2 राजा
Chapter 1
1. अहाब के मरने के बाद मोआब इस्राएल के विरुद्ध हो गया। 2. और अहज्याह एक फिलमिलीदार खिड़की में से, जो शोमरोन में उसकी अटारी में यी, गिर पड़ा, और बीमार हो गया। तब उस ने दूतोंको यह कहकर भेजा, कि तुम जाकर एक्रोन के बालजबूब नाम देवता से यह पूछ आओ, कि क्या मैं इस बीमारी से बचूंगा कि नहीं? 3. तब यहोवा के दूत ने तिशबी एलिय्याह से कहा, उठकर शोमरोन के राजा के दूतोंसे मिलने को जा, और उन से कह, क्या इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं जो तुम एक्रोन के बालजबूब देवता से पूछने जाते हो? 4. इसलिथे अब यहोवा तुझ से योंकहता है, कि जिस पलंग पर तू पड़ा है, उस पर से कभी न उठेगा, परन्तु मर ही जाएगा। तब एलिय्याह चला गया। 5. जब अहज्याह के दूत उसके पास लौट आए, तब उस ने उन से पूछा, तुम क्योंलौट आए हो? 6. उन्होंने उस से कहा, कि एक मनुष्य हम से मिलने को आया, और कहा, कि जिस राजा ने तुम को भेजा उसके पास लौटकर कहो, यहोवा योंकहता है, कि क्या इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं जो तू एक्रोन के बालजबूब देवता से पूछने को भेजता है? इस कारण जिस पलंग पर तू पड़ा है, उस पर से कभी न उठेगा, परन्तु मर ही जाएगा। 7. उस ने उन से पूछा, जो मनुष्य तुम से मिलने को आया, और तुम से थे बातें कहीं, उसका कैसा रंग-रूप या? 8. उन्होंने उसको उत्तर दिया, वह तो रोंआर मनुष्य या और अपक्की कमर में चमड़े का फेंटा बान्धे हुए या। उस ने कहा, वह तिशबी एलिय्याह होगा। 9. तब उस ने उसके पास पचास सिपाहियोंके एक प्रधान को उसके पचासोंसिपाहियोंसमेत भेजा। प्रधान ने उसके पास जाकर क्या देखा कि वह पहाड़ की चोटी पर बैठा है। और उस ने उस से कहा, हे परमेश्वर के भक्त राजा ने कहा है, कि तू उतर आ। 10. एलिय्याह ने उस पचास सिपाहियोंके प्रधान से कहा, यदि मैं परमेश्वर का भक्त हूँ तो आकाश से आग गिरकर तुझे तेरे पचासोंसमेत भस्म कर डाले। तब आकाश से आग उतरी और उसे उसके पचासोंसमेत भस्म कर दिया। 11. फिर राजा ने उसके पास पचास सिपाहियोंके एक और प्रधान को, पचासोंसिपाहियोंसमेत भेज दिया। प्रधान ने उस से कहा हे परमेश्वर के भक्त राजा ने कहा है, कि फुतीं से तू उतर आ। 12. एलिय्याह ने उत्तर देकर उन से कहा, यदि मैं परमेश्वर का भक्त हूँ तो आकाश से आग गिरकर तुझे, तेरे पचासोंसमेत भस्म कर डाले; तब आकाश से परमेश्वर की आग उतरी और उसे उसके पचासोंसमेत भस्म कर दिया। 13. फिर राजा ने तीसरी बार पचास सिपाहियोंके एक और प्रधान को, पचासोंसिपाहियोंसमेत भेज दिया, और पचास का वह तीसरा प्रधान चढ़कर, एलिय्याह के साम्हने घुटनोंके बल गिरा, और गिड़गिड़ा कर उस से कहने लगा, हे परमेश्वर के भक्त मेरा प्राण और तेरे इन पचास दासोंके प्राण तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरें। 14. पचास पचास सिपाहियोंके जो दो प्रधान अपके अपके पचासोंसमेत पहिले आए थे, उनको तो आग ने आकाश से गिरकर भस्म कर डाला, परन्तु अब मेरा प्राण तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरे। 15. तब यहोवा के दूत ने उलिय्याह से कहा, उसके संग नीचे जा, उस से पत डर। तब एलिय्याह उठकर उसके संग राजा के पास नीचे गया। 16. और उस से कहा, यहोवा योंकहता है, कि तू ने तो एक्रोन के बालजबूब देवता से पूछने को दूत भेजे थे तो क्या इस्राएल में कोई परमेश्वर नहीं कि जिस से तू पूछ सके? इस कारण तू जिस पलंग पर पड़ा है, उस पर से कभी न उठेगा, परन्तु मर ही जाएगा। 17. यहोवा के इस वचन के अनुसार जो एलिय्याह ने कहा या, वह मर गया। और उसके सन्तान न होने के कारण यहोराम उसके स्यान पर यहूदा के राजा यहोशापात के पुत्र यहोराम के दूसरे वर्ष में राज्य करने लगा। 18. अहज्याह के और काम जो उस ने किए वह क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं?
Chapter 2
1. जब यहोवा एलिय्याह को बवंडर के द्वारा स्वर्ग में उठा लेने को या, तब एलिय्याह और एलीशा दोनोंसंग संग गिलगाल से चले। 2. एलिय्याह ने एलीशा से कहा, यहोवा मुझे बेतेल तक भेजता है इसलिथे तू यहीं ठहरा रह। एलीशा ने कहा, यहोवा के और तेरे जीवन की शपय मैं तुझे नहीं छोड़ने का; इसलिथे वे बेतेल को चले गए। 3. और बेतेलवासी भविष्यद्वक्ताओं के चेले एलीशा के पास आकर कहने लगे, क्या तुझे मालूम है कि आज यहोवा तेरे स्वामी को तेरे ऊपर से उठा लेने पर है? उस ने कहा, हां, मुझे भी यह मालूम है, तुम चुप रहो। 4. और एलिय्याह ने उस से कहा, हे एलीशा, यहोवा मुझे यरीहो को भेजता है; इसलिथे तू यहीं ठहरा रह : उस ने कहा, यहोवा के और तेरे जीवन की शपय मैं तुझे नहीं छोड़ने का; सो वे यरीहो को आए। 5. और यरीहोवासी भविष्यद्वक्ताओं के चेले एलीशा के पास आकर कहने लगे, क्या तुझे मालूम है कि आज यहोवा तेरे स्वामी को तेरे ऊपर से उठा लेने पर है? उस ने उत्तर दिया, हां मुझे भी मालूम है, तुम चुप रहो। 6. फिर एलिय्याह ने उस से कहा, यहोवा मुझे यरदन तक भेजता है, सो तू यहीं ठहरा रह; उस ने कहा, यहोवा के और तेरे जीवन की शपय मैं तुझे नहीं छोड़नेका; सो वे दोनोंआगे चने। 7. और भविष्यद्वक्ताओं के चेलोंमें से पचास जन जाकर उनके साम्हने दूर खड़े हुए, और वे दोनोंयरदन के तीर खड़े हुए। 8. तब एलिय्याह ने अपक्की चद्दर पकड़कर ऐंठ ली, और जल पर मारा, तब वह इधर उधर दो भाग हो गया; और वे दोनोंस्यल ही स्यल पार उतर गए। 9. उनके पार पहुंचने पर एलिय्याह ने एलीशा से कहा, उस से पहिले कि मैं तेरे पास से उठा लिथे जाऊं जो कुछ तू चाहे कि मैं तेरे लिथे करूं वह मांग; एलीशा ने कहा, तुझ में जो आत्मा है, उसका दूना भाग मुझे मिल जाए। 10. एलिय्याह ने कहा, तू ने कठिन बात मांगी है, तौभी यदि तू मुझे उठा लिथे जाने के बाद देखने पाए तो तेरे लिथे ऐसा ही होगा; नहीं तो न होगा। 11. वे चलते चलते बातें कर रहे थे, कि अचानक एक अग्नि मय रय और अग्निमय धोड़ोंने उनको अलग अलग किया, और एलिय्याह बवंडर में होकर स्वर्ग पर चढ़ गया। 12. और उसे एलीशा देखता और मुकारता रहा, हंाय मेरे पिता ! हाथ मेरे पिता ! हाथ इस्राएल के रय और सवारो ! जब वह उसको फिर देख न पड़ा, तब उस ने अपके वस्त्र पाड़े और फाड़कर दो भाग कर दिए। 13. फिर उस ने एलिय्याह की चद्दर उठाई जो उस पर से गिरी यी, और वह लौट गया, और यरदन के तीर पर खड़ा हुआ। 14. और उस ने एलिय्याह की वह चद्दर जो उस पर से गिरी यी, पकड़ कर जल पर मारी और कहा, एलिय्याह का परमेश्वर यहोवा कहां है? जब उस ने जल पर मारा, तब वह इधर उधर दो भाग हो गया और एलीशा पार हो गया। 15. उसे देखकर भविष्यद्वक्ताओं के चेले जो यरीहो में उसके साम्हने थे, कहने लगे, एलिय्याह में जो आत्मा यी, वही एलीशा पर ठहर गई है; सो वे उस से मिलने को आए और उसके साम्हने भूमि तक फुककर दणडवत की। 16. तब उन्होंने उस से कहा, सुन, तेरे दासोंके पास पचास बलवान पुरुष हैं, वे जाकर तेरे स्वामी को ढूढें, सम्भव है कि क्या जाने यहोवा के आत्मा ने उसको उठाकर किसीं पहाड़ पर वा किसी तराई में डाल दिया हो; उस ने कहा, मत भेजो। 17. जब उन्होंने उसको यहां तक दबाया कि वह लज्जित हो गया, तब उस ने कहा, भेज दो; सो उन्होंने पचास पुरुष भेज दिए, और वे उसे तीन दिन तक ढूंढ़ते रहे परन्तु न पाया। 18. उस समय तक वह यरीहो में ठहरा रहा, सो जब वे उसके पास लौट आए, तब उस ने उन से कहा, क्या मैं ने तुम से न कहा या, कि मत जाओ? 19. उस नगर के निवासियोंने एलीशा से कहा, देख, यह नगर मनभावने स्यान पर बसा है, जैसा मेरा प्रभु देखता है परन्तु पानी बुरा है; और भूमि गर्भ गिरानेवाली है। 20. उस ने कहा, एक नथे प्याले में नमक डालकर मेरे पास ले आओ; वे उसे उसके पास ले आए। 21. तब वह जल के सोते के पास निकल गया, और उस में नमक डालकर कहा, यहोवा योंकहता है, कि मैं यह पानी ठीक कर देता हूँ, जिस से वह फिर कभी मृत्यु वा गर्भ गिरने का कारण न होगा। 22. एलीशा के इस वचन के अनुसार पानी ठीक हो गया, और आज तक ऐसा ही है। 23. वहां से वह बेतेल को चला, और मार्ग की चढ़ाई में चल रहा या कि नगर से छोटे लड़के निकलकर उसका ठट्ठा करके कहने लगे, हे चन्दुए चढ़ जा, हे चन्दुए चढ़ जा। 24. तब उस ने पीछे की ओर फिर कर उन पर दृष्टि की और यहोवा के नाम से उनको शाप दिया, तब जंगल में से दो रीछिनियोंने निकलकर उन में से बयालीस लड़के फाड़ डाले। 25. वहां से वह कर्म्मेल को गया, और फिर वहां से शोमरोन को लौट गया।
Chapter 3
1. यहूदा के राजा यहोशापात के अठारहवें वर्ष में अहाब का पुत्र यहोराम शिमरोन में राज्य करने लगा, और बारह पर्ष तक राज्य करता रहा। 2. उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है नौभी उस ने अपके माता-पिता के बराबर नहीं किया वरन अपके पिता की बनवाई हुई बाल की लाठ को दूर किया। 3. तौभी वह नबात के पुत्र यारोबाम के ऐसे पापोंमें जैसे उस ने इस्राएल से भी कराए लिपटा रहा और उन से न फिरा। 4. मोआब का राजा मेशा बहुत सी भेड़-बकरियां रखता या, और इस्राएल के राजा को एक लाख बच्चे और एक लाख मेढ़ोंका ऊन कर की रीति से दिया करता या। 5. जब अहाब मर गया, तब मोआब के राजा ने इस्राएल के राजा से बलवा किया। 6. उस समय राजा यहोराम ने शोमरोन से निकलकर सारे इस्राएल की गिनती ली। 7. और उस ने जाकर यहूदा के राजा यहोशापात के पास योंकहला भेजा, कि मोआब के राजा ने मुझ से बलवा किया है, क्या तू मेरे संग मोआब से लड़ने को चलेगा? उस ने कहा, हां मैं चलूंगा, जैसा तू वैसा मैं, जैसी तेरी प्रजा वैसी मेरी प्रजा, और जैसे तेरे धोड़े वैसे मेरे भी घोड़े हैं। 8. फिर उस ने पूछा, हम किस मार्ग से जाएं? उस ने उत्तर दिया, एदोम के जंगल से होकर। 9. तब इस्राएल का राजा, और यहूदा का राजा, और एदोम का राजा चले और जब सात दिन तक धूमकर चल चुके, तब सेना और उसके पीछे पीछे चलनेवाले पशुओं के लिथे कुछ पानी न मिला। 10. और इस्राएल के राजा ने कहा, हाथ ! यहोवा ने इन तीन राजाओं को इसलिथे इकट्ठा किया, कि उनको मोआब के हाथ में कर दे। 11. परन्तु सहोशापात ने कहा, क्या यहां यहोवा का कोई नबी नहीं है, जिसके द्वारा हम यहोवा से पूछें? इस्राएल के राजा के किसी कर्मचारी ने उत्तर देकर कहा, हां, शापात का पुत्र एलीशा जो एलिय्याह के हाथोंको धुलाया करता या वह तो यहां है। 12. तब यहोशापात ने कहा, उसके पास यहोवा का वचन पहुंचा करता है। तब इस्राएल का राजा और यहोशापात और एदोम का राजा उसके पास गए। 13. तब एलीशा ने इस्राएल के राजा से कहा, मेरा तुझ से क्या काम है? अपके पिता के भविष्यद्वक्ताओं और अपक्की माता के नबियोंके पास जा। इस्राएल के राजा ने उस से कहा, ऐसा न कह, क्योंकि यहोवा ने इन तीनोंराजाओं को इसलिथे इकट्ठा किया, कि इनको मोआब के हाथ में कर दे। 14. एलीशा ने कहा, सेनाओं का यहोवा जिसके सम्मुख मैं उपस्यित रहा करता हूँ, उसके जीवन की शपय यदि मैं यहूदा के राजा यहोशापात का आदर मान न करता, तो मैं न तो तेरी ओर मुह करता और न तुझ पर दृष्टि करता । 15. अब कोई बजवैय्या मेरे पास ले आओ। जब बजवैय्या बजाने लगा, तब यहोवा की शक्ति एलीशा पर इुई। 16. और उस ने कहा, इस नाले में तुम लोग इतना खोदो, कि इस में गड़हे ही गड़हे हो जाएं। 17. क्योंकि यहोवा योंकहता है, कि तुम्हारे साम्हने न तो वायु चलेगी, और न वर्षा होगी; तौभी यह नाला पानी से भर जाएगा; और अपके गाय बैलोंऔर पशुओं समेत तुम पीने पाओगे। 18. और इसको हलकी सी बात जानकर यहोवा मोआब को भी तुम्हारे हाथ में कर देगा। 19. तब तुम सब गढ़वाले और उत्तम नगरोंको नाश करना, और सब अच्छे वृझोंको काट डालना, और जल के सब खेतोंको भर देना, और सब अच्छे खेतोंमें पत्यर फेंककर उन्हें बिगाड़ देना। 20. विहान को अन्नबलि चढ़ाने के समय एदोम की ओर से जल बह आया, और देश जल से भर गया। 21. यह सुनकर कि राजाओं ने हम से युद्ध करते के लिथे चढ़ाई की है, जितने मोआबियोंकी अवस्या हयियार बान्धने योग्य यी, वे सब बुलाकर इकट्ठे किए गए, और सिवाने पर खड़े हुए। 22. बिहान को जब वे उठे उस समय सूर्य की किरणोंउस जल पर ऐसी पक्कीं कि वह मोआबियोंकी परली ओर से लोहू सा लाल दिखाई पड़ा। 23. तो वे कहने लगे वह तो लोहू होगा, नि:सन्देह वे राजा एक दूसरे को मारकर नाश हो गए हैं, इसलिथे अब हे मोआबियो लूट लेने को जाओ; 24. और जब वे इस्राएल की छावनी के पास आए ही थे, कि इस्राएली उठकर मोआबियोंको मारने लगे और वे उनके साम्हने से भाग गए; और वे मोआब को मारते मारते उनके देश में पहुंच गए। 25. और उन्होंने नगरोंको ढा दिया, और सब अच्छे खेतोंमें एक एक पुरुष ने अपना अपना मत्यर डाल कर उन्होंभर दिया; और जल के सब सोतोंको भर दिया; और सब अच्छे अच्छे वृझोंको काट डाला, यहां तक कि कीर्हरेशेत के पत्य्र तो रह गए, परन्तु उसको भी चारोंओर गोफन चलानेवालोंने जाकर मारा। 26. यह देखकर कि हम युद्ध में हार चले, मोआब के राजा ने सात सौ तलवार रखनेवाले पुरुष संग लेकर एदोम के राजा तक पांति चीरकर पहुंचने का यत्न किया परन्तु पहुंच न सका। 27. तब उस ने अपके जेठे पुत्र को जो उसके स्यान में राज्य करनेवाला या पकड़कर शहरपनाह पर होमबलि चढ़ाया। इस कारण इस्राएल पर बड़ा ही क्रोध हुआ, सो वे उसे छोड़कर अपके देश को लौट गए।
Chapter 4
1. भविष्यद्वक्ताओं के चेलोंकी पत्नियोंमें से एक स्त्री ने एलीशा की दोहाई देकर कहा, तेरा दास मेरा पति मर गया, और तू जानता है कि वह यहोवा का भय पाननेवाला या, और जिसका वह कर्जदार या वह आया है कि मेरे दोनोंपुत्रोंको अपके दाय बनाने के लिथे ले जाए। 2. एलीशा ने उस से पूछा, मैं तेरे लिथे क्या करूं? मुझ से कह, कि तेरे घर में क्या है? उस ने कहा, तेरी दासी के घर में एक हांड़ी तेल को छोड़ और कुछ तहीं है। 3. उस ने कहा, तू बाहर जाकर अपक्की सब पड़ोसिक्कों खाली बरतन मांग ले आ, और योड़े बरतन न लाना। 4. फिर तू अपके बेटोंसमेत अपके घर में जा, और द्वार बन्द करकें उन सब बरतनोंमें तेल उणडेल देना, और जो भर जाए उन्हें अलग रखना। 5. तब वह उसके पास से चक्की गई, और अपके बेटोंसमेत अपके घर जाकर द्वार बन्द किया; तब वे तो उसके पास बरतन लाते गए और वह उणडेलती गई। 6. जब बरतन भर गए, तब उस ने अपके बेटे से कहा, मेरे पास एक और भी ले आ, उस ने उस से कहा, और बरतन तो नहीं रहा। तब तेल यम गया। 7. तब उस ने जाकर परमेश्वर के भक्त को यह बता दिया। ओर उस ने कहा, जा तेल बेचकर ऋण भर दे; और जो रह जाए, उस से तू अपके पुत्रोंसहित अपना निर्वाह करना। 8. फिर एक दिन की बात है कि एलीशा शूनेम को गया, जहां एक कुलीन स्त्री यी, और उस ने उसे रोटी खाने के लिथे बिनती करके विवश किया। और जब जब वह उधर से जाता, तब तब वह वहां रोटी खाने को उतरता या। 9. और उस स्त्री ने अपके पति से कहा, सुन यह जो बार बार हमारे यहां से होकर जाया करता है वह मुझे परमेश्वर का कोई पवित्र भक्त जान पड़ता है। 10. तो हम भीत पर एक छोटी उपरौठी कोठरी बनाएं, और उस में उसके लिथे एक खाट, एक मेज, एक कुसीं और एक दीवट रखें, कि जब जब वह हमारे यहां आए, तब तब उसी में टिका करे। 11. एक दिन की बात है, कि वह वहां जाकर उस उपरौठी कोठरी में टिका और उसी में लेट गया। 12. और उस ने अपके सेवक गेहजी से कहा, उस शुनेमिन को बुला ले। उसके बुलाने से वह उसके साम्हने खड़ी हुई। 13. तब उस ने गेहजी से कहा, इस से कह, कि तू ने हमारे लिथे ऐसी बड़ी चिन्ता की है, तो तेरे लिथे क्या किया जाए? क्या तेरी चर्चा राजा, वा प्रधान सेनापति से की जाए? उस ने उत्तर दिया मैं तो अपके ही लोगोंमें रहती हूँ। 14. फिर उस ने कहा, तो इसके लिथे क्या किया जाए? गेहजी ने उत्तर दिया, निश्चय उसके कोई लड़का नहीं, और उसका पति बूढ़ा है। 15. उस ने कहा, उसको बुला ले। और जब उस ने उसे बुलाया, तब वह द्वार में खड़ी हुई। 16. तब उस ने कहा, बसन्त ऋतु में दिन पूरे होने पर तू एक बेटा छाती से लगाएगी। स्त्री ने कहा, हे मेरे प्रभु ! हे परमेश्वर के भक्त ऐसा नहीं, अपक्की दासी को धोखा न दे। 