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लैव्यवस्था

Chapter 1

1. यहोवा ने मिलापवाले तम्बू में से मूसा को बुलाकर उस से कहा,
2. इस्त्राएलियोंसे कह, कि तुम में से यदि कोई मनुष्य यहोवा के लिथे पशु का चढ़ावा चढ़ाए, तो उसका बलिपशु गाय-बैलोंवा भेड़-बकरियोंमें से एक का हो।
3. यदि वह गाय बैलोंमें से होमबलि करे, तो निर्दोष नर मिलापवाले तम्बू के द्वार पर चढ़ाए, कि यहोवा उसे ग्रहण करे।
4. और वह अपना हाथ होमबलिपशु के सिर पर रखे, और वह उनके लिथे प्रायश्चित्त करने को ग्रहण किया जाएगा।
5. तब वह उस बछड़े को यहोवा के साम्हने बलि करे; और हारून के पुत्र जो याजक हैं वे लोहू को समीप ले जाकर उस वेदी की चारोंअलंगोंपर छिड़के जो मिलापवाले तम्बू के द्वार पर है।
6. फिर वह होमबलिपशु की खाल निकालकर उस पशु को टुकड़े टुकड़े करे;
7. तब हारून याजक के पुत्र वेदी पर आग रखें, और आग पर लकड़ी सजाकर धरें;
8. और हारून के पुत्र जो याजक हैं वे सिर और चरबी समेत पशु के टुकड़ोंको उस लकड़ी पर जो वेदी की आग पर होगी सजाकर धरें;
9. और वह उसकी अंतडिय़ोंऔर पैरोंको जल से धोए। तब याजक सब को वेदी पर जलाए, कि वह होमबलि यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्धवाला हवन ठहरे।।
10. और यदि वह भेड़ोंवा बकरोंका होमबलि चढ़ाए, तो निर्दोष नर को चढ़ाए।
11. और वह उसको यहोवा के आगे वेदी की उत्तरवाली अलंग पर बलि करे; और हारून के पुत्र जो याजक हैं वे उसके लोहू को वेदी की चारोंअलंगोंपर छिड़कें।
12. और वह उसको टुकड़े टुकड़े करे, और सिर और चरबी को अलग करे, और याजक इन सब को उस लकड़ी पर सजाकर धरे जो वेदी की आग पर होगी;
13. और वह उसकी अंतडिय़ोंऔर पैरोंको जल से धोए। और याजक सब को समीप ले जाकर वेदी पर जलाए, कि वह होमबलि और यहोवा के लिथे सुगन्धदायक सुगन्धवाला हवन ठहरे।।
14. और यदि वह यहोवा के लिथे पझियोंका होमबलि चढ़ाए, तो पंडुको वा कबूतरोंको चढ़ावा चढ़ाए।
15. याजक उसको वेदी के समीप ले जाकर उसका गला मरोड़ के सिर को धड़ से अलग करे, और वेदी पर जलाए; और उसका सारा लोहू उस वेदी की अलंग पर गिराया जाए;
16. और वह उसका ओफर मल सहित निकालकर वेदी की पूरब की ओर से राख डालने के स्यान पर फेंक दे;
17. और वह उसको पंखोंके बीच से फाड़े, पर अलग अलग न करे। तब याजक उसको वेदी पर उस लकड़ी के ऊपर रखकर जो आग पर होगी जलाए, कि वह होमबलि और यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्धवाला हवन ठहरे।।

Chapter 2

1. और जब कोई यहोवा के लिथे अन्नबलि का चढ़ावा चढ़ाना चाहे, तो वह मैदा चढ़ाए; और उस पर तेल डालकर उसके ऊपर लोबान रखे;
2. और वह उसको हारून के पुत्रोंके पास जो याजक हैं लाए। और अन्नबलि के तेल मिले हुए मैदे में से इस तरह अपक्की मुट्ठी भरकर निकाले कि सब लोबान उस में आ जाए; और याजक उन्हें स्मरण दिलानेवाले भाग के लिथे वेदी पर जलाए, कि यह यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्धित हवन ठहरे।
3. और अन्नबलि में से जो बचा रहे सो हारून और उसके पुत्रोंका ठहरे; यह यहोवा के हवनोंमें से परमपवित्र वस्तु होगी।।
4. और जब तू अन्नबलि के लिथे तन्दूर में पकाया हुआ चढ़ावा चढ़ाए, तो वह तेल से सने हुए अखमीरी मैदे के फुलकों, वा तेल से चुपक्की हुई अखमीरी चपातियोंका हो।
5. और यदि तेरा चढ़ावा तवे पर पकाया हुआ अन्नबलि हो, तो वह तेल से सने हुए अखमीरी मैदे का हो;
6. उसको टुकड़े टुकड़े करके उस पर तेल डालना, तब वह अन्नबलि हो जाएगा।
7. और यदि तेरा चढ़ावा कढ़ाही में तला हुआ अन्नबलि हो, तो वह मैदे से तेल में बनाया जाए।
8. और जो अन्नबलि इन वस्तुओं में से किसी का बना हो उसे यहोवा के समीप ले जाना; और जब वह याजक के पास लाया जाए, तब याजक उसे वेदी के समीप ले जाए।
9. और याजक अन्नबलि में से स्मरण दिलानेवाला भाग निकालकर वेदी पर जलाए, कि वह यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्धवाला हवन ठहरे;
10. और अन्नबलि में से जो बचा रहे वह हारून और उसके पुत्रोंका ठहरे; वह यहोवा के हवनोंमें परमपवित्र वस्तु होगी।
11. कोई अन्नबलि जिसे तुम यहोवा के लिथे चढ़ाओ खमीर मिलाकर बनाया न जाए; तुम कभी हवन में यहोवा के लिथे खमीर और मधु न जलाना।
12. तुम इनको पहिली उपज का चढ़ावा करके यहोवा के लिथे चढ़ाना, पर वे सुखदायक सुगन्ध के लिथे वेदी पर चढ़ाए न जाएं।
13. फिर अपके सब अन्नबलियोंको नमकीन बनाना; और अपना कोई अन्नबलि अपके परमेश्वर के साय बन्धी हुई वाचा के नमक से रहित होने न देना; अपके सब चढ़ावोंके साय नमक भी चढ़ाना।।
14. और यदि तू यहोवा के लिथे पहिली उपज का अन्नबलि चढ़ाए, तो अपक्की पहिली उपज के अन्नबलि के लिथे आग से फुलसाई हुई हरी हरी बालें, अर्यात्‌ हरी हरी बालोंको मींजके निकाल लेना, तब अन्न को चढ़ाना।
15. और उस में तेल डालना, और उसके ऊपर लोबान रखना; तब वह अन्नबलि हो जाएगा।
16. और याजक सींजकर निकाले हुए अन्न को, और तेल को, और सारे लोबान को स्मरण दिलानेवाला भाग करके जला दे; वह यहोवा के लिथे हवन ठहरे।।

Chapter 3

1. और यदि उसका चढ़ावा मेंलबलि का हो, और यदि वह गाय-बैलोंमे से किसी को चढ़ाए, तो चाहे वह पशु नर हो या मादा, पर जो निर्दोष हो उसी को वह यहोवा के आगे चढ़ाए।
2. और वह अपना हाथ अपके चढ़ावे के पशु के सिर पर रखे और उसको मिलापवाले तम्बू के द्वार पर बलि करे; और हारून के पुत्र जो याजक है वे उसके लोहू को वेदी की चारोंअलंगोंपर छिड़कें।
3. और वह मेलबलि में से यहोवा के लिथे हवन करे, अर्यात्‌ जिस चरबी से अंतडिय़ां ढपी रहती हैं, और जो चरबी उन में लिपक्की रहती है वह भी,
4. और दोनोंगुर्दे और उनके ऊपर की चरबी जो कमर के पास रहती है, और गुर्दोंसमेत कलेजे के ऊपर की फिल्ली, इन सभोंको वह अलग करे।
5. और हारून के पुत्र इनको वेदी पर उस होमबलि के ऊपर जलाएं, जो उन लकडिय़ोंपर होगी जो आग के ऊपर हैं, कि यह यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्धवाला हवन ठहरे।।
6. और यदि यहोवा के मेलबलि के लिथे उसका चढ़ावा भेड़-बकरियोंमें से हो, तो चाहे वह नर हो या मादा, पर जो निर्दोष हो उसी को वह चढ़ाए।
7. यदि वह भेड़ का बच्चा चढ़ाता हो, तो उसको यहोवा के साम्हने चढ़ाए,
8. और वह अपके चढ़ावे के पशु के सिर पर हाथ रखे और उसको मिलापवाले तम्बू के आगे बलि करे; और हारून के पुत्र उसके लोहू को वेदी की चारोंअलंगोंपर छिड़कें।
9. और मेलबलि में से चरबी को यहोवा के लिथे हवन करे, अर्यात्‌ उसकी चरबी भरी मोटी पूंछ को वह रीढ़ के पास से अलग करे, और जो चरबी उन में लिपक्की रहती है,
10. और दोनोंगुर्दे, और जो चरबी उनके ऊपर कमर के पास रहती है, और गुर्दोंसमेत कलेजे के ऊपर की फिल्ली, इन सभोंको वह अलग करे।
11. और याजक इन्हें वेदी पर जलाए; यह यहोवा के लिथे हवन रूपी भोजन ठहरे।।
12. और यदि वह बकरा वा बकरी चढ़ाए, तो उसे यहोवा के साम्हने चढ़ाए।
13. और वह अपना हाथ उसके सिर पर रखे, और उसको मिलापवाले तम्बू के आगे बलि करे; और हारून के पुत्र उसके लोहू को वेदी की चारोंअलंगोंपर छिड़के।
14. और वह उस में से अपना चढ़ावा यहोवा के लिथे हवन करके चढ़ाए, अर्यात्‌ जिस चरबी से अंतडिय़ां ढपी रहती हैं, और जो चरबी उन में लिपक्की रहती है वह भी,
15. और दोनोंगुर्दे और जो चरबी उनके ऊपर कमर के पास रहती है, और गुर्दोंसमेत कलेजे के ऊपर की फिल्ली, इन सभोंको वह अलग करे।
16. और याजक इन्हें वेदी पर जलाए; यह तो हवन रूपी भोजन है जो सुखदायक सुगन्ध के लिथे होता है; क्योंकि सारी चरबी यहोवा की हैं।
17. यह तुम्हारे निवासोंमें तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी के लिथे सदा की विधि ठहरेगी कि तुम चरबी और लोहू कभी न खाओ।।

Chapter 4

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा
2. कि इस्त्राएलियोंसे यह कह, कि यदि कोई मनुष्य उन कामोंमें से जिनको यहोवा ने मना किया है किसी काम को भूल से करके पापी हो जाए;
3. और यदि अभिषिक्त याजक ऐसा पाप करे, जिस से प्रजा दोषी ठहरे, तो अपके पाप के कारण वह एक निर्दोष बछड़ा यहोवा को पापबलि करके चढ़ाए।
4. और वह उस बछड़े को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा के आगे ले जाकर उसके सिर पर हाथ रखे, और उस बछड़े को यहोवा के साम्हने बलि करे।
5. और अभिषिक्त याजक बछड़े के लोहू में से कुछ लेकर मिलापवाले तम्बू में ले जाए;
6. और याजक अपक्की उंगली लोहू मे डुबो डुबोकर और उस में से कुछ लेकर पवित्रस्यान के बीचवाले पर्दे के आगे यहोवा के साम्हने सात बार छिड़के।
7. और याजक उस लोहू में से कुछ और लेकर सुगन्धित धूप की वेदी के सींगो पर जो मिलापवाले तम्बू में है यहोवा के साम्हने लगाए; फिर बछड़े के सब लोहू को वेदी के पाए पर जो मिलापवाले तम्बू के द्वार पर है उंडेल दे।
8. फिर वह पापबलि के बछड़े की सब चरबी को उस से अलग करे, अर्यात्‌ जिस चरबी से अंतडिय़ां ढपी रहती हैं, और जितनी चरबी उन में लिपक्की रहती है,
9. और दोनोंगुर्दे और उनके ऊपर की चरबी जो कमर के पास रहती है, और गुर्दोंसमेत कलेजे के ऊपर की फिल्ली, इन सभोंको वह ऐसे अलग करे,
10. जैसे मेलबलिवाले चढ़ावे के बछड़े से अलग किए जाते हैं, और याजक इनको होमबलि की वेदी पर जलाए।
11. और उस बछड़े की खाल, पांव, सिर, अंतडिय़ां, गोबर,
12. और सारा मांस, निदान समूचा बछड़ा छावनी से बाहर शुद्ध स्यान में, जहां राख डाली जाएगी, ले जाकर लकड़ी पर रखकर आग से जलाए; जहां राख डाली जाती है वह वहीं जलाया जाए।।
13. और इन बातोंमें से किसी भी बात के विषय में जो कोई पाप करे, याजक उसका प्रायश्चित्त करे, और तब वह पाप झमा किया जाएगा। और इस पापबलि का शेष अन्नबलि के शेष की नाई याजक का ठहरेगा।।
14. तो जब उनका किया हुआ पाप प्रगट हो जाए तब मण्डली एक बछड़े को पापबलि करके चढ़ाए। वह उसे मिलापवाले तम्बू के आगे ले जाए,
15. और मण्डली के वृद्ध लोग अपके अपके हाथोंको यहोवा के आगे बछड़े के सिर पर रखें, और वह बछड़ा यहोवा के साम्हने बलि किया जाए।
16. और अभिषिक्त याजक बछड़े के लोहू में से कुछ मिलापवाले तम्बू में ले जाए;
17. और याजक अपक्की उंगली लोहू में डुबो डुबोकर उसे बीचवाले पर्दे के आगे सात बार यहोवा के साम्हने छिड़के।
18. और उसी लोहू में से वेदी के सींगोंपर जो यहोवा के आगे मिलापवाले तम्बू में है लगाए; और बचा हुआ सब लोहू होमबलि की वेदी के पाए पर जो मिलापवाले तम्बू के द्वार पर है उंडेल दे।
19. और वह बछड़े की कुल चरबी निकालकर वेदी पर जलाए।
20. और जैसे पापबलि के बछड़े से किया या वैसे ही इस से भी करे; इस भांति याजक इस्त्राएलियोंके लिथे प्रायश्चित्त करे, तब उनका पाप झमा किया जाएगा।
21. और वह बछड़े को छावनी से बाहर ले जाकर उसी भांति जलाए जैसे पहिले बछड़े को जलाया या; यह तो मण्डली के निमित्त पापबलि ठहरेगा।।
22. जब कोई प्रधान पुरूष पाप करके, अर्यात्‌ अपके परमेश्वर यहोवा कि किसी आज्ञा के विरूद्ध भूल से कुछ करके दोषी हो जाए,
23. और उसका पाप उस पर प्रगट हो जाए, तो वह एक निर्दोष बकरा बलिदान करने के लिथे ले आए;
24. और बकरे के सिर पर अपना हाथ धरे, और बकरे को उस स्यान पर बलि करे जहां होमबलि पशु यहोवा के आगे बलि किथे जाते हैं; यह तो पापबलि ठहरेगा।
25. और याजक अपक्की उंगली से पापबलि पशु के लोहू में से कुछ लेकर होमबलि की वेदी के सींगोंपर लगाए, और उसका लोहू होमबलि की वेदी के पाए पर उंडेल दे।
26. और वह उसकी कुल चरबी को मेलबलि की चरबी की नाई वेदी पर जलाए; और याजक उसके पाप के विषय में प्रायश्चित्त करे, तब वह झमा किया जाएगा।।
27. और यदि साधारण लोगोंमें से कोई अज्ञानता से पाप करे, अर्यात्‌ कोई ऐसा काम जिसे यहोवा ने माना किया हो करके दोषी हो, और उसका वह पाप उस पर प्रगट हो जाए,
28. तो वह उस पाप के कारण एक निर्दोष बकरी बलिदान के लिथे ले आए;
29. और वह अपना हाथ पापबलि पशु के सिर पर रखे, और होमबलि के स्यान पर पापबलि पशु का बलिदान करे।
30. और याजक उसके लोहू में से अपक्की उंगली से कुछ लेकर होमबलि की वेदी के सींगोंपर लगाए, और उसके सब लोहू को उसी वेदी के पाए पर उंडेल दे।
31. और वह उसकी सब चरबी को मेलबलिपशु की चरबी की नाईं अलग करे, तब याजक उसको वेदी पर यहोवा के निमित्त सुखदायक सुगन्ध के लिथे जलाए; और इस प्रकार याजक उसके लिथे प्रायश्चित्त करे, तब उसे झमा मिलेगी।।
32. और यदि वह पापबलि के लिथे एक भेड़ी का बच्चा ले आए, तो वह निर्दोष मादा हो,
33. और वह अपना हाथ पापबलि पशु के सिर पर रखे, और उसको पापबलि के लिथे वहीं बलिदान करे जहां होमबलिपशु बलि किया जाता है।
34. और याजक अपक्की उंगली से पापबलि के लोहू में से कुछ लेकर होमबलि की वेदी के सींगोंपर लगाए, और उसके सब लोहू को वेदी के पाए पर उंडेल दे।
35. और वह उसकी सब चरबी को मेलबलिवाले भेड़ के बच्चे की चरबी की नाई अलग करे, और याजक उसे वेदी पर यहोवा के हवनोंके ऊपर जलाए; और इस प्रकार याजक उसके पाप के लिथे प्रायश्चित्त करे, और वह झमा किया जाएगा।।

Chapter 5

1. और यदि कोई साझी होकर ऐसा पाप करे कि शपय खिलाकर पूछने पर भी, कि क्या तू ने यह सुना अयवा जानता है, और वह बात प्रगट न करे, तो उसको अपके अधर्म का भार उठाना पकेगा।
2. और यदि कोई किसी अशुद्ध वस्तु को अज्ञानता से छू ले, तो चाहे वह अशुद्ध बनैले पशु की, चाहे अशुद्ध रेंगनेवाले जीव-जन्तु की लोय हो, तो वह अशुद्ध होकर दोषी ठहरेगा।
3. और यदि कोई मनुष्य किसी अशुद्ध वस्तु को अज्ञानता से छू ले, चाहे वह अशुद्ध वस्तु किसी भी प्रकार की क्योंन हो जिस से लोग अशुद्ध हो जाते हैं तो जब वह उस बात को जान लेगा तब वह दोषी ठहरेगा।
4. और यदि कोई बुरा वा भला करने को बिना सोचे समझे शपय खाए, चाहे किसी प्रकार की बात वह बिना सोचे विचारे शपय खाकर कहे, तो ऐसी बात में वह दोषी उस समय ठहरेगा जब उसे मालूम हो जाएगा।
5. और जब वह इन बातोंमें से किसी भी बात में दोषी हो, तब जिस विषय में उस ने पाप किया हो वह उसको मान ले,
6. और वह यहोवा के साम्हने अपना दोषबलि ले आए, अर्यात्‌ उस पाप के कारण वह एक भेड़ वा बकरी पापबलि करने के लिथे ले आए; तब याजक उस पाप के विषय उसके लिथे प्रायश्चित्त करे।
7. और यदि उसे भेड़ वा बकरी देने की सामर्य्य न हो, तो अपके पाप के कारण दो पंडुकी वा कबूतरी के दो बच्चे दोषबलि चढ़ाने के लिथे यहोवा के पास ले आए, उन में से एक तो पापबलि के लिथे और दूसरा होमबलि के लिथे।
8. और वह उनको याजक के पास ले आए, और याजक पापबलिवाले को पहिले चढ़ाए, और उसका सिर गले से मरोड़ डाले, पर अलग न करे,
9. और वह पापबलिपशु के लोहू में से कुछ वेदी की अलंग पर छिड़के, और जो लोहू शेष रहे वह वेदी के पाए पर गिराया जाए; वह तो पापबलि ठहरेगा।
10. और दूसरे पक्की को वह विधी के अनुसार होमबलि करे, और याजक उसके पाप का प्रायश्चित्त करे, और तब वह झमा किया जाएगा।।
11. और यदि वह दो पंडुकी वा कबूतरी के दो बच्चे भी न दे सके, तो वह अपके पाप के कारण अपना चढ़ावा एपा का दसवां भाग मैदा पापबलि करके ले आए;
12. वह उसको याजक के पास ले जाए, और याजक उस में से अपक्की मुट्ठी भर स्मरण दिलानेवाला भाग जानकर वेदी पर यहोवा के हवनोंके ऊपर जलाए; वह तो पापबलि ठहरेगा।
13. और इन बातोंमें से किसी भी बात के विषय में जो कोई पाप करे, याजक उसका प्रायश्चित्त करे, और तब वह पाप झमा किया जाएगा। और इस पापबलि का शेष अन्नबलि के शेष की नाई याजक का ठहरेगा।।
14. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
15. यदि कोई यहोवा की पवित्र की हुई वस्तुओं के विषय में भूल से विश्वासघात करे और पापी ठहरे, तो वह यहोवा के पास एक निर्दोष मेढ़ा दोषबलि के लिथे ले आए; उसका दाम पवित्रस्यान के शेकेल के अनुसार उतने ही शेकेल रूपके का हो जितना याजक ठहराए।
16. और जिस पवित्र वस्तु के विषय उस ने पाप किया हो, उस में वह पांचवां भाग और बढ़ाकर याजक को दे; और याजक दोषबलि का मेढ़ा चढ़ाकर उसके लिथे प्रायश्चित्त करे, तब उसका पाप झमा किया जाएगा।।
17. और यदि कोई ऐसा पाप करे, कि उन कामोंमें से जिन्हें यहोवा ने मना किया है किसी काम को करे, तो चाहे वह उसके अनजाने में हुआ हो, तौभी वह दोषी ठहरेगा, और उसको अपके अधर्म का भार उठाना पकेगा।
18. इसलिथे वह एक निर्दोष मेढ़ा दोषबलि करके याजक के पास ले आए, वह उतने दाम का हो जितना याजक ठहराए, और याजक उसके लिथे उसकी उस भूल का जो उस ने अनजाने में की हो प्रायश्चित्त करे, और वह झमा किया जाएगा।
19. यह दोषबलि ठहरे; क्योंकि वह मनुष्य नि:सन्देह यहोवा के सम्मुख दोषी ठहरेगा।।

