुएं, जो मिस्र देश में होती यीं, जमा करके नगरोंमें रखता गया, और हर एक नगर के चारोंओर के खेतोंकी भोजनवस्तुओं को वह उसी नगर में इकट्ठा करता गया। 49. सो यूसुफ ने अन्न को समुद्र की बालू के समान अत्यन्त बहुतायत से राशि राशि करके रखा, यहां तक कि उस ने उनका गिनना छोड़ दिया; क्योंकि वे असंख्य हो गई। 50. अकाल के प्रयम वर्ष के आने से पहिले यूसुफ के दो पुत्र, ओन के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से जन्मे। 51. और यूसुफ ने अपके जेठे का नाम यह कहके मनश्शे रखा, कि परमेश्वर ने मुझ से सारा क्लेश, और मेरे पिता का सारा घराना भुला दिया है। 52. और दूसरे का नाम उस ने यह कहकर एप्रैम रखा, कि मुझे दु:ख भोगने के देश में परमेश्वर ने फुलाया फलाया है। 53. और मिस्र देश के सुकाल के वे सात वर्ष समाप्त हो गए। 54. और यूसुफ के कहने के अनुसार सात वर्षोंके लिथे अकाल आरम्भ हो गया। और सब देशोंमें अकाल पड़ने लगा; परन्तु सारे मिस्र देश में अन्न या। 55. जब मिस्र का सारा देश भूखोंमरने लगा; तब प्रजा फिरोन से चिल्ला चिल्लाकर रोटी मांगने लगी : और वह सब मिस्रियोंसे कहा करता या, यूसुफ के पास जाओ: और जो कुछ वह तुम से कहे, वही करो। 56. सो जब अकाल सारी पृय्वी पर फैल गया, और मिस्र देश में काल का भयंकर रूप हो गया, तब यूसुफ सब भण्डारोंको खोल खोलके मिस्रियोंके हाथ अन्न बेचने लगा। 57. सो सारी पृय्वी के लोग मिस्र में अन्न मोल लेने के लिथे यूसुफ के पास आने लगे, क्योंकि सारी पृय्वी पर भयंकर अकाल या।
Chapter 42
1. जब याकूब ने सुना कि मिस्र में अन्न है, तब उस ने अपके पुत्रोंसे कहा, तुम एक दूसरे का मुंह क्योंदेख रहे हो। 2. फिर उस ने कहा, मैं ने सुना है कि मिस्र में अन्न है; इसलिथे तुम लोग वहां जाकर हमारे लिथे अन्न मोल ले आओ, जिस से हम न मरें, वरन जीवित रहें। 3. सो यूसुफ के दस भाई अन्न मोल लेने के लिथे मिस्र को गए। 4. पर यूसुफ के भाई बिन्यामीन को याकूब ने यह सोचकर भाइयोंके साय न भेजा, कि कहीं ऐसा न हो कि उस पर कोई विपत्ति आ पके। 5. सो जो लोग अन्न मोल लेने आए उनके साय इस्राएल के पुत्र भी आए; क्योंकि कनान देश में भी भारी अकाल या। 6. यूसुफ तो मिस्र देश का अधिक्कारनेी या, और उस देश के सब लोगोंके हाथ वही अन्न बेचता या; इसलिथे जब यूसुफ के भाई आए तब भूमि पर मुंह के बल गिरके दण्डवत् किया। 7. उनको देखकर यूसुफ ने पहिचान तो लिया, परन्तु उनके साम्हने भोला बनके कठोरता के साय उन से पूछा, तुम कहां से आते हो? उन्होंने कहा, हम तो कनान देश से अन्न मोल लेने के लिथे आए हैं। 8. यूसुफ ने तो अपके भाइयोंको पहिचान लिया, परन्तु उन्होंने उसको न पहिचाना। 9. तब यूसुफ अपके उन स्वप्नोंको स्मरण करके जो उस ने उनके विषय में देखे थे, उन से कहने लगा, तुम भेदिए हो; इस देश की दुर्दशा को देखने के लिथे आए हो। 10. उन्होंने उस से कहा, नहीं, नहीं, हे प्रभु, तेरे दास भोजनवस्तु मोल लेने के लिथे आए हैं। 11. हम सब एक ही पिता के पुत्र हैं, हम सीधे मनुष्य हैं, तेरे दास भेदिए नहीं। 12. उस ने उन से कहा, नहीं नहीं, तुम इस देश की दुर्दशा देखने ही को आए हो। 13. उन्होंने कहा, हम तेरे दास बारह भाई हैं, और कनान देशवासी एक ही पुरूष के पुत्र हैं, और छोटा इस समय हमारे पिता के पास है, और एक जाता रहा। 14. तब यूसुफ ने उन से कहा, मैं ने तो तुम से कह दिया, कि तुम भेदिए हो; 15. सो इसी रीति से तुम परखे जाओगे, फिरौन के जीवन की शपय, जब तक तुम्हारा छोटा भाई यहां न आए तब तक तुम यहां से न निकलने पाओगे। 16. सो अपके में से एक को भेज दो, कि वह तुम्हारे भाई को ले आए, और तुम लोग बन्धुवाई में रहोगे; इस प्रकार तुम्हारी बातें परखी जाएंगी, कि तुम में सच्चाई है कि नहीं। यदि सच्चे न ठहरे तब तो फिरौन के जीवन की शपय तुम निश्चय ही भेदिए समझे जाओगे। 17. तब उस ने उनको तीन दिन तक बन्दीगृह में रखा। 18. तीसरे दिन यूसुफ ने उन से कहा, एक काम करो तब जीवित रहोगे; क्योंकि मैं परमेश्वर का भय मानता हूं; 19. यदि तुम सीधे मनुष्य हो, तो तुम सब भाइयोंमें से एक जन इस बन्दीगृह में बन्धुआ रहे; और तुम अपके घरवालोंकी भूख बुफाने के लिथे अन्न ले जाओ। 20. और अपके छोटे भाई को मेरे पास ले आओ; इस प्रकार तुम्हारी बातें सच्ची ठहरेंगी, और तुम मार डाले न जाओगे। तब उन्होंने वैसा ही किया। 21. उन्होंने आपस में कहा, निस्न्देह हम अपके भाई के विषय में दोषी हैं, क्योंकि जब उस ने हम से गिड़गिड़ाके बिनती की, तौभी हम ने यह देखकर, कि उसका जीवन केसे संकट में पड़ा है, उसकी न सुनी; इसी कारण हम भी अब इस संकट में पके हैं। 22. रूबेन ने उन से कहा, क्या मैं ने तुम से न कहा या, कि लड़के के अपराधी मत बनो? परन्तु तुम ने न सुना : देखो, अब उसके लोहू का पलटा दिया जाता है। 23. यूसुफ की और उनकी बातचीत जो एक दुभाषिया के द्वारा होती यी; इस से उनको मालूम न हुआ कि वह उनकी बोली समझता है। 24. तब वह उनके पास से हटकर रोने लगा; फिर उनके पास लौटकर और उन से बातचीत करके उन में से शिमोन को छांट निकाला और उसके साम्हने बन्धुआ रखा। 25. तब यूसुफ ने आज्ञा दी, कि उनके बोरे अन्न से भरो और एक एक जन के बोरे में उसके रूपके को भी रख दो, फिर उनको मार्ग के लिथे सीधा दो : सो उनके साय ऐसा ही किया गया। 26. तब वे अपना अन्न अपके गदहोंपर लादकर वहां से चल दिए। 27. सराय में जब एक ने अपके गदहे को चारा देने के लिथे अपना बोरा खोला, तब उसका रूपया बोरे के मोहड़े पर रखा हुआ दिखलाई पड़ा। 28. तब उस ने अपके भाइयोंसे कहा, मेरा रूपया तो फेर दिया गया है, देखो, वह मेरे बोरे में है; तब उनके जी में जी न रहा, और वे एक दूसरे की और भय से ताकने लगे, और बोले, परमेश्वर ने यह हम से क्या किया है ? 