17. और स्त्री को गर्भ रहा, और वसन्त ऋतु का जो समय एलीशा ने उस से कहा या, उसी समय जब दिन पूरे हुए, तब उसके पुत्र उत्पन्न हुआ। 18. और जब लड़का बड़ा हो गया, तब एक दिन वह अपके पिता के पास लवनेवालोंके निकट निकल गया। 19. और उस ने अपके पिता से कहा, आह ! मेरा सिर, आह ! मेरा सिर। तब पिता ने अपके सेवक से कहा, इसको इसकी माता के पास ले जा। 20. वह उसे उठाकर उसकी माता के पास ले गया, फिर वह दोपहर तक उसके घुटनोंपर बैठा रहा, तब मर गया। 21. तब उस ने चढ़कर उसको परमेश्वर के भक्त की खाट पर लिटा दिया, और निकलकर किवाड़ बन्द किया, तब उतर गई। 22. और उस ने अपके पति से पुकारकर कहा, मेरे पास एक सेवक और एक गदही तुरन्त भेज दे कि मैं परमेश्वर के भक्त के यहां फट पट हो आऊं। 23. उस ने कहा, आज तू उसके यहां क्योंजाएगी? आज न तो नथे चांद का, और न विश्रम का दिन है; उस ने कहा, कल्याण होगा। 24. तब उस स्त्री ने गदही पर काठी बान्ध कर अपके सेवक से कहा, हांके चल; और मेरे कहे बिना हांकने में ढिलाई न करना। 25. तो वह चलते चलते कर्मेल पर्वत को परमेश्वर के भक्त के निकट पहुंची। उसे दूर से देखकर परमेश्वर के भक्त ने अपके सेवक गेहजी से कहा, देख, उधर तो वह शूनेमिन है। 26. अब उस से मिलने को दौड़ जा, और उस से पूछ, कि तू कुशल से है? तेरा पति भी कुशल से है? और लड़का भी कुशल से है? पूछने पर स्त्री ने उत्तर दिया, हां, कुशल से हैं। 27. वह पहाड़ पर परमेश्वर के भक्त के पास पहुंची, और उसके पांव पकड़ने लगी, तब गेहजी उसके पास गया, कि उसे धक्का देकर हटाए, परन्तु परमेश्वर के भक्त ने कहा, उसे छोड़ दे, उसका मन य्याकुल है; परन्तु यहोवा ने मुझ को नहीं बताया, छिपा ही रखा है। 28. तब वह कहने लगी, क्या मैं ने अपके प्रभु से पुत्र का वर मांगा या? क्या मैं ने न कहा या मुझे धोखा न दे? 29. तब एलीशा ने गेहजी से कहा, अपक्की कमर बान्ध, और मेरी छड़ी हाथ में लेकर चला जा, मार्ग में यदि कोई तुझे मिले तो उसका कुशल न पूछना, और कोई तेरा कुशल पूछे, तो उसको उत्तर न देना, और मेरी यह छड़ी उस लड़के के मुंह पर धर देना। 30. तब लड़के की मां ने एलीशा से कहा, यहोवा के और तेरे जीवन की शपय मैं तुझे न छोड़ूंगी। तो वह उठकर उसके पीछे पीछे चला। 31. उन से पहिले पहुंचकर गेहजी ने छड़ी को उस लड़के के मुंह पर रखा, परन्तु कोई शब्द न सुन पड़ा, और न उस ने कान लगाया, तब वह एलीशा से मिलने को लौट आया, और उसको बतलादिया दिया, कि लड़का नहीं जागा। 32. जब एलीशा घर में आया, तब क्या देखा, कि लड़का मरा हुआ उसकी खाट पर पड़ा है। 33. तब उस ने अकेला भीतर जाकर किवाड़ बन्द किया, और यहोवा से प्रार्यना की। 34. तब वह चढ़कर लड़के पर इस रीति से लेट गया कि अपना मुंह उसके मुंह से और अपक्की आंखें उसकी आंखोंसे और अपके हाथ उसके हाथोंसे मिला दिथे और वह लड़के पर पसर गया, तब लड़के की देह गर्म होने लगी। 35. और वह उसे छोड़कर घर में इधर उधर टहलने लगा, और फिर चढ़कर लड़के पर पसर गया; तब लड़के ने सात बार छींका, और अपक्की आंखें खोलीं। 36. तब एलीशा ने गेहजी को बुलाकर कहा, शूनेमिन को बुला ले। जब उसके बुलाने से वह उसके पास आई, तब उस ने कहा, अपके बेटे को उठा ले। 37. वह भीतर बई, और उसके पावोंपर गिर भूमि तक फुककर दणडवत किया; फिर अपके बेटे को उठाकर निकल गई। 38. तब एलीशा गिलगाल को लौट गया। उस समय देश में अकाल या, और भविष्यद्वक्ताओं के चेले उसके साम्हने बैटे हुए थे, और उस ने अपके सेवक से कहा, हण्डा चढ़ाकर भविष्यद्वक्ताओं के चेलोंके लिथे कुछ पका। 39. तब कोई मैदान में साग तोड़ने गया, और कोई जंगली लता पाकर अपक्की अंकवार भर इन्द्रायण तोड़ ले आया, और फांक फांक करके पकने के लिथे हण्डे में डाल दिया, और वे उसको न पहिचानते थे। 40. तब उन्होंने उन मनुष्योंके खाने के लिथे हण्डे में से परोसा। खाते समय वे चिल्लाकर बोल उठे, हे परमेश्वर के भक्त हण्डे में माहुर है, और वे उस में से खा न सके। 41. तब एलीशा ने कहा, अच्छा, कुछ मैदा ले आओ, तब उस ने उसे हण्डे में डाल कर कहा, उन लोगोंके खाने के लिथे परोस दे, फिर हण्डे में कुछ हानि की वस्तु न रही। 42. और कोई पतुष्य बालशालीशा से , पहिले उपके हुए जव की बीस रोटियां, और अपक्की बोरी में हरी बालें परमेश्वर के भक्त के पास ले आया; तो एलीशा ने कहा, उन लोगोंको खाने के लिथे दे। 43. उसके टहलुए ने कहा, क्या मैं सौ मनुष्योंके साम्हने इतना ही रख दूं? उस ने कहा, लोगोंको दे दे कि खएं, क्योंकि यहोवा योंकहता है, उनके खाने के बाद कुछ बच भी जाएगा। 44. तब उस ने उनके आगे धर दिया, और यहोवा के वचन के अनुसार उनके खाने के बाद कुछ बच भी गया।
Chapter 5
1. अराम के राजा का नामान नाम सेनापति अपके स्वामी की दृष्टि में बड़ा और प्रतिष्ठित पुम्ष या, क्योंकि यहोवा ने उसके द्वारा अरामियोंको विजयी किया या, और यह शूरवीर या, परन्तु कोढ़ी या। 2. अरामी लोग दल बान्धकर इस्राएल के देश में जाकर वहां से एक छोटी लड़की बन्धुवाई में ले आए थे और वह नामान की पत्नी की सेवा करती यी। 3. उस ने अपक्की स्वामिन से कहा, जो मेरा स्वामी शोमरोन के भविष्यद्वक्ता के पास होता, तो क्या ही अच्छा होता ! क्योंकि वह उसको कोढ़ से चंगा कर देता। 4. तो किसी ने उसके प्रभु के पास जाकर कह दिया, कि इस्राएली लड़की इस प्रकार कहती है। 5. अराम के राजा ने कहा, तू जा, मैं इस्राएल के राजा के पास एक पत्र भेजूंगा; तब वह दस किक्कार चान्दी और छ:हजार टुकड़े सोना, और दस जोड़े कपके साय लेकर रवाना हो गया। 6. और वह इस्राएल के राजा के पास वह पत्र ले गया जिस में यह लिखा या, कि जब यह पत्र तुझे मिले, तब जानना कि मैं ने नामान नाम अपके एक कर्मचारी को तेरे पास इसलिथे भेजा है, कि तू उसका कोढ़ दूर कर दे। 7. इस पत्र के पढ़ने पर इस्राएल का राजा अपके वस्त्र फाड़कर बोला, क्या मैं मारनेवाला और जिलानेवाला परमेश्वर हूँ कि उस पुरुष ने मेरे पास किसी को इसलिथे भेजा है कि मैं उसका कोढ दूर करूं? सोच विचार तो करो, वह मुझ से फगड़े का कारण ढूंढ़ता होगा। 8. यह सुनकर कि इस्राएल के राजा ने अपके वस्त्र फाड़े हैं, परमेश्वर के भक्त एलीशा ने राजा के पास कहला भेजा, तू ने क्योंअपके वस्त्र फाड़े हैं? वह मेरे पास आए, तब जान लेगा, कि इस्राएल में भविष्यद्वक्ता तो है। 9. तब नामान धोड़ोंऔर रयोंसमेत एलीशा के द्वार पर आकर खड़ा हुआ। 10. तब एलीशा ने एक दूत से उसके पास यह कहला भेजा, कि तू जाकर यरदन में सात बार डुबकी मार, तब तेरा शरीर ज्योंका त्योंहो जाएगा, और तू शुद्ध होगा। 11. परन्तु नामान क्रोधित हो यह कहता हुआ चला गया, कि मैं ने तो सोचा या, कि अवश्य वह मेरे पास बाहर आएगा, और खड़ा होकर अपके परमेश्वर यहोवा से प्रार्यना करके कोढ़ के स्यान पर अपना हाथ फेरकर कोढ़ को दूर करेगा ! 12. क्या दमिश्क की अबाना और पर्पर नदियां इस्राएल के सब जलाशयोंसे अत्तम नहीं हैं? क्या मैं उन में स्नान करके शुद्ध नहीं हो सकता हूँ? इसलिथे वह जलजलाहट से भरा हुआ लौटकर चला गया। 13. तब उसके सेवक पास आकर कहने लगे, हे हमारे पिता यदि भविष्यद्वक्ता तुझे कोई भारी काम करने की आज्ञा देता, तो क्या तू उसे न करता? फिर जब वह कहता है, कि स्नान करके शुद्ध हो जा, तो कितना अधिक इसे मानना चाहिथे। 14. तब उस ने परमेश्वर के भक्त के वचन के अनुसार यरदन को जाकर उस में सात बार डुबकी मारी, और उसका शरीर छोटे लड़के का सा हो गया; उौर वह शुद्ध हो गया। 15. तब वह अपके सब दल बल समेत परमेश्वर के भक्त के यहां लौट आया, और उसके सम्मुख खड़ा होकर कहने लगा सुन, अब मैं ने जान लिया है, कि समस्त पृय्वी में इस्राएल को छोड़ और कहीं परमेश्वर नहीं है। इसलिथे अब अपके दास की भेंट ग्रहण कर। 16. एलीशा ने कहा, यहोवा जिसके सम्मुख मैं उपस्यित रहता हूँ उसके जीवन की शपय मैं कुछ भेंट न लूंगा, और जब उस ने उसको बहुत विवश किया कि भेंट को ग्रहण करे, तब भी वह इनकार ही करता रहा। 17. तब नामान ने कहा, अच्छा, तो तेरे दास को दो खच्चर मिट्टी मिले, क्योंकि आगे को तेरा दास यहोवा को छोड़ और किसी ईश्वर को होमबलि वा मेलबलि न चढ़ाएगा। 18. एक बात तो यहोवा तेरे दास के लिथे झमा करे, कि जब मेरा स्वामी रिम्मोन के भवन में दणडवत करने को जाए, और वह मेरे हाथ का सहारा ले, और योंमुझे भी रिम्मोन के भवन में दणडवत करनी पके, तब यहोवा तेरे दास का यह काम झमा करे कि मैं रिम्मोन के भवन में दणडवत करूं। 19. उस ने उस से कहा, कुशल से बिदा हो। 20. वह उसके यहां से योड़ी दूर जला गया या, कि परमेश्वर के भक्त एलीशा का सेवक गेहजी सोचने लगा, कि मेरे स्वामी ने तो उस अरामी नामान को ऐसा ही छोड़ दिया है कि जो वह ले आया या उसको उस ने न लिया, परन्तु यहोवा के जीवन की शपय मैं उसके पीछे दौड़कर उस से कुछ न कुछ ले लूंगा। 21. तब गेहजी नामान के पीछे दौड़ा, और नामान किसी को अपके पीछे दौड़ता हूआ देखकर, उस से मिलने को रय से उतर पड़ा, और पूछा, सब कुशल झेम तो है? 22. उस ने कहा, हां, सब कुशल है; परन्तु मेरे स्वामी ने मुझे यह कहने को भेजा है, कि एप्रैम के पहाड़ी देश से भविष्यद्वक्ताओं के चेलोंमें से दो जवान मेरे यहां अभी आए हैं, इसदिथे उनके लिथे एक किक्कार चान्दी और दो जोड़े वस्त्र दे। 23. नामान ने कहा, दो किक्कार लेने को प्रसन्न हो, तब उस ने उस से बहुत बिनती करके दो किक्कार खन्दी अलग यैलियोंमें बान्धकर, दो जोड़े वस्त्र समेत अपके दो सेवकोंपर लाद दिया, और वे उन्हें उसके आगे आगे ले चले। 24. जब वह टीले के पास पहुंचा, तब उस ने उन वस्तुओं को उन से लेकर घर में रख दिया, और उन मनुष्योंको बिदा किया, और वे चले गए। 25. और वह भीतर जाकर, अपके स्वामी के साम्हने खड़ा हुआ। एलीशा ने उस से पूछा, हे गेहजी तू कहां से आता है? उस ने कहा, तेरा दास तो कहीं नहीं गया, 26. उस ने उस से कहा, जब वह पुरुष इधर मुंह फेरकर तुझ से मिलने को अपके रय पर से उतरा, तब वह पूरा हाल मुझे मालूम या; क्या यह समय चान्दी वा वस्त्र वा जलपाई वा दाख की बारियां, भेड़-बकरियां, गायबैल और दास-दासी लेने का है? 27. इस कारण से नामान का कोढ़ तुझे और तेरे वंश को सदा लगा रहेगा। तब वह हिम सा श्वेत कोढ़ी होकर उसके साम्हने से चला गया।
Chapter 6
1. और भ्विष्यद्वक्ताओं के चेलोंमें से किसी ने एलीशा से कहा, यह स्यान जिस में हम तेरे साम्हने रहते हैं, वह हमारे लिथे सकेत है। 2. इसलिथे हम यरदन तक जाएं, और वहां से एक एक बल्ली लेकर, यहां अपके रहने के लिथे एक स्यान बना लें; उस ने कहा, अच्छा जाओ। 3. तब किसी ने कहा, अपके दासोंके संग चलने को प्रसन्न हो, उस ने कहा, चलता हूँ। 4. तो वह उनके संग चला और वे यरदन के तीर पहुंचकर लकड़ी काटने लगे। 5. परन्तु जब एक जन बल्ली काट रहा या, तो कुल्हाड़ी बेंट से निकलकर जल में गिर गई; सो वह चिल्लाकर कहने लगा, हाथ ! मेरे प्रभु, वह तो मंगनी की यी। 6. परमेश्वर के भक्त ने पूछा, वह कहां गिरी? जब उस ने स्यान दिखाया, तब उस ने एक लकड़ी काटकर वहां डाल दी, और वह लाहा पानी पर तैरने लगा। 7. उस ने कहा, उसे उठा ले, तब उस ने हाथ बढ़ाकर उसे ले लिया। 8. ओैर अराम का जाजा इस्राएल से युद्ध कर रहा या, और सम्मति करके अपके कर्मचारियोंसे कहा, कि अमुक स्यान पर मेरी छावनी होगी। 9. तब परमेश्वर के भक्त ने इस्राएल के राजा के पास कहला भेजा, कि चौकसी कर और अमुक स्यान से होकर न जाना क्योंकि वहां अरामी चढ़ाई करनेवाले हैं। 10. तब इस्राएल के राजा ने उस स्यान को, जिसकी चर्चा करके परमेश्वर के भक्त ने उसे चिताया या, भेजकर, अपक्की रझा की; और उस प्रकार एक दो बार नहीं वरन बहुत बार हुआ। 11. इस कारण अराम के राजा का मन बहुत घबरा गया; सो उस ने अपके कर्मचारियोंको बुलाकर उन से पूछा, क्या तुम मुझे न बताओगे कि हम लोगोंमें से कौन इस्राएल के राजा की ओर का है? उसके एक कर्मचारी ने कहा, हे मेरे प्रभु ! हे राजा ! ऐसा नहीं, 12. एलीशा जो इस्राएल में भविष्यद्वक्ता है, वह इस्राएल के राजा को वे बातें भी बताया करता है, जो तू शयन की कोठरी में बोलता है। 13. राजा ने कहा, जाकर देखो कि वह कहां है, तब मैं भेजकर उसे पहड़वा मंगाऊंगा। और उसको यह समाचार मिला कि वह दोतान में है। 14. तब उस ने वहां घोड़ोंऔर रयोंसमेत एक भारी दल भेजा, और उन्होंने रात को आकर नगर को घेर लिया। 15. भोर को परमेश्वर के भक्त का टहलुआ उठा और निकलकर क्या देखता है कि घोड़ोंऔर रयोंसमेत एक दल नगर को घेरे हुए पड़ा है। और उसके सेवक ने उस से कहा, हाथ ! मेरे स्वामी, हम क्या करें? 16. उस ने कहा, मत डर; क्योंकि जो हमारी ओर हैं, वह उन से अधिक हैं, जो उनकी ओर हैं। 17. तब एलीशा ने यह प्रार्यना की, हे यहोवा, इसकी आंखें खोल दे कि यह देख सके। तब यहोवा ने सेवक की आंखें खोल दीं, और जब वह देख सका, तब क्या देखा, कि एलीशा के चारोंओर का पहाड़ अग्निमय घोड़ोंऔर रयोंसे भरा हुआ है। 18. जब अरामी उसके पास आए, तब एलीशा ने यहोवा से प्रार्यना की कि इस दल को अन्धा कर डाल। एलीशा के इस वचन के अनुसार उस ने उन्हें अन्धा कर दिया। 19. तब एलीशा ने उन से कहा, यह तो मार्ग नहीं है, और न यह नगर है, मेरे पीछे हो लो; मैं तुम्हें उस पनुष्य के पास जिसे तुम ढूंढ़ रहे हो पहुंचाऊंगा। तब उस ने उन्हें शोमरोन को पहुंचा दिया। 20. जब वे शोमरोन में आ गए, तब एलीशा ने कहा, हे यहोवा, इन लोगोंकी आंखें खोल कि देख सकें। तब यहोवा ने उनकी आंखें खोलीं, और जब वे देखने लगे तब क्या देखा कि हम शोमरोन के मध्य में हैं। 21. उनको देखकर इस्राएल के राजा ने एलीशा से कहा, हे मेरे पिता, क्या मैं इनको मार लूं? मैं उनको मार लूं? 22. उस ने उत्तर दिया, मत मार। क्या तू उनको मार दिया करता है, जिनको तू तलवार और धनुष से बन्धुआ बना लेता है? तू उनको अन्न जल दे, कि खा पीकर अपके स्वामी के पास चले जाएं। 23. तब उस ने उनके लिथे बड़ी जेवनार की, और जब वे खा पी चुके, तब उस ने उन्हें बिदा किया, और वे अपके स्वामी के पास चले गए। इसके बाद अराम के दल इस्राएल के देश में फिर न आए। 24. परन्तु इसके बाद अराम के राजा बेंन्हदद ने अपक्की समस्त सेना इकट्ठी करके, शोमरोन पर चढ़ाई कर दी और उसको घेर लिया। 25. तब शोमरोन में बड़ा अकाल पड़ा और वह ऐसा घिरा रहा, कि अन्त में एक गदहे का सिर चान्दी के अस्सी टुकड़ोंमें और कब की चौयाई भर कबूतर की बीट पांच टुकड़े चान्दी तक बिकने लगी। 26. और इस्राएल का राजा शहरपनाह पर टहल रहा या, कि एक स्त्री ने पुकार के उस से कहा, हे प्रभु, हे राजा, बचा। 27. उस ने कहा, यदि यहोवा तुझे न बचाए, तो मैं कहां से तुझे बचाऊं? क्या खलिहान में से, वा दाखरस के कुण्ड में से? 28. फिर राजा ने उस से पूछा, तुझे क्या हुआ? उस ने उत्तर दिया, इस स्त्री ने मुझ से कहा या, मुझे अपना बेटा दे, कि हम आज उसे खा लें, फिर कल मैं अपना बेटा दूंगी, और हम उसे भी खाएंगी। 29. तब मेरे बेटे को पकाकर हम ने खा लिया, फिर दूसरे दिन जब मैं ने इस से कहा कि अपना बेटा दे कि हम उसे खा लें, तब इस ने अपके बेटे को छिपा रखा। 30. उस स्त्री की थे बातें सुनते ही, राजा ने अपके वस्त्र फाड़े ( वह तो शहरपनाह पर टहल रहा या ), जब लोगोंने देखा, तब उनको यह देख पड़ा कि वह भीतर अपक्की देह पर टाट पहिने है। 31. तब वह बोल उठा, यदि मैं शापात के वुत्र एलीशा का सिर आज उसके घड़ पर रहने दूं, तो परमेश्वर मेरे साय ऐसा ही वरन इस से भी अधिक करे। 32. एलीशा अपके घर में बैठा हुआ या, और पुरनिथे भी उसके संग बैठे थे। सो जब राजा ने अपके पास से एब जन भेजा, तब उस दूत के पहुंचने से पहिले उस ने पुरनियोंसे कहा, देखो, इस खूनी के बेटे ने किसी को मेरा सिर काटते को भेजा है; इसलिथे जब वह दूत आए, तब किवाड़ बन्द करके रोके रहना। क्या उसके स्वामी के पांव की आहट उसके पीछे नहीं सुन पड़ती? 33. वह उन से योंबातें कर ही रहा या कि दूत उसके पास आ पहुंचा। और राजा कहने लगा, यह विपत्ति यहोवा की ओर से है, अब मैं आगे को यहोवा की बाट क्योंजोहता रहूं?
