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1 शमूएल

Chapter 1

1. एप्रैम के पहाड़ी देश के रामतैम सोपीम नाम नगर का निवासी एल्काना नाम पुरूष या, वह एप्रेमी या, और सूप के पुत्र तोहू का परपोता, एलीहू का पोता, और यरोहाम का पुत्र या।
2. और उसके दो पत्नियां यीं; एक का तो नाम हन्ना और दूसरी का पनिन्ना या। और पनिन्ना के तो बालक हुए, परन्तु हन्ना के कोई बालक न हुआ।
3. वह पुरूष प्रति वर्ष अपके नगर से सेनाओं के यहोवा को दण्डवत्‌ करने और मेलबलि चढ़ाने के लिथे शीलो में जाता या; और वहां होप्नी और पीनहास नाम एली के दोनोंपुत्र रहते थे, जो यहोवा के याजक थे।
4. और जब जब एल्काना मेलबलि चढ़ाता या तब तब वह अपक्की पत्नी पनिन्ना को और उसके सब बेटे-बेटियोंको दान दिया करता या;
5. परन्तु हन्ना को वह दूना दान दिया करता या, क्योंकि वह हन्ना से प्रीति रखता या; तौभी यहोवा ने उसकी कोख बन्द कर रखी यी।
6. परन्तु उसकी सौत इस कारण से, कि यहोवा ने उसकी कोख बन्द कर रखी यी, उसे अत्यन्त चिढ़ाकर कुढ़ाती रहती यीं।
7. और वह तो प्रति वर्ष ऐसा ही करता या; और जब हन्ना यहोवा के भवन को जाती यी तब पनिन्ना उसको चिढ़ाती यी। इसलिथे वह रोती और खाना न खाती यी।
8. इसलिथे उसके पति एल्काना ने उस से कहा, हे हन्ना, तू क्योंरोती है? और खाना क्योंनहीं खाती? और मेरा मन क्योंउदास है? क्या तेरे लिथे मैं दस बेटोंसे भी अच्छा नहीं हूं?
9. तब शीलो में खाने और पीने के बाद हन्ना उठी। और यहोवा के मन्दिर के चौखट के एक अलंग के पास एली याजक कुर्सी पर बैठा हुआ या।
10. और यह मन में व्याकुल होकर यहोवा से प्रार्यना करने और बिलख बिलखकर रोने लगी।
11. और उस ने यह मन्नत मानी, कि हे सेनाओं के यहोवा, यदि तू अपक्की दासी के दु:ख पर सचमुच दृष्टि करे, और मेरी सुधि ले, और अपक्की दासी को भूल न जाए, और अपक्की दासी को पुत्र दे, तो मैं उसे उसके जीवन भर के लिथे यहोवा को अर्पण करूंगी, और उसके सिर पर छुरा फिरने न पाएगा।
12. जब वह यहोवा के साम्हने ऐसी प्रार्यना कर रही यी, तब एली उसके मुंह की ओर ताक रहा या।
13. हन्ना मन ही मन कह रही यी; उसके होंठ तो हिलते थे परन्तु उसका शब्द न सुन पड़ता या; इसलिथे एली ने समझा कि वह नशे में है।
14. तब एली ने उस से कहा, तू कब तक नशे में रहेगी? अपना नशा उतार।
15. हन्ना ने कहा, नहीं, हे मेरे प्रभु, मैं तो दु:खिया हूं; मैं ने न तो दाखमधु पिया है और न मदिरा, मैं ने अपके मन की बात खोलकर यहोवा से कही है।
16. अपक्की दासी को ओछी स्त्री न जान जो कुछ मैं ने अब तक कहा है, वह बहुत ही शोकित होने और चिढ़ाई जाने के कारण कहा है।
17. एली ने कहा, कुशल से चक्की जा; इस्राएल का परमेश्वर तुझे मन चाहा वर दे।
18. उसे ने कहा, तेरी दासी तेरी दृष्टि में अनुग्रह पाए। तब वह स्त्री चक्की गई और खाना खाया, और उसका मुंह फिर उदास न रहा।
19. बिहान को वे सवेरे उठ यहोवा को दण्डवत्‌ करके रामा में अपके घर लौट गए। और एलकाना अपक्की स्त्री हन्ना के पास गया, और यहोवा ने उसकी सुधि ली;
20. तब हन्ना गर्भवती हुई और समय पर उसके एक पुत्र हुआ, और उसका नाम शमूएल रखा, क्योंकि वह कहने लगी, मैं ने यहोवा से मांगकर इसे पाया है।
21. फिर एल्काना अपके पूरे घराने समेत यहोवा के साम्हने प्रति वर्ष की मेलबलि चढ़ाने और अपक्की मन्नत पूरी करने के लिथे गया।
22. परन्तु हन्ना अपके पति से यह कहकर घर में रह गई, कि जब बालक का दूध छूट जाएगा तब मैं उसको ले जाऊंगी, कि वह यहोवा को मुंह दिखाए, और वहां सदा बना रहे।
23. उसके पति एलकाना ने उस से कहा, जो तुझे भला लगे वही कर, जब तक तू उसका दूध न छुड़ाए तब तक यहीं ठहरी रह; केवल इतना हो कि यहोवा अपना वचन पूरा करे। इसलिथे वह स्त्री वहीं घर पर रह गई और अपके पुत्र के दूध छुटने के समय तक उसको पिलाती रही।
24. जब उस ने उसका दूध छुड़ाया तब वह उसको संग ले गई, और तीन बछड़े, और एपा भर आटा, और कुप्पी भर दाखमधु भी ले गई, और उस लड़के को शीलो में यहोवा के भवन में पहुंचा दिया; उस समय वह लड़का ही या।
25. और उन्होंने बछड़ा बलि करके बालक को एली के पास पहुंचा दिया।
26. तब हन्ना ने कहा, हे मेरे प्रभु, तेरे जीवन की शपय, हे मेरे प्रभु, मैं वही स्त्री हूं जो तेरे पास यहीं खड़ी होकर यहोवा से प्रार्यना करती यी।
27. यह वही बालक है जिसके लिथे मैं ने प्रार्यना की यी; और यहोवा ने मुझे मुंह मांगा वर दिया है।
28. इसी लिथे मैं भी उसे यहोवा को अर्पण कर देती हूं; कि यह अपके जीवन भर यहोवा ही का बना रहे। तब उस ने वहीं यहोवा को दण्डवत्‌ किया।।

Chapter 2

1. और हन्ना ने प्रार्यना करके कहा, मेरा मन यहोवा के कारण मगन है; मेरा सींग यहोवा के कारण ऊंचा, हुआ है। मेरा मुंह मेरे शत्रुओं के विरूद्ध खुल गया, क्योंकि मैं तेरे किए हुए उद्धार से आनन्दित हूं।
2. यहोवा के तुल्य कोई पवित्र नहीं, क्योंकि तुझ को छोड़ और कोई है ही नहीं; और हमारे परमेश्वर के समान कोई चट्टान नहीं है।।
3. फूलकर अहंकार की ओर बातें मत करो, और अन्धेर की बातें तुम्हारे मुंह से न निकलें; क्योंकि यहोवा ज्ञानी ईश्वर है, और कामोंको तौलनेवाला है।।
4. शूरवीरोंके धनुष टूट गए, और ठोकर खानेवालोंकी कटि में बल का फेंटा कसा गया।।
5. जो पेट भरते थे उन्हें रोटी के लिथे मजदूरी करनी पक्की, जो भूखे थे वे फिर ऐसे न रहे। वरन जो बांफ यी उसके सात हुए, और अनेक बालकोंकी माता घुलती जाती है।
6. यहोवा मारता है और जिलाता भी है; वही अधोलोक में उतारता और उस से निकालता भी है।।
7. यहोवा निर्धन करता है और धनी भी बनाता है, वही नीचा करता और ऊंचा भी करता है।
8. वह कंगाल को धूलि में से उठाता; और दरिद्र को घूरे में से निकाल खड़ा करता है, ताकि उनको अधिपतियोंके संग बिठाए, और महिमायुक्त सिंहासन के अधिक्कारनेी बनाए। क्योंकि पृय्वी के खम्भे यहोवा के हैं, और उस ने उन पर जगत को धरा है।
9. वह अपके भक्तोंके पावोंको सम्भाले रहेगा, परन्तु दुष्ट अन्धिक्कारने में चुपचाप पके रहेंगे; क्योंकि कोई मनुष्य अपके बल के कारण प्रबल न होगा।।
10. जो यहोवा से फगड़ते हैं वे चकनाचूर होंगे; वह उनके विरूद्ध आकाश में गरजेगा। यहोवा पृय्वी की छोर तक न्याय करेगा; और अपके राजा को बल देगा, और अपके अभिषिक्त के सींग को ऊंचा करेगा।।
11. तब एल्काना रामा को अपके घर चला गया। और वह बालक एली याजक के साम्हने यहोवा की सेवा टहल करने लगा।।
12. एली के पुत्र तो लुच्चे थे; उन्होंने यहोवा को न पहिचाना।
13. और याजकोंकी रीति लोगोंके साय यह यी, कि जब कोई मनुष्य मेलबलि चढ़ाता या तब याजक का सेवक मांस पकाने के समय एक त्रिशूली कांटा हाथ में लिथे हुए आकर,
14. उसे कड़ाही, वा हांडी, वा हंडे, वा तसले के भीतर डालता या; और जितना मांस कांटे में लग जाता या उतना याजक आप लेता या। योंही वे शीलो में सारे इस्राएलियोंसे किया करते थे जो वहां आते थे।
15. और चर्बी जलाने से पहिले भी याजक का सेवक आकर मेलबलि चढ़ानेवाले से कहता या, कि कबाब के लिथे याजक को मांस दे; वह तुझ से पका हुआ नहीं, कच्चा ही मांस लेगा।
16. और जब कोई उस से कहता, कि निश्चय चर्बी अभी जलाई जाएगी, तब जितना तेरा जी चाहे उतना ले लेना, तब वह कहता या, नहीं, अभी दे; नहीं तो मैं छीन लूंगा।
17. इसलिथे उन जवानोंका पाप यहोवा की दृष्टि में बहुत भारी हुआ; क्योंकि वे मनुष्य यहोवा की भेंट का तिरस्कार करते थे।।
18. परन्तु शमूएल जो बालक या सनी का एपोद पहिने हुए यहोवा के साम्हने सेवा टहल किया करता या।
19. और उसकी माता प्रति वर्ष उसके लिथे एक छोटा सा बागा बनाकर जब अपके पति के संग प्रति वर्ष की मेलबलि चढ़ाने आती यी तब बागे को उसके पास लाया करती यी।
20. और एली ने एल्काना और उसकी पत्नी को आशीर्वाद देकर कहा, यहोवा इस अर्पण किए हुए बालक की सन्ती जो उसको अर्पण किया गया है तुझ को इस पत्नी के वंश दे; तब वे अपके यहां चले गए।
21. और यहोवा ने हन्ना की सुधि ली, और वह गर्भवती हुई ओर उसके तीन बेटे और दो बेटियां उत्पन्न हुई। और शमूएल बालक यहोवा के संग रहता हुआ बढ़ता गया।
22. और एली तो अति बूढ़ा हो गया या, और उस ने सुना कि मेरे पुत्र सारे इस्राएल से कैसा कैसा व्यवहार करते हैं, वरन मिलापवाले तम्बू के द्वार पर सेवा करनेवाली स्त्रियोंके संग कुकर्म भी करते हैं।
23. तब उस ने उन से कहा, तुम ऐसे ऐसे काम क्योंकरते हो? मैं तो इन सब लोगोंसे तुम्हारे कुकर्मोंकी चर्चा सुना करता हूं।
24. हे मेरे बेटों, ऐसा न करो, क्योंकि जो समाचार मेरे सुनने में आता है वह अच्छा नहीं; तुम तो यहोवा की प्रजा से अपराध कराते हो।
25. यदि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य का अपराध करे, तब तो परमेश्वर उसका न्याय करेगा; परन्तु यदि कोई मनुष्य यहोवा के विरूद्ध पाप करे, तो उसके लिथे कौन बिनती करेगा? तौभी उन्होंने अपके पिता की बात न मानी; क्योंकि यहोवा की इच्छा उन्हें मार डालने की यी।
26. परन्तु शमूएल बालक बढ़ता गया और यहोवा और मनुष्य दोनो उस से प्रसन्न रहते थे।।
27. और परमेश्वर का एक जन एली के पास जाकर उस से कहने लगा, यहोवा योंकहता है, कि जब तेरे मूलपुरूष का घराना मिस्र में फिरौन के घराने के वश में या, तब क्या मैं उस पर निश्चय प्रगट न हुआ या?
28. और क्या मैं ने उसे इस्राएल के सब गोत्रोंमें से इसलिथे चुन नहीं लिया या, कि मेरा याजक होकर मेरी वेदी के ऊपर चढ़ावे चढ़ाए, और धूप जलाए, और मेरे साम्हने एपोद पहिना करे? और क्या मैं ने तेरे मूलपुरूष के घराने को इस्राएलियोंके कुल हव्य न दिए थे?
29. इसलिथे मेरे मेलबलि और अन्नबलि जिनको मैं ने अपके धाम में चढ़ाने की आज्ञा दी है, उन्हें तुम लोग क्योंपांव तले रौंदते हो? और तू क्योंअपके पुत्रोंका आदर मेरे आदर से अधिक करता है, कि तुम लोग मेरी इस्राएली प्रजा की अच्छी से अच्छी भेंटें खा खाके मोटे हो जाओ?
30. इसलिथे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की यह वाणी है, कि मैं ने कहा तो या, कि तेरा घराना और तेरे मूलपुरूष का घराना मेरे साम्हने सदैव चला करेगा; परन्तु अब यहोवा की वाणी यह है, कि यह बात मुझ से दूर हो; क्योंकि जो मेरा आदर करें मैं उनका आदर करूंगा, और जो मुझे तुच्छ जानें वे छोटे समझे जाएंगे।
31. सुन, वे दिन आते हैं, कि मैं तेरा भुजबल और तेरे मूलपुरूष के घराने का भुजबल ऐसा तोड़ डालूंगा, कि तेरे घराने में कोई बूढ़ा होने न पाएगा।
32. इस्राएल का कितना ही कल्याण क्योंन हो, तौभी तुझे मेरे धाम का दु:ख देख पकेगा, और तेरे घराने में कोई कभी बूढ़ा न होने पाएगा।
33. मैं तेरे कुल के सब किसी से तो अपक्की वेदी की सेवा न छीनूंगा, परन्तु तौभी तेरी आंखें देखती रह जाएंगी, और तेरा मन शोकित होगा, और तेरे घर की बढ़ती सब अपक्की पूरी जवानी ही में मर मिटेंगें।
34. और मेरी इस बात का चिन्ह वह विपत्ति होगी जो होप्नी और पीनहास नाम तेरे दोनोंपुत्रोंपर पकेगी; अर्यात्‌ वे दोनो के दोनोंएक ही दिन मर जाएंगे।
35. और मैं अपके लिथे एक विश्वासयोग्य याजक ठहराऊंगा, जो मेरे ह्रृदय और मन की इच्छा के अनुसार किया करेगा, और मैं उसका घर बसाऊंगा और स्यिर करूंगा, और वह मेरे अभिषिक्त के आगे सब दिन चला फिरा करेगा।
36. और ऐसा होगा कि जो कोई तेरे घराने में बचा रहेगा वह उसी के पास जाकर एक छोटे से टुकड़े चान्दी के वा एक रोटी के लिथे दण्डवत्‌ करके कहेगा, याजक के किसी काम में मुझे लगा, जिस से मुझे एक टुकड़ा रोटी मिले।।

Chapter 3

1. और वह बालक शमूएल एली के साम्हने यहोवा की सेवा टहल करता या। और उन दिनोंमें यहोवा का वचन दुर्लभ या; और दर्शन कम मिलता या।
2. और उस समय ऐसा हुआ कि (एली की आंखे तो धुंघली होने लगी यीं और उसे न सूफ पड़ता या) जब वह अपके स्यान में लेटा हुआ या,
3. और परमेश्वर का दीपक अब तक बुफा नहीं या, और शमूएल यहेवा के मन्दिर में जंहा परमेश्वर का सन्दूक या लेटा या;
4. तब यहोवा ने शमूएल को पुकारा; और उस ने कहा, क्या आज्ञा!
5. तब उस ने एली के पास दौड़कर कहा, क्या आज्ञा, तू ने तो मुझे पुकारा है। वह बोला, मैं ने नहीं पुकारा; फिर जा लेट रह। तो वह जाकर लेट गया।
6. तब यहोवा ने फिर पुकार के कहा, हे शमूएल! शमूएल उठकर एली के पास गया, और कहा, क्या आज्ञा, तू ने तो मुझे पुकारा है। उस ने कहा, हे मेरे बेटे, मैं ने नहीं पुकारा; फिर जा लेट रह।
7. उस समय तक तो शमूएल यहोवा को नहीं पहचानता या, और न तो यहोवा का वचन ही उस पर प्रगट हुआ या।
8. फिर तीसरी बार यहोवा ने शमूएल को पुकारा। और वह उठके एली के पास गया, और कहा, क्या आज्ञा, तू ने तो मुझे पुकारा है। तब एली ने समझ लिया कि इस बालक को यहोवा ने पुकारा है।
9. इसलिथे एली ने शमूएल से कहा, जा लेट रहे; और यदि वह तुझे फिर पुकारे, तो तू कहना, कि हे यहोवा, कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है तब शमूएल अपके स्यान पर जाकर लेट गया।
10. तब यहोवा आ खड़ा हुआ, और पहिले की नाईं पुकारा, शमूएल! शमूएल! शमूएल ने कहा, कह, क्योंकि तेरा दास सुन रहा है।
11. यहोवा ने शमूएल से कहा, सुन, मैं इस्राएल में एक काम करने पर हूं, जिससे सब सुननेवालोंपर बड़ा सन्नाटा छा जाएगा।
12. उस दिन मैं एली के विरूद्ध वह सब कुछ पूरा करूंगा जो मैं ने उसके घराने के विषय में कहा, उसे आरम्भ से अन्त तक पूरा करूंगा।
13. क्योंकि मैं तो उसको यह कहकर जता चुका हूं, कि मैं उस अधर्म का दण्ड जिसे वह जानता है सदा के लिथे उसके घर का न्याय करूंगा, क्योंकि उसके पुत्र आप शापित हुए हैं, और उस ने उन्हें नहीं रोका।
14. इस कारण मैं ने एली के घराने के विषय यह शपय खाई, कि एली के घराने के अधर्म का प्रायश्चित न तो मेलबलि से कभी होगा, और न अन्नबलि से।
15. और शमूएल भोर तक लेटा रहा; तब उस ने यहोवा के भवन के किवाड़ोंको खोला। और शमूएल एली को उस दर्शन की बातें बतानें से डरा।
16. तब एली ने शमूएल को पुकारकर कहा, हे मेरे बेटे, शमूएल! वह बोला, क्या आज्ञा।
17. तब उस ने पूछा, वह कौन सी बात है जो यहोवा ने तुझ से कही है? उसे मुझ से न छिपा। जो कुछ उस ने तुझ से कहा हो यदि तू उस में से कुछ भी मुझ से छिपाए, तो परमेश्वर तुझ से वैसा ही वरन उस से भी अधिक करे।
18. तब शमूएल ने उसको रत्ती रत्ती बातें कह सुनाईं, और कुछ भी न छिपा रखा। वह बोला, वह तो यहोवा है; जो कुछ वह भला जाने वही करें।
19. और शमूएल बड़ा होता गया, और यहोवा उसके संग रहा, और उस ने उसकी कोई भी बात निष्फल होने नहीं दी।
20. और दान से बेर्शेबा तक के रहनेवाले सारे इस्राएलियोंने जान लिया कि शमूएल यहोवा का नबी होने के लिथे नियुक्त किया गया है।
21. और यहोवा ने शीलो में फिर दर्शन दिया, क्योंकि यहोवा ने अपके आप को शीलो में शमूएल पर अपके वचन के द्वारा प्रगट किया।।

Chapter 4

1. और शमूएल का वचन सारे इस्राएल के पास पहुंचा। और इस्राएली पलिश्तियोंसे युद्ध करने को निकले; और उन्होंने तो एबेनेजेर के आस-पास छावनी डाली, और पलिश्तियोंने अपेक में छावनी डाली।
2. तब पलिश्तियोंने इस्राएल के विरूद्ध पांति बान्धी, और जब घमासान युद्ध होने लगा तब इस्राएली पलिश्तियोंसे हार एग, और उन्होंने कोई चार हजार इस्राएली सेना के पुरूषोंको मैदान ही में मार डाला।
3. और जब वे लोग छावनी में लौट आए, तब इस्राएल के वृद्ध लोग कहने लगे, कि यहोवा ने आज हमें पलिश्तियोंसे क्योंहरवा दिया है? आओ, हम यहोवा की वाचा का सन्दूक शीलो से मांग ले आएं, कि वह हमारे बीच में आकर हमें शत्रुओं के हाथ से बचाए।
4. तब उन लोगोंने शीलोंमें भेजकर वहां से करूबोंके ऊपर विराजनेवाले सेनाओं के यहोवा की वाचा का सन्दूक मंगा लिया; और परमेश्वर की वाचा के सन्दूक के साय एली के दोनोंपुत्र, होप्नी और पिनहास भी वहां थे।
5. जब यहोवा की वाचा का सन्दूक छावनी में पहुंचा, तब सारे इस्राएली इतने बल से ललकार उठे, कि भूमि गूंज उठी।
6. इस ललकार का शब्द सुनकर पलिश्तियोंने पूछा, इब्रियोंकी छावनी में ऐसी बड़ी ललकार का क्या कारण है? तब उन्होंने जान लिया, कि यहोवा का सन्दूक छावनी में आया है।
7. तब पलिश्ती डरकर कहने लगे, उस छावनी में परमेश्वर आ गया है। फिर उन्होंने कहा, हाथ! हम पर ऐसी बात पहिले नहीं हुई यी।
8. हाथ! ऐसे महाप्रतापी देवताओं के हाथ से हम को कौन बचाएगा? थे तो वे ही देवता हैं जिन्होंने मिस्रियोंपर जंगल में सब प्रकार की विपत्तियां डाली यीं।
9. हे पलिश्तियों, तुम हियाव बान्धो, और पुरूषार्य जगाओ, कहीं ऐसा न हो कि जैसे इब्री तुम्हारे अधीन हो गए वैसे तुम भी उनके अधीन हो जाओ; पुरूषार्य करके संग्राम करो।
10. तब पलिश्ती लड़ाई के मैदान में टूट पके, और इस्राएली हारकर अपके अपके डेरे को भागने लगे; और ऐसा अत्यन्त संहार हुआ, कि तीस हजार इस्राएली पैदल खेत आए।
11. और परमेश्वर का सन्दूक छीन लिया गया; और एली के दोनो पुत्र, होप्नी और पीनहास, भी मारे गए।
12. तब एक बिन्यामीनी मनुष्य ने सेना में से दौड़कर उसी दिन अपके वस्त्र फाड़े और सिर पर मिट्टी डाले हुए शीलो में पहुंचा।
13. वह जब पहुंचा उस समय एली, जिसका मन परमेश्वर के सन्दूक की चिन्ता से यरयरा रहा या, वह मार्ग के किनारे कुर्सी पर बैठा बाट जोह रहा या। और ज्योंही उस मनुष्य ने नगर में पहुंचकर वह समाचार दिया त्योंही सारा नगर चिल्ला उठा।
14. चिल्लाने का शब्द सुनकर एली ने पूछा, ऐसे हुल्लड़ और हाहाकार मचने का क्या कारण है? और उस मनुष्य ने फट जाकर एली को पूरा हाल सुनाया।
15. एल तो अट्ठानवे वर्ष का या, और उसकी आंखें धुन्धली पड़ गई यीं, और उसे कुछ सूफता न या।
16. उस मनुष्य ने एली से कहा, मैं वही हूं जो सेना में से आया हूं; और मैं सेना से आज ही भाग आया। वह बोला, हे मेरे बेटे, क्या समाचार है?
17. उस समाचार देनेवाले ने उत्तर दिया, कि इस्राएली पलिश्तियोंके साम्हने से भाग गए हैं, और लोगोंका बड़ा भयानक संहार भी हुआ है, और तेरे दोनोंपुत्र होप्नी और पीनहास भी मारे गए, और परमेश्वर का सन्दूक भी छीन लिया गया है।
18. ज्योंही उस ने परमेश्वर के सन्दूक का नाम लिया त्योंही एली फाटक के पास कुर्सी पर से पछाड़ खाकर गिर पड़ा; और बूढ़े और भारी होने के कारण उसकी गर्दन टूट गई, और वह मर गया। उस ने तो इस्राएलियोंका न्याय चालीस वर्ष तक किया या।
19. उसकी बहू पीनहास की स्त्री गर्भवती यी, और उसका समय समीप या। और जब उस ने परमेश्वर के सन्दूक के छीन लिए जाने, और अपके ससुर और पति के मरने का समाचार सुना, तब उसको जच्चा का दर्द उठा, और वह दुहर गई, और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ।
20. उसके मरते मरते उन स्त्रियोंने जो उसके आस पास खड़ी यीं उस से कहा, मत डर, क्योंकि तेरे प्रत्र उत्पन्न हुआ है। परन्तु उस ने कुद उत्तर न दिया, और न कुछ ध्यान दिया।
21. और परमेश्वर के सन्दूक के छीन लिए जाने और अपके ससुर और पति के कारण उस ने यह कहकर उस बालक का नाम ईकाबोद रखा, कि इस्राएल में से महिमा उठ गई!
22. फिर उस ने कहा, इस्राएल में से महिमा उठ गई है, क्योंकि परमेश्वर का सन्दूक छीन लिया गया है।।

