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Chapter 1
1. पौलुस की ओर से जो परमेश्वर की इच्छा से यीशु मसीह का प्रेरित है, उन पवित्र और मसीह यीशु में विश्वासी लोगोंके नाम जो इफिसुस में हैं।। 2. हमारे पिता परमेश्वर और प्रभु यीशु मसीह की ओर से तुम्हें अनुग्रह और शान्ति मिलती रहे।। 3. हमारे प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता का धन्यवाद हो, कि उस ने हमें मसीह में स्वर्गीय स्यानोंमें सब प्रकार की आशीष दी है। 4. जैसा उस ने हमें जगत की उत्पति से पहिले उस में चुन लिया, कि हम उसके निकट प्रेम में पवित्र और निर्दोष हों। 5. और अपक्की इच्छा की सुमति के अनुसार हमें अपके लिथे पहिले से ठहराया, कि यीशु मसीह के द्वारा हम उसके लेपालक पुत्र हों, 6. कि उसके उस अनुग्रह की महिमा की स्तुति हो, जिसे उस ने हमें उस प्यारे में सेंत मेंत दिया। 7. हम को उस में उसके लोहू के द्वारा छुटकारा, अर्यात् अपराधोंकी झमा, उसके उस अनुग्रह के धन के अनुसार मिला है। 8. जिसे उस ने सारे ज्ञान और समझ सहित हम पर बहुतायत से किया। 9. कि उस ने अपक्की इच्छा का भेद उस सुमति के अनुसार हमें बताया जिसे उस ने अपके आप में ठान लिया या। 10. कि समयोंके पूरे होने का ऐसा प्रबन्ध हो कि जो कुछ स्वर्ग में है, और जो कुछ पृय्वी पर है, सब कुछ वह मसीह में एकत्र करे। 11. उसी में जिस में हम भी उसी की मनसा से जो अपक्की इच्छा के मत के अनुसार सब कुछ करता है, पहिले से ठहराए जाकर मीरास बने। 12. कि हम जिन्होंने पहिले से मसीह पर आशा रखी यी, उस की महिमा की स्तुति के कारण हों। 13. और उसी में तुम पर भी जब तुम ने सत्य का वचन सुना, जो तुम्हारे उद्धार का सुसमाचार है, और जिस पर तुम ने विश्वास किया, प्रतिज्ञा किए हुए पवित्र आत्क़ा की छाप लगी। 14. वह उसके मोल लिए हुओं के छुटकारे के लिथे हमारी मीरास का बयाना है, कि उस की महिमा की स्तुति हो।। 15. इस कारण, मैं भी उस विश्वास का समाचार सुनकर जो तुम लोगोंमें प्रभु यीशु पर है और सब पवित्र लोगोंपर प्रगट है। 16. तुम्हारे लिथे धन्यवाद करना नहीं छोड़ता, और अपक्की प्रार्यनाओं में तुम्हें स्क़रण किया करता हूं। 17. कि हमारे प्रभु यीशु मसीह का परमेश्वर जो महिमा का पिता है, तुम्हें अपक्की पहचान में, ज्ञान और प्रकाश का आत्क़ा दे। 18. और तुम्हारे मन की आंखें ज्योतिर्मय होंकि तुम जान लो कि उसके बुलाने से कैसी आशा होती है, और पवित्र लोगोंमें उस की मीरास की महिमा का धन कैसा है। 19. और उस की सामर्य हमारी ओर जो विश्वास करते हैं, कितनी महान है, स की शक्ति के प्रभाव के उस कार्य्य के अनुसार। 20. जो उस ने मसीह के विषय में किया, कि उस को मरे हुओं में से जिलाकर स्वर्गीय स्यानोंमें अपक्की दिहनी ओर। 21. सब प्रकार की प्रधानता, और अधिक्कारने, और सामर्य, और प्रभुता के, और हर एक नाम के ऊपर, जो न केवल इस लोक में, पर आनेवाले लोक में भी लिया जाएगा, बैठाया। 22. और सब कुछ उसके पांवोंतले कर दिया: और उसे सब वस्तुओं पर शिरोमणि ठहराकर कलीसिया को दे दिया। 23. यह उसकी देह है, और उसी की परिपूर्णता है, जो सब में सब कुछ पूर्ण करता है।।
Chapter 2