Chapter 7
1. तब एलीशा ने कहा, यहोवा का वचन सुनो, यहोवा योंकहता है, कि कल इसी समय शोमरोन के फाटक में सआ भर मैदा एक शेकेल में और दो सआ जव भी एक शेकेल में बिकेगा। 2. तब उस सरदार ने जिसके हाथ पर राजा तकिया करता य, परमेश्वर के भक्त को उत्तर देकर कहा, सुन, चाहे यहोवा आकाश के फरोखे खोले, तौभी क्या ऐसी बात हो सकेगी? उस ने कहा, सुन, तू यह अपक्की आंखोंसे तो देखेगा, परन्तु उस अन्न में से कुछ खाने न पाएगा। 3. और चार कोढ़ी फाटक के बाहर थे; वे आपस में कहने लगे, हम क्योंयहां बैठे बैठे मर जाएं? 4. यदि हम कहें, कि नगर में जाएं, तो वहां मर जाएंगे; क्योंकि वहां मंहगी पक्की है, और जो हम यहीं बैठे रहें, तौभी मर ही जाएंगे। तो आओ हम अराम की सेना में पकड़े जाएं; यदि वे हम को जिलाए रखें तो हम जीवित रहेंगे, और यदि वे हम को मार डालें, तौभी हम को मरना ही है। 5. तब वे सांफ को अराम की छावनी में जाने को चले, और अराम की छावनी की छोर पर पहुंचकर क्या देखा, कि वहां कोई नहीं है। 6. क्योंकि प्रभु ने अराम की सेना को रयोंऔर घोड़ोंकी और भारी सेना की सी आहट सुनाई यी, और वे आपस में कहने लगे थे कि, सुनो, इस्राएल के राजा ने हित्ती और मिस्री राजाओं को बेतन पर बुलवाया है कि हम पर चढ़ाई करें। 7. इसलिथे वे सांफ को उठकर ऐसे भाग गए, कि अपके डेरे, घोड़े, गदहे, और छावनी जैसी की तैसी छोड़-छाड़ अपना अपना प्राण लेकर भाग गए। 8. तो जब वे कोढ़ी छावनी की छोर के डेरोंके पास पहुंचे, तब एक डेरे में घुसकर खाया पिया, और उस में से चान्दी, सोना और वस्त्र ले जाकर छिपा रखा; फिर लौटकर दूसरे डेरे में घुस गए और उस में से भी ले जाकर छिपा रखा। 9. तब वे आपस में कहने लगे, जो हम कर रहे हैं वह अच्छा काम नहीं है, यह आनन्द के समाचार का दिन है, परन्तु हम किसी को नहीं बताते। जो हम पह फटने तक ठहरे रहें तो हम को दणड मिलेगा; सो अब आओ हम राजा के घराने के पास जाकर यह बात बतला दें। 10. तब वे चले और नगर के चौकीदारोंको बुलाकर बताया, कि हम जो अराम की छावनी में गए, तो क्या देखा, कि वहां कोई नहीं है, और मनुष्य की कुछ आहट नहीं है, केवल बन्धे हूए घोड़े और गदहे हैं, और डेरे जैसे के तैसे हैं। 11. तब चौकीदारोंने पुकार के राजभवन के भीतर समाचार दिया। 12. और राजा रात ही को उठा, और अपके कर्मचारियोंसे कहा, मैं तुम्हें बताता हूँ कि अरामियोंने हम से क्या किया है? वे जानते हैं, कि हम लोग भूखे हैं इस कारण वे छावनी में से मैदान में छिपके को यह कहकर गए हैं, कि जब वे नगर से निकलेंगे, तब हम उनको जीवित ही पकड़कर नगर में घुसने पाएंगे। 13. परन्तु राजा के किसी कर्मचारी ने उत्तर देकर कहा, कि जो घोड़े तगर में बच रहे हैं उन में से लोग पांच घोड़े लें, और उनको भेजकर हम हाल जान लें। ( वे तो इस्राएल की सब भीड़ के समान हैं जो नगर में रह गए हैं वरन इस्राएल की जो भीड़ मर मिट गई है वे उसी के समान हैं। ) 14. सो उन्होंने दो रय और उनके घोड़े लिथे, और राजा ने उनको अराम की सेना के पीछे भेजा; और कहा, जाओ, देखो। 15. तब वे यरदन तक उनके पीछे चले गए, और क्या देखा, कि पूरा मार्ग वस्त्रोंऔर पात्रोंसे भरा पड़ा है, जिन्हें अरामियोंने उतावली के मारे फेंक दिया या; तब दूत लौट आए, और राजा से यह कह सुनाया। 16. तब लोगोंने निकलकर अराम के डेरोंको लूट लिया; और यहोवा के वचन के अनुसार एक सआ मैदा एक शेकेल में, और दो सआ जव एक शेकेल में बिकने लगा। 17. और राजा ने उस सरदार को जिसके हाथ पर वह तकिया करता या फाटक का अधिक्कारनेी ठहराया; तब वह फाटक में लोगोंके पावोंके नीचे दबकर मर गया। यह परमेश्वर के भक्त के उस वचन के अनुसार हुआ जो उस ने राजा से उसके यहां आने के यमय कहा या। 18. परमेश्वर के भक्त ने जैसा राजा से यह कहा या, कि कल इसी समय शोमरोन के फाटक में दो सआ जव एक शेकेल में, और एक सआ मैदा एक शेकेल में बिकेगा, वैसा ही हुआ। 19. और उस सरदार ने परमेश्वर के भक्त को, उत्तर देकर कहा या, कि सुन चाहे यहोवा आकाश में फरोखे खोले तौभ्ी क्या ऐसी बात हो सकेगी? और उस ने कहा या, सुन, तू यह अपक्की आंखोंसे तो देखेगा, परन्तु उस अन्न में से खाने न पाएगा। 20. सो उसके साय ठीक वैसा ही हुआ, अतएव वह फाटक में लोगोंके पांवोंके नीचे दबकर मर गया।
Chapter 8
1. जिस स्त्री के बेटे को एलीशा ने जिलाया या, उस से उस ने कहा या कि अपके घराने समेत यहां से जाकर जहां कहीं तू रह सके वहां रह; क्योंकि यहोवा की इच्छा है कि अकाल पके, और वह इस देश में सात वर्ष तक बना रहेगा। 2. परमेश्वर के भक्त के इस वचन के अनुसार वह स्त्री अपके घराने समेत पलिश्तियोंके देश में जाकर सात वर्ष रही। 3. सात वर्ष के बीतने पर वह पलिश्तियोंके देश से लौट आई, और अपके घर और भूमि के लिथे दोहाई देने को राजा के पास गई। 4. राजा परमेश्वर के भक्त के सेवक गेहजी से बातें कर रहा या, और उस ने कहा कि जो बड़े बड़े काम एलीशा ने किथे हैं उनहें मुझ से वर्णन कर। 5. जब वह राजा से यह वर्णन कर ही रहा या कि एलीशा ने एक मुर्दे को जिलाया, तब जिस स्त्री के बेटे को उस ने जिलाया या वही आकर अपके घर और भूमि के लिथे दोहाई देने लगी। तब गेहजी ने कहा, हे मेरे प्रभु ! हे राजा ! यह वही स्त्री है और यही उसका बेटा है जिसे एलीशा ने जिलाया या। 6. जब राजा ने स्त्री से मूछा, तब उस ने उस से सब कह दिया। तब राजा ने एक हाकिम को यह कहकर उसके साय कर दिया कि लो कुछ इसका या वरन जब से इस ने देश को छोड़ दिया तब से इसके खेत की जितनी आमदनी अब तक हुई हो सब इसे फेर दे। 7. और एलीशा दमिशक को गया। और जब अराम के राजा बेन्हदद को जो रोगी या यह समाचार मिला, कि परमेश्वर का भक्त यहां भी आया है, 8. तब उस ने हजाएल से कहा, भेंट लेकर परमेश्वर के भक्त से मिलने को जा, और उसके द्वारा यहोवा से यह पूछ, कि क्या बेन्हदद जो रोगी है वह बचेगा कि नहीं? 9. तब हजाएल भेंट के लिथे दमिश्क की सब उत्तम उत्तम वस्तुओं से चालीस ऊंट लदवाकर, उस से मिलने को चला, और उसके सम्मुख खड़ा होकर कहने लगा, तेरे पुत्र अराम के राजा बेन्हदद ने मुझे तुझ से यह पूछने को भेजा है, कि क्या मैं जो रोगी हूँ तो बचूंगा कि नहीं? 10. एलीशा ने उस से कहा, जाकर कह, तू निश्चय बच सकता, तौभी यहोवा ने मुझ पर प्रगट किया है, कि तू नि:सन्देह मर जाएगा। 11. और वह उसकी ओर टकटकी बान्ध कर देखता रहा, यहां तक कि वह लज्जित हुआ। और परमेश्वर का भक्त रोने लगा। 12. तब हजाएल ने पूछा, मेरा प्रभु क्योंरोता है? उस ने उत्तर दिया, इसलिथे कि मुझे मालूम है कि नू इस्राएलियोंपर क्या क्या उपद्रव करेगा; उनके गढ़वाले तगरोंको तू फूंक देगा; उनके जवानोंको तू तलवार से घात करेगा, उनके बालबच्चोंको तू पटक देगा, और उनकी गर्भवती स्त्रियोंको तू चीर डालेगा। 13. हजाएल ने कहा, तेरा दास जो कुत्ते सरीखा है, वह क्या है कि ऐसा बड़ा काम करे? एलीशा ने कहा, यहोवा ने मुझ पर यह प्रगट किया है कि तू अराम का राजा हो जाएगा। 14. तब वह एलीशा से बिदा होकर अपके स्वामी के पास गया, और उस ने उस से पूछा, एलीशा ने तुझ से क्या कहा? उस ने उत्तर दिया, उस ने मुझ से कहा कि बेन्हदद नि:सन्देह बचेगा। 15. दूसरे दिन उस ने राजाई को लेकर जल से भिगो दिया, और उसको उसके मुंह पर ऐसा ओढ़ा दिया कि वह मर गया। तब हजाएल उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 16. इस्राएल के राजा अहाब के पुत्र योराम के पांचवें वर्ष में, जब यहूदा का राजा यहोशापात जीवित या, तब यहोशापात का पुत्र यहोराम यहूदा पर राज्य करने लगा। 17. जब वह राजा हुआ, तब बत्तीस वर्ष का या, और आठ वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। 18. वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला, जैसे अहाब का घराना चलता या, क्योंकि उसकी स्त्री अहाब की बेटी यी; और वह उस काम को करता या जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 19. तौभ्ी यहोवा ने यहूदा को नाश करना न चाहा, यह उसके दास दाऊद के कारण हुआ, क्योंकि उस ने उसको वचन दिया या, कि तेरे वंश के निमित्त मैं सदा तेरे लिथे एक दीपक जलता हुआ रखूंगा। 20. उसके दिनोंमें एदोम ने यहूदा की अधीनता छोड़कर अपना एक राजा बना लिया। 21. तब योराम अपके सब रय साय लिथे हुए साईर को गया, ओर रात को उठकर उन एदोमियोंको जो उसे घेरे हुए थे, और रयोंके प्रधानोंको भी मारा; उाौर लोग अपके अपके डेरे को भाग गए। 22. योंएदोम यहूदा के वश से छूट गया, और आज तक वैसा ही है। उस समय लिब्ना ने भी यहूदा की अधीनता छोड़ दी। 23. योराम के और सब काम और जो कुछ उस ने किया, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 24. निदान योराम अपके पुरखाओं के संग सो गया और उनके बीच दाऊदपुर में उसे मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र अहज्जाह उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 25. अहाब के पुत्र इस्राएल के राजा योराम के बारहवें वर्ष में यहूदा के राजा यहोराम का पुत्र अहज्याह राज्य करने लगा। 26. जब अहज्याह राजा बना, तब बाईस वर्ष का या, और यरूशलेम में एक ही वर्ष राज्य किया। और उसकी माता का नाम अतल्याह या, जो इस्राएल के राजा ओम्री की पोती यी। 27. वह अहाब के घराने की सी चाल चला, और अहाब के घराने की नाई वह काम करता या, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, क्योंकि वह अहाब के घराने का दामाद या। 28. और वह अहाब के पुत्र योराम के संग गिलाद के रामोत में अराम के राजा हजाएल से लड़ने को गया, और अरामियोंने योराम को घायल किया। 29. सो राजा योराम इसलिथे लौट गया, कि यिज्रैल में उन घावोंका इलाज कराए, जो उसको अरामियोंके हाथ से उस समय लगे, जब वह हजाएल के साय लड़ रहा या। और अहाब का पुत्र योराम तो यिज्रैल में रोगी रहा, इस कारण यहूदा के राजा यहोराम का पुत्र अहजयाह उसको देखने गया।
Chapter 9
1. तब एलीशा भविष्यद्वक्ता ने भविष्यद्वक्ताओं के चेलोंमें से एक को बुलाकर उस से कहा, कमर बान्ध, और हाथ में तेल की यह कुप्पी लेकर गिलाद के रामोत को जा। 2. और वहां पहूंचकर थेहू को जो यहोशापात का पुत्र और निमशी का पोता है, ढूंढ़ लेना; तब भीतर जा, उसकी खड़ा कराकर उसके भइयोंसे अलग एक भीतरी कोठरी में ले जाना। 3. तब तेल की यह कुप्पी लेकर तेल को उसके सिर पर यह कह कर डालना, यहोवा योंकहता है, कि मैं इस्राएल का राजा होने के लिथे तेरा अभिषेक कर देता हूँ। तब द्वार खोलकर भागना, विलम्ह न करना। 4. तब वह जवान भविष्यद्वक्ता गिलाद के रामोत को गया। 5. वहां पहुंचकर उस ने क्या देखा, कि सेनापति बैठे हए हैं; तब उस ने कहा, हे सेनापति, मुझे तुझ से कुछ कहना है। थेहू ने पूछा, हम सभोंमें किस से ? उस ने कहा हे सेनापति, तुझी से ! 6. तब वह उठकर घर में गया; और उस ने यह कहकर उसके सिर पर तेल डाला कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, मैं अपक्की प्रजा इस्राएल पर राजा होने के लिथे तेरा अभिषेक कर देता हूँ। 7. तो तू अपके स्वामी अहाब के घराने को मार डालना, जिस से मुझे अपके दास भविष्यद्वक्ताओं के वरन अपके सब दासोंके खून का जो हेज़ेबेल ने बहाथा, पलटा मिले। 8. क्योंकि अहाब का समस्त घराना नाश हो जाएगा, और मैं अहाब के वंश के हर बक लड़के को और इस्राएल में के क्या बन्धुए, क्या स्वाधीन, हर एक को नाश कर डालूंगा। 9. और मैं अहाब का घराना नबात के पुत्र यारोबाम का सा, और अहिय्याह के पुत्र बाशा का सा कर दूंगा। 10. और हेज़ेबेल को यिज्रैल की भ्ूमि में कुत्ते खाएंगे, और उसको मिट्टी देनेवाला कोई न होगा। तब वह द्वार खोलकर भाग गया। 11. तब थेहू अपके स्वामी के कर्मचारियोंके पास निकल आया, और एक ने उस से पूछा, क्या कुशल है, वह बावला क्योंतेरे पास आया या? उस ने उन से कहा, तुम को मालूम होगा कि वह कौन है और उस से क्या बातचीत हुई। 12. उन्होंने कहा फूठ है, हमें बता दे। उस ने कहा, उस ने मुझ से कहा तो बहुत, परन्तु मतलब यह है कि यहोवा योंकहता है कि मैं इस्राएल का राजा होने के लिथे तेरा अभिषेक कर देता हूँ। 13. तब उन्होंने फट अपना अपना वस्त्र उतार कर उसके तीचे सीढ़ी ही पर बिछाया, और नरसिंगे फूंककर कहने लगे, थेहू राजा है। 14. योंथेहू जो निमशी का पोता और यहोशापात का पुत्र या, उस ने योराम से राजद्रोह की गोष्ठी की। ( योराम तो सब इस्राएल समेत अराम के राजा हजाएल के कराण गिलाद के रामोत की रझा कर रहा या; 15. परन्तु राजा योराम आप अपके घाव का जो अराम के राजा हजाएल से युद्ध करने के समय उसको अरामियोंसे लगे थे, उनका इलाज कराने के लिथे यिज्रैल को लौठ गया या। ) तब थेहू ने कहा, यदि तुम्हारा ऐसा मन हो, तो इस नगर में से कोई निकल कर यिज्रैल में सुनाने को न जाने पाए। 16. तब थेहू रय पर चढ़कर, यिज्रैल को चला जहां योराम पड़ा हुआ या; और यहूदा का राजा अहज्याह योराम के देखने को वहां आया या। 17. यिज्रैल के गुम्मट पर, जो पहरुआ खड़ा या, उस ने थेहू के संग आते हुए दल को देखकर कहा, मुझे एक दल दीखता है; योराम ने कहा, एक सवार को बुलाकर उन लोगोंसे मिलने को भेज और वह उन से पूछे, क्या कुशल है? 18. तब बक सवार उस से मिलने को गया, और उस से कहा, राजा पूछता है, क्या कुशल है? थेहू ने कहा, कुशल से तेरा क्या काम? हटकर मेरे पीछे चल। तब पहरुए ने कहा, वह दूत उनके पास पहुंचा तो या, परन्तु लौटकर नहीं आया। 19. तब उसने दूसरा सवार भेजा, और उस ने उनके पास पहुंचकर कहा, राजा पूछता है, क्या कुशल है? थेहू ने कहा, कुशल से तेरा क्या काम? हटकर मेरे पीछे चल। 20. तब पहरुए ने कहा, वह भी उनके पास पहुंचा तो या, परन्तु लौटकर नहीं आया। हांकना निमशी के पोते थेहू का सा है; वह तो बौड़हे की नाई हांकता है। 21. योराम ने कहा, मेरा रय जुतवा। जब उसका रय जुत गया, तब इस्राएल का राजा योराम और यहूदा का राजा अहज्याह, दोनो अपके अपके रय पर चढ़कर निकल गए, और थेहू से मिलने को बाहर जाकर यिज्रैल नाबोत की भूमि में उस से भेंट की। 22. थेहू को देखते ही योराम ने पूछा, हे थेहू क्या कुशल है, थेहू ने उत्तर दिया, जब तक तेरी माता हेज़ेबेल छिनालपन और टोना करती रहे, तब तक कुशल कहां? 23. तब याराम रास फेर के, और अहज्याह से यह कहकर कि हे अहज्याह विश्वासघात है, भाग चल। 24. तब थेहू ने धनुष को कान तक खींचकर योराम के पखौड़ोंके बीच ऐसा तीर मारा, कि वह उसका ह्रृदय फोड़कर निकल गया, और वह अपके रय में फुककर गिर पड़ा। 25. तब थेहू ने बिदकर नाम अपके एक सरदार से कहा, उसे उठाकर यिज्रैली नाबोत की भूमि में फेंक दे; स्मरण तो कर, कि जब मैं और तू, हम दोनो एक संग सवार होकर उसके पिता अहाब के पीछे पीछे चल रहे थे तब यहोवा ने उस से यह भरी वचन कहवाया या, कि यहोवा की यह वाणी है, 26. कि नाबोत और उसके पुत्रोंका जो खून हुआ, उसे मैं ने देखा है, और यहोवा की यह वाण्एी है, कि मैं उसी भूमि में तुझे बदला दूंगा। तो अब यहोवा के उस वचन के अनुसार इसे उठाकर उसी भूमि में फेंक दे। 27. यह देखकर यहूदा का राजा अहज्याह बारी के भवन के मार्ग से भाग चला। और थेहू ने उसका पीछा करके कहा, उसे भी रय ही पर मारो; तो वह भी यिबलाम के पास की गूर की चढ़ाई पर मारा गया, और मगिद्दो तक भगकर मर गया। 28. तब उसके कर्मचारियोंने उसे रय पर यरूशलेम को पहुंचाकर दाऊदपुर में उसके पुरखाओं के बीच मिट्टी दी। 29. अहज्याह तो अहाब के पुत्र योराम के ग्यारहवें वर्ष में यहूदा पर राज्य करने लगा या। 30. जब थेहू यिज्रैल को आया, तब हेज़ेबेल यह सुन अपक्की आंखोंमें सुर्मा लगा, अपना सिर संवारकर, खिड़की में से फांकने लगी। 31. जब थेहू फाटक में होकर आ रहा या तब उस ने कहा, हे अपके स्वामी के घात करने वाले जिम्री, क्या कुशल है? 32. तब उस ने खिड़की की ओर मुंह उठाकर पूछा, मेरी ओर कौन है? कौन? इस पर दो तीन खोजोंने उसकी ओर फांका। 33. तब उस ने कहा, उसे नीचे गिरा दो। सो उन्होंने उसको नीचे गिरा दिया, और उसके लोहू के कुछ छींटे भीत पर और कुछ घोड़ोंपर पके, और उन्होंने उसको पांव से लताड़ दिया। 34. तब वह भीतर जाकर खाने पीने लगा; और कहा, जाओ उस स्रापित स्त्री को देख लो, और उसे मिट्टी दो; वह तो राजा की बेटी है। 35. जब वे उसे मिट्टी देने गए, तब उसकी खोपक्की पांवोंऔर हथेलियोंको छोड़कर उसका और कुछ न पाया। 36. सो उन्होंने लौटकर उस से कह दिया; तब उस ने कहा, यह यहोवा का वह वचन है, जो उस ने अपके दास तिशबी एलिय्याह से कहलवाया या, कि हेज़ेबेल का मांस यिज्रैल की भूमि में कुत्तोंसे खाया जाएगा। 37. और हेज़ेबेल की लोय यिज्रैल की भूमि पर खाद की नाई पक्की रहेगी, यहां तक कि कोई न कहेगा, यह हेज़ेबेल है।
Chapter 10