Chapter 5

1. और पलिश्तियोंने परमेश्वर का सन्दूक एबनेजेर से उठाकर अशदोद में पहुंचा दिया;
2. फिर पलिश्तियोंने परमेश्वर के सन्दूक को उठाकर दागोन के मन्दिर में पहुंचाकर दागोन के पास धर दिया।
3. बिहान को अशदोदियोंने तड़के उठकर क्या देखा, कि दागोन यहोवा के सन्दूक के साम्हने औंधे मूंह भूमि पर गिरा पड़ा है। तब उन्होंने दागोन को उठाकर उसी के स्यान पर फिर खड़ा किया।
4. फिर बिहान को जब वे तड़के उठे, तब क्या देखा, कि दागोन यहोवा के सन्दूक के साम्हने औंधे मुंह भूमि पर गिरा पड़ा है; और दागोन का सिर और दोनो हथेलियां डेवढ़ी पर कटी हुई पक्की हैं; निदान दागोन का केवल धड़ समूचा रह गया।
5. इस कारण आज के दिन तक भी दागोन के पुजारी और जितने दागोन के मन्दिर में जाते हैं, वे अशदोद में दागोन कीे डेवढ़ी पर पांव नहीं धरते।।
6. तब यहोवा का हाथ अशदोदियोंके ऊपर भारी पड़ा, और वह उन्हें नाश करने लगा; और उस ने अशदोद और उसके आस पास के लोगोंके गिलटियां निकालीं।
7. यह हाल देखकर अशदोद के लोगोंने कहा, इस्राएल के देवता का सन्दूक हमारे मध्य रहने नहीं पाएगा; क्योंकि उसका हाथ हम पर और हमारे देवता दागोन पर कठोरता के साय पड़ा है।
8. तब उन्होंने पलिश्तियोंके सब सरदारोंको बुलवा भेजा, और उन से पूछा, हम इस्राएल के देवता के सन्दूक से क्या करें? वे बोले, इस्राएल के परमेश्वर के सन्दूक को घूमाकर गत में पहुंचाया जाए। तो उन्होंने इस्राएल के परमेश्वर के सन्दूक को घुमाकर गत में पहुंचा दिया।
9. जब वे उसको घुमाकर वहां पहुंचे, तो यूं हुआ कि यहोवा का हाथ उस नगर के विरूद्ध ऐसा उठा कि उस में अत्यन्त हलचल मच गई; ओर उस ने छोटे से बड़े तब उस नगर के सब लोगोंको मारा, और उनके गिलटियां निकलने लगीं।
10. तब उन्होंने परमेश्वर का सन्दूक एक्रोन को भेजा और ज्योंही परमेश्वर का सन्दूक एक्रोन में पहुंचा त्योंही एक्रोनी यह कहकर चिल्लाने लगे, कि इस्राएल के देवता का सन्दूक घुमाकर हमारे पास इसलिथे पहुंचाया गया है, कि हम और हमारे लोगोंको मरवा डाले।
11. तब उन्होंने पलिश्तियोंके सब सरदारोंको इकट्ठा किया, और उन से कहा, इस्राएल के देवता के सन्दूक को निकाल दो, कि वह अपेन स्यान पर लौट जाए, और हम को और हमारे लोगोंको मार डालने न पाए। उस समस्त नगर में तो मृत्यु के भय की हलचल मच रही यी, और परमेश्वर का हाथ वहां बहुत भारी पड़ा या।
12. और जो मनुष्य न मरे वे भी गिलटियोंके मारे पके रहे; और नगर की चिल्लाहट आकाश तक पहुंची।।

Chapter 6

1. यहोवा का सन्दूक पलिश्तियोंके देश में सात महीने तक रहा।
2. तब पलिश्तियोंने याजकोंऔर भावी करनेवालोंको बुलाकर पूछा, कि यहोवा के सन्दूक से हम क्या करें? हमें बताओं की क्या प्रायश्चित देकर हम उसे उसके स्यान पर भेजें?
3. वे बोले, यदि तुम इस्राएल के देवता का सन्दूक वहां भेजा, जो उसे वैसे ही न भेजना; उसकी हानि भरने के लिथे अवश्य ही दोषबलि देना। तब तुम चंगे हो जाओगे, और तुम जान लोगोंकि उसका हाथ तुम पर से क्योंनहीं उठाया गया।
4. उन्होंने पूछा, हम उसकी हानि भरने के लिथे कोन सा दोषबलि दें? वे बोले, पलिश्ती सरदारोंकी गिनती के अनुसार सोने की पांच गिलटियां, और सोने के पांच चूहे; क्योंकि तुम सब और तुम्हारे सरदार दोनोंएक ही रोग से ग्रसित हो।
5. तो तुम अपक्की गिलटियोंऔर अपके देश के नाश करनेवाले चूहोंकी भी मूरतें बनाकर इस्राएल के देवता की महिमा मानो; सम्भव है वह अपना हाथ तुम पर से और तुम्हारे देवताओं और देश पर से उठा ले।
6. तुम अपके मन क्योंऐसे हठीले करते हो जैसे मिस्रियोंऔर फिरौन ने अपके मन हठीले कर दिए थे? जब उस ने उनके मध्य में अचम्भित काम किए, तब क्या उन्होंने उन लोगोंको जाने न दिया, और क्या वे चले न गए?
7. सो अब तुम एक नई गाड़ी बनाओ, और ऐसी दो दुधार गाथें लो जो सुए तले न आई हों, और उन गायोंको उस गाड़ी में जोतकर उनके बच्चोंको उनके पास से लेकर घर को लौटा दो।
8. तब यहोवा का सन्दूक लेकर उस गाड़ी पर धर दो, और साने की जो वस्तुएं तुम उसकी हाति भरने के लिथे दोषबलि की रीति से दोगे उन्हें दूसरे सन्दूक में घर के उसके पास रख दो। फिर उसे रवाना कर दो कि चक्की जाए।
9. और देखते रहना; यदि वह अपके देश के मार्ग से होकर बेतशेमेश को चले, तो जानो कि हमारी यह बड़ी हानि उसी की ओर से हुई: और यदि नहीं, तो हम को निश्चय होगा कि यह मार हम पर उसकी ओर से नहीं, परन्तु संयोग ही से हुई।
10. उन मनुष्योंने वैसा ही किया; अर्यात्‌ दो दुधार गाथें लेकर उस गाड़ी में जोतीं, और उनके बच्चोंको घर में बन्द कर दिया।
11. और यहोवा का सन्दूक, और दूसरा सन्दूक, और सोने के चूहोंऔर अपक्की गिलटियोंकी मूरतोंको गाड़ी पर रख दिया।
12. तब गायोंने बेतशमेश को सीधा मार्ग लिया; वे सड़क ही सड़क बम्बाती हुई चक्की गई, और न दहिने मुड़ी और न बाथें; और पलिश्तियोंके सरदार उनके पीछे पीछे बेतशेमेश के सिवाने तक गए।
13. और बेतशेमेश के लोग तराई में गेहूं काट रहे थे; और जब उन्होंने आंखें उठाकर सन्दूक को देखा, तब उसके देखने से आनन्दित हुए।
14. और गाड़ी यहोशू नाम एक बेतशेमेशी के खेत में जाकर वहां ठहर गई, जहां एक बड़ा पत्यर या। तब उन्होंने गाड़ी की लकड़ी को चीरा और गायोंको होमबलि करके यहोवा के लिथे चढ़ाया।
15. और लेवीयोंने यहोवा के सन्दूक को उस सन्दूक के समेत जो साय या, जिस में सोने की वस्तुएं यी, उतारके उस बड़े पत्यर पर धर दिया; और बेतशेमेश के लोगोंने उसी दिन यहोवा के लिथे होमबलि और मेलबलि चढ़ाए।
16. यह देखकर पलिश्तियोंके पांचोंसरदार उसी दिन एक्रोन को लौट गए।।
17. सोने की गिलटियां जो पलिश्तियोंने यहोवा की हाति भरने के लिथे दोषबलि करके दे दी यी उन में से एक तो अशदोद की ओर से, एक अज्जा, एक अश्कलोन, एक गत, और एक एक्रोन की ओर से दी गई यी।
18. और वह सोने के चूहे, क्या शहरपनाहवाले नगर, क्या बिना शहरपनाह के गांव, वरन जिस बड़े पत्यर पर यहोवा का सन्दूक धरा गया या वहां पलिश्तियोंके पांचोंसरदारोंके अधिक्कारने तक की सब बस्तियोंकी गिनती के अनुसार दिए गए। वह पत्यर तो आज तक बेतशेमेशी यहोशू के खेत में है।
19. फिर इस कारण से कि बेतशेमेश के लोगोंने यहोवा के सन्दूक के भीतर फांका या उस ने उन में से सत्तर मनुष्य, और फिर पचास हजार मनुष्य मार डाले; और वहां के लोगोंने इसलिथे विलाप किया कि यहोवा ने लोगोंका बड़ा ही संहार किया या।
20. तब बेतशेमेश के लोग कहने लगे, इस पवित्र परमेश्वर यहोवा के साम्हने कौन खड़ा रह सकता है? और वह हमारे पास से किस के पास चला जाए?
21. तब उन्होंने किर्यत्यारीम के निवासियोंके पास योंकहने को दूत भेजे, कि पलिश्तियोंने यहोवा का सन्दूक लौटा दिया है; इसलिथे तुम आकर उसे अपके यहां ले जाओ।।

Chapter 7

1. तब किर्यत्यारीम के लोगोंने जाकर यहोवा के सन्दूक को उठाया, और अबीनादाब के घर में जो टीले पर बना या रखा, और यहोवा के सन्दूक की रझा करने के लिथे अबीनादाब के पुत्र एलीआजार को पवित्र किया।।
2. किर्यत्यारीम में रहते रहते सन्दूक को बहुत दिन हुए, अर्यात्‌ बीस वर्ष बीत गए, और इस्राएल का सारा घराना विलाप करता हुआ यहोवा के पीछे चलने लगा।
3. तब शमूएल ने इस्राएल के सारे घराने से कहा, यदि तुम अपके पूर्ण मन से यहोवा की ओर फिरे हो, तो पराए देवताओं और अश्तोरेत देवियोंको अपके बीच में से दूर करो, और यहोवा की ओर अपना मन लगाकर केवल उसी की उपासना करो, तब वह तुम्हें पलिश्तियोंके हाथ से छुड़ाएगा।
4. तब इस्राएलियोंने बाल देवताओं और अशतोरेत देवियोंको दूर किया, और केवल यहोवा ही की उपासना करने लगे।।
5. फिर शमूएल ने कहा, सब इस्राएलियोंको मिस्पा में इकट्ठा करो, और मैं तुम्हारे लिथे यहोवा से प्रार्यना करूंगा।
6. तब वे मिस्पा में इकट्ठे हुए, और जल भरके यहोवा के साम्हने उंडेल दिया, और उस दिन उपवास किया, और वहां कहने लगे, कि हम ने यहोवा के विरूद्ध पाप किया है। और शमूएल ने मिस्पा में इस्राएलियोंका न्याय किया।
7. जब पलिश्तियोंने सुना कि इस्राएली मिस्पा में इकट्ठे हुए हैं, तब उनके सरदारोंने इस्राएलियोंपर चढ़ाई की। यह सुनकर इस्राएली पलिश्तियोंसे भयभीत हुए।
8. और इस्राएलियोंने शमूएल से कहा, हमारे लिथे हमारे परमेश्वर यहोवा की दोहाई देना न छोड़, जिस से वह हम को पलिश्तियोंके हाथ से बचाए।
9. तब शमूएल ने एक दूधपिउवा मेम्ना ले सर्वांग होमबलि करके यहोवा को चढ़ाया; और शमूएल ने इस्राएलियोंके लिथे यहोवा की दोहाई दी, और यहोवा ने उसकी सुन ली।
10. और जिस समय शमूएल होमबलि हो चढ़ा रहा या उस समय पलिश्ती इस्राएलियोंके संग युद्ध करने के लिथे निकट आ गए, तब उसी दिन यहोवा ने पलिश्तियोंके ऊपर बादल को बड़े कड़क के साय गरजाकर उन्हें घबरा दिया; और वे इस्राएलियोंसे हार गए।
11. तब इस्राएली पुरूषोंने मिस्पा से निकलकर पलिश्तियोंको खदेड़ा, और उन्हें बेतकर के नीचे तक मारते चले गए।
12. तब शमूएल ने एक पत्यर लेकर मिस्पा और शेन के बीच में खड़ा किया, और यह कहकर उसका नाम एबेनेजेर रखा, कि यहां तक यहोवा ने हमारी सहाथता की है।
13. तब पलिश्ती दब गए, और इस्राएलियोंके देश में फिर न आए, और शमूएल के जीवन भर यहोवा का हाथ पलिश्तियोंके विरूद्ध बना रहा।
14. और एक्रोन और गत तक जितने नगर पलिश्तियोंने इस्राएलियोंके हाथ से छीन लिए थे, वे फिर इस्राएलियोंके वश में आ गए; और उनका देश भी इस्राएलियोंने पलिश्तियोंके हाथ से छुड़ाया। और इस्राएलियोंऔर एमोरियोंके बीच भी सन्धि हो गई।
15. और शमूएल जीवन भर इस्राएलियोंका न्याय करता रहा।
16. वह प्रति वर्ष बेतेल और गिलगाल और मिस्पा में घूम-घूमकर उन सब स्यानोंमें इस्राएलियोंका न्याय करता या।
17. तब वह रामा में जहां उसका घर या लौट आया, और वहां भी इस्राएलियोंका न्याय करता या, और वहां उस ने यहोवा के लिथे एक वेदी बनाई।।

Chapter 8

1. जब शमूएल बूढ़ा हुआ, तब उस ने अपके पुत्रोंको इस्राएलियोंपर न्यायी ठहराया।
2. उसके जेठे पुत्र का नाम योएल, और दूसरे का नाम अबिय्याह या; थे बेर्शेबा में न्याय करते थे।
3. परन्तु उसके पुत्र उसकी राह पर न चले, अर्यात्‌ लालच में आकर घूस लेते और न्याय बिगाड़ते थे।।
4. तब सब इस्राएली वृद्ध लोग इकट्ठे होकर रामा में शमूएल के पास जाकर
5. उस से कहने लगे, सुन, तू तो अब बूढ़ा हो गया, और तेरे पुत्र तेरी राह पर नहीं चलते; अब हम पर न्याय करने के लिथे सब जातियोंकी रीति के अनुसार हमारे लिथे एक राजा नियुक्त कर दे।
6. परन्तु जो बात उन्होंने कही, कि हम पर न्याय करने के लिथे हमारे ऊपर राजा नियुक्त कर दे, यह बात शमूएल को बुरी लगी। और शमूएल ने यहोवा से प्रार्यना की।
7. और यहोवा ने शमूएल से कहा, वे लोग जो कुछ तुझ से कहें उसे मान ले; क्योंकि उन्होंने तुझ को नहीं परन्तु मुझी को निकम्मा जाना है, कि मैं उनका राजा न रहूं।
8. जैसे जैसे काम वे उस दिन से, जब से मैं उन्हें मिस्र से निकाल लाया, आज के दिन तक करते आए हैं, कि मुझ को त्यागकर पराए, देवताओं की उपासना करते आए हैं, वैसे ही वे तुझ से भी करते हैं।
9. इसलिथे अब तू उनकी बात मान; तौभी तू गम्भीरता से उनको भली भांति समझा दे, और उनको बतला भी दे कि जो राजा उन पर राज्य करेगा उसका व्यवहार किस प्रकार होगा।।
10. और शमूएल ने उन लोगोंको जो उस से राजा चाहते थे यहोवा की सब बातें कह सुनाईं।
11. और उस ने कहा जो राजा तुम पर राज्य करेगा उसकी यह चाल होगी, अर्यात्‌ वह तुम्हारे पुत्रोंको लेकर अपके रयोंऔर घोड़ोंके काम पर नौकर रखेगा, और वे उसके रयोंके आगे आगे दौड़ा करेंगे;
12. फिर वह उनको हजार हजार और पचास पचास के ऊपर प्रधान बनाएगा, और कितनोंसे वह अपके हल जुतवाएगा, और अपके खेत कटवाएगा, और अपके लिथे युद्ध के हयियार और रयोंके साज बनवाएगा।
13. फिर वह तुम्हारी बेटियोंको लेकर उन से सुगन्धद्रव्य और रसोई और रोटियां बनवाएगा।
14. फिर वह तुम्हारे खेतोंऔर दाख और जलपाई की बारियोंमें से जो अच्छी से अच्छी होंगे उन्हें ले लेकर अपके कर्मचारियोंको देगा।
15. फिर वह तुम्हारे बीच और दाख की बारियोंको दसवां अंश ले लेकर अपके हाकिमोंऔर कर्मचारियोंको देगा।
16. फिर वह तुम्हारे दास-दासिक्कों, और तुम्हारे अच्छे से अच्छे जवानोंको, और तुम्हारे गदहोंको भी लेकर अपके काम में लगाएगा।
17. वह तुम्हारी भेड़-बकरियोंका भी दसवां अंश लेगा; निदान तुम लोग उस के दास बन जाओगे।
18. और उस दिन तुम अपके उस चुने हुए राजा के कारण दोहाई दोगे, परन्तु यहोवा उस समय तुम्हारी न सुनेगा।
19. तौभी उन लोगोंने शमूएल की बात न सुनी; और कहने लगे, नहीं! हम निश्चय अपके लिथे राजा चाहते हैं,
20. जिस से हम भी और सब जातियोंके समान हो जाएं, और हमारा राजा हमारा न्याय करे, और हमारे आगे आगे चलकर हमारी ओर से युद्ध किया करे।
21. लोगोंकी थे सब बातें सुनकर शमूएल ने यहोवा के कानोंतक पहुंचाया।
22. यहोवा ने शमूएल से कहा, उनकी बात मानकर उनके लिथे राजा ठहरा दे। तब शमूएल ने इस्राएली मनुष्योंसे कहा, तुम अब अपके अपके नगर को चले जाओ।।

Chapter 9

1. बिन्यामीन के गोत्र में कीश नाम का एक पुरूष या, जो अपीह के पुत्र बकोरत का परपोता, और सरोर का पोता, और अबीएल का पुत्र या; वह एक बिन्यामीनी पुरूष का पुत्र और बड़ा शक्तिशाली सूरमा या।
2. उसके शाऊल नाम एक जवान पुत्र या, जो सुन्दर या, और इस्राएलियोंमें कोई उस से बढ़कर सुन्दर न या; वह इतना लम्बा या कि दूसरे लोग उसके कान्धे ही तक आते थे।
3. जब शाऊल के पिता कीश की गदहियां खो गईं, तब कीश ने अपके पुत्र शाऊल से कहा, एक सेवक को अपके साय ले जा और गदहियोंको ढूंढ ला।
4. तब वह एप्रैम के पहाड़ी देश और शलीशा देश होते हुए गया, परन्तु उन्हें न पाया। तब वे शालीम नाम देश भी होकर गए, और वहां भी न पाया। फिर बिन्यामीन के देश में गए, परन्तु गदहियां न मिलीं।
5. जब वे सूफ नाम देश में आए, तब शाऊल ने अपके साय के सेवक से कहा, आ, हम लौट चलें, ऐसा न हो कि मेरा पिता गदहियोंकी चिन्ता छोड़कर हमारी चिन्ता करने लगे।
6. उस ने उस से कहा, सुन, इस नगर में परमेश्वर का एक जन है जिसका बड़ा आदरमान होता है; और जो कुछ वह कहता है वह बिना पूरा हुए नहीं रहता। अब हम उधर चलें, सम्भव है वह हम को हमार मार्ग बताए कि किधर जाएं।
7. शाऊल ने अपके सेवक से कहा, सुन, यदि हम उस पुरूष के पास चलें तो उसके लिथे क्या ले चलें? देख, हमारी यैलियोंमें की रोटी चुक गई है और भेंट के योग्य कोई वस्तु है ही नहीं, जो हम परमेश्वर के उस जन को दें। हमारे पास क्या है?
8. सेवक ने फिर शाऊल से कहा, कि मेरे पास तो एके शेकेल चान्दी की चौयाई है, वही मैं परमेश्वर के जन को दूंगा, कि वह हम को बताए कि किधर जाएं।
9. पूर्वकाल में तो इस्राएल में जब कोई ऐसा कहता या, कि चलो, हम दर्शी के पास चलें; क्योंकि जो आज कल नबी कहलाता है वह पूर्वकाल में दर्शी कहलाता या।
10. तब शाऊल ने अपके सेवक से कहा, तू ने भला कहा है; हम चलें। सो वे उस नगर को चले जहां परमेश्वर का जन या।
11. उस नगर की चढ़ाई पर चढ़ते समय उन्हें कई एक लड़कियां मिलीं जो पानी भरने को निकली यीं; उन्होंने उन से पूछा, क्या दर्शी यहां है?
12. उन्होंने उत्तर दिया, कि है; देखो, वह तुम्हारे आगे है। अब फुर्ती करो; आज ऊंचे स्यान पर लोगोंका यज्ञ है, इसलिथे वह आज नगर में आया हुआ है।
13. ज्योंही तुम नगर में पहुंचो त्योंही वह तुम को ऊंचे स्यान पर खाना खाने को जाने से पहिले मिलेगा; क्योंकि जब तक वह न पहुंचे तब तक लोग भोजन करेंगे, इसलिथे कि यज्ञ के विषय में वही धन्यवाद करता; तब उसके पीछे ही न्योतहरी भोजन करते हैं। इसलिथे तुम अभी चढ़ जाओ, इसी समय वह तुम्हें मिलेगा।
14. वे नगर में चढ़ गए और ज्योंही नगर के भीतर पहुंचे त्योंही शमूएल ऊंचे स्यान पर चढ़ने की मनसा से उनके साम्हने आ रहा या।।
15. शाऊल के आने से एक दिन पहिले यहोवा ने शमूएल को यह चिता रखा या,
16. कि कल इसी समय मैं तेरे पास बिन्यामीन के देश से एक पुरूश को भेजूंगा, उसी को तू मेरी इस्राएली प्रजा के ऊपर प्रधान होने के लिथे अभिषेक करता। और वह मेरी प्रजा को पलिश्तियोंके हाथ से छुड़ाएगा; क्योंकि मैं ने अपक्की प्रजा पर कृपा दृष्टि की है, इसलिथे कि उनकी चिल्लाहट मेरे पास पंहुची है।
17. फिर जब शमूएल को शाऊल देख पड़ा, तब यहोवा ने उस से कहा, जिस पुरूष की चर्चा मैं ने तु से की यी वह यही है; मेरी प्रजा पर यही अधिक्कारने करेगा।
18. तब शाऊल फाटक में शमूएल के निकट जाकर कहने लगा, मुझे बता कि दर्शी का घर कहां है?
19. उस ने कहा, दर्शी तो मैं हूं; मेरे आगे आगे ऊंचे स्यान पर चढ़ जा, क्योंकि आज के दिन तुम मेरे साय भोरन खाओगे, और बिहान को जो कुछ तेरे मन में हो सब कुछ मैं तुझे बताकर विदा करूंगा।
20. और तेरी गदहियां जो तीन दिन तुए खो गई यीं उनकी कुछ भी चिन्ता न कर, क्योंकि वे मिल गईं। और इस्राएल में जो कुछ मनभाऊ है वह किस का है? क्या वह तेरा और तेरे पिता के सारे घराने का नहीं है?
21. शाऊल ने उत्तर देकर कहा, क्या मैं बिन्यामीनी, अर्यात्‌ सब इस्राएली गोत्रोंमें से छोटे गोत्र का नहीं हूं? और क्या मेरा कुल बिन्यामीनी के गोत्र के सारे कुलोंमें से छोटा नहीं है? इसलिथे तू मुझ से ऐसी बातें क्योंकहता है?
22. तब शमूएल ने शाऊल और उसके सेवक को कोठरी में पहुंचाकर न्योताहारी, जो लगभग तीस जन थे, उनके साय मुख्य स्यान पर बैठा दिया।
23. फिर शमूएल ने रसोइथे से कहा, जो टुकड़ा मैं ने तुझे देकर, अपके पास रख छोड़ने को कहा या, उसे ले आ।
24. तो रसोइथे ने जांघ को मांस समेत उठाकर शाऊल के आगे धर दिया; तब शमूएल ने कहा, जो रखा गया या उसे देख, और अपके साम्हने धरके खा; क्योंकि वह तेरे लिथे इसी नियत समय तक, जिसकी चर्चा करके मैं ने लोगोंको न्योता दिया, रखा हुआ है। और शाऊल ने उस दिन शमूएल के साय भोजन किया।
25. तब वे ऊंचे स्यान से उतरकर नगर में आए, और उस ने घर की छत पर शाऊल से बातें कीं।
26. बिहान को वे तड़के उठे, और पह फटते फटते शमूएल ने शाऊल को छत पर बुलाकर कहा, उठ, मैं तुम को विदा करूंगा। तब शाऊल उठा, और वह और शमूएल दोनोंबाहर निकल गए।
27. और नगर के सिक्के की उतराई पर चलते चलते शमूएल ने शाऊल से कहा, अपके सेवक को हम से आगे बढ़ने की आज्ञा दे, (वह आगे बढ़ गया,) परन्तु तू अभी खड़ा रह कि मैं तुझे परमेश्वर का वचन सुनाऊं।।

