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1 राजा

Chapter 1

1. दाऊद राजा बूढ़ा वरन बहुत पुरनिया हुआ; और यद्यपि उसको कपके ओढ़ाथे जाते थे, तौभी वह गर्म न होता या।
2. सो उसके कर्मचारियोंने उस से कहा, हमारे प्रभु राजा के लिथे कोई जवान कुंवारी ढूंढ़ी जाए, जो राजा के सम्मुख रहकर उसकी सेवा किया करे और तेरे पास लेटा करे, कि हमारे प्रभु राजा को गमीं पहुंचे।
3. तब उन्होंने समस्त इस्राएली देश में सुन्दर कुंवारी ढूंढ़ते ढूंढ़ते अबीशग नाम एक शूनेमिन को पाया, और राजा के पास ले आए।
4. वह कन्या बहुत ही सुन्दर यी; और वह राजा की दासी होकर उसकी सेवा करती रही; परन्तु राजा उस से सहबास न हुआ।
5. तब हग्गीत का पुत्र अदोनिय्याह सिर ऊंचा करके कहने लगा कि मैं राजा हूंगा; सो उस ने रय और सवार और अपके आगे आगे दौड़ने को पचास पुरुष रख लिए।
6. उसके पिता ने तो जन्म से लेकर उसे कभी यह कहकर उदास न किया या कि तू ने ऐसा क्योंकिया। वह बहुत रूपवान या, और अबशालोम के पीछे उसका जन्म हुआ या।
7. और उस ने सरूयाह के पुत्र योआब से और एब्यातार याजक से बातचीत की, और उन्होंने उसके पीछे होकर उसकी सहाथता की।
8. परन्तु सादोक याजक यहोयादा का पुत्र बनायाह, नातान नबी, शिमी रेई, और दाऊद के शूरवीरोंने अदोनिय्याह का साय न दिया।
9. और अदोनिय्याह ने जोहेलेत नाम पत्य्र के पास जो एनरोगेल के निकट है, भेड़-बैल और तैयार किए हुए पशू बलि किए, और अपके भाई सब राजकुमारोंको, और राजा के सब यहूदी कर्मचारियोंको बुला लिया।
10. परन्तु नातान नबी, और बनायाह और शूरवीरोंको और अपके भाई सुलैमान को उस ने न बुलाया।
11. तब नातान ने सुलैमान की माता बतशेबा से कहा, क्या तू ने सुना है कि हग्गीत का पुत्र अदोनिय्याह राजा बन बैठा है और हमारा प्रभु दाऊद हसे नहीं जानता?
12. इसलिथे अब आ, मैं तुझे ऐसी सम्मति देता हूँ, जिस से तू अपना और अपके पुत्र सुलैमान का प्राण बचाए।
13. तू दाऊद राजा के पास जाकर, उस से योंपूछ, कि हे मेरे प्रभु ! हे राजा ! क्या तू ने शपय खाकर अपक्की दासी से नहीं कहा, कि तेरा पुत्र सुलैमान मेरे पीछे राजा होगा, और वह मेरी राजगद्दी पर विराजेगा? फिर अदोनिय्याह क्योंराजा बन बैठा है?
14. और जब तू वहां राजा से ऐसी बातें करती रहेगी, तब मैं तेरे पीछे आकर, तेरी बातोंको पुष्ट करूंगा।
15. तब बतशेबा राजा के पास कोठरी में गई; राजा तो बहुत बूढ़ा या, और उसकी सेवा टहल शूनेमिन अबीशग करती यी।
16. और बतशेबा ने फुककर राजा को दणडवत्‌ की, और राजा ने पूछा, तू क्या चाहती है?
17. उस ने उत्तर दिया, हे मेरे प्रभु, तू ने तो अपके परमेश्वर यहोवा की शपय खाकर अपक्की दासी से कहा या कि तेरा पुत्र सुलैमान मेरे पीछे राजा होगा और वह मेरी गद्दी पर विराजेगा।
18. अब देख अदोनिय्याह राजा बन बैठा है, और अब तक मेरा प्रभु राजा इसे नहीं जानता।
19. और उस ने बहुत से बैल तैयार किए, पशु और भेड़ें बलि कीं, और सब राजकुमारोंकी और एब्यातार याजक और योआब सेनापति को बुलाया है, परन्तु तेरे दास सुलैमान को नहीं बुलाया।
20. और हे मेरे प्रभु ! जे राजा ! सब इसाएली तुझे ताक रहे हैं कि तू उन से कहे, कि हमारे प्रभु राजा की गद्दी पर उसके पीछे कौन बैठेगा।
21. नहीं तो जब हमारा प्रभु राजा, अपके पुरखाओं के संग सोएगा, तब मैं और मेरा पुत्र सुलैमान दोनोंअपराधी गिने जाएंगे।
22. योंबतशेबा राजा से बातें कर ही रही यी, कि नातान नबी भी आ गया।
23. और राजा से कहा गया कि नातान नबी हाज़िर है; तब वह राजा के सम्मुख आया, और मुह के बल गिरकर राजा को दणडवत्‌ की।
24. और नातान कहने लगा, हे मेरे पभु, हे राजा ! क्या तू ने कहा है, कि अदोनिय्याह मेरे पीछे राजा होगा और वह मेरी गद्दी पर विराजेगा?
25. देख उस ने आज नीचे जाकर बहुत से बैल, तैयार किए हुए पशु और भेड़ें बलि की हैं, और सब राजकुमारोंऔर सेनापतियोंको और एब्यातार याजक को भी बुलालिया है; और वे उसके सम्मुख खाते पीते हुए कह रहे हैं कि अदोनिय्याह राजा जीवित रहे।
26. परन्तु मुझ तेरे दास को, और सादोक याजक और यहोयादा के पुत्र बनायाह, और तेरे दास सुलैमान को उस ने नहीं बुलाया।
27. क्या यह मेरे प्रभु राजा की ओर से हुआ? तू ने तो अपके दास को यह नहीं जताया है, कि प्रभु राजा की गद्दी पर कौन उसके पीछे विराजेगा।
28. दाऊद राजा ने कहा, बतशेबा को मेरे पास बुला लाओ। तब वह राजा के पास आकर उसके साम्हने खड़ी हुई।
29. राजा ने शपय खाकर कहा, यहोवा जो मेरा प्राण सब जोखिमोंसे बचाता आया है,
30. उसके जीवन की शपय, जैसा मैं ने तुझ से इस्राएल के परमेश्वर यहोवा की शपय खाकर कहा या, कि तेरा पुत्र सुलैमान मेरे पीछे राजा होगा, और वह मेरे बदले मेरी गद्दी पर विराजेगा, वैसा ही मैं निश्चय आज के दिन करूंगा।
31. तब बतशेबा ने भूमि पर मुंह के बल गिर राजा को दणडवत्‌ करके कहा, मेरा प्रभु राजा दाऊद सदा तक जीवित रहे !
32. तब दाऊद राजा ने कहा, मेरे पास सादोक याजक नातान नबी, अहोयादा के पुत्र बनायाह को बुला लाओ। सो वे राजा के साम्हने आए।
33. राजा ने उन से कहा, अपके प्रभु के कर्मचारियो को साय लेकर मेरे पुत्र सुलैमान को मेरे निज खच्चर पर चढ़ाओ; और गीहोन को ले जाओ;
34. और वहां सादोक याजक और नातान नबी इस्राएल का राजा होने को उसका अभिषेक करें; तुब तुम सब नरसिंगा फूंककर कहना, राजा सुलैमान जीवित रहे।
35. और तुम उसके पीछे पीछे इधर आना, और वह उाकर मेरे सिंहासन पर विराजे, क्योंकि मेरे बदले में वही राजा होगा; और उसी को मैं ने इस्राएल और यहूदा का प्रधान होने को ठहराया है।
36. तब यहोयादा के पुत्र बनायाह ने कहा, आमीन ! मेरे प्रभु राजा का परमेश्वर यहोवा भी ऐसा ही कहे।
37. जिस रीति यहोवा मेरे प्रभु राजा के संग रहा, उसी रीति वह सुलैमान के भी संग रहे, और उसका राज्य मेरे प्रभु दाऊद राजा के राज्य से भी अधिक बढ़ाए।
38. तब सादोक याजक और नातान नबी और यहोयादा का पुत्र बनायाह करेतियोंऔर पकेतियोंको संग लिए हुए नीचे गए, और सुलैमान को राजा दाऊद के खच्चर पर चढ़ाकर गीहोन को ले चले।
39. तब सादोक याजक ने यहोवा के तम्बू में से तेल भरा हुआ सींग निकाला, और सुलैमान का राज्याभिषेक किया। और वे नरसिंगे फूंकने लगे; और सब लोग बोल उठे, राजा सुलैमान जीविन रहे।
40. तब सब लोग उसके पीछे पीछे बांसुली बजाते और इतना बड़ा आनन्द करते हुए ऊपर गए, कि उनकी ध्वनि से पृय्वी डोल उठी।
41. जब अदोनिय्याह और उसके सब नेवतहरी खा चुके थे, तब यह ध्वनि उनको सुनाई पक्की। और योआब ने नरसिंगे का शब्द सुनकर पूछा, नगर में हलचल और चिल्लाहट का शब्द क्योंहो रहा है?
42. वह यह कहता ही या, कि एब्यातार याजक का पुत्र योनातन आया और अदोनिय्याह ने उस से कहा, भीतर आ; तू तो भला मनुष्य है, और भला समाचार भी लाया होगा।
43. योनातन ने अदोनिय्याह से कहा, सचमुच हमारे प्रभु राजा दाऊद ने सुलैमान को राजा बना दिया।
44. और राजा ने सादोक याजक, नातान नबी और यहोयादा के पुत्र बनायाह और करेतियोंऔर पकेतियोंको उसके संग भेज दिया, और उन्होंने उसको राजा के खच्चर पर चढ़ाया है।
45. और सादोक याजक, और नातान नबी ने गीहोन में उसका राज्याभिषेक किया है; और वे वहां से ऐसा आनन्द करते हुए ऊपर गए हैं कि नगर में हलचल मच गई, और जो शब्द तुम को सुनाई पड़ रहा है वही है।
46. सुलैमान राजगद्दी पर विराज भी रहा है।
47. फिर राजा के कर्मचारी हमारे प्रभु दाऊद राजा को यह कहकर धन्य कहने आए, कि तेरा परमेश्वर, सुलैमान का नाम, तेरे नाम से भी महान करे, और उसका राज्य तेरे राज्य से भी अधिक बढ़ाए; और राजा ने अपके पलंग पर दणडवत्‌ की।
48. फिर राजा ने यह भी कहा, कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा धन्य है, जिस ने आज मेरे देखते एक को मेरी गद्दी पर विराजमान किया है।
49. तब जितने नेवतहरी अदोनिय्याह के संग थे वे सब यरयरा गए, और उठकर अपना अपना मार्ग लिया।
50. और अदोनिय्याह सुलैमान से डर कर अठा, और जाकर वेदी के सींगोंको पकड़ लिया।
51. तब सुलैमान को यह समाचार मिला कि अदोनिय्याह सुलैमान राजा से ऐसा डर गया है कि उस ने वेदी के सींगोंको यह कहकर पकड़ लिया है, कि आज राजा सुलैमान शपय खाए कि अपके दास को तलवार से न मार डालेगा।
52. सुलैमान ने कहा, यदि वह भलमनसी दिखाए तो उसका एक बाल भी भूमि पर गिरने न पाएगा, परन्तु यदि उस में दुष्टता पाई जाए, तो वह मारा जाएगा।
53. तब राजा सुलैमान ने लोगोंको भेज दिया जो उसको वेदी के पास से उतार ले आए तब उस ने आकर राजा सुलैमान को दणडवत्‌ की और सुलैेमान ने उस से कहा, अपके घर चला जा।

Chapter 2

1. जब दाऊद के मरने का समय निकट आया, तब उस ने अपके पुत्र सुलैमान से कहा,
2. कि मैं लोक की रीति पर कूच करनेवाला हूँ इसलिथे तू हियाब बांधकर पुरुषार्य दिखा।
3. और जो कुछ तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे सौंपा है, उसकी रझा करके उसके मागॉं पर चला करना और जैसा मूसा की व्यवस्या में लिखा है, वैसा ही उसकी विधियोंतया आज्ञाओं, और नियमों, और चितौनियोंका पालन करते रहना; जिस से जो कुछ तू करे और जहां कहीं तू जाए, उस में तू सफल होए;
4. और यहोवा अपना वह वचन पूरा करे जो उस ने मेरे विषय में कहा या, कि यदि तेरी सन्तान अपक्की चाल के विषय में ऐसे सावधान रहें, कि अपके सम्पूर्ण ह्रृदय और सम्पूर्ण प्राण से सच्चाई के साय नित मेरे सम्मुख चलते रहें तब तो इस्राएल की राजगद्दी पर विराजनेवाले की, तेरे कुल परिवार में घटी कभी न होगी।
5. फिर तू स्वयं जानता है, कि सरूयाह के पुत्र योआब ने मुझ से क्या क्या किया ! अर्यात्‌ उस ने नेर के पुत्र अब्नेर, और थेतेर के पुत्र अमासा, इस्राएल के इन दो सेनापतियोंसे क्या क्या किया। उस ने उन दोनोंको घात किया, और मेल के सपय युद्ध का लोहू बहाकर उस से अपक्की कमर का कमरबन्द और अपके पावोंकी जूतियां भिगो दीं।
6. इसलिथे तू अपक्की बुद्धि से काम लेना और उस पक्के बालवाले को अधोलोक में शांति से उतरने न देना।
7. फिर गिलादी बजिर्ल्लै के पुत्रोंपर कृपा रखना, और वे तेरी मेज पर खानेवालोंमें रहें, क्योंकि जब मैं तेरे भाई अबशालोम के साम्हने से भागा जा रहा या, तब उन्होंने मेरे पास आकर वैसा ही किया या।
8. फिर सुन, तेरे पास बिन्यामीनी गेरा का पुत्र बहूरीमी शिमी रहता है, जिस दिन मैं महनैम को जाता या उस दिन उस ने मुझे कड़ाई से शाप दिया या पर जब वह मेरी भेंट के लिथे यरदन को आया, तब मैं ने उस से यहोवा की यह शपय खाई, कि मैं तुुफे तलवार से न मार डालूंगा।
9. परन्तु अब तू इसे निदॉष न ठहराना, तू तो बुद्धिमान पुरुष है; तुझे मालूम होगा कि उसके साय क्या करना चाहिथे, और उस पक्के बालवाले का लोहू बहाकर उसे अधोलोक में उतार देना।
10. तब दाऊद अपके पुरखाओं के संग सो गया और दाऊदमुर में उसे मिट्टी दी गई।
11. दाऊद ने इस्राएल पर चालीस वर्ष राज्य किया, सात वर्ष तो उस ने हब्रोन में और तैंतीस वर्ष यरूशलेम में राज्य किया या।
12. तब सुलैमान अपके पिता दाऊद की गद्दी पर विराजमान हुआ और उसका राज्य बहुत दृढ़ हुआ।
13. और हग्गीत का पुत्र अदोनिय्याह, सुलैमान की माता बतशेबा के पास आया, और बतशेबा ने पूछा, क्या तू मित्रभाव से आता है?
14. उस ने उत्तर दिया, हां, मित्रभाव से ! फिर वह कहने लगा, मुझे तुझ से एक बात कहनी है। उस ने कहा, कह !
15. उस ने कहा, तुझे तो मालूम है कि राज्य मेरा हो गया या, और समस्त इस्राएली मेरी ओर मुंह किए थे, कि मैं राज्य करूं; परन्तु अब राज्य पलटकर मेरे भाई का हो गया है, क्योंकि वह यहोवा की ओर से उसको मिला है।
16. इसलिथे अब मैं तुझ से एक बात मांगता हूँ, मुझ से नाही न करना उस ने कहा, कहे जा।
17. उस ने कहा, राजा सुलैमान तुझ से नाही न करेगा; इसलिथे उस से कह, कि वह मुझे शूनेमिन अबीशग को ब्याह दे।
18. बतशेबा ने कहा, अच्छा, मैं तेरे लिथे राजा से कहूंगी।
19. तब बतशेबा अदोनिय्याह के लिथे राजा सुलैमान से बातचीत करने को उसके पास गई, और राजा उसकी भेंट के लिथे उठा, और उसे दणडवत्‌ करके अपके सिंहासन पर बैठ गया: फिर राजा ने अपक्की माता के लिथे एक सिंहासन रख दिया, और वह उसकी दाहिनी ओर बैठ गई।
20. तब वह कहने लगी, मैं तुझ से एक छोटा सा वरदान मांगती हूँ इसलिथे पुफ से नाही न करना, राजा ने कहा, हे माता मांग; मैं तुझ से नाही न करूंगा।
21. उस ने कहा, वह शूनेमिन अबीशग तेरे भाई अदोनिय्याह को ब्याह दी जाए।
22. राजा सुलैमान ने अपक्की माता को उत्तर दिया, तू अदोनिय्याह के लिथे शूनेमिन अबीशग ही को क्यो मांगती है? उसके लिथे राज्य भी मांग, क्योंकि वह तो मेरा बड़ा भाई है, और उसी के लिथे क्या ! एब्यातार याजक और सरूयाह के पुत्र योआब के लिथे भी मांग।
23. और राजा सुलैमान ने यहोवा की शपय खाकर कहा, यदि अदोनिय्याह ने यह बात अपके प्राण पर खेलकर न कही हो तो परमेश्वर मुझ से वैसा ही क्या वरन उस से भी अधिक करे।
24. अब यहोवा जिस ने पुफे स्यिर किया, और मेरे पिता दाऊद की राजगद्दी पर विराजमान किया है और अपके वचन के अनुसार मेरे घर बसाया है, उसके जीपन की शपय आज ही अदोनिय्याह मार डाला जाएगा।
25. और राजा सुलैमान ने यहोयादा के पुत्र बनायाह को भेज दिया और उस ने जाकर, उसको ऐसा मारा कि वह मर गया।
26. और एब्यातार याजक से राजा ने कहा, अनातोत में अपक्की भूमि को जा; क्योंकि तू भी प्राणदणड के योग्य है। आज के दिन तो मैं तुझे न मार डालूंगा, क्योंकि तू मेरे पिता दाऊद के साम्हने प्रभु यहोवा का सन्दूक उठाया करता या; और उन सब दु:खोंमें जो मेरे पिता पर पके थे तू भी दु:खी या।
27. और सुलैमान ने एब्यातार को यहोवा के याजक होने के पद से उतार दिया, इसलिथे कि जो वचन यहोवा ने एली के वंश के विषय में शीलो में कहा या, वह पूरा हो जाए।
28. इसका समाचार योआब तक पहुंचा; योआब अबशालोम के पीछे तो नहीं हो लिया या, परन्तु अदोनिय्याह के पीछे हो लिया या। तब योआब यहोवा के तम्बू को भाग गया, और वेदी के सींगोंको पकड़ लिया।
29. जब राजा सुलैमान को यह समाचार मिला, कि योआब यहोवा के तम्बू को भाग गया है, और वह वेदी के पास है, तब सुलैमान ने यहोयादा के पुत्र बनायाह को यह कहकर भेज दिया, कि तू जाकर उसे मार डाल।
30. तब बनायाह ने यहोवा के तम्बू के पास जाकर उससे कहा, राजा की यह आज्ञा है, कि निकल आ। उस ने कहा, नहीं, मैं यहीं मर जाऊंगा। तब बनायाह ने लौटकर यह सन्देश राजा को दिया कि योआब ने मुझे यह उत्तर दिया।
31. राजा ने उस से कहा, उसके कहने के अनुसार उसको मार डाल, और उसे मिट्टी दे; ऐसा करके निदॉषोंका जो खून योआब ने किया है, उसका दोष तू मुझ पर से और मेरे पिता के घराने पर से दूर करेगा।
32. और यहोवा उसके सिर वह खून लौटा देगा क्योंकि उस ने मेरे पिता दाऊद के बिना जाने अपके से अधिक धमीं और भले दो पुरुषोंपर, अर्यात्‌ इस्राएल के प्रधान सेनापति नेर के पुत्र अब्नेर और यहूदा के प्रधान सेनापति थेतेर के पुत्र अमासा पर टूटकर उनको तलवार से मार डाला या।
33. योंयोआब के सिर पर और उसकी सन्तान के सिर पर खून सदा तक रहेगा, परन्तु दाऊद और उसके वंश और उसके घराने और उसके राज्य पर यहोवा की ओर से शांति सदैव तक रहेगी।
34. तब यहोयादा के पुत्र बनायाह ने जाकर योआब को मार डाला; और उसको जंगल में उसी के घर में मिट्टी दी गई।
35. तब राजा ने उसके स्यान पर यहोयादा के पुत्र बनायाह को प्रधान सेनापति ठहराया; और एब्यातार के स्यान पर सादोक याजक को ठहराया।
36. और राजा ने शिमी को बुलवा भेजा, और उस से कहा, तू यरूशलेम में अपना एक घर बनाकर वहीं रहना: और नगर से बाहर कहीं न जाना।
37. तू निश्चय जान रख कि जिस दिन तू निकलकर किद्रोन नाले के पार उतरे, उसी दिन तू नि:सन्देह मार डाला जाएगा, और तेरा लोहू तेरे ही सिर पर पकेगा।
38. शिमी ने राजा से कहा, बात अच्छी है; जैसा मेरे प्रभु राजा ने कहा है, वैसा ही तेरा दास करेगा। तब शिमी बहुत दिन यरूशलेम में रहा।
39. परन्तु तीन वर्ष के व्यतीत होने पर शिमी के दो दास, गत नगर के राजा माका के पुत्र आकीश के पास भाग गए, और शिमी को यह समाचार मिला, कि तेरे दास गत में हैं।
40. तब शिमी उठकर अपके गदहे पर काठी कसकर, अपके दास को ढूंढ़ने के लिथे गत को आकीश के पास गया, और अपके दासोंको गत से ले आया।
41. जब सुलैमान राजा को इसका समाचार मिला, कि शिमी यरूशलेम से गत को गया, और फिर लौट आया है,
42. तब उस ने शिमी को बुलवा भेजा, और उस से कहा, क्या मैं ने तुझे यहोवा की शपय न खिलाई यी? और तुझ से चिताकर न कहा या, कि यह निश्चय जान रख कि जिस दिन तू निकलकर कहीं चला जाए, उसी दिन तू नि:सन्देह मार डाला जाएगा? और क्या तू ने मुझ से न कहा या, कि जो बात मैं ने सुनी, वह अच्छी है?
43. फिर तू ने यहोवा की शपय और मेरी दृढ़ आज्ञा क्योंनहीं मानी?
44. और राजा ने शिमी से कहा, कि तू आप ही अपके मन में उस सब दुष्टता को जानता है, जो तू ने मेरे पिता दाऊद से की यी? इसलिथे यहोवा तेरे सिर पर तेरी दुष्टता लौटा देगा।
45. परन्तु राजा सुलैमान धन्य रहेगा, और दाऊद का राज्य यहोवा के साम्हने सदैव दृढ़ रहेगा।
46. तब राजा ने यहोयादा के पुत्र बनायाह को आज्ञा दी, और उस ने बाहर जाकर, उसको ऐसा मारा कि वह भी मर गया। और सुलैमान के हाथ मे राज्य दृढ़ हो गया।