29. और वे कनान देश में अपके पिता याकूब के पास आए, और अपना सारा वृत्तान्त उस से इस प्रकार वर्णन किया : 30. कि जो पुरूष उस देश का स्वामी है, उस ने हम से कठोरता के साय बातें कीं, और हम को देश के भेदिए कहा। 31. तब हम ने उस से कहा, हम सीधे लोग हैं, भेदिए नहीं। 32. हम बारह भाई एक ही पिता के पुत्र है, एक तो जाता रहा, परन्तु छोटा इस समय कनान देश में हमारे पिता के पास है। 33. तब उस पुरूष ने, जो उस देश का स्वामी है, हम से कहा, इस से मालूम हो जाएगा कि तुम सीधे मनुष्य हो; तुम अपके में से एक को मेरे पास छोड़के अपके घरवालोंकी भूख बुफाने के लिथे कुछ ले जाओ। 34. और अपके छोटे भाई को मेरे पास ले आओ। तब मुझे विश्वास हो जाएगा कि तुम भेदिए नहीं, सीधे लोग हो। फिर मैं तुम्हारे भाई को तुम्हें सौंप दूंगा, और तुम इस देश में लेन देन कर सकोगे। 35. यह कहकर वे अपके अपके बोरे से अन्न निकालने लगे, तब, क्या देखा, कि एक एक जन के रूपके की यैली उसी के बोरे में रखी है : तब रूपके की यैलियोंको देखकर वे और उनका पिता बहुत डर गए। 36. तब उनके पिता याकूब ने उन से कहा, मुझ को तुम ने निर्वंश कर दिया, देखो, यूसुफ नहीं रहा, और शिमोन भी नहीं आया, और अब तुम बिन्यामीन को भी ले जाना चाहते हो : थे सब विपत्तियां मेरे ऊपर आ पक्की हैं। 37. रूबेन ने अपके पिता से कहा, यदि मैं उसको तेरे पास न लाऊं, तो मेरे दोनोंपुत्रोंको मार डालना; तू उसको मेरे हाथ में सौंप दे, मैं उसे तेरे पास फिर पहुंचा दूंगा। 38. उस ने कहा, मेरा पुत्र तुम्हारे संग न जाएगा; क्योंकि उसका भाई मर गया है, और वह अब अकेला रह गया : इसलिथे जिस मार्ग से तुम जाओगे, उस में यदि उस पर कोई विपत्ति आ पके, तब तो तुम्हारे कारण मैं इस बुढ़ापे की अवस्या में शोक के साय अधोलोक में उतर जाऊंगा।।
Chapter 43
1. और अकाल देश में और भी भयंकर होता गया। 2. जब वह अन्न जो वे मिस्र से ले आए थे समाप्त हो गया तब उनके पिता ने उन से कहा, फिर जाकर हमारे लिथे योड़ी सी भोजनवस्तु मोल ले आओ। 3. तब यहूदा ने उस से कहा, उस पुरूष ने हम को चितावनी देकर कहा, कि यदि तुम्हारा भाई तुम्हारे संग न आए, तो तुम मेरे सम्मुख न आने पाओगे। 4. इसलिथे यदि तू हमारे भाई को हमारे संग भेजे, तब तो हम जाकर तेरे लिथे भोजनवस्तु मोल ले आएंगे; 5. परन्तु यदि तू उसको न भेजे, तो हम न जाएंगे : क्योंकि उस पुरूष ने हम से कहा, कि यदि तुम्हारा भाई तुम्हारे संग न हो, तो तुम मेरे सम्मुख न आने पाओगे। 6. तब इस्राएल ने कहा, तुम ने उस पुरूष को यह बताकर कि हमारा एक और भाई है, क्योंमुझ से बुरा बर्ताव किया ? 7. उन्होंने कहा, जब उस पुरूष ने हमारी और हमारे कुटुम्बियोंकी दशा को इस रीति पूछा, कि क्या तुम्हारा पिता अब तक जीवित है? क्या तुम्हारे कोई और भाई भी है ? तब हम ने इन प्रश्नोंके अनुसार उस से वर्णन किया; फिर हम क्या जानते थे कि वह कहेगा, कि अपके भाई को यहां ले आओ। 8. फिर यहूदा ने अपके पिता इस्राएल से कहा, उस लड़के को मेरे संग भेज दे, कि हम चले जाएं; इस से हम, और तू, और हमारे बालबच्चे मरने न पाएंगे, वरन जीवित रहेंगे। 9. मैं उसका जामिन होता हूं; मेरे ही हाथ से तू उसको फेर लेना: यदि मैं उसको तेरे पास पहुंचाकर साम्हने न खड़ाकर दूं, तब तो मैं सदा के लिथे तेरा अपराधी ठहरूंगा। 10. यदि हम लोग विलम्ब न करते, तो अब तब दूसरी बार लौट आते। 11. तब उनके पिता इस्राएल ने उन से कहा, यदि सचमुच ऐसी ही बात है, तो यह करो; इस देश की उत्तम उत्तम वस्तुओं में से कुछ कुछ अपके बोरोंमें उस पुरूष के लिथे भेंट ले जाओ : जैसे योड़ा सा बलसान, और योड़ा सा मधु, और कुछ सुगन्ध द्रव्य, और गन्धरस, पिस्ते, और बादाम। 12. फिर अपके अपके साय दूना रूपया ले जाओ; और जो रूपया तुम्हारे बोरोंके मुंह पर रखकर फेर दिया गया या, उसको भी लेते जाओ; कदाचित् यह भूल से हुआ हो। 13. और अपके भाई को भी संग लेकर उस पुरूष के पास फिर जाओ, 14. और सर्वशक्तिमान ईश्वर उस पुरूष को तुम पर दयालु करेगा, जिस से कि वह तुम्हारे दूसरे भाई को और बिन्यामीन को भी आने दे : और यदि मैं निर्वंश हुआ तो होने दो। 15. तब उन मनुष्योंने वह भेंट, और दूना रूपया, और बिन्यामीन को भी संग लिया, और चल दिए और मिस्र में पहुंचकर यूसुफ के साम्हने खड़े हुए। 16. उनके साय बिन्यामीन को देखकर यूसुफ ने अपके घर के अधिक्कारनेी से कहा, उन मनुष्योंको घर में पहुंचा दो, और पशु मारके भोजन तैयार करो; क्योंकि वे लोग दोपहर को मेरे संग भोजन करेंगे। 17. तब वह अधिक्कारनेी पुरूष यूसुफ के कहने के अनुसार उन पुरूषोंको यूसुफ के घर में ले गया। 18. जब वे यूसुफ के घर को पहुंचाए गए तब वे आपस में डरकर कहने लगे, कि जो रूपया पहिली बार हमारे बोरोंमें फेर दिया गया या, उसी के कारण हम भीतर पहुंचाए गए हैं; जिस से कि वह पुरूष हम पर टूट पके, और हमें वंश में करके अपके दास बनाए, और हमारे गदहोंको भी छीन ले। 19. तब वे यूसुफ के घर के अधिक्कारनेी के निकट जाकर घर के द्वार पर इस प्रकार कहने लगे, 20. कि हे हमारे प्रभु, जब हम पहिली बार अन्न मोल लेने को आए थे, 21. तब हम ने सराय में पहुंचकर अपके बोरोंको खोला, तो क्या देखा, कि एक एक जन का पूरा पूरा रूपया उसके बोरे के मुंह में रखा है; इसलिथे हम उसको अपके साय फिर लेते आए हैं। 22. और दूसरा रूपया भी भोजनवस्तु मोल लेने के लिथे लाए हैं; हम नहीं जानते कि हमारा रूपया हमारे बोरोंमें किस ने रख दिया या। 23. उस ने कहा, तुम्हारा कुशल हो, मत डरो: तुम्हारा परमेश्वर, जो तुम्हारे पिता का भी परमेश्वर है, उसी ने तुम को तुम्हारे बोरोंमें धन दिया होगा, तुम्हारा रूपया तो मुझ को मिल गया या: फिर उस ने शिमोन को निकालकर उनके संग कर दिया। 24. तब उस जन ने उन मनुष्योंको यूसुफ के घर में ले जाकर जल दिया, तब उन्होंने अपके पांवोंको धोया; फिर उस ने उनके गदहोंके लिथे चारा दिया। 25. तब यह सुनकर, कि आज हम को यहीं भोजन करना होगा, उन्होंने यूसुफ के आने के समय तक, अर्यात् दोपहर तक, उस भेंट को इकट्ठा कर रखा। 