Chapter 10

1. तब शमूएल ने एक कुप्पी तेल लेकर उसके सिर पर उंडेला, और उसे चूमकर कहा, क्या इसका कारण यह नहीं कि यहोवा ने अपके निज भाग के ऊपर प्रधान होने को तेरा अभिषेक किया है?
2. आज जब तू मेरे पास से चला जाएगा, तब राहेल की कब्र के पास जो बिन्यामीन के देश के सिवाने पर सेलसह में है दो जन तुझे मिलेंगे, और कहेंगे, कि जिन गदिहियोंको तू ढूंढने गया या वे मिल हैं; और सुन, तेरा पिता गदहियोंकी चिन्ता छोड़कर तुम्हारे कारण कुढ़ता हुआ कहता है, कि मैं अपके पुत्र के लिथे क्या करूं?
3. फिर वहां से आगे बढ़कर जब तू ताबोर के बांजवृझ के पास पहुंचेगा, तब वहां तीन जन परमेश्वर के पास बेतेल को जाते हुए तुझे मिलेंगे, जिन में से एक तो बकरी के तीन बच्चे, और दूसरा तीन रोटी, और तीसरा एक कुप्पी दाखमधु लिए हुए होगा।
4. और वे तेरा कुशल पूछेंगे, और तुझे दो रोटी देंगे, और तू उन्हें उनके हाथ से ले लेना।
5. तब तू परमेश्वर के पहाड़ पर पहुंचेगा जहां पलिश्तियोंकी चौकी है; और जब तू वहां नगर में प्रवेश करे, तब नबियोंका एक दल ऊंचे स्यान से उतरता हुआ तुझे मिलेगा; और उनके आगे सितार, डफ, बांसुली, और वीणा होंगे; और वे नबूवत करते होंगे।
6. तब यहोवा का आत्मा तुझ पर बल से उतरेगा, और तू उनके साय होकर नबूवत करने लगेगा, और तू परिवतिर्त होकर और ही मनुष्य हो जाएगा।
7. और जब थे चिन्ह तुझे देख पकेंगे, तब जो काम करने का अवसर तुझे मिले उस में लग जाना; क्योंकि परमेश्वर तेरे संग रहेगा।
8. और तू मुझ से पहिले गिलगाल को जाना; और मैं होमबलि और मेलबलि चढ़ाने के लिथे तेरे पास आऊंगा। तू सात दिन तक मेरी बाट जोहते रहना, तब मैं तेरे पास पहुंचकर तुझे बताऊंगा कि तुझ को क्या क्या करना है।
9. ज्योंही उस ने शमूएल के पास से जाने को पीठ फेरी त्योंही परमेश्वर ने उसके मन को परिवर्तन किया; और वे सब चिन्ह उसी दिन प्रगट हुए।।
10. जब वे उधर उस पहाड़ के पास आए, तब नबियोंका एक दल उसको मिला; और परमेश्वर का आत्मा उस पर बल से उतरा, और वह उसके बीच में नबूवत करने लगा।
11. जब उन सभोंने जो उसे पहिले से जानते थे यह देखा कि वह नबियोंके बीच में नबूवत कर रहा है, तब आपस में कहने लगे, कि कीश के पुत्र को यह क्या हुआ? क्या शाऊल भी नबियोंमें का है?
12. वहां के एक मनुष्य ने उत्तर दिया, भला, उनका बाप कौन है? इस पर यह कहावत चलने लगी, कि क्या शाऊल भी नबियोंमें का है?
13. जब वह नबूवत कर चुका, तब ऊंचे स्यान पर चढ़ गया।।
14. तब शाऊल के चचा ने उस से और उसके सेवक से पूछा, कि तुम कहां गए थे? उस ने कहा, हम तो गदहियोंको ढूंढ़ने गए थे; और जब हम ने देखा कि वे कहीं नहीं मिलतीं, तब शमूएल के पास गए।
15. शाऊल के चचा ने कहा, मुझे बतला दे कि शमूएल ने तुम से क्या कहा।
16. शाऊल ने अपके चचा से कहा, कि उस ने हमें निश्चय करके बतया कि गदहियां मिल गईं। परन्तु जो बात शमूएल ने राज्य के विषय में कही यी वह उस ने उसको न बताई।।
17. तब शमूएल ने प्रजा के लोगोंको मिस्पा में यहोवा के पास बुलवाया;
18. तब उस ने इस्राएलियोंसे कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि मैं तो इस्राएल को मिस्र देश से निकाल लाया, और तुम को मिस्रियोंके हाथ से, और न सब राज्योंके हाथ से जो तुम पर अन्धेर करते थे छुड़ाया है।
19. परन्तु तुम ने आज अपके परमेश्वर को जो सब विपत्तियोंऔर कष्टोंसे तुम्हारा छुड़ानेवाला है तुच्छ जाना; और उस से कहा है, कि हम पर राजा नियुक्त कर दे। इसलिथे अब तुम गोत्र गोत्र और हजार हजार करके यहोवा के साम्हने खड़े हो जाओ।
20. तब शमूएल सारे इस्राएली गोत्रियोंको समीप लाया, और चिट्ठी बिन्यामीन के नाम पर निकली।
21. तब वह बिन्यामीन के गोत्र के कुल कुल करके समीप लाया, और चिट्ठी मत्री के कुल के नाम पर निकली; फिर चिट्ठी कीश के पुत्र शाऊल के नाम पर निकली। और जब वह ढूंढ़ा गया, तब न मिला।
22. तब उन्होंने फिर यहोवा से पूछा, क्या यहां कोई और आनेवाला है? यहोवा ने कहा, हां, सुनो, वह सामान के बीच में छिपा हुआ है।
23. तब वे दौड़कर उसे वहां से लाए; और वह लोगोंके बीच में खड़ा हुआ, और वह कान्धे से सिर तक सब लोगोंसे लम्बा या।
24. शमूएल ने सब लोगोंसे कहा, क्या तुम ने यहोवा के चुने हुए को देखा है कि सारे लोगोंमें कोई उसके बराबर नहीं? तब सक लोग ललकारके बोल उठे, राजा चिरंजीव रहे।।
25. तब शमूएल ने लोगोंसे राजनीति का वर्णन किया, और उसे पुस्तक में लिखकर यहोवा के आगे रख दिया। और शमूएल ने सब लोगोंको अपके अपके घर जान को विदा किया।
26. और शाऊल गिबा को अपके घर चला गया, और उसके साय एक दल भी गया जिनके मन को परमेश्वर ने उभारा या।
27. परन्तु कई लुच्चे लोगोंने कहा, यह जन हमारा क्या उद्धार करेगा? और उन्होंने उसको तुच्छ जाना, और उसके पास भेंट न लाए। तौभी वह सुनी अनसुनी करके चुप रहा।।

Chapter 11

1. तब अम्मोनी नाहाश ने चढ़ाई करके गिलाद के याबेस के विरूद्ध छावनी डाली; और याबेश के सब पुरूषोंने नाहाश से कहा, हम से वाचा बान्ध, और हम तेरी अधीनता मना लेंगे।
2. अम्मोनी नाहाश ने उन से कहा, मैं तुम से वाचा इस शर्त पर बान्धूंगा, कि मैं तुम सभोंकी दाहिनी आंखें फोड़कर इसे सारे इस्राएल की नामधराई का कारण कर दूं।
3. याबेश के वृद्ध लोगोंने उस से कहा, हमें सात दिन का अवकाश दे तब तक हम इस्राएल के सारे देश में दूत भेजेंगे। और यदि हम को कोई बचाने वाला न मिलेगा, तो हम तेरे ही पास निकल आऐंगे।
4. दूतोंने शाऊलवाले गिबा में आकर लोगोंको यह सन्देश सुनाया, और सब लोग चिल्ला चिल्लाकर रोने लगे।
5. और शाऊल बैलोंके पीछे पीछे मैदान से चला आता या; और शाऊल ने पूछा, लोगोंको क्या हुआ कि वे रोते हैं? उन्होंने याबेश के लोगोंका सन्देश उसे सुनाया।
6. यह सन्देश सुनते ही शाऊल पर परमेश्वर का आत्मा बल से उतरा, और उसका कोप बहुत भड़क उठा।
7. और उस ने एक जोड़ी बैल लेकर उसके टुकड़े टुकड़े काटे, और यह कहकर दूतोंके हाथ से इस्राएल के सारे देश में कहला भेजा, कि जो कोई आकर शाऊल और शमूएल के पीछे न हो लेगा उसके बैलोंसे ऐसा ही किया जाएगा। तब यहोवा का भय लोगोंमें ऐसा समाया कि वे एक मन होकर निकल आए।
8. तब उस ने उन्हें बेजेक में गिन लिया, और इस्राएलियोंके तीन लाख, और यहूदियोंके तीस हजार ठहरे।
9. और उन्होंने उन दूतोंसे जो आए थे कहा, तुम गिलाद में के याबेश के लोगोंसे योंकहो, कि कल धूप तेज होने की घड़ी तक तुम छुटकारा पाओगे। तब दूतोंने जाकर याबेश के लोगोंको सन्देश दिया, और वे आनन्दित हुए।
10. तब याबेश के लोगोंने कहा, कल हम तुम्हारे पास निकल आएंगे, और जो कुछ तुम को अच्छा लगे वही हम से करना।
11. दूसरे दिन शाऊल ने लोगोंके तीन दल किए; और उन्होंने रात के पिछले पहर में छावनी के बीच में आकर अम्मोनियोंको मारा; और घाम के कड़े होने के समय तक ऐसे मारते रहे कि जो बच निकले वह यहां तक तितर बितर हुए कि दो जन भी एक संग कहीं न रहे।
12. तब लोग शमूएल से कहने लगे, जिन मनुष्योंने कहा या, कि क्या शाऊल हम पर राज्य करेगा? उनको लाओ कि हम उन्हें मार डालें।
13. शाऊल ने कहा, आज के दिन कोई मार डाला न जाएगा; क्योंकि आज यहोवा ने इस्राएलियोंको छुटकारा दिया है।।
14. तब शमूएल ने इस्राएलियोंसे कहा, आओ, हम गिलगाल को चलें, और वहां राज्य को नथे सिक्के से स्यापित करें।
15. तब सब लोग गिलगाल को चले, और वहां उन्होंने गिलगाल में यहोवा के साम्हने शाऊल को राजा बनाया; और वहीं उन्होंने यहोवा को मेलबलि चढ़ाए; और वहीं शाऊल और सब इस्राएली लोगोंने अत्यन्त आनन्द मनाया।।

Chapter 12

1. तब शमूएल ने सारे इस्राएलियोंसे कहा, सुनो, जो कुछ तुम ने मुझ से कहा या उसे मानकर मैं ने एक राजा तुम्हारे ऊपर ठहराया है।
2. और अब देखो, वह राजा तुम्हारे आगे आगे चलता है; और अब मैं बूढ़ा हूं, और मेरे बाल उजले हो गए हैं, और मेरे पुत्र तुम्हारे पास हैं; और मैं लड़कपन से लेकर आज तक तुम्हारे साम्हने काम करता रहा हूं।
3. मैं उपस्यित हूं; इसलिथे तुम यहोवा के साम्हने, और उसके अभिषिक्त के सामने मुझ पर साझी दो, कि मैं ने किस का बैल ले लिया? वा किस का गदहा ले लियो? वा किस पर अन्धेर किया? वा किस को पीसा? वा किस के हाथ से अपक्की आंखें बन्द करने के लिथे घूस लिया? बताओ, और मैं वह तुम को फेर दूंगा?
4. वे बोले, तू ने न तो हम पर अन्धेर किया, न हमें पीसा, और न किसी के हाथ से कुछ लिया है।
5. उस ने उन से कहा, आज के दिन यहोवा तुम्हारा साझी, और उसका अभिषिक्त इस बात का साझी है, कि मेरे यहां कुद नहीं निकला। वे बोले, हां, वह साझी है।
6. फिर शमूएल लोगोंसे कहने लगा, जो मूसा और हारून को ठहराकर तुम्हारे पूर्वजोंको मिस्र देश से निकाल लाया वह यहोवा ही है।
7. इसलिथे अब तुम खड़े रहो, और मैं यहोवा के साम्हने उसके सब धर्म के कामोंके विषय में, जिन्हें उस ने तुम्हारे साय और तुम्हारे पूर्वजोंके साय किया है, तुम्हारे साय विचार करूंगा।
8. याकूब मिस्र में गया, और तुम्हारे पूर्वजोंने यहोवा की दोहाई दी; तब यहोवा ने मूसा और हारून को भेजा, और उन्होंने तुम्हारे पूर्वजोंको मिस्र से निकाला, और इस स्यान में बसाया।
9. फिर जब वे अपके परमेश्वर यहोवा को भूल गए, तब उस ने उन्हें हासोर के सेनापति सीसरा, और पलिश्तियोंऔर मोआब के राजा के अधीन कर दिया; और वे उन से लड़े।
10. तब उन्होंने यहोवा की दोहाई देकर कहा, हम ने यहोवा को त्यागकर और बाल देवताओं और अशतोरेत देवियोंकी उपासना करके महा पाप किया है; परन्तु अब तू हम को हमारे शत्रुओं के हाथ से छुड़ा तो हम तेरी उपासना करेंगे।
11. इसलिथे यहोवा ने यरूब्बाल, बदान, यिप्तह, और शमूएल को भेजकर तुम को तुम्हारे चारोंओर के शत्रुओं के हाथ से छुड़ाया; और तुम निडर रहने लगे।
12. और जब तुम ने देखा कि अम्मोनियोंका राजा नाहाश हम पर चढ़ाई करता है, तब यद्यपि तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारा राजा या तौभी तुम ने मुझ से कहा, नहीं, हम पर एक राजा राज्य करेगा।
13. अब उस राजा को देखो जिसे तुम ने चुन लिया, और जिसके लिथे तुम ने प्रार्यना की यी; देखो, यहोवा ने ऐ राजा तुम्हारे ऊपर नियुक्त कर दिया है।
14. यदि तुम यहोवा का भय मानते, उसकी उपासना करते, और उसकी बात सुनते रहो, और यहोवा की आज्ञा को टालकर उस से बलवा न करो, और तुम और वह जो तुम पर राजा हुआ है दोनो अपके परमेश्वर यहोवा के पीछे पीछे चलनेवाले बने रहो, तब तो भला होगा;
15. परन्तु यदि तुम यहोवा की बात न मानो, और यहोवा की आज्ञा को टालकर उस से बलवा करो, तो यहोवा का हाथ जैसे तुम्हारे पुरखाओं के विरूद्ध हुआ वैसे ही तुम्हारे भी विरूद्ध उठेगा।
16. इसलिथे अब तुम खड़े रहो, और इस बड़े काम को देखो जिसे यहोवा तुम्हारे आंखोंके साम्हने करने पर है।
17. आज क्या गेहूं की कटनी नहीं हो रही? मैं यहोवा को पुकारूंगा, और वह मेघ गरजाएगा और मेंह बरसाएगा; तब तुम जान लोगे, और देख भी लोगे, कि तुम ने राजा मांगकर यहोवा की दृष्टि में बहुत बड़ी बुराई की है।
18. तब शमूएल ने यहोवा का पुकारा, और यहोवा ने उसी दिन मेघ गरजाया और मेंह बरसाया; और सब लोग यहोवा से और शमूएल से अत्यन्त डर गए।
19. और सब लोगोंने शमूएल से कहा, अपके दासोंके निमित्त अपके परमेश्वर यहोवा से प्रार्यना कर, कि हम मर न जाएं; क्योंकि हम ने अपके सारे पापोंसे बढ़कर यह बुराई की है कि राजा मांगा है।
20. शमूएल ने लोगोंसे कहा, डरो मत; तुम ने यह सब बुराई तो की है, परन्तु अब यहोवा के पीछे चलने से फिर मत मुड़ना; परन्तु अपके सम्पूर्ण मन से उस की उपासना करना;
21. और मत मुड़ना; नहीं तो ऐसी व्यर्य वस्तुओं के पीछे चलने लगोगे जिन से न कुछ लाभ पहुंचेगा, और न कुछ छुटकारा हो सकता है, क्योंकि वे सब व्यर्य ही हैं।
22. यहोवा तो अपके बड़े नाम के कारण अपक्की प्रजा को न तजेगा, क्योंकि यहोवा ने तुम्हे अपक्की ही इच्छा से अपक्की प्रजा बनाया है।
23. फिर यह मुझ से दूर हो कि मैं तुम्हारे लिथे प्रार्यना करना छोड़कर यहोवा के विरूद्ध पापी ठहरूं; मैं तो तुम्हें अच्छा और सीधा मार्ग दिखाता रहूंगा।
24. केवल इतना हो कि तुम लोग यहोवा का भय मानो, और सच्चाई से अपके सम्पूर्ण मान के साय उसकी उपासना करो; क्योंकि यह तो सोचो कि उस ने तुम्हारे लिथे कैसे बड़े बड़े काम किए हैं।
25. परन्तु यदि तुम बुराई करते ही रहोगे, तो तुम और तुम्हारा राजा दोनोंके दोनोंमिट जाओगे।

Chapter 13

1. शाऊल तीस वर्ष का होकर राज्य करने लगा, और उस ने इस्राएलियोंपर दो वर्ष तक राज्य किया।
2. फिर शाऊल ने इस्राएलियोंमें से तीन हजार पुरूषोंको अपके लिथे चुन लिया; और उन में से दो हजार शाऊल के साय मिकमाश में और बेतेल के पहाड़ पर रहे, और एक हजार योनातान के साय बिन्यामीन के गिबा में रहे; और दूसरे सब लोगोंको उस ने अपके अपके डेरे में जाने को विदा किया।
3. तब योनातान ने पलिश्तियोंकी उस चौकी को जो गिबा में भी मार लिया; और इसका समाचार पलिश्तियोंके कानोंमें पड़ा। तब शाऊल ने सारे देश में नरसिंगा फुंकवाकर यह कहला भेजा, कि इब्री लोग सुनें।
4. और सब इस्राएलियोंने यह समाचार सुना कि शाऊल ने पलिश्तियोंकी चौकी को मारा है, और यह भी कि पलिश्ती इस्राएल से घृणा करने लगे हैं। तब लोग शाऊल के पीछे चलकर गिलगाल में इकट्ठे हो गए।।
5. और पलिश्ती इस्राएल से युद्ध करने के लिथे इकट्ठे हो गए, अर्यात्‌ तीस हजार रय, और छ: हजार सवार, और समुद्र के तीर की बालू के किनकोंके समान बहुत से लोग इकट्ठे हुए; और बेतावेन के पूर्व की ओर जाकर मिकमाश में छावनी डाली।
6. जब इस्राएली पुरूषोंने देखा कि हम सकेती में पके हैं (और सचमुच लोग संकट में पके थे), तब वे लोग गुफाओं, फाडिय़ों, चट्टानों, गढिय़ों, और गढ़होंमें जा छिपे।
7. और कितने इब्री यरदन पार होकर गाद और गिलाद के देशोंमें चले गए; परन्तु शाऊल गिलगाल ही में रहा, और सब लोग यरयराते हुए उसके पीछे हो लिए।।
8. वह शमूएल के ठहराए हुए समय, अर्यात्‌ सात दिन तक बाट जोहता रहा; परन्तु शमूएल गिलगाल में न आया, और लोग उसके पास से इधर उधर होने लगे।
9. तब शाऊल ने कहा, होमबलि और मेलबलि मेरे पास लाओ। तब उस ने होमबलि को चढ़ाया।
10. ज्योंही वह होमबलि को चढ़ा चुका, तो क्श्या देखता है कि शमूएल आ पहुंचा; और शाऊल उस से मिलने और नमस्कार करने को निकला।
11. शमूएल ने पूछा, तू ने क्या किया? शाऊल ने कहा, जब मैं ने देखा कि लोग मेरे पास से इधर उधर हो चले हैं, और तू ठहराए हुए ेदनोंके भीतर नहीं आया, और पलिश्ती मिकपाश में इकट्ठे हुए हैं,
12. तब मैं ने सोचा कि पलिश्ती गिलगाल में मुझ पर अभी आ पकेंगे, और मैं ने यहोवा से बिनती भी नहीं की है; सो मैं ने अपक्की इच्छा न रहते भी होमबलि चढ़ाया।
13. शमूएल ने शाऊल से कहा, तू ने मूर्खता का काम किया है; तू ने अपके परमेश्वर यहोवा की आज्ञा को नहीं माना; नहीं तो यहोवा तेरा राज्य इस्राएलियोंके ऊपर सदा स्यिर रखता।
14. परन्तु अब तेरा राज्य बना न रहेगा; यहोवा ने अपके लिथे एक ऐसे पुरूष को ढूंढ़ लिया है जो उसके मन के अनुसार है; और यहोवा ने उसी को अपक्की प्रजा पर प्रधान होने को ठहराया है, क्योंकि तू ने यहोवा की आज्ञा को नहीं माना।।
15. तब शमूएल चल निकला, और गिलगाल से बिन्यामीन के गिबा को गया। और शाऊल ने अपके साय के लोगोंको गिनकर कोई छ: सौ पाए।
16. और शाऊल और उसका पुत्र योनातान और जो लोग उनके साय थे वे बिन्यामीन के गिबा में रहे; और पलिश्ती मिकमाश में डेरे डाले पके रहे।
17. और पलिश्तियोंकी छावनी से नाश करनेवाले तीन दल बान्धकर निकल; एक दल ने शूआल नाम देश की ओर फिर के ओप्रा का मार्ग लिया,
18. एक और दल ने मुझकर बेयोरोन का मार्ग लिया, और एक और दल ने मुड़कर उस देश का मार्ग लिया जो सबोईम नाम तराई की ओर जंगल की तरफ है।।
19. और इस्राएल के पूरे देश में लोहार कहीं नहीं मिलता या, क्योंकि पलिश्तियोंने कहा या, कि इब्री तलवार वा भाला बनाने न पांए;
20. इसलिथे सब इस्राएली अपके अपके हल की फली, और भाले, और कुल्हाड़ी, और हंसुआ तेज करने के लिथे पलिश्तियोंके पास जाते थे;
21. परन्तु उनके हंसुओं, फालों, खेती के त्रिशूलों, और कुल्हाडिय़ोंकी धारें, और पैनोंकी नोकें ठीक करने के लिथे वे रेती रखते थे।
22. सो युद्ध के दिन शाऊल और योनातान के सायियोंमें से किसी के पास न तो तलवार यी और न भाला, वे केवल शाऊल और उसके पुत्र योनातान के पास रहे।
23. और पलिश्तियोंकी चौकी के सिपाही निकलकर मिकमाश की घाटी को गए।।