Chapter 3

1. फिर राजा सुलैमान मिस्र के राजा फ़िरौन की बेटी को ब्याह कर उसका दामाद बन गया, और उसको दाऊदपुर में लाकर जब नक अपना भवन और यहोवा का भवन और यरूशलेम के चारोंओर की शहरपनाह न बनवा चुका, तब तक उसको वहीं रखा।
2. क्योंकि प्रजा के लोग तो ऊंचे स्यानोंपर बलि चढ़ाते थे और उन दिनोंतक यहोवा के नाम का कोई भपन नहीं बना या।
3. सुलैमान यहोवा से प्रेम रखता या और अपके पिता दाऊद की विधियोंपर चलता तो रहा, परन्तु वह ऊंचे स्यानोंपर भी बलि चढ़ाया और धूप जलाया करता या।
4. और राजा गिबोन को बलि चढ़ाने गया, क्योंकि मुख्य ऊंचा स्यान वही या, तब वहां की वेदी पर सुलैमान ने एक हज़ार होमबलि चढ़ाए।
5. गिबोन में यहोवा ने रात को स्वप्न के द्वारा सुलैमान को दर्शन देकर कहा, जो कुछ तू चाहे कि मैं तुझे दूं, वह मांग।
6. सुलैमान ने कहा, तू अपके दास मेरे पिता दाऊद पर बड़ी करुणा करता रहा, क्योंकि वह अपके को तेरे सम्मुख जानकर तेरे साय सच्चाई और धर्म और मनकी सीधाई से चलता रहा; और तू ने यहां तक उस पर करुणा की यी कि उसे उसकी गद्दी पर बिराजनेवाला एक पुत्र दिया है, जैसा कि आज वर्तमान है।
7. और अब हे मेरे परमेश्वर यहोवा ! तूने अपके दास को मेरे पिता दाऊद के स्यान पर राजा किया है, परन्तु मैं छोटा लड़का सा हूँ जो भीतर बाहर आना जाना नहीं जानता।
8. फिर तेरा दास तेरी चुनी हुई प्रजा के बहुत से लोगोंके मध्य में है, जिनकी गिनती बहुतायत के मारे नहीं हो सकती।
9. तू अपके दास को अपक्की प्रजा का न्याय करने के लिथे समझने की ऐसी शक्ति दे, कि मैं भले बुरे को परख सकूं; क्योंकि कौन ऐसा है कि तेरी इतनी बड़ी प्रजा का न्याय कर सके?
10. इस बात से प्रभु प्रसन्न हुआ, कि सुलैमान ने ऐसा वरदान मांगा है।
11. तब परमेश्वर ने उस से कहा, इसलिथे कि तू ने यह वरदान मांगा है, और न तो दीर्धयु और न धन और न अपके शत्रुओं का नाश मांगा है, परन्तु सपफने के विवेक का वरदान मांगा है इसलिथे सुन,
12. मैं तेरे वचन के अनुसार करता हूँ, तुझे बुद्धि और विवेक से भरा मन देता हूँ, यहा तक कि तेरे समान न तो तुझ से पहिले कोई कभी हुआ, और न बाद में कोई कभी होगा।
13. फिर जो तू ने नहीं मांगा, अर्यात्‌ धन और महिमा, वह भी मैं तुझे यहां तक देता हूँ, कि तेरे जीवन भर कोई राजा तेरे तुल्य न होगा।
14. फिर यदि तू अपके पिता दाऊद की नाई मेरे मागॉं में चलता हुआ, मेरी विधियोंऔर आज्ञाओं को मानता रहेगा तो मैं तेरी आयु को बढ़ाऊंगा।
15. तब सुलैमान जाग उठा; और देखा कि यह स्वप्न या; फिर वह यरूशलेम को गया, और यहोवा की वाचा के सन्दूक के साम्हने खड़ा होकर, होमबलि और मेलबलि चढ़ाए, और अपके सब कर्मचारियोंके लिथे जेवनार की।
16. उस समय दो वेश्याएं राजा के पास आकर उसके सम्मुख खड़ी हुई।
17. उन में से एक स्त्री कहने लगी, हे मेरे प्रभु ! मैं और यह स्त्री दोनोंएक ही घर में रहती हैं; और इसके संग घर में रहते हुए मेरे एक बच्चा हुआ।
18. फिर मेरे ज़च्चा के तीन दिन के बाद ऐसा हुआ कि यह स्त्री भी जच्चा हो गई; हम तो संग ही संग यीं, हम दोनोंको छोड़कर घर में और कोई भी न या।
19. और रात में इस स्त्री का बालक इसके नीचे दबकर मर गया।
20. तब इस ने आधी रात को उठकर, जब तेरी दासी सो ही रही यी, तब मेरा लड़का मेरे पास से लेकर अपक्की छाती में रखा, और अपना मरा हुआ बालक मेरी छाती में लिटा दिया।
21. भोर को जब मैं अपना बालक दूध पिलाने को उठी, तब उसे मरा हुआ पाया; परन्तु भोर को मैं ने ध्यान से यह देखा, कि वह मेरा पुत्र नही है।
22. तब दूसरी स्त्री ने कहा, नहीं जीवित पुत्र मेरा है, और मरा पुत्र तेरा है। परन्तु वह कहती रही, नहीं मरा हुआ तेरा पुत्र है और जीवित मेरा पुत्र है, योंवे राजा के साम्हने बातें करती रही।
23. राजा ने कहा, एक तो कहती है जो जीवित है, वही मेरा पुत्र है, और मरा हुआ तेरा पुत्र है; और दूसरी कहती है, नहीं, जो मरा है वही तेरा पुत्र है, और जो जीवित है, वह मेरा पुत्र है।
24. फिर राजा ने कहा, मेरे पास तलवार ले आओ; सो एक तलवार राजा के साम्हने लाई गई।
25. तब राजा बोला, जीविते बालक को दो टुकड़े करके आधा इसको और आधा उसको दो।
26. तब जीवित बालक की माता का मन अपके बेटे के स्नेह से भर आया, और उस ने राजा से कहा, हे मेरे प्रभु ! जीवित बालक उसी को दे; परन्तु उसको किसी भांति न मार। दूसरी स्त्री ने कहा, वह न तो मेरा हो और न तेरा, वह दो टुकड़े किया जाए।
27. तब राजा ने कहा, पहिली को जीवित बालक दो; किसी भांति उसको न पारो; क्योंकि उसकी माता वही है।
28. जो न्याय राजा ने चुकाया या, उसका समाचार समस्त इस्राएल को मिला, और उन्होंने राजा का भय माना, क्योंकि उन्होंने यह देखा, कि उसके मन में न्याय करने के लिथे परमेश्वर की बुद्धि है।

Chapter 4

1. राजा सुलैमान तो समस्त इस्राएल के ऊपर राजा नियुक्त हुआ या।
2. और उसके हाकिम थे थे, अर्यात्‌ सादोक का पुत्र अजर्याह याजक, और शीशा के पुत्र एलीहोरोप और अहिय्याह व्रधान मंत्री थे।
3. अहीलूद का पुत्र यहोशापात, इतिहास का लेखक या।
4. फिर यहोयादा का पुत्र बनायाह प्रधान सेनापति या, और सादोक और एब्यातार याजक थे !
5. और नातान का पुत्र अजर्याह भणडारियोंके ऊपर या, और नातान का पुत्र जाबूद याजक, और राजा का मित्र भी या।
6. और अहीशार राजपरिवार के ऊपर या, और अब्दा का पुत्र अदोनीराम बेगारोंके ऊपर मुखिया या।
7. और सुलैमान के बारह भणडारी थे, जो समस्त इस्राएलियोंके अधिक्कारनेी होकर राजा और उसके घराने के लिथे भोजन का प्रबन्ध करते थे। एक एक पुरुष प्रति वर्ष अपके अपके नियुक्त महीने में प्रबन्ध करता या।
8. और उनके नाम थे थे, अर्यात्‌ एप्रैम के पहाड़ी अेश में बेन्हूर।
9. और माकस, शाल्बीम बेतशेमेश और एलोनबेयानान में बेन्देकेर या।
10. अरुब्बोत में बेन्हेसेद जिसके अधिक्कारने में सौको और हेपेर का समस्त देश या।
11. दोर के समस्त ऊंचे देश में बेनबीनादाब जिसकी स्त्री सुलैमान की बेटी नापत यी।
12. और अहीलूद का पुत्र बाना जिसके अधिक्कारने में तानाक, मगिद्दो और बेतशान का वह सब देश या, जो सारतान के पास और यिज्रेल के नीचे और प्रेतशान से ले आबेलमहोला तक अर्यात्‌ योकमाम की परली ओर तक है।
13. और गिला के रामोत में बेनगेबेर या, जिसके अधिक्कारने में मनश्शेई याईर के गिलाद के गांव थे, अर्यात्‌ इसी के अधिक्कारने में बाशान के अगॉब का देश या, जिस में शहरपनाह और पीतल के बेड़ेवाले साठ बड़े बड़े नगर थे।
14. और इद्दा के पुत्र अहीनादाब के हाथ में महनैम या।
15. नप्ताली में अहीमास या, जिस ने सुलैमान की बासमत नाम बेटी को ब्याह लिया या।
16. और आशेर और आलोत में हूशै का पुत्र बाना,
17. इस्साकार में पारुह का पुत्र यहोशापात,
18. और बिन्यामीन में एला का पुत्र शिमी या।
19. ऊरी का पुत्र गेबेर गिलाद में अर्यात्‌ एमोरियोंके राजा सीहान और बाशान के राजा ओग के देश में या, इस समस्त देश में वही भणडारी या।
20. यहूदा और इस्राएल के लोग बहुत थे, वे समुद्र के तीर पर की बालू के किनकोंके समान बहुत थे, और खाते-पीते और आनन्द करते रहे।
21. सुलैमान तो महानद से लेकर पलिश्तियोंके देश, और मिस्र के सिवाने तक के सब राज्योंके ऊपर प्रभुता करता या और अनके लोग सुलैमान के जीवत भर भेंट लाते, और उसके अधीन रहते थे।
22. और सुलैमान की एक दिन की रसोई में इतना उठता या, अर्यात्‌ तीस कोर मैदा,
23. साठ कोर आटा, दस तैयार किए हुए बैल और चराइयोंमें से बीस बैल और सौ भेड़-बकरी और इनको छोड़
24. हरिन, चिकारे, यखमूर और तैयार किए हुए पक्की क्योंकि महानद के इस पार के समस्त देश पर अर्यात्‌ तिप्सह से लेकर अज्जा तक जितने राजा थे, उन सभोंपर सुलैमान प्रभुता करता, और अपके चारोंओर के सब रहनेवालोंसे मेल रखता या।
25. और दान से बेशॅबा तक के सब यहूदी और इस्राएली अपक्की अपक्की दाखलता और अंजीर के वृझ तले सुलैमान के जीवन भर निडर रहते थे।
26. फिर उसके रय के घोड़ोंके लिथे सुलैमान के चालीस हज़ार यान थे, और उसके बारह हज़ार सवार थे।
27. और वे भणडारी अपके अपके महीने में राजा सुलैमान के लिथे और जितने उसकी मेज़ पर आते थे, उन सभोंके लिथे भोजन का प्रबन्ध करते थे, किसी वस्तु की घटी होने नहीं पाती यी।
28. और घोड़ोंऔर वेग चलनेवाले घोड़ोंके लिथे जव और पुआल जहां प्रयोजन पड़ता या वहां आज्ञा के अनुसार एक एक जन पहुंचाया करता या।
29. और परमेश्वर ने सुलैमान को बुद्धि दी, और उसकी समझ बहुत ही बढ़ाई, और उसके ह्रृदय में समुद्र तट की बरलू के किनकोंके तुल्य अनगिनित गुण दिए।
30. और सुलैमान की बुद्धि पूर्व देश के सब निवासियोंऔर मिस्रियोंकी भी बुद्धि से बढ़कर बुद्धि यी।
31. वह तो और सब मनुष्योंसे वरन एतान, एज्रेही और हेमान, और माहोल के पुत्र कलकोल, और दर्दा से भी अधिक बुद्धिमान या: और उसकी कीत्तिर् चारोंओर की सब जातियोंमें फैल गई।
32. उस ने तीन हज़ार नीतिवचन कहे, और उसके एक हज़ार पांच गीत भी है।
33. फिर उस ने लबानोन के देवदारुओं से लेकर भीत में से उगते हु जूफा तक के सब पेड़ोंकी चर्चा और पशुओं पझियोंऔर रेंगनेवाले जन्तुओं और मछलियोंकी चर्चा की।
34. और देश देश के लोग पृय्वी के सब राजाओं की ओर से जिन्होंने सुलैमान की बुद्धि की कीत्तिर् सुनी यी, उसकी बुद्धि की बातें सुनने को आया करते थे।

Chapter 5

1. और सोर नगर के हीराम राजा ने अपके दूत सुलैमान के पास भेजे, क्योंकि उस ने सुना या, कि वह अभिषिक्त होकर अपके पिता के स्यान पर राजा हुआ है : और दाऊद के जीवन भर हीराम उसका मित्र बना रहा।
2. और सुलैमान ने हीराम के पास योंकहला भेजा, कि नुफे मालूम है,
3. कि मेरा पिता दाऊद अपके परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन इसलिथे न बनवा सका कि वह चारोंओर लड़ाइयोंमें तब तक बफा रहा, जब नक यहोवा ने उसके शत्रुओं को उसके पांव तल न कर दिया।
4. परन्तु अब मेरे परमेश्वर यहोवा ने मुझे चारोंओर से विश्रम दिया है और न तो कोई विरोधी है, और न कुछ विपत्ति देख पड़ती है।
5. मैं ने अपके परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनवाने को ठाना है अर्यात्‌ उस बान के अनुसार जो यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कही यी; कि तेरा पुत्र जिसे मैं तेरे स्यान में गद्दी पर बैठाऊंगा, वही मेरे नाम का भवन बनवाएगा।
6. इसलिथे अब तू मेरे लिथे लबानोन पर से देवदारु काटने की आज्ञा दे, और मेरे दास तेरे दासोंके संग रहेंगे, और जो कुछ मज़दूरी तू ठहराए, वही मैं तुझे तेरे दासोंके लिथे दूंगा, तुझे मालूम तो है, कि सीदोनियोंके बराबर लमड़ी काटने का भेद हम लोगोंमें से कोई भी नहीं जानता।
7. सुलैमान की थे बातें सुनकर, हीराम बहुत आनन्दित हुआ, और कहा, आज यहोवा धन्य है, जिस ने दाऊद को उस बड़ी जाति पर राज्य करने के लिथे एक बुद्धिमान पुत्र दिया है।
8. तब हीराम ने सुलैपान के पास योंकहला भेजा कि जो तू ने मेरे पास कहला भेजा है वह मेरी समझ में आ गया, देवदारू और सनोवर की लकड़ी के विषय जो कुछ तू चाहे, वही मैं करूंगा।
9. मेरे दास लकड़ी को लबानोन से समुद्र तक पहुंचाएंगे, फिर मैं उनके बेड़े बनवाकर, जो स्यान तू मेरे लिथे ठहराए, वहीं पर समुद्र के मार्ग से उनको पहुंचवा अूंगा : वहां मैं उनको खोलकर डलवा दूंगा, और तू उन्हें ले लेना : और तू मेरे परिवार के लिथे भोजन देकर, मेरी भी इच्छा पूरी करना।
10. इस प्रकार हीराम सुलैमान की इच्छा के अनुसार उसको देवदारू और सनोवर की लकड़ी देने लगा।
11. और सुलैमान ने हीराम के परिवार के खाने के लिथे उसे बीस हज़ार कोर गेहूं और बीस कोर पेरा हुआ तेल दिया; इस प्रकार सुलैमान हीराम को प्रति वर्ष दिया करता या।
12. और यहोवा ने सुलैमान को अपके वचन के अनुसार बुद्धि दी, और हीराम और सुलैमान के बीच मेल बना रहा वरन उन दोनोंने आपस में वाचा भी बान्ध ली।
13. और राजा सुलैमान ने पूरे इस्राएल में से तीन हज़ार पुरुष बेगार लगाए,
14. और उन्हें लबानोन पहाड़ पर पारी पारी करके, महीने महीने दस हज़ार भेज दिया करता या और एक महीना तो वे लबानोन पर, और दो महीने घर पर रहा करते थे; और बेगारियोंके ऊपर अदोनीराम ठहराया गया।
15. और सुलैमान के सत्तर हज़ार बोफ ढोनेवाले और पहाड़ पर अस्सी हज़ार वृझ काटनेवाले और पत्यर निकालनेवाले थे।
16. इनको छोड़ सुलैमान के तीन हज़ार तीन सौ मुखिथे थे, जो काम करनेवालोंके ऊपर थे।
17. फिर राजा की आज्ञा से बड़े बड़े अनमोल पत्यर इसलिथे खोदकर निकाले गए कि भवन की नेव, गढ़े हुए पत्यरोंसे डाली जाए।
18. और सुलैमान के कारीगरोंऔर हीराम के कारीगरोंऔर गबालियोंने उनको गढ़ा, और भवन के बनाने के लिथे लकड़ी और पत्य्र तैयार किए।

Chapter 6

1. इस्राएलियोंके मिस्र देश से निकलने के चार सौ अस्सीवें वर्ष के बाद जो सुलैमान के इस्राएल पर राज्य करने का चौया वर्ष या, उसके जीव नाम दूसरे महीने में वह यहोवा का भवन बनाने लगा।
2. और जो भवन राजा सुलैमान ने यहोवा के लिथे बनाया उसकी लम्बाई साठ हाथ, चौड़ाई बीस हाथ और ऊंचाई तीस हाथ की यी।
3. और भवन के मन्दिर के साम्हने के ओसारे की लम्बाई बीस हाथ की यी, अर्यात्‌ भवन की चौड़ाई के बराबर यी, और ओसारे की चौड़ाई जो भवन के साम्हने यी, वह दस हाथ की यी।
4. फिर उस ने भवन में स्यिर फिलमिलीदार खिड़कियां बनाई।
5. और उस ने भवन के आसपास की भीतोंसे सटे हुए अर्यात्‌ मन्दिर और दर्शन-स्यान दोनोंभीतोंके आसपास उस ने मंजिलें और कोठरियां बनाई।
6. सब से नीचेवाली मंजिल की चौड़ाई पांच हाथ, और बीचवाली की छ : हाथ, और ऊपरवाली की सात हाथ की यी, क्योंकि उस ने भवन के आसपास भीत को बाहर की ओर कुसींदार बनाया या इसलिथे कि कडिय़ां भवन की भीतोंको पकड़े हुए न हों।
7. और बनते समय भपन ऐसे पत्यरोंका बनाया गया, जो वहां ले आने से पहिले गढ़कर ठीक किए गए थे, और भवन के बनते समय हयैड़े वसूली वा और किसी प्रकार के लोहे के औजार का शब्द कभी सुनाई नहीं पड़ा।
8. बाहर की बीचवाली कोठरियोंका द्वार भवन की दाहिनी अलंग में या, और लोग चक्करदार सीढिय़ोंपर होकर बीचवाली कोठरियोंमें जाते, और उन से ऊपरवाली कोठरियोंपर जाया करते थे।
9. उस ने भवन को बनाकर पूरा किया, और उसकी छत देवदारु की कडिय़ोंऔर तख्तोंसे बनी यी।
10. और पूरे भवन से लगी हुई जो मंज़िलें उस ने बनाई वह पांच हाथ ऊंची थीं, और वे देवदारु की कड़ियों द्वारा भवन से मिलाई गई यीं।
11. तब यहोवा का यह वचन सुलैमान के पास पहुंचा, कि यह भवन जो नू बना रहा है,
12. यदि तू मेरी विधियोंपर चलेगा, और मेरे नियमोंको मानेगा, और मेरी सब आज्ञाओं पर चलता हुआ उनका पालन करता रहेगा, तो जो वचन मैं ने तेरे विषय में तेरे पिता दाऊद को दिया या उसको मैं पूरा करूंगा।
13. और मैं इस्राएलियोंके मध्य में निवास करूंगा, और अपक्की इस्राएली प्रजा को न तजूंगा।
14. सो सुलैमान ने भवन को बनाकर पूरा किया।
15. और उस ने भवन की भीतोंपर भीतरवार देवदारु की तख्ताबंदी की; और भवन के फ़र्श से छत तक भीतोंमें भीतरवार लकड़ी की तख्ताबंदी की, और भवन के फ़र्श को उस ने सनोवर के तख्तोंसे बनाया।
16. और भवन की पिछली अलंग में भी उस ने बीस हाथ की दूरी पर फ़र्श से ले भीतोंके ऊपर तक देवदारु की तख्ताबंदी की; इस प्रकार उस ने परमपवित्र स्यान के लिथे भवन की एक भीतरी कोठरी बनाई।
17. उसके साम्हने का भवन अर्यात्‌ मन्दिर की लम्बाई चालीस हाथ की यी।
18. और भवन की भीतोंपर भीतरवार देवदारु की लकड़ी की तख्ताबंदी यी, और उस में इत्द्रायन और खिले हुए फूल खुदे थे, सब देवदारु ही या : पत्भर कुछ नहीं दिखाई पड़ता या।
19. भवन के भीतर उस ते एक दर्शन स्यान यहोवा की वाचा का सन्दूक रखने के लिथे तैयार किया।
20. और उस दर्शन-स्यान की लम्बाई चौड़ाई और ऊंचाई बीस बीस हाथ की यी; और उस ने उस पर चोखा सोना मढ़वाया और वेदी की तख्ताबंदी देवदारु से की।
21. फिर सुलैमान ने भवन को भीतर भीतर चोखे सोने से मढ़वाया, और दर्शन-स्यान के साम्हने सोने की सांकलें लगाई; और उसको भी सोने से मढ़वाया।
22. और उस ने पूरे भवन को सोने से मढ़वाकर उसका पूरा काम निपटा दिया। और दर्शन-स्यान की पूरी वेदी को भी उस ने सोने से मढ़वाया।
23. दर्शन-स्यान में उस ने दस दस हाथ ऊंचे जलपाई की लकड़ी के दो करूब बना रखे।
24. एक करूब का एक पंख पांच हाथ का या, और उसका दूसरा पंख भी पांच हाथ का या, एक पंख के सिक्के से, दूसरे पंख के सिक्के तक दस हाथ थे।
25. और दूसरा करूब भी दस हाथ का या; दोनोंकरूब एक ही नाप और एक ही आकार के थे।
26. एक करूब की ऊंचाई दस हाथ की, और दूसरे की भी इतनी ही यी।
27. और उस ने करूबोंको भीतरवाले स्यान में धरवा दिया; और करूबोंके पंख ऐसे फैले थे, कि एक करूब का एक पंख, एक भीत से, और दूसरे का दूसरा पंख, दूसरी भीत से लगा हुआ या, फिर उनके दूसरे दो पंख भवन के मध्य में एक दूसरे से लगे हुए थे।
28. और करूबोंको उस ने सोने से मढ़वाया।
29. और उस ने भवन की भीतोंमें बाहर और भीतर चारोंओर करूब, खजूर और खिले हुए फूल खुदवाए।
30. और भवन के भीतर और बाहरवाले फर्श उस ने सोने से मढ़वाए।
31. और दर्शन-स्यान के द्वार पर उस ने जलपाई की लकड़ी के किवाड़ लगाए और चौखट के सिरहाने और बाजुओं की का पांचवां भाग यी।
32. दोनोंकिवाड़ जलपाई की लकड़ी के थे, और उस ने उन में करूब, खजूर के वृझ और खिले हुए फूल खुदवाए और सोने से मढ़ा और करूबोंऔर खजूरोंके ऊपर सोना मढ़वा दिया गया।
33. असी की रीति उस ने मन्दिर के द्वार के लिथे भी जलपाई की लकड़ी के चौखट के बाजू बनाए और वह भवन की चौड़ाई की चौयाई यी।
34. दोनोंकिवाड़ सनोवर की लकड़ी के थे, जिन में से एक किवाड़ के दो पल्ले थे; और दूसरे किवाड़ के दो पल्ले थे जो पलटकर दुहर जाते थे।
35. और उन पर भी उस ने करूब और खजूर के वृझ और खिले हुए फूल खुदवाए और खुदे हुए काम पर उस ने सोना मढ़वाया।
36. और उस ने भीतरवाले आंगन के घेरे को गढ़े हुए पत्यरोंके तीन रद्दे, और एक परत देवदारू की कडिय़ां लगा कर बनाया।
37. चौथे वर्ष के जीव नाम महीने में यहोवा के भवन की नेव डाली गई।
38. और ग्यारहवें वर्ष के बूल नाम आठवें महीने में, वह भवन उस सब समेत जो उस में उचित समझा गया बन चुका : इस रीति सुलैमान को उसके बनाने में सात वर्ष लगे।