26. जब यूसुफ घर आया तब वे उस भेंट को , जो उनके हाथ में यी, उसके सम्मुख घर में ले गए, और भूमि पर गिरकर उसको दण्डवत् किया। 27. उस ने उनका कुशल पूछा, और कहा, क्या तुम्हारा बूढ़ा पिता, जिसकी तुम ने चर्चा की यी, कुशल से है ? क्या वह अब तक जीवित है ? 28. उन्होंने कहा, हां तेरा दास हमारा पिता कुशल से है और अब तक जीवित है; तब उन्होंने सिर फुकाकर फिर दण्डवत् किया। 29. तब उस ने आंखे उठाकर और अपके सगे भाई बिन्यामीन को देखकर पूछा, क्या तुम्हारा वह छोटा भाई, जिसकी चर्चा तुम ने मुझ से की यी, यही है ? फिर उस ने कहा, हे मेरे पुत्र, परमेश्वर तुझ पर अनुग्रह करे। 30. तब अपके भाई के स्नेह से मन भर आने के कारण और यह सोचकर, कि मैं कहां जाकर रोऊं, यूसुफ फुर्ती से अपक्की कोठरी में गया, और वहां रो पड़ा। 31. फिर अपना मुंह धोकर निकल आया, और अपके को शांत कर कहा, भोजन परोसो। 32. तब उन्होंने उसके लिथे तो अलग, और भाइयोंके लिथे भी अलग, और जो मिस्री उसके संग खाते थे, उनके लिथे भी अलग, भोजन परोसा; इसलिथे कि मिस्री इब्रियोंके साय भोजन नहीं कर सकते, वरन मिस्री ऐसा करना घृणा समझते थे। 33. सो यूसुफ के भाई उसके साम्हने, बड़े बड़े पहिले, और छोटे छोटे पीछे, अपक्की अपक्की अवस्या के अनुसार, क्रम से बैठाए गए: यह देख वे विस्मित् होकर एक दूसरे की ओर देखने लगे। 34. तब यूसुफ अपके साम्हने से भोजन-वस्तुएं उठा उठाके उनके पास भेजने लगा, और बिन्यामीन को अपके भाइयोंसे पचगुणी अधिक भोजनवस्तु मिली। और उन्होंने उसके संग मनमाना खाया पिया।
Chapter 44
1. तब उस ने अपके घर के अधिक्कारनेी को आज्ञा दी, कि इन मनुष्योंके बोरोंमें जितनी भोजनवस्तु समा सके उतनी भर दे, और एक एक जन के रूपके को उसके बोरे के मुंह पर रख दे। 2. और मेरा चांदी का कटोरा छोटे के बोरे के मुंह पर उसके अन्न के रूपके के साय रख दे। यूसुफ की इस आज्ञा के अनुसार उस ने किया। 3. बिहान को भोर होते ही वे मनुष्य अपके गदहोंसमेत विदा किए गए। 4. वे नगर से निकले ही थे, और दूर न जाने पाए थे, कि यूसुफ ने अपके घर के अधिक्कारनेी से कहा, उन मनुष्योंका पीछा कर, और उनको पाकर उन से कह, कि तुम ने भलाई की सन्ती बुराई क्योंकी है? 5. क्या यह वह वस्तु नहीं जिस में मेरा स्वामी पीता है, और जिस से वह शकुन भी विचारा करता है ? तुम ने यह जो किया है सो बुरा किया। 6. तब उस ने उन्हें जा लिया, और ऐसी ही बातें उन से कहीं। 7. उन्होंने उस से कहा, हे हमारे प्रभु, तू ऐसी बातें क्योंकहता है? ऐसा काम करना तेरे दासोंसे दूर रहे। 8. देख जो रूपया हमारे बोरोंके मुंह पर निकला या, जब हम ने उसको कनान देश से ले आकर तुझे फेर दिया, तब, भला, तेरे स्वामी के घर में से हम कोई चांदी वा सोने की वस्तु क्योंकर चुरा सकते हैं ? 9. तेरे दासोंमें से जिस किसी के पास वह निकले, वह मार डाला जाए, और हम भी अपके उस प्रभु के दास जो जाएं। 10. उस ने कहा तुम्हारा ही कहना सही, जिसके पास वह निकले सो मेरा दास होगा; और तुम लोग निरपराध ठहरोगे। 11. इस पर वे फुर्ती से अपके अपके बोरे को उतार भूमि पर रखकर उन्हें खोलने लगे। 12. तब वह ढूंढ़ने लगा, और बड़े के बोरे से लेकर छोटे के बोरे तक खोज की : और कटोरा बिन्यामीन के बोरे में मिला। 13. तब उन्होंने अपके अपके वस्त्र फाड़े, और अपना अपना गदहा लादकर नगर को लौट गए। 14. जब यहूदा और उसके भाई यूसुफ के घर पर पहुंचे, और यूसुफ वहीं या, तब वे उसके साम्हने भूमि पर गिरे। 15. यूसुफ ने उन से कहा, तुम लोगोंने यह कैसा काम किया है ? क्या तुम न जानते थे, कि मुझ सा मनुष्य शकुन विचार सकता है ? 16. यहूदा ने कहा, हम लोग अपके प्रभु से क्या कहें ? हम क्या कहकर अपके को निर्दोषी ठहराएं ? परमेश्वर ने तेरे दासोंके अधर्म को पकड़ लिया है : हम, और जिसके पास कटोरा निकला वह भी, हम सब के सब अपके प्रभु के दास ही हैं। 17. उस ने कहा, ऐसा करना मुझ से दूर रहे : जिस जन के पास कटोरा निकला है, वही मेरा दास होगा; और तुम लोग अपके पिता के पास कुशल झेम से चले जाओ। 18. तब यहूदा उसके पास जाकर कहने लगा, हे मेरे प्रभु, तेरे दास को अपके प्रभु से एक बात कहने की आज्ञा हो, और तेरा कोप तेरे दास पर न भड़के; तू तो फिरौन के तुल्य है। 19. मेरे प्रभु ने अपके दासोंसे पूछा या, कि क्या तुम्हारे पिता वा भाई हैं ? 20. और हम ने अपके प्रभु से कहा, हां, हमारा बूढ़ा पिता तो है, और उसके बुढ़ापे का एक छोटा सा बालक भी है, परन्तु उसका भाई मर गया है, इसलिथे वह अब अपक्की माता का अकेला ही रह गया है, और उसका पिता उस से स्नेह रखता है। 21. तब तू ने अपके दासोंसे कहा या, कि उसको मेरे पास ले आओ, जिस से मैं उसको देखूं। 22. तब हम ने अपके प्रभु से कहा या, कि वह लड़का अपके पिता को नहीं छोड़ सकता; नहीं तो उसका पिता मर जाएगा। 23. और तू ने अपके दासोंसे कहा, यदि तुम्हारा छोटा भाई तुम्हारे संग न आए, तो तुम मेरे सम्मुख फिर न आने पाओगे। 24. सो जब हम अपके पिता तेरे दास के पास गए, तब हम ने उस से अपके प्रभु की बातें कहीं। 25. तब हमारे पिता ने कहा, फिर जाकर हमारे लिथे योड़ी सी भोजनवस्तु मोल ले आओ। 26. हम ने कहा, हम नहीं जा सकते, हां, यदि हमारा छोटा भाई हमारे संग रहे, तब हम जाएंगे : क्योंकि यदि हमारा छोटा भाई हमारे संग न रहे, तो उस पुरूष के सम्मुख न जाने पाएंगे। 27. तब तेरे दास मेरे पिता ने हम से कहा, तुम तो जानते हो कि मेरी स्त्री से दो पुत्र उत्पन्न हुए। 28. और उन में से एक तो मुझे छोड़ ही गया, और मैं ने निश्चय कर लिया, कि वह फाड़ डाला गया होगा ; और तब से मैं उसका मुंह न देख पाया 29. सो यदि तुम इसको भी मेरी आंख की आड़ में ले जाओ, और कोई विपत्ति इस पर पके, तो तुम्हारे कारण मैं इस पक्के बाल की अवस्या में दु:ख के साय अधोलोक में उतर जाऊंगा। 30. सो जब मैं अपके पिता तेरे दास के पास पहुंचूं, और यह लड़का संग न रहे, तब, उसका प्राण जो इसी पर अटका रहता है, 31. इस कारण, यह देखके कि लड़का नहीं है, वह तुरन्त ही मर जाएगा। तब तेरे दासोंके कारण तेरा दास हमारा पिता, जो पक्के बालोंकी अवस्या का है, शोक के साय अधोलोक में उतर जाएगा। 32. फिर तेरा दास अपके पिता के यहां यह कहके इस लड़के का जामिन हुआ है, कि यदि मैं इसको तेरे पास न पहुंचा दूं, तब तो मैं सदा के लिथे तेरा अपराधी ठहरूंगा। 33. सो अब तेरा दास इस लड़के की सन्ती अपके प्रभु का दास होकर रहने की आज्ञा पाए, और यह लड़का अपके भाइयोंके संग जाने दिया जाए। 34. क्योंकि लड़के के बिना संग रहे मैं कयोंकर अपके पिता के पास जा सकूंगा; ऐसा न हो कि मेरे पिता पर जो दु:ख पकेगा वह मुझे देखना पके।।