Chapter 14

1. एक दिन शाऊल के पुत्र योनातान ने अपके पिता से बिना कुछ कहे अपके हयियार ढोनेवाले जवान से कहा, आ, हम उधर पलिश्तियोंकी चौकी के पास चलें।
2. शाऊल तो गिबा के सिक्के पर मिग्रोन में के अनार के पेड़ के तले टिका हुआ या, और उसके संग के लोग कोई छ: सौ थे;
3. और एली जो शीलोंमें यहोवा का याजक या, उसके पुत्र पिनहास का पोता, और ईकाबोद के भाई, अहीतूब का पुत्र अहिय्याह भी एपोद पहिने हुए संग या। परन्तु उन लोगोंको मालूम न या कि योनातान चला गया है।
4. उन घाटियोंके बीच में, जिन से होकर योनातान पलिश्तियोंकी चौकी को जाना चाहता या, दोनोंअलंगोंपर एक एक नोकीली चट्टान यी; एक चट्टान का नाम तो बोसेस, और दूसरी का नाम सेने या।
5. एक चट्टान तो उत्तर की ओर मिकमाश के साम्हने, और दूसरी दक्खिन की ओर गेबा के साम्हने खड़ी है।
6. तब योनातान ने अपके हयियार ढोनेवाले जवान से कहा, आ, हम उन खतनारहित लोगोंकी चौकी के पास जाएं; क्या जाने यहोवा हमारी सहाथता करे; क्योंकि यहोवा को कुछ रोक नहीं, कि चाहे तो बहुत लोगोंके द्वारा चाहे योड़े लोगोंके द्वारा छुटकारा दे।
7. उसके हयियार ढोनेवाले ने उस से कहा, जो कुछ तेरे मन में हो वही कर; उधर चल, मैं तेरी इच्छा के अनुसार तेरे संग रहूंगा।
8. योनातान ने कहा, सुन, हम उन मनुष्योंके पास जाकर अपके को उन्हें दिखाएं।
9. यदि वे हम से योंकहें, हमारे आने तक ठहरे रहो, तब तो हम उसी स्यान पर खड़े रहें, और उनके पास न चढ़ें।
10. परन्तु यदि वे यह कहें, कि हमारे पास चढ़ आओ, तो हम यह जानकर चढ़ें, कि यहोवा उन्हें हमारे साय कर देगा। हमारे लिथे यही चिन्ह हो।
11. तब उन दोनोंने अपके को पलिश्तियोंकी चौकी पर प्रगट किया, तब पलिश्ती कहने लगे, देखो, इब्री लोग उन बिलोंमें से जहां वे छिप रहे थे निकले आते हैं।
12. फिर चौकी के लोगोंने योनातान और उसके हयियार ढोनवाले से पुकार के कहा, हमारे पास चढ़ आओ, तब हम तुम को कुछ सिखाएंगे। तब योनातान ने अपके हयियार ढोनवाले से कहा मेरे पीछे पीछे चढ़ आ; क्योंकि यहोवा उन्हें इस्राएलियोंके हाथ में कर देगा।
13. और योनातान अपके हाथोंऔर पावोंके बल चढ़ गया, और उसका हयियार ढोनेवाला भी उसके पीछे पीछे चढ़ गया। और पलिश्ती योनातान के साम्हने गिरते गए, और उसका हयियार ढोनेवाला उसके पीछे पीछे उन्हें मारता गया।
14. यह पहिला संहार जो योनातान और उसके हयियार ढोनेवाल से हुआ, उस में आधे बीघे भूमि में बीस एक पुरूष मारे गए।
15. और छावनी में, और मैदान पर, और उन सब लोगोंमें यरयराहट हुई; और चौकीवाले और नाश करनेवाले भी यरयराने लगे; और भुईंडोल भी हुआ; और अत्यन्त बड़ी यरयराहट हुई।
16. और बिन्यामीन के गिबा में शाऊल के पहरूओं ने दृष्टि करके देखा कि वह भीड़ घटती जाती है, और वे लोग इधर उधर चले जाते हैं।।
17. तब शाऊल ने अपके साय के लोगोंसे कहा, अपक्की गिनती करके देखो कि हमारे पास से कौन चला गया है। उन्होंने गिनकर देखा, कि योनातान और उसका हयियार ढोनेवाला यहां नहीं है।
18. तब शाऊल ने अहिय्याह से कहा, परमेश्वर का सन्दूक इस्राएलियोंके साय या।
19. शाऊल याजक से बातें कर रहा या, कि पलिश्तियोंकी छावनी में हुल्लड़ अधिक होता गया; तब शाऊल ने याजक से कहा, अपना हाथ खींच।
20. तब शाऊल और उसके संग के सब लोग इकट्ठे होकर लड़ाई में गए; वहां उन्होंने क्या देखा, कि एक एक पुरूष की तलवार अपके अपके सायी पर चल रही है, और बहुत कोलाहल मच रहा है।
21. और जो इब्री पहिले की नाईं पलिश्तियोंकी ओर के थे, और उनके साय चारोंओर से छावनी में गए थे, वे भी शाऊल और योनातान के संग के इस्राएलियोंमें मिल गए।
22. और जितने इस्राएली पुरूष एप्रैम के पहाड़ी देश में छिप गए थे, वे भी यह सुनकर कि पलिश्ती भागे जाते हैं, लड़ाई में आ उनका पीछा करने में लग गए।
23. तब यहोवा ने उस दिन इस्राएलियोंको छुटकार दिया; और लड़नेवाले बेतावेन की परली ओर तक चले गए।
24. परन्तु इस्राएली पुरूष उस दिन तंग हुए, क्योंकि शाऊल ने उन लोगोंको शपय धराकर कहा, शापित हो वह, जो सांफ से पहिले कुछ खाए; इसी रीति मैं अपके शत्रुओं से पलटा ले सकूंगा। तब उन लोगोंमें से किसी ने कुछ भी भोजन न किया।
25. और सब लोग किसी वन में पहुंचे, जहां भूमि पर मधु पड़ा हुआ या।
26. जब लोग वन में आए तब क्या देखा, कि मधु टपक रहा है, तौभी शपय के डर के मारे कोई अपना हाथ अपके मुंह तक न ले गया।
27. परन्तु योनातान ने अपके पिता को लोगोंको शपय धराते न सुना या, इसलिथे उस ने अपके हाथ की छड़ी की नोक बढ़ाकर मधु के छत्ते में डुबाया, और अपना हाथ अपके मुंह तक लगाया; तब उसकी आंखोंमें ज्योति आई।
28. तब लोगोंमें से एक मनुष्य ने कहा, तेरे पिता ने लोगोंको दृढ़ता से शपय धरा के कहा, शापित हो वह, जो आज कुछ खाए। और लोग यके मांदे थे।
29. योनातान ने कहा, मेरे पिता ने लोगोंको कष्ट दिया है; देखो, मैं ने इस मधु को योड़ा सा चखा, और मुझे आंखोंसे कैसा सूफने लगा।
30. यदि आज लोग अपके शत्रुओं की लूट से जिसे उन्होंने पाया मनमाना खाते, तो कितना अच्छा होता; अभी तो बहुत पलिश्ती मारे नहीं गए।
31. उस दिन वे मिकमाश से लेकर अय्यालोन तक पलिश्तियोंको मारते गए; और लोग बहुत ही यक गए।
32. सो वे लूट पर टूटे, और भेड़-बकरी, और गाय-बैल, और बछड़े लेकर भूमि पर मारके उनका मांस लोहू समेत खाने लगे।
33. जब इसका समाचार शाऊल को मिला, कि लोग लोहू समेत मांस खाकर यहोवा के विरूद्ध पाप करते हैं। तब उस ने उन से कहा; तुम ने तो विश्वासघात किया है; अभी एक बड़ा पत्यर मेरे पास लुढ़का दो।
34. फिर शाऊल ने कहा, लोगोंके बीच में इधर उधर फिरके उन से कहो, कि अपना अपना बैल और भेड़ शाऊल के पास ले जाओ, और वहीं बलि करके खाओ; और लोहू समेत खाकर यहोवा के विरूद्ध पाप न करो। तब सब लोगोंने उसी रात अपना अपना बैल ले जाकर वहीं बलि किया।
35. तब शाऊल ने यहोवा के लिथे एक वेदी बनवाई; वह तो पहिली वेदी है जो उस ने यहोवा के लिथे बनवाई।।
36. फिर शाऊल ने कहा, हम इसी राज को पलिश्तियोंका पीछा करके उन्हें भोर तक लूटते रहें; और उन में से एक मनुष्य को भी जीवित न छोड़ें। उन्होंने कहा, जो कुछ तुझे अच्छा लगे वही कर। परन्तु याजक ने कहा, हम इधर परमेश्वर के समीप आएं।
37. तब शाऊल ने परमेश्वर से पुछवाया, कि क्या मैं पलिश्तियोंका पीछा करूं? क्या तू उन्हें इस्राएल के हाथ में कर देगा? परन्तु उसे उस दिन कुछ उत्तर न मिला।
38. तब शाऊल ने कहा, हे प्रजा के मुख्य लोगों, इधर आकर बूफो; और देखो कि आज पाप किस प्रकार से हुआ है।
39. क्योंकि इस्राएल के छुड़ानेवाले यहोवा के जीवन की शपय, यदि वह पाप मेरे पुत्र योनातान से हुआ हो, तौभी निश्चय वह मार डाला जाएगा। परन्तु लोगोंमें से किसी ने उसे उत्तर न दिया।
40. तब उस ने सारे इस्राएलियोंसे कहा, तुम एक ओर हो, और मैं और मेरा पुत्र योनातान दूसरी और होंगे। लोगोंने शाऊल से कहा, जो कुछ तुझे अच्छा लगे वही कर।
41. तब शाऊल ने यहोवा से कहा, हे इस्राएल के परमेश्वर, सत्य बात बता। तब चिट्ठी योनातान और शाऊल के नाम पर निकली, और प्रजा बच गई।
42. फिर शाऊल ने कहा, मेरे और मेरे पुत्र योनातान के नाम पर चिट्ठी डालो। तब चिट्ठी योनातान के नाम पर निकली।
43. तब शाऊल ने योनातान से कहा, मुझे बता, कि तू ने क्या किया है। योनातान ने बताया, और उस से कहा, मैं ने अपके हाथ की छड़ी की नोक से योड़ा सा मधु चख तो लिया है; और देख, मुझे मरना है।
44. शाऊल ने कहा, परमेश्वर ऐसा ही करे, वरन इस से भी अधिक करे; हे योनातान, तू निश्चय मारा जाएगा।
45. परन्तु लोगोंने शाऊल से कहा, क्या योनातान मारा जाए, जिस ने इस्राएलियोंका ऐसा बड़ा छुटकारा किया है? ऐसा न होगा! यहोवा के जीवन की शपय, उसके सिर का एक बाल भी भूमि पर गिरने न पाएगा; क्योंकि आज के दिन उस ने परमेश्वर के साय होकर काम किया है। तब प्रजा के लोगोंने योनातान को बचा लिया, और वह मारा न गया।
46. तब शाऊल पलिश्तियोंका पीछा छोड़कर लौट गया; और पलिश्ती भी अपके स्यान को चले गए।।
47. जब शाऊल इस्राएलियोंके राज्य में स्यिर हो गया, तब वह मोआबी, अम्मोनी, एदोमी, और पलिश्ती, अपके चारोंओर के सब शत्रुओं से, और सोबा के राजाओं से लड़ा; और जहां जहां वह जाता वहां जय पाता या।
48. फिर उस ने वीरता करके अमालेकियोंको जीता, और इस्राएलियोंको लूटनेवालोंके हाथ से छुड़ाया।।
49. शाऊल के पुत्र योनातान, यिशबी, और मलकीश थे; और उसकी दो बेटियोंके नाम थे थे, बड़ी का नाम तो मेरब और छोटी का नाम मीकल या।
50. और शाऊल की स्त्री का नाम अहीनोअम या जो अहीमास की बेटी यी। और उसके प्रधान सेनापति का नाम अब्नेर या जो शाऊल के चचा नेर का पुत्र या।
51. और शाऊल का पिता कीश या, और अब्नेर का पिता नेर अबीएल का पुत्र या।
52. और शाऊल जीवन भर पलिश्तियोंसे संग्राम करता रहा; जब जब शाऊल को कोई वीर वा अच्छा योद्धा दिखाई पड़ा तब तब उस ने उसे अपके पास रख लिया।।

Chapter 15

1. शमूएल ने शाऊल से कहा, यहोवा ने अपक्की प्रजा इस्राएल पर राज्य करने के लिथे तेरा अभिषेक करने को मुझे भेजा या; इसलिथे अब यहोवा की बातें सुन ले।
2. सेनाओं का यहोवा योंकहता है, कि मुझे चेत आता है कि अमालेकियोंने इस्राएलियोंसे क्या किया; और जब इस्राएली मिस्र से आ रहे थे, तब उन्होंने मार्ग में उनका साम्हना किया।
3. इसलिथे अब तू जाकर अमालेकियोंको मार, और जो कुछ उनका है उसे बिना कोमलता किए सत्यानाश कर; क्या पुरूष, क्या स्त्री, क्या बच्चा, क्या दूधपिउवा, क्या गाय-बैल, क्या भेड़-बकरी, क्या ऊंट, क्या गदहा, सब को मार डाल।।
4. तब शाऊल ने लोगोंको बुलाकर इकट्ठा किया, और उन्हें तलाईम में गिना, और वे दो लाख प्यादे, और दस हजार यहूदी पुरूष भी थे।
5. तब शाऊल ने अमालेक नगर के पास जाकर एक नाले में घातकोंको बिठाया।
6. और शाऊल ने केनियोंसे कहा, कि वहां से हटो, अमालेकियोंके मध्य में से निकल जाओ कहीं ऐसा न हो कि मैं उनके साय तुम्हारा भी अन्त कर डालूं; क्योंकि तुम ने सब इस्राएलियोंपर उनके मिस्र से आते समय प्रीति दिखाई यी। और केनी अमालेकियोंके मध्य में से निकल गए।
7. तब शाऊल ने हवीला से लेकर शूर तक जो मिस्र के साम्हने है अमालेकियोंको मारा।
8. और उनके राजा अगाग को जीवित पकड़ा, और उसकी सब प्रजा को तलवार से सत्यानाश कर डाला।
9. परन्तु अगाग पर, और अच्छी से अच्छी भेड़-बकरियों, गाय-बैलों, मोटे पशुओं, और मेम्नों, और जो कुछ अच्छा या, उन पर शाऊल और उसकी प्रजा ने कोमलता की, और उन्हें सत्यानाश करना न चाहा; परन्तु जो कुछ तुच्छ और निकम्मा या उसको उन्होंने सत्यानाश किया।।
10. तब यहोवा का यह वचन शमूएल के पास पहुंचा,
11. कि मैं शाऊल को राजा बना के पछताता हूं; क्योंकि उस ने मेरे पीछे चलना छोड़ दिया, और मेरी आज्ञाओं का पालन नहीं किया। तब शमूएल का क्रोध भड़का; और वह रात भर यहोवा की दोहाई देता रहा।
12. बिहान को जब शमूएल शाऊल से भेंट करने के लिथे सवेरे उठा; तब शमूएल को यह बताया गया, कि शाऊल कर्म्मेल को आया या, और अपके लिथे एक निशानी खड़ी की, और घूमकर गिलगाल को चला गया है।
13. तब शमूएल शाऊल के पास गया, और शाऊल ने उस से कहा, तुझे यहोवा की ओर से आशीष मिले; मैं ने यहोवा की आज्ञा पूरी की है।
14. शमूएल ने कहा, फिर भेड़-बकरियोंका यह मिमियाना, और गय-बैलोंका यह बंबाना जो मुझे सुनाई देता है, यह क्योंहो रहा है?
15. शाऊल ने कहा, वे तो अमालेकियोंके यहां से आए हैं; अर्यात्‌ प्रजा के लोगोंने अच्छी से अच्छी भेड़-बकरियोंऔर गाय-बैलोंको तेरे परमेश्वर यहोवा के लिथे बलि करने को छोड़ दिया है; और बाकी सब को तो हम ने सत्यानाश कर दिया है।
16. तब शमूएल ने शाऊल से कहा, ठहर जा! और जो बात यहोवा ने आज रात को मुझ से कही है वह मैं तुझ को बताता हूं। उस ने कहा, कह दे।
17. शमूएल ने कहा, जब तू अपक्की दृष्टि में छोटा या, तब क्या तू इस्राएली गोत्रियोंका प्रधान न हो गया, और क्या यहोवा ने इस्राएल पर राज्य करने को तेरा अभिषेक नहीं किया?
18. और यहोवा ने तुझे यात्रा करने की आज्ञा दी, और कहा, जाकर उन पापी अमालेकियोंको सत्यानाश कर, और जब तक वे मिट न जाएं, तब तक उन से लड़ता रह।
19. फिर तू ने किस लिथे यहोवा की वह बात टालकर लूट पर टूट के वह काम किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है?
20. शाऊल ने शमूएल से कहा, नि:सन्देह मैं ने यहोवा की बात मानकर जिधर यहोवा ने मुझे भेजा उधर चला, और अमालेकियोंको सत्यानाश किया है।
21. परन्तु प्रजा के लोग लूट में से भेड़-बकरियों, और गाय-बैलों, अर्यात्‌ सत्यानाश होने की उत्तम उत्तम वस्तुओं को गिलगाल में तेरे परमेश्वर यहोवा के लिथे बलि चढ़ाने को ले आए हैं।
22. शमूएल ने कहा, क्या यहोवा होमबलियों, और मेलबलियोंसे उतना प्रसन्न होता है, जितना कि अपक्की बात के माने जाने से प्रसन्न होता है? सुन मानना तो बलि चढ़ाने और कान लगाना मेढ़ोंकी चर्बी से उत्तम है।
23. देख बलवा करना और भावी कहनेवालोंसे पूछना एक ही समान पाप है, और हठ करना मूरतोंऔर गृहदेवताओं की पूजा के तुल्य है। तू ने जो यहोवा की बात को तुच्छ जाना, इसलिथे उस ने तुझे राजा होने के लिथे तुच्छ जाना है।
24. शाऊल ने शमूएल से कहा, मैं ने पाप किया है; मैं ने तो अपक्की प्रजा के लोगोंका भय मानकर और उनकी बात सुनकर यहोवा की आज्ञा और तेरी बातोंका उल्लंघन किया है।
25. परन्तु अब मेरे पाप को झमा कर, और मेरे साय लौट आ, कि मैं यहोवा को दण्डवत्‌ करूं।
26. शमूएल ने शाऊल से कहा, मैं तेरे साय न लौटूंगा; क्योंकि तू ने यहोवा की बात को तुच्छ जाना है, और यहोवा ने तुझे इस्राएल का राजा होने के लिथे तुच्छ जाना है।
27. तब शमूएल जाने के लिथे घूमा, और शाऊल ने उसके बागे की छोर को पकड़ा, और वह फट गया।
28. तब शमूएल ने उस से कहा आज यहोवा ने इस्राएल के राज्य को फाड़कर तुझ से छीन लिया, और तेरे एक पड़ोसी को जो तुझ से अच्छा है दे दिया है।
29. और जो इस्राएल का बलमूल है वह न तो फूठ बोलता और न पछताता है; क्योंकि वह मनुष्य नहीं है, कि पछताए।
30. उस ने कहा, मैं ने पाप तो किया है; तौभी मेरी प्रजा के पुरनियोंऔर इस्राएल के साम्हने मेरा आदर कर, और मेरे साय लौट, कि मैं तेरे परमेश्वर यहोवा को दण्डवत करूं।
31. तब शमूएल लौटकर शाऊल के पीछे गया; और शाऊल ने यहोवा का दण्डवत्‌ की।
32. तब शमूएल ने कहा, अमालेकियोंके राजा आगाग को मेरे पास ले आओ। तब आगाग आनन्द के साय यह कहता हुआ उसके पास गया, कि निश्चय मृत्यु का दु:ख जाता रहा।
33. शमूएल ने कहा, जैसे स्त्रियां तेरी तलवार से निर्वंश हुई हैं, वैसे ही तेरी माता स्त्रियोंमें निर्वंश होगी। तब शमूएल ने आगाग को गिलगाल में यहोवा के साम्हने टुकड़े टुकड़े किया।।
34. तब शमूएल रामा को चला गया; और शाऊल अपके नगर गिबा को अपके घर गया।
35. और शमूएल ने अपके जीवन भर शाऊल से फिर भेंट न की, क्योंकि शमूएल शाऊल के लिथे विलाप करता रहा। और यहोवा शाऊल को इस्राएल का राजा बनाकर पछताता या।।

Chapter 16

1. और यहोवा ने शमूएल से कहा, मैं ने शाऊल को इस्राएल पर राज्य करने के लिथे तुच्छ जाना है, तू कब तक उसके विषय विलाप करता रहेगा? अपके सींग में तेल भर के चल; मैं तुझ को बेतलेहेमी यिशै के पास भेजता हूं, क्योंकि मैं ने उसके पुत्रोंमें से एक को राजा होने के लिथे चुना है।
2. शमूएल बोला, मैं क्योंकर जा सकता हूं? यदि शाऊल सुन लेगा, तो मुझे घात करेगा। यहोवा ने कहा, एक बछिया साय ले जाकर कहना, कि मैं यहोवा के लिथे यज्ञ करने को आया हूं।
3. और यज्ञ पर यिशै को न्योता देता, तब मैं तुझे जता दूंगा कि तुझ को क्या करना है; और जिसको मैं तुझे बताऊं उसी को मेरी ओर से अभिषेक करना।
4. तब शमूएल ने यहोवा के कहने के अनुसार किया, और बेतलहेम को गया। उस नगर के पुरनिथे यरयराते हुए उस से मिलने को गए, और कहने लगे, क्या तू मित्रभाव से आया है कि नहीं?
5. उस ने कहा, हां, मित्रभाव से आया हूं; म्ें यहोवा के लिथे यज्ञ करने को आया हूं; तुम अपके अपके को पवित्र करके मेरे साय यज्ञ में आओ। तब उस ने यिशै और उसके पुत्रोंको पवित्र करके यज्ञ में आने का न्योता दिया।
6. जब वे आए, तब उस ने एलीआब पर दृष्टि करके सोचा, कि निश्चय जो यहोवा के साम्हने है वही उसका अभिषिक्त होगा।
7. परन्तु यहोवा ने शमूएल से कहा, न तो उसके रूप पर दृष्टि कर, और न उसके डील की ऊंचाई पर, क्योंकि मैं ने उसे अयोग्य जाना है; क्योंकि यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है; मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है।
8. तब यिशै ने अबीनादाब को बुलाकर शमूएल के साम्हने भेजा। और उस से कहा, यहोवा ने इसको भी नहीं चुना।
9. फिर यिशै ने शम्मा को साम्हने भेजा। और उस ने कहा, यहोवा ने इसको भी नहीं चुना।
10. योंही यिशै ने अपके सात पुत्रोंको शमूएल के साम्हने भेजा। और शमूएल यिशै से कहता गया, यहोवा ने इन्हें नहीं चुना।
11. तब शमूएल ने यिशै से कहा, क्या सब लड़के आ गए? वह बोला, नहीं, लहुरा तो रह गया, और वह भेड़-बकरियोंको चरा रहा है। शमूएल ने यिशै से कहा, उसे बुलवा भेज; क्योंकि जब तक वह यहां न आए तब तक हम खाने को न बैठेंगे।
12. तब वह उसे बुलाकर भीतर ले आया। उसके तो लाली फलकती यी, और उसकी आंखें सुन्दर, और उसका रूप सुडौल या। तब यहोवा ने कहा, उठकर इस का अभिषेक कर: यही है।
13. तब शमूएल ने अपना तेल का सींग लेकर उसके भाइयोंके मध्य में उसका अभिषेक किया; और उस दिन से लेकर भविष्य को यहोवा का आत्मा दाऊद पर बल से उतरता रहा। तब शमूएल उठकर रामा को चला गया।।
14. और यहोवा का आत्मा शाऊल पर से उठ गया, और यहोवा की ओर से एक दुष्ट आत्मा उसे घबराने लगा।
15. और शाऊल के कर्मचारियोंने उस से कहा, सुन, परमेश्वर की ओर से एक दुष्ट आत्मा तुझे घबराता है।
16. हमारा प्रभु अपके कर्मचारियोंको जो उपस्यित हैं आज्ञा दे, कि वे किसी अच्छे वीणा बजानेवाले को ढूंढ़ ले आएं; और जब जब परमेश्वर की ओर से दुष्ट आत्मा तुझ पर चढ़े, तब तब वह अपके हाथ से बजाए, और तू अच्छा हो जाए।
17. शाऊल ने अपके कर्मचारियोंसे कहा, अच्छा, एक उत्तम बजवैया देखो, और उसे मेरे पास लाओ।
18. तब एक जवान ने उत्तर देके कहा, सुन, मैं ने बेतलहमी यिशै के एक पुत्र को देखा जो वीणा बजाना जानता है, और वह वीर योद्धा भी है, और बात करने में बुद्धिमान और रूपवान भी है; और यहोवा उसके साय रहता है।
19. तब शाऊल ने दूतोंके हाथ यिशै के पास कहला भेजा, कि अपके पुत्र दाऊद को जो भेड़-बकरियोंके साय रहता है मेरे पास भेज दे।
20. तब यिशै ने रोटी से लदा हुआ एक गदहा, और कुप्पा भर दाखमधु, और बकरी का एक बच्चा लेकर अपके पुत्र दाऊद के हाथ से शाऊल के पास भेज दिया।
21. और दाऊद शाऊल के पास जाकर उसके साम्हने उपस्यित रहने लगा। और शाऊल उस से बहुत प्रीति करने लगा, और वह उसका हयियार ढोनेवाला हो गया।
22. तब शाऊल ने यिशै के पास कहला भेजा, कि दाऊद को मेरे साम्हने उपस्यित रहने दे, क्योंकि मैं उस से बहुत प्रसन्न हूं।
23. और जब जब परमेश्वर की ओर से वह आत्मा शाऊल पर चढ़ता या, तब तब दाऊद वीणा लेकर बजाता; और शाऊल चैन पाकर अच्छा हो जाता या, और वह दुष्ट आत्मा उस में से हट जाता या।।