Chapter 7

1. और सुलैमान ने अपके महल को बनाया, और उसके पूरा करने में तेरह वर्ष लगे।
2. और उस ने लबानोनी वन नाम महल बनाया जिसकी लम्बाई सौ हाथ, चौड़ाई पचास हाथ और ऊंचाई तीस हाथ की यी; वह तो देवदारु के खम्भोंकी चार पांति पर बना और खम्भोंपर देवदारु की कडिय़ां धरी गई।
3. और खम्भोंके ऊपर देवदारु की छतवाली पैंतालीस कोठरियां अर्यात्‌ एक एक महल में पन्द्रह कोठरियां बनीं।
4. तीनोंमहलोंमें कडिय़ां धरी गई, और तीनोंमें खिड़कियां आम्हने साम्हने बनीं।
5. और सब द्वार और बाजुओं की कडिय़ां भी चौकोर यी, और तीनोंमहलोंमें खिड़कियां आम्हने साम्हने बनीं।
6. और उस ने एक खम्भेवाला ओसारा भी बनाया जिसकी लम्बाई पचास हाथ और चौड़ाई तीस हाथ की यी, और इन खम्भोंके साम्हने एक खम्भेवाला ओसारा और उसके साम्हने डेवढ़ी बनाई।
7. फिर उस ने न्याय के सिंहासन के लिथे भी एक ओसारा बनाया, जो न्याय का ओसारा कहलाया; और उस में ऐक फ़र्श से दूसरे फ़र्श तक देवदारु की तख्ताबन्दी यी।
8. और उसी के रहने का भवन जो उस ओसारे के भीतर के एक और आंगन में बना, वह भी उसी ढब से बना। फिर उसी ओसारे के ढब से सुलैमान ने फ़िरौन की बेटी के लिथे जिसको उस ने ब्याह लिया या, एक और भवन बनाया।
9. थे सब घर बाहर भीतर तेव से मुंढेर तक ऐसे अनमोल और गढ़े हुए पत्यरोंके बने जो नापकर, और आरोंसे चीरकर तैयार किथे गए थे और बाहर के आंगन से ले बड़े आंगन तक लगाए गए।
10. उसकी नेव तो बड़े मोल के बड़े बड़े अर्यात्‌ दस दस और आठ आठ हाथ के पत्यरोंकी डाली गई यी।
11. और ऊपर भी बड़े मोल के पत्यर थे, जो नाप से गढ़े हुए थे, और देवदारु की लकड़ी भी यी।
12. और बड़े आंगन के चारोंओर के घेरे में गढ़े हुए पत्य्रोंके तीन रद्दे, और देवदारु की कडिय़ोंका एक परत या, जैसे कि यहोवा के भवन के भीतरवाले आंगन और भवन के ओसारे में लगे थे।
13. फिर राजा सुलैमान ने सोर से हीराम को बुलवा भेजा।
14. वह नप्ताली के गोत्र की किसी विधवा का बेटा या, और उसका पिता एक सोरवासी ठठेरा या, और वह पीतल की सब प्रकार की काीिगरी में पूरी बुद्धि, निमुणता और समझ रखता या। सो वह राजा सुलैमान के पास आकर उसका सब काम करने लगा।
15. उस ने पीतल ढालकर अठारह अठाही हाथ ऊंचे दो खम्भे बनाए, और एक एक का घेरा बारह हाथ के सूत का या।
16. और उस ने खम्भोंके सिरोंपर लगाने को पीतल ढालकर दो कंगनी बनाई; एक एक कंगनी की ऊंचाई, पांच पांच हाथ की यी।
17. और खम्भोंके सिरोंपर की कंगनियोंके लिथे चारखाने की सात सात जालियां, और सांकलोंकी सात सात फालरें बनीं।
18. और उस ने खम्भोंको भी इस प्रकार बनाया; कि खम्भोंके सिरोंपर की एक एक कंगनी के ढांपके को चारोंउाोर जालियोंकी एक एक पांति पर अनारोंकी दो पांतियां हों।
19. और जो कंगनियां ओसारोंमें खम्भो के सिरोंपर बनीं, उन में चार चार हाथ ऊंचे सोसन के फूल बने हुए थे।
20. और एक एक खम्भे के सिक्के पर, उस गोलाई के पास जो जाली से लगी यी, एक और कंगनी बनी, और एक एक कंगनी पर जो अनार चारोंओर पांति पांति करके बने थे वह दो सौ थे।
21. उन खम्भोंको उस ने मन्दिर के ओसारे के पास खड़ा किया, और दाहिनी ओर के खम्भे को खड़ा करके उसका नाम याकीन रखा; फिर बाई ओर के खम्भे को झड़ा करके उसका नाम बोआज़ रखा।
22. और खम्भोंके सिरोंपर सोसन के फूल का काम बना या खम्भोंका काम इसी रीति हुआ।
23. फिर उस ने एक ढाला हुआ एक बड़ा हौज़ बनाया, जो एक छोर से दूसरी छोर तक दस हाथ चौड़ा या, उसका आकार गोल या, और उसकी ऊंचाई पांच हाथ की यी, और उसके चारोंओर का घेरा तीस हाथ के सूत के बराबर या।
24. और उसके चारोंओर मोहड़े के नीचे एक एक हाथ में दस दस इन्द्रायन बने, जो हौज को घेरे यीं; जब वह ढाला गया; तब थे इन्द्रायन भी दो पांति करके ढाले गए।
25. और वह बारह बने हुए बैलोंपर रखा गया जिन में से तीन उत्तर, तीन पश्चिम, तीन दक्खिन, और तीन पूर्व की ओर मुंह किए हुए थे; और उन ही के ऊपर हौज या, और उन सभोंका पिछला अंग भीतर की ओर या।
26. और उसका दल चौबा भर का या, और उसका मोहड़ा कटोरे के मोहड़े की नाई सोसन के फूलो के काम से बना या, और उस में दो हज़ार बत की समाई यी।
27. फिर उस ने पीतल के दस पाथे बनाए, एक एक पाथे की लम्बाई चार हाथ, चौड़ाई भी चार हाथ और ऊंचाई तीन हाथ की यी।
28. उन पायोंकी बनावट इस प्रकार यी; अनके पटरियां यीं, और पटरियोंके बीचोंबीच जोड़ भी थे।
29. और जोड़ोंके बीचोंबीच की पटरियोंपर सिंह, बैल, और करूब बने थे और जोड़ोंके ऊपर भी एक एक और पाया बना और सिंहोंऔर बैलोंके नीचे लटकते हुए हार बने थे।
30. और एक एक पाथे के लिथे पीतल के चार पहिथे और पीतल की धुरियां बनी; और एक एक के चारोंकोनोंसे लगे हुए कंधे भी ढालकर बनाए गए जो हौदी के नीचे तक पहुंचते थे, और एक एक कंधे के पास हार बने हुए थे।
31. औा हौदी का मोहड़ा जो पाथे की कंगनी के भीतर और ऊपर भी या वह एक हाथ ऊंचा या, और पाथे का मोहड़ा जिसकी चौड़ाई डेढ़ हाथ की यी, वह पाथे की बनावट के समान गोल बना; और पाथे के उसी मोहड़े पर भी कुछ खुदा हुआ काम या और उनकी पटरियां गोल नहीं, चौकोर यीं।
32. और चारोंपहिथे, पटरियो के नीचे थे, और एक एक पाथे के पहियोंमें धुरियां भी यीं; और एक एक पहिथे की ऊंचाई डेढ़ हाथ की यी।
33. पहियोंकी बनावट, रय के पहिथे की सी यी, और उनकी धुरियां, पुट्ठियां, आरे, और नाभें सब ढाली हुर्अ यीं।
34. और एक एक पाथे के चारोंकोनोंपर चार कंधे थे, और कंधे और पाथे दोनोंएक ही टुकड़े के बने थे।
35. और एक एक पाथे के सिक्के पर आध हाथ ऊंची चारोंओर गोलाई यी, और पाथे के सिक्के पर की टेकें और पटरियां पाथे से जुड़े हुए एक ही टुकड़े के बने थे।
36. और टेकोंके पाटोंऔर पटरियोंपर जितनी जगह जिस पर यी, उस में उस ने करूब, और सिंह, और खजूर के वृझ खोद कर भर दिथे, और चारोंओर हार भी बनाए।
37. इसी प्रकार से उस ने दसोंपायोंको बनाया; सभोंका एक ही सांचा और एक ही नाप, और एक ही आकार या।
38. और उस ने पीतल की दस हौदी बनाई। एक एक हौदी में चालीस चालीस बत की समाई यी; और एक एक, चार चार हाथ चौड़ी यी, और दसोंपायोंमें से एक एक पर, एक एक हौदी यी।
39. और उस ने पांच हौदी षवन की दक्खिन की ओर, और पांच उसकी उत्तर की ओर रख दीं; और हौज़ को भवन की दाहिनी ओर अर्यात्‌ पूर्व की ओर, और दक्खिन के साम्हने धर दिया।
40. और हीराम ने हौदियों, फावडिय़ों, और कटोरोंको भी बनाया। सो हीराम ने राजा सुलैमान के लिथे यहोवा के भवन में जितना काम करना या, वह सब निपटा दिया,
41. अर्यात्‌ दो खम्भे, और उन कंगनियोंकी गोलाइयां जो दोनोंखम्भोंके सिक्के पर यीं, और दोनोंखम्भोंके सिरोंपर की गोलाइयोंके ढांपके को दो दो जालियां, और दोनोंजालियोंके लिय चार चार सौ अनार,
42. अर्यात्‌ खम्भोंके सिरोंपर जो गोलाइयां यीं, उनके ढांपके के लिथे अर्यात्‌ एक एक जाली के लिथे अनारोंकी दो दो पांति;
43. दस पाथे और इन पर की दस हौदी,
44. एक हौज़ और उसके नीचे के बारह बैल, और हंडे, फावडिय़ां,
45. और कटोरे बने। थे सब पात्र जिन्हें हीराम ने यहोवा के भवन के निमित्त राजा सुलैमान के लिथे बनाया, वह फलकाथे हुए पीतल के बने।
46. राजा ने उनको यरदन की तराई में अर्यात्‌ सुक्कोत और सारतान के मध्य की चिकनी मिट्टवाली भूमि में ढाला।
47. और सुलैमान ने सब पात्रोंको बहुत अधिक होने के कारण बिना तौले छोड़ दिया, पीतल के तौल का वज़न मालूम न हो सका।
48. यहोवा के भवन के जितने पात्र थे सुलैमान ने सब बनाए, अर्यात्‌ सोने की वेदी, और सोने की वह मेज़ जिस पर भेंट की रोटी रखी जाती यी,
49. और चोखे सोने की दीवटें जो भीतरी कोठरी के आगे पांच तो दक्खिन की ओर, और पांच उत्तर की ओर रखी गई; और सोने के फूल,
50. दीपक और चिमटे, और चोखे सोने के तसले, कैंचियां, कटोरे, धूपदान, और करछे और भीतरवाला भवन जो परमपवित्र स्यान कहलाता है, और भवन जो मन्दिर कहलाता है, दोनोंके किवाड़ोंके लिथे सोने के कब्जे बने।
51. निदान जो जो काम राजा सुलैमान ने यहोवा के भवन के लिथे किया, वह सब पूरा किया गया। तब सुलैमान ने अपके पिता दाऊद के पवित्र किए हुए सोने चांदी और पात्रोंको भीतर पहुंचा कर यहोवा के भवन के भणडारोंमें रख दिया।

Chapter 8

1. तब सुलैमान ने इस्राएली पुरनियोंको और गोत्रोंके सब मुख्य पुरुष जो इस्राएलियोंके पूर्वजोंके घरानोंके प्रधान थे,उनको भी यरूशलेम में अपके पास इस मनसा से इकट्ठा किया, कि वे यहोवा की वाचा का सन्दूक दाऊदपुर अर्यात्‌ सियोन से ऊपर ले आएं।
2. सो सब इस्राएली पुरुष एतानीम नाम सातवें महीने कें पर्व के समय राजा सुलैमान के पास इकट्ठे हुए।
3. जब सब इस्राएली पुरनिथे आए, तब याजकोंने सन्दूक को उठा लिया।
4. और यहोवा का सन्दूक, और मिलाप का तम्बू, और जितने पवित्र पात्र उस तम्बू में थे, उन सभोंयाजक और लेबीय लोग ऊपर ले गए।
5. और राजा सुलैमान और समस्त इस्राएली मंडली, जो उसके पास इाट्ठी हुई यी, वे रुब सन्दूक के साम्हने इतनी भेड़ और बैल बलि कर रहे थे, जिनकी गिनती किसी रीति से नहीं हो सकती यी।
6. तब याजकोंने यहोवा की वाचा का सन्दूक उसके स्यान को अर्यात्‌ भवन के दर्शन-स्यान में, जो परमपवित्र स्यान है, पहुंचाकर करूबोंके पंखोंके तले रख दिया।
7. करूब तो सन्दूक के स्यान के ऊपर पंख ऐसे फैलाए हुए थे, कि वे ऊपर से सन्दूक और उसके डंडोंको ढांके थे।
8. डंडे तो ऐसे लम्बे थे, कि उनके सिक्के उस पवित्र स्यान से जो दर्शन-स्यान के साम्हने या दिखाई पड़ते थे परन्तु बाहर से वे दिखाई नहीं पड़ते थे। वे आज के दिन तक यहीं वतमपान हैं।
9. सन्दूक में कुछ नहीं या, उन दो पटरियोंको छोड़ जो मूसा ने होरेब में उसके भीतर उस समय रखीं, जब यहोवा ने इस्राएलियोंके मिस्र से निकलने पर उनके साय वाचा बान्धी यी।
10. जब याजक पवित्रस्यान से निकले, तब यहोवा के भवन में बादल भर आया।
11. और बादल के कारण याजक सेवा टहल करने को खड़े न रह सके, क्योंकि यहोवा का तेज यहोवा के भवन में भर गया या।
12. तब सुलैमान कहने लगा, यहोवा ने कहा या, कि मैं घोर अंधकार में वास किए रहूंगा।
13. सचमुच मैं ने तेरे लिथे एक वासस्यान, वरन ऐसा दृढ़ स्यान बनाया है, जिस में तू युगानुयुग बना रहे।
14. और राजा ने इस्राएल की पूरी सभा की ओर मुंह फेरकर उसको आशीर्वाद दिया; और पूरी सभा खड़ी रही।
15. और उस ने कहा, धन्य है इस्राएल का परमेश्वर यहोवा ! जिस ने अपके मुंह से मेरे पिता दाऊद को यह वचन दिया या, और अपके हाथ से उसे पूरा किया है,
16. कि जिस दिन से मैं अपक्की प्रजा इस्राएल को मिस्र से निकाल लाया, तब से मैं ने किसी इस्राएली गोत्र का कोई नगर नहीं चुना, जिस में मेरे नाम के निवास के लिथे भवन बनाया जाए; परन्तु मैं ने दाऊद को चुन लिया, कि वह मेरी प्रजा इस्राएल का अधिक्कारनेी हो।
17. मेरे पिता दाऊद की यह मनसा तो यी कि इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम का एक भवन बनाए।
18. परन्तु यहोवा ने मेरे पिता दाऊद से कहा, यह जो तेरी मनसा है, कि यहोवा के नाम का एक भवन बनाए, ऐसी मनसा करके तू ने भला तो किया;
19. तौभी तू उस भवन को न बनाएगा; तेरा जो निज पुत्र होगा, वही मेरे नाम का भवन बनाएगा।
20. यह जो वचन यहोवा ने कहा या, उसे उस ने पूरा भी किया है, और मैं अपके पिता दाऊद के स्यान पर उठकर, यहोवा के वचन के अनुसार इस्राएल की गद्दी पर विराजमान हूँ, और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम से इस भवन को बनाया है।
21. और इस में मैं ने एक स्यान उस सन्दूक के लिथे ठहराया है, जिस में यहोवा की वह वाचा है, जो उस ने हमारे पुरखाओं को मिस्र देश से निकालने के समय उन से बान्धी यी।
22. तब सुलैमान इस्राएल की पूरी सभा के देखते यहोवा की वेदी के साम्हने खड़ा हुआ, और अपके हाथ स्वर्ग की ओर फैलाकर कहा, हे यहोवा !
23. हे इस्राएल के परमेश्वर ! तेरे समान न तो ऊपर स्वर्ग में, और न नीचे पृय्वी पर कोई ईश्वर है : तेरे जो दास अपके सम्पूर्ण मन से अपके को तेरे सम्मुख जानकर चलते हैं, उनके लिथे तू अपक्की वाचा मूरी करता, और करुणा करता रहता है।
24. जो वचन तू ने मेरे पिता दाऊद को दिया या, उसका तू ने पालन किया है, जैसा तू ने अपके मुंह से कहा या, वैसा ही अपके हाथ से उसको पूरा किया है, जैसा आज है।
25. इसलिथे अब हे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ! इस वचन को भी पूरा कर, जो तू ने अपके दास मेरे पिता दाऊद को दिया या, कि तेरे कुल में, मेरे साम्हने इस्राएल की गद्दी पर विराजनेवाले सदैव बने रहेंगे : इतना हो कि जैसे तू स्वयं मुझे सम्मुख जानकर चलता रहा, वैसे ही तेरे वंश के लोग अपक्की चालचलन में ऐसी ही वौकसी करें।
26. इसलिथे अब हे इस्राएल के परमेश्वर अपना जो वचन तू ने अपके दास मेरे पिता दाऊद को दिया या उसे सच्चा सिद्ध कर।
27. क्या परमेश्वर सचमुच पृय्वी पर वास करेगा, स्वर्ग में वरन सब से ऊंचे स्वर्ग में भी तू नहीं समाता, फिर मेरे बनाए हुए इस भवन में क्योंकर समाएगा।
28. तौभी हे मेरे परमेश्वर यहोवा ! अपके दास की प्रार्यना और गिड़गिड़ाहट की ओर कान लगाकर, मेरी चिल्लाहट और यह प्रार्यना सुन ! जो मैं आज तेरे साम्हने कर रहा हूँ;
29. कि तेरी आंख इस भवन की ओर अर्यात्‌ इसी स्यान की ओर जिसके विषय तू ने कहा है, कि मेरा नाम वहां रहेगा, रात दिन खुली रहें : और जो प्रार्यना तेरा दास इस स्यान की ओर करे, उसे तू सुन ले।
30. और तू अपके दास, और अपक्की प्रजा इस्राएल की प्रार्यना जिसको वे इस स्यान की ओर गिड़गिड़ा के करें उसे सुनना, वरद स्वर्ग। में से जो तेरा निवासस्यान है सुन लेना, और सुनकर झमा करना।
31. जब कोई किसी दूसरे का अपराध करे, और उसको शपय खिलाई जाए, और वह आकर इस भवन में तेरी वेदी के साम्हने शपय खाए,
32. तब तू स्वर्ग में सुन कर, अर्यात्‌ अपके दासोंका न्याय करके दुष्ट को दुष्ट ठहरा और उसकी चाल उसी के सिर लौटा दे, और निदॉष को निदॉष ठहराकर, उसके धर्म के अनुसार उसको फल देना।
33. फिर जब नेरी प्रजा इस्राएल तेरे विरुद्ध पाप करने के कारण अपके शत्रुओं से हार जाए, और तेरी ओर फिरकर तेरा नाम ले और इस भवन में तुझ से गिड़गिड़ाहट के साय प्रार्यना करे,
34. तब तू स्वर्ग में से सुनकर अपक्की प्रजा इस्राएल का पाप झमा करना : और उन्हें इस देश में लौटा ले आना, जो तू ने उनके पुरुखाओं को दिया या।
35. जब वे तेरे विरुद्ध पाप करें, और इस कारण आकाश बन्द हो जाए, कि वर्षा न होए, ऐसे समय यदि वे इस स्यान की ओर प्रार्यना करके तेरे नाम को मानें जब तू उन्हें दु:ख देता है, और अपके पाप से फिरें, तो तू स्वर्ग में से सुनकर झमा करना,
36. और अपके दासों, अपक्की प्रजा इस्राएल के पाप को झ्मा करना; तू जो उनको वह भला मार्ग दिखाता है, जिस पर उन्हें चलना चाहिथे, इसलिथे अपके इस देश पर, जो तू ने अपक्की प्रजा का भाग कर दिया है, पानी बरसा देना।
37. जब इस देश में काल वा मरी वा फुलस हो वा गेरुई वा टिड्डियां वा कीड़े लगें वा उनके शत्रु उनके देश के फाटकोंमें उन्हें घेर रखें, अयवा कोई विपत्ति वा रोग क्योंन हों,
38. तब यदि कोई मनुष्य वा तेरी प्रजा इस्राएल अपके अपके मन का दु:ख जान लें, और गिड़गिड़ाहट के साय प्रार्यना करके अपके हाथ इस भवन की ओर फैलाएं;
39. तो तू अपके स्वगींय निवासस्यान में से सुनकर झमा करुना, और ऐसा करना, कि एक एक के मन को जानकर उसकी समस्त चाल के अनुसार उसको फल देना : तू ही तो सब आदमियोंके मन के भेदोंका जानने वाला है।
40. तब वे जितने दिन इस देश में रहें, जो तू ने उनके पुरखाओं को दिया या, उतने दिन तक तेरा भय मानते रहें।
41. फिर परदेशी भी जो तेरी प्रजा इस्राएल का न हो, जब वह तेरा नाम सुनकर, दूर देश से आए,
42. वह तो तेरे बड़े ताम और बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा का समाचार पाए; इसलिथे जब ऐसा कोई आकर इस भवन की ओर प्रार्यना करें,
43. तब तू अपके स्वगींय निवासस्यान में से सुन, और जिस बात के लिथे ऐसा परदेशी तुझे पुकारे, उसी के अनुसार व्यवहार करना जिस से पृय्वी के सब देशोंके लोग तेरा नाम जानकर तेरी प्रजा इस्राएल की नाई तेरा भय मानें, और निश्चय जानें, कि यह भवन जिसे मैं ने बनाया है, वह तेरा ही कहलाता है।
44. जब तेरी प्रजा के लोग जहां कहीं तू उन्हें भेजे, वहां अपके शत्रुओं से लड़ाई करने को निकल जाएं, और इस नगर की ओर जिसे तू ने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैं ने तेरे नाम पर बनाया है, यहोवा से प्रार्यना करें,
45. तब तू स्वर्ग में से उनकी प्रार्यना और गिड़गिड़ाहट सुनकर उनका न्याय कर।
46. निष्पाप तो कोई मनुष्य नहीं है : यदि थे भी तेरे विरुद्ध पाप करें, और तू उन पर कोप करके उन्हें शत्रओं के हाथ कर दे, और वे उनको बन्धुआ करके अपके देश को चाहे वह दूर हो, चाहे निकट ले जवएं,
47. तो यदि वे बन्धुआई के देश में सोच विचार करें, और फिरकर अपके बन्धुआ करनेवालोंके देश में तुझ से गिड़गिड़ाकर कहें कि हम ने पाप किया, और कुटिलता ओर दुष्टता की है;
48. और यदि वे अपके उन शत्रुओं के देश में जो उन्हें बन्धुआ करके ले गए हों, अपके सम्पूर्ण मन और सम्पूर्ण प्राण से तेरी ओर फिरें और अपके इस देश की ओर जो तू ने उनके पुरुखाओं को दिया या, और इस नगर की ओर जिसे तू ने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैं ने तेरे नाम का बनाया है, तुझ से प्रार्यना करें,
49. तो तू अपके स्वगींय निवासस्यान में से उनकी प्रार्यना और गिड़गिड़ाहट सुनना; और उनका न्याय करना,
50. और जो पाप तेरी प्रजा के लोग तेरे विरुद्ध करेंगे, और जितने अपराध वे तेरे विरुद्ध करेंगे, सब को झमा करके, उनके बन्धुआ करनेवालोंके मन में ऐसी दया उपजाना कि वे उन पर दया करें।
51. क्योंकि वे तो तेरी प्रजा और तेरा निज भाग हैं जिन्हें तू लोहे के भट्ठे के मध्य में से अर्यात्‌ मिस्र से निकाल लाया है।
52. इसलिथे तेरी आंखें तेरे दाय की गिड़गिड़ाहट और तेरी प्रजा इस्राएल की गिड़गिड़ाहट की ओर ऐसी खुली रहें, कि जब जब वे तुझे पुकारें, तब तब तू उनकी सुन ले;
53. क्योंकि हे प्रभु यहोवा अपके उस वचन के अनुसार, जो तू ने हमारे पुरखाओं को मिस्र से निकालने के समय अपके दास मूसा के द्वारा दिया या, तू ने इन लोगोंको अपना निज भाग होने के लिथे पृय्वी की सब जातियोंसे अलग किया है।
54. जब सुलैमान यहोवा से यह सब प्रार्यना गिड़गिड़ाहट के साय कर चुका, तब वह जो घुटने टेके और आकाश की ओर हाथ फैलाए हुए या, सो यहोवा की वेदी के साम्हने से उठा,
55. और खड़ा हो, समस्त इस्राएली सभा को ऊंचे स्वर से यह कहकर आशीर्वाद दिया, कि धन्य है यहोवा,
56. जिस ने ठीक अपके कयन के अनुसार अपक्की प्रजा इस्राएल को विश्रम दिया है, जितनी भलाई की बातें उसने अपके दास मूसा के द्वारा कही यीं,उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही।
57. हमारा परमेश्वर यहोवा जैसे हमारे पुरखाओं के संग रहता या, वैसे ही हमारे संग भी रहे, वह हम को त्याग न दे और न हम को छोड़ दे।
58. वह हमारे मन अपक्की ओर ऐसा फिराए रखे, कि हम उसके सब मागॉं पर चला करें, और उसकी आज्ञाएं और विधियां और नियम जिन्हें उसने हमारे पुरखाओं को दिया या, नित माना करें।
59. और मेरी थे बातें जिनकी मैं ने यहोवा के साम्हने बिनती की है, वह दिन और रात हमारे परमेश्वर यहोवा के मन में बनी रहें, और जैसा दिन दिन प्रयोजन हो वैसा ही वह अपके दास का और अपक्की प्रजा इस्राएल का भी न्याय किया करे,
60. और इस से पृय्वी की सब जातियां यह जान लें, कि यहोवा ही परमेश्वर है; और कोई दूसरा नहीं।
61. तो तुम्हारा मन हमारे परमेश्वर यहोवा की ओर ऐसी पूरी रीति से लगा रहे, कि आज की नाई उसकी विधियोंपर चलते और उसकी आज्ञाएं मानते रहो।
62. तब राजा समस्त इस्राएल समेत यहोवा के सम्मुख मेलबलि चढ़ाने लगा।
63. और जो पशु सुलैमान ने मेलबलि में यहोवा को चढ़ाए, सो बाईस हजार बैल और एक लाख बीस हजार भेड़ें यीं। इस रीति राजा ने सब इस्राएलियोंसमेत यहोवा के भवन की प्रतिष्ठा की।
64. उस दिन राजा ने यहोवा के भवन के साम्हनेवाले आंगन के मध्य भी एक स्यान पवित्र किया और होमबलि, और अन्नबलि और मेलबलियोंकी चरबी वहीं चढ़ाई; क्योंकि जो पीतल की वेदी यहोवा के साम्हने यी, वह उनके लिथे छोटी यी।
65. और सुलैमान ने और उसके संग समस्त इस्राएल की एक बड़ी सभा ने जो हमात की घाटी से लेकर मिस्र के नाले तक के सब देशोंसे इाट्ठी हुई यी, दो सप्ताह तक अर्यात्‌ चौदह दिन तक हमारे परमेश्वर यहोवा के साम्हने पर्व को माना। फिर आठवें दिन उस ने प्रजा के लोगोंको विदा किया।
66. और वे राजा को धन्य, धन्य, कहकर उस सब भलाई के कारण जो यहोवा ने अपके दास दाऊद और अपक्की प्रजा इस्राएल से की यी, आनन्दित और मगन होकर अपके अपके डेरे को चले गए।