1. और उस ने तुम्हें भी जिलाया, जो अपके अपराधोंऔर पापोंके कारण मरे हुए थे। 2. जिन में तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिक्कारने के हाकिम अर्यात् उस आत्क़ा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न माननेवालोंमें कार्य्य करता है। 3. इन में हम भी सब के सब पहिले अपके शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएं पूरी करते थे, और और लोगोंके समान स्वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे। 4. परन्तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है; अपके उस बड़े प्रेम के कारण, जिस से उस ने हम से प्रेम किया। 5. जब हम अपराधोंके कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साय जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है।) 6. और मसीह यीशु में उसके साय उठाया, और स्वर्गीय स्यानोंमें उसके साय बैठाया। 7. कि वह अपक्की उस कृपा से जो मसीह यीशु में हम पर है, आनेवाले समयोंमें अपके अनुग्रह का असीम धन दिखाए। 8. क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, बरन परमेश्वर का दान है। 9. और न कर्मोंके कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे। 10. क्योंकि हम उसके बनाए हुए हैं; और मसीह यीशु में उन भले कामोंके लिथे सृजे गए जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से हमारे करने के लिथे तैयार किया।। 11. इस कारण स्क़रण करो, कि तुम जो शारीरिक रीति से अन्यजाति हो, (और जो लोग शरीर में हाथ के किए हुए खतने से खतनावाले कहलाते हैं, वे तुम को खतनारिहत कहते हैं)। 12. तुम लोग उस समय मसीह से अलग और इस्त्राए की प्रजा के पद से अलग किए हुए, और प्रतिज्ञा की वाचाओं के भागी न थे, और आशाहीन और जगत में ईश्वररिहत थे। 13. पर अब तो मसीह यीशु में तुम जो पहिले दूर थे, मसीह के लोहू के द्वारा निकट हो गए हो। 14. क्योंकि वही हमारा मेल है, जिस ने दोनोंको एक कर लिया: और अलग करनेवाल दीवार को जो बीच में यी, ढा दिया। 15. और अपके शरीर में बैर अर्यात् वह व्यवस्या जिस की आज्ञाएं विधियोंकी रीति पर यीं, मिटा दिया, कि दोनोंसे अपके में एक नया मनुष्य उत्पन्न करके मेल करा दे। 16. और क्रूस पर बैर को नाश करके इस के द्वारा दानोंको एक देह बनाकर परमेश्वर से मिलाए। 17. और उस ने आकर तुम्हें जो दूर थे, और उन्हें जो निकट थे, दानोंको मेल-मिलाप का सुसमाचार सुनाया। 18. क्योंकि उस ही के द्वारा हम दानोंकी एक आत्क़ा में पिता के पास पंहुच होती है। 19. इसलिथे तुम अब विदेशी और मुसाफिर नहीं रहे, परन्तु पवित्र लोगोंके संगी स्वदेशी और परमेश्वर के घराने के हो गए। 20. और प्रेरितोंऔर भविष्यद्वक्ताओं की नेव पर जिस के कोने का पत्यर मसीह यीशु आप ही है, बनाए गए हो। 21. जिस में सारी रचना एक साय मिलकर प्रभु में एक पवित्र मन्दिर बनती जाती है। 22. जिस में तुम भी आत्क़ा के द्वारा परमेश्वर का निवासस्यान होने के लिथे एक साय बनाए जाते हो।।
Chapter 3