1. अहाब के तो सत्तर बेटे, पोते, शोमरोन में रहते थे। सो थेहू ने शोमरोन में उन पुरनियोंके पास, और जो यिज्रैल के हाकिम थे, और जो अहाब के लड़केवालोंके पालनेवाले थे, उनके पास पत्र लिखकर भेजे, 2. कि तुम्हारे स्वामी के बेटे, पोते तो तुम्हारे पास रहते हैं, और तुम्हारे रय, और धेड़े भी हैं, और तुम्हारे एक गढ़वाला नगर, और हयियार भी हैं; तो इस पत्र के हाथ लगते ही, 3. अपके स्वामी के बेटोंमें से जो सब से अच्छा और योग्य हो, उसको छांटकर, उसके पिता की गद्दी पर बैठाओ, और अपके स्वामी के घराने के लिथे लड़ो। 4. परंतु वे निपट डर गए, और कहने लगे, उसके साम्हने दो राजा भी ठहर न सके, फिर हम कहां ठहर सकेंगे? 5. तब जो राज घराने के काम पर या, और जो नगर के ऊपर या, उन्होंने और पुरनियोंऔर लड़केबालोंके पालनेवालोंने थेहू के पास योंकहला भेजा, कि हम तेरे दास हैं, जो कुछ तू हम से कहे, उसे हम करेंगे; हम किसी को राजा न बनाएंगे, जो तुझे भाए वहीं कर। 6. तब उस ने दूसरा पत्र लिखकर उनके पास भेजा, कि यदि तुम मेरी ओर के हो और मेरी मानो, तो अपके स्वामी के बेटोंपोतोंके सिर कटवाकर कल इसी समय तक मेरे पास यिज्रैल में हाजिर होना। राजपुत्र तो जो सत्तर मतुष्य थे, वे उस नगर के रईसोंके पास पलते थे। 7. यह पत्र उनके हाथ लगते ही, उन्होंने उन सत्तरोंराजपुत्रोंको पकड़कर मार डाला, और उनके सिर टोकरियोंमें रखकर यिज्रैल को उसके पास भेज दिए। 8. और एक दूत ने उसके पास जाकर बता दिया, कि राजकुमारोंके सिर आगए हैं। तब उस ने कहा, उन्हें फाटक में दो ढेर करके बिहान तक रखो। 9. बिहान को उस ने बाहर जा खड़े होकर सब लोगोंसे कहा, तुम तो निदॉष हो, मैं ने अपके स्वामी से राजद्रोह की गोष्ठी करके उसे घात किया, परन्तु इन सभोंको किस ने मार डाला? 10. अब जान लो कि जो वचन यहोवा ने अपके दास एलिय्याह के द्वारा कहा या, उसे उस ने पूरा किया है; जो वचन यहोवा ने अहाब के घराने के विषय कहा, उस में से एक भी बात बिना पूरी हुए न रहेगी। 11. तब अहाब के घराने के जितने लोग यिज्रैल में रह गए, उन सभोंको और उसके जितने प्रधान पुरुष और मित्र और याजक थे, उन सभोंको थेहू ने मार डाला, यहां तक कि उस ने किसी को जीवित न छोड़ा। 12. तब वह वहां से चलकर शोमरोन को गया। और मार्ग में चरवाहोंके ऊन कतरने के स्यान पर पहुंचा ही या, 13. कि यहूदा के राजा अहय्याह के भई थेहू से मिले और जब उस ने पूछा, तुम कौन हो? तब उन्होंने उत्तर दिया, हम अहज्याह के भाई हैं, और राजमुत्रोंऔर राजमाता के बेटोंका कुशलझेम पूछने को जाते हैं। 14. तब उस ने कहा, इन्हें जीवित पकड़ो। सो उन्होंने उनको जो बयालीस पुरुष थे, जीवित पकड़ा, और ऊन कतरते के स्यान की बाबली पर मार डाला, उस ने उन में से किसी को न छोड़ा। 15. जब वह वहां से चला, तब रेकाब का पुत्र यहोनादाब साम्हने से आता हुआ उसको मिला। उसका कशल उस ने पूछकर कहा, मेरा मन तो तेरी ओर निष्कपट है सो क्या तेरा मन भी वैसा ही है? यहोनादाब ने कहा, हां, ऐसा ही है। फिर उस ने कहा, ऐसा हो, तो अपना हाथ मुझे दे। उस ने अपना हाथ उसे दिया, और वह यह कहकर उसे अपके पास रय पर चढ़ाने लगा, 16. कि मेरे संग चल। और देख, कि मुझे यहोवा के निमित्त कैसी जलन रहती है। तब वह उसके रय पर चढ़ा दिया गया। 17. शोमरोन को पहुंचकर उस ने यहोवा के उस वचन के अनुसार जो उस ने एलिय्याह से कहा या, अहाब के जितने शोमरोन में बचे रहे, उन सभोंको मार के विनाश किया। 18. तब थेहू ने सब लोगोंको इकट्ठा करके कहा, अहाब ने तो बाल की योड़ी ही उपासना की यी, अब थेहू उसकी अपासना बढ़के करेगा। 19. इसलिथे अब बाल के सब नबियों, सब उपासकोंऔर सब याजकोंको मेरे पास बुला लाओ, उन में से कोई भी न रह जाए; क्योंकि बाल के लिथे मेरा एक बड़ा यज्ञ होनेवाला है; जो कोई न आए वह जीवित न बचेगा। थेहू ने यह काम कमट करके बाल के सब उपासकोंको नाश करने के लिथे किया। 20. तब थेहू ने कहा, बाल की एक पवित्र महासभा का प्रचार करो। और लोगोंने प्रचार किया। 21. और थेहू ने सारे इस्राएल में दूत भेजे; तब वाल के सब उपासक आए, यहां तक कि ऐसा कोई न रह गया जो न आया हो। और वे बाल के भवन में इतने आए, कि वह एक सिक्के से दूसरे सिक्के तक भर गया। 22. तब उस ने उस मनुष्य से जो वस्त्र के घर का अधिक्कारनेी या, कहा, बाल के सब उपासकोंके लिथे वस्त्र निकाल ले आ; सो वह उनके लिथे वस्त्र निकाल ले आया। 23. तब थेहू रेकाब के पुत्र यहोनादाब को संग लेकर बाल के भपन में गया, और बाल के उपासकोंसे कहा, ढूंढ़कर देखो, कि यहां तुम्हारे संग यहोवा का कोई उपासक तो नहीं है, केवल बाल ही के उपासक हैं। 24. तब वे मेलबलि और होमबलि चढ़ाने को भीतर गए। थेहू ने तो अस्सी पुरुष बाहर ठहरा कर उन से कहा या, यदि उन मनुष्योंमें से जिन्हें मैं तुम्हारे हाथ कर दूं, कोर्ठ भी बचने पाए, तो जो उसे जाने देगा उसका प्राण, उसके प्राण की सन्ती जाएगा। 25. फिर जब होमबलि चढ़ चुका, तब संहू ने पहरुओं उौर सरदारोंसे कहा, भीतर जाकर उन्हें मार डालो; कोई निकलने न पाए। तब उन्होंने उन्हें तलवार से मारा और पहरुए और सरदार उनको बाहर फेंककर बाल के भवन के नगर को गए। 26. और उन्होंने बाल के भवन में की लाठें निकालकर फूंक दीं। 27. और बाल की लाठ को उन्होंने तोड़ डाला; और बाल के भवन को ढाकर पायखाना बना दिया; और वह आज तक ऐसा ही है। 28. योंथेहू ने बाल को इस्राएल में से नाश करके दूर किया। 29. ैतौभी नबात के पुत्र यारोबाम, जिस ने इस्राएल से पाप कराया या, उसके पापोंके अनुसार करने, अर्यात् बेतेल और दान में के सोने के बछड़ोंकी पूजा, उस से थेहू अलग न हुआ। 30. और यहोवा ने थेहू से कहा, इसलिथे कि नू ने वह किया, जो मेरी दृष्टि में ठीक है, और अहाब के घराने से मेरी इच्छा के अनुसार बर्ताव किया है, तेरे परपोते के पुत्र तक तेरी सन्तान इस्राएल की गद्दी पर बिराजती रहेगी। 31. परन्तु थेहू ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की य्यवस्या पर पूर्ण मन से चलने की चौकसी न की, वरन यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया या, उसके पापोंके अनुसार करने से वह अलग न हुआ। 32. उन दिनोंयहोवा इस्राएल को घटाने लगा, इसलिथे हजाएल ने इस्राएल के उन सारे देशोंमें उनको मारा : 33. यरदन से पूरब की ओर गिलाद का सारा देश, और गादी और रूबेनी और मनश्शेई का देश अर्यात् अरोएर से लेकर जो अनॉन की तराई के पास है, गिलाद और बाशान तक। 34. थेहू के और सब काम और जो कुछ उस ने किया, और उसकी पूर्णर् वीरता, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 35. निदान थेहू अपके पुरखाओं के संग सो गया, और शोमरोन में उसको मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र यहोआहाज उसके स्यान पर राजा बन गया। 36. थेहू के शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने का समय तो अट्ठाईस वर्ष का या।
Chapter 11
1. जब अहज्याह की माता अतल्याह ने देखा, कि मेरा पुत्र मर गया, तब उस ने पूरे राजवंश को नाश कर डाला। 2. परन्तु यहोशेबा जो राजा योराम की बेटी, और अहज्याह की बहिन यी, उस ने अहज्याह के पुत्र योआश को घात होनेवाले राजकुमारोंके बीच में से चुराकर धाई समेत बिछौने रखने की कोठरी में छिपा दिया। और उन्होंने उसे अतल्याह से ऐसा छिपा रखा, कि वह मारा न गया। 3. और वह उसके पास यहोवा के भवन में छ:वर्ष छिपा रहा, और अतल्याह देश पर राज्य करती रही। 4. सातवें वर्ष में यहोयादा ने जल्लादोंऔर पहरुओं के शतपतियोंको बुला भेजा, और उनको यहोवा के भवन में अपके पास ले आया; और उन से वाचा बान्धी और यहोवा के भवन में उनको शपय खिलाकर, उनको राजपुत्र दिखाया। 5. और उस ने उन्हें आज्ञा दी, कि एक काम करो : अर्यात् तुम में से एक तिहाई लोग जो विश्रमदिन को आनेवाले हों, वह राजभवन के पहरे की चौकसी करें। 6. और एक तिहाई लोग सूर नाम फाटक में ठहरे रहें, और एक तिहाई लोग पहरुओं के पीछे के फाटक में रहें; योंतुम भवन की चौकसी करके लोगोंको रोके रहना। 7. और तुम्हारे दो दल अर्यात् जितने विश्रम दिन को बाहर जानेवाले होंवह राजा के आसपास होकर यहोवा के भवन की चौकसी करें। 8. और तुम अपके अपके हाथ में हयियार लिथे हुए राजा के चारोंओर रहना, और जो कोई पांतियोंके भीतर घुसना चाहे वह मार डाला जाए, और तुम राजा के आते-जाते समय उसके संग रहना। 9. यहाथादा याजक की इन सब आज्ञाओं के अनुसार शतपतियोंने किया। वे विश्रमदिन को आनेवाले और जानेवाले दोनोंदलोंके अपके अपके जनोंको संग लेकर यहोयादा याजक के पास गए। 10. तब याजक ने शतपतियोंको राजा दाऊद के बर्छे, और ढालें जो यहोवा के भवन में यीं दे दीं। 11. इसलिथे वे पहरुए अपके अपके हाथ में हयियार लिए हुए भवन के दक्खिनी कोने से लेकर उत्तरी कोने तक वेदी और भवन के पास राजा के चारोंओर उसकी आड़ करके खड़े हुए। 12. तब उस ने राजकुमार को बाहर लाकर उसके सिर पर मुकुट, और साझीपत्र धर दिया; तब लोगोंने उसका अभिषेक करके उसको राजा बनाया; फिर ताली बजा बजाकर बोल उठे, राजा जीवित रहे । 13. जब अतल्याह को पहरुओं और लोगोंका हलचल सुन पड़ा, तब वह उनके पास यहोवा के भवन में गई। 14. और उस ने क्या देखा कि राजा रीति के अनुसार खम्भे के पास खड़ा है, और राजा के पास प्रधान और तुरही बजानेवाले खड़े हैं। और लोग आनन्द करते और तुरहियां बजा रहे हैं। तब अतल्याह अपके वस्त्र फाड़कर राजद्रोह राजद्रोह योंपुकारने लगी। 15. तब यहोयादा याजक ने दल के अधिक्कारनेी शतपतियोंको आज्ञा दी कि उसे अपक्की पांतियोंके बीच से निकाल ले जाओ; और जो कोई उसके पीछे चले उसे तलवार से मार डालो। क्योंकि याजक ने कहा, कि वह यहोवा के भवन में न मार डाली जाए। 16. इसलिथे उन्होंने दोनोंओर से उसको जगह दी, और वह उस मार्ग के बीच से चक्की गई, जिस से घोड़े राजभवन में जाया करते थे; और वहां वह मार डाली गई। 17. तब यहोयादा ने यहोवा के, और राजा-प्रजा के बीच यहोवा की प्रजा होने की वाचा बन्धाई, और उस ने राजा और प्रजा के मध्य भी वाचा बन्धाई। 18. तब सब लोगोंने बाल के भवन को जाकर ढा दिया, और उसकी वेदियां और मूरतें भली भंति तोड़ दीं; और मतान नाम बाल के याजक को वेदियोंके साम्हने ही घात किया। और याजक ने यहोवा के भवन पर अधिक्कारनेी ठहरा दिए। 19. तब वह शतपतियों, जल्लादोंऔर पहरुओं और सब लोगोंको साय लेकर राजा को यहोवा के भवन से नीचे ले गया, और पहरुओं के फाटक के मार्ग से राजभवन को पहुंचा दिया। और राजा राजगद्दी पर विराजमान हुआ। 20. तब सब लोग आनन्दित हुए, और नगर में शान्ति हुई। अतल्याह तो राजभवन के पास तलवार से मार डाली गई यी। 21. जब योआश राजा हुआ, उस समय वह सात पर्ष का या।
Chapter 12
1. थेहू के सातवें वर्ष में योआश राज्य करने लगा, और यरूशलेम में चालीस वर्ष तक राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम सिब्या या जो बेशॅबा की यी। 2. और जब तक यहोयादा याजक योआश को शिझा देता रहा, तब तक वह वही काम करता रहा जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है। 3. तौभी ऊंचे स्यान गिराए न गए; प्रजा के लोग तब भी ऊंचे स्यान पर बलि चढ़ाते और धूप जलाते रहे। 4. और योआश ने याजकोंसे कहा, पवित्र की हुई वस्तुओं का जितना रुपया यहोवा के भवन में पहुंचाया जाए, अर्यात् गिने हुए लोगोंका रुपया और जितने रुपके के जो कोई योग्य ठहराया जाए, और जितना रुपया जिसकी इच्छा यहोवा के भवन में ले आने की हो, 5. इन सब को याजक लोग अपक्की जान पहचान के लोगोंसे लिया करें और भवन में जो कुछ टूटा फूटा हो उसको सुधार दें। 6. तौभी याजकोंने भवन में जो टूटा फूटा या, उसे योआश राजा के तेईसवें वर्ष तक नहीं सुधारा या। 7. इसलिथे राजा योआश ने यहोयादा याजक, और और याजकोंको बुलवाकर पूछा, भवन में जो कुछ टूटा फूटा है, उसे तुम क्योंनहीं सुधारते? अब से अपक्की जान पहचान के लोगोंसे और रुपया न लेना, और जो तुम्हें मिले, उसे भवन के सुधारने के लिथे दे देना। 8. तब याजकोंने मानलिया कि न तो हम प्रजा से और रुपया लें और न भवन को सुधारें। 9. तब यहोयादा याजक ने एक सन्दूक ले, असके ढकने में छेद करके उसको यहोवा के भवन में आनेवालोंके दाहिने हाथ पर वेदी के पास धर दिया; और द्वार की रखवाली करनेवाले याजक उस में वह सब रुपया डालते लगे जो यहोवा के भवन में लाया जाता या। 10. जब उन्होंने देखा, कि सन्दूक में बहुत रुपया है, तब राजा के प्रधान और महाथाजक ने आकर उसे यैलियोंमें बान्ध दिया, और यहोवा के भवन में पाए हुए रुपके को गिन लिया। 11. तब उन्होंने उस तौले हुए रुपके को उन काम करानेवालोंके हाथ में दिया, जो यहोवा के भवन में अधिक्कारनेी थे; और इन्होंने उसे यहोवा के भवन के बनानेवाले बढ़इयों, राजों, और संगतराशोंको दिथे। 12. और लकड़ी और गढ़े हुए पत्यर मोल लेने में, वरन जो कुछ भवन के टूटे फूटे की मरम्मत में खर्च होता या, उस में लगाया। 13. मरन्तु जो रुपया यहोवा के भवन में आता या, उस से चान्दी के तसले, चिमटे, कटोरे, तुरहियां आदि सोने वा चान्दी के किसी प्रकार के पात्र न बने। 14. परन्तु वह काम करनेवाले को दिया गया, और उन्होंने उसे लेकर यहोवा के भवन की मरम्मत की। 15. और जिनके हाथ में काम करनेवालोंको देने के लिथे रुपया दिया जाता या, उन से कुछ हिसाब न लिया जाता या, क्योंकि वे सच्चाई से काम करते थे। 16. जो रुपया दोषबलियोंऔर पापबलियोंके लिथे दिया जाता या, यह तो यहोवा के भवन में न लगाया गया, वह याजकोंको मिलता या। 17. तब अराम के राजा हजाएल ने गत नगर पर चढ़ाई की, और उस से लड़ाई करके उसे ले लिया। तब उस ने यरूशलेम पर भी चढ़ाई करने को अपना मुंह किया। 18. तब यहूदा के राजा योआश ने उन सब पवित्र वस्तुओं को जिन्हें उसके पुरखा यहोशापात यहोराम और अहज्याह नाम यहूदा के राजाओं ने पवित्र किया या, और अपक्की पवित्र की हुई वस्तुओं को भी और जितना सोना यहोवा के भवन के भणडारोंमें और राजभवन में मिला, उस सब को लेकर अराम के राजा हजाएल के पास भेज दिया; और वह यरूशलेम के पास से चला गया। 19. योआश के और सब काम जो उस ने किया, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 20. योआश के कर्मचारियोंने राजद्रोह की गोष्ठी करके, उसको मिल्लो के भवन में जो सिल्ला की उतराई पर या, मार डाला। 21. अर्यात् शिमात का पुत्र योजाकार और शोमेर का पुत्र यहोजाबाद, जो उसके कर्मचारी थे, उन्होंने उसे ऐसा मारा, कि वह मर गया। तब उसे उसके पुरखाओं के बीच दाऊदपुर में मिट्टी दी, और उसका पुत्र अमस्याह उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
Chapter 13
1. अहज्याह के पुत्र यहूदा के राजा योआश के तेईसवें वर्ष में यंहू का मुत्र यहोआहाज शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा, और सत्रह वर्ष तक राज्य करता रहा। 2. और उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या अर्यात् नबात के पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया या, उसके पापोंके अनुसार वह करता रहा, और उनको छोड़ न दिया। 3. इसलिथे यहोवा का क्रोध इस्राएलियोंके विरुद्ध भड़क उठा, और उस ने उनको अराम के राजा हजाएल, और उसके पुत्र बेन्हदद के अधीन कर दिया। 4. तब यहोआहाज यहोवा के साम्हने गिड़गिड़ाया और यहोवा ने उसकी सुन ली; क्योंकि उस ने इस्राएल पर अन्धेर देखा कि अराम का राजा उन पर कैसा अन्धेर करता या। 5. इसलिथे यहोवा ने इस्राएल को एक छुड़ानेवाला दिया और वे अराम के वश से छूट गए; और इस्राएली अगले दिनोंकी नाई फिर अपके अपके डेरे में रहने लगे। 6. तौभी वे ऐसे पापोंसे न फिरे, जैसे यारोबाम के घराने ने किया, और जिनके अनुसार उस ने इस्राएल से पाप कराए थे : परन्तु उन में चलते रहे, और शोमरोन में अशेरा भी खड़ी रही। 7. अराम के राजा ने तो यहोआहाज की सेना में से केवल पचास सवार, दस रय, और दस हजार प्यादे छोड़ दिए थे; क्योंकि उस ने उनको नाश किया, और रौंद रौंदकर के धूलि में मिला दिया या। 8. यहोआहाज के और सब काम जो उस ने किए, और उसकी वीरता, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 9. निदान यहोआहाज अपके पुरखाओं के संग सो गया और शोमरोन में उसे मिद्दी दी बई; और उसका पुत्र योआश उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 10. यहूदा के राजा योआश के राज्य के सैंतीसवें वर्ष में यहोआहाज का पुत्र यहोआश शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करते लगा, और सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा। 11. और उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या, अर्यात् नबात का पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया या, उसके पापो के अनुसार वह करता रहा, और उन से अलग न हुआ। 12. योआश के और सब काम जो उस ने किए, और ख्सि वीरता से वह सहूदा के राजा अमस्याह से लड़ा, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 13. निदान योआश अपके पुरखाओं के संग सो गया और यारोबाम उसकी गद्दी पर विराजमान हुआ; और योआश को शोमरोन में इय्राएल के राजाओं के बीच मिट्टी दी गई। 14. और एलीशा को वह रोग लग गया जिस से वह मरने पर या, तब इस्राएल का राजा योआश उसके पास गया, और उसके ऊपर रोकर कहने लगा, हाथ मेरे पिता ! हाथ मेरे पिता ! हाथ इस्राएल के रय और सवारो ! एलीश ने उस से कहा, धनुष और तीर ले आ। 15. वह उसके पास धनुष और तीर ले आया। 16. तब उस ने इस्राएल के राजा से कहा, धनुष पर अपना हाथ लगा। जब उस ने अपना हाथ लगाया, तब एलीशा ने अपके हाथ राजा के हाथोंपर धर दिए। 17. तब उस ने कहा, पूर्व की खिड़की खोल। जब उस ने उसे खोल दिया, तब एलीशा ने कहा, तीर छोड़ दे; उस ने तीर छोड़ा। और एलीशा ने कहा, यह तीर यहोवा की ओर से छुटकारे अर्यात् अराम से छुटकारे का चिह्रृ है, इसलिथे तू अपेक में अराम को यहां तक मार लेगा कि उनका अन्त कर डालेगा। 18. फिर उस ने कहा, तीरोंको ले; और जब उस ने उन्हें लिया, तब उस ने इस्राएल के राजा से कहा, भूमि पर मार; तब वह तीन बार मार कर ठहर गया। 19. और परमेश्वर के जन ने उस पर क्रोधित होकर कहा, तुझे तो पांच छ: बार मारना चाहिथे या। ऐसा करते से तो तू अराम को यहां तक मारता कि उनका अन्त कर डालता, परन्तु अब तू उन्हें तीन ही बार मारेगा। 20. तब एलीशा मर गया, और उसे मिट्टी दी गई। एक वर्ष के बाद मोआब के दल देश में आए। 21. लोग किसी मनुष्य को मिट्ठी दे रहे थे, कि एक दल उन्हें देख पड़ा तब उन्होंने उस लोय को एलीशा की कबर में डाल दिया, और एलीशा की हड्ढियोंके छूते ही वह जी उठा, और अपके पावोंके बल खड़ा हो गया। 22. यहोआहाज के जीवन भर अराम का राजा हजाएल इस्राएल पर अन्धेर ही करता रहा। 23. परन्तु यहोवा ने उन पर अनुग्रह किया, और उन पर दया करके अपक्की उस वाचा के कारण जो उस ने इब्राहीम, इसहाक और याकूब से बान्धी यी, उन पर कृपा दृष्टि की, और न तो उन्हें नाश किया, और न अपके साम्हने से निकाल दिया। 24. तब अराम का राजा हजाएल मर गया, और उसका पुत्र बेन्हदद उसके स्यान पर राजा बन गया। 25. और यहोआहाज के पुत्र यहोआश ने हजाएल के पुत्र बेन्हदद के हाथ से वे नगर फिर ले लिए, जिन्हें उस ने युद्ध करके उसके पिता यहोआहाज के हाथ से छीन लिया या। योआश ने उसको तीन बार जीतकर इस्राएल के नगर फिर ले लिए।