Chapter 45
1. तब यूसुफ उन सब के साम्हने, जो उसके आस पास खड़े थे, अपके को और रोक न सका; और पुकार के कहा, मेरे आस पास से सब लोगोंको बाहर कर दो। भाइयोंके साम्हने अपके को प्रगट करने के समय यूसुफ के संग और कोई न रहा। 2. तब वह चिल्ला चिल्लाकर रोने लगा : और मिस्रियोंने सुना, और फिरौन के घर के लोगोंको भी इसका समाचार मिला। 3. तब यूसुफ अपके भाइयोंसे कहने लगा, मैं यूसुफ हूं, क्या मेरा पिता अब तब जीवित है ? इसका उत्तर उसके भाई न दे सके; क्योंकि वे उसके साम्हने घबरा गए थे। 4. फिर यूसुफ ने अपके भाइयोंसे कहा, मेरे निकट आओ। यह सुनकर वे निकट गए। फिर उस ने कहा, मैं तुम्हारा भाई यूसुफ हूं, जिसको तुम ने मिस्र आनेहारोंके हाथ बेच डाला या। 5. अब तुम लोग मत पछताओ, और तुम ने जो मुझे यहां बेच डाला, इस से उदास मत हो; क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हारे प्राणोंको बचाने के लिथे मुझे आगे से भेज दिया है। 6. क्योंकि अब दो वर्ष से इस देश में अकाल है; और अब पांच वर्ष और ऐसे ही होंगे, कि उन में न तो हल चलेगा और न अन्न काटा जाएगा। 7. सो परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे आगे इसी लिथे भेजा, कि तुम पृय्वी पर जीवित रहो, और तुम्हारे प्राणोंके बचने से तुम्हारा वंश बढ़े। 8. इस रीति अब मुझ को यहां पर भेजनेवाले तुम नहीं, परमेश्वर ही ठहरा: और उसी ने मुझे फिरौन का पिता सा, और उसके सारे घर का स्वामी, और सारे मिस्र देश का प्रभु ठहरा दिया है। 9. सो शीघ्र मेरे पिता के पास जाकर कहो, तेरा पुत्र यूसुफ इस प्रकार कहता है, कि परमेश्वर ने मुझे सारे मिस्र का स्वामी ठहराया है; इसलिथे तू मेरे पास बिना विलम्ब किए चला आ। 10. और तेरा निवास गोशेन देश में होगा, और तू, बेटे, पोतों, भेड़-बकरियों, गाय-बैलों, और अपके सब कुछ समेत मेरे निकट रहेगा। 11. और अकाल के जो पांच वर्ष और होंगे, उन में मै वहीं तेरा पालन पोषण करूंगा; ऐसा न हो कि तू, और तेरा घराना, वरन जितने तेरे हैं, सो भूखोंमरें। 12. और तुम अपक्की आंखोंसे देखते हो, और मेरा भाई बिन्यामीन भी अपक्की आंखोंसे देखता है, कि जो हम से बातें कर रहा है सो यूसुफ है। 13. और तुम मेरे सब विभव का, जो मिस्र में है और जो कुछ तुम ने देखा है, उस सब को मेरे पिता से वर्णन करना; और तुरन्त मेरे पिता को यहां ले आना। 14. और वह अपके भाई बिन्यामीन के गले से लिपटकर रोया; और बिन्यामीन भी उसके गले से लिपटकर रोया। 15. तब वह अपके सब भाइयोंको चूमकर उन से मिलकर रोया : और इसके पश्चात् उसके भाई उस से बातें करने लगे।। 16. इस बात की चर्चा, कि यूसुफ के भाई आए हैं, फिरौन के भवन तब पंहुच गई, और इस से फिरौन और उसके कर्मचारी प्रसन्न हुए। 17. सो फिरौन ने यूसुफ से कहा, अपके भाइयोंसे कह, कि एक काम करो, अपके पशुओं को लादकर कनान देश में चले जाओ। 18. और अपके पिता और अपके अपके घर के लोगोंको लेकर मेरे पास आओ; और मिस्र देश में जो कुछ अच्छे से अच्छा है वह मैं तुम्हें दूंगा, और तुम्हें देश के उत्तम से उत्तम पदार्य खाने को मिलेंगे। 19. और तुझे आज्ञा मिली है, तुम एक काम करो, कि मिस्र देश से अपके बालबच्चोंऔर स्त्रियोंके लिथे गाडिय़ोंले जाओ, और अपके पिता को ले आओ। 20. और अपक्की सामग्री का मोह न करना; क्योंकि सारे मिस्र देश में जो कुछ अच्छे से अच्छा है सो तुम्हारा है। 21. और इस्राएल के पुत्रोंने वैसा ही किया। और यूसुफ ने फिरौन की मानके उन्हें गाडिय़ोंदी, और मार्ग के लिथे सीधा भी दिया। 22. उन में से एक एक जन को तो उस ने एक एक जोड़ा वस्त्र भी दिया; और बिन्यामीन को तीन सौ रूपे के टुकड़े और पांच जोड़े वस्त्र दिए। 23. और अपके पिता के पास उस ने जो भेजा वह यह है, अर्यात् मिस्र की अच्छी वस्तुओं से लदे हुए दस गदहे, और अन्न और रोटी और उसके पिता के मार्ग के लिथे भोजनवस्तु से लदी हुई दस गदहियां। 24. और उस ने अपके भाइयोंको विदा किया, और वे चल दिए; और उस ने उन से कहा, मार्ग में कहीं फगड़ा न करना। 25. मिस्र से चलकर वे कनान देश में अपके पिता याकूब के पास पहुचे। 26. और उस से यह वर्णन किया, कि यूसुफ अब तक जीवित है, और सारे मिस्र देश पर प्रभुता वही करता है। पर उस ने उनकी प्रतीति न की, और वह अपके आपे में न रहा। 27. तब उन्होंने अपके पिता याकूब से यूसुफ की सारी बातें, जो उस ने उन से कहीं यी, कह दीं; जब उस ने उन गाडिय़ोंको देखा, जो यूसुफ ने उसके ले आने के लिथे भेजीं यीं, तब उसका चित्त स्यिर हो गया। 28. और इस्राएल ने कहा, बस, मेरा पुत्र यूसुफ अब तक जीवित है : मैं अपक्की मृत्यु से पहिले जाकर उसको देखंूगा।।
Chapter 46