Chapter 9

1. जब सुलैमान यहोवा के भवन और राजभवन को बना चुका, और जो कुछ उस ने करना चाहा या, उसे कर चुका,
2. तब यहोवा ने जैसे गिबोन में उसको दर्शन दिया या, वैसे ही दूसरी बार भी उसे दर्शन दिया।
3. और यहोवा ने उस से कहा, जो प्रार्यना गिड़गिड़ाहट के साय तू ने मुझ से की है, उसको मैं ने सुना है, यह जो भवन तू ने बनाया है, उस में मैं ने अपना नाम सदा के लिथे रखकर उसे पवित्र किया है; और मेरी आंखें और मेरा मन नित्य वहीं लगे रहेंगे।
4. और यादे तू अपके पिता दाऊद की नाई मन की खराई और सिधाई से अपके को मेरे साम्हने जानकर चलता रहे, और मेरी सब अपज्ञाओं के अनुसार किया करे, और मेरी विधियोंऔर नियमोंको मानता रहे, तो मैं तेरा राज्य इस्राएल के ऊपर सदा के लिथे स्य्िर करूंगा;
5. जैसे कि मैं ने तेरे पिता दाऊद को वचन दिया या, कि तेरे कुल में इस्राएल की गद्दी पर विराजनेवाले सदा बने रहेंगे।
6. परन्तु यदि तुम लोग वा तुम्हारे वंश के लोग मेरे पीछे चलना छोड़ दें; और मेरी उन आज्ञाओं और विधियोंको जो मैं ने तुम को दी हैं, न मानें, और जाकर पराथे देवताओं की उपासना करे और उन्हें दणडवत करने लगें,
7. तो मैं इस्राएल को इस देश में से जो मैं ने उनको दिया है, काट डालूंगा और इस भवन को जो मैं ने अपके नाम के लिथे पवित्र किया है, अपक्की दृष्टि से उतार दूंगा; और सब देशोंके लोगोंमें इस्राएल की उपमा दी जाथेगी और उसका दृष्टान्त चलेगा।
8. और यह भवन जो ऊंचे पर रहेगा, तो जो कोई इसके पास होकर चलेगा, वह चकित होगा, और ताली बजाएगा और वे पूछेंगे, कि यहोवा ने इस देश और इस भवन के साय क्योंऐसा किया है;
9. तब लोग कहेंगे, कि उन्होंने अपके परमेश्वर यहोवा को जो उनके पुरखाओं को मिस्र देश से निकाल लाया या। तजकर पराथे देवताओं को पकड़ लिया, और उनको दणडवत की और उनकी उपासना की इस कारण यहोवा ने यह सब विपत्ति उन पर डाल दी।
10. सुलैमान को तो यहोवा के भवन और राजभवन दोनोंके बनाने में बीस वर्ष लग गए।
11. तब सुलैमान ने सोर के राजा हीराम को जिस ने उसके मनमाने देवदारू और सनोवर की लकड़ी और सोना दिया या, गलील देश के बीस नगर दिए।
12. जब हीराम ने सोर से जाकर उन नगरोंको देखा, जो सुलैमान ने उसको दिए थे, तब वे उसको अच्छे न लगे।
13. तब उस ने कहा, हे मेरे भाई, थे नगर क्या तू ने मुझे दिए हैं? और उस ने उनका नाम कबूल देश रखा।
14. और यही नाम आज के दिन तक पड़ा है। फिर हीराम ने राजा के पास साठ किक्कार सोना भेज दिया।
15. राजा सुलैमान ने लोगोंको जो बेगारी में रखा, इसका प्रयोजन यह या, कि यहोवा का और अपना भवन बनाए, और मिल्लो और यरूशलेम की शहरपनाह और हासोर, मगिद्दो और गेजेर नगरोंको दृढ़ करे।
16. गेजेर पर तो मिस्र के राजा फ़िरौन ने चढ़ाई करके उसे ले लिया और आग लगाकर फूंक दिया, और उस नगर में रहनेवाले कनानियोंको मार डालकर, उसे अपक्की बेटी सुलैमान की रानी का निज भाग करके दिया या,
17. सो सुलैमान ने गेजेर और नीचेवाले बयोरेन,
18. बालात और तामार को जो जंगल में हैं, दृढ़ किया, थे तो देश में हैं।
19. फिर सुलैमान के जितने भणडार के नगर थे, और उसके रयोंऔर सवारोंके नगर, उनको वरन जो कुछ सुलैमान ने यरूशलेम, लबानोन और अपके राज्य के सब देशोंमें बनाना चाहा, उन सब को उस ने दृढ़ किया।
20. एमोरी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी और यबूसी जो रह गए थे, जो इस्राएलियोंमें के न थे,
21. उनके वंश जो उनके बाद देश में रह गए, और उनको इस्राएली सत्यानाश न कर सके, उनको तो सुलैमान ने दास कर के बेगारी में रखा, और आज तक उनको वही दशा है।
22. परन्तु इस्राएलियोंमें से सुलैमान ने किसी को दास न बनाया; वे तो योद्धा और उसके कर्मचारी, उसके हाकिम, उसके सरदार, और उसके रयों, और सवारोंके प्रधान हुए।
23. जो मुख्य हाकिम सुलैमान के कामोंके ऊपर ठहर के काम करनेवालोंपर प्रभुता करते थे, थे पांच सौ पचास थे।
24. जब फ़िरौन की बेटी दाऊदपुर में से अपके उस भवन को आ गई, जो उस ने उसके लिथे बनाया या तब उस ने मिल्लो को बनाया।
25. और सुलैमान उस वेदी पर जो उस ने यहोवा के लिथे बनाई यी, प्रति वर्ष में तीन बार होमबलि और मेलबलि चढ़ाया करता या और साय ही उस वेदी पर जो यहोवा के सम्मुख यी, धूप जलाया करता या, इस प्रकार उस ने उस भवन को तैयार कर दिया।
26. फिर राजा सुलैमान ने एस्योनगेबेर में जो एदोम देश मे लाल समुद्र के तीर एलोत के पास है, जहाज बनाए।
27. और जहाजोंमें हीराम ने अपके अधिक्कारने के मल्लाहोंको, जो समुद्र से जानकारी रखते थे, सुलैमान के सेवकोंके संग भेज दिया।
28. उन्होंने ओपोर को जाकर वहां से चार सौ बीस किक्कार सोना, राजा सुलैमान को लाकर दिया।

Chapter 10

1. जब शीबा की रानी ने यहोवा के नाम के विषय सुलैमान की कीत्तिं सुनी, तब वह कठिन कठिन प्रश्नोंसे उसकी पक्कीझा करने को चल पक्की।
2. वह तो बहुत भारी दल, और मसालों, और बहुत सोने, और मणि से लदे ऊंट साय लिथे हुए यरूशलेम को आई; और सुलैमान के पास पहुंचकर अपके मन की सब बातोंके विषय में उस से बातें करने लगी।
3. सुलैमान ने उसके सब प्रश्नोंका उत्तर दिया, कोई बात राजा की बुद्धि से ऐसी बाहर न रही कि वह उसको न बता सका।
4. जब शीबा की रानी ने सुलैमान की सब बुद्धिमानी और उसका बनाया हुआ भवन, और उसकी मेज पर का भोजन देखा,
5. और उसके कर्मचारी किस रीति बैठते, और उसके टहंलुए किस रीति खड़े रहते, और कैसे कैसे कपके पहिने रहते हैं, और उसके पिलानेवाले कैसे हैं, और वह कैसी चढ़ाई है, जिस से वह यहोवा के भवन को जाया करता है, यह सब जब उस ने देखा, तब वह चकित हो गई।
6. तब उस ने राजा से कहा, तेरे कामोंऔर बुद्धिमानी की जो कीत्तिं मैं ने अपके देश में सुनी यी वह सच ही है।
7. परन्तु जब तक मैं ने आप ही आकर अपक्की आंखोंसे यह न देखा, तब तक मैं ने उन बातोंकी प्रतीत न की, परन्तु इसका आधा भी मुझे न बताया गया या; तेरी बुद्धिमानी और कल्याण उस कीत्तिं से भी बढ़कर है, जो मैं ने सुनी यी।
8. धन्य हैं तेरे जन ! धन्य हैं तेरे थे सेवक ! जो नित्य तेरे सम्मुख उपस्यित रहकर तेरी बुद्धि की बातें सुनते हैं।
9. धन्य है तेरा परमेश्वर यहोवा ! जो तुझ से ऐसा प्रसन्न हुआ कि तुझे इस्राएल की राजगद्दी पर विराजमान किया : यहोवा इस्राएल से सदा प्रेम रखता है, इस कारण उस ने तुझे न्याय और धर्म करने को राजा बना दिया है।
10. और उस ने राजा को एक सौ बीस किक्कार सोना, बहुत सा सुगन्ध द्रय्य, और मणि दिया; जितना सुगन्ध द्रय्य शीबा की रानी ने राजा सुलैमान को दिया, उतना फिर कभी नहीं आया।
11. फिर हीराम के जहाज भी जो ओपीर से सोना लाते थे, वह बहुत सी चन्दन की लकड़ी और मणि भी लाए।
12. और राजा ने चन्दन की लकड़ी से यहोवा के भवन और राजभवन के लिथे जंगले और गवैयोंके लिथे वीणा और सारंगियां बनवाई ; ऐसी चन्दन की लकड़ी आज तक फिर नहीं आई, और न दिखाई पक्की है।
13. और शीबा की रानी ने जो कुछ चाहा, वही राजा सुलैमान ने उसकी इच्छा के अनुसार उसको दिया, फिर राजा सुलैमान ने उसको अपक्की उदारता से बहुत कुछ दिया, तब वह अपके जनोंसमेत अपके देश को लौट गई।
14. जो सोना प्रति वर्ष सुलैमान के पास पहुंचा करता या, उसका तौल छ:सौ छियासठ किक्कार या।
15. इस से अधिक सौदागरोंसे, और य्योपारियोंके लेन देन से, और दोगली जातियोंके सब राजाओं, और अपके देश के गवर्नरो से भी बहुत कुछ मिलता या।
16. और राजा सुलैमान ने सोना गढ़बाकर दो सौ बड़ी बड़ी ढालें बनवाई; एक एक ढाल में छ: छ: सौ शेकेल सोना लगा।
17. फिर उस ने सोना गढ़वाकर तीन सौ छोटी ढालें भी बनवाई; एक एक छोटी ढाल में, तीन माने सोना लगा; और राजा ने उनको लबानोनी वन नाम भवन में रखवा दिया।
18. और राजा ने हाथीदांत का एक बड़ा सिंहासन बनवाया, और उत्तम कुन्दन से मढ़वाया।
19. उस सिंहासन में छ: सीढिय़ां यीं; और सिंहासन का सिरहाना पिछाड़ी की ओर गोल या, और बैठने के स्यान की दोनोंअलग टेक लगी यीं, और दोनोंटेकोंके पास एक एक सिंह खड़ा हुआ बना या।
20. और छहोंसीढिय़ोंकी दोनोंअलंग एक एक सिंह खड़ा हुआ बना या, कुल बारह हुए। किसी राज्य में ऐसा कभी नहीं बना;
21. और राजा सुलैमान के पीने के सब पात्र सोने के बने थे, और लबानोनी बन नाम भवन के सब पात्र भी चोखे सोने के थे, चांदी का कोई भी न या। सुलैमान के दिनोंमें उसका कुछ लेखा न या।
22. क्योंकि समुद्र पर हीराम के जहाजोंके साय राजा भी तशींश के जहाज रखता या, ओर तीन तीन वर्ष पर तशींश के जहाज सोना, चांदी, हाथीदांत, बन्दर और मयूर ले आते थे।
23. इस प्रकार राजा सुलैमान, धन और बुद्धि में पृय्वी के सब राजाओं से बढ़कर हो गया।
24. और समस्त पृय्वी के लोग उसकी बुद्धि की बातें सुनने को जो परमेश्वर ने मन में उत्पन्न की यीं, सुलैमान का दर्शन पाना चाहते थे।
25. और वे प्रति वर्ष अपक्की अपक्की भेंट, अर्यात्‌ चांदी और सोने के पात्र, वस्त्र, शस्त्र, सुगन्ध द्रय्य, घोड़े, और खच्चर ले आते थे।
26. और सुलैमान ने रय और सवार इकट्ठे कर लिए, तो उसके चौदह सौ रय, और बारह हजार सवार हुए, और उनको उस ने रयोंके नगरोंमें, और यरूशलेम में राजा के पास ठहरा रखा।
27. और राजा ने बहुतायत के कारण, यरूशलेम में चांदी को तो ऐसा कर दिया जैसे पत्यर और देवदारू को जैसे नीचे के देश के गूलर।
28. और जो घोड़े सुलैमान रखता या, वे मिस्र से आते थे, और राजा के व्योपारी उन्हें फुणड फुणड करके ठहराए हुए दाम पर लिया करते थे।
29. एक रय तो छ: सौ शेकेल चांदी पर, और एक घोड़ा डेढ़ सौ शेकेल पर, मिस्र से आता या, और इसी दाम पर वे हित्तियोंऔर अराम के सब राजाओं के लिथे भी व्योपारियोंके द्वारा आते थे।

Chapter 11

1. परन्तु राजा सुलैमान फ़िरौन की बेटी, और बहुतेरी और पराथे स्त्रियोंसे, जो मोआबी, अम्मोनी, एदोमी, सीदोती, और हित्ती यीं, प्रीति करने लगा।
2. वे उन जातियोंकी यीं, जिनके विषय में यहोवा ने इस्राएलियोंसे कहा या, कि तुम उनके मध्य में न जाना, और न वे तुम्हारे मध्य में आने पाएं, वे तुम्हारा मन अपके देवताओं की ओर नि:सन्देह फेरेंगी; उन्हीं की प्रीति में सुलैमान लिप्त हो गया।
3. और उसके सात सौ रानियां, और तीन सौ रखेलियां हो गई यीं और उसकी इन स्त्रियोंने उसका मन बहका दिया।
4. सो जब सुलैमान बूढ़ा हुआ, तब उसकी स्त्रियोंने उसका मन पराथे देवताओं की ओर बहका दिया, और उसका मन अपके पिता दाऊद की नाई अपके परमेश्वर यहोवा पर पूरी रीति से लगा न रहा।
5. सुलैमान तो सीदोनियोंकी अशतोरेत नाम देवी, और अम्मोनियोंके मिल्कोम नाम घृणित देवता के पीछे चला।
6. और सुलैमान ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, और यहोवा के पीछे अपके पिता दाऊद की नाई पूरी रीति से न चला।
7. उन दिनोंसुलैमान ने यरूशलेम के साम्हने के पहाड़ पर मोआबियोंके कमोश नाम घृणित देवता के लिथे और अम्मोनियोंके मोलेक नाम घृणित देवता के लिथे एक एक ऊंचा स्यान बनाया।
8. और अपक्की सब पराथे स्त्रियोंके लिथे भी जो अपके अपके देवताओं को धूप जलातीं और बलिदान करती यीं, उस ने ऐसा ही किया।
9. तब यहोवा ने सुलैमान पर क्रोध किया, क्योंकि उसका मन इस्राएल के परमेश्वर यहोवा से फिर गया या जिस ने दो बार उसको दर्शन दिया या।
10. और उस ने इसी बात के विषय में आज्ञा दी यी, कि पराथे देवताओं के पीछे न हो लेना, तौभी उस ने यहोवा की आज्ञा न मानी।
11. और यहोवा ने सुलैमान से कहा, तुझ से जो ऐसा काम हुआ है, और मेरी बन्धाई हुई वाचा और दी हुई वीधि तू ने पूरी नहीं की, इस कारण मैं जाज्य को निश्चय तूफ से छीनकर तेरे एक कर्मचारी को दे दूंगा।
12. तौभी तेरे पिता दाऊद के कारण तेरे दिनो में तो ऐसा न करूंगा; परन्तु तेरे पुत्र के हाथ से राज्य छीन लूंगा।
13. फिर भी मैं पूर्ण राज्य तो न छीन लूंगा, परन्तु अपके दास दाऊद के कारण, और अपके चुने हुए यरूशलेम के कारण, मैं तेरे पुत्र के हाथ में एक गोत्र छोड़ दूंगा।
14. सो यहोवा ने एदोमी हदद को जो एदोमी राजवंश का या, सुलैमान का शत्रु बना दिया।
15. क्योंकि जब दाऊद एदोम में या, और योआब सेनापति मारे हुओं को मिट्ट देने गया,
16. ( योआब तो समस्त इस्राएल समेत वहां छ: महीने रहा, जब तक कि उस ने एदोम के सब मुरुषोंको नाश न कर दिया)
17. तब हदद जो छोटा लड़का या, अपके पिता के कई एक एदोमी सेवकोंके संग मिस्र को जाने की मनसा से भागा।
18. और वे मिद्यान से होकर परान को आए, और परान में से कई पुरुषोंको संग लेकर मिस्र में फ़िरौन राजा के पास गए, और फ़िरौन ने उसको घर दिया, और उसको भोजन मिलने की आज्ञा दी और कुछ भूमि भी दी।
19. और हदद पर फ़िरौन की बड़े अनुग्रह की दृष्टि हुई, और उस ने उसको अपक्की साली अर्यात्‌ तहपकेस रानी की बहिन ब्याह दी।
20. और तहपकेस की बहिन से गनूबत उत्पन्न हुआ और इसका दूध तहपकेस ने फ़िरौन के भवन में छुड़ाया; तब बनूबत फ़िरौन के भवन में उसी के पुत्रोंके साय रहता या।
21. जब हदद ने मिस्र में रहते यह सुना, कि दाऊद अपके पुरखाओं के संग सो गया, और योआब सेनापति भी मर गया है, तब उस ने फ़िरौन से कहा, मुझे आज्ञा दे कि मैं अपके देश को जाऊं !
22. फ़िरौन ने उस से कहा, क्यों? मेरे यहां तुझे क्या घटी हुई कि तू अपके देश को जला जाना चाहता है? उस ने उत्तर दिया, कुछ नहीं हुई, तौभी मुझे अपश्य जाने दे।
23. फिर परमेश्वर ने उसका एक और शत्रु कर दिया, अर्यात्‌ एल्यादा के पुत्र रजोन को, वह तो अपके स्वामी सोबा के राजा हददेजेर के पास से भागा या;
24. और जब दाऊद ने सोबा के जनोंको घात किया, तब रजोन अपके पास कई पुरुषोंको इकट्ठे करके, एक दल का प्रधान हो गया, और वह दमिश्क को जाकर वहीं रहने और राज्य करने लगा।
25. और उस हानि को छोड़ जो हदद ने की, रजोन भी, सुलैमान के जीवन भर अस्राएल का शत्रु बना रहा; और वह इस्राएल से घृणा रखता हुआ अराम पर राज्य करता या
26. फिर नबात का और सरूआह नाम एक विधवा का पुत्र यारोबाम नाम एक एप्रैमी सरेदाबासी जो सुलैमान का कर्मचारी या, उस ने भी राजा के विरुद्ध सिर उठाया।
27. उसका राजा के विरुद्ध सिर अठाने का यह कारण हुआ, कि सुलैमान मिल्लो को बना रहा या ओर अपके पिता दाऊद के नगर के दरार बन्द कर रहा या।
28. यारोबाम बड़ा हाूरवीर या, और जब सुलैमान ने जवान को देखा, कि यह परिश्र्मी ह; तब उस ने उसको यूसुफ के घराने के सब काम पर मुखिया ठहराया।
29. उन्हीं दिनोंमें यारोबाम यरूशलेम से निकलकर जा रहा या, कि शीलोबासी अहिय्याह नबी, नई चद्दर ओढ़े हुए मार्ग पर उस से मिला; और केवल वे ही दोनोंमैदान में थे।
30. अपैर अहिय्याह ने अपक्की उस नई चद्दर को ले लिया, और उसे फाड़कर बारह टुकड़े कर दिए।
31. तब उस ने यारोबाम से कहा, दस टुकड़े ले ले; क्योंकि, इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि सुन, मैं राज्य को सुलैमान के हाथ से छीन कर दस गोत्र तेरे हाथ में कर दूंगा।
32. परन्तु मेरे दास दाऊद के कारण और यरूशलेम के कारण जो मैं ने इस्राएल के सब गोत्रोंमें से चुना है, उसका एक गोत्र बना रहेगा।
33. इसका कारण यह है कि उन्होंने मुझे त्याग कर सीदोनियोंकी देवी अश्तोरेत और मोआबियोंके देवता कमोश, और अम्मोनियोंके देवता मिल्कोम को दणडवत की, और मेरे मागॉं पर नहीं चले : और जो मेरी दृष्टि में ठीक है, वह नहीं किया, और मेरी वेधियोंऔर नियमोंको नहीं माना जैसा कि उसके पिता दाऊद ने किया।
34. तौभी मैं उसके हाथ से पूर्ण राज्य न ले लूंगा, परन्तु मेरा चुना हुआ दास दाऊद जो मेरी आज्ञाएं और विधियां मानता रहा, उसके कारण मैं उसको जीवन भर प्रधान ठहराए रखूंगा।
35. परन्तु उसके पुत्र के हाथ से मैं राज्य अर्यात्‌ दस गोत्र लेकर तुझे दे दूंगा।
36. और उसके पुत्र को मैं एक गोत्र दूंगा, इसलिथे कि यरूश्सलेम अर्यात्‌ उस नगर में जिसे अपना नाम रखने को मैं ने चुना है, मेरे दास दाऊद का दीपक मेरे साम्हने सदैव बना रहे।
37. परन्तु तुझे मैं ठहरा लूंगा, और तू अपक्की इच्छा भर इस्राएल पर राज्य करेगा।
38. और यदि तू मेरे दास दाऊद की नाई मेरी सब आज्ञाएं, और मेरे मागॉं पर चले, और जो काम मेरी दृष्टि में ठीक है, वही करे, और मेरी विधियां और आााएं मानता रहे, तो मैं तेरे संग रहूंगा, और जिस तनह मैं ने दाऊद का घराना बनाए रखा है, वैसे ही तेरा भी घराना बनाए रखूंगा, और तेरे हाथ इस्राएल को दूंगा।
39. इस पाप के कारण मैं दाऊद के वंश को दु:ख दूंगा, तौभी सदा तक नहीं।
40. और सुलैमान ने यारोबाम को मार डालना चाहा, परन्तु यारोबाम मिस्र के राजा शीशक के पास भाग गया, और सुलैमान के मरने नक वहीं रहा।
41. सुलैमान की और सब बातें और उसके सब काम और उसकी बुद्धिमानी का वर्णन, क्या सुलैमान के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है?
42. सुलैमान को यरूशलेम में सब इस्राएल पर राज्य करते हुए चालीस वर्ष बीते।
43. और सुलैमान अपके पुरखाओं के संग सोया, और उसको उसके पिता दाऊद के नगर में मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र रहूबियाम उसके स्यान पर राजा हुआ।