Chapter 14
1. इस्राएल के राजा यहोआहाज के पुत्र सोआश के दूसरे वर्ष में यहूदा के राजा योआश का मुत्र असस्याह राजा हुआ। 2. जब वह राज्य करने लगा। तब वह पक्कीस वर्ष का या, और यरूशलेम में उनतीस वर्ष राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम यहोअद्दीन या, जो यरूशलेम की यी। 3. उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक या तौभी अपके मूल पुरुष दाऊद की नाई न किया; उस ने ठीक अपके पिता योआश के से काम किए। 4. उसके दिनोंमें ऊंचे स्यान गिराए न गए; लोग तब भी उन पर बलि चढ़ाते, और धूप जलाते रहे। 5. जब राज्य उसके हाथ में स्यिर हो गया, तब उस ने अपके उन कर्मचारियोंको मार डाला, जिन्होंने उसके पिता राजा को मार डाला या। 6. परन्तु उन खूनियोंके लड़केवालोंको उस ने न मार डाला, क्योंकि यहोवा की यह आज्ञा मूसा की य्यवस्या की पुस्तक में लिखी है, कि पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए, और पिता के कारण पुत्र न मार डाला जाए : जिस ने पाप किया हो, वही उस पाप के कारण मार डाला जाए। 7. उसी अमस्याह ने लोन की तराई में दस हजार एदोमी पुरुष मार डाले, और सेला नगर से युद्ध करके उसे ले लिया, और उसका नाम योक्तेल रखा, और वह नाम आज तक चलता है। 8. तब अमस्याह ने इस्राएल के राजा योआश के पास जो थेहू का पोता और यहोआहाज का पुत्र या दूतोंसे कहला भेजा, कि आ हम एक दूसरे का साम्हना करें। 9. इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह के पास योंकहला भेजा, कि लबानोन पर की एक फड़बेरी ने लबानोन के एक देवदारु के पास कहला भेजा, कि अपक्की बेटी मेरे बेटे को ब्याह दे; इतने में लबानोन में का एक बनपशु पास से चला गया और उस फड़बेरी को रौंद डाला। 10. तू ने एदोमियोंको जीता तो है इसलिथे तू फूल उठा है। उसी पर बड़ाई पारता हुआ घर रह जा; तू अपक्की हानि के लिथे यहां क्योंहाथ उठाता है, जिस से तू क्या वरन यहूदा भी तीचा खाएगा ? 11. परन्तु अमस्साह ने न माना। तब इस्राएल के राजा योआश ने चढाई की, और उस ने और यहूदा के राजा अमस्याह ने यहूदा देश के बेतशेमेश में एक दूसरे का सामहना किया। 12. और यहूदा इस्राएल से हार गया, और एक एक अपके अपके डेरे को भागा। 13. तब इस्राएल के राजा योआश ने यहूदा के राजा अमस्याह को जो अहज्याह का पोता, और योआश का पुत्र या, बेतशेमेश में पकड़ लिया, और यरूशलेम को गया, और यरूशलेम की शहरपनाह में से बप्रैमी फाटक से कोनेवाले फाटक तक चार सौ हाथ गिरा दिए। 14. और जितना सोना, चान्दी और जितने पात्र यहोवा के भवन में और राजभवन के भणडारोंमें मिले, उन सब को और बन्धक लोगोंको भी लेकर वह शोमरोन को लौट गया। 15. योआश के और काम जो उस ने किए, ओर उसकी वीरता और उस ने किस रीति यहूदा के राजा अमस्याह से युद्ध किया, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 16. निदान योआश अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसे इस्राएल के राजाओं के बीच शोमरोन में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र यारोबाम उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 17. यहोआहाज के पुत्र इस्राएल के राजा यहोआश के मरने के बाद योआश का पुत्र यहूदा का राजा अमस्याह पन्द्रह वर्ष जीवित रहा। 18. अमस्याह के और काम क्या यहूदा के रजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 19. जब यरूशलेम में उसके विरुद्ध राजद्रोह की गोष्ठी की गई, तब वह लाकीश को भाग गया। सो उन्होंने लाकीश तक उसका पीछा करके उसको वहां मार डाला। 20. तब वह घोड़ोंपर रखकर यरूशलेम में पहुंचाया गया, और वहां उसके पुरखाओं के बीच उसको दाऊदपुर में मिट्टी दी गई। 21. तब सररी यहूदी प्रजा ने अजर्याह को लेकर, जो सोलह वर्ष का या, उसके पिता अमस्याह के स्यान पर राजा नियुक्त कर दिया। 22. जब राजा अमस्याह अपके पुरखाओं के संग सो गया, उसके बाद अजर्याह ने एलत को दृढ़ करके यहूदा के वश में फिर कर लिया। 23. यहूदा के राजा योआश के पुत्र अमस्याह के राज्य के पन्द्रहवें वर्ष में इस्राएल के राजा योआश का पुत्र यारोबाम शोमरोन में राज्य करने लगा, और एकतालीस वर्ष राज्य करता रहा। 24. उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या; अर्यात् नबात के पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया या, उसके पापोंके अनुसार वह करता रहा, और उन से वह अलग न हुआ। 25. उस ने इस्राएल का सिवाना हमात की घाटी से ले अराबा के ताल तक ज्योंका त्योंकर दिया, जैसा कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ने अमित्तै के पुत्र अपके दास गथेपेरवासी योना भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा या। 26. क्योंकि यहोवा ने इस्राएल का दु:ख देखा कि बहुत ही कठिन है, वरन क्या बन्धुआ क्या स्वाधीन कोई भी बचा न रहा, और न इस्राएल के लिथे कोई सहाथक या। 27. यहोवा ने नहीं कहा या, कि मैं इस्राएल का नाम घरती पर से मिटा डालूंगा। सो उस ने योआश के पुत्र यारोबाम के द्वारा उनको छूटकारा दिया। 28. यारोबाम के उौर सब काम जो उस ने किए, और कैसे पराक्रम के साय उस ने युद्ध किया, और दमिश्क और हमात को जो पहले यहूदा के राज्य में थे इस्राएल के वश में फिर मिला लिया, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 29. निदान यारोबाम अपके पुरखाओं के संग जो इस्राएल के राजा थे सो गया, और उसका पुत्र जकर्याह उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
Chapter 15
1. इस्राएल के राजा यारोबाम के सताईसवें वर्ष में यहूदा के राजा अमस्याह का पुत्र अजर्याह राजा हुआ। 2. जब वह राज्य करने लगा, तब सोलह वर्ष का या, और यरूशलेम में बावन वर्ष राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम यकोल्याह या, जो यरूशलेम की यी। 3. जैसे उसका पिता अमस्याह किया करता या जो यहोवा की दृष्टि में ठीक या, वैसे ही वह भी करता या। 4. तौभी ऊंचे स्यान गिराए न गए; प्रजा के लोग उस समय भी उन पर बलि चढ़ाते, और धूप जलाते रहे। 5. और यहोवा ने उस राजा को ऐसा मारा, कि वह मरने के दिन तक कोढ़ी रहा, और अलग एक घर में रहता या। और योताम नाम राजपुत्र उसके घराने के काम पर अधिक्कारनेी होकर देश के लोगोंका न्याय करता या। 6. अजर्याह के और सब काम जो उस ने किए, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में तहीं लिखे हैं? 7. निदान अजर्याह अपके पुरखाओं के संग सो गया और असको दाऊदपुुर में उसके पुरखाओं के बीच मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र योताम उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 8. यहूदा के राजा अजर्याह के अड़तीसवें वर्ष में यारोबाम का पुत्र जकर्याह इस्राएल पर शोमरोन में राज्य करने लगा, और छ: महीने राज्य किया। 9. उस ने अपके पुरखाओं की नाई वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, अर्यात् नबात के पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया य, उसके पापोंके अनुसार वह करता रहा, और उन से वह अलग न हुआ। 10. और याबेश के पुत्र शल्लूम ने उस से राजद्रोह की गोष्ठी करके उसको प्रजा के साम्हने मारा, और उसका घात करके उसके स्यान पर राजा हुआ। 11. जकर्याह के और काम इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 12. योंयहोवा का वह वचन पूरा हुआ, जो उस ने थेहू से कहा या, कि तेरे परपोते के पुत्र तक तेरी सन्तान इस्राएल की गद्दी पर बैठती जाएगी। और वैसा ही हुआ। 13. यहूदा के राजा उज्जिय्याह के उनतालीसवें वर्ष में याबेश का पुत्र शल्लूम राज्य करने लगा, और महीने भर शोमरोन में राज्य करता रहा। 14. क्योंकि गादी के पुत्र मनहेम ने, तिर्सा से शोमरोन को जाकर याबेश के पुत्र शल्लूम को वहीं मारा, और उसे घात करके उसके स्यान पर राजा हुआ। 15. शल्लूम के और काम और उस ने राजद्रोह की जो गोष्ठी की, यह सब इस्राएल के राजाओं के इतिहास की मुस्तक में लिखा है। 16. तब मनहेम ने तिर्सा से जाकर, सब निवासियोंऔर आस पास के देश समेत तिप्सह को इस कारण मार लिया, कि तिप्सहियोंने उसके लिथे फाटक न खेले थे, इस कारण उस ने उन्हें मार लिया, और उस में जितनी गर्भवती स्त्रियां यीं, उस सभोंको चीर डाला। 17. यहूदा के राजा अजर्याह के उनतालीसवें वर्ष में गादी का पुत्र मनहेम इस्राएल पर राज्य करने लगा, और दस वर्ष शोमरोन में राज्य करता रहा। 18. उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या, अर्यात् नबात के पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप कराया या, उसके पापोंके अनुसार वह करता रहा, और उन से वह जीवन भर अलग न हुआ। 19. अश्शूर के राजा पूल ने देश पर चढ़ाई की, और मनहेम ने उसको हजार किक्कार चान्दी इस इच्छा से दी, कि वह उसका यहाथक होकर राज्य को उसके हाथ में स्यिर रखे। 20. यह चान्दी अश्शूर के राजा को देने के लिथे मनहेम ने बड़े बड़े धनवान इस्राएलियोंसे ले ली, एक एक पुरुष को पचास पचास शेकेल चान्दी देनी पक्की; तब अश्शूर का राजा देश को छोड़कर लौट गया। 21. मनहेम के उौर काम जो उस ने किए, वे सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 22. निदान मनहेम अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसका पुत्र मकहयाह उसके स्यान पर राज्य करने लगा। 23. यहूदा के राजा अजर्याह के पचासवें वर्ष में मनहेम का पुत्र पकहयाह शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा, और दो वर्ष तक राज्य करता रहा। 24. उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या, अर्यात् नबात के पुत्र यारोबाम जिस ने इस्राएल से पाप रािया या, उसके पापोंके अनुसार वह करता रहा, और उन से वह अलग न हुआ। 25. उसके सरदार रमल्याह के पुत्र पेकह ने उस से राजद्रोह की गोष्ठी करके, शोमरोन के राजभवन के गुम्मट में उसको और उसके संग अगॉब और अर्थे को मारा; और पेकह के संग पचास गिलादी पुरुष थे, और वह उसका घात करके उसके स्यान पर राजा बन गया। 26. पकहयाह के और सब काम जो उस ने किए, वह इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 27. यहूदा के राजा अजर्याह के बावनवें वर्ष में रमल्याह का पुत्र पेकह शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा, और बीस वर्ष तक राज्य करता रहा। 28. उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या, अर्यात् नबात के पुत्र यारोबाम, जिस ने इस्राऐल से पाप कराया या, उसके पापोंके अनुसार वह करता रहा, और उन से वह अलग न हुआ। 29. इस्राएल के राजा पेकह के दिनोंमें अश्शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर ने आकर इय्योन, अबेल्बेत्माका, यानोह, केदेश और हासोर नाम नगरोंको और गिलाद और गालील, वरन नप्ताली के पूरे देश को भी ले लिया, और उनके लोगोंको बन्धुआ करके अश्शूर को ले गया। 30. उजिय्याह के पुत्र योताम के बीसवें वर्ष में एला के पुत्र होशे ने रमल्याह के पुत्र पेकह से राजद्रोह की गोष्ठी करके उसे मारा, और उसे घात करके उसके स्यान पर राजा बन गया। 31. पेकह के और सब काम जो उस ने किए वह इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखे हैं। 32. रमल्याह के पुत्र इस्राएल के राजा पेकह के दूसरे वर्ष में यहूदा के जाजा उजिय्याह का पुत्र योताम राजा हुआ। 33. जब वह राज्य करने लगा, तब पक्कीस वर्ष का या, और यरूशलेम में सोलह वर्ष तक राज्य करता रहा। और उसकी पाता का नाम यरूशा या जो सादोक की बेटी यी। 34. उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक या, अर्यात् जैसा उसके पिता उजिय्याह ने किया या, ठीक वैसा ही उस ने भी किया। 35. तौभी ऊंचे स्यान गिराए न गए, प्रजा के लोग उन पर उस समय भी बलि चढाते और धूम जलाते रहे। यहोवा के भवन के ऊंचे फाटक को इसी ने बनाया या। 36. योताम के और सब काम जो उस ने किए, वे क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 37. उन दिनोंमें यहोवा अराम के राजा रसीन को, और रमल्याह के पुत्र पेकह को, यहूदा के विरुद्ध भेजने लगा। 38. निदान योताम अपके पुरखाओं के संग सो गया और अपके मुलपुरुष दाऊद के नगर में अपके पुरखाओं के बीच उसको मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र आहाज उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
Chapter 16
1. रमल्याह के पुत्र पेकह के सत्रहवें वर्ष में यहूदा के राजा योताम का पुत्र आहाज राज्य करने लगा। 2. जब आहाज राज्य करने लगा, तब वह बीस पर्ष का या, और सोलह वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उस ने अपके मूलपुरुष दाऊद का सा काम नहीं किया, जो उसके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में ठीक या। 3. परन्तु वह इस्राएल के राजाओं की सी चाल चला, वरन उन जातियोंके घिनौने कामोंके अनुसार, जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने से देश से निकाल दिया या, उस ने अपके बेटे को भी आग में होम कर दिया। 4. और ऊंचे स्यानोंपर, और पहाडिय़ोंपर, और सब हरे वृझोंके तले, वह बलि चढ़ाया और धूम जलाया करता या। 5. तब अराम के राजा रसीन, और रमल्याह के पुत्र इस्राएल के राजा पेकह ने लड़ने के लिथे यरूशलेम पर चढ़ाई की, और उन्होंने आहाज को घेर लिया, परन्तु युद्ध करके उन से कुछ बन न पड़ा। 6. उस समय अराम के राजा रसीन ने, एलत को अराम के वश में करके, यहूदियोंको वहां से निकाल दिया; तब अरामी लोग एलत को गए, और आज के दिन तक वहां रहते हैं। 7. और आहाज ने दूत भेजकर अश्शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर के पास कहला भेजा कि मुझे अपना दास, वरन बेटा जानकर चढ़ाई कर, और मुझे अराम के राजा और इस्राएल के राजा के हाथ से बचा जो मेरे विरुद्ध उठे हैं। 8. और आहाज ने यहोवा के भवन में और राजभवन के भणडारोंमें जितना सोना-चान्दी मिला उसे अश्शूर के राजा के पास भेंट करके भेज दिया। 9. उसकी मानकर अश्शूर के राजा ने दमिश्क पर चढ़ाई की, और उसे लेकर उसके लोगोंको बन्धुआ करके, कीर को ले गया, और रसीन को मार डाला। 10. तब राजा आहाज अश्शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर से भेंट करने के लिथे दमिश्क को गया, और वहां की वेदी देखकर उसकी सब बनावट के अनुसार उसका नकशा ऊरिय्याह याजक के पास नमूना करके भेज दिया। 11. और ठीक इसी नमूने के अनुसार जिसे राजा आहाज ने दमिश्क से भेजा या, ऊरिय्याह याजक ने राजा आहाज के दमिश्क से आने तक एक वेदी बना दी। 12. जब राजा दमिश्क से आया तब उस ने उस वेदी को देखा, और उसके निकट जाकर उस पर बलि चढ़ाए। 13. उसी वेदी पर उस ने अपना होमबलि और अन्नबलि जलौया, और अर्ध दिया और मेलबलियोंका लोहू छिड़क दिया। 14. और पीतल की जो वेदी यहोवा के साम्हने रहती यी उसको उस ने भवन के साम्हने से अर्यात् अपक्की वेदी और यहोवा के भवन के बीच से हटाकर, उस वेदी की उतर ओर रख दिया। 15. तब राजा आहाज ने ऊरिय्याह याजक को यह आज्ञा दी, कि भोर के होपबलि और सांफ के अन्नबलि, राजा के होमबलि और उसके अन्नबलि, और सब साधारण लोगोंके होमबलि और अर्ध बड़ी वेदी पर चढ़ाया कर, और होमबलियोंऔर मेलबलियोंका सब लोहू उस पर छिड़क; और पीतल की वेदी के विषय मैं विचार करूंगा। 16. राजा आहाज की इस आज्ञा के अनुसार ऊरिय्याह याजक ने किया। 17. फिर राजा आहाज ने कुसिर्योंकी पटरियोंको काट डाला, और हौदियोंको उन पर से उतार दिया, और बड़े हौद को उन पीतल के बैलोंपर से जो उसके तले थे उतारकर, पत्यरोंके फर्श पर धर दिया। 18. और विश्रम के दिन के लिथे जो छाया हुआ स्यान भवन में बना या, और राजा के बाहर के प्रवेश करने का फाटक, उनको उस ने अश्शूर के राजा के कारण यहोवा के भवन से अलग कर दिया। 19. आहाज के और काम जो उस ने किए, वे क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 20. निदान आहाज अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसे उसके पुरखाओं के बीच दाऊदपुर में मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र हिजकिय्याह उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
