प्रेरितों के काम
Chapter 1
1. हे यियुफिलुस, मैं ने पहिली पुस्तिका उन सब बातोंके विषय में लिखी, जो यीशु ने आरम्भ में किया और करता और सिखाता रहा। 2. उस दिन तक जब वह उन प्ररितोंको जिन्हें उस ने चुना या, पवित्र आत्क़ा के द्वारा आज्ञा देकर ऊपर उठाया न गया। 3. और उस ने दु:ख उठाने के बाद बहुत से पके प्रमाणोंसे अपके आप को उन्हें जीवित दिखाया, और चालीस दिन तक वह उन्हें दिखाई देता रहा: और परमेश्वर के राज्य की बातें करता रहा। 4. ओर उन से मिलकर उन्हें आज्ञा दी, कि यरूशलेम को न छोड़ो, परन्तु पिता की उस प्रतिज्ञा के पूरे होने की बाट जाहते रहो, जिस की चर्चा तुम मुझ से सुन चुके हो। 5. क्योंकि यूहन्ना ने तो पानी में बपतिस्क़ा दिया है परन्तु योड़े दिनोंके बाद तुम पवित्रात्क़ा से बपतिस्क़ा पाओगे। 6. सो उन्हीं ने इकट्ठे होकर उस से पूछा, कि हे प्रभु, क्या तू इसी समय इस्त्राएल को राज्य फेर देगा 7. उस ने उन से कहा; उन समयोंया कालोंको जानना, जिन को पिता ने अपके ही अधिक्कारने में रखा है, तुम्हारा काम नहीं। 8. परन्तु जब पवित्र आत्क़ा तुम पर आएगा तब तुम सामर्य पाओगे; और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृय्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे। 9. यह कहकर वह उन के देखते देखते ऊपर उठा लिया गया; और बादल ने उसे उन की आंखोंसे छिपा लिया। 10. और उसके जाते समय जब वे आकाश की ओर ताक रहे थे, तो देखो, दो पुरूष श्वेत वस्त्र पहिने हुए उन के पास आ खड़े हुए। 11. और कहने लगे; हे गलीली पुरूषों, तुम क्योंखड़े स्वर्ग की ओर देख रहे हो यही यीशु, जो तुम्हारे पास से स्वर्ग पर उठा लिया गया है, जिस रीति से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है उसी रीति से वह फिर आएगा।। 12. तब वे जैतून नाम के पहाड़ से जो यरूशलेम के निकट एक सब्त के दिन की दूरी पर है, यरूशलेम को लौटे। 13. और जब वहां पहुंचे तो वे उस अटारी पर गए, जहां पतरस और यूहन्ना और याकूब और अन्द्रियास और फिलप्पुस और योमा और बरतुलमाई और मत्ती और हलफई का पुत्र याकूब और शमौन जेलोतेस और याकूब का पुत्र यहूदा रहते थे। 14. थे सब कई स्त्रियोंऔर यीशु की माता मरियम और उसके भाइयोंके साय एक चित्त होकर प्रार्यना में लगे रहे।। 15. और उन्हीं दिनोंमें पतरस भाइयोंके बीच में जो एक सौ बीस व्यक्ति के लगभग इकट्ठे थे, खड़ा होकर कहने लगा। 16. हे भाइयों, अवश्य या कि पवित्र शास्त्र का वह लेख पूरा हो, जो पवित्र आत्क़ा ने दाऊद के मुख से यहूदा के विषय में जो यीशु के पकड़नेवालोंका अगुवा या, पहिले से कही यी। 17. क्योंकि वह तो हम में गिना गया, और इस सेवकाई में सहभागी हुआ। 18. (उस ने अधर्म की कमाई से एक खेत मोल लिया; और सिर के बल गिरा, और उसका पेट फट गया, और उस की सब अन्तडिय़ां निकल पड़ी। 19. और इस बात को यरूशलेम के सब रहनेवाले जान गए, यहां तक कि उस खेत का नाम उन की भाषा में हकलदमा अर्यात् लोहू का खेत पड़ गया।) 20. क्योंकि भजन सहिंता में लिखा है, कि उसका घर उजड़ जाए, और उस में कोई न बसे और उसका पद कोई दूसरा ले ले। 21. इसलिथे जितने दिन तक प्रभु यीशु हमारे साय आता जाता रहा, अर्यात् यूहन्ना के बपतिस्क़ा से लेकर उसके हमारे पास से उठाए जाने तक, जो लोग बराबर हमारे साय रहे। 22. उचित है कि उन में से एक व्यक्ति हमारे साय उसके जी उठने का गवाह हो जाए। 23. तक उन्होंने दो को खड़ा किया, एक युसुफ को, जो बर-सबा कहलाता है, जिस का उपनाम यूसतुस है, दूसरा मत्तिय्याह को। 24. और यह कहकर प्रार्यना की; कि हे प्रभु, तू जो सब के मन जानता है, यह प्रगट कर कि इन दानोंमें से तू ने किस को चुना है। 25. कि वह इस सेवकाई और प्ररिताई का पद ले जिसे यहूदा छोड़ कर अपके स्यान को गया। 26. तब उन्होंने उन के बारे में चिट्ठियां डालीं, और चिट्ठी मत्तिय्याह के नाम पर निकली, सो वह उन ग्यारह प्रेरितोंके साय गिना गया।।
Chapter 2
1. जब पिन्तेकुस का दिन आया, तो वे सब एक जगह इकट्ठे थे। 2. और एकाएक आकाश से बड़ी आंधी की सी सनसनाहट का शब्द हुआ, और उस से सारा घर जहां वे बैठे थे, गूंज गया। 3. और उन्हें आग की सी जीभें फटती हुई दिखाई दीं; और उन में से हर एक पर आ ठहरीं। 4. और वे सब पवित्र आत्क़ा से भर गए, और जिस प्रकार आत्क़ा ने उन्हें बोलने की सामर्य दी, वे अन्य अन्य भाषा बोलने लगे।। 5. और आकाश के नीचे की हर एक जाति में से भक्त यहूदी यरूशलेम में रहते थे। 6. जब वह शब्द हुआ तो भीड़ लग गई और लोग घबरा गए, क्योंकि हर एक को यही सुनाई देता या, कि थे मेरी ही भाषा में बोल रहे हैं। 7. और वे सब चकित और अचम्भित होकर कहने लगे; देखो, थे जो बोल रहे हैं क्या सब गलीली नहीं 8. तो फिर क्योंहम में से हर एक अपक्की अपक्की जन्क़ भूमि की भाषा सुनता है 9. हम जो पारयी और मेदी और एलामी लोग और मिसुपुतामिया और यहूदिया और कप्पदूकिया और पुन्तुस और आसिया। 10. और फ्रूगिया और पमफूलिया और मिसर और लिबूआ देश जो कुरेने के आस पास है, इन सब देशोंके रहनेवाले और रोमी प्रवासी, क्या यहूदी क्या यहूदी मत धारण करनेवाले, क्रेती और अरबी भी हैं। 11. परन्तु अपक्की अपक्की भाषा में उन से परमेश्वर के बड़े बड़े कामोंकी चर्चा सुनते हैं। 12. और वे सब चकित हुए, और घबराकर एक दूसरे से कहने लगे कि यह क्या हुआ चाहता है 13. परन्तु औरोंने ठट्ठा करके कहा, कि वे तो नई मदिरा के नशे में हैं।। 14. पतरस उन ग्यारह के साय खड़ा हुआ और ऊंचे शब्द से कहने लगा, कि हे यहूदियो, और हे यरूशलेम के सब रहनेवालो, यह जान लो और कान लगाकर मेरी बातें सुनो। 15. जैसा तुम समझ रहे हो, थे नशें में नहीं, क्योंकि अभी तो पहर ही दिन चढ़ा है। 16. परन्तु यह वह बात है, जो योएल भविष्यद्वक्ता के द्वारा कही गई है। 17. कि परमेश्वर कहता है, कि अन्त कि दिनोंमें ऐसा होगा, कि मैं अपना आत्क़ा सब मनुष्योंपर उंडेलूंगा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारी बेटियां भविष्यद्वाणी करेंगी और तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे, और तुम्हारे पुरिनए स्वप्त देखेंगे। 18. बरन मैं अपके दासोंऔर अपक्की दासियोंपर भी उन दिनोंमें अपके आत्क़ा में से उंडेलूंगा, और वे भविष्यद्वाणी करेंगे। 19. और मैं ऊपर आकाश में अद्भुत काम, और नीचे धरती पर चिन्ह, अर्यात् लोहू, और आग और धूएं का बादल दिखाऊंगा। 20. प्रभु के महान और प्रसिद्ध दिन के आने से पहिले सूर्य अन्धेरा और चान्द लोहू हो जाएगा। 21. और जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वही उद्धार पाएगा। 22. हे इस्त्राएलियों, थे बातें सुनो: कि यीशु नासरी एक मनुष्य या जिस का परमेश्वर की ओर से होने का प्रमाण उन सामर्य के कामोंऔर आश्चर्य के कामोंऔर चिन्होंसे प्रगट है, जो परमेश्वर ने तुम्हारे बीच उसके द्वारा कर दिखलाए जिसे तुम आप ही जानते हो। 23. उसी को, जब वह परमेश्वर की ठहराई हुई मनसा और होनहार के ज्ञान के अनुसार पकड़वाया गया, तो तुम ने अधमिर्योंके हाथ से उसे क्रूस पर चढ़वाकर मार डाला। 24. परन्तु उसी को परमेश्वर ने मृत्यु के बन्धनोंसे छुड़ाकर जिलाया: क्योंकि यह अनहोना या कि वह उसके वश में रहता। 25. क्योंकि दाऊद उसके विषय में कहता है, कि मैं प्रभु को सर्वदा अपके साम्हने देखता रहा क्योंकि वह मेरी दिहनी ओर है, ताकि मैं डिग न जाऊं। 26. इसी कारण मेरा मन आनन्द हुआ, और मेरी जीभ मगन हुई; बरन मेरा श्रीर भी आशा में बसा रहेगा। 27. क्योंकि तू मेरे प्राणोंको अधोलोक में न छोड़ेगा; और न अपके पवित्र जन को सड़ने ही देगा! 28. तू ने मुझे जीवन का मार्ग बताया हे; तू मुझे अपके दर्शन के द्वारा आनन्द से भर देगा। 29. हे भाइयो, मैं उस कुलपति दाऊद के विषय में तुम से साहस के साय कह सकता हूं कि वह तो मर गया और गाड़ा भी गया और उस की कब्र आज तक हमारे यहां वर्तमान है। 30. सो भविष्यद्वक्ता होकर और यह जानकर कि परमेश्वर ने मुझ से शपय खाई है, कि परमेश्वर ने मुझ से शपय खाई है, कि मैं तेरे वंश में से एक व्यक्ति को तेरे सिंहासन पर बैठाऊंगा। 31. उस ने होनहार को पहिले ही से देखकर मसीह के जी उठने के विषय में भविष्यद्वाणी की कि न तो उसका प्राण अधोलोक में छोड़ा गया, और न उस की देह सड़ने पाई। 32. इसी यीशु को परमेश्वर ने जिलाया, जिस के हम सब गवाह हैं। 33. इस प्रकार परमेश्वर के दिहने हाथ से सर्वोच्च पद पाकर, और पिता से वह पवित्र आत्क़ा प्राप्त करके जिस की प्रतिज्ञा की गई यी, उस ने यह उंडेल दिया है जो तुम देखते और सनते हो। 34. क्योंकि दाऊद तो स्वर्ग पर नहीं चढ़ा; परन्तु वह आप कहता है, कि प्रभु ने मेरे प्रभु से कहा; 35. मेरे दिहने बैठ, जब तक कि मैं तेरे बैरियोंको तेरे पांवोंतले की चौकी न कर दूं। 36. सो अब इस्त्राएल का सारा घराना निश्चय जान ले कि परमेश्वर ने उसी यीशु को जिसे तुम ने क्रूस पर चढ़ाया, प्रभु भी ठहराया और मसीह भी।। 37. तब सुननेवालोंके ह्रृदय छिद गए, और वे पतरस और शेष प्रेरितोंसे पूछने लगे, कि हे भाइयो, हम क्या करें 38. पतरस ने उन से कहा, मन फिराओ, और तुम में से हर एक अपके अपके पापोंकी झमा के लिथे यीशु मसीह के नाम से बपतिस्क़ा ले; तो तुम पवित्र आत्क़ा का दान पाओगे। 39. क्योंकि यह प्रतिज्ञा तुम, और तुम्हारी सन्तानों, और उन सब दूर दूर के लोगोंके लिथे भी है जिनको प्रभु हमारा परमेश्वर अपके पास बुलाएगा। 40. उस ने बहुत ओर बातोंमें भी गवाही दे देकर समझाया कि अपके आप को इस टेढ़ी जाति से बचाओ। 41. सो जिन्होंने उसका वचन ग्रहण किया उन्होंने बपतिस्क़ा लिया; और उसी दिन तीन हजार मनुष्योंके लगभग उन में मिल गए। 42. और वे प्ररितोंसे शिझा पाने, और संगति रखने में और रोटी तोड़ने में और प्रार्यना करने में लौलीन रहे।। 43. और सब लोगोंपर भय छा गया, और बहुत से अद्भुत काम और चिन्ह प्रेरितोंके द्वारा प्रगट होते थे। 44. और वे सब विश्वास करनेवाले इकट्ठे रहते थे, और उन की सब वस्तुएं साफे की यी। 45. और वे अपक्की अपक्की सम्पत्ति और सामान बेच बेचकर जैसी जिस की आवश्यकता होती यी बांट दिया करते थे। 46. और वे प्रति दिन एक मन होकर मन्दिर में इकट्ठे होते थे, और घर घर रोटी तोड़ते हुए आनन्द और मन की सीधाई से भोजन किया करते थे। 47. और परमेश्वर की स्तुति करते थे, और सब लोग उन से प्रसन्न थे: और जो उद्धार पाते थे, उनको प्रभु प्रति दिन उन में मिला देता या।।
Chapter 3
1. पतरस और यूहन्ना तीसरे पहर प्रार्यना के समय मन्दिर में जा रहे थे। 2. और लोग एक जन्क़ के लंगड़े को ला रहे थे, जिस को वे प्रति दिन मन्दिर के उस द्वार पर जो सुन्दर कहलाता है, बैठा देते थे, कि वह मन्दिर में जानेवालोंसे भीख मांगे। 3. जब उस ने पतरस और यूहन्ना को मन्दिर में जाते देखा, तो उन से भीख मांगी। 4. पतरस ने यूहन्ना के साय उस की ओर ध्यान से देखकर कहा, हमारी ओर देख। 5. सो वह उन से कुछ पाने की आशा रखते हुए उन की ओर ताकने लगा। 6. तब पतरस ने कहा, चान्दी और सोना तो मेरे पास है नहीं; परन्तु जो मेरे पास है, वह तुझे देता हूं: यीशु मसीह नासरी के नाम से चल फिर। 7. और उस ने उसका दिहना हाथ पकड़ के उसे उठाया: और तुरन्त उसके पावोंऔर टखनोंमें बल आ गया। 8. और वह उछलकर खड़ा हो गया, और चलने फिरने लगा और चलता; और कूदता, और परमेश्वर की स्तुति करता हुआ उन के साय मन्दिर में गया। 9. सब लोगोंने उसे चलते फिरते और परमेश्वर की स्तुति करते देखकर। 10. उस को पहचान लिया कि यह वही है, जो मन्दिर के सुन्दर फाटक पर बैठ कर भीख मांगा करता या; और उस घटना से जो उसके साय हुई यी; वे बहुत अचम्भित और चकित हुए।। 11. जब वह पतरस और यूहन्ना को पकड़े हुए या, तो सब लोग बहुत अचम्भा करते हुए उस ओसारे में जो सुलैमान का कहलाता है, उन के पास दौड़े आए। 12. यह देखकर पतरस ने लोगोंसे कहा; हे इस्त्राएलियों, तुम इस मनुष्य पर क्योंअचम्भा करते हो, और हमारी ओर क्योंइस प्रकार देख रहे हो, कि मानो हम ही ने अपक्की सामर्य या भक्ति से इसे चलना-फिरता कर दिया। 13. इब्राहीम और इसहाक और याकूब के परमेश्वर, हमारे बापदादोंके परमेश्वर ने अपके सेवक यीशु की महिमा की, जिसे तुम ने पकड़वा दिया, और जब पीलातुस ने उसे छोड़ देने का विचार किया, तब तुम ने उसके साम्हने उसका इन्कार किया। 14. तुम ने उस पवित्र और धर्मी का इन्कार किया, और बिनती की, कि एक हत्यारे को तुम्हारे लिथे छोड़ दिया जाए। 15. और तुम ने जीवन के कर्त्ता को मार डाला, जिसे परमेश्वर ने मरे हुओं में से जिलाया; और इस बात के हम गवाह हैं। 16. और उसी के नाम ने, उस विश्वास के द्वारा जो उसके नाम पर है, इस मनुष्य को जिसे तुम देखते हो और जानते भी हो सामर्य दी है; और निश्चय उसी विश्वास ने जो उसके द्वारा है, इस को तुम सब के साम्हने बिलकुल भला चंगा कर दिया है। 17. और अब हे भाइयो, मैं जानता हूं कि यह काम तुम ने अज्ञानता से किया, और वैसा ही तुम्हारे सरदारोंने भी किया। 18. परन्तु जिन बातोंको परमेश्वर ने सब भविष्यद्वक्ताओं के मुख से पहिले ही बताया या, कि उसका मसीह दु:ख उठाएगा; उन्हें उस ने इस रीति से पूरी किया। 19. इसलिथे, मन फिराओ और लौट आओ कि तुम्हारे पाप मिटाए जाएं, जिस से प्रभु के सम्मुख से विश्रन्ति के दिन आएं। 20. और वह उस मसीह यीशु को भेजे जो तुम्हारे लिथे पहिले ही से ठहराया गया है। 21. अवश्य है कि वह स्वर्ग में उस समय तक रहे जब तक कि वह सब बातोंका सुधार न कर ले जिस की चर्चा परमेश्वर ने अपके पवित्र भविष्यद्वक्ताओं के मुख से की है, जो जगत की उत्पत्ति से होते आए हैं। 22. जैसा कि मूसा ने कहा, प्रभु परमेश्वर तुम्हारे भाइयोंमें से तुम्हारे लिथे मुझ सा एक भविष्यद्वक्ता उठाएगा, जो कुछ वह तुम से कहे, उस की सुनना। 23. परन्तु प्रत्थेक मनुष्य जो उस भविष्यद्वक्ता की न सुने, लोगोंमें से नाश किया जाएगा। 24. और सामुएल से लेकर उकसे बाद बालोंतक जितने भविष्यद्वक्ताओं ने बात कीहं उन सब ने इन दिनोंका सन्देश दिया है। 25. तुम भविष्यद्वक्ताओं की सन्तान और उस वाचा के भागी हो, जो परमेश्वर ने तुम्हारे बापदादोंसे बान्धी, जब उस ने इब्राहीम से कहा, कि तेरे वंश के द्वारा पृय्वी के सारे घराने आशीष पाएंगे। 26. परमेश्वर ने अपके सेवक को उठाकर पहिल तुम्हारे पास भेजा, कि तुम में से हर एक की उस की बुराइयोंसे फेरकर आशीष दे।।
Chapter 4
1. जब वे लोगोंसे यह कह रहे थे, तो याजक और मन्दिर के सरदार और सदूकी उन पर चढ़ आएं। 2. क्योंकि वे बहुत क्रोधित हुए कि वे लोगोंको सिखाते थे और यीशु का उदाहरण दे देकर मरे हुओं के जी उठने का प्रचार करते थे। 3. और उन्होंने उन्हें पकड़कर दूसरे दिन तक हवालात में रखा क्योंकि सन्धया हो गई यी। 4. परन्तु वचन के सुननेवालोंमें से बहुतोंने विश्वास किया, और उन की गिनती पांच हजार पुरूषोंके लगभग हो गई।। 5. दूसरे दिन ऐसा हुआ कि उन के सरदार और पुरिनथे और शास्त्री। 6. और महाथाजक हन्ना और कैफा और यूहन्ना और सिकन्दर और जितने महाथाजक के घराने के थे, सब यरूशलेम में इकट्ठे हुए। 7. और उन्हें बीच में खड़ा करके पूछने लगे, कि तुम ने यह काम किस सामर्य से और किस नाम से किया है 8. तब पतरस ने पवित्र आत्क़ा से परिपूर्ण होकर उन से कहा। 9. हे लोगोंके सरदारोंऔर पुरिनयों, इस र्दुबल मनुष्य के साय जो भलाई की गई है, यदि आज हम से उसके विषय में पूछ पाछ की जाती है, कि वह क्योंकर अच्छा हुआ। 10. तो तुम सब और सारे इस्त्राएली लोग जान लें कि यीशु मसीह नासरी के नाम से जिसे तुम ने क्रूस पर चढ़ाया, और परमेश्वर ने मरे हुओं में से जिलाया, यह मनुष्य तुम्हारे साम्हने भला चंगा खड़ा है। 11. यह वही पत्यर है जिसे तुम राजमिस्रियोंने तुच्छ जाता और वह कोने के सिक्के का पत्यर हो गया। 12. और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्योंमें और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें।। 13. जब उन्होंने पतरस और यूहन्ना का हियाव देखा, ओर यह जाना कि थे अनपढ़ और साधारण मनुष्य हैं, तो अचम्भा किया; फिर उन को पहचाना, कि थे यीशु के साय रहे हैं। 14. और उस मनुष्य को जो अच्छा हुआ या, उन के साय खड़े देखकर, वे विरोध में कुछ न कह सके। 15. परन्तु उन्हें सभा के बाहर जाने की आज्ञा देकर, वे आपस में विचार करने लगे, 16. कि हम इन मनुष्योंके साय क्या करें क्योंकि यरूशलेम के सब रहनेवालोंपर प्रगट है, कि इन के द्वारा एक प्रसिद्ध चिन्ह दिखाया गया है; और हम उसका इन्कार नहंी कर सकते। 17. परन्तु इसलिथे कि यह बात लोगोंमें और अधिक फैल न जाए, हम उन्हें धमकाएं, कि वे इस नाम से फिर किसी मनुष्य से बातें न करें। 18. तब उन्हें बुलाया और चितौनी देकर यह कहा, कि यीशु के नाम से कुछ भी न बोलना और न सिखलाना। 19. परन्तु पतरस और यूहन्ना ने उन को उत्तर दिया, कि तुम ही न्याय करो, कि क्या यह परमेश्वर के निकट भला है, कि हम परमेश्वर की बात से बढ़कर तुम्हारी बात मानें। 20. क्योंकि यह तो हम में हो नहीं सकता, कि जो हम ने देखा और सुना है, वह न कहें। 21. तब उन्होंने उन को और धमकाकर छोड़ दिया, क्योंकि लोगोंके कारण उन्हें दण्ड देने का कोई दांव नहीं मिला, इसलिथे कि जो घटना हुई यी उसके कारण सब लोग परमेश्वर की बड़ाई करते थे। 22. क्योंकि वह मनुष्य, जिस पर यह चंगा करने का चिन्ह दिखाया गया या, चालीस वर्ष से अधिक आयु का या। 23. वे छूटकर अपके सायियोंके पास आए, और जो कुछ महाथाजकोंऔर पुरिनयोंने उन से कहा या, उनको सुना दिया। 24. यह सुनकर, उन्होंने एक चित्त होकर ऊंचे शब्द से परमेश्वर से कहा, हे स्वामी, तू वही है जिस ने सवर्ग और पृय्वी और समुद्र और जो कुछ उन में है बनाया। 25. तू ने पवित्र आत्क़ा के द्वारा अपके सेवक हमारे पिता दाऊद के मुख से कहा, कि अन्य जातियोंने हुल्लड़ क्योंमचाया और देश के लोगोंने क्योंव्यर्य बातें सोची 26. प्रभु और उसके मसीह के विरोध में पृय्वी के राजा खड़े हुए, और हाकिम एक साय इकट्ठे हो गए। 27. क्योंकि सचमुच तेरे सेवक यीशु के विरोध में, जिस तू ने अभिषेक किया, हेरोदेस और पुन्तियुस पीलातुस भी अन्य जातियोंऔर इस्त्राएलियोंके साय इस नगर में इकट्ठे हुए। 28. कि जो कुछ पहिले से तेरी सामर्य और मति से ठहरा या वही करें। 29. अब, हे प्रभु, उन की धमकियोंको देख; और अपके दासोंको यह बरदान दे, कि तेरा वचन बड़े हियाव से सुनाएं। 30. और चंगा करने के लिथे तू अपना हाथ बढ़ा; कि चिन्ह और अद्भुत काम तेरे पवित्र सेवक यीशु के नाम से किए जाएं। 31. जब वे प्रार्यना कर चुके, तो वह स्यान जहां वे इकट्ठे थे हिल गया, और वे सब पवित्र आत्क़ा से परिपूर्ण हो गए, और परमेश्वर का वचन हियाव से सुनाते रहे।। 32. और विश्वास करनेवालोंकी मण्डली एक चित्त और एक मन के थे यहां तक कि कोई भी अपक्की सम्पति अपक्की नहीं कहता या, परन्तु सब कुछ साफे का या। 33. और प्ररित बड़ी सामर्य से प्रभु यीशु के जी उठने की गवाही देते रहे और उन सब पर बड़ा अनुग्रह या। 34. और उन में कोई भी दिरद्र न या, क्योंकि जिन के पास भूमि या घर थे, वे उन को बेच बेचकर, बिकी हुई वस्तुओं का दाम लाते, और उसे प्ररितोंके पांवोंपर रखते थे। 35. और जैसी जिसे आवश्यकता होती यी, उसके अनुसार हर एक को बांट दिया करते थे। 36. और यूसुफ नाम, क्रुप्रुस का एक लेवी या जिसका नाम प्रेरितोंने बर-नबा अर्यात् (शान्ति का पुत्र) रखा या। 37. उस की कुछ भूमि यी, जिसे उस ने बेचा, और दाम के रूपके लाकर प्रेरितोंके पांवोंपर रख दिए।।