Chapter 12

1. रहूबियाम तो शकेम को गया, क्योंकि सब इस्राएली उसको राजा बनाने के लिथे वहीं गए थे।
2. और जब नबात के पुत्र यारोबाम ने यह सुना, ( जो अब तक मिस्र में रहता या, य्योंकि यारोबाम सुलैमान राजा के डर के मारे भगकर मिस्र में रहता या।
3. सो उन लोगोंने उसको बुलवा भेजा ) तब यारोबाम और इस्राएल की समस्त सभा रहूबियाम के पास जाकर योंकहने लगी,
4. कि तेरे पिता ने तो हम लोगोंपर भारी जूआ डाल रखा या, तो अब तू अपके पिता की कठिन सेवा को, और उस भारी जूए को, जो उस ने हम पर डाल रखा है, कुछ हलका कर; तब हम तेरे अधीन रहेंगे।
5. उस ने कहा, उभी तो जाओ, और तीन दिन के बाद मेरे पास फिर आना। तब वे चले गए।
6. तब राजा रहूबियाम ने उन बूढ़ोंसे जो उसके पिता सुलैमान के जीवन भर उसके साम्हने उपस्यित रहा करते थे सम्मति ली, कि इस प्रजा को कैसा उत्तर देना उचित है, इस में तुम क्या सम्मति देते हो?
7. उन्होंने उसको यह उत्तर दिया, कि यदि तू अभी प्रजा के लोगोंका दास बनकर उनके अधीन हो और उन से मधुर बातें कहे, तो वे सदैव तेरे अधीन बने रहेंगे।
8. रहूबियाम ने उस सम्मति को छोड़ दिया, जो बूढ़ोंने उसको दी यी,और उन जवानोंसे सम्मति ली, जो उसके संग बड़े हुए थे, और उसके सम्मुख उपस्यित रहा करते थे।
9. उन से उस ने पूछा, मैं प्रजा के लोगोंको कैसा उत्तर दूं? उस में तुम क्या सम्मति देते हो? उन्हो ने तो मुझ से कहा है, कि जो जूआ तेरे पिता ने हम पर डाल रखा है, उसे तू हलका कर।
10. जवानोंने जो उसके संग बड़े हुए थे उसको यह उत्तर दिया, कि उन लोगोंने तुझ से कहा है, कि तेरे पिता ने हमारा जूआ भारी किया या, परन्तु तू उसे हमारे लिऐ हलका कर; तू उन से योंकहना, कि मेरी छिंगुलिया मेरे पिता की कमर से भी मोटी है।
11. मेरे पिता ने तुम पर जो भारी जूआ रखा या, उसे मैं और भी भारी करूंगा; मेरा पिता तो तुम को कोड़ोंसे ताड़ना देता या, परन्तु मैं बिच्छुओं से दूंगा।
12. तीसरे दिन, जैसे राजा ने ठहराया या, कि तीसरे दिन मेरे पास फिर आना, वैसे ही यारोबाम और समस्त प्रजागण रहूबियाम के पास उपस्यित हुए।
13. तब राजा ने प्रजा से कड़ी बातें कीं,
14. और बूढ़ोंकी दी हुई सम्मति छोड़कर, जवानोंकी सम्मति के अनुसार उन से कहा, कि मेरे पिता ने तो तुम्हारा जूआ भारी कर दिया, परन्तु मैं उसे और भी भारी कर दूंगा : मेरे पिता ने तो कोड़ोंसे तुम को ताड़ना दी, परन्तु मैं तुम को बिच्छुओं से ताड़ना दूंगा।
15. सो राजा ने प्रजा की बान नहीं मानी, इसका कारण यह है, कि जो वचन यहोवा ने शीलोवासी अहिय्याह के द्वारा नबात के पुत्र यारोबाम से कहा या, उसको पूरा करने के लिथे उस ने ऐसा ही ठहराया या।
16. जब सब इस्राएल ने देखा कि राजा हमारी नहीं सुनता, तब वे बोले, कि दाऊद के साय हमारा क्या अंश? हमारा तो यिशै के पुत्र में कोई भाग नहीं ! हे इस्राएल अपके अपके डेरे को चले जाओ : अब हे दाऊद, अपके ही घराने की चिन्ता कर।
17. सो इस्राएल अपके अपके डेरे को चले गए। केवल जितने इस्राएली यहूदा के नगरोंमें बसे हुए थे उन पर रहूबियाम राज्य करता रहा।
18. तब राजा रहूबियाम ने अदोराम को जो सब बेगारोंपर अधिक्कारनेी या, भेज दिया, और सब इस्राएलियोंने असको पत्य्रवाह किया, और वह मर गया : तब रहूबियाम फुतीं से अपके रय पर चढ़कर यरूशलेम को भाग गया।
19. और इस्राएल दाऊद के घराने से फिर गया, और आज तक फिरा जुआ है।
20. यह सुनकर कि यारोबाम लौट आया है, समस्त इस्राएल ने उसको मणडली में बुलवा भेजकर, पूर्ण इस्राएल के ऊपर राजा नियुक्त किया, और यहूदा के गोत्र को छोड़कर दाऊद के घाराने से कोई मिला न रहा।
21. जब रइूबियाम यरूशलेम को आया, तब उस ने यहूदा के पूर्ण घराने को, और बिन्यामीन के गोत्र को, जो मिलकर एक लाख अस्सी हजार अच्छे योद्धा थे, इकट्ठा किया, कि वे इस्राएल के घराने के साय लड़कर सुलैमान के पुत्र रहूबियाम के वश में फिर राज्य कर दें।
22. तब परमेश्वन का यह वचन परमेश्वर के जन शमायाह के पास पहुंचा कि यहूदा के राजा सुलैमान के पु,ा रहूबियाम से,
23. और यहूदा और बिन्यामीन के सब घराने से, और सब लोगोंसे कह, यहोवा योंकहता है,
24. कि अपके भाई इस्राएलियोंपर चढ़ाई करके युद्ध न करो; तुम अपके अपके घर लौट जाओ, क्योंकि यह बात मेरी ही ओर से हुई है। यहोवा का यह वचन मानकर उन्होंने उसके अनुसार लौट जाने को अपना अपना मार्ग लिया।
25. तब यारोबाम एप्रैम के पहाड़ी देश के शकेम नगर को दृढ़ करके उस में रहने लगा; फिर वहांसे निकलकर पनूएल को भी दृढ़ किया।
26. तब यारोबाम सोचने लगा, कि अब राज्य दाऊद के घराने का हो जाएगा।
27. यदि प्रजा के लोग यरूशलेम में बलि करने को जाएं, तो उनका मन अपके स्वामी यहूदा के राजा रहूगियाम की ओर फिरेगा, और वे मुझे घात करके यहूदा के राजा रहूबियाम के हो जाएंगे।
28. तो राजा ने सम्मति लेकर सोने के दो बछड़े बनाए और लोगोंसे कहा, यरूशलेम को जाना तुम्हारी शक्ति से बाहर है इसलिथे हे इस्राएल अपके देवताओं को देखो, जो नुम्हें मिस्र देश से दिकाल लाए हैं।
29. तो उस ने एक बछड़े को बेतेल, और दूसरे को दान में स्यपित किया।
30. और यह बात पाप का कारण हुई; क्योंकि लोग उस एक के साम्हने दणडवत करने को दान तक जाने लगे।
31. और उस ने ऊंचे स्यानोंके भवन बनाए, और सब प्रकार के लोगोंमें से जो लेवीवंशी न थे, याजक ठहराए।
32. फिर यारोबाम ने आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन यहूदा के पर्व के समान एक पर्व इहरा दिया, और वेदी पर बलि चढ़ाने लगा; इस रीति उस ने बेतेल में अपके बनाए हुए बछड़ोंके लिथे वेदी पर, बलि किया, और अपके बनाए हुए ऊंचे स्यनोंके याजकोंको बेतेल में ठहरा दिया।
33. और जिस महीने की उस ने अपके मन में कल्पना की यी अर्यात्‌ आठवें महीने के पन्द्रहवें दिन को वह बेतेल में अपक्की बनाई हुई वेदी के पास चढ़ गया। उस ने इस्राएलियोंके लिथे एक पर्ब्व ठहरा दिया, और धूप जलाने को वेदी के पास चढ़ गया।

Chapter 13

1. तब यहोवा से वचन पाकर परमेश्वर का बक जन यहूदा से बेतेल को आया, और यारोबाम धूप जलाने के लिथे वेदी के पास खड़ा या।
2. उस जन ने यहोवा से वचन पाकर वेदी के विरुद्ध योंपुकारा, कि वेदी, हे वेदी ! यहोवा योंकहता है, कि सुन, दाऊद के कुल में योशिय्याह नाम एक लड़का उत्पन्न होगा, वह उन ऊंचे स्यनोंके याजकोंको जो तुझ पर धूप जलाते हैं, तुझ पर बलि कर देगा; और तुझ पर पनुष्योंकी हड्डियां जलाई जाएंगी।
3. और उस ने, उसी दिन यह कहकर उस बात का एक चिह्रृ भी बताया, कि यह वचन जो यहोवा ने कहा है, इसका चिह्रृ यह है कि यह वेदी फट जाएगी, और इस पर की राख गिर जाएगी।
4. तब ऐसा हुआ कि परमेश्वर के जन का यह वचन सुनकर जो उस ने बेतेल के विरुद्ध पुकार कर कहा, यारोबाम ने वेदी के पास से हाथ बढ़ाकर कहा, उसको पाड़ लो : तब उसका हाथ जो उसकी ओर बढ़ाया गया या, सूख गया और वह उसे अपक्की ओर खींच न सका।
5. और वेदी फट गई, और उस पर की राख गिर गई; सो वह चिह्रृ पूरा हुआ, जो परमेश्वर के जन ने यहोवा से वचन पाकर कहा या।
6. तब राजा ने परमेश्वर के जन से कहा, अपके परमेश्वर यहोवा को मना और मेरे लिथे प्रार्यना कर, कि मेरा हाथ ज्योंका त्यो हो जाए : तब परमेश्वर के जन ने यहोवा को मनाया और राजा का हाथ फिर ज्योंका त्योंहो गया।
7. तब राजा ने परमेश्वर के जन से कहा, मेरे संग घर चलकर अपना प्राण ठंडा कर, और मैं तुझे दान भी दूंगा।
8. परमेश्वर के जन ने राजा से कहा, चाहे नू मुझे अपना आधा घर भी दे, तौभी तेरे घर न चलूंगा; और इस स्यन में मैं न तो रोटी खाऊंगा और न पानी पीऊंगा।
9. क्योंकि यहोवा के वचन के द्वारा मुझे योंआज्ञा मिली है, कि न तो रोटी खाना, और न पानी पीना, और न उस मार्ग से लौटना जिस से तू जाएगा।
10. इसलिथे वह उस मार्ग से जिसे बेतेल को गया या न लौटकर, दूसरे मार्ग से चला गया।
11. बेतेल में एक बूढ़ा नबी रहता या, और उसके एक बेटे ने आकर उस से उन सब कामोंका वर्णन किया जो परमेश्वर के जन ने उस दिन बेतेल में किए थे; और जो बातें उस ने राजा से कही थीं, उनको भी उस ने अपके पिता से कह सुनाया।
12. उसके बेटोंने तो यह देखा या, कि परमेश्वर का वह जन जो यहूदा से आया या, किस मार्ग से चला गया, सो उनके पिता ने उन से पूछा, वह किस मार्ग से चला गया?
13. और उस ने अपके बेटोंसे कहा, मेरे लिथे गदहे पर काठी बान्धो्र; तब अन्होंने गदहे पर काठी बान्धी, और वह उस पर चढ़ा,
14. और परमेश्वर के जन के पीछे जाकर उसे एक बांजवृझ के तले बैठा हुआ पाया; और उस से मूछा, परमेश्वर का जो जन यहूदा से आया या, क्या तू वही है?
15. उस ने कहा हां, वही हूँूू। उस ने उस से कहा, मेरे संग घर चलकर भोजन कर।
16. उस ने उस से कहा, मैं न तो तेरे संग लौट सकता, और न तेरे संग घर में जा सकता हूँ और न मैं इस स्यान में तेरे संग रोटी खाऊंगा, वा पानी पीऊंगा।
17. क्योंकि यहोवा के वचन के द्वारा मुझे यह आज्ञा मिली है, कि वहां न तो रोटी खाना और न पानी पीना, और जिस मार्ग से तू जाएगा उस से न लौटना।
18. उस ने कहा, जैसा तू नबी है वैसा ही मैं भी नबी हूँ; और मुझ से एक दूत ने यहोवा से वचन पाकर कहा, कि उस पुरुष को अपके संग अपके घर लौटा ले आ, कि वह रोटी खाए, और पानी पीए। यह उस ने उस से फूठ कहा।
19. अतएव वह उसके संग लौट गया और उसके घर में रोटी खाई और मानी पीया।
20. और जब वे मेज पर बैठे ही थे, कि यहोवा का वचन उस नबी के पास पहुंचा, जो दूसरे को लौटा ले आया या।
21. और उस ने परमेश्वर के उस जन को जो यहूदा से आया या, पुकार के कहा, यहोवा योंकहता है इसलिथे कि तू ने यहोवा का वचन न माना, और जो आज्ञा तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे दी यी उसे भी नहीं माना;
22. परन्तु जिस स्यान के विषय उस ने तुझ से कहा या, कि उस में न तो रोटी खाना और न पानी पीना, उसी में तू ने लौट कर रोटी खाई, और पानी भी पिया है इस कारण तूफे अपके पुरखाओं के कब्रिस्तान में मिट्टी नहीं दी जाएगी।
23. जब यह खा पी चुका, तब उस ने परमेश्वर के उस जन के लिथे जिसको वह लौटा ले आया या गदहे पर काठी बन्धाई।
24. जब वह मार्ग में चल रहा या, तो एक सिंह उसे मिला, और उसको मार डाला, और उसकी लोय मार्ग पर पक्की रही, और गदहा उसके पास खड़ा रहा और सिंह भी लोय के पास खड़ा रहा।
25. जो लोग उधर से चले आ रहे थे उन्होंने यह देख कर कि मार्ग पर एक लोय पक्की है, और उसके पास सिंह खड़ा है, उस नगर में जाकर जहां वह बूढ़ा नबी रहता या यह समाचार सुनाया।
26. यह सुनकर उस नबी ने जो उसको मार्ग पर से लौटा ले आया या, कहा, परमेश्वर का वही जन होगा, जिस ने यहोवा के वचन के विरुद्ध किया या, इस कारण यहोवा ने उसको सिंह के पंजे में पड़ने दिया; और यहोवा के उस वचन के अनुसार जो उस ने उस से कहा या, सिंह ने उसे फाड़कर मार डाला होगा।
27. तब उस ने अपके बेटोंसे कहा, मेरे लिथे गदहे पर काठी बान्धो; जब उन्होंने काठी बान्धी,
28. तब उस ने जाकर उस जन की लोय मार्ग पर पक्की हुई, और गदहे, और सिंह दोनोंको लोय के पास खड़े हुए पाया, और यह भी कि सिंह ने न तो लौय को खाया, और न बदहे को फाड़ा है।
29. तब उस बूढ़े नबी ने परमेश्वर के जन की लोय उठाकर गदहे पर लाद ली, और उसके लिथे छाती पीटने लगा, और उसे मिट्टी देने को अपके नगर में लौटा ले गया।
30. और उस ने उसकी लोय को अपके कब्रिस्तान में रखा, और लोग हाथ, मेरे भाई ! यह कहकर छाती पीटने लगे।
31. फिर उसे मिट्टी देकर उस ने अपके बेटोंसे कहा, जब मैं मर जाऊंगा तब मुझे इसी कब्रिस्तान में रखना, जिस में परमेश्वर का यह जन रखा गया है, और मेरी हड्डियां उसी की हड्डियोंके पास धर देना।
32. क्योंकि जो वचन उस ने यहोवा से पाकर बेतेल की वेदी और शोंमरोन के नगरोंके सब ऊंचे स्यानोंके भवनोंके विरुद्ध पुकार के कहा है, वह निश्चय पूरा हो जाएगा।
33. इसके बाद यारोबाम अपक्की बुरी चाल से न फिरा। उस ने फिर सब प्रकार के लोगो में से ऊंचे स्यानोंके याजक बनाए, वरन जो कोई चाहता या, उसका संस्कार करके, वह उसको ऊंचे स्यानोंका याजक होने को ठहरा देता या।
34. और यह बात यारोबाम के घराने का पाप ठहरी, इस कारण उसका विनाश हुआ, और वह धरती पर से नाश किया गया।