Chapter 6

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. यदि कोई यहोवा का विश्वासघात करके पापी ठहरे, जैसा कि धरोहर, वा लेनदेन, वा लूट के विषय में अपके भाई से छल करे, वा उस पर अन्धेर करे,
3. वा पक्की हुई वस्तु को पाकर उसके विषय फूठ बोले और फूठी शपय भी खाए; ऐसी कोई भी बात क्योंन हो जिसे करके मनुष्य पापी ठहरते हैं,
4. तो जब वह ऐसा काम करके दोषी हो जाए, तब जो भी वस्तु उस ने लूट, वा अन्धेर करके, वा धरोहर, वा पक्की पाई हो;
5. चाहे कोई वस्तु क्योंन हो जिसके विषय में उस ने फूठी शपय खाई हो; तो वह उसको पूरा पूरा लौटा दे, और पांचवां भाग भी बढ़ाकर भर दे, जिस दिन यह मालूम हो कि वह दोषी है, उसी दिन वह उस वस्तु को उसके स्वामी को लौटा दे।
6. और वह यहोवा के सम्मुख अपना दोषबलि भी ले आए, अर्यात्‌ एक निर्दोष मेढ़ा दोषबलि के लिथे याजक के पास ले आए, वह उतने ही दाम का हो जितना याजक ठहराए।
7. इस प्रकार याजक उसके लिथे यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे, और जिस काम को करके वह दोषी हो गया है उसकी झमा उसे मिलेगी।।
8. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
9. हारून और उसके पुत्रोंको आज्ञा देकर यह कह, कि होमबलि की व्यवस्या यह है; अर्यात्‌ होमबलि ईधन के ऊपर रात भर भोर तब वेदी पर पड़ा रहे, और वेदी की अग्नि वेदी पर जलती रहे।
10. और याजक अपके सनी के वस्त्र और अपके तन पर अपक्की सनी की जांघिया पहिनकर होमबलि की राख, जो आग के भस्म करने से वेदी पर रह जाए, उसे उठाकर वेदी के पास रखे।
11. तब वह अपके वस्त्र उतारकर दूसरे वस्त्र पहिनकर राख को छावनी से बाहर किसी शुद्ध स्यान पर ले जाए।
12. और वेदी पर अग्नि जलती रहे, और कभी बुफने न पाए; और याजक भोर भोर उस पर लकडिय़ां जलाकर होमबलि के टुकड़ोंको उसके ऊपर सजाकर धर दे, और उसके ऊपर मेलबलियोंकी चरबी को जलाया करे।
13. वेदी पर आग लगातार जलती रहे; वह कभी बुफने न पाए।।
14. अन्नबलि की व्यवस्या इस प्रकार है, कि हारून के पुत्र उसको वेदी के आगे यहोवा के समीप ले आएं।
15. और वह अन्नबलि के तेल मिले हुए मैदे में से मुट्ठी भर और उस पर का सब लोबान उठाकर अन्नबलि के स्मरणार्य के इस भाग को यहोवा के सम्मुख सुखदायक सुगन्ध के लिथे वेदी पर जलाए।
16. और उस में से जो शेष रह जाए उसे हारून और उसके पुत्र खा जाएं; वह बिना खमीर पवित्र स्यान में खाया जाए, अर्यात्‌ वे मिलापवाले तम्बू के आंगन में उसे खाएं।
17. वह खमीर के साय पकाया न जाए; क्योंकि मैं ने अपके हव्य में से उसको उनका निज भाग होने के लिथे उन्हें दिया है; इसलिथे जैसा पापबलि और दोषबलि परमपवित्र है वैसा ही वह भी है।
18. हारून के वंश के सब पुरूष उस में से खा सकते हैं तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी में यहोवा के हवनोंमें से यह उनका भाग सदैव बना रहेगा; जो कोई उन हवनोंको छूए वह पवित्र ठहरेगा।।
19. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
20. जिस दिन हारून का अभिषेक हो उस दिन वह अपके पुत्रोंके साय यहोवा को यह चढ़ावा चढ़ाए; अर्यात्‌ एपा का दसवां भाग मैदा नित्य अन्नबलि में चढ़ाए, उस में से आधा भोर को और आधा सन्ध्या के समय चढ़ाए।
21. वह तवे पर तेल के साय पकाया जाए; जब वह तेल से तर हो जाए तब उसे ले आना, इस अन्नबलि के पके हुए टुकड़े यहोवा के सुखदायक सुगन्ध के लिथे चढ़ाना।
22. और उसके पुत्रोंमें से जो भी उस याजकपद पर अभिषिक्त होगा, वह भी उसी प्रकार का चढ़ावा चढ़ाया करे; यह विधी सदा के लिथे है, कि यहोवा के सम्मुख वह सम्पूर्ण चढ़ावा जलाया जाथे।
23. याजक के सम्पूर्ण अन्नबलि भी सब जलाए जाएं; वह कभी न खाया जाए।।
24. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
25. हारून और उसके पुत्रोंसे यह कह, कि पापबलि की व्यवस्या यह है; अर्यात्‌ जिस स्यान में होमबलिपशु वध किया जाता है उसी में पापबलिपशु भी यहोवा के सम्मुख बलि किया जाए; वह परमपवित्र है।
26. और जो याजक पापबलि चढ़ावे वह उसे खाए; वह पवित्र स्यान में, अर्यात्‌ मिलापवाले तम्बू के आँगन में खाया जाए।
27. जो कुछ उसके मांस से छू जाए, वह पवित्र ठहरेगा; और यदि उसके लोहू के छींटे किसी वस्त्र पर पड़ जाएं, तो उसे किसी पवित्रस्यान में धो देना।
28. और वह मिट्टी का पात्र जिस में वह पकाया गया हो तोड़ दिया जाए; यदि वह पीतल के पात्र में सिफाया गया हो, तो वह मांजा जाए, और जल से धो लिया जाए।
29. और याजकोंमें से सब पुरूष उसे खा सकते हैं;
30. पर जिस पापबलिपशु के लोहू में से कुछ भी खून मिलापवाले तम्बू के भीतर पवित्रस्यान में प्रायश्चित्त करने को पहुंचाया जाए तब तो उसका मांस कभी न खाया जाए; वह आग में जला दिया जाए।।

Chapter 7

1. फिर दोषबलि की व्यवस्या यह है। वह परमपवित्र है;
2. जिस स्यान पर होमबलिपशु का वध करते हैं उसी स्यान पर दोषबलिपशु का भी बलि करें, और उसके लोहू को याजक वेदी पर चारोंओर छिड़के।
3. और वह उस में की सब चरबी को चढ़ाए, अर्यात्‌ उसकी मोटी पूंछ को, और जिस चरबी से अंतडिय़ां ढपी रहती हैं वह भी,
4. और दोनोंगुर्दे और जो चरबी उनके ऊपर और कमर के पास रहती है, और गुर्दोंसमेत कलेजे के ऊपर की फिल्ली; इन सभोंको वह अलग करे;
5. और याजक इन्हें वेदी पर यहोवा के लिथे हवन करे; तब वह दोषबलि होगा।
6. याजकोंमें के सब पुरूष उस में से खा सकते हैं; वह किसी पवित्रस्यान में खाया जाए; क्योंकि वह परमपवित्र है।
7. जैसा पापबलि है वैसा ही दोषबलि भी है, उन दोनोंकी एक ही व्यवस्या है; जो याजक उन बलियोंको चढ़ा के प्रायश्चित्त करे वही उन वस्तुओं को ले ले।
8. और जो याजक किसी के लिथे होमबलि को चढ़ाए उस होमबलिपशु की खाल को वही याजक ले ले।
9. और तंदूर में, वा कढ़ाही में, वा तवे पर पके हुए सब अन्नबलि उसी याजक की होंगी जो उन्हें चढ़ाता है।
10. और सब अन्नबलि, जो चाहे तेल से सने हुए होंचाहे रूखे हों, वे हारून के सब पुत्रोंको एक समान मिले।।
11. और मेलबलि की जिसे कोई यहोवा के लिथे चढ़ाए व्यवस्या यह है।
12. यदि वह उसे धन्यवाद के लिथे चढ़ाए, तो धन्यवाद-बलि के साय तेल से सने हुए अखमीरी फुलके, और तेल से चुपक्की हुई अखमीरी फुलके, और तेल से चुपक्की हुई अखमीरी रोटियां, और तेल से सने हुए मैदे के फुलके तेल से तर चढ़ाए।
13. और वह अपके धन्यवादवाले मेलबलि के साय अखमीरी रोटियां, और तेल से सने हुए मैदे के फुलके तेल से तर चढ़ाए।
14. और ऐसे एक एक चढ़ावे में से वह एक एक रोटी यहोवा को उठाने की भेंट करके चढ़ाए; वह मेलबलि के लोहू के छिड़कनेवाले याजक की होगी।
15. और उस धन्यवादवाले मेलबलि का मांस बलिदान चढ़ाने के दिन ही खाया जाए; उस में से कुछ भी भोर तक शेष न रह जाए।
16. पर यदि उसके बलिदान का चढ़ावा मन्नत का वा स्वेच्छा का हो, तो उस बलिदान को जिस दिन वह चढ़ाया जाए उसी दिन वह खाया जाए, और उस में से जो शेष रह जाए वह दूसरे दिन भी खाया जाए।
17. परन्तु जो कुछ बलिदान के मांस में से तीसरे दिन तक रह जाए वह आग में जला दिया जाए।
18. और उसके मेलबलि के मांस में से यदि कुछ भी तीसरे दिन खाया जाए, तो वह ग्रहण न किया जाएगा, और न पुन में गिना जाएगा; वह घृणित कर्म समझा जाएगा, और जो कोई उस में से खाए उसका अधर्म उसी के सिर पर पकेगा।
19. फिर जो मांस किसी अशुद्ध वस्तु से छू जाए वह न खाया जाए; वह आग में जला दिया जाए। फिर मेलबलि का मांस जितने शुद्ध होंवे ही खाएं,
20. परन्तु जो अशुद्ध होकर यहोवा के मेलबलि के मांस में से कुछ खाए वह अपके लोगोंमें से नाश किया जाए।
21. और यदि कोई किसी अशुद्ध वस्तु को छूकर यहोवा के मेलबलिपशु के मांस में से खाए, तो वह भी अपके लोगोंमें से नाश किया जाए, चाहे वह मनुष्य की कोई अशुद्ध वस्तु वा अशुद्ध पशु वा कोई भी अशुद्ध और घृणित वस्तु हो।।
22. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
23. इस्त्राएलियोंसे इस प्रकार कह, कि तुम लोग न तो बैल की कुछ चरबी खाना और न भेड़ वा बकरी की।
24. और जो पशु स्वयं मर जाए, और जो दूसरे पशु से फाड़ा जाए, उसकी चरबी और और काम में लाना, परन्तु उसे किसी प्रकार से खाना नहीं।
25. जो कोई ऐसे पशु की चरबी खाएगा जिस में से लोग कुछ यहोवा के लिथे हवन करके चढ़ाया करते हैं वह खानेवाला अपके लोगोंमें से नाश किया जाएगा।
26. ओर तुम अपके घर में किसी भांति का लोहू, चाहे पक्की का चाहे पशु का हो, न खाना।
27. हर एक प्राणी जो किसी भांति का लोहू खाएगा वह अपके लोगोंमें से नाश किया जाएगा।।
28. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
29. इस्त्राएलियोंसे इस प्रकार कह, कि जो यहोवा के लिथे मेलबलि चढ़ाए वह उसी मेलबलि में से यहोवा के पास भेंट ले आए;
30. वह अपके ही हाथोंसे यहोवा के हव्य को, अर्यात्‌ छाती हिलाने की भेंट करके यहोवा के साम्हने हिलाई जाए।
31. और याजक चरबी को तो वेदी पर जलाए, परन्तु छाती हारून और उसके पुत्रोंकी होगी।
32. फिर तुम अपके मेलबलियोंमें से दहिनी जांघ को भी उठाने की भेंट करके याजक को देना;
33. हारून के पुत्रोंमें से जो मेलबलि के लोहू और चरबी को चढ़ाए दहिनी जांघ उसी को भाग होगा।
34. क्योंकि इस्त्राएलियोंके मेलबलियोंमें से हिलाने की भेंट की छाती और उठाने की भेंट की जांघ को लेकर मैं ने याजक हारून और उसके पुत्रोंको दिया है, कि यह सर्वदा इस्त्राएलियोंकी ओर से उनका हक बना रहे।।
35. जिस दिन हारून और उसके पुत्र यहोवा के समीप याजक पद के लिथे आए गए उसी दिन यहोवा के हव्योंमें से उनका यही अभिषिक्त भाग ठहराया गया;
36. अर्यात्‌ जिस दिन यहोवा ने उसका अभिषेक किया उसी दिन उस ने आज्ञा दी कि उनको इस्त्राएलियोंकी ओर से थे ही भाग नित मिला करें; उनकी पीढ़ी पीढ़ी के लिथे उनका यही हक ठहराया गया।
37. होमबलि, अन्नबलि, पापबलि, दोषबलि, याजकोंके संस्कार बलि, और मेलबलि की व्यवस्या यही है;
38. जब यहोवा ने सीनै पर्वत के पास के जंगल में मूसा को आज्ञा दी कि इस्त्राएली मेरे लिथे क्या क्या चढ़ावे चढ़ाएं, तब उस ने उनको यही व्यवस्या दी यी।।

Chapter 8

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. तू हारून और उसके पुत्रोंके वों, और अभिषेक के तेल, और पापबलि के बछड़े, और दोनोंमेढ़ों, और अखमीरी रोटी की टोकरी को
3. मिलापवाले तम्बू के द्वार पर ले आ, और वहीं सारी मण्डली को इकट्ठा कर।
4. यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार मूसा ने किया; और मण्डली मिलापवाले तम्बू के द्वार पर इकट्ठी हुई।
5. तब मूसा ने मण्डली से कहा, जो काम करने की आज्ञा यहोवा ने दी है वह यह है।
6. फिर मूसा ने हारून और उसके पुत्रोंको समीप ले जाकर जल से नहलाया।
7. तब उस ने उनको अंगरखा पहिनाया, और कटिबन्द लपेटकर बागा पहिना दिया, और एपोद लगाकर एपोद के काढ़े हुए पटुके से एपोद को बान्धकर कस दिया।
8. और उस ने उनके चपरास लगाकर चमरास में ऊरीम और तुम्मीम रख दिए।
9. तब उस ने उसके सिर पर पगड़ी बान्धकर पगड़ी के साम्हने पर सोने के टीके को, अर्यात्‌ पवित्र मुकुट को लगाया, जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।
10. तब मूसा ने अभिषेक का तेल लेकर निवास का और जो कुछ उस में या उन सब को भी अभिषेक करके उन्हें पवित्र किया।
11. और उस तेल में से कुछ उस ने वेदी पर सात बार छिड़का, और कुल सामान समेत वेदी का और पाए समेत हौदी का अभिषेक करके उन्हें पवित्र किया।
12. और उस ने अभिषेक के तेल में से कुछ हारून के सिर पर डालकर उसका अभिषेक करके उसे पवित्र किया।
13. फिर मूसा ने हारून के पुत्रोंको समीप ले आकर, अंगरखे पहिनाकर, फेटे बान्ध के उनके सिर पर टोपी रख दी, जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।
14. तब वह पापबलि के बछड़े को समीप ले गया; और हारून और उसके पुत्रोंने अपके अपके हाथ पापबलि के बछड़े के सिर पर रखें
15. तब वह बलि किया गया, और मूसा ने लोहू को लेकर उंगली से वेदी के चारोंसींगोंपर लगाकर पवित्र किया, और लोहू को वेदी के पाए पर उंडेल दिया, और उसके लिथे प्रायश्चित्त करके उसको पवित्र किया।
16. और मूसा ने अंतडिय़ोंपर की सब चरबी, और कलेजे पर की फिल्ली, और चरबी समेत दोनोंगुर्दोंको लेकर वेदी पर जलाया।
17. ओर बछड़े में से जो कुछ शेष रह गया उसको, अर्यात्‌ गोबर समेत उसकी खाल और मांस को उस ने छावनी से बाहर आग में जलाया, जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।
18. फिर वह होमबलि के मेढ़े को समीप ले गया, और हारून और उसके पुत्रोंने अपके अपके हाथ मेंढ़े के सिर पर रखे।
19. तब वह बलि किया गया, और मूसा ने उसका लोहू वेदी पर चारोंओर छिड़का।
20. किया गया, और मूसा ने सिर ओर चरबी समेत टुकड़ोंको जलाया।
21. तब अंतडिय़ां और पांव जल से धोथे गए, और मूसा ने पूरे मेढ़े को वेदी पर जलाया, और वह सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे होमबलि और यहोवा के लिथे हव्य हो गया, जिस प्रकार यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।
22. फिर वह दूसरे मेढ़े को जो संस्कार का मेढ़ा या समीप ले गया, और हारून और उसके पुत्रोंने अपके अपके हाथ मेढ़े के सिर पर रखे।
23. तब वह बलि किया गया, और मूसा ने उसके लोहू में से कुछ लेकर हारून के दहिने कान के सिक्के पर और उसके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठोंपर लगाया।
24. और वह हारून के पुत्रोंको समीप ले गया, और लोहू में से कुछ एक एक के दहिने कान के सिक्के पर और दहिने हाथ ओर दहिने पांव के अंगूठोंपर लगाया; और मूसा ने लोहू को वेदी पर चारोंओर छिड़का।
25. और उस ने चरबी, और मोटी पूंछ, ओर अंतडिय़ोंपर की सब चरबी, और कलेजे पर की फिल्ली समेत दोनोंगुर्दे, और दहिनी जांघ, थे सब लेकर अलग रखे;
26. ओर अखमीरी रोटी की टोकरी जो यहोवा के आगे रखी गई यी उस में से एक रोटी, और तेल से सने हुए मैदे का एक फुलका, और एक रोटी लेकर चरबी और दहिनी जांघ पर रख दी;
27. और थे सब वस्तुएं हारून और उसके पुत्रोंके हाथोंपर धर दी गई, और हिलाने की भेंट के लिथे यहोवा के साम्हने हिलाई गई।
28. और मूसा ने उन्हें फिर उनके हाथोंपर से लेकर उन्हें वेदी पर होमबलि के ऊपर जलाया, यह सुखदायक सुगन्ध देने के लिथे संस्कार की भेंट और यहोवा के लिथे हव्य या।
29. तब मूसा ने छाती को लेकर हिलाने की भेंट के लिथे यहोवा के आगे हिलाया; और संस्कार के मेढ़ें में से मूसा का भाग यही हुआ जैसा यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।
30. और मूसा ने अभिषेक के तेल ओर वेदी पर के लोहू, दोनोंमें से कुछ लेकर हारून और उसके वोंपर, और उसके पुत्रोंऔर उनके वोंपर भी छिड़का; और उस ने वोंसमेत हारून को ओर वोंसमेत उसके पुत्रोंको भी पवित्र किया।
31. और मूसा ने हारून और उसके पुत्रोंसे कहा, मांस को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर पकाओ, और उस रोटी को जो संस्कार की टोकरी में है वहीं खाओ, जैसा मैं ने आज्ञा दी है, कि हारून और उसके पुत्र उसे खाएं।
32. और मांस और रोटी में से जो शेष रह जाए उसे आग में जला देना।
33. और जब तक तुम्हारे संस्कार के दिन पूरे न होंतब तक, अर्यात्‌ सात दिन तक मिलापवाले तम्बू के द्वार के बाहर न जाना, क्योंकि वह सात दिन तक तुम्हारा संस्कार करता रहेगा।
34. जिस प्रकार आज किया गया है वैसा ही करने की आज्ञा यहोवा ने दी है, जिस से तुम्हारा प्रायश्चित्त किया जाए।
35. इसलिथे तुम मिलापवाले तम्बू के द्वार पर सात दिन तक दिन रात ठहरे रहना, और यहोवा की आज्ञा को मानना, ताकि तुम मर न जाओ; क्योंकि ऐसी की आज्ञा मुझे दी गई है।
36. तब यहोवा की इन्हीं सब आज्ञाओं के अनुसार जो उस ने मूसा के द्वारा दी यीं हारून ओर उसके पुत्रोंने उनका पालन किया।।