Chapter 5
1. और हनन्याह नाम एक मनुष्य, और उस की पत्नी सफीरा ने कुछ भूमि बेची। 2. और उसके दाम में से कुछ रख छोड़ा; और यह बात उस की पत्नी भी जानती यी, और उसका एक भाग लाकर प्ररितोंके पावोंके आगे रख दिया। 3. परन्तु पतरस ने कहा; हे हनन्याह! शैतान ने तेरे मन में यह बात क्योंडाली है कि तू पवित्र आत्क़ा से फूठ बोले, और भूमि के दाम में से कुछ रख छोड़े 4. जब तक वह तेरे पास रही, क्या तेरी न यी और जब बिक गई तो क्या तेरे वश में न यी तू ने यह बात अपके मन में क्योंविचारी तू मनुष्योंसे नहीं, परन्तु परमेश्वर से फूठ बोला। 5. थे बातें सुनते ही हनन्याह गिर पड़ा, और प्राण छोड़ दिए; और सब सुननेवालोंपर बड़ा भय छा गया। 6. फिर जवानोंने उठकर उसकी अर्यी बनाई और बाहर ले जाकर गाढ़ दिया।। 7. लगभग तीन घंटे के बाद उस की पत्नी, जो कुछ हुआ या न जानकर, भीतर आई। 8. तब पतरस ने उस से कहा; मुझे बता क्या तुम ने वह भूमि इतने ही में बेची यी उस ने कहा; हां, इतने ही में। 9. पतरस ने उस से कहा; यह क्या बात है, कि तुम दोनोंने प्रभु की आत्क़ा की पक्कीझा के लिथे एका किया है देख, तेरे पति के गाड़नेवाले द्वार ही पर खड़े हैं, और तुझे भी बाहर ले जाएंगे। 10. तब वह तुरन्त उसके पांवोंपर गिर पड़ी, और प्राण छोड़ दिए: और जवानोंने भीतर आकर उसे मरा पाया, और बाहर ले जाकर उसके पति के पास गाड़ दिया। 11. और सारी कलीसिया पर और इन बातोंके सब सुननेवालोंपर, बड़ा भय छा गया।। 12. और प्रेरितोंके हाथोंसे बहुत चिन्ह और अद्भुत काम लोगोंके बीच में दिखाए जाते थे, (और वे सब एक चित्त होकर सुलैमान के ओसारे में इकट्ठे हुआ करते थे। 13. परन्तु औरोंमें से किसी को यह हियाव न होता या, उन में जा मिलें; तौभी लोग उन की बड़ाइ। करते थे। 14. और विश्वास करनेवाले बहुतेरे पुरूष और स्त्रियां प्रभु की कलीसिया में और भी अधिक आकर मिलते रहे।) 15. यहां तक कि लोग बीमारोंको सड़कोंपर ला लाकर, खाटोंऔर खटोलोंपर लिटा देते थे, कि जब पतरस आए, तो उस की छाया ही उन में से किसी पर पड़ जाए। 16. और यरूशलेम के आस पास के नगरोंसे भी बहुत लोग बीमारोंऔर अशुद्ध आत्क़ाओं के सताए हुओं का ला लाकर, इकट्ठे होते थे, और सब अच्छे कर दिए जाते थे।। 17. तब महाथाजक और उसके सब सायी जो सदूकियोंके पंय के थे, डाह से भर कर उठे। 18. और प्ररितोंको पकड़कर बन्दीगृह में बन्द कर दिया। 19. परन्तु रात को प्रभु के एक स्वर्गदूत ने बन्दीगृह के द्वार खोलकर उन्हें बाहर लाकर कहा। 20. कि जाओ, मन्दिर में खड़े होकर, इस जीवन की सब बातें लोगोंको सुनाओ। 21. वे यह सुनकर भोर होते ही मन्दिर में जाकर उपकेश देने लगे: परन्तु महाथाजक और उसके सायियोंने आकर महासभा को और इस्त्राएलियोंके सब पुरिनयोंको इकट्ठे किया, और बन्दीगृह में कहला भेजा कि उन्हें लाएं। 22. परन्तु प्यादोंने वहां पहुंचकर उन्हें बन्दीगृह में न पाया, और लौटकर संदेश दिया। 23. कि हम ने बन्दीगृह को बड़ी चौकसी से बन्द किया हुआ, और पहरेवालोंको बाहर द्वारोंपर खड़े हुए पाया; परनतु जब खोला, तो भीतर कोई न मिला। 24. जब मन्दिर के सरदार और महाथाजकोंने थे बातें सनीं, तो उन के विषय में भारी चिन्ता में पड़ गए कि यह क्या हुआ चाहता है 25. इतने में किसी ने आकर उन्हें बताया, कि देखो, जिन्हें तुम ने बन्दीगृह में बन्द रखा या, वे मनुष्य मन्दिर में खड़े हुए लोगोंको उपकेश दे रहे हैं। 26. तक सरदार, प्यादोंके साय जाकर, उन्हें ले आया, परन्तु बरबस नहीं, क्योंकि वे लोगोंसे डरते थे, कि हमें पत्यरवाह न करें। 27. उन्होंने उन्हें फिर लाकर महासभा के साम्हने खड़ा कर दिश: और महाथाजक ने उन से पूछा। 28. क्या हम ने तुम्हें चिताकर आज्ञा न दी यी, कि तुम इस नाम से उपकेश न करना तौभी देखो, तुम ने सारे यरूशलेम को अपके उपकेश से भर दिया है और उस व्यक्ति का लोहू हमारी गर्दन पर लाना चाहते हो। 29. तक पतरस और, और प्रेरितोंने उत्तर दिया, कि मनुष्योंकी आज्ञा से बढ़कर परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है। 30. हमारे बापदादोंके परमेश्वर ने यीशु को जिलाया, जिसे तुम ने क्रूस पर लटकाकर मार डाला या। 31. उसी को परमेश्वर ने प्रभु और उद्धारक ठहराकर, अपके दिहने हाथ से सर्वोच्च कर दिया, कि वह इस्त्राएलियोंको मन फिराव की शक्ति और पापोंकी झमा प्रदान करे। 32. और हम इन बातोंके गवाह हैं, और पवित्र आत्क़ा भी, जिसे परमेश्वर ने उन्हें दिया है, जो उस की आज्ञा मानते हैं।। 33. यह सुनकर वे जल गए, और उन्हें मार डालना चाहा। 34. परन्तु गमलीएल नाम एक फरीसी ने जो व्यवस्यापक और सब लोगोंमें माननीय या, न्यायालय में खड़े होकर प्रेरितोंको योड़ी देर के लिथे बाहर कर देने की आज्ञा दी। 35. तक उस ने कहा, हे इस्त्राएलियों, जो कुछ इन मनुष्योंसे किया चाहते हो, सोच समझ के करना। 36. क्योंकि इन दिनोंसे पहले यियूदास यह कहता हुआ उठा, कि मैं भी कुछ हूं; और कोई चार सौ मनुष्य उसके साय हो लिथे, परन्तु वह मारा गया; और जितने लोग उसे मानते थे, सब तित्तर बित्तर हुए और मिट गए। 37. उसके बाद नाम लिखाई के दिनोंमें यहूदा गलीली उठा, और कुछ लोग अपक्की ओर कर लिथे: वह भी नाश हो गया, और जितने लागे उसे मानते थे, सब तित्तर बित्तर हो गए। 38. इसलिथे अब मैं तुम से कहता हूं, इन मनुष्योंसे दूर ही रहो और उन से कुछ काम न रखो; क्योंकि यदि यह धर्म या काम मनुष्योंकी ओर से हो तब तो मिट जाएगा। 39. परन्तु यदि परमेश्वर की ओर से है, तो तुम उन्हें कदापि मिटा न सकोगे; कहीं ऐसा न हो, कि तुम परमेश्वर से भी लड़नेवाले ठहरो। 40. तब उन्होंने उस की बात मान ली; और प्रेरितोंको बुलाकर पिटवाया; और यह आज्ञा देकर छोड़ दिया, कि यीशु के नाम से फिर बातें न करना। 41. वे इस बात से आनन्दित होकर महासभा के साम्हने से चले गए, कि हम उसके नाम के लिथे निरादर होने के योग्य हो ठहरे। 42. और प्रति दिन मन्दिर में और घर घर में उपकेश करने, और इस बात का सुसमाचार सुनाने से, कि यीशु ही मसीह है न रूके।।
Chapter 6
1. उन दिनोंमें जब चेले बहुत होने जाते थे, तो यूनानी भाषा बोलनेवाले इब्रानियोंपर कुड़कुड़ाने लगे, कि प्रति दिन की सेवकाई में हमारी विधवाओं की सुधि नहीं ली जाती। 2. तब उन बारहोंने चेलोंकी मण्डली को अपके पास बुलाकर कहा, यह ठीक नहीं कि हम परमेश्वर का वचन छोड़कर खिलानेपिलाने की सेवा में रहें। 3. इसलिथे हे भाइयो, अपके में से सात सुनाम पुरूषोंको जो पवित्र आत्क़ा और बुद्धि से परिपूर्ण हो, चुन लो, कि हम उन्हें इस काम पर ठहरा दें। 4. परन्तु हम तो प्रार्यना में और वचन की सेवा में लगे रहेंगे। 5. यह बात सारी मण्डली को अच्छी लगी, और उन्होंने स्तिुफनुस नाम एक पुरूष को जो विश्वास और पवित्र आत्क़ा से परिपूर्ण या, और फिलप्पुस और प्रखुरूस और नीकानोर और तीमोन और परिमनास और अन्ताकीवाला नीकुलाउस को जो यहूदी मत में आ गया या, चुन लिया। 6. और इन्हें प्रेरितोंके साम्हने खड़ा किया और उन्होंने प्रार्यना करके उन पर हाथ रखे। 7. और परमेश्वर का वचन फैलता गया और यरूशलेम में चेलोंकी गिनती बहुत बढ़ती गई; और याजकोंका एक बड़ा समाज इस मत के अधीन हो गया। 8. स्तिफुनुस अनुग्रह और सामर्य में परिपूर्ण होकर लोगोंमें बड़े बड़े अद्भुत काम और चिन्ह दिखाया करता या। 9. तब उस अराधनालय में से जो लिबरतीनोंकी कहलाती यी, और कुरेनी और सिकन्दिरया और किलकिया और एशीया के लोगोंमें से कई एक उठकर स्तिफनुस से वाद-विवाद करने लगे। 10. परन्तु उस ज्ञान और उन आत्क़ा का जिस से वह बातें करता या, वे साम्हना न कर सके। 11. इस पर उन्हो ने कई लोगोंको उभारा जो कहने लगे, कि हम ने इस मूसा और परमेश्वर के विरोध में निन्दा की बातें कहते सुना है। 12. और लोगोंऔर प्राचीनोंऔर शास्त्रियोंको भड़काकर चढ़ आए और उसे पकड़कर महासभा में ले आए। 13. और फूठे गवाह खड़े किए, जिन्होंने कहा कि यह मनुष्य इस पवित्र स्यान और व्यवस्या के विरोध में बोलना नहीं छोड़ता। 14. क्योंकि हम ने उसे यह कहते सुना है, कि यही यीशु नासरी इस जगह को ढ़ा देगा, और उन रीतोंको बदल डालेगा जो मूसा ने हमें सौंपी हैं। 15. तब सब लोगोंने जो सभा में बैठे थे, उस की ओर ताककर उसका मुखड़ा स्वर्गदूत का सा देखा।।
Chapter 7
1. तब महाथाजक ने कहा, क्या थे बातें योंही है 2. उस ने कहा; हे भाइयो, और पितरो सुनो, हमारा पिता इब्राहीम हारान में बसने से पहिले जब मिसुपुतामिया में या; तो तेजोमय परमेश्वर ने उसे दर्शन दिया। 3. और उस से कहा कि तू अपके देश और अपके कुटुम्ब से निकलकर उस देश मे चला जा, जिसे मैं तुझे दिखाऊंगा। 4. तब वह कसदियोंके देश से निकलकर हारान में जा बसा; और उसके पिता की मृत्यु के बाद परमेश्वर ने उसको वहां से इस देश में लाकर बसाया जिस में अब तुम बसते हो। 5. और उसको कुछ मीरास बरन पैर रखने भर की भी उस में जगह न दी, परन्तु प्रतिज्ञा की कि मैं यह देश, तेरे और तेरे बाद तेरे वंश के हाथ कर दूंगा; यद्यपि उस समय उसके कोई पुत्र भी न या। 6. और परमेश्वर ने योंकहा; कि तेरी सन्तान के लोग पराथे देश में परदेशी होंगे, और वे उन्हें दास बनाएंगे, और चार सौ वर्ष तक दुख देंगे। 7. फिर परमेश्वर ने कहा; जिस जाति के वे दास होंगे, उस को मैं दण्ड दूंगा; और इस के बाद वे निकलकर इसी जगह मेरी सेवा करेंगे। 8. और उस ने उस से खतने की वाचा बान्धी; और इसी दशा में इसहाक उस से उत्पन्न हुआ; और आठवें दिन उसका खतना किया गया; और इसहाक से याकूब और याकूब से बारह कुलपति उत्पन्न हुए। 9. और कुलपतियोंने यूसुफ से डाह करके उसे मिसर देश जानेवालोंके हाथ बेचा; परन्तु परमेश्वर उसके साय या। 10. और उसे उसके सब क्लेशोंसे छुड़ाकर मिसर के राजा फिरौन के आगे अनुग्रह और बुद्धि दी, और उस ने उसे मिसर पर और अपके सारे घर पर हाकिम ठहराया। 11. तब मिसर और कनान के सारे देश में अकाल पडा; जिस से भारी क्लेश हुआ, और हमारे बापदादोंको अन्न नहीं मिलता या। 12. परन्तु याकूब ने यह सुनकर, कि मिसर में अनाज है, हमारे बापदादोंको पहिली बार भेजा। 13. और दूसरी बार यूसुफ अपके भाइयोंपर प्रगट को गया, और यूसुुफ की जाति फिरौन को मालूम हो गई। 14. तब यूसुफ ने अपके पिता याकूब और अपके सारे कुटुम्ब को, जो पछत्तर व्यक्ति थे, बुला भेजा। 15. तब याकूब मिसर में गया; और वहां वह और हमारे बापदादे मर गए। 16. और वे शिकिम में पहुंचाए जाकर उस कब्र में रखे गए, जिसे इब्राहीम न चान्दी देकर शिकिम में हमोर की सन्तान से मोल लिया या। 17. परन्तु जब उस प्रतिज्ञा के पूरे होने का समय निकट आया, तो परमेश्वर ने इब्राहीम से की यी, तो मिसर में वे लोग बढ़ गए; और बहुत हो गए। 18. जब तक कि मिसर में दूसरा राजा न हुआ जो यूसुफ को नहीं जानता या। 19. उस ने हमारी जाति से चतुराई करके हमारे बापदादोंके साय यहां तक कुव्योहार किया, कि उन्हें अपके बालकोंको फेंक देना पड़ा कि वे जीवित न रहें। 20. उस समय मूसा उत्पन्न हुआ जो बहुत ही सुन्दर या; और वह तीन महीने तक अपके पिता के घर में पाला गया। 21. परन्तु जब फेंक दिया गया तो फिरौन की बेटी ने उसे उठा लिया, और अपना पुत्र करके पाला। 22. और मूसा को मिसरियोंकी सारी विद्या पढ़ाई गई, और वह बातोंऔर कामोंमें सामर्यी या। 23. जब वह चालीस वर्ष का हुआ, तो उसके मन में आया कि मैं अपके इस्त्राएली भाइयोंसे भेंट करूं। 24. और उस ने एक व्यक्ति पर अन्याय होने देखकर, उसे बचाया, और मिसरी को मारकर सताए हुए का पलटा लिया। 25. उस ने सोचा, कि मेरे भाई समझेंगे कि परमेश्वर मेरे हाथोंसे उन का उद्धार करेगा, परन्तु उन्होंने न समझा। 26. दूसरे दिन जब वे आपस में लड़ रहे थे, तो वह वहां आ निकला; और यह कहके उन्हें मेल करने के लिथे समझाया, कि हे पुरूषो, तुम तो भाई भाई हो, एक दूसरे पर क्योंअन्याय करते हो 27. परन्तु जो अपके पड़ोसी पर अन्याय कर रहा या, उस ने उसे यह कहकर हटा दिया, कि तुझे किस ने हम पर हाकिम और न्यायी ठहराया है 28. क्या जिस रीति से तू ने कल मिसरी को मार डाला मुझे भी मार डालना चाहता है 29. यह बात सुनकर, मूसा भागा; और मिद्यान देश में परदेशी होकर रहने लगा: और वहां उसके दो पुत्र उत्पन्न हुए। 30. जब पूरे चालीस वर्ष बीत गए, तो एक स्वर्ग दूत ने सीनै पहाड़ के जंगल में उसे जलती हुई फाड़ी की ज्वाला में दर्शन दिया। 31. मूसा ने उस दर्शन को देखकर अचम्भा किया, और जब देखने के लिथे पास गया, तो प्रभु का यह शब्द हुआ। 32. कि मैं तेरे बापदादों, इब्राहीम, इसहाक और याकूब का परमेश्वर हूं: तब तो मूसा कांप उठा, यहां तक कि उसे देखने का हियाव न रहा। 33. तब प्रभु ने उस से कहा; अपके पावोंसे जूती उतार ले, क्योंकि जिस जगह तू खड़ा है, वह पवित्र भूमि है। 34. मैं ने सचमुच अपके लोगोंकी र्दुदशा को जो मिसर में है, देखी है; और उन की आह और उन का रोना सुन लिया है; इसलिथे उन्हें छुड़ाने के लिथे उतरा हूं। अब आ, मैं तुझे मिसर में भेंजूंगा। 35. जिस मूसा को उन्होंने यह कहकर नकारा या कि तुझे किस ने हम पर हाकिम और न्यायी ठहराया है; उसी को परमेश्वर ने हाकिम और छुड़ानेवाला ठहराकर, उस स्वर्ग दूत के द्वारा जिस ने उसे फाड़ी में दर्शन दिया या, भेजा। 36. यही व्यक्ति मिसर और लाल समुद्र और जंगल में चालीस वर्ष तक अद्भुत काम और चिन्ह दिखा दिखाकर उन्हें निकाल लाया। 37. यह वही मूसा है, जिस ने इस्त्राएलियोंसे कहा; कि परमेश्वर तुम्हारे भाइयोंमें से तुम्हारे लिथे मुझ सा एक भविष्यद्वक्ता उठाएगा। 38. यह वही है, जिस ने जंगल में कलीसिया के बीच उस स्वर्गदूत के साय सीनै पहाड़ पर उस से बातें की, और हमारे बापदादोंके साय या: उसी को जीवित वचन मिले, कि हम तक पहुंचाए। 39. परन्तु हमारे बापदादोंने उस की मानना न चाहा; बरन उसे हटाकर अपके मन मिसर की ओर फेरे। 40. और हारून से कहा; हमारे लिथे ऐसा देवता बना, जो हमारे आगे आगे चलें; क्योंकि यह मूसा जा हमें मिसर देश से निकाल लाया, हम नहीं जानते उसे क्या हुआ 41. उन दिनोंमें उन्होंने एक बछड़ा बनाकर, उस की मूरत के आगे बलि चढ़ाया; और अपके हाथोंके कामोंमें मगन होने लगे। 42. सो परमेश्वर ने मुंह मोड़कर उन्हें छोड़ दिया, कि आकशगण पूजें; जैसा भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तक में लिखा है; कि हे इस्त्राएल के घराने, क्या तुम जंगल में चालीस वर्ष तक पशुबलि और अन्नबलि मुझ ही को चढ़ाते रहे 43. और तुम मोलेक के तम्बू और रिफान देवता के तारे को लिए फिरते थे; अर्यात् उन आकारोंको जिन्हें तुम ने दण्डवत करने के लिथे बनाया या: सो मैं तुम्हें बाबुर के पके ले जाकर बसाऊंगा। 44. साझी का तम्बू जंगल में हमारे बापदादोंके बीच में या; जैसा उस ने ठहराया, जिस ने मूसा से कहा; कि जो आकर तू ने देखा है, उसके अनुसार इसे बना। 45. उसी तम्बू को हमारे बापदादे पूर्वकाल से पाकर यहोशू के साय यहां ले आए; जिस समय कि उन्होंने उन अन्यजातियोंका अधिक्कारने पाया, जिन्हें परमेश्वर ने हमारे बापदादोंके साम्हने से निकाल दिया; और वह दाऊद के समय तक रहा। 46. उस पर परमेश्वर ने अनुग्रह किया, सो उस ने बिनती की, कि मैं याकूब के परमेश्वर के लिथे निवास स्या ठहराऊं। 47. परन्तु सुलैमान ने उसके लिथे घर बनाया। 48. परन्तु परम प्रधान हाथ के बनाए घरोंमें नहीं रहता, जैसा कि भविष्यद्वक्ता ने कहा। 49. कि प्रभु कहता है, स्वर्ग मेरा सिहांसन और पृय्वी मेरे पांवोंतले की पीढ़ी है, मेरे लिथे तुम किस प्रकार का घर बनाओगे और मेरे विश्रम का कौन सा स्यान होगा 50. क्या थे सब वस्तुएं मेरे हाथ की बनाई नहीं हे हठीले, और मन और कान के खतनारिहत लोगो, तुम सदा पवित्र आत्क़ा का साम्हना करते हो। 51. जैसा तुम्हारे बापदादे करते थे, वैसे ही तुम भी करते हो। 52. भविष्यद्वक्ताओं में से किस को तुम्हारे बापदादोंने नहीं सताया, और उन्होंने उस धर्मी के आगमन का पूर्वकाल से सन्देश देनेवालोंको मार डाला, और अब तुम भी उसके पकड़वानेवाले और मार डालनेवाले हुए। 53. तुम ने स्वर्गदूतोंके द्वारा ठहराई हुई व्यवस्या तो पाई, परन्तु उसका पालन नहीं किया।। 54. थे बातें सुनकर वे जल गए और उस पर दांत पीसने लगे। 55. परन्तु उस ने पवित्र आत्क़ा से परिपूर्ण होकर स्वर्ग की ओर देखा और परमेश्वर की महिमा को और यीशु को परमेश्वर की दिहनी ओर खड़ा देखकर। 56. कहा; देखों, मैं स्वर्ग को खुला हुआ, और मनुष्य के पुत्र को परमेश्वर के दिहनी ओर खड़ा हुआ देखता हूं। 57. तब उन्होंने बड़े शब्द से चिल्लाकर कान बन्द कर लिए, और एक चित्त होकर उस पर फपके। 58. और उसे नगर के बाहर निकालकर पत्यरवाह करने लगे, और गवाहोंने अपके कपके उतार रखे। 59. और वे स्तिुफनुस को पत्यरवाह करते रहे, और वह यह कहकर प्रार्यना करता रहा; कि हे प्रभु यीशु, मेरी आत्क़ा को ग्रहण कर। 60. फिर घुटने टेककर ऊंचे शब्द से पुकारा, हे प्रभु, यह पाप उन पर मत लगा, और यह कहकर सो गया: और शाऊल उसके बध में सहमत या।।