Chapter 17

1. अब पलिश्तियोंने युद्ध के लिथे अपक्की सेनाओं को इकट्ठा किया; और यहूदा देश के सोको में एक साय होकर सोको और अजेका के बीच एपेसदम्मीम में डेरे डाले।
2. और शाऊल और इस्राएली पुरूषोंने भी इकट्ठे होकर एला नाम तराई में डेरे डाले, और युद्ध के लिथे पलिश्तियोंके विरूद्ध पांती बान्धी।
3. पलिश्ती तो एक ओर के पहाड़ पर और इस्राएली दूसरी ओर के पहाड़ पर और इस्राएली दूसरी ओर के पहाड़ पर खड़े रहे; और दोनोंके बीच तराई यी।
4. तब पलिश्तियोंकी छावनी में से एक वीर गोलियत नाम निकला, जो गत नगर का या, और उसके डील की लम्बाई छ: हाथ एक बित्ता यी।
5. उसके सिर पर पीतल का टोप या; और वह एक पत्तर का फिलम पहिने हुए या, जिसका तौल पांच हजार शेकेल पीतल का या।
6. उसकी टांगोंपर पीतल के कवच थे, और उस से कन्धोंके बीच बरछी बन्धी यी।
7. उसके भाले की छड़ जुलाहे के डोंगी के समान यी, और उस भाले का फल छ: सौ शेकेल लोहे का या, और बड़ी ढाल लिए हुए एक जन उसके आगे आगे चलता या
8. वह खड़ा होकर इस्राएली पांतियोंको ललकार के बोला, तुम ने यहां आकर लड़ाई के लिथे क्योंपांति बान्धी है? क्या मैं पलिश्ती नहीं हूं, और तुम शाऊल के अधीन नहीं हो? अपके में से एक पुरूष चुना, कि वह मेरे पास उत्तर आए।
9. यदि वह मुझ से लड़कर मुझे मार सके, तब तो हम तुम्हारे अधीन हो जाएंगे; परन्तु यदि मैं उस पर प्रबल होकर मांरू, तो तुम को हमारे अधीन होकर हमारी सेवा करनी पकेगी।
10. फिर वह पलिश्ती बोला, मैं आज के दिन इस्राएली पांतियोंको ललकारता हूं, किसी पुरूष को मेरे पास भेजो, कि हम एक दूसरे से लड़ें।
11. उस पलिश्ती की इन बातोंको सुनकर शाऊल और समस्त इस्राएलियोंका मन कच्च हो गया, और वे अत्यन्त डर गए।।
12. दाऊद तो यहूदा के बेतलेहेम के उस एप्राती पुरूष को पुत्र या, जिसका नाम यिशै या, और उसके आठ पुत्र थे और वह पुरूष शाऊल के दिनोंमें बूढ़ा और निर्बल हो गया या।
13. यिशै के तीन बड़े पुत्र शाऊल के पीछे होकर लड़ने को गए थे; और उसके तीन पुत्रोंके नाम जो लड़ने को गए थे थे थे, अर्यात्‌ ज्थेश्ठ का नाम एलीआब, दूसरे का अबीनादाब, और तीसरे का शम्मा या।
14. और सब से छोटा दाऊद या; और तीनोंबड़े पुत्र शाऊल के पीछे होकर गए थे,
15. और दाऊद बेतलहेम में अपके पिता की भेड़ बकरियां चराने को शाऊल के पास से आया जाया करता या।।
16. वह पलिश्ती तो चालीस दिन तक सवेरे और सांफ को निकट आकर खड़ा हुआ करता या।
17. और यिशै ने अपके पुत्र दाऊद से कहा, यह एपा भर चबैना, और थे दस रोटियां लेकर छावनी में अपके भाइयोंके पास दौड़ जा;
18. और पक्कीर की थे दस टिकियां उनके सहस्रपति के लिथे ले जा। और अपके भाइयोंका कुशल देखकर उन की कोई चिन्हानी ले आना।
19. शाऊल, और वे भाई, और समस्त इस्राएली पुरूष एला नाम तराई में पलिश्तियोंसे लड़ रहे थे।
20. और दाऊद बिहान को सबेरे उठ, भेड़ बकरियोंको किसी रखवाले के हाथ में छोड़कर, उन वस्तुओं को लेकर चला; और जब सेना रणभूमि को जा रही, और संग्राम के लिथे ललकार रही यी, उसी समय वह गाडिय़ोंके पड़ाव पर पहुंचा।
21. तब इस्राएलियोंऔर पलिश्तियोंने अपक्की अपक्की सेना आम्हने साम्हने करके पांति बांन्धी।
22. औ दाऊद अपक्की समग्री सामान के रखवाले के हाथ में छोड़कर रणभूमि को दौड़ा, और अपके भाइयोंके पास जाकर उनका कुशल झेम पूछा।
23. वह उनके साय बातें कर ही रहा या, कि पलिश्तियोंकी पांतियोंमें से वह वीर, अर्यात्‌ गतवासी गालियत नाम वह पलिश्ती योद्धा चढ़ आया, और पहिले की सी बातें कहने लगा। और दाऊद ने उन्हें सुना।
24. उस पुरूष को देखकर सब इस्राएली अत्यन्त भय खाकर उसके साम्हने से भागे।
25. फिर इस्राएली पुरूष कहने लगे, क्या तुम ने उस पुरूष को देखा है जो चढ़ा आ रहा है? निश्चय वह इस्राएलियोंको ललकारने को चढ़ा आता है; और जो कोई उसे मार डालेगा उसको राजा बहुत धन देगा, और अपक्की बेटी ब्याह देगा, और उसके पिता के घराने को इस्राएल में स्वतन्त्र कर देगा।
26. तब दाऊद ने उन पुरूषोंसे जो उसके आस पास खड़े थे पूछा, कि जो उस पलिश्ती को मारके इस्राएलियोंकी नामधराई दूर करेगा उसके लिथे क्या किया जाएगा? वह खतनारहित पलिश्ती तो क्या है कि जीवित परमेश्वर की सेना को ललकारे?
27. तब लोगोंने उस से वही बातें कहीं, अर्यात्‌ यह, कि जो कोई उसे मारेगा उस से ऐसा ऐसा किया जाएगा।
28. जब दाऊद उन मनुष्योंसे बातें कर रहा या, तब उसका बड़ा भाई एलीआब सुन रहा या; और एलीआब दाऊद से बहुत क्रोधित होकर कहने लगा, तू यहां क्या आया है? और जंगल में उन योड़ी सी भेड़ बकरियोंको तू किस के पास छोड़ आया है? तेरा अभिमान और तेरे मन की बुराई मुझे मालूम है; तू तो लड़ाई देखने के लिथे यहां आया है।
29. दाऊद ने कहा, मैं ने अब क्या किया है, वह तो निरी बात यी?
30. तब उस ने उसके पास से मुंह फेरके दूसरे के सम्मुख होकर वैसी ही बात कही; और लोगोंने उसे पहिले की नाई उत्तर दिया।
31. जब दाऊद की बातोंकी चर्चा हुई, तब शाऊल को भी सुनाई गई; औश्र् उस ने उसे बुलवा भेजा।
32. तब दाऊद ने शाऊल से कहा, किसी मनुष्य का मन उसके कारण कच्चा न हो; तेरा दास जाकर उस पलिश्ती से लड़ेगा।
33. शाऊल ने दाऊद से कहा, तू जाकर उस पलिश्ती के विरूद्ध नहीं युद्ध कर सकता; क्योंकि तू तो लड़का ही है, और वह लड़कपन ही से योद्धा है।
34. दाऊद ने शाऊल से कहा, तेरा दास अपके पिता की भेड़ बकरियां चराता या; और जब कोई सिंह वा भालू फुंड में से मेम्ना उठा ले गया,
35. तब मैं ने उसका पीछा करके उसे मारा, और मेम्ने को उसके मुंह से छुड़ाया; और जब उस ने मुझ पर चढ़ाई की, तब मैं ने उसके केश को पकड़कर उसे मार डाला।
36. तेरे दास ने सिंह और भालू दोनोंको मार डाला; और वह खतनारहित पलिश्ती उनके समान हो जाएगा, क्योंकि उस ने जीवित परमेश्वर की सेना को ललकारा है।
37. फिर दाऊद ने कहा, यहोवा जिस ने मुझ सिंह और भालू दोनोंके पंजे से बचाया है, वह मुझे उस पलिश्ती के हाथ से भी बचाएगा। शाऊल ने दाऊद से कहा, जा, यहोवा तेरे साय रहे।
38. तब शाऊल ने अपके वस्त्र दाऊद को पहिनाए, और पीतल का टोप उसके सिर पर रख दिया, और फिलम उसको पहिनाया।
39. और दाऊद ने उसकी तलवार वस्त्र के ऊपर कसी, और चलने का यत्न किया; उस ने तो उनको न परखा या। इसलिथे दाऊद ने शाऊल से कहा, इन्हें पहिने हुए मुझ से चला नहीं जाता, क्योंकि मैं ने नहीं परखा। और दाऊद ने उन्हें उतार दिया।
40. तब उस ने अपक्की लाठी हाथ में ले नाले में से पांच चिकने पत्यर छांटकर अपक्की चरवाही की यैली, अर्यात्‌ अपके फोले में रखे; और अपना गोफन हाथ में लेकर पलिश्ती के निकट चला।
41. और पलिश्ती चलते चलते दाऊद के निकट पहुंचने लगा, और जो जन उसकी बड़ी ढाल लिए या वह उसके आगे आगे चला।
42. जब पलिश्ती ने दृष्टि करके दाऊद को देखा, तब उसे तुच्छ जाना; क्योंकि वह लड़का ही या, और उसके मुख पर लाली फलकती यी, औश्र् वह सुन्दर या।
43. तब पलिश्ती ने दाऊद से कहा, क्या मैं कुत्ता हूं, कि तू लाठी लेकर मेरे पास आता है? तब पलिश्ती अपके देवताओं के नाम लेकर दाऊद को कोसने लगा।
44. फिर पलिश्ती ने दाऊद से कहा, मेरे पास आ, मैं तेरा मांस आकाश के पझियोंऔर बनपशुओं को दे दूंगा।
45. दाऊद ने पलिश्ती से कहा, तू तो तलवार और भाला और सांग लिए हुए मेरे पास आता है; परन्तु मैं सेनाओं के यहोवा के नाम से तेरे पास आता हूं, जो इस्राएली सेना का परमेश्वर है, और उसी को तू ने ललकारा है।
46. आज के दिन यहोवा तुझ को मेरे हाथ में कर देगा, और मैं तुझ को मारूंगा, और तेरा सिर तेरे धड़ से अलग करूंगा; और मैं आज के दिन पलिश्ती सेना की लोथें आकाश के पझियोंऔर पृय्वी के जीव जन्तुओं को दे दूंगा; तब समस्त पृय्वी के लोग जान लेंगे कि इस्राएल में एक परमेश्वर है।
47. और यह समस्त मण्डली जान लेगी की यहोवा तलवार वा भाले के द्वारा जयवन्त नहीं करता, इसलिथे कि संग्राम तो यहोवा का है, और वही तुम्हें हमारे हाथ में कर देगा।
48. जब पलिश्ती उठकर दाऊद का साम्हना करने के लिथे निकट आया, तब दाऊद सना की ओर पलिश्ती का साम्हना करने के लिथे फुर्ती से दौड़ा।
49. फिर दाऊद ने अपक्की यैली में हाथ डालकर उस में से एक पत्यर निकाला, और उसे गोफन में रखकर पलिश्ती के माथे पर ऐसा मारा कि पत्यर उसके माथे के भीतर घुस गया, और वह भूमि पर मुंह के बल गिर पड़ा।
50. योंदाऊद ने पलिश्ती पर गोफन और एक ही पत्यर के द्वारा प्रबल होकर उसे मार डाला; परन्तु दाऊद के हाथ में तलवार न यी।
51. तब दाऊद दौड़कर पलिश्ती के ऊपर खड़ा हुआ, और उसकी तलवार पकड़कर मियान से खींची, और उसको घात किया, और उसका सिर उसी तलवार से काट डाला। यह देखकर कि हमारा वीर मर गया पलिश्ती भाग गए।
52. इस पर इस्राएली और यहूद पुरूष ललकार उठे, और गत और एक्रोन से फाटकोंतक पलिश्तियोंका पीछा करते गए, और घायल पलिश्ती शारैम के मार्ग में और गत और एक्रोन तक गिरते गए।
53. तब इस्राएली पलिश्तियोंका पीछा छोड़कर लौट आए, और उनके डेरोंको लूट लिया।
54. और दाऊद पलिश्ती का सिर यरूशलेम में ले गया; और उसके हयियार अपके डेरे में धर लिए।।
55. जब शाऊल ने दाऊद को उस पलिश्ती का साम्हना करने के लिथे जाते देखा, तब उस ने अपके सेनापति अब्नेर से पूछा, हे अब्नेर, वह जवान किस का पुत्र है? अब्नेर ने कहा, हे राजा, तेरे जीवन की शपय, मैं नहीं जानता।
56. राजा ने कहा, तू पूछ ले कि वह जवान किस का पुत्र है।
57. जब दाऊद पलिश्ती को मारकर लौटा, तब अब्नेर ने उसे पलिश्ती का सिर हाथ में लिए हुए शाऊल के साम्हने पहुंचाया।
58. शाऊल ने उस से पूछा, हे जवान, तू किस का पुत्र है? दाऊद ने कहा, मैं तो तेरे दास बेतलेहेमी यिशै का पुत्र हूं।।

Chapter 18

1. जब वह शाऊल से बातें कर चुका, तब योनातान का मन दाऊद पर ऐसा लग गया, कि योनातान उसे अपके प्राण के बराबर प्यार करने लगा।
2. और उस दिन से शाऊल ने उसे अपके पास रखा, और पिता के घर को फिर लौटने न दिया।
3. ब योनातान ने दाऊद से वाचा बान्धी, क्योंकि वह उसको अपके प्राण के बराबर प्यार करता या।
4. और योनातान ने अपना बागा जो वह स्वयं पहिने या उतारकर अपके वस्त्र समेत दाऊद को दे दिया, वरन अपक्की तलवार और धनुष और कटिबन्ध भी उसको दे दिए।
5. और जहां कहीं शाऊल दाऊद को भेजता या वहां वह जाकर बुद्धिमानी के साय काम करता या; और शाऊल ने उसे योद्धाओं का प्रधान नियुक्त किया। और समस्त प्रजा के लोग और शाऊल के कर्मचारी उस से प्रसन्न थे।।
6. जब दाऊद उस पलिश्ती को मारकर लौटा आता या, और वे सब लोग भी आ रहे थे, तब सब इस्राएली नगरोंसे स्त्रियोंने निकलकर डफ और तिकोने बाजे लिए हुए, आनन्द के साय गाती और नाचक्की हुई, शाऊल राजा के स्वागत में निकलीं।
7. और वे स्त्रियां नाचक्की हुइ एक दूसरी के साय यह गाती गईं, कि शाऊल ने तो हजारोंको, परन्तु दाऊद ने लाखोंको मारा है।।
8. तब शाऊल अति क्रोधित हुआ, और यह बात उसको बुरी लगी; और वह कहने लगा, उन्होंने दाऊद के लिथे तो लाखोंऔर मेरे लिथे हजारोंको ठहराया; इसलिथे अब राज्य को छोड़ उसको अब क्या मिलना बाकी है?
9. तब उस दिन से भविष्य में शाऊल दाऊद की ताक में लगा रहा।।
10. दूसरे दिन परमेश्वर की ओर से ऐ दृष्ट आत्मा शाऊल पर बल से उतरा, और वह अपके घर के भीतर नबूवत करने लगा; दाऊद प्रति दिवस की नाईं अपके हाथ से बजा रहा या। और शाऊल अपके हाथ में अपना भाला लिए हुए या;
11. तब शाऊल ने यह सोचकर, कि मैं ऐसा मारूंगा कि भाला दाऊद को बेधकर भीत में धंस जाए, भाले को चलाया, परन्तु दाऊद उसके साम्हने से दो बार हट गया।
12. और शाऊल दाऊद से डरा करता या, क्योंकि यहोवा दाऊद के साय या और शाऊल के पास से अलग हो गया या।
13. शाऊल ने उसको अपके पास से अलग करके सहस्रपति किया, और वह प्रजा के साम्हने आया जाया करता या।
14. और दाऊद अपक्की समस्त चाल में बुद्धिमानी दिखाता या; और यहोवा उसके साय साय या।
15. और जब शाऊल ने देखा कि वह बहुत बुद्धिमान है, तब वह उस से डर गया।
16. परन्तु इस्राएल और यहूदा के समस्त लोग दाऊद से प्रेम रखते थे; क्योंकि वह उनके देखते आया जाया करता या।।
17. और शाऊल ने यह सोचकर, कि मेरा हाथ नहीं, वरन पलिश्तियोंही का हाथ दाऊद पर पके, उस से कहा, सुन, मैं अपक्की बड़ी बेटी मेरब को तुझे ब्याह दूंगा; इतना कर, कि तू मेरे लिथे वीरता के साय यहोवा की ओर से युद्ध कर।
18. दाऊद ने शाऊल से कहा, मैं क्या हूं, और मेरा जीवन क्या है, और इस्राएल में मेरे पिता का कुल क्या है, कि मैं राजा का दामाद हो जाऊं?
19. जब समय आ गया कि शाऊल की बेटी मेरब दाऊद से ब्याही जाए, तब वह महोलाई अद्रीएल से ब्याही गई।
20. और शाऊल की बेटी मीकल दाऊद से प्रीति रखने लगी; और जब इस बात का समाचार शाऊल को मिला, तब वह प्रसन्न हुआ।
21. शाऊल तो सोचता या, कि वह उसके लिथे फन्दा हो, और पलिश्तियोंका हाथ उस पर पके। और शाऊल ने दाऊद से कहा, अब की बार तो तू अवश्य ही मेरा दामाद हो जाएगा।
22. फिर शाऊल ने अपके कर्मचारियोंको आज्ञा दी, कि दाऊद से छिपकर ऐसी बातें करो, कि सुन, राजा तुझ से प्रसन्न है, और उसके सब कर्मचारी भी तुझ से प्रेम रखते हैं; इसलिथे अब तू राजा का दामाद हो जा।
23. तब शाऊल के कर्मचारियोंने दाऊद से ऐसी ही बातें कहीं। परन्तु दाऊद ने कहा, मैं तो निर्धन और तुच्छ मनुष्य हूं, फिर क्या तुम्हारी दृष्टि में राजा का दामाद होना छोटी बात है?
24. जब शाऊल के कर्मचारियोंने उसे बताया, कि दाऊद ने ऐसी ऐसी बातें कहीं।
25. तब शाऊल ने कहा, तुम दाऊद से योंकहो, कि राजा कन्या का मोल तो कुछ नहीं चाहता, केवल पलिश्तियोंकी एक सौ खलडिय़ां चाहता है, कि वह अपके शत्रुओं से पलटा ले। शाऊल की मनसा यह यी, कि पलिश्तियोंसे दाऊद को मरवा डाले।
26. जब उसके कर्मचारियोंने दाऊद से यह बातें बताईं, तब वह राजा का दामाद होने को प्रसन्न हुआ। जब ब्याह के दिन कुछ रह गए,
27. तब दाऊद अपके जनोंको संग लेकर चला, और पलिश्तियोंके दो सौ पुरूषोंको मारा; तब दाऊद उनकी खलडिय़ोंको ले आया, और वे राजा को गिन गिन कर दी गईं, इसलिथे कि वह राजा का दामाद हो जाए। और शाऊल ने अपक्की बेटी मीकल को उसे ब्याह दिया।
28. जब शाऊल ने देखा, और निश्चय किया कि यहोवा दाऊद के साय है, और मेरी बेटी मीकल उस से प्रेम रखती है,
29. तब शाऊल दाऊद से और भी डर गया। और शाऊल सदा के लिथे दाऊद का बैरी बन गया।।
30. फिर पलिश्तियोंके प्रधान निकल आए, और जब जब वे निकल आए तब तब दाऊद ने शाऊल के और सब कर्मचारियोंसे अधिक बुद्धिमानी दिखाई; इस से उसका नाम बहुत बड़ा हो गया।।

Chapter 19

1. और शाऊल ने अपके पुत्र योनातन और अपके सब कर्मचारियोंसे दाऊद को मार डालने की चर्चा की। परन्तु शाऊल का पुत्र योनातन दाऊद से बहुत प्रसन्न या।
2. और योनातन ने दाऊद को बताया, कि मेरा पिता तुझे मरवा डालना चाहता है; इसलिथे तू बिहान को सावधान रहना, और किसी गुप्त स्यान में बैठा हुआ छिपा रहना;
3. और मैं मैदान में जहां तू होगा वहां जाकर अपके पिता के पास खड़ा होकर उस से तेरी चर्चा करूंगा; और यदि मुझे कुछ मालूम हो तो तुझे बताऊंगा।
4. और योनातन ने अपके पिता शाऊल से दाऊद की प्रशंसा करके उस से कहा, कि हे राजा, अपके दास दाऊद का अपराधी न हो; क्योंकि उस ने तेरा कुछ अपराध नहीं किया, वरन उसके सब काम तेरे बहुत हित के हैं;
5. उस ने अपके प्राण पर खेलकर उस पलिश्ती को मार डाला, और यहोवा ने समस्त इस्राएलियोंकी बड़ी जय कराई। इसे देखकर तू आनन्दित हुआ या; और तू दाऊद को अकारण मारकर निर्दोष के खून का पापी क्योंबने?
6. तब शाऊल ने योनातन की बात मानकर यह शपय खाई, कि यहोवा के जीवन की शपय, दाऊद मार डाला न जाएगा।
7. तब योनातन ने दाऊद को बुलाकर थे समस्त बातें उसको बताई। फिर योनातन दाऊद को शाऊल के पास ले गया, और वह पहिले की नाईं उसके साम्हने रहने लगा।।
8. तब फिर लड़ाई होने लगी; और दाऊद जाकर पलिश्तियोंसे लड़ा, और उन्हें बड़ी मार से मारा, और वे उसके साम्हने से भाग गए।
9. और जब शाऊल हाथ में भाला लिए हुए घर में बैठा या; और दाऊद हाथ से बजा रहा ााि, तब यहोवा की ओर से एक दुष्ट आत्मा शाऊल पर चढ़ा।
10. और शाऊल ने चाहा, कि दाऊद को ऐसा मारे कि भाला उसे बेधते हुए भीत में धंस जाए; परन्तु दाऊद शाऊल के साम्हने से ऐसा हट गया कि भाला जाकर भीत ही में धंस गया। और दाऊद भागा, और उस रात को बच गया।
11. और शाऊल ने दाऊद के घर पर दूत इसलिथे भेजे कि वे उसकी घात में रहें, और बिहान को उसे मार डालें, तब दाऊद की स्त्री मीकल ने उसे यह कहकर जताया, कि यदि तू इस रात को अपना प्राण न बचाए, तो बिहान को मारा जाएगा।
12. तब मीकल ने दाऊद को खिड़की से उतार दिया; और वह भाग कर बच निकला।
13. तब मीकल ने गृहदेवताओं को ले चारपाई पर लिटाया, और बकरियोंके रोएं की तकिया उसके सिरहाने पर रखकर उन को वस्त्र ओढ़ा दिए।
14. जब शाऊल ने दाऊद को पकड़ लाने के लिथे दूत भेजे, तब वह बोली, वह तो बीमार है।
15. तब शाऊल ने दूतोंको दाऊद के देखने के लिथे भेजा, और कहा, उसे चारपाई समेत मेरे पास लाओ कि मैं उसे मार डालूं।
16. जब दूत भीतर गए, तब क्या देखते हैं कि चारपाई पर गृहदेवता पके हैं, और सिरहाने पर बकरियोंके रोएं की तकिया है।
17. सो शाऊल ने मीकल से कहा, तू ने मुझे ऐसा धोखा क्योंदिया? तू ने मेरे शत्रु को ऐसा क्योंजाने दिया कि वह बच निकला है? मीकल ने शाऊल से कहा, उस ने मुझ से कहा, कि मुझे जाने दे; मैं तुझे क्योंमार डालूं।।
18. और दाऊद भागकर बच निकला, और रामा में शमूएल के पास पहुंचकर जो कुछ शाऊल ने उस से किया या सब उसे कह सुनाया। तब वह और शमूएल जाकर नबायोत में रहने लगे।
19. जब शाऊल ने दाऊद के पकड़ लाने के लिथे दूत भेजे; और जब शाऊल के दूतोंने नबियोंके दल को नबूवत करते हुए देखा, तब परमेश्वर का आत्मा उन पर चढ़ा, और वे भी नबूवत करने लगे।
20. तब शाऊल ने दाऊद के पकड़ लाने के लिथे दूत भेजे; और जब शाऊल के दूतोंने नबियोंके दल को नबूवत करते हुए, और शमूएल को उनकी प्रधानता करते हुए देखा, तब परमेश्वर का आत्मा उन पर चढ़ा, और वे भी नबूवत करने लगे।
21. इसका समाचार पाकर शाऊल ने और दूत भेजे, और वे भी नबूवत करने लगे। फिर शाऊल ने तीसरी बार दूत भेजे, और वे भी नबूवत करने लगे।
22. तब वह आप ही राता को चला, और उस बड़े गड़हे पर जो सेकू में है पहुंचकर पूछने लगा, कि शमूएल और दाऊद कहां है? किसी ने कहा, वे तो रामा के नबायोत में हैं।
23. तब वह उधर, अर्यात्‌ रामा के नबायोत को चला; और परमेश्वर का आत्मा उस पर भी चढ़ा, और वह रामा के नबायोत को पहुंचने तक नबूवत करता हुआ चला गया।
24. और उस ने भी अपके वस्त्र उतारे, और शमूएल के साम्हने नबूवत करने लगा, और भूमि पर गिरकर दिन और रात नंगा पड़ा रहा। इस कारण से यह कहावत चक्की, कि क्या शाऊल भी नबियोंमें से है?