1. इसी कारण मैं पौलुस जो तुम अन्यजातियोंके लिथे मसीह यीशु का बन्धुआ हूं 2. यदि तुम ने परमेश्वर के उस अनुग्रह के प्रबन्ध का समाचार सुना हो, जो तुम्हारे लिथे मुझे दिया गया। 3. अर्यात् यह, कि वह भेद मुझ पर प्रकाश के द्वारा प्रगट हुआ, जैसा मैं पहिले संझेप में लिख चुका हूं। 4. जिस से तुम पढ़कर जान सकते हो, कि मैं मसीह का वह भेद कहां तक समझता हूं। 5. जो और और समयोंमें मनुष्योंकी सन्तानोंको ऐसा नहीं बताया गया या, जैसा कि आत्क़ा के द्वारा अब उसके पवित्र प्ररितोंऔर भविष्यद्वक्ताओं पर प्रगट किया गया हैं। 6. अर्यात् यह, कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा अन्यजातीय लाग मीरास में साफी, और एक ही देह के और प्रतिज्ञा के भागी हैं। 7. और मैं परमेश्वर के अनुग्रह के उस दान के अनुसार, जो सामर्य के प्रभाव के अनुसार मुझे दिया गया, उस सुसमाचार का सेवक बना। 8. मुझ पर जो सब पवित्र लोगोंमें से छोटे से भी छोटा हूं, यह अनुग्रह हुआ, कि मैं अन्यजातियोंको मसीह के अगम्य धन का सुसमाचार सुनाऊं। 9. और सब पर यह बात प्रकाशित करूं, कि उस भेद का प्रबन्ध क्या है, जो सब के सृजनहार परमेश्वर में आदि से गुप्त या। 10. ताकि अब कलीसिया के द्वारा, परमेश्वर का नाना प्रकार का ज्ञान, उन प्रधानोंऔर अधिक्कारनेियोंपर, जो स्वर्गीय स्यानोंमें हैं प्रगट किया जाए। 11. उस सनातन मनसा के अनुसार, जो उस ने हमारे प्रभु मसीह यीशु में की यीं। 12. जिस में हम को उस पर विश्वास रखने से हियाव और भरोसे से निकट आने का अधिक्कारने है। 13. इसलिथे मैं बिनती करता हूं कि जो क्लेश तुम्हारे लिथे मुझे हो रहे हैं, उनके कारण हियाव न छोड़ो, क्योंकि उन में तुम्हारी महिमा है।। 14. मैं इसी कारण उस पिता के साम्हने घुटने टेकता हूं, 15. जिस से स्वर्ग और पृय्वी पर, हर एक घराने का नाम रखा जाता है। 16. कि वह अपक्की महिमा के धन के अनुसार तुम्हें यह दान दे, कि तुम उसके आत्क़ा से अपके भीतरी मनुष्यत्व में सामर्य पाकर बलवन्त होते जाओ। 17. और विश्वास के द्वारा मसीह तुम्हारे ह्रृदय में बसे कि तुम प्रेम में जड़ पकड़कर और नेव डाल कर। 18. सब पवित्र लागोंके साय भली भांति समझने की शक्ति पाओ; कि उसकी चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊंचाई, और गहराई कितनी है। 19. और मसीह के उस प्रेम को जान सको जो ज्ञान से पके है, कि तुम परमेश्वर की सारी भरपूरी तक परिपूर्ण हो जाओ।। 20. अब जो ऐसा सामर्यी है, कि हमारी बिनती और समझ से कहीं अधिक काम कर सकता है, उस सामर्य के अनुसार जो हम में कार्य्य करता है, 21. कलीसिया में, और मसीह यीशु में, उस की महिमा पीढ़ी से पीढ़ी तक युगानुयुग होती रहे। आमीन।।
Chapter 4
1. सो मैं जो प्रभु में बन्धुआ हूं तुम से बिनती करता हूं, कि जिस बुलाहट से तुम बुलाए गए थे, उसके योग्य चाल चलो। 2. अर्यात् सारी दीनता और नम्रता सहित, और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे को सह लो। 3. और मेल के बन्ध में आत्क़ा की एकता रखने का यत्न करो। 4. एक ही देह है, और एक ही आत्क़ा; जैसे तुम्हें जो बुलाए गए थे अपके बुलाए जाने से एक ही आशा है। 5. एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास, एक ही बपतिस्क़ा। 6. और सब का एक ही परमेश्वर और पिता है, जो सब के ऊपर और सब के मध्य में, और सब में है। 7. पर हम में से हर एक को मसीह के दान के परिमाण से अनुग्रह मिला है। 8. इसलिथे वह कहता है, कि वह ऊंचे पर चढ़ा, और बन्धुवाई को बान्ध ले गया, और मनुष्योंको दान दिए। 