1. तब इस्राएल अपना सब कुछ लेकर कूच करके बेर्शेबा को गया, और वहां अपके पिता इसहाक के परमेश्वर को बलिदान चढ़ाए। 2. तब परमेश्वर ने इस्राएल से रात को दर्शन में कहा, हे याकूब हे याकूब। उस ने कहा, क्या आज्ञा। 3. उस ने कहा, मैं ईश्वर तेरे पिता का परमेश्वर हूं, तू मिस्र में जाने से मत डर; क्योंकि मैं तुझ से वहां एक बड़ी जाति बनाऊंगा। 4. मैं तेरे संग संग मिस्र को चलता हूं; और मैं तुझे वहां से फिर निश्चय ले आऊंगा; और यूसुफ अपना हाथ तेरी आंखोंपर लगाएगा। 5. तब याकूब बेर्शेबा से चला: और इस्राएल के पुत्र अपके पिता याकूब, और अपके बाल-बच्चों, और स्त्रियोंको उन गाडिय़ोंपर, जो फिरौन ने उनके ले आने को भेजी यी, चढ़ाकर चल पके। 6. और वे अपक्की भेड़-बकरी, गाय-बैल, और कनान देश में अपके इकट्ठा किए हुए सारे धन को लेकर मिस्र में आए। 7. और याकूब अपके बेटे-बेटियों, पोते-पोतियों, निदान अपके वंश भर को अपके संग मिस्र में ले आया।। 8. याकूब के साय जो इस्राएली, अर्यात् उसके बेटे, पोते, आदि मिस्र में आए, उनके नाम थे हैं : याकूब का जेठा तो रूबेन या। 9. और रूबेन के पुत्र, हनोक, पललू, हेस्रोन, और कर्म्मी थे। 10. और शिमोन के पुत्र, यमूएल, यामीन, ओहद, याकीन, सोहर, और एक कनानी स्त्री से जन्मा हुआ शाऊल भी या। 11. और लेवी के पुत्र, गेर्शोन, कहात, और मरारी थे। 12. और यहूदा के एर, ओनान, शेला, पेरेस, और जेरह नाम पुत्र हुए तो थे; पर एर और ओनान कनान देश में मर गए थे। 13. और इस्साकार के पुत्र, तोला, पुब्बा, योब और शिम्रोन थे। 14. और जबूलून के पुत्र, सेरेद, एलोन, और यहलेल थे। 15. लिआ: के पुत्र, जो याकूब से पद्दनराम में उत्पन्न हुए थे, उनके बेटे पोते थे ही थे, और इन से अधिक उस ने उसके साय एक बेटी दीना को भी जन्म दिया : यहां तक तो याकूब के सब वंशवाले तैंतीस प्राणी हुए। 16. फिर गाद के पुत्र, सिय्योन, हाग्गी, शूनी, एसबोन, एरी, अरोदी, और अरेली थे। 17. और आशेर के पुत्र, यिम्ना, यिश्वा, यिस्त्री, और बरीआ थे, और उनकी बहिन सेरह यी। और बरीआ के पुत्र, हेबेर और मल्कीएल थे। 18. जिल्पा, जिसे लाबान ने अपक्की बेटी लिआ� को दिया या, उसके बेटे पोते आदि थे ही थे; सो उसके द्वारा याकूब के सोलह प्राणी उत्पन्न हुए।। 19. फिर याकूब की पत्नी राहेल के पुत्र यूसुफ और बिन्यामीन थे। 20. और मिस्र देश में ओन के याजक पोतीपेरा की बेटी आसनत से यूसुफ के थे पुत्र उत्पन्न हुए, अर्यात् मनश्शे और एप्रैम। 21. और बिन्यामीन के पुत्र, बेला, बेकेर, अश्बेल, गेरा, नामान, एही, रोश, मुप्पीम, हुप्पीम, और आर्द थे। 22. राहेल के पुत्र जो याकूब से उत्पन्न हुए उनके थे ही पुत्र थे; उसके थे सब बेटे पोते चौदह प्राणी हुए। 23. फिर दान का पुत्र हुशीम या। 24. और नप्ताली के पुत्र, यहसेल, गूनी, सेसेर, और शिल्लेम थे। 25. बिल्हा, जिसे लाबान ने अपक्की बेटी राहेल को दिया, उस के बेटे पोते थे ही हैं; उसके द्वारा याकूब के वंश में सात प्राणी हुए। 26. याकूब के निज वंश के जो प्राणी मिस्र में आए, वे उसकी बहुओं को छोड़ सब मिलकर छियासठ प्राणी हुए। 27. और यूसुफ के पुत्र, जो मिस्र में उस से उत्पन्न हुए, वे दो प्राणी थे : इस प्रकार याकूब के घराने के जो प्राणी मिस्र में आए सो सब मिलकर सत्तर हुए।। 28. फिर उस ने यहूदा को अपके आगे यूसुफ के पास भेज दिया, कि वह उसको गोशेन का मार्ग दिखाए; और वे गोशेन देश में आए। 29. तब यूसुफ अपना रय जुतवाकर अपके पिता इस्राएल से भेंट करने के लिथे गोशेन देश को गया, और उस से भेंट करके उसके गले से लिपटा हुआ रोता रहा। 30. तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, मै अब मरने से भी प्रसन्न हूं, क्योंकि तुझे जीवित पाया और तेरा मुंह देख लिया। 31. तब यूसुफ ने अपके भाइयोंसे और अपके पिता के घराने से कहा, मैं जाकर फिरौन को यह समाचार दूंगा, कि मेरे भाई और मेरे पिता के सारे घराने के लोग, जो कनान देश में रहते थे, वे मेरे पास आ गए हैं। 32. और वे लोग चरवाहे हैं, क्योंकि वे पशुओं को पालते आए हैं; इसलिथे वे अपक्की भेड़-बकरी, गाय-बैल, और जो कुछ उनका है, सब ले आए हैं। 33. जब फिरौन तुम को बुलाके पूछे, कि तुम्हारा उद्यम क्या है? 34. तब यह कहना कि तेरे दास लड़कपन से लेकर आज तक पशुओं को पालते आए हैं, वरन हमारे पुरखा भी ऐसा ही करते थे। इस से तुम गोशेन देश में रहने पाओगे; क्योंकि सब चरवाहोंसे मिस्री लोग घृणा करते हैं।।
Chapter 47
1. तब यूसुफ ने फिरौन के पास जाकर यह समाचार दिया, कि मेरा पिता और मेरे भाई, और उनकी भेड़-बकरियां, गाय-बैल और जो कुछ उनका है, सब कनान देश से आ गया है; और अभी तो वे गोशेन देश में हैं। 2. फिर उस ने अपके भाइयोंमें से पांच जन लेकर फिरौन के साम्हने खड़े कर दिए। 3. फिरौन ने उसके भाइयोंसे पूछा, तुम्हारा उद्यम क्या है ? उन्होंने फिरौन से कहा, तेरे दास चरवाहे हैं, और हमारे पुरखा भी ऐसे ही रहे। 4. फिर उन्होंने फिरौन से कहा, हम इस देश में परदेशी की भांति रहने के लिथे आए हैं; क्योंकि कनान देश में भारी अकाल होने के कारण तेरे दासोंको भेड़-बकरियोंके लिथे चारा न रहा : सो अपके दासोंको गोशेन देश में रहने की आज्ञा दे। 5. तब फिरौन ने यूसुफ से कहा, तेरा पिता और तेरे भाई तेरे पास आ गए हैं, 6. और मिस्र देश तेरे साम्हने पड़ा है; इस देश का जो सब से अच्छा भाग हो, उस में अपके पिता और भाइयोंको बसा दे; अर्यात् वे गोशेन ही देश में रहें : और यदि तू जानता हो, कि उन में से परिश्र्मी पुरूष हैं, तो उन्हें मेरे पशुओं के अधिक्कारनेी ठहरा दे। 7. तब यूसुफ ने अपके पिता याकूब को ले आकर फिरौन के सम्मुख खड़ा किया : और याकूब ने फिरौन को आशीर्वाद दिया। 8. तब फिरौन ने याकूब से पूछा, तेरी अवस्या कितने दिन की हुई है? 9. याकूब ने फिरौन से कहा, मैं तो एक सौ तीस वर्ष परदेशी होकर अपना जीवन बीता चुका हूं; मेरे जीवन के दिन योड़े और दु:ख से भरे हुए भी थे, और मेरे बापदादे परदेशी होकर जितने दिन तक जीवित रहे उतने दिन का मैं अभी नहीं हुआ। 10. और याकूब फिरौन को आशीर्वाद देकर उसके सम्मुख से चला गया। 11. तब यूसुफ ने अपके पिता और भाइयोंको बसा दिया, और फिरौन की आज्ञा के अनुसार मिस्र देश के अच्छे से अच्छे भाग में, अर्यात् रामसेस नाम देश में, भूमि देकर उनको सौंप दिया। 