Chapter 20

1. फिर दाऊद रामा के नबायोत से भागा, और योनातन के पास जाकर कहने लगा, मैं ने क्या किया है? मुझ से क्या पाप हुआ? मैं ने तेरे पिता की दृष्टि में ऐसा कौन सा अपराध किया है, कि वह मेरे प्राण की खोज में रहता है?
2. उस ने उस से कहा, ऐसी बात नहीं है; तू मारा न जाएगा। सुन, मेरा पिता मुझ को बिना जताए न तो कोई बड़ा काम करता है और न कोई छोटा; फिर वह ऐसी बात को मुझ से क्योंछिपाएगा? ऐसी कोई बात नहीं है।
3. फिर दाऊद ने शपय खाकर कहा, तेरा पिता निश्चय जानता है कि तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर है; और वह सोचता होगा, कि योनातन इस बात को न जानने पाए, ऐसा न हो कि वह खेदित हो जाए। परन्तु यहोवा के जीवन की शपय और तेरे जीवन की शपय, नि:सन्देह, मेरे और मृत्यु के बीच डग ही भर का अन्तर है।
4. योनातान ने दाऊद से कहा, जो कुछ तेरा जी चाहे वही मैं तेरे लिथे करूंगा।
5. दाऊद ने योनातान से कहा, सुन कल नया चाँद होगा, और मुझे उचित है कि राजा के साय बैठकर भोजन करूं; परन्तु तू मुझे विदा कर, और मैं परसोंसांफ तक मैदान में छिपा रहूंगा।
6. यदि तेरा पिता मेरी कुछ चिन्ता करे, तो कहना, कि दाऊद ने अपके नगर बेतलेहेम को शीघ्र जाने के लिथे मुझ से बिनती करके छुट्टी मांगी है; क्योंकि वहां उसके समस्त कुल के लिथे वाषिर्क यज्ञ है।
7. यदि वह योंकहे, कि अच्छा! तब तो तेरे दास के लिथे कुशल होगा; परन्तु यदि उसका कोप बहुत भड़क उठे, तो जान लेना कि उस ने बुराई ठानी है।
8. और तू अपके दास से कृपा का व्यवहार करना, क्योंकि तू ने यहोवा की शपय खिलाकर अपके दास को अपके साय वाचा बन्धाई है। परन्तु यदि मुझ से कुछ अपराध हुआ हो, तो तू आप मुझे मार डाल; तू मुझे अपके पिता के पास क्योंपहुंचाए?
9. योनातन ने कहा, ऐसी बात कभी न होगी! यदि मैं निश्चय जानता कि मेरे पिता ने तुझ से बुराई करनी ठानी है, तो क्या मैं तुझ को न बताता?
10. दाऊद ने योनातन से कहा, यदि तेरा पिता तुझ को कठोर उत्तर दे, तो कौन मुझे बताएगा?
11. योनातन ने दाऊद से कहा, चल हम मैदान को निकल जाएं। और वे दोनो मैदान की ओर चले गए।।
12. तब योनातन दाऊद से कहने लगा; इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की शपय, जब मैं कल वा परसोंइसी समय अपके पिता का भेद पांऊ, तब यदि दाऊद की भलाई देखूं, तो क्या मैं उसी समय तेरे पास दूत भेजकर तुझे न बताऊंगा?
13. यदि मेरे पिता का मन तेरी बुराई करने का हो, और मैं तुझ पर यह प्रगट करके तुझे विदा न करूँ कि तू कुशल के साय चला जाए, तो यहोवा योनातन से ऐसा ही वरन इस से भी अधिक करे। और यहोवा तेरे साय वैसा ही रहे जैसा वह मेरे पिता के साय रहा।
14. और न केवल जब तक मैं जीवित रहूं, तब तक मुझ पर यहोवा की सी कृपा ऐसा करना, कि मैं न मरूं;
15. परन्तु मेरे घराने पर से भी अपक्की कृपादृष्टि कभी न हटाना! वरन जब यहोवा दाऊद के हर एक शत्रु को पृय्वी पर से नाश कर चुकेगा, तब भी ऐसा न करना।
16. इस प्रकार योनातन ने दाऊद के घराने से यह कहकर वाचा बन्धाई, कि यहोवा दाऊद के शत्रुओं से पलटा ले।
17. और योनातन दाऊद से प्रेम रखता या, और उस ने उसको फिर शपय खिलाई; क्योंकि वह उस ने अपके प्राण के बारबर प्रेम रखता या।
18. तब योनातन ने उस से कहा, कल नया चाँद होगा; और तेरी चिन्ता की जाएगी, क्योंकि तेरी कुर्सी खाली रहेगी।
19. और तू तीन दिन के बीतने पर तुरन्त आना, और उस स्यान पर जाकर जहां तू उस काम के दिन छिपा या, अर्यात्‌ एजेल नाम पत्यर के पास रहना।
20. तब मैं उसकी अलंग, मानो अपके किसी ठहराए हुए चिन्ह पर तीन तीर चलाऊंगा।
21. फिर मैं अपके टहलुए छोकरे को यह कहकर भेजूंगा, कि जाकर तीरोंको ढूंढ ले आ। यदि मैं उस छोकरे से साफ साफ कहूं, कि देख तीर इधर तेरी इस अलंग पर हैं, तो तू उसे ले आ, क्योंकि यहोवा के जीवन की शपय, तेरे लिथे कुशल को छोड़ और कुछ न होगा।
22. परन्तु यदि मैं छोकरे से योंकहूं, कि सुन, तीर उधर तेरे उस अलंग पर है, तो तू चला जाना, क्योंकि यहोवा ने तुझे विदा किया है।
23. और उस बात के विषय जिसकी चर्चा मैं ने और तू ने आपस में की है, यहोवा मेरे और तेरे मध्य में सदा रहे।।
24. इसलिथे दाऊद मैदान में जा छिपा; और जब नया चाँद हुआ, तक राजा भोजन करने को बैठा।
25. राजा तो पहिले की नाईं अपके उस आसन पर बैठा जो भीत के पास या; और योनातन खड़ा हुआ, और अब्नेर शाऊल के निकट बैठा, परन्तु दाऊद का स्यान खाली रहा।
26. उस दिन तो शाऊल यह सोचकर चुप रहा, कि इसका कोई न कोई कारण होगा; वह अशुद्ध होगा, नि:सन्देह शुद्ध न होगा।
27. फिर नथे चाँद के दूसरे दिन को दाऊद का स्यान खाली रहा। और शाऊल ने अपके पुत्र योनातन से पूछा, क्या कारण है कि यिशै का पुत्र न तो कल भोजन पर आया या, और न आज ही आया है?
28. योनातन ने शाऊल से कहा, दाऊद ने बेतलेहेम जाने के लिथे मुझ से बिनती करके छुट्टी मांगी;
29. और कहा, मुझे जाने दे; क्योंकि उस नगर में हमारे कुल का यज्ञ है, और मेरे भाई ने मुझ को वहां उपस्यित होने की आज्ञा दी है। और अब यदि मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो, तो मुझे जाने दे कि मैं अपके भाइयोंसे भेंट कर आऊं। इसी कारण वह राजा की मेज पर नहीं आया।
30. तब शाऊल का कोप योनातन पर भड़क उठा, और उस ने उस से कहा, हे कुटिला राजद्रोही के पुत्र, क्या मैं नहीं जानता कि तेरा मन तो यिशै के पुत्र पर लगा है? इसी से तेरी आशा का टूटना और तेरी माता का अनादर ही होगा।
31. क्योंकि जब तक यिशै का पुत्र भूमि पर जीवित रहेगा, तब तक न तो तू और न तेरा राज्य स्यिर रहेगा। इसलिथे अभी भेजकर उसे मेरे पास ला, क्योंकि निश्चय वह मार डाला जाएगा।
32. योनातन ने अपके पिता शाऊल को उत्तर देकर उस से कहा, वह क्योंमारा जाए? उस ने क्या किया है?
33. तब शाऊल ने उसको मारने के लिथे उस पर भाला चलाया; इससे योनातन ने जान लिया, कि मेरे पिता ने दाऊद को मार डालना ठान लिया है।
34. तब योनातन क्रोध से जलता हुआ मेज पर से उठ गया, और महीने के दूसरे दिन को भोजन न किया, क्योंकि वह बहुत खेदित या, इसलिथे कि उसके पिता ने दाऊद का अनादर किया या।।
35. बिहान को योनातन एक छोटा लड़का संग लिए हुए मैदान में दाऊद के साय ठहराए हुए स्यान को गया।
36. तब उस ने अपके छोकरे से कहा, दौड़कर जो जो तीर मैं चलाऊं उन्हें ढूंढ़ ले आ। छोकरा दौड़ता ही या, कि उस ने एक तीर उसके पके चलाया।
37. जब छोकरा योनातन के चलाए तीर के स्यान पर पहुंचा, तब योनातन ने उसके पीछे से पुकारके कहा, तीर तो तेरी परली ओर है।
38. फिर योनातन ने छोकरे के पीछे से पुकारकर कहा, बड़ी फुर्ती कर, ठहर मत। और योनातन ने छोकरे के पीछे से पुकारके कहा, बड़ी फुर्ती कर, ठहर मत! और योनातन का छोकरा तीरोंको बटोरके अपके स्वामी के पास ल आया।
39. इसका भेद छोकरा तो कुछ न जानता या; केवल योनातन और दाऊद इस बात को जानते थे।
40. और योनातन ने अपके हयियार अपके छोकरे को देकर कहा, जा, इन्हें नगर को पहुंचा।
41. ज्योंही छोकरा चला गया, त्योंही दाऊद दक्खिन दिशा की अलंग से निकला, और भूमि पर औंधे मुंह गिरके तीन बार दण्डवत्‌ की; तब उन्होंने एक दूसरे को चूमा, और एक दूसरे के साय रोए, परन्तु दाऊद को रोना अधिक या।
42. तब योनातन ने दाऊद से कहा, कुशल से चला जा; क्योंकि हम दोनोंने एक दूसरे से यह कहके यहोवा के नाम की शपय खाई है, कि यहोवा मेरे और तेरे मध्य, और मेरे और तेरे वंश के मध्य में सदा रहे। तब वह उठकर चला गया; और योनातन नगर में गया।।

Chapter 21

1. और दाऊद नोब को अहीमेलेक याजक के पास आया; और अहीमेलेक दाऊद से भेंट करने को यरयराता हुआ निकला, और उस से पूछा, क्या कारण है कि तू अकेला है, और तेरे साय कोई नहीं?
2. दाऊद ने अहीमेलेक याजक से कहा, राजा ने मुझे एक काम करने की आज्ञा देकर मुझ से कहा, जिस काम को मैं तुझे भेजता, और जो आज्ञा मैं तुझे देता हूं, वह किसी पर प्रकट न होने पाए; और मैं ने जवानोंको फलाने स्यान पर जाने को समझाया है।
3. अब तेरे हाथ में क्या है? पांच रोटी, वा जो कुछ मिले उसे मेरे हाथ में दे।
4. याजक ने दाऊद से कहा, मेरे पास साधारण रोटी तो कुछ नहीं है, केवल पवित्र रोटी है; इतना हो कि वे जवान स्त्रियोंसे अलग रहे हों।
5. दाऊद ने याजक को उत्तर देकर उस से कहा, सच है कि हम तीन दिन से स्त्रियोंसे अलग हैं; फिर जब मैं निकल आया, तब तो जवानोंके बर्तन पवित्र थे; यद्यपि यात्रा साधारण है तो आज उनके बर्तन अवश्य ही पवित्र होंगे।
6. तब याजक ने उसको पवित्र रोटी दी; क्योंकि दूसरी रोटी वहां न यी, केवल भेंट की रोटी यी जो यहोवा के सम्मुख से उठाई गई यी, कि उसके उठा लेने के दिन गरम रोटी रखी जाए।
7. उसी दिन वहां दोएग नाम शाऊल का एक कर्मचारी यहोवा के आगे रूका हुआ या; वह एदोमी और शाऊल के चरवाहोंका मुखिया या।
8. फिर दाऊद ने अहीमेलेक से पूछा, क्या यहां तेरे पास कोई भाला व तलवार नहीं है? क्योंकि मुझे राजा के काम की ऐसी जल्दी यी कि मैं न तो तलवार साय लाया हूं, और न अपना कोई हयियार ही लाया।
9. याजक ने कहा, हां, पलिश्ती गोलियत जिसे तू ने एला तराई में घात किया उसकी तलवार कपके में लपेअी हुई एपोद के पीदे धरी है; यदि तू उसे लेना चाहे, तो ले ले, उसे छोड़ और कोई यहां नहीं है। दाऊद बोला, उसके तुल्य कोई नहीं; वही मुझे दे।।
10. तब दाऊद चला, और उसी दिन शाऊल के डर के मारे भागकर गत के राजा आकीश के पास गया।
11. और आकीश के कर्मचारियोंने आकीश से कहा, क्या वह उस देश का राजा दाऊद नहीं है? क्या लोगोंने उसी के विषय नाचते नाचते एक दूसरे के साय यह गाना न गया या, कि शाऊल ने हजारोंको, और दाऊद ने लाखोंको मारा है?
12. दाऊद ने थे बातें अपके मन में रखीं, और गत के राजा आकीश से अत्यन्त डर गया।
13. तब वह उनके साम्हने दूसरी चाल चक्की, और उनके हाथ में पड़कर बौड़हा, अर्यात पागल बन गया; और फाटक के किवाडोंपर लकीरें खींचते, और अपक्की लार अपक्की दाढ़ी पर बहाने लगा।
14. तब आकीश ने अपके कर्मचारियोंसे कहा, देखो, वह जन तो बावला है; तुम उसे मेरे पास क्योंलाए हो?
15. क्या मेरे पास बावलोंकी कुछ घटी है, कि तुम उसको मेरे साम्हने बावलापन करने के लिथे लाए हो? क्या ऐसा जन मेरे भवन में आने पाएगा?

Chapter 22

1. और दाऊद वहां से चला, और अदुल्लाम की गुफा में पहुंचकर बच गया; और यह सुनकर उसके भाईं, वरन उसके पिता का समस्त घराना वहां उसके पास गया।
2. और जितने संकट में पके थे, और जितने ऋणी थे, और जितने उदास थे, वे एक उसके पास इकट्ठे हुए; और हव उनका प्रधान हुआ। और कोई चार सौ पुरूष उसके साय हो गए।।
3. वहां से दाऊद ने मोआब के मिसपे को जाकर मोआब के राजा से कहा, मेरे पिता को अपके पास तब तक आकर रहने दो, जब तक कि मैं न जानूं कि परमेश्वर मेरे लिथे क्या करेगा।
4. और वह उनको मोआब के राजा के सम्मुख ले गया, और जब तक दाऊद उस गढ़ में रहा, तब तक वे उसके पास रहे।
5. फिर गाद नाम एक नबी ने दाऊद से कहा, इस गढ़ में मत रह; चल, यहूदा के देश में जा। और दाऊद चलकर हेरेत के बन में गया।।
6. तब शाऊल ने सुना कि दाऊद और उसके संगियोंका पता लग गया हैं उस समय शाऊल गिबा के ऊंचे स्यान पर, एक फाऊ के पेड़ के तले, हाथ में अपना भाला लिए हुए बैठा या, और उसके कर्मचारी उसके आसपास खड़े थे।
7. तब शाऊल अपके कर्मचारियोंसे जो उसके आसपास खड़े थे कहने लगा, हे बिन्यामीनियों, सुनो; क्या यिशै का पुत्र तुम सभोंको खेत और दाख की बारियां देगा? क्या वह तुम सभोंको सहस्रपति और शतपति करेगा?
8. तुम सभोंने मेरे विरूद्ध क्योंराजद्रोह की गोष्ठी की है? और जब मेरे पुत्र ने यिशै के पुत्र से वाचा बान्धी, तब किसी ने मुझ पर प्रगट नहीं किया; और तुम में से किसी ने मेरे लिथे शोकित होकर मुझ पर प्रगट नहीं किया, कि मेरे पुत्र ने मेरे कर्मचारी को मेरे विरूद्ध ऐसा घात लगाने को उभारा है, जैसा आज के दिन है।
9. तब एदोमी दोएग ने, जो शाऊल के सेवकोंके ऊपर ठहराया गया या, उत्तर देकर कहा, मैं ने तो यिशै के पुत्र को नोब में अहीतूब के पुत्र अहीमेलेक के पास आते देखा,
10. और उस ने उसके लिथे यहोवा से पूछा, और उसे भोजन वस्तु दी, और पलिश्ती गोलियत की तलवार भी दी।
11. और राजा ने अहीतूब के पुत्र अहीमेलेक याजक को और उसके पिता के समस्त घराने को, बुलवा भेजा; और जब वे सब के सब शाऊल राज के पास आए,
12. तब शाऊल ने कहा, हे अहीतूब के पुत्र, सुन, वह बोला, हे प्रभु, क्या आज्ञा?
13. शाऊल ने उस से पुछा, क्या कारण है कि तू और यिशै के पुत्र दोनोंने मेरे विरूद्ध राजद्रोह की गोष्ठी की है? तू ने उसे रोटी और तलवार दी, और उसके लिथे परमेश्वर से पूछा भी, जिस से वह मेरे विरूद्ध उठे, और ऐसा घात लगाए जैसा आज के दिन है?
14. अहीमेलेक ने राजा को उत्तर देकर कहा, तेरे समस्त कर्मचारियोंमें दाऊद के तुल्य विश्वासयोग्य कौन है? वह तो राजा का दामाद है, और तेरी राजसभा में उपस्यित हुआ करत, और तेरे परिवार में प्रतिष्ठित है।
15. क्या मैं ने आज ही उसके लिथे परमेश्वर से पूछना आरम्भ किया है? वह मुझ से दूर रहे! राजा न तो अपके दास पर ऐसा कोई दोष लगाए, न मेरे पिता के समस्त घराने पर, क्योंकि तेरा दास इन सब बखेड़ोंके विषय कुछ भी नहीं जानता।
16. राजा ने कहा, हे अहीमेलेक, तू और तेरे पिता का समस्त घराना निश्चय मार डाला जाएगा।
17. फिर राजा ने उन पहरूओं से जो उसके आसपास खड़े थे आज्ञा दी, कि मुड़ो और यहोवा के याजकोंको मार डालो; क्योंकि उन्होंने भी दाऊद की सहाथता की है, और उसका भागना जानने पर भी मुझ पर प्रगट नहीं किया। परन्तु राजा के सेवक यहोवा के याजकोंको मारने के लिथे हाथ बढ़ाना न चाहते थे।
18. तब राजा ने दोएग से कहा, तू मुड़कर याजकोंको मार डाल। तब एदोमी दोएग ने मुड़कर याजकोंको मारा, और उस दिन सनीवाला एपोद पहिने हुए पचासी पुरूषोंको घात किया।
19. और याजकोंके नगर नोब को उस ने स्त्रियों-पुरूषों, और बालबच्चों, और दूधपिउवों, और बैलों, गदहों, और भेड़-बकरियोंसमेत तलवार से मारा।
20. परन्तु अहीतूब के पुत्र अहीमेलेक का एब्यातार नाम एक पुत्र बच निकला, और दाऊद के पास भाग गया।
21. तब एब्यातार ने दाऊद को बताया, कि शाऊल ने यहोवा के याजकोंको बध किया है।
22. और दाऊद ने एब्यातार से कहा, जिस दिन एदोमी दोएग वहां या, उसी दिन मैं ने जान लिया, कि वह निश्चय शाऊल को बताएगा। तेरे पिता के समस्त घराने के मारे जाने का कारण मैं ही हुआ।
23. इसलिथे तू मेरे साय निडर रह; जो मेरे प्राण का ग्राहक है वही तेरे प्राण का भी ग्राहक है; परन्तु मेरे साय रहने से तेरी रझा होगी।।