9. (उसके चढ़ने से, और क्या पाया जाता है केवल यह, कि वह पृय्वी की निचक्की जगहोंमें उतरा भी या। 10. और जो उतर गया यह वही है जो सारे आकाश के ऊपर चढ़ भी गया, कि सब कुछ परिपूर्ण करे)। 11. और उस ने कितनोंको भविष्यद्वकता नियुक्त करके, और कितनोंको सुसमाचार सुनानेवाले नियुक्त करके, और कितनोंको रखवाले और उपकेशक नियुक्त करके दे दिया। 12. जिस से पवित्र लोग सिद्ध जो जाएं, और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए। 13. जब तक कि हम सब के सब विश्वास, और परमेश्वर के पुत्र की पहिचान में एक न हो जाएं, और एक सिद्ध मनुष्य न बन जाएं और मसीह के पूरे डील डौल तक न बढ़ जाएं। 14. ताकि हम आगे को बालक न रहें, जो मनुष्योंकी ठग-विद्या और चतुराई से उन के भ्रम की युक्तियोंकी, और उपकेश की, हर एक बयार से उछाले, और इधर-उधर घुमाए जाते हों। 15. बरन प्रेम में सच्चाई से चलते हुए, सब बातोंमें उस में जा सिर है, अर्यात् मसीह में बढ़ते जाएं। 16. जिस से सारी देह हर एक जोड़ की सहाथता से एक साय मिलकर, और एक साय गठकर उस प्रभाव के अनुसार जो हर एक भाग के परिमाण से उस में हाता है, अपके आप को बढ़ाती है, कि वह प्रेम में उन्नति करती जाए।। 17. इसलिथे मैं यह कहता हूं, और प्रभु में जताए देता हूं कि जैसे अन्यजातीय लोग अपके मन की अनर्य की रीति पर चलते हैं, तुम अब से फिर ऐसे न चलो। 18. क्योंकि उनकी बुद्धि अन्धेरी हो गई है और उस अज्ञानता के कारण जो उन में है और उनके मन की कठोरता के कारण वे परमेश्वर के जीवन से अलग किए हुए हैं। 19. और वे सुन्न होकर, लुचपन में लग गए हैं, कि सब प्रकार के गन्दे काम लालसा से किया करें। 20. पर तुम ने मसीह की ऐसी शिझा नहीं पाई। 21. बरन तुम ने सचमुच उसी की सुनी, और जैसा यीशु मे सत्य है, उसी में सिखाए भी गए। 22. कि तुम अगले चालचलन के पुराने मनुष्यत्व को जो भरमानेवाली अभिलाषाओं के अनुसार भ्रष्ट होता जाता है, उतार डालो। 23. और अपके मन के आत्क़िक स्वभाव में नथे बनते जाओ। 24. और नथे मनुष्यत्व को पहिन लो, जो परमेश्वर के अनुसार सत्य की धामिर्कता, और पवित्रता में सृजा गया है।। 25. इस कारण फूठ बोलना छोड़कर हर एक अपके पड़ोसी से सच बोले, क्योंकि हम आपस में एक दूसरे के अंग हैं। 26. क्रोध तो करो, पर पाप मत करो: सूर्य अस्त होने तक तुम्हारा क्रोध न रहे। 27. और न शैतान को अवसर दो। 28. चोरी करनेवाला फिर चोरी न करे; बरन भले काम करने में अपके हाथोंसे परिश्र्म करे; इसलिथे कि जिसे प्रयोजन हो, उसे देने को उसके पास कुछ हो। 29. कोई गन्दी बात तुम्हारे मुंह से न निकले, पर आवश्यकता के अनुसार वही जो उन्नति के लिथे उत्तम हो, ताकि उस से सुननेवालोंपर अनुग्रह हो। 30. और परमेश्वर के पवित्र आत्क़ा को शोकित मत करो, जिस से तुम पर छुटकारे के दिन के लिथे छाप दी गई है। 31. सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए। 32. और एक दूसरे पर कृपाल, और करूणामय हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध झमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध झमा करो।।
Chapter 5