12. और यूसुफ अपके पिता का, और अपके भाइयोंका, और पिता के सारे घराने का, एक एक के बालबच्चोंके घराने की गिनती के अनुसार, भोजन दिला दिलाकर उनका पालन पोषण करने लगा।। 13. और उस सारे देश में खाने को कुछ न रहा; क्योंकि अकाल बहुत भारी या, और अकाल के कारण मिस्र और कनान दोनोंदेश नाश हो गए। 14. और जितना रूपया मिस्र और कनान देश में या, सब को यूसुफ ने उस अन्न की सन्ती जो उनके निवासी मोल लेते थे इकट्ठा करके फिरौन के भवन में पहुंचा दिया। 15. जब मिस्र और कनान देश का रूपया चुक गया, तब सब मिस्री यूसुफ के पास आ आकर कहने लगे, हम को भोजनवस्तु दे, क्या हम रूपके के न रहने से तेरे रहते हुए मर जाएं ? 16. यूसुफ ने कहा, यदि रूपके न होंतो अपके पशु दे दो, और मैं उनकी सन्ती तुम्हें खाने को दूंगा। 17. तब वे अपके पशु यूसुफ के पास ले आए; और यूसुफ उनको घोड़ों, भेड़-बकरियों, गाय-बैलोंऔर गदहोंकी सन्ती खाने को देने लगा: उस वर्ष में वह सब जाति के पशुओं की सन्ती भोजन देकर उनका पालन पोषण करता रहा। 18. वह वर्ष तो योंकट गया; तब अगले वर्ष में उन्होंने उसके पास आकर कहा, हम अपके प्रभु से यह बात छिपा न रखेंगे कि हमारा रूपया चुक गया है, और हमारे सब प्रकार के पशु हमारे प्रभु के पास आ चुके हैं; इसलिथे अब हमारे प्रभु के साम्हने हमारे शरीर और भूमि छोड़कर और कुछ नहीं रहा। 19. हम तेरे देखते क्योंमरें, और हमारी भूमि को भोजन वस्तु की सन्ती मोल ले, कि हम अपक्की भूमि समेत फिरौन के दास हों: और हमको बीज दे, कि हम मरने न पाएं, वरन जीवित रहें, और भूमि न उजड़े। 20. तब यूसुफ ने मिस्र की सारी भूमि को फिरौन के लिथे मोल लिया; क्योंकि उस कठिन अकाल के पड़ने से मिस्रियोंको अपना अपना खेत बेच डालना पड़ा : इस प्रकार सारी भूमि फिरौन की हो गई। 21. और एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक सारे मिस्र देश में जो प्रजा रहती यी, उसको उस ने नगरोंमें लाकर बसा दिया। 22. पर याजकोंकी भूमि तो उस ने न मोल ली : क्योंकि याजकोंके लिथे फिरौन की ओर से नित्य भोजन का बन्दोबस्त या, और नित्य जो भोजन फिरौन उनको देता या वही वे खाते थे; इस कारण उनको अपक्की भूमि बेचक्की न पक्की। 23. तब यूसुफ ने प्रजा के लोगोंसे कहा, सुनो, मैं ने आज के दिन तुम को और तुम्हारी भूमि को भी फिरौन के लिथे मोल लिया है; देखो, तुम्हारे लिथे यहां बीज है, इसे भूमि में बोओ। 24. और जो कुछ उपके उसका पंचमांश फिरौन को देना, बाकी चार अंश तुम्हारे रहेंगे, कि तुम उसे अपके खेतोंमंे बोओ, और अपके अपके बालबच्चोंऔर घर के और लोगोंसमेत खाया करो। 25. उन्होंने कहा, तू ने हमको बचा लिया है : हमारे प्रभु के अनुग्रह की दृष्टि हम पर बनी रहे, और हम फिरौन के दास होकर रहेंगे। 26. सो यूसुफ ने मिस्र की भूमि के विषय में ऐसा नियम ठहराया, जो आज के दिन तक चला आता है, कि पंचमांश फिरौन को मिला करे; केवल याजकोंही की भूमि फिरौन की नहीं हुई। 27. और इस्राएली मिस्र के गोशेन देश में रहने लगे; और वहां की भूमि को अपके वश में कर लिया, और फूले-फले, और अत्यन्त बढ़ गए।। 28. मिस्र देश में याकूब सतरह वर्ष जीवित रहा : इस प्रकार याकूब की सारी आयु एक सौ सैंतालीस वर्ष की हुई। 29. जब इस्राएल के मरने का दिन निकट आ गया, तब उस ने अपके पुत्र यूसुफ को बुलवाकर कहा, यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो अपना हाथ मेरी जांघ के तले रखकर शपय खा, कि मैं तेरे साय कृपा और सच्चाई का यह काम करूंगा, कि तुझे मिस्र में मिट्टी न दूंगा। 30. जब तू अपके बापदादोंके संग सो जाएगा, तब मैं तुझे मिस्र से उठा ले जाकर उन्हीं के कबरिस्तान में रखूंगा; तब यूसुफ ने कहा, मैं तेरे वचन के अनुसार करूंगा। 31. फिर उस ने कहा, मुझ से शपय खा : सो उस ने उस से शपय खाई। तब इस्राएल ने खाट के सिरहाने की ओर सिर फुकाया।।
Chapter 48
1. इन बातोंके पश्चात् किसी ने यूसुफ से कहा, सुन, तेरा पिता बीमार है; तब वह मनश्शे और एप्रैम नाम अपके दोनोंपुत्रोंको संग लेकर उसके पास चला। 2. और किसी ने याकूब को बता दिया, कि तेरा पुत्र यूसुफ तेरे पास आ रहा है; तब इस्राएल अपके को सम्भालकर खाट पर बैठ गया। 3. और याकूब ने यूसुफ से कहा, सर्वशक्तिमान ईश्वर ने कनान देश के लूज नगर के पास मुझे दर्शन देकर आशीष दी, 4. और कहा, सुन, मैं तुझे फुला-फलाकर बढ़ाऊंगा, और तुझे राज्य राज्य की मण्डली का मूल बनाऊंगा, और तेरे पश्चात् तेरे वंश को यह देश दे दूंगा, जिस से कि वह सदा तक उनकी निज भूमि बनी रहे। 5. और अब तेरे दोनोंपुत्र, जो मिस्र में मेरे आने से पहिले उत्पन्न हुए हैं, वे मेरे ही ठहरेंगे; अर्यात् जिस रीति से रूबेन और शिमोन मेरे हैं, उसी रीति से एप्रैम और मनश्शे भी मेरे ठहरेंगे। 6. और उनके पश्चात् जो सन्तान उत्पन्न हो, वह तेरे तो ठहरेंगे; परन्तु बंटवारे के समय वे अपके भाइयोंही के वंश में गिने जाएंगे। 7. जब मैं पद्दान से आता या, तब एप्राता पहुंचने से योड़ी ही दूर पहिले राहेल कनान देश में, मार्ग में, मेरे साम्हने मर गई : और मैं ने उसे वहीं, अर्यात् एप्राता जो बेतलेहम भी कहलाता है, उसी के मार्ग में मिट्टी दी। 8. तब इस्राएल को यूसुफ के पुत्र देख पके, और उस ने पूछा, थे कौन हैं ? 9. यूसुफ ने अपके पिता से कहा, थे मेरे पुत्र हैं, जो परमेश्वर ने मुझे यहां दिए हैं : उस ने कहा, उनको मेरे पास ले आ कि मैं उन्हें आशीर्वाद दूं। 10. इस्राएल की आंखे बुढ़ापे के कारण धुन्धली हो गई यीं, यहां तक कि उसे कम सूफता या। तब यूसुफ उन्हें उनके पास ले गया ; और उस ने उन्हें चूमकर गले लगा लिया। 11. तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, मुझे आशा न यी, कि मैं तेरा मुख फिर देखने पाऊंगा : परन्तु देख, परमेश्वर ने मुझे तेरा वंश भी दिखाया है। 