Chapter 14

1. उस समय यारोबाम का बेटा अबिय्याह रोगी हुआ।
2. तब यारोबाम ने अपक्की स्त्री से कहा, ऐसा भेष बना कि कोई तुझे पहिचान न सके कि यह यारोबाम की स्त्री है, और शीलो को चक्की जा, वहां तो अहिय्याह नबी रहता है जिस ने मुझ से कहा या कि तू इस प्रजा का राजा हो जाएगा।
3. उसके पास तू दस रोटी, और पपडिय़ां और एक कुप्पी मधु लिथे हुए जा, और वह तुझे बताएगा कि लड़के को क्या होगा।
4. यारोबाम की स्त्री ने वैसा ही किया, और चलकर हाीलो को पहुंची और अहिय्याह के घर पर आई : अहिय्याह को तो कुछ सूफ न पड़ता या, क्योंकि बुढ़ापे के कारण उसकी आंखें धुन्धली पड़ गई यीं।
5. और यहोवा ने अहिय्याह से कहा, सुन यारोबाम की स्त्री तुझ से अपके बेटे के विषय में जो रोगी है कुछ पूछने को आती है, तू उस से थे थे बातें कहना; वह तो आकर अपके को दूसरी औरत बनाएगी।
6. जब अहिय्याह ने द्वार में आते हुए उसके पांव की आहट सुनी तब कहा, हे यारोबाम की स्त्री ! भीतर आ; तू अपके को क्योंदूसरी स्त्री बनाती है? मुझे तेरे लिथे भारी सन्देश मिला है।
7. तू जाकर यारोबाम से कह कि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा तुझ से योंकहता है, कि मैं ने तो तुझ को प्रजा में से बढ़ाकर अपक्की प्रजा इस्राएल पर प्रधान किया,
8. और दाऊद के घराने से राज्य छीनकर तुझ को दिया, परन्तु तू मेरे दास दाऊद के समान न हुआ जो मेरी आज्ञाओं को मानता, और अपके पूर्ण मन से मेरे पीछे पीछे चलता, और केवल वही करता या जो मेरी दृष्टि में ठीक है।
9. तू ने उन सभोंसे बढ़कर जो तुझ से पहिले थे बुराई, की है, और जाकर पराथे देवता की उपासना की और मूरतें ढालकर बनाई, जिस से मुझे क्रोधित कर दिया और मुझे तो पीठ के पीछे फेंक दिया है।
10. इस कारण मैं यारोबाम के घराने पर विपत्ति डालूंगा, वरन मैं यारोबाम के कुल में से हर एक लड़के को ओर क्या बन्धुए, क्या स्वाधीन इस्राएल के मध्य हर बक रहनेवाले को भी नष्ट कर डालूंगा : और जैसा कोई गोबर को तब तक उठाता रहता है जब तक वह सब उठा तहीं लिया जाता, वैसे ही मैं यारोबाम के घराने की सफाई कर दूंगा।
11. यारोबाम के घराने का जो कोई नगर में मर जाए, उसको कुत्ते खाएंगे; और जो मैदान में मरे, उसको आकाश के पक्की खा जाएंगे; क्योंकि यहोवा ने यह कहा है !
12. इसलिथे तू उठ और अपके घर जा, और नगर के भीतर तेरे पांव पड़ते ही वह बालक तर जाएगा।
13. उसे तो समस्त इस्राएली छाती पीटकर मिट्टी देंगे; यारोबाम के सन्तानोंमें से केवल उसी को कबर मिलेगी, क्योंकि यारोबाम के घराने में से उसी में कुछ पाया जाता है जो यहोवा इस्राएल के प्रभु की दष्टि में भला है।
14. फिर यहोवा इस्राएल के लिथे एक ऐसा राजा खड़ा करेगा जो उसी दिन यारोबाम के घराने को नाश कर डालेगा, परन्तु कब?
15. यह अभी होगा। क्योंकि यहोवा इस्राएल को ऐसा मारेगा, जैसा जल की धारा से नरकट हिलाया जाता है, और वह उनको इस अच्छी भूमि में से जो उस ने उनके पुरखाओं को दी यी उखाड़कर महानद के पार तित्तर-बित्तर करेगा; क्योंकि उन्होंने अशेरा ताम मूरतें अपके लिथे बनाकर यहोवा को क्रोध दिलाया है।
16. और उन पापोंके कारण जो यारोबाम ने किए और इस्राएल से कराए थे, यहोवा इस्राएल को त्याग देगा।
17. तब यारोबाम की स्त्री बिदा होकर चक्की और तिरज़ा को आई, और वह भवन की डेवढ़ी पर जैसे ही पहुंची कि वह बालक मर गया।
18. तब यहोवा के वचन के अनुसार जो उस ने अपके दास अहिय्याह नबी से कहलाया या, समस्त इस्राएल ने उसको मिट्टी देकर उसके लिथे शोक मनाया।
19. यारोबाम के और काम अर्यात्‌ उस ने कैसा कैसा युद्ध किया, और कैसा राज्य किया, यह सब इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में लिखा है।
20. यारोबाम बाईस वर्ष तक राज्य करके अपके पुरखाओं के साय सो गया और नादाब नाम उसका पुत्र उसके स्यान पर राजा हुआ।
21. और सुलैमान का पुत्र रहूबियाम यहूदा में राज्य करने लगा। रहूबियाम इकतालीस वर्ष का होकर राज्य करने लगा; और यरूशलेम जिसको यहोवा ने सारे इस्राएली गोत्रोंमें से अपना नाम रखने के लिथे चुन लिया या, उस नगर में वह सत्रह वर्ष तक राज्य करता रहा; और उसकी माता का नाम नामा या जो अम्मोनी स्त्री यी।
22. और यहूदी लोग वह करने लगे जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, और अपके पुरखाओं से भी अधिक पाप काके उसकी जलन भड़काई।
23. उन्होंने तो सब ऊंचे टीलोंपर, और सब हरे वृझोंके तले, ऊंचे स्यान, और लाठें, और अशेरा नाम मूरतें बना लीं ।
24. और उनके देश में पुरुषगामी भी थे; निदान वे उन जातियोंके से सब घिनौने काम करते थे जिन्हें यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने से निकाल दिया या।
25. राजा सहूबियाम के पांचवें वर्ष में मिस्र का राजा शीशक, यरूशलेम पर चढ़ाई करके,
26. यहोवा के भवन की अनमोल वस्तुएं और राजभवन की अनमोल वस्तुएं, सब की सब उठा ले गया; और सोने की जो ढालें सुलैमान ने बनाई थीं सब को वह ले गया।
27. इसलिथे राजा रहूबियाम ने उनके बदले पीतल की ढालें बनवाई और उन्हें पहरुओं के प्रधानोंके हाथ सौंप दिया जो राजभवन के द्वार की रखवाली करते थे।
28. और जब जब राजा यहोवा के भवन में जाता या तब तब पहरुए उन्हें उठा ले चलते, और फिर अपक्की कोठरी में लौटाकर रख देते थे।
29. रहूबियाम के और सब काम जो उस ने किए वह क्या यहूदा के राजाओ के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं?
30. रहूबियाम और यारोबाम में तो सदा लड़ाई होती रही।
31. और रहूबियाम जिसकी माता नामा नाम एक अम्मोनिन यी, अपके पुरखाओं के साय सो गया; और उन्हीं के पास दाऊदपुर में उसको मिट्टी दी गई : और उसका पुत्र अबिय्याम उसके स्यान पर राज्य करने लगा।

Chapter 15

1. नाबात के पुत्र यारोबाम के राज्य के अठारहवें वर्ष में अबिय्याम यहूदा पर राज्य करने लगा।
2. और वह तीन वर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। उसकी माता का नाम माका या जो अबशालोम की पुत्री यी :
3. वह वैसे ही पापोंकी लीक पर चलता रहा जैसे उसके पिता ने उस से पहिले किए थे और उसका मन अपके परमेश्वर यहोवा की ओर अपके परदादा दाऊद की नाई पूरी रीति से सिद्ध न या;
4. तौभी दाऊद के कारण उसके परमेश्वर यहोवा ने यरूशलेम में उसे एक दीपक दिया अर्यात्‌ उसके पुत्र को उसके बाद ठहराया और यरूशलेम को बनाए रखा।
5. क्योंकि दाऊद वह किया करता या जो यहोवा की दृष्टि में ठीक या और हित्ती ऊरिय्याह की बात के सिवाय और किसी बात में यहोवा की किसी आज्ञा से जीवन भर कभी न मुड़ा।
6. रहूबियाम के जीवन भर तो उसके और यारोबाम के बीच लड़ाई होती रही।
7. अबिय्याम के और सब काम जो उस ने किए, क्या वे यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखे हैं? और अबिय्याम की यारोबाम के साय लड़ाई होती रही।
8. निदान अबिय्याम अपके पुरखाओं के संग सोया, और उसको दाऊदपुर में मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र आसा उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
9. इस्राएल के राजा यारोबाम के बीसवें वर्ष में आसा यहूदा पर राज्य करने लगा;
10. और यरूशलेम में इकतालीस वर्ष तक राज्य करता रहा, और उसकी माता अबिशालोम की पुत्री माका यी।
11. और आसा ने अपके मूलपुरुष दाऊद की नाई वही किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक या।
12. उस ने तो पुरुषगामियोंको देश से निकाल दिया, और जितनी मूरतें उसके पुरखाओं ने बनाई यी उन सभोंको उस ने दूर कर दिया।
13. वरन उसकी माता माका जिस ने अशेरा के लिथे एक घिनौनी मूरत बनाई यी उसको उस ने राजमाता के पद से उतार दिया, और आसा ने उसकी मूरत को काट डाला और किद्रोन के नाले में फूंक दिया।
14. परन्तु ऊंचे स्यान तो ढाए न गए; तौभी आसा का मन जीवन भर यहोवा की ओर पूरी रीति से लगा रहा।
15. और जो सोना चांदी और पात्र उसके पिता ने अर्पण किए थे, और जो उसने स्वयं अर्पण किए थे, उन सभोंको उस ने यहोवा के भवन में पहुंचा दिया।
16. और आसा और इस्राएल के राजा बाशा के बीच उनके जीवन भर युद्ध होता रहा
17. और इस्राएल के राजा बाशा ने यहूदा पर चढ़ाई की, और रामा को इसलिथे दृढ़ किया कि कोई यहूदा के राजा आसा के पास आने जाने न पाए।
18. तब आसा ने जितना सोना चांदी यहोवा के भवन और राजभवन के भणडारोंमें रह गया या उस सब को निकाल अपके कर्मचारियोंके हाथ सोंपकर, दमिश्कवासी अराम के राजा बेन्हदद के पास जो हेज्योन का पोता और तब्रिम्मोन का पुत्र या भेजकर यह कहा, कि जैसा मेरे और तेरे पिता के मध्य में वैसा ही मेरे और तेरे मध्य भी वाचा बान्धी जाए :
19. देख, मैं तेरे पास चांदी सोने की भेंट भेजता हूँ, इसलिथे आ, इस्राएल के राजा बाशा के साय की अपक्की वाचा को टाल दे, कि वह मेरे पास से चला जाए।
20. राजा आसा की यह बात मानकर बेन्हदद ने अपके दलोंके प्रधानोंसे इस्राएली नगरोंपर चढ़ाई करवाकर इय्योन, दान, आबेल्वेत्माका और समस्त किन्नेरेत को और नप्ताली के समस्त देश को पूरा जीत लिया।
21. यह सुनकर बाशा ने रामा को दृढ़ करना छोड़ दिया, और तिर्सा में रहने लगा।
22. तब राजा आसा ने सारे यहूदा में प्रचार करवाया और कोई अनसुना न रहा, तब वे रामा के पत्य्रोंउौर लकड़ी को जिन से बासा उसे दृढ़ करता या उठा ले गए, और उन से राजा आसा ने बिन्यामीन के गेबा और मिस्पा को दृढ़ किया।
23. आसा के और काम और उसकी वीरता और जो कुछ उस ने किया, और जो नगर उस ने दृढ़ किए, यह सब क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है?
24. परन्तु उसके बुढ़ापे में तो उसे पांवोंका रोग लग गया। निदान आसा अपके पुरखाओं के संग सो गया, और उसे उसके मूलपुरुष दाऊद के नगर में उन्हीं के पास पिट्टी दी गई और उसका पुत्र यहोशापात उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
25. यहूदा के राजा आसा के दूसरे वर्ष में यारोबाम का पुत्र नादाब इस्राएल पर राज्य करने लगा; और दो वर्ष तक राज्य करता रहा।
26. उस ने वह काम किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या और अपके पिता के मार्ग पर वही पाप करता हुआ चलता रहा जो उस ने इस्राएल से करवाया या।
27. नादाब सब इस्राएल समेत पलिश्तियोंके देश के गिब्बतोन नगर को घेरे या। और उस्साकार के गोत्र के अहिय्याह के पुत्र बाशा ने उसके विरुद्ध राजद्रोह की गोष्ठी करके गिब्बतोन के पास उसको मार डाला।
28. और यहूदा के राजा आसा के तीसरे वर्ष में बाशा ने नादाब को मार डाला, और उसके स्यान पर राजा बन गया।
29. राजा होते ही बाशा ने यारोबाम के समस्त घराने को मार डाला; उस ने यारोबाम के वंश को यहां तक नष्ट किया कि एक भी जीवित न रहा। यह सब यहोवा के उस वचन के अनुसार हुआ जो उस ने अपके दास शीलोवासी अहिय्याह से कहवाया या।
30. यह इस कारण हुआ कि यारोबाम ने स्वयं पाप किए, और इस्राएल से भी करवाए थे, और उस ने इस्राएल के परमेश्वर यहोवा को क्रोधित किया या।
31. नादाब के और सब काम जो उस ने किए, वह क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक पें नहीं लिखे हैं?
32. आसा और इस्राएल के राजा बाशा के मध्य में तो उनके जीवन भर युद्ध होता रहा।
33. यहूदा के राजा आसा के तीसरे वर्ष में अहिय्याह का पुत्र बाशा, तिर्सा में समस्त इस्राएल पर राज्य करने लगा, और चौबीस वर्ष तक राज्य करता रहा।
34. और उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या, और यारोबाम के मार्ग पर वही पाप करता रहा जिसे उस ने हस्राएल से करवाया या।

Chapter 16

1. और बाशा के विषय यहोवा का यह वचन हनानी के पुत्र थेहू के पास पहुंचा,
2. कि मैं ने तुझ को मिट्टी पर से उठाकर अपक्की प्रजा इस्राएल का प्रधान किया, परन्तु तू यारोबाम की सी चाल चलता और मेरी प्रजा इस्राएल से ऐसे पाप कराता आया है जिन से वे मुझे क्रोध दिलाते हैं।
3. सुन, मैं बाशा और उसके घराने की पूरी रीति से सफाई कर दूंगा और तेरे घराने को नबात के पुत्र यारोबाम के समान कर दूंगा।
4. बाशा के घर का जो कोई नगर में मर जाए, उसको कुत्ते खा डालेंगे, और उसका जो कोई मैदान में मर जाए, उसको आकाश के पक्की खा डालेंगे।
5. बाशा के और सब काम जो उस ने किए, और उसकी वीरता यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है?
6. निदान बाशा अपके पुरखाओं के संग सो गया और तिर्सा में उसे मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र एला उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
7. यहोवा का जो वचन हनानी के पुत्र थेहू के द्वारा बाशा और उसके घराने के विरुद्ध आया, वह न केवल उन सब बुराइयोंके कारण आया जो उस ने यारोबाम के घराने के समान होकर यहोवा की दृष्टि में किया या और अपके कामोंसे उसको क्रोधित किया, वरन इस कारण भी आया, कि उस ने उसको मार डाला या।
8. यहूदा के राजा आसा के छब्बीसवे वर्ष में बाशा का पुत्र एला तिर्सा में इस्राएल पर राज्य करने लगा, और दो वर्ष तक राज्य करता रहा।
9. जब वह तिर्सा में अर्सा नाम भणडारी के घर में जो उसके तिर्सावाले भवन का प्रधान या, दारू पीकर मतवाला हो गया या, तब उसके जिम्री नाम एक कर्मचारी ने जो उसके आधे रयोंका प्रधान या,
10. राजद्रोह की गोष्ठी की और भीतर जाकर उसको मार डाला, और उसके स्यान पर राजा बन गया। यह यहूदा के राजा आसा के सत्ताइसवें वर्ष में हुआ।
11. और जब वह राज्य करने लगा, तब गद्दी पर बैठते ही उस ने बाशा के पूरे घराने को मार डाला, वरन उस ने न तो उसके कुटुम्बियोंउौर न उसके मित्रोंमें से एक लड़के को भी जीवित छोड़ा।
12. इस रीति यहोवा के उस वचन के अनुसार जो उस ने थेहू नबी के द्वारा बाशा के विरुद्ध कहा या, जिम्री ने बाशा का समस्त घराना नष्ट कर दिया।
13. इसका कारण बाशा के सब पाप और उसके पुत्र एला के भी पाप थे, जो उन्होंने स्वयं आप करके और इस्राएल से भी करवा के इस्राएल के परमेश्वर यहोवा को य्यर्य बातोंसे क्रोध दिलाया या।
14. एला के उाौर सब काम जो उस ने किए, वह क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नही लिखे हैं।
15. यहूदा के राजा आसा के सत्ताईसवें वर्ष में जिम्री तिर्सा में राज्य करने लगा, और तिर्सा में सात दिन तक राज्य करता रहा। उस समय लोग पलिश्तियोंके देश गिब्बतोन के विरुद्ध डेरे किए हुए थे।
16. तो जब उन डेरे लगाए हुए लोगोंने सुना, कि जिम्री ने राजद्रोह की गोष्ठी करके राजा को मार डाला, तब उसी दिन समस्त इस्राएल ने ओम्री नाम प्रधान सेनापति को छावनी में इस्राएल का राजा बनाया।
17. तब ओम्री ने समस्त इस्राएल को संग ले गिब्बतोन को छोड़कर तिर्सा को घेर लिया।
18. जब जिम्री ने देखा, कि नगर ले लिया गया है, तब राजभवन के गुम्मट में जाकर राजभवन में आग लगा दी, और उसी में स्वयं जल मरा।
19. यह उसके पापोंके कारण हुआ क्योंकि उस ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या, क्योकि वह यारोबाम की सी चाल और उसके किए हूए और इस्राएल से करवाए हुए पाप की लीक पर चला।
20. जिम्री के और काम और जो राजद्रोह की गोष्ठी उस ने की, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है?
21. तब इस्राएली प्रजा के दो भाग किए गए, प्रजा के आधे लोग तो तिब्नी नाम गीनत के पुत्र को राजा करने के लिथे उसी के पीछे हो लिए, और आधे ओम्री के पीछे हो लिए।
22. अन्त में जो लोग ओम्री के पीछे हुए थे वे उन पर प्रबल हुए जो गीनत के पुत्र तिब्नी के पीछे हो लिए थे, इसलिथे तिब्नी मारा गया और ओम्री राजा बन गया।
23. यहूदा के राजा आशा के इकतीसवें वर्ष में ओम्री इस्राएल पर राज्य करने लगा, और बारह वर्ष तक राज्य करता रहा; उसने छ:वर्ष तो तिर्सा में राज्य किया।
24. और उस ने शमेर से शोमरोन पहाड़ को दो किक्कार चांदी में मोल लेकर, उस पर एक नगर बसाया; और अपके बसाए हुए नगर का नाम पहाड़ के मालिक शेमेर के नाम पर शोमरोन रखा।
25. और उोम्री ने वह किया जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या वरन उन सभोंसे भी जो उससे पहिले थे अधिक बुराई की।
26. वह नबात के पुत्र यारोबाम की सी सब चाल चला, और उसके सब पापोंके अनुसार जो उस ने इस्राएल से करवाए थे जिसके कारण इस्राएल के परमेश्वर यहोवा को उन्होंने अपके य्यर्य कमॉंसे क्रोध दिलाया या।
27. ओम्री के और काम जो उस ने किए, और जो वीरता उस ने दिखाई, यह सब क्या इस्राएल के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है?
28. निदान ओम्री अपके पुरखाओं के संग सो गया और शोमरोन में उसको मिट्टी दी गई, और उसका पुत्र अहाब उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
29. यहूदा के राजा आसा के अड़तीसवें वर्ष में ओम्री का पुत्र अहाब इस्राएल पर राज्य करने लगा, और इस्राएल पर शोमरोन में बाईस पर्ष तक राज्य करता रहा।
30. और ओम्री के पुत्र अहाब ने उन सब से अधिक जो उस से पहिले थे, वह कर्म किए जो यहोवा की दृष्टि में बुरे थे।
31. उस ने तो नबात के पुत्र यारोबाम के पापोंमें चलना हलकी सी बात जानकर, सीदोनियोंके राजा एतबाल की बेटी ईजेबेल को ब्याह कर बाल देवता की उपासना की और उसको दणडवत किया।
32. और उस ने बाल का एक भवन शोमरोन में बनाकर उस में बाल की एक वेदी बनाई।
33. और अहाब ने एक अशेरा भी बनाया, वरन उस ने उन सब इस्राएली राजाओं से बढ़कर जो उस से पहिले थे इस्राएल के परमेश्वर यहोवा को क्रोध दिलाने के काम किए।
34. उसके दिनोंमें बेतेलवासी हीएल ने यरीहो को फिर बसाया; जब उस ने उसकी नेव डाली तब उसका जेठा पुत्र अबीराम मर गया, और जब उस ने उसके फाटक खड़े किए तब उसका लहुरा पुत्र सगूब मर गया, यह यहोवा के उस वचन के अनुसार हुआ, जो उस ने नून के पुत्र यहोशू के द्वारा कहलवाया या।

Chapter 17

1. और तिशबी एलिय्याह जो गिलाद के परद्देसियोंमें से या उस ने अहाब से कहा, इस्राएल का परमेश्वा यहोवा जिसके सम्मुख मैं उपस्य्ित रहता हूँ, उसके जीवन की शपय इन वषॉं में मेरे बिना कहे, न तो मेंह बरसेगा, और न ओस पकेगी।
2. तब यहोवा का यह वचन उसके पास पहुंचा,
3. कि यहां से चलकर पूरब ओर मुख करके करीत नाम नाले पें जो यरदन के साम्हने है छिप जा।
4. उसी नाले का पानी तू पिया कर, और मैं ने कौवोंको आज्ञा दी है कि वे तूफे वहां खिलाएं।
5. यहोवा का यह वचन मानकर वह यरदन के साम्हने के करीत नाम नाले में जाकर छिपा रहा।
6. और सबेरे और सांफ को कौवे उसके पास रोटी और मांस लाया करते थे और वह नाले का पानी पिया करता या।
7. कुछ दिनोंके बाद उस देश में वर्षा न होने के कारण नाला सूख गया।
8. तब यहोवा का यह वचन उसके पास पहुंचा,
9. कि चलकर सीदोन के सारपत नगर में जाकर वहीं रह : सुन, मैं ने वहां की एक विधवा को तेरे खिलाने की आज्ञा दी है।
10. सो वह वहां से चल दिया, और सारपत को गया; नगर के फाटक के पास पहुंचकर उस ने क्या देखा कि, एक विधवा लकड़ी बीन रही है, उसको बुलाकर उस ने कहा, किसी पात्र में मेरे पीने को योड़ा पानी ले आ।
11. जब वह लेने जा रही यी, तो उस ने उसे पुकार के कहा अपके हाथ में एक टुकड़ा रोटी भी मेरे पास लेती आ।
12. उस ने कहा, तेरे परमेश्वर यहोवा के जीवन की शपय मेरे पास एक भी रोटी नहीं है केवल घड़े में मुट्ठी भर मैदा और कुप्पी में योड़ा सा तेल है, और मैं दो एक लकड़ी बीनकर लिए जाती हूँ कि अपके और अपके बेटे के लिथे उसे पकाऊं, और हम उसे खाएं, फिर मर जाएं।
13. एलिय्याह ने उस से कहा, मत डर; जाकर अपक्की बात के अनुसार कर, परन्तु पहिले मेरे लिथे एक छोटी सी रोटी बनाकर मेरे पास ले आ, फिर इसके बाद अपके और अपके बेटे के लिथे बनाना।
14. क्योंकि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा योंकहता है, कि जब तक यहोवा भूमि पर मेंह न बरसाएगा तब तक न तो उस घड़े का मैदा चुकेगा, और न उस कुप्पी का तेल घटेगा।
15. तब वह चक्की गई, और एलिय्याह के वचन के अनुसार किया, तब से वह और स्त्री और उसका घराना बहुत दिन तक खाते रहे।
16. यहोवा के उस वचन के अनुसार जो उस ने एलिय्याह के द्वारा कहा या, न तो उस घड़े का मैदा चुका, और न उस कुप्पी का तेल घट गया।
17. इन बातोंके बाद उस स्त्री का बेटा जो घर की स्वामिनी यी, रोगी हुआ, और उसका रोग यहां तक बढ़ा कि उसका सांस लेना बन्द हो गया।
18. तब वह एलिय्याह से कहने लगी, हे परमेश्वर के जन ! मेरा तुझ से क्या काम? क्या तू इसलिथे मेरे यहां आया है कि मेरे बेटे की मृत्यु का कारण हो और मेरे पाप का स्मरण दिलाए ?
19. उस ने उस से कहा अपना बेटा मुझे दे; तब वह उसे उसकी गोद से लेकर उस अटारी पर ले गया जहां वह स्वयं रहता या, और अपक्की खाट पर लिटा दिया।
20. तब उस ने यहोवा को पुकारकर कहा, हे मेरे परमेश्वर यहोवा ! क्या तू इस विधवा का बेटा मार डालकर जिसके यहां मैं टिका हूं, इस पर भी विपत्ति ले आया है?
21. तब वह बालक पर तीन बार पसर गया और यहोवा को पुकारकर कहा, हे मेरे परमेश्वर यहोवा ! इस बालक का प्राण इस में फिर डाल दे।
22. एलिय्याह की यह बात यहोवा ने सुन ली, और बालक का प्राण उस में फिर आ गया और वह जी उठा।
23. तब एलिय्याह बालक को अटारी पर से नीचे घर में ले गया, और एलिय्याह ने यह कहकर उसकी माता के हाथ में सौंप दिया, कि देख तेरा बेटा जीवित है।
24. स्त्री ने एलिय्याह से कहा, अब मुझे निश्चय हो गया है कि तू परमेश्वर का जन है, और यहोवा का जो वचन तेरे मुंह से निकलता है, वह सच होता है।