Chapter 8
1. उसी दिन यरूशलेम की कलीसिया पर बड़ा उपद्रव होने लगा और प्रेरितोंको छोड़ सब के सब यहूदिया और सामरिया देशोंमें तित्तर बित्तर हो गए। 2. और भक्तोंने स्तिफनुस को कब्र में रखा; और उसके लिथे बड़ा विलाप किया। 3. शाऊल कलीसिया को उजाड़ रहा या; और घर घर घुसकर पुरूषोंऔर स्त्रियोंको घसीट घसीटकर बन्दीगृह में डालता या।। 4. जो तित्तर बित्तर हुए थे, वे सुसमाचार सुनाते हुए फिरे। 5. और फिलप्पुस सामरिया नगर में जाकर लोगोंमें मसीह का प्रचार करने लगा। 6. और जो बातें फिलप्पुस ने कहीं उन्हें लोगोंने सुनकर और जो चिन्ह वह दिखाता या उन्हें देख देखकर, एक चित्त होकर मन लगाया। 7. क्योंकि बहुतोंमें से अशुद्ध आत्क़ाएं बड़े शब्द से चिल्लाती हुई निकल गई, और बहुत से फोले के मारे हुए और लंगडे भी अच्छे किए गए। 8. और उस नगर में बड़ा आनन्द हुआ।। 9. इस से पहिले उस नगर में शमौन नाम एक मनुष्य या, जो टोना करके सामरिया के लोगोंको चकित करता और अपके आप को कोई बड़ा पुरूष बनाता यां 10. और सब छोटे से बड़े तक उसे मान कर कहते थे, कि यह मनुष्य परमश्ेवर की वह शक्ति है, जो महान कहलाती है। 11. उस ने बहुत दिनोंसे उन्हें अपके टोने के कामोंसे चकित कर रखा या, इसी लिथे वे उस को बहुत मानते थे। 12. परन्तु जब उन्होंने फिलप्पुस की प्रतीति की जो परमेश्वर के राज्य और यीशु के नाम का सुसमाचार सुनाता या तो लोग, क्या पुरूष, क्या स्त्री बपतिस्क़ा लेने लगे। 13. तब शमौन ने आप भी प्रतीति की और बपतिस्क़ा लेकर फिलप्पुस के साय रहने लगा और चिन्ह और बड़े बड़े सामर्य के काम होते देखकर चकित होता या। 14. जब प्ररितोंने जो यरूशलेम में थे सुना कि सामरियोंने परमेश्वर का वचन मान लिया है तो पतरस और यूहन्ना को उन के पास भेजा। 15. और उन्होंने जाकर उन के लिथे प्रार्यना की कि पवित्र आत्क़ा पाएं। 16. क्योंकि वह अब तक उन में से किसी पर न उतरा या, उन्होंने तो केवल प्रभु यीशु में नाम में बपतिस्क़ा लिया या। 17. तब उन्होंने उन पर हाथ रखे और उन्होंने पवित्र आत्क़ा पाया। 18. जब शमौन ने देखा कि प्ररितोंके हाथ रखने से पवित्र आत्क़ा दिया जाता है, तो उन के पास रूपके लाकर कहा। 19. कि यह अधिक्कारने मुझे भी दो, कि जिस किसी पर हाथ रखूं, वह पवित्र आत्क़ा पाए। 20. पतरस ने उस से कहा; तेरे रूपके तेरे साय नाश हों, क्योंकि तू ने परमेश्वर का दान रूपयोंसे मोल लेने का विचार किया। 21. इस बात में न तेरा हिस्सा है, न बांटा; क्योंकि तेरा मन परमेश्वर के आगे सीधा नहीं। 22. इसलिथे अपक्की इस बुराई से मन फिराकर प्रभु से प्रार्यना कर, सम्भव है तेरे मन का विचार झमा किया जाए। 23. क्योंकि मैं देखता हूं, कि तू पित्त की सी कड़वाहट और अधर्म के बन्धन में पड़ा है। 24. शमौन ने उत्तर दिया, कि तुम मेरे लिथे प्रभु से प्रार्यना करो कि जो बातें तुम ने कहीं, उन में से कोई मुझ पर न आ पके।। 25. सो वे गवाही देकर और प्रभु का वचन सुनाकर, यरूशलेम को लौट गए, और सामरियोंके बहुत गावोंमें सुसमाचार सुनाते गए।। 26. फिर प्रभु के एक स्वर्गदूत ने फिलप्पुस से कहा; उठकर दक्खिन की ओर उस मार्ग पर जा, जो यरूशलेम से अज्ज़ाह को जाता है, और जंगल में है। 27. वह उठकर चल दिया, और देखो, कूश देश का एक मनुष्य आ रहा या जो खोजा और कूशियोंकी रानी कन्दाके का मन्त्री और खजांची या, और भजन करने को यरूशलेम आया या। 28. और वह अपके रय पर बैठा हुआ या, और यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक पढ़ता हुआ लौटा जा रहा या। 29. तब आत्क़ा ने फिलप्पुस से कहा, निकट जाकर इस रय के साय हो ले। 30. फिलप्पुस ने उस ओर दौड़कर उसे यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक पढ़ते हुए सुना, और पूछा, कि तू जो पढ़ रहा है क्या उसे समझता भी है 31. उस ने कहा, जब तक कोई मुझे न समझाए तो मैं क्यांेकर समझूं और उस ने फिलप्पुस से बिनती की, कि चढ़कर मेरे पास बैठ। 32. पवित्र शास्त्र का जो अध्याय वह पढ़ रहा या, वह यह या; कि वह भेड़ की नाईं वध होने को पहुंचाया गया, और जैसा मेम्ना अपके ऊन कतरनेवालोंके साम्हने चुपचाप रहता है, वैसे ही उस ने भी अपना मुंह न खोला। 33. उस की दीनता में उसका न्याय होने नहीं पाया, और उसके समय के लोगोंका वर्णन कौन करेगा, क्योंकि पृय्वी से उसका प्राण उठाया जाता है। 34. इस पर खोजे ने फिलप्पुस से पूछा; मैं तुझ से बिनती करता हूं, यह बता कि भविष्यद्वक्ता यह किस विषय में कहता है, अपके या किसी दूसरे के विषय में। 35. तब फिलप्पुस ने अपना मुंह खोला, और इसी शास्त्र से आरम्भ करके उसे यीशु का सुसमाचार सुनाया। 36. मार्ग में चलते चलते वे किसी जल की जगह पहुंचे, तब खोजे ने कहा, देख यहां जल है, अब मुझे बपतिस्क़ा लेने में क्या रोक है। 37. फिलप्पुस ने कहा, यदि तू सारे मन से विश्वास करता है तो हो सकता है: उस ने उत्तर दिया मैं विश्वास करता हूं कि यीशु मसीह परमेश्वर का पुत्र है। 38. तब उस ने रय खड़ा करने की आज्ञा दी, और फिलप्पुस और खोजा दोनोंजल में उतर पके, और उस ने उसे बपतिस्क़ा दिया। 39. जब वे जल में से निकलकर ऊपर आए, तो प्रभु का आत्क़ा फिलप्पुस को उठा ले गया, सो खोजे ने उसे फिर न देखा, और वह आनन्द करता हुआ अपके मार्ग चला गया। 40. और फिलप्पुस अशदोद में आ निकला, और जब तक कैसरिया में न पहुंचा, तब तक नगर नगर सुसमाचार सुनाता गया।।
Chapter 9
1. और शाऊल जो अब तक प्रभु के चेलोंको धमकाने और घात करने की धुन में या, महाथाजक के पास गया। 2. और उस से दिमश्क की अराधनालयोंके नाम पर इस अभिप्राय की चिट्ठियां मांगी, कि क्या पुरूष, क्या स्त्री, जिन्हें वह इस पंय पर पाए उन्हें बान्धकर यरूशलेम में ले आए। 3. परन्तु चलते चलते जब वह दिमश्क के निकट पहुंचा, तो एकाएक आकाश से उसके चारोंओर ज्योति चमकी। 4. और वह भूमि पर गिर पड़ा, और यह शब्द सुना, कि हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्योंसताता है 5. उस ने पूछा; हे प्रभु, तू कौन है उस ने कहा; मैं यीशु हूं; जिसे तू सताता है। 6. परन्तु अब उठकर नगर में जा, और जो कुछ करना है, वह तुझ से कहा जाएगा। 7. जो मनुष्य उसके साय थे, वे चुपचाप रह गए; क्योंकि शब्द तो सुनते थे, परन्तु किसी को दखते न थे। 8. तब शाऊल भूमि पर से उठा, परन्तु जब आंखे खोलीं तो उसे कुछ दिखाई न दिया और वे उसका हाथ पकड़के दिमश्क में ले गए। 9. और वह तीन दिन तक न देख सका, और न खाया और न पीया। 10. दिमश्क में हनन्याह नाम एक चेला या, उस से प्रभु ने दर्शन में कहा, हे हनन्याह! उस ने कहा; हां प्रभु। 11. तब प्रभु ने उस से कहा, उठकर उस गली में जा जो सीधी कहलाती है, और यहूदा के घर में शाऊल नाम एक तारसी को पूछ ले; क्योंकि देख, वह प्रार्यना कर रहा है। 12. और उस ने हनन्याह नाम एक पुरूष को भीतर आते, और अपके ऊपर आते देखा है; ताकि फिर से दृष्टि पाए। 13. हनन्याह ने उत्तर दिया, कि हे प्रभु, मैं ने इस मनुष्य के विषय में बहुतोंसे सुना है, कि इस ने यरूशलेम में तेरे पवित्र लोगोंके साय बड़ी बड़ी बुराईयां की हैं। 14. और यहां भी इस को महाथाजकोंकी ओर से अधिक्कारने मिला है, कि जो लोग तेरा नाम लेते हैं, उन सब को बान्ध ले। 15. परन्तु प्रभु ने उस से कहा, कि तू चला जा; क्योंकि यह, तो अन्यजातियोंऔर राजाओं, और इस्त्राएलियोंके साम्हने मेरा नाम प्रगट करने के लिथे मेरा चुना हुआ पात्र है। 16. और मैं उसे बताऊंगा, कि मेरे नाम के लिथे उसे कैसा कैसा दुख उठाना पकेगा। 17. तब हनन्याह उठकर उस घर में गया, और उस पर अपना हाथ रखकर कहा, हे भाई शाऊल, प्रभु, अर्यात् यीशु, जो उस रास्ते में, जिस से तू आया तुझे दिखाई दिया या, उसी ने मुझे भेजा है, कि तू फिर दृष्टि पाए और पवित्र आत्क़ा से परिपूर्ण हो जाए। 18. और तुरन्त उस की आंखोंसे छिलके से गिरे, और वह देखने लगा और उठकर बपतिस्क़ा लिया; फिर भोजन करके बल पाया।। 19. और वह कई दिन उन चेलोंके साय रहा जो दिमश्क में थे। 20. और वह तुरन्त आराधनालयोंमें यीशु का प्रचार करने लगा, कि वह परमेश्वर का पुत्र है। 21. और सब सुननेवाले चकित होकर कहने लगे; क्या यह वही व्यक्ति नहीं है जो यरूशलेम में उन्हें जो इस नाम को लेते थे नाश करता या, और यहां भी इसी लिथे आया या, कि उन्होंबान्धकर महाथाजकोंके पास ले आए 22. परन्तु शाऊल और भी सामर्यी होता गया, और इस बात का प्रमाण दे देकर कि मसीह यही है, दिमश्क के रहनेवाले यहूदियोंका मुंह बन्द करता रहा।। 23. जब बहुत दिन बीत गए, तो यहूदियोंने मिलकर उसके मार डालने की युक्ति निकाली। 24. परन्तु उन की युक्ति शाऊल को मालूम को गई: वे तो उसके मार डालने के लिथे रात दिन फाटकोंपर लगे रहे थे। 25. परन्तु रात को उसके चेलोंने उसे लेकर टोकरे में बैठाया, और शहरपनाह पर ऐ लटकाकर उतार दिया।। 26. यरूशलेम में पहुंचकर उस ने चेलोंके साय मिल जाने का उपाय किया: परन्तु सब उस से डरते थे, क्योंकि उन को प्रतीति न होता या, कि वह भी चेला है। 27. परन्तु बरनबा उसे अपके साय प्रेरितोंके पास ले जाकर उन से कहा, कि इस ने किस रीति से मार्ग में प्रभु को देखा, और इस ने इस से बातें कीं; फिर दिमश्क में इस ने कैसे हियाव से यीशु के नाम का प्रचार किया। 28. वह उन के साय यरूशलेम में आता जाता रहा। 29. और निधड़क होकर प्रभु के नाम से प्रचार करता या: और यूनानी भाषा बोलनेवाले यहूदियोंके साय बातचीत और वाद-विवाद करता या; परन्त ुवे उसके मार डालने का यत्न करने लगे। 30. यह जानकर भाई उसे कैसरिया में ले आए, और तरसुस को भेज दिया।। 31. सो सारे यहूदिया, और गलील, और समरिया में कलीसिया को चैन मिला, और उसकी उन्नति होती गई; और वह प्रभु के भय और पवित्र आत्क़ा की शान्ति में चलती और बढ़ती जाती यी।। 32. और ऐसा हुआ कि पतरस हर जगह फिरता हुआ, उन पवित्र लोगोंके पास भी पहुंचा, जो लुद्दा में रहते थे। 33. वहां उसे ऐनियास नाम फोले का मारा हुआ एक मनुष्य मिला, जो आठ वर्ष से खाट पर पड़ा या। 34. पतरस ने उस से कहा; हे ऐनियास! यीशु मसीह तुझे चंगा करता है; उठ, अपना बिछौना बिछा; तब वह तुरन्त उठ खड़ हुआ। 35. और लुद्दा और शारोन के सब रहनेवाले उसे देखकर प्रभु की ओर फिरे।। 36. याफा में तबीता अर्यात् दोरकास नाम एक विश्वासिनी रहती यी, वह बहुतेरे भले भले काम और दान किया करती यी। 37. उन्हीं दिनोंमें वह बीमार होकर मर गई; और उन्होंने उसे नहलाकर अटारी पर रख दिया। 38. और इसलिथे कि लुद्दा याफा के निकट या, चेलोंने यह सुनकर कि पतरस वहां है दो मनुष्य भेजकर उस ने बिनती की कि हमारे पास आने में देर न कर। 39. तब पतरस उठकर उन के साय हो लिया, और जब पहुंच गया, तो वे उसे उस अटारी पर ले गए; और सब विधवाएं रोती हुई उसके पास आ खड़ी हुई: और जो कुरते और कपके दोरकास ने उन के साय रहते हुए बनाए थे, दिखाने लगीं। 40. तब पतरस ने सब को बाहर कर दिया, और घुटने टेककर प्रार्यना की; और लोय की ओर देखकर कहा; हे तबीता उठ: तब उस ने अपक्की आंखे खोल दी; और पतरस को देखकर उठ बैठी। 41. उस ने हाथ देकर उसे उठाया और पवित्र लोगोंऔर विधवाओं को बुलाकर उसे जीवित और जागृत दिखा दिया। 42. यह बात सारे याफा मे फैल गई: और बहुतेरोंने प्रभु पर विश्वास किया। 43. और पतरस याफा में शमौन नाम किसी चमड़े के धन्धा करनेवाले के यहां बहुत दिन तक रहा।।
Chapter 10
1. कैसरिया में कुरनेलियुस नाम ऐक मनुष्य या, जो इतालियानी नाम पलटन का सूबेदार या। 2. वह भक्त या, और अपके सारे घराने समेत परमेश्वर से डरता या, और यहूदी लागोंको बहुत दान देता, और बराबर परमेश्वर से प्रार्यना करता या। 3. उस ने दिन के तीसरे पहर के निकट दर्शन में स्पष्ट रूप से देखा, कि परमेश्वर का एक स्वर्गदूत मेरे पास भीतर आकर कहता है; कि हे कुरनेलियुस। 4. उस ने उसे ध्यान से देखा; और डरकर कहा; हे प्रभु क्या है उस ने उस से कहा, तेरी प्रार्यनाएं और तेरे दान स्क़रण के लिथे परमेश्वर के साम्हने पहुंचे हैं। 5. और अब याफा में मनुष्य भेजकर शमौन को, जो पतरस कहलाता है, बुलवा ले। 6. वह शमौन चमड़े के धन्धा करनेवाले के यहां पाहुन है, जिस का घर समुद्र के किनारे हैं। 7. जब वह स्वर्गदूत जिस ने उस से बातें की यीं चला गया, तो उस ने दो सेवक, और जो उसके पास उपस्यित रहा करते थे उन में से एक भक्त सिपाही को बुलाया। 8. और उन्हें सब बातें बताकर याफा को भेजा।। 9. दूसरे दिन, जब वे चलते चलते नगर के पास पहुंचे, तो दो पहर के निकट पतरस कोठे पर प्रार्यना करने चढ़ा। 10. और उसे भूख लगी, और कुछ खाना चाहता या; परन्तु जब वे तैयार कर रहे थे, तो वह बेसुध हो गया। 11. और उस ने देखा, कि आकाश खुल गया; और एक पात्र बड़ी चादर के समान चारोंकोनोंसे लटकता हुआ, प्य्वी की ओर उतर रहा है। 12. जिस में पृय्वी के सब प्रकार के चौपाए और रेंगनेवाले जन्तु और आकाश के पक्की थे। 13. और उसे एक ऐसा शब्द सुनाई दिया, कि हे पतरस उठ, मार के खा। 14. परन्तु पतरस ने कहा, नहीं प्रभु, कदापि नहीं; क्योंकि मैं ने कभी कोई अपवित्र या अशुद्ध वस्तु नहीं खाई है। 15. फिर दूसरी बार उसे शब्द सुनाई दिया, कि जो कुछ परमेश्वर ने शुद्ध ठहराया है, उसे तू अशुद्ध मत कह। 16. तीन बार ऐसा ही हुआ; तब तुरन्त वह पात्र आकाश पर उठा लिया गया।। 17. जब पतरस अपके मन में दुबधा कर रहा या, कि यह दर्शन जो मैं ने देखा क्या है, तो देखो, वे मनुष्य जिन्हें कुरनेलियुस ने भेजा या, शमौन के घर का पता लगाकर डेवढ़ी पर आ खड़े हुए। 18. और पुकारकर पूछने लगे, क्या शमौन जो पतरस कहलाता है, यहीं पाहुन है 19. पतरस जो उस दर्शन पर सोच ही रहा या, कि आत्क़ा ने उस से कहा, देख, तीन मनुष्य तेरी खोज में हैं। 20. सो उठकर नीचे जा, और बेखटके उन के साय हो ले; क्योंकि मैं ही ने उन्हें भेजा है। 21. तब पतरस ने उतरकर उन मनुष्योंसे कहा; देखो, जिसकी खोज तुम कर रहे हो, वह मैं ही हूं; तुम्हारे आने का क्या कारण है 22. उन्होंने कहा; कुरनेलियुस सूबेदार जो धर्मी और परमेश्वर से डरनेवाला और सारी यहूदी जाति में सुनामी मनुष्य है, उस ने एक पवित्र स्वर्गदूत से यह चितावनी पाई है, कि तुझे अपके घर बुलाकर तुझ से वचन सुने। 23. तब उस ने उन्हें भीतर बुलाकर उन की पहुनाई की।। और दूसरे दिन, वह उनके साय गया; और याफा के भाइयोंमें से कई उसके साय हो लिए। 24. दूसरे दिन वे कैसरिया में पहुंचे, और कुरनेलियुस अपके कुटुम्बियोंऔर प्रिय मित्रोंको इकट्ठे करके उन की बाट जोह रहा या। 25. जब पतरस भीतर आ रहा या, तो कुरनेलियुस ने उस से भेंट की, और पांवोंपड़के प्रणाम किया। 26. परन्तु पतरस ने उसे उठाकर कहा, खड़ा हो, मैं भी तो मनुष्य हूं। 27. और उसके साय बातचीत करता हुआ भीतर गया, और बहुत से लोगोंको इकट्ठे देखकर। 28. उन से कहा, तुम जानते हो, कि अन्यजाति की संगति करता या उसके यहां जाना यहूदी के लिथे अधर्म है, परन्तु परमेश्वर ने मुझे बताया है, कि किसी मनुष्य को अपवित्र या अशुद्ध न कहूं। 29. इसी लिथे मैं जब बुलाया गया; तो बिना कुछ कहे चला आया: अब मैं पूछता हूं कि मुझे किस काम के लिथे बुलाया गया है 30. कुरनेलियुस ने कहा; कि इस घड़ी पूरे चार दिन हुए, कि मैं अपके घर में तीसरे पहर को प्रार्यना कर रहा या; कि देखो, एक पुरूष चमकीला वस्त्र पहिने हुए, मेरे साम्हने आ खड़ा हुआ। 31. और कहने लगा, हे कुरनेलियुस, तेरी प्रार्यना सुन ली गई, और तेरे दान परमेश्वर के साम्हने स्क़रण किए गए हैं। 32. इस लिथे किसी को याफा भेजकर शमौन को जो पतरस कहलाता है, बुला; वह समुद्र के किनारे शमौन चमड़े के धन्धा करनेवाले के घर में पाहुन है। 33. तब मैं ने तुरन्त तेरे पास लोग भेजे, और तू ने भला किया, जो आ गया: अब हम सब यहां परमेश्वर के साम्हने हैं, ताकि जो कुछ परमेश्वर ने तुझ से कहा है उसे सुनें। 34. तब पतरस ने मुंह खोलकर कहा; 35. अब मुझे निश्चय हुआ, कि परमेश्वर किसी का पझ नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है। 36. जो वचन उस ने इस्त्राएलियोंके पास भेजा, जब कि उस ने यीशु मसीह के द्वारा (जो सब का प्रभु है) शान्ति का सुसमाचार सुनाया। 37. वह बात तुम जानते हो जो यूहन्ना के बपतिस्क़ा के प्रचार के बाद गलील से आरम्भ करके सारे यहूदिया में फैल गई। 38. कि परमेश्वर ने किस रीति से यीशु नासरी को पवित्र आत्क़ा और सामर्य से अभिषेक किया: वह भलाई करता, और सब को जो शैतान के सताए हुए थे, अच्छा करता फिरा; क्योंकि परमेश्वर उसके साय या। 39. और हम उन सब कामोंके गवाह हैं; जो उस ने यहूदिया के देश और यरूशलेम में भी किए, और उन्होंने उसे काठ पर लटकाकर मार डाला। 40. उस को परमेश्वर ने तीसरे दिन जिलाया, और प्रगट भी कर दिया है। 41. सब लोगोंको नहीं बरन उन गवाहोंको जिन्हें परमेश्वर ने पहिले से चुन लिया या, अर्यात् हमको जिन्होंने उसके मरे हुओं में से जी उठने के बाद उसके साय खाया पीया। 42. और उस ने हमें आज्ञा दी, कि लोगोंमें प्रचार करो; और गवाही दो, कि यह वही है; जिसे परमेश्वर ने जीवतोंऔर मरे हुओं का न्यायी ठहराया है। 43. उस की सब भविष्यद्वक्ता गवाही देते हें, कि जो कोई उस पर विश्वास करेगा, उस को उसके नाम के द्वारा पापोंकी झमा मिलेगी।। 44. पतरस थे बातें कह ही रहा या, कि पवित्र आत्क़ा वचन के सब सुननेवालोंपर उतर आया। 45. और जितने खतना किए हुए विश्वासी पतरस के साय आए थे, वे सब चकित हुए कि अन्यजातियोंपर भी पवित्र आत्क़ा का दान उंडेला गया है। 46. क्योंकि उन्होंने उन्हें भांति भांति की भाषा बोलते और परमेश्वर की बड़ाई करते सुना। 47. इस पर पतरस ने कहा; क्या कोई जल की रोक कर सकता है, कि थे बपतिस्क़ा न पाएं, जिन्होंने हमारी नाई पवित्र आत्क़ा पाया है 48. और उस ने आज्ञा दी कि उन्हें यीशु मसीह ने नाम में बपतिस्क़ा दिया जाए: तब उन्होंने उस से बिनती की कि कुछ दिन हमारे साय रह।।
Chapter 11