Chapter 17
1. यहूदा के राजा आहाज के बारहवें वर्ष में एला का पुत्र होशे शोमरोन में, इस्राएल पर राज्य करने लगा, और नौ वर्ष तक राज्य करता रहा। 2. उस ने वही किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या, परन्तु इस्राएल के उन राजाओं के बराबर नहीं जो उस से पहिले थे। 3. उस पर अश्शूर के राजा शल्मनेसेर ने चढ़ाई की, और होशे उसके अधीन होकर, उसको भेंट देने लगा। 4. परन्तु अश्शूर के राजा ने होशे को राजद्रोह की गोष्ठी करनेवाला जान लिया, क्योंकि उस ने “सो” नाम मिस्र के राजा के पास दूत भेजे, और अश्शूर के राजा के पास सालियाना भेंट भेजनी छोड़ दी; इस कारण अश्शूर के राजा ने उसको बन्द किया, और बेड़ी डालकर बन्दीगृह में डाल दिया। 5. तब अश्शूर के राजा ने पूरे देश पर चढ़ाई की, और शोमरोन को जाकर तीन वर्ष तक उसे घेरे रहा। 6. होशे के नौवें वर्ष में अश्शूर के राजा ने शोमरोन को ले लिया, और इस्राएल को अश्शूर में ले जाकर, हलह में और गोजान की नदी हाबोर के पास और मादियोंके नगरोंमें बसाया। 7. इसका यह कारण है, कि यद्यपि इस्राएलियोंका परमेश्वर यहोवा उनको मिस्र के राजा फ़िरौन के हाथ से छुड़ाकर मिस्र देश से निकाल लाया या, तौभी उन्होंने उसके विरुद्ध पाप किया, और पराथे देवताओं का भय माना। 8. और जिन जातियोंको यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने से देश से तिकाला या, उनकी रीति पर, और अपके राजाओं की चलाई हुई रीतियोंपर चलते थे। 9. और इस्राएलियोंने कपठ करके अपके परमेश्वर यहोवा के विरुद्ध अनुचित काम किए, अर्यात पहरुओं के गुम्मट से लेकर गढ़वाले नगर तक अपक्की सारी बस्तियोंमें ऊंचे स्यान बना लिए; 10. और सब ऊंची पहाडिय़ोंपर, और सब हरे वुझोंके तले लाठें और अशेरा खड़े कर लिए। 11. और ऐसे ऊंचे स्यानोंमें उन जातियोंकी नाई जिनको यहोवा ने उनके साम्हने से निकाल दिया या, धूप जलाया, और यहोवा को क्रोध दिलाने के योग्य बुरे काम किए। 12. और मूरतोंकी उपासना की, जिसके विषय यहोवा ने उन से कहा या कि तुम यह काम न करना। 13. तौभी यहोवा ने सब भविष्यद्वक्ताओं और सब दशिर्योंके द्वारा इस्राएल और यहूदा को यह कह कर चिताया या, कि अपक्की बुरी चाल छोड़कर उस सारी य्यवस्या के अनुसार जो मैं ने तुम्हारे पुरखाओं को दी यी, और अपके दास भविष्यद्वक्ताओं के हाथ तूम्हारे पास पहुंचाई है, मेरी आज्ञाओं और विधियोंको माना करो। 14. परन्तु उन्होंने न माना, वरन अपके उन पुरखाओं की नाई, जिन्होंने अपके परमेश्वर यहोवा का विश्वास न किया या, वे भी हठीले बन गए। 15. और वे उसकी विधियोंऔर अपके पुरखाओं के साय उसकी वाचा, और जो चितौनियां उस ने उन्हें दी यीं, उनको तुच्छ जानकर, निकम्मी बातोंके पीछे हो लिए; जिस से वे आप निकम्मे हो गए, और अपके चारोंओर की उन जातियोंके पीछे भी हो लिए जिनके विषय यहोवा ने उन्हें आज्ञा दी यी कि उनके से काम न करना। 16. वरन उन्होंने अपके परमेश्वर यहोवा की सब आज्ञाओं को त्याग दिया, और दो बछड़ोंकी मूरतें ढालकर बनाई, और अशेरा भी बनाई; और आकाश के सारे गणोंको दणडवत की, और बाल की उपासना की। 17. और अपके बेटे-बेटियोंको आग में होम करके चढाया; और भावी कहनेवालोंसे पूछने, और टोना करने लगे; और जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या जिस से वह क्रोधित भी होता है, उसके करने को अपक्की इच्छा से बिक गए। 18. इस कारण यहोवा इस्राएल से अति क्रोधित हुआ, और उन्हें अपके साम्हने से दूर कर दिया; यहूदा का गोत्र छोड़ और कोई बचा न रहा। 19. यहूदा ने भी अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञाएं न मानीं, वरन जो विधियां इस्राएल ने चलाई यीं, उन पर चलने लगे। 20. तब यहोवा ने इस्राएल की सारी सन्तान को छोड़ कर, उनको दु:ख दिया, और लूटनेवालोंके हाथ कर दिया, और अन्त में उन्हें अपके साम्हने से निकाल दिया। 21. उस ने इस्राएल को तो दाऊद के घराने के हाथ से छीन लिया, और उन्होंने नबात के पुत्र यारोबाम को अपना राजा बनाया; और यारोबाम ने इस्राएल को यहोवा के पीछे चलने से दूर खींचकर उन से बड़ा पाप कराया। 22. सो जैसे पाप यारोबाम ने किए थे, वैसे ही पाप इस्राएली भी करते रहे, और उन से अलग न हुए। 23. अन्त में यहोवा ने इस्राएल को अपके साम्हने से दूर कर दिया, जैसे कि उस ने अपके सब दास भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा या। इस प्रकार इस्राएल अपके देश से निकालकर अश्शूर को पहंचाया गया, जहां वह आज के दिन तक रहता है। 24. और अश्शूर के राजा ने बाबेल, कूता, अब्वा हमात और सपवैंम नगरोंसे लोगोंको लाकर, इस्राएलियोंके स्यान पर शोमरोन के नगरोंमें बसाया; सो वे शोमरोन के अधिक्कारनेी होकर उसके नगरोंमें रहने लगे। 25. जब वे वहां पहिले पहिले रहने लगे, तब यहोवा का भय न मानते थे, इस कारण यहोवा ने उनके बीच सिंह भेजे, जो उनको मार डालने लगे। 26. इस कारण उन्होंने अश्शूर के राजा के पास कहला भेजा कि जो जातियां तू ने उनके देशोंसे निकालकर शोमरोन के नगरोंमें बसा दी हैं, वे उस देश के देवता की रीति नहीं जानतीं, उस से उस ने उसके मध्य सिंह भेजे हैं जो उनको इसलिथे मार डालते हैं कि वे उस देश के देवता की रीति नहीं जानते। 27. तब अश्शूर के राजा ने आज्ञा दी, कि जिन याजकोंको तुम उस देश से ले आए, उन में से एक को वहां पहुंचा दो; और वह वहां जाकर रहे, और वह उनको उस देश के देवता की रीति सिखाए। 28. तब जो याजक शोमरोन से निकाले गए थे, उन में से एक जाकर बेतेल में रहने लगा, और उनको सिखाने लगा कि यहोवा का भय किस रीति से मानना चाहिथे। 29. तौभी एक एक जाति के लोगोंने अपके अपके निज देवता बनाकर, अपके अपके बसाए हुए नगर में उन ऊंचे स्यानोंके भवनोंमें रखा जो शोमरोनियोंने बसाए थे। 30. बाबेल के मनुष्योंने तो सुक्कोतबनोत को, कूत के पनुष्योंने नेर्गल को, हमात के मनुष्योंने अशीमा को, 31. और अब्वियोंने निभज, और तर्त्ताक को स्यापित किया; और सपवमी लोग अपके बेटोंको अद्रम्मेलेक और अनम्मेलेक नाम सपवैंम के देवताओं के लिथे होम करके चढ़ाने लगे। 32. योंवे यहावा का भय मानते तो थे, परन्तु सब प्रकार के लोगोंमें से ऊंचे स्यानोंके याजक भी ठहरा देते थे, जो ऊंचे स्यानोंके भवनोंमें उनके लिथे बलि करते थे। 33. वे यहोवा का भय मानते तो थे, परन्तु उन जातियोंकी रीति पर, जिनके बीच से वे निकाले गए थे, अपके अपके देवताओं की भी उपासना करते रहे। 34. आज के दिन तक वे अपक्की पहिली रीतियोंपर चलते हैं, वे यहोवा का भय नहीं मानते। 35. न तो उपक्की विधियोंऔर नियमोंपर और न उस य्यवस्या और आज्ञा के अनुसार चलते हैं, जो यहोवा ने याकूब की सन्तान को दी यी, जिसका नाम उस ने इस्राएल रखा या। उन से यहोवा ने बाचा बान्धकर उन्हें यह आज्ञा दी यी, कि तुम पाराथे देवताओं का भय न मानना और न उन्हें दणडवत करना और न उनकी उपासना करना और न उनको बलि चढ़ाना। 36. परन्तु यहोवा जो तुम को बड़े बल और बढ़ाई हुई भुजा के द्वारा मिय्र देश से निकाल ले आया, तुम उसी का भय मानना, उसी को दणडवत करना और उसी को बलि चढ़ाना। 37. और उस ने जो जो विधियां और नियम और जो य्यवस्या और आज्ञाएं तुम्हारे लिथे लिखीं, उन्हें तुम सदा चौकसी से मानते रहो; और पराथे देवताओं का भय न मानना। 38. और जो वाचा मैं ने तुम्हारे साय बान्धी है, उसे न भूलना और पराथे देवताओं का भय न मानना। 39. केवल अपके परमेश्वर यहोवा का भय पानना, वही तुम को तुम्हारे सब शत्रुओं के हाथ से बचाएगा। 40. तौभी उन्होंने न माना, परन्तु वे अपक्की पहिली रीति के अनुसार करते रहे। 41. अतएव वे जातियां यहोवा का भय मानती तो यीं, परन्तु अपक्की खुदी हुई मूरतोंकी उपासना भी करती रहीं, और जैसे वे करते थे वैसे ही उनके बेटे पोते भी आज के दिन तक करते हैं।
Chapter 18
1. एला के पुत्र इस्राएल के राजा होशे के तीसरे वर्ष में यहूदा के राजा आहाज का पुत्र हिजकिय्याह राजा हुआ। 2. जब वह राज्य करने लगा तब पच्चीस वर्ष का या, और उनतीस वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम अबी या, जो जकर्याह की बेटी यी। 3. जैसे उसके मूलपुरुष दाऊद ने किया या जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है वैसा ही उस ने भी किया। 4. उस ने ऊंचे स्यान गिरा दिए, लाठोंको तोड़ दिया, अशेरा को काट डाला। और पीतल का जो सांप मूसा ने बनाया या, उसको उस ने इस कारण चूर चूर कर दिया, कि उन दिनोंतक इस्राएली उसके लिथे धूप जलाते थे; और उस ने उसका नाम नहुशतान रखा। 5. वह इस्राएल के परमेश्वर यहोवा पर भरोसा रखता या, और उसके बाद यहूदा के सब राजाओं में कोई उसके बराबर न हुआ, और न उस से पहिले भी ऐसा कोई हुआ या। 6. और वह यहोवा से लिपटा रहा और उसके पीछे चलना न छोड़ा; और जो आज्ञाएं यहोवा ने मूसा को दी यीं, उनका वह पालन करता रहा। 7. इसलिथे यहोवा उसके संग रहा; और जहां कहीं वह जाता या, वहां उसका काम सफल होता या। और उस ने अश्शूर के राजा से बलवा करके, उसकी अधीनता छोड़ दी। 8. उस ने पलिश्तियोंको राज़ा और उसके सिवानोंतक, पहरुओं के गुम्मट और गढ़वाले नगर तक मारा। 9. राजा हिजकिय्याह के चौथे वर्ष में जो एला के पुत्र इस्राएल के राजा होशे का सातवां वर्ष या, अश्शूर के राजा शल्मनेसेर ने शोमरोन पर चढ़ाई करके उसे घेर लिया। 10. और तीन वर्ष के बीतने पर उन्होंने उसको ले लिया। इस प्रकार हिजकिय्याह के छठवें वर्ष में जो इस्राएल के राजा होशे का नौवां वर्ष या, शोमरोन ले लिया गया। 11. तब अश्शूर का राजा इस्राएल को बन्धुआ करके अश्शूर में ले गया, और हलह में ओर गोजान की नदी हाबोर के पास और मादियोंके नगरोंमें उसे बसा दिया। 12. इसका कारण यह या, कि उन्होंने अपके परमेश्वर यहोवा की बात न मानी, वरन उसकी वाचा को तोड़ा, और जितनी आज्ञाएं यहोवा के दास मूसा ने दी यीं, उनको टाल दिया और न उनको सुना और न उनके अनुसार किया। 13. हिजकिय्याह राजा के चौदहवें वर्ष में अश्शूर के राजा सन्हेरीब ने यहूदा के सब गढ़वाले नगरोंपर चढ़ाई करके उनको ले लिया। 14. तब यहूदा के राजा हिजकिय्याह ने अश्शूर के राजा के पास लाकीश को कहला भेजा, कि मुझ से अपराध हुआ, मेरे पास से लौट जा; और जो भर तू मुझ पर डालेगा उसको मैं उठाऊंगा। तो अश्शूर के राज ने यहूदा के राजा हिजकिय्याह के लिथे तीन सौ किक्कार चान्दी और तीस किक्कार लोना ठहरा दिया। 15. तब जितनी चान्दी यहोवा के भवन और राजभवन के भणडारोंमें मिली, उस सब को हिजकिय्याह ने उसे दे दिया। 16. उस समय हिजकिय्याह ने यहोवा के मन्दिर के किवाड़ोंसे और उन खम्भोंसे भी जिन पर यहूदा के राजा हिजकिय्याह ने सोना मढ़ा या, सोने को छीलकर अश्शूर के राजा को दे दिया। 17. तौभी अश्शूर के राजा ने तर्त्तान, रबसारीस और रबशाके को बड़ी सेना देकर, लाकीश से यरूशलेम के पास हिजकिय्याह राजा के विरुद्ध भेज दिया। सो वे यरूशलेम को गए और वहां पहुंचकर ऊपर के पोखरे की नाली के पास धेबियोंके खेत की सड़क पर जाकर खड़े हुए। 18. और जब उन्होंने राजा को पुकारा, तब हिलकिय्याह का पुत्र एल्याकीम जो राजघराने के काम पर या, और शेब्ना जो मन्त्री या और आसाप का पुत्र योआह जो इतिहास का लिखनेवाला या, थे तीनोंउनके पास बाहर निकल गए। 19. रबशाके ने उन से कहा, हिजकिय्याह से कहो, कि महाराजाधिराज अर्यात् अश्शूर का राजा योंकहता है, कि तू किस पर भरोसा करता है? 20. तू जो कहता है, कि मेरे यहां युद्ध के लिथे युक्ति और पराक्रम है, सो तो केवल बात ही बात है। तू किस पर भरोसा रखता है कि तू ने मुझ से बलवा किया है? 21. सुन, तू तो उस कुचले हुए नरकट अर्यात् मिस्र पर भरोसा रखता है, उस पर यदि कोई टेक लगाए, तो वह उसके हाथ में चुभकर छेदेगा। मिस्र का राजा फ़िरौन अपके सब भरोसा रखनेवालोंके लिथे ऐसा ही है। 22. फिर यदि तुम मुझ से कहो, कि हमारा भरोसा अपके परमेश्वर यहोवा पर है, तो क्या यह वही नहीं है जिसके ऊंचे स्यानोंऔर वेदियोंको हिजकिय्याह ने दूर करके यहूदा और यरूशलेम से कहा, कि तुम इसी वेदी के साम्हने जो यरूशलेम में है दणडवत करना? 23. तो अब मेरे स्वामी अश्शूर के राजा के पास मुछ बन्धक रख, तब मैं तुझे दो हाजार घोड़े दूंगा, क्या तू उन पर सवार चढ़ा सकेगा कि नहीं? 24. फिर तू मेरे स्वामी के छोटे से छोटे कर्मचारी का भी कहा न मान कर क्योंरयोंऔर सवारोंके लिथे मिस्र पर भरोसा रखता है? 25. क्या मैं ने यहोवा के बिना कहे, इस स्यान को उजाड़ने के लिथे चढ़ाई की है? यहोवा ने मुझ से कहा है, कि उस देश पर चढ़ाई करके उसे उजाड़ दे। 26. तब हिलकिय्याह के पुत्र एल्याकीम और शेब्ना योआह ने रबशाके से कहा, अपके दासोंसे अरामी भाषा में बातें कर, क्योंकि हम उसे समझते हैं; और हम से यहूदी भाषा में शहरपनाह पर बैठे हुए लोगोंके सुनते बातें न कर। 27. रबशाके ने उन से कहा, क्या मेरे स्वामी ने मुझे तुम्हारे स्वामी ही के, वा तुम्हारे ही पास थे बातें कहने को भेजा है? क्या उस ने मुझे उन लोगोंके पास नहीं भेजा, जो शहरपनाह पर बैठे हैं, ताकि नुम्हारे संग उनको भी अपक्की बिष्ठा खाना और अपना मूत्र पीना पके? 28. तब रबशाके ने खड़े हो, यहूदी भाषा में ऊंचे शब्द से कहा, महाराजाधिराज अर्यत् अश्शूर के राजा की बात सुनो। 29. राजा योंकहता है, कि हिजकिय्याह तुम को भुलाने न पाए, क्योंकि वह तुम्हें मेरे हाथ से बचा न सकेगा। 30. और वह तुम से यह कहकर यहोवा पर भरोसा कराने न पाए, कि यहोवा निश्चय हम को बचाएगा और यह नगर अश्शूर के राजा के वश में न पकेगा। 31. हिजकिय्याह की मत सुनो। अश्शूर का राजा कहता है कि भेंट भेजकर मुझे प्रसन्न करो और मेरे पास निकल आओ, और प्रत्थेक अपक्की अपक्की दाखलता और अंजीर के वृझ के फल खाता और अपके अपके कुण्ड का पानी पीता रहे। 32. तब मैं आकर तुम को ऐसे देश में ले जाऊंगा, जो तुम्हारे देश के समान अनाज और नथे दाखमधु का देश, रोटी और दाख्बारियोंका देश, जलपाइयोंऔर मधु का देश है, वहां तुम मरोगे नहीं, जीवित रहोगे; तो जब हिजकिय्याह यह कहकर तुम को बहकाए, कि यहोवा हम को बचाएगा, तब उसकी न सुनना। 33. क्या और जातियोंके देवताओं ने अपके अपके देश को अश्शूर के राजा के हाथ से कभी बचाया है? 34. हमात और अर्पाद के देवता कहां रहे? सपवैंम, हेना और इय्वा के देवता कहां रहे? क्या उन्होंने शोमरोन को मेरे हाथ से बचाया है, 35. देश देश के सब देवताओं में से ऐसा कौन है, जिस ने अपके देश को मेरे हाथ से बचाया हो? फिर क्या यहोवा यरूशलेम को मेरे हाथ से बचाएगा। 36. परन्तु सब लोग चुप रहे और उसके उत्तर में एक बात भी न कही, क्योंकि राजा की ऐसी आज्ञा यी, कि उसको उत्तर न देना। 37. तब हिलकिय्याह का पुत्र एल्याकीम जो राजघराने के काम पर या, और शेब्ना जो मन्त्री या, और आसाप का पुत्र योआह जो इतिहास का लिखनेवाला या, अपके वस्त्र फाड़े हुए, हिजकिय्याह के पास जाकर रबशाके की बातें कह सुनाई।
Chapter 19