12. तब यूसुफ ने उन्हें अपके घुटनोंके बीच से हटाकर और अपके मुंह के बल भूमि पर गिरके दण्डवत् की। 13. तब यूसुफ ने उन दोनोंको लेकर, अर्यात् एप्रैम को अपके दहिने हाथ से, कि वह इस्राएल के बाएं हाथ पके, और मनश्शे को अपके बाएं हाथ से, कि इस्राएल के दहिने हाथ पके, उन्हें उसके पास ले गया। 14. तब इस्राएल ने अपना दहिना हाथ बढ़ाकर एप्रैम के सिर पर जो छोटा या, और अपना बायां हाथ बढ़ाकर मनश्शे के सिर पर रख दिया; उस ने तो जान बूफकर ऐसा किया; नहीं तो जेठा मनश्शे ही या। 15. फिर उस ने यूसुफ को आशीर्वाद देकर कहा, परमेश्वर जिसके सम्मुख मेरे बापदादे इब्राहीम और इसहाक (अपके को जानकर ) चलते थे वही परमेश्वर मेरे जन्म से लेकर आज के दिन तक मेरा चरवाहा बना है ; 16. और वही दूत मुझे सारी बुराई से छुड़ाता आया है, वही अब इन लड़कोंको आशीष दे; और थे मेरे और मेरे बापदादे इब्राहीम और इसहाक के कहलाएं; और पृय्वी में बहुतायत से बढ़ें। 17. जब यूसुफ ने देखा, कि मेरे पिता ने अपना दहिना हाथ एप्रैम के सिर पर रखा है, तब यह बात उसको बुरी लगी : सो उस ने अपके पिता का हाथ इस मनसा से पकड़ लिया, कि एप्रैम के सिर पर से उठाकर मनश्शे के सिर पर रख दे। 18. और यूसुफ ने अपके पिता से कहा, हे पिता, ऐसा नहीं: क्योंकि जेठा यही है; अपना दहिना हाथ इसके सिर पर रख। 19. उसके पिता ने कहा, नहीं, सुन, हे मेरे पुत्र, मैं इस बात को भली भांति जानता हूं : यद्यपि इस से भी मनुष्योंकी एक मण्डली उत्पन्न होगी, और यह भी महान् हो जाएगा, तौभी इसका छोटा भाई इस से अधिक महान हो जाएगा, और उसके वंश से बहुत सी जातियां निकलेंगी। 20. फिर उस ने उसी दिन यह कहकर उनको आशीर्वाद दिया, कि इस्राएली लोग तेरा नाम ले लेकर ऐसा आशीर्वाद दिया करेंगे, कि परमेश्वर तुझे एप्रैम और मनश्शे के समान बना दे : और उस ने मनश्शे से पहिले एप्रैम का नाम लिया। 21. तब इस्राएल ने यूसुफ से कहा, देख, मैं तो मरने पर हूं : परन्तु परमेश्वर तुम लोगोंके संग रहेगा, और तुम को तुम्हारे पितरोंके देश में फिर पहुंचा देगा। 22. और मैं तुझ को तेरे भाइयोंसे अधिक भूमि का एक भाग देता हूं, जिसको मैं ने एमोरियोंके हाथ से अपक्की तलवार और धनुष के बल से ले लिया है।
Chapter 49
1. फिर याकूब ने अपके पुत्रोंको यह कहकर बुलाया, कि इकट्ठे हो जाओ, मैं तुम को बताऊंगा, कि अन्त के दिनोंमें तुम पर क्या क्या बीतेगा। 2. हे याकूब के पुत्रों, इकट्ठे होकर सुनो, अपके पिता इस्राएल की ओर कान लगाओ। 3. हे रूबेन, तू मेरा जेठा, मेरा बल, और मेरे पौरूष का पहिला फल है; प्रतिष्ठा का उत्तम भाग, और शक्ति का भी उत्तम भाग तू ही है। 4. तू जो जल की नाईं उबलनेवाला है, इसलिथे औरोंसे श्रेष्ट न ठहरेगा; क्योंकि तू अपके पिता की खाट पर चढ़ा, तब तू ने उसको अशुद्ध किया; वह मेरे बिछौने पर चढ़ गया।। 5. शिमोन और लेवी तो भाई भाई हैं, उनकी तलवारें उपद्रव के हयियार हैं। 6. हे मेरे जीव, उनके मर्म में न पड़, हे मेरी महिमा, उनकी सभा में मत मिल; क्योंकि उन्होंने कोप से मनुष्योंको घात किया, और अपक्की ही इच्छा पर चलकर बैलोंकी पूंछें काटी हैं।। 7. धिक्कार उनके कोप को, जो प्रचण्ड या; और उनके रोष को, जो निर्दय या; मैं उन्हें याकूब में अलग अलग और इस्राएल में तित्तर बित्तर कर दूंगा।। 8. हे यहूदा, तेरे भाई तेरा धन्यवाद करेंगे, तेरा हाथ तेरे शत्रुओं की गर्दन पर पकेगा; तेरे पिता के पुत्र तुझे दण्डवत् करेंगे।। 9. यहूदा सिंह का डांवरू है। हे मेरे पुत्र, तू अहेर करके गुफा में गया है : वह सिंह वा सिंहनी की नाई दबकर बैठ गया; फिर कौन उसको छेड़ेगा।। 10. जब तक शीलो न आए तब तक न तो यहूदा से राजदण्ड छूटेगा, न उसके वंश से व्यवस्या देनेवाला अलग होगा; और राज्य राज्य के लोग उसके अधीन हो जाएंगे।। 11. वह अपके जवान गदहे को दाखलता में, और अपक्की गदही के बच्चे को उत्तम जाति की दाखलता में बान्धा करेगा ; उस ने अपके वस्त्र दाखमधु में, और अपना पहिरावा दाखोंके रस में धोया है।। 12. उसकी आंखे दाखमधु से चमकीली और उसके दांत दूध से श्वेत होंगे।। 13. जबूलून समुद्र के तीर पर निवास करेगा, वह जहाजोंके लिथे बन्दरगाह का काम देगा, और उसका परला भाग सीदोन के निकट पहुंचेगा 14. इस्साकार एक बड़ा और बलवन्त गदहा है, जो पशुओं के बाड़ोंके बीच में दबका रहता है।। 15. उस ने एक विश्रमस्यान देखकर, कि अच्छा है, और एक देश, कि मनोहर है, अपके कन्धे को बोफ उठाने के लिथे फुकाया, और बेगारी में दास का सा काम करने लगा।। 16. दान इस्राएल का एक गोत्र होकर अपके जातिभाइयोंका न्याय करेगा।। 17. दान मार्ग में का एक सांप, और रास्ते में का एक नाग होगा, जो घोड़े की नली को डंसता है, जिस से उसका सवार पछाड़ खाकर गिर पड़ता है।। 18. हे यहोवा, मैं तुझी से उद्धार पाने की बाट जोहता आया हूं।। 19. गाद पर एक दल चढ़ाई तो करेगा; पर वह उसी दल के पिछले भाग पर छापा मारेगा।। 20. आशेर से जो अन्न उत्पन्न होगा वह उत्तम होगा, और वह राजा के योग्य स्वादिष्ट भोजन दिया करेगा।। 21. नप्ताली एक छूटी हुई हरिणी है; वह सुन्दर बातें बोलता है।। 22. यूसुफ बलवन्त लता की एक शाखा है, वह सोते के पास लगी हुई फलवन्त लता की एक शाखा है; उसकी डालियां भीत पर से चढ़कर फैल जाती हैं।। 23. धनुर्धारियोंने उसको खेदित किया, और उस पर तीर मारे, और उसके पीछे पके हैं।। 24. पर उसका धनुष दृढ़ रहा, और उसकी बांह और हाथ याकूब के उसी शक्तिमान ईश्वर के हाथोंके द्वारा फुर्तीले हुए, जिसके पास से वह चरवाहा आएगा, जो इस्राएल का पत्यर भी ठहरेगा।। 25. यह तेरे पिता के उस ईश्वर का काम है, जो तेरी सहाथता करेगा, उस सर्वशक्तिमान को जो तुझे ऊपर से आकाश में की आशीषें, और नीचे से गहिरे जल में की आशीषें, और स्तनों, और गर्भ की आशीषें देगा।। 