1. और प्रेरितोंऔर भाइयोंने जो यहूदिया में थे सुना, कि अन्यजातियोंने भी परमेश्वर का वचन मान लिया है। 2. और जब पतरस यरूशलेम में आया, तो खतना किए हुए लोग उस से वाद-विवाद करने लगे। 3. कि तू ने खतनारिहत लोगोंके यहां जाकर उन से साय खाया। 4. तब पतरस ने उन्हें आरम्भ से क्रमानुसार कह सुनाया; 5. कि मैं याफा नगर में प्रार्यना कर रहा या, और बेसुध होकर एक दर्शन देखा, कि एक पात्र, बड़ी चादर के समान चारोंकोनोंसे लटकाया हुआ, आकाश से उतरकर मेरे पास आया। 6. जब मैं ने उस पर ध्यान किया, तो पृय्वी के चौपाए और बनपशु और रेंगनेवाले जन्तु और आकाश के पक्की देखे। 7. और यह शब्द भी सुना कि हे पतरस उठ मार और खा। 8. मैं ने कहा, नहीं प्रभु, नहीं, क्योंकि कोई अपवित्र या अशुद्ध वस्तु मेरे मुंह में कभी नहीं गई। 9. इस के उत्तर में आकाश से दूसरी बार शब्द हुआ, कि जो कुछ परमेश्वर ने शुद्ध ठहराया है, उसे अशुद्ध मत कह। 10. तीन बार ऐसा ही हुआ; तब सब कुछ फिर आकाश पर खींच लिया गया। 11. और देखो, तुरन्त तीन मनुष्य जो कैसरिया से मेरे पास भेजे गए थे, उस घर पर जिस में हम थे, आ खड़े हुए। 12. तब आत्क़ा ने मुझ से उन के साय बेखटके हो लेने को कहा, और थे छ: भाई भी मेरे साय हो लिए; और हम उस मनुष्य के घर में गए। 13. और उस ने बताया, कि मैं ने एक स्वर्गदूत को अपके घर में खड़ा देखा, जिस ने मुझ से कहा, कि याफा में मनुष्य भेजकर शमौन को जो पतरस कहलाता है, बुलवा ले। 14. वह तुम से ऐसी बातें कहेगा, जिन के द्वारा तू और तेरा सारा घराना उद्वार पाएगा। 15. जब मैं बातें करने लगा, तो पवित्र आत्क़ा उन पर उसी रीति से उतरा, जिस रीति से आरम्भ में हम पर उतरा या। 16. तब मुझे प्रभु का वह वचन स्क़रण आया; जो उस ने कहा; कि यूहन्ना ने तो पानी से बपतिस्क़ा दिया, परन्तु तुम पवित्र आत्क़ा से बपतिस्क़ा पाओगे। 17. सो जब कि परमेश्वर ने उन्हें भी वही दान दिया, जो हमें प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करने से मिला या; तो मैं कौन या जो परमेश्वर को रोक सकता 18. यह सुनकर, वे चुप रहे, और परमेश्वर की बड़ाई करके कहने लगे, तक तो परमेश्वर ने अन्यजातियोंको भी जीवन के लिथे मन फिराव का दान दिया है।। 19. सो जो लोग उस क्लेश के मारे जो स्तिफनुस के कारण पड़ा या, तित्तर बित्तर हो गए थे, वे फिरते फिरते फीनीके और कुप्रुस और अन्ताकिया में पहुंचे; परन्तु यहूदियोंको छोड़ किसी और को वचन न सुनाते थे। 20. परन्तु उन में से कितने कुप्रुसी और कुरेनी थे, जो अन्ताकिया में आकर युनानियोंको भी प्रभु यीशु का सुसमचार की बातें सुनाने लगे। 21. और प्रभु का हाथ उन पर या, और बहुत लोग विश्वास करके प्रभु की ओर फिरे। 22. तब उन की चर्चा यरूशलेम की कलीसिया के सुनने में आई, और उन्होंने बरनबास को अन्ताकिया भेजा। 23. वह वहां पहुंचकर, और परमेश्वर के अनुग्रह को देखकर आनन्दित हुआ; और सब को उपकेश दिया कि तन मन लगाकर प्रभु से लिपके रहो। 24. क्योंकि वह एक भला मनुष्य या; और पवित्र आत्क़ा से परिपूर्ण या: और और बहुत से लोग प्रभु में आ मिले। 25. तब वह शाऊल को ढूंढने के लिथे तरसुस को चला गया। 26. और जब उन से मिला तो उसे अन्ताकिया में लाया, और ऐसा हुआ कि वे एक वर्ष तक कलीसिया के साय मिलते और बहुत लोगोंको उपकेश देते रहे, और चेले सब से पहिले अन्ताकिया ही में मसीही कहलाए।। 27. उन्हीं दिनोंमें कई भविष्यद्वक्ता यरूशलेम से अन्ताकिया में आए। 28. उन में से अगबुस नाम एक ने खड़े होकर आत्क़ा की प्रेरणा से यह बताया, कि सारे जगत में बड़ा अकाल पकेगा, और वह अकाल क्लौदियुस के समय में पड़ा। 29. तब चेलोंने ठहराया, कि हर एक अपक्की अपक्की पूंजी के अनुसार यहूदिया में रहनेवाले भाइयोंकी सेवा के लिथे कुछ भेजे। 30. और उन्होंने ऐसा ही किया; और बरनबास और शाऊल के हाथ प्राचीनोंके पास कुछ भेज दिया।।
Chapter 12
1. उस समय हेरोदेस राजा ने कलीसिया के कई एक व्यक्तियोंको दुख देने के लिथे उन पर हाथ डाले। 2. उस ने यूहन्ना के भाई याकूब को तलवार से मरवा डाला। 3. और जब उस ने देखा, कि यहूदी लोग इस से आनन्दित होते हैं, तो उस ने पतरस को भी पकड़ लिया: वे दिन अखमीरी रोटी के दिन थे। 4. और उस ने उसे पकड़ के बन्दीगृह में डाला, और रखवाली के लिथे, चार चार सिपाहियोंके चार पहरोंमें रखा: इस मनसा से कि फसह के बाद उसे लोगोंके साम्हने लाए। 5. सो बन्दीगृह में पतरस की रखवाली हो रही यी; परन्तु कलीसिया उसके लिथे लौ लगाकर परमेश्वर से प्रार्यना कर रही यी। 6. और जब हेरोदेस उसे उन के साम्हने लाने को या, तो उसी रात पतरस दो जंजीरोंसे बन्धा हुआ, दो सिपाहियोंके बीच में सो रहा या: और पहरूए द्वार पर बन्दीगृह की रखवाली कर रहे थे। 7. तो देखो, प्रभु का एक स्वर्गदूत आ खड़ा हुआ: और उस कोठरी में ज्योति चमकी: और उस ने पतरस की पसली पर हाथ मार के उसे जगाया, और कहा; उठ, फुरती कर, और उसके हाथ से जंजीरें खुलकर गिर पड़ीं। 8. तब स्वर्गदूत ने उस से कहा; कमर बान्ध, और अपके जूते पहिन ले: उस ने वैसा ही किया, फिर उस ने उस से कहा; अपना वस्त्र पहिनकर मेरे पीछे हो ले। 9. वह निकलकर उसके पीछे हो लिया; परन्तु यह न जानता या, कि जो कुछ स्वर्गदूत कर रहा है, वह सचमुच है, बरन यह समझा, कि मैं दर्शन देख रहा हूं। 10. तब वे पहिल और दूसरे पहरे से निकलकर उस लोहे के फाटक पर पहुंचे, जो नगर की ओर है; वह उन के लिथे आप से आप खुल गया: और वे निकलकर एक ही गली होकर गए, इतने में र्स्वगदूत उसे छोड़कर चला गया। 11. तब पतरस ने सचेत होकर कहा; अब मैं ने सच जान लिया कि प्रभु ने अपना स्वर्गदूत भेजकर मुझे हेरोदेस के हाथ से छुड़ा लिया, और यहूदियोंकी सारी आशा तोड़ दी। 12. और यह सोचकर, वह उस यूहन्ना की माता मरियम के घर आया, जो मरकुस कहलाता है; वहां बहुत लोग इकट्ठे होकर प्रार्यना कर रहे थे। 13. जब उस ने फाटक की खिड़की खटखटाई; तो रूदे नाम एक दासी सुनने को आई। 14. और पतरस का शब्द पहचानकर, उस ने आनन्द के मारे फाटक न खोला; परन्तु दौड़कर भीतर गई, और बताया कि पतरस द्वार पर खड़ा है। 15. उन्होंने उस से कहा; तू पागल है, परन्तु वह दृढ़ता से बोली, कि ऐसा ही है: तब उन्होंने कहा, उसका स्वर्गदूत होगा। 16. परन्तु पतरस खटखटाता ही रहा: सो उन्होंने खिड़की खोली, और उसे देखकर चकित हो गए। 17. तब उस ने उन्हें हाथ से सैन किया, कि चुप रहें; और उन को बताया, कि प्रभु किस रीति से मुझे बन्दीगृह से निकाल लाया है: फिर कहा, कि याकूब और भाइयोंको यह बात कह देना; तब निकलकर दूसरी जगह चला गया। 18. भोर को सिपाहियोंमें बड़ी हलचल होने लगी, कि पतरस क्या हुआ। 19. जब हेरोदेस ने उस की खोज की, और न पाया; तो पहरूओं की जांच करके आज्ञा दी कि वे मार डाले जाएं; और वह यहूदिया को छोड़कर कैसरिया में जा रहा। 20. और वह सूर और सैदा के लोगोंसे बहुत अप्रसन्न या; सो वे एक चित्त होकर उसके पास आए और बलास्तुस को, जो राजा का एक कर्मचारी या, मनाकर मेल करता चाहा; क्योंकि राजा के देश से उन के देश का पालन पोषण होता या। 21. और ठहराए हुए दिन हेरोदेस राजवस्त्र पहिनकर सिंहासन पर बैठा; और उन को व्याख्यान देने लगा। 22. और लोग पुकार उठे, कि यह तो मनुष्य का नहीं परमेश्वर का शब्द है। 23. उसी झण प्रभु के एक स्वर्गदूत ने तुरन्त उसे मारा, क्योंकि उस ने परमश्ेवर की महिमा नही की और वह कीड़े पड़के मर गया।। 24. परन्तु परमेश्वर का वचन बढ़ता और फैलता गया।। 25. जब बरनबास और शाऊल अपक्की सेवा पूरी कर चुके, तो यूहन्ना को जो मरकुस कहलाता है साय लेकर यरूशलेम से लौटे।।
Chapter 13
1. अन्ताकिया की कलीसिया में कितने भविष्यद्वक्ता और उपकेशक थे; अर्यात् बरनबास और शमौन जो नीगर कहलाता है; और लूकियुस कुरेनी, और देश की चौयाई के राजा हेरोदेस का दूधभाई मनाहेम और शाऊल। 2. जब वे उपवास सहित प्रभु की उपासना कर रहे या, तो पवित्र आत्क़ा ने कहा; मेरे निमित्त बरनबास और शाऊल को उस काम के लिथे अलग करो जिस के लिथे मैं ने उन्हें बुलाया है। 3. तब उन्होंने उपवास और प्रार्यना करके और उन पर हाथ रखकर उन्हें विदा किया।। 4. सो वे पवित्र आत्क़ा के भेजे हुए सिलूकिया को गए; और वहां से जहाज पर चढ़कर कुप्रुस को चले। 5. और सलमीस में पहुंचकर, परमेश्वर का वचन यहूदियोंकी अराधनालयोंमें सुनाया; और यूहन्ना उन का सेवक या। 6. और उस सारे टापू में होते हुए, पाफुस तक पहुंचे: वहां उन्हें बार-यीशु नाम एक यहूदी टोन्हा और फूठा भविष्यद्वक्ता मिला। 7. वह सिरिगयुस पौलुस सूबे के साय या, जो बुद्धिमान पुरूष या: उस ने बरनबास और शाऊल को अपके पास बुलाकर परमेश्वर का वचन सुनना चाहा। 8. परन्तु इलीमास टोन्हे ने, क्योंकि यही उसके नाम का अर्य है उन का साम्हना करके, सूबे को विश्वास करने से रोकता चाहा। 9. तब शाऊल ने जिस का नाम पौलुस भी है, पवित्र आत्क़ा से परिपूर्ण हो उस की ओर टकटकी लगाकर कहा। 10. हे सारे कपट और सब चतुराई से भरे हुए शैतान की सन्तान, सकल धर्म के बैरी, क्या तू प्रभु के सीधे मार्गोंको टेढ़ा करना न छोड़ेगा 11. अब देख, प्रभु का हाथ तुझ पर लगा है; और तू कुछ समय तक अन्धा रहेगा और सूर्य को न देखेगा: तब तुरन्त धुन्धलाई और अन्धेरा उस पर छा गया, और वह इधर उधर टटोलने लगा, ताकि कोई उसका हाथ पकड़के ले चले। 12. तब सूबे ने जो कुछ हुआ या, देखकर और प्रभु के उपकेश से चकित होकर विश्वास किया।। 13. पौलुस और उसके सायी पाफुस से जहाज खोलकर पंफूलिया के पिरगा में आए: और यूहन्ना उन्हें छोड़कर यरूशलेम को लौट गया। 14. और पिरगा से आगे बढ़कर के पिसिदिया के अन्ताकिया में पहुंचे; और सब्त के दिन अराधनालय में जाकर बैठ गए। 15. और व्यवस्या और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तक के पढ़ने के बाद सभा के सरदारोंने उन के पास कहला भेजा, कि हे भाइयों, यदि लोगोंके उपकेश के लिथे तुम्हारे मन में कोई बात हो तो कहो। 16. तब पौलुस ने खड़े होकर और हाथ से सैन करके कहा; हे इस्त्राएलियों, और परमेश्वर से डरनेवालों, सुनो। 17. इन इस्त्राएली लोगोंके परमेश्वर ने हमारे बापदादोंको चुन लिया, और जब थे मिसर देश में परदेशी होकर रहते थे, तो उन की उन्नति की; और बलवन्त भुजा से निकाल लाया। 18. और वह कोई चालीस वर्ष तक जंगल में उन की सहता रहा। 19. और कनान देश में सात जातियोंका नाश करके उन का देश कोई साढ़े चार सौ वर्ष में इन की मीरास में कर दिया। 20. इस के बाद उस ने सामुएल भविष्यद्वक्ता तक उन में न्यायी ठहराए। 21. उसके बाद उन्होंने एक राजा मांगा: तब परमेश्वर ने चालीस वषै के लिथे बिन्यामीन के गोत्र में से एक मनुष्य अर्यात् कीश के पुत्र शाऊल को उन पर राजा ठहराया। 22. फिर उसे अलग करके दाऊद को उन का राजा बनाया; जिस के विषय में उस ने गवाही दी, कि मुझे एक मनुष्य यिशै का पुत्र दाऊद, मेरे मन के अनुसार मिल गया है। वही मेरे सारी इच्छा पूरी करेगा। 23. इसी के वंश में से परमेश्वर ने अपक्की प्रतिज्ञा के अनुसार इस्त्राएल के पास एक उद्धारकर्ता, अर्यात् यीशु को भेजा। 24. जिस के आने से पहिले यूहन्ना ने सब इस्त्राएलियोंको मन फिराव के बपतिस्क़ा का प्रचार किया। 25. और जब यूहन्ना अपना दौर पूरा करने पर या, तो उस ने कहा, तुम मुझे क्या समझते हो मैं वह नहीं! बरन देखो, मेरे बाद एक आनेवाला है, जिस के पांवोंकी जूती मैं खोलने के योग्य नहीं। 26. हे भाइयो, तुम जो इब्राहीम की सन्तान हो; और तुम जो परमेश्वर से डरते हो, तुम्हारे पास इस उद्धार का वचन भेजा गया है। 27. क्योंकि यरूशलेम के रहनेवालोंऔर उनके सरदारोंने, न उसे पहचाना, और न भविष्यद्वक्ताओं की बातें समझी; जो हर सब्त के दिन पढ़ी जाती हैं, इसलिथे उसे दोषी ठहराकर उन को पूरा किया। 28. उन्होंने मार डालने के योग्य कोई दोष उस में ने पाया, तौभी पीलातुस से बिनती की, कि वह मार डाला जाए। 29. और जब उन्होंने उसके विषय में लिखी हुई सब बातें पूरी की, तो उसे क्रूस पर से उतार कर कब्र में रखा। 30. परन्तु परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया। 31. और वह उन्हें जो उसके साय गलील से यरूशलेम आए थे, बहुत दिनोंतक दिखाई देता रहा; लोगोंके साम्हने अब वे भी उसके गवाह हैं। 32. और हम तुम्हें उस प्रतिज्ञा के विषय में, जो बापदादोंसे की गई यी, यह सुसमाचार सुनाते हैं। 33. कि परमेश्वर ने यीशु को जिलाकर, वही प्रतिज्ञा हमारी सन्तान के लिथे पूरी की, जैसा दूसरे भजन में भी लिखा है, कि तू मेरा पुत्र है; आज मैं ही ने तुझे जन्क़ाया है। 34. और उसके इस रीति से मरे हुओं में से जिलाने के विषय में भी, कि वह कभी न सड़े, उस ने योंकहा है; कि मैं दाऊद पर की पवित्र और अचल कृपा तुम पर करूंगा। 35. इसलिथे उस ने एक और भजन में भी कहा है; कि तू अपके पवित्र जन को सड़ने न देगा। 36. क्योंकि दाऊद तो परमेश्वर की इच्छा के अनुसार अपके समय में सेवा करके सो गया; और अपके बापदादोंमें जा मिला; और सड़ भी गया। 37. परन्तु जिस को परमेश्वर ने जिलाया, वह सड़ने नहीं पाया। 38. इसलिथे, हे भाइयो; तुम जान लो कि इसी के द्वारा पापोंकी झमा का समाचार तुम्हें दिया जाता है। 39. और जिन बातोंसे तुम मूसा की व्यवस्या के द्वारा निर्दोष नहीं ठहर सकते थे, उन्हीं सब से हर एक विश्वास करनेवाला उसके द्वारा निर्दोष ठहरता है। 40. इसलिथे चौकस रहो, ऐसा न हो, कि जो भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तक में आया है, 41. तुम प्र भी आ पके कि हे निन्दा करनेवालो, देखो, और चकित हो, और मिट जाओ; क्योंकि मैं तुम्हारे दिनोंमें एक काम करता हूं; ऐसा काम, कि यदि कोई तुम से उसकी चर्चा करे, तो तुम कभी प्रतीति न करोगे।। 42. उन के बाहर निकलते समय लोग उन से बिनती करने लगे, कि अगले सब्त के दिन हमें थे बातें फिर सुनाई जाएं। 43. और जब सभा उठ गई तो यहूदियोंऔर यहूदी मत में आए हुए भक्तोंमें से बहुतेरे पौलुस और बरनबास के पीछे हो लिए; और उन्होंने उन से बातें करके समझाया, कि परमेश्वर के अनुग्रह में बने रहो।। 44. अगले सब्त के दिन नगर के प्राय: सब लोग परमेश्वर का वचन सुनने को इकट्ठे हो गए। 45. परन्तु यहूदी भीड़ को देखकर डाह से भर गए, और निन्दा करते हुए पौलुस की बातोंके विरोध में बोलने लगे। 46. तब पोलुस और बरनबास ने निडर होकर कहा, अवश्य या, कि परमेश्वर का वचन पहिले तुम्हें सुनाया जाता: परन्तु जब कि तुम उसे दूर करते हो, और अपके को अनन्त जीवन के योग्य नहीं ठहराते, तो देखो, हम अन्यजातियोंकी ओर फिरते हैं। 47. क्योकिं प्रभु ने हमें यह आज्ञा दी है; कि मै। ने तुझे अन्याजातियोंके लिथे ज्योति ठहराया है; ताकि तू पृय्वी की छोर तक उद्धार का द्वार हो। 48. यह सुनकर अन्यजाति आनन्दित हुए, और परमेश्वर के वचन की बड़ाई करने लगे: और जितने अनन्त जीवन के लिथे ठहराए गए थे, उन्होंने विश्वास किया। 49. तब प्रभु का वचन उस सारे देश में फैलने लगा। 50. परन्तु यहूदियोंने भक्त और कुलीन स्त्रियोंको और नगर के बड़े लोगोंको उसकाया, और पौलुस और बरनबास पर उपद्रव करवाकर उन्हें अपके सिवानोंसे निकाल दिया। 51. तब वे उन के साम्हने अपके पांवोंकी धूल फाड़कर इकुनियुम को गए। 52. और चेले आनन्द से और पवित्र आत्क़ा से परिपूर्ण होते रहे।।
Chapter 14
1. इकुनियुम में ऐसा हुआ कि वे यहूदियोंकी आराधनालय में साय साय गए, और ऐसी बातें की, कि यहूदियोंऔर यूनानियोंदोनोंमें से बहतोंने विश्वास किया। 2. परन्तु न माननेवाले यहूदियोंने अन्यजातियोंके मन भाइयोंके विरोध में उसकाए, और बिगाड़ कर दिए। 3. और वे बहुत दिन तक वहां रहे, और प्रभु के भरोसे पर हियाव से बातें करते थे: और वह उन के हाथोंसे चिन्ह और अद्भुत काम करवाकर अपके अनुग्रह के वचन पर गवाही देता या। 4. परन्तु नगर के लोगोंमें फूट पड़ गई यी; इस से कितने तो यहूदियोंकी ओर, और कितने प्रेरितोंकी ओर हो गए। 5. परन्तु जब अन्यजाति और यहूदी उन का अपमान और उन्हें पत्यरवाह करने के लिथे अपके सरदारोंसमत उन पर दोड़े। 6. तो वे इस बात को जान गा, और लुकाउनिया के लुस्त्रा और दिरबे नगरोंमें, और आसपास के देश में भाग गए। 7. और वहां सुसमाचार सुनाने लगे।। 8. लुस्त्रा में एक मनुष्य बैठा या, जो पांवोंका निर्बल या: वह जन्क़ ही से लंगड़ा या, और कभी न चला या। 9. वह पौलुस को बातें करते सुन रहा या और इस ने उस की ओर टकटकी लगाकर देखा कि इस को चंगा हो जाने का विश्वास है। 10. और ऊंचे शब्द से कहा, अपके पांवोंके बल सीधा खड़ा हो: तब वह उछलकर चलने फिरने लगा। 11. लोगोंने पौलुस का यह काम देखकर लुकाउनिया भाषा में ऊंचे शब्द से कहा; देवता हमारे पास उतर आए हैं। 12. और उन्होंने बरनबास को ज्यूस, और पौलुस को हिरमेस कहा, क्योंकि यह बातें करने में मुख्य या। 13. और ज्यूस के उस मन्दिर का पुजारी जो उस के नगर के साम्हने या, बैल और फूलोंके हार फाटकोंपर लाकर लोगोंके साय बलिदान करना चाहता या। 14. परन्तु बरनबास और पौलुस प्रेरितोंने जब सुना, तो अपके कपके फाड़े, और भीड़ में लपक गए, और पुकारकर कहने लगे; हे लोगो तुम क्या करते हो 15. हम भी तो तुम्हारे समान दु:ख-सुख भोगी मनुष्य हैं, और तुम्हें सुसमाचार सुनाते हैं, कि तुम इन व्यर्य वस्तुओं से अलग होकर जीवते परमेश्वर की ओर फिरो, जिस ने स्वर्ग और पृय्वी और समुद्र और जो कुछ उन में है बनाया। 16. उस ने बीते समयोंमें सब जातियोंको अपके अपके मार्गोंमें चलने दिया। 17. तौभी उस ने अपके आप को बे-गवाह न छोड़ा; किन्तु वह भलाई करता रहा, और आकाश से वर्षा और फलवन्त ऋतु देकर, तुम्हारे मन को भोजन और आनन्द से भरता रहा। 18. यह कहकर भी उन्होंने लोगोंको किठनता से रोका कि उन के लिथे बलिदान न करें।। 19. परन्तु कितने यहूदियोंने अन्ताकिया और इकुनियम से आकर लोगोंको अपक्की ओर कर लिया, और पौलुस को पत्यरवाह किया, और मरा समझकर उसे नगर के बाहर घसीट ले गए। 20. पर जब चेले उस की चारोंओर आ खड़े हुए, तो वह उठकर नगर में गया और दूसरे दिन बरनबास के साय दिरबे को चला गया। 21. और वे उस नगर के लोगोंको सुसमाचार सुनाकर, और बहुत से चेले बनाकर, लुस्त्रा और इकुनियम और अन्ताकिया को लौट आए। 22. और चेलोंके मन को स्यिर करते रहे और यह उपकेश देते थे, कि हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा। 23. और उन्होंने हर एक कलीसिया में उन के लिथे प्राचीन ठहराए, और उपवास सहित प्रार्यना करके, उन्हें प्रभु के हाथ सौंपा जिस पर उन्होंने विश्वास किया या। 24. और पिसिदिया से होते हुए वे पंफूलिया में पहुंचे; 25. और पिरगा में वचन सुनाकर अत्तलिया में आए। 26. और वहां से जहाज से अन्ताकिया में आए, जहां से वे उस काम के लिथे जो उन्होंने पूरा किया या परमेश्वर के अनुग्रह पर सौंपे गए थे। 27. वहां पहुंचकर, उन्होंने कलीसिया इकट्ठी की और बताया, कि परमेश्वर ने हमारे साय होकर कैसे बड़े बड़े काम किए! और अन्यजातियोंके लिथे विश्वास का द्वार खोल दिया। 28. और वे चेलोंके साय बहुत दिन तक रहे।।