1. जब हिजकिय्याह राजा ने यह सुना, तब वह अपके वस्त्र फाड़, टाट ओढ़कर यहोवा के भपन में गया। 2. और उस ने एल्याकीम को जो राजघराने के काम पर या, और शेब्ना मन्त्री को, और याजकोंके पुरनियोंको, जो सब टाट ओढ़े हुए थे, आमोस के पुत्र यशायाह भविष्यद्वक्ता के पास भेज दिया। 3. उन्होंने उस से कहा, हिजकिय्याह योंकहता है, आज का दिन संकट, और उलहने, और निन्दा का दिन है; बच्चे जन्मने पर हुए पर जच्चा को जन्म देने का बल न रहा। 4. कदाचित तेरा परमेश्वर यहोवा रबशाके की सब बातें सुने, जिसे उसके स्वामी अश्शूर के राजा ने जीवते परमेश्वर की निन्दा करने को भेजा है, और जो बातें तेरे परमेश्वर यहावा ने सुनी हैं उन्हें डपके; इसलिथे तू इन बचे हुओं के लिथे जो रह गए हैं प्रार्यना कर। 5. जब हिजकिय्याह राजा के कर्मचारी यशायाह के पास आए, 6. तब यशायाह ने उन से कहा, अपके स्वामी से कहो, यहेवा योंकहता है, कि जो वचन तू ने सुने हैं, जिनके द्वारा अश्शूर के राजा के जनोंने मेरी निन्दा की है, उनके कारण मत डर। 7. सुन, मैं उसके मन में प्रेरणा करूंगा, कि वह कुछ समाचार सुनकर अपके देश को लौट जाए, और मैं उसको उसी के देश में तलवार से मरवा डालूंगा। 8. तब रबशाके ने लौटकर अश्शूर के राजा को लिब्ना नगर से युद्ध करते पाया, क्योंकि उस ने सुना या कि वह लाकीश के पास से उठ गया है। 9. और जब उस ने कूश के राजा तिर्हाका के विष्य यह सुना, कि वह मुझ से लड़ने को निकला है, तब उस ने हिजकिय्याह के पास दूतोंको यह कह कर भेजा, 10. तुम यहूदा के राजा हिजकिय्याह से योंकहना : तेरा परमेश्वर जिसका तू भरोसा करता है, यह कहकर तुझे धोखा न देने पाए, कि यरूशलेम अश्शूर के राजा के वश में न पकेगा। 11. देख, तू ने तो सुना है अश्शूर के राजाओं ने सब देशोंसे कैसा य्यवहार किया है उन्हें सत्यानाश कर दिया है। फिर क्या तू बचेगा? 12. गोजान उाौर हारान और रेसेप और तलस्सार में रहनेवाले एदेनी, जिन जातियोंको मेरे पुरखाओं ने नाश किया, क्या उन में से किसी जाति के देवताओं ने उसको बचा लिया? 13. हमात का राजा, और अर्पाद का राजा, और समवैंम नगर का राजा, और हेना और इय्वा के राजा थे सब कहां रहे? इस पत्री को हिजकिय्याह ने दूतोंके हाथ से लेकर पढ़ा। 14. तब यहोवा के भवन में जाकर उसको यहोवा के साम्हने फैला दिया। 15. और यहोवा से यह प्रार्यना की, कि हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ! हे करूबोंपर विराजनेवाले ! पृय्वी के सब राज्योंके ऊपर केवल तू ही परमेश्वर है। आकाश और पृय्वी को तू ही ने बनाया है। 16. हे यहोवा ! कान लगाकर सुन, हे यहोवा आंख खोलकर देख, और सन्हेरीब के वचनोंको सुन ले, जो उस ने जीवते परमेश्वर की निन्दा करने को कहला भेजे हैं। 17. हे यहोवा, सच तो है, कि अश्शूर के राजाओं ने जातियोंको और उनके देशोंको उजाड़ा है। 18. और उनके देवताओं को आग में फेंका है, क्योंकि वे ईश्वर न थे; वे मनुष्योंके बनाए हुए काठ और पत्यर ही के थे; इस कारण वे उनको नाश कर सके। 19. इसलिथे अब हे हमारे परमेश्वर यहोवा तू हमें उसके हाथ से बचा, कि पृय्वी के राज्य राज्य के लोग जान लें कि केवल तू ही यहोवा है। 20. तब आमोस के पुत्र यशायाह ने हिजकिय्याह के पास यह कहला भेजा, कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि जो प्रार्यना तू ने अश्शूर के राजा सन्हेरीब के विषय मुझ से की, उसे मैं ने सुना है। 21. उसके विषय में यहोवा ने यह वचन कहा है, कि सिय्योन की कुमारी कन्या तुझे तुच्छ जानती और तुझे ठट्ठोंमें उड़ाती है, यरूशलेम की पुत्री, तुझ पर सिर हिलाती है। 22. तू ने जो नामधराई और निन्दा की है, वह किसकी की है? और तू ने जो बड़ा बोल बोला और घमणड किया है वह किसके विरुद्ध किया है? इस्राएल के पवित्र के विरुद्ध तू ने किया है ! 23. अपके दूतोंके द्वारा तू ने प्रभु की निन्दा करके कहा है, कि वहुत से रय लेकर मैं पर्वतोंकी चोटियोंपर, वरन लबानोन के बीच तक चढ़ आया हूँ, और मैं उसके ऊंचे ऊंचे देवदारुओं और अच्छे अच्छे सनोवरोंको काट डालूंगा; और उस में जो सब से ऊंचा टिकने का स्यान होगा उस में और उसके वन की फलदाई बारियोंमें प्रवेश करूंगा। 24. मैं ने तो खुदवाकर परदेश का पानी पिया; और मिस्र की नहरोंमें पांव धरते ही उन्हें सुखा डालूंगा। 25. क्या तू ने नहीं सुना, कि प्राचीनकाल से मैं ने यही ठहराया? और अगले दिनोंसे इसकी तैयारी की यी, उन्हें अब मैं ने पूरा भी किया है, कि तू गढ़वाले नगरोंको खणडहर ही खणडहर कर दे, 26. इसी कारण उनके रहनेवालोंका बल घट गया; वे विस्मित और लज्जित हुए; वे मैदान के छोटे छोटे पेड़ोंऔर हरी घास और छत पर की घास, और ऐसे अनाज के समान हो गए, जो बढ़ने से पहिले सूख जाता है। 27. मैं तो तेरा बैठा रहना, और कूच करना, और लौट आना जानता हूँ, और यह भी कि तू मुझ पर अपना क्रोध भड़काता है। 28. इस कारण कि तू मुझ पर अपना क्रोध भड़काता और तेरे अभिमान की बातें मेरे कानोंमें पक्की हैं; मैं तेरी नाक में अपक्की नकेल डालकर और तेरे मुंह में अपना लगाम लगाकर, जिस मार्ग से तू आया है, उसी से तुझे लोटा दूंगा। 29. और तेरे लिथे यह चिन्ह होगा, कि इस वर्ष तो तुम उसे खाओगे जो आप से आप उगे, और दूसरे वर्ष उसे जो उत्पन्न हो वह खाओगे; और तीसरे वर्ष बीज बोने और उसे लवने पाओगे, और दाख की बारियां लगाने और उनका फल खाने पाओगे। 30. और यहूदा के घराने के बचे हुए लोग फिर जड़ पकड़ेंगे, और फलेंगे भी। 31. क्योंकि यरूशलेम में से बचे हुए और सिय्योन पर्वत के भागे हुए लोग निकलेंगे। यहोवा यह काम अपक्की जलन के कारण करेगा। 32. इसलिथे यहोवा अश्शूर के राजा के विषय में योंकहता है कि वह इस नगर में प्रवेश करने, वरन इस पर एक तीर भी मारने न पाएगा, और न वह ढाल लेकर इसके साम्हने आने, वा इसके विरुद्ध दमदमा बनाने पाएगा। 33. जिस मार्ग से वह आया, उसी से वह लौट भी जाएगा, और इस नगर में प्रवेश न करने पाएगा, यहोवा की यही वाणी है। 34. और मैं अपके निमित्त और अपके दास दाऊद के निमित्त इस नगर की रझा करके इसे बचाऊंगा। 35. उसी रात में क्या हुआ, कि यहोवा के दूत ने निकलकर अश्शूरियोंकी छावनी में एक लाख पचासी हजार पुरुषोंको मारा, और भोर को जब लोग सबेरे उठे, तब देखा, कि लोय ही लोय पक्की है। 36. तब अश्शूर का राजा सन्हेरीब चल दिया, और लौटकर नीनवे में रहने लगा। 37. वहां वह अपके देवता निस्रोक के मन्दिर में दणडवत कर रहा या, कि अदेम्मेलेक और सरेसेर ने उसको तलवार से मारा, और अरारात देश में भाग गए। और उसी का पुत्र एसर्हद्दोन उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
Chapter 20
1. उन दिनोंमें हिजकिय्याह ऐसा रोगी हुआ कि मरते पर या, और आमोस के पुत्र यशायाह भविष्यद्वक्ता ने उसके पास जाकर कहा, यहोवा योंकहता है, कि अपके घराने के विषय जो आज्ञा देनी हो वह दे; क्योंकि तू नहीं बचेगा, मर जाएगा। 2. तब उस ने भीत की ओर मुंह फेर, यहोवा से प्रार्यना करके कहा, हे यहोवा ! 3. मैं बिन्ती करता हूँ, स्मरण कर, कि मैं सच्चाई और खरे मन से अपके को तेरे सम्मुख जानकर चलता आया हूँ; और जो तुझे अच्छा तगता है वही मैं करता आया हूँ। तब हिजकिय्याह बिलक बिलक कर रोया। 4. और ऐसा हुआ कि यशायाह नगर के बीच तक जाने भी न पाया या कि यहोवा का यह वचन उसके पास पहुंचा, 5. कि लौटकर मेरी प्रजा के प्रधान हिजकिय्याह से कह, कि तेरे मूलपुरुष दाऊद का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि मैं ने तेरी प्रार्यना सुनी और तेरे आंसू देखे हैं; देख, मैं तुझे चंगा करता हूँ; परसोंतू यहोवा के भवन में जा सकेगा। 6. और मैं तेरी आयू पन्द्रह वर्ष और बढ़ा दूंगा। और अश्शूर के राजा के हाथ से तुझे और इस नगर को बचाऊंगा, और मैं अपके निमित्त और अपके दास दाऊद के निमित्त इस नगर की रझा करूंगा। 7. तब यशायाह ने कहा, अंजीरोंकी एक टिकिया लो। जब उन्होंने उसे लेकर फोड़े पर बान्धा, तब वह चंगा हो गया। 8. हिजकिय्याह ने यशायाह से पूछा, यहोवा जो मुझे चंगा करेगा और मैं परसोंयहोवा के भवन को जा सकूंगा, इसका क्या चिन्ह होगा? 9. यशायाह ने कहा, यहोवा जो अपके कहे हुए वचन को पूरा करेगा, इस बात का यहोवा की ओर से तेरे लिथे यह चिन्ह होगा, कि धूपघड़ी की छाया दस अंश आगे बढ़ जाएगी, व दस अंश घट जाएगी। 10. हिजकिय्याह ने कहा, छाया का दस अंश आगे ण्ढ़ना तो हलकी बात है, इसलिए ऐसा हो कि छाया दस अंश पीछे लौट जाए। 11. तब यशायाह भविष्यद्वक्ता ने यहोवा को पुकारा, और आहाज की घूपघड़ी की छाया, जो दस अंश ढल चुकी यी, यहोवा ने उसको पीछे की ओर लौटा दिया। 12. उस समय बलदान का पुत्र बरोदकबलदान जो बाबेल का राजा या, उस ने हिजकिय्याह के रोगी होने की चर्चा सुनकर, उसके पास पत्री और भेंट भेजी। 13. उनके लानेवालोंकी मानकर हिजकिय्याह ने उनको अपके अनमोल पदायॉं का सब भणडार, और चान्दी और सोना और सुगन्ध द्रय्य और उत्तम तेल और अपके हयियारोंका पूरा घर और अपके भणडारोंमें जो जो वस्तुएं यीं, वे सब दिखाई; हिजकिय्याह के भवन और राज्य भर में कोई ऐसी वस्तु न रही, जो उस ने उन्हें न दिख्खाई हो। 14. तब यशायाह भविष्यद्वक्ता ने हिजकिय्याह राजा के पास जाकर पुछा, वे मनुष्य क्या कह गए? और कहां से तेरे पास आए थे? हिजकिय्याह ने कहा, वे तो दूर देश से अर्यात् बाबेल से आए थे। 15. फिर उस ने पूछा, तेरे भवन में उन्होंने क्या क्या देखा है? हिजकिय्याह ने कहा, जो कुछ मेरे भवन में है, वह सब उन्होंने देखा। मेरे भणडारोंमें कोई ऐसी वस्तु नहीं, जो मैं ने उन्हें न दिखाई हो। 16. यशायाह ने हिजकिय्याह से कहा, यहोवा का वचन सुन ले। 17. ऐसे दिन आनेवाले है, जिन में जो कुछ तेरे भवन में हैं, और जो कुछ तेरे मुरखाओं का रखा हुआ आज के दिन तक भणडारोंमें है वह सब बाबेल को उठ जाएगा; यहोवा यह कहता है, कि कोई वस्तु न बचेगी। 18. और जो पुत्र तेरे वंश में उत्पन्न हों, उन में से भी कितनोंको वे बन्धुआई में ले जाएंगे; और वे खोजे बनकर बाबेल के राजभवन में रहेंगे। 19. हिजकिय्याह ने यशायाह से कहा, यहोवा का वचन जो तू ने कहा है, वह भला ही है, फिर उस ने कहा, क्या मेरे दिनोंमें शांति और सच्चाई बनी न रहेंगी? 20. हिजकिय्याह के और सब काम और उसकी सारी वीरता और किस रीति उस ने एक पोखरा और नाली खुदवाकर नगर में पानी पहुंचा दिया, यह सग क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 21. निदान हिजकिय्याह अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसका पुत्र मनश्शे उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
Chapter 21
1. जब मनश्शे राज्य करने लगा, तब वह बारह वर्ष का या, और यरूशलेम में पचपन वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम हेप्सीबा या। 2. उस ने उन जातियोंके घिनौने कामोंके अनुसार, जिनको यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने देश से निकाल दिया या, वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या। 3. उस ने उन ऊंचे स्यानोंको जिनको उसके पिता हिजकिय्याह ने नाश किया या, फिर बनाया, और इस्राएल के राजा अहाब की नाई बाल के लिथे वेदियां और एक अशेरा बनवाई, और आकाश के कुल गण को दणडवत और उनकी उपासना करता रहा। 4. और उस ने यहोवा के उस भवन में वेदियां बनाई जिसके विषय यहोवा ने कहा या, कि यरूशलेम में मैं अपना नाम रखूंगा। 5. वरन यहोवा के भवन के दोनोंआंगनोंमें भी उस ने आकाश के कुल गण के लिथे वेदियां बनाई। 6. फिर उस ने अपके बेटे को आग में होम करके चढ़ाया; और शुभअशुभ मुहुत्तॉंको मानता, और टोना करता, और ओफोंऔर भूत सिद्धिवालोंसे य्यवहार करता या; वरन उस ने ऐसे बहुत से काम किए जो यहोवा की दृष्टि में बुरे हैं, और जिन से वह क्रोधित होता है। 7. और अशेरा की जो मूरत उस ने खुदवाई, उसको उस ने उस भवन में स्यापित किया, जिसके विषय यहोवा ने दाऊद और उसके पुत्र सुलैमान से कहा या, कि इस भवन में और यरूशलेम में, जिसको मैं ने इस्राएल के सब गोत्रोंमें से चुन लिया है, मैं सदैव अपना नाम रखूंगा। 8. और यदि वे मेरी सब आज्ञाओं के और मेरे दास मूसा की दी हुई पूरी य्यवस्या के अनुसार करने की चौकसी करें, तो मैं ऐसा न करूंगा कि जो देश मैं ने इस्राएल के पुरखओं को दिया या, उस से वे फिर निकलकर मारे मारे फिरें। 9. परन्तु उन्होंने न माना, बरन मनश्शे ने उनको यहां तक भटका दिया कि उन्होंने उन जातियोंसे भी बढ़कर बुराई की जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने से विनाश किया या। 10. इसलिथे यहोवा ने अपके दास भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा, 11. कि यहूदा के राजा मनश्शे ने जो थे घृणित काम किए, और जितनी बुराइयां एमोरियोंने जो उस से पहिले थे की यीं, उन से भी अधिक बुराइयां कीं; और यहूदियोंसे अपक्की बनाई हुई मूरतोंकी पूजा करवा के उन्हें पाप में फंसाया है। 12. इस कारण इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है कि सुनो, मैं यरूशलेम और यहूदा पर ऐसी विपत्ति डालना चाहता हूँ कि जो कोई उसका समाचार सुनेगा वह बड़े सन्नाटे में आ जाएगा। 13. और जो मापके की डोरी मैं ने शोमरोन पर डाली है और जो साहुल मैं ने अहाब के घराने पर लटकाया है वही यरूशलेम पर डालूंगा। और मैं यरूशलेम को ऐसा पोछूंगा जैसे कोई याली को पोंछता है और उसे पोंछकर उलट देता है। 14. और मैं अपके निज भाग के बचे हुओं को त्यागकर शत्रुओं के हाथ कर दूंगा और वे अपके सब शत्रुओं के लिए लूट और धन बन जाएंगे। 15. इसका कारण यह है, कि जब से उनके पुरखा मिस्र से निकले तब से आज के दिन तक वे वह काम करके जो मेरी दृष्टि में बुरा है, मुझे रिस दिलाते आ रहे हैं। 16. मनश्शे ने तो न केवल वह काम कराके यहूदियोंसे पाप कराया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, वरन निदॉषोंका खून बहुत बहाथा, यहां तक कि उस ने यरूशलेम को एक सिक्के से दूसरे सिक्के तक खून से भर दिया। 17. मनश्शे के और सब काम जो उस ने किए, और जो पाप उस ने किए, वह सब क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है? 18. निदान मनश्शे अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसे उसके भवन की बारी में जो उज्जर की बारी कहलाती यी मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र आमोन उसके स्यान पर राजा हुआ। 19. जब आमोन राज्य करने लगा, तब वह बाईस पर्ष का या, और यरूशलेम में दो वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम मशुल्लेमेत या जो योत्बावासी हारूम की बेटी यी। 20. और उस ने अपके पिता मनश्शे की नाई वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 21. और वह अपके पिता के समान पूरी चाल चला, और जिन मूरतोंकी उपासना उसका पिता करता या, उनकी वह भी उपासना करता, और उन्हें दणडवत करता या। 22. और उस ने अपके पितरोंके परमेश्वर यहोवा को त्याग दिया, और यहोवा के मार्ग पर न चला। 23. और आमोन के कर्मचारियोंने द्रोह की गोष्ठी करके राजा को उसी के भवन में मार डाला। 24. तब साधारण लोगोंने उन सभोंको मार डाला, जिन्होंने राजा आमोन से द्रोह की गोष्ठी की यी, और लोगोंने उसके पुत्र योशिय्याह को उसके स्यान पर राजा किया। 25. आमोन के और काम जो उस ने किए, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं। 26. उसे भी उज्जर की बारी में उसकी निज कबर में मिट्टी दी गई; और उसका पुत्र योशिय्याह उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
Chapter 22
1. जब योशिय्याह राज्य करने लगा, तब वह आठ वर्ष का या, और यरूशलेम में एकतीस वर्ष तक राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम यदीदा या जो बोस्कतवासी अदाया की बेटी यी। 2. उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है और जिस मार्ग पर उसका मूलपुरुष दाऊद चला ठीक उसी पर वह भी चला, और उस से न तो दाहिनी ओर और न बाई ओर मुड़ा। 3. अपके राज्य के अठारहवें वर्ष में राजा योशिय्याह ने असल्याह के पुत्र शापान मंत्री को जो मशुल्लाम का पोता या, यहोवा के भवन में यह कहकर भेजा, कि हिलकिय्याह महाथाजक के पास जाकर कह, 4. कि जो चान्दी यहोवा के भवन में लाई गई है, और द्वारपालोंने प्रजा से इकट्ठी की है, 5. उसको जोड़कर, उन काम करानेवालोंको सौंप दे, जो यहोवा के भवन के काम पर मुखिथे हैं; फिर वे उसको यहोवा के भवन में काम करनेवाले कारीगरोंको दें, इसलिथे कि उस में जो कुछ टूटा फूटा हो उसकी वे मरम्मत करें। 6. अर्यात् बढ़इयों, राजोंऔर संगतराशोंको दें, और भवन की मरम्मत के लिथे लकड़ी और गढ़े हुए पत्यर मोल लेने में लगाएं। 7. परन्तु जिनके हाथ में वह चान्दी सौंपी गई, उन से हिसाब न लिया गया, क्योंकि वे सच्चाई से काम करते थे। 8. और हिलकिय्याह महाथाजक ने शापान मंत्री से कहा, मुझे यहोवा के भवन में य्यवस्या की पुस्तक मिली है; तब हिलकिय्याह ने शापान को वह पुस्तक दी, और वह उसे पढ़ने लगा। 9. तब शापान मंत्री ने राजा के पास लौटकर यह सन्देश दिया, कि जो चानदी भवन में मिली, उसे तेरे कर्मचारियो ने यैलियोंमें डाल कर, उनको सौंप दिया जो यहोवा के भवन में काम करानेवाले हैं। 10. फिर शपान मंत्री ने राजा को यह भी बता दिया, कि हिलकिय्याह याजक ने उसे एक पुस्तक दी है। तब शपान उसे राजा को पढ़कर सुनाने लगा। 11. य्यवस्या की उस पुस्तक की बातें सुनकर राजा ने अपके वस्त्र फाड़े। 12. फिर उस ने हिलकिय्याह याजक, शापान के पुत्र अहीकाम, मीकायाह के पुत्र अकबोर, शापान मंत्री और असाया ताम अपके एक कर्मचारी को आज्ञा दी, 13. कि यह पुस्तक जो मिली है, उसकी बातोंके विष्य तुम जाकर मेरी ओर प्रजा की और सब सहूदियोंकी ओर से यहोवा से पूछो, क्योंकि यहोवा की बड़ी ही जलजलाहट हम पर इस कारण भड़की है, कि हमारे पुरखाओं ने इस पुस्तक की बातें न मानी कि कुछ हमारे लिथे लिखा है, उसके अनुसार करते। 14. हिलकिय्याह याजक और अहीकाम, अकबोर, शापान और असाया ने हुल्दा नबिया के पास जाकर उस से बातें की, वह उस शल्लूम की पत्नी यी जो तिकवा का पुत्र और हर्हस का पोता और वस्त्रोंका रखवाला या, ( और वह स्त्री यरूशलेम के नथे टोले में रहती यी ) । 15. उस ने उन से कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि जिस पुरुष ने तुम को मेरे पास भेजा, उस से यह कहो, 16. यहोवा योंकहता है, कि सुन, जिस पुस्तक को यहूदा के राजा ने पढ़ा है, उसकी सब बातोंके अनुसार मैं इस स्यान और इसके निवासियोंपर विपत्ति डाला चाहता हूँ।ं 17. उन लोगोंने मुझे त्याग कर पराथे देवताओं के लिथे धूप जलाया और अपक्की बनाई हुई सब वस्तुओं के द्वारा मुझे क्रोध दिलाया है, इस कारण मेरी जलजलाहट इस स्यान पर भड़केगी और फिर शांत न होगी। 18. परन्तु यहूदा का राजा जिस ने तुम्हें यहोवा से पूछने को भेजा है उस से तुम योंकहो, कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा कहता है। 19. इसलिथे कि तू वे बातें सुनकर दीन हुआ, और मेरी वे बातें सुनकर कि इस स्यान और इसके निवासिक्कों देखकर लोग चकित होंगे, और शप दिया करेंगे, तू ने यहोवा के साम्हने अपना सिर नवाया, और अपके वस्त्र फाड़कर मेरे साम्हने रोया है, इस कारण मैं ने तेरी सुनी है, यहोवा की यही वाणी है। 20. इसलिथे देख, मैं ऐसा करूंगा, कि तू अपके पुरखाओं के संग मिल जाएगा, और तू शांति से अपक्की कबर को पहुंचाया जाएगा, और जो विपत्ति मैं इस स्यान पर डाला चाहता हूँ, उस में से तुझे अपक्की ओखोंसे कुछ भी देखना न पकेगा। तब उन्होंने लौटकर राजा को यही सन्देश दिया।