Chapter 9

1. आठवें दिन मूसा ने हारून और उसके पुत्रोंको और इस्त्राएली पुरनियोंको बुलवाकर हारून से कहा,
2. पापबलि के लिथे एक निर्दोष बछड़ा, और होमबलि के लिथे एक निर्दोष मेढ़ा लेकर यहोवा के साम्हने भेंट चढ़ा।
3. और इस्त्राएलियोंसे यह कह, कि तुम पापबलि के लिथे एक बकरा, और होमबलि के लिथे एक बछड़ा और एक भेड़ को बच्चा लो, जो एक वर्ष के होंऔर निर्दोष हों,
4. और मेलबलि के लिथे यहोवा के सम्मुख चढ़ाने के लिथे एक बैल और एक मेढ़ा, और तेल से सने हुए मैदे का एक अन्नबलि भी ले लो; क्योंकि आज यहोवा तुम को दर्शन देगा।
5. और जिस जिस वस्तु की आज्ञा मूसा ने दी उन सब को वे मिलापवाले तम्बू के आगे ले आए; और सारी मण्डली समीप जाकर यहोवा के साम्हने खड़ी हुई।
6. तब मूसा ने कहा, यह वह काम है जिसके करने के लिथे यहोवा ने आज्ञा दी है कि तुम उसे करो; और यहोवा की महिमा का तेज तुम को दिखाई पकेगा।
7. और मूसा ने हारून से कहा, यहोवा की आज्ञा के अनुसार वेदी के समीप जाकर अपके पापबलि और होमबलि को चढ़ाकर उनके लिथे प्रायश्चित्त कर।
8. इसलिथे हारून ने वेदी के समीप जाकर अपके पापबलि के बछड़े को बलिदान किया।
9. और हारून के पुत्र लोहू को उसके पास ले गए, तब उस ने अपक्की उंगली को लोहू में डुबाकर वेदी के सींगोंपर लोहू को लगाया, और शेष लोहू को वेदी के पाए पर उंडेल दिया;
10. और पापबलि में की चरबी और गुर्दोंऔर कलेजे पर की फिल्ली को उस ने वेदी पर जलाया, जैसा यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।
11. और मांस और खाल को उस ने छावनी से बाहर आग में जलाया।
12. तब होमबलिपशु को बलिदान किया; और हारून के पुत्रोंने लोहू को उसके हाथ में दिया, और उस ने उसको वेदी पर चारोंओर छिड़क दिया।
13. तब उन्होंने होमबलिपशु का टुकड़ा टुकड़ा करके सिर सहित उसके हाथ में दे दिया और उस ने उनको वेदी पर जला दिया।
14. और उस ने अंतडिय़ोंऔर पांवोंको धोकर वेदी पर होमबलि के ऊपर जलाया।
15. और उस ने लोगोंके चढ़ावे को आगे लेकर और उस पापबलि के बकरे को जो उनके लिथे या लेकर उसका बलिदान किया, और पहिले के समान उसे भी पापबलि करके चढ़ाया।
16. और उस ने होमबलि को भी समीप ले जाकर विधि के अनुसार चढ़ाया।
17. और अन्नबलि को भी समीप ले जाकर उस में से मुट्ठी भर वेदी पर जलाया, यह भोर के होमबलि के अलावा चढ़ाया गया।
18. और बैल और मेढ़ा, अर्यात्‌ जो मेलबलिपशु जनता के लिथे थे वे भी बलि किथे गए; और हारून के पुत्रोंने लोहू को उसके हाथ में दिया, और उस ने उसको वेदी पर चारोंओर छिड़क दिया;
19. और उन्होंने बैल की चरबी को, और मेढ़े में से मोटी पूंछ को, और जिस चरबी से अतडिय़ां ढपी रहती हैं उसको, ओर गुर्दोंसहित कलेजे पर की फिल्ली को भी उसके हाथ में दिया;
20. और उन्होंने चरबी को छातियोंपर रखा; और उस ने वह चरबी वेदी पर जलाई,
21. परन्तु छातियोंऔर दहिनी जांघ को हारून ने मूसा की आज्ञा के अनुसार हिलाने की भेंट के लिथे यहोवा के साम्हने हिलाया।
22. तब हारून ने लोगोंकी ओर हाथ बढ़ाकर उनहें आशीर्वाद दिया; और पापबलि, होमबलि, और मेलबलियोंको चढ़ाकर वह नीचे उतर आया।
23. तब मूसा और हारून मिलापवाले तम्बू में गए, और निकलकर लोगोंको आशीर्वाद दिया; तब यहोवा का तेज सारी जनता को दिखाई दिया।
24. और यहोवा के साम्हने से आग निकलकर चरबी सहित होमबलि को वेदी पर भस्म कर दिया; इसे देखकर जनता ने जय जयकार का नारा मारा, और अपके अपके मुंह के बल गिरकर दण्डवत किया।।

Chapter 10

1. तब नादाब और अबीहू नामक हारून के दो पुत्रोंने अपना अपना धूपदान लिया, और उन में आग भरी, और उस में धूप डालकर उस ऊपक्की आग की जिसकी आज्ञा यहोवा ने नहीं दी यी यहोवा के सम्मुख आरती दी।
2. तब यहोवा के सम्मुख से आग निकलकर उन दोनोंको भस्म कर दिया, और वे यहोवा के साम्हने मर गए।
3. तब मूसा ने हारून से कहा, यह वही बात है जिसे यहोवा ने कहा या, कि जो मेरे समीप आए अवश्य है कि वह मुझे पवित्र जाने, और सारी जनता के साम्हने मेरी महिमा करे। और हारून चुप रहा।
4. तब मूसा ने मीशाएल और एलसाफान को जो हारून के चाचा उज्जीएल के पुत्र थे बुलाकर कहा, निकट आओ, और अपके भतीजोंको पवित्रस्यान के आगे से उठाकर छावनी के बाहर ले जाओ।
5. मूसा की इस आज्ञा के अनुसार वे निकट जाकर उनको अंगरखोंसहित उठाकर छावनी के बाहर ले गए।
6. तब मूसा ने हारून से और उसके पुत्र एलीआजर और ईतामार से कहा, तुम लोग अपके सिरोंके बाल मत बिखराओ, और न अपके वोंको फाड़ो, ऐसा न हो कि तुम भी मर जाओ, और सारी मण्डली पर उसका क्रोध भड़क उठे; परन्तु वह इस्त्राएल के कुल घराने के लोग जो तुम्हारे भाईबन्धु हैं यहोवा की लगाई हुई आग पर विलाप करें।
7. और तुम लोग मिलापवाले तम्बू के द्वार के बाहर न जाना, ऐसा न हो कि तुम मर जाओ; क्योंकि यहोवा के अभिषेक का तेल तुम पर लगा हुआ है। मूसा के इस वचन के अनुसार उन्होंने किया।।
8. फिर यहोवा ने हारून से कहा,
9. कि जब जब तू वा तेरे पुत्र मिलापवाले तम्बू में आएं तब तब तुम में से कोई न तो दाखमधु पिए हो न और किसी प्रकार का मद्य, कहीं ऐसा न हो कि तुम मर जाओ; तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में यह विधि प्रचलित रहे,
10. जिस से तुम पवित्र और अपवित्र में, और शुद्ध और अशुद्ध में अन्तर कर सको;
11. और इस्त्राएलियोंको उन सब विधियोंको सिखा सको जिसे यहोवा ने मूसा के द्वारा उनको सुनवा दी हैं।।
12. फिर मूसा ने हारून से और उसके बचे हुए दोनोंपुत्र ईतामार और एलीआजर से भी कहा, यहोवा के हव्य में से जो अन्नबलि बचा है उसे लेकर वेदी के पास बिना खमीर खाओ, क्योंकि वह परमपवित्र है;
13. और तुम उसे किसी पवित्रस्यान में खाओ, वह तो यहोवा के हव्य में से तेरा और तेरे पुत्रोंका हक है; क्योंकि मै ने ऐसी ही आज्ञा पाई है।
14. और हिलाई हुई भेंट की छाती और उठाई हुई भेंट की जांघ को तुम लोग, अर्यात्‌ तू और बेटे-बेटियां सब किसी शुद्ध स्यान में खाओ; क्योंकि वे इस्त्राएलियोंके मेलबलियोंमें से तुझे और तेरे लड़केबालोंकी हक ठहरा दी गई हैं।
15. चरबी के हव्योंसमेत जो उठाई हुई जांघ और हिलाई हुई छाती यहोवा के साम्हने हिलाने के लिथे आया करेंगी, थे भाग यहोवा की आज्ञा के अनुसार सर्वदा की विधी की व्यवस्या से तेरे और तेरे लड़केबालोंके लिथे हैं।।
16. फिर मूसा ने पापबलि के बकरे की जो ढूंढ़-ढांढ़ की, तो क्या पाया, कि वह जलाया गया है, सो एलीआज़र और ईतामार जो हारून के पुत्र बचे थे उन से वह क्रोध में आकर करने लगा,
17. कि पापबलि जो परमपवित्र है और जिसे यहोवा ने तुम्हे इसलिथे दिया है कि तुम मण्डली के अधर्म का भार अपके पर उठाकर उनके लिथे यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करो, तुम ने उसका मांस पवित्रस्यान में क्योंनहीं खाया?
18. देखो, उसका लोहू पवित्रस्यान के भीतर तो लाया ही नहीं गया, नि:सन्देह उचित या कि तुम मेरी आज्ञा के अनुसार उसके मांस को पवित्रस्यान में खाते।
19. इसका उत्तर हारून ने मूसा को इस प्रकार दिया, कि देख, आज ही उन्होंने अपके पापबलि और होमबलि को यहोवा के साम्हने चढ़ाया; फिर मुझ पर ऐसी विपत्तियां आ पक्की हैं ! इसलिथे यदि मैं आज पापबलि का मांस खाता तो क्या यह बात यहोवा के सम्मुख भली होती?
20. जब मूसा ने यह सुना तब उसे संतोष हुआ।।

Chapter 11

1. फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
2. इस्त्राएलियोंसे कहो, कि जितने पशु पृय्वी पर हैं उन सभोंमें से तुम इन जीवधारियोंका मांस खा सकते हो।
3. पशुओं में से जितने चिरे वा फटे खुर के होते हैं और पागुर करते हैं उन्हें खा सकते हो।
4. परन्तु पागुर करनेवाले वा फटे खुरवालोंमें से इन पशुओं को न खाना, अर्यात्‌ ऊंट, जो पागुर तो करता है परन्तु चिरे खुर का नहीं होता, इसलिथे वह तुम्हारे लिथे अशुद्ध ठहरा है।
5. और शापान, जो पागुर तो करता है परन्तु चिरे खुर का नहीं होता, वह भी तुम्हारे लिथे अशुद्ध है।
6. और खरहा, जो पागुर तो करता है परन्तु चिरे खुर का नहीं होता, इसलिथे वह भी तुम्हारे लिथे अशुद्ध है।
7. और सूअर, जो चिरे अर्यात्‌ फटे खुर का होता तो है परन्तु पागुर नहीं करता, इसलिथे वह तुम्हारे लिथे अशुद्ध है।
8. इनके मांस में से कुछ न खाना, और इनकी लोय को छूना भी नहीं; थे तो तुम्हारे लिथे अशुद्ध है।।
9. फिर जितने जलजन्तु हैं उन में से तुम इन्हें खा सकते हों, अर्यात्‌ समुद्र वा नदियोंके जलजन्तुओं में से जितनोंके पंख और चोंथेटे होते हैं उन्हें खा सकते हो।
10. और जलचक्की प्राणियोंमें से जितने जीवधारी बिना पंख और चोंथेटे के समुद्र वा नदियोंमें रहते हैं वे सब तुम्हारे लिथे घृणित हैं।
11. वे तुम्हारे लिथे घृणित ठहरें; तुम उनके मांस में से कुछ न खाना, और उनकी लोयोंको अशुद्ध जानना।
12. जल में जिस किसी जन्तु के पंख और चोंथेटे नहीं होते वह तुम्हारे लिथे अशुद्ध है।।
13. फिर पझियोंमें से इनको अशुद्ध जानना, थे अशुद्ध होने के कारण खाए न जाएं, अर्यात्‌ उकाब, हड़फोड़, कुरर,
14. शाही, और भांति भांति की चील,
15. और भांति भांति के सब काग,
16. शुतुर्मुर्ग, तखमास, जलकुक्कुट, और भांति भांति के बाज,
17. हवासिल, हाड़गील, उल्लू,
18. राजहँस, धनेश, गिद्ध,
19. लगलग, भांति भांति के बगुले, टिटीहरी और चमगीदड़।।
20. जितने पंखवाले चार पांवोंके बल चरते हैं वे सब तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं।
21. पर रेंगनेवाले और पंखवाले जो चार पांवोंके बल चलते हैं, जिनके भूमि पर कूदने फांदने को टांगे होती हैं उनको तो खा सकते हो।
22. वे थे हैं, अर्यात्‌ भांति भांति की टिड्डी, भांति भांति के फनगे, भांति भांति के हर्गोल, और भांति भांति के हागाब।
23. परन्तु और सब रेंगनेवाले पंखवाले जो चार पांववाले होते हैं वे तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं।।
24. और इनके कारण तुम अशुद्ध ठहरोगे; जिस किसी से इनकी लोय छू जाए वह सांफ तक अशुद्ध ठहरे।
25. और जो कोई इनकी लोय में का कुछ भी उठाए वह अपके वस्त्र धोए और सांफ तक अशुद्ध रहे।
26. फिर जितने पशु चिरे खुर के होते है। परन्तु न तो बिलकुल फटे खुर और पागुर करनेवाले हैं वे तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं; जो कोई उन्हें छूए वह अशुद्ध हैं; जो कोई उन्हें छूए वह अशुद्ध ठहरेगा।
27. और चार पांव के बल चलनेवालोंमें से जितने पंजोंके बल चलते हैं वे सब तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं; जो कोई उनकी लोय छूए वह सांफ तक अशुद्ध रहे।
28. और जो कोई उनकी लोय उठाए वह अपके वस्त्र धोए और सांफ तक अशुद्ध रहे; क्योंकि वे तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं।।
29. और जो पृय्वी पर रेंगते हैं उन में से थे रेंगनेवाले तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं, अर्यात्‌ नेवला, चूहा, और भांति भांति के गोह,
30. और छिपकली, मगर, टिकटिक, सांडा, और गिरगिटान।
31. सब रेंगनेवालोंमें से थे ही तुम्हारे लिथे अशुद्ध हैं; जो कोई इनकी लोय छूए वह सांफ तक अशुद्ध रहे।
32. और इन में से किसी की लोय जिस किसी वस्तु पर पड़ जाए वह भी अशुद्ध ठहरे, चाहे वह काठ का कोई पात्र हो, चाहे वस्त्र, चाहे खाल, चाहे बोरा, चाहे किसी काम का कैसा ही पात्रादि क्योंन हो; वह जल में डाला जाए, और सांफ तक अशुद्ध रहे, तब शुद्ध समझा जाए।
33. और यदि मिट्टी का कोई पात्र हो जिस में इन जन्तुओं में से कोई पके, तो उस पात्र में जो कुछ हो वह अशुद्ध ठहरे, और पात्र को तुम तोड़ डालना।
34. उस में जो खाने के योग्य भोजन हो, जिस में पानी का छुआव होंवह सब अशुद्ध ठहरे; फिर यदि ऐसे पात्र में पीने के लिथे कुछ हो तो वह भी अशुद्ध ठहरे।
35. और यदि इनकी लोय में का कुछ तंदूर वा चूल्हे पर पके तो वह भी अशुद्ध ठहरे, और तोड़ डाला जाए; क्योंकि वह अशुद्ध हो जाएगा, वह तुम्हारे लिथे भी अशुद्ध ठहरे।
36. परन्तु सोता वा तालाब जिस में जल इकट्ठा हो वह तो शुद्ध ही रहे; परन्तु जो कोई इनकी लोय को छूए वह अशुद्ध ठहरे।
37. और यदि इनकी लोय में का कुछ किसी प्रकार के बीज पर जो बोने के लिथे हो पके, तो वह बीज शुद्ध रहे;
38. पर यदि बीज पर जल डाला गया हो और पीछे लोय में का कुछ उस पर पड़ जाए, तो वह तुम्हारे लिथे अशुद्ध ठहरे।।
39. फिर जिन पशुओं के खाने की आज्ञा तुम को दी गई है यदि उन में से कोई पशु मरे, तो जो कोई उसकी लोय छूए वह सांफ तक अशुद्ध रहे।
40. और उसकी लोय में से जो कोई कुछ खाए वह अपके वस्त्र धोए और सांफ तक अशुद्ध रहे; और जो कोई उसकी लोय उठाए वह भी अपके वस्त्र धोए और सांफ तक अशुद्ध रहे।
41. और सब प्रकार के पृय्वी पर रेंगनेवाले जन्तु घिनौने हैं; वे खाए न जाएं।
42. पृय्वी पर सब रेंगनेवालोंमें से जितने पेट वा चार पांवोंके बल चलते हैं, वा अधिक पांववाले होते हैं, उन्हें तुम न खाना; क्योंकि वे घिनौने हैं।
43. तुम किसी प्रकार के रेंगनेवाले जन्तु के द्वारा अपके आप को घिनौना न करना; और न उनके द्वारा अपके को अशुद्ध करके अपवित्र ठहराना।
44. क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं; इस प्रकार के रेंगनेवाले जन्तु के द्वारा जो पृय्वी पर चलता है अपके आप को अशुद्ध न करना।
45. क्योंकि मैं वह यहोवा हूं जो तुम्हें मिस्र देश से इसलिथे निकाल ले आया हूं कि तुम्हारा परमेश्वर ठहरूं; इसलिथे तुम पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूं।।
46. पशुओं, पझियों, और सब जलचक्की प्राणियों, और पृय्वी पर सब रेंगनेवाले प्राणियोंके विषय में यही व्यवस्या है,
47. कि शुद्ध अशुद्ध और भझय और अभझय जीवधारियोंमें भेद किया जाए।।

Chapter 12

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंसे कह, कि जो स्त्री गभिर्णी हो और उसके लड़का हो, तो वह सात दिन तक अशुद्ध रहेगी; जिस प्रकार वह ऋतुमती होकर अशुद्ध रहा करती।
3. और आठवें दिन लड़के का खतना किया जाए।
4. फिर वह स्त्री अपके शुद्ध करनेवाले रूधिर में तेंतीस दिन रहे; और जब तक उसके शुद्ध हो जाने के दिन पूरे न होंतब तक वह न तो किसी पवित्र वस्तु को छुए, और न पवित्रस्यान में प्रवेश करे।
5. और यदि उसके लड़की पैदा हो, तो उसको ऋतुमती की सी अशुद्धता चौदह दिन की लगे; और फिर छियासठ दिन तक अपके शुद्ध करनेवाले रूधिर में रहे।
6. और जब उसके शुद्ध हो जाने के दिन पूरे हों, तब चाहे उसके बेटा हुआ हो चाहे बेटी, वह होमबलि के लिथे एक वर्ष का भेड़ी का बच्चा, और पापबलि के लिथे कबूतरी का एक बच्चा वा पंडुकी मिलापवाले तम्बू के द्वार पर याजक के पास लाए।
7. तब याजक उसको यहोवा के साम्हने भेंट चढ़ाके उसके लिथे प्रायश्चित्त करे; और वह अपके रूधिर के बहने की अशुद्धता से छूटकर शुद्ध ठहरेगी। जिस स्त्री के लड़का वा लड़की उत्पन्न हो उसके लिथे यही व्यवस्या है।
8. और यदि उसके पास भेड़ वा बकरी देने की पूंजी न हो, तो दो पंडुकी वा कबूतरी के दो बच्चे, एक तो होमबलि और दूसरा पापबलि के लिथे दे; और याजक उसके लिथे प्रायश्चित्त करे, तब वह शुद्ध ठहरेगी।।