Chapter 23

1. और दाऊद को यह समाचार मिला कि पलिश्ती लोग कीला नगर से युद्ध कर रहे हैं, और खलिहानोंको लूट रहे हैं।
2. तब दाऊद ने यहोवा से पूछा, कि क्या मैं जाकर पलिश्तियोंको मारूं? यहोवा ने दाऊद से कहा, जा, और पलिश्तियोंको मार के कीला को बचा।
3. परन्तु दाऊद के जनोंने उस से कहा, हम तो इस यहूदा देश में भी डरते रहते हैं, यदि हम कीला जाकर पलिश्तियोंकी सेना का साम्हना करें, तो क्या बहुत अधिक डर में न पकेंगे?
4. तब दाऊद ने यहोवा से फिर पूछा, और यहोवा ने उसे उत्तर देकर कहा, कमर बान्धकर कीला को जा; क्योंकि मैं पलिश्तियोंको तेरे हाथ में कर दूंगा।
5. इसलिथे दाऊद अपके जनोंको संग लेकर कीला को गया, और पलिश्तियोंसे लड़कर उनके पशुओं को हांक लाया, और उन्हें बड़ी मार से मारा। योंदाऊद ने कीला के निवासिक्कों बचाया।
6. जब अहीमेलेक का पुत्र एब्यातार दाऊद के पास कीला को भाग गया या, तब हाथ में एपोद लिए हुए गया या।।
7. तब शाऊल को यह समाचार मिला कि दाऊद कीला को गया है। और शाऊल ने कहा, परमेश्वर ने उसे मेरे हाथ में कर दिया है; वह तो फाटक और बेंड़ेवले नगर में घुसकर बन्द हो गया है।
8. तब शाऊल ने अपक्की सारी सेना को लड़ाई के लिथे बुलवाया, कि कीला को जाकर दाऊद और उसके जनोंको घेर ले।
9. तब दाऊद ने जान लिया कि शाऊल मेरी हानि कि युक्ति कर रहा है; इसलिथे उस ने एब्यातार याजक से कहा, एपोद को निकट ले आ।
10. तब दाऊद ने कहा, हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा, तेरे दास ने निश्चय सुना है कि शाऊल मेरे कारण कीला नगर नाश करने को आना चाहता है।
11. क्या कीला के लोग मुझे उसके वश में कर देंगे? क्या जैसे तेरे दास ने सुना है, वैसे ही शाऊल आएगा? हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा, अपके दास को यह बता। यहोवा ने कहा, हां, वह आएगा।
12. फिर दाऊद ने पूछा, क्या कीला के लोग मुझे और मेरे जनोंको शाऊल के वश में कर देंगे? यहोवा ने कहा, हां, वे कर देंगे।
13. तब दाऊद और उसके जन जो कोई छ: सौ थे कीला से निकल गए, और इधर उधर जहां कहीं जा सके वहां गए। और जब शाऊल को यह बताया गया कि दाऊद कीला से निकला भाग है, तब उस ने वहां जाने की मनसा छोड़ दी।।
14. जब दाऊद जो जंगल के गढ़ोंमें रहने लगा, और पहाड़ी देश के जीप नाम जंगल में रहा। और शाऊल उसे प्रति दिन ढूंढ़ता रहा, परन्तु परमेश्वर ने उसे उसके हाथ में न पड़ने दिया।
15. और दाऊद ने जान लिया कि शाऊल मेरे प्राण की खोज में निकला है। और दाऊद जीप नाम जंगल के होरेश नाम स्यान में या;
16. कि शाऊल का पुत्र योनातन उठकर उसके पास होरेश में गया, और परमेश्वर की चर्चा करके उसको ढाढ़स दिलाया।
17. उस ने उस से कहा, मत डर; क्योंकि तू मेरे पिता शाऊल के हाथ में न पकेगा; और तू ही इस्राएल का राजा होगा, और मैं तेरे नीचे हूंगा; और इस बात को मेरा पिता शाऊल भी जानता है।
18. तब उन दोनोंने यहोवा की शपय खाकर आपस में वाचा बान्धी; तब दाऊद होरेश में रह गया, और योनातन अपके घर चला गया।
19. तब जीपी लोग गिबा में शाऊल के पास जाकर कहने लगे, दाऊद तो हमारे पास होरेश के गढ़ोंमें, अर्यात्‌ उस हकीला नाम पहाड़ी पर छिपा रहता है, जो यशीमोन के दक्खिन की ओर है।
20. इसलिथे अब, हे राजा, तेरी जो इच्छा आने की है, तो आ; और उसको राजा के हाथ में पकड़वा देना हमारा काम होगा।
21. शाऊल ने कहा, यहोवा की आशीष तुम पर हो, क्योंकि तुम ने मुझ पर दया की है।
22. तुम चलकर और भी निश्चय कर लो; और देख भालकर जान लो, और उसके अड्डे का पता लगा लो, और बूफो कि उसको वहां किसने देखा है; क्योंकि किसी ने मुझ से कहा है, कि वह बड़ी चतुराई से काम करता है।
23. इसलिथे जहां कहीं वह छिपा करता है उन सब स्यानोंको देख देखकर पहिचानो, तब निश्चय करके मेरे पास लौट आना। और मैं तुम्हारे साय चलूंगा, और यदि वह उस देश में कहीं भी हो, तो मैं उसे यहूदा के हजारोंमें से ढूंढ़ निकालूंगा।
24. तब वे चलकर शाऊल से पहिले जीप को गए। परन्तु दाऊद अपके जनोंसमेत माओन नाम जंगल में चला गया या, जो अराबा में यशीमोन के दक्खिन की ओर है।
25. तब शाऊल अपके जनोंको साय लेकर उसकी खोज में गया। इसका समाचार पाकर दाऊद पर्वत पर से उतरके माओन जंगल में रहने लगा। यह सुन शाऊल ने माओन जंगल में दाऊद का पीछा किया।
26. शाऊल तो पहाड़ की एक ओर, और दाऊद अपेन जनोंसमेत पहाड़ की दूसरी ओर जा रहा या; और दाऊद शाऊल के डर के मारे जल्दी जा रहा या, और शाऊल अपके जनोंसमेत दाऊद और उसके जनोंको पकड़ने के लिथे घेरा बनाना चाहता या,
27. कि एक दूत ने शाऊल के पास आकर कहा, फुर्ती से चला आ; क्योंकि पलिश्तियोंने देश पर चढ़ाई की है।
28. यह सुन शाऊल दाऊद का पीछा छोड़कर पलिश्तियोंका साम्हना करने को चला; इस कारण उस स्यान का नाम सेलाहम्महलकोत पड़ा।
29. वहां से दाऊद चढ़कर एनगदी के गढ़ोंमें रहने लगा।।

Chapter 24

1. जब शाऊल पलिश्तियोंका पीछा करके लौटा, तब उसको यह समाचार मिला, कि दाऊद एनगदी के जंगल में है।
2. तब शाऊल समस्त इस्राएलियोंमें से तीन हजार को छांटकर दाऊद और उसके जनोंको बनैले बकरोंकी चट्टानोंपर खोजने गया।
3. जब वह मार्ग पर के भेड़शालोंके पास पहुंचा जहां एक गुफा यी, तब शाऊल दिशा फिरने को उसके भीतर गया। और उसी गुफा के कोनोंमें दाऊद और उसके जन बैठे हुए थे।
4. तब दाऊद के जनोंने उस से कहा, सुन, आज वही दिन है जिसके विषय यहोवा ने तुझ से कहा या, कि मैं तेरे शत्रु को तेरे हाथ में सौंप दूंगा, कि तू उस से मनमाना बर्ताव कर ले। तब दाऊद ने उठकर शाऊल के बागे की छोर को छिपकर काट लिया।
5. इसके पीछे दाऊद शाऊल के बागे की छोर काटने से पछताया।
6. और अपके जनोंसे कहने लगा, यहोवा न करे कि मैं अपके प्रभु से जो यहोवा का अभिषिक्त है ऐसा काम करूं, कि उस पर हाथ चलाऊं, क्योंकि वह यहोवा का अभिषिक्त है।
7. ऐसी बातें कहकर दाऊद ने अपके जनोंको घुड़की लगाई और उन्हें शाऊल की हानि करने को उठने न दिया। फिर शाऊल उठकर गुफा से निकला और अपना मार्ग लिया।
8. उसके पीछे दाऊद भी उठकर गुफा से निकला और शाऊल को पीछे से पुकार के बोला, हे मेरे प्रभु, हे राजा। जब शाऊल ने फिर के देखा, तब दाऊद ने भूमि की ओर सिर फुकाकर दण्डवत्‌ की।
9. और दाऊद ने शाऊल से कहा, जो मनुष्य कहते हैं, कि दाऊद तेरी हानि चाहता है उनकी तू क्योंसुनता है?
10. देख, आज तू ने अपक्की आंखोंसे देखा है कि यहोवा ने आज गुफा में तुझे मेरे हाथ सौंप दिया या; और किसी किसी ने तो मुझ से तुझे मारने को कहा या, परन्तु मुझे तुझ पर तरस आया; और मैं ने कहा, मैं अपके प्रभु पर हाथ न चलाऊंगा; क्योंकि वह यहोवा का अभिषिक्त है।
11. फिर, हे मेरे पिता, देख, अपके बागे की छोर मेरे हाथ में देख; मैं ने तेरे बागे की छोर तो काट ली, परन्तु तुझे घात न किया; इस से निश्चय करके जान ले, कि मेरे मन में कोई बुराई वा अपराध का सोच नहीं है। और मैं ने तेरा कुछ अपराध नहीं किया, परन्तु तू मेरे प्राण लेने को मानो उसका अहेर करता रहता है।
12. यहोवा मेरा और तेरा न्याय करे, और यहोवा तुझ से मेरा पलटा ले; परन्तु मेरा हाथ तुझ पर न उठेगा।
13. प्राचीनोंके नीति वचन के अनुसार दुष्टता दुष्टोंसे होती है; परन्तु मेरा हाथ तुझ पर न उठेगा।
14. इस्राएल का राजा किस का पीछा करने को निकला है? और किस के पीछे पड़ा है? एक मरे कुत्ते के पीछे! एक पिस्सू के पीछे!
15. इसलिथे यहोवा न्यायी होकर मेरा तेरा विचार करे, और विचार करके मेरा मुकद्दमा लड़े, और न्याय करके मुझे तेरे हाथ से बचाए।
16. दाऊद शाऊल से थे बातें कही चुका या, कि शाऊल ने कहा, हे मेरे बेटे दाऊद, क्या यह तेरा बोल है? तब शाऊल चिल्लाकर रोने लगा।
17. फिर उस ने दाऊद से कहा, तू मुझ से अधिक धर्मी है; तू ने तो मेरे साय भलाई की है, परन्तु मैं ने तेरे साय बुराई की।
18. और तू ने आज यह प्रगट किया है, कि तू ने मेरे साय भलाई की है, कि जब यहोवा ने मुझे तेरे हाथ में कर दिया, तब तू ने मुझे घात न किया।
19. भला! क्या कोई मनुष्य अपके शत्रु को पाकर कुशल से जाने देता है? इसलिथे जो तू ने आज मेरे साय किया है, इसका अच्छा बदला यहोवा तुझे दे।
20. और अब, मुझे मालूम हुआ है कि तू निश्चय राजा को जाएगा, और इस्राएल का राज्य तेरे हाथ में स्यिर होगा।
21. अब मुझ से यहोवा की शपय खा, कि मैं तेरे वंश को तेरे पीछे नाश न करूंगा, और तेरे पिता के घराने में से तेरा नाम मिटा न डालूंगा।
22. तब दाऊद ने शाऊल से ऐसी ही शपय खाई। तब शाऊल अपके घर चला गया; और दाऊद अपके जनोंसमेत गढ़ोंमें चला गया।

Chapter 25

1. और शमूएल मर गया; और समस्त इस्राएलियोंने इकट्ठे होकर उसके लिथे छाती पीटी, और उसके घर ही में जो रामा में या उसको मिट्टी दी। तब दाऊद उठकर पारान जंगल को चला गया।।
2. माओन में एक पुरूष रहता या जिसका माल कर्मेल में या। और वह पुरूष बहुत बड़ा या, और उसके तीन हजार भेड़ें, और एक हजार बकरियोंयीं; और वह अपक्की भेड़ोंका ऊन कतर रहा या।
3. उस पुरूष का नाम नाबाल, और उसकी पत्नी का नाम अबीगैल या। स्त्री तो बुद्धिमान और रूपवती यी, परन्तु पुरूष कठोर, और बुरे बुरे काम करनेवाला या; वह तो कालेबवंशी या।
4. जब दाऊद ने जंगल में समाचार पाया, कि नाबाल अपक्की भेड़ोंका ऊन कतर रहा है;
5. तब दाऊद ने दस जवानोंको वहां भेज दिया, ओर दाऊद ने उन जवानोंसे कहा, कि कर्मेल में नाबाल के पास जाकर मेरी ओर से उसका कुशलझेम पूछो।
6. और उस से योंकहो, कि तू चिरंजीव रहे, तेरा कल्याण हो, और तेरा घराना कल्याण से रहे, और जो कुछ तेरा है वह कल्याण से रहे।
7. मैं ने सुना है, कि जो तू ऊन कतर रहा है; तेरे चरवाहे हम लोगोंके पास रहे, और न तो हम ने उनकी कुछ हानि की, और न उनका कुछ खोया गया।
8. अपके जवानोंसे यह बात पूछ ले, और वे तुझ का बताएंगे। सो इन जवानोंपर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो; हम तो आनन्द के समय में आए हैं, इसलिथे जो कुछ तेरे हाथ लगे वह अपके दासोंऔर अपके बेटे दाऊद को दे।
9. ऐसी ऐसी बातें दाऊद के जवान जाकर उसके नाम से नाबाल को सुनाकर चुप रहे।
10. नाबाल ने दाऊद के जनोंको उत्तर देकर उन से कहा, दाऊद कौन है? यिशै का पुत्र कौन है? आज कल बहुत से दास अपके अपके स्वामी के पास से भाग जाते हैं।
11. क्या मैं अपक्की रोटी-पानी और जो पशु मैं ने अपके कतरनेवालोंके लिथे मारे हैं लेकर ऐसे लोगोंको दे दूं, जिनको मैं नहीं जानता कि कहां के हैं?
12. तब दाऊद के जवानोंने लौटकर अपना मार्ग लिया, और लौटकर उसको से सब बातें ज्योंकी त्योंसुना दीं।
13. तब दाऊद ने अपके जनोंसे कहा, अपक्की अपक्की तलवार बान्ध लो। तब उन्होंने अपक्की अपक्की तलवार बान्ध ली; और दाऊद ने भी अपक्की तलवार बान्घ ली; और कोई चार सौ पुरूष दाऊद के पीछे पीछे चले, और दो सौ समान के पास रह गए।
14. परन्तु एक सेवक ने नाबाल की पत्नी अबीगैल को बताया, कि दाऊद ने जंगल से हमारे स्वामी को आशीर्वाद देने के लिथे दूत भेजे थे; और उस ने उन्हें ललकारा दिया।
15. परन्तु वे मनुष्य हम से बहुत अच्छा बर्ताव रखते थे, और जब तक हम मैदान में रहते हुए उनके पास आया जाया करते थे, तब तक न तो हमारी कुछ हानि हुई, और न हमारा कुछ खोया गया;
16. जब तक हम उन के साय भेड़-बकरियां चराते रहे, तब तक वे रात दिन हमारी आड़ बने रहे।
17. इसलिथे अब सोच विचार कर कि क्या करना चाहिए; क्योंकि उन्होंने हमारे स्वामी की ओर उसके समस्त घराने की हानि ठानी होगी, वह तो ऐसा दुष्ट है कि उस से कोई बोल भी नहीं सकता।
18. अब अबीगैल ने फुर्ती से दो सौ रोटी, और दो कुप्पी दाखमधु, और पांच भेडिय़ोंका मांस, और पांच सआ भूना हुआ अनाज, और एक सौ गुच्छे किशमिश, और अंजीरोंकी दो सौ टिकियां लेकर गदहोंपर लदवाई।
19. और उस ने अपके जवानोंसे कहा, तुम मेरे आगे आगे चलो, मैं तुम्हारे पीछे पीछे आती हूं; परनतु उस ने अपके पति नाबाल से कुछ न कहा।
20. वह गदहे पर चक्की हुई पहाड़ की आड़ में उतरी जाती यी, और दाऊद अपके जनोंसमेत उसके सामहने उतरा आता या; और वह उनको मिली।
21. दाऊद ने तो सोचा या, कि मैं ने जो जंगल में उसके सब माल की ऐसी रझा की कि उसका कुछ भी न खोया, यह नि:सन्देह व्यर्य हुआ; क्योंकि उस ने भलाई के बदले मुझ से बुराई ही की है।
22. यदि बिहान को उजियाला होने तक उस जन के समस्त लोगोंमें से एक लड़के को भी मैं जीवित छोड़ूं, तो परमेश्वर मेरे सब शत्रुओं से ऐसा ही, वरन इस से भी अधिक करे।
23. दाऊद को देख अबीगैल फुर्ती करके गदहे पर से उतर पक्की, और दाऊद के सम्मुख मुंह के बल भूमि पर गिरकर दण्डवत्‌ की।
24. फिर वह उसके पांव पर गिरके कहने लगी, हे मेरे प्रभु, यह अपराण मेरे ही सिर पर हो; तेरी दासी तुझ से कुछ कहना चाहती है, और तू अपक्की दासी की बातोंको सुन ले।
25. मेरा प्रभु उस दुष्ट नाबाल पर चित्त न लगाए; क्योंकि जैसा उसका नाम है वैसा ही वह आप है; उसका नाम तो नाबाल है, और सचमुच उस में मूढ़ता पाई जाती है; परन्तु मुझ तेरी दासी ने अपके प्रभु के जवानोंको जिन्हें तू ने भेजा या न देखा या।
26. और अब, हे मेरे प्रभु, यहोवा के जीवन की शपय और तेरे जीवन की शपय, कि यहोवा ने जो तुझे खून से और अपके हाथ के द्वारा अपना पलटा लेने से रोक रखा है, इसलिथे अब तेरे शत्रु और मेरे प्रभु की हाति के चाहनेवाले नाबाल ही के समान ठहरें।
27. और अब यह भेंट जो तेरी दासी अपके प्रभु के पास लाई है, उन जवानोंको दी जाए जो मेरे प्रभु के साय चालते हैं।
28. अपक्की दासी का अपराध झमा कर; क्योंकि यहोवा निश्चय मेरे प्रभु का घर बसाएगा और स्यिर करेगा, इसलिथे कि मेरा प्रभु यहोवा की ओर से लड़ता है; और जन्म भर तुझ में कोई बुराई नहीं पाई जाएगी।
29. और यद्यपि एक मनुष्य तेरा पीछा करनेऔर तेरे प्राण का ग्राहक होने को उठा है, तौभी मेरे प्रभु का प्राण तेरे परमेश्वर यहोवा की जीवनरूपी गठरी में बन्धा रहेगा, और तेरे शत्रुओं के प्राणोंको वह मानो गोफन में रखकर फेंक देगा।
30. इसलिथे जब यहोवा मेरे प्रभु के लिथे यह समस्त भलाई करेगा जो उस ने तेरे विषय में कही है, और तुझे इस्राएल पर प्रधान करके ठहराएगा,
31. तब तुझे इस कारण पछताना न होगा, वा मेरे प्रभु का ह्रृदय पीड़ित न होगा कि तू ने अकारण खून किया, और मेरे प्रभु ने अपना पलटा आप लिया है। फिर जब यहोवा मेरे प्रभु से भलाई करे तब अपक्की दासी को स्मरण करना।
32. दाऊद ने अबीगैल से कहा, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा धन्य है, जिस ने आज के दिन मुझ से भेंट करने केलिथे तुझे भेजा है।
33. और तेरा विवेक धन्य है, और तू आप भी धन्य है, कि तू ने मुझे आज के दिन खून करने और अपना पलटा आप लेने से रोक लिया है।
34. क्योंकि सचमुच इस्राएल का परमेश्वर यहोवा, जिस ने मुझे तेरी हानि करने से रोका है, उसके जीवन की शपय, यदि तू फुर्ती करके मुंफ से भेंट करने को न आती, तो नि:सन्देह बिहान को उजियाला होने तक नाबाल का कोई लड़का भी न बचता।
35. तब दाऊद ने उसे ग्रहण किया जो वह उसके लिथे लाई यी; फिर उस से उस ने कहा, अपके घर कुशल से जा; सुन, मैं ने तेरी बात मानी है और तेरी बिनती ग्रहण कर ली है।
36. तब अबीगैल नाबाल के पास लौट गई; और क्या देखती है, कि वह घर में राजा की सी जेवनार कर रहा है। और नाबाल का मन मगन है, और वह नशे में अति चूर हो गया है; इसलिथेउस ने भोर के उजियालेहाने से पहिले उस से कुछ भी न कहा।
37. बिहान को जब नाबाल का नशा उतर गया, तब उसकी पत्नी ने उसे कुल हाल सुना दिया, तब उसके मन का हियाव जाता रहा, और वह पत्यर सा सुन्न हो गया।
38. और दस दिन के पश्चात्‌ यहोवा ने नाबाल को ऐसा मारा, कि वह मर गया।
39. नाबाल के मरने का हाल सुनकर दाऊद ने कहा, धन्य है यहोवा जिस ने नाबाल के साय मेरी नामधराई का मुकद्दमा लड़कर अपके दास को बुराई से रोक रखा; और यहोवा ने नाबाल की बुराईको उसी के सिर पर लाद दिया है। तब दाऊद ने लोगोंको अबीगैल के पास इसलिथे भेजा कि वे उस से उसकी पत्नी होने की बातचीत करें।
40. तो जब दाऊद के सेवक कर्मेल को अबीगैल के पास पहुंचे, तब उस से कहने लगे, कि दाऊद ने हमें तेरे पास इसलिथे भेजा है कि तू उसकी पत्नी बने।
41. तब वह उठी, और मुंह के बल भूमि पर गिर दण्डवत्‌ करके कहा, तेरी दासी अपके प्रभु के सेवकोंके चरण धोने के लिथे लौंडी बने।
42. तब अबीगैल फुर्ती से उठी, और गदहे पर चक्की, और उसकी पांच सहेलियां उसके पीछे पीछे हो ली; और वह दाऊद के दूतोंके पीछे पीछे गई; और उसकी पत्नी हो गई।
43. और दाऊद ने चिज्रैल नगर की अहिनोअम को भी ब्याह लिया, तो वे दोनोंउसकी पत्नियां हुई।
44. परन्तुशाऊल ने अपक्की बेटी दाऊद की पत्नी मीकल को लैश के पुत्र गल्लीमवासी पलती को दे दिया या।।

Chapter 26

1. फिर जीपी लोग गिबा में शाऊल के पास जाकर कहने लगे, क्या दाऊद उस हकीला नाम पहाड़ी पर जो यशीमोन के साम्हने है छिपा नहीं रहता?
2. तब शाऊल उठकर इस्राएल केतीन हजार छांटे हुए योद्धा संग लिए हुए गया कि दाऊद को जीप के जंगल में खोजे।
3. और शाऊल ने अपक्की छावनी मार्ग के पास हकीला नाम पहाड़ी पर जो यशीमोन के साम्हने है डाली। परन्तु दाऊद जंगल में रहा; और उस ने जान लिया, कि शाऊल मेरा पीछा करने को जंगल में आया है;
4. तब दाऊद ने भेदियोंको भेजकर निश्चय कर लिया कि शाऊल सचमुच आ गया है।
5. तब शाऊल उठकर उस स्यान पर गया जहां शाऊल पड़ा या; और दाऊद ने उस स्यान को देखा जहां शाऊल अपके सेनापति नेर के पुत्र अब्नेर समेत पड़ा या, और उसके लोग उसके चारोंओर डेरे डाले हुए थे।
6. तब दाऊद ने हित्ती अहीमेलेक और जरूयाह के पुत्र योआब के भाई अबीशै से कहा, मेरे साय उस छावनी में शाऊल के पास कौन चलेगा? अबीशै ने कहा, तेरे साय मैं चलूंगा।
7. सो दाऊद और अबीशै रातोंरात उन लोगोंके पास गए, और क्या देचाते हैं, कि शाऊल गाडिय़ोंकी आड़ में पड़ा सो रहा है, और उसका भाला उसके सिरहाने भूमि में गड़ा है; और अब्नेर और योद्धा लोग उसके चारोंओर पके हुए हैं।
8. तब अबीशै ने दाऊद से कहा, परमेश्वर ने आज तेरे शत्रु को तेरे हाथ में कर दिया है; इसलिथे अब मैं उसको एक बार ऐसा मारूं कि भाला उसे बेधता हुआ भूमि में धंस जाए, और मुझ को उसे दूसरी बार मारना न पकेगा।
9. दाऊद ने अबीशै से कहा, उसे नाश न कर; क्योंकि यहोवा के अभिषिक्त पर हाथ चलाकर कौन निर्दोष ठहर सकता है।
10. फिर दाऊद ने कहा, यहोवा के जीवन की शपय यहोवा ही उसको मारेगा; वा वह अपक्की मृत्यु से मरेगा; वा वह लड़ाई में जाकर मर जाएगा।
11. यहावो न करे कि मैं अपना हाथ यहोवा के अभिषिक्त पर बढ़ाऊ; अब उसके सिरहाने से भाला और पानी की फारी उठा ले, और हम यहां से चले जाएं।
12. तब दाऊद ने भाले और पानी की फारी को शाऊल के सिरहाने से उठा लिया; और वे चले गए। और किसी ने इसे न देखा, और न जाना, और न कोई जागा; क्योंकि वे सब इस कारण सोए हुए थे, कि यहोवा की ओर से उन में भारी नींद समा गई यी।
13. तब दाऊइ परली ओर जाकर दूर के पहाड़ की चोटी पर खड़ा हुआ, और दोनोंकेबीच बड़ा अन्तर या;
14. और दाऊद ने उन लोगोंको, और नेर के पुत्र अब्नेर कोपुकार के कहा, हे अब्नेरए क्या तू नहीं सुनता? अब्नेर ने उत्तर देकर कहा, तू कौन है जो राजा को पुकारता है?
15. दाऊद ने अब्नेर से कहा, क्या तू पुरूष नहीं है? इस्राएल में तेरे तुल्य कौन है? तू ने अपके स्वामी राजा की चौकसी क्योंनहीं की? एक जन तो तेरे स्वामी राजा को नाश करने घुसा या
16. जो काम तू ने किया है वह अच्छा नहीं। यहोवा के जीवन की शपय तुम लोग मारे जाने के योग्य हो, क्योंकि तुम ने अपके स्वामी, यहोवा के अभिषिक्त की चौकसी नहीं की। और अब देख, राजा का भाला और पानी की घरी जो उसके सिरहान यी वे कहां हैं,
17. तब शाऊल ने दाऊद का बोल पहिचानकर कहा, हे मेरे बेटे दाऊद, क्या यह तेरा बोल है, दाऊद ने कहा, हां, मेरे प्रभु राजा, मेरा ही बोल है।
18. फिर उस ने कहा, मेरा प्रभु अपके दास का पीछा क्योंकरता है? मैं ने क्या किया है? और मुझ से कौन सी बुराई हुई है?
19. अब मेरा प्रभु राजा, अपके दास की बातें सुन ले। यदि यहोवा नेतुझे मेरे विरूद्ध उसकाया हो, तब तो वह भेंट ग्रहण करे; परन्तु यदि आदमियोंने ऐसा किया हो, तो वे यहोवा की ओर से शापित हों, क्योंकि उन्होंने अब मुझे निकाल दिया हैकि मैं यहोवा के निज भाग में न रहूं, और उन्होंने कहा है, कि जा पराए देवताओं की उपासना कर।
20. इसलिथे अब मेरा लोहू यहोवा की आखोंकी ओट में भूमि पर न बहने पाए; इस्राएल का राजा तो एक पिस्सू ढूंढ़ने आया है, जैसा कि कोई पहाड़ोंपर तीतर का अहेर करे।
21. शाऊल ने कहा, मैं ने पाप किया है, हे मेरे बेटे दाऊद लौट आ; मेरा प्राण आज के दिन तेरी दृष्टि में अनमोल ठहरा, इस कारण मैं फिर तेरी कुछ हानि न करूंगा; सुन, मैं ने मूर्खता की, और मुझ से बड़ी भूल हुई है।
22. दाऊद ने उत्तर देकर कहा, हे राजा, भाले को देख, कोई जवान इधर आकर इसे ले जाए।
23. यहोवा एक एक को अपके अपके धर्म और सच्चाई का फल देगा; देख, आज यहोवा ने तुझ को मेरे हाथ में कर दिया या, परन्तु मैं ने यहोवा के अभिषिक्त पर अपना हाथ बढ़ाना उचित न समझा।
24. इसलिथे जैसे तेरे प्राण आज मेरी दृष्टि में प्रिय ठहरे, वैसे ही मेरे प्राण भी यहोवा की दृष्टि में प्रिय ठहरे, और वह मुझे समस्त विपत्तियोंसे छुड़ाए।
25. शाऊल ने दाऊद से कहा, हे मेरे बेटे दाऊद तू धन्य है! तू बड़े बड़े काम करेगा और तेरे काम सुफल होंगे। तब दाऊद ने अपना मार्ग लिया, और शाऊल भी अपके स्यान को लौट गया।।