1. इसलिथे प्रिय, बालकोंकी नाई परमेश्वर के सदृश बनो। 2. और प्रेम में चलो; जैसे मसीह ने भी तुम से प्रेम किया; और हमारे लिथे अपके आप को सुखदायक सुगन्ध के लिथे परमेश्वर के आगे भेंट करके बलिदान कर दिया। 3. और जैसा पवित्र लागोंके योग्य है, वैसा तु में व्यभिचार, और किसी प्रकार अशुद्ध काम, या लोभ की चर्चा तक न हो। 4. और न निर्लज्ज़ता, न मूढ़ता की बातचीत की, न ठट्ठे की, क्योंकि थे बातें सोहती नहीं, बरन धन्यवाद ही सुना जाएं। 5. क्योंकि तुम यह जानते हो, कि किसी व्यभिचारी, या अशुद्ध जन, या लोभी मनुष्य की, जो मूरत पूजनेवाले के बराबर है, मसीह और परमेश्वर के राज्य में मीरास नहीं। 6. कोई तुम्हें व्यर्य बातोंसे धोखा न दे; क्योंकि इन ही कामोंके कारण परमेश्वर का क्रोध आज्ञा ने माननेवालोंपर भड़कता है। 7. इसलिथे तुम उन के सहभागी न हो। 8. क्योंकि तुम तो पहले अन्धकार थे परन्तु अब प्रभु में ज्योति हो, सो ज्योति की सन्तान की नाई चलो। 9. (क्योंकि ज्योंति का फल सब प्रकार की भलाई, और धामिर्कता, और सत्य है)। 10. और यह परखो, कि प्रभु को क्या भाता है 11. और अन्धकार के निष्फल कामोंमें सहभागी न हो, बरन उन पर उलाहना दो। 12. क्योंकि उन के गुप्त कामोंकी चर्चा भी लाज की बात है। 13. पर जितने कामोंपर उलाहना दिया जाता है वे सब ज्योति से प्रगट होते हैं, क्योंकि जो सब कुछ को प्रगट करता है, वह ज्योंति है। 14. इस कारण वह कहता है, हे सोनेवाले जाग और मुर्दोंमें से जी उठ; तो मसीह की ज्योति तुझ पर चमकेगी।। 15. इसलिथे ध्यान से देखो, कि कैसी चाल चलते हो; निर्बुद्धियोंकी नाईं नहीं पर बुद्धिमानोंकी नाईं चलो। 16. और अवसर को बहुमोल समझो, क्योंकि दिन बुरे हैं। 17. इस कारण निर्बुद्धि न हो, पर ध्यान से समझो, कि प्रभु की इच्छा क्या है 18. और दाखरस से मतवाले न बनो, क्योंकि इस से लुचपर होता है, पर आत्क़ा से परिपूर्ण होते जाओ। 19. और आपस में भजन और स्तुतिगान और आत्क़िक गीत गाया करो, और अपके अपके मन में प्रभु के साम्हने गाते और कीर्तन करते रहो। 20. और सदा सब बातोंके लिथे हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम से परमेश्वर पिता का धन्यवाद करते रहो। 21. और मसीह के भय से एक दूसरे के आधीन रहो।। 22. हे पत्नियों, अपके अपके पति के ऐसे अधीन रहो, जैसे प्रभु के। 23. क्योंकि पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है; और आप ही देह का उद्धारकर्ता है। 24. पर जैसे कलीसिया मसही के आधीन है, वैसे ही पत्नियां भी हर बात में अपके अपके पति के आधीन रहें। 25. हे पतियों, अपक्की अपक्की पत्नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपके आप को उसके लिथे दे दिया। 26. कि उस को वचन के द्वारा जल के स्नान से शुद्ध करके पवित्र बनाए। 27. और उसे एक ऐसी तेजस्वी कलीसिया बनाकर अपके मास खड़ी करे, जिस में न कलंक, न र्फुरी, न कोई ऐसी वस्तु हो, बरन पवित्र और निर्दोष हो। 28. इसी प्रकार उचित है, कि पति अपक्की अपक्की पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपके आप से प्रेम रखता है। 29. क्योंकि किसी ने कभी अपके शरीर से बैर नहीं रखा बरन उसका पालन-पोषण करता है, जैसा मसीह भी कलीसिया के साय करता है 30. इसलिथे कि हम उस की देह के अंग हैं। 31. इस कारण मनुष्य माता पिता को छोड़कर अपक्की पत्नी से मिला रहेगा, और वे दोनोंएक तन होंगे। 32. यह भेद तो बड़ा है; पर मैं मसीह और कलीसिया के विषय में कहता हूं। 33. पर तुम में से हर एक अपक्की पत्नी से अपके समान प्रेम रखे, और पत्नी भी अपके पति का भय माने।।