Chapter 18

1. बहुत दिनोंके बाद, तीसरे वर्ष में यहोवा का यह वचन एलिय्याह के पास पहुंचा, कि जाकर अपके अपप को अहाब को दिखा, और मैं भूमि पर मेंह बरसा दूंगा।
2. तब एलिय्याह अपके आप को अहाब को दिखाने गया। उस समय शोमरोन में अकाल भारी या।
3. इसलिथे अहाब ने ओबद्याह को जो उसके घराने का दीवान या बुलवाया।
4. ओबद्याह तो यहोवा का भय यहां तक मानता या कि जब हेज़ेबेल यहोवा के नबियोंको नाश करती यी, तब ओबद्याह ने एक सौ नबियोंको लेकर पचास-पचास करके गुफाओं में छिपा रखा; और अन्न जल देकर उनका पालन-पोषण करता रहा।
5. और अहाब ने ओबद्याह से कहा, कि देश में जल के सब सोतोंऔर सब नदियोंके पास जा, कदाचित इतनी घास मिले कि हम घेड़ोंऔर खच्चरोंको जीवित बचा सकें,
6. और हमारे सब पशु न मर जाएं। और उन्होंने आपस में देश बांटा कि उस में होकर चलें; एक ओर अहाब और दूसरी ओर ओबद्याह चला।
7. ओबद्याह मार्ग में या, कि एलिय्याह उसको मिला; उसे चरन्ह कर वह मुंह के बल गिरा, और कहा, हे मेरे प्रभु एलिय्यह, क्या तू है?
8. उस ने कहा हां मैं ही हूँ : जाकर अपके स्वामी से कह, कि एलिय्याह मिला है।
9. उस ने कहा, मैं ने ऐसा क्या पाप किया है कि तू मुझे मरवा डालने के लिथे अहाब के हाथ करना चाहता है?
10. तेरे परमेश्वर यहोवा के जीवन की शपय कोई ऐसी जाति वा राज्य नहीं, जिस में मेरे स्वामी ने तुझे ढूंढ़ने को न भेजा हो, और जब उन लोगोंने कहा, कि वह यहां नहीं है, तब उस ने उस राज्य वा जाति को इसकी शपय खिलाई कि एलिय्याह नहीं मिला।
11. और अब तू कहता है कि जाकर अपके स्वामी से कह, कि एलिय्याह मिला !
12. फिर ज्योंही मैं तेरे पास से चला जाऊंगा, त्योंही यहोवा का आत्मा तुझे न जाने कहां उठा ले जाएगा, सो जब मैं जाकर अहाब को बताऊंगा, और तू उसे न मिलेगा, तब वह मुझे मार डालेगा : परन्तु मैं तेरा दास अपके लड़कपन से यहोवा का भय मानता आया हूँ !
13. क्या मेरे प्रभु को यह नहीं बताया गया, कि जब हेज़ेबेल यहोवा के नबियोंको घात करती यी तब मैं ने क्या किया? कि यहोवा के नबियोंमें से एक सौ लेकर पचाय-पचाय करके गुफाओं में छिपा रखा, और उन्हें अन्न जल देकर पालता रहा।
14. फिर अब तू कहता है, जाकर अपके स्वामी से कह, कि एलिय्याह मिला है ! तब वह मुझे घात करेगा।
15. एलिय्याह ने कहा, सेनाओं का यहोवा जिसके साम्हने मैं रहता हूँ, उसके जीवन की शपय आज मैं अपके अप को उसे दिखाऊंगा।
16. तब ओबद्याह अहाब से मिलने गया, और उसको बता दिया, सो अहाब एलिय्याह से मिलने चला।
17. एलिय्याह को देखते ही अहाब ने कहा, हे इस्राएल के सतानेवाले क्या तू ही है?
18. उस ने कहा, मैं ने इस्राएल को कष्ट नहीं दिया, परन्तु तू ही ने और तेरे पिता के घराने ने दिया है; क्योंकि तुम यहोवा की आज्ञाओ को टालकर बाल देवताओं की उपासना करने लगे।
19. अब दूत भेजकर सारे इस्राएल को और बाल के साढ़े चार सौ नबियोंऔर अशेरा के चार सौ नबियोंको जो हेज़ेबेल की मेज पर खाते हैं, मेरे पास कर्म्मेल पर्वत पर इकट्ठा कर ले।
20. तब अहाब ने सारे इस्राएलियोंको बुला भेजा और नबियोंको कर्म्मेल पर्वत पर इकट्ठा किया।
21. और एलिय्याह सब लोगोंके पास आकर कहने लगा, तुम कब तक दो विचारोंमें लटके रहोगे, यदि यहोवा परमेश्वर हो, तो उसके पीछे हो लेओ; और यदि बाल हो, तो उसके पीछे हो लेओ। लोगोंने उसके उत्तर में एक भी बात न कही।
22. तब एलिय्याह ने लोगोंसे कहा, यहोवा के नबियोंमें से केवल मैं ही रह गया हूँ; और बाल के नबी साढ़े चार सौ मनुष्य हैं।
23. इसलिथे दो बछड़े लाकर हमें दिए जाएं, और वे एक अपके लिथे चुनकर उसे टुकड़े टुकड़े काटकर लकड़ी पर रख दें, और कुछ आग न लगाएं; और मैं दूसरे बछड़े को तैयार करके लकड़ी पर रखूंगा, और कुछ आग न लगाऊंगा।
24. तब तुम तो अपके दवता से प्रार्यना करना, और मैं यहोवा से प्रार्यना करूंगा, और जो आग गिराकर उत्तर दे वही परमेश्वर ठहरे। तब सब लोग बोल उठे, अच्छी बात।
25. और एलिय्याह ने बाल के नबियोंसे कहा, पहिले तुम एक बछड़ा चुनकर तैयार कर लो, क्योंकि तुम तो बहुत हो; तब अपके देवता से प्रार्यना करना, परन्तु आग न लगाना।
26. तब उन्होंने उस बछड़े को जो उन्हें दिया गया या लेकर तैयार किया, और भोर से लेकर दोपहर तक वह यह कहकर बाल से प्रार्यना करते रहे, कि हे बाल हमारी सुन, हे बाल हमारी सुन ! परन्तु न कोई शब्द और न कोई उत्तर देनेवाला हुआ। तब वे अपक्की बनाई हुई वेदी पर उछलने कूदने लगे।
27. दोपहर को एलिय्याह ने यह कहकर उनका ठट्ठा किया, कि ऊंचे शब्द से पुकारो, वह तो देवता है; वह तो ध्यान लगाए होगा, वा कहीं गया होगा वा यात्रा में होगा, वा हो सकता है कि सोता हो और उसे जगाना चाहिए।
28. और उन्होंने बड़े शब्द से पुकार पुकार के अपक्की रीति के अनुसार छुरियोंऔर बछिर्योंसे अपके अपके को यहां तक घायल किया कि लोहू लुहान हो गए।
29. वे दोपहर भर ही क्या, वरन भेंट चढ़ाने के समय तक नबूवत करते रहे, परन्तु कोई शब्द सुन न पड़ा; और न तो किसी ने उत्तर दिया और न कान लगाया।
30. तब एलिय्याह ने सब लोगोंसे कहा, मेरे निकट आओ; और सब लोग उसके निकट आए। तब उस ने यहोवा की वेदी की जो गिराई गई यी मरम्मत की।
31. फिर एलिय्याह ने याकूब के पुत्रोंकी गिनती के अनुसार जिसके पास यहोवा का यह पचन आया या,
32. कि तेरा नाम इस्राएल होगा, बारह पत्य्र छांटे, और उन पत्यरोंसे यहोवा के नाम की एक वेदी बनाई; और उसके चारोंओर इतना बड़ा एक गड़हा खोद दिया, कि उस में दो सआ बीज समा सके।
33. तब उस ने वेदी पर लकड़ी को सजाया, और बछड़े को टुकड़े टुकड़े काटकर लकड़ी पर धर दिया, और कहा, चार घड़े पानी भर के होमबलि, पशु और लकड़ी पर उणडेल दो।
34. तब उस ने कहा, दूसरी बार वैसा ही करो; तब लोगोंने दूसरी बार वैसा ही किया। फिर उस ने कहा, तीसरी बार करो; तब लोगोंने तीसरी बार भी वैसा ही किया।
35. और जल वेदी के चारोंओर बह गया, और गड़हे को भी उस ने जल से भर दिया।
36. फिर भेंट चढ़ाने के समय एलिय्याह नबी समीप जाकर कहने लगा, हे इब्राहीम, इसहाक और इस्राएल के परमेश्वर यहोवा ! आज यह प्रगट कर कि इस्राएल में तू ही परमेश्वर है, और मैं तेरा दास हूँ, और मैं ने थे सब काम तफ से वचन पाकर किए हैं।
37. हे यहावा ! मेरी सुन, मेरी सुन, कि थे लोग जान लें कि हे यहोवा, तू ही परमेश्वर है, और तू ही उनका मन लौटा लेता है।
38. तब यहोवा की आग आकाश से प्रगट हुई और होमबलि को लकड़ी और पत्य्रोंऔर धूलि समेत भस्म कर दिया, और गड़हे में का जल भी सुखा दिया।
39. यह देख सब लोग मुंह के बल गिरकर बोल उठे, यहोवा ही परमेश्वर है, यहोवा ही परमेश्वर है;
40. एलिय्याह ने उन से कहा, बाल के नबियोंको पकड़ लो, उन में से एक भी छूटते न पाए; तब उन्होंने उनको पकड़ लिया, और एलिय्याह ने उन्हें नीचे किशोन के नाले में ले जाकर मार डाला।
41. फिर एलिय्याह ने अहाब से कहा, उठकर खा पी, क्योंकि भारी वर्षा की सनसनाहट सुन पडती है।
42. तब अहाब खाने पीने चला गया, और एलिय्याह कर्म्मेल की चोटी पर चढ़ गया, और भूमि पर गिर कर अपना मुंह घुटनोंके बीच किया।
43. और उस ने अपके सेवक से कहा, चढ़कर समुद्र की ओर दृष्टि कर देख, तब उस ने चढ़कर देखा और लौटकर कहा, कुछ नहीं दीखता। एलिय्याह ने कहा, फिर सात बार जा।
44. सातवीं बार उस ने कहा, देख समुद्र में से मनुष्य का हाथ सा एक छोटा आदल उठ रहा है। एलिय्याह ने कहा, अहाब के पास जाकर कह, कि रय जुतवा कर नीचे जा, कहीं ऐसा न हो कि नू वर्षा के कारण रुक जाए।
45. योड़ी ही देर में आकाश वायु से उड़ाई हुई घटाओं, और आन्धी से काला हो गया और भरी वर्षा होने लगी; और अहाब सवार होकर यिज्रेल को चला।
46. तब यहोवा की शक्ति एलिय्याह पर ऐसी हुई; कि वह कमर बान्धकर अहाब के आगे आगे यिज्रेल तक दौड़ता चला गया।

Chapter 19

1. तब अहाब ने हेज़ेबेल को एलिय्याह के सब काम विस्तार से बताए कि उस ने सब नबियोंको तलवार से किस प्रकार मार डाला।
2. तब हेज़ेबेल ने एलिय्याह के पास एक दूत के द्वारा कहला भेजा, कि यदि मैं कल इसी समय तक तेरा प्राण उनका सा न कर डालूं तो देवता मेरे साय वैसा ही वरन उस से भी अधिक करें।
3. यह देख एलिय्याह अपना प्राण लेकर भागा, और यहूदा के बेशॅबा को पहुंचकर अपके सेवक को वहीं छोड़ दिया।
4. और आप जंगल में एक दिन के मार्ग पर जाकर एक फाऊ के पेड़ के तले बैठ गया, वहां उस ने यह कह कर अपक्की मृत्यु मांगी कि हे यहोवा बस है, अब मेरा प्राण ले ले, क्योंकि मैं अपके पुरखाओं से अच्छा नहीं हूँ।
5. चह फाऊ के पेड़ तले लेटकर सो गया और देखो एक दूत ने उसे छूकर कहा, उठकर खा।
6. उस ने दृष्टि करके क्या देखा कि मेरे सिरहाने पत्यरोंपर पको ऊई एक रोटी, और एक सुराही पानी धरा है; तब उस ने खाया और पिया और फिर लेट गया।
7. दूसरी बार यहोवा का दूत आया और उसे छूकर कहा, उठकर खा, क्योंकि तुझे बहुत भारी यात्रा करनी है।
8. तब उस ने उठकर खाया पिया; और उसी भोजन से बल पाकर चालीस दिन रात चलते चलते परमेश्वर के पर्वत होरेब को पहुंचा।
9. वहां वह एक गुफा में जाकर टिका और यहोवा का यह वचन उसके पास पहुंचा, कि हे एलिय्याह तेरा यहां क्या काम?
10. उन ने उत्तर दिया सेनाओं के परमेश्वर यहोवा के निमित्त मुझे बड़ी जलन हुई है, क्योकि इस्राएलियोंने तेरी वाचा आल दी, तेरी बेदियोंको गिरा दिया, और तेरे नबियोंको तलवार से घात किया है, और मैं ही अकेला रह गया हूँ; और वे मेरे प्राणोंके भी खोजी हैं।
11. उस ने कहा, निकलकर यहोवा के सम्मुख पर्वत पर खड़ा हो। और यहोवा पास से होकर चला, और यहोवा के साम्हने एक बड़ी प्रचणड आन्धी से पहाड़ फटने और चट्टानें टूटने लगीं, तौभी यहोवा उस आन्धी में न या; फिर आन्धी के बाद भूंईडोल हूआ, तौभी यहोवा उस भूंईडोल में न या।
12. फिर भूंईडोल के बाद आग दिखाई दी, तौभी यहोवा उस आग में न या; फिर आग के बाद एक दबा हुआ धीमा शब्द सुनाई दिया।
13. यह सुनते ही एलिय्याह ने अपना मुंह चद्दर से ढांपा, और बाहर जाकर गुफा के द्वार पर खड़ा हुआ। फिर एक शब्द उसे सुनाई दिया, कि हे एलिय्याह तेरा यहां क्या काम?
14. उस ने कहा, मुझे सेनाऔं के परमेश्वर यहोवा के निमित्त बड़ी जलन हुई, क्योंकि इस्राएलियोंने तेरी वाचा टाल दी, और तेरी वेदियोंको गिरा दिया है और तेरे नबियोंको तलवार से घात किया है; और मैं ही अकेला रह गया हूँ; और वे मेरे प्राणोंके भी खोजी हैं।
15. यहोवा ने उस से कहा, लौटकर दमिश्क के जंगल को जा, और वहां पहुंचकर अराम का राजा होने के लिथे हजाएल का,
16. और इस्राएल का राजा होने को निमशी के पोते थेहू का, और अपके स्यान पर नबी होने के लिथे आबेलमहोला के शापात के पुत्र एलीशा का अभिषेक करना।
17. और हजाएल की तलवार से जो कोई बच जाए उसको थेहू मार डालेगा; और जो कोई थेहू की तलवार से बच जाए उसको एलीशा मार डालेगा।
18. तौभी मैं सात हजार इस्राएलियोंको बचा रखूंगा। थे तो वे सब हैं, जिन्होंने न तो बाल के आगे घुटने टेके, और न मुंह से उसे चूमा है।
19. तब वह वहां से चल दिया, और शापात का पुत्र एलीशा उसे मिला जो बारह जोड़ी बैल अपके आगे किए हुए आप बारहवीं के साय होकर हल जोत रहा य। उसके पास जाकर एलिय्याह ने अपक्की चद्दर उस पर डाल दी।
20. तब वह बैलोंको छोड़कर एलिय्याह के पीछे दौड़ा, और कहने लगा, मुझे अपके माता-पिता को चूमने दे, तब मैं तेरे पीछे चलूंगा। उस ने कहा, लौट जा, मैं ने तुझ से क्या किया है?
21. तब वह उसके पीछे से लौट गया, और एक जोड़ी बैल लेकर बलि किए, और बैलोंका सामान जलाकर उनका मांस पका के अपके लोगोंको दे दिया, और उन्होंने खाया; तब वह कमर बान्धकर एलिय्याह के पीछे चला, और उसकी सेवा टहल करने लगा।

Chapter 20

1. और अराम के राजा बेन्हदद ने अपक्की सारी सेना इकट्ठी की, और उसके साय बत्तीस राजा और घोड़े और रय थे; उन्हें संग लेकर उस ने शोमरोन पर चढ़ाई की, और उसे घेर के उसके विरुद्ध लड़ा।
2. और उस ने नगर में इस्राएल के राजा अहाब के पास दूतोंको यह कहने के लिथे भेजा, कि बेन्हदद तुझ से योंकहता है,
3. कि तेरा चान्दी सोना मेरा है, और तेरी स्त्रियोंऔर लड़केबालोंमें जो जो उत्तम हैं वह भी सब मेरे हैं।
4. इस्राएल के राजा ने उसके पास कहला भेजा, हे मेरे प्रभु ! हे राजा ! तेरे वचन के अनुसार मैं और मेरा जो कुछ है, सब तेरा है।
5. उन्हीं दूतोंने फिर आकर कहा बेन्हदद तुझ से योंकहता है, कि मैं ने तेरे पास यह कहला भेजा या कि तुझे अपक्की चान्दी सोना और स्त्रियां और बालक भी मुझे देने पकेंगे।
6. परन्तु कल इसी समय मैं अपके कर्मचारियोंको तेरे पास भेजूंगा और वे तेरे और तेरे कर्मचारियोंके धरोंमें ढूंढ़-ढांढ़ करेंगे, और तेरी जो जो मनभावनी वस्तुएं निकालें उन्हें वे अपके अपके हाथ में लेकर आएंगे।
7. तब इस्राएल के राजा ने अपके देश के सब पुरनियोंको बुलवाकर कहा, सोच विचार करो, कि वह मनुष्य हमारी हानि ही का अभिलाषी है; उस ने मुझ से मेरी स्त्रियां, बालक, चान्दी सोना मंगा भेजा है, और मैं ने इन्कार न किया।
8. तब सब पुरनियोंने और सब साधारण लोगोंने उस से कहा, उसकी न सुनना; और न मानना।
9. तब राजा ने बेन्हदद के दूतोंसे कहा, मेरे प्रभु राजा से मेरी ओर से कहो, जो कुुछ तू ने पहिले अपके दास से चाहा या वह तो मैं करूंगा, परन्तु यह मुझ से न होगा। तब बेन्हदद के दूतोंने जाकर उसे यह उत्तर सुना दिया।
10. तब बेन्हदद ने अहाब के पास कहला भेजा, यदि शोमरोन में इतनी धूलि निकले कि मेरे सब पीछे चलनेहारोंकी मुट्ठी भर कर अट जाए तो देवता मेरे साय ऐसा ही वरन इस से भी अधिक करें।
11. इस्राएल के राजा ने उत्तर देकर कहा, उस से कहो, कि जो हयियार बान्धता हो वह उसकी नाई न फूले जो उन्हें उतारता हो।
12. यह वचन सुनते ही वह जो और राजाओं समेत डेरोंमें पी रहा या, उस ने अपके कर्मचारियोंसे कहा, पांति बान्धो, तब उन्होंने नगर के विरुद्ध पांति बान्धी।
13. तब एक नबी ते इस्राएल के राजा अहाब के पास जाकर कहा, यहोवा तुझ से योंकहता है, यह बड़ी भीड़ जो तू ने देखी है, उस सब को मैं आज तेरे हाथ में कर दूंगा, इस से तू जान लेगा, कि मैं यहोवा हूँ।
14. अहाब ने पूछा, किस के द्वारा? उस ने कहा यहोवा योंकहता है, कि प्रदेशोंके हाकिमोंके सेवकोंके द्वारा ! फिर उस ने पूछा, युद्ध को कौन आरम्भ करे? उस ने उत्तर दिया, तू ही।
15. तब उस ने प्रदेशोंके हाकिमोंके सेवकोंकी गिनती ली, और वे दो सौ बत्तीस निकले; और उनके बाद उस ने सब इस्राएली लोगोंकी गिनती ली, और वे सात हजार निकले।
16. थे दोपहर को निकल गए, उस समय बेन्हदद अपके सहाथक बत्तीसोंराजाओं समेत डेरोंमें दारू पीकर मतवाला हो रहा या।
17. प्रदेशोंके हाकिमोंके सेवक पहिले निकले। तब बेन्हदद ने दूत भेजे, और उन्होंने उस से कहा, शोमरोन से कुछ मनुष्य निकले आते हैं।
18. उस ने कहा, चाहे वे मेल करने को निकले हों, चाहे लड़ने को, तौभी उन्हें जीवित ही पकड़ लाओ।
19. तब प्रदेशोंके हाकिमोंके सेवक और उनके पीछे की सेना के सिपाही नगर से निकले।
20. तौर वे अपके अपके साम्हने के पुरुष को पारने लगे; और अरामी भागे, और इस्राएल ने उनका पीछा किया, और अराम का राजा बेन्हदद, सवारोंके संग घोड़े पर चढ़ा, और भागकर बच गया।
21. तब इस्राएल के राजा ने भी निकलकर घोड़ोंऔर रयोंको मारा, और अरामियोंको बड़ी मार से मारा।
22. तब उस नबी ने इस्राएल के राजा के पास जाकर कहा, जाकर लड़ाई के लिथे अपके को दृढ़ कर, और सचेत होकर सोच, कि क्या करना है, क्योंकि नथे वर्ष के लगते ही अराम का राजा फिर तुझ पर चढ़ाई करेगा।
23. तब अराम के राजा के कर्मचारियोंने उस से कहा, उन लोगोंका देवता पहाड़ी देवता है, इस कारण वे हम पर प्रबल हुए; इसलिथे हम उन से चौरस भूमि पर लड़ें तो निश्चय हम उन पर प्रबल हो जाएंगे।
24. और यह भी काम कर, अर्यात्‌ सब राजाओं का पद ले ले, और उनके स्यान पर सेनापतियोंको ठहरा दे।
25. फिर एक और सेना जो तेरी उस सेना के बराबर हो जो नष्ट हो गई है, घोड़े के बदले घोड़ा, और रय के बदले रय, अपके लिथे गिन ले; तब हम चौरस भूमि पर उन से लड़ें, और निश्चय उन पर प्रबल हो जाएंगे। उनकी यह सम्मति मानकर बेन्हदद ने वैसा ही किया।
26. और नथे वर्ष के लगते ही बेन्हदद ने अरामियोंको इकट्ठा किया, और इस्राएल से लड़ने के लिथे अपेक को गया।
27. और इस्राएली भी इकट्ठे किए गए, और उनके भोजन की तैयारी हुई; तब वे उनका साम्हना करने को गए, और इस्राएली उनके साम्हने डेरे डालकर बकरियोंके दो छोटे फुणड से देख पके, परन्तु अरामियोंसे देश भर गया।
28. तब परमेश्वर के उसी जन ने इस्राएल के राजा के पास जाकर कहा, यहोवा योंकहता है, अरामियोंने यह कहा है, कि यहोवा पहाड़ी देवता है, परन्तु नीची भूमि का नहीं है; इस कारण मैं उस बड़ी भीड़ को तेरे हाथ में कर दूंगा, तब तुम्हें बोध हो जाएगा कि मैं यहोवा हूँ।
29. और वे सात दिन आम्हने साम्हने डेरे डाले पके रहे; तब सातवें दिन युद्ध छिड़ गया; और एक दिन में इस्राएलियोंने एक लाख अरामी पियादे मार डाले।
30. जो बच गए, वह अपेक को भागकर नगर में घुसे, और वहां उन बचे हुए लोगोंमें से सत्ताईस हजार पुरुष श्हरपनाह की दीवाल के गिरने से दब कर मर गए। बेन्हदद भी भाग गया और नगर की एक भीतरी कोठरी में गया।
31. तब उसके कर्मचारियोंने उस से कहा, सुन, हम ने तो सुना है, कि इस्राएल के घराने के राजा दयालु राजा होते हैं, इसदिथे हमें कमर में टाट और सिर पर रस्सियां बान्धे हुए इस्राएल के राजा के पास जाने दे, सम्भव है कि वह तेरा प्राण बचा ले।
32. तब वे कमर में टाट और सिर पर रस्सियां बान्ध कर इस्राएल के राजा के पास जाकर कहने लगे, तेरा दास बेन्हदद तुझ से कहता है, कृपा कर के मुझे जीवित रहने दे। राजा ने उत्तर दिया, क्या वह अब तक जीवित है? वह तो मेरा भाई है।
33. उन लोगोंने इसे शुभ शकुन जानकर, फुतीं से बूफ लेने का यत्न किया कि यह उसके मन की बात है कि नहीं, और कहा, हां तेरा भाई बेन्हदद। राजा ने कहा, जाकर उसको ले आओ। तब बेन्हदद उसके पास निकल आया, और उस ने उसे अपके रय पर चढ़ा लिया।
34. तब बेन्हदद ने उस से कहा, जो नगर मेरे पीता ने तेरे पिता से ले लिए थे, उनको मैं फेर दूंगा; और जैसे मेरे पिता ने शोमरोन में अपके लिथे सड़कें बनवाई, वैसे ही तू दमिश्क में सड़कें बनवाना। अहाब ने कहा, मैं इसी वाचा पर तुझे छोड़ देता हूँ, तब उस ने बेन्हदद से वाचा बान्धकर, उसे स्वतन्त्र कर दिया।
35. इसके बाद नबियोंके चेलोंमें से एक जन ने यहोवा से वचन पाकर अपके संगी से कहा, मुझे मार, जब उस मनुष्य ने उसे मारने से इनकार किया,
36. तब उस ने उस से कहा, तू ने यहोवा का वचन नहीं माना, इस कारण सुन, ज्योंही तू मेरे पास से चला जाएगा, त्योंही सिंह से मार डाला जाएगा। तब ज्योंही वह उसके पास से चला गया, ज्योंही उसे एक सिंह मिला, और उसको मार डाला।
37. फिर उसको दूसरा मनुष्य मिला, और उस से भी उस ने कहा, मुझे मार। और उस ने उसको ऐसा मारा कि वह घायल हुआ।
38. तब वह नबी चला गया, और आंखोंको पगड़ी से ढांपकर राजा की बाट जोहता हुआ मार्ग पर खड़ा रहा।
39. जब राजा पास होकर जा रहा या, तब उस ने उसकी दोहाई देकर कहा, कि जब तेरा दास युद्ध झेत्र में गया या तब कोइ मनुष्य मेरी ओर मुड़कर किसी मनुष्य को मेरे पास ले आया, और मुझ से कहा, इस पतुष्य की चौकसी कर; यदि यह किसी रीति छूट जाए, तो उसके प्राण के बदले तुझे अपना प्राण देना होगा; नहीं तो किक्कार भर चान्दी देना पकेगा।
40. उसके बाद तेरा दास इधर उधर काम में फंस गया, फिर वह न मिला। इस्राएल के राजा ने उस से कहा, तेरा ऐसा ही न्याय होगा; तू ने आप अपना न्याय किया है।
41. नबी ने फट अपक्की आंखोंसे पगड़ी उठाई, तब इस्राएल के राजा ने उसे पहिचान लिया, कि वह कोई नबी है।
42. तब उस ने राजा से कहा, यहोवा तुझ से योंकहता है, इसलिथे कि तू ने अपके हाथ से ऐसे ऐक मनुष्य को जाने दिया, जिसे मैं ने सत्यानाश हो जाने को ठहराया या, तुझे उसके प्राण की सन्ती अपना प्राण और उसकी प्रजा की सन्ती, अपक्की प्रजा देनी पकेगी।
43. तब इस्राएल का राजा उदास और अप्रसन्न होकर घर की ओर जला, और शोमरोन को आया।