Chapter 13

1. फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
2. जब किसी मनुष्य के शरीर के चर्म में सूजन वा पपक्की वा फूल हो, और इस से उसके चर्म में कोढ़ की व्याधि सा कुछ देख पके, तो उसे हारून याजक के पास या उसके पुत्र जो याजक हैं उन में से किसी के पास ले जाएं।
3. जब याजक उसके चर्म की व्याधि को देखे, और यदि उस व्याधि के स्यान के रोएं उजले हो गए होंऔर व्याधि चर्म से गहरी देख पके, तो वह जान ले कि कोढ़ की व्याधि है; और याजक उस मनुष्य को देखकर उसको अशुद्ध ठहराए।
4. और यदि वह फूल उसके चर्म में उजला तो हो, परन्तु चर्म से गहरा न देख पके, और न वहां के रोएं उजले हो गए हों, तो याजक उनको सात दिन तक बन्दकर रखे;
5. और सातवें दिन याजक उसको देखे, और यदि वह व्याधि जैसी की तैसी बनी रहे और उसके चर्म में न फैली हो, तो याजक उसको और भी सात दिन तक बन्दकर रखे;
6. और सातवें दिन याजक उसको फिर देखे, और यदि देख पके कि व्याधि की चमक कम है और व्याधि चर्म पर फैली न हो, तो याजक उसको शुद्ध ठहराए; क्योंकि उसके तो चर्म में पपक्की है; और वह अपके वस्त्र धोकर शुद्ध हो जाए।
7. और यदि याजक की उस जांच के पश्चात्‌ जिस में वह शुद्ध ठहराया गया या, वह पपक्की उसके चर्म पर बहुत फैल जाए, तो वह फिर याजक को दिखाया जाए;
8. और यदि याजक को देख पके कि पपक्की चर्म में फैल गई है, तो वह उसको अशुद्ध ठहराए; क्योंकि वह कोढ़ ही है।।
9. यदि कोढ़ की सी व्याधि किसी मनुष्य के हो, तो वह याजक के पास पहुचाया जाए;
10. और याजक उसको देखे, और यदि वह सूजन उसके चर्म में उजली हो, और उसके कारण रोएं भी उजले हो गए हों, और उस सूजन में बिना चर्म का मांस हो,
11. तो याजक जाने कि उसके चर्म में पुराना कोढ़ है, इसलिथे वह उसको अशुद्ध ठहराए; और बन्द न रखे, क्योंकि वह तो अशुद्ध है।
12. और यदि कोढ़ किसी के चर्म में फूटकर यहां तक फैल जाए, कि जहां कहीं याजक देखें व्याधित के सिर से पैर के तलवे तक कोढ़ ने सारे चर्म को छा लिया हो,
13. जो याजक ध्यान से देखे, और यदि कोढ़ ने उसके सारे शरीर को छा लिया हो, तो वह उस व्याधित को शुद्ध ठहराए; और उसका शरीर जो बिलकुल उजला हो गया है वह शुद्ध ही ठहरे।
14. पर जब उस में चर्महीन मांस देख पके, तब तो वह अशुद्ध ठहरे।
15. और याजक चर्महीन मांस को देखकर उसको अशुद्ध ठहराए; कयोंकि वैसा चर्महीन मांस अशुद्ध ही होता है; वह कोढ़ है।
16. पर यदि वह चर्महीन मांस फिर उजला हो जाए, तो वह मनुष्य याजक के पास जाए,
17. और याजक उसको देखे, और यदि वह व्याधि फिर से उजली हो गई हो, तो याजक व्याधित को शुद्ध जाने; वह शुद्ध है।।
18. फिर यदि किसी के चर्म में फोड़ा होकर चंगा हो गया हो,
19. और फोड़े के स्यान में उजली सी सूजन वा लाली लिथे हुए उजला फूल हो, तो वह याजक को दिखाया जाए।
20. और याजक उस सूजन को देखे, और यदि वह चर्म से गहिरा देख पके, और उसके रोएं भी उजले हो गए हों, तो याजक यह जानकर उस मनुष्य को अशुद्ध ठहराए; क्योंकि वह कोढ़ की व्याधि है जो फोड़े में से फूटकर निकली है।
21. और यदि याजक देखे कि उस में उजले रोएं नहीं हैं, और वह चर्म से गहिरी नहीं, और उसकी चमक कम हुई है, तो याजक उस मनुष्य को सात दिन तक बन्द कर रखे।
22. और यदि वह व्याधि उस समय तक चर्म में सचमुच फैल जाए, तो याजक उस मनुष्य को अशुद्ध ठहराए; क्योंकि वह कोढ़ की व्याधि है।
23. परन्तु यदि वह फूल न फैले और अपके स्यान ही पर बना रहे, तो वह फोड़े को दाग है; याजक उस मनुष्य को शुद्ध ठहराए।।
24. फिर यदि किसी के चर्म में जलने का घाव हो, और उस जलने के घाव में चर्महीन फूल लाली लिथे हुए उजला वा उजला ही हो जाए,
25. तो याजक उसको देखे, और यदि उस फूल में के रोएं उजले हो गए होंऔर वह चर्म से गहिरा देख पके, तो वह कोढ़ है; जो उस जलने के दाग में से फूट निकला है; याजक उस मनुष्य को अशुद्ध ठहराए; क्योंकि उस में कोढ़ की व्याधि है।
26. और यदि याजक देखे, कि फूल में उजले रोएं नहीं और न वह चर्म से कुछ गहिरा है, और उसकी चमक कम हुई है, तो वह उसको सात दिन तक बन्द कर रखे,
27. और सातवें दिन याजक उसको देखे, और यदि वह चर्म में फैल गई हो, तो वह उस मनुष्य को अशुद्ध ठहराए; क्योंकि उसको कोढ़ की व्याधि है।
28. परन्तु यदि वह फूल चर्म में नहीं फैला और अपके स्यान ही पर जहां का तहां ही बना हो, और उसकी चमक कम हुई हो, तो वह जल जाने के कारण सूजा हुआ है, याजक उस मनुष्य को शुद्ध ठहराए; क्योंकि वह दाग जल जाने के कारण से है।।
29. फिर यदि किसी पुरूष वा स्त्री के सिर पर, वा पुरूष की डाढ़ी में व्याधि हो,
30. तो याजक व्याधि को देखे, और यदि वह चर्म से गहिरी देख पके, और उस में भूरे भूरे पतले बाल हों, तो याजक उस मनुष्य को अशुद्ध ठहराए; वह व्याधि सेंहुआं, अर्यात्‌ सिर वा डाढ़ी का कोढ़ है।
31. और यदि याजक सेंहुएं की व्याधि को देखे, कि वह चर्म से गहिरी नहीं है और उस में काले काले बाल नहीं हैं, तो वह सेंहुएं के व्याधित को सात दिन तक बन्द कर रखे,
32. और सातवें दिन याजक व्याधि को देखे, तब यदि वह सेंहुआं फैला न हो, और उस में भूरे भूरे बाल न हों, और सेंहुआं चर्म से गहिरा न देख पके,
33. तो यह मनुष्य मूंड़ा जाए, परन्तु जहां सेंहुआं हो वहां न मूंड़ा जाए; और याजक उस सेंहुएंवाले को और भी सात दिन तक बन्द करे;
34. और सातवें दिन याजक सेहुएं को देखे, और यदि वह सेंहुआं चर्म में फैला न हो और चर्म से गहिरा न देख पके, तो याजक उस मनुष्य को शुद्ध ठहराए; और वह अपके वस्त्र धोके शुद्ध ठहरे।
35. और यदि उसके शुद्ध ठहरने के पश्चात्‌ सेंहुआं चर्म में कुछ भी फैले,
36. तो याजक उसको देखे, और यदि वह चर्म में फैला हो, तो याजक यह भूरे बाल न ढूंढ़े, क्योंकि मनुष्य अशुद्ध है।
37. परन्तु यदि उसकी दृष्टि में वह सेंहुआं जैसे का तैसा बना हो, और उस में काले काले बाल जमे हों, तो वह जाने की सेंहुआं चंगा हो गया है, और वह मनुष्य शुद्ध है; याजक उसको शुद्ध ही ठहराए।।
38. फिर यदि किसी पुरूष वा स्त्री के चर्म में उजले फूल हों,
39. तो याजक देखे, और यदि उसके चर्म में वे फूल कम उजले हों, तो वह जाने कि उसको चर्म में निकली हुई चाईं ही है; वह मनुष्य शुद्ध ठहरे।।
40. फिर जिसके सिर के बाल फड़ गए हों, तो जानना कि वह चन्दुला तो है परन्तु शुद्ध है।
41. और जिसके सिर के आगे के बाल फड़ गए हों, तो वह माथे का चन्दुला तो है परन्तु शुद्ध है।
42. परन्तु यदि चन्दुले सिर पर वा चन्दुले माथे पर लाली लिथे हुए उजली व्याधि हो, तो जानना कि वह उसके चन्दुले सिर पर वा चन्दुले माथे पर निकला हुआ कोढ़ है।
43. इसलिथे याजक उसको देखे, और यदि व्याधि की सूजन उसके चन्दुले सिर वा चन्दुले माथे पर ऐसी लाली लिथे हुए उजली हो जैसा चर्म के कोढ़ में होता है,
44. तो वह मनुष्य कोढ़ी है और अशुद्ध है; और याजक उसको अवश्य अशुद्ध ठहराए; क्योंकि वह व्याधि उसके सिर पर है।।
45. और जिस में वह व्याधि हो उस कोढ़ी के वस्त्र फटे और सिर के बाल बिखरे रहें, और वह अपके ऊपरवाले होंठ को ढांपे हुए अशुद्ध, अशुद्ध पुकारा करे।
46. जितने दिन तक वह व्याधि उस में रहे उतने दिन तक वह तो अशुद्ध रहेगा; और वह अशुद्ध ठहरा रहे; इसलिथे वह अकेला रहा करे, उसका निवास स्यान छावनी के बाहर हो।।
47. फिर जिस वस्त्र में कोढ़ की व्याधि हो, चाहे वह वस्त्र ऊन का हो चाहे सनी का,
48. वह व्याधि चाहे उस सनी वा ऊन के वस्त्र के ताने में हो चाहे बाने में, वा वह व्याधि चमड़े में वा चमड़े की किसी वस्तु में हो,
49. यदि वह व्याधि किसी वस्त्र के चाहे ताने में चाहे बाने में, वा चमड़े में वा चमड़े की किसी वस्तु में हरी हो वा लाल सी हो, तो जानना कि वह कोढ़ की व्याधि है और वह याजक को दिखाई जाए।
50. और याजक व्याधि को देखे, और व्याधिवाली वस्तु को सात दिन के लिथे बन्द करे;
51. और सातवें दिन वह उस व्याधि को देखे, और यदि वह वस्त्र के चाहे ताने में चाहे बाने में, वा चमड़े में वा चमड़े की बनी हुई किसी वस्तु में फैल गई हो, तो जानना कि व्याधि गलित कोढ़ है, इसलिथे वह वस्तु, चाहे कैसे ही काम में क्योंन आती हो, तौभी अशुद्ध ठहरेगी।
52. वह उस वस्त्र को जिसके ताने वा बाने में वह व्याधि हो, चाहे वह ऊन का हो चाहे सनी का, वा चमड़े की वस्तु हो, उसको जला दे, वह व्याधि गलित कोढ़ की है; वह वस्तु आग में जलाई जाए।
53. और यदि याजक देखे कि वह व्याधि उस वस्त्र के ताने वा बाने में, वा चमड़े की उस वस्तु में नहीं फैली,
54. तो जिस वस्तु में व्याधि हो उसके धोने की आज्ञा दे, तक उसे और भी सात दिन तक बन्द कर रखे;
55. और उसके धोने के बाद याजक उसको देखे, और यदि व्याधि का न तो रंग बदला हो, और न व्याधि फैली हो, तो जानना कि वह अशुद्ध है; उसे आग में जलाना, क्योंकि चाहे वह व्याधि भीतर चाहे ऊपक्की हो तौभी वह खा जाने वाली व्याधि है।
56. और यदि याजक देखे, कि उसके धोने के पश्चात्‌ व्याधि की चमक कम हो गई, तो वह उसको वस्त्र के चाहे ताने चाहे बाने में से, वा चमड़े में से फाड़के निकाले;
57. और यदि वह व्याधि तब भी उस वस्त्र के ताने वा बाने में, वा चमड़े की उस वस्तु में देख पके, तो जानना कि वह फूट के निकली हुई व्याधि है; और जिस में वह व्याधि हो उसे आग में जलाना।
58. और यदि उस वस्त्र से जिसके ताने वा बाने में व्याधि हो, वा चमड़े की जो वस्तु हो उस से जब धोई जाए और व्याधि जाती रही, तो वह दूसरी बार धुल कर शुद्ध ठहरे।
59. ऊन वा सनी के वस्त्र में के ताने वा बाने में, वा चमड़े की किसी वस्तु में जो कोढ़ की व्याधि हो उसके शुद्ध और अशुद्ध ठहराने की यही व्यवस्या है।।

Chapter 14

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. कोढ़ी के शुद्ध ठहराने की व्यवस्या यह है, कि वह याजक के पास पहुंचाया जाए।
3. और याजक छावनी के बाहर जाए, और याजक उस कोढ़ी को देखे, और यदि उसके कोढ़ की व्याधि चंगी हुई हो,
4. तो याजक आज्ञा दे कि शुद्ध ठहराने वाले के लिथे दो शुद्ध और जीवित पक्की, देवदारू की लकड़ी, और लाल रंग का कपड़ा और जूफा थे सब लिथे जाएं;
5. और याजक आज्ञा दे कि एक पक्की बहते हुए जल के ऊपर मिट्टी के पात्र में बलि किया जाए।
6. तब वह जीवित पक्की को देवदारू की लकड़ी और लाल रंग के कपके और जूफा इन सभोंको लेकर एक संग उस पक्की के लोहू में जो बहते हुए जल के ऊपर बलि किया गया है डुबा दे;
7. और कोढ़ से शुद्ध ठहरनेवाले पर सात बार छिड़ककर उसको शुद्ध ठहराए, तब उस जीवित पक्की को मैदान में छोड़ दे।
8. और शुद्ध ठहरनेवाला अपके वोंको धोए, और सब बाल मुंड़वाकर जल से स्नान करे, तब वह शुद्ध ठहरेगा; और उसके बाद वह छावनी में आने पाए, परन्तु सात दिन तक अपके डेरे से बाहर ही रहे।
9. और सातवें दिन वह सिर, डाढ़ी और भौहोंके सब बाल मुंड़ाए, और सब अंग मुण्डन कराए, और अपके वोंको धोए, और जल से स्नान करे, तब वह शुद्ध ठहरेगा।
10. और आठवें दिन वह दो निर्दोष भेड़ के बच्चे, और अन्नबलि के लिथे तेल से सना हुआ एपा का तीन दहाई अंश मैदा, और लोज भर तेल लाए।
11. और शुद्ध ठहरानेवाला याजक इन वस्तुओं समेत उस शुद्ध होनेवाले मनुष्य को यहोवा के सम्मुख मिलापवाले तम्बू के द्वार पर खड़ा करे।
12. तब याजक एक भेड़ का बच्चा लेकर दोषबलि के लिथे उसे और उस लोज भर तेल को समीप लाए, और इन दोनो को हिलाने की भेंट के लिथे यहोवा के साम्हने हिलाए;
13. तब याजक एक भेड़ के बच्चे को उसी स्यान में जहां वह पापबलि और होमबलि पशुओं का बलिदान किया करेगा, अर्यात्‌ पवित्रस्यान में बलिदान करे; क्योंकि जैसा पापबलि याजक का निज भाग होगा वैसा ही दोषबलि भी उसी का निज भाग ठहरेगा; वह परमपवित्र है।
14. तब याजक दोषबलि के लोहू में से कुछ लेकर शुद्ध ठहरनेवाले के दहिने कान के सिक्के पर, और उसके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठोंपर लगाए।
15. और याजक उस लोज भर तेल में से कुछ लेकर अपके बाएं हाथ की हथेली पर डाले,
16. और याजक अपके दहिने हाथ की उंगली को अपके बाईं हथेली पर के तेल में डुबाकर उस तेल में से कुछ अपक्की उंगली से यहोवा के सम्मुख सात बार छिड़के।
17. और जो तेल उसकी हथेली पर रह जाएगा याजक उस में से कुछ शुद्ध होनेवाले के दहिने कान के सिक्के पर, और उसके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठोंपर दोषबलि के लोहू के ऊपर लगाएं;
18. और जो तेल याजक की हथेली पर रह जाए उसको वह शुद्ध होनेवाले के सिर पर डाल दे। और याजक उसके लिथे यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे।
19. और याजक पापबलि को भी चढ़ाकर उसके लिथे जो अपक्की अशुद्धता से शुद्ध होनेवाला हो प्रायश्चित्त करे; और उसके बाद होमबलि पशु का बलिदान करके:
20. अन्नबलि समेत वेदी पर चढ़ाए: और याजक उसके लिथे प्रायश्चित्त करे, और वह शुद्ध ठहरेगा।।
21. परन्तु यदि वह दरिद्र हो और इतना लाने के लिथे उसके पास पूंजी न हो, तो वह अपना प्रायश्चित्त करवाने के निमित्त, हिलाने के लिथे भेड़ का बच्चा दोषबलि के लिथे, और तेल से सना हुआ एपा का दसवां अंश मैदा अन्नबलि करके, और लोज भर तेल लाए;
22. और दो पंडुक, वा कबूतरी के दो बच्चे लाए, जो वह ला सके; और इन में से एक तो पापबलि के लिथे और दूसरा होमबलि के लिथे हो।
23. और आठवें दिन वह इन सभोंको अपके शुद्ध ठहरने के लिथे मिलापवाले तम्बू के द्वार पर, यहोवा के सम्मुख, याजक के पास ले आए;
24. तब याजक उस लोज भर तेल और दोष बलिवाले भेड़ के बच्चे को लेकर हिलाने की भेंट के लिथे यहोवा के साम्हने हिलाए।
25. फिर दोषबलि के भेड़ के बच्चे का बलिदान किया जाए; और याजक उसके लोहू में से कुछ लेकर शुद्ध ठहरनेवाले के दहिने कान के सिक्के पर, और उसके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठोंपर लगाए।
26. फिर याजक उस तेल में से कुछ अपके बाएं हाथ की हथेली पर डालकर,
27. अपके दहिने हाथ की उंगली से अपक्की बाईं हथेली पर के तेल में से कुछ यहोवा के सम्मुख सात बार छिड़के;
28. फिर याजक अपक्की हथेली पर के तेल में से कुछ शुद्ध ठहरनेवाले के दहिने कान के सिक्के पर, और उसके दहिने हाथ और दहिने पांव के अंगूठोंपर दोषबलि के लोहू के स्यान पर, लगाए।
29. और जो तेल याजक की हथेली पर रह जाए उसे वह शुद्ध ठहरनेवाले के लिथे यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करने को उसके सिर पर डाल दे।
30. तब वह पंडुकोंवा कबूतरी के बच्चोंमें से जो वह ला सका हो एक को चढ़ाए,
31. अर्यात्‌ जो पक्की वह ला सका हो, उन में से वह एक को पापबलि के लिथे और अन्नबलि समेत दूसरे को होमबलि के लिथे चढ़ाए; इस रीति से याजक शुद्ध ठहरनेवाले के लिथे यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे।
32. जिसे कोढ़ की व्याधि हुई हो, और उसके इतनी पूंजी न हो कि वह शुद्ध ठहरने की सामग्री को ला सके, तो उसके लिथे यही व्यवस्या है।।
33. फिर यहोवा ने मूसा और हारून से कहा,
34. जब तुम लोग कनान देश में पहुंचो, जिसे मैं तुम्हारी निज भूमि होने के लिथे तुम्हें देता हूं, उस समय यदि मैं कोढ़ की व्याधि तुम्हारे अधिक्कारने के किसी घर में दिखाऊं,
35. तो जिसका वह घर हो वह आकर याजक को बता दे, कि मुझे ऐसा देख पड़ता है कि घर में मानोंकोई व्याधि है।
36. तब याजक आज्ञा दे, कि उस घर में व्याधि देखने के लिथे मेरे जाने से पहिले उसे खाली करो, कहीं ऐसा न हो कि जो कुछ घर में हो वह सब अशुद्ध ठहरे; और पीछे याजक घर देखने को भीतर जाए।
37. तब वह उस व्याधि को देखे; और यदि वह व्याधि घर की दीवारोंपर हरी हरी वा लाल लाल मानोंखुदी हुई लकीरोंके रूप में हो, और थे लकीरें दीवार में गहिरी देख पड़ती हों,
38. तो याजक घर से बाहर द्वार पर जाकर घर को सात दिन तक बन्द कर रखे।
39. और सातवें दिन याजक आकर देखे; और यदि वह व्याधि घर की दीवारोंपर फैल गई हो,
40. तो याजक आज्ञा दे, कि जिन पत्यरोंको व्याधि है उन्हें निकाल कर नगर से बाहर किसी अशुद्ध स्यान में फेंक दें;
41. और वह घर के भीतर ही भीतर चारोंओर खुरचवाए, और वह खुरचन की मिट्टी नगर से बाहर किसी अशुद्ध स्यान में डाली जाए;
42. और उन पत्यरोंके स्यान में और दूसरे पत्यर लेकर लगाएं और याजक ताजा गारा लेकर घर की जुड़ाई करे।
43. और यदि पत्यरोंके निकाले जाने और घर के खुरचे और लेसे जाने के बाद वह व्याधि फिर घर में फूट निकले,
44. तो याजक आकर देखे; और यदि वह व्याधि घर में फैल गई हो, तो वह जान ले कि घर में गलित कोढ़ है; वह अशुद्ध है।
45. और वह सब गारे समेत पत्यर, लकड़ी और घर को खुदवाकर गिरा दे; और उन सब वस्तुओं को उठवाकर नगर से बाहर किसी अशुद्ध स्यान पर फिंकवा दे।
46. और जब तक वह घर बन्द रहे तब तक यदि कोई उस में जाए तो वह सांफ तक अशुद्ध रहे;
47. और जो कोई उस घर में सोए वह अपके वोंको धोए; और जो कोई उस घर में खाना खाए वह भी अपके वोंको धोए।
48. और यदि याजक आकर देखे कि जब से घर लेसा गया है तब से उस में व्याधि नहीं फैली है, तो यह जानकर कि वह व्याधि दूर हो गई है, घर को शुद्ध ठहराए।
49. और उस घर को पवित्र करने के लिथे दो पक्की, देवदारू की लकड़ी, लाल रंग का कपड़ा और जूफा लिवा लाए,
50. और एक पक्की बहते हुए जल के ऊपर मिट्टी के पात्र में बलिदान करे,
51. तब वह देवदारू की लकड़ी लाल रंग के कपके और जूफा और जीवित पक्की इन सभोंको लेकर बलिदान किए हुए पक्की के लोहू में और बहते हुए जल में डूबा दे, और उस घर पर सात बार छिड़के।
52. और वह पक्की के लोहू, और बहते हुए जल, और जूफा और लाल रंग के कपके के द्वारा घर को पवित्र करे;
53. तब वह जीवित पक्की को नगर से बाहर मैदान में छोड़ दे; इसी रीति से वह घर के लिथे प्रायश्चित्त करे, तब वह शुद्ध ठहरेगा।
54. सब भांति के कोढ़ की व्याधि, और सेहुएं,
55. और वस्त्र, और घर के कोढ़,
56. और सूजन, और पपक्की, और फूल के विषय में,
57. शुद्ध और अशुद्ध ठहराने की शिझा की व्यवस्या यही है। सब प्रकार के कोढ़ की व्यवस्या यही है।।

Chapter 15

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. कि इस्त्राएलियोंसे कहो, कि जिस जिस पुरूष के प्रमेह हो, तो वह प्रमेह के कारण से अशुद्ध ठहरे।
3. और चाहे बहता रहे, चाहे बहना बन्द भी हो, तौभी उसकी अशुद्धता बनी रहेगी।
4. जिसके प्रमेह हो वह जिस जिस बिछौने पर लेटे वह अशुद्ध ठहरे, और जिस जिस वस्तु पर वह बैठे वह भी अशुद्ध ठहरे।
5. और जो कोई उसके बिछौने को छूए वह अपके वोंको धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध ठहरा रहे।
6. और जिसके प्रमेह हो और वह जिस वस्तु पर बैठा हो, उस पर जो कोई बैठे वह अपके वोंको धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध ठहरा रहे।
7. और जिसके प्रमेह हो उस से जो कोई छू जाए वह अपके वोंको धोकर जल से स्नान करे और सांफ तक अशुद्ध रहे।
8. और जिसके प्रमेह हो यदि वह किसी शुद्ध मनुष्य पर यूके, तो वह अपके वोंको धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध रहे।
9. और जिसके प्रमेह हो वह सवारी की जिस वस्तु पर बैठे वह अशुद्ध ठहरे।
10. और जो कोई किसी वस्तु को जो उसके नीचे रही हो छूए वह अपके वोंको धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध रहे।
11. और जिसके प्रमेह हो वह जिस किसी को बिना हाथ धोए छूए वह अपके वोंको धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध रहे।
12. और जिसके प्रमेह हो वह मिट्टी के जिस किसी पात्र को छूए वह तोड़ डाला जाए, और काठ के सब प्रकार के पात्र जल से धोए जाएं।
13. फिर जिसके प्रमेह हो वह जब अपके रोग से चंगा हो जाए, तब से शुद्ध ठहरने के सात दिन गिन ले, और उनके बीतने पर अपके वोंको धोकर बहते हुए जल से स्नान करे; तब वह शुद्ध ठहरेगा।
14. और आठवें दिन वह दो पंडुक वा कबूतरी के दो बच्चे लेकर मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा के सम्मुख जाकर उन्हें याजक को दे।
15. तब याजक उन में से एक को पापबलि; और दूसरे को होमबलि के लिथे भेंट चढ़ाए; और याजक उसके लिथे उसके प्रमेह के कारण यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे।।
16. फिर यदि किसी पुरूष का वीर्य्य स्खलित हो जाए, तो वह अपके सारे शरीर को जल से धोए, और सांफ तक अशुद्ध रहे।
17. और जिस किसी वस्त्र वा चमड़े पर वह वीर्य्य पके वह जल से धोया जाए, और सांफ तक अशुद्ध रहे।
18. और जब कोई पुरूष स्त्री से प्रसंग करे, तो वे दोनो जल से स्नान करें, और सांफ तक अशुद्ध रहें।।
19. फिर जब कोई स्त्री ऋतुमती रहे, तो वह सात दिन तक अशुद्ध ठहरी रहे, और जो कोई उसको छूए वह सांफ तक अशुद्ध रहे।
20. और जब तक वह अशुद्ध रहे तब तक जिस जिस वस्तु पर वह लेटे, और जिस जिस वस्तु पर वह बैठे वे सब अशुद्ध ठहरें।
21. और जो कोई उसके बिछौने को छूए वह अपके वस्त्र धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध रहे।
22. और जो कोई किसी वस्तु को छूए जिस पर वह बैठी हो वह अपके वस्त्र धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध रहे।
23. और यदि बिछौने वा और किसी वस्तु पर जिस पर वह बैठी हो छूने के समय उसका रूधिर लगा हो, तो छूनेहारा सांफ तक अशुद्ध रहे।
24. और यदि कोई पुरूष उस से प्रसंग करे, और उसका रूधिर उसके लग जाए, तो वह पुरूष सात दिन तक अशुद्ध रहे, और जिस जिस बिछौने पर वह लेटे वे सब अशुद्ध ठहरें।।
25. फिर यदि किसी स्त्री के अपके मासिक धर्म के नियुक्त समय से अधिक दिन तक रूधिर बहता रहे, वा उस नियुक्त समय से अधिक समय तक ऋतुमती रहे, तो जब तक वह ऐसी दशा में रहे तब तक वह अशुद्ध ठहरी रहे।
26. उसके ऋतुमती रहने के सब दिनोंमें जिस जिस बिछौने पर वह लेटे वे सब उसके मासिक धर्म के बिछौने के समान ठहरें; और जिस जिस वस्तु पर वह बैठे वे भी उसके ऋतुमती रहे के दिनोंकी नाई अशुद्ध ठहरें।
27. और जो कोई उन वस्तुओं को छुए वह अशुद्ध ठहरे, इसलिथे वह अपके वोंको धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध रहे।
28. और जब वह स्त्री अपके ऋतुमती से शुद्ध हो जाए, तब से वह सात दिन गिन ले, और उन दिनोंके बीतने पर वह शुद्ध ठहरे।
29. फिर आठवें दिन वह दो पंडुक या कबूतरी के दो बच्चे लेकर मिलापवाले तम्बू के द्वार पर याजक के पास जाए।
30. तब याजक एक को पापबलि और दूसरे को होमबलि के लिथे चढ़ाए; और याजक उसके लिथे उसके मासिक धर्म की अशुद्धता के कारण यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे।।
31. इस प्रकार से तुम इस्त्राएलियोंको उनकी अशुद्धता से न्यारे रखा करो, कहीं ऐसा न हो कि वे यहोवा के निवास को जो उनके बीच में है अशुद्ध करके अपक्की अशुद्धता में फंसे हुए मर जाएं।।
32. जिसके प्रमेह हो और जो पुरूष वीर्य्य स्खलित होने से अशुद्ध हो;
33. और जो स्त्री ऋतुमती हो; और क्या पुरूष क्या स्त्री, जिस किसी के धातुरोग हो, और जो पुरूष अशुद्ध स्त्री के प्रसंग करे, इन सभोंके लिथे यही व्यवस्या है।।