Chapter 6
1. हे बालकों, प्रभु में अपके माता पिता के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि यह उचित है। 2. अपक्की माता और पिता का आदर कर (यह पहिली आज्ञा है, जिस के साय प्रतिज्ञा भी है)। 3. कि तेरा भला हो, और तू धरती पर बहुत दिन जीवित रहे। 4. और हे बच्चेवालोंअपके बच्चोंको रिस न दिलाओ परन्तु प्रभु की शिझा, और चितावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण करो।। 5. हे दासो, जो लोग शरीर के अनुसार तुम्हारे स्वामी हैं, अपके मन की सीधाई से डरते, और कांपके हुए, जैसे मसीह की, वैसे ही उन की भी आज्ञा मानो। 6. और मनुष्योंको प्रसन्न करनेवालोंकी नाई दिखाने के लिथे सेवा न करो, पर मसीह के दासोंकी नाई मन से परमेश्वर की इच्छा पर चलो। 7. और उस सेवा को मनुष्योंकी नहीं, परन्तु प्रभु की जानकर सुइच्छा से करो। 8. क्योंकि तुम जानते हो, कि जो कोई जैसा अच्छा काम करेगा, चाहे दास हो, चाहे स्वतंत्र; प्रभु से वैसा ही पाएगा। 9. और हे स्वामियों, तुम भी धमकियां छोड़कर उन के साय वैसा ही व्यवहार करो, क्योंकि जानते हो, कि उन का और तुम्हारा दानोंका स्वामी स्वर्ग में है, और वह किसी का पझ नहीं करता।। 10. निदान, प्रभु में और उस की शक्ति में बलवन्त बनो। 11. परमेश्वर के सारे हिययार बान्ध लो; कि तुम शैतान की युक्तियोंके साम्हने खड़े रह सको। 12. क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध, लोहू और मांस से नहीं, परन्तु प्रधानोंसे और अधिक्कारनेियोंसे, और इस संसार के अन्धकार के हाकिमोंसे, और उस दुष्टता की आत्क़िक सेनाओं से है जो आकाश में हैं। 13. इसलिथे परमेश्वर के सारे हिययार बान्ध लो, कि तुम बुरे दिन में साम्हना कर सको, और सब कुछ पूरा करके स्यिर रह सको। 14. सो सत्य से अपक्की कमर कसकर, और धार्मीकता की फिलम पहिन कर। 15. और पांवोंमें मेल के सुसमाचार की तैयारी के जूते पहिन कर। 16. और उन सब के साय विश्वास की ढाल लेकर स्यिर रहो जिस से तुम उस दुष्ट के सब जलते हुए तीरोंको बुफा सको। 17. और उद्धार का टोप, और आत्क़ा की तलवार जो परमेश्वर का वचन है, ले लो। 18. और हर समय और हर प्रकार से आत्क़ा में प्रार्यना, और बिनती करते रहो, और इसी लिथे जागते रहो, कि सब पवित्र लोगोंके लिथे लगातार बिनती किया करो। 19. और मेरे लिथे भी, कि मुझे बोलने के समय ऐसा प्रबल वचन दिया जाए, कि मैं हियाव से सुसमाचार का भेद बता सकूं जिस के लिथे मैं जंजीर से जकड़ा हुआ राजदूत हूं। 20. और यह भी कि मैं उस के विषय में जैसा मुझे चाहिए हियाव से बोलूं।। 21. और तुखिकुस जो प्रिय भाई और प्रभु में विश्वासयोग्य सेवक है तुम्हें सब बातें बताएगा, कि तुम भी मेरी दशा जानो कि मैं कैसा रहता हूं। 22. उसे मैं ने तुम्हारे पास इसी लिथे भेजा है, कि तुम हमारी दशा जानो, और वह तुम्हारे मनोंको शान्ति दे।। 23. परमेश्वर पिता और प्रभु यीशु मसीह की ओर से भाइयोंको शान्ति और विश्वास सहित प्रेम मिले। 24. जो हमारे प्रभु यीशु मसीह से सच्चा प्रेम रखते हैं, उन सब पर अनुग्रह होता रहे।।
(April28th2012)
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