Chapter 23
1. राजा ने यहूदा और यरूशलेम के सब पुरनियोंको अपके पास इकट्ठा बुलवाया। 2. और राजा, यहूदा के सब लोगोंऔर यरूशलेम के सब निवासियोंऔर याजकोंऔर नबियोंवरन छोटे बड़े सारी प्रजा के लोगोंको संग लेकर यहोवा के भवन में गया। तब उस ने जो वाचा की मुस्तक यहोवा के भवन में मिली यी, उसकी सब बातें उनको पढ़कर सुनाई। 3. तब राजा ने खम्भे के पास खड़ा होकर यहोवा से इस आशय की वाचा बान्धी, कि मैं यहोवा के पीछे पीछे चलूंगा, और अपके सारे मन और सारे प्राण से उसकी आज्ञाएं, चितौनियां और विधियोंका नित पालन किया करूंगा? और इस वाचा की बातोंको जो इस पुस्तक में लिखी है पूरी करूंगा। और सब प्रजा वाचा में सम्भागी हुई। 4. तब राजा ने हिलकिय्याह महाथाजक और उसके नीचे के याजकोंऔर द्वारपालोंको आज्ञा दी कि जितने पात्र बाल और अशेरा और आकाश के सब गण के लिथे बने हैं, उन सभोंको यहोवा के मन्दिर में से निकाल ले आओ। तब उस ने उनको यरूशलेम के बाहर किद्रोन के खेतोंमें फूंककर उनकी राख बेतेल को पहुंचा दी। 5. और जिन पुजारियोंको यहूदा के राजाओं ने यहूदा के नगरोंके ऊंचे स्यानोंमें और यरूशलेम के आस पास के स्यानोंमें धूप जलाने के लिथे ठहराया या, उनको और जो बाल और सूर्य-चन्द्रमा, राशिचक्र और आकाश के कुल गण को धूप जलाते थे, उनको भी राजा ने दूर कर दिया। 6. और वह अशेरा को यहोवा के भवन में से निकालकर यरूशलेम के बाहर किद्रोन नाले में लिवाले गया और वहीं उसको फूंक दिया, और पीसकर बुकनी कर दिया। तब वह बुकनी साधारण लोगोंकी कबरोंपर फेंक दी। 7. फिर पुरुषगामियोंके घर जो यहोवा के भवन में थे, जहां स्त्रियां अशेरा के लिथे पर्दे बुना करती यीं, उनको उस ने ढा दिया। 8. और उस ने यहूदा के सब नगरोंसे याजकोंको बुलवाकर गेबा से बेशॅबा तक के उन ऊंचे स्यानोंको, जहां उन याजकोंने धूप जलाया या, अशुद्ध कर दिया; और फाटकोंके ऊंचे स्यान अर्यात् जो स्यान नगर के यहोशू नाम हाकिम के फाटक पर थे, और नगर के फाटक के भीतर जानेवाले की बाई ओर थे, उनको उस ने ढा दिया। 9. तौभी ऊंचे स्यानोंके याजक यरूशलेम में यहोवा की बेदी के पास न आए, वे अखमीरी रोटी अपके भइयोंके साय खाते थे। 10. फिर उस ने तोपेत को जो हिन्नोमवंशियोंकी तराई में या, अशुद्ध कर दिया, ताकि कोई अपके बेठे वा बेटी को मोलोक के लिथे आग में होम करके न चढ़ाए। 11. और जो घोड़े यहूदा के राजाओं ने सूर्य को अर्पण करके, यहोवा के भवन के द्वार पर नतन्मेलेक नाम खोजे की बाहर की कोठरी में रखे थे, उनको उस ने दूर किया, और सूर्य के रयोंको आग में फूंक दिया। 12. और आहाज की अटारी की छत पर जो वेदियां यहूदा के राजाओं की बनाई हुई यीं, और जो वेदियां मनश्शे ने यहोवा के भवन के दोनोंआंगनोंमें बनाई यीं, उनको राजा ने ढाकर पीस डाला और उनकी बुकनी किद्रोन नाले में फेंक दी। 13. और जो ऊंचे स्यान इस्राएल के राजा सुलैमान ने यरूशलेम की पूर्व ओर और विकारी नाम पहाड़ी की दक्खिन अलंग, अश्तोरेत नाम सीदोनियोंकी घिनौनी देवी, और कमोश नाम मोआबियोंके घिनौने देवता, और मिल्कोम नाम अम्मोनियोंके घिनौने देवता के लिथे बनवाए थे, उनको राजा ने अशुद्ध कर दिया। 14. और उस ने लाठोंको तोड़ दिया और अशेरोंको काट डाला, और उनके स्यान मनुष्योंकी हड्डियोंसे भर दिए। 15. फिर बेतेल में जो वेदी यी, और जो ऊंचा स्यान नबात के पुत्र यारोबाम ने बनाया या, जिस ने इस्राएल से पाप कराया या, उस वेदी और उस ऊंचे स्यान को उस ने ढा दिया, और ऊंचे स्यान को फूंककर बुकनी कर दिया और अशेरा को फूंक दिया। 16. और योशिय्याह ने फिर कर वहां के पहाड़ की कबरोंको देखा, और लोगोंको भेजकर उन कबरोंसे हड्डियां निकलवा दीं और वेदी पर जलवाकर उसको अशुद्ध किया। यह यहोवा के उस वचन के अनुसार हुआ, जो परमेश्वर के उस भक्त ने पुकारकर कहा या जिस ने इन्हीं बातोंकी चर्चा की यी। 17. तब उस ने पूछा, जो खम्भा मुझे दिखाई पड़ता है, वह क्या है? तब नगर के लोगोंने उस से कहा, वह परमेश्वर के उस भक्त जन की कबर है, जिस ने यहूदा से आकर इसी काम की चर्चा पुकारकर की जो तू ने बेतेल की वेदी से किया है। 18. तब उस ने कहा, उसको छोड़ दो; उसकी हड्डियोंको कोई न हटाए। तब उन्होंने उसकी हड्डियां उस नबी की हड्डियोंके संग जो शोमरोन से आया या, रहने दी। 19. फिर ऊंचे स्यान के जितने भपन शोमरोन के नगरोंमें थे, जिनको इस्राएल के राजाओं ने बनाकर यहोवा को रिस दिलाई यी, उन सभोंको योशिय्याह ने गिरा दिया; और जैसा जैसा उस ने बेतेल में किया या, वैसा वैसा उन से भी किया। 20. और उन ऊंचे स्यानोंके जितने याजक वहां थे उन सभोंको उस ने उन्ही वेदियोंपर बलि किया और उन पर मनुष्योंकी हड्डियां जलाकर यरूशलेम को लौट गया। 21. और राजा ने सारी प्रजा के लोगोंको आज्ञा दी, कि इस वाचा की पुस्तक में जो कुछ लिखा है, उसके अनुसार अपके परमेश्वर यहोवा के लिथे फसह का पर्व मानो। 22. निश्चय ऐसा फसह न तो न्यायियोंके दिनोंमें माना गया या जो इस्राएल का न्याय करते थे, और न इस्राएल वा यहूदा के राजाओं के दिनोंमें माना गया या। 23. राजा योशिय्याह के अठारहवें वर्ष में यहोवा के लिथे यरूशलेम में यह फसह माना गया। 24. फिर ओफे, भूतसिद्धिवाले, गृहदेवता, मूरतें और जितनी घिनौनी वस्तुएं यहूद देश और यरूशलेम में जहां कहीं दिखाई पक्कीं, उन सभोंको योशिय्याह ने उस मनसा से नाश किया, कि य्यवस्या की जो बातें उस पुस्तक में लिखी यीं जो हिलकिय्याह याजक को यहोवा के भवन में मिली यी, उनको वह पूरी करे। 25. और उसके तुल्य न तो उस से पहिले कोई ऐसा राजा हुआ और न उसके बाद ऐसा कोई राजा उठा, जो मूसा की पूरी य्यवस्या के अनुसार अपके पूर्ण मन और मूर्ण प्राण और पूर्ण शक्ति से यहोवा की ओर फिरा हो। 26. तौभी यहोवा का भड़का हुआ बड़ा कोप शान्त न हुआ, जो इस कारण से यहूदा पर भड़का या, कि मनश्शे ने यहोवा को क्रोध पर क्रोध दिलाया या। 27. और यहोवा ने कहा या जेसे मैं ने इस्राएल को अपके साम्हने से दूर किया, वैसे ही सहूदा को भी दूर करूंगा; और इस यरूशलेम नगर से जिसे मैं ने चुना और इस भवन से जिसके विषय मैं ने कहा, कि यह मेरे नाम का निवास होगा, मैं हाथ उठाऊंगा। 28. योशिय्याह के और सब काम जो उस ने किए, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 29. उसके दिनोंमें फ़िरौन-नको नाम मिस्र का राजा अश्शूर के राजा के विरुद्ध परात महानद तक गया तो योशिय्याह राजा भी उसका साम्हना करने को गया, और उस ने उसको देखते ही मगिद्दो में मार डाला। 30. तब उसके कर्मचारियोंने उसकी लोय एक रय पर रख मगिद्दो से ले जाकर यरूशलेम को पहुंचाई और उसकी निज कबर में रख दी। तब साधारण लोगोंने योशिय्याह के पुत्र यहोआहाज को लेकर उसका अभिषेक करके, उसके पिता के स्यान पर राजा नियुक्त किया। 31. जब यहोआहाज राज्य करने लगा, तब वह तेई्रस वर्ष का या, और तीन महीने तक यरूशलेम में राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम हमूतल या, जो लिब्नावासी यिर्मयाह की बेटी यी। 32. उस ने इीक अपके पुरखाओं की नाई वही किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 33. उसको फ़िरौन-नको ने हमात देश के रिबला नगर में बान्ध रखा, ताकि वह यरूशलेम में राज्य न करने पाए, फिर उस ने देश पर सौ किक्कार चान्दी और किक्कार भर सोना जुरमाना किया। 34. तब फिरौन-नको ने योशिय्याह के पुत्र एल्याकीम को उसके पिता योशिय्याह के स्यान पर राजा नियुक्त किया, और उसका नाम बदलकर यहोयाकीम रखा; और यहोआहाज को ले गया। सो यहोआहाज मिस्र में जाकर वहीं मर गया। 35. यहोयाकीम ने फ़िरौन को वह चान्दी और सोना तो दिया परन्तु देश पर इसलिथे कर लगाया कि फ़िरौन की अज्ञा के अनुसार उसे दे सके, अर्यात् देश के सब लोगोंसे जितना जिस पर लगान लगा, उतनी चान्दी और सोना उस से फ़िरौन-नको को देने के लिथे ले लिया। 36. जब सहोयाकीम राज्य करने लगा, तब वह पक्कीस पर्ष का या, और ग्यारह वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम जबीदा या जो रूमावासी अदायाह की बेटी यी। 37. उस ने ठीक अपके पुरखाओं की नाई वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है।
Chapter 24
1. उसके दिनोंमें बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने चढाई की और यहोयाकीम तीन वर्ष तक उसके अधीन रहा; तब उस ने फिर कर उस से बलवा किया। 2. तब यहावा ने उसके विरुद्ध और यहूदा को नाश करने के लिथे कसदियों, अरामियों, मोआबियोंऔर अम्मोनियोंके दल भेजे, यह यहोवा के उस वचन के अनुसार हुआ, जो उस ने अपके दास भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा या। 3. नि:सन्देह यह यहूदा पर यहोवा की आज्ञा से हुआ, ताकि वह उनको अपके साम्हने से दूर करे। यह मनश्शे के सब पापोंके कारण हुआ। 4. और निदॉषोंके उस खून के कारण जो उस ने किया या; क्योंकि उस ने यरूशलेम को निदॉषोंके खून से भर दिया या, जिसको यहोवा ने झमा करना न चाहा। 5. यहोयाकीम के और सब काम जो उस ने किए, वह क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? 6. निदान यहोयाकीम अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसका पुत्र यहोयाकीन उसके स्यान पर राजा हुआ। 7. और मिस्र का राजा अपके देश से बाहर फिर कभी न आया, क्योंकि बाबेल के राजा ने मिस्र के नाले से लेकर परात महानद तक जितना देश मिस्र के राजा का या, सब को अपके वश में कर लिया या। 8. जब यहोयाकीन राज्य करने लगा, तब वह अठारह वर्ष का या, और तीन महीने तक यरूशलेम में राज्य करता रहा; और उसकी माता का नम तहुश्ता या, जो यरूशलेम के एलनातान की बेटी यी। 9. उस ने ठीक अपके पिता की नाई वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 10. उसके दिनोंमें बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर के कर्मचारियोंने यरूशलेम पर चढ़ाई करके नगर को घेर लिया। 11. और जब बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर के कर्मचारी नगर को घेरे हुए थे, तब वह आप वहां आ गया। 12. और यहूदा का राजा यहोयाकीन अपक्की माता और कर्मचारियों, हाकिमोंऔर खोजोंको संग लेकर बाबेल के राजा के पास गया, और बाबेल के राजा ने अपके राज्य के आठवें वर्ष मे उनको पकड़ लिया। 13. तब उस ने यहोवा के भवन में और राजभवन में रखा हुआ पूरा धन वहां से निकाल लिया और सोने के जो पात्र इस्राएल के राजा सुलैमान ने बनाकर यहोवा के मन्दिर में रखे थे, उन सभोंको उस ने टुकड़े टुकड़े कर डाला, जैसा कि यहोवा ने कहा या। 14. फिर वह पूरे यरूशलेम को अर्यात् सब हाकिमोंऔर सब धनवानोंको जो मिलकर दस हजार थे, और सब कारीगरोंऔर लोहारोंको बन्धुआ करके ले गया, यहां तक कि साधारण लोगोंमें से कंगालोंको छोड़ और कोई न रह गया। 15. और वह यहोयाकीन को बाबेल में ले गया और उसकी माता और स्त्रियोंऔर खोजोंको और देश के बड़े लोगोंको वह बन्धुआ करके यरूशलेम से बाबेल को ले गया। 16. और सब धनवान जो सात हजार थे, और कारीगर और लोहार जो मिलकर एक हजार थे, और वे सब वीर और युद्ध के योग्य थे, उन्हें बाबेल का राजा बन्धुआ करके बाबेल को ले गया। 17. और बाबेल के राजा ने उसके स्यान पर उसके चाचा मत्तन्याह को राजा नियुक्त किया और उसका नाम बदलकर सिदकिय्याह रखा। 18. जब सिदकिय्याह राज्य करने लगा, तब वह इक्कीस वर्ष का या, और यरूशलेम में ग्यारह वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम हमूतल या, जो लिब्नावासी यिर्मयाह की बेटी यी। 19. उस ने ठीक यहोयाकीम की लीक पर चलकर वही किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है। 20. क्योंकि यहोवा के कोप के कारण यरूशलेम और यहूदा को ऐसी दशा हुई, कि अन्त में उस ने उनको अपके साम्हने से दूर किया।
Chapter 25
1. और सिदकिय्याह ने बाबेल के राजा से बलवा किया। उसके राज्य के नौवें वर्ष के दसवें महीने के दसवें दिन को बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने अपक्की पूरी सेना लेकर यरूशलेम पर चढ़ाई की, और उसके पास छावनी करके उसके चारोंओर कोट बनाए। 2. और नगर सिदकिय्याह राजा के ग्यारहवें वर्ष तक घिरा हुआ रहा। 3. चौथे महीने के नौवें दिन से नगर में महंगी यहां तक बढ़ गई, कि देश के लोगोंके लिथे कुछ खाने को न रहा। 4. तब नगर की शहरपनाह में दरार की गई, और दोनोंभीतोंके बीच जो फाटक राजा की बारी के निकट या उस मार्ग से सब योद्धा रात ही रात निकल भागे। कसदी तो नगर को घेरे हुए थे, परन्तु राजा ने अराबा का मार्ग लिया। 5. तब कसदियोंकी सेना ने राजा का पीछा किया, और उसको यरीहो के पास के अराबा में जा लिया, और उसकी पूरी सेना उसके पास से तितर बितर हो गई। 6. तब वे राजा को पकड़कर रिबला में बाबेल के राजा के पास ले गए, और उसे दणड की आज्ञा दी गई। 7. और उन्होंने सिदकिय्याह के पुत्रोंको उसके साम्हने घात किया और सिदकिय्याह की आंखें फोड़ डालीं और उसे पीतल की बेडिय़ोंसे जकड़कर बाबेल को ले गए। 8. बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर के उन्नीसवें वर्ष के पांचवें महीने के सातवें दिन को जल्लादोंका प्रधान नबूजरदान जो बाबेल के राजा का एक कर्मचारी य, यरूशलेम में आया। 9. और उस ने यहोवा के भवन और राजभवन और यरूशलेम के सब घरोंको अर्यात् हर एक बड़े घर को आग लगाकर फूंक दिया। 10. और यरूशलेम के चारोंओर की सब शहरपनाह को कसदियो की पूरी सेना ने जो जल्लादोंके प्रधान के संग यी ढा दिया। 11. और जो लोग नगर में रह गए थे, और जो लोग बाबेल के राजा के पास भाग गए थे, और साधारण लोग जो रह गए थे, इन सभें को जल्लादोंका प्रधान नबूजरदान बन्धुआ करके ले गया। 12. परन्तु जल्लादोंके प्रधान ने देश के कंगालोंमें से कितनोंको दाख की बारियोंकी सेवा और काश्तकारी करने को छोड़ दिया। 13. और यहोवा के भ्वन में जो पीतल के खम्भे थे और कुसिर्यां और पीतल का हौद जो यहोवा के भवन में या, इनको कसदी तोड़कर उनका पीतल बाबेल को ले गए। 14. और हण्डियों, फावडिय़ों, चिमटों, धूपदानोंऔर पीतल के सब पात्राोंको जिन से सेवा टहल होती यी, वे ले गए। 15. और करछे और कटोरियां जो सोने की यीं, और जो कुछ चान्दी का या, वह सब सोना, चान्दी, जल्लादोंका प्रधान ले गया। 16. दोनोंखम्भे, एक हौद और जो कुसिर्यां सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिथे बनाए थे, इन सब वस्तुओं का पीतल तौल से बाहर या। 17. एक एक खम्भे की ऊंचाई अठारह अठारह हाथ की यी और एक एक खम्भे के ऊपर तीन तीन हाथ ऊंची पीतल की एक एक कंगनी यी, और एक एक कंगनी पर चारोंओर जो जाली और अनार बने थे, वे सब पीतल के थे। 18. और जल्लादोंके प्रधान ने सरायाह महाथाजक और उसके नीचे के याजक सपन्याह और तीनोंद्वारपालोंको पकड़ लिया। 19. और नगर में से उस ने एक हाकिम को पकड़ा जो योद्वाओं के ऊपर या, और जो पुरुष राजा के सम्मुख रहा करते थे, उन में से पांच जन जो नगर में मिले, और सेनापति का मुन्शी जो लोगोंको सेना में भरती किया करता या; और लोगोंमें से साठ पुरुष जो नगर में मिले। 20. इनको जल्लादोंका प्रधान नबूजरदान पकड़कर रिबला के राजा के पास ले गया। 21. तब बाबेल के राजा ने उन्हें हमात देश के रिबला में ऐसा मारा कि वे मर गए। योंयहूदी बन्धुआ बनके अपके देश से तिकाल दिए गए। 22. और जो लोग यहूदा देश में रह गए, जिनको बाबेल के राजा नबूकदनेस्सर ने छोड़ दिया, उन पर उस ने अहीकाम के पुत्र गदल्याह को जो शापान का पोता या अधिक्कारनेी ठहराया। 23. जब दलोंके सब प्रधानोंने अर्यात् नतन्याह के पुत्र इश्माएल कारेहू के पुत्र योहानान, नतोपाई, तन्हूमेत के पुत्र सरायाह और किसी माकाई के पुत्र याजन्याह ने और उनके जनोंने यह सुना, कि बाबेल के राजा ने गदल्याह को अधिक्कारनेी ठहराया है, तब वे अपके अपके जनोंसमेत मिस्पा में गदल्याह के पास आए। 24. और गदल्याह ने उन से और उनके जनोंसे शपय खाकर कहा, कसदियोंके सिपाहियोंसे न डरो, देश में रहते हुए बाबेल के राजा के अधीन रहो, तब नुम्हारा भला होगा। 25. परन्तु सातवें महीने में नतन्याह का पुत्र इश्माएल, जो एलीशामा का पोता और राजवंश का या, उस ने दस जन संग ले गदल्याह के पास जाकर उसे ऐसा मारा कि वह मर गया, और जो यहूदी और कसदी उसके संग मिस्पा में रहते थे, उनको भी मार डाला। 26. तब क्या छोटे क्या बड़े सारी प्रजा के लोग और दलोंके प्रधान कसदियोंके डर के मारे उठकर मिस्र में जाकर रहने लगे। 27. फिर यहूदा के राजा यहोयाकीन की बन्धुआई के तैंतीसवें वर्ष में अर्यात् जिस वर्ष में बाबेल का राजा एवील्मरोदक राजगद्दी पर विराजमान हुआ, उसी के बारहवें महीने के सत्ताईसवें दिन को उस ने यहूदा के राजा यहोयाकीन को बन्दीगृह से निकालकर बड़ा पद दिया। 28. और उस से मधुर मधुर वचन कहकर जो राजा उसके संग बाबेल में बन्धुए थे उनके सिंहासनोंसे उसके सिंहासन को अधिक ऊंचा किया, 29. और उसके बन्दीगृह के वस्त्र बदल दिए और उस ने जीवन भर नित्य राजा के सम्मुख भोजन किया। 30. और प्रतिदिन के खर्च के लिथे राजा के यहां से नित्य का झर्च ठहराया गया जो उसके जीवन भर लगातार उसे मिलता रहा।
(April28th2012)
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