Chapter 16

1. जब हारून के दो पुत्र यहोवा के साम्हने समीप जाकर मर गए, उसके बाद यहोवा ने मूसा से बातें की;
2. और यहोवा ने मूसा से कहा, अपके भाई हारून से कह, कि सन्दूक के ऊपर के प्रायश्चित्तवाले ढ़कने के आगे, बीचवाले पर्दे के अन्दर, पवित्रस्यान में हर समय न प्रवेश करे, नहीं तो मर जाएगा; क्योंकि मैं प्रायश्चित्तवाले ढ़कने के ऊपर बादल में दिखाई दूंगा।
3. और जब हारून पवित्रस्यान में प्रवेश करे तब इस रीति से प्रवेश करे, अर्यात्‌ पापबलि के लिथे एक बछड़े को और होमबलि के लिथे एक मेढ़े को लेकर आए।
4. वह सनी के कपके का पवित्र अंगरखा, और अपके तन पर सनी के कपके की जांघिया पहिने हुए, और सनी के कपके का कटिबन्द, और सनी के कपके की पगड़ी बांधे हुए प्रवेश करे; थे पवित्र स्यान हैं, और वह जल से स्नान करके इन्हें पहिने।
5. फिर वह इस्त्राएलियोंकी मण्डली के पास से पापबलि के लिथे दो बकरे और होमबलि के लिथे एक मेढ़ा ले।
6. और हारून उस पापबलि के बछड़े को जो उसी के लिथे होगा चढ़ाकर अपके और अपके घराने के लिथे प्रायश्चित्त करे।
7. और उन दोनोंबकरोंको लेकर मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा के साम्हने खड़ा करे;
8. और हारून दोनोंबकरोंपर चिट्ठियां डाले, एक चिट्ठी यहोवा के लिथे और दूसरी अजाजेल के लिथे हो।
9. और जिस बकरे पर यहोवा के नाम की चिट्ठी निकले उसको हारून पापबलि के लिथे चढ़ाए;
10. परन्तु जिस बकरे पर अजाजेल के लिथे चिट्ठी निकले वह यहोवा के साम्हने जीवता खड़ा किया जाए कि उस से प्रायश्चित्त किया जाए, और वह अजाजेल के लिथे जंगल में छोड़ा जाए।
11. और हारून उस पापबलि के बछड़े को जो उसी के लिथे होगा समीप ले आए, और उसको बलिदान करके अपके और अपके घराने के लिथे प्रायश्चित्त करे।
12. और जो वेदी यहोवा के सम्मुख है उस पर के जलते हुए कोयलोंसे भरे हुए धूपदान को लेकर, और अपक्की दोनोंमुट्ठियोंको फूटे हुए सुगन्धित धूप से भरकर, बीचवाले पर्दे के भीतर ले आकर
13. उस धूप को यहोवा के सम्मुख आग में डाले, जिस से धूप का धुआं साझीपत्र के ऊपर के प्रायश्चित्त के ढकने के ऊपर छा जाए, नहीं तो वह मर जाएगा;
14. तब वह बछड़े के लोहू में से कुछ लेकर पूरब की ओर प्रायश्चित्त के ढकने के ऊपर अपक्की उंगली से छिड़के, और फिर उस लोहू में से कुछ उंगली के द्वारा उस ढकने के साम्हने भी सात बार छिड़क दे।
15. फिर वह उस पापबलि के बकरे को जो साधारण जनता के लिथे होगा बलिदान करके उसके लोहू को बीचवाले पर्दे के भीतर ले आए, और जिस प्रकार बछड़े के लोहू से उस ने किया या ठीक वैसा ही वह बकरे के लोहू से भी करे, अर्यात्‌ उसको प्रायश्चित्त के ढकने के ऊपर और उसके साम्हने छिड़के।
16. और वह इस्त्राएलियोंकी भांति भांति की अशुद्धता, और अपराधों, और उनके सब पापोंके कारण पवित्रस्यान के लिथे प्रायश्चित्त करे; और मिलापवाला तम्बू जो उनके संग उनकी भांति भांति की अशुद्धता के बीच रहता है उसके लिथे भी वह वैसा ही करे।
17. और जब हारून प्रायश्चित्त करने के लिथे पवित्रस्यान में प्रवेश करे, तब से जब तक वह अपके और अपके घराने और इस्त्राएल की सारी मण्डली के लिथे प्रायश्चित्त करके बाहर न निकले तब तक कोई मनुष्य मिलापवाले तम्बू में न रहे।
18. फिर वह निकलकर उस वेदी के पास जो यहोवा के साम्हने है जाए और उसके लिथे प्रायश्चित्त करे, अर्यात्‌ बछड़े के लोहू और बकरे के लोहू दोनोंमें से कुछ लेकर उस वेदी के चारोंकोनोंके सींगो पर लगाए।
19. और उस लोहू में से कुछ अपक्की उंगली के द्वारा सात बार उस पर छिड़ककर उसे इस्त्राएलियोंकी भांति भांति की अशुद्धता छुड़ाकर शुद्ध और पवित्र करे।
20. और जब वह पवित्रस्यान और मिलापवाले तम्बू और वेदी के लिथे प्रायश्चित्त कर चुके, तब जीवित बकरे को आगे ले आए;
21. और हारून अपके दोनोंहाथोंको जीवित बकरे पर रखकर इस्त्राएलियोंके सब अधर्म के कामों, और उनके सब अपराधों, निदान उनके सारे पापोंको अंगीकार करे, और उनको बकरे के सिर पर धरकर उसको किसी मनुष्य के हाथ जो इस काम के लिथे तैयार हो जंगल में भेजके छुड़वा दे।
22. और वह बकरा उनके सब अधर्म के कामोंको अपके ऊपर लादे हुए किसी निराले देश में उठा ले जाएगा; इसलिथे वह मनुष्य उस बकरे को जंगल में छोड़े दे।
23. तब हारून मिलापवाले तम्बू में आए, और जिस सनी के वोंको पहिने हुए उस ने पवित्रस्यान में प्रवेश किया या उन्हें उतारकर वहीं पर रख दे।
24. फिर वह किसी पवित्र स्यान में जल से स्नान कर अपके निज वस्त्र पहिन ले, और बाहर जाकर अपके होमबलि और साधारण जनता के होमबलि को चढ़ाकर अपके और जनता के लिथे प्रायश्चित्त करे।
25. और पापबलि की चरबी को वह वेदी पर जलाए।
26. और जो मनुष्य बकरे को अजाजेल के लिथे छोड़कर आए वह भी अपके वोंको धोए, और जल से स्नान करे, और तब वह छावनी में प्रवेश करे।
27. और पापबलि का बछड़ा और पापबलि का बकरा भी जिनका लोहू पवित्रस्यान में प्रायश्चित्त करने के लिथे पहुंचाया जाए वे दोनोंछावनी से बाहर पहुंचाए जाएं; और उनका चमड़ा, मांस, और गोबर आग में जला दिया जाए।
28. और जो उनको जलाए वह अपके वोंको धोए, और जल से स्नान करे, और इसके बाद वह छावनी में प्रवेश करने पाए।।
29. और तुम लोगोंके लिथे यह सदा की विधि होगी कि सातवें महीने के दसवें दिन को तुम अपके अपके जीव को दु:ख देना, और उस दिन कोई, चाहे वह तुम्हारे निज देश को हो चाहे तुम्हारे बीच रहने वाला कोई परदेशी हो, कोई भी किसी प्रकार का काम काज न करे;
30. क्योंकि उस दिन तुम्हें शुद्ध करने के लिथे तुम्हारे निमित्त प्रायश्चित्त किया जाएगा; और तुम अपके सब पापोंसे यहोवा के सम्मुख पवित्र ठहरोगे।
31. यह तुम्हारे लिथे परमविश्रम का दिन ठहरे, और तुम उस दिन अपके अपके जीव को दु:ख देना; यह सदा की विधि है।
32. और जिसका अपके पिता के स्यान पर याजक पद के लिथे अभिषेक और संस्कार किया जाए वह याजक प्रायश्चित्त किया करे, अर्यात्‌ वह सनी के पवित्र वोंको पहिनकर,
33. पवित्रस्यान, और मिलापवाले तम्बू, और वेदी के लिथे प्रायश्चित्त करे; और याजकोंके और मण्डली के सब लोगोंके लिथे भी प्रायश्चित्त करे।
34. और यह तुम्हारे लिथे सदा की विधि होगी, कि इस्त्राएलियोंके लिथे प्रतिवर्ष एक बार तुम्हारे सारे पापोंके लिथे प्रायश्चित्त किया जाए। यहोवा की इस आज्ञा के अनुसार जो उस ने मूसा को दी यी हारून ने किया।।

Chapter 17

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. हारून और उसके पुत्रोंसे और कुल इस्त्राएलियोंसे कह, कि यहोवा ने यह आज्ञा दी है,
3. कि इस्त्राएल के घराने में से कोई मनुष्य हो जो बैल वा भेड़ के बच्चे, वा बकरी को, चाहे छावनी में चाहे छावनी से बाहर घात करके
4. मिलापवाले तम्बू के द्वार पर, यहोवा के निवास के साम्हने यहोवा को चढ़ाने के निमित्त न ले जाए, तो उस मनुष्य को लोहू बहाने का दोष लगेगा; और वह मनुष्य जो लोहू बहाने वाला ठहरेगा, वह अपके लोगोंके बीच से नाश किया जाए।
5. इस विधि का यह कारण है कि इस्त्राएली अपके बलिदान जिनको वह खुले मैदान में वध करते हैं, वे उन्हें मिलापवाले तम्बू के द्वार पर याजक के पास, यहोवा के लिथे ले जाकर उसी के लिथे मेलबलि करके बलिदान किया करें;
6. और याजक लोहू को मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा की वेदी के ऊपर छिड़के, और चरबी को उसके सुखदायक सुगन्ध के लिथे जलाए।
7. और वे जो बकरोंके पूजक होकर व्यभिचार करते हैं, वे फिर अपके बलिपशुओं को उनके लिथे बलिदान न करें। तुम्हारी पीढिय़ोंके लिथे यह सदा की विधि होगी।।
8. और तू उन से कह, कि इस्त्राएल के घराने के लोगोंमें से वा उनके बीच रहनेहारे परदेशियोंमें से कोई मनुष्य क्योंन हो जो होमबलि वा मेलबलि चढ़ाए,
9. और उसको मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा के लिथे चढ़ाने को न ले आए; वह मनुष्य अपके लोगोंमें से नाश किया जाए।।
10. फिर इस्त्राएल के घराने के लोगोंमें से वा उनके बीच रहनेवाले परदेशियोंमें से कोई मनुष्य क्योंन हो जो किसी प्रकार का लोहू खाए, मैं उस लोहू खानेवाले के विमुख होकर उसको उसके लोगोंके बीच में से नाश कर डालूंगा।
11. क्योंकि शरीर का प्राण लोहू में रहता है; और उसको मैं ने तुम लोगोंको वेदी पर चढ़ाने के लिथे दिया है, कि तुम्हारे प्राणोंके लिथे प्रायश्चित्त किया जाए; क्योंकि प्राण के कारण लोहू ही से प्रायश्चित्त होता है।
12. इस कारण मैं इस्त्राएलियोंसे कहता हूं, कि तुम में से कोई प्राणी लोहू न खाए, और जो परदेशी तुम्हारे बीच रहता हो वह भी लोहू कभी न खाए।।
13. और इस्त्राएलियोंमें से वा उनके बीच रहनेवाले परदेशियोंमें से कोई मनुष्य क्योंन हो जो अहेर करके खाने के योग्य पशु वा पक्की को पकड़े, वह उसके लोहू को उंडेलकर धूलि से ढंाप दे।
14. क्योंकि शरीर का प्राण जो है वह उसका लोहू ही है जो उसके प्राण के साय एक है; इसी लिथे मैं इस्त्राएलियोंसे कहता हूं, कि किसी प्रकार के प्राणी के लोहू को तुम न खाना, क्योंकि सब प्राणियोंका प्राण उनका लोहू ही है; जो कोई उसको खाए वह नाश किया जाएगा।
15. और चाहे वह देशी हो वा परदेशी हो, जो कोई किसी लोय वा फाड़े हुए पशु का मांस खाए वह अपके वोंको धोकर जल से स्नान करे, और सांफ तक अशुद्ध रहे; तब वह शुद्ध होगा।
16. और यदि वह उनको न धोए और न स्नान करे, तो उसको अपके अधर्म का भार स्वयं उठाना पकेगा।।

Chapter 18

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंसे कह, कि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।
3. तुम मिस्र देश के कामोंके अनुसार जिस में तुम रहते थे न करना; और कनान देश के कामोंके अनुसार भी जहां मैं तुम्हें ले चलता हूं न करना; और न उन देशोंकी विधियोंपर चलना।
4. मेरे ही नियमोंको मानना, और मेरी ही विधियोंको मानते हुए उन पर चलना। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।
5. इसलिथे तुम मेरे नियमोंऔर मेरी विधियोंको निरन्तर मानना; जो मनुष्य उनको माने वह उनके कारण जीवित रहेगा। मैं यहोवा हूं।
6. तुम में से कोई अपक्की किसी निकट कुटुम्बिन का तन उघाड़ने को उसके पास न जाए। मैं यहोवा हूं।
7. अपक्की माता का तन जो तुम्हारे पिता का तन है न उघाड़ना; वह तो तुम्हारी माता है, इसलिथे तुम उसका तन न उघाड़ना।
8. अपक्की सौतेली माता का भी तन न उघाड़ना; वह तो तुम्हारे पिता ही का तन है।
9. अपक्की बहिन चाहे सगी हो चाहे सौतेली हो, चाहे वह घर में उत्पन्न हुई हो चाहे बाहर, उसका तन न उघाड़ना।
10. अपक्की पोती वा अपक्की नतिनी का तन न उघाड़ना, उनकी देह तो मानो तुम्हारी ही है।
11. तुम्हारी सोतेली बहिन जो तुम्हारे पिता से उत्पन्न हुई, वह तुम्हारी बहिन है, इस कारण उसका तन न उघाड़ना।
12. अपक्की फूफी का तन न उघाड़ना; वह तो तुम्हारे पिता की निकट कुटुम्बिन है।
13. अपक्की मौसी का तन न उघाड़ना; क्योंकि वह तुम्हारी माता की निकट कुटुम्बिन है।
14. अपके चाचा का तन न उघाड़ना, अर्यात्‌ उसकी स्त्री के पास न जाना; वह तो तुम्हारी चाची है।
15. अपक्की बहू का तन न उघाड़ना वह तो तुम्हारे बेटे की स्त्री है, इस कारण तुम उसका तन न उघाड़ना।
16. अपक्की भौजी का तन न उघाड़ना; वह तो तुम्हारे भाई ही का तन है।
17. किसी स्त्री और उसकी बेटी दोनोंका तन न उघाड़ना, और उसकी पोती को वा उसकी नतिनी को अपक्की स्त्री करके उसका तन न उघाड़ना; वे तो निकट कुटुम्बिन है; ऐसा करना महापाप है।
18. और अपक्की स्त्री की बहिन को भी अपक्की स्त्री करके उसकी सौत न करना, कि पहली के जीवित रहते हुए उसका तन भी उघाड़े।
19. फिर जब तक कोई स्त्री अपके ऋतु के कारण अशुद्ध रहे तब तक उसके पास उसका तन उघाड़ने को न जाना।
20. फिर अपके भाई बन्धु की स्त्री से कुकर्म करके अशुद्ध न हो जाना।
21. और अपके सन्तान में से किसी को मोलेक के लिथे होम करके न चढ़ाना, और न अपके परमेश्वर के नाम को अपवित्र ठहराना; मैं यहोवा हूं।
22. स्त्रीगमन की रीति पुरूषगमन न करना; वह तो घिनौना काम है।
23. किसी जाति के पशु के साय पशुगमन करके अशुद्ध न हो जाना, और न कोई स्त्री पशु के साम्हने इसलिथे खड़ी हो कि उसके संग कुकर्म करे; यह तो उल्टी बात है।।
24. ऐसा ऐसा कोई भी काम करके अशुद्ध न हो जाना, क्योंकि जिन जातियोंको मैं तुम्हारे आगे से निकालने पर हूं वे ऐसे ऐसे काम करके अशुद्ध हो गई है;
25. और उनका देश भी अशुद्ध हो गया है, इस कारण मैं उस पर उसके अधर्म का दण्ड देता हूं, और वह देश अपके निवासिक्कों उगल देता है।
26. इस कारण तुम लोग मेरी विधियोंऔर नियमोंको निरन्तर मानना, और चाहे देशी चाहे तुम्हारे बीच रहनेवाला परदेशी हो तुम में से कोई भी ऐसा घिनौना काम न करे;
27. क्योंकि ऐसे सब घिनौने कामोंको उस देश के मनुष्य तो तुम से पहिले उस में रहते थे वे करते आए हैं, इसी से वह देश अशुद्ध हो गया है।
28. अब ऐसा न हो कि जिस रीति से जो जाति तुम से पहिले उस देश में रहती यी उसको उस ने उगल दिया, उसी रीति जब तुम उसको अशुद्ध करो, तो वह तुम को भी उगल दे।
29. जितने ऐसा कोई घिनौना काम करें वे सब प्राणी अपके लोगोंमें से नाश किए जाएं।
30. यह आज्ञा जो मैं ने तुम्हारे मानने को दी है उसे तुम मानना, और जो घिनौनी रीतियां तुम से पहिले प्रचलित हैं उन में से किसी पर न चलना, और न उनके कारण अशुद्ध हो जाना। मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।।