Chapter 21

1. नाबोत नाम एक यिज्रेली की एक दाख की बारी शोमरोन के राजा अहाब के राजमन्दिर के पास यिज्रेल में यी।
2. इन बातोंके बाद अीाब ने नाबोत से कहा, तेरी दाख की बारी मेरे घर के पास है, तू उसे मुझे दे कि मैं उस में साग पात की बारी लगाऊं; और मैं उसके बदले तुझे उस से अच्छी एक बाटिका दूंगा, नहीं तो तेरी इच्छा हो तो मैं तुझे उसका मूल्य दे दूंगा।
3. नाबोत ने यहाब से कहा, यहोवा न करे कि मैं अपके पुरखाओं का निज भाग तुझे दूं !
4. यिज्रेली नाबोत के इस वचन के कारण कि मैं तुझे अपके पुरखाओं का निज भाग न दूंगा, अहाब उदास और अप्रसन्न होकर अपके घर गया, और बिछौने पर लेट गया और मुंह फेर लिया, और कुछ भेजन न किया।
5. तब उसकी पत्नी हेज़ेबेल ने उसके पास आकर पूछा, तेरा मन क्योंऐसा उदास है कि तू कुछ भोजन नहीं करता?
6. उस ने कहा, कारण यह है, कि मैं ने यिज्रेली नाबोत से कहा कि रुपया लेकर मुझे अपक्की दाख की बारी दे, नहीं तो यदि नू चाहे तो मैं उसकी सन्ती दूसरी दाख की बारी दूंगा; और उसने कहा, मैं अपक्की दाख की बारी तुझे न दूंगा।
7. उसकी पत्नी हेज़ेबेल ने उस से कहा, क्या तू इस्राएल पर राज्य करता है कि नहीं? उठकर भोजन कर; और तेरा मन आनन्दित हो; यिज्रेली नाबोत की दाख की बारी मैं तुझे दिलवा दूंगी।
8. तब उस ने अहाब के नाम से चिट्ठी लिखकर उसकी अंगूठी की छाप लगाकर, उन पुरनियोंऔर रईसोंके पास भेज दी जो उसी नगर में नाबोत के पड़ोस में रहते थे।
9. उस चिट्ठी में उस ने योंलिखा, कि उपवास का प्रचार करो, और नाबोत को लोगोंके साम्हने ऊंचे स्यान पर बैठाना।
10. तब दो नीच जनोंको उसके साम्हने बैठाना जो साझी देकर उस से कहें, तू ने परमेश्वर और राजा दोनोंकी निन्दा की। नब नुम लोग उसे बाहर ले जाकर उसको पत्यरवाह करना, कि वह मर जाए।
11. हेज़ेबेल की चिट्ठी में की आज्ञा के अनुसार नगर में रहनेवाले पुरनियोंऔर रईसोंने उपवास का प्रचार किया,
12. और नाबोत को लोगोंके साम्हने ऊंचे स्यान पर बैठाया।
13. तब दो नीच जन आकर उसके सम्मुख बैठ गए; और उन नीच जनोंने लोगोंलोगोंके साम्हने नाबोत के विम्द्ध यह साझी दी, कि नाबोत ने परमेश्वर और राजा दोनोंकी निन्दा की। इस पर उन्होंने उसे नगर से बाहर ले जाकर उसको पत्यरवाह किया, और वह मर गया।
14. तब उन्होंने हेज़ेबेल के पास यह कहला भेजा कि नाबोत पत्यरवाह करके मार डाला गया है।
15. यह सुनते ही कि नाबोत पत्यरवाह करके मारडाला गया है, हेज़ेबेल ने अहाब से कहा, उठकर यिज्रेली नाबोत की दाख की बारी को जिसे उस ने तुझे रुपया लेकर देने से भी इनकार किया या अपके अधिक्कारने में ले, क्योंकि नाबोत जीवित नहीं परन्तु वह मर गया है।
16. यिज्रेली नाबोत की मृत्यु का समाचार पाते ही अहाब उसकी दाख की बारी अपके अधिक्कारने में लेने के लिथे वहां जाने को उठ खड़ा हुआ।
17. तब यहोवा का यह वचन निशबी एलिय्यह के पास पहुंचा, कि चल,
18. शोमरोन में रहनेवाले इस्राएल के राजा अहाब से मिलने को जा; वह तो नाबोत की दाख की बारी में है, उसे अपके अधिक्कारने में लेने को वह वहां गया है।
19. और उस से यह कहना, कि यहोवा योंकहता है, कि क्या तू ने घात किया, और अधिक्कारनेी भी बन बैटा? फिर तू उस से यह भी कहना, कि यहोवा योंकहता है, कि जिस स्यान पर कुत्तोंने नाबोत का लोहू चाटा, उसी स्यान पर कुत्ते तेरा भी लोहू चाटेंगे।
20. एलिय्याह को देखकर अहाब ने कहा, हे मेरे शत्रु ! क्या तू ने मेरा पता लगाया है? उस ने कहा हां, लगाया तो है; और इसका कारण यह है, कि जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, उसे करने के लिथे तू ने अपके को बेच डाला है।
21. मैं तुझ पर ऐसी विपत्ति डालूंगा, कि तुझे पूरी रीति से मिटा डालूंगा; और अहाब के घर के एक एक लड़के को उौर क्या बन्धुए, क्या स्वाधीन इस्राएल में हर एक रहनेवाले को भी नाश कर डालूंगा।
22. और मैं तेरा घराना नबात के पुत्र यारोबाम, और अहिय्याह के पुत्र बाशा का सा कर दूंगा; इसलिथे कि तू ने मुझे क्रोधित किया है, और इस्राएल से पाप करवाया है।
23. और हेज़ेबेल के विषय में यहोवा यह कहता है, कि यिज्रेल के किले के पास कुत्ते हेज़ेबेल को खा डालेंगे।
24. अहाब का जो काई नगर में मर जाएगा उसको कुत्ते खा लेंगे; उौर जो कोई मैदान में मर जाएगा उसको आकाश के पक्की खा जाएंगे।
25. सचमुच अहाब के तुल्य और कोई न या जिसने अपक्की पत्नी हेज़ेबेल के उसकाने पर वह काम करने को जो यहोवा की दृष्टि में बुरा है, अपके को बेच डाला या।
26. वह तो उन एमोरियोंकी नाई जिनको यहोवा ने इस्राएलियोंके साम्हने से देश से निकाला या बहुत ही घिनौने काम करता या, अर्यात्‌ मूरतोंकी उपासना करने लगा या।
27. एलिय्याह के थे वचन सुनकर अहाब ने अपके वस्त्र फाड़े, और अपक्की देह पर टाट लपेटकर उपवास करने और टाट ही ओढ़े पड़ा रहने लगा, और दबे पांवोंचलने लगा।
28. और यहोवा का यह वचन तिशबी एलिय्याह के पास पहुंचा,
29. कि क्या तू ने देखा है कि अहाब मेरे साम्हने नम्र बन गया है? इस कारण कि वह मेरे साम्हने नम्र बन गया है मैं वह विपत्ति उसके जीते जी उस पर न डालूंगा परन्तू उसके पुत्र के दिनोंमें मैं उसके घराने पर वह पिपत्ति भेजूंगा।

Chapter 22

1. और तीन वर्ष तक अरामी और इस्राएली बिना युद्ध रहे।
2. तीसरे वर्ष में यहूदा का राजा यहोशापात इस्राएल के राजा के पास गया।
3. तब इस्राएल के राजा ने अपके कर्मचारियोंसे कहा, क्या तुम को मालूम है, कि गिलाद का रामोत हमारा है? फिर हम क्योंचुपचाप रहते और उसे अराम के राजा के हाथ से क्योंनहीं छीन लेते हैं?
4. और उस ने यहोशापात से पूछा, क्या तू मेरे संग गिलाद के रामोत से लड़ने के लिथे जाएगा? यहोशापात ने इस्राएल के राजा को उत्तर दिया, जैसा तू है वैसा मैं भी हूँ। जैसी तेरी प्रजा है वैसी ही मेरी भी प्रजा है, और जैसे तेरे घोड़े हैं वैसे ही मेरे भी घोड़े हैं।
5. फिर यहोशापात ने इस्राएल के राजा से कहा,
6. कि आज यहोवा की इच्छा मालूम कर ले, नब इस्राएल के राजा ने नबियोंको जो कोई चार सौ पुरुष थे इकट्ठा करके उन से पूछा, क्या मैं गिलाद के रामोत से युद्ध करने के लिथे चढ़ाई करूं, वा रुका रहूं? उन्होंने उत्तर दिया, चढ़ाई कर : क्योंकि प्रभु उसको राजा के हाथ में कर देगा।
7. परन्तु यहोशापात ने पूछा, क्या यहां यहोवा का और भी कोई नबी नहीं है जिस से हम पूछ लें?
8. इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, हां, यिम्ला का पुत्र मीकायाह एक पुरुष और है जिसके द्वारा हम यहोवा से पूछ सकते हैं? परन्तु मैं उस से घृणा रखता हूँ, क्योंकि वह मेरे विष्य कल्याण की नहीं वरन हानि ही की भविष्यद्वाणी करता है।
9. यहोशापात ने कहा, राजा ऐसा न कहे। तब दस्राएल के राजा ने एक हाकिम को बुलवा कर कहा, यिम्ला के पुत्र मीकायाह को फुतीं से ले आ।
10. इस्राएल का राजा और यहूदा का राजा यहोशापात, अपके अपके राजवस्त्र पहिने हुए शोमरोन के फाटक में एक खुले स्यान में अपके अपके सिंहासन पर विराजमान थे और सब भविष्यद्वक्ता उनके सम्मुख भविष्यद्वाणी कर रहे थे।
11. तब कनाना के पुत्र सिदकिय्याह ने लोहे के सींग बनाकर कहा, यहोवा योंकहता है, कि इन से तू अरामियोंको मारते मारते नाश कर डालेगा।
12. और सब नबियोंने इसी आशय की भविष्यद्वाणी करके कहा, गिलाद के रामोत पर चढ़ाई कर और तू कृतार्य हो; क्योंकि यहोवा उसे राजा के हाथ में कर देगा।
13. और जो दूत मीकायाह को बुलाने गया या उस ने उस से कहा, सुन, भविष्यद्वक्ता एक ही मुंह से राजा के विषय शुभ वचन कहते हैं तो तेरी बातें उनकी सी हों; तू भी शुभ वचन कहना।
14. मीकायाह ने कहा, यहोवा के जीवन की शपय जो कुछ यहोवा मुझ से कहे, वही मैं कहूंगा।
15. जब वह राजा के पास आया, तब राजा ने उस से पूछा, हे मीकायाह ! क्या हम गिलाद के रामोत से युद्ध करने के लिथे चढ़ाई करें वा रुके रहें? उस ने उसको उत्तर दिया हां, चढ़ाई कर और तू कृतार्य हो; और यहोवा उसको राजा के हाथ में कर दे।
16. राजा ने उस से कहा, मुझे कितनी बार तुझे शपय धराकर चिताना होगा, कि तू यहोवा का स्मरण करके मुझ से सच ही कह।
17. मीकायाह ने कहा मुझे समस्त इस्राएल बिना चरपाहे की भेड़बकरियोंकी नाई पहाड़ोंपर; तित्तर बित्तर देख पड़ा, और यहोवा का यह वचन आया, कि वे तो अनाय हैं; अतएव वे अपके अपके घर कुशल झेम से लौट जाएं।
18. तब इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, क्या मैं ने तुझ से न कहा या, कि वह मेरे विषय कल्याण की नहीं हानि ही की भविष्यद्वाणी करेगा।
19. मीकायाह ने कहा इस कारण तू यहोवा का यह वचन सुन ! मुझे सिंहासन पर विराजमान यहोवा और उसके पास दाहिने बांथें खड़ी इुई स्वर्ग की समस्त सेना दिखाई दी है।
20. तब यहोवा ने पूछा, अहाब को कौन ऐसा बहकाएगा, कि वह गिलाद के रामो पर चढ़ाई करके खेत आए तब किसी ते कुछ, और किसी ने कुछ कहा।
21. निदान एक आत्मा पास आकर यहोव के सम्मुख खड़ी हुई, और कहने लगी, मैं उसको वहकाऊंगी : यहोवा ने पूछा, किस उपाय से?
22. उस ने कहा, मैं जाकर उसके सब भविष्यद्वक्ताओं में पैठकर उन से फूठ बुलवाऊंगी। यहोवा ने कहा, तेरा उसको बहकाना सुफल होगा, जाकर ऐसा ही कर।
23. तो अब सुन यहोवा ने तेरे इन सब भविष्यद्वक्ताओं के मुंह में एक फूठ बोलनेवाली आत्मा पैठाई है, और यहोवा ने तेरे विष्य हानि की बात कही है।
24. तब कनाना के पुत्र सिदकिज्याह ने मीकायाह के निकट जा, उसके गाल पर यपेड़ा मार कर पूछा, यहोवा का आन्मा मुझे छोड़कर तूफ से बातें करने को किधर गया?
25. मीकायाह ने कहा, जिस दिन तू छिपके के लिथे कोठरी से कोठरी में भगेगा, तब तूफे बोधा होगा।
26. तब इस्राएल के राजा ने कहा, मीकायाह को नगर के हाकिम आमोन और योआश राजकुमार के पास ले जा;
27. और उन से कह, राजा योंकहता है, कि इसको बन्दीगृह में डालो, और जब तक मैं कुशल से न आऊं, तब तक इसे दु:ख की रोटी और पानी दिया करो।
28. और मीकायाह ने कहा, यदि तू कभी कुशल से लौटे, तो जान कि यहोवा ने मेरे द्वारा नहीं कहा। फिर उस ने कहा, हे लोगो तुम सब के सब सुन लो।
29. तब इस्राएल के राजा और यहूदा के राजा यहोशापात दोनोंने गिलाद के रामोत पर चढ़ाई की।
30. और इस्राएल के राजा ने यहोशापात से कहा, मैं तो भेष बदलकर युद्ध झेत्र में जाऊंगा, परन्तु तू अपके ही वस्त्र पहिने रहना। तब इस्राएल का राजा भेष बदलकर युद्ध झेत्र में गया।
31. और अराम के राजा ने तो अपके रयोंके बत्तीसोंप्रधानोंको आज्ञा दी यी, कि न तो छोटे से लड़ो और न बड़े से, केवल इस्राएल के राजा से यूद्ध करो।
32. तो जब रयोंके प्रधानोंने यहोशापात को देखा, तब कहा, निश्चय इस्राएल का राजा वही है। और वे उसी से युद्ध करने को मुड़े; तब यहोशपात चिल्ला उठा।
33. यह देखाकर कि वह इस्राएल का राजा नहीं है, रयोंके प्रधान उसका पीछा छोड़कर लौट गए।
34. तब किसी ने अटकल से एक तीर चलाया और वह इस्राएल के राजा के फिलम और निचले वस्त्र के बीच छेदकर लगा; तब उसने अपके सारयी से कहा, मैं घायल हो गया हूँ इसलिथे बागडोर फेर कर मुझे सेना में से बाहर निकाल ले चल।
35. और उस दिन युद्ध बढ़ता गया और राजा अपके रय में औरोंके सहारे अरामियोंके सम्मुख खड़ा रहा, और सांफ को मर गया; और उसके घाव का लोहू बहकर रय के पौदान में भर गया।
36. सूर्य डूबते हुए सेना में यह पुकार हुई, कि हर एक अपके नगर और अपके देश को लौट जाए।
37. जब राजा मर गया, तब शोमरोन को पहुंचाया गया और शोमरोन में उसे मिट्टी दी गई।
38. और यहोवा के वचन के अनुसार जब उसका रय शोमरोन के पोखरे में धोया गया, तब कुत्तोंने उसका लोहू चाट लिया, और वेश्याएं यहीं स्नान करती यीं।
39. अहाब के और सब काम जो उस ने किए, और हाथीदांत का जो भवन उस ने बनाया, और जो जो नगर उस ने बसाए थे, यह सब क्या इस्राएली राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है?
40. निदान अहाब अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसका पुत्र अहज्याह उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
41. इस्राएल के राजा अहाब के चौथे वर्ष में आसा का पुत्र यहोशापात यहूदा पर राज्य करने लगा।
42. जब यहोशापात राज्य करने लगा, तब वह पैंतीस वर्ष का या। और पक्कीस पर्ष तक यरूशलेम में राज्य करता रहा। और उसकी माता का नाम अजूबा या, जो शिल्ही की बेटी यी।
43. और उसकी चाल सब प्रकार से उसके पिता आसा की सी यी, अर्यात जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है वही वह करता रहा, और उस से कुछ न मुड़ा। तौभी ऊंचे स्यान ढाए न गए, प्रजा के लोग ऊंचे स्यानोंपर उस समय भी बलि किया करते थे और धूप भी जलाया करते थे।
44. यहोशापात ने इस्राएल के राजा से मेल किया।
45. और यहोशापात के काम और जो वीरता उस ने दिखाई, और उस ने जो जो लड़ाइयां कीं, यह सब क्या यहूदा के राजाओं के इतिहास की पुस्तक में नहीं लिखा है?
46. पुरुषगामियोंमें से जो उसके पिता आसा के दिनोंमें रह गए थे, उनको उस ने देश में से नाश किया।
47. उस समय एदाम में कोई राजा न या; एक नायब राजकाज का काम करता या।
48. फिर यहोशापात ने तशींश के जहाज सोना लाने के लिथे ओपीर जाने को बनवा लिए, परन्तु वे एश्योनगेबेर में टूट गए, असलिथे वहां न जा सके।
49. तब अहाब के पुत्र अहज्याह ने यहोशापात से कहा, मेरे जहाजियोंको अपके जहाजियोंके संग, जहाजोंमें जाने दे, परन्तु यहोशापात ने इनकार किया।
50. निदान यहोशापात अपके पुरखाओं के संग सो गया और उसको उसके पुरखाओं के साय उसके मूलपुरुष दाऊद के नबर में मिट्टी दी गई। और उसका पुत्र यहोराम उसके स्यान पर राज्य करने लगा।
51. यहूदा के राजा यहोशापत के सत्रहवें वर्ष में अहाब का पुत्र अहज्याह शोमरोन में इस्राएल पर राज्य करने लगा और दो वर्ष तक इस्राएल पर राज्य करता रहा।
52. और उस ने वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में बुरा या। और उसकी चाज उसके माता पिता, और नबात के पुत्र यारोबाम की सी यी जिस ने इस्राएल से पाप करवाया या।
53. जैसे उसका पिता बाल की उपासने और उसे दणडवत करने से इस्राएल के परमेश्वर यहोवा को क्रोधित करता रहा वैसे ही अहज्याह भी करता रहा।


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