2 यूहन्ना
Chapter 1
1. मुझ प्राचीन की ओर से उस चुनी हुई श्र्ीमती और उसके लड़केबालोंके नाम जिन से मैं उस सच्चाई के कारण सत्य प्रेम रखता हूं, जा हम में स्यिर रहती है, और सर्वदा हमारे साय अटल रहेगी। 2. और केवल मैं ही नहीं, बरन वह सब भी प्रेम रखते हैं, जो सच्चाई को जानते हैं।। 3. परमेश्वर पिता, और पिता के पुत्र यीशु मसीह की ओर से अनुग्रह, और दया, और शान्ति, सत्य, और प्रेम सहित हमारे साय रहेंगे।। 4. मैं बहुत आनन्दित हुआ, कि मैं ने तेरे कितने लड़के-बालोंको उस आज्ञा के अनुसार, जो हमें पिता की ओर से मिली यी सत्य पर चलते हुए पाया। 5. अब हे श्र्ीमती, मैं तुझे कोई नई आज्ञा नहीं, पर वही जो आरम्भ से हमारे पास है, लिखता हूं; और तुझ से बिनती करता हूं, कि हम एक दूसरे से प्रेम रखें। 6. और प्रेम यह है कि हम उस की आज्ञाओं के अनुसार चलें: यह वही आज्ञा है, जो तुम ने आरम्भ से सुनी है और तुम्हें इस पर चलना भी चाहिए। 7. क्योंकि बहुत से ऐसे भरमानेवाले जगत में निकल आए हैं, जो यह नहीं मानते, कि यीशु मसीह शरीर में होकर आया: भरमानेवाला और मसीह का विरोधी यही है। 8. अपके विषय में चौकस रहो; कि जो परिश्र्म हम ने किया है, उस को तुम न बिगाड़ो: बरन उसका पूरा प्रतिफल पाओ। 9. जो कोई आगे बढ़ जाता है, और मसीह की शिझा में बना नहीं रहता, उसके पास परमेश्वर नहीं: जो कोई उस की शिझा में स्यिर रहता है, उसके पास पिता भी है, और पुत्र भी। 10. यदि कोई तुम्हारे पास आए, और यही शिझा न दे, उसे न तो घर मे आने दो, और न नमस्कार करो। 11. क्योंकि जो कोई ऐसे जन को नमस्कार करता है, वह उस के बुरे कामोंमें साफी होता है।। 12. मुझे बहुत सी बातें तुम्हें लिखनी हैं, पर कागज और सियाही से लिखना नहीं चाहता; पर आशा है, कि मैं तुम्हारे पास आऊंगा, और सम्मुख होकर बातचीत करूंगा: जिस से तुम्हारा आनन्द पूरा हो। 13. तेरी चुनी हुई बहिन के लड़के-बाले तुझे नमस्कार करते हैं।
(April28th2012)
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