Chapter 19

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंकी सारी मण्डली से कह, कि तुम पवित्र बने रहो; क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा पवित्र हूं।
3. तुम अपक्की अपक्की माता और अपके अपके पिता का भय मानना, और मेरे विश्रम दिनोंको मानना; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।
4. तुम मूरतोंकी ओर न फिरना, और देवताओं की प्रतिमाएं ढालकर न बना लेना; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।
5. जब तुम यहोवा के लिथे मेलबलि करो, तब ऐसा बलिदान करना जिससे मैं तुम से प्रसन्न हो जाऊं।
6. उसका मांस बलिदान के दिन और दूसरे दिन खाया जाए, परन्तु तीसरे दिन तक जो रह जाए वह आग में जला दिया जाए।
7. और यदि उस में से कुछ भी तीसरे दिन खाया जाए, तो यह घृणित ठहरेगा, और ग्रहण न किया जाएगा।
8. और उसका खानेवाला यहोवा के पवित्र पदार्य को अपवित्र ठहराता है, इसलिथे उसको अपके अधर्म का भार स्वयं उठाना पकेगा; और वह प्राणी अपके लोगोंमें से नाश किया जाएगा।।
9. फिर जब तुम अपके देश के खेत काटो तब अपके खेत के कोने कोने तक पूरा न काटना, और काटे हुए खेत की गिरी पक्की बालोंको न चुनना।
10. और अपक्की दाख की बारी का दाना दाना न तोड़ लेना, और अपक्की दाख की बारी के फंड़े हुए अंगूरोंको न बटोरना; उन्हें दीन और परदेशी लोगोंके लिथे छोड़ देना; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।
11. तुम चोरी न करना, और एक दूसरे से न तो कपट करना, और न फूठ बोलना।
12. तुम मेरे नाम की फूठी शपय खाके अपके परमेश्वर का नाम अपवित्र न ठहराना; मैं यहोवा हूं।
13. एक दूसरे पर अन्धेर न करना, और न एक दूसरे को लूट लेना। और मजदूर की मजदूरी तेरे पास सारी रात बिहान तक न रहने पाएं।
14. बहिरे को शाप न देना, और न अन्धे के आगे ठोकर रखना; और अपके परमेश्वर का भय मानना; मैं यहोवा हूं।
15. न्याय में कुटिलता न करना; और न तो कंगाल का पझ करना और न बड़े मनुष्योंका मुंह देखा विचार करना; उस दूसरे का न्याय धर्म से करना।
16. लूतरा बनके अपके लोगोंमें न फिरा करना, और एक दूसरे के लोहू बहाने की युक्तियां न बान्धना; मैं यहोवा हूं।
17. अपके मन में एक दूसरे के प्रति बैर न रखना; अपके पड़ोसी को अवश्य डांटना नहीं, तो उसके पाप का भार तुझ को उठाना पकेगा।
18. पलटा न लेना, और न अपके जाति भाइयोंसे बैर रखना, परन्तु एक दूसरे से अपके समान प्रेम रखना; मैं यहोवा हूं।
19. तुम मेरी विधियोंको निरन्तर मानना। अपके पशुओं को भिन्न जाति के पशुओं से मेल न खाने देना; अपके खेत में दो प्रकार के बीज इकट्ठे न बोना; और सनी और ऊन की मिलावट से बना हुआ वस्त्र न पहिनना।
20. फिर कोई स्त्री दासी हो, और उसकी मंगनी किसी पुरूष से हुई हो, परन्तु वह न तो दास से और न सेंतमेंत स्वाधीन की गई हो; उस से यदि कोई कुकर्म करे, तो उन दोनोंको दण्ड तो मिले, पर उस स्त्री के स्वाधीन न होने के कारण वे दोनोंमार न डाले जाएं।
21. पर वह पुरूष मिलापवाले तम्बू के द्वार पर यहोवा के पास एक मेढ़ा दोषबलि के लिथे ले आए।
22. और याजक उसके किथे हुए पाप के कारण दोषबलि के मेढ़े के द्वारा उसके लिथे यहोवा के साम्हने प्रायश्चित्त करे; तब उसका किया हुआ पाप झमा किया जाएगा।
23. फिर जब तुम कनान देश में पंहुचकर किसी प्रकार के फल के वृझ लगाओ, तो उनके फल तीन वर्ष तक तुम्हारे लिथे मानोंखतनारहित ठहरें रहें; इसलिथे उन में से कुछ न खाया जाए।
24. और चौथे वर्ष में उनके सब फल यहोवा की स्तुति करने के लिथे पवित्र ठहरें।
25. तब पांचवें वर्ष में तुम उनके फल खाना, इसलिथे कि उन से तुम को बहुत फल मिलें; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।
26. तुम लोहू लगा हुआ कुछ मांस न खाना। और न टोना करना, और न शुभ वा अशुभ मुहूर्तोंको मानना।
27. अपके सिर में घेरा रखकर न मुंड़ाना, और न अपके गाल के बालोंको मुंड़ाना।
28. मुर्दोंके कारण अपके शरीर को बिलकुल न चीरना, और न उस में छाप लगाना; मैं यहोवा हूं।
29. अपक्की बेटियोंको वेश्या बनाकर अपवित्र न करना, ऐसा न हो कि देश वेश्यागमन के कारण महापाप से भर जाए।
30. मेरे विश्रमदिन को माना करना, और मेरे पवित्रस्यान का भय निरन्तर मानना; मैं यहोवा हूं।
31. ओफाओं और भूत साधने वालोंकी ओर न फिरना, और ऐसोंको खोज करके उनके कारण अशुद्ध न हो जाना; मै तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।
32. पक्के बालवाले के साम्हने उठ खड़े होना, और बूढ़े का आदरमान करना, और अपके परमेश्वर का भय निरन्तर मानना; मैं यहोवा हूं।
33. और यदि कोई परदेशी तुम्हारे देश में तुम्हारे संग रहे, तो उसको दु:ख न देना।
34. जो परदेशी तुम्हारे संग रहे वह तुम्हारे लिथे देशी के समान हो, और उस से अपके ही समान प्रेम रखना; क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।
35. तुम न्याय में, और परिमाण में, और तौल में, और नाप में कुटिलता न करना।
36. सच्चा तराजू, धर्म के बटखरे, सच्चा एपा, और धर्म का हीन तुम्हारे पास रहें; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं जो तुम को मिस्र देश से निकाल ले आया।
37. इसलिथे तुम मेरी सब विधियोंऔर सब नियमोंको मानते हुए निरन्तर पालन करो; मैं यहोवा हूं।।

Chapter 20

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंसे कह, कि इस्त्राएलियोंमें से, वा इस्त्राएलियोंके बीच रहनेवाले परदेशियोंमें से, कोई क्योंन हो जो अपक्की कोई सन्तान मोलेक को बलिदान करे वह निश्चय मार डाला जाए; और जनता उसको पत्यरवाह करे।
3. और मैं भी उस मनुष्य के विरूद्ध होकर उसको उसके लोगोंमें से इस कारण नाश करूंगा, कि उस ने अपक्की सन्तान मोलेक को देकर मेरे पवित्रस्यान को अशुद्ध किया, और मेरे पवित्र नाम को अपवित्र ठहराया।
4. और यदि कोई अपक्की सन्तान मोलेक को बलिदान करे, और जनता उसके विषय में आनाकानी करे, और उसको मार न डाले,
5. तब तो मैं स्वयं उस मनुष्य और उसके घराने के विरूद्ध होकर उसको और जितने उसके पीछे होकर मोलेक के साय व्यभिचार करें उन सभोंको भी उनके लोगोंके बीच में से नाश करूंगा।
6. फिर जो प्राणी ओफाओं वा भूतसाधनेवालोंकी ओर फिरके, और उनके पीछे होकर व्यभिचारी बने, तब मैं उस प्राणी के विरूद्ध होकर उसको उसके लोगोंके बीच में से नाश कर दूंगा।
7. इसलिथे तुम अपके आप को पवित्र करो; और पवित्र बने रहो; क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।
8. और तुम मेरी विधियोंको मानना, और उनका पालन भी करना; क्योंकि मैं तुम्हारा पवित्र करनेवाला यहोवा हूं।
9. कोई क्योंन हो जो अपके पिता वा माता को शाप दे वह निश्चय मार डाला जाए; उस ने अपके पिता वा माता को शाप दिया है, इस कारण उसका खून उसी के सिर पर पकेगा।
10. फिर यदि कोई पराई स्त्री के साय व्यभिचार करे, तो जिस ने किसी दूसरे की स्त्री के साय व्यभिचार किया हो तो वह व्यभिचारी और वह व्यभिचारिणी दोनोंनिश्चय मार डाले जाएं।
11. और यदि कोई अपक्की सौतेली माता के साय सोए, वह जो अपके पिता ही का तन उघाड़नेवाला ठहरेगा; सो इसलिथे वे दोनोंनिश्चय मार डाले जाएं, उनका खून उन्हीं के सिर पर पकेगा।
12. और यदि कोई अपक्की पतोहू के साय सोए, तो वे दोनोंनिश्चय मार डाले जाएं; क्योंकि वे उलटा काम करनेवाले ठहरेंगे, और उनका खून उन्हीं के सिर पर पकेगा।
13. और यदि कोई जिस रीति स्त्री से उसी रीति पुरूष से प्रसंग करे, तो वे दोनोंघिनौना काम करनेवाले ठहरेंगे; इस कारण वे निश्चय मार डाले जाएं, उनका खून उन्हीं के सिर पर पकेगा।
14. और यदि कोई अपक्की पत्नी और अपक्की सांस दोनोंको रखे, तो यह महापाप है; इसलिथे वह पुरूष और वे स्त्रियां तीनोंके तीनोंआग में जलाए जाएं, जिस से तुम्हारे बीच महापाप न हो।
15. फिर यदि कोई पुरूष पशुगामी हो, तो पुरूष और पशु दोनोंनिश्चय मार डाले जाएं।
16. और यदि कोई स्त्री पशु के पास जाकर उसके संग कुकर्म करे, तो तू उस स्त्री और पशु दोनोंको घात करना; वे निश्चय मार डाले जाएं, उनका खून उन्हीं के सिर पर पकेगा।
17. और यदि कोई अपक्की बहिन का, चाहे उसकी संगी बहिन हो चाहे सौतेली, उसका नग्न तन देखे, तो वह निन्दित बात है, वे दोनोंअपके जाति भाइयोंकी आंखोंके साम्हने नाश किए जाएं; क्योंकि जो अपक्की बहिन का तन उघाड़नेवाला ठहरेगा उसे अपके अधर्म का भार स्वयं उठाना पकेगा।
18. फिर यदि कोई पुरूष किसी ऋतुमती स्त्री के संग सोकर उसका तन उघाड़े, तो वह पुरूष उसके रूधिर के सोते का उघाड़नेवाला ठहरेगा, और वह स्त्री अपके रूधिर के सोते की उघाड़नेवाली ठहरेगी; इस कारण दोनोंअपके लोगोंके बीच से नाश किए जाएं।
19. और अपक्की मौसी वा फूफी का तन न उघाड़ना, क्योंकि जो उसे उघाड़े वह अपक्की निकट कुटुम्बिन को नंगा करता है; इसलिथे इन दोनोंको अपके अधर्म का भार उठाना पकेगा।
20. और यदि कोई अपक्की चाची के संग सोए, तो वह अपके चाचा का तन उघाड़ने वाला ठहरेगा; इसलिथे वे दोनोंअपके पाप का भार को उठाए हुए निर्वंश मर जाएंगे।
21. और यदि कोई भौजी वा भयाहू को अपक्की पत्नी बनाए, तो इसे घिनौना काम जानना; और वह अपके भाई का तन उघाड़नेवाला ठहरेगा, इस कारण वे दोनोंनिर्वंश रहेंगे।
22. तुम मेरी सब विधियोंऔर मेरे सब नियमोंको समझ के साय मानना; जिससे यह न हो कि जिस देश में मैं तुम्हें लिथे जा रहा हूं वह तुम को उगल देवे।
23. और जिस जाति के लोगोंको मैं तुम्हारे आगे से निकालता हूं उनकी रीति रस्म पर न चलना; क्योंकि उन लोगोंने जो थे सब कुकर्म किए हैं, इसी कारण मुझे उन से घृणा हो गई है।
24. और मैं तुम लोगोंसे कहता हूं, कि तुम तो उनकी भूमि के अधिक्कारनेी होगे, और मैं इस देश को जिस में दूध और मधु की धाराएं बहती हैं तुम्हारे अधिक्कारने में कर दूंगा; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं जिस ने तुम को देशोंके लोगोंसे अलग किया है।
25. इस कारण तुम शुद्ध और अशुद्ध पशुओं में, और शुद्ध और अशुद्ध पझियोंमें भेद करना; और कोई पशु वा पक्की वा किसी प्रकार का भूमि पर रेंगनेवाला जीवजन्तु क्योंन हो, जिसको मैं ने तुम्हारे लिथे अशुद्ध ठहराकर वजिर्त किया है, उस से अपके आप को अशुद्ध न करना।
26. और तुम मेरे लिथे पवित्र बने रहना; क्योंकि मैं यहोवा स्वयं पवित्र हूं, और मैं ने तुम को और देशोंके लोगोंसे इसलिथे अलग किया है कि तुम निरन्तर मेरे ही बने रहो।।
27. यदि कोई पुरूष वा स्त्री ओफाई वा भूत की साधना करे, तो वह निश्चय मार डाला जाए; ऐसोंका पत्यरवाह किया जाए, उनका खून उन्हीं के सिर पर पकेगा।।

Chapter 21

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा, हारून के पुत्र जो याजक है उन से कह, कि तुम्हारे लोगोंमें से कोई भी मरे, तो उसके कारण तुम में से कोई अपके को अशुद्ध न करे;
2. अपके निकट कुटुम्बियों, अर्यात्‌ अपक्की माता, वा पिता, वा बेटे, वा बेटी, वा भाई के लिथे,
3. वा अपक्की कुंवारी बहिन जिसका विवाह न हुआ हो जिनका समीपी सम्बन्ध है; उनके लिथे वह अपके को अशुद्ध कर सकता है।
4. पर याजक होने के नाते से वह अपके लोगोंमें प्रधान है, इसलिथे वह अपके को ऐसा अशुद्ध न करे कि अपवित्र हो जाए।
5. वे न तो अपके सिर मुंड़ाएं, और न अपके गाल के बालोंको मुंड़ाएं, और न अपके शरीर चीरें।
6. वे अपके परमेश्वर के लिथे पवित्र बने रहें, और अपके परमेश्वर का नाम अपवित्र न करें; क्योंकि वे यहोवा के हव्य को जो उनके परमेश्वर का भोजन है चढ़ाया करते हैं; इस कारण वे पवित्र बने रहें।
7. वे वेश्या वा भ्रष्टा को ब्याह न लें; और न त्यागी हुई को ब्याह लें; क्योंकि याजक अपके परमेश्वर के लिथे पवित्र होता है।
8. इसलिथे तू याजक को पवित्र जानना, क्योंकि वह तुम्हारे परमेश्वर का भोजन चढ़ाया करता है; इसलिथे वह तेरी दृष्टि में पवित्र ठहरे; क्योंकि मैं यहोवा, जो तुम को पवित्र करता हूं, पवित्र हूं।
9. और यदि याजक की बेटी वेश्या बनकर अपके आप को अपवित्र करे, तो वह अपके पिता को अपवित्र ठहराती है; वह आग में जलाई जाए।।
10. और जो अपके भाइयोंमें महाथाजक हो, जिसके सिर पर अभिषेक का तेल डाला गया हो, और जिसका पवित्र वोंको पहिनने के लिथे संस्कार हुआ हो, वह अपके सिर के बाल बिखरने न दे, और अपके वस्त्र फाड़े;
11. और न वह किसी लोय के पास जाए, और न अपके पिता वा माता के कारण अपके को अशुद्ध करे;
12. और वह पवित्रस्यान से बाहर भी न निकले, और न अपके परमेश्वर के पवित्रस्यान को अपवित्र ठहराए; क्योंकि वह अपके परमेश्वर के अभिषेक का तेलरूपी मुकुट धारण किए हुए है; मैं यहोवा हूं।
13. और वह कुंवारी ही स्त्री को ब्याहे।
14. जो विधवा, वा त्यागी हुई, वा भ्रष्ट, वा वेश्या हो, ऐसी किसी को वह न ब्याहे, वह अपके ही लोगोंके बीच में की किसी कुंवारी कन्या को ब्याहे;
15. और वह अपके वीर्य्य को अपके लोगोंमें अपवित्र न करे; क्योंकि मैं उसका पवित्र करनेवाला यहोवा हूं।
16. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
17. हारून से कह, कि तेरे वंश की पीढ़ी पीढ़ी में जिस किसी के कोई भी दोष होंवह अपके परमेश्वर का भोजन चढ़ाने के लिथे समीप न आए।
18. कोई क्योंन हो जिस में दोष हो वह समीप न आए, चाहे वह अन्धा हो, चाहे लंगड़ा, चाहे नकचपटा हो, चाहे उसके कुछ अधिक अंग हो,
19. वा उसका पांव, वा हाथ टूटा हो,
20. वा वह कुबड़ा, वा बौना हो, वा उसकी आंख में दोष हो, वा उस मनुष्य के चाईं वा खजुली हो, वा उसके अंड पिचके हों;
21. हारून याजक के वंश में से जिस किसी में कोई भी दोष हो वह यहोवा के हव्य चढ़ाने के लिथे समीप न आए; वह जो दोषयुक्त है कभी भी अपके परमेश्वर का भोजन चढ़ाने के लिथे समीप न आए।
22. वह अपके परमेश्वर के पवित्र और परमपवित्र दोनोंप्रकार के भोजन को खाए,
23. परन्तु उसके दोष के कारण वह न तो बीचवाले पर्दे के भीतर आए और न वेदी के समीप, जिस से ऐसा न हो कि वह मेरे पवित्रस्यानोंको अपवित्र करे; क्योंकि मैं उनका पवित्र करनेवाला यहोवा हूं।
24. इसलिथे मूसा ने हारून और उसके पुत्रोंको तया कुल इस्त्राएलियोंको यह बातें कह सुनाईं।।

Chapter 22

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. हारून और उसके पुत्रोंसे कह, कि इस्त्राएलियोंकी पवित्र की हुई वस्तुओं से जिनको वे मेरे लिथे पवित्र करते हैं न्यारे रहें, और मेरे पवित्र नाम को अपवित्र न करें, मैं यहोवा हूं।
3. और उन से कह, कि तुम्हारी पीढ़ी-पीढ़ी में तुम्हारे सारे वंश में से जो कोई अपक्की अशुद्धता की दशा में उन पवित्र की हुई वस्तुओं के पास जाए, जिन्हें इस्त्राएली यहोवा के लिथे पवित्र करते हैं, वह प्राणी मेरे साम्हने से नाश किया जाएगा; मैं यहोवा हूं।
4. हारून के वंश में से कोई क्योंन हो जो कोढ़ी हो, वा उसके प्रमेह हो, वह मनुष्य जब तक शुद्ध न हो जाए तब तक पवित्र की हुई वस्तुओं में से कुछ न खाए। और जो लोय के कारण अशुद्ध हुआ हो, वा वीर्य्य स्खलित हुआ हो, ऐसे मनुष्य को जो कोई छूए,
5. और जो कोई किसी ऐसे रेंगनेहारे जन्तु को छूए जिस से लोग अशुद्ध हो सकते हैं, वा किसी ऐसे मनुष्य को छूए जिस में किसी प्रकार की अशुद्धता हो जो उसको भी लग सकती है।
6. तो वह प्राणी जो इन में से किसी को छूए सांफ तक अशुद्ध ठहरा रहे, और जब तक जल से स्नान न कर ले तब तक पवित्र वस्तुओं में से कुछ न खाए।
7. तब सूर्य अस्त होने पर वह शुद्ध ठहरेगा; और तब वह पवित्र वस्तुओं में से खा सकेगा, क्योंकि उसका भोजन वही है।
8. जो जानवर आप से मरा हो वा पशु से फाड़ा गया हो उसे खाकर वह अपके आप को अशुद्ध न करे; मैं यहोवा हूं।
9. इसलिथे याजक लोग मेरी सौपी हुई वस्तुओं की रझा करें, ऐसा न हो कि वे उनको अपवित्र करके पाप का भार उठाएं, और इसके कारण मर भी जाएं; मैं उनका पवित्र करनेवाला यहोवा हूं।
10. पराए कुल का जन किसी पवित्र वस्तु को न खाने पाए, चाहे वह याजक का पाहुन हो वा मजदूर हो, तौभी वह कोई पवित्र वस्तु न खाए।
11. यदि याजक किसी प्राणी को रूपया देकर मोल ले, तो वह प्राणी उस में से खा सकता है; और जो याजक के घर में उत्पन्न हुए होंवे भी उसके भोजन में से खाएं।
12. और यदि याजक की बेटी पराए कुल के किसी पुरूष से ब्याही गई हो, तो वह भेंट की हुई पवित्र वस्तुओं में से न खाए।
13. यदि याजक की बेटी विधवा वा त्यागी हुई हो, और उसकी सन्तान न हो, और वह अपक्की बाल्यावस्या की रीति के अनुसार अपके पिता के घर में रहती हो, तो वह अपके पिता के भोजन में से खाए; पर पराए कुल का कोई उस में से न खाने पाए।
14. और यदि कोई मनुष्य किसी पवित्र वस्तु में से कुछ भूल से खा जाए, तो वह उसका पांचवां भाग बढ़ाकर उसे याजक को भर दे।
15. और वे इस्त्राएलियोंकी पवित्र की हुई वस्तुओं को, जिन्हें वे यहोवा के लिथे चढ़ाएं, अपवित्र न करें।
16. वे उनको अपक्की पवित्र वस्तुओं में से खिलाकर उन से अपराध का दोष न उठवाएं; मैं उनका पवित्र करनेवाला यहोवा हूं।।
17. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
18. हारून और उसके पुत्रोंसे और इस्त्राएल के घराने वा इस्त्राएलियोंमें रहनेवाले परदेशियोंमें से कोई क्योंन हो जो मन्नत वा स्वेच्छाबलि करने के लिथे यहोवा को कोई होमबलि चढ़ाए,
19. तो अपके निमित्त ग्रहणयोग्य ठहरने के लिथे बैलोंवा भेड़ोंवा बकरियोंमें से निर्दोष नर चढ़ाया जाए।
20. जिस में कोई भी दोष हो उसे न चढ़ाना; क्योंकि वह तुम्हारे निमित्त ग्रहणयोग्य न ठहरेगा।
21. और जो कोई बैलोंवा भेड़-बकरियोंमें से विशेष वस्तु संकल्प करने के लिथे वा स्वेच्छाबलि के लिथे यहोवा को मेलबलि चढ़ाए, तो ग्रहण होने के लिथे अवश्य है कि वह निर्दोष हो, उस में कोई भी दोष न हो।
22. जो अन्धा वा अंग का टूटा वा लूला हो, वा उस में रसौली वा खौरा वा खुजली हो, ऐसोंको यहोवा के लिथे न चढ़ाना, उनको वेदी पर यहोवा के लिथे हव्य न चढ़ाना।
23. जिस किसी बैल वा भेड़ वा बकरे का कोई अंग अधिक वा कम हो उसको स्वेच्छाबलि कि लिथे चढ़ा सकते हो, परन्तु मन्नत पूरी करने के लिथे वह ग्रहण न होगा।
24. जिसके अंड दबे वा कुचले वा टूटे वा कट गए होंउसको यहोवा के लिथे न चढ़ाना, और अपके देश में भी ऐसा काम न करना।
25. फिर इन में से किसी को तुम अपके परमेश्वर का भोजन जानकर किसी परदेशी से लेकर न चढ़ाओ; क्योंकि उन में उनका बिगाड़ वर्तमान है, उन में दोष है, इसलिथे वे तुम्हारे निमित्त ग्रहण न होंगे।।
26. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
27. जब बछड़ा वा भेड़ वा बकरी का बच्चा उत्पन्न हो, तो वह सात दिन तक अपक्की मां के साय रहे; फिर आठवें दिन से आगे को वह यहोवा के हव्यवाह चढ़ावे के लिथे ग्रहणयोग्य ठहरेगा।
28. चाहे गाय, चाहे भेड़ी वा बकरी हो, उसको और उसके बच्चे को एक ही दिन में बलि न करना।
29. और जब तुम यहोवा के लिथे धन्यवाद का मेलबलि चढ़ाओ, तो उसे इसी प्रकार से करना जिस से वह ग्रहणयोग्य ठहरे।।
30. वह उसी दिन खाया जाए, उस में से कुछ भी बिहान तक रहने न पाए; मैं यहोवा हूं।
31. और तुम मेरी आज्ञाओं को मानना और उनका पालन करना; मैं यहोवा हूं।
32. और मेरे पवित्र नाम को अपवित्र न ठहराना, क्योंकि मैं इस्त्राएलियोंके बीच अवश्य ही पवित्र माना जाऊंगा; मैं तुम्हारा पवित्र करनेवाला यहोवा हूं।
33. जो तुम को मिस्र देश से निकाल लाया हूं जिस से तुम्हारा परमेश्वर बना रहूं; मैं यहोवा हूं।।