Chapter 15
1. फिर कितने लोग यहूदिया से आकर भाइयोंको सिखाने लगे कि यदि मूसा की रीति पर तुम्हारा खतना न हो तो तुम उद्धार नहीं पा सकते। 2. जब पौलुस और बरनबास का उन से बहुत फगड़ा और वाद-विवाद हुआ तो यह ठहराया गया, कि पौलुस और बरनबास, और हम में से कितने और व्यक्ति इस बात के विषय में यरूशलेम को प्रेरितोंऔर प्राचीनोंके पास जांए। 3. सो मण्डली ने उन्हें कुछ दूर तक पहुंचाया; और वे फीनीके ओर सामरिया से होते हुए अन्यजातियोंके मन फेरने का समाचार सुनाते गए, और सब भाइयोंको बहुत आनन्दित किया। 4. जब यरूशलेम में पहुंचे, तो कलीसिया और प्रेरित और प्राचीन उन से आनन्द क ेसाय मिले, और उन्होंने बताया कि परमेश्वर ने उन के साय होकर कैसे कैसे काम किए थे। 5. परन्तु फरीसियोंके पंय में से जिन्होंने विश्वास किया या, उन में से कितनोंने उठकर कहा, कि उन्हें खतना कराना और मूसा की व्यवस्या को मानने की आज्ञा देना चाहिए। 6. तब प्रेरित और प्राचीन इस बात के विषय में विचार करने के लिथे इकट्ठे हुए। 7. तब पतरस ने बहुत वाद-विवाद के बाद खड़े होकर उन से कहा।। हे भाइयो, तुम जानते हो, कि बहुत दिन हुए, कि परमेश्वर ने तुम में से मुझे चुन लिया, कि मेरे मुंह से अन्यजाति सुसमाचार का वचन सुनकर विश्वास करें। 8. और मन के जांचनेवाले परमेश्वर ने उन को भी हमारी नाई पवित्र आत्क़ा देकर उन की गवाही दी। 9. और विश्वास के द्वारा उन के मन शुद्ध करके हम में और उन में कुछ भेद न रखा। 10. तो अब तुम क्योंपरमेश्वर की पक्कीझा करते हो कि चेलोंकी गरदन पर ऐसा जूआ रखो, जिसे न हमारे बापदादे उठा सके थे और न हम उठा सकते। 11. हां, हमारा यह तो निश्चय है, कि जिस रीति से वे प्रभु यीशु के अनुग्रह से उद्धार पाएंगे; उसी रीति से हम भी पाएंगे।। 12. तब सारी सभा चुपचाप होकर बरनबास और पौलुस की सुनने लगी, कि परमेश्वर ने उन के द्वारा अन्यजातियोंमें कैसे कैसे चिन्ह, और अद्भुत काम दिखाए। 13. जब वे चुप हुए, तो याकूब कहने लगा, कि ।। 14. हे भाइयो, मेरी सुनो: शमौन ने बताया, कि परमेश्वर ने पहिले पहिल अन्यजातियोंपर कैसी कृपादृष्टि की, कि उन में से अपके नाम के लिथे एक लोग बना ले। 15. और इस से भविष्यद्वक्ताओं की बातें मिलती हैं, जैसा लिखा है, कि। 16. इस के बाद मैं फिर आकर दाऊद का गिरा हुआ डेरा उठाऊंगा, और उसके खंडहरोंको फिर बनाऊंगा, और उसे खड़ा करूंगा। 17. इसलिथे कि शेष मनुष्य, अर्यात् सब अन्यजाति जो मेरे नाम के कहलाते हैं, प्रभु को ढूंढें। 18. यह वही प्रभु कहता है जो जगत की उत्पत्ति से इन बातोंका समाचार देता आया है। 19. इसलिथे मेरा विचार यह है, कि अन्यजातियोंमें से जो लोग परमेश्वर की ओर फिरते हैं, हम उन्हें दु:ख न दें। 20. परन्तु उन्हें लिख भेंजें, कि वे मूरतोंकी अशुद्धताओं और व्यभिचार और गला घोंटे हुओं के मांस से और लोहू से पके रहें। 21. क्योंकि पुराने समय से नगर नगर मूसा की व्यवस्या के प्रचार करनेवाले होते चले आए है, और वह हर सब्त के दिन अराधनालय में पढ़ी जाती है। 22. तब सारी कलीसिया सहित प्रेरितोंऔर प्राचीनोंको अच्छा लगा, कि अपके में से कई मनुष्योंको चुनें, अर्यात् यहूदा, जो बरसब्बा कहलाता है, और सीलास को जो भाइयोंमें मुखिया थे; और उन्हें पौलुस और बरनबास के साय अन्ताकिया को भेजें। 23. और उन के हाथ यह लिख भेजा, कि अन्ताकिया और सूरिया और किलिकिया के रहनेवाले भाइयोंको जो अन्यजातियोंमें से हैं, प्रेरितोंऔर प्राचीन भाइयोंका नमस्कार! 24. हम ने सुना है, कि हम में से कितनोंने वहां जाकर, तुम्हें अपक्की बातोंसे घबरा दिया; और तुम्हारे मन उलट दिए हैं परन्तु हम ने उन को आज्ञा नहीं दी यी। 25. इसलिथे हम ने एक चित्त होकर ठीक समझा, कि चुने हुऐ मनुष्योंको अपके प्यारे बरनबास और पौलुस के साय तुम्हारे पास भेजें। 26. थे तो ऐसे मनुष्य हैं, जिन्होंने अपके प्राण हमारे प्रभु यीशु मसीह के नाम के लिथे जोखिम में डाले हैं। 27. और हम ने यहूदा और सीलास को भेजा है, जो अपके मुंह से भी थे बातें कह देंगे। 28. पवित्र आत्क़ा को, और हम को ठीक जान पड़ा, कि इन आवश्यक बातोंको छोड़; तुम पर और बोफ न डालें; 29. कि तुम मूरतोंके बलि किए हुओं से, और लोहू से, और गला घोंटे हुओं के मांस से, और व्यभिचार से, पके रहो। इन से पके रहो; तो तुम्हारा भला होगा आगे शुभ।। 30. फिर वे विदा होकर अन्ताकिया में पहुंचे, और सभा को इकट्ठी करके वह उन्हें पत्री दे दी। 31. और वे पढ़कर उस उपकेश की बात से अति आनन्दित हुए। 32. और यहूदा और सीलास ने जो आप भी भविष्यद्वक्ता थे, बहुत बातोंसे भाइयोंको उपकेश देकर स्यिर किया। 33. वे कुछ दिन रहकर भाइयोंसे शान्ति के साय विदा हुए, कि अपके भेजनेवालोंके पास जाएं। 34. (परन्तु सीलास को वहां रहना अच्छा लगा।) 35. और पौलुस और बरनबास अन्ताकिया में रह गए: और बहुत और लोगोंके साय प्रभु के वचन का उपकेश करते और सुसमाचार सुनाते रहे।। 36. कुछ दिन बाद पौलुस ने बरनबास से कहा; कि जिन जिन नगरोंमें हम ने प्रभु का वचन सुनाया या, आओ, फिर उन में चलकर अपके भाइयोंको देखें; कि कैसे हैं। 37. तब बरनबास ने यूहन्ना को जो मरकुस कहलाता है, साय लेने का विचार किया। 38. परन्तु पौलुस ने उसे जो पंफूलिया में उन से अलग हो गया या, और काम पर उन के साय न गया, साय ले जाना अच्छा न समझा। 39. सो ऐसा टंटा हुआ, कि वे एक दूसरे से अलग हो गए: और बरनबास, मरकुस को लेकर जहाज पर कुप्रुस को चला गया। 40. परन्तु पौलुस ने सीलास को चुन लिया, और भाइयोंसे परमेश्वर के अनुग्रह पर सौंपा जाकर वहां से चला गया। 41. और कलीसियाओं को स्यिर करता हुआ, सूरिया और किलिकिया से होते हुआ निकला।।
Chapter 16
1. फिर वह दिरबे और लुस्त्रा में भी गया, और देखो, वहां तीमुयियुस नाम एक चेला या, जो किसी विश्वासी यहूदिनी का पुत्र या, परन्तु उसका पिता यूनानी या। 2. वह लुस्त्रा और इकुनियुम के भाइयोंमें सुनाम या। 3. पौलुस ने चाहा, कि यह मेरे साय चले; और जो यहूदी लोग उन जगहोंमें थे उन के कारण उसे लेकर उसका खतना किया; क्योंकि वे सब जानते या, कि उसका पिता यूनानी या। 4. और नगर नगर जाते हुए वे उन विधियोंको जो यरूशलेम के प्रेरितोंऔर प्राचीनोंने ठहराई यीं, मानने के लिथे उन्हें पहुंचाते जाते थे। 5. इस प्रकार कलीसिया विश्वास में स्यिर होती गई और गिनती में प्रति दिन बढ़ती गई। 6. और वे फ्रूगिया और गलतिया देशोंमें से होकर गए, और पवित्र आत्क़ा ने उन्हें ऐशिया में वचन सुनाने से मना किया। 7. और उन्होंने मूसिया के निकट पहुंचकर, बितूनिया में जाना चाहा; परन्तु यीशु के आत्क़ा ने उन्हें जाने न दिया। 8. सो मूसिया से होकर वे त्रोआस में आए। 9. और पौलुस ने रात को एक दर्शन देखा कि एक मकिदुनी पुरूष खड़ा हुआ, उस से बिनती करके कहता है, कि पार उतरकर मकिदुनिया में आ; और हमारी सहाथता कर। 10. उसके यह दर्शन देखते ही हम ने तुरन्त मकिदुनिया जाना चाहा, यह समझकर, कि परमेश्वर ने हमें उन्हें सुसमाचार सुनाने के लिथे बुलाया है।। 11. सो त्रोआस से जहाज खोलकर हम सीधे सुमात्राके और दूसरे दिन नियापुलिस में आए। 12. वहां से हम फिलिप्पी में पहुंचे, जो मकिदुनिया प्रान्त का मुख्य नगर, और रोमियोंकी बस्ती है; और हम उस नगर में कुछ दिन तक रहे। 13. सब्त के दिन हम नगर के फाटक के बाहर नदी के किनारे यह समझकर गए, कि वहां प्रार्यना करने का स्यान होगा; और बैठकर उन स्त्रियोंसे जो इकट्ठी हुई यीं, बातें करने लगे। 14. और लुदिया नाम युआयीरा नगर की बैंजनी कपके बेचनेवाली एक भक्त स्त्री सुनती यी, और प्रभु ने उसका मन खोला, ताकि पौलुस की बातोंपर चित्त लगाए। 15. और जब उस ने अपके घराने समेत बपतिस्क़ा लिया, तो उस ने बिनती की, कि यदि तुम मुझे प्रभु की विश्वासिनी समझते हो, तो चलकर मेरे घर में रहो; और वह हमें मनाकर ले गई।। 16. जब हम प्रार्यना करने की जगह जा रहे थे, तो हमें एक दासी मिली जिस में भावी कहनेवाली आत्क़ा यी; और भावी कहने से अपके स्वामियोंके लिथे बहुत कुछ कमा लाती यी। 17. वह पौलुस के और हमारे पीछे आकर चिल्लाने लगी कि थे मनुष्य परम प्रधान परमेश्वर के दास हैं, जो हमें उद्धार के मार्ग की कया सुनाते हैं। 18. वह बहुत दिन तक ऐसा ही करती रही, परन्तु पौलुस दु:खित हुआ, और मुंह फेरकर उस आत्क़ा से कहा, मैं तुझे यीशु मसीह के नाम से आज्ञा देता हूं, कि उस में से निकल जा और वह उसी घड़ी निकल गई।। 19. जब उसके स्वामियोंने देखा, कि हमारी कमाई की आशा जाती रही, तो पौलुस और सीलास को पकड़ कर चौक में प्राधानोंके पास खींच ले गए। 20. और उन्हें फौजदारी के हाकिमोंके पास ले जाकर कहा; थे लोग जो यहूदी हैं, हमारे नगर में बड़ी हलचल मचा रहे हैं। 21. और ऐसे व्यवहार बता रहे हैं, जिन्हें ग्रहण करना या मानना हम रोमियोंके लिथे ठीक नहीं। 22. तब भीड़ के लागे उन के विरोध में इकट्ठे होकर चढ़ आए, और हाकिमोंने उन के कपके फाड़कर उतार डाले, और उन्हें बेत मारने की आज्ञा दी। 23. और बहुत बेत लगवाकर उन्हें बन्दीगृह में डाला; और दारोगा को आज्ञा दी, कि उन्हें चौकसी से रखे। 24. उस ने ऐसी आज्ञा पाकर उन्हें भीतर की कोठरी में रखा और उन के पांव काठ में ठोंक दिए। 25. आधी रात के लगभग पौलुस और सीलास प्रार्यना करते हुए परमेश्वर के भजन गा रहे थे, और बन्धुए उन की सुन रहे थे। 26. कि इतने में एकाएक बड़ा भुईडोल हुआ, यहां तक कि बन्दीगृह की नेव हिल गईं, और तुरन्त सब द्वार खुल गए; और सब के बन्धन खुल पके। 27. और दारोगा जाग उठा, और बन्दीगृह के द्वार खुले देखकर समझा कि बन्धुए भाग गए, सो उस ने तलवार खींचकर अपके आप को मार डालना चाहा। 28. परन्तु पौलुस ने ऊंचे शब्द से पुकारकर कहा; अपके आप को कुछ हानि न पहुंचा, क्योंकि हम सब यहां हैं। 29. तब वह दीया मंगवाकर भीतर लपक गया, और कांपता हुआ पौलुस और सीलास के आगे गिरा। 30. और उन्हें बाहर लाकर कहा, हे साहिबो, उद्धार पाने के लिथे मैं क्या करूं 31. उन्होंने कहा, प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास कर, तो तू और तेरा घराना उद्धार पाएगा। 32. और उन्होंने उस को, और उसके सारे घर के लोगोंको प्रभु का वचन सुनाया। 33. और रात को उसी घड़ी उस ने उन्हें ले जाकर उन के घाव धोए, और उस ने अपके सब लोगोंसमेत तुरन्त बपतिस्क़ा लिया। 34. और उस ने उन्हें अपके घर में ले जाकर, उन के आगे भोजन रखा और सारे घराने समेत परमेश्वर पर विश्वास करके आनन्द किया।। 35. जब दिन हुआ तक हाकिमोंने प्यादोंके हाथ कहला भेजा कि उन मनुष्योंको छोड़ दो। 36. दारोगा ने थे बातें पौलुस से कह सुनाई, कि हाकिमोंने तुम्हारे छोड़ देने की आज्ञा भेज दी है, सो अब निकलकर कुशल से चले जाओ। 37. परन्तु पौलुस ने उस से कहा, उन्होंने हमें जो रोमी मनुष्य हैं, दोषी ठहाराए बिना, लोगोंके साम्हने मारा, और बन्दीगृह में डाला, और अब क्या चुपके से निकाल देते हैं ऐसा नहीं, परन्तु वे आप आकर हमें बाहर ले जाएं। 38. प्यादोंने थे बातें हाकिमोंसे कह दीं, और वे यह सुनकर कि रोमी हैं, डर गए। 39. और आकर उन्हें मनाया, और बाहर ले जाकर बिनती की कि नगर से चले जाएं। 40. वे बन्दीगृह से निकल कर लुदिया के यहां गए, और भाइयोंसे भेंट करके उन्हें शान्ति दी, और चले गए।।
Chapter 17
1. फिर वे अम्फिपुलिस और अपुल्लोनिया होकर यिस्सलुनीके में आए, जहां यहूदियोंका एक आराधनालय या। 2. और पौलुस अपक्की रीति के अनुसार उन के पास गया, और तीन सब्त के दिन पवित्र शास्त्रोंसे उन के साय विवाद किया। 3. और उन का अर्य खोल खोलकर समझाता या, कि मसीह का दुख उठाना, और मरे हुओं में से जी उठना, अवश्य या; और यही यीशु जिस की मैं तुम्हें कया सुनाता हूं, मसीह है। 4. उन में से कितनोंने, और भक्त यूनानियोंमें से बहुतेरोंने और बहुत सी कुलीन सित्रयोंने मान लिया, और पौलुस और सीलास के साय मिल गए। 5. परन्तु यहूदियोंने डाह से भरकर बजारू लोगोंमें से कई दुष्ट मनुष्योंको अपके साय में लिया, और भीड़ लगाकर नगर में हुल्लड़ मचाने लगे, और यासोन के घर पर चढ़ाई करके उन्हें लोगोंके साम्हने लाना चाहा। 6. और उन्हें न पाकर, वे यह चिल्लाते हुए यासोन और कितने और भाइयोंको नगर के हाकिमोंके साम्हने खींच लाए, कि थे लोग जिन्होंने जगल को उलटा पुलटा कर दिया है, यहां भी आए हैं। 7. और यामोन ने उन्हें अपके यहां उतारा है, और थे सब के सब यह कहते हैं कि यीशु राजा है, और कैसर की आज्ञाओं का विरोध करते हैं। 8. उन्होंने लोगोंको और नगर के हाकिमोंको यह सुनाकर घबरा दिया। 9. और उन्होंने यासोन और बाकी लोगोंसे मुचलका लेकर उन्हें छोड़ दिया।। 10. भाइयोंने तुरन्त रात ही रात पौलुस और सीलास को बिरीया में भेज दिया: और वे वहां पहुंचकर यहूदियोंके आराधनालय में गए। 11. थे लोग तो यिस्सलुनीके के यहूदियोंसे भले थे और उन्होंने बड़ी लालसा से वचन ग्रहण किया, और प्रति दिन पवित्र शास्त्रोंमें ढूंढ़ते रहे कि थे बातें योहीं हैं, कि नहीं। 12. सो उन में से बहुतोंने, और यूनानी कुलीन स्त्रियोंमें से, और पुरूषोंमें से बहुतेरोंने विश्वास किया। 13. किन्तु जब यिस्सलुनीके के यहूदी जान गए, कि पौलुस बिरीया में भी परमेश्वर का वचन सुनाता है, तो वहां भी आकर लोगोंको उसकाने और हलचल मचाने लगे। 14. तब भाइयोंने तुरन्त पौलुस को विदा किया, कि समुद्र के किनारे चला जाए; परन्तु सीलास और तीमुयियुस वहीं रह गए। 15. पौलुस के पहुंचानेवाले उसे अथेने तक ले गए, और सीलास और तीमुयियुस के लिथे यह आज्ञा लेकर विदा हुए, कि मेरे पास बहुत शीघ्र आओ।। 16. जब पौलुस अथेने में उन की बाट जोह रहा या, तो नगर को मूरतोंसे भरा हुआ देखकर उसका जी जल गया। 17. सो वह आराधनालय में यहूदियोंऔर भक्तोंसे और चौक में जो लोग मिलते थे, उन से हर दिन वाद-विवाद किया करता या। 18. तब इपिकूरी और स्तोईकी पण्डितोंमें से कितने उस से तर्क करने लगे, और कितनोंने कहा, यह बकवादी क्या कहना चाहता है परन्तु औरोंने कहा; वह अन्य देवताओं का प्रचारक मालूम पड़ता है, क्योंकि वह यीशु का, और पुनरूत्यान का सुसमाचार सुनाता या। 19. तब वे उसे अपके साय अरियुपगुस पर ले गए और पूछा, क्या हम जान सकते हैं, कि यह नया मत जो तू सुनाता है, क्या है 20. क्योंकि तू अनोखी बातें हमें सुनाता है, इसलिथे हम जानना चाहते हैं कि इन का अर्य क्या है 21. (इसलिथे कि सब अथेनवी और परदेशी जो वहां रहते थे नई नई बातें कहने और सुनने के सिवाय और किसी काम में समय नहीं बिताते थे)। 22. तब पौलुस ने अरियुपगुस के बीच में खड़ा होकर कहा; हे अथेने के लोगोंमैं देखता हूं, कि तुम हर बात में देवताओं के बड़े माननेवाले हो। 23. क्योंकि मैं फिरते हुए तुम्हारी पूजने की वस्तुओं को देख रहा या, तो एक ऐसी वेदी भी पाई, जिस पर लिखा या, कि ?अनजाने ईश्वर के लिथे। सो जिसे तुम बिना जाने पूजते हो, मैं तुम्हें उसका समाचार सुनाता हूं। 24. जिस परमेश्वर ने पृय्वी और उस की सब वस्तुओं को बनाया, वह स्वर्ग और पृय्वी का स्वामी होकर हाथ के बनाए हुए मन्दिरोंमें नहीं रहता। 25. न किसी वस्तु का प्रयोजन रखकर मनुष्योंके हाथोंकी सेवा लेता है, क्योंकि वह तो आप ही सब को जीवन और स्वास और सब कुछ देता है। 26. उस ने एक ही मूल से मनुष्योंकी सब जातियां सारी पृय्वी पर रहने के लिथे बनाई हैं; और उन के ठहराए हुए समय, और निवास के सिवानोंको इसलिथे बान्धा है। 27. कि वे परमेश्वर को ढूंढ़ें, कदाचित उसे टटोलकर पा जाएं तौभी वह हम में से किसी से दूर नहीं! 28. क्योंकि हम उसी में जीवित रहते, और चलते-फिरते, और स्यिर रहते हैं; जैसे तुम्हारे कितने किवयोंने भी कहा है, कि हम तो उसी के वंश भी हैं। 29. सो परमेश्वर का वंश होकर हमें यह समझता उचित नहीं, कि ईश्वरत्व, सोने या रूपे या पत्यर के समान है, जो मनुष्य की कारीगरी और कल्पता से गढ़े गए हों। 30. इसलिथे परमेश्वर आज्ञानता के समयोंमें अनाकानी करके, अब हर जगह सब मनुष्योंको मन फिराने की आज्ञा देता है। 31. क्योंकि उस ने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उस ने ठहराया है और उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रामाणित कर दी है।। 32. मरे हुओं के पुनरूत्यान की बात सुनकर कितने तो ठट्ठा करने लगे, और कितनोंने कहा, यह बात हम तुझ से फिर कभी सुनेंगे। 33. इस पर पौलुस उन के बीच में से निकल गया। 34. परन्तु कई एक मनुष्य उसके साय मिल गए, और विश्वास किया, जिन में दियुनुसियुस अरियुपक्की या, और दमरिस नाम एक स्त्री यी, और उन के साय और भी कितने लोग थे।।
Chapter 18