26. तेरे पिता के आशीर्वाद मेरे पितरोंके आशीर्वाद से अधिक बढ़ गए हैं और सनातन पहाडिय़ोंकी मन- चाही वस्तुओं की नाई बने रहेंगे : वे यूसुफ के सिर पर, जो अपके भाइयोंमें से न्यारा हुआ, उसी के सिर के मुकुट पर फूले फलेंगे।। 27. बिन्यामीन फाड़नेहारा हुण्डार है, सवेरे तो वह अहेर भझण करेगा, और सांफ को लूट बांट लेगा।। 28. इस्राएल के बारहोंगोत्र थे ही हैं : और उनके पिता ने जिस जिस वचन से उनको आशीर्वाद दिया, सो थे ही हैं; एक एक को उसके आशीर्वाद के अनुसार उस ने आशीर्वाद दिया। 29. तब उस ने यह कहकर उनको आज्ञा दी, कि मैं अपके लोगोंके साय मिलने पर हूं : इसलिथे मुझे हित्ती एप्रोन की भूमिवाली गुफा में मेरे बापदादोंके साय मिट्टी देना, 30. अर्यात् उसी गुफा में जो कनान देश में मम्रे के साम्हनेवाली मकपेला की भूमि में है; उस भूमि को तो इब्राहीम ने हित्ती एप्रोन के हाथ से इसी निमित्त मोल लिया या, कि वह कबरिस्तान के लिथे उसकी निज भूमि हो। 31. वहां इब्राहीम और उसकी पत्नी सारा को मिट्टी दी गई; और वहीं इसहाक और उसकी पत्नी रिबका को भी मिट्टी दी गई; और वहीं मैं ने लिआ: को भी मिट्टी दी। 32. वह भूमि और उस में की गुफा हित्तियोंके हाथ से मोल ली गई। 33. यह आज्ञा जब याकूब अपके पुत्रोंको दे चुका, तब अपके पांव खाट पर समेट प्राण छोड़े, और अपके लोगोंमें जा मिला।
Chapter 50
1. तब यूसुफ अपके पिता के मुंह पर गिरकर रोया और उसे चूमा। 2. और यूसुफ ने उन वैद्योंको, जो उसके सेवक थे, आज्ञा दी, कि मेरे पिता की लोय में सुगन्धद्रव्य भरो; तब वैद्योंने इस्राएल की लोय में सुगन्धद्रव्य भर दिए। 3. और उसके चालीस दिन पूरे हुए। क्योंकि जिनकी लोय में सुगन्धद्रव्य भरे जाते हैं, उनको इतने ही दिन पूरे लगते हैं : और मिस्री लोग उसके लिथे सत्तर दिन तक विलाप करते रहे।। 4. जब उसके विलाप के दिन बीत गए, तब यूसुफ फिरौन के घराने के लोगोंसे कहने लगा, यदि तुम्हारी अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर हो तो मेरी यह बिनती फिरौन को सुनाओ, 5. कि मेरे पिता ने यह कहकर, कि देख मैं मरने पर हूं, मुझे यह शपय खिलाई, कि जो कबर तू ने अपके लिथे कनान देश में खुदवाई है उसी में मैं तुझे मिट्टी दूंगा इसलिथे अब मुझे वहां जाकर अपके पिता को मिट्टी देने की आज्ञा दे, तत्पश्चात् मैं लौट आऊंगा। 6. तब फिरौन ने कहा, जाकर अपके पिता की खिलाई हुई शपय के अनुसार उनको मिट्टी दे। 7. सो यूसुफ अपके पिता को मिट्टी देने के लिथे चला, और फिरौन के सब कर्मचारी, अर्यात् उसके भवन के पुरनिथे, और मिस्र देश के सब पुरनिथे उसके संग चले। 8. और यूसुफ के घर के सब लोग, और उसके भाई, और उसके पिता के घर के सब लोग भी संग गए; पर वे अपके बालबच्चों, और भेड़-बकरियों, और गाय-बैलोंको गोशेन देश में छोड़ गए। 9. और उसके संग रय और सवार गए, सो भीड़ बहुत भारी हो गई। 10. जब वे आताद के खलिहान तक, जो यरदन नदी के पार है पहुंचे, तब वहां अत्यन्त भारी विलाप किया, और यूसुफ ने अपके पिता के सात दिन का विलाप कराया। 11. आताद के खलिहान में के विलाप को देखकर उस देश के निवासी कनानियोंने कहा, यह तो मिस्रियोंका कोई भारी विलाप होगा, इसी कारण उस स्यान का नाम आबेलमिस्रैम पड़ा, और वह यरदन के पार है। 12. और इस्राएल के पुत्रोंने उस से वही काम किया जिसकी उस ने उनको आज्ञा दी यी: 13. अर्यात् उन्होंने उसको कनान देश में ले जाकर मकपेला की उस भूमिवाली गुफा में, जो मम्रे के साम्हने हैं, मिट्टी दी; जिसको इब्राहीम ने हित्ती एप्रोन के हाथ से इस निमित्त मोल लिया या, कि वह कबरिस्तान के लिथे उसकी निज भूमि हो।। 14. अपके पिता को मिट्टी देकर यूसुफ अपके भाइयोंऔर उन सब समेत, जो उसके पिता को मिट्टी देने के लिथे उसके संग गए थे, मिस्र में लौट आया। 15. जब यूसुफ के भाइयोंने देखा कि हमारा पिता मर गया है, तब कहने लगे, कदाचित् यूसुफ अब हमारे पीछे पके, और जितनी बुराई हम ने उस से की यी सब का पूरा पलटा हम से ले। 16. इसलिथे उन्होंने यूसुफ के पास यह कहला भेजा, कि तेरे पिता ने मरने से पहिले हमें यह आज्ञा दी यी, 17. कि तुम लोग यूसुफ से इस प्रकार कहना, कि हम बिनती करते हैं, कि तू अपके भाइयोंके अपराध और पाप को झमा कर; हम ने तुझ से बुराई तो की यी, पर अब अपके पिता के परमेश्वर के दासोंका अपराध झमा कर। उनकी थे बातें सुनकर यूसुफ रो पड़ा। 18. और उसके भाई आप भी जाकर उसके साम्हने गिर पके, और कहा, देख, हम तेरे दास हैं। 19. यूसुफ ने उन से कहा, मत डरो, क्या मैं परमेश्वर की जगह पर हूं ? 20. यद्यपि तुम लोगोंने मेरे लिथे बुराई का विचार किया या; परन्तु परमेश्वर ने उसी बात में भलाई का विचार किया, जिस से वह ऐसा करे, जैसा आज के दिन प्रगट है, कि बहुत से लोगोंके प्राण बचे हैं। 21. सो अब मत डरो : मैं तुम्हारा और तुम्हारे बाल-बच्चोंका पालन पोषण करता रहूंगा; इस प्रकार उस ने उनको समझा बुफाकर शान्ति दी।। 22. और यूसुफ अपके पिता के घराने समेत मिस्र में रहता रहा, और यूसुफ एक सौ दस वर्ष जीवित रहा। 23. और यूसुफ एप्रैम के परपोतोंतक देखने पाया : और मनश्शे के पोते, जो माकीर के पुत्र थे, वे उत्पन्न होकर यूसुफ से गोद में लिए गए। 24. और यूसुफ ने अपके भाइयोंसे कहा मैं तो मरने पर हूं; परन्तु परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, और तुम्हें इस देश से निकालकर उस देश में पहुंचा देगा, जिसके देने की उस ने इब्राहीम, इसहाक, और याकूब से शपय खाई यी। 25. फिर यूसुफ ने इस्राएलियोंसे यह कहकर, कि परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, उनको इस विषय की शपय खिलाई, कि हम तेरी हड्डियोंको वहां से उस देश में ले जाएंगे। 26. निदान यूसुफ एक सौ दस वर्ष का होकर मर गया : और उसकी लोय में सुगन्धद्रव्य भरे गए, और वह लोय मिस्र में एक सन्दूक में रखी गई।।
(April28th2012)
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