Chapter 23

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंसे कह, कि यहोवा के पर्ब्ब जिनका तुम को पवित्र सभा एकत्रित करने के लिथे नियत समय पर प्रचार करना होगा, मेरे वे पर्ब्ब थे हैं।
3. छ: दिन कामकाज किया जाए, पर सातवां दिन परमविश्रम का और पवित्र सभा का दिन है; उस में किसी प्रकार का कामकाज न किया जाए; वह तुम्हारे सब घरोंमें यहोवा का विश्रम दिन ठहरे।।
4. फिर यहोवा के पर्ब्ब जिन में से एक एक के ठहराथे हुए समय में तुम्हें पवित्र सभा करने के लिथे प्रचार करना होगा वे थे हैं।
5. पहिले महीने के चौदहवें दिन को गोधूलि के समय यहोवा का फसह हुआ करे।
6. और उसी महीने के पंद्रहवें दिन को यहोवा के लिथे अखमीरी रोटी का पर्ब्ब हुआ करे; उस में तुम सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना।
7. उन में से पहिले दिन तुम्हारी पवित्र सभा हो; और उस दिन परिश्र्म का कोई काम न करना।
8. और सातोंदिन तुम यहोवा को हव्य चढ़ाया करना; और सातवें दिन पवित्र सभा हो; उस दिन परिश्र्म का कोई काम न करना।।
9. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
10. इस्त्राएलियोंसे कह, कि जब तुम उस देश में प्रवेश करो जिसे यहोवा तुम्हें देता है और उस में के खेत काटो, तब अपके अपके पक्के खेत की पहिली उपज का पूला याजक के पास ले आया करना;
11. और वह उस पूले को यहोवा के साम्हने हिलाए, कि वह तुम्हारे निमित्त ग्रहण किया जाए; वह उसे विश्रमदिन के दूसरे दिन हिलाए।
12. और जिस दिन तुम पूले को हिलवाओ उसी दिन एक वर्ष का निर्दोष भेड़ का बच्चा यहोवा के लिथे होमबलि चढ़ाना।
13. और उसके साय का अन्नबलि एपा के दो दसवें अंश तेल से सने हुए मैदे का हो वह सुखदायक सुगन्ध के लिथे यहोवा का हव्य हो; और उसके साय का अर्ध हीन भर की चौयाई दाखमधु हो।
14. और जब तक तुम इस चढ़ावे को अपके परमेश्वर के पास न ले जाओ, उस दिन तक नथे खेत में से न तो रोटी खाना और न भुना हुआ अन्न और न हरी बालें; यह तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में तुम्हारे सारे घरानोंमें सदा की विधि ठहरे।।
15. फिर उस विश्रमदिन के दूसरे दिन से, अर्यात्‌ जिस दिन तुम हिलाई जानेवाली भेंट के पूले को लाओगे, उस दिन से पूरे सात विश्रमदिन गिन लेना;
16. सातवें विश्रमदिन के दूसरे दिन तक पचास दिन गिनना, और पचासवें दिन यहोवा के लिथे नया अन्नबलि चढ़ाना।
17. तुम अपके घरोंमें से एपा के दो दसवें अंश मैदे की दो रोटियां हिलाने की भेंट के लिथे ले आना; वे खमीर के साय पकाई जाएं, और यहोवा के लिथे पहिली उपज ठहरें।
18. और उस रोटी के संग एक एक वर्ष के सात निर्दोष भेड़ के बच्चे, और एक बछड़ा, और दो मेढ़े चढ़ाना; वे अपके अपके साय के अन्नबलि और अर्ध समेत यहोवा के लिथे होमबलि के समान चढ़ाए जाएं, अर्यात्‌ वे यहोवा के लिथे सुखदायक सुगन्ध देनेवाला हव्य ठहरें।
19. फिर पापबलि के लिथे एक बकरा, और मेलबलि के लिथे एक एक वर्ष के दो भेड़ के बच्चे चढ़ाना।
20. तब याजक उनको पहिली उपज की रोटी समेत यहोवा के साम्हने हिलाने की भेंट के लिथे हिलाए, और इन रोटियोंके संग वे दो भेड़ के बच्चे भी हिलाए जाएं; वे यहोवा के लिथे पवित्र, और याजक का भाग ठहरें।
21. और तुम उस दिन यह प्रचार करना, कि आज हमारी एक पवित्र सभा होगी; और परिश्र्म का कोई काम न करना; यह तुम्हारे सारे घरानोंमें तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में सदा की विधि ठहरे।।
22. जब तुम अपके देश में के खेत काटो, तब अपके खेत के कोनोंको पूरी रीति से न काटना, और खेत में गिरी हुई बालोंको न इकट्ठा करना; उसे दीनहीन और परदेशी के लिथे छोड़ देना; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।।
23. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
24. इस्त्राएलियोंसे कह, कि सातवें महीने के पहिले दिन को तुम्हारे लिथे परमविश्रम हो; उस में स्मरण दिलाने के लिथे नरसिंगे फूंके जाएं, और एक पवित्र सभा इकट्ठी हो।
25. उस दिन तुम परिश्र्म का कोई काम न करना, और यहोवा के लिथे एक हव्य चढ़ाना।।
26. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
27. उसी सातवें महीने का दसवां दिन प्रायश्चित्त का दिन माना जाए; वह तुम्हारी पवित्र सभा का दिन होगा, और उस में तुम अपके अपके जीव को दु:ख देना और यहोवा का हव्य चढ़ाना।
28. उस दिन तुम किसी प्रकार का कामकाज न करना; क्योंकि वह प्रायश्चित्त का दिन नियुक्त किया गया है जिस में तुम्हारे परमेश्वर यहोवा के साम्हने तुम्हारे लिथे प्रायश्चित्त किया जाएगा।
29. इसलिथे जो प्राणी उस दिन दु:ख न सहे वह अपके लोगोंमें से नाश किया जाएगा।
30. और जो प्राणी उस दिन किसी प्रकार का कामकाज करे उस प्राणी को मैं उसके लोगोंके बीच में से नाश कर डालूंगा।
31. तुम किसी प्रकार का कामकाज न करना; यह तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में तुम्हारे घराने में सदा की विधी ठहरे।
32. वह दिन तुम्हारे लिथे परमविश्रम का हो, उस में तुम अपके अपके जीव को दु:ख देना; और उस महीने के नवें दिन की सांफ से लेकर दूसरी सांफ तक अपना विश्रमदिन माना करना।।
33. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
34. इस्त्राएलियोंसे कह, कि उसी सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन से सात दिन तक यहोवा के लिथे फोंपडिय़ोंका पर्ब्ब रहा करे।
35. पहिले दिन पवित्र सभा हो; उस में परिश्र्म का कोई काम न करना।
36. सातोंदिन यहोवा के लिथे हव्य चढ़ाया करना, फिर आठवें दिन तुम्हारी पवित्र सभा हो, और यहोवा के लिथे हव्य चढ़ाना; वह महासभा का दिन है, और उस में परिश्र्म का कोई काम न करना।।
37. यहोवा के नियत पर्ब्ब थे ही हैं, इन में तुम यहोवा को हव्य चढ़ाना, अर्यात्‌ होमबलि, अन्नबलि, मेलबलि, और अर्घ, प्रत्थेक अपके अपके नियत समय पर चढ़ाया जाए और पवित्र सभा का प्रचार करना।
38. इन सभोंसे अधिक यहोवा के विश्रमदिनोंको मानना, और अपक्की भेंटों, और सब मन्नतों, और स्वेच्छाबलियोंको जो यहोवा को अर्पण करोगे चढ़ाया करना।।
39. फिर सातवें महीने के पन्द्रहवें दिन को, जब तुम देश की उपज को इकट्ठा कर चुको, तब सात दिन तक यहोवा का पर्ब्ब मानना; पहिले दिन परमविश्रम हो, और आठवें दिन परमविश्रम हो।
40. और पहिले दिन तुम अच्छे अच्छे वृझोंकी उपज, और खजूर के पत्ते, और घने वृझोंकी डालियां, और नालोंमें के मजनू को लेकर अपके परमेश्वर यहोवा के साम्हने सात दिन तक आनन्द करना।
41. और प्रतिवर्ष सात दिन तक यहोवा के लिथे पर्ब्ब माना करना; यह तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में सदा की विधि ठहरे, कि सातवें महीने में यह पर्ब्ब माना जाए।
42. सात दिन तक तुम फोंपडिय़ोंमें रहा करना, अर्यात्‌ जितने जन्म के इस्त्राएली हैं वे सब के सब फोंपडिय़ोंमें रहें,
43. इसलिथे कि तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी के लोग जान रखें, कि जब यहोवा हम इस्त्राएलियोंको मिस्र देश से निकाल कर ला रहा या तब उस ने उनको फोंपडिय़ोंमें टिकाया या; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।
44. और मूसा ने इस्त्राएलियोंको यहोवा के पर्ब्ब के नियत समय कह सुनाए।।

Chapter 24

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंको यह आज्ञा दे, कि मेरे पास उजियाला देने के लिथे कूट के निकाला हुआ जलपाई का निर्मल तेल ले आना, कि दीपक नित्य जलता रहे।
3. हारून उसको, बीचवाले तम्बू में, साझीपत्र के बीचवाले पर्दे से बाहर, यहोवा के साम्हने नित्य सांफ से भोर तक सजाकर रखे; यह तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी के लिथे सदा की विधि ठहरे।
4. वह दीपकोंके स्वच्छ दीवट पर यहोवा के साम्हने नित्य सजाया करे।।
5. और तू मैदा लेकर बारह रोटियां पकवाना, प्रत्थेक रोटी में एपा का दो दसवां अंश मैदा हो।
6. तब उनकी दो पांति करके, एक एक पांति में छ: छ: रोटियां, स्वच्छ मेज पर यहोवा के साम्हने धरना।
7. और एक एक पांति पर चोखा लोबान रखना, कि वह रोटी पर स्मरण दिलानेवाला वस्तु और यहोवा के लिथे हव्य हो।
8. प्रति विश्रमदिन को वह उसे नित्य यहोवा के सम्मुख क्रम से रखा करे, यह सदा की वाचा की रीति इस्त्राएलियोंकी ओर से हुआ करे।
9. और वह हारून और उसके पुत्रोंकी होंगी, और वे उसको किसी पवित्र स्यान में खाएं, क्योंकि वह यहोवा के हव्योंमें से सदा की विधि के अनुसार हारून के लिथे परमपवित्र वस्तु ठहरी है।।
10. उन दिनोंमें किसी इस्त्राएली स्त्री का बेटा, जिसका पिता मिस्री पुरूष या, इस्त्राएलियोंके बीच चला गया; और वह इस्त्राएली स्त्री का बेटा और एक इस्त्राएली पुरूष छावनी के बीच आपस में मारपीट करने लगे,
11. और वह इस्त्राएली स्त्री का बेटा यहोवा के नाम की निन्दा करके शाप देने लगा। यह सुनकर लोग उसको मूसा के पास ले गए। उसकी माता का नाम शलोमीत या, जो दान के गोत्र के दिब्री की बेटी यी।
12. उन्होंने उसको हवालात में बन्द किया, जिस से यहोवा की आज्ञा से इस बात पर विचार किया जाए।।
13. तब यहोवा ने मूसा से कहा,
14. तुम लोग उस शाप देने वाले को छावनी से बाहर लिवा ले जाओ; और जितनोंने वह निन्दा सुनी हो वे सब अपके अपके हाथ उसके सिर पर टेकें, तब सारी मण्डली के लोग उसको पत्यरवाह करें।
15. और तू इस्त्राएलियोंसे कह, कि कोई क्योंन हो जो अपके परमेश्वर को शाप दे उसे अपके पाप का भार उठाना पकेगा।
16. यहोवा के नाम की निन्दा करनेवाला निश्चय मार डाला जाए; सारी मण्डली के लोग निश्चय उसको पत्यरवाह करें; चाहे देशी हो चाहे परदेशी, यदि कोई उस नाम की निन्दा करें तो वह मार डाला जाए।
17. फिर जो कोई किसी मनुष्य को प्राण से मारे वह निश्चय मार डाला जाए।
18. और जो कोई किसी घरेलू पशु को प्राण से मारे वह उसे भर दे, अर्यात्‌ प्राणी की सन्ती प्राणी दे।
19. फिर यदि कोई किसी दूसरे को चोट पहुंचाए, तो जैसा उस ने किया हो वैसा ही उसके साय भी किया जाए,
20. अर्यात्‌ अंग भंग करने की सन्ती अंग भंग किया जाए, आंख की सन्ती आंख, दांत की सन्ती दांत, जैसी चोट जिस ने किसी को पहुंचाई हो वैसी ही उसको भी पहुंचाई जाए।
21. और पशु का मार डालनेवाला उसको भर दे, परन्तु मनुष्य का मार डालनेवाला मार डाला जाए।
22. तुम्हारा नियम एक ही हो, जैसा देशी के लिथे वैसा ही परदेशी के लिथे भी हो; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।
23. और मूसा ने इस्त्राएलियोंको यही समझाया; तब उन्होंने उस शाप देनेवाले को छावनी से बाहर ले जाकर उसको पत्यरवाह किया। और इस्त्राएलियोंने वैसा ही किया जैसा यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी यी।।

Chapter 25

1. फिर यहोवा ने सीनै पर्वत के पास मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंसे कह, कि जब तुम उस देश में प्रवेश करो जो मैं तुम्हें देता हूं, तब भूमि को यहोवा के लिथे विश्रम मिला करे।
3. छ: वर्ष तो अपना अपना खेत बोया करना, और छहोंवर्ष अपक्की अपक्की दाख की बारी छांट छांटकर देश की उपज इकट्ठी किया करना;
4. परन्तु सातवें वर्ष भूमि को यहोवा के लिथे परमविश्रमकाल मिला करे; उस में न तो अपना खेत बोना और न अपक्की दाख की बारी छांटना।
5. जो कुछ काटे हुए खेत में अपके आप से उगे उसे न काटना, और अपक्की बिन छांटी हुई दाखलता की दाखोंको न तोड़ना; क्योंकि वह भूमि के लिथे परमविश्रम का वर्ष होगा।
6. और भूमि के विश्रमकाल ही की उपज से तुम को, और तुम्हारे दास-दासी को, और तुम्हारे साय रहनेवाले मजदूरोंऔर परदेशियोंको भी भोजन मिलेगा;
7. और तुम्हारे पशुओं का और देश में जितने जीवजन्तु होंउनका भी भोजन भूमि की सब उपज से होगा।।
8. और सात विश्रमवर्ष, अर्यात्‌ सातगुना सात वर्ष गिन लेना, सातोंविश्रमवर्षोंका यह समय उनचास वर्ष होगा।
9. तब सातवें महीने के दसवें दिन को, अर्यात्‌ प्रायश्चित्त के दिन, जय जयकार के महाशब्द का नरसिंगा अपके सारे देश में सब कहीं फुंकवाना।
10. और उस पचासवें वर्ष को पवित्र करके मानना, और देश के सारे निवासियोंके लिथे छुटकारे का प्रचार करना; वह वर्ष तुम्हारे यहां जुबली कहलाए; उस में तुम अपक्की अपक्की निज भूमि और अपके अपके घराने में लौटने पाओगे।
11. तुम्हारे यहां वह पचासवां वर्ष जुबली का वर्ष कहलाए; उस में तुम न बोना, और जो अपके आप ऊगे उसे भी न काटना, और न बिन छांटी हुई दाखलता की दाखोंको तोड़ना।
12. क्योंकि वह जो जुबली का वर्ष होगा; वह तुम्हारे लिथे पवित्र होगा; तुम उसकी उपज खेत ही में से ले लेके खाना।
13. इस जुबली के वर्ष में तुम अपक्की अपक्की निज भूमि को लौटने पाओगे।
14. और यदि तुम अपके भाईबन्धु के हाथ कुछ बेचो वा अपके भाईबन्धु से कुछ मोल लो, तो तुम एक दूसरे पर अन्धेर न करना।
15. जुबली के पीछे जितने वर्ष बीते होंउनकी गिनती के अनुसार दाम ठहराके एक दूसरे से मोल लेना, और शेष वर्षोंकी उपज के अनुसार वह तेरे हाथ बेचे।
16. जितने वर्ष और रहें उतना ही दाम बढ़ाना, और जितने वर्ष कम रहें उतना ही दाम घटाना, क्योंकि वर्ष की उपज जितनी होंउतनी ही वह तेरे हाथ बेचेगा।
17. और तुम अपके अपके भाईबन्धु पर अन्धेर न करना; अपके परमेश्वर का भय मानना; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।
18. इसलिथे तुम मेरी विधियोंको मानना, और मेरे नियमोंपर समझ बूफकर चलना; क्योंकि ऐसा करने से तुम उस देश में निडर बसे रहोगे।
19. और भूमि अपक्की उपज उपजाया करेगी, और तुम पेट भर खाया करोगे, और उस देश में निडर बसे रहोगे।
20. और यदि तुम कहो, कि सातवें वर्ष में हम क्या खाएंगे, न तो हम बोएंगे न अपके खेत की उपज इकट्ठी करेंगे?
21. तो जानो कि मैं तुम को छठवें वर्ष में ऐसी आशीष दूंगा, कि भूमि की उपज तीन वर्ष तक काम आएगी।
22. तुम आठवें वर्ष में बोओगे, और पुरानी उपज में से खाते रहोगे, और नवें वर्ष की उपज में से खाते रहोगे।
23. भूमि सदा के लिथे तो बेची न जाए, क्योंकि भूमि मेरी है; और उस में तुम परदेशी और बाहरी होगे।
24. लेकिन तुम अपके भाग के सारे देश में भूमि को छुड़ा लेने देना।।
25. यदि तेरा कोई भाईबन्धु कंगाल होकर अपक्की निज भूमि में से कुछ बेच डाले, तो उसके कुटुम्बियोंमें से जो सब से निकट हो वह आकर अपके भाईबन्धु के बेचे हुए भाग को छुड़ा ले।
26. और यदि किसी मनुष्य के लिथे कोई छुड़ानेवाला न हो, और उसके पास इतना धन हो कि आप ही अपके भाग को छुड़ा ले सके,
27. तो वह उसके बिकने के समय से वर्षोंकी गिनती करके शेष वर्षोंकी उपज का दाम उसको जिस ने उसे मोल लिया हो फेर दे; तब वह अपक्की निज भूमि का अधिक्कारनेी हो जाए।
28. परन्तु यदि उसके इतनी पूंजी न हो कि उसे फिर अपक्की कर सके, तो उसकी बेची हुई भूमि जुबली के वर्ष तक मोल लेनेवालोंके हाथ में रहे; और जुबली के वर्ष में छूट जाए तब वह मनुष्य अपक्की निज भूमि का फिर अधिक्कारनेी हो जाए।।
29. फिर यदि कोई मनुष्य शहरपनाह वाले नगर में बसने का घर बेचे, तो वह बेचने के बाद वर्ष भर के अन्दर उसे छुड़ा सकेगा, अर्यात्‌ पूरे वर्ष भर उस मनुष्य को छुड़ाने का अधिक्कारने रहेगा।
30. परन्तु यदि वह वर्ष भर में न छुड़ाए, तो वह घर पर शहरपनाहवाले नगर में हो मोल लेनेवाले का बना रहे, और पीढ़ी-पीढ़ी में उसी मे वंश का बना रहे; और जुबली के वर्ष में भी न छूटे।
31. परन्तु बिना शहरपनाह के गांवोंके घर तो देश के खेतोंके समान गिने जाएं; उनका छुड़ाना भी हो सकेगा, और वे जुबली के वर्ष में छूट जाएं।
32. और लेवियोंके निज भाग के नगरोंके जो घर होंउनको लेवीय जब चाहें तब छुड़ाएं।
33. और यदि कोई लेवीय अपना भाग न छुड़ाए, तो वह बेचा हुआ घर जो उसके भाग के नगर में हो जुबली के वर्ष में छूट जाए; क्योंकि इस्त्राएलियोंके बीच लेवियोंका भाग उनके नगरोंमें वे घर ही हैं।
34. और उनके नगरोंकी चारोंओर की चराई की भूमि बेची न जाए; क्योंकि वह उनका सदा का भाग होगा।।
35. फिर यदि तेरा कोई भाईबन्धु कंगाल हो जाए, और उसकी दशा तेरे साम्हने तरस योग्य हो जाए, तो तू उसको संभालना; वह परदेशी वा यात्री की नाई तेरे संग रहे।
36. उस से ब्याज वा बढ़ती न लेना; अपके परमेश्वर का भय मानना; जिस से तेरा भाईबन्धु तेरे संग जीवन निर्वाह कर सके।
37. उसको ब्याज पर रूपया न देना, और न उसको भोजनवस्तु लाभ के लालच से देना।
38. मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं; मैं तुम्हें कनान देश देने के लिथे और तुम्हारा परमेश्वर ठहरने की मनसा से तुम को मिस्र देश से निकाल लाया हूं।।
39. फिर यदि तेरा कोई भाईबन्धु तेरे साम्हने कंगाल होकर अपके आप को तेरे हाथ बेच डाले, तो उस से दास के समान सेवा न करवाना।
40. वह तेरे संग मजदूर वा यात्री की नाई रहे, और जुबली के वर्ष तक तेरे संग रहकर सेवा करता रहे;
41. तब वह बालबच्चोंसमेत तेरे पास से निकल जाए, और अपके कुटुम्ब में और अपके पितरोंकी निज भूमि में लौट जाए।
42. क्योंकि वे मेरे ही दास हैं, जिनको मैं मिस्र देश से निकाल लाया हूं; इसलिथे वे दास की रीति से न बेचे जाएं।
43. उस पर कठोरता से अधिक्कारने न करना; अपके परमेश्वर का भय मानते रहना।
44. तेरे जो दास-दासियां होंवे तुम्हारी चारोंओर की जातियोंमें से हों, और दास और दासियां उन्हीं में से मोल लेना।
45. और जो यात्री लोग तुम्हारे बीच में परदेशी होकर रहेंगे, उन में से और उनके घरानोंमें से भी जो तुमहारे आस पास हों, और जो तुम्हारे देश में उत्पन्न हुए हों, उन में से तुम दास और दासी मोल लो; और वे तुम्हारा भाग ठहरें।
46. और तुम अपके पुत्रोंको भी जो तुम्हारे बाद होंगे उनके अधिक्कारनेी कर सकोगे, और वे उनका भाग ठहरें; उन में से तुम सदा अपके लिथे दास लिया करना, परन्तु तुम्हारे भाईबन्धु जो इस्त्राएली होंउन पर अपना अधिक्कारने कठोरता से न जताना।।
47. फिर यदि तेरे साम्हने कोई परदेशी वा यात्री धनी हो जाए, और उसके साम्हने तेरा भाई कंगाल होकर अपके आप को तेरे साम्हने उस परदेशी वा यात्री वा उसके वंश के हाथ बेच डाले,
48. तो उसके बिक जाने के बाद वह फिर छुड़ाया जा सकता है; उसके भाइयोंमें से कोई उसको छुड़ा सकता है,
49. वा उसका चाचा, वा चचेरा भाई, तया उसके कुल का कोई भी निकट कुटुम्बी उसको छुड़ा सकता है; वा यदि वह धनी हो जाए, तो वह आप ही अपके को छुड़ा सकता है।
50. वह अपके मोल लेनेवाले के साय अपके बिकने के वर्ष से जुबली के वर्ष तक हिसाब करे, और उसके बिकने का दाम वर्षोंकी गिनती के अनुसार हो, अर्यात्‌ वह दाम मजदूर के दिवसोंके समान उसके साय होगा।
51. यदि जुबली के बहुत वर्ष रह जाएं, तो जितने रूपयोंसे वह मोल लिया गया हो उन में से वह अपके छुड़ाने का दाम उतने वर्षोंके अनुसार फेर दे।
52. और यदि जुबली के वर्ष के योड़े वर्ष रह गए हों, तौभी वह अपके स्वामी के साय हिसाब करके अपके छुड़ाने का दाम उतने ही वषार्ें के अनुसार फेर दे।
53. वह अपके स्वामी के संग उस मजदूर के सामान रहे जिसकी वाषिर्क मजदूरी ठहराई जाती हो; और उसका स्वामी उस पर तेरे साम्हने कठोरता से अधिक्कारने न जताने पाए।
54. और यदि वह इन रीतियोंसे छुड़ाया न जाए, तो वह जुबली के वर्ष में अपके बाल-बच्चोंसमेत छूट जाए।
55. क्योंकि इस्त्राएली मेरे ही दास हैं; वे मिस्र देश से मेरे ही निकाले हुए दास हैं; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।।