1. इस के बाद पौलुस अथेने को छोड़कर कुरिन्युस में आया। 2. और वहां अक्विला नाम एक यहूदी मिला, जिस का जन्क़ पुन्तुस का या; और अपक्की पत्नी प्रिस्किल्ला समेत इतालिया से नया आया या, क्योंकि क्लौदियुस ने सब यहूदियोंको रोम से निकल जाने की आज्ञा दी यी, सो वह उन के यहां गया। 3. और उसका और उन का एक ही उद्यम या; इसलिथे वह उन के साय रहा, और वे काम करने लगे, और उन का उद्यम तम्बू बनाने का या। 4. और वह हर एक सब्त के दिन आराधनालय में वाद-विवाद करके यहूदियोंऔर यूनानियोंको भी समझाता या।। 5. जब सीलास और तीमुयियुस मकिदुनिया से आए, तो पौलुस वचन सुनाने की धुन में लगकर यहूदियोंको गवाही देता या कि यीशु ही मसीह है। 6. परन्तु जब वे विरोध और निन्दा करने लगे, तो उस ने अपके कपके फाड़कर उन से कहा; तुम्हारा लोहू तुम्हारी गर्दन पर रहे: मैं निदौष हूं: अब ऐ मैं अन्यजातियोंके पास जाऊंगा। 7. और वहां से चलकर वह तितुस युस्तुस नाम परमेश्वर के एक भक्त के घर में आया, जिस का घर आराधनालय से लगा हुआ या। 8. तब आराधनालय के सरदार क्रिस्पुस ने अपके सारे घराने समेत प्रभु पर विश्वास किया; और बहुत से कुरिन्यी सुनकर विश्वास लाए और बपतिस्क़ा लिया। 9. और प्रभु ने रात को दर्शन के द्वारा पौलुस से कहा, मत डर, बरन कहे जा, और चुप मत रह। 10. क्योंकि मैं तेरे साय हूं: और कोई तुझ पर चढ़ाई करके तेरी हाति न करेगा; क्योंकि इस नगर में मेरे बहुत से लोग हैं। 11. सो वह उन में परमेश्वर का वचन सिखाते हुए डेढ़ वर्ष तक रहा।। 12. जब गल्लियो अखाया देश का हाकिम या तो यहूदी लोग एका करके पौलुस पर चढ़ आए, और उसे न्याय आसन के साम्हने लाकर, कहने लगे। 13. कि यह लोगोंको समझाता है, कि परमेश्वर की उपासना ऐसी रीति से करें, जो व्यवस्या के विपक्कीत है। 14. जब पौलुस बोलने पर या, तो गल्लियो ने यहूदियोंसे कहा; हे यहूदियो, यदि यह कुछ अन्याय या दुष्टता की बात होती तो उचित या कि मैं तुम्हारी सुनता। 15. परन्तु यदि यह वाद-विवाद शब्दों, और नामों, और तुम्हारे यहां की व्यवस्या के विषय में है, तो तुम ही जानो; क्योंकि मैं इन बातोंका न्यायी बनना नहीं चाहता। 16. और उस ने उन्हें न्याय आसन के साम्हने से निकलवा दिया। 17. तब सब लोागें ने अराधनालय के सरदार सोस्यिनेस को पकड़ के न्याय आसन के साम्हने मारा: परन्तु गल्लियो ने इन बातोंकी कुछ भी चिन्ता न की।। 18. सो पौलुस बहुत दिन तक वहां रहा, फिर भाइयोंसे विदा होकर किंखि्रया में इसलिथे सिर मुण्डाया क्योंकि उस ने मन्नत मानी यी और जहाज पर सूरिया को चल दिया और उसके साय प्रिस्किल्ला और अक्विला थे। 19. और उस ने इफिसुस में पहुंचकर उन को वहां छोड़ा, और आप ही अराधनालय में जाकर यहूदियोंसे विवाद करने लगा। 20. जब उन्होंने उस से बिनती की, कि हमारे साय और कुछ दिन रह, तो उस ने स्वीकार न किया। 21. परन्तु यह कहकर उन से विदा हुआ, कि यदि परमेश्वर चाहे तो मैं तुम्हारे पास फिर आऊंगा। 22. तब इफिसुस से जहाज खोलकर चल दिया, और कैसरिया में उतर कर (यरूशलेम को) गया और कलीसिया को नमस्कार करके अन्ताकिया में आया। 23. फिर कुछ दिन रहकर वहां से चला गया, और एक ओर से गलतिया और फ्रूगिया में सब चेलोंको स्यिर करता फिरा।। 24. अपुल्लोस नाम एक यहूदी जिस का जन्क़ सिकन्दिरया में हुआ या, जो विद्वान पुरूष या और पवित्र शास्त्र को अच्छी तरह से जानता या इफिसुस में आया। 25. उस ने प्रभु के मार्ग की शिझा पाई यी, और मन लगाकर यीशु के विषय में ठीक ठीक सुनाता, और सिखाता या, परन्तु वह केवल यूहन्ना के बपतिस्क़ा की बात जानता या। 26. वह आराधनालय में निडर होकर बोलने लगा, पर प्रिस्किल्ला और अक्विला उस की बातें सुनकर, उसे अपके यहां ले गए और परमेश्वर का मार्ग उस को और भी ठीक ठीक बताया। 27. और जब उस ने निश्चय किया कि पार उतरकर अखाया को जाए तो भाइयोंने उसे ढाढ़स देकर चेलोंको लिखा कि वे उस से अच्छी तरह मिलें, और उस ने पहुंचकर वहां उन लोगोंकी बड़ी सहाथता की जिन्होंने अनुग्रह के कारण विश्वास किया या। 28. क्योंकि वह पवित्र शास्त्र से प्रमाण दे देकर, कि यीशु ही मसीह है; बड़ी प्रबलता से यहूदियोंको सब के साम्हने निरूत्तर करता रहा।।
Chapter 19
1. और जब अपुल्लोस कुरिन्युस में या, तो पौलुस ऊपर से सारे देश से होकर इफिसुस में आया, और कई चेलोंको देखकर। 2. उन से कहा; क्या तुम ने विश्वास करते समय पवित्र आत्क़ा पाया उन्होंने उस से कहा, हम ने तो पवित्र आत्क़ा की चर्चा भी नहीं सुनी। 3. उस ने उन से कहा; तो फिर तुम ने किस का बपतिस्क़ा लिया उन्होंने कहा; यूहन्ना का बपतिस्क़ा। 4. पौलुस ने कहा; यूहन्ना ने यह कहकर मन फिराव का बपतिस्क़ा दिया, कि जो मेरे बाद आनेवाला है, उस पर अर्यात् यीशु पर विश्वास करना। 5. यह सुनकर उन्होंने प्रभु यीशु के नाम का बपतिस्क़ा लिया। 6. और जब पौलुस ने उन पर हाथ रखे, तो उन पर पवित्र आत्क़ा उतरा, और वे भिन्न भाषा बोलने और भविष्यद्ववाणी करने लगे। 7. थे सब लगभग बारह पुरूष थे।। 8. और वह आराधनालय में जाकर तीन महीने तक निडर होकर बोलता रहा, और परमेश्वर के राज्य के विषय में विवाद करता और समझाता रहा। 9. परन्तु जब कितनोंने कठोर होकर उस की नहीं मानी बरन लोगोंके साम्हने इस मार्ग को बुरा कहने लगे, तो उस ने उन को छोड़कर चेलोंको अलग कर लिया, और प्रति दिन तुरन्नुस की पाठशाला में विवाद किया करता या। 10. दो वर्ष तक यही होता रहा, यहां तक कि आसिया के रहनेवाले क्या यहूदी, क्या यूनानी सब ने प्रभु का वचन सुन लिया। 11. और परमेश्वर पौलुस के हाथोंसे सामर्य के अनोखे काम दिखाता या। 12. यहां तक कि रूमाल और अंगोछे उस की देह से छुलवाकर बीमारोंपर डालते थे, और उन की बीमारियां जाती रहती यी; और दुष्टात्क़ाएं उन में से निकल जाया करती यीं। 13. परन्तु कितने यहूदी जो फाड़ा फूंकी करते फिरते थे, यह करने लगे, कि जिन में दुष्टात्क़ा होंउन पर प्रभु यीशु का नाम यह कहकर फूंके कि जिस यीशु का प्रचार पौलुस करता है, मैं तुम्हें उसी की शपय देता हूं। 14. और स्क्किवा नाम के एक यहूदी महाथाजक के सात पुत्र थे, जो ऐसा ही करते थे। 15. पर दुष्टात्क़ा ने उत्तर दिया, कि यीशु को मैं जानती हूं, और पौलुस को भी पहचानती हूं; परन्तु तुम कौन हो 16. और उस मनुष्य ने जिस में दुष्ट आत्क़ा यी; उन पर लपककर, और उन्हें वश में लाकर, उन पर ऐसा उपद्रव किया, कि वे नंगे और घायल होकर उस घर से निकल भागे। 17. और यह बात इफिसुस के रहनेवाले यहूदी और यूनानी भी सब जान गए, और उन सब पर भय छा गया; और प्रभु यीशु के नाम की बड़ाई हुई। 18. और जिन्होंने विश्वास किया या, उन में से बहुतेरोंने आकर अपके अपके कामोंको मान लिया और प्रगट किया। 19. और जादू करनेवालोंमें से बहुतोंने अपक्की अपक्की पोयियां इकट्ठी करके सब के साम्हने जला दीं; और जब उन का दाम जोड़ा गया, जो पचास हजार रूपके की निकलीं। 20. योंप्रभु का वचन बल पूर्वक फैलता गया और प्रबल होता गया।। 21. जब थे बातें हो चुकीं, तो पौलुस ने आत्क़ा में ठाना कि मकिदुनिया और अखाया से होकर यरूशलेम को जाऊं, और कहा, कि वहां जाने के बाद मुझे रोमा को भी देखना अवश्य है। 22. सो अपक्की सेवा करनेवालोंमें से तीमुयियुस और इरास्तुस को मकिदुनिया में भेजकर आप कुछ दिन आसिया में रह गया। 23. उस समय में पन्य के विषय में बड़ा हुल्लड़ हुआ। 24. क्योंकि देमेत्रियुस नाम का ऐ सुनार अरितमिस के चान्दी के मन्दिर बनवाकर कारीगरोंको बहुत काम दिलाया करता या। 25. उस ने उन को, और, और ऐसी वस्तुओं के कारीगरोंको इकट्ठे करके कहा; हे मनुष्यो, तुम जानते हो, कि इस काम में हमें कितना धन मिलता है। 26. और तुम देखते और सुनते हो, कि केवल इफिसुस ही में नहीं, बरन प्राय: सारे आसिया में यह कह कहकर इस पौलुस ने बहुत लोगोंको समझाया और भरमाया भी है, कि जो हाथ की कारीगरी है, वे ईश्वर नहीं। 27. और अब केवल इसी एक बात का ही डर नहीं, कि हमारे इस धन्धे की प्रतिष्ठा जाती रहेगी; बरन यह कि महान देवी अरितमिस का मन्दिर तुच्छ समझा जाएगा और जिस सारा आसिया और जगत पूजता है उसका महत्व भी जाता रहेगा। 28. वे यह सुनकर क्रोध से भर गए, और चिल्ला चिल्लाकर कहने लगे, ?इिफिसयोंकी अरितमिस महान है! 29. और सारे नगर में बड़ा कोलाहल मच गया और लोगोंने गयुस और अरिस्तरखुस मकिदुनियोंको जो पौलुस के संगी यात्री थे, पकड़ लिया, और एकिचत्त होकर रंगशाला में दौड़ गए। 30. जब पौलुस ने लोगोंके पास भीतर जाना चाहा तो चेलोंने उसे जाने न दिया। 31. आसिया के हाकिमोंमें से भी उसके कई मित्रोंने उसके पास कहला भेजा, और बिनती की, कि रंगशाला में जाकर जोखिम न उठाना। 32. सो कोई कुछ चिल्लाया, और कोई कुछ; क्योंकि सभा में बड़ी गड़बड़ी हो रही यी, और बहुत से लोग तो यह जानते भी नहीं थे कि हम किस लिथे इकट्ठे हुए हैं। 33. तब उन्होंने सिकन्दर को, जिस यहूदियोंने खड़ा किया या, भीड़ में से आगे बढ़ाया, और सिकन्दर हाथ से सैन करके लोगोंके साम्हने उत्तर दिया चाहता या। 34. परन्तु जब उन्होंने जान लिया कि वह यहूदी है, तो सब के सब एक शब्द से कोई दो घंटे तक चिल्लाते रहे, कि इफिसयोंकी अरितमिस महान है। 35. तब नगर के मन्त्री ने लोगोंको शान्त करके कहा; हे इिफिसयों, कौन नहीं जानता, कि इिफिसयोंका नगर बड़ी देवी अरितमिस के मन्दिर, और ज्यूस की ओर से गिरी हुई मूरत का टहलुआ है। 36. सो जब कि इन बातोंका खण्डन ही नहीं हो सकता, तो उचित्त है, कि तुम चुपके रहो; और बिना सोचे विचारे कुछ न करो। 37. क्योंकि तुम इन मनुष्योंको लाए हो, जो न मन्दिर के लूटनेवाले है, और न हमारी देवी के निन्दक हैं। 38. यदि देमेत्रियुस और उसके सायी कारीगरोंको किसी से विवाद हो तो कचहरी खुली है, और हाकिम भी हैं; वे एक दूसरे पर नालिश करें। 39. परन्तु यदि तुम किसी और बात के विषय में कुछ पूछना चाहते हो, तो नियत सभा में फैसला किया जाएगा। 40. क्योंकि आज के बलवे के कारण हम पर दोष लगाए जाने का डर है, इसलिथे कि इस का कोई कारण नहीं, सो हम इस भीड़ के इकट्ठा होने का कोई उत्तर न दे सकेंगे। 41. और यह कह के उस ने सभा को विदा किया।।
Chapter 20
1. जब हुल्लड़ यम गया, तो पौलुस ने चेलोंको बुलवाकर समझाया, और उन से विदा होकर मकिदुनिया की और चल दिया। 2. और उस सारे देश में से होकर और उन्हें बहुत समझाकर, वह यूनान में आया। 3. जब तीन महीने रहकर जहाज पर सूरिया की ओर जाने पर या, तो यहूदी उस की घात में लगे, इसलिथे उस ने यह सलाह की कि मकिदुनिया होकर लोट आए। 4. बिरीया के र्पुरूस का पुत्र सोपत्रुस और यिस्सलूनीकियोंमें से अरिस्तर्खुस और सिकुन्दुस और आसिया का तुखिकुस और त्रुफिमुस आसिया तक उसके साय हो लिए। 5. वे आगे जाकर त्रोआस में हमारी बाट जोहते रहे। 6. और हम अखमीरी रोटी के दिनोंके बाअ फिलिप्पी से जहाज पर चढ़कर पांच दिन में त्रोआस में उन के पास पहुंचे, और सात दिन तक वहीं रहे।। 7. सप्ताह के पहिले दिन जब हम रोटी तोड़ने के लिथे इकट्ठे हुए, तो पौलुस ने जो दूसरे दिन चले जाने पर या, उन से बातें की, और आधी रात तक बातें करता रहा। 8. जिस अटारी पर हम इकट्ठे थे, उस में बहुत दीथे जल रहे थे। 9. और यूतुखुस नाम का एक जवान खिड़की पर बैठा हुआ गहरी नींद से फुक रहा या, और जब पौलुस देर तक बातें करता रहा तो वह नींद के फोके में तीसरी अटारी पर से गिर पड़ा, और मरा हुआ उठाया गया। 10. परन्तु पौलुस उतरकर उस से लिपट गया, और गले लगाकर कहा; घबराओ नहीं; क्योंकि उसका प्राण उसी में है। 11. और ऊपर जाकर रोटी तोड़ी और खाकर इतनी देर तक उन से बातें करता रहा, कि पौ फट गई; फिर वह चला गया। 12. और वे उस लड़के को जीवित ले आए, और बहुत शान्ति पाई।। 13. हम पहिले से जहाज पर चढ़कर अस्सुस को इस विचार से आगे गए, कि वहां से हम पौलुस को चढ़ा लें क्योंकि उस ने यह इसलिथे ठहराया या, कि आप ही पैदल जानेवाला या। 14. जब वह अस्सुस में हमें मिला तो हम उसे चढ़ाकर मितुलेने में आए। 15. और वहां से जहाज खोलकर हम दूसरे दिन खियुस के साम्हने पहुंचे, और अगले दिन सामुस में लगान किया, फिर दूसरे दिन मीलेतुस में आए। 16. क्योंकि पौलुस ने इफिसुस के पास से होकर जाने की ठानी यी, कि कहीं ऐसा न हो, कि उसे आसिया में देर लगे; क्योंकि वह जल्दी करता या, कि यदि हो सके, तो उसे पिन्तेकुस का दिन यरूशलेम में कटे।। 17. और उस ने मीलेतुस से इफिसुस में कहला भेजा, और कलीसिया के प्राचीनोंको बुलवाया। 18. जब वे उस के पास आए, तो उन से कहा, तुम जानते हो, कि पहिले ही दिन से जब मैं आसिया में पहुंचा, मैं हर समय तुम्हारे साय किस प्रकार रहा। 19. अर्यात् बड़ी दीनता से, और आंसू बहा बहाकर, और उन पक्कीझाओं में जो यहूदियोंके षडयन्त्र के कारण मुझ पर आ पड़ी; मैं प्रभु की सेवा करता ही रहा। 20. और जो जो बातें तुम्हारे लाभ की यीं, उन को बताने और लोगोंके साम्हने और घर घर सिखाने से कभी न फिफका। 21. बरन यहूदियोंऔर यूनानियोंके साम्हने गवाही देता रहा, कि परमेश्वर की ओर मन फिराना, और हमारे प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करना चाहिए। 22. और अब देखो, मैं आत्क़ा में बन्धा हुआ यरूशलेम को जाता हूं, और नहीं जानता, कि वहां मुझ पर क्या क्या बीतेगा 23. केवल यह कि पवित्र आत्क़ा हर नगर में गवाही दे देकर मुझ से कहता है, कि बन्धन और क्लेश तेरे लिथे तैयार है। 24. परन्तु मैं अपके प्राण को कुछ नहीं समझता: कि उसे प्रिय जानूं, बरन यह कि मैं अपक्की दौड़ को, और उस सेवाकाई को पूरी करूं, जो मैं ने परमेश्वर के अनुग्रह के सुसमाचार पर गवाही देने के लिथे प्रभु यीशु से पाई है। 25. और अब देखो, मैं जानता हूं, कि तुम सब जिन से मैं परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता फिरा, मेरा मुंह फिर न देखोगे। 26. इसलिथे मैं आज के दिन तुम से गवाही देकर कहता हूं, कि मैं सब के लोहू से निर्दोष हूं। 27. क्योंकि मैं परमेश्वर की सारी मनसा को तुम्हें पूरी रीति से बनाने से न फिफका। 28. इसलिथे अपक्की और पूरे फुंड की चौकसी करो; जिस से पवित्र आत्क़ा ने तुम्हें अध्यझ ठहराया है; कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उस ने अपके लोहू से मोल लिया है। 29. मैं जानता हूं, कि मेरे जाने के बाद फाड़नेवाले भेडिए तुम में आएंगे, जो फुंड को न छोड़ेंगे। 30. तुम्हारे ही बीच में से भी ऐसे ऐसे मनुष्य उठेंगे, जो चेलोंको अपके पीछे खींच लेने को टेढ़ी मेढ़ी बातें कहेंगे। 31. इसलिथे जागते रहो; और स्क़रण करो; कि मैं ने तीन वर्ष तक रात दिन आंसू बहा बहाकर, हर एक को चितौनी देना न छोड़ा। 32. और अब मैं तुम्हें परमेश्वर को, और उसके अनुग्रह के वचन को सौंप देता हूं; जो तुम्हारी उन्नति कर सकता है, ओश्र् सब पवित्रोंमें साफी करके मीरास दे सकता है। 33. मैं ने किसी की चान्दी सोने या कपके का लालच नहीं किया। 34. तुम आप ही जानते हो कि इन्हीं हाथोंने मेरी और मेरे सायियोंकी आवश्यकताएं पूरी कीं। 35. मैं ने तुम्हें सब कुछ करके दिखाया, कि इस रीति से परिश्र्म करते हुए निर्बलोंको सम्भालना, और प्रभु यीशु की बातें स्क़रण रखना अवश्य है, कि उस ने आप ही कहा है; कि लेने से देना धन्य है।। 36. यह कहकर उस ने घुटने टेके और उन सब के साय प्रार्यना की। 37. तब वे सब बहुत रोए और पौलुस के गले में लिपट कर उसे चूमने लगे। 38. वे विशेष करके इस बात का शोक करते थे, जो उस ने कही यी, कि तुम मेरा मुंह फिर न देखोगे; और उन्होंने उसे जहाज तक पहुंचाया।।
Chapter 21
1. जब हम ने उन से अलग होकर जहाज खोला, तो सीधे मार्ग से कोस में आए, और दूसरे दिन रूदुस में, ओर वहां से पतरा में। 2. और एक जहाज फीनीके को जाता हुआ मिला, और उस पर चढ़कर, उसे खोल दिया। 3. जब कुप्रुस दिखाई दिया, जो हम ने उसे बाऐं हाथ छोड़ा, और सूरिया को चलकर सून में उतरे; क्योंकि वहां जहाज का बोफ उतारना या। 4. और चेलोंको पाकर हम वहां सात दिन तक रहे: उन्होंने आत्क़ा के सिखाए पौलुस से कहा, कि यरूशलेम में पांव न रखना। 5. जब वे दिन पूरे हो गए, तो हम वहां से चल दिए; ओर सब स्त्रियोंऔर बालकोंसमेत हमें नगर के बाहर तक पहुंचाया और हम ने किनारे पर घुटने टेककर प्रार्यना की। 6. तब एक दूसरे से विदा होकर, हम तो जहाज पर चढ़े, और वे अपके अपके घर लौट गए।। 7. जब हम सूर से जलयात्रा पूरी करके पतुलिमयिस में पहुंचे, और भाइयोंको नमस्कार करके उन के साय एक दिन रहे। 8. दूसरे दिन हम वहां से चलकर कैसरिया में आए, और फिलप्पुस सुसमाचार प्रचारक के घर में जो सातोंमें से एक या, जाकर उसके यहां रहे। 9. उस की चार कुंवारी पुत्रियां यीं; जो भविष्यद्वाणी करती यीं। 10. जब हम वहां बहुत दिन रह चुके, तो अगबुस नाम एक भविष्यद्वक्ता यहूदिया से आया। 11. उस ने हमारे पास आकर पौलुस का पटका लिया, और अपके हाथ पांव बान्धकर कहा; पवित्र आत्क़ा यह कहता है, कि जिस मनुष्य का यह पटका है, उस को यरूशलेम में यहूदी इसी रीति से बान्धेंगे, और अन्यजातियोंके हाथ में सौंपेंगे। 12. जब थे बातें सुनी, तो हम और वहां के लोगोंने उस से बिनती की, कि यरूशलेम को न जाए। 13. परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, कि तुम क्या करते हो, कि रो रोकर मेरा मन तोड़ते हो, मैं तो प्रभु यीशु के नाम के लिथे यरूशलेम में न केवल बान्धे जाने ही के लिथे बरन मरने के लिथे भी तैयार हूं। 14. जब उन से न माना तो हम यह कहकर चुप हो गए; कि प्रभु की इच्छा पूरी हो।। 15. उन दिनोंके बाद हम बान्ध छान्ध कर यरूशलेम को चल दिए। 16. कैसरिया के भी कितने चेले हमारे साय हो लिए, और मनासोन नाम कुप्रुस के एक पुराने चेले को साय ले आए, कि हम उसके यहां टिकें।। 17. जब हम यरूशलेम में पहुंचे, तो भाई बड़े आनन्द के साय हम से मिले। 18. दूसरे दिन पौलुस हमें लेकर याकूब के पास गया, जहां सब प्राचीन इकट्ठे थे। 19. तब उस ने उन्हें नमस्कार करके, जो जो काम परमेश्वर ने उस की सेवकाई के द्वारा अन्यजातियोंमें किए थे, एक एक करके सब बताया। 20. उन्होंने यह सुनकर परमेश्वर की महिमा की, फिर उस से कहा; हे भाई, तू देखता है, कि यहूदियोंमें से कई हजार ने विश्वास किया है; और सब व्यवस्या के लिथे धुन लगाए हैं। 21. औश्र् उन को तेरे विषय में सिखाया गया है, कि तू अन्यजातियोंमें रहनेवाले यहूदियोंको मूसा से फिर जाने को सिखाया है, और कहता है, कि न अपके बच्चोंका खतना कराओ ओर न रीतियोंपर चलो: सो क्या किया जाए 22. लोग अवश्य सुनेंगे, कि तू आया है। 23. इसलिथे जो हम तुझ से कहते हैं, वह कर: हमारे यहां चार मनुष्य हैं, जिन्होंने मन्नत मानी है। 24. उन्हें लेकर उस के साय अपके आप को शुद्ध कर; और उन के लिथे खर्चा दे, कि वे सिर मुड़ाएं: तब सब जान लेगें, कि जो बातें उन्हें तेरे विषय में सिखाई गईं, उन की कुछ जड़ नहीं है परन्तु तू आप भी व्यवस्या को मानकर उसके अनुसार चलता है। 25. परन्तु उन अन्यजातियोंके विषय में जिन्होंने विश्वास किया है, हम ने यह निर्णय करके लिख भेजा है कि वे मरतोंके साम्हने बलि किए हुए मांस से, और लोहू से, और गला घोंटे हुओं के मांस से, और व्यभिचार से, बचे रहें। 26. तब पौलुस उन मनुष्योंको लेकर, और दूसरे दिन उन के साय शुद्ध होकर मन्दिर में गया, और बता दिया, कि शुद्ध होने के दिन, अर्यात् उन में से हर एक के लिथे चढ़ावा चढ़ाए जाने तक के दिन कब पूरे होंगे।। 27. जब वे सात दिन पूरे होने पर थे, तो आसिया के यहूदियोंने पौलुस को मन्दिर में देखकर सब लोगोंको उसकाया, और योंचिल्लाकर उस को पकड़ लिया। 28. कि हे इस्त्राएलियों, सहाथता करो; यह वही मनुष्य है, जो लोगोंके, और व्यवस्या के, और इस स्यान के विरोध में हर जगह सब लोगोंको सिखाता है, यहां तक कि युनानियोंको भी मन्दिर में लाकर उस ने इस पवित्र स्यान को अपवित्र किया है। 29. उन्होंने तो इस से पहिले त्रुफिमुस इफिसी को उसके साय नगर में देखा या, और समझते थे, कि पौलुस उसे मन्दिर में ले आया है। 30. तब सारे नगर में कोलाहल मच गया, और लोग दौड़कर इकट्ठे हुए, और पौलुस को पकड़कर मन्दिर के बाहर घसीट लाए, और तुरन्त द्वार बन्द किए गए। 31. जब वे उसके मार डालता चाहते थे, तो पलटन के सारदार को सन्देश पहुंचा कि सारे यरूशलेम में कोलाहल मच रहा है। 32. तब वह तुरन्त सिपाहियोंऔर सूबेदारोंको लेकर उन के पास नीचे दौड़ आया; और उन्होंने पलटन के सरदार को और सिपाहियोंको देख कर पौलुस को मारने पीटने से हाथ उठाया। 33. तब पलटन के सरदार ने पास आकर उसे पकड़ लिया; और दो जंजीरोंसे बान्धने की आज्ञा देकर पूछने लगा, यह कौन है, और इस ने क्या किया है 34. परन्तु भीड़ में से कोई कुछ और कोई कुछ चिल्लाते रहे और जब हुल्लड़ के मारे ठीक सच्चाई न जान सका, तो उसे गढ़ में ले जाने की आज्ञा दी। 35. जब वह सीढ़ी पर पहुंचा, तो ऐसा हुआ, कि भीड़ के दबाव के मारे सिपाहिथें को उसे उठाकर ले जाना पड़ा। 36. क्योंकि लोगोंकी भीड़ यह चिल्लाती हुई उसके पीछे पड़ी, कि उसका अन्त कर दो।। 37. जब वे पौलुस को गढ़ में ले जाने पर थे, तो उस ने पलटन के सरदार से कहा; क्या मुझे आज्ञा है कि मैं तुझ से कुछ कहूं उस ने कहा; क्या तू यूनानी जानता है 38. क्या तू वह मिसरी नहीं, जो इन दिनोंसे पहिले बलवाई बनाकर चार हजार कटारबन्द लोगोंको जंगल में ले गया 39. पौलुस ने कहा, मैं तो तरसुस का यहूदी मनुष्य हूं! किलिकिया के प्रसिद्ध नगर का निवासी हूं: और मैं तुझ से बिनती करता हूं, कि मुझे लोगोंसे बातें करने दे। 40. जब उस ने आज्ञा दी, तो पौलुस ने सीढ़ी पर खड़े होकर लोगोंको हाथ से सैन किया: जब वे चुप हो गए, तो वह इब्रानी भाषा में बोलने लगा, कि,