Chapter 27

1. और दाऊद सोचने लगा, अब मैं किसी न किसी दिन शाऊल के हाथ से नाश हो जाऊंगा; अब मेरे लिथे उत्तम यह है कि मैं पलिश्तियोंके देश में भाग जाऊं; तब शाऊल मेरे विषय निराश होगा, और मुझे इस्राएल के देश के किसी भाग में फिर न ढूढ़ेगा, योंमैं उसके हाथ से बच निकलूंगा।
2. तब दाऊद अपके छ: सौ संगी पुरूषोंको लेकर चला गया, और गत के राजा माओक के पुत्र आकीश के पास गया।
3. और दाऊद और उसके जन अपके अपके परिवार समेत गत में आकीश के पास रहने लगे। दाऊद तो अपक्की दो स्त्रियोंके साय, अर्यात्‌ यिज्रेली अहीनोअब, और नाबाल की स्त्री कर्मेली अबीगैल के साय रहा।
4. जब शाऊल को यह समाचार मिला कि दाऊद गत को भाग गया है, तब उस ने उसे फिर कभी न ढूंढ़ा
5. दाऊद ने आकीश से कहा, यदि मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो, तो देश की किसी बस्ती में मुझे स्यान दिला दे जहां मैं रहूं; तेरा दास तेरे साय राजधनी में क्योंरहे?
6. जब आकीश ने उसे उसी दिन सिकलग बस्ती दी; इस कारण से सिकलग आज के दिन तक यहूदा के राजाओं का बना है।।
7. पलिश्तियोंके देश में रहते रहते दाऊद को एक वर्ष चार महीने बीत गए।
8. और दाऊद ने अपके जनोंसमेत जाकर गशूरियों, गिजिर्यों, और अमालेकियोंपर चढ़ाई की; थे जातियां तो प्राचीन काल से उस देश में रहती यीं जो शूर के मार्ग में मिस्र देश तक है।
9. दाऊद ने उस देश को नाश किया, और स्त्री पुरूष किसी को जीवित न छोड़ा, और भेड़-बकरी, गाय-बैल, गदहे, ऊंट, और वस्त्र लेकर लौटा, और आकीश के पास गया।
10. आकीश ने पूछा, आज तुम ने चढ़ाई तोनहीं की? दाऊद ने कहा, हां, यहूदा यरहमेलियोंऔर केनियोंकी दक्खिन दिशा में।
11. दाऊद ने स्त्री पुरूष किसी को जीवित न छोड़ा कि उन्हें गत में पहुंचाए; उस ने सोचा या, कि ऐसा न हो कि वे हमारा काम बताकर यह कहें, कि दाऊद ने ऐसा ऐसा किया है। वरन जब से वह पलिश्तियोंके देश में रहता है, तब से उसका काम ऐसा ही है।
12. तब आकीश ने दाऊद की बात सच मानकर कहा, यह अपके इस्राएली लागोंकी दृष्टि में अति घृणित हुआ है; इसलिथे यह सदा के लिथे मेरा दास बना रहेगा।।

Chapter 28

1. उन दिनोंमें पलिश्तियोंने इस्राएल से लड़ने के लिथे अपक्की सेना इकट्ठी की। और आकीश ने दाऊद से कहा, निश्चय जान कि तुझे अपके जनोंसमेत मेरे साय सेना में जाना होगा।
2. दाऊद ने आकीश से कहा, इस कारण तू जान लेगा कि तेरा दास क्या करेगा। आकीश ने दाऊद से कहा, इस कारण मैं तुझे अपके सिर का रझक सदा के लिथे ठहराऊंगा।।
3. शमूएल तो मर गया या, और समस्त इस्राएलियोंने उसके विषय छाती पीटी, और उसको उसके नगर रामा में मिट्टी दी यी। और शाऊल ने ओफोंऔर भूतसिद्धि करनेवालोंको देश से निकाल दिया या।।
4. जब पलिश्ती इकट्ठे हुए और शूनेम में छावनी डाली, तो शाऊल ने सब इस्राएलियोंको इकट्ठा किया, और उन्होंने गिलबो में छावनी डाली।
5. पलिश्तियोंकी सेना को देखकर शाऊल डर गया, और उसका मन अत्यन्त भयभीत हो कांप उठा।
6. और जब शाऊल ने यहोवा से पूछा, तब यहोवा ने न तो स्वप्न के द्वारा उस उत्तर दिया, और न ऊरीम के द्वारा, और न भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा।
7. तब शाऊल ने अपके कर्मचारियोंसे कहा, मेरे लिथे किसी भूतसिद्धि करनेवाली को ढूंढो, कि मैं उसके पास जाकर उस से पूछूं। उसके कर्मचारियोंने उस से कहा, एन्दोर में एक भूतसिद्धि करनेवाली रहती है।
8. तब शाऊल ने अपना भेष बदला, और दूसरे कपके पहिनकर, दो मनुष्य संग लेकर, रातोंरात चलकर उस स्त्री के पास गया; और कहा, अपके सिद्धि भूत से मेरे लिथे भावी कहलवा, और जिसका नाम मैं लूंगा उसे बुलवा दे।
9. स्त्री ने उस से कहा, तू जानता है कि शाऊल ने क्या किया है, कि उस ने ओफोंऔर भूतसिद्धि करनेवालोंको देश से नाश किया है। फिर तू मेरे प्राण के लिथे क्योंफंदा लगाता है कि मुझे मरवा डाले।
10. शाऊल ने यहोवा की शपय खाकर उस से कहा, यहोवा के जीवन की शपय, इस बात के कारण तुझे दण्ड न मिलेगा।
11. स्त्री ने पूछा, मैं तेरे लिथे किस को बुलाऊ? उस ने कहा, शमूएल को मेरे लिथे बुला।
12. जब स्त्री ने शमूएल को देखा, तब ऊंचे शब्द से चिल्लाई; और शाऊल से कहा, तू ने मुझे क्योंधोखा दिया? तू तो शाऊल है।
13. राजा ने उस सेकहा, मत डर; तुझे क्या देख पड़ता है? स्त्री ने शाऊल से कहा, मुझे एक देवता पृय्वी में से चढ़ता हुआ दिखाई पड़ता है।
14. उस ने उस से पूछा उस का कैसा रूप ह? उस ने कहा, एक बूढ़ा पुरूष बागा ओढ़े हुए चढ़ा आता है। तब शाऊल ने निश्चय जानकर कि वह शमूएल है, औंधे मुंह भूमि पर गिरके दण्डवत्‌ किया।
15. शमूएल ने शाऊल से पूछा, तू ने मुझे ऊपर बुलवाकर क्योंसताया है? शाऊल ने कहा, मैं बड़े संकट में पड़ा हूं; क्योंकि पलिश्ती मेरे साय लड़ रहे हैं और परमेश्वर ने मुझे छोड़ दिया, और अब मुझे न तो भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा उत्तर देता है, और न स्वपनोंके; इसलिथे मैं ने तुझे बुलाया कि तू मुझे जता दे कि मैं क्या करूं।
16. शमूएल ने कहा, जब यहोवा तुझे छोड़कर तेरा शत्रु बन गया, तब तू मुझ से क्योंपूछता है?
17. यहोवा ने तो जैसे मुझ से कहलावाया या वैसा ही उस ने व्यवहार किया है; अर्यात्‌ उस ने तेरे हाथ से राज्य छीनकर तेरे पड़ोसी दाऊद को दे दिया है।
18. तू ने जो यहोवा की बात न मानी, और न अमालेकियोंको उसके भड़के हुए कोप के अनुसा दण्ड दिया या, इस कारण यहोवा ने तुझ से आज ऐसा बर्ताव किया।
19. फिर यहोवा तुझ समेत इस्राएलियोंको पलिश्तियोंके हाथ में कर देगा; और तू अपके बेटोंसमेत कल मेरे साय होगा; और इस्राएली सेना को भी यहोवा पलिश्तियोंके हाथ में कर देगा।
20. तब शाऊल तुरन्त मुंह के बल भूमि पर गिर पड़ा, और शमूएल की बातोंके कारण अत्यन्त डर गया; उस ने पूरे दिन और रात भोजन न किया या, इस से उस में बल कुछ भी न रहा।
21. तब वह स्त्री शाऊल के पास गई, और उसको अति व्याकुल देखकर उस से कहा, सुन, तेरी दासी ने तो तेरी बात मानी; और मैं ने अपके प्राण पर खेलकर तेरे वचनोंको सुन लिया जो तू ने मुझ से कहा।
22. तोअब तू भी अपक्की दासी की बात मान; और मैं तेरे साम्हने एक टुकड़ा रोटी रखूं; तू उसे खा, कि जब तू अपना मार्ग ले तब तुझे बल आ जाए।
23. उस ने इनकार करके कहा, मैं न खाऊंगा। परन्तु उसके सेवकोंऔर स्त्री ने मिलकर यहां तक उसे दबाया कि वह उनकी बात मानकर, भूमि पर से उठकर खाट पर बैठ गया।
24. स्त्री के घर में तो एक तैयार किया हुआ बछड़ा या, उस ने फुर्ती करके उसे मारा, फिर आटा लेकर गूंधा, और अखमीरी रोटी बनाकर
25. शाऊल और उसके सेवकोंके आगे लाई; और उन्होंने खाया। तब वे उठकर उसी रात चले गए।।

Chapter 29

1. पलिश्तियोंने अपक्की समस्त सेना को अपेक में इकट्ठा किया; और इस्राएली यिज्रेल के निकट के सोते के पास डेरे डाले हुए थे।
2. तब पलिश्तियोंके सरदार अपके अपके सैकड़ोंऔर हजारोंसमेत आगे बढ़ गए, और सेना के पीछे पीछे आकीश के साय दाऊद भी अपके जनोंसमेत बढ़ गया।
3. तब पलिश्ती हाकिमोंने पूछा, इन इब्रियोंका यहां क्या काम है? आकीश ने पलिश्ती सरदारोंसे कहा, क्या वह इस्राएल के राजा शाऊल का कर्मचारी दाऊद नहीं है, जो क्या जाने कितने दिनोंसे वरन वर्षो से मेरे साय रहता है, और जब से वह भाग आया, तब से आज तक मैने उस में कोई दोष नहीं पाया।
4. तब पलिश्ती हाकिम उस से क्रोधित हुए; और उस से कहा, उस पुरूष को लौटा दे, कि वह उस स्यान पर जाए जो तू ने उसके लिथे ठहराया है; वह हमारे संग लड़ाई में न आने पाएगा, कहीं ऐसा न हो कि वह लड़ाई में हमारा विराधी बन जाए। फिर वह अपके स्वामी से किस रीति से मेल करे? क्या लोगोंके सिर कटवाकर न करेगा?
5. क्या यह वही दाऊद नहीं है, जिसके विषय में लोग नाचते और गाते हुए एक दूसरे से कहते थे, कि शाऊल ने हजारोंको , पर दाऊद ने लाखोंको मारा है?
6. तब आकीश ने दाऊद को बुलाकर उस से कहा, यहोवा के जीवन की शपय तू तो सीधा है, और सेना में तेरा मेरे संग आना जाना भी मुझे भावता है; क्योंकि जब से तू मेरे पास आया तब से लेकर आज तक मैं ने तो तुझ में कोई बुराई नहीं पाई। तौभी सरदार लोग तुझे नहीं चाहते।
7. इसलिथे अब तू कुशल से लौट जा; ऐसा न हो कि पलिश्ती सरदार तुझ से अप्रसन्न हों।
8. दाऊद ने आकीश से कहा, मैं ने क्या किया है? और जब से मैं तेरे साम्हने आया तब से आज तक तू ने अपके दास में क्या पाया है कि अपके प्रभु राजा के शत्रुओं से लड़ने न पाऊं?
9. आकीश ने दाऊद को उत्तर देकर कहा, हां, यह मुझे मालूम है, तू मेरी दृष्टि में तो परमेश्वर के दूत के समान अच्छा लगता है; तौभी पलिश्ती हाकिमोंने कहा है, कि वह हमारे संग लड़ाई में ने जाने पाएगा।
10. इसलिथे अब तू अपके प्रभु के सेवकोंको लेकर जो तेरे साय आए हैं बिहान को तड़के उठना; और तुम बिहान को लड़के उठकर उजियाला होते ही चले जाना।
11. इसलिथे बिहान को दाऊद अपके जनोंसमेत तड़के उठकर पलिश्तियोंके देश को लौअ गया। और पलिश्ती यिज्रेल को चढ़ गए।।

Chapter 30

1. तीसरे दिन जब दाऊद अपके जनोंसमेत सिकलग पहुंचा, तब उन्होंने क्या देखा, कि अमालेकियोंने दक्खिन देश और सिकलग पर चढ़ाई की। और सिकलग को मार के फूंक दिया,
2. और उस में की स्त्री आदि छोटे बड़े जितने थे, सब को बन्धुआई में ले गए; उन्होंने किसी को मार तो नहीं डाला, परन्तु सभोंको लेकर अपना मार्ग लिया।
3. इसलिथे जब दाऊद अपके जनोंसमेत उस नगर में पहुंचा, तब नगर तो जला पड़ा या, और स्त्रियां और बेटे-बेछियां बन्धुआई में चक्की गई यीं।
4. तब दाऊद और वे लोग जो उसके साय थे चिल्लाकर इतना रोए, कि फिर उन में रोने की शक्ति न रही।
5. और दाऊद की दो स्त्रियां, यिज्रेली अहीनोअम, और कर्मैली नाबाल की स्त्री अबीगैल, बन्धुआई में गई यीं।
6. और दाऊद बड़े संकट में पड़ा; क्योंकि लोग अपके बेटे-बेटियोंके कारण बहुत शोकित होकर उस पर पत्यरवाह करने की चर्चा कर रहे थे। परन्तु दाऊद ने अपके परमेश्वर यहोवा को स्मरण करके हियाव बान्धा।।
7. तब दाऊद ने अहीमेलेक के पुत्र एब्यातार याजक से कहा, एपोद को मेरे पास ला। तब एब्यातार एपोद को दाऊद के पास ले आया।
8. और दाऊद ने यहोवा से पूछा, क्या मैं इस दल का पीछा करूं? क्या उसको जा पकडूंगा? उस ने उस से कहा, पीछा कर; क्योंकि तू निश्चय उसको पकड़ेगा, और निसन्देह सब कुछ छुड़ा लाएगा;
9. तब दाऊद अपकेछ: सौ सायी जनोंको लेकर बसोर नाम नाले तक पहुंचा; वहां कुछ लोग छोड़े जाकर रह गए।
10. दाऊद तो चार सौ पुरूषोंसमेत पीछा किए चला गया; परन्तु दौसौ जो ऐसे यक गए थे, कि बसोर नाले के पार न जा सके वहीं रहे।
11. उनको एक मिस्री पुरूष मैदान में मिला, उन्होंने उसे दाऊद के पास ले जाकर रोटी दी; और उस ने उसे खाया, तब उसे पानी पिलाया,
12. फिर उन्होंने उसको अंजीर की टिकिया का एक टुकड़ा और दो गुच्छे किशमिश दिए। और जब उस ने खाया, तब उसके जी में जी आया; उस ने तीन दिन और तीन रात से न तो रोटी खाई यी और न पानी पिया या।
13. तब दाऊद ने उस से पूछा, तू किस का जन है? और कहां का है? उस ने कहा, मैं तो मिस्री जवान अौर एक अमालेकी मनुष्य का दास हूँ; अौर तीन दिन हुए कि मैं बीमार पड़ा, अौर मेरा स्वामी मुझे छोड़ गया।
14. हम लोगोंने करेतियोंकी दक्खिन दिशा में, और यहूदा के देश में, और कालेब की दक्खिन दिशा में चढाई की; और सिकलग को आग लगाकर फूंक दिया या।
15. दाऊद ने उस से पूछा, क्या तू मुझे उस दल के पास पहुंचा देगा? उस ने कहा, मुझ से परमेश्वर की यह शपय खा, कि मैं तुझे न तो प्राण से मारूंगा, और न तेरे स्वामी के हाथ कर दूंगा, तब मैं तुझे उस दल के पास पहुंचा दूंगा।
16. जब उस ने उसे पहुंचाया, तब देखने में आया कि वे सब भूमि पर छिटके हुए खाते पीते, और उस बडी लूट के कारण, जो वे पलिश्तियोंके देश और यहूदा देश से लाए थे, नाच रहे हैं।
17. इसलिथे दाऊद उन्हें रात के पहिले पहर से लेकर दूसरे दिन की सांफ तक मारता रहा; यहां तक कि चार सौ जवान को छोड़, जो ऊंटोंपर चढ़कर भाग गए, उन में से एक भी मनुष्य न बचा।
18. और जो कुछ अमालेकी ले गए थे वह सब दाऊद ने छुड़ाया; और दाऊद ने आपक्की दोनोंस्त्रियोंको भी छुड़ा लिया।
19. वरन उनके क्या छोटे, क्या बड़े,क्या बेटे, क्या बेटियां, क्या लूट का माल, सब कुछ जो अमालेकी ले गए थे, उस में से कोई वस्तु न रही जो उनको न मिली हो; क्योंकि दाऊद सब का सब लौटा लाया।
20. और दाऊद ने सब भेड़-बकरियां, और गाय-बैल भी लूट लिए; और इन्हें लोग यह कहते हुए अपके जानवरोंके आगे हांकते गए, कि यह दाऊद की लूट है।
21. तब दाऊद उन दो सौ पुरुषोंके पास आया, जो ऐसे यक गए थे कि दाऊद के पीछे पीछे न जा सके थे, और बसोर नाले के पास छोड़ दिए गए थे; और वे दाऊद से और उसके संग के लोगोंसे मिलने को चले; और दाऊद ने उनके पास पहुंचकर उनका कुशल झेम पूछा।
22. तब उन लोगोंमें से जो दाऊद के संग गए थे सब दुष्ट और ओछे लोगोंने कहा, थे लोग हमारे साय नही चले थे, इस कारण हम उन्हें अपके छुड़ाए हुए लूट के माल में से कुछ न देंगे, केवल एक एक मनुष्य को उसकी स्त्री और बाल बच्चे देंगे, कि वे उन्हें लेकर चले जाएं।
23. परन्तु दाऊद ने कहा, हे मेरे भाइयो, तुम उस माल के साय एसा न करने पाओगे जिसे यहोवा ने हमें दिया है; और उसने हमारी रझा की, और उस दल को जिस ने हमारे ऊपर चढाई की यी हमारे हाथ में कर दिया है।
24. और इस विषय में तुम्हारी कौन सुनेगा? लड़ाई में जानेवाले का जैसा भाग हो, सामान के पास बैठे हए का भी वैसा ही भाग होगा; दोनोंएक ही समान भाग पाएंगे।
25. और दाऊद ने इस्राएलियोंके लिथे ऐसी ही विधि और नियम ठहराया, और वह उस दिन से लेकर आगे को वरन आज लोंबना है।
26. सिकलग में पहुंचकर दाऊद ने यहूदी पुरनियोंके पास जो उसके मित्र थे लूट के माल में से कुछ कुछ भेजा, और यह कहलाया, कि यहोवा के शत्रुओं से ली हुई लूट में से तुम्हारे लिथे यह भेंट है।
27. अर्यात्‌बेतेल के दक्खिन देश के रामोत,यत्तीर,
28. अरोएर, सिपमोत, एश्तमो,
29. राकाल, यरहमेलियोंके नगरों, केनियोंके नगरों,
30. होर्मा, कोराशान, अताक,
31. हेब्रोन आदि जितने स्यानोंमें दाऊद अपके जनोंसमेत फिरा करता या, उन सब के पुरनियोंके पास उसने कुछ कुछ भेजा।

Chapter 31

1. पलिश्ती तो इस्राएलियोंसे लड़े; और इस्राएली पुरुष पलिश्तियोंके साम्हने से भागे, और गिलबो नाम पहाड़ पर मारे गए।
2. और पलिश्ती शाऊल और उसके पुत्रोंके पीछे लगे रहे; और पलिश्तियोंने शाऊल के पुत्र योनातन, अबीनादाब, और मल्कीश को मार डाला।
3. और शाऊल के साय धमासान युद्ध हो रहा या, और धनुर्धारियोंने उसे जा लिया, और वह उनके कारण अत्यन्त व्याकुल हो गया।
4. तब शाऊल ने अपके हयियार ढोनेवाले से कहा, अपक्की तलवार खींचकर मुझे फोंक दे, एसा न हो कि वे खतनारहित लोग आकर मुझे फोंक दें, और मेरी ठट्टा करें। परन्तु उाके हयियार ढोनेवाले ने अत्यन्त भय खाकर ऐसा करने से इन्कार किया। तब शाऊल अपक्की तलवार खड़ी करके उस पर गिर पड़ा।
5. यह देखकर कि शाऊल मर गया, उसका हयियार ढोनेवाला भी अपक्की तलवार पर आप गिरकर उसके साय मर गया।
6. योंशाऊल, और उसके तीनोंपुत्र, और उसका हयियार ढोनेवाला, और उसके समस्त जन उसी दिन एक संग मर गए।
7. यह देखकर कि इस्राएली पुरुष भाग गए, और शाऊल और उसके पुत्र मर गए, उस तराई की परली ओर वाले औ यरदन के पार रहनेवाले भी इस्राएली मनुष्य अपके अपके नगरोंको छोड़कर भाग गए; और पलिश्ती आकर उन में रहने लगे।
8. दूसरे दिन जब पलिश्ती मारे हुओं के माल को लूटने आए, तब उनको शाऊल और उसके तीनोंपुत्र गिलबो पहाड़ पर पके हाए मिले।
9. तब उन्होंने शाऊल का सिर काटा, और हयियार लूट लिए, और पलिश्तियोंके देश के सब स्यानोंमें दूतोंको इसलिथे भेजा, कि उनके देवालयोंऔर साघारण लोगोंमें यह शुभ समाचार देते जाएं।
10. तब उन्होंने उसके हयियार तो आश्तोरेत नाम देवियोंके मन्दिर में रखे, और उसकी लोय बेतशान की शहरपनाह में जड़दी।
11. जब गिलादवाले याबेश के निवासियोंने सुना कि पलिश्तियोंने शाऊल से क्या क्या किया है,
12. तब सब शूरवीर चले, और रातोंरात जाकर शाऊल और उसके पुत्रोंकी लोथें बेतशान की शहरपनाह पर से याबेश में ले आए, और वहोंफूंक दीं
13. तब उन्होंने उनकी हड्डियां लेकर याबेश के फाऊ के पेड़ के नीचे गाड़ दीं, और सात दिन तक उपवास किया।


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