Chapter 26

1. तुम अपके लिथे मूरतें न बनाना, और न कोई खुदी हुई मूतिर् वा लाट अपके लिथे खड़ी करना, और न अपके देश में दण्डवत्‌ करने के लिथे नक्काशीदार पत्यर स्यापन करना; क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।
2. तुम मेरे विश्रमदिनोंका पालन करना और मेरे पवित्रस्यान का भय मानना; मैं यहोवा हूं।।
3. यदि तुम मेरी विधियोंपर चलो और मेरी आज्ञाओं को मानकर उनका पालन करो,
4. तो मैं तुम्हारे लिथे समय समय पर मेंह बरसाऊंगा, तया भूमि अपक्की उपज उपजाएगी, और मैदान के वृझ अपके अपके फल दिया करेंगे;
5. यहां तक कि तुम दाख तोड़ने के समय भी दावनी करते रहोगे, और बोने के समय भी भर पेट दाख तोड़ते रहोगे, और तुम मनमानी रोटी खाया करोगे, और अपके देश में निश्चिन्त बसे रहोगे।
6. और मैं तुम्हारे देश में सुख चैन दूंगा, और तुम सोओगे और तुम्हारा कोई डरानेवाला न हो; और मैं उस देश में दुष्ट जन्तुओं को न रहने दूंगा, और तलवार तुम्हारे देश में न चलेगी।
7. और तुम अपके शत्रुओं को मार भगा दोगे, और वे तुम्हारी तलवार से मारे जाएंगे।
8. और तुम में से पांच मनुष्य सौ को और सौ मनुष्य दस हजार को खदेड़ेंगे; और तुम्हारे शत्रु तलवार से तुम्हारे आगे आगे मारे जाएंगे;
9. और मैं तुम्हारी ओर कृपा दृष्टि रखूंगा और तुम को फलवन्त करूंगा और बढ़ाऊंगा, और तुम्हारे संग अपक्की वाचा को पूर्ण करूंगा।
10. और तुम रखे हुए पुराने अनाज को खाओगे, और नथे के रहते भी पुराने को निकालोगे।
11. और मैं तुम्हारे बीच अपना निवासस्यान बनाए रखूंगा, और मेरा जी तुम से घृणा नहीं करेगा।
12. और मैं तुम्हारे मध्य चला फिरा करूंगा, और तुम्हारा परमेश्वर बना रहूंगा, और तुम मेरी प्रजा बने रहोगे।
13. मैं तो तुम्हारा वह परमेश्वर यहोवा हूं, जो तुम को मिस्र देश से इसलिथे निकाल ले आया कि तुम मिस्रियोंके दास न बने रहो; और मैं ने तुम्हारे जूए को तोड़ डाला है, और तुम को सीधा खड़ा करके चलाया है।।
14. यदि तुम मेरी न सुनोगे, और इन सब आज्ञाओं को न मानोगे,
15. और मेरी विधियोंको निकम्मा जानोगे, और तुम्हारी आत्मा मेरे निर्णयोंसे घृणा करे, और तुम मेरी सब आज्ञाओं का पालन न करोगे, वरन मेरी वाचा को तोड़ोगे,
16. तो मैं तुम से यह करूंगा; अर्यात्‌ मैं तुम को बेचैन करूंगा, और झयरोग और ज्वर से पीड़ित करूंगा, और इनके कारण तुम्हारी आंखे धुंधली हो जाएंगी, और तुम्हारा मन अति उदास होगा। और तुम्हारा बीच बोना व्यर्य होगा, क्योंकि तुम्हारे शत्रु उसकी उपज खा लेंगे;
17. और मैं भी तुम्हारे विरूद्ध हो जाऊंगा, और तुम अपके शत्रुओं से हार जाओगे; और तुम्हारे बैरी तुम्हारे ऊपर अधिक्कारने करेंगे, और जब कोई तुम को खदेड़ता भी न होगा तब भी तुम भागोगे।
18. और यदि तुम इन बातोंके उपरान्त भी मेरी न सुनो, तो मैं तुम्हारे पापोंके कारण तुम्हें सातगुणी ताड़ना और दूंगा,
19. और मैं तुम्हारे बल का घमण्ड तोड़ डालूंगा, और तुम्हारे लिथे आकाश को मानो लोहे का और भूमि को मानो पीतल की बना दूंगा;
20. और तुम्हारा बल अकारय गंवाया जाएगा, क्योंकि तुम्हारी भूमि अपक्की उपज न उपजाएगी, और मैदान के वृझ अपके फल न देंगे।
21. और यदि तुम मेरे विरूद्ध चलते ही रहो, और मेरा कहना न मानों, तो मैं तुम्हारे पापोंके अनुसार तुम्हारे ऊपर और सातगुणा संकट डालूंगा।
22. और मैं तुम्हारे बीच बन पशु भेजूंगा, जो तुम को निर्वंश करेंगे, और तुम्हारे घरेलू पशुओं को नाशकर डालेंगे, और तुम्हारी गिनती घटाएंगे, जिस से तुम्हारी सड़के सूनी पड़ जाएंगी।
23. फिर यदि तुम इन बातोंपर भी मेरी ताड़ना से न सुधरो, और मेरे विरूद्ध चलते ही रहो,
24. तो मैं भी तुम्हारे विरूद्ध चलूंगा, और तुम्हारे पापोंके कारण मैं आप ही तुम को सातगुणा मारूंगा।
25. तो मैं तुम पर एक ऐसी तलवार चलवाऊंगा, जो वाचा तोड़ने का पूरा पूरा पलटा लेगी; और जब तुम अपके नगरोंमें जा जाकर इकट्ठे होगे तब मैं तुम्हारे बीच मरी फैलाऊंगा, और तुम अपके शत्रुओं के वश में सौंप दिए जाओगे।
26. और जब मैं तुम्हारे लिथे अन्न के आधार को दूर कर डालूंगा, तब दस स्त्रियां तुम्हारी रोटी एक ही तंदूर में पकाकर तौल तौलकर बांट देंगी; और तुम खाकर भी तृप्त न होगे।।
27. फिर यदि तुम इसके उपरान्त भी मेरी न सुनोगे, और मेरे विरूद्ध चलते ही रहोगे,
28. तो मैं अपके न्याय में तुम्हारे विरूद्ध चलूंगा, और तुम्हारे पापोंके कारण तुम को सातगुणी ताड़ना और भी दूंगा।
29. और तुम को अपके बेटोंऔर बेटियोंका मांस खाना पकेगा।
30. और मैं तुम्हारे पूजा के ऊंचे स्यानोंको ढा दूंगा, और तुम्हारे सूर्य की प्रतिमाएं तोड़ डालूंगा, और तुम्हारी लोयोंको तुम्हारी तोड़ी हुई मूरतोंपर फूंक दूंगा; और मेरी आत्मा को तुम से घृणा हो जाएगी।
31. और मैं तुम्हारे नगरोंको उजाड़ दूंगा, और तुम्हारे पवित्र स्यानोंको उजाड़ दूंगा, और तुम्हारा सुखदायक सुगन्ध ग्रहण न करूंगा।
32. और मैं तुम्हारे देश को सूना कर दूंगा, और तुम्हारे शत्रु जो उस में रहते हैं वे इन बातोंके कारण चकित होंगे।
33. और मैं तुम को जाति जाति के बीच तित्तर-बित्तर करूंगा, और तुम्हारे पीछे पीछे तलवार खीचें रहूंगा; और तुम्हारा देश सुना हो जाएगा, और तुम्हारे नगर उजाड़ हो जाएंगे।
34. तब जितने दिन वह देश सूना पड़ा रहेगा और तुम अपके शत्रुओं के देश में रहोगे उतने दिन वह अपके विश्रमकालोंको मानता रहेगा।
35. और जितने दिन वह सूना पड़ा रहेगा उतने दिन उसको विश्रम रहेगा, अर्यात्‌ जो विश्रम उसको तुम्हारे वहां बसे रहने के समय तुम्हारे विश्रमकालोंमें न मिला होगा वह उसको तब मिलेगा।
36. और तुम में से जो बच रहेंगे और अपके शत्रुओं के देश में होंगे उनके ह्रृदय में मै कायरता उपजाऊंगा; और वे पत्ते के खड़कने से भी भाग जाएंगे, और वे ऐसे भागेंगे जैसे कोई तलवार से भागे, और किसी के बिना पीछा किए भी वे गिर गिर पकेंगे।
37. और जब कोई पीछा करनेवाला न हो तब भी मानोंतलवार के भय से वे एक दूसरे से ठोकर खाकर गिरते जाएंगे, और तुम को अपके शत्रुओं के साम्हने ठहरने की कुछ शक्ति न होगी।
38. तब तुम जाति जाति के बीच पहुंचकर नाश हो जाओगे, और तुम्हारे शत्रुओं की भूमि तुम को खा जाएगी।
39. और तुम में से जो बचे रहेंगे वे अपके शत्रुओं के देशोंमें अपके अधर्म के कारण गल जाएंगे; और अपके पुरखाओं के अधर्म के कामोंके कारण भी वे उन्हीं की नाई गल जाएंगे।
40. तब वे अपके और अपके पितरोंके अधर्म को मान लेंगे, अर्यात्‌ उस विश्वासघात को जो वे मेरा करेंगे, और यह भी मान लेंगे, कि हम यहोवा के विरूद्ध चले थे,
41. इसी कारण वह हमारे विरूद्ध होकर हमें शत्रुओं के देश में ले आया है। यदि उस समय उनका खतनारहित ह्रृदय दब जाएगा और वे उस समय अपके अधर्म के दण्ड को अंगीकार करेगें;
42. तब जो वाचा मैं ने याकूब के संग बान्धी यी उसको मैं स्मरण करूंगा, और जो वाचा मैं ने इसहाक से और जो वाचा मैं ने इब्राहीम से बान्धी यी उनको भी स्मरण करूंगा, और इस देश को भी मैं स्मरण करूंगा।
43. और वह देश उन से रहित होकर सूना पड़ा रहेगा, और उनके बिना सूना रहकर भी अपके विश्रमकालोंको मानता रहेगा; और वे लोग अपके अधर्म के दण्ड को अंगीकार करेगें, इसी कारण से कि उन्होंने मेरी आज्ञाओं का उलंघन किया या, और उनकी आत्माओं को मेरी विधियोंसे घृणा यी।
44. इतने पर भी जब वे अपके शत्रुओं के देश में होंगे, तब मैं उनको इस प्रकार नहीं छोडूंगा, और न उन से ऐसी घृणा करूंगा कि उनका सर्वनाश कर डालूं और अपक्की उस वाचा को तोड़ दूं जो मैं ने उन से बान्धी है; क्योंकि मैं उनका परमेश्वर यहोवा हूं;
45. परन्तु मैं उनके भलाई के लिथे उनके पितरोंसे बान्धी हुई वाचा को स्मरण करूंगा, जिन्हें मै अन्यजातियोंकी आंखोंके साम्हने मिस्र देश से निकालकर लाया कि मैं उनका परमेश्वर ठहरूं; मैं यहोवा हूं।।
46. जो जो विधियां और नियम और व्यवस्या यहोवा ने अपक्की ओर से इस्त्राएलियोंके लिथे सीनै पर्वत पर मूसा के द्वारा ठहराई यीं वे थे ही हैं।।

Chapter 27

1. फिर यहोवा ने मूसा से कहा,
2. इस्त्राएलियोंसे यह कह, कि जब कोई विशेष संकल्प माने, तो संकल्प किए हुए प्राणी तेरे ठहराने के अनुसार यहोवा के होंगे;
3. इसलिथे यदि वह बीस वर्ष वा उस से अधिक और साठ वर्ष से कम अवस्या का पुरूष हो, तो उसके लिथे पवित्रस्यान के शेकेल के अनुसार पचास शेकेल का रूपया ठहरे।
4. और यदि वह स्त्री हो, तो तीस शेकेल ठहरे।
5. फिर यदि उसकी अवस्या पांच वर्ष वा उससे अधिक और बीस वर्ष से कम की हो, तो लड़के के लिथे तो बीस शेकेल, और लड़की के लिथे दस शेकेल ठहरे।
6. और यदि उसकी अवस्या एक महीने वा उस से अधिक और पांच वर्ष से कम की हो, तो लड़के के लिथे तो पांच, और लड़की के लिथे तीन शेकेल ठहरें।
7. फिर यदि उसकी अवस्या साठ वर्ष की वा उस से अधिक हो, और वह पुरूष हो तो उसके लिथे पंद्रह शेकेल, और स्त्री हो तो दस शेकेल ठहरे।
8. परन्तु यदि कोई इतना कंगाल हो कि याजक का ठहराया हुआ दाम न दे सके, तो वह याजक के साम्हने खड़ा किया जाए, और याजक उसकी पूंजी ठहराए, अर्यात्‌ जितना संकल्प करनेवाले से हो सके, याजक उसी के अनुसार ठहराए।।
9. फिर जिन पशुओं में से लोग यहोवा को चढ़ावा चढ़ाते है, यदि ऐसोंमें से कोई संकल्प किया जाए, तो जो पशु कोई यहोवा को दे वह पवित्र ठहरेगा।
10. वह उसे किसी प्रकार से न बदले, न तो वह बुरे की सन्ती अच्छा, और न अच्छे की सन्ती बुरा दे; और यदि वह उस पशु की सन्ती दूसरा पशु दे, तो वह और उसका बदला दोनोंपवित्र ठहरेंगे।
11. और जिन पशुओं में से लोग यहोवा के लिथे चढ़ावा नहीं चढ़ाते ऐसोंमें से यदि वह हो, तो वह उसको याजक के साम्हने खड़ा कर दे,
12. तक याजक पशु के गुण अवगुण दोनोंविचारकर उसका मोल ठहराए; और जितना याजक ठहराए उसका मोल उतना ही ठहरे।
13. और यदि संकल्प करनेवाला उसे किसी प्रकार से छुड़ाना चाहे, तो जो मोल याजक ने ठहराया हो उस में उसका पांचवां भाग और बढ़ाकर दे।।
14. फिर यदि कोई अपना घर यहोवा के लिथे पवित्र ठहराकर संकल्प करे, तो याजक उसके गुण-अवगुण दोनोंविचारकर उसका मोल ठहराए; और जितना याजक ठहराए उसका मोल उतना ही ठहरे।
15. और यदि घर का पवित्र करनेवाला उसे छुड़ाना चाहे, तो जितना रूपया याजक ने उसका मोल ठहराया हो उस में वह पांचवां भाग और बढ़ाकर दे, तब वह घर उसी का रहेगा।।
16. फिर यदि कोई अपक्की निज भूमि का कोई भाग यहोवा के लिथे पवित्र ठहराना चाहे, तो उसका मोल इसके अनुसार ठहरे, कि उस में कितना बीज पकेगा; जितना भूमि में होमेर भर जौ पके उतनी का मोल पचास शेकेल ठहरे।
17. यदि वह अपना खेत जुबली के वर्ष ही में पवित्र ठहराए, तो उसका दाम तेरे ठहराने के अनुसार ठहरे;
18. और यदि वह अपना खेत जुबली के वर्ष के बाद पवित्र ठहराए, तो जितने वर्ष दूसरे जुबली के वर्ष के बाकी रहें उन्हीं के अनुसार याजक उसके लिथे रूपके का हिसाब करे, तब जितना हिसाब में आए उतना याजक के ठहराने से कम हो।
19. और यदि खेत को पवित्र ठहरानेवाला उसे छुड़ाना चाहे, तो जो दाम याजक ने ठहराया हो उस में वह पांचवां भाग और बढ़ाकर दे, तब खेत उसी का रहेगा।
20. और यदि वह खेत को छुड़ाना न चाहे, वा उस ने उसको दूसरे के हाथ बेचा हो, तो खेत आगे को कभी न छुड़ाया जाए;
21. परन्तु जब वह खेत जुबली के वर्ष में छूटे, तब पूरी रीति से अर्पण किए हुए खेत की नाई यहोवा के लिथे पवित्र ठहरे, अर्यात्‌ वह याजक ही की निज भूमि हो जाए।
22. फिर यदि कोई अपना मोल लिया हुआ खेत, जो उसकी निज भूमि के खेतोंमें का न हो, यहोवा के लिथे पवित्र ठहराए,
23. तो याजक जुबली के वर्ष तक का हिसाब करके उस मनुष्य के लिथे जितना ठहराए उतना ही वह यहोवा के लिथे पवित्र जानकर उसी दिन दे दे।
24. और जुबली के वर्ष में वह खेत उसी के अधिक्कारने में जिस से वह मोल लिया गया हो फिर आ जाए, अर्यात्‌ जिसकी वह निज भूमि हो उसी की फिर हो जाए।
25. और जिस जिस वस्तु का मोल याजक ठहराए उसका मोल पवित्रस्यान ही के शेकेल के हिसाब से ठहरे: शेकेल बीस गेरा का ठहरे।।
26. पर घरेलू पशुओं का पहिलौठा, जो यहोवा का पहिलौठा ठहरा है, उसको तो कोई पवित्र न ठहराए; चाहे वह बछड़ा हो, चाहे भेड़ वा बकरी का बच्चा, वह यहोवा ही का है।
27. परन्तु यदि वह अशुद्ध पशु का हो, तो उसका पवित्र ठहरानेवाला उसको याजक के ठहराए हुए मोल के अनुसार उसका पांचवां भाग और बढ़ाकर छुड़ा सकता है; और यदि वह न छुड़ाया जाए, तो याजक के ठहराए हुए मोल पर बेच दिया जाए।।
28. परन्तु अपक्की सारी वस्तुओं में से जो कुछ कोई यहोवा के लिथे अर्पण करे, चाहे मनुष्य हो चाहे पशु, चाहे उसकी निज भूमि का खेत हो, ऐसी कोई अर्पण की हुई वस्तु न तो बेची जाए और न छुड़ाई जाए; जो कुछ अर्पण किया जाए वह यहोवा के लिथे परमपवित्र ठहरे।
29. मनुष्योंमें से जो कोई अर्पण किया जाए, वह छुड़ाया न जाए; निश्चय वह मार डाला जाए।।
30. फिर भूमि की उपज का सारा दशमांश, चाहे वह भूमि का बीज हो चाहे वृझ का फल, वह यहोवा ही का है; वह यहोवा के लिथे पवित्र ठहरे।
31. यदि कोई अपके दशमांश में से कुछ छुड़ाना चाहे, तो पांचवां भाग बढ़ाकर उसको छुड़ाए।
32. और गाय-बैल और भेड़-बकरियां, निदान जो जो पशु गिनने के लिथे लाठी के तले निकल जानेवाले हैं उनका दशमांश, अर्यात्‌ दस दस पीछे एक एक पशु यहोवा के लिथे पवित्र ठहरे।
33. कोई उसके गुण अवगुण न विचारे, और न उसको बदले; और यदि कोई उसको बदल भी ले, तो वह और उसका बदला दोनोंपवित्र ठहरें; और वह कभी छुड़ाया न जाए।।
34. जो आज्ञाएं यहोवा ने इस्त्राएलियोंके लिथे सीनै पर्वत पर मूसा को दी यी वे थे ही हैं।।


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