Chapter 22
1. हे भाइयों, और पितरो, मेरा प्रत्युत्तर सुनो, जो मैं अब तुम्हारे साम्हने कहता हूं।। 2. वे यह सुनकर कि वह हम से इब्रानी भाषा में बोलता है, और भी चुप रहे। तब उस ने कहा; 3. मैं तो यहूदी मनुष्य हूं, जो किलिकिया के तरसुस में जन्क़ा; परन्तु इस नगर में गमलीएल के पांवोंके पास बैठकर पढ़ाया गया, और बापदादोंकी व्यवस्या की ठीक रीति पर सिखाया गया; और परमेश्वर के लिथे ऐसी धुन लगाए या, जैसे तुम सब आज लगाए हो। 4. और मैं ने पुरूष और स्त्री दोनोंको बान्ध बान्धकर, और बन्दीगृह में डाल डालकर, इस पंय को यहां तक सताया, कि उन्हें मरवा भी डाला। 5. इस बात के लिथे महाथाजक और सब पुरिनथे गवाह हैं; कि उन में से मैं भाइयोंके नाम पर चिट्ठियां लेकर दिमश्क को चला जा रहा या, कि जो वहां होंउन्हें भी दण्ड दिलाने के लिथे बान्धकर यरूशलेम में लाऊं। 6. जब मैं चलते चलते दिमश्क के निकट पहुंचा, तो ऐसा हुआ कि दो पहर के लगभग एकाएक एक बड़ी ज्योति आकाश से मेरे चारोंओर चमकी। 7. और मैं भूमि पर गिर पड़ा: और यह शब्द सुना, कि हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्योंसताता है मैं ने उत्तर दिया, कि हे प्रभु, तू कौन है 8. उस ने मुझ से कहा; मैं यीशु नासरी हूं, जिस तू सताता है 9. और मेरे सायियोंने ज्योति तो देखी, परन्तु जो मुझ से बोलता या उसका शब्द न सुना। 10. तब मै। ने कहा; हे प्रभु मैं क्या करूं प्रभु ने मुझ से कहा; उठकर दिमश्क में जा, और जो कुद तेरे करने के लिथे ठहराया गया है वहां तुझ से सब कह दिया जाएगा। 11. जब उस ज्योति के तेज के मारे मुझे कुछ दिखाई न दिया, तो मैं अपके सायियोंके हाथ पकड़े हुए दिमश्क में आया। 12. और हनन्याह नाम का व्यवस्या के अनुसार एक भक्त मनुष्य, जो वहां के रहनेवाले सब यहूदियोंमें सुनाम या, मेरे पास आया। 13. और खड़ा होकर मुझ से कहा; हे भाई शाऊल फिर देखने लग: उसी घड़ी मेरे नेत्र खुल गए और मैं ने उसे देखा। 14. तब उस ने कहा; हमारे बापदादोंके परमेश्वर ने तुझे इसलिथे ठहराया है, कि तू उस की इच्छा को जाने, और उस धर्मी को देखे, और उसके मुंह से बातें सुने। 15. क्योंकि तू उस की ओर से सब मनुष्योंके साम्हने उन बातोंका गवाह होगा, जो तू ने देखी और सुनी हैं। 16. अब क्योंदेर करता है उठ, बपतिस्क़ा ले, और उसका नाम लेकर अपके पापोंको धो डाल। 17. जब मैं फिर यरूशलेम में आकर मन्दिर में प्रार्यना कर रहा या, तो बेसुध हो गया। 18. और उस ने देखा कि मुझ से कहता है; जल्दी करके यरूशलेम से फट निकल जा: क्योंकि वे मेरे विषय में तेरी गवाही न मानेंगे। 19. मैं ने कहा; हे प्रभु वे तो आप जानते हैं, कि मैं तुझ पर विश्वास करनेवालोंको बन्दीगृह में डालता और जगह जगह आराधनालय में पिटवाता या। 20. और जब तेरे गवाह स्तिफनुस का लोहू बहाथा जा रहा या तब मैं भी वहां खड़ा या, और इस बात में सहमत या, और उसके घातकोंके कपड़ोंकी रखवाली करता या। 21. और उस ने मुझ से कहा, चला जा: क्योंकि मैं तुझे अन्यजातियोंके पास दूर दूर भेजूंगा।। 22. वे इस बात तक उस की सुनते रहे; तब ऊंचे शब्द से चिल्लाए, कि ऐसे मनुष्य का अन्त करो; उसका जीवित रहता उचित नहीं। 23. जब वे चिल्लाते और कपके फेंकते और आकाश में धूल उड़ाते थे; 24. तो पलटन के सूबेदार ने कहा; कि इसे गढ़ में ले जाओ; और कोड़े मारकर जांचो, कि मैं जानूं कि लोग किस कारण उसके विरोध में ऐसा चिल्ला रहे हैं। 25. जब उन्होंने उसे तसमोंसे बान्धा तो पौलुस ने उस सूबेदार से जो पास खड़ा या कहा, क्या यह उचित है, कि तुम एक रोमी मनुष्य को, और वह भी बिना दोषी ठहराए हुए कोड़े मारो 26. सूबेदार ने यह सुनकर पलटन के सरदार के पास जाकर कहा; तू यह क्या करता है यह तो रामी है। 27. तब पलटन के सरदार ने उसके पास आकर कहा; मुझे बता, क्या तू रोमी है उस ने कहा, हां। 28. यह सुनकर पलटन के सरदार ने कहा; कि मैं ने रोमी होने का पद बहुत रूपके देकर पाया है: पौलुस ने कहा, मैं तो जन्क़ से रोमी हूं। 29. तब जो लोग उसे जांचने पर थे, वे तुरन्त उसके पास से हट गए; और पलटन का सरदार भी यह जानकर कि यह रोमी है, और मैं ने उसे बान्धा है, डर गया।। 30. दूसरे दिन वह ठीक ठीक जानने की इच्छा से कि यहूदी उस पर क्योंदोष लगाते हैं, उसके बन्धन खोल दिए; और महाथाजकोंऔर सारी महासभा को इकट्ठे होने की आज्ञा दी, और पौलुस को नीचे ले जाकर उन के साम्हने खड़ा कर दिया।।
Chapter 23
1. पौलुस ने महासभा की ओर टकटकी लगाकर देखा, और कहा, हे भाइयों, मैं ने आज तक परमेश्वर के लिथे बिलकुल सच्चे विवेक से जीवन बिताया। 2. हनन्याह महाथाजक ने, उन की जो उसके पास खड़े थे, उसके मूंह पर यप्पड़ मारने की आज्ञा दी। 3. तब पौलुस ने उस से कहा; हे चूना फिरी हुई भीत, परमेश्वर तुझे मारेगा: तू व्यवस्या के अनुसार मेरा न्याय करने को बैठा है, और फिर क्या व्यवस्या के विरूद्ध मुझे मारने की आज्ञा देता है 4. जो पास खड़े थे, उन्होंने कहा, क्या तू परमेश्वर के महाथाजक को बुरा कहता है 5. पौलुस ने कहा; हे भाइयों, मैं नहीं जानता या, कि यह महाथाजक है; क्योंकि लिखा है, कि अपके लोगोंके प्रधान को बुरा न कह। 6. तब पौलुस ने यह जानकर, कि कितने सदूकी और कितने फरीसी हैं, सभा में पुकारकर कहा, हे भाइयों, मैं फरीसी और फरीसियोंके वंश का हूं, मरे हुओं ही आशा और पुनरूत्यान के विषय में मेरा मुकद्दमा हो रहा है। 7. जब उस ने यह बात कही तो फरीसियोंऔर सदूकियोंमें फगड़ा होने लगा; और सभा में फूट पड़ गई। 8. क्योंकि सदूकी तो यह कहते हैं, कि न पुनरूत्यान है, न स्वर्गदूत और न आत्क़ा है; परन्तु फरीसी दोनोंको मानते हैं। 9. तब बड़ा हल्ला मचा और कितने शास्त्री जो फरीसियोंके दल के थे, उठकर योंकहकर फगड़ने लगे, कि हम इस मनुष्य में कुछ बुराई नहीं पाते; और यदि कोई आत्क़ा या स्वर्गदूत उस से बोला है तो फिर क्या 10. जब बहुत फगड़ा हुआ, तो पलटन के सरदार ने इस डर से कि वे पौलुस के टुकड़े टुकड़े न कर डालें पलटन को आज्ञा दी, कि उतरकर उस को उन के बीच में से बरबस निकालो, और गढ़ में ले आओ। 11. उसी रात प्रभु ने उसके पास आ खड़े होकर कहा; हे पौलुस, ढ़ाढ़स बान्ध; क्योंकि जैसी तू ने यरूशलेम में मेरी गवाही दी, वैसी ही तुझे रोम में भी गवाही देनी होगी।। 12. जब दिन हुआ, तो यहूदियोंने एका किया, और शपय खाई कि जब तक हम पौलुस को मान न डालें, तब तक खांए या पीएं तो हम पर धिक्कारने। 13. जिन्होंने आपस में यह शपय खाई यी, वे चालीस जनोंके ऊपर थे। 14. उन्होंने महाथाजकोंऔर पुरिनयोंके पास आकर कहा, हम ने यह ठाना है; कि जब तक हम पौलुस को मार न डालें, तब तक यदि कुछ चखें भी, तो हम पर धिक्कारने पर धिक्कारने है। 15. इसलिथे अब महासभा समेत पलटन के सरदार को समझाओ, कि उसे तुम्हारे पास ले आए, मानो कि तुम उसके विषय में और भी ठीक जांच करना चाहते हो, और हम उसके पहुंचने से पहिले ही उसे मार डालने के लिथे तैयार रहेंगे। 16. और पौलुस के भांजे न सुना, कि वे उस की घात में हैं, तो गढ़ में जाकर पौलुस को सन्देश दिया। 17. पौलुस ने सूबेदारोंमें से एक को अपके पास बुलाकर कहा; इस जवान को पलटन के सरदार के पास ले जाओ, यह उस से कुछ कहना चाहता है। 18. सो उस ने उसको पलटन के सरदार के पास ले जाकर कहा; पौलुस बन्धुए ने मुझे बुलाकर बिनती की, कि यह जवान पलटन के सरदार से कुछ कहना चाहता है; उसे उसके पास ले जा। 19. पलटन के सरदार ने उसका हाथ पकड़कर, और अलग ले जाकर पूछा; मुझ से क्या कहना चाहता है 20. उस ने कहा; यहूदियोंने एकसा किया है, कि तुझ से बिनती करें, कि कल पौलुस को महासभा में लाए, मानो तू और ठीक से उस की जांच करना चाहता है। 21. परन्तु उन की मत मानना, क्योंकि उन में से चालीस के ऊपर मनुष्य उस की घात में हैं, जिन्होंने यह ठान लिया है, कि जब तक हम पौलुस को मान न डालें, तब तक खाएं, पीएं, तो हम पर धिक्कारने; और अभी वे तैयार हैं और तेरे वचन की आस देख रहे हैं। 22. तब पलटन के सरदार ने जवान को यह आज्ञा देकर विदा किया, कि किसी से न कहना कि तू ने मुझ को थे बातें बताई हैं। 23. और दो सूबेदारोंको बुलाकर कहा; दो सौ सिपाही, सत्तर सवार, और दो सौ भालैत, पहर रात बीते कैसरिया को जाने के लिथे तैयार कर रखो। 24. और पौलुस की सवारी के लिथे घोड़े तैयार रखो कि उसे फेलिक्स हाकिम के पास कुशल से पहुंचा दें। 25. उस ने इस प्रकार की चिट्ठी भी लिखी; 26. महाप्रतापी फेलिक्स हाकिम को क्लौदियुस लूसियास को नमस्कार; 27. इस मनुष्य को यहूदियोंने पकड़कर मार डालता चाहा, परन्तु जब मैं ने जाना कि रोमी है, तो पलटन लेकर छुड़ा लाया। 28. और मैं जानना चाहता या, कि वे उस पर किस कारण दोष लगाते हैं, इसलिथे उसे उन की महासभा में ले गया। 29. तब मैं ने जान लिया, कि वे अपक्की व्यवस्या के विवादोंके विषय में उस पर दोष लगाते हैं, परन्तु मार डाले जाने या बान्धे जाने के योग्य उस में कोई दोष नहीं। 30. और जब मुझे बताया गया, कि वे इस मनुष्य की घात में लगे हैं तो मैं ने तुरन्त उस को तेरे पास भेज दिया; और मुद्दइयोंको भी आज्ञा दी, कि तेरे साम्हने उस पर नालिश करें।। 31. सो जैसे सिपाहियोंको आज्ञा दी गई यी वैसे ही पौलुस को लेकर रातों-रात अन्तिपत्रिस में लाए। 32. दूसरे दिन वे सवारोंको उसके साय जाने के लिथे छोड़कर आप गढ़ को लौटे। 33. उन्होंने कैसरिया में पहुंचकर हाकिम को चिट्ठी दी: और पौलुस को भी उसके साम्हने खड़ा किया। 34. उस ने पढ़कर पूछा यह किस देश का है 35. और जब जान लिया कि किलकिया का है; तो उस से कहा; जब तेरे मुद्दई भी आएगें, तो मैं तेरा मुकद्दमा करूंगा: और उस ने उसे हेरोदेस के किले में, पहरे में रखने की आज्ञा दी।।
Chapter 24
1. पांच दिन के बाद हनन्याह महाथाजक कई पुरिनयोंऔर तिरतुल्लुस नाम किसी वकील को साय लेकर आया; उन्होंने हाकिम के साम्हने पौलुस पर नालिश की। 2. जब वह बुलाया गया तो तिरतुल्लुस उन पर दोष लगाकर कहने लगा, कि, हे महाप्रतापी फेलिक्स, तेरे द्वारा हमें जो बड़ा कुशल होता है; और तेरे प्रबन्ध से इस जाति के लिथे कितनी बुराइयां सुधरती जाती हैं। 3. इस को हम हर जगह और हर प्रकार से धन्यवाद के साय मानते हैं। 4. परन्तु इसलिथे कि तुझे और दुख नहीं देना चाहता, मैं तुझ से बिनती करता हूं, कि कृपा करके हमारी दो एक बातें सुन ले। 5. क्योंकि हम ने इस मनुष्य को उपद्रवी और जगत के सारे यहूदियोंमें बलवा करानेवाला, और नासरियोंके कुपन्य का मुखिया पाया है। 6. उस ने मन्दिर को अशुद्ध करना चाहा, और हम ने उसे पकड़ा। 7. इन सब बातोंको जिन के विषय में हम उस पर दोष लगाते हैं, तू आपक्की उस को जांच करके जान लेगा। 8. यहूदियोंने भी उसका साय देकर कहा, थे बातें इसी प्रकार की हैं।। 9. जब हाकिम ने पौलुस को बोलने के लिथे सैन किया तो उस ने उत्तर दिया, मैं यह जानकर कि तू बहुत वर्षोंसे इस जाति का न्याय करता है, आनन्द से अपना प्रत्युत्तर देता हूं। 10. तू आप जान सकता है, कि जब से मैं यरूशलेम में भजन करने को आया, मुझे बारह दिन से ऊपर नहीं हुए। 11. और उन्होंने मुझे न मन्दिर में न सभा के घरोंमें, न नगर में किसी से विवाद करते या भीड़ लगाते पाया। 12. और न तो वे उन बातोंको, जिन का वे अब मुझ पर दोष लगाते हैं, तेरे साम्हने सच ठहरा सकते हैं। 13. परन्तु यह मैं तेरे साम्हने सच ठहरा सकते हैं। 14. परन्तु यह मैं तेरे साम्हने मान लेता हूं, कि जिस पन्य को वे कुपन्य कहते हैं, उसी की रीति पर मैं अपके बापदादोंके परमेश्वर की सेवा करता हूं: और जो बातें व्यवस्या और भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकोंमें लिखी है, उन सब की प्रतीति करता हूं। 15. और परमेश्वर से आशा रखता हूं जो वे आप भी रखते हैं, कि धर्मी और अधर्मी दोनोंका जी उठना होगा। 16. इस से मैं आप भी यतन करता हूं, कि परमेश्वर की, और मनुष्योंकी ओर मेरा विवेक सदा निर्दोष रहे। 17. बहुत वर्षोंके बाद मैं अपके लोगोंको दान पहुंचाने, और भेंट चढ़ाने आया या। 18. उन्होंने मुझे मन्दिर में, शुद्ध दशा में बिना भीड़ के साय, और बिना दंगा करते हुए इस काम में पाया - हां आसिया के कई यहूदी थे - उन को उचित या, 19. कि यदि मेरे विरोध में उन की कोई बात हो तो यहां तेरे साम्हने आकर मुझ पर दोष लगाते। 20. या थे आप ही कहें, कि जब मैं महासभा के साम्हने खड़ा या, तो उन्होंने मुझ से कौन सा अपराध पाया 21. इस एक बात को छोड़ जो मैं ने उन के बीच में खड़े होकर पुकारकर कहा या, कि मरे हुओं के जी उठने के विषय में आज मेरा तुम्हारे साम्हने मुकद्दमा हो रहा है।। 22. फेलिक्स ने जो इस पन्य की बातें ठीक ठीक जानता या, उन्हें यह कहकर टाल दिया, कि जब पलटन का सरदार लूसियास आएगा, तो तुम्हारी बात का निर्णय करूंगा। 23. और सूबेदार को आज्ञा दी, कि पौलुस को सुख से रखकर रखवाली करना, और उसके मित्रोंमें से किसी को भी उस की सेवा करने से न रोकना।। 24. कितने दिनोंके बाद फेलिक्स अपक्की पत्नी द्रुसिल्ला को, जो यहूदिनी यी, साय लेकर आया; और पौलुस को बुलवाकर उस विश्वास के विषय में जे मसीह यीशु पर है, उस से सुना। 25. और जब वह धर्म और संयम और आनेवाले न्याय की चर्चा करता या, तो फेलिक्स ने भयमान होकर उत्तर दिया, कि अभी तो जा: अवसर पाकर मैं तुझे फिर बुलाऊंगा। 26. उसे पौलुस से कुछ रूपके मिलने की भी आस यी; इसलिथे और भी बुला बुलाकर उस से बातें किया करता या। 27. परन्तु जब दो वर्ष बीत गए, तो पुरिकयुस फेस्तुस फेलिक्स की जगह पर आया, और फेलिक्स यहूदियोंको खुश करने की इच्छा से पौलुस को बन्धुआ छोड़ गया।।
Chapter 25
1. फेस्तुस उन प्रान्त में पहुंचकर तीन दिन के बार कैसरिया से यरूशलेम को गया। 2. तब महाथाजकोंने, और यहूदियोंके बड़े लोगोंने, उसके साम्हने पौलुस की नालिश की। 3. और उसे से बिनती करके उसके विरोध में यह बर चाहा, कि वह उसे यरूशलेम में बुलवाए, क्योंकि वे उसे रास्ते ही में मार डालने की घात लगाए हुए थे। 4. फेस्तुस ने उत्तर दिया, कि पौलुस कैसरिया में पहरे में है, और मैं आप जल्द वहां आऊंगा। 5. फिर कहा, तुम से जो अधिक्कारने रखते हैं, वे साय चलें, और यदि इस मनुष्य ने कुछ अनुचित काम किया है, तो उस पर दोष लगाएं।। 6. और उन के बीच कोई आठ दस दिन रहकर वह कैसरिया गया: और दूसरे दिन न्याय आसन पर बैठकर पौलुस के लाने की आज्ञा दी। 7. जब वह आया, तो जो यहूदी यरूशलेम से आए थे, उन्होंने आस पास खड़े होकर उस पर बहुतेरे भारी दोष लगाए, जिन का प्रमाण वे नहीं दे सकते थे। 8. परन्तु पौलुस ने उत्तर दिया, कि मैं ने न तो यहूदियोंकी व्यवस्या का और न मन्दिर का, और न कैसर का कुछ अपराध किया है। 9. तब फेस्तुस ने यहूदियोंको खुश करने की इच्छा से पौलुस को उत्तर दिया, क्या तू चाहता है कि यरूशलेम को जाए; और वहां मेरे साम्हने तेरा यह मुकद्दमा तय किया जाए 10. पौलुस ने कहा; मैं कैसर के न्याय आसन के साम्हने खड़ा हूं: मेरे मुकद्दमें का यहीं फैसला होना चाहिए: जैसा तू अच्छी तरह जानता है, यहूदियोंका मैं ने कुछ अपराध नहीं किया। 11. यदि अपराधी हूं और मार डाले जाने योग्य कोई काम किया है; तो मरने से नहीं मुकरता; परन्तु जिन बातोंका थे मुझ पर दोष लगाते हैं, यदि उन में से कोई बात सच न ठहरे, तो कोई मुझे उन के हाथ नहीं सौंप सकता: मैं कैसर की दोहाई देता हूं। 12. तब फेस्तुस ने मन्त्रियोंकी सभा के साय बातें करके उत्तर दिया, तू ने कैसर की दोहाई दी है, तू कैसर के पास जाएगा।। 13. और कुछ दिन बीतने के बाद अग्रिप्पा राजा और बिरनीके ने कैसरिया में आकर फेस्तुस से भेंट की। 14. और उन के बहुत दिन वहां रहने के बाद फेस्तुस ने पौलुस की कया राजा को बताई; कि एक मनुष्य है, जिसे फेलिक्स बन्धुआ छोड़ गया है। 15. जब मैं यरूशलेम में या, तो महाथाजक और यहूदियोंके पुरिनयोंने उस की नालिश की; और चाहा, कि उस पर दण्ड की आज्ञा दी जाए। 16. परन्तु मैं ने उन को उत्तर दिया, कि रोमियोंकी यह रीति नहीं, कि किसी मनुष्य को दण्ड के लिथे सौंप दें, जब तक मुद्दाअलैह को अपके मुद्दइयोंके आमने सामने खड़े होकर दोष के उत्तर देने का अवसर न मिले। 17. सो जब वे यहां इकट्ठे हुए, तो मैं ने कुछ देर न की, परन्तु दूसरे ही दिन न्याय आसन पर बैठकर, उस मनुष्य को लाने की आज्ञा दी। 18. जब उसके मुद्दई खड़े हुए, तो उन्होंने ऐसी बुरी बातोंका दोष नहीं लगाया, जैसा मैं समझता या। 19. परन्तु अपके मत के, और यीशु नाम किसी मनुष्य के विषय में जो मर गया या, और पौलुस उस को जीवित बताता या, विवाद करते थे। 20. और मैं उलफन में या, कि इन बातोंका पता कैसे लगाऊं इसलिथे मैं ने उस से पूछा, क्या तू यरूशलेम जाएगा, कि वहां इन बातोंका फैसला हो 21. परन्तु जब पौलुस ने दोहाई दी, कि मेरे मुकद्दमें का फैसला महाराजाधिराज के यहां हो; तो मैं ने आज्ञा दी, कि जब तक उसे कैसर के पास न भेजूं, उस की रखवाली की जाए। 22. तब अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, मैं भी उस मनुष्य की सुनना चाहता हूं: उस ने कहा, तू कल सुन लेगा।। 23. सो दूसरे दिन, जब अग्रिप्पा और बिरनीके बड़ी धूमधाम से आकर पलटन के सरदारोंऔर नगर के बड़े लोगोंके साय दरबार में पहुंचे, तो फेस्तुस ने आज्ञा दी, कि वे पौलुस को ले आएं। 24. फेस्तुस ने कहा; हे महाराजा अग्रिप्पा, और हे सब मनुष्योंजो यहां हमारे साय हो, तुम इस मनुष्य को देखते हो, जिस के विषय में सारे यहूदियोंने यरूशलेम में और यहां भी चिल्ला चिल्लाकर मुझ से बिनती की, कि इस का जीवित रहना उचित नहीं। 25. परन्तु मैं ने जान लिया, कि उस ने ऐसा कुछ नहीं किया कि मार डाला जाए; और जब कि उस ने आप ही महाराजाधिराज की दोहाई दी, तो मैं ने उसे भेजने का उपाय निकाला। 26. परन्तु मैं ने उसके विषय में कोई ठीक बात नहीं पाई कि अपके स्वामी के पास लिखूं, इसलिथे मैं उसे तुम्हारे साम्हने और विशेष करके हे महाराजा अग्रिप्पा तेरे साम्हने लाया हूं, कि जांचने के बाद मुझे कुछ लिखने को मिले। 27. क्योंकि बन्धुए को भेजना और जो दोष उस पर लगाए गए, उन्हें न बताना, मुझे व्यर्य समझ पड़ता है।।
Chapter 26
1. अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा; तुझे अपके विषय में बोलने की आज्ञा है: तब पौलुस हाथ बढ़ाकर उत्तर देने लगा, कि, 2. हे राजा अग्रिप्पा, जितनी बातोंका यहूदी मुझ पर दोष लगाते हैं, आज तेरे साम्हने उन का उत्तर देने में मैं अपके को धन्य समझता हूं। 3. विशेष करके इसलिथे कि तू यहूदियोंके सब व्यवहारोंऔर विवादोंको जानता है, सो मैं बिनती करता हूं, धीरज से मेरी सुन ले। 4. जैसा मेरा चाल चलन आरम्भ से अपक्की जाति के बीच और यरूशलेम में या, यह सब यहूदी जानते हैं। 5. वे यदि गवाही देना चाहते हैं, तो आरम्भ से मुझे पहिचानते हैं, कि मैं फरीसी होकर अपके धर्म के सब से खरे पन्य के अनुसार चला। 6. और अब उस प्रतिज्ञा की आशा के कारण जो परमेश्वर ने हमारे बापदादोंसे की यी, मुझ पर मुकद्दमा चल रहा है। 7. उसी प्रतिज्ञा के पूरे होने की आशा लगाए हुए, हमारे बारहोंगोत्र अपके सारे मन से रात दिन परमेश्वर की सेवा करते आए हैं: हे राजा, इसी आशा के विषय में यहूदी मुझ पर दोष लगाते हैं। 8. जब कि परमेश्वर मरे हुओं को जिलाता है, तो तुम्हारे यहां यह बात क्योंविश्वास के योग्य नहीं समझी जाती 9. मैं ने भी समझा या कि यीशु नासरी के नाम के विरोध में मुझे बहुत कुछ करना चाहिए। 10. और मैं ने यरूशलेम में ऐसा ही किया; और महाथाजकोंसे अधिक्कारने पाकर बहुत से पवित्र लोगोंको बन्दीगृह में डाल, और जब वे मार डाले जाते थे, तो मैं भी उन के विरोध में अपक्की सम्पति देता या। 11. और हर आराधनालय में मैं उन्हें ताड़ना दिला दिलाकर यीशु की निन्दा करवाता या, यहां तक कि क्रोध के मारे ऐसा पागल हो गया, कि बाहर के नगरोंमें भी जाकर उन्हें सताता या। 12. इसी धुन में जब मैं महाथाजकोंसे अधिक्कारने और परवाना लेकर दिमश्क को जा रहा या। 13. तो हे राजा, मार्ग में दोपहर के समय मैं ने आकाश से सूर्य के तेज से भी बढ़कर एक ज्योति अपके और अपके साय चलनेवालोंके चारोंओर चमकती हुई देखी। 14. और जब हम सब भूमि पर गिर पके, तो मैं ने इब्रानी भाषा में, मुझ से यह कहते हुए यह शब्द सुना, कि हे शाऊल, हे शाऊल, तू मुझे क्योंसताता है पैने पर लात मारना तेरे लिथे किठन है। 15. मैं ने कहा, हे प्रभु तू कौन है प्रभु ने कहा, मैं यीशु हूं: जिसे तू सताता है। 16. परन्तु तू उठ, अपके पांवोंपर खड़ा हो; क्योंकि मैं ने तुझे इसलिथे दर्शन दिया है, कि तुझे उन बातोंपर भी सेवक और गवाह ठहराऊं, जो तू ने देखी हैं, और उन का भी जिन के लिथे मैं तुझे दर्शन दूंगा। 17. और मैं तुझे तेरे लोगोंसे और अन्यजातियोंसे बचाता रहूंगा, जिन के पास मैं अब तुझे इसलिथे भेजता हूं। 18. कि तू उन की आंखे खोले, कि वे अंधकार से ज्योति की ओर, और शैतान के अधिक्कारने से परमेश्वर की ओर फिरें; कि पापोंकी झमा, और उन लोगोंके साय जो मुझ पर विश्वास करने से पवित्र किए गए हैं, मीरास पाएं। 19. सो हे राजा अग्रिप्पा, मैं ने उस स्वर्गीय दर्शन की बात न टाली। 20. परन्तु पहिले दिमश्क के, फिर यरूशलेम के रहनेवालोंको, तब यहूदिया के सारे देश में और अन्यजातियोंको समझाता रहा, कि मन फिराओ और परमेश्वर की ओर फिर कर मन फिराव के योग्य काम करो। 21. इन बातोंके कारण यहूदी मुझे मन्दिर में पकड़के मार डालने का यत्न करते थे। 22. सो परमेश्वर की सहाथता से मैं आज तक बना हूं और छोटे बड़े सभी के साम्हने गवाही देता हूं और उन बातोंको छोड़ कुछ नहीं कहता, जो भविष्यद्वक्ताओं और मूसा ने भी कहा कि होनेवाली हैं। 23. कि मसीह को दुख उठाना होगा, और वही सब से पहिले मरे हुओं में से जी उठकर, हमारे लोगोंमें और अन्यजातियोंमें ज्योति का प्रचार करेगा।। 24. जब वह इस रीति से उत्तर दे रहा या, तो फेस्तुस ने ऊंचे शब्द से कहा; हे पौलुस, तू पागल है: बहुत विद्या ने तुझे पागल कर दिया है। 25. परन्तु उस ने कहा; हे महाप्रतापी फेस्तुस, मैं पागल नहीं, परन्तु सच्चाई और बुद्धि की बातें कहता हूं। 26. राजा भी जिस के साम्हने मैं निडर होकर बोल रहा हूं, थे बातें जानता है, और मुझे प्रतीति है, कि इन बातोंमें से कोई उस से छिपी नहीं, क्योंकि उस घटना तो कोने में नहीं हुई। 27. हे राजा अग्रिप्पा, क्या तू भविष्यद्वक्ताओं की प्रतीति करता है हां, मैं जानता हूं, कि तू प्रतीति करता है। 28. अब अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा तू योड़े ही समझाने से मुझे मसीही बनाना चाहता है 29. पौलुस ने कहा, परमेश्वर से मेरी प्रार्यना यह है कि क्या योड़े में, क्या बहुत में, केवल तू ही नहीं, परन्तु जितने लोग आज मेरी सुनते हैं, इन बन्धनोंको छोड़ वे मेरे समान हो जाएं।। 30. तब राजा और हाकिम और बिरनीके और उन के साय बैठनेवाले उठ खड़े हुए। 31. और अलग जाकर आपस में कहने लगे, यह मनुष्य ऐसा तो कुछ नहीं करता, जो मृत्यु या बन्धन के योग्य हो। 32. अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा; यदि यह मनुष्य कैसर की दोहाई न देता, तो दूट सकता या।।
Chapter 27
1. जब यह ठहराया गया, कि हम जहाज पर इतालिया को जाएं, तो उन्होंने पौलुस और कितने और बन्धुओं को भी यूलियुस नाम औगुस्तुस की पलटन के एक सूबेदार के हाथ सौंप दिया। 2. और अद्रमुत्तियुम के एक जहाज पर जो आसिया के किनारे की जगहोंमें जाने पर या, चढ़कर हम ने उसे खोल दिया, और अरिस्तर्खुस नाम यिस्सलुनीके का एक मकिदूनी हमारे साय या। 3. दूसरे दिन हम ने सैदा में लंगर डाला और यूलियुस ने पौलुस पर कृपा करके उसे मित्रोंके यहां जाने दिया कि उसका सत्कार किया जाए। 4. वहां से जहाज खोलकर हवा विरूद्ध होने के कारण हम कुप्रुस की आड़ में होकर चले। 5. और किलिकिया और पंफूलिया के निकट के समुद्र में होकर लूसिया के मूरा में उतरे। 6. वहां सूबेदार को सिकन्दिरया का एक जहाज इतालिया जाता हुआ मिला, और उस ने हमें उस पर चढ़ा दिया। 7. और जब हम बहुत दिनोंतक धीरे धीरे चलकर किठनता से किनदुस के साम्हने पहुंचे, तो इसलिथे कि हवा हमें आगे बढ़ने न देती यी, सलमोने के साम्हने से होकर क्रेते की आड़ में चले। 8. और उसके किनारे किनारे किठनता से चलकर शुभ लंगरबारी नाम एक जगह पहुंचे, जहां से लसया नगर निकट या।। 9. जब बहुत दिन बीत गए, और जल यात्रा में जाखिम इसलिथे होती यी कि उपवास के दिन अब बीत चुके थे, तो पौलुस ने उन्हें यह कहकर समझाया। 10. कि हे सज्ज़नो मुझे ऐसा जान पड़ता है, कि इस यात्रा में बिपत्ति और बहुत हानि न केवल माल और जहाज की बरन हमारे प्राणोंकी भी होनेवाली है। 11. परन्तु सूबेदार ने पौलुस की बातोंसे मांफी और जहाज के स्वामी की बढ़कर मानी। 12. और वह बन्दर स्यान जाड़ा काटने के लिथे अच्छा न या; इसलिथे बहुतोंका विचार हुआ, कि वहां से जहाज खोलकर यदि किसी रीति से हो सके, तो फीनिक्स में पहुंचकर जाड़ा काटें: यह तो क्रेते का एक बन्दर स्यान है जो दक्खिन-पच्छिम और उत्तर-पच्छिम की ओर खुलता है। 13. जब कुछ कुछ दक्खिनी हवा बहने लगी, तो यह समझकर कि हमारा मतलब पूरा हो गया, लंगर उठाया और किनारा धरे हुए क्रेते के पास से जाने लगे। 14. परन्तु योड़ी देर में वहां से एक बड़ी आंधी उठी, जो यूरकुलीन कहलाती है। 15. जब यह जहाज पर लगी, तब वह हवा के साम्हने ठहर न सका, सो हम ने उसे बहने दिया, और इसी तरह बहते हुए चले गए। 16. तब कौदा नाम एक छोटे से टापू की आड़ में बहते बहते हम किठनता से डोंगी को वश मे कर सके। 17. मल्लाहोंने उसे उठाकर, अनेक उपाय करके जहाज को नीचे से बान्धा, और सुरितस के चोरबालू पर टिक जाने के भय से पाल और सामान उतार कर, बहते हुए चले गए। 18. और जब हम ने आंधी से बहुत हिचकोले और ध?े खाए, तो दूसरे दिन वे जहाज का माल फेंकने लगे। और तीसरे दिन उन्होंने अपके हाथोंसे जहाज का सामान फेंक दिया। 19. और तीसरे दिन उन्होंने अपके हाथोंसे जहाज का सामान फेंक दिया। 20. और जब बहुत दथें तक न सूर्य न तारे दिखाई दिए, और बड़ी आंधी चल रही यी, तो अन्त में हमारे बचने की सारी आशा जाती रही। 21. जब वे बहुत उपवास कर चुके, तो पौलुस ने उन के बीच में खड़ा होकर कहा; हे लोगो, चाहिए या कि तुम मेरी बात मानकर, क्रेते से न जहाज खोलते और न यह बिपत और हाति उठाते। 22. परन्तु अब मैं तुम्हें समझाता हूं, कि ढाढ़स बान्धो; क्योंकि तुम में से किसी के प्राण की हानि न होगी, केवल जहाज की। 23. क्योंकि परमेश्वर जिस का मैं हूं, और जिस की सेवा करता हूं, उसके स्वर्गदूत ने आज रात मेरे पास आकर कहा। 24. हे पौलुस, मत डर; तुझे कैसर के साम्हने खड़ा होना अवश्य है: और देख, परमेश्वर ने सब को जो तेरे साय यात्रा करते हैं, तुझे दिया है। 25. इसलिथे, हे सज्ज़नोंढाढ़स बान्धों; क्योंकि मैं परमेश्वर की प्रतीति करता हूं, कि जैसा मुझ से कहा गया है, वैसा ही होगा। 26. परन्तु हमें किसी टापू पर जा टिकना होगा।। 27. जब चौदहवीं रात हुई, और हम अद्रिया समुद्र में टकराते फिरते थे, तो आधी रात के निकट मल्लाहोंने अटकल से जाना, कि हम किसी देश के निकट पहुंच रहे हैं। 28. और याह लेकर उन्होंने बीस पुरसा गहरा पाया और योड़ा आगे बढ़कर फिर याह ली, तो पन्द्रह पुरसा पाया। 29. तब पत्यरीली जगहोंपर पड़ने के डर से उन्होंने जहाज की पिछाड़ी चार लंगर डाले, और भोर का होना मनाते रहे। 30. परन्तु जब मल्लाह जहाज पर से भागना चाहते थे, और गलही से लंगर डालने के बहाने डोंगी समुद्र में उतार दी। 31. तो पौलुस ने सूबेदार और सिपाहियोंसे कहा; यदि थे जहाज पर न रहें, तो तुम नहीं बच सकते। 32. तब सिपाहियोंने रस्से काटकर डोंगी गिरा दो। 33. जब भोर होने पर या, तो पौलुस ने यह कहके, सब को भोजन करने को समझाया, कि आज चौदह दिन हुए कि तुम आस देखते देखते भूखे रहे, और कुछ भोजन न किया। 34. इसलिथे तुम्हें समझाता हूं; कि कुछ खा लो, जिस से तुम्हारा बचाव हो; क्योंकि तुम में से किसी के सिर पर एक बाल भी न गिरेगा। 35. और यह कहकर उस ने रोटी लेकर सब के साम्हने परमेश्वर का धन्यवाद किया; और तोड़कर खाने लगा। 36. तब वे सब भी ढाढ़स बान्धकर भोजन करने लगे। 37. हम सब मिलकर जहाज पर दो सौ छिहत्तर जन थे। 38. जब वे भोजन करके तृप्त हुए, तो गेंहू को समुद्र में फेंक कर जहाज हल्का करने लगे। 39. जब बिहान हुआ, तो उन्होंने उस देश को नहीं पहिचाना, परन्तु एक खाड़ी देखी जिस का चौरस किनारा या, और विचार किया, कि यदि हो सके, तो इसी पर जहाज को टिकाएं। 40. तब उन्होंने लंगरोंको खोलकर समुद्र में छोड़ दिया और उसी समय पतवारोंके बन्धन खोल दिए, और हवा के साम्हने अगला पाल चढ़ाकर किनारे की ओर चले। 41. परन्तु दो समुद्र के संगम की जगह पड़कर उन्होंने जहाज को टिकाया, और गलही तो ध?ा खाकर गड़ गई, और टल न सकी; परन्तु पिछाड़ी लहरोंके बल से टूटने लगी। 42. तब सिपाहियोंको विचार हुआ, कि बन्धुओं को मार डालें; ऐसा न हो, कि कोई तैरके निकल भागे। 43. परन्तु सूबेदार ने पौलुस को बचाने को इच्छा से उन्हें इस विचार से रोका, और यह कहा, कि जो तैर सकते हैं, पहिले कूदकर किनारे पर निकल जाएं। 44. और बाकी कोई पटरोंपर, और कोई जहाज की और वस्तुओं के सहारे निकल जाए, और इस रीति से सब कोई भूमि पर बच निकले।।
Chapter 28
1. जब हम बच निकले, तो जाना कि यह टापू मिलिते कहलाता है। 2. और उन जंगली लोगोंने हम पर अनोखी कृपा की; क्योंकि मेंह के कारण जो बरस रहा या और जाड़े के कारण उन्होंने आग सुलगाकर हम सब को ठहराया। 3. जब पौलुस ने लकिडय़ोंका गट्ठा बटोरकर आग पर रखा, तो एक सांप आंच पाकर निकला और उसके हाथ से लिपट गया। 4. जब उन जंगलियोंने सांप को उसके हाथ में लटके हुए देखा, तो आपस में कहा; सचमुच यह मनुष्य हत्यारा है, कि यद्यपि समुद्र से बच गया, तौभी न्याय ने जीवित रहने न दिया। 5. तब उस ने सांप को आग में फटक दिया, और उसे कुछ हानि न पहुंची। 6. परन्तु वे बाट जोहते थे, कि वह सूज जाएगा, या एकाएक गिरके मर जाएगा, परन्तु जब वे बहुत देर तक देखते रहे, और देखा, कि उसका कुछ भी नहीं बिगड़ा, तो और ही विचार कर कहा; यह तो कोई देवता है।। 7. उस जगह के आसपास पुबलियुस नाम उस टापू के प्रधान की भूमि यी: उस ने हमें अपके घर ले जाकर तीन दिन मित्रभाव से पहुनाई की। 8. पुबलियुस का पिता ज्वर और आंव लोहू से रोगी पड़ा या: सो पौलुस ने उसके पास घर में जाकर प्रार्यना की, और उस पर हाथ रखकर उसे चंगा किया। 9. जब ऐसा हुआ, तो उस टापू के बाकी बीमार आए, और चंगे किए गए। 10. और उन्होंने हमारा बहुत आदर किया, और जब हम चलने लगे, तो जो कुछ हमें अवश्य या, जहाज पर रख दिया।। 11. तीन महीने के बाद हम सिकन्दिरया के एक जहाज पर चल निकले, जो उस टापू में जाड़े भर रहा या; और जिस का चिन्ह दियुसकूरी या। 12. सुरकूसा में लंगर डाल करके हम तीन दिन टिके रहे। 13. वहां से हम घूमकर रेगियुम में आए: और एक दिन पुतियुली में आए। 14. वहां हम को भाई मिले, और उन के कहने से हम उन के यहां सात दिन तक रहे; और इस रीति से रोम को चले। 15. वहां से भाई हमारा समाचार सुनकर अप्पियुस के चौक और तीन-सराए तक हमारी भेंट करने को निकल आए जिन्हें देखकर पौलुस ने परमेश्वर का धन्यवाद किया, और ढाढ़स बान्धा।। 16. जब हम रोम में पहुंचे, तो पौलुस को एक सिपाही के साय जो उस की रखवाली करता या, अकेले रहने की आज्ञा हुई।। 17. तीन दिन के बाद उस ने यहूदियोंके बड़े लोगोंको बुलाया, और जब वे इकट्ठे हुए तो उन से कहा; हे भाइयों, मैं ने अपके लोगोंके या बापदादोंके व्यवहारोंके विरोध में कुछ भी नहीं किया, तौभी बन्धुआ होकर यरूशलेम से रोमियोंके हाथ सौंपा गया। 18. उन्होंने मुझे जांच कर छोड़ देना चाहा, क्योंकि मुझ में मृत्यु के योग्य कोई दोष न या। 19. परन्तु जब यहूदी इस के विरोध में बोलने लगे, तो मुझे कैसर की दोहाई देनी पड़ी: न यह कि मुझे अपके लागोंपर कोई दोष लगाना या। 20. इसलिथे मैं ने तुम को बुलाया है, कि तुम से मिलूं और बातचीत करूं; क्योंकि इस्त्राएल की आशा के लिथे मैं इस जंजीर से जकड़ा हुआ हूं। 21. उन्होंने उस से कहा; न हम ने तेरे विषय में यहूदियोंसे चिट्ठियां पाईं, और न भाइयोंमें से किसी ने आकर तेरे विषय में कुछ बताया, और न बुरा कहा। 22. परन्तु तेरा विचार क्या है वही हम तुझ से सुनना चाहते हैं, क्योंकि हम जानते हैं, कि हर जगह इस मत के विरोध में लोग बातें कहते हैं।। 23. तब उन्होंने उसके लिथे एक दिन ठहराया, और बहुत लोग उसके यहां इकट्ठे हुए, और वह परमेश्वर के राज्य की गवाही देता हुआ, और मूसा की व्यवस्या और भाविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकोंसे यीशु के विषय में समझा समझाकर भोर से सांफ तक वर्णन करता रहा। 24. तब कितनोंने उन बातोंको मान लिया, और कितनोंने प्रतीति न की। 25. जब आपस में एक मत न हुए, तो पौलुस के इस एक बात के कहने पर चले गए, कि पवित्र आत्क़ा ने यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा तुम्हारे बापदादोंसे अच्छा कहा, कि जाकर इन लोगोंसे कह। 26. कि सुनते तो रहोगे, परन्तु न समझोगे, और देखते तो रहोगे, परन्तु न बुफोगे। 27. क्योंकि इन लोगोंका मन मोटा, और उन के कान भारी हो गए, और उन्होंने अपक्की आंखें बन्द की हैं, ऐसा न हो कि वे कभी आंखोंसे देखें, और कानोंसे सुनें, और मन से समझें और फिरें, और मैं उन्हें चंगा करूं। 28. सो तुम जानो, कि परमेश्वर के इस उद्धार की कया अन्यजातियोंके पास भेजी गई है, और वे सुनेंगे। 29. जब उस ने यह कहा तो यहूदी आपस में बहुत विवाद करने लगे और वहां से चले गए।। 30. और वह पूरे दो वर्ष अपके भाड़े के घर में रहा। 31. और जो उसके पास आते थे, उन सब से मिलता रहा और बिना रोक टोक बहुत निडर होकर परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह की बातें सिखाता रहा